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RBSE Class 10 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 5 जननी तुल्यवत्सला

RBSE Class 10 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 5 जननी तुल्यवत्सला

जननी तुल्यवत्सला Summary and Translation in Hindi

पाठ परिचय :

प्रस्तुत पाठ महर्षि वेदव्यास विरचित ऐतिहासिक ग्रन्थ महाभारत के वनपर्व से लिया गया है। यह कथा सभी जीव-जन्तुओं के प्रति समदृष्टि की भावना जगाती है। समाज में दुर्बल लोगों अथवा जीवों के प्रति भी माँ की ममता प्रगाढ़ होती है, यह इस पाठ का अभिप्रेत है।

पाठ के अंशों का सप्रसंग हिन्दी-अनुवाद एवं कठिन शब्दार्थ :

1. कश्चित् कृषकः बलीवर्दाभ्यां क्षेत्रकर्षणं कुर्वन्नासीत्। तयोः बलीवर्दयोः एकः शरीरेण दुर्बलः जवेन गन्तुमशक्तश्चासीत्। अतः कृषकः तं दुर्बलं वृषभं तोदनेन नुद्यमानः अवर्तत। सः वृषभः हलमूदवा गन्तुमशक्तः क्षेत्रे पपात। कुद्धः कृषीवल: तमुत्थापयितुं बहुवारम् यत्नमकरोत्। तथापि वृषः नोत्थितः।

कठिन शब्दार्थ :

  • कृषकः = किसान।
  • बलीवाभ्याम् = दो बैलों से (वृषभाभ्याम्)।
  • क्षेत्रकर्षणम् = खेत की जुताई (क्षेत्रस्य कर्षणम्)।
  • जवेन = तीव्रगति से (तीव्रगत्या)।
  • गन्तुम् = जाने के लिए (यातुम्)।
  • अशक्तः = असमर्थ (असमर्थः)।
  • वृषभम् = बैल को (बलिवर्दम्)।
  • तोदनेन = कष्ट देने से (कष्टप्रदानेन)।
  • नुद्यमानः = धकेला जाता हुआ, हाँका जाता हुआ (बले नीयमानः)।
  • हलमूढ़वा = हल उठाकर, हल ढोकर (हलम् आदाय)।
  • पपात = गिर गया (भूमौ अपतत्)।
  • कृषीवलः = किसान (कृषक:)।
  • उत्थापयितुम् = उठाने के लिए (उपरि नेतुम्)।
  • बहुवारम् = अनेक बार (बहुधा)।
  • यत्नम् = प्रयत्न (प्रयत्नम्)।
  • वृषः = बैल (वृषभः)।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस् ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘जननी तुल्यवत्सला’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है। मूलतः इस पाठ में वर्णित कथा महर्षि वेदव्यास विरचित ऐतिहासिक ग्रन्थ ‘महाभातकरत’ के ‘वनपर्व’ से ली गई है। इसमें गोमाता सुरभि और इन्द्र के संवाद के माध्यम से यह बताया गया है कि माता का स्नेह सभी सन्तानों के प्रति समान होता है। प्रस्तुत अंश में एक किसान के द्वारा दो बैलों से खेत की जुताई करने हेतु ले जाने का तथा उनमें से एक दुर्बल बैल की अशक्तता तथा किसान द्वारा उसे पीड़ित करने का वर्णन हुआ है।

हिन्दी अनुवाद : कोई किसान दो बैलों से खेत की जुताई करता था। उन दोनों बैलों में से एक शरीर से दुर्बल और तीव्रगति से जाने में असमर्थ था। इसलिए किसान उस दुर्बल बैल को कष्ट देता हुआ हाँका करता था। वह बैल हल उठाकर चलने में असमर्थ हुआ खेत में गिर पड़ा। क्रोधित किसान ने उसे उठाने के लिए अनेक बार प्रयत्न किया। फिर भी बैल नहीं उठा।

2. भूमौ पतिते स्वपुत्रं दृष्ट्वा सर्वधेनूनां मातुः सुरभेः नेत्राभ्यामणि आविरासन्। सुरभेरिमामवस्था दृष्ट्वा सुराधिपः तामपृच्छत्-“अयि शुभे! किमेवं रोदिषि ? उच्यताम्” इति। सा च
विनिपातो न वः कश्चिद् दृश्यते त्रिदशाधिपः।
अहं तु पुत्रं शोचामि, तेन रोदिमि कौशिक!॥

श्लोकस्य अन्वयः – त्रिदशाधिपः कश्चिद् विनिपातः वः न दृश्यते। कौशिक! अहं तु पुत्रं शोचामि, तेन रोदिमि।

कठिन शब्दार्थ :

