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RBSE Class 10 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 6 सुभाषितानि

RBSE Class 10 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 6 सुभाषितानि

सुभाषितानि Summary and Translation in Hindi

पाठ परिचय :

संस्कृत कृतियों के जिन पद्यों या पद्यांशों में सार्वभौम सत्य को बड़े मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया गया है, उन पद्यों को सुभाषित कहते हैं। प्रस्तुत पाठ ऐसे 10 सुभाषितों का संग्रह है जो संस्कृत के विभिन्न ग्रंथों से संकलित हैं। इनमें परिश्रम का महत्त्व, क्रोध का दुष्प्रभाव, सभी वस्तुओं की उपादेयता और बुद्धि की विशेषता आदि विषयों पर प्रकाश डाला गया है।

पाठ के पद्यांशों का अन्वय, कठिन शब्दार्थ एवं सप्रसंग हिन्दी अनुवाद –

1. आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः।
नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति ॥

अन्वय-हि मनुष्याणां शरीरस्थः महान् शत्रुः आलस्यम्। उद्यमसमः बन्धुः न अस्ति, यं कृत्वा (मनुष्यः) न अवसीदति।

कठिन शब्दार्थ :

  • हि = निश्चित ही (निश्चयेन)।
  • मनुष्याणाम् = मनुष्यों का (मानवानाम्)।
  • शरीरस्थः = शरीर में रहने वाला (देहेस्थितः)।
  • उद्यमसमः = परिश्रम के समान (परिश्रमेण तुल्यः)।
  • बन्धुः = भाई (भ्राता)।
  • कृत्वा = करके (विधाय)।
  • न अवसीदति = दुःखी नहीं होता है (दुःखं न अनुभवति)।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘सुभाषितानि’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। इस पद्यांश में आलस्य को महान् शत्रु तथा परिश्रम को श्रेष्ठ बन्धु बताते हुए कहा गया है कि –

हिन्दी अनुवाद –  निश्चित ही मनुष्यों के शरीर में रहने वाला महान् शत्रु आलस्य है। परिश्रम के समान कोई भी बन्धु (हितैषी) नहीं है, जिसको करके मनुष्य कभी दुःखी नहीं होता है।

2. गुणी गुणं वेत्ति न वेत्ति निर्गुणो,
बली बलं वेत्ति न वेत्ति निर्बलः।
पिको वसन्तस्य गुणं न वायसः,
करी च सिंहस्य बलं न मूषकः॥

अन्वय-गुणी गुणं वेत्ति, निर्गुणः (गुणं) न वेत्ति, बली बलं वेत्ति, निर्बलः (बलं) न वेत्ति, वसन्तस्य गुणं पिकः (वेत्ति), वायसः न (वेत्ति), सिंहस्य बलं करी (वेत्ति), मूषकः न।

कठिन शब्दार्थ :

  • गुणी = गुणवान् (गुणवान्)।
  • वेत्ति = जानता है (जानाति)।
  • बली = बलवान् (बलवान्)।
  • वायसः = कौआ (काकः)।
  • करी = हाथी (गजः)।
  • मूषकः = चूहा (आखुः)।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘सुभाषितानि’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। इस पद्यांश में अनेक उदाहरणों के द्वारा यह समझाया गया है कि गुणवान् ही दूसरे के गुणों को जानता है, गुणहीन नहीं।

हिन्दी अनुवाद – गुणवान् ही गुण को जानता है, गुणहीन गुण को नहीं जानता है। बलवान् ही बल को जानता है, बलहीन बल को नहीं जानता है। वसन्त ऋतु के गुण को कोयल ही जानती है, कौआ उसे नहीं जानता है। सिंह के बल को हाथी ही जानता है, उसे चूहा नहीं जानता है।

अर्थात् – इस कथन के द्वारा कवि ने यह दर्शाया है कि जिसमें स्वयं में जो गुण है वह दूसरों के भी उस गुण के महत्त्व को जानता है, और जिसमें जो गुण नहीं है वह दूसरों के भी उस गुण को नहीं जान सकता है। हिन्दी में कहावत है-“हीरे की परख जौहरी (सुनार) ही जानता है।”

3. निमित्तमुद्दिश्य हि यः प्रकुप्यति,
ध्रुवं स तस्यापगमे प्रसीदति।
अकारणद्वेषि मनस्तु यस्य वै,
कथं जनस्तं परितोषयिष्यति॥

अन्वय – यः निमित्तम् उद्दिश्य प्रकुप्यति सः तस्य अपगमे ध्रुवं प्रसीदति, यस्य मनः अकारणद्वेषि (अस्ति) जनः तं कथं परितोषयिष्यति।

कठिन शब्दार्थ :

  • निमित्तम् = कारण को (कारणम्)।
  • प्रकुप्यति = अत्यधिक क्रोध करता है (अतिकोपं करोति)।
  • अपगमे = समाप्त होने पर (समाप्ते)।
  • ध्रुवम् = निश्चित रूप से (निश्चयेन)।
  • प्रसीदति = प्रसन्न होता है (प्रसन्नः भवति)।
  • अकारणद्वेषि = बिना कारण ही द्वेष करने वाला (विना कारणं यः दोषयुक्तं भवति)।
  • परितोषयिष्यति = सन्तुष्ट करेगा (परितोषं दास्यति)।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘सुभाषितानि’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। इस पद्यांश में बिना कारण के क्रोध के दुष्प्रभाव का वर्णन करते हुए कहा गया है कि –

हिन्दी अनुवाद – जो किसी कारण को उद्देश्य में करके अत्यधिक क्रोध करता है वह उस कारण के समाप्त हो जाने पर निश्चित रूप से प्रसन्न होता है। किन्तु जिसका मन बिना कारण ही द्वेष करने वाला है उस मन को व्यक्ति कैसे सन्तुष्ट करेगा, अर्थात् ऐसे मन को कभी भी सन्तुष्ट नहीं किया जा सकता है।

4. उदीरितोऽर्थः पशुनापि गृह्यते,
हयाश्च नागाश्च वहन्ति बोधिताः।
अनुक्तमप्यूहति पण्डितो जनः,
परेङ्गितज्ञानफला हि बुद्धयः॥
अन्वय-पशुना अपि उदीरितः अर्थः गृह्यते, हया: नागाः च बोधिताः (भारं) वहन्ति, पण्डितः जनः अनुक्तम् अपि ऊहति, बुद्धयः परेङ्गितज्ञानफलाः भवन्ति।

कठिन शब्दार्थ :

  • उदीरितः = कहा हुआ (कथितः)।
  • गृह्यते = प्राप्त किया जाता है (प्राप्यते)।
  • हयाः = घोड़े (अश्वाः)।
  • नागाः = हाथी (गजाः)।
  • बोधिताः = कहे जाने पर (उपदिष्टाः)।
  • वहन्ति = ढोते हैं (वहनं कुर्वन्ति)।
  • पण्डितः = विद्वान् (प्राज्ञः)।
  • अनुक्तम् = नहीं कहे गये की (अनुपदिष्टम्)।
  • ऊहति = समझ लेता है (निर्धारयति)।
  • बुद्धयः = बुद्धिमान् लोग (बुद्धिमन्तः)।
  • परेङ्गितज्ञानफलाः = दूसरों के संकेतजन्य ज्ञान रूपी फल वाले (अन्यैः कृतैः सङ्केतैः लब्धज्ञानाः)।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘सुभाषितानि’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। इस पद्यांश में बुद्धिमान् के वैशिष्ट्य का उदाहरण सहित वर्णन करते हुए कहा गया है कि –

हिन्दी अनुवाद – पशु के द्वारा भी कहे हुए अर्थ को ग्रहण कर लिया जाता है, घोड़े और हाथी समझाने पर भार का वहन कर लेते हैं। किन्तु विद्वान् व्यक्ति बिना कहे हुए को भी समझ लेता है। बुद्धिमान् लोग दूसरों के संकेतजन्य ज्ञान रूपी फल वाले होते हैं। अर्थात् बुद्धिमान् दूसरों के संकेतमात्र से ही उसके भावों को समझ लेते हैं, उनसे कहने की आवश्यकता नहीं होती है भाव यह है कि कहने पर तो पशु भी दूसरों की बात समझ लेते हैं किन्तु बिना कहे हुए संकेतमात्र से समझने वाले ही बुद्धिमान् व्यक्ति होते हैं।

5. क्रोधो हि शत्रुः प्रथमो नराणां,
देहस्थितो देहविनाशनाय।
यथास्थितः काष्ठगतो हि वह्निः,
स एव वह्निर्दहते शरीरम्॥

अन्वय-नराणां देहविनाशनाय प्रथमः शत्रुः देहस्थितः क्रोधः। यथा काष्ठगतः स्थितः वह्निः काष्ठम् एव दहते (तथैव शरीरस्थः क्रोधः) शरीरं दहते।।

कठिन शब्दार्थ :

  • नराणाम् = मनुष्यों के (मनुष्याणाम्)।
  • देहविनाशनाय = शरीर का विनाश करने के लिए (शरीस्य विनाशाय)।
  • शत्रुः = शत्रु (रिपुः)।
  • देहस्थितः = शरीर में स्थित (शरीरे स्थितः)।
  • काष्ठगतः = लकड़ी में रहने वाला (इन्धने स्थितः)।
  • वह्निः = आग (अग्निः)।
  • दहते = जलाता है (ज्वलयति)।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘सुभाषितानि’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। इस पद्यांश में क्रोध को विनाशशील शत्रु बतलाते हुए कहा गया है कि –

हिन्दी अनवाद-मनुष्यों के शरीर का विनाश करने के लिए पहला शत्रु शरीर में ही स्थित क्रोध है। जिस प्रकार काष्ठ के अन्दर स्थित अग्नि काष्ठ को ही जला देती है, उसी प्रकार शरीर में स्थित क्रोध शरीर को ही जला देता है। कवि ने इस कथन के द्वारा क्रोध को मनुष्यों का विनाश करने वाला परम शत्रु बतलाते हुए क्रोध का त्याग करने की प्रेरणा दी है।

6. मृगा मृगैः सङ्गमनुव्रजन्ति,
गावश्च गोभिः तुरगास्तुरङ्गैः।
मूर्खाश्च मूखैः सुधियः सुधीभिः,
समान-शील-व्यसनेषु सख्यम्॥

अन्वय-मृगाः मृगैः सङ्गम्, गावश्च गोभिः सङ्गम्, तुरगाः तुरङ्गैः सङ्गम्, मूर्खाः मूखैः सङ्गम्, सुधियः सुधीभिः सङ्गम् अनुव्रजन्ति। सख्यम् समानशीलव्यसनेषु (भवति)।

कठिन शब्दार्थ :

  • मृगाः = हिरण (हरिणाः)।
  • सङ्गम् = साथ (समम्)।
  • गावः = गायें (धेनवः)।
  • गोभिः सङ्गम् = गायों के साथ (धेनुभिः सह)।
  • तुरगाः = घोड़े (अश्वाः)।
  • सुधियः = विद्वान् (विद्वांसः)।
  • अनुव्रजन्ति = पीछे-पीछे जाते हैं, अनुसरण करते हैं (अनुसरन्ति)।
  • सख्यम् = मित्रता (मैत्री)।
  • व्यसनेषु = आदत, स्वभाव में (स्वभावेषु)।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘सुभाषितानि’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। इस पद्यांश में अनेक उदाहरणों के द्वारा प्रतिपादित किया गया है कि मित्रता समान चरित्र व स्वभाव वालों में ही होती है

हिन्दी अनुवाद – मृग मृगों के साथ, गायें गायों के साथ, घोड़े घोड़ों के साथ, मूर्ख मूों के साथ और विद्वान् विद्वानों के साथ ही पीछे-पीछे जाते हैं। मित्रता समान चरित्र व स्वभाव वालों में ही होती है।

7. सेवितव्यो महावृक्षः फलच्छायासमन्वितः।
यदि दैवात् फलं नास्ति छाया केन निवार्यते॥

अन्वय-फलच्छाया समन्वितः महावृक्षः सेवितव्यः। दैवात् यदि फलं नास्ति (वृक्षस्य) छाया केन निवार्यते।

कठिन शब्दार्थ :

  • फलच्छायासमन्वितः = फल और छाया से युक्त (फलेः छाया च युक्तः)।
  • महावृक्षः = विशाल वृक्ष (विशलतरुः)।
  • सेवितव्यः = आश्रय लेना चाहिए (आश्रयितव्यः)।
  • दैवात् = भाग्य से (भाग्यात्)।
  • निवार्यते = रोका जाता है (निवारयति/अवरुध्यते)।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘सुभाषितानि’ शीर्षक पाठ से उद्धत किया गया है। इस पद्यांश में फ़ल एवं छायादार वृक्ष का उदाहरण देते हुए कवि ने परोपकारी व्यक्ति के महत्त्व को दर्शाया है। कवि कहता है कि

हिन्दी अनुवाद – फल और छाया से युक्त महान् वृक्ष का ही आश्रय लेना चाहिए। भाग्य से यदि उसमें फल नहीं हैं तो भी उस वृक्ष की छाया को कौन रोक सकता है ? अर्थात् कोई नहीं। भाव यह है कि जिस प्रकार फल व छाया से युक्त वृक्ष का आश्रय लेने से यदि कदाचित् फल नहीं भी हो, तो भी वह छाया प्रदान करता ही है। उसी प्रकार परोपकारी व्यक्ति भी जो भी कुछ उसके पास है उससे वह दूसरों का भला करता ही है।

8. अमन्त्रमक्षरं नास्ति, नास्ति मूलमनौषधम्।
अयोग्यः पुरुषः नास्ति योजकस्तत्र दुर्लभः॥

अन्वय-अमन्त्रम् अक्षरं नास्ति, अनौषधम् मूलं नास्ति, अयोग्यः पुरुषः नास्ति, तत्र योजकः दुर्लभः।

कठिन शब्दार्थ :

  • अमन्त्रम् = मन्त्रहीन (न मन्त्रम्/विवेकहीनम्)।
  • अनौषधम् = बिना दवा, जड़ी-बूटी के (औषधीय गुणविहीनम्)।
  • मूलम् = जड़ (आधारम्)।
  • योजकः = जोड़ने वाला (समन्वयकः)।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘सुभाषितानि’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। इस पद्यांश में सभी को योग्य दर्शाते हुए उनकी योग्यता को काम में लेने वाले को दुर्लभ बतलाया गया है। कवि कहता है कि –

हिन्दी अनुवाद – मन्त्रहीन अक्षर नहीं है अर्थात् प्रत्येक अक्षर सार्थक होता है। बिना दवा (जड़ी-बूटी) के जड़ नहीं है अर्थात् प्रत्येक जड़ पदार्थ औषधि है। कोई भी पुरुष अयोग्य नहीं होता है किन्तु उसे सही जगह पर जोड़ने वाला दुर्लभ है। आशय यह है कि प्रत्येक अक्षर, जड़-पदार्थ, मनुष्य आदि उपयोगी होते हैं, किन्तु उनका सही उपयोग करने वाले दुर्लभ होते हैं।

9. सम्पत्तौ च विपत्तौ च महतामेकरूपता।
उदये सविता रक्तो रक्तश्चास्तमये तथा॥

अन्वय-महताम् संपत्तौ विपत्तौ च एकरूपता भवति। (यथा)-सविता उदये रक्तः भवति, तथा अस्तमये च रक्तः भवति।

कठिन शब्दार्थ :

  • महताम् = महापुरुषों की (महापुरुषाणाम्)।
  • संपत्तौ = सम्पत्ति में (समृद्धौ)।
  • विपत्तौ = विपत्ति आने पर (आपत्तौ)।
  • एकरूपता = एक जैसा (समानम्)।
  • सविता = सूर्य (सूर्यः)।
  • उदये = उदय के समय (उदिते सति)।
  • रक्तः = लाल (लोहितः)।
  • अस्तमये = अस्त होने के समय (अस्तं गते)

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘सुभाषितानि’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। इस पद्य में सूर्य का उदाहरण देते हुए महापुरुषों के वैशिष्ट्य को दर्शाया गया है। कवि कहता है कि –

हिन्दी अनुवाद – महापुरुषों की सम्पत्ति में और विपत्ति में एकरूपता रहती है। जैसे सूर्य उदय के समय रक्त (लाल) वर्ण का होता है, वैसे ही अस्त होने के समय में भी रक्त (लाल) वर्ण का ही होता है।
आशय यह है कि महान् लोग सभी स्थितियों में एक समान ही रहते हैं। वे न तो संपत्ति के समय अधिक प्रसन्न होते हैं और न ही विपत्ति में घबराते हैं।

10. विचित्रे खलु संसारे नास्ति किञ्चिनिरर्थकम्।
अश्वश्चेद् धावने वीरः भारस्य वहने खरः॥

अन्वय-विचित्रे संसारे खलु किञ्चित् निरर्थकं नास्ति। अश्वः चेत् धावने वीरः, (तर्हि) भारस्य वहने खरः (वीरः) अस्ति।

कठिन शब्दार्थ :

  • विचित्रे = अद्भुत (अद्भुते)।
  • संसारे = संसार में (जगति, लोके)।
  • खलु = निश्चित ही (अव्यय)(निश्चयमेव)।
  • निरर्थकम् = अनुपयोगी (व्यर्थम्)।
  • अश्वः = घोड़ा (तुरगः)।
  • चेत् = यदि (यदि)।
  • धावने = दौड़ने में (धावनकलायाम्)।
  • वहने = वहन करने में (वोढुम्)।
  • खरः = गधा (गर्दभः)।

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘सुभाषितानि’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। इस पद्यांश में संसार में सभी की सार्थकता को सिद्ध करते हुए कहा गया है कि –

हिन्दी अनुवाद – इस विचित्र संसार में निश्चय ही कुछ भी निरर्थक नहीं है। यदि घोड़ा दौड़ने में वीर है तो भार का वहन करने में गधा भी वीर है। अर्थात् संसार में सबका अपना-अपना महत्त्व है, कोई भी व्यर्थ की वस्तु नहीं है।

RBSE Class 10 Sanskrit सुभाषितानि Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत
(क) मनुष्याणां महान् रिपुः कः?
(ख) गुणी किं वेत्ति?
(ग) केषां सम्पत्तौ च विपत्तौ च महताम् एकरूपता?
(घ) पशुना अपि कीदृशः गृह्यते?
(ङ) उदयसमये अस्तसमये च कः रक्तः भवति?
उत्तरम् :
(क) आलस्यम्।
(ख) गुणम्।
(ग) महताम्।
(घ) उदीरितोऽर्थः।
(ङ) सविता (सूर्यः)।

