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RBSE Class 10 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 12 अनयोक्त्यः

RBSE Class 10 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 12 अनयोक्त्यः

अनयोक्त्यः Summary and Translation in Hindi

पाठ परिचय :

अन्योक्ति अर्थात् किसी की प्रशंसा अथवा निन्दा अप्रत्यक्ष रूप से अथवा किसी बहाने से करना। जब किसी प्रतीक या माध्यम से किसी के गुण की प्रशंसा या दोष की निन्दा की जाती है, तब वह पाठकों के लिए अधिक ग्राह्य होती है। प्रस्तुत पाठ में ऐसी ही सात अन्योक्तियों का सङ्कलन है जिनमें राजहंस, कोयल, मेघ, मालाकार, सरोवर तथा चातक के माध्यम से मानव को सवृत्तियों एवं सत्कर्मों के प्रति प्रवृत्त होने का सन्देश दिया गया है।

पाठ के श्लोकों का अन्वय एवं सप्रसंग हिन्दी अनुवाद –

1. एकेन राजहंसेन या शोभा सरसो भवेत्।
न सा बकसहस्रेण परितस्तीरवासिना॥
अन्वय – एकेन राजहंसेन सरस: या शोभा सरसो भवेत्। परितः तीरवासिना बकसहस्रेण सा (शोभा) न (भवति)॥

कठिन शब्दार्थ :

  • सरसः = सरोवर की, तालाब की (तड़ागस्य)।
  • परितः = चारों ओर (सर्वतः)।
  • तीरवासिना = किनारे पर निवास करने वाले के द्वारा (तटनिवासिना)।
  • बकसहस्रेण = हजारों बगुलों से (बकानां सहस्रेण)।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘अन्योक्तयः’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। इस पद्य में राजहंस के माध्यम से गुणवान् व्यक्ति की प्रशंसा करते हुए कहा गया है कि –
हिन्दी अनुवाद – एक राजहंस के द्वारा तालाब की जो शोभा होती है, वह शोभा चारों ओर किनारे पर निवास करने वाले हजारों बगुलों से भी नहीं होती है।
आशय यह है कि एक गुणवान् व्यक्ति से ही सम्पूर्ण कुल सुशोभित हो जाता है, हजारों मूों से नहीं।

2. भुक्ता मृणालपटली भवता निपीता
न्यम्बूनि यत्र नलिनानि निषेवितानि।
रे राजहंस! वद तस्य सरोवरस्य,
कृत्येन केन भवितासि कृतोपकारः॥
अन्वय – यत्र भवता मृणालपटली भुक्ता, अम्बूनि निपीतानि नलिनानि निषेवितानि। रे राजहंस! तस्य सरोवरस्य केन कृत्येन कृतोपकारः भविता असि, वद॥

कठिन शब्दार्थ :

  • भवता = आपके द्वारा (त्वया)।
  • मृणालपटली = कमलनाल का समूह (कमलनालसमूहः)।
  • भुक्ता = भोगा गया है (खादिता)।
  • अम्बूनि = जल (जलानि)।
  • निपीतानि = भली-भाँति पीया गया (निःशेषेण पीतानि)।
  • नलिनानि = कमलों को (कमलानि)।
  • निषेवितानि = सेवन किये गये (सेवितानि)।
  • कृत्येन = कार्य से (कार्येण)।
  • कृतोपकारः = प्रत्युपकार करने वाला (कृतः उपकारः येन सः)।
  • भविता = होगा (भविष्यति)।
  • वद = बोलो (कथय)।

प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘अन्योक्तयः’ शीर्षक पाठ से उद्धत किया गया है। इस पद्य में सरोवर का उपभोग करने वाले राजहंस के माध्यम से हमें समाज का प्रत्युपकार करने की। प्रेरणा दी गई है।

हिन्दी अनुवाद – (कवि कहता है कि) अरे राजहंस! जहाँ आपके द्वारा कमलनाल के समूह को भोगा (खाया) गया है, जल को भली-भाँति पीया गया है तथा कमलों का सेवन किया गया है, उस सरोवर का किस कार्य से प्रत्युपकार करने वाले बनोगे, बोलो। अर्थात् उस तालाब के उपकार को तुम कैसे चुकाओगे।

3. तोयैरल्पैरपि करुणया भीमभानौ निदाघे,
मालाकार! व्यरचि भवता या तरोरस्य पुष्टिः।
सा किं शक्या जनयितुमिह प्रावृषेण्येन वारां,
धारासारानपि विकिरता विश्वतो वारिदेन॥

अन्वय – हे मालाकार! भीमभानौ निदाघे अल्पैः तोयैः अपि भवता करुणया अस्य तरोः या पुष्टिः व्यरचि। वाराम् प्रावृषेण्येन विश्वतः धारासारान् अपि विकिरता वारिदेन इह जनयितुम् सा (पुष्टिः) किम् शक्या॥

