RBSE Class 10 Sanskrit रचनात्मक कार्यम् वाक्य निर्माणम्
RBSE Class 10 Sanskrit रचनात्मक कार्यम् वाक्य निर्माणम्
RBSE Class 10 Sanskrit रचनात्मक कार्यम् वाक्य निर्माणम्
कक्षा – दशम् के नवीन पाठ्यक्रम के अनुसार संस्कृत में वाक्य-प्रयोग करना निर्धारित है। इनके अन्तर्गत शब्द रूप, धातु रूप, अव्यय, सर्वनाम, कारक, प्रत्यय आदि से सम्बन्धित पद आते हैं। इनका वाक्य-प्रयोग करने के लिए व्याकरण का ज्ञान आवश्यक है, जो आगे दिया गया है। अत: वाक्य – निर्माण करने के लिए इस पास – बुक में दिये गये शब्द रूप, धातु रूप, कारक, प्रत्यय व अनुवाद के नियमों को ध्यान में रखना चाहिए। यहाँ अभ्यासार्थ महत्त्वपूर्ण पद एवं उनके वाक्य-प्रयोग दिए जा रहे हैं।
पद एवं उनके वाक्य-प्रयोग :
अजन्तशब्दाधारितवाक्यानाम् निर्माणम् –
- गिरिः – हिमालयः श्रेष्ठः गिरिः।
- विष्णुः – विश्वस्य पालक: विष्णुः।
- भ्राता – श्यामः रमेशस्य भ्राता।
- लता – उद्याने शोभते लता।
- देवी – सरस्वती विद्यायाः देवी।
- धेनुः – नन्दिनी वसिष्ठस्य धेनुः।
- वारि – आकाशात वारि पतति।
- अश्रुः – बालकस्य नेत्राभ्याम् एकैकम् अश्रुः पतति।
हलन्तशब्दाधारितवाक्यानाम् निर्माणम् –
- वणिक् – वणिक वाणिज्यं करोति
- श्रद्धावान – श्रद्धावान् ज्ञानं लभते।
- योगिन् – योगी तपः आचरति।
- वाक् – वाक् मधुरा अस्ति।
- योषित् – योषितः दूरदर्शनं पश्यन्ति।
- सरित् – सरितः वहन्ति।
- चक्षुष् – काणस्य एकं चक्षुः।
- महत् – रोगिसेवा महत् कार्यं भवति।
पदाधारितवाक्यानां निर्माणम्
- कपिम् – छात्राः कपिं पश्यन्ति।
- राजानं – सभासदः राजानं पश्यन्ति।
- पाणिना – बालकः पाणिना खादति।
- मन्त्रिणा – राजा मन्त्रिणा सह वार्ता करोति।
- धेनवे – स्वामी धेनवे ग्रासं ददाति।
- विदुषे – राजा विदुषे ग्रन्थं ददाति।
- गिरेः – गिरेः नदी प्रवहति।
- आत्मनः – आत्मनः शरीरं भिन्नम।
- पितुः – रमेशः पितुः समीपे तिष्ठति।
- राज्ञः – राज्ञः वचनं पालनीयम्।
- द्रोण्यां – द्रोण्यां जलम् अस्ति।
- आत्मनि – आत्मनि गुणाः भवन्ति।
- गुरो – गुरो! मां पाठयतु।
- रमे – रमे! मम साहाय्यं कुरु?
सर्वनामशब्दाधारितवाक्या
- एषः – एषः बालकः अस्ति।
- एषा – एषा मम भगिनी।
- एतत् – एतत् मम पुस्तकम्।
- भवान – भवान् कुत्र वसति?
- भवती – भवती अध्यापिका अस्ति।
- मम – मम अयं विचारः अस्ति।
- त्वया – त्वया सह गमिष्यामि।
- यूयं – यