RBSE Class 10 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 4 शिशुलालनम्
RBSE Class 10 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 4 शिशुलालनम्
शिशुलालनम् Summary and Translation in Hindi
पाठ परिचय :
प्रस्तुत पाठ संस्कृत के प्रसिद्ध नाटक ‘कुन्दमाला’ के पंचम अङ्क से सम्पादित करके लिया गया है। इसके रचयिता प्रसिद्ध नाटककार दिङ्नाग हैं। इस नाट्यांश में राम अपने दोनों पुत्रों कुश और लव को सिंहासन पर बैठाना चाहते हैं किन्तु वे दोनों अतिशालीनतापूर्वक मना करते हैं। सिंहासनारूढ़ राम उन दोनों के सौन्दर्य से आकृष्ट होकर उन्हें अपनी गोद में बैठा लेते हैं। इस पाठ में शिशु स्नेह का अत्यन्त मनोहारी वर्णन किया गया है।
नाट्यांशों के कठिन शब्दार्थ एवं सप्रसंग हिन्दी-अनुवाद –
1. (सिंहासनस्थः रामः। ततः प्रविशतः विदूषकेनोपदिश्यमानमार्गों तापसौ कुशलवौ।)
विदूषकः – इत इत आयौँ!
कुशलवौ – (रामस्य समीपम् उपसृत्य प्रणम्य च) अपि कुशलं महाराजस्य ?
रामः – युष्मदर्शनात् कुशलमिव। भवतोः किं वयमत्र कुशलप्रश्नस्य भाजनम् एव, न पुनरतिथिजनसमुचितस्य कण्ठाश्लेषस्य। (परिष्वज्य ) अहो हृदयग्राही स्पर्शः।
(आसनार्धमुपवेशयति)
उभौ – राजासनं खल्वेतत्, न युक्तमध्यासितुम्।।
रामः – सव्यवधानं न चारित्रलोपाय। तस्माद – व्यवहितमध्यास्यतां सिंहासनम्।
(अङ्कमुपवेशयति)
कठिन शब्दार्थ :
- सिंहासनस्थः = सिंहासन पर बैठे हुए (राज्यासने स्थितः)।
- उपदिश्यमानः = बतलाये गए (निर्दिश्यमानः)।
- उपसृत्य = पास जाकर (समीपं गत्वा)।
- प्रणम्य = प्रणाम करके (प्रणामं कृत्वा)।
- युष्मदर्शनात् = तुमको देखने से (युवयोः अवलोकनात्)।
- भवतोः = आप दोनों की (युवयोः)।
- भाजनम् = पात्र (पात्रम्)।
- कण्ठाश्लेषस्य = गले लगाने का (कण्ठे आश्लेषस्य)।
- परिष्वज्य = आलिङ्गन करके. (आलिङ्गनं कृत्वा)।
- अध्यासितुम् = बैठने के लिए (उपवेष्टुम्)।
- सव्यवधानम् = रुकावट सहित (व्यवधानेन सहितम्)।
- अध्यास्यताम् = बैठिये (उपविश्यताम्)।
- अङ्कम् = गोद में (क्रोडे)।
- उपवेशयति = बैठाता है (आसयति)।
प्रसंग – प्रस्तुत नाट्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘शिशुलालनम्’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। मूलतः यह पाठ संस्कृत के प्रसिद्ध नाटककार दिङ्नाग द्वारा विरचित नाटक ‘कुन्दमाला’ के पंचम अंक से संकलित है। इस नाट्यांश में तपस्वी वेश में कुश और लव का अपने पिता श्रीराम के पास आने का तथा राम द्वारा स्नेहपूर्वक उन्हें अपनी गोद में बैठाने का सुन्दर वर्णन हुआ है।
हिन्दी अनुवाद – (राम सिंहासन पर बैठे हुए हैं। इसके बाद विदूषक द्वारा बतलाये गए मार्ग से दो तपस्वी बालक कुश और लव प्रवेश करते हैं।)।
विदूषक – हे आर्य ! इधर, इधर (आइए)।
कुश और लव – (राम के पास जाकर और प्रणाम करके) क्या महाराज कुशल हैं ?
राम – तुमको देखने से कुशल जैसा ही हूँ। क्या आप दोनों के द्वारा मैं कुशलता पूछने का ही पात्र हूँ, अतिथिजन के योग्य गले लगाने का नहीं? (आलिङ्गन करके) अहो! इनका स्पर्श तो हृदय को छूने वाला है।
(आधे आसन पर बैठाते हैं।)
दोनों – यह तो राजा का आसन है, इस पर बैठना उचित नहीं है।
राम – रुकावट सहित यहाँ बैठना चरित्र को नष्ट नहीं करता है। इसलिए गोद की रुकावट से युक्त सिंहासन पर बैठिये।
(गोद में बैठाते हैं।)
2. उभौ – (अनिच्छां नाटयतः) राजन्!
अलमतिदाक्षिण्येन।
रामः – अलमतिशालीनतया।
भवति शिशुजनो वयोऽनुरोधाद्
गुणमहतामपि लालनीय एव।
व्रजति हिमकरोऽपि बालभावात्
पशुपति-मस्तक-केतकच्छदत्वम्॥
रामः – एष भवतोः सौन्दर्यावलोकजनितेन कौतूहलेन पृच्छामि-क्षत्रियकुलपितामहयोः सूर्यचन्द्रयोः को वा भवतोवंशस्य कर्ता ?
लवः – भगवन् सहस्रदीधितिः।
श्लोक का अन्वय – गुणमहताम् अपि वयोऽनुरोधात् शिशुजनः लालनीयः एव भवति। बालभावात् हि हिमकरः अपि पशुपति-मस्तक-केतकच्छदत्वम् व्रजति।
कठिन शब्दार्थ :
- नाटयतः = अभिनय करते हैं (अभिनयं कुरुतः)।
- अलमतिदाक्षिण्येन = अधिक दक्षता/ दयालुता नहीं करें (अत्यधिकं कौशलं मा कुरु)।
- वयोऽनुरोधात् = आयु के कारण (आयुसः कारणात्)।
- लालनीयः = लालन/स्नेह के योग्य (स्नेहयोग्यः)।
- हिमकरः = चन्द्रमा (चन्द्रः)।
- पशुपतिः = भगवान् शिव (शिवः)।
- केतकच्छदत्वं = केतकी (केवड़े) के पुष्प से बना मस्तक का शेखर (जूड़ा) (केतकपुष्पनिर्मितस्य शिरोभूषणताम्)।
- व्रजति = बन जाता है (प्राप्नोति)।
- सौन्दर्यावलोकजनितेन = सौन्दर्य देखने से उत्पन्न (सौन्दर्यदर्शनजन्येन)।
- पितामहः = ब्रह्मा, ब्राह्मण (ब्रह्मा)।
- सहस्त्रदीधितिः = सूर्य (सूर्यः)।
प्रसंग-प्रस्तुत नाट्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘शिशुलालनम्’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। मूलतः यह पाठ संस्कृत के प्रसिद्ध नाटककार दिङ्नाग विरचित ‘कुन्दमाला’ नामक नाटक के पंचम अंक से संकलित है। इस अंश में तपस्वी बालक के वेश में आये हुए कुश एवं लव का अपने पिता राम के साथ संवाद वर्णित है, जिसमें शिशु-स्नेह का मनोहारी वर्णन हुआ है।
हिन्दी अनुवाद :
दोनों – (सिंहासन पर बैठने की अनिच्छा का अभिनय करते हैं) हे राजन्! अधिक दक्षता (दयालुता) नहीं करें।
राम – आप दोनों अधिक शालीनता नहीं दिखावें।
अत्यधिक गुणी लोगों के लिए भी छोटी उम्र के कारण बालक लालनीय (स्नेह के योग्य) ही होता है। चन्द्रमा बालभाव के कारण ही शङ्कर के मस्तक का आभूषण बनकर केतकी पुष्पों से निर्मित जूड़ा की भाँति शोभित होता है।
राम – आप दोनों के सौन्दर्य को देखने से उत्पन्न कौतूहल के कारण मैं यह पूछना चाहता हूँ कि-क्षत्रिय कुल और ब्राह्मण कुल अथवा चन्द्रमा और सूर्य में से कौन आपके वंश का कर्ता है?
लव – हजार किरणों वाले भगवान सूर्य।
3. रामः – कथमस्मत्समानाभिजनौ संवृत्तौ?।
विदूषकः – किं द्वयोरप्येकमेव प्रतिवचनम्?
लवः – भ्रातरावावां सोदयौँ।।
रामः – समरूपः शरीरसन्निवेशः। वयसस्तु न किञ्चिदन्तरम्।
लव: – आवां यमलौ। रामः-सम्प्रति युज्यते। किं नामधेयम् ?
लव: – आर्यस्य वन्दनायां लव इत्यात्मानं श्रावयामि (कुशं निर्दिश्य) आर्योऽपि गुरुचरणवन्दनायाम् …………..।
कुशः – अहमपि कुश इत्यात्मानं श्रावयामि।
रामः – अहो! उदात्तरम्यः समुदाचारः।
किं नामधेयो भवतोर्गुरुः?
कठिन शब्दार्थ :
- समानाभिजनी = एक कुल में पैदा होने वाले (समानकुलोत्पन्नौ)।
- संवृत्तौ = हो गये (संजातौ)।
- प्रतिवचनम् = उत्तर (प्रत्युत्तरम्)।
- सोदयों = सहोदर/सगे भाई (सहोदरौ)।
- शरीरसन्निवेशः = शरीर की बनावट (अंगरचनाविन्यासः)।
- वयसः = आयु से (आयुसः)।
- यमलौ = जुड़वाँ (यमजौ)।
- सम्प्रति = अब, इस समय (अधुना)।
- युज्यते = ठीक लगता है (समुचितम्)।
- श्रावयामि = सुनाता हूँ (कथयामि)।
- उदात्तरम्यः = अत्यधिक मनोहर (अत्यन्तरमणीयः)।
- समुदाचारः = शिष्टाचार (शिष्टाचारः)।
प्रसंग – प्रस्तुत नाट्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘शिशुलालनम्’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। मूलत: यह पाठ संस्कृत के प्रसिद्ध नाटककार दिङ्नाग विरचित ‘कुन्दमाला’ नामक नाटक के पंचम अंक से संकलित है। इस अंश में तपस्वी बालक के वेश में आये हुए कुश एवं लव का अपने पिता राम के साथ संवाद वर्णित है, जिसमें शिशु-स्नेह का मनोहारी वर्णन हुआ है।
हिन्दी अनुवाद :
राम – क्या (आप) हमारे समान एक कुल में ही पैदा होने वाले हैं ?
विदूषक – क्या आप दोनों का एक ही उत्तर है?
लव – हम दोनों सगे भाई हैं। राम-शरीर की बनावट समान रूप से है। आयु से तो कुछ भी अन्तर नहीं है।
लव – हम दोनों जुड़वाँ भाई हैं। राम-अब ठीक लगता है। आपका क्या नाम है?
लव – आर्य की वन्दना में मेरा नाम लव बतलाता हूँ। (कुश की ओर निर्देश करके) यह आर्य भी गुरुचरणों की वन्दना में…………।
कुश – मैं भी अपना नाम कुश निवेदन करता हूँ।
राम – अहो! शिष्टाचार अत्यधिक मनोहर है। आपके गुरु का क्या नाम है ?
4. लवः – ननु भगवान् वाल्मीकिः।
रामः – केन सम्बन्धेन?
लवः – उपनयनोपदेशेन।
रामः – अहमत्रभवतोः जनकं नामतो वेदितुमिच्छामि।
लव: – न हि जानाम्यस्य नामधेयम्। न कश्चिदस्मिन् तपोवने तस्य नाम व्यवहरति।
रामः – अहो माहात्म्यम्।
कुशः – जानाम्यहं तस्य नामधेयम्। रामः-कथ्यताम्।
कुश: – निरनुकोशो नाम…. रामः-वयस्य, अपूर्व खलु नामधेयम्।
विदूषकः – (विचिन्त्य) एवं तावत् पृच्छामि निरनुक्रोश इति क एवं भणति?
कुश: – अम्बा।
विदूषकः – किं कुपिता एवं भणति, उत प्रकृतिस्था?
कुशः – यद्यावयोर्बालभावजनितं कञ्चिदविनयं पश्यति तदा एवम् अधिक्षिपतिनिरनुक्रोशस्य पुत्रौ, मा चापलम् इति।
कठिन शब्दार्थ :
- उपनयनोपदेशेन = उपनयन संस्कार की दीक्षा के कारण (यज्ञोपवीतसंस्कारेण)।
- जनकम् = पिता का (पितरम्)।
- वेदितुम् = जानने के लिए (ज्ञातुम्)।
- नामधेयम् = नाम।
- निरनुक्रोशः = निर्दयी, दया रहित (निर्दयः)।
- वयस्य = मित्र (मित्रम्)।
- भणति = कहता है (कथयति)।
- अम्बा = माता।
- कुपिता = क्रोधित (क्रुद्धा)।
- उत = अथवा।
- प्रकृतिस्था = स्वाभाविक रूप से (स्वभाविकरूपेण)।
- अधिक्षिपति = फटकारती है (आक्षेप करोति)।
- मा चापलम् = चंचलता मत करो (अलं चापल्येन)।
प्रसंग-प्रस्तुत नाट्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘शिशुलालनम्’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। मूलत: यह पाठ संस्कृत के प्रसिद्ध नाटककार दिङ्नाग विरचित नाटक ‘कुन्दमाला’ के पंचम अंक से संकलित है। इस अंश में तपस्वी बालक के वेश में आये हुए कुश एवं लव का अपने पिता राम के साथ रोचक वार्तालाप वर्णित है। इसमें राम अत्यन्त स्नेहपूर्वक उनका परिचय पूछते हैं और वे दोनों अत्यन्त शिष्टाचारपूर्वक अपना परिचय देते हैं।
हिन्दी अनुवाद :
लव – भगवान् वाल्मीकि (हमारे गुरु का नाम है)।
राम – किस सम्बन्ध से?
लव – उपनयन संस्कार की दीक्षा के कारण।।
राम – मैं आपके पिता का नाम जानना चाहता हूँ।
लव – मैं उनका नाम नहीं जानता हूँ। कोई भी इस तपोवन में उनके नाम का व्यवहार नहीं करता है अर्थात् उनका नाम नहीं लेता है।
राम – आश्चर्यपूर्ण महिमा है। कुश-मैं उनका नाम जानता हूँ। राम-कहिये। कुश-निर्दयी नाम है। राम-मित्र, यह तो अनोखा नाम है। विदूषक-(सोचकर) इस प्रकार पूछता हूँ-‘निर्दयी’ ऐसा कौन कहता है? कुश-माता। विदूषक-क्या क्रोधित होकर इस प्रकार कहती है अथवा स्वाभाविक रूप से?
कुश – यदि हम दोनों में बालस्वभाववश कोई अविनम्रता देखती है तब इस प्रकार से फटकारती है-निर्दयी के पुत्रो, चंचलता मत करो।
5. विदूषकः – एतयोर्यदि पितुर्निरनुक्रोश इति नामधेयम् एतयोर्जननी तेनावमानिता निर्वासिता एतेन वचनेन दारको निर्भर्त्तयति।।
रामः – (स्वगतम्) धिङ् मामेवंभूतम्। सा तपस्विनी मत्कृते नापराधेन स्वापत्यमेवं मन्युग:रक्षरैर्निर्भर्त्तयति।
(सवाष्पमवलोकयति)
रामः – अतिदीर्घः प्रवासोऽयं दारुणश्च। (विदूषकमवलोक्य जनान्तिकम्) कुतूहलेनाविष्टो मातरमनयो मतो वेदितुमिच्छामि। न युक्तं च स्त्रीगतमनुयोक्तुम्, विशेषतस्तपोवने। तत् कोऽत्राभ्युपायः?
कठिन शब्दार्थ :
- अवमानिता = अपमानित हुई (तिरस्कृता)।
- निर्वासिता = निकाली गई (निष्काषिता)।
- दारको = दोनों पुत्रं (पुत्रौ)।
- निर्भर्त्सयति = धमकाती है (तर्जयति)।
- धिङ् = धिक्कार है।
- एवंभूतम् = इस प्रकार का (एतादृशम्)।
- मत्कृतेन = मेरे द्वारा किये हुए से (मया घटितेन)।
- स्वापत्यम् = अपने पुत्र को, अपनी सन्तान को (स्वसन्ततिम्)।
- मन्युगभैः = क्रोध से परिपूर्ण (क्रोधपूर्णैः)।
- प्रवासः = वियोगः।
- दारुणः = कठोरः।
- अवलोक्य = देखकर (दृष्ट्वा)।
- जनान्तिकम् = एक ओर (एकतः)।
- कुतूहलेनाविष्टः = कौतूहल से युक्त (कौतूहलेनसहितः)।
- अभ्युपायः = उचित उपाय (उपायः)।
प्रसंग – प्रस्तुत नाट्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘शिशुलालनम्’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। मूलत: यह पाठ संस्कृत के प्रसिद्ध नाटककार दिङ्नाग विरचित ‘कुन्दमाला’ नामक नाटक के पंचम अंक से संकलित है। इस अंश में कुश एवं लव के द्वारा दिये गए परिचय में उनके पिता का नाम ‘निर्दयी’ सुनकर एवं उन्हें पहचान कर सीता-निर्वासन को याद करते हुए राम की विरह-व्यथा का वर्णन किया गया है।
हिन्दी अनुवाद :
विदूषक – यदि इन दोनों के पिता का नाम ‘निर्दयी’ ऐसा है तो इन दोनों की माता उनसे अपमानित हुई तथा निर्वासित होकर ही इस प्रकार के वचन (निर्दयी) से अपने पुत्रों को धमकाती है।
राम – (अपने मन में) इस प्रकार के निर्दयी मुझे धिक्कार है। वह तपस्विनी (बेचारी) मेरे द्वारा किये गये अपराध से अपनी सन्तान को इस प्रकार के क्रोधपूर्ण अक्षरों से धमकाती है।
(आँसुओं के साथ देखते हैं।)
राम – यह वियोग अत्यधिक लम्बा और कठोर है। (विदषक को देखकर एकान्त में) कौतहलवश मैं इन दोनों की माता का नाम जानना चाहता हूँ। किन्तु स्त्रियों के बारे में जानना (खोजबीन करना) उचित नहीं है, विशेष रूप से तपोवन में। इसलिए इसका क्या उचित उपाय है?
