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RBSE Class 10 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा

RBSE Class 10 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा

बुद्धिर्बलवती सदा Summary and Translation in Hindi

परिचय :

प्रस्तुत पाठ ‘शुकसप्ततिः’ नामक प्रसिद्ध कथाग्रन्थ से सम्पादित करके संकलित किया गया है। इसमें अपने दो छोटे-छोटे पुत्रों के साथ जंगल के रास्ते से पिता के घर जा रही बुद्धिमती नामक महिला के बुद्धिकौशल को दिखाया गया है जो सामने आए हुए शेर को भी डरा कर भगा देती है। यह कथा नीतिनिपुण शुक और सारिका की कथा के द्वारा सदवत्ति का विकास करने के लिए प्रेरित करती है।

गद्यांशों का सप्रसंग हिन्दी अनुवाद –

1. अस्ति देउलाख्यो ग्रामः। तत्र राजसिंहः नाम राजपुत्रः वसति स्म। एकदा केनापि आवश्यककार्येण तस्य भार्या बुद्धिमती पुत्रद्वयोपेता पितुर्गृहं प्रति चलिता। मार्गे गहनकानने सा एकं व्याघ्रं ददर्श। सा व्याघ्रमागच्छन्तं दृष्ट्वा धाष्ात् पुत्रौ चपेटया प्रहृत्य जगाद-“कथमेकैकशो व्याघ्रभक्षणाय कलहं कुरुथः? अयमेकस्तावद्विभज्य भुज्यताम्। पश्चाद् अन्यो द्वितीयः कश्चिल्लक्ष्यते।”

कठिन शब्दार्थ :

  • देउलाख्यः = देउल नामक (देउल इत्यभिधः)।
  • राजपुत्रः = राजकुमार (राजकुमारः)।
  • भार्या = पत्नी (जाया)।
  • पुत्रद्वयोपेता = दोनों पुत्रों के साथ (द्वाभ्याम् आत्मजाभ्यां सहिता)।
  • पितुर्गहम् = पिता के घर (पितृगृहं प्रति)।
  • चलिता = चल पड़ी (प्रस्थिता)।
  • कानने = जंगल में (वने)।
  • ददर्श = देखा (अपश्यत्)।
  • व्याघ्रम् = बाघ को (शार्दूलम्)।
  • आगच्छन्तं = आता हुआ (आयान्तम्)।
  • दृष्ट्वा = देखकर (अवलोक्य)।
  • धाष्र्यात् = ढिठाई से, धृष्टता से (धृष्टतापूर्वकम्)।
  • चपेटया = थप्पड़ से (करप्रहारेण)।
  • प्रहृत्य = प्रहार करके, थप्पड़ मारकर (प्रहारं कृत्वा)।
  • जगाद = कहा (उक्तवती)।
  • एकैकशः = एक-एक (एकम् एकम्)।
  • भक्षणाय = खाने के लिए (खादितुम्)।
  • कलहम् = झगड़ा (विवादम्)।
  • विभज्य = बाँटकर, अलग-अलग करके (विभक्तं कृत्वा)।
  • भुज्यताम् = खाइए (खाद्यताम्)।
  • पश्चाद् = इसके बाद (तदनन्तरम्)।
  • लक्ष्यते = देखा जाएगा (दृश्यते)।

प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश/कथांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘बुद्धिर्बलवती सदा’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। मूलतः इस पाठ में वर्णित कथा ‘शुकसप्ततिः’ नामक कथाग्रन्थ से संकलित है। इस अंश में बुद्धिमती नामक महिला के अपने दो पुत्रों के साथ अपने पिता के घर (पीहर) की ओर जाने का तथा रास्ते में एक शेर को आता हुआ देखकर बुद्धिमती की चतुराई का वर्णन किया गया है।

हिन्दी अनुवाद – देउल नामक एक गाँव था। वहाँ राजसिंह नामक राजकुमार रहता था। एक बार किसी आवश्यक कार्य से उसकी पत्नी बुद्धिमती अपने दोनों पुत्रों के साथ पिता के घर (पीहर) की ओर जा रही थी। रास्ते में गहन जंगल में उसने एक शेर को देखा। वह शेर को आता हुआ देखकर धृष्टता से दोनों पुत्रों के थप्पड़ मारकर बोली-“क्यों एक-एक शेर को खाने के लिए झगडा कर रहे हो? यह एक ही है, इसे बाँटकर खा लेना। बाद में अन्य कोई दूसरा देखा (ढूँढ़ा) जाएगा।”

2. इति श्रुत्वा व्याघ्रमारी काचिदियमिति मत्वा व्याघ्रो भयाकुलचित्तो नष्टः।
निजबुद्ध्या विमुक्ता सा भयाद् व्याघ्रस्य भामिनी।।
अन्योऽपि बुद्धिमॉल्लोके मुच्यते महतो भयात्॥
भयाकुलं व्याघ्रं दृष्ट्वा कश्चित् धूर्तः शृगालः हसन्नाह-“भवान् कुतः भयात् पलायितः?”

व्याघ्रः – गच्छ, गच्छ जम्बुक! त्वमपि किञ्चिद् गूढप्रदेशम्। यतो व्याघ्रमारीति या शास्त्रे श्रूयते तयाहं हन्तुमारब्धः परं गृहीतकरजीवितो नष्टः शीघ्रं तदग्रतः।।
शृगालः – व्याघ्र! त्वया महत्कौतुकम् आवेदितं यन्मानुषादपि बिभेषि?
व्याघ्रः – प्रत्यक्षमेव मया सात्मपुत्रावेकैकशो मामत्तुं कलहायमानौ चपेटया प्रहरन्ती दृष्टा।

कठिन शब्दार्थ :

  • श्रुत्वा = सुनकर (आकर्ण्य)।
  • व्याघ्रमारी = बाघ को मारने वाली (शार्दूल-हन्त्री)।
  • मत्वा = मानकर (निश्चित्य)।
  • भयाकुलचित्तो = भय से व्याकुल मन वाला, भयभीत (व्याकुलहृदयः)।
  • नष्टः = भाग गया (पलायितः)।
  • निजबुध्या = अपनी बुद्धि से (आत्मनः प्रज्ञया)।
  • भामिनी = रूपवती स्त्री (रूपवती स्त्री)।
  • लोक = संसार में (संसारे)।
  • मुच्यते = मुक्त हो जाता है (त्यज्यते)।
  • शृगालः = सियार (जम्बुकः)।
  • आह = कहा (अकथयत्)।
  • श्रूयते = सुना जाता है (आकर्ण्यते)।
  • कुतः = कहाँ से (कस्मात्)।
  • जम्बुकः = सियार (शृगालः)।
  • गूढप्रदेशम् = गुप्त प्रदेश में (गुप्तस्थाने)।
  • श्रूयते = सुना जाता है (आकर्ण्यते)।
  • हन्तुम् = मारने के लिए (मारयितुम्)।
  • गृहीतकरजीवितः = हथेली पर प्राण लेकर (हस्ते प्राणान् नीत्वा)।
  • अग्रतः = सामने से (सम्मुखात्)।
  • महत्कौतुकम् = महान् आश्चर्य से (अत्यधिकम् आश्चर्यकरम्)।
  • आवेदितम् = बताया है (विज्ञापितम्)।
  • मानुषादपि = मनुष्य से भी (मानवादपि)।
  • बिभेषि = डरते हो (भयाक्रान्तोऽसि)।
  • प्रत्यक्षम् = सामने (सम्मुखम्)।
  • सात्मपुत्रावेकैकशः = वह अपने दोनों पुत्रों को एक-एक करके (स्वात्मजौ एकैकं कृत्वा)।
  • अत्तुम् = खाने के लिए (खादयितुम्)।
  • कलहायमानौ = झगड़ा करते हुए दोनों को (कलहं कुर्वन्तौ)।
  • प्रहरन्ती = मारती हुई, प्रहार करती हुई (प्रहारं कुर्वन्तीम्)।
  • दृष्टा = देखी गई (अवलोकिता)।

श्लोक का अन्वय-सा भामिनी निजबुद्ध्या व्याघ्रस्य भयाद् विमुक्ता। लोके अन्यः बुद्धिमान् अपि महतः भयात् मुच्यते।

प्रसंग – प्रस्तुत कथांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘बुद्धिर्बलवती सदा’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। मूलत: यह पाठ ‘शुकसप्ततिः’ नामक सुप्रसिद्ध कथाग्रन्थ से संकलित किया गया है। इस अंश में बुद्धिमती नामक महिला के बुद्धि-कौशल की प्रशंसा करते हुए बाघ रूपी महान् भय से उसके मुक्त होने का वर्णन हुआ है।

  • हिन्दी अनुवाद-यह सुनकर यह कोई बाघ को मारने वाली स्त्री है, ऐसा मानकर बाघ भयभीत होकर भाग गया।
  • वह रूपवती स्त्री अपनी बुद्धि से बाघ के भय से मुक्त हो गई। संसार में अन्य बुद्धिमान् भी महान् भय से मुक्त हो जाता है।
  • भय से व्याकुल बाघ को देखकर कोई धूर्त सियार हँसता हुआ बोला-“आप किस भय से भाग रहे हो?”
  • बाघ-जाओ, सियार! तुम भी किसी गुप्त प्रदेश में चले जाओ। क्योंकि ‘बाघ को मारने वाली स्त्री’ ऐसा जो शास्त्र में सुना जाता है। वह मुझे मारने ही वाली थी किन्तु प्राण हथेली पर रखकर उसके सामने से मैं शीघ्र भाग आया हूँ।
  • सियार-हे बाघ! तुमने महान् आश्चर्य की बात बतलाई है कि तुम मनुष्य से भी डरते हो?
  • बाघ-मेरे द्वारा अपने सामने ही उसे अपने दोनों पुत्रों को एक-एक करके मुझे खाने के लिए झगड़ा करते हुओं को थप्पड़ मारते हुए देखा गया है।

3. जम्बुकः – स्वामिन् ! यत्रास्ते सा धूर्ता तत्र गम्यताम्। व्याघ्र! तव पुनः तत्र गतस्य सा सम्मुखमपीक्षते यदि, तर्हि त्वया अहं हन्तव्यः इति।
व्याघ्रः – शृगाल! यदि त्वं मां मुक्त्वा यासि तदा वेलाप्यवेला स्यात्।
जम्बुक: – यदि एवं तर्हि मां निजगले बद्ध्वा चल सत्वरम्। स व्याघ्रः तथा कृत्वा काननं ययौ। शृगालेन सहितं पुनरायान्तं व्याघ्र दूरात् दृष्ट्वा बुद्धिमती चिन्तितवती-जम्बुककृतोत्साहाद् व्याघ्रात् कथं मुच्यताम् ? परं प्रत्युत्पन्नमतिः सा जम्बुकमाक्षिपन्त्यङ्गल्या तर्जयन्त्युवाच –
रे रे धूर्त त्वया दत्तं मह्यं व्याघ्रत्रयं पुरा।
विश्वास्याद्यैकमानीय कथं यासि वदाधुना॥
इत्युक्त्वा धाविता तूर्णं व्याघ्रमारी भयङ्करा।
व्याघ्रोऽपि सहसा नष्टः गलबद्धशृगालकः॥
एवं प्रकारेण बुद्धिमती व्याघ्रजाद् भयात् पुनरपि मुक्ताऽभवत्। अत एव उच्यते –
बुद्धिर्बलवती तन्वि सर्वकार्येषु सर्वदा॥

श्लोकयोः अन्वयः-रे रे धूर्त ! त्वया मह्यं पुरा व्याघ्रत्रयं दत्तम् विश्वास्य (अपि) अद्य एकम् आनीय कथं यासि इति अधुना वद।।
इति उक्त्वा भयङ्करा व्याघ्रमारी तूर्णं धाविता। गलबद्धशृगालकः व्याघ्रः अपि सहसा नष्टः ॥ हे तन्वि! सर्वदा सर्वकार्येषु बुद्धिर्बलवती॥

कठिन शब्दार्थ :

  • यत्रास्ते = जहाँ है (यस्मिन् स्थाने स्थिता)।
  • गतस्य = गये हुए के (प्राप्तस्य)।
  • ईक्षते = देखती है (पश्यति)।
  • हन्तव्यः = मार देना चाहिए (हननीयः)।
  • मुक्त्वा = छोड़कर (परित्यज्य)।
  • वेला = शर्त (समयः)।
  • निजगले = अपने गले में (स्वकण्ठे)।
  • बद्ध्वा = बाँधकर (संलग्नं कृत्वा)।
  • सत्वरम् = शीघ्र (शीघ्रम्)।
  • काननम् = जंगल में (वनम्)।
  • ययौ = चला गया (गतवान्)।
  • आयान्तम् = आते हुए को (आगच्छन्तम्)।
  • आक्षिपन्ती = आक्षेप करती हुई, झिड़कती हुई, भर्त्सना करती हुई (आक्षेपं कुर्वन्ती)।
  • तर्जयन्ती = धमकाती हुई, डाँटती हुई (प्रताडयन्ती)।
  • उवाच = बोली (अवदत्)।
  • पुरा = पहले (पूर्वे)।
  • विश्वास्य = विश्वास दिलाकर (समाश्वास्य)।
  • अद्य = आज (अधुना)।
  • आनीय = लाकर (उपाहृत्य)।
  • यासि = जा रहे हो (गच्छसि)।
  • भयङ्करा = भयानकता दिखलाती हुई (भीषणा)।
  • तूर्णम् = शीघ्र (शीघ्रम्)।
  • धाविता = दौड़ी (अधावत्)।
  • गलबद्धशृगालकः = गले में बँधे हुए शृगाल वाला (कण्ठे संलग्नशृगालयुक्तः)।
  • तन्वि = कोमलाङ्गी (कोमलाङ्गि)।

प्रसंग – प्रस्तुत कथांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘बुद्धिर्बलवती सदा’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है। मूलतः यह पाठ ‘शुकसप्ततिः’ नामक कथाग्रन्थ से संकलित है। इस अंश में धूर्त शृगाल एवं बाघ का वार्तालाप तथा बुद्धिमती नामक महिला के बुद्धि-कौशल का सुन्दर व प्रेरणास्पद चित्रण किया गया है। बुद्धिमती बाघ से उत्पन्न भय से फिर से मुक्त हो जाती है। वस्तुतः बुद्धि ही हमेशा बलवती होती है।

हिन्दी अनुवाद –

सियार – हे स्वामी ! जहाँ वह धूर्ता स्त्री है वहाँ जाइए। हे बाघ! तुम्हारे फिर से वहाँ गये हुए के सामने यदि वह स्त्री देख भी लेवे तो तुम मुझे मार देना।।
बाघ – हे सियार! यदि तुम मुझे छोड़कर चले जाओगे तो शर्त भी अशर्त (व्यर्थ) हो जायेगी। सियार-यदि ऐसा है तो मुझे अपने गले में बाँधकर शीघ्र चलो।

वह बाघ वैसा ही करके जंगल में चला गया। सियार के साथ फिर से आते हुए बाघ को दूर से ही देखकर बुद्धिमती ने सोचा-सियार द्वारा उत्साहित किये गये बाघ से किस प्रकार मुक्त हुआ जाये ? किन्तु प्रत्युत्पन्न बुद्धिवाली वह स्त्री सियार को झिड़कती हुई और अंगुली से धमकाती हुई बोली अरे, अरे धूर्त! तुमने मेरे लिए पहले तीन बाघ दिये थे। विश्वास दिलाकर भी आज एक ही बाघ लाकर कैसे जा रहे हो, अब बोलो। ऐसा कहकर वह भयानक व्याघ्रमारी (बाघ को मारने वाली) शीघ्र ही दौड़ी। गले में बँधे हुए सियार वाला बाघ भी अचानक भाग गया।

इस प्रकार से वह बुद्धिमती स्त्री बाघ से उत्पन्न हुए भय से फिर से मुक्त हो गई। इसीलिए कहा गया है हे कोमलाङ्गी! हमेशा सभी कार्यों में बुद्धि ही बलवती होती है।

RBSE Class 10 Sanskrit बुद्धिर्बलवती सदा Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत
(क) बुद्धिमती कुत्र व्याघ्रं ददर्श ?
(ख) भामिनी कया विमुक्ता?
(ग) सर्वदा सर्वकार्येषु का बलवती?
(घ) व्याघ्रः कस्मात् बिभेति?
(ङ) प्रत्युत्पन्नमतिः बुद्धिमती किम् आक्षिपन्ती उवाच?
उत्तरम्:
(क) गहनकानने।
(ख) निजबुद्ध्या।
(ग) बुद्धिः।
(घ) मानुषात्।
(ङ) जम्बुकम्।

प्रश्न 2.
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत –
(अधोलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए।)

(क) बुद्धिमती केन उपेता पितुर्गुहं प्रति चलिता?
(बुद्धिमती किसके साथ पिता के घर की ओर चल दी?)
उत्तरम् :
बुद्धिमती पुत्रद्वयोपेता पितुर्गृहं प्रति चलिता।
(बुद्धिमती दो पुत्रों के साथ पिता के घर की ओर चल दी।)

(ख) व्याघ्रः किं विचार्य पलायितः ?
(बाघ क्या सोचकर भाग गया?)
उत्तरम् :
व्याघ्रमारी काचिदियमिति विचार्य व्याघ्रः पलायितः।
(‘यह कोई बाघ को मारने वाली है’-ऐसा सोचकर बाघ भाग गया।)

(ग) लोके महतो भयात् कः मुच्यते?
(संसार में महान् भय से कौन मुक्त हो जाता है ?)
उत्तरम् :
लोके महतो भयात् बुद्धिमान् मुच्यते।
(संसार में महान् भय से बुद्धिमान् मुक्त हो जाता है।)

(घ) जम्बुकः किं वदन् व्याघ्रस्य उपहासं करोति ?
(गीदड़ क्या कहकर बाघ का उपहास करता है ?)
उत्तरम् :
“त्वम् मानुषादपि विभेषि?” इति वदन् जम्बुक: व्याघ्रस्य उपहासं करोति।
(“तुम मनुष्य से भी डरते हो”-यह कहकर गीदड़ बाघ का उपहास करता है।)

(ङ) बुद्धिमती शृगालं किम् उक्तवती?
(बुद्धिमती ने सियार से क्या कहा?)
उत्तरम् :
“रे धूर्त ! त्वया मह्यं पुरा व्याघ्रत्रयं दत्तम्। विश्वास्याद्यैकमानीय कथं यासि वदाधुना।” इति बुद्धिमती शृगालम् उक्तवती।
(‘अरे धूर्त ! तुमने मुझे पहले तीन बाघ दिये थे। विश्वास दिलाकर अब एक (बाघ) ही लाकर कैसे जा रहे हो, अब बोलो’-ऐसा बुद्धिमती ने सियार से कहा।)

प्रश्न 3.
स्थूलपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(क) तत्र राजसिंहो नाम राजपुत्रः वसति स्म।
(ख) बुद्धिमती चपेटया पुत्रौ प्रहृतवती।
(ग) व्याघ्रं दृष्ट्वा धूर्तः शृगालः अवदत्।
(घ) त्वम् मानुषात् विभेषि।
(ङ) पुरा त्वया मह्यं व्याघ्रत्रयं दत्तम्।
उत्तरम् :
प्रश्ननिर्माणम्
(क) तत्र किम नाम राजपत्रः वसति स्म?
(ख) बुद्धिमती कया पुत्रौ प्रहृतवती?
(ग) कम् दृष्ट्वा धूर्तः शृगालः अवदत् ?
(घ) त्वम् कस्मात् विभेषि?
(ङ) पुरा त्वया कस्मै व्याघ्रत्रयं दत्तम् ?