  • भूमौ = भूमि पर (पृथिव्याम्)।
  • दृष्ट्वा = देखकर (अवलोक्य)।
  • सर्वधेनूनाम् = सभी गायों की (सर्वासां गवाम्)।
  • नेत्राभ्याम् = दोनों आँखों से (चक्षुाम्, नयनाभ्याम्)।
  • अश्रूणि = आँसू (नयनजलम्)।
  • आविरासन् = आने लगे, आए (आगताः)।
  • सुराधिपः = देवताओं के राजा (इन्द्र) (सुराणां राजा, देवानाम् अधिपः)।
  • उच्यताम् = कहें, कहा जाए (कथ्यताम्)।
  • त्रिदशाधिपः = देवताओं का राजा = इन्द्र (त्रिदशानाम् अधिपः = इन्द्रः)।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘जननी तुल्यवत्सला’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है। मूलतः इस पाठ में वर्णित कथा महर्षि वेदव्यास विरचित ऐतिहासिक ग्रन्थ ‘महाभारत’ के ‘वनपर्व’ से ली गई है। इसमें गोमाता सुरभि और इन्द्र के संवाद के माध्यम से यह बताया गया है कि माता का स्नेह सभी सन्तानों के प्रति समान होता है। प्रस्तुत अंश में अपने दुर्बल एवं असहाय पुत्र (बैल) की पीड़ा से अत्यन्त दुःखी गोमाता सुरभि का इन्द्र के साथ हुए संवाद का वर्णन है।

हिन्दी अनुवाद : भूमि पर गिरे हुए अपने पुत्र को देखकर सभी गायों की माता सुरभि की दोनों आँखों से आँसू आने लगे। सुरभि की इस दशा को देखकर देवराज इन्द्र ने उससे पूछा- “हे शुभे! क्यों इस प्रकार रो रही हो? कहो।” और वह हे देवराज इन्द्र! तुम्हारा कोई भी गिरा हुआ दिखाई नहीं देता है। मैं तो पुत्र का शोक कर रही हूँ, हे इन्द्र! उससे ही रो रही हूँ।

3. “भो वासव! पुत्रस्य दैन्यं दृष्ट्वा अहं रोदिमि। सः दीन इति जानन्नपि कृषकः तं बहुधा पीडयति।. सः कृच्छ्रेण भारमुवहति। इतरमिव धुरं वोढुं सः न शक्नोति। एतत् भवान् पश्यति न?” इति प्रत्यवोचत्।
“भद्रे! नूनम्। सहस्राधिकेषु पुत्रेषु सत्स्वपि तव अस्मिन्नेव एतादृशं वात्सल्यं कथम्?” इति इन्द्रेण पृष्टा सुरभिः प्रत्यवोचत्।

कठिन शब्दार्थ :

  • वासवः = इन्द्र (इन्द्रः, देवराजः)।
  • दैन्यम् = दीनता को (दीनताम्)।
  • जानन्नपि = जानते हुए भी (ज्ञात्वाऽपि)।
  • कृच्छेण = कठिनाई से (काठिन्येन)।
  • उद्वहति = ढोता है (वहनं करोति)।
  • इतरमिव = दूसरों के समान (भिन्नम् इव)।
  • धुरम् = जुए को (गाड़ी के जुए का वह भाग जो बैलों के कंधों पर रखा जाता है)।
  • वोढुम् = ढोने के लिए (वहनाय योग्यम्)।
  • प्रत्यवोचत् = जवाब दिया (उत्तरं दत्तवान्)।
  • नूनम् – निश्चय ही (निश्चयेन)।
  • सहस्त्र = हजार (दशशतम्)।
  • वात्सल्यम् = वात्सल्य/प्रेमभाव (स्नेहभावः)।

प्रसंग-प्रस्तुत कथांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘जननी तुल्यवत्सला’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है। मूलतः इस पाठ में वर्णित कथा महर्षि वेदव्यास विरचित ऐतिहासिक ग्रन्थ ‘महाभारत’ के ‘वनपर्व’ से ली गई है। इसमें गोमाता सुरभि और इन्द्र के संवाद के माध्यम से यह बताया गया है कि माता का स्नेह सभी सन्तानों के प्रति समान होता है। प्रस्तुत अंश में अपने दीन पुत्र (बैल) की पीड़ा से अत्यन्त दुःखी गोमाता सुरभि का देवराज इन्द्र के साथ वार्तालाप वर्णित है।

हिन्दी अनुवाद : “हे इन्द्र! पुत्र की दीनता को देखकर मैं रो रही हूँ। वह दीन है, ऐसा जानते हुए भी किसान उसको अनेक बार प्रताड़ित करता है। वह कठिनाई से भार ढोता है। दूसरों के समान जुए को ढोने के लिए वह समर्थ नहीं है। क्या आप यह नहीं देख रहे हो?” ऐसा (सुरभि ने) जवाब दिया।
“हे भद्रे ! निश्चय ही (मैं देख रहा हूँ)। हजारों पुत्रों के होने पर भी तुम्हारा इसी पर ऐसा वात्सल्य क्यों है?” इस प्रकार इन्द्र के द्वारा पूछे जाने पर सुरभि ने जवाब दिया।

4. यदि पुत्रसहस्रं मे, सर्वत्र सममेव मे।
दीनस्य तु सुतः शक्र! पुत्रस्याभ्यधिका कृपा॥

