RBSE Class 10 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 9 सूक्तयः
RBSE Class 10 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 9 सूक्तयः
सूक्तयः Summary and Translation in Hindi
पाठ परिचय :
यह पाठ मूलरूप से तमिल भाषा में रचित ‘तिरुक्कुरल’ नामक ग्रन्थ से लिया गया है। तिरुक्कु साहित्य की उत्कृष्ट रचना है। इसे तमिल भाषा का ‘वेद’ माना जाता है। इसके प्रणेता तिरुवल्लुवर हैं। इनका काल प्रथम शताब्दी माना गया है। इसमें मानवजाति के लिए जीवनोपयोगी सत्य प्रतिपादित है। ‘तिरु’ शब्द ‘श्रीवाचक’ है। तिरुक्कुरल शब्द का अभिप्राय है-श्रिया युक्त वाणी। इसे धर्म, अर्थ, काम तीन भागों में बाँटा गया है। प्रस्तुत पाठ के श्लोक सरस, सरल तथा प्रेरणाप्रद हैं। पाठ के श्लोकों का अन्वय, कठिन शब्दार्थ एवं सप्रसंग हिन्दी अनुवाद
1. पिता यच्छति पुत्राय बाल्ये विद्याधनं महत्।
पिताऽस्य किं तपस्तेपे इत्युक्तिस्तत्कृतज्ञता॥1॥
अन्वय – पिता बाल्ये पुत्राय महत् विद्याधनं यच्छति। ‘अस्य पिता किं तपः तेपे’ इति उक्तिः तत्कृतज्ञता।
कठिन शब्दार्थ :
- बाल्ये = बचपन में (बाल्यावस्थायाम्)।
- महत् = महान्।
- यच्छति = देता है (ददाति)।
- तेपे = तपस्या की (तपस्या कृता)।
- इत्युक्तिः = इस प्रकार का कथन (इति + उक्तिः)।
प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘सूक्तयः’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है। मूलत: यह पाठ तिरुवल्लुवर द्वारा तमिल भाषा में रचित ‘तिरुक्कुरल’ नामक ग्रन्थ से लिया गया है। इसमें मानवजाति के लिए जीवनोपयोगी सत्य का सरस एवं बोधगम्य पद्यों के द्वारा प्रतिपादन किया गया है। इस पद्यांश में पिता द्वारा पुत्र को बाल्यकाल में विद्याधन प्रदान किये जाने का प्रेरणास्पद वर्णन हुआ है।
हिन्दी अनुवाद – पिता बचपन में पुत्र के लिए महान् विद्यारूपी धन देता है। इसके पिता ने क्या तपस्या की है’ इस प्रकार का कथन ही उनके (पिता के) प्रति कृतज्ञता है।
2. अवक्रता यथा चित्ते तथा वाचि भवेद् यदि।
तदेवाहु महात्मानः समत्वमिति तथ्यतः॥ 2 ॥
अन्वय-यथा चित्ते (अवक्रता भवेद्) तथा वाचि यदि अवक्रता भवेत्, तदेव महात्मानः तथ्यतः समत्वम् इति आहुः।
कठिन शब्दार्थ :
- चित्ते = मन में (मनसि)।
- वाचि = वाणी में (वाण्याम्)।
- अवक्रता = सरलता (ऋजुता/न वक्रता)।
- महात्मानः = महापुरुष (महापुरुषः)।
- तथ्यतः = वास्तव में (यथार्थरूपेण)।
- समत्वम् = समानता का भाव (समानतायाः भावम्)।
- आहुः = कहते हैं (कथयन्ति)।
प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘सूक्तयः’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है। मूलतः यह पाठ तिरुवल्लुवर द्वारा तमिल भाषा में रचित ‘तिरुक्कुरल’ नामक ग्रन्थ से लिया गया है। इसमें मानवजाति के लिए जीवनोपयोगी सत्य का सरस एवं बोधगम्य पद्यों के द्वारा प्रतिपादन किया गया है। इस पद्य में मन और वचन में समान रूप से सरलता को ‘समत्व’ बतलाया गया है।
हिन्दी अनुवाद – जिस प्रकार मन में सरलता होती है, उसी प्रकार यदि वाणी में भी सरलता हो तो, उसे ही महापुरुष ‘समत्व’ (समानता का भाव) कहते हैं। अर्थात् मन और वचन में कुटिलता का नहीं होना ही समत्व कहलाता है।
3. त्यक्त्वा धर्मप्रदां वाचं परुषां योऽभ्युदीरयेत्।
परित्यज्य फलं पक्वं भुङ्क्तेऽपक्वं विमूढधीः॥3॥