कठिन शब्दार्थ :

  • मालाकार = हे माली! (हे मालाकार!)।
  • भीमभानौ = ग्रीष्मकाल में (सर्य के अत्यधिक तपने पर) (भीमः भानुः यस्मिन् सः, तस्मिन्)।
  • निदाघे = ग्रीष्मकाल में (ग्रीष्मकाले)।
  • तोयैः = जल से (जलैः)।
  • तरोः = वृक्ष का (वृक्षस्य)।
  • पुष्टिः = पोषण (पुष्टता, वृद्धिः)।
  • व्यरचि = किया गया (अरचयत्, कृता)।
  • वाराम् = जलों के (जलानाम्)।
  • प्रावृषेण्येन = वर्षाकालिक (वर्षाकालिकेन)।
  • विश्वतः = सभी ओर से (सर्वतः)।
  • धारासारान् = धाराओं का प्रवाह (धाराणां आसारान्)।
  • विकिरता = बरसाते हुए (जलं वर्षयता)।
  • वारिदेन = बादल के द्वारा (जलदेन)।
  • जनयितुम् = उत्पन्न करने के लिए (उत्पादयितुम्)।
  • शक्या = सम्भव है (सम्भवा)।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘अन्योक्तयः’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। इस पद्य में वर्षाकालीन जल की अपेक्षा भीषण गर्मी में माली द्वारा वृक्षों को दिये गये जल को अत्यधिक लाभदायक बतलाते हुए विपत्ति के समय सहायता करने की प्रेरणा दी गई है।

हिन्दी अनुवाद – (कवि कहता है कि) हे माली! सूर्य के अत्यधिक तपने पर भीषण ग्रीष्मकाल में अल्प जल से भी आपके द्वारा करुणा से इस वृक्ष का जो पोषण किया गया है। जलयुक्त वर्षाकाल में सभी ओर से जल की धाराओं का प्रवाह बरसाते हुए बादल के द्वारा भी क्या वह पोषण उत्पन्न किया जा सकता है, अर्थात् नहीं। अर्थात् यहाँ वर्षाकाल में बादलों द्वारा बरसाए गए जल की अपेक्षा भीषण ग्रीष्मकाल में माली द्वारा वृक्ष में दिया गया जल अधिक लाभदायक बताया गया है।

4. आपेदिरेऽम्बरपथं परितः पतङ्गाः,
भृङ्गा रसालमुकुलानि समाश्रयन्ते।
सङ्कोचमञ्चति सरस्त्वयि दीनदीनो,
मीनो नु हन्त कतमां गतिमभ्युपैतु॥

अन्वय – पतङ्गाः परितः अम्बरपथम् आपेदिरे, भृङ्गाः रसालमुकुलानि समाश्रयन्ते। सरः त्वयि सङ्कोचम् अञ्चति, हन्त दीनदीनः मीनः नु कतमां गतिम् अभ्युपैतु ॥

कठिन शब्दार्थ :

  • पतङ्गाः = पक्षी (खगाः)।
  • परितः = चारों ओर (सर्वतः)।
  • अम्बरपथम् = आकाश-मार्ग को (आकाशमार्गम्)।
  • आपेदिरे = प्राप्त कर लिए हैं (प्राप्तवन्तः)।
  • भृङ्गाः = भँवरे (भ्रमराः)।
  • रसालमुकुलानि = आम की मञ्जरियों को (रसालानां मुकुलानि)।
  • समाश्रयन्ते = आश्रय लेते हैं (शरणं प्राप्नुवन्ति)।
  • सरः = सरोवर (तडागः)।
  • सङ्कोचम् अञ्चति = संकुचित होने पर (सङ्कोचं गच्छति)।
  • हन्त = खेद है (खेदः)।
  • मीनः = मछली (मत्स्यः)।
  • कतमां = कितनी (काम्, कियत्)।
  • अभ्युपैतु = प्राप्त करें (प्राप्नोतु)।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्य हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘अन्योक्तयः’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। इस पद्य में सरोवर को सम्बोधित करते हुए कवि ने मानव को संकुचित वृत्तियों का त्याग करने तथा सत्कर्मों की ओर प्रवृत्त होने का वर्णन किया गया है।

हिन्दी अनुवाद – (कवि कहता है कि) पक्षियों ने चारों ओर से आकाश मार्ग को प्राप्त कर लिया है अर्थात् घेर लिया है, भँवरे आम की मञ्जरियों पर आश्रय ले रहे हैं। हे सरोवर ! तुम्हारे संकुचित होने (सूख जाने) पर बेचारी अत्यधिक दीन मछली कितनी गति को प्राप्त करे?

5. एक एव खगो मानी वने वसति चातकः।
पिपासितो वा प्रियते याचते वा पुरन्दरम्॥

अन्वय – एक एव मानी खगः चातकः वने वसति। वा पिपासितः म्रियते पुरन्दरम् याचते वा॥

कठिन शब्दार्थ :

  • मानी = स्वाभिमानी (स्वाभिमानी)।
  • खगः = पक्षी (पक्षी)।
  • पिपासितः = प्यासा (तृषितः)।
  • म्रियते = मर जाता है (मरणं प्राप्नोति)।
  • पुरन्दरम् = इन्द्र को (इन्द्रम्)।
  • याचते = याचना करता है (याचनां करोति)।
  • वा = अथवा (अथवा)।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्य हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘अन्योक्तयः’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। इस पद्य में चातक पक्षी के माध्यम से स्वाभिमानी व्यक्ति के गुणों की प्रशंसा की गई है।

हिन्दी अनुवाद – (कवि कहता है कि) एक ही स्वाभिमानी पक्षी चातक (पपीहा) वन में रहता है। वह या तो प्यासा ही मर जाता है अथवा केवल इन्द्र से ही याचना करता है।

6. आश्वास्य पर्वतकुलं तपनोष्णतप्त
मुद्दामदावविधुराणि च काननानि।
नानानदीनदशतानि च पूरयित्वा,
रिक्तोऽसि यज्जलद! सैव तवोत्तमा श्रीः॥

अन्वंय – तपनोष्णतप्तम् पर्वतकुलम् आश्वास्य उद्दामदावविधुराणि काननानि च (आश्वास्य) नानानदीनदशतानि पूरयित्वा च हे जलद! यत् रिक्तः असि तव सा एव उत्तमा श्रीः।।

कठिन शब्दार्थ :

  • तपनोष्णतप्तम् = सूर्य की गर्मी से तपे हुए को (तपनस्य उष्णेन तप्तम्)।
  • पर्वतकुलम् = पर्वतों के समूह को (पर्वतानां कुलम्)।
  • आश्वास्य = सन्तुष्ट करके (समाश्वास्य)।
  • उद्दामदावविधुराणि = ऊँचे काष्ठों (वृक्षों) से रहित को (उन्नतकाष्ठरहितानि)।
  • काननानि = वनों को (वनानि)।
  • नानानदीनदशतानि = अनेक नदियों और सैकड़ों नदों को (नाना नद्यः, नदानां शतानि च)।
  • पूरयित्वा = भरकर (पूर्णं कृत्वा)।
  • जलद = बादल (हे वारिद!)।
  • श्रीः = शोभा, सम्पत्ति (शोभा)।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्य हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘अन्योक्तयः’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। इस पद्य में मेघ के माध्यम से कवि ने दानशीलता के कारण निर्धन हए व्यक्ति

हिन्दी अनुवाद – (कवि कहता है कि) सूर्य की गर्मी से तपे हुए पर्वतों के समूह को सन्तुष्ट करके और ऊँचे वृक्षों से रहित वनों को सन्तुष्ट करके तथा अनेक नदियों और सैकड़ों नदों को भरकर हे बादल! जो तुम रिक्त (खाली) हो गये हो, तुम्हारी वही उत्तम शोभा है।

7. रे रे चातक! सावधानमनसा मित्र क्षणं श्रूयता
मम्भोदा बहवो हि सन्ति गगने सर्वेऽपि नैतादृशाः।
केचिद् वृष्टिभिरार्द्रयन्ति वसुधां गर्जन्ति केचिद् वृथा,
यं यं पश्यसि तस्य तस्य पुरतो मा ब्रूहि दीनं वचः॥

अन्वय – रे रे मित्र चातक! सावधानमनसा क्षणं श्रूयताम, गगने हि बहवः अम्भोदाः सन्ति, सर्वे अपि एतादृशाः न (सन्ति) केचित् वसुधां वृष्टिभिः आर्द्रयन्ति, केचिद् वृथा गर्जन्ति, (त्वम्) यं यं पश्यसि तस्य तस्य पुरतः दीनं वचः मा ब्रूहि ॥

कठिन शब्दार्थ :