“बहून्यपत्यानि मे सन्तीति सत्यम्। तथाप्यहमेतस्मिन् पुत्रे विशिष्य आत्मवेदनामनुभवामि। यतो हि अयमन्येभ्यो दुर्बलः। सर्वेष्वपत्येषु जननी तुल्यवत्सला एव। तथापि दुर्बले सुते मातुः अभ्यधिका कृपा सहजैव” इति। सुरभिवचनं श्रुत्वा भृशं विस्मितस्याखण्डलस्यापि हृदयमद्रवत्। स च तामेवमसान्त्वयत् “गच्छ वत्से! सर्वं भद्रं जायेत।”

श्लोकस्य अन्वयः – शक्र! यदि मे पुत्रसहस्रम् (तर्हि) सर्वत्र मे सुतः सममेव। तु दीनस्य पुत्रस्य अभ्यधिका कृपा (भवति)।

कठिन शब्दार्थ :

  • शक्रः = इन्द्र (इन्द्रः)।
  • अपत्यानि = सन्तान (सन्ततयः)।
  • विशिष्य = विशेषकर (विशेषतः)।
  • जननी = माता (माता)।
  • तुल्यवत्सला = समान रूप से प्यार करने वाली (समस्नेहयुता)।
  • वेदनाम् = कष्ट को (पीडाम्, दुःखम्)।
  • सुतः = पुत्र (पुत्रः/तनयः)।
  • अभ्यधिका = अत्यधिक।
  • श्रुत्वा = सुनकर (आकर्ण्य)।
  • भृशम् = बहुत अधिक (अत्यधिकम्)।
  • आखण्डलस्य = इन्द्र का (इन्द्रस्य)।
  • असान्त्वयत् = सान्त्वना दी/दिलासा दी।
  • (समाश्वासयत्)।
  • भद्रम् = शुभ (शुभम्)।

प्रसंग-प्रस्तुत कथांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘जननी तुल्यवत्सला’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है। मूलतः इस पाठ में वर्णित कथा महर्षि वेदव्यास विरचितं ऐतिहासिक ग्रन्थ ‘महाभारत’ के ‘वनपर्व’ से ली गई है। इसमें गोमाता सुरभि और इन्द्र के संवाद के माध्यम से यह बताया गया है कि माता का स्नेह सभी सन्तानों के प्रति समान होता है। प्रस्तुत अंश में गोमाता सुरभि अपनी वेदना का कारण बतलाती हुई इन्द्र से कहती है कि –

हिन्दी अनुवाद : हे इन्द्र! यदि मेरे हजारों पुत्र हैं तब भी सभी में मेरा समान स्नेह भाव है, फिर भी दीन पुत्र के प्रति मेरी अधिक कृपा होती है।
“मेरे बहुत सन्तान हैं, यह सत्य है। फिर भी मैं इस पुत्र में विशेषकर कष्ट का अनुभव कर रही हूँ। क्योंकि यह अन्य पुत्रों से दुर्बल है। सभी सन्तानों में माता समान रूप से स्नेह करने वाली ही होती है। फिर भी दुर्बल पुत्र में माता की कुछ अधिक कृपा स्वभाव से ही होती है।” सुरभि के वचन को सुनकर अत्यधिक आश्चर्यचकित इन्द्र का हृदय भी द्रवित हो गया। और उसने उसको (सुरभि को) इस प्रकार सान्त्वना दी-“जाओ पुत्रि! सब कुछ अच्छा ही होगा।”

5. अचिरादेव चण्डवातेन मेघरवैश्च सह प्रवर्षः समजायत। पश्यतः एवं सर्वत्र जलोपप्लवः सञ्जातः। कृषकः हर्षातिरेकेण कर्षणाविमुखः सन् वृषभौ नीत्वा गृहमगात्।

अपत्येषु च सर्वेषु जननी तुल्यवत्सला।
पुत्रे दीने तु सा माता कृपाईहृदया भवेत्॥

श्लोकस्य अन्वयः – सर्वेषु अपत्येषु च जननी तुल्यवत्सला। तु दीने पुत्रे सा माता कृपार्द्रहृदया भवेत्।

कठिन शब्दार्थ :

  • अचिरात् = शीघ्र ही (शीघ्रम्)।
  • चण्डवातेन = प्रचण्ड (तीव्र) हवा से (वेगयुता वायुना)।
  • मेघरवैः = बादला के गर्जन से (मेघस्य गर्जनेन)।
  • प्रवर्षः = वर्षा (वृष्टिः)।
  • जलोपप्लवः = जलसंकट (जलस्य विपत्तिः)।
  • हर्षातिरेकेण = अत्यधिक प्रसन्नता से (अतिप्रसन्नतया)।
  • कर्षणाविमुखः = जोतने के काम से विमुख होकर (कर्षणकर्मणा विमुखः)।
  • वृषभौ = दोनों बैलों को (वृषौ)।
  • अगात् = गया (गतवान्)।

प्रसंग-प्रस्तुत कथांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘जननी तुल्यंवत्सला’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है। मूलतः इस पाठ में वर्णित कथा महर्षि वेदव्यास विरचित ऐतिहासिक ग्रन्थ ‘महाभारत’ के ‘वनपर्व’ से ली गई है। इसमें गोमाता सुरभि और इन्द्र के संवाद के माध्यम से यह बताया गया है कि माता का स्नेह सभी सन्तानों के प्रति समान होता है। प्रस्तुत अंश में गोमाता सुरभि के वचनों से अत्यन्त द्रवित हुए इन्द्रदेव द्वारा वर्षा किये जाने का तथा उससे किसान की प्रसन्नता का चित्रण हुआ है।

हिन्दी अनुवाद : शीघ्र ही तीव्र वायु और बादलों के गर्जन के साथ वर्षा होने लगी। देखते हुए ही सभी जगह जलसंकट हो गया अर्थात् पानी ही पानी हो गया। किसान अत्यधिक प्रसन्नता से जोतने के काम से विमुख होकर दोनों बैलों को लेकर घर चला गया।

सभी सन्तानों में माता समान रूप से स्नेह करने वाली होती है, किन्तु दीन पुत्र के प्रति माता अधिक कृपायुक्त हृदय वाली होती है।

RBSE Class 10 Sanskrit जननी तुल्यवत्सला Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत
(क) बृषभः दीनः इति.जाननपि कः तं नुद्यमानः आसीत् ?
(ख) वृषभः कुत्र पपात?
(ग) दुर्बले सुते कस्याः अधिका कृपा भवति?
(घ) कयोः एकः शरीरेण दुर्बलः आसीत् ?
(ङ) चण्डवातेन मेघरवैश्च सह कः समजायत?
उत्तराणि :
(क) कृषकः।
(ख) क्षेत्रे।
(ग) मातुः।
(घ) बलीवर्दयोः।
(ङ) प्रवर्षः।

प्रश्न 2.
अधोलिखितानां प्रश्नानम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत –
(अधोलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए-)
(क) कृषकः किं करोति स्म?
(किसान क्या करता था?)
उत्तरम् :
कृषक: बलीवर्दाभ्यां क्षेत्रकर्षणं करोति स्म।
(किसान दो बैलों से खेत में जुताई करता था।)

(ख) माता सुरभिः किमर्थम् अश्रूणि मुञ्चति स्म?
(माता सुरभि किसलिए आँसू बहा रही थी?)
उत्तरम् :
भूमौ पतिते स्वपुत्रं दृष्ट्वा माता सुरभिः अश्रूणि मुञ्चति स्म।
(भूमि पर गिरे हुए अपने पुत्र को देखकर माता सुरभि आँसू बहा रही थी।)

(ग) सुरभिः इन्द्रस्य प्रश्नस्य किमुत्तरं ददाति ?
(सुरभि इन्द्र के प्रश्न का क्या उत्तर देती है ?)
उत्तरम् :
सुरभिः कथयति यत् “पुत्रस्य दैन्यं दृष्ट्वा अहं रोदिमि।”
(सुरभि कहती है कि “पुत्र की दीनता को देखकर मैं रो रही हूँ।)

(घ) मातुः अधिका कृपा कस्मिन् भवति?
(माता की अधिक कृपा किस पर होती है ?)
उत्तरम् :
दुर्बले सुते मातुः अधिका कृपा भवति।
(दुर्बल पुत्र पर माता की अधिक कृपा होती है।)

(ङ) इन्द्रः दुर्बलवृषभस्य कष्टानि अपाकर्तुं किं कृतवान् ?
(इन्द्र ने दुर्बल बैल के कष्टों को दूर करने के लिए क्या किया?)
उत्तरम् :
इन्द्रः दुर्बलवृषभस्य कष्टानि अपाकर्तुं वृष्टिं कृतवान्।
(इन्द्र ने दुर्बल बैल के कष्टों को दूर करने के लिए वर्षा की।)

(च) जननी कीदृशी भवति?
(माता कैसी होती है ?)
उत्तरम् :
जननी सर्वेष्वपत्येषु तुल्यवत्सला भवति।
(माता सभी सन्तानों में समान रूप से स्नेह करने वाली होती है।)

(छ) पाठेऽस्मिन् कयोः संवादः विद्यते?
(इस पाठ में किन दो का संवाद है ?)
उत्तरम् :
अस्मिन् पाठे गोमातुः सुरभेः इन्द्रस्य च संवादः विद्यते।
(इस पाठ में गोमाता सुरभि और इन्द्र का संवाद है।)

प्रश्न 3.
‘क’ स्तम्भे दत्तानां पदानां मेलनं ‘ख’ स्तम्भे दत्तैः समानार्थकपदैः कुरुत –

‘क’ स्तम्भ ‘ख’ स्तम्भ
(क) कृच्छ्रेण (i) वृषभः
(ख) चक्षुाम् (ii) वासवः
(ग) जवेन (iii) नेत्राभ्याम्
(घ) इन्द्रः (iv) अचिरम्
(ङ) पुत्राः (v) द्रुतगत्या
(च) शीघ्रम् (vi) काठिन्येन
(छ) बलीवर्दः (vii) सुताः