प्रश्न 4.
अधोलिखितानि वाक्यानि घटनाक्रमानुसारेण योजयत
(क) व्याघ्रः व्याघ्रमारी इयमिति मत्वा पलायितः।
(ख) प्रत्युत्पन्नमतिः सा शृगालं आक्षिपन्ती उवाच।
(ग) जम्बुककृतोत्साहः व्याघ्रः पुनः काननम् आगच्छत्।
(घ) मार्गे सा एकं व्याघ्रम् अपश्यत्।
(ङ) व्याघ्र दृष्ट्वा सा पुत्रौ ताडयन्ती उवाच-अधुना एकमेव व्याघ्रं विभज्य भुज्यताम्।
(च) बुद्धिमती पुत्रद्वयेन उपेता पितुर्गृहं प्रति चलिता।
(छ) ‘त्वं व्याघ्रत्रयम् आनेतुं’ प्रतिज्ञाय एकमेव आनीतवान्।
(ज) गलबद्धशृगालक: व्याघ्रः पुनः पलायितः।
उत्तरम् :
(क) बुद्धिमती पुत्रद्वयेन उपेता पितुर्गृहं प्रति चलिता।
(ख) मार्गे सा एकं व्याघ्रम् अपश्यत्।
(ग) व्याघ्रं दृष्ट्वा सा पुत्रौ ताडयन्ती उवाच-अधुना एकमेव व्याघ्रं विभज्य भुज्यताम्।
(घ) व्याघ्रः व्याघ्रमारी इयमिति मत्वा पलायितः।
(ङ) जम्बुककृतोत्साहः व्याघ्रः पुनः काननम् आगच्छत्।
(च) प्रत्युत्पन्नमतिः सा शृगालं आक्षिपन्ती उवाच।
(छ) ‘त्वं व्याघ्रत्रयम् आनेतुं’ प्रतिज्ञाय एकमेव आनीतवान्।
(ज) गलबद्धशृगालकः व्याघ्रः पुनः पलायितः।

प्रश्न 5.
सन्धि/सन्धिविच्छेदं वा कुरुत
(क) पितुर्गृहम् – ………. + ……….
(ख) एकैकः – ………. + ………
(ग) ………… – अन्यः + अपि
(घ) …… – इति + उक्त्वा
(ङ) ……………… – यत्र + आस्ते
उत्तरम् :
(क) पितुहम् – पितुः + गृहम्
(ख) एकैकः – एक + एकः
(ग) अन्योऽपि – अन्यः + अपि
(घ) इत्युक्त्वा – इति + उक्त्वा
(ङ) यत्रास्ते – यत्र + आस्ते

प्रश्न 6.
अधोलिखितानां पदानाम् अर्थः कोष्ठकात् चित्वा लिखत –
(क) ददर्श – (दर्शितवान्, दृष्टवान्)
(ख) जगाद – (अकथयत्, अगच्छत्)
(ग) ययौ – (याचितवान्, गतवान्)
(घ) अत्तुम् – (खादितुम्, आविष्कर्तुम्)
(ङ) मुच्यते – (मुक्तो भवति, मग्नो भवति)
(च) ईक्षते – (पश्यति, इच्छति)
उत्तरम् :
(क) दृष्टवान्
(ख) अकथयत्
(ग) गतवान्
(घ) खादितुम्
(ङ) मुक्तो भवति
(च) पश्यति

प्रश्न 7.
(अ) पाठात् चित्वा पर्यायपदं लिखत –
(क) वनम् – ___________
(ख) शृगालः – ___________
(ग) शीघ्रम् – ___________
(घ) पत्नी – ___________
(ङ) गच्छसि – ___________
उत्तरम् :
(क) वनम् – काननम्
(ख) शृगालः – जम्बुक:
(ग) शीघ्रम् – तूर्णम्/सत्वरम्
(घ) पत्नी – भार्या
(ङ) गच्छसि – यासि

(आ) पाठात् चित्वा विपरीतार्थकं पदं लिखत
(क) प्रथमः – ___________
(ख) उक्त्वा – ___________
(ग) अधुना – ___________
(घ) अवेला – ___________
(ङ) बुद्धिहीना – _________
उत्तरम् :
(क) प्रथमः – द्वितीयः
(ख) उक्त्वा – बद्ध्वा
(ग) अधुना – तदा
(घ) अवेला – वेला
(ङ) बुद्धिहीना – बुद्धिमती

योग्यताविस्तारः

भाषिकविस्तारः

  • ददर्श – दृश् धातु, लिट् लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन।
  • विभेषि – ‘भी’ धातु, लट् लकार, मध्यम पुरुष, एकवचन।
  • प्रहरन्ती – प्र + ह धातु, शतृ प्रत्यय, स्त्रीलिङ्ग।
  • गम्यताम् – गम् धातु, कर्मवाच्य, लोट् लकार, प्रथमपुरुष, एकवचन।
  • ययौ – ‘या’ धातु, लिट् लकार, प्रथमपुरुष, एकवचन।
  • यासि – गच्छसि।

समास :