अन्वयः – यः धर्मप्रदां वाचं त्यक्त्वा परुषां (वाचम्) अभ्युदीरयेत्, (सः) विमूढधीः पक्वं फलं परित्यज्य अपक्वं (फलम्) भुङ्क्ते।
कठिन शब्दार्थ :
- धर्मप्रदाम् = धर्मयुक्त, सत्य (धर्मयुक्तम्, सरलम्)।
- वाचम् = वाणी को (वाणीम्)।
- परुषाम् = कठोर (कठोराम्)।
- अभ्युदीरयेत् = बोलना चाहिए (वदेत्)।
- विमूढधीः = अज्ञानी/नासमझ (मूर्खः/ बुद्धिहीनः)।
- पक्वम् = पका हुआ (सम्पन्नम्)।
- परित्यज्य = छोड़कर (त्यक्त्वा)।
प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘सूक्तयः’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है। मूलतः यह पाठ तिरुवल्लुवर द्वारा तमिल भाषा में रचित ‘तिरुक्कुरल’ नामक ग्रन्थ से लिया गया है। इसमें मानवजाति के लिए जीवनोपयोगी सत्य का सरस एवं बोधगम्य पद्यों के द्वारा प्रतिपादन किया गया है। इस पद्य में धर्मयुक्त वाणी बोलने तथा कठोर वाणी का त्याग करने की प्रेरणा दी गई है।
हिन्दी अनुवाद-जो धर्मयुक्त वाणी को छोड़कर कठोर वाणी को बोलता है, वह मूर्ख (अज्ञानी) पके हुए फल को छोड़कर कच्चा फल ही खाता है। .
4. विद्वांस एव लोकेऽस्मिन् चक्षुष्मन्तः प्रकीर्तिताः।
अन्येषां वदने ये तु ते चक्षुर्नामनी मते॥4॥
अन्वयः – अस्मिन् लोके विद्वांसः एव चक्षुष्मन्तः प्रकीर्तिताः। अन्येषां वदने ये चक्षुः (स्तः) ते तु नामनी मते।
कठिन शब्दार्थ :
- चक्षष्मन्तः = नेत्रों से युक्त (नेत्रवन्तः)।
- प्रकीर्तिताः = कहे गये हैं (कथिताः)।
- वदने = मुख पर (मुखे, आनने)।
- चक्षुः = नेत्र (नेत्रे)।
प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘सूक्तयः’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है। मूलतः यह पाठ तिरुवल्लुवर द्वारा तमिल भाषा में रचित ‘तिरुक्कुरल’ नामक ग्रन्थ से लिया गया है। इसमें मानवजाति के लिए जीवनोपयोगी सत्य का सरस एवं बोधगम्य पद्यों के द्वारा प्रतिपादन किया गया है। इस पद्यांश में विद्वान को ही संसार में नेत्रों वाला बतलाते हुए विद्या के महत्त्व को दर्शाया गया है।
हिन्दी अनवाद – इस संसार में विद्वानों को ही नेत्रों से युक्त कहा गया है। दसरों के मख पर जो नेत्र हैं, वे तो नाममात्र के ही माने गये हैं। अर्थात् विद्या रूपी ज्ञान से सम्पन्न को ही नेत्रों वाला माना गया है, मूर्ख तो नेत्र होने पर भी अन्धे के समान ही हैं।
5. यत् प्रोक्तं येन केनापि तस्य तत्त्वार्थनिर्णयः।
कर्तुं शक्यो भवेद्येन स विवेक इतीरितः॥5॥
अन्वयः – येन केनापि. यत् प्रोक्तम्, तस्य तत्त्वार्थनिर्णयः येन कर्तुं शक्यः भवेत्, ‘सः विवेकः’ इति ईरितः।
कठिन शब्दार्थ :
- प्रोक्तम् = कहा गया (कथितम्)।
- तत्त्वार्थनिर्णयः = रहस्य/सत्यता का निर्णय (तथ्यस्य प्रतिपादनम्)।
- शक्यः = समर्थ (समर्थः)।
- ईरितः = कहा गया/प्रेरित किया गया (कथितः/प्रेरितः)।
प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘सूक्तयः’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है। मूलतः यह पाठ तिरुवल्लुवर द्वारा तमिल भाषा में रचित ‘तिरुक्कुरल’ नामक ग्रन्थ से लिया गया है। इसमें मानवजाति के लिए जीवनोपयोगी सत्य का सरस एवं बोधगम्य पद्यों के द्वारा प्रतिपादन किया गया है। इस पद्यांश में तत्त्वार्थ (यथार्थता) का निर्णय करने में समर्थ को ही विवेक बतलाया गया है।
हिन्दी अनुवाद-जिस किसी के द्वारा भी जो कहा गया है, उसके तत्त्वार्थ (रहस्य) का निर्णय जिसके द्वारा किया जा सकता है अर्थात् जो यथार्थता का निर्णय करने में समर्थ होता है वही ‘विवेक’ कहा गया है।
6. वाक्पटुधैर्यवान् मन्त्री सभायामप्यकातरः।
स केनापि प्रकारेण परैर्न परिभूयते॥ 6॥
अन्वयः – (यः) मन्त्री वाक्पटुः, धैर्यवान्, सभायाम् अपि अकातरः (भवति), सः केनापि प्रकारेण परैः न परिभूयते।
कठिन शब्दार्थ :
- वाक्पटुः = बोलने में चतुर (वदने निपुणः)।
- अकातरः = निर्भीक (वीरः/साहसी)।
- परैः = दूसरों से/शत्रुओं से (शत्रुभिः)।
- परिभूयते = अपमानित किया जाता है (तिरस्क्रियते/अवमान्यते)।
प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘सूक्तयः’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है। मूलतः यह पाठ तिरुवल्लुवर द्वारा तमिल भाषा में रचित ‘तिरुक्करल’ नामक ग्रन्थ से लिया गया है। इसमें मानवजाति के लिए जीवनोपयोगी सत्य का सरस एवं बोधगम्य पद्यों के द्वारा प्रतिपादन किया गया है। इस पद्यांश में चतुर, धैर्यवान् तथा निर्भीक मंत्री को ही श्रेष्ठ बतलाते हुए कहा गया है कि –
हिन्दी अनुवाद-जो मन्त्री बोलने में चतुर, धैर्यवान् तथा सभा में भी निर्भीक होता है, वह किसी भी प्रकार से शत्रुओं द्वारा अपमानित नहीं किया जाता है।
7. य इच्छत्यात्मनः श्रेयः प्रभूतानि सुखानि च।
न कुर्यादहितं कर्म स परेभ्यः कदापि च ॥7॥
अन्वयः – यः आत्मनः श्रेयः प्रभूतानि सुखानि च इच्छति, सः परेभ्यः कदापि च अहितं कर्म न कुर्यात्।
कठिन शब्दार्थ :
- आत्मनः = अपना (स्वस्य)।
- श्रेयः = कल्याण (कल्याणम्)।
- प्रभूतानि = अत्यधिक (अत्यधिकानि)।
- परेभ्यः = दूसरों के लिए (अन्येभ्यः)।
प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘सूक्तयः’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है। मूलतः यह पाठ तिरुवल्लुवर द्वारा तमिल भाषा में रचित ‘तिरुक्कुरल’ नामक ग्रन्थ से लिया गया है। इसमें मानवजाति के लिए जीवनोपयोगी सत्य का सरस एवं बोधगम्य पद्यों के द्वारा प्रतिपादन किया गया है। इस पद्यांश में अपना कल्याण एवं सख चाहने वालों को दूसरों का अहित न करने की प्रेरणा देते हए कहा गया है कि
हिन्दी अनुवाद – जो अपना कल्याण और अत्यधिक सुख चाहता है, उसे दूसरों के लिए और कभी भी अहितकारी कर्म नहीं करना चाहिए।
8. आचारः प्रथमो धर्मः इत्येतद् विदुषां वचः।
तस्माद् रक्षेत् सदाचारं प्राणेभ्योऽपि विशेषतः॥8॥
अन्वयः – ‘आचारः प्रथमो धर्मः’ इत्येतद् विदुषां वचः (अस्ति)। तस्मात् विशेषतः प्राणेभ्योऽपि सदाचारं रक्षेत्।
कठिन शब्दार्थ :
- आचारः = सदाचार (सदाचारः)।
- विदुषाम् = विद्वानों का (विद्वद्जनानाम्)।
- वचः = वचन (वचनम्)।
- रक्षेत् = रक्षा करनी चाहिए।
प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘सूक्तयः’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है। मूलतः यह पाठ तिरुवल्लुवर द्वारा तमिल भाषा में रचित ‘तिरुक्कुरल’ नामक ग्रन्थ से लिया गया है। इसमें मानवजाति के लिए जीवनोपयोगी सत्य का सरस एवं बोधगम्य पद्यों के द्वारा प्रतिपादन किया गया है। इस पद्यांश में प्राण देकर भी सदाचार की रक्षा करने की प्रेरणा देते हुए कहा गया है कि
हिन्दी अनुवाद-‘सदाचार पहला धर्म है’ यह विद्वानों का वचन है। इसलिए विशेष रूप से प्राण देकर भी सदाचार की रक्षा करनी चाहिए।
RBSE Class 10 Sanskrit सूक्तयः Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत
(क) पिता पुत्राय बाल्ये किं यच्छति?