6. विदूषकः-(जनान्तिकम्) अहं पुनः पृच्छामि। (प्रकाशम्) किं नामधेया युवयोर्जननी?
लवः – तस्याः द्वे नामनी।
विदूषकः – कथमिव?
लवः – तपोवनवासिनो देवीति नाम्नाह्वयन्ति, भगवान् वाल्मीकिर्वधूरिति।
रामः – अपि च इतस्तावद् वयस्य!
मुहूर्त्तमात्रम्।
विदूषकः – (उपसृत्य) आज्ञापयतु भवान्।
रामः – अपि कुमारयोरनयोरस्माकं च सर्वथा समरूपः कुटुम्बवृत्तान्तः?
कठिन शब्दार्थ :
- जनान्तिकम् = एकान्त में (एकान्ते)।
- प्रकाशम् = प्रकट रूप से (प्रकटरूपेण)।
- नाम्नाह्वयन्ति = नाम से बुलाते हैं (नाम्ना आकारयन्ति)।
- मुहूर्त्तमात्रम् = क्षणभर के लिए (क्षणमात्रम्)।
- उपसृत्य = पास जाकर (समीपं गत्वा)।
- आज्ञापयतु = आज्ञा दीजिए (आज्ञां देहि)।
- कुटुम्बवृत्तान्तः = परिवार का वृत्तान्त (परिवारस्य विवरणम्)।
प्रसंग-प्रस्तुत नाट्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘शिशुलालनम्’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। मूलत: यह पाठ संस्कृत के प्रसिद्ध नाटककार दिङ्नाग विरचित नाटक ‘कुन्दमाला’ के पंचम अंक से संकलित है। इस अंश में राम दरबार में आये हुए कुश और लव के साथ हुए संवाद के प्रसंग में विदूषक द्वारा उनकी माता का नाम पूछे जाने का तथा लव के प्रत्युत्तर को सुनकर राम के हृदय में उत्पन्न भावों का चित्रण किया गया है।
हिन्दी अनुवाद :
विदूषक – (एकान्त में) मैं फिर से पूछता हूँ। (प्रकट रूप से) आप दोनों की माता का क्या नाम है?
लव – उनके दो नाम हैं। विदूषक-किस प्रकार?
लव – तपोवन में रहने वाले ‘देवी’ इस नाम से बुलाते हैं और भगवान् वाल्मीकि ‘वधू’ इस नाम से। राम-और भी, मित्र! क्षण-भर के लिए इधर आओ। विदूषक-(पास जाकर) आप आज्ञा दीजिए। राम-क्या इन दोनों कुमारों का और हमारा पारिवारिक वृत्तान्त सभी तरह से समान ही है?
7. (नेपथ्ये)
इयती वेला सञ्जाता रामायणगानस्य नियोगः किमर्थं न विधीयते ?
उभौ – राजन्! उपाध्यायदूतोऽस्मान् त्वरयति।
रामः – मयापि सम्माननीय एव मुनिनियोगः। तथाहि –
भवन्तौ गायन्तौ कविरपि पुराणो व्रतनिधिर्
गिरां सन्दर्भोऽयं प्रथममवतीर्णो वसुमतीम्।
कथा चेयं श्लाघ्या सरसिरुहनाभस्य नियतं,
पुनाति श्रोतारं रमयति च सोऽयं परिकरः॥
वयस्य! अपूर्वोऽयं मानवानां सरस्वत्यवतारः, तदहं सुहृज्जनसाधारणं श्रोतुमिच्छामि। सन्निधीयन्तां सभासदः, प्रेष्यतामस्मदन्तिकं सौमित्रिः, अहमप्येतयोश्चिरासनपरिखेदं विहरणं कृत्वा अपनयामि।
(इति निष्क्रान्ताः सर्वे)
पद्य का अन्वय-भवन्तौ गायन्तौ, पुराणः व्रतनिधिः कविः अपि, वसुमतीम् प्रथमं अवतीर्णः, गिराम् अयं सन्दर्भः, सरसिरहनाभस्य च इयं श्लाघ्या कथा, सः च अयं परिकरः नियतं श्रोतारं पुनाति रमयति च।
कठिन शब्दार्थ :
- इयती = इतना (एतावती)।
- वेला = समय (समयः)।
- नियोगः = कार्य, आदेश (आदेशः)।
- न विधीयते = नहीं किया जा रहा है (न क्रियते)।
- त्वरयति = शीघ्रता कर रहा है (शीघ्रतां करोति)।
- व्रतनिधिः = तपोनिधि (तपोनिधिः)।
- वसुमतीम् = पृथ्वी पर (भूमिम्)।
- अवतीर्णः = अवतरित हुआ है (अवतरितः)।
- गिराम् = वाणी का (वाण्याः)।
- सन्दर्भः = काव्य (काव्यम्)।
- सरसिरहनाभस्य = कमलनाभि विष्णु (कमलनाभस्य/विष्णोः)।
- श्लाघ्या = प्रशंसनीय (प्रशंसनीया)।
- परिकरः = संयोग (संयोगः)।
- नियतम् = निश्चित ही (निश्चितम्)।
- श्रोतारम् = श्रोताओं को (श्रोतागणम्)।
- पुनाति = पवित्र करता है (पवित्रं करोति)।
- रमयति = आनन्दित करता है (आनन्दयति)।
- सन्निधीयन्ताम् = समीप बुलाइये (समीपम् आयान्तु)।
- प्रेष्यताम् = भेजिये (गमयताम्)।
- अन्तिकम् = निकट (समीपम्)।
- सौमित्रिः = लक्ष्मण को (लक्ष्मणम्)।
- विहरणं = घूमकर (भ्रमित्वा)।
- अपनयामि = दूर करता हूँ (दूरीकरोमि)।
प्रसंग-प्रस्तुत नाट्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘शिशुलालनम्’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। मूलत: यह पाठ संस्कृत के प्रसिद्ध नाटककार दिङ्नाग विरचित नाटक ‘कुन्दमाला’ से संकलित है। इस अंश में महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित आदिकाव्य रामायण की प्रशंसा करते हुए लव-कुश द्वारा राम की सभा में उसका गान किये जाने का वर्णन हुआ है।
हिन्दी अनुवाद :
(नेपथ्य में)
इतना समय हो गया है, रामायण के गान करने के आदेश का पालन किसलिए नहीं किया जा रहा है?