  • सावधानमनसा = ध्यान से (ध्यानेन)।
  • श्रूयताम् = सुनिए (आकर्ण्यताम्)।
  • गगने = आकाश में (आकाशे)।
  • बहवः = बहुत (अनेके)।
  • अम्भोदाः = बादल (मेघाः)।
  • एतादृशाः = इस प्रकार के (एवं विधाः)।
  • वसुधांम् = पृथ्वी को (पृथ्वीम्)।
  • वृष्टिभिः = वर्षा से (वर्षायाः जलेन)।
  • आर्द्रयन्ति = जल से भिगो देते हैं (जलेन क्लेदयन्ति)।
  • वृथा = व्यर्थ (व्यर्थमेव)।
  • गर्जन्ति = गर्जना करते हैं [गर्जनं (ध्वनिम्) कुर्वन्ति]।
  • पुरतः = आगे, सामने (अग्रे)।
  • वचः = वचन (वचनम्)।
  • मा ब्रूहि = मत बोलो (न वद्)।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्य हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के अन्योक्तयः’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। इस पद्य में कवि ने चातक पक्षी के माध्यम से हर किसी के सामने दीनतापूर्वक याचना नहीं करने की प्रेरणा दी है।

हिन्दी अनुवाद – (कवि कहता है कि) हे मित्र चातक! ध्यानपूर्वक क्षणभर के लिए सुनिए, आकाश में बहुत बादल हैं, वे सभी इसी प्रकार के (वर्षा करने वाले) नहीं हैं, कुछ तो पृथ्वी को वर्षा के जल से भिगो देते हैं और तुम जिस-जिसको देखते हो उस-उसके सामने दीनता युक्त वचन मत बोलो। अर्थात् हर-किसी के सामने दीनतापूर्वक याचना नहीं करनी चाहिए।

RBSE Class 10 Sanskrit अनयोक्त्यः Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत
(क) कस्य शोभा एकेन राजहंसेन भवति?
उत्तरम् :
सरसः।

(ख) सरसः तीरे के वसन्ति?
उत्तरम् :
बकसहस्रम्।

(ग) कः पिपासितः म्रियते?
उत्तरम् :
चातकः।

(घ) के रसालमुकुलानि समाश्रयन्ते ?
उत्तरम् :
भ्रमराः।

(ङ) अम्भोदाः कुत्र सन्ति ?
उत्तरम् :
गगने।

प्रश्न 2.
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत
(अधोलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए-)
(क) सरसः शोभा केन भवति? (सरोवर की शोभा किससे होती है ?)
उत्तरम् :
सरस: शोभाः राजहंसेन भवति। (सरोवर की शोभा राजहंस से होती है।)

(ख) चातकः किमर्थं मानी कथ्यते ? (चातक किसलिए स्वाभिमानी कहा जाता है ?)
उत्तरम् :
चातकः केवलं पुरन्दरं याचते अथवा वने पिपासितो म्रियते।
(चातक केवल इन्द्र से याचना करता है अथवा वन में ही प्यासा मर जाता है।)

(ग) मीन: कदा दीनां गतिं प्राप्नोति? (मछली कब दीन गति को प्राप्त करती है ?)
उत्तरम् :
यदा सरोवरः सङ्कोचमञ्चति तदा मीनः दीनां गतिं प्राप्नोति।
(जंब सरोवर संकुचित हो जाता है तब मछली दीन गति को प्राप्त करती है।)

(घ) कानि पूरयित्वा जलदः रिक्तः भवति?
(किन्हें भरकर बादल रिक्त हो जाता है ?)
उत्तरम् :
नानानदीनदशतानि पूरयित्वा जलदः रिक्तः भवति।
(अनेक नदियों और सैकड़ों नदों को भरकर बादल रिक्त हो जाता है।)

(ङ) वृष्टिभिः वसुधां के आर्द्रयन्ति ?
(वर्षा के जल से पृथ्वी को कौन भिगो देते हैं ?)
उत्तरम् :
केचित् अम्भोदाः वृष्टिभिः वसुधां आर्द्रयन्ति।
(वर्षा के जल से पृथ्वी को कुछ बादल भिगो देते हैं।)

प्रश्न 3.
अधोलिखितवाक्येषु रेखाङ्कितपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(क) मालाकारः तोयैः तरोः पुष्टिं करोति।
(ख) भृङ्गाः रसालमुकुलानि समाश्रयन्ते।
(ग) पतङ्गाः अम्बरपथम् आपेदिरे।
(घ) जलदः नानानदीनदशतानि पूरयित्वा रिक्तोऽस्ति।
(ङ) चातकः वने वसति।
उत्तरम् :
प्रश्ननिर्माणम्
(क) मालाकारः कैः तरोः पुष्टिं करोति?
(ख) भृङ्गाः कानि समाश्रयन्ते?
(ग) के अम्बरपथम् आपेदिरे?
(घ) कः नानानदीनदशतानि पूरयित्वा रिक्तोऽस्ति?
(ङ) चातकः कुत्र वसति?