  • गलबद्धशृगालकः – गले बद्धः शृगालः यस्य सः।
  • प्रत्युत्पन्नमतिः – प्रत्युत्पन्ना मतिः यस्य सः।
  • जम्बुककृतोत्साहात् – जम्बुकेन कृत:
  • उत्साहः – जम्बुककृतोत्साहः तस्मात्।
  • पुत्रद्वयोपेता – पुत्रद्वयेन उपेता।
  • भयाकुलचित्तः – भयेन आकुलः चित्तम् यस्य सः।
  • व्याघ्रमारी – व्याघ्रं मारयति इति।
  • गृहीतकरजीवितः – गृहीतं करे जीवितं येन सः।
  • भयङ्करा – भयं करोति या इति।

RBSE Class 10 Sanskrit बुद्धिर्बलवती सदा Important Questions and Answers

भावार्थ-लेखनम

अधोलिखितश्लोकस्य संस्कृतेन भावार्थं लिखत

(i) निजबुद्ध्या विमुक्ता ………………….. महतो भयात॥
उत्तरम् :
भावार्थः-यथा बुद्धिमती नाम रूपवती स्त्री स्वस्य बुद्धिकौशलेन वने व्याघ्रस्य भयाद् विमुक्ता जाता, तथैव संसारे अन्योऽपि प्रज्ञावान् जनः महत: भयात् विमुक्तः भवति।

(ii) रे रे धूर्त त्वया ……………. यासि वदाधुना॥
उत्तरम् :
भावार्थः-वने आयान्तं शृगालसहितं व्याघ्रं दृष्ट्वा बुद्धिमती अङ्गुल्या तर्जयन्ती कथयति यत्-अरे वञ्चक ! त्वया पूर्वम् ममं कृते व्याघ्रत्रयं दानाय कथयित्वा अहं समाश्वासिता, किन्तु अद्य त्वम् एकमेव व्याघ्रम् आनीय केन प्रकारेण गच्छसि?

(iii) इत्युक्त्वा धाविता ……………. गलबद्धशृगालकः॥
उत्तरम् :
भावार्थः – शृगालेन सहितं व्याघ्रं दृष्ट्वा बुद्धिमती यदा शृगालं तर्जयन्ती तं मारयितुं धाविता, तदा भीषणां व्याघ्रहन्त्री तां बुद्धिमती दृष्ट्वा कण्ठे संलग्नशृगालयुक्तः व्याघ्रः ततः शीघ्रं पलायनं करोति। एवं प्रकारेण सा बुद्धिमती व्याघ्रजाद् भयात् पुनरपि मुक्ता अभवत्।।

(iv) बुद्धिर्बलवती तन्वि सर्वकार्येषु सर्वदा।
उत्तरम् :
भावार्थः – कविः कामपि सम्बोधयन् कथयति यत् हे कोमलाङ्गि! संसारे सततं सम्पूर्णकर्मसु च शारीरिकबलाद् बुद्धिबलमेव श्रेष्ठं भवति। बुद्धिबलेन बलवन्तमपि पराजेतुं तथा दुष्करमपि कार्यं सरलं भवति।

संस्कृतमाध्यमेन प्रश्नोत्तराणि

(अ) एकपदेन उत्तरत

(i) सदा का बलवती भवति?
उत्तरम् :
बुद्धिः।

(ii) राजपुत्रस्य किन्नाम आसीत् ?
उत्तरम् :
राजसिंहः।

(iii) राजपुत्रस्य भार्या किन्नाम आसीत् ?
उत्तरम् :
बुद्धिमती।

(iv) बुद्धिमती गहनकानने कम् ददर्श ?
उत्तरम् :
एकं व्याघ्रम्।

(v) बुद्धिमती की चपेटया प्रहृत्य जगाद?
उत्तरम् :
स्वपुत्रौ।

(vi) लोके महतो भयात् कः मुच्यते ?
‘उत्तरम् :
बुद्धिमान्।

(vii) भयाकुलं व्याघ्रं दृष्ट्वा कः हसति?
उत्तरम् :
धूर्तः शृगालः।

(viii) व्याघ्रः शृगालं कुत्र गन्तुं कथयति ?
उत्तरम् :
गूढप्रदेशम्।

(ix) व्याघ्रः निजगले कं बद्ध्वा काननं ययौ?
उत्तरम् :
शृगालम्।

(x) बुद्धिमती कस्मात् भयात् पुनरपि मुक्ताऽभवत् ?
उत्तरम् :
व्याघ्रजात्।

(ब) पूर्णवाक्येन उत्तरत

(i) ‘बुद्धिर्बलवती सदा’ इति पाठः कुतः संगृहीतोऽस्ति?
उत्तरम् :
‘बुद्धिर्बलवती सदा’ इति पाठः ‘शुकसप्तति’ कथाग्रन्थात् संगृहीतोऽस्ति।

(ii) राजसिंहः नाम राजपुत्रः कुत्र वसति स्म?
उत्तरम् :
राजसिंहः नाम राजपुत्रः देउलाख्ये ग्रामे वसति स्म।

(iii) बुद्धिमती किं दृष्ट्वा धाष्ात् पुत्रौ चपेटया प्रहृत्य जगाद?
उत्तरम् :
बुद्धिमती व्याघ्रमागच्छन्तं दृष्ट्वा धाष्ात् पुत्रौ चपेटया प्रहृत्य जगाद।

(iv) किं मत्वा व्याघ्रो भयाकुलचित्तो नष्टः?
उत्तरम् :
व्याघ्रमारी काचिदियमिति मत्वा व्याघ्रो भयाकुलचित्तो नष्टः।

(v) बुद्धिमती कया कस्य च भयात् विमुक्ता जाता?
उत्तरम् :
बुद्धिमंती निजबुद्ध्या व्याघ्रस्य भयात् विमुक्ता जाता।

(vi) लोके बुद्धिमान् कस्मात् मुच्यते?
उत्तरम् :
लोके बुद्धिमान् महतो भयाद् मुच्यते।

(vii) व्याघ्रण किं कुर्वन्ती बुद्धिमती दृष्टा?
उत्तरम् :
व्याघ्रण बुद्धिमती आत्मपुत्रौ एकैकशो व्याघ्रमत्तुं कलहायमानौ चपेटया प्रहरन्ती दृष्टा।

(viii) व्याघ्रः किं कृत्वा पुनः काननम् अगच्छत् ?
उत्तरम् :
व्याघ्रः शृगालं निजगले बद्ध्वा पुनः काननम् अगच्छत्।

(ix) कीदृशं व्याघ्र दूरात् दृष्ट्वा बुद्धिमती चिन्तितवती?
उत्तरम् :
शृगालेन सहितं पुनरायान्तं व्याघ्रं दूरात् दृष्ट्वा बुद्धिमती चिन्तितवती।

(x) भयङ्करां व्याघ्रमारी दृष्ट्वा कः सहसा पलायितः?
उत्तरम् :
भयङ्करां व्याघ्रमारी दृष्ट्वा गलबद्धशृगालकः व्याघ्रः सहसा पलायितः।

(xi) सर्वकार्येषु सर्वदा का बलवती भवति?
उत्तरम् :
सर्वकार्येषु सर्वदा बुद्धिः बलवती भवति।

अन्वय-लेखनम्

मञ्जूषातः समुचितपदानि चित्वा अधोलिखित-श्लोकस्य अन्वयं पूरयत

(i) निजबद्ध्या ………………. महतो भयात्।।
अन्वयः-सा (i) ….. निजबुद्ध्या (ii) …….. भयाद् विमुक्ता। लोके अन्यः (iii) ………. अपि महतः (iv) ………… मुच्यते।
मञ्जूषा :
बुद्धिमान्, भामिनी, भयात्, व्याघ्रस्य
उत्तरम् :
(i) भामिनी, (ii) व्याघ्रस्य, (iii) बुद्धिमान्, (iv) भयात्।

(ii) रे रे धर्त ………………… वदाधुना॥
अन्वयः – रे रे धूर्त ! पुरा (i) ………. मह्यं (ii) ………… दत्तम्, विश्वास्य अद्य (iii) ……….. आनीय कथं ………. (iv) ………., अधुना वद।
मञ्जूषा :
एकम्, त्वया, यासि, व्याघ्रत्रयम्।
उत्तरम् :
(i) त्वया, (ii) व्याघ्रत्रयं, (iii) एकम्, (iv) यासि।

(iii) इत्युक्त्वा धाविता ……………………. शृगालकः॥
अन्वयः – इति उक्त्वा (i) ………… व्याघ्रमारी (ii) ……… धाविता, गलबद्धशृगालक: (iii) ………….. ‘अपि सहसा (iv) ……………।
मञ्जूषा
व्याघ्रः, भयङ्करा, नष्टः, तूर्णम्।
उत्तरम् :
(i) भयङ्करा, (ii) तूर्णम्, (iii) व्याघ्रः, (iv) नष्टः।

प्रश्ननिर्माणम् :

निम्नलिखितेषु वाक्येषु रेखांकितपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत

  1. शृगालेन पुरा त्रयः व्याघ्राः आनीय दत्ताः।
  2. राजसिंहस्य भार्या बुद्धिमती आसीत्।
  3. बुद्धिमती पुत्रद्वयोपेता पितुर्गृहं प्रति चलिता।
  4. मार्गे गहनकानने सा एकं व्याघ्रं ददर्श।
  5. सा धाष्ात् पुत्रौ चपेटया प्रहृत्य जगाद।
  6. युवां व्याघ्रभक्षणाय कलहं कुरुथः।
  7. अयमेकस्तावत् विभज्य भुज्यताम्।
  8. पश्चाद् अन्यो द्वितीयः कश्चिल्लक्ष्यते।
  9. इयम् काचित् व्याघ्रमारी वर्तते।
  10. व्याघ्रो भयाकुलचित्तो पलायितः।

उत्तरम् :
प्रश्ननिर्माणम्

  1. शृगालेन पुरा कति व्याघ्राः आनीय दत्ताः?
  2. राजसिंहस्य भार्या का आसीत् ?
  3. बुद्धिमती पुत्रद्वयोपेता कम् प्रति चलिता?
  4. मार्गे गहनकानने सा कम् ददर्श?
  5. सा धाष्ट्रात पुत्रौ कया प्रहृत्य जगाद?
  6. युवां किमर्थम् कलहं कुरुथः?
  7. अयमेकस्तावत् कथं भुज्यताम् ?
  8. पश्चाद् अन्यो कः कश्चिल्लक्ष्यते?
  9. इयम् काचित् का वर्तते?
  10. कः भयाकुलचित्तो पलायितः?