उत्तरम् :
विद्याधनम्।
(ख) विमूढधीः कीदृशीं वाचं परित्यजति?
उत्तरम् :
धर्मप्रदाम्।
(ग) अस्मिन् लोके के एव चक्षुष्मन्तः प्रकीर्तिताः?
उत्तरम् :
विद्वांसः।
(घ) प्राणेभ्योऽपि कः रक्षणीयः?
उत्तरम् :
सदाचारः।
(ङ) आत्मनः श्रेयः इच्छन् नरः कीदृशं कर्म न कुर्यात् ?
उत्तरम् :
अहितम्।
(च) वाचि किं भवेत् ?
उत्तरम् :
अवक्रता।
प्रश्न 2.
स्थूलपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत –
यथा – विमढधीः पक्वं फलं परित्यज्य अपक्वं फलं भङक्ते।
कः पक्वं फलं परित्यज्य अपक्वं फलं भुङ्क्ते।
(क) संसारे विद्वांसः ज्ञानचक्षुभिः नेत्रवन्तः कथ्यन्ते।
(ख) जनकेन सुताय शैशवे विद्याधनं दीयते।
(ग) तत्त्वार्थस्य निर्णयः विवेकेन कर्तुं शक्यः।
(घ) धैर्यवान् लोके परिभवं न प्राप्नोति।
(ङ) आत्मकल्याणम् इच्छन् नरः परेषाम् अनिष्टं न कुर्यात्।
उत्तरम् :
प्रश्ननिर्माणम्
(क) संसारे के ज्ञानचक्षुभिः नेत्रवन्तः कथ्यन्ते?
(ख) जनकेन कस्मै शैशवे विद्याधनं दीयते?
(ग) कस्य निर्णयः विवेकेन कर्तुं शक्यः?
(घ) धैर्यवान् कुत्र परिभवं न प्राप्नोति?
(ङ) आत्मकल्याणम् इच्छन् नरः केषाम् अनिष्टं न कुर्यात् ?
प्रश्न 3.
पाठात् चित्वा अधोलिखितानां श्लोकानाम् अन्वयम् उचितपदक्रमेण पूरयत
(क) पिता ……………….. बाल्ये महत् विद्याधनं यच्छति, अस्य पिता किं तपः तेपे इत्युक्तिः ………………….।
(ख) येन ………………… यत् प्रोक्तं तस्य तत्त्वार्थनिर्णयः येन कर्तं ………… भवेत्, सः ………………… इशत ………..
(ग) य आत्मनः श्रेयः ………………… सुखानि च इच्छति, परेभ्यः अहितं ………………… कदापि च न ………………….।
उत्तरम् :
(क) पिता पुत्राय बाल्ये महत् विद्याधनं यच्छति, अस्य पिता किं तपः तेपे इत्युक्तिः तत्कृतज्ञता।
(ख) येन केनापि यत् प्रोक्तं तस्य तत्त्वार्थनिर्णयः येन कर्तुं शक्यः भवेत्, सः विवेकः इति ईरितः।
(ग) य आत्मनः श्रेयः प्रभूतानि सुखानि च इच्छति, परेभ्यः अहितं कर्म कदापि च न कुर्यात्।
प्रश्न 4.
अधालिखितम् उदाहरणद्वय पठित्वा अन्या प्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत
प्रश्न 5.
मञ्जूषायाः तद्भावात्मकसूक्ती: विचित्य अधोलिखितकथनानां समक्षं लिखत –
(क) विद्याधनं महत्
उत्तरम् :
विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्। विद्याधनं श्रेष्ठं तन्मूलमितरद्धनम्।
(ख) आचारः प्रथमो धर्मः
उत्तरम् :
आचारेण तु संयुक्तः सम्पूर्णफलभाग्भवेत्। आचारप्रभवोधर्मः सन्तश्चाचारलक्षणाः।
(ग) चित्ते वाचि च अवक्रता एव समत्वम्
उत्तरम् :
मनसि एकं वचसि एकं कर्मणि एकं महात्मनाम्। सं वो मनांसि, जानताम्।
मञ्जूषा :
आचारेण तु संयुक्तः सम्पूर्णफलभाग्भवेत्।
मनसि एकं वचसि एकं कर्मणि एकं महात्मनाम्।
विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्।
सं वो मनांसि जानताम्।
विद्याधनं श्रेष्ठं तन्मूलमितरद्धनम्।
आचारप्रभवो धर्मः सन्तश्चाचारलक्षणाः।
प्रश्न 6.