दोनों – हे राजन्! उपाध्याय का दूत हमें शीघ्रता करा रहा है।
राम – मुझे भी मुनि के आदेश का सम्मान करना चाहिए। जैसाकि –
आप दोनों (कुश और लव) इस कथा का गान करने वाले हैं, तपोनिधि पुराण मुनि (वाल्मीकि) इस रचना के कवि हैं. धरती पर प्रथम बार अवतरित होने वाला स्फट वाणी का यह काव्य है और इसकी कथा कमलनाभि विष्णु से सम्बद्ध है। इस प्रकार निश्चय ही यह संयोग श्रोताओं को पवित्र और आनन्दित करने वाला है।
मित्र! मनुष्यों के लिए यह सरस्वती का अवतार अपूर्व है, इसलिए मैं भी सामान्य मित्र के समान ही सुनना चाहता हूँ। सभासदों को एकत्रित कीजिए, मेरे पास लक्ष्मण को भेजिए, मैं भी इन दोनों पैरों की लम्बे समय से बैठे हुए की थकान को घूमकर दूर करता हूँ।
(सभी निकल जाते हैं।)
RBSE Class 10 Sanskrit शिशुलालनम् Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत –
(क) कुशलवौ कम् उपसृत्य प्रणमतः?
(ख) तपोवनवासिनः कुशस्य मातरं केन नाम्ना आह्वयन्ति?
(ग) वयोऽनुरोधात् कः लालनीयः भवति?
(घ) केन सम्बन्धेन वाल्मीकिः लवकुशयोः गुरुः?
(ङ) कुत्र लवकुशयोः पितुः नाम न व्यवह्रियते?
उत्तरम् :
(क) रामम्।
(ख) देवी।
(ग) शिशुजनः।
(घ) उपनयनोपदेशेन।
(ङ) तपोवने।
प्रश्न 2.
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत
(अधोलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए-)
(क) रामाय कुशलवयोः कण्ठाश्लेषस्य स्पर्शः कीदृशः आसीत् ?
(राम के लिए कुश और लव का गले मिलने का स्पर्श कैसा था?)
उत्तरम् :
रामाय कुशलवयोः कण्ठाश्लेषस्य स्पर्शः हृदयग्राही आसीत्।
(राम के लिए कुश और लव का गले मिलने का स्पर्श हृदयग्राही था।)
(ख) रामः लवकुशी कुत्र उपवेशयितुम् कथयति?
(राम लव और कुश को कहाँ बैठने के लिए कहते हैं ?)
उत्तरम् :
रामः लवकुशौ स्वस्य सिंहासने उपवेशयितुम् कथयति।
(राम लव और कुश को अपने सिंहासन पर बैठने के लिए कहते हैं।)
(ग) बालभावात् हिमकरः कुत्र विराजते?
(बाल भाव के कारण चन्द्रमा कहाँ विराजमान होता है ?)
उत्तरम् :
बालभावात् हिमकरः भगवतः शिवस्य मस्तके विराजते।
(बाल भाव के कारण चन्द्रमा भगवान् शिव के मस्तक पर विराजमान है।)
(घ) कुशलवयोः वंशस्य कर्ता कः?
(कुश और लव के वंश के कर्ता कौन हैं ?)
उत्तरम् :
कुशलवयोः वंशस्य कर्ता भगवान् सूर्यः वर्तते।
(कुश और लव के वंश के कर्ता भगवान् सूर्य हैं।)
(ङ) कुशलवयोः मातरं वाल्मीकिः केन नाम्ना आह्वयति ?
(कुश और लव की माता को वाल्मीकि किस नाम से बुलाते थे?)
उत्तरम् :
कुशलवयोः मातरं वाल्मीकिः वधूरिति नाम्ना आह्वयति।
(कुश और लव की माता को वाल्मीकि ‘वधू’ इस नाम से बुलाते थे।)
प्रश्न 3.
रेखाङ्कितेषु पदेषु विभक्तिं तत्कारणं च उदाहरणानुसारं निर्दिशत –
प्रश्न 4.
यथानिर्देशम् उत्तरत
(क) ‘जानाम्यहं तस्य नामधेयम्’ अस्मिन् वाक्ये कर्तृपदं किम्?
उत्तरम् :
अहम्।
(ख) ‘किं कुपिता एवं भणति उत प्रकृतिस्था’-अस्मात् वाक्यात् ‘हर्षिता’ इति पदस्य विपरीतार्थकपदं चित्वा लिखत।
उत्तरम् :
कुपिता।
(ग) विदूषकः (उपसृत्य) ‘आज्ञापयतु भवान् !’ अत्र भवान् इति पदं कस्मै प्रयुक्तम्?
उत्तरम :
रामाय।
(घ) “तस्मादङ्क-व्यवहितम् अध्यास्यताम् सिंहासनम्’-अत्र क्रियापदं किम्?
उत्तरम् :
अध्यास्यताम्।
(ङ) ‘वयसस्तु न किञ्चिदन्तरम्’-अत्र ‘आयुषः’ इत्यर्थे किं पदं प्रयुक्तम् ?
उत्तरम् :
वयसः।
प्रश्न 5.
अधोलिखितानि वाक्यानि कः कं प्रति कथयति –
प्रश्न 6.
मञ्जूषातः पर्यायद्वयं चित्वा पदानां समक्षं लिखत –
शिवः शिष्टाचारः शशिः चन्द्रशेखरः सुतः इदानीम्
अधुना पुत्रः सूर्यः सदाचारः निशाकरः भानुः
(क) हिमकरः – __________ __________
(ख) सम्प्रति – __________ __________
(ग) समुदाचारः – __________ __________
(घ) पशुपतिः – __________ __________
(ङ) तनयः – __________ __________
(च) सहस्रदीधितिः – __________ __________
उत्तरम् :
(क) हिमकरः – शशिः, निशाकरः।
(ख) सम्प्रति – इदानीम्, अधुना।
(ग) समुदाचारः – शिष्टाचारः, सदाचारः।
(घ) पशुपतिः – चन्द्रशेखरः, शिवः।
(ङ) तनयः – सुतः, पुत्रः।
(च) सहस्रदीधितिः – सूर्यः, भानुः।
(अ) विशेषण-विशेष्यपदानि योजयत –
यथा-विशेषण पदानि विशेष्य पदानि
श्लाघ्या कथा
1. उदात्तरम्यः (क) समुदाचारः
2. अतिदीर्घः (ख) स्पर्शः
3. समरूपः (ग) कुशलवयोः
4. हृदयग्राही (घ) प्रवासः
5. कुमारयोः (ङ) कुटुम्बवृत्तान्तः
उत्तरम् :
विशेषण पदानि विशेष्य पदानि
1. उदात्तरम्यः – समुदाचारः
2. अतिदीर्घः – प्रवासः
3. समरूपः – कुटुम्बवृत्तान्तः
4. हृदयग्राही – स्पर्शः
5. कुमारयोः – कुशलवयोः
प्रश्न 7.
(क) अधोलिखितपदेषु सन्धिं कुरुत –
(क) द्वयोः + अपि – _________
(ख) द्वौ + अपि – _________
(ग) कः + अत्र – _________
(घ) अनभिज्ञः + अहम् – _________
(ङ) इति + आत्मानम् – _________
उत्तरम् :
(क) द्वयोः + अपि – द्वयोरपि
(ख) द्वौ + अपि – द्वावपि
(ग) कः + अत्र – कोऽत्र
(घ) अनभिज्ञः + अहम् – अनभिज्ञोऽहम्
(ङ) इति + आत्मानम् – इत्यात्मानम्
(ख) अधोलिखितपदेषु विच्छेदं कुरुत –
(क) अहमप्येतयोः – _____________
(ख) वयोऽनुरोधात् – _____________
(ग) समानाभिजनौ – _____________
(घ) खल्वेतत् – ________________
उत्तरम् :
(क) अहमप्येतयोः – अहम् + अपि + एतयोः
(ख) वयोऽनुरोधात् – वयः + अनुरोधात्
(ग) समानाभिजनौ – समान + अभिजनौ
(घ) खल्वेतत् – खलु + एतत्
RBSE Class 10 Sanskrit शिशुलालनम् Important Questions and Answers
भावार्थ-लेखनम्
प्रश्न 1.
अधोलिखितस्य श्लोकस्य संस्कृते भावार्थ लिखत –
(i) भवति शिशुजनो ………………. केतकच्छदत्वम्॥
उत्तरम् :
भावार्थ: – बालकः सर्वेषां कृते प्रियः भवति। ये महान्तः गुणवन्तः भवन्ति, तेषामपि कृते आयुसः कारणात् शिशु (बालकः) स्वभाविकरूपेण स्नेहयोग्यः भवति एव। यथाहि बालभावादेव चन्द्रः अपि भगवतः शिवस्य केतकपुष्पनिर्मितस्य शिरोभूषणताम् प्राप्नोति।
(ii) भवन्तौ गायन्तौ ………………… सोऽयं परिकरः॥
उत्तरम् :
भावार्थ: – श्रीरामः लवकुशौ प्रति कथयति यत् भवन्तौ रामायणस्य गानं कुरुताम्। अस्य रचयिता तपोनिधिः महर्षिः वाल्मीकिः प्राचीनः कविः अस्ति। पृथिव्यां प्रथमवारम् अवतरितम् इदं स्फुटवाण्याः काव्यमस्ति। अस्य कथा कमलनाभस्य (विष्णोः) प्रशंसनीया वर्तते। एवं प्रकारेण निश्चयेन अयं संयोगः श्रोतागणं पवित्रं करोति, आनन्दयति च।
प्रश्न 2.