प्रश्न 4.
अधोलिखितयोः श्लोकयोः भावार्थं स्वीकृतभाषया लिखत –
(अ) तोयैरल्पैरपि …………………… वारिदेन।
(आ) रे रे चातक …………………… दीनं वचः।
उत्तस्म् :
[नोट-पूर्व में पाठ के सभी श्लोकों का हिन्दी-अनुवाद एवं भावार्थ दिया जा चुका है, वहाँ से देखकर लिखिए।]

प्रश्न 5.
अधोलिखितयोः श्लोकयोः अन्वयं लिखत –
(अ) आपेदिरे ……………….. कतमां गतिमभ्युपैति॥
(आ) आश्वास्य ……………….. सैवतवोत्तमा श्रीः॥
उत्तरम् :
[नोट-पूर्व में पाठ के सभी श्लोकों के अन्वय दिए जा चुके हैं, वहाँ से देखकर लिखिए।]

प्रश्न 6.
उदाहरणमनुसृत्य सन्धिं/सन्धिविच्छेदं वा कुरुत
(i) यथा-अन्य + उक्तयः = अन्योक्तयः
उत्तरम् :
(क) निपीतानि + अम्बूनि = निपीतान्यम्बूनि
(ख) कृत + उपकारः = कृतोपकारः
(ग) तपन + उष्णतप्तम् = तपनोष्णतप्तम्
(घ) तव + उत्तमा = तवोत्तमा
(ङ) न + एतादृशाः = नैतादृशाः।

(ii) यथा – पिपासितः + अपि = पिपासितोऽपि
उत्तरम् :
(क) कः + अपि = कोऽपि
(ख) रिक्तः + असि = रिक्तोऽसि
(ग) मीनः + अयम् = मीनोऽयम्
(घ) सर्वे + अपि = सर्वेऽपि

(iii) यथा – सरसः + भवेत् = सरसो भवेत्
उत्तरम् :
(क) खगः + मानी = खगो मानी
(ख) मीनः + नु = मीनो नु
(ग) पिपासितः + वा = पिपासितो वा
(घ) पुरतः + मा = पुरतो मा

(iv) यथा – मुनिः + अपि = मुनिरपि
उत्तरम् :
(क) तोयैः + अल्पैः = तोयैरल्पैः
(ख) अल्पैः + अपि = अल्पैरपि
(ग) तरोः + अपि = तरोरपि
(घ) वृष्टिभिः + आर्द्रयन्ति = वृष्टिभिरार्द्रयन्ति।

प्रश्न 7.
उदाहरणमनुसृत्य अधोलिखितैः विग्रहपदैः समस्तपदानि रचयत –
उत्तरम् :
विग्रहपदानि   समस्त पदानि
यथा – पीतं च तत् पङ्कजम् = पीतपङ्कजम्
(क) राजा च असौ हंसः = राजहंसः
(ख) भीमः च असौ भानुः = भीमभानुः
(ग) अम्बरम् एव पन्थाः = अम्बरपथम्
(घ) उत्तमा च इयम् श्री: = उत्तमश्रीः
(ङ) सावधानं च तत् मनः, तेन = सावधानमनसा

RBSE Class 10 Sanskrit अनयोक्त्यः Important Questions and Answers

भावबोधनम् :

(क) अधोलिखितपद्यांशानां प्रदत्ते भावार्थे रिक्तस्थानानि पूरयत –

(i) एकेन राजहंसेन ……………………….. तीरवासिना॥
भावार्थ: – शतमूर्खाणामपेक्षया एक: गुणवान् एव श्रेष्ठः भवति। यथा एकेन (i) …………… सरोवरस्य या। (ii) …………. भवति, सा शोभा (iii) ……… (iv) …………
उत्तरम् :
(i) राजहंसेन, (ii) शोभा, (iii) तीरवासिना, (iv) बकानां सहस्रेण।

(ii) भुक्ता मृणालपटली ……………………. कृतोपकारः॥
भावार्थ: – सरोवरस्य प्रत्युपकाराय राजहंसं सम्बोधयन् कविः कथयति यत् रे राजहंस! यत्र भवता (i) ……….. भुक्ता, जलानि (ii) ………… कमलानि (iii) ……………. तस्य सरोवरस्य त्वम् केन कार्येण (iv) ……….. कर्तुं समर्थोऽसि? अर्थात् न केनापि कार्येण।
उत्तरम् :
(i) मृणालपटली, (ii) नि:शेषेण पीतानि, (iii) सेवितानि, (iv) प्रत्युपकारः।

(iii) तोयैरल्पैरपि ……………………….. वारिदेन॥
भावार्थ: – मालाकारस्य परिश्रमस्य त्यागस्य च प्रशंसां कुर्वन् कविः कथयति यत् हे. मालाकार! भीमभानौ (i) …………… अल्पैः जलैः अपि भवता (ii) ………………. अस्य वृक्षस्य या वृद्धिः कृता, सा वृद्धिः जलानाम् (iii) ………….. जलदेन सर्वत: (iv) ……….. अपि जलं वर्षयता अत्र उत्पादयितुं न शक्या।
उत्तरम् :
(i) ग्रीष्मकाले, (ii) करुणया, (iii) वर्षाकालिकेन, (iv) धाराणां आसारान्।