(अ) अधोलिखितानां शब्दानां पुरतः उचितं विलोमशब्द कोष्ठकात् चित्वा लिखत –
उत्तरम् :
(क) अपक्वः
(ख) सुधीः
(ग) अकातरः
(घ) कृतघ्नता
(ङ) उद्योगः
(च) कोमला।
(आ) अधोलिखितानां शब्दानां त्रयः समानार्थकाः शब्दाः मञ्जूषायाः चित्वा लिख्यन्ताम् –
उत्तरम् :
(क) प्रभूतम् – भूरि, विपुलम्, बहु।
(ख) श्रेयः – शुभम्, शिवम्, कल्याणम्।
(ग) चित्तम् – मानसम्, मनः, चेतः।
(घ) सभा – परिषद्, सभा, संसद्।
(ङ) चक्षुष् – लोचनम्, नेत्रम्, नयनम्
(च) मुखम् – आननम्, वदनम्, वक्त्रम्।
प्रश्न 7.
अधस्ताद समासविग्रहाः दीयन्ते तेषां समस्तपदानि पाठाधारेण दीयन्ताम् –
उत्तरम् :
(क) तत्त्वार्थनिर्णयः, (ख) वाक्पटुः, (ग) धर्मप्रदाम्, (घ) अंकातरः, (ङ) अहितम्, (च) महात्मनाम्, (छ) विमूढधीः।
RBSE Class 10 Sanskrit सूक्तयः Important Questions and Answers
भावार्थ-लेखनम्
अधोलिखितपद्यांशानां भावार्थं संस्कृते लिखत –
(i) पिता यच्छति ……………………………. तत्कृतज्ञता।
उत्तरम् :
भावार्थ:-जनकः शैशवे सुताय बहुमूल्यं विद्यारूपी धनं ददाति, येन बालकस्य विद्वत्तां दृष्ट्वा जनाः यदा कथयन्ति यत् “अस्य विदुषः जनकः कीदृशं तपः कृतवान् ?” अर्थात् अस्य पिता. महान् तपस्वी वर्तते, इति कथनमेव पितरं प्रति कृतज्ञता वर्तते। वस्तुतः विद्याधनमेव सर्वधनप्रधानमस्ति।
(ii) अवक्रता यथा चित्ते ……………………. समत्वमिति तथ्यतः॥
उत्तरम् :
भावार्थः-यदा येन प्रकारेण मनसि सरलता भवति तेनैव प्रकारेण यदि वाण्याम् अपि सरलता भवति, तदा एव महापुरुषाः यथार्थरूपेण समत्वम् इति कथयन्ति। अर्थात् मनसि वचसि च एकरूपतां सारल
(iii) त्यक्त्वा धर्मप्रदां वाचं …………………………………………. विमढधीः॥
उत्तरम् :
भावार्थः – मूढः पुरुषः एव धर्मप्रदां (सत्यां मधुरां च) वाणी परित्यज्य कठोरां वाणीं वदति, वस्तुतः सः मन्दमतिः पक्वं फलं त्यक्त्वा अपक्वं फलमेव खादति। बुद्धिमान् तु सदैव सत्यां मधुरां च वाणीं वदति।
(iv) विद्वांस एव लोकेऽस्मिन् ……………………… चक्षुर्नामनी मते॥
उत्तरम् :
भावार्थ:-अस्मिन् संसारे विद्वांसः एव ज्ञानचक्षुभिः नेत्रवन्तः कथ्यन्ते। अन्येषां ज्ञानचक्षुरहितानां मुखे। तु ये नेत्रे भवतः, ते नेत्रे नाम्ना एव मन्येते। वस्तुतः विद्या एव सन्मार्ग प्रति प्रेरयति। ज्ञानहीनः तु नेत्रयुक्तोऽपि अन्धः। एव।
(v) यत् प्रोक्तं येन केनापि ……………………….. विवेक इतीरितः॥
उत्तरम् :
भावार्थ:-येन केनापि जनेन यत् कथितम, तस्य कथनस्य तत्त्वार्थस्य (रहस्यस्य) निर्णयः विवेकेनैव कर्तुं शक्यते। विवेकेनैव यथार्थतायाः निर्णयं भवति, न तु अविवेकेन।
(vi) वाक्पटुधैर्यवान् ………………………. परैर्न परिभ्यते॥
उत्तरम् :
भावार्थ:-यः मन्त्री वाण्यां निपुणः, धैर्यवान्, सदसि च निर्भीकः भवति, संसारे सः मन्त्री केनापि प्रकारेण शत्रुभिः न तिरस्क्रियते अर्थात् वाक्पटुः, धैर्यवान्, निर्भीक: जन: लोके पराभवं न प्राप्नोति।
(vii) य इच्छत्यात्मनः श्रेयः ……………….. परेभ्यः कदापि च॥
उत्तरम् :
भावार्थः- यः जनः स्वस्य कल्याणम्, विपुलानि सुखानि च प्राप्तुम् इच्छति, सः कदापि परेषाम् अनिष्टम् अकल्याणकारी कर्म वा न कुर्यात्। अर्थात् आत्मकल्याणाय सुखाय च परेषामपि अहितं न कर्त्तव्यम्।
(viii) आचारः परमोधर्मः ………………………… प्राणेभ्योऽपि विशेषतः॥
उत्तरम् :
भावार्थ:-विद्वद्जनानां कथनानुसारम् सदाचारः सर्वश्रेष्ठः धर्मः वर्तते। अत: विशेषरूपेण प्राणान् दत्त्वाऽपि सदाचारस्य रक्षा करणीया। II.
संस्कृतमाध्यमेन प्रश्नोत्तराणि
(अ) एकपदेन उत्तरत
प्रश्न 1.
बाल्ये पुत्राय विद्याधनं कः यच्छति?
उत्तरम् :
पिता।
प्रश्न 2.
यथा चित्ते तथा वाचि किं भवेत् ?
उत्तरम् :
अवक्रता।
प्रश्न 3.
विमूढधीः कीदृशीं वाचां त्यक्त्वा परुषाम् वदति ?
उत्तरम् :
धर्मप्रदाम्।
प्रश्न 4.
धैर्यवान् मन्त्री कैः न परिभूयते ?
उत्तरम् :
परैः (शत्रुभिः)।
प्रश्न 5.
प्रथमोधर्मः कः?
उत्तरम् :
आचारः।
प्रश्न 6.
प्राणेभ्योऽवि किं रक्षेत्?
उत्तरम् :
सदाचारम्।
(ब) पूर्णवाक्येन उत्तरत
प्रश्न 1.
‘सूक्तयः’ इति पाठः कुतः गृहीतः?
उत्तरम् :
‘सूक्तयः’ इति पाठः तमिलभाषायाः ‘तिरुक्कुरल’ नामकग्रन्थात् गृहीतः।
प्रश्न 2.
तिरुशब्दः कस्य वाचकः अस्ति?
उत्तरम् :
तिरुशब्दः श्रीवाचकः अस्ति। प्रश्न 3. पिता पुत्राय बाल्ये किं यच्छति?
उत्तरम् :
पिता पुत्राय बाल्ये महत् विद्याधनं यच्छति।
प्रश्न 4.
महात्मानः समत्वं किं कथ्यते?
उत्तरम् :
यदि यथा चित्ते अवक्रता तथा वाचि भवेद्, तत् महात्मानः समत्वं कथ्यते।
प्रश्न 5.
कः पक्वं फलं परित्यज्य अपक्वं फलं भुङ्क्ते ?
उत्तरम् :
यः विमूढधीः धर्मप्रदां वाचं परित्यज्य परुषां वाचं वदति सः पक्वं फलं परित्यज्य अपक्वं फलं भुङ्क्ते।
प्रश्न 6.
लोकेऽस्मिन् के चक्षुष्मन्तः प्रकीर्तिताः?
उत्तरम् :
लोकेऽस्मिन् विद्वांसः एव चक्षुष्मन्तः प्रकीर्तिताः।
प्रश्न 7.
विवेकः कः कथ्यते?
उत्तरम् :
येन केनापि यत् प्रोक्तं तस्य येन तत्त्वार्थ निर्णयः क्रियते, सः विवेकः कथ्यते।
प्रश्न 8.
कीदृशः मन्त्री केनापि प्रकारेण शत्रुभिः न परिभूयते?
उत्तरम् :
वाक्पटुः, धैर्यवान्, सभायामपि अकातरश्च मन्त्री केनापि प्रकारेण शत्रुभिः न परिभूयते।
प्रश्न 9.
कः परेभ्यः कदापि च अहितं न कुर्यात् ?
उत्तरम् :
यः आत्मनः श्रेयः प्रभूतानि सुखानि च इच्छति, स: परेभ्यः कदापि च अहितं न कुर्यात्।
प्रश्न 10.
‘आचार: परमोधर्मः’ इति केषां वचः?