अधोलिखितवाक्यानां भावार्थः सरलसंस्कृतभाषया लिखत –
(i) सव्यवधानं न चरित्रलोपाय।
उत्तरम् :
भावार्थ: – यदा लवकुशौ राजासने उपवेष्टुम् समुचितं न मन्येते, तदा रामः कथयति यत् व्यवधानसहितं चरित्रविनाशाय न भवति। अतः अङ्कस्य व्यवधानेन सिंहासने उपविश्यताम्। अर्थात् साक्षात् सम्बन्धेनैव … दोषः भवति न तु अप्रत्यक्षेन।
(ii) भवति शिशुजनो वयोऽनुरोधाद् …………… गुणमहतामपि लालनीय एव।
उत्तरम् :
भावार्थः-अल्पवयस्कात् बालकः सर्वेषां कृते स्नेहयुक्त एव भवति। गुणैः महापुरुषाणामपि कृते बालः स्नेहशीलः भवति। यथा बालभावात् चन्द्रः भगवतः शिवस्य मस्तके शोभते।
(iii) अतिदीर्घः प्रवासोऽयं दारुणश्च।
उत्तरम् :
भावार्थः – दम्पत्योः विरहः स्वभावतः एव अतिकष्टदायकं भवति। यदि सः विरहः दीर्घकालीनो भवति तर्हि तु सः असहनीयः भवति। अत्रापि सीतायाः दीर्घप्रवासात् रामः अतीव दुःखितः भूत्वा कथनमिदं कथयति।
(iv) न युक्तं स्त्रीगतमनुयोक्तुम्।
उत्तरम् :
भावार्थ:-परकीयैः स्त्रीजनैः सह केनापि प्रकारेण सम्बन्धवर्धनम् उचितं नास्ति। परस्त्रीविषये वार्तालाप न कर्त्तव्यम्।
संस्कृतमाध्यमेन प्रश्नोत्तराणि :
(अ) एकपदेन उत्तरत
प्रश्न 1.
‘शिशुलालनम्’ इति पाठस्य रचयिता कः?
उत्तरम् :
दिङ्नागः।
प्रश्न 2.
लवकुशौ कस्य पुत्रौ आस्ताम् ?
उत्तरम:
रामस्य।
प्रश्न 3.
रामस्य कृते कयोः स्पर्शः हृदयग्राही आसीत् ?
उत्तरम् :
लवकुशयोः।
प्रश्न 4.
किम् न चरित्रलोपाय?
उत्तरम् :
सव्यवधानम्।
प्रश्न 5.
रामः लवकुशौ कुत्र उपवेशयति ?
उत्तरम् :
अङ्कम्।
प्रश्न 6.
लवकुशयोः शरीरसन्निवेशः कीदृशः आसीत् ?
उत्तरम् :
समरूपः।
प्रश्न 7.
लवकुशौ कीदृशौ भ्रातरौ आस्ताम्?
उत्तरम् :
सोदर्यो।
प्रश्न 8.
लवकुशयोः समुदाचारः कीदृशः आसीत् ?
उत्तरम् :
उदात्तरम्यः।
प्रश्न 9.
लवकुशयोः गुरोः किन्नाम आसीत् ?
उत्तरम् :
भगवान् वाल्मीकिः।
प्रश्न 10.
कुशः स्वपितुः किन्नाम कथयति?
उत्तरम् :
निरनुक्रोशः।
प्रश्न 11.
किम् अनुयोक्तुं न युक्तम् ?
उत्तरम् :
स्त्रीगतम्।
प्रश्न 12.
रामेणापि कः सम्माननीय एव?
उत्तरम् :
मुनिनियोगः।
(ब) पूर्णवाक्येन उत्तरत
प्रश्न 1.
‘शिशुलालनम्’ इति पाठः कुतः सङ्कलितः ?
उत्तरम् :
‘शिशुलालनम्’ इति पाठः दिङ्नागविरचितस्य ‘कुन्दमाला’ इति नाटकस्य पञ्चमात्रात् सङ्कलितः।
प्रश्न 2.
रामस्य समीपं केन उपदिश्यमानमार्गी कुशलवी प्रविशतः?
उत्तरम् :
रामस्य समीपं विदूषकेन उपदिश्यमानमार्गों कुशलवौ प्रविशतः।
प्रश्न 3.
वयोऽनुरोधाद् कः गुणमहतामपि लालनीयः भवति?
उत्तरम् :
वयोऽनुरोधाद् शिशुजनः गुणमहतामपि लालनीयः भवति।
प्रश्न 4.
को रामेण समानाभिजनौ संवृत्तौ ?
उत्तरम् :
कुशलवौ रामेण समानाभिजनौ संवृत्तौ।
प्रश्न 5.
कयोः वयसस्तु न किञ्चिदन्तरम् आसीत् ?
उत्तरम् :
कुशलवयोः वयसस्तु न किञ्चिदन्तरम् आसीत्।
प्रश्न 6.
लवकुशयोः पितुर्नाम ‘निरनुक्रोशः’ इति कः कथयति।
उत्तरम् :
लवकुशयोः पितुर्नाम ‘निरनुक्रोशः’ इति तयोः माता कथयति।
प्रश्न 7.
रामस्य प्रवासः कीदृशः आसीत् ?
उत्तरम् :
रामस्य प्रवास: अतिदीर्घः दारुणश्च आसीत्।
प्रश्न 8.
कुतूहलेनाविष्टो रामः किं वेदितुमिच्छति स्म?
उत्तरम् :
कुतूहलेनाविष्टो रामः कुशलवयोः मातरं नामतो वेदितुमिच्छति स्म।
प्रश्न 9.
रामानुसारेण विशेषतस्तपोवने किं न युक्तम् ?
उत्तरम् :
रामानुसारेण विशेषतस्तपोवने स्त्रीगतमनुयोक्तुं न युक्तम्।
प्रश्न 10.
तपोवनवासिनः सीतां केन नाम्ना आहायन्ति स्म?
उत्तरम् :
तपोवनवासिनः सीतां देवीति नाम्ना आह्वायन्ति स्म।
प्रश्न 11.
कोऽयम् अपूर्वो मानवानां सरस्वत्यवतारः?