(ख) अधोलिखित पद्यांशानां भावबोधनं सरलसंस्कृतभाषया लिखत –

(i) एकेन राजहंसेन या शोभा सरसो भवेत्।
न सा बकसहस्रेण परितस्तीरवासिना॥
उत्तरम् :
एकेनैव राजहंसेन सरोवरस्य या शोभा भवति, सा शोभा बकानां सहस्रेणापि भवितुम् न शक्नोति। अर्थात् बहूनां मूर्खाणामपेक्षया एक: गुणवान् एव श्रेष्ठः भवति।

(ii) एक एव खगो मानी वने वसति चातकः।
पिपासितो वा म्रियते याचते वा पुरन्दरम्॥
उत्तरम् :
वने एक एव स्वाभिमानी पक्षी चातक: निवसति, यतो हि सः केवलम् इन्द्रदेवमेव याचते अथवा पिपासितः एव मृत्युं प्राप्नोति। तथैव स्वाभिमानी जनः विपत्तिग्रस्तोऽपि सहायतार्थं यत्र-कुत्रापि याचनां न करोति, केवलं सः ईश्वरं .याचते।

संस्कृतमाध्यमेन प्रश्नोत्तराणि :

(अ) एकपदेन उत्तरत –

प्रश्न 1.
सरसः शोभा केन एकेन भवति?
उत्तरम् :
राजहंसेन।

प्रश्न 2.
तीरवासिना बकसहस्रेणापि कस्य शोभा न भवति?
उत्तरम् :
सरसः।

प्रश्न 3.
राजहंसेन का भुक्ता?
उत्तरम् :
मृणालपटली।

प्रश्न 4.
मालाकारेण निदाघे कस्य पुष्टिः व्यरचि?
उत्तरम् :
तरोः।

प्रश्न 5.
परितः अम्बरपथं के आपेदिरे ?
उत्तरम् :
पतङ्गाः।

प्रश्न 6.
मानी खगः कः वने वसति?
उत्तरम् :
चातकः।

प्रश्न 7.
गगने बहवः के सन्ति ?
उत्तरम् :
मेघाः।

(ब) पूर्णवाक्येन उत्तरत –

प्रश्न 1.
राजहंसेन सरोवरस्य कानि निषेवितानि?
उत्तस्म् :
राजहंसेन सरोवरस्य नलिनानि निषेवितानि।

प्रश्न 2.
मालाकारेण कदा कैश्च करुणया तरोः पुष्टिः कृता?
उत्तरम् :
मालाकारेण भीमभानौ निदाघे अल्पैः तोयैः करुणया तरोः पुष्टिः कृता।

प्रश्न 3.
भृङ्गाः कानि समाश्रयन्ते?
उत्तरम् :
भृङ्गाः रसालमुकुलानि समाश्रयन्ते।

प्रश्न 4.
चातकः कम् एवं याचते ?
उत्तरम् :
चातक: पुरन्दरम् एव याचते।।

प्रश्न 5.
जलदः कम् आश्वास्य रिक्तो भवति?
उत्तरम् :
जलदः तपनोष्णतप्तं पर्वतकुलम् आश्वास्य रिक्तो भवति।

प्रश्न 6.
रिक्तता कस्य एव उत्तमा श्रीः वर्तते?
उत्तरम् :
वर्षानन्तरं रिक्तता मेघस्य तथा दानशीलताकारणेन परोपकारिणः निर्धनता वा उत्तमा श्रीः वर्तते।

प्रश्न 7.
‘सावधानमनसा मित्र! क्षणं श्रूयताम्’ इति कथनं कविः कं सम्बोधयन् कथयति ?
उत्तरम् :
इति कथनं कविः चातकं सम्बोधयन् कथयति।

प्रश्न 8.
गगने बहवः अम्भोदाः कीदृशाः सन्ति ?
उत्तरम् :
गगने केचित् अम्भोदाः वसुधां वृष्टिभिः आर्द्रयन्ति, केचिच्च वृथा गर्जन्ति।

अन्वये रिक्तस्थानपूर्तिः

निम्नलिखितपद्यांशानां अन्वयमाश्रित्य रिक्तस्थानानि पूरयत –

(i) एकेन राजहंसेन ……………. तीरवासिना॥
अन्वयः – एकेन (i) ……………………सरसः या (ii) ………………….. भवेत्। परितः (iii) ……….. बकसहस्रेण (iv) …………………. (शोभा) न (भवति)।
उत्तरम् :
(i) राजहंसेन, (ii) शोभा, (iii) तीरवासिना, (iv) सा।