उत्तरम् :
इति विदुषां वचः।
अन्वय-लेखनम्
मञ्जूषात; पदानि चित्वा अधोलिखितश्लोकानाम् अन्वयं पूरयत
(i) पिता यच्छति …………………. कृतज्ञता॥
अन्वयः – पिता बाल्ये (i) …………….. महत् (ii) ………….. यच्छति। अस्य (iii) …………… किं तपः तेपे’ इति तत्कृतज्ञता॥
मञ्जूषा :
पिता, पुत्राय, उक्तिः , विद्याधनं।
उत्तरम् :
(i) पुत्राय, (ii) विद्याधनं, (iii) पिता, (iv) उक्तिः।
(ii) अवक्रता यथा चित्ते …………… तथ्यतः॥
अन्वयः – यथा (i) ………. (अवक्रता भवेत्) तथा वाचि यदि (ii) ……….. भवेत्, तदेव (iii) ………… तथ्यतः (iv) …………. इति आहुः।
मञ्जूषा :
महात्मानः, चित्ते, समत्वम, अवक्रता
उत्तरम् :
(i) चित्ते, (ii) अवक्रता, (iii) महात्मानः (iv) समत्वम्।
(iii) त्यक्त्वा धर्मप्रदां …………………………. विमूढधीः॥
अन्वयः – यः (i) …………….. वाचं त्यक्त्वा (ii) …………… (वाचम्) अभ्युदीरयेत्, (सः) (iii) ………. पक्वं फलं (iv) …………… अपक्वं (फलं) भुङ्क्ते।
मञ्जूषा :
विमूढधीः, धर्मप्रदां, परित्यज्य, परुषाम्
उत्तरम् :
(i) धर्मप्रदां, (ii) परुषाम्, (iii) विमूढधीः, (iv) परित्यज्य।
(iv) विद्वांस एव लोके ………………………………… चक्ष मनी मते॥
अन्वयः – अस्मिन् लोके (i) ……………. एव (ii) ………… प्रकीर्तिताः। अन्येषां (iii) …………… ये चक्षुः (स्तः) ते तु (iv) ……………. मते ॥
मञ्जूषा :
वदने, विद्वांसः, नामनी, चक्षुष्मन्तः
उत्तरम् :
(i) विद्वांसः, (ii) चक्षुष्मन्तः, (iii) वदने, (iv) नामनी।
(v) यत् प्रोक्तं येन केनापि …………………. विवेक इतीरितः॥
अन्वयः-येन केनापि यत् (i) ……………, तस्य (ii) …………. येन कर्तुं (iii) …………….. भवेत्, सः (iv) …………… इति ईरितः।
मञ्जूषा :
शक्यः, प्रोक्तम्, विवेकः, तत्त्वार्थनिर्णयः।
उत्तरम् :
(i) प्रोक्तम्, (ii) तत्त्वार्थनिर्णयः, (iii) शक्यः, (iv) विवेकः।
(vi) वाक्पटुधैर्यवान् ………………………. परिभूयते॥
अन्वयः – (यः) मन्त्री वाक्पटुः, (i) …………, सभायाम् अपि (ii) ………. (भवति), सः (iii) …………. प्रकारेण परैः न (iv) …………
मञ्जूषा :
| केनापि, धैर्यवान्, परिभूयते, अकातरः।
उत्तरम् :
(i) धैर्यवान्, (ii) अकातरः, (iii) केनापि, (iv) परिभूयते।
(vii) य इच्छत्यात्मनः ………………….. कदापि च॥
अन्वयः – य: (i) श्रेयः प्रभूतानि (ii) ……………. च इच्छति, सः (iii) ……… कदापि च (iv) ………. कर्म न कुर्यात्।
मञ्जूषा :
परेभ्यः, आत्मनः, अहितं, सुखानि
उत्तरम् :
(i) आत्मनः, (ii) सुखानि, (iii) परेभ्यः, (iv) अहितं।
(viii) आचार: प्रथमो धर्मः ……………………… विशेषतः॥
अन्वयः – आचार: (i) ………….. धर्मः, इत्येतद् (ii) ………. वचः (अस्ति)। तस्मात् (iii) ………. प्राणेभ्योऽपि (iv) ………….. रक्षेत्।।
मञ्जूषा :
विशेषतः, प्रथमः, सदाचारं, विदुषां
उत्तरम् :
(i) प्रथमः, (ii) विदुषां, (iii) विशेषतः, (iv) सदाचारं।
प्रश्न-निर्माणम् :
रेखाङ्कितपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत –
1. पिता बाल्ये पुत्राय विद्याधनं यच्छति।
2. अस्य पिता तपः तेपे।
3. चित्ते वाचि च अवक्रता भवेत्।
4. तदेव महात्मानः समत्वं कथयन्ति।
5. मुर्खजनः धर्मप्रदां वाचं त्यक्त्वा परुषां वदति।
6. विमूढधीः अपक्वं फलं खादति।
7. लोके विद्वांसः एव चक्षुष्यमन्तः कथ्यन्ते।
8. विवेकेन तत्त्वार्थस्य निर्णयः भवति।
9. धैर्यवान् मन्त्री सभायां निर्भीकः भवति।
10. सः परैः न परिभूयते।
11. सः आत्मकल्याणम् इच्छति।
12. कदापि परेभ्यः अहितं कर्म न कुर्यात्।
13. आचारः प्रथमो धर्मः।
14. सदैव सदाचारं रक्षेत्।
15. सः प्रभूतानि सुखानि इच्छति।
उत्तरम् :
प्रश्ननिर्माणम्
1. पिता बाल्ये पुत्राय किं यच्छति?
2. कस्य पिता तपः तेपे?।
3. चित्ते वाचि च का भवेत् ?
4. तदेव के समत्वं कथयन्ति?
5. मूर्खजनः धर्मप्रदां वाचं त्यक्त्वा कां वदति?
6. कः अपक्वं फलं खादति?
7. लोके के एव चक्षुष्मन्तः कथ्यन्ते?
8. विवेकेन कस्य निर्णयः भवति?
9. धैर्यवान् मन्त्री सभायां कीदृशः भवति?
10. स: कैः न परिभूयते?
11. कः आत्मकल्याणम् इच्छति?
12. कदापि केभ्यः अहितं कर्म न कुर्यात् ?
13. कः प्रथमो धर्मः?
14. सदैव किं रक्षेत्?
15. सः प्रभूतानि कानि इच्छति?
शब्दार्थ-चयनम्-
अधोलिखितवाक्येषु रेखाङ्कितपदानां प्रसङ्गानुकूलम् उचितार्थं चित्वा लिखत –
प्रश्न 1.
यः इच्छत्यात्मनः श्रेयः प्रभूतानि सुखानि च।
(क) बहूनि
(ख) प्रभावपूर्णानि
(ग) पञ्चभूतानि
(घ) प्रतापानि
उत्तरम् :
(क) बहूनि
प्रश्न 2.
पिता यच्छति पुत्राय। –
(क) स्नेहं करोति
(ख) सत्करोति
(ग) क्रुध्यति
(घ) ददाति
उत्तरम् :
(घ) ददाति
प्रश्न 3.
अवक्रता यथाचित्ते तथा वाचि भवेत्।
(क) मनसि
(ख) वाण्याम्
(ग) शरीरे
(घ) मुखे
उत्तरम् :
(ख) वाण्याम्
प्रश्न 4.
परित्यज्य फलं पक्वं भुङ्क्तेऽपक्वं विमूढधीः।
(क) बुद्धिमान्
(ख) विद्वान्
(ग) मूर्खः
(घ) पण्डितः
उत्तरम् :
(ग) मूर्खः
प्रश्न 5.
विद्वांस एव लोकेऽस्मिन् चक्षुष्मन्तः प्रकीर्तिताः।
(क) बुद्धिमन्तः
(ख) नेत्रवन्तः
(ग) प्राणवन्तः
(घ) धनवन्तः
उत्तरम् :
(ख) नेत्रवन्तः
प्रश्न 6.
अन्येषां वदने ये तु ते चक्षुर्नामनी मते। –
(क) गृहे
(ख) शरीरे
(ग) मस्तके
(घ) मुखे
उत्तरम् :
(घ) मुखे
प्रश्न 7.
वाक्पटुधैर्यवान् मन्त्री सभायामपि अकातरः।
(क) कृतघ्नः
(ख) साहसी
(ग) विवेकशीलः
(घ) पराजितः
उत्तरम् :
(ख) साहसी
प्रश्न 8.
आचारः प्रथमो धर्मः।
(क) परोपकारः
(ख) दुराचारः
(ग) अत्याचारः
(घ) सदाचारः
उत्तरम् :
(घ) सदाचारः
प्रश्न 9.
स केनापि प्रकारेण परैर्न परिभूयते।
(क) पराजयते
(ख) पुरस्क्रीयते
(ग) अवमान्यते
(घ) विजयते
उत्तरम् :
(ग) अवमान्यते
प्रश्न 10.
वाचं परुषां योऽभ्युदीरयेत्।
(क) कठोराम्
(ख) कोमलाम्
(ग) मधुराम्
(घ) भूषिताम्
उत्तरम् :
(क) कठोराम्।