उत्तरम् :
रामायणस्य रचना अपूर्वो मानवानां सरस्वत्यवतारः।
अन्वय-लेखनम्
मञ्जूषातः समुचितपदानि चित्वा अधोलिखित-श्लोकयोः अन्वयं पूरयत
(क) भवति शिशुजनो ……………………… केतकच्छदत्वम्।
अन्वयः – गुणमहताम् अपि (i) ………… शिशुजन: (ii) …………… एव भवति। (iii) …………….. हि हिमकरः अपि (iv) ………….. मस्तक-केतकच्छदत्वम् व्रजति।
उत्तरम् :
(i) वयोऽनुरोधात्, (ii) लालनीयः, (iii) बालभावात्, (iv) पशुपतिः।
(ख) भवन्तौ गायन्तौ …………….. सोऽयं परिकरः।
अन्वयः – भवन्तौ गायन्तौ, पुराण: (i) …………… कविः अपि, वसुमतीम् प्रथमं (ii) …………. गिराम् अयं सन्दर्भः, (iii) …………….. च इयं श्लाघ्या कथा, सः च अयं (iv) …………. नियतं श्रोतारं पुनाति रमयति च।
मञ्जूषा :
बालभावात्, सरसिरुहनाभस्य, पशुपतिः, परिकरः, लालनीयः, अवतीर्णः, वयोऽनुरोधात्, व्रतनिधिः
उत्तरम् :
(i) व्रतनिधिः, (ii) अवतीर्णः, (iii) सरसिरुहनाभस्य, (iv) परिकरः।
प्रश्ननिर्माणम
अधोलिखितेषु वाक्येषु रेखाङ्कितपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणम् कुरुत
- सिंहासनस्थः रामः प्रविशति।
- विदूषकेन उपदिश्यमानमार्गी लवकुशौ प्रविशतः।
- कुशलवौ रामस्य समीपमुपसृत्य प्रणमतः।
- अनयोः स्पर्शः हृदयग्राही वर्तते।
- एतत् राजासनं न युक्तमध्यासितुम्।
- सव्यवधानं चरित्रलोपाय न भवति।
- अङ्कव्यवहितं सिंहासनम् अध्यास्यताम्।
- गुणमहताम् अपि शिशुजनो लालनीय एव भवति।
- लवकुशयोः वंशस्य कर्ता भगवन् सहस्रदीधितिः वर्तते।
- लवकुशौ अस्मत् समानाभिजनौ संवृत्तौ।
उत्तरम् :
प्रश्न-निर्माणम्
- सिंहासनस्थः कः प्रविशति?
- केन उपदिश्यमानमार्गौ लवकुशौ प्रविशतः?
- कौ रामस्य समीपमुपसृत्य प्रणमतः?
- अनयोः स्पर्शः कीदृशः वर्तते?
- एतत् किम् न युक्तमध्यासितुम्?
- किम् चरित्रलोपाय न भवति?
- अङ्कव्यवहितं कम् अध्यास्यताम् ?
- गणमहताम अपि कः लालनीय एव भवति?
- लवकुशयोः वंशस्य कर्ता कः वर्तते?
- कौ अस्मत् समानाभिजनौ संवृत्तौ?
शब्दार्थ-चयनम्
अधोलिखितवाक्येषु रेखाङ्कितपदानां प्रसङ्गानुकूलम् उचितार्थं चित्वा लिखत –
प्रश्न 1.
वयसः तु न किञ्चिदन्तरम्।
(क) वायसः
(ख) वयस्यः
(ग) सौन्दर्यस्य
(घ) आयुषः
उत्तरम् :
(घ) आयुषः
प्रश्न 2.
व्रजति हिमकरोऽपि बालभावात्।
(क) चन्द्रः
(ख) सूर्यः
(ग) हिमालयः
(घ) गजेन्द्रः
उत्तरम् :
(क) चन्द्रः
प्रश्न 3.
पशुपति-मस्तक-केतकच्छदत्वम्।
(क) विष्णुः
(ख) शिवः
(ग) रामः
(घ) चन्द्रः
उत्तरम् :
(ख) शिवः
प्रश्न 4.
भगवन् सहस्रदीधितिः।
(क) सूर्यः
(ख) चन्द्रः
(ग) वशिष्ठः
(घ) वाल्मीकि
उत्तरम् :
(क) सूर्यः
प्रश्न 5.
भ्रातरावावां सोदयौँ।
(क) सुन्दरौ
(ख) कुमारौ
(ग) सहोदरौ
(घ) सहृदयौ
उत्तरम् :
(ग) सहोदरौ
प्रश्न 6.
अहो! उदात्तरम्यः समुदाचारः।
(क) शिष्टाचारः
(ख) दुराचारः
(ग) चापल्यम्
(घ) अत्याचारः
उत्तरम् :
(क) शिष्टाचारः
प्रश्न 7.
निरनुक्रोश इति क एवं भणति?
(क) सहृदयः
(ख) निर्लज्जः
(ग) निर्दयः
(घ) निर्जनम्
उत्तरम् :
(ग) निर्दयः
प्रश्न 8.
किं कुपिता एवं भणति?
(क) भ्रमति
(ख) क्रुध्यति
(ग) ताडयति
(घ) कथयति
उत्तरम् :
(घ) कथयति
प्रश्न 9.
एतेन वचनेन दारको निर्भर्त्तयति।
(क) वानरौ
(ख) राक्षसौ
(ग) तापसौ
(घ) पुत्रौ
उत्तरम् :
(घ) पुत्रौ
प्रश्न 10.
इयती वेला सञ्जाता।
(क) कार्यम्
(ख) समयः
(ग) लता
(घ) चिन्ता
उत्तरम् :
(ख) समयः
प्रश्न 11.
अपि च इतस्तावद् वयस्यः।
(क) मित्रम्
(ख) पुत्रः
(ग) आयुषः
उत्तरम् :
(क) मित्रम्।