(ii) भुक्ता मृणालपटली ………………………. कृतोपकारः॥
अन्वयः – यत्र भवता (i) ………. भुक्ता, अम्बूनि (ii) ………… , नलिनानि (iii) ……….। रे राजहंस! तस्य सरोवरस्य केन (iv) …………. कृतोपकारः भविता असि, वद।
अन्वयः – यत्र भवता (i) ………. भुक्ता, अम्बूनि (ii) ………… , नलिनानि (iii) ……….। रे राजहंस! तस्य सरोवरस्य केन (iv) …………. कृतोपकारः भविता असि, वद।
उत्तरम् :
(i) मृणालपटली, (ii) निपीतानि, (iii) निषेवितानि, (iv) कृत्येन।

(iii) तोयैरल्पैरपि …………………. वारिदेन॥
अन्वयः-हे मालाकार! भीमभानौ (i) ……… अल्पैः तोयैः अपि भवता (ii) ……. अस्य तरोः या (iii) . … व्यरचि, वाराम् प्रावृषेण्येन विश्वतः (iv) ……….. अपि विकिरता वारिदेन इह जनयितुम् सा (पुष्टिः) किम् शक्या।
उत्तरम् :
(i) निदाघे, (ii) करुणया, (iii) पुष्टिः, (iv) धारासारान्।

(iv) आपेदिरेऽम्बर …………………… गतिमभ्युपैतु॥
अन्वयः – पतङ्गाः परितः (i) ………….. आपेदिरे, भृङ्गाः (ii) ………………. समाश्रयन्ते। सरः त्वयि (iii) ……… अञ्चति, हन्त दीनहीनः (iv) ……………. नु कतमां गतिम् अभ्युपैतु।
उत्तरम् :
(i) अम्बरपथम्, (ii) रसालमुकुलानि, (iii) सङ्कोचम्, (iv) मीनः।

(v) एक एव खगो …………. पुरन्दरम्॥
अन्वयः – एक एव मानी (i) ……….. वने (ii) ………..। (स:) वा पिपासितः (iii) ……. पुरन्दरम् (iv) ………. वा।
उत्तरम् :
(i) खगः चातकः, (ii) वसति, (iii) म्रियते, (iv) याचते।

अथवा

एक एव खगो मानी वने वसति चातकः। पिपासितो वा म्रियते याचते वा पुरन्दरम्॥ उपर्युक्त श्लोकस्यान्वयमाश्रित्त्य रिक्तस्थानानि पूरयत एक एव (i) ………. (ii) ………(iii) ……….. वने वसति। वा (iv) ……….. म्रियते पुरन्दरं याचते वा।
उत्तरम् :
एक एव मानी खगः चातकः वने वसति। वा पिपासितः म्रियते पुरन्दरं याचते वा।

(vi) आश्वास्य पर्वतकुलं ……………………… तवोत्तमा श्रीः॥
अन्वयः – तपनोष्णतप्तम् (i) ……….. आश्वास्य, उद्दामदावविधुराणि (ii) ………… च (आश्वास्य), नानानदीनदशतानि (iii) ……….. च हे जलद! यत् रिक्तः असि तव सा एव (iv) ………………श्रीः।
उत्तरम् :
(i) पर्वतकुलम्, (ii) काननानि, (iii) पूरयित्वा, (iv) उत्तमा।

(vii) रे रे चातक! ………. दीनं वचः॥
अन्वयः – रे रे मित्र चातक! (i) ……….. क्षणं. श्रूयताम, गगने हि बहवः (ii) ……….. सन्ति, सर्वे अपि एतादृशाः न (सन्ति), केचित् (iii) …………वृष्टिभिः आर्द्रयन्ति, केचिद् वृथा (iv) ……….., (त्वम्) यं यं पश्यसि तस्य तस्य पुरतः दीनं वचः मा ब्रूहिं।
उत्तरम् :
(i) सावधानमनसा, (ii) अम्भोदाः, (iii) धरिणी, (iv) गर्जन्ति।

प्रश्ननिर्माणम् :

अधोलिखितवाक्येषु रेखाङ्कितपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत –

1. राजहंसेन सरसः शोभा भवेत्।
2. सरसः शोभा राजहंसेन भवति।
3. राजहंसेन मृणालपटली भुक्ता।
4. राजहंसेन सरसः अम्बूनि निपीतानि।
5. भवान् सरोवरस्य स्वकृत्येन कृतोपकारः भवतु।
6. मालाकार: निदाघे अल्पजलेनैव वृक्षान् सिञ्चति।
7. मालाकारेण करुणया अस्य तरोः पुष्टिः कृता।
8. पतङ्गाः परितः अम्बरपथम् आपेदिरे।
9. भृङ्गाः रसालमुकुलानि समाश्रयन्ते।
10. सरोवरे दीनदीनः मीनः गतिं न अभ्युपैति।
उत्तरम् :
प्रश्ननिर्माणम्
1. केन सरसः शोभा भवेत् ?
2. कस्य शोभा राजहंसेन भवति?
3. राजहंसेन का भुक्ता?
4. केन सरसः अम्बूनि निपीतानि?
5. भवान् कस्य स्वकृत्येन कृतोपकारः भवतु?
6. मालाकारः कदा अल्पजलेनैव वृक्षान् सिञ्चति?
7. केन करुणया अस्य तरोः पुष्टिः कृता?
8. पतङ्गाः परितः कम् आपेदिरे?
9. के रसालमुकुलानि समाश्रयन्ते?
10. सरोवरे कः गतिं न अभ्युपैति?

दत्तोत्तराण्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं करणीयम् –

(क) प्रश्न:-केन………………….?
उत्तरम् :
एकेन राजहंसेन एव सरसः शोभा भवति।

(ख) प्रश्न:-केन ……………..?
उत्तरम् :
भवता मृणालपटवी भुक्ता।

(ग) प्रश्नः – कम् …………….?
उत्तरम् :
अम्बरपथं परितः पतङ्गाः आपेदिरे।

(घ) प्रश्न:- के ……………..?
उत्तरम् :
भृङ्गा रसालमुकुलानि समाश्रयन्ते।

(ङ) प्रश्न:-कः ……………..?
उत्तरम् :
एक एव चातकः वने वसति।

उत्तराणि-प्रश्ननिर्माणम् –

(क) केन एकेन एव सरसः शोभा भवति?
(ख) केन मृणालपटवी भुक्ता?
(ग) कम् परितः पतङ्गा आपेदिरे?
(घ) के रसालमुकुलानि समाश्रयन्ते?
(ङ) कः एक एव वने वसति?

शब्दार्थ-चयनम् :

अधोलिखितवाक्येषु रेखाङ्कितपदानां प्रसङ्गानुकूलम् उचितार्थं चित्वा लिखत –

प्रश्न 1.
एकेन राजहंसेन सरसः शोभा भवेत्।
(क) तडागस्य
(ख) जलस्य
(ग) कूपस्य
(घ) सरितायाः
उत्तरम् :
(क) तडागस्य

प्रश्न 2.
भवता अम्बनि निपीतानि।
(क) आम्राणि
(ख) अम्लानि
(ग) जलानि
(घ) फलानि
उत्तरम् :
(ग) जलानि

प्रश्न 3.
भवता नलिनानि निषेवितानि।।
(क) पत्राणि
(ख) कमलानि
(ग) वनानि
(घ) पुष्पाणि
उत्तरम् :
(ख) कमलानि

प्रश्न 4.
मालाकार! भवता निदाघे तरोः पुष्टिः कृता।
(क) शरद्काले
(ख) वर्षाकाले
(ग) वसन्तकाले
(घ) ग्रीष्मकाले
उत्तरम् :
(घ) ग्रीष्मकाले

प्रश्न 5.
वारिदेन सा पुष्टिः जनयितुं न शक्या।
(क) जलदेन
(ख) कृषकेण
(ग) सूर्येण
(घ) इन्द्रेण
उत्तरम् :
(क) जलदेन

प्रश्न 6.
…………….याचते वा पुरन्दरम्।
(क) विष्णुम्
(ख) नृपम्
(ग) इन्द्रम्
(घ) धनिकम्
उत्तरम् :
(ग) इन्द्रम्

प्रश्न 7.
अम्भोदाः बहवो हि सन्ति।
(क) वृक्षाः
(ख) मेघाः
(ग) पर्वताः
(घ) हंसाः
उत्तरम् :
(ख) मेघाः

प्रश्न 8.
उद्दामदावविधुराणि च काननानि।
(क) पुष्पाणि
(ख) पर्वताः
(ग) पशवः
(घ) वनानि
उत्तरम् :
(घ) वनानि

प्रश्न 9.
मीनो नु हन्त कतमां गतिमभ्युपैतु।
(क) मत्स्यः
(ख) हंसः
(ग) बकः
(घ) चातकः
उत्तरम् :
(क) मत्स्यः

प्रश्न 10.
वृष्टिभिरार्द्रयन्ति वसुधाम्।
(क) गगनम्
(ख) पर्वतम्
(ग) पृथ्वीम्
(घ) नदीम्
उत्तरम् :
(ग) पृथ्वीम्।

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