पाठ-सार-लेखनम् :

प्रश्न: – ‘बुद्धिर्बलवती सदा’ इति पाठस्य सार: हिन्दीभाषायां लिखत।
उत्तर :
पाठ-सार-‘बद्धिर्बलवती सदा’ नामक पाठ मलत: ‘शकसप्ततिः’ नामक कथाग्रन्थ से संकलित किया गया है। इस पाठ में वर्णित कथा के माध्यम से बुद्धिमती नामक महिला के बुद्धि-कौशल को दर्शाया गया है। पाठानुसार ‘देउल’ नामक गाँव में राजसिंह नामक एक राजपूत रहता था। एक बार बुद्धिमती नामक उसकी पत्नी किसी कार्य से अपने दो पुत्रों के साथ अपने पिता के घर (पीहर) जाती है। रास्ते में गहन जंगल में उसे एक बाघ आता हुआ दिखाई दिया। वह शीघ्र ही धृष्टतापूर्वक अपने दोनों पुत्रों के थप्पड़ मारकर बोली-“क्यों एक-एक बाघ को खाने के लिए झगड़ा कर रहे हो? अभी इसे ही बाँटकर खा लेना। बाद में अन्य कोई बाघ देखा जाएगा।”

च उसे ‘व्याघ्रमारी’ मानकर भयभीत होकर भाग जाता है, किन्तु एक धर्त्त श्रगाल की बातों में आकर वह उस शृगाल को अपने गले में बाँधकर पुनः वहीं जंगल के मार्ग में आ जाता है। उसे देखकर प्रत्युत्पन्न बुद्धिवाली वह महिला शृगाल को झिड़कती हुई और धमकाती हुई भयानक रूप से शीघ्रतापूर्वक उसकी ओर दौड़ती है। यह देखकर भयभीत हुआ बाघ शृगाल सहित वहाँ से भाग जाता है।

इस प्रकार वह बुद्धिमती अपने बुद्धि-कौशल से बाघ से उत्पन्न महान् भय से मुक्त हो जाती है। इसलिए सत्य ही कहा गया है कि-“हमेशा सभी कार्यों में बुद्धि ही बलवती होती है।”

शब्दार्थ-चयनम् :

अधोलिखितवाक्येषु रेखाङ्कितपदानां प्रसङ्गानुकूलम् उचितार्थं चित्वा लिखत-

प्रश्न 1.
कानने सा एकं व्याघ्र ददर्श।
(क) उपवने
(ख) वने
(ग) गृहायाम्
(घ) पर्वते
उत्तरम् :
(ख) वने

प्रश्न 2.
सा पुत्रौ चपेटया प्रहृत्य जगाद।
(क) उक्तवती
(ख) अहसत्
(ग) अक्रुध्यत्
(घ) अगच्छत्
उत्तरम् :
(क) उक्तवती

प्रश्न 3.
इति मत्वा व्याघ्रो भयाकुलचित्तो नष्टः।
(क) अपतत्
(ख) हर्षितः
(ग) मृतः
(घ) पलायितः
उत्तरम् :
(घ) पलायितः

प्रश्न 4.
गच्छ, गच्छ जम्बुक।
(क) शृगालः
(ख) व्याघ्रः
(ग) चित्रकः
(घ) सूकरः
उत्तरम् :
(क) शृगालः

प्रश्न 5.
तयाहं हन्तुम् आरब्धः।
(क) प्रहर्तुम्
(ख) द्रष्टुम्
(ग) मारयितुम्
(घ) कथयितुम्
उत्तरम् :
(ग) मारयितुम्

प्रश्न 6.
तदा वेला अप्यवेला स्यात्।
(क) कार्यम्
(ख) समय:
(ग) जीवनम्
(घ) रूपम्
उत्तरम् :
(ख) समयः

प्रश्न 7.
मां निजगले बद्ध्वा चल सत्वरम्।
(क) मन्दम्
(ख) शनैः शनैः
(ग) शीघ्रम्
(घ) उच्चैः
उत्तरम् :
(ग) शीघ्रम्

प्रश्न 8.
सः व्याघ्रः काननं ययौ
(क) आगतवान्
(ख) अवसत्
(ग) मृतः
(घ) गतवान्
उत्तरम् :
(घ) गतवान्

प्रश्न 9.
इत्युक्त्वा धाविता तूर्णम्।
(क) शीघ्रम्
(ख) सहसा
(ग) मन्दम्
(घ) अधुना
उत्तरम् :
(क) शीघ्रम्

प्रश्न 10.
त्वया महत्कौतुकम् आवेदितम्।
(क) विज्ञापितम्
(ख) लिखितम्
(ग) प्रकटितम्।
(घ) दर्शितम्
उत्तरम् :
(क) विज्ञापितम्।

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