उत्तरम् :

‘क’ स्तम्भ ‘ख’ स्तम्भ
(क) कृच्छ्रेण (vi) काठिन्येन
(ख) चक्षुाम् (iii) नेत्राभ्याम्
(ग) जवेन (v) द्रुतगत्या
(घ) इन्द्रः (ii) वासवः
(ङ) पुत्राः (vii) सुताः
(च) शीघ्रम् (iv) अचिरम्
(छ) बलीवर्दः (i) वृषभः

प्रश्न 4.
स्थूलपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत –
(क) सः कृच्छ्रेण भारम् उद्वहति।
(ख) सुराधिपः ताम् अपृच्छत्।
(ग) अयम् अन्येभ्यो दुर्बलः।
(घ) धेनूनाम् माता सुरभिः आसीत्?
(ङ) सहस्राधिकेषु पुत्रेषु सत्स्वपि सा दुःखी आसीत्।
उत्तरम् :
प्रश्ननिर्माणम्
(क) सः केन भारम् उद्वहति?
(ख) कः ताम् अपृच्छत् ?
(ग) अयम् केभ्यो दुर्बलः?
(घ) कासां माता सुरभिः आसीत् ?
(ङ) केषु पुत्रेषु सत्स्वपि सा दुःखी आसीत् ?

प्रश्न 5.
रेखांकितपदे यथास्थानं सन्धि विच्छेदं वा कुरुत –
(क) कृषकः क्षेत्रकर्षणं कुर्वन् + आसीत्।
(ख) तयोरेक: वृषभः दुर्बलः आसीत्।
(ग) तथापि वृषः म + उत्थितः।
(घ) सत्स्वपि बहुषु पुत्रेषु अस्मिन् वात्सल्यं कथम्?
(ङ) तथा + अपि + अहम् + एतस्मिन् स्नेहम् अनुभवामि।
(च) मे बहूनि + अपत्यानि सन्ति।
(छ) सर्वत्र जलोपप्लवः संजातः।
उत्तरम् :
(क) कुर्वन्नासीत्।
(ख) तयोः + एक।
(ग) नोत्थितः।
(घ) सत्सु + अपि।
(ङ) तथाप्यहमेतस्मिन्।
(च) बहून्यपत्यानि।
(छ) जल + उपप्लवः।

प्रश्न 6.
अधोलिखितेषु वाक्येषु रेखांकितसर्वनामपदं कस्मै प्रयुक्तम् –
(क) सा च अवदत् भो बासव! अहम् भृशं दुःखिता अस्मि।
(ख) पुत्रस्य दैन्यं दृष्ट्वा अहम् रोदिमि।
(ग) सः दीनः इति जानन् अपि कृषक: तं पीडयति।
(घ) मे बहूनि अपत्यानि सन्ति।
(ङ) सः च ताम् एवम् असान्त्वयत्।
(च) “सहस्रेषु पुत्रेषु सत्स्वपि तव अस्मिन् प्रीतिः अस्ति।
उत्तरम् :
(क) सुरभ्य।
(ख) सुरभ्य।
(ग) वृषभाय।
(घ) सुरभ्य।
(ङ) इन्द्राय।
(च) सुरभ्य।

प्रश्न 7.
‘क’ स्तम्भे विशेषणपदं लिखितम्, ‘ख स्तम्भे पुनः विशेष्यपदम्। तयोः मेलनं कुरुत

‘क’ स्तम्भ ‘ख’ स्तम्भ
(क) कश्चित् (i) वृषभम्
(ख) दुर्बलम् (ii) कृपा
(ग) क्रुद्धः (iii) कृषीवलः
(घ) सहस्राधिकेषु (iv) आखण्डलः
(ङ) अभ्यधिका (v) जननी
(च) विस्मितः (vi) पुत्रेषु
(छ) तुल्यवत्सला (vii) कृषक:

उत्तरम् :

‘क’ स्तम्भ ‘ख’ स्तम्भ
(क) कश्चित् (vii) कृषक:
(ख) दुर्बलम् (i) वृषभम्
(ग) क्रुद्धः (iii) कृषीवलः
(घ) सहस्राधिकेषु (vi) पुत्रेषु
(ङ) अभ्यधिका (ii) कृपा
(च) विस्मितः (iv) आखण्डलः
(छ) तुल्यवत्सला (v) जननी

RBSE Class 10 Sanskrit जननी तुल्यवत्सला Important Questions and Answers

भावार्थ-लेखनम् –

अधोलिखितश्लोकस्य संस्कृते भावार्थं लिखत

(i) विनिपातो न वः ………………………. रोदिमि कौशिक!॥
उत्तरम् :
भावार्थ:-स्वस्य दुर्बलं पीडितं भूमौ पतितं च पुत्रं वृषभं दृष्ट्वा गौमाता देवराजम् इन्द्रं सम्बोध्य कथयति यत् हे देवराजः इन्द्रः! युष्माकं किमपि विनिपातः न अवलोक्यते। हे इन्द्र! अहं तु पुत्रस्य दीनदशां दृष्ट्वा शोकं करोमि, तेनैव च अहं रोदनं करोमि।

(ii) यदि पत्रसहस्रं मे ……………………… पुत्रस्याभ्यधिका कृपा॥
उत्तरम् :
भावार्थ:-गौमाता कथयति यत् हे इन्द्रदेव! यदि मम सहस्रं पुत्राः सन्ति, तर्हि तेषु सर्वेषु मम समानरूपेण स्नेहं वर्तते, किन्तु दीनं पुत्रं प्रति मम अत्यधिका कृपा भवत्येव।

(iii) अपत्येषु च सर्वेषु …………………. कृपाहृदया भवेत्॥
उत्तरम् :
भावार्थ:-माता सर्वेषु पुत्रेषु समानवात्सल्यभावयुता भवति, किन्तु सैव माता दीने पुत्रे अत्यधिका कृपाईहृदया भवति। वस्तुतः दुर्बलजनान् प्रति जीवान् प्रति वा मातुः ममता अत्यधिका भवति।

संस्कृतमाध्यमेन प्रश्नोत्तराणि

(अ) एकपदेन उत्तरत

प्रश्न 1.
कृषकः काभ्यां क्षेत्रकर्षणं कुर्वन्नासीत् ?
उत्तरम् :
बलीवर्दाभ्याम्।

प्रश्न 2.
सर्वधेनूनां माता का?
उत्तरम् :
सुरभिः।

प्रश्न 3.
सुरभेः नेत्राभ्यां कानि आविरासन् ?
उत्तरम् :
अश्रूणि।

प्रश्न 4.
दुर्बलः वृषभः केन भारमुद्वहति?
उत्तरम् :
कृच्छ्रेण।

प्रश्न 5.
सर्वेष्वपत्येषु का तुल्यवत्सला भवति?
उत्तरम् :
जननी।

प्रश्न 6.
कीदृशे सुते मातुः अभ्यधिका कृपा सहजैव भवति?
उत्तरम् :
दुर्बले।

प्रश्न 7.
सुरभिवचनं श्रुत्वा कस्य हृदयम् अद्रवत् ?
उत्तरम् :
इन्द्रस्य।

प्रश्न 8.
लोकानां पश्चताम् एव सर्वत्र कः सञ्जातः?
उत्तरम् :
जलोपप्लवः।

प्रश्न 9.
कृषकः को नीत्वा गृहमगात् ?
उत्तरम् :
वृषभौ।

प्रश्न 10.
दीने पुत्रे तु माता कीदृशी भवेत् ?
उत्तरम् :
कृपार्द्रहृदया।

(ब) पूर्णवाक्येन उत्तरत

प्रश्न 1.
‘जननी तुल्यवत्सला’ इति पाठः कुतः गृहीतः?
उत्तरम् :
‘जननी तुल्यवत्सला’ इति पाठः महर्षिवेदव्यासविरचितस्य महाभारतस्य वनपर्वतः गृहीतः।

प्रश्न 2.
‘जननी तुल्यवत्सला’ इति कथा सर्वेषु प्राणिषु का भावनां प्रबोधयति?
उत्तरम् :
‘जननी तुल्यवत्सला’ इति कथा सर्वेषु प्राणिषु समदृष्टिभावनां प्रबोधयति।

प्रश्न 3.
कृषकः कं तोदनेन नुद्यमानः अवर्तत?
उत्तरम् :
कृषकः दुर्बलं वृषभं तोदनेन नुद्यमानः अवर्तत।

प्रश्न 4.
क्रुद्धः कृषीवल: कम् उत्थापयितुं बहुवारम् यत्नमकरोत् ?
उत्तरम् :
क्रुद्धः कृषीवलः क्षेत्रे पतितं दुर्बलं वृषभम् उत्थापयितुं बहुवारं यत्नमकरोत्।

प्रश्न 5.
किं जानन्नपि कृषक: वृषभं बहुधा पीडयति स्म?
उत्तरम् :
‘सः दीनः’ इति जानन्नपि कृषक: वृषभं बहुधा पीडयति स्म।

प्रश्न 6.
कः इतमिव धुर वोढुं न शक्नोति स्म?
उत्तरम् :
दुर्बलः वृषभः इतरमिव धुरं वोढुं न शक्नोति स्म।

प्रश्न 7.
केन पृष्टा सुरभिः प्रत्यवोचत् ?
उत्तरम् :
इन्द्रेण पृष्टा सुरभिः प्रत्यवोचत्।

प्रश्न 8.
इन्द्रः सुरभिं कथम् असान्त्वयत् ?
उत्तरम् :
इन्द्रः ‘गच्छवत्से ! सर्वं भद्रं जायेत’, इति कथयित्वा सुरभिम् असान्त्वयत्।

प्रश्न 9.
अचिरादेव कैः सह प्रवर्षः समजायत?
उत्तरम् :
अचिरादेव चण्डवातेन मेघरवैश्च सह प्रवर्षः समजायत।

प्रश्न 10.
कृषकः कीदृशः सन् वृषभौ नीत्वा गृहमगात् ?
उत्तरम् :
कृषक: हर्षातिरेकेण कर्षणविमुखः सन् वृषभौ नीत्वा गृहमगात्।

अन्वय-लेखनम् :

मञ्जूषातः समुचितपदानि चित्वा अधोलिखित-श्लोकानाम् अन्वयं पूरयत –

  1. विनिपातो न वः …………………… रोदिमि कौशिक!॥
    अन्वयः-त्रिदशाधिपः वः (i) ……….. विनिपातः न (ii) ……….। कौशिक! अहं तु (iii) ……….. शोचामि, तेन (iv) ………..।
    मञ्जूषा :
    पुत्रं, कश्चिद्, रोदिमि, दृश्यते।
    उत्तरम् :
    (i) कश्चिद्, (ii) दृश्यते, (iii) पुत्रं, (iv) रोदिमि।
  2. यदि पुत्रसहस्त्रं मे ……………………… अभ्यधिका कपा॥
    अन्वयः-शक्र! यदि मे (i) ………….., (तर्हि) सर्वत्र मे (ii) …………….। तु (iii) ………. पुत्रस्य सतः (iv) ……….. कृपा (भवति)। मञ्जूषा :
    दीनस्य, पुत्रसहस्रम्, अभ्यधिका, समम् एव।
    उत्तरम् :
    (i) पुत्रसहस्रम्, (ii) समम् एव, (iii) दीनस्य, (iv) अभ्यधिका।
  3. अपत्येषु च सर्वेषु ……………… कृपाईहृदया भवेत्॥
    अन्वयः – सर्वेषु (i) …………. च जननी (ii) ……….. (भवेत्) तु दीने (iii) ………. सा माता (iv) ……… भवेत्।
    मञ्जूषा :
    पुत्रे, अपत्येषु, कृपार्द्रहृदया, तुल्यवत्सला
    उत्तरम् :
    (i) अपत्येषु, (ii) तुल्यवत्सला, (iii) पुत्रे, (iv) कृपार्द्रहृदया।

प्रश्ननिर्माणम् :

रेखाङ्कित-पदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत

  1. कृषकः क्षेत्रकर्षणं करोति स्म।
  2. बलीवर्दः जवेन गन्तुम् अशक्तः आसीत्।
  3. कृषक: वृषभं तोदनेन नुद्यमानः अवर्तत।
  4. वृषभः क्षेत्रे पपात।
  5. सर्वधेनूनां माता सुरभिः आसीत्।
  6. सुराधिपः ताम् अपृच्छत्।।
  7. पुत्रस्य दैन्यं दृष्ट्वा अहं रोदिमि।
  8. सः कृच्छ्रेण भारमुद्वहति।
  9. इन्द्रेण पृष्टा सुरभिः प्रत्यवोचत्।
  10. मे बहूनि अपत्यानि सन्ति।
  11. अहम् आत्मवेदनाम् अनुभवामि।
  12. सर्वेष्वपत्येषु जननी तुल्यवत्सला एव।
  13. दुर्बले सुते मातुः अभ्यधिका कृपा भवति।
  14. सुरभिवचनं श्रुत्वा आखण्डलस्य हृदयमद्रवत्।
  15. सः च ताम् असान्त्वयत्।
  16. अचिरादेव मेघरवैः सह वृष्टि: समजायत।
  17. सर्वत्र जलोपप्लवः सञ्जातः।
  18. कृषक: वृषभौ नीत्वा गृहमगात्।

उत्तरम् :
प्रश्ननिर्माणम

  1. कृषकः किं करोति स्म?
  2. कः जवेन गन्तुम् अशक्तः आसीत् ?
  3. कृषक: वृषभं केन नुद्यमानः अवर्तत?
  4. वृषभः कुत्र पपात?
  5. सर्वधेननां माता का आसीत?
  6. सुराधिपः काम् अपृच्छत् ?
  7. कस्य दैन्यं दृष्ट्वा अहं रोदिमि?
  8. स: केने भारमुद्वहति?
  9. केन पृष्टा सुरभिः प्रत्यवोचत् ?
  10. मे बहूनि कानि सन्ति?
  11. अहं काम् अनुभवामि?
  12. केषु जननी तुल्यवत्सला एव?
  13. कस्मिन् मातुः अभ्यधिका कृपा भवति?
  14. सुरभिवचनं श्रुत्वा कस्य हृदयमद्रवत्?
  15. सः च काम् असान्त्वयत्?
  16. अचिरादेव कैः सह वृष्टिः समजायत?
  17. सर्वत्र कः सञ्जातः?
  18. कृषक: कौ नीत्वा गृहमगात् ?

पाठ-सार-लेखनम् :

प्रश्न:
‘जननी तुल्यवत्सला’ इति पाठस्य सार: हिन्दीभाषायां लिखत।
उत्तर:
पाठ-सार-प्रस्तुत पाठ ‘जननी तुल्यवत्सला’ में वर्णित कथा महाभारत के वनपर्व से ली गई है। यह कथा सभी प्राणियों में समदृष्टि की भावना जगाती है। कथा के अनुसार कोई किसान दो बैलों से खेत की जुताई कर रहा था। उन दोनों बैलों में से एक शरीर से दुर्बल तथा तेज गति से चलने में असमर्थ था। अत: किसान उस दुर्बल बैल को अत्यधिक कष्ट देता था। वह बैल हल उठाकर चलने में असमर्थ होकर खेत में गिर पड़ा। भूमि पर गिरे हुए अपने पुत्र (बैल) को देखकर गोमाता सुरभि की आँखों में आँसू आने लगे।

सुरभि को रोता हुआ देखकर देवराज इन्द्र ने इसका कारण पूछा सुरभि ने इन्द्र से कहा कि “हे इन्द्र! मैं अपने पुत्र (बैल) की दीनता को देखकर रो रही हूँ। वह दीन है, ऐसा जानकर भी किसान उसे अत्यधिक प्रताड़ित करता है।” इन्द्र ने कहा कि तुम्हारे तो हजारों पुत्र हैं, फिर इसी पर इतना प्रेम क्यों है? सुरभि ने उत्तर दिया कि “मेरे हजारों पुत्र हैं, यह सत्य है, फिर भी मैं इस पुत्र में विशेष कष्ट का अनुभव कर रही हूँ। क्योंकि यह अन्य पुत्रों से दुर्बल है। सभी सन्तानों में माता का स्नेह समान भाव से होता है, फिर भी दुर्बल पुत्र के प्रति माता की अधिक कृपा होती है।”

गोमाता सुरभि के वचन सुनकर अत्यधिक आश्चर्यचकित इन्द्र का हृदय भी द्रवित हो गया तथा इन्द्र की कृपा से शीघ्र ही तेज वर्षा होने लगी। सभी जगह पानी ही पानी हो गया, इससे किसान अत्यन्त प्रसन्न होकर अपने दोनों बैलों को लेकर घर चला गया। कथा के अन्त में कहा गया है कि सभी सन्तानों में माता का समान रूप से स्नेहभाव होता है, किन्तु दीन पुत्र के प्रति माता के मन में अतिशय प्रेम होता है।

शब्दार्थ-चयनम् :

अधोलिखितवाक्येषु रेखाङ्कितपदानां प्रसङ्गानुकूलम् उचितार्थं चित्वा लिखत –

प्रश्न 1.
दुर्बलः वृषः जवेन गन्तुमशक्तः आसीत्।
(क) तीव्रगत्या
(ख) भारेण
(ग) शनैः शनैः
(घ) मन्दं मन्दं
उत्तरम् :
(क) तीव्रगत्या

प्रश्न 2.
स: क्षेत्रे पपात।
(क) अचरत्
(ख) अपिबत्
(ग) अपतत्
(घ) अगच्छत्
उत्तरम् :
(ग) अपतत्

प्रश्न 3.
सुराधिपः तामपृच्छत्।
(क) दैत्यराजः
(ख) देवराजः
(ग) गजराजः
(घ) यमराजः
उत्तरम् :
(ख) देवराजः

प्रश्न 4.
सः कृच्छ्रेण भारमुद्वहति।
(क) सारल्येन
(ख) सुखेन
(ग) काठिन्येन
(घ)अनायासेन
उत्तरम् :
(ग) काठिन्येन

प्रश्न 5.
धुरं वोढुं सः न शक्नोति।
(क) प्रदानाय
(ख) वहनाय
(ग) उत्थापयितुम्
(घ) आरोपयितुम्
उत्तरम् :
(ख) वहनाय

प्रश्न 6.
दुर्बले सुते मातुः अभ्यधिकाकृपा सहजैव।
(क) जने
(ख) मित्रे
(ग) अनुजे
(घ) पुत्रे
उत्तरम् :
(घ) पुत्रे

प्रश्न 7.
सुरभिवचनं श्रुत्वा भृशं हृदयभद्रवत्।
(क) बहुधा
(ख) अत्यधिकम्
(ग) अल्पम्
(घ) न्यूनम्
उत्तरम् :
(ख) अत्यधिकम्

प्रश्न 8.
अचिरादेव प्रवर्षः समजायत।
(क) वृष्टिः
(ख) प्रहारः
(ग) झंझावातः
(घ) वेगः
उत्तरम् :
(क) वृष्टिः

प्रश्न 9.
कृषक: वृषभौ नीत्वा गृहम् अगात्।।
(क) अपतत्
(ख) आगच्छत्
(ग) अगायत्
(घ)अगच्छत्
उत्तरम् :
(घ) अगच्छत्

प्रश्न 10.
अपत्येषु च सर्वेषु।
(क) सन्ततिषु
(ख) पर्वतेषु
(ग) पुण्पेषु
(घ) अन्येषु
उत्तरम् :
(क) सन्ततिषु

प्रश्न 11.
जननी तुल्यवत्सला।
(क) कृषकः
(ख) देवराजः
(ग) पिता
(घ) माता
उत्तरम् :
(घ) माता।

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