प्रश्न 2.
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत-। (अधोलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए-)
(क) केन समः बन्धुः नास्ति?
(किसके समान बन्धु नहीं है ?)
उत्तरम् :
उद्यमेन समः बन्धुः नास्ति।
(उद्योग के समान बन्धु नहीं है।)

(ख) वसन्तस्य गुणं कः जानाति ?
(वसन्त के गुण को कौन जानती है ?)
उत्तरम् :
वसन्तस्य गुणं पिकः जानाति।
(वसन्त के गुण को कोयल जानती है।)

(ग) बुद्धयः कीदृश्यः भवन्ति ?
(बुद्धिमान् लोग कैसे होते हैं ?)
उत्तरम् :
बुद्धयः परेङ्गितज्ञानफला भवन्ति।
(बुद्धिमान् लोग दूसरों के संकेतजन्य ज्ञान रूपी फल वाले होते हैं।)

(घ) नराणां प्रथमः शत्रुः कः?
(मनुष्यों का प्रथम शत्रु कौन है ?)
उत्तरम् :
नराणां प्रथमः शत्रुः क्रोधः।
(मनुष्यों का प्रथम शत्रु क्रोध है।)

(ङ) सुधियः सख्यं केन सह भवति?
(विद्वानों की मित्रता किसके साथ होती है ?)
उत्तरम् :
सुधियः सख्यं सुधीभिः सह भवति।
(विद्वानों की मित्रता विद्वानों के साथ होती है।)

(च) अस्माभिः कीदृशः वृक्षः सेवितव्यः ?
(हमें किस प्रकार के वृक्ष का सेवन करना चाहिए?)
उत्तरम् :
अस्माभिः फलच्छायासमन्वितः महावृक्षः सेवितव्यः।
(हमें फल एवं छाया से युक्त महावृक्ष का सेवन करना चाहिए।)

प्रश्न 3.
अधोलिखिते अन्वयद्वये रिक्तस्थानपूति कुरुत –
(क.) यः ………….. उद्दिश्य प्रकुप्यति तस्या ……………. सः ध्रुवं प्रसीदति। यस्य ममः अकारणद्वेषि अस्ति , ……………. तं कथं परितोषयिष्यति?
(ख) ………………. संसारे खलु ………………. निरर्थकम् नास्ति। अश्वः चेत् …………… वीरः, खरः ……………. वहने (वीरः) (भवति)।
उत्तरम् :
(क) यः निमित्तम् उद्दिश्य प्रकुप्यति तस्या अपगमे सः ध्रुवं प्रसीदति। यस्य मनः अकारणद्वेषि अस्ति, जनः तं कथं परितोषयिष्यति?
(ख) विचित्रे संसारे खलु किञ्चित् निरर्थकम् नास्ति। अश्वः चेत् धावने वीरः, खरः भारस्य वहने (वीरः) (भवति)।

प्रश्न 4.
अधोलिखितानां वाक्यानां कृते समानार्थकान् श्लोकांशान् पाठात् चित्वा लिखत –
(क) विद्वान् स एव भवति यः अनुक्तम् अपि तथ्यं जानाति।
उत्तरम् :
अनुक्तमप्यूहति पण्डितो जनः।

(ख) मनुष्यः समस्वभावैः जनैः सह मित्रतां करोति।
उत्तरम् :
समानशीलव्यसनेषु सख्यम्।

(ग) परिश्रमं कुर्वाणः नरः कदापि दुःखं न प्राप्नोति।
उत्तरम् :
नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति।

(घ) महान्तः जनाः सर्वदैव समप्रकृतयः भवन्ति।
उत्तरम् :
सम्पत्तौ च विपत्तौ च महतामेकरूपता।

प्रश्न 5.
यथानिर्देशं परिवर्तनं विधाय वाक्यानि रचयत –
(क) गुणी गुणं जानाति। (बहुवचने)
(ख) पशुः उदीरितम् अर्थं गृह्णाति। (कर्मवाच्ये)
(ग) मृगाः मृगैः सह अनुव्रजन्ति। (एकवचने)
(घ) कः छायां निवारयति? (कर्मवाच्ये)
(ङ) तेन एव वह्निना शरीरं दह्यते। (कर्तृवाच्ये)
उत्तरम् :
(क) गुणिनः गुण जानान्त।
(ख) पशुना उदीरितोऽर्थः गृह्यते।
(ग) मृगः मृगेन सह अनुव्रजति।
(घ) केन छाया निवार्यते?
(ङ) स एव वह्निः शरीरं दहति।

प्रश्न 6.
(अ) सन्धिं/सन्धिविच्छेदं कुरुत

(आ) समस्तपदं/विग्रहं लिखत –

(क) उद्यमसमः – _____________
(ख) शरीरे स्थितः – _____________
(ग) निर्बलः – _____________
(घ) देहस्य विनाशनाय – _____________
(ङ) महावृक्षः – _____________
(च) समानं शीलं व्यसनं येषां तेषु – _________
(छ) अयोग्यः – _____________
उत्तरम् :
(क) उद्यमेन समः।
(ख) शरीरस्थितः।
(ग) बलस्य अभावः।
(घ) देहविनाशाय।
(ङ) महान् चासौ वृक्षः।
(च) समानशीलव्यसनेषु।
(छ) न योग्यः इति।

प्रश्न 7.
अधोलिखितानां पदानां विलोमपदानि पाठात् चित्वा लिखत
(क) प्रसीदति – _____________
(ख) मूर्खः – _____________
(ग) बली – _____________
(घ) सुलभः – _____________
(ङ) संपत्ती – _____________
(च) अस्तमये – _____________
(छ) सार्थकम् – _____________
उत्तरम् :
(क) प्रसीदति – प्रकुप्यति
(ख) मूर्खः – सुधिः
(ग) बली – निर्बलः
(घ) सुलभः – दुर्लभः
(ङ) संपत्ती – विपत्तौ
(च) अस्तमये – उदये
(छ) सार्थकम् – निरर्थकम्

(अ) संस्कृतेन वाक्यप्रयोगं कुरुत –

(क) वायसः
(ख) निमित्तम्
(ग) सूर्यः
(घ) पिकः
(ङ) वह्निः
उत्तरम् :
(क) वायसः – वृक्षोपरि वायसः तिष्ठति।
(ख) निमित्तम् – सः किम् निमित्तं क्रध्यति।
(ग) सूर्यः – सूर्यः पूर्वदिशायाम् उदेति।
(घ) पिकः – पिक: वसन्ते कूजति।
(ङ) वह्निः – काष्ठान्तर्गते वह्निः भवति।

परियोजनाकार्यम् –

प्रश्न 1.
उद्यमस्य महत्त्वं वर्णयतः पञ्चश्लोकान् लिखत।
उत्तरम् :
श्लोका:
(i) उद्यमेन हि सिद्धयन्ति कार्याणि न मनोरथैः।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुंखे मृगाः॥
(उद्योग से ही कार्यों की सिद्धि होती है, केवल मनोरथों से नहीं। सोते हुए सिंह के मुख में मृग स्वयं प्रवेश नहीं करते हैं।)

(ii) यथा बीजं विना क्षेत्रमुप्तं भवति निष्फलम्।
तथा पुरुषकारेण विना दैवं न सिद्धयति॥
(जैसे खेत में बोए बिना कोई भी बीज फल नहीं दे सकता है, वैसे ही पुरुषार्थ के बिना भाग्य सिद्ध नहीं होता है।)

(iii) योजनानां सहस्रं तु शनैर्गच्छेत्पिपीलिका।
अगच्छन्वैनतेयोऽपि पदमेकं न गच्छति॥
(चलती हुई चींटी हजार योजन दूर तक निकल जाती है। न चलता हुआ गरुड़ भी एक पग नहीं जा सकता है।)

(iv) उद्योगिनो मनुष्यस्य ननुमत्या किं दुर्घटम्।
आकाशमपि पातालमेकीकुर्यात्कदाचन।।
(परिश्रमी व्यक्ति की बुद्धि द्वारा किया करना कठिन है? वह आकाश और पाताल को भी कदाचित् एक कर सकता है।)

(v) आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः।
नास्त्युद्यमसमो बन्धुर्यं कृत्वा नावसीदति॥
(मनुष्यों के शरीर में स्थित महान् शत्रु आलस्य है। उद्योग के समान कोई हितैषी (बन्धु) नहीं है, जिसे करके मनुष्य दुःखी नहीं होता है।)

योग्यता-विस्तार –

प्रश्न 1.
अधोलिखितसमस्तपदानां समास-विग्रहं कृत्वा समासस्य नामापि लिखत।
उत्तरम् :
समस्तपदम् – समास-विग्रहः – समासस्य नाम

  • शरीरस्थः – शरीरे स्थितः – तत्पुरुषसमासः।
  • गृहस्थः – गृहे स्थितः तत्पुरुषसमासः।
  • मनस्स्थः – मनसि स्थितः – तत्पुरुषसमासः।
  • तटस्थः – तटे स्थितः – तत्पुरुषसमासः।
  • कूपस्थ: – कूपे स्थितः – तत्पुरुषसमासः।
  • वृक्षस्थः – वृक्षे स्थितः – तत्पुरुषसमासः।
  • विमानस्थः – विमाने स्थितः – तत्पुरुषसमासः।
  • निर्गुणम् – गुणानाम् अभाव: – अव्ययीभावसमासः।
  • निर्मक्षिकम् –  मक्षिकाणाम् अभावः – अव्ययीभावसमासः।
  • निर्जलम् – जलस्य अभावः – अव्ययीभावसमासः।
  • निराहारम् – आहारस्य अभावः – अव्ययीभावसमासः।

प्रश्न 2.
निम्नलिखितशब्दानां पर्यायवाचिपदानि लिखत।
उत्तरम् :
शब्दाः – पर्यायवाचिपदानि

  • शत्रुः – रिपुः, अरिः, वैरिः।
  • मित्रम् – सखा, बन्धुः, सुहृद्।
  • अग्निः, दाहकः, पावकः।
  • सुधियः – विद्वांसः, विज्ञाः, अभिज्ञाः।
  • अश्वः – तुरगः, हयः, घोटकः।
  • गजः – करी, हस्ती, दन्ती, नागः।
  • वृक्षः – द्रुमः, तरुः, महीरुहः।
  • सविता – सूर्यः, मित्रः, दिवाकरः, भास्करः।

RBSE Class 10 Sanskrit सुभाषितानि Important Questions and Answers

भावार्थ-लेखनम् –

(क) निम्नलिखितपद्यांशानां प्रदत्ते भावार्थे रिक्तस्थानानि पूरयत –

(i) आलस्यं हि ……………………………… नावसीदति॥
भावार्थः – मनुष्याणां शरीरे एव स्थितः महान् (i) …………….. आलस्यं वर्तते। परिश्रमसदृशः मनुष्यस्य कोऽपि (ii) ………… नास्ति। (iii) ……….. कृत्वा मनुष्यः कदापि (iv) ………… न अनुभवति।
उत्तरम् :
(i) शत्रुः, (ii) बन्धुः, (iii) परिश्रमम्, (iv) दुःखम्।

(ii) गुणी गुणं ………………………. न मूषकः॥
भावार्थ: – गुणवान् एव गुणं जानाति, (i) ………….. गुणं न जानाति। (ii) ……………. एव बलं जानाति, निर्बलः बलं न जानाति। वसन्तस्य गुणं पिकः एव जानाति, (iii) ……………. न जानाति। सिंहस्य बलं (iv) ………………….. जानाति, मूषकः न जानाति।
उत्तरम् :
(i) निर्गुणः, (ii) बलवान्, (iii) काकः, (iv) गजः।

(iii) निमित्तमुद्दिश्य ……………………………………………. परितोषयिष्यति॥
भावार्थ: – यः जनः कमपि (i) ………… दृष्ट्वा अतिकोपं करोति, सः तस्य कारणस्य (ii) ……….. निश्चयेन प्रसन्नः भवति। यस्य जनस्य मन: (iii) …………………. अस्ति, तं जनं मनुष्यः कथमपि (iv) ……….. न दास्यति।
उत्तरम् :
(i) कारणम्, (ii) समाप्ते, (iii) अकारणद्वेषि, (iv) परितोषम्।

(iv) उदीरितोऽर्थः …………………………………………………….. हि बुद्धयः॥
भावार्थ: – पशुना अपि (i) ……………… अर्थः गृह्यते, अश्वाः (ii) …………. च बोधिताः भारं वहन्ति, बुद्धिमान् जनः (iii) ………… सर्वं निर्धारयति। वस्तुतः (iv) ………… परेषाम् संकेतजन्यज्ञानफलाः भवन्ति।
उत्तरम् :
(i) कथितः, (ii) गजाः, (iii) अनूक्तमपि, (iv) बुद्धिमन्तः।

(v) क्रोधो हि शत्रुः ……………………………………. शरीरम्॥
भावार्थ: – मनुष्याणां (i) ……….. प्रथमः शत्रुः शरीरे स्थितः (ii) ……….. एवास्ति। यथा काष्ठगतः ………… काष्ठम् एव दहते, तथैव शरीरस्थः क्रोधः (iv) ………. ‘शरीरम्।
उत्तरम् :
(i) शरीरविनाशाय, (ii) क्रोधः, (iii) अग्निः, (iv) शरीरम्।

(ख) अधोलिखितश्लोकानां संस्कृते भावार्थं लिखत –

(i) मृगाः मृगैः सङ्ग …………………………………. व्यसनेषु सख्यम्॥
उत्तरम् :
भावार्थ: – मित्रता सदैव समानचरित्रस्वभावशीलेषु एव भवति। यथा हरिणाः हरिणैः सह, धेनवः धेनभिः सह मर्खाः मर्खजनैः सह. विद्वान्स: विद्वद्भिः सह एव मित्रतां कर्वन्ति।

(ii) सेवितव्यो महावृक्षः …………………………….. केन निवार्यते॥
उत्तरम् :
भावार्थ: – फलैः छायया च युक्तः विशालवृक्षः एव सदैव सेवनीयः। यतोहि तादृशः वृक्षः सदैव लाभदायकः भवति। यदि कदाचित् वृक्षे फलं न स्यात् किन्तु छाया तु तत्र सर्वदा प्राप्यते एव।

(iii) अमन्त्रमक्षरं नास्ति ………………………….. योजकस्तत्र दुर्लभः॥
उत्तरम् :
भावार्थः-यथा मन्त्रहीनं विवेकहीनं वा अक्षरं न भवति, तथा च औषधीय गृणविहीनम् आधारं (मूलम्) न भवति, तथैव संसारे कोऽपि जनः अयोग्यः न भवति, सर्वेषु जनेषु काऽपि विशेषता अवश्यमेव भवति, किन्तु तस्य योग्यतायाः संयोजकः ज्ञाता च दुर्लभं भवति।

(iv) सम्पत्तौ च विपत्तौ …………………………… रक्तश्चास्तमये तथा॥
उत्तरम् :
भावार्थः – महापुरुषाः सर्वदा समानस्वभावयुक्ताः भवन्ति। ते सम्पत्तिकाले विपत्तिकाले च समानाः भवन्ति। सम्पत्तिकाले न तु अत्यधिकाः प्रसन्नाः भवन्ति न च विपत्तिकाले दुःखमग्नाः भवन्ति। यथा सूर्यः उदिते सति लोहितः भवति तथा च अस्तं गतेऽपि लोहितः एव भवति।

(v) विचित्रे खलु संसारे ……………………………. भारस्य वहने खरः॥
उत्तरम् :
भावार्थ:-अयं संसारः विचित्रं वर्तते। संसारे किमपि निरर्थकं (सारहीनं) नास्ति। प्रत्येकस्मिन् भिन्न-भिन्नं किमपि वैशिष्ट्यं भवति एव। यथा अश्वः यदि धावने वीरः भवति तर्हि गर्दभोऽपि भारवहने निपुणः भवति। अत एव अस्माभिः प्रत्येकस्य गुणं दृष्ट्वा तस्य योग्यतायाः सम्मानः उपयोगश्च करणीयः।

संस्कृतमाध्यमेन प्रश्नोत्तराणि

(अ) एकपदेन उत्तरत –

प्रश्न 1.
मनुष्यः कम् कृत्वा नावसीदति ?
उत्तरम् :
उद्यमम्।

प्रश्न 2.
वसन्तस्य गुणं कः वेत्ति?
उत्तरम :
पिकः।

प्रश्न 3.
करी कस्य गुणं वेत्ति?
उत्तरम् :
सिंहस्य।

प्रश्न 4.
परेङ्गितज्ञानफलाः के भवन्ति ?
उत्तरम् :
बुद्धयः।

प्रश्न 5.
नराणां देहस्थितो प्रथमो शत्रुः कः?
उत्तरम् :
क्रोधः।

प्रश्न 6.
मृगाः कैः सङ्गमनुव्रजन्ति ?
उत्तरम् :
मृगैः।

प्रश्न 7.
कीदृशः महावृक्षः सेवितव्यः?
उत्तरम् :
फलच्छायासमन्वितः।

प्रश्न 8.
अमन्त्रं किम् नास्ति?
उत्तरम् :
अक्षरम्।

प्रश्न 9.
पुरुषः कीदृशः नास्ति?
उत्तरम् :
अयोग्यः।

प्रश्न 10.
धावने कः वीरः?
उत्तरम् :
अश्वः।

प्रश्न 11.
भारस्य वहने कः वीरः?
उत्तरम् :
खरः।

(ब) पूर्णवाक्येन उत्तरत

प्रश्न 1.
आलस्यं मनुष्याणां कीदृशः रिपुः?
उत्तरम् :
आलस्यं मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः वर्तते।

प्रश्न 2.
उद्यमेन समः कः नास्ति?
उत्तरम् :
उद्यमेन समः बन्धुः नास्ति।

प्रश्न 3.
गुणं कः वेत्ति कश्च न वेत्ति?
उत्तरम् :
गुणं गुणी वेत्ति, निर्गुणश्च न वेत्ति।

प्रश्न 4.
वायसः कस्य गुणं न जानाति ?
उत्तरम् :
वायसः वसन्तस्य गुणं न जानाति।

प्रश्न 5.
कः धुवं तस्यापगमे प्रसीदति ?
उत्तरम् :
य: निमित्तमुद्दिश्य प्रकुप्यति, तस्यापगमे सः ध्रुवं प्रसीदति।

प्रश्न 6.
जनः कम् न परितोषयितुं शक्यते ?
उत्तरम् :
यस्य मनः अकारणद्वेषि, तं जन परितोषयितुं न शक्यते।

प्रश्न 7.
बोधिता: के वहन्ति ?
उत्तरम् :
बोधिताः हयाश्च नागाश्च वहन्ति।

प्रश्न 8.
अनुक्तमपि कः ऊहति?
उत्तरम् :
अनक्तमपि पण्डितो जनः अहति।

प्रश्न 9.
क्रोध: नराणां कीदृशः शत्रुः वर्तते ?
उत्तरम् :
क्रोधः नराणां देहविनाशाय देहस्थितः प्रथमः शत्रुः वर्तते।

प्रश्न 10.
कुत्र महतामेकरूपता भवति ?
उत्तरम् :
संपत्तौ विपत्तौ च महतामेकरूपता भवति।

प्रश्न 11.
कुत्र किञ्चिन्निरर्थकं नास्ति?
उत्तरम् :
विचित्रे संसारे किञ्चिन्निरर्थकं नास्ति।

अन्वय-लेखनम् :

प्रश्नः-मञ्जूषातः समुचितपदानि चित्वा अधोलिखितश्लोकानाम् अन्वयं पूरयत

(i) आलस्यं हि …………………. नावसीदति॥
अन्वयः – मनुष्याणां (i) ……………. महान् शत्रुः (ii) ………………। उद्यमसमः (iii) …………… न अस्ति। यं कृत्वा (मनुष्यः) नं (iv) ………..
मञ्जूषा :
बन्धुः, शरीरस्थः, अवसीदति, आलस्यम्
उत्तरम् :
(i) शरीरस्थः, (ii) आलस्यम्, (iii) बन्धुः, (iv) अवसीदति।

(ii) गुणी गुणं ……………………………. न मूषकः॥
अन्वयः – गुणी (i) ……………. वेत्ति, निर्गुणः (गुणं) न वेत्ति, बली बलं वेत्ति, (ii) ……. (बलं) न वेत्ति, . वसन्तस्य गुणं (iii) …………… (वेत्ति), वायसः न (वेत्ति), सिंहस्य बलं करी (वेत्ति), (iv) …………….. ।
मञ्जूषा :
पिकः, गुणं, मूषकः, निर्बलः
उत्तरम् :
(i) गुणं, (ii) निर्बलः, (iii) पिकः, (iv) मूषकः

(iii) निमित्तमुद्दिश्य ……………….. परितोषयिष्यति॥
अन्वयः – यः (i) ……………….. उद्दिश्य प्रकुप्यति सः तस्य (ii) ……………. ध्रुवं प्रसीदति, यस्य मनः (iii) …………… (अस्ति) तं जनः कथं (iv) ………..।
मञ्जूषा :
अकारणद्वेषि, निमित्तम्, परितोषयिष्यति, अपगमे
उत्तरम् :
(i) निमित्तम्, (ii) अपगमे, (iii) अकारणद्वेषि, (iv) परितोषयिष्यति।

(iv) उदीरितोऽर्थः ………………………. हि बुद्धयः॥
अन्वयः – पशुना अपि (i) …………….. अर्थः गृह्यते, हयाः (ii) ………. च बोधिताः (भारं) वहन्ति, पण्डितः जनः (iii) ………… अपि ऊहति। बुद्धयः (iv) …………… (भवन्ति)।
मञ्जूषा :
अनुक्तम्, उदीरितः, परेङ्गितज्ञानफलाः, नागाः।
उत्तरम् :
(i) उदीरितः, (ii) नागाः, (iii) अनुक्तम्, (iv) परेङ्गितज्ञानफलाः।

(v) क्रोधो हि शत्रुः ……………………..शरीरम्॥
अन्वयः – नराणां देहविनाशाय (i) …………..’शत्रुः देहस्थितः (ii) ……………… यथा काष्ठगतः स्थितः (iii) …………….. काष्ठम् एव दहते (तथैव शरीरस्थः क्रोधः) (iv) ………………….. दहते।
मञ्जूषा :
वह्निः, प्रथमः, शरीरं, क्रोधः।
उत्तरम् :
(i) प्रथमः, (ii) क्रोधः, (iii) वह्निः, (iv) शरीरं।

(vi) मृगाः मृगैः …………………… सख्यम्॥
अन्वयः – मृगाः (i) ………….. सङ्गम् अनुव्रजन्ति, गावः च (ii) ……….. (सङ्गमनुव्रजन्ति), तुरगाः (iii) ………… “(सङ्गमनुव्रजन्ति), मूर्खाः मूर्खः (तथा च) सुधियः (iv) ………… (सङ्गमनुव्रजन्ति)। सख्यम् समान-शील-व्यसनेषु (भवति)।
मञ्जूषा :
तुरङ्गैः, मृगैः, सुधीभिः, गोभिः।
उत्तरम् :
(i) मृगैः, (ii) गोभिः, (iii) तुरङ्गैः, (iv) सुधीभिः।

(vii) सेवितव्यो महावृक्षः …………….निवार्यते॥
अन्वयः – फलच्छाया (i) ……………. “महावृक्षः (ii) …………….। देवात् (ii) ………….. फलं नास्ति। छाया (iv) ………….. निवार्यते।
मञ्जूषा :
यदि, समन्वितः, केन, सेवितव्यः।
उत्तरम् :
(i) समन्वितः, (ii) सेवितव्यः, (iii) यदि, (iv) केन।

(viii) अमन्त्रमक्षरं ………………………….. दुर्लभः॥
अन्वयः – अमन्त्रम् (i) …………… नास्ति, अनौषधम् (ii) ……………… नास्ति, अयोग्यः (iii) …………… नास्ति, तत्र (iv) ……….. दुर्लभः।
मञ्जूषा :
पुरुषः, अक्षरं, योजकः, मूलं।
उत्तरम् :
(i) अक्षरं, (ii) मूलं, (iii) पुरुषः, (iv) योजकः।

(ix) सम्पत्तौ च ………………………………. रक्तश्चास्तमये तथा॥
अन्वयः – महताम् (i) …………………. च विपत्तौ च (ii) …………….. (भवति)। (यथा) सविता (iii) ………….. रक्तः (भवति), तथा (iv) …………….. च रक्तः (भवति)।
मञ्जूषा :
उदये, सम्पत्तौ, अस्तमये, एकरूपता।
उत्तरम् :
(i) सम्पत्तौ, (ii) एकरूपता, (iii) उदये, (iv) अस्तमये।

(x) विचित्रे खलु ……………………. वहने खरः॥
अन्वयः – विचित्रे (i) ……………. खलु किञ्चित् (ii) …………….. नास्ति। अश्वः चेत् (iii)  ……………. वीरः, (तर्हि) भारस्य वहने (iv) ………………. (वीरः अस्ति)।
मञ्जूषा :
धावने, संसारे, खरः, निरर्थकं।
उत्तरम् :
(i) संसारे, (ii) निरर्थकं, (iii) धावने, (iv) खरः।

प्रश्ननिर्माणम् :

निम्नलिखितेषु वाक्येषु रेखाङ्कित-पदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत –

  1. समानशीलव्यसनेषु सख्यं भवति।
  2. उद्यमसमो बन्धुः नास्ति।
  3. उद्यमं कृत्वा जनः नावसीदति।
  4. निर्गुणः गुणं न वेत्ति।
  5. बली बलं वेत्ति।
  6. वसन्तस्य गुणं पिक: वेत्ति न वायसः।
  7. सिंहस्य बलं करी वेत्ति न मूषकः।
  8. सः निमित्तम् उद्दिश्य एव प्रकुप्यति।
  9. उदीरितोऽर्थः पशुनाः अपि गृह्यते।
  10. पण्डितो जनः अनुक्तमप्यूहात।
  11. आलस्यं मनुष्याणां महान् रिपुः।
  12. गुणी गुणं जानाति।
  13. ध्रुवं सः तस्य अपगमे प्रसीदति।
  14. बुद्धयः परेङ्गितज्ञानफलाः भवन्ति।
  15. नराणां प्रथमः शत्रुः क्रोधः अस्ति।
  16. स एव वह्निः शरीरं दहते।
  17. मृगाः मृगैः सङ्गमनुव्रजन्ति।
  18. सुधयः सुधीभिः सह अनुगच्छन्ति।
  19. अमन्त्रम् अक्षरं नास्ति।
  20. तत्र योजकः दुर्लभः भवति।

उत्तरम् :
प्रश्ननिर्माणम् –

  1. केषु सख्यं भवति?
  2. उद्यमसमो कः नास्ति?
  3. किम् कृत्वा जनः नावसीदति?
  4. निर्गुणः कम् न वेत्ति?
  5. कः बलं वेत्ति?
  6. कस्य गुणं पिक: वेत्ति न वायसः?
  7. सिंहस्य बलं क: वेत्ति न मूषकः?
  8. सः किम् उद्दिश्य एव प्रकुप्यति?
  9. उदीरितोऽर्थः केन अपि गृह्यते?
  10. कः जनः अनुक्तमप्यूहति?
  11. किम् मनुष्याणां महान् रिपुः?
  12. कः गुणं जानाति?
  13. ध्रुवं सः कस्य अपगमे प्रसीदति ?
  14. के परेङ्गितज्ञानफलाः भवन्ति?
  15. केषां प्रथमः शत्रुः क्रोधः अस्ति?
  16. स एव वह्निः कम् दहते?
  17. मृगाः कैः सङ्गमनुव्रजन्ति?
  18. के सुधीभिः सह अनुगच्छन्ति?
  19. अमन्त्रम् किम् नास्ति?
  20. तत्र योजकः कीदृशः भवति?

शब्दार्थ-चयनम् :

अधोलिखितवाक्येषु रेखाङ्कितपदानां प्रसङ्गानुकूलम् उचितार्थं चित्वा लिखत –

प्रश्न 1.
आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः।
(क) मित्रम्
(ख) बन्धुः
(ग) शत्रुः
(घ) भ्राता
उत्तरम् :
(ग) शत्रुः

प्रश्न 2.
गुणी गुणं वेत्ति।
(क) जानाति
(ख) याति
(ग) करोति
(घ) गच्छति
उत्तरम् :
(क) जानाति

प्रश्न 3.
पिको वसन्तस्य गुणं न वायसः।
(क) कोकिलः
(ख) काकः
(ग) शुकः
(घ) मयूरः
उत्तरम् :
(ख) काकः

प्रश्न 4.
करी च सिंहस्य बलं न मूषकः।
(क) गजः
(ख) मगः
(ग) अश्वः
(घ) गर्दभः
उत्तरम् :
(क) गजः

प्रश्न 5.
ध्रुवं स तस्यापगमे प्रसीदति।
(क) नक्षत्रम्
(ख) कदाचित्
(ग) निश्चितम्
(घ) अधुना
उत्तरम् :
(ग) निश्चितम्

प्रश्न 6.
उदीरितः अर्थः पशुनापि गृह्यते।
(क) कथितः
(ख) अज्ञातः
(ग) लिखितः
(घ) पठितः
उत्तरम् :
(क) कथितः

प्रश्न 7.
नागाः वहन्ति बोधिताः।
(क) अश्वाः
(ख) सिंहाः
(ग) गजाः
(घ) गर्दभाः
उत्तरम् :
(ग) गजाः

प्रश्न 8.
तुरगाः तुरङ्गैः सह अनुव्रजन्ति।
(क) मृगाः
(ख) वानराः
(ग) चित्रकाः
(घ) अश्वाः
उत्तरम् :
(घ) अश्वाः

प्रश्न 9.
उदये सविता रक्तः।
(क) सागरः
(ख) चन्द्रः
(ग) सूर्यः
(घ) सायम्
उत्तरम् :
(ग) सूर्यः

प्रश्न 10.
वीरः भारस्य वहने खरः।
(क) अश्वः
(ख) मृगः
(ग) वृषभः
(घ) गर्दभः
उत्तरम् :
(घ) गर्दभः

प्रश्न 11.
काष्ठगतो हि वह्निः।
(क) अग्निः
(ख) वायुः
(ग) जलम्
(घ) हिमम्
उत्तरम् :
(क) अग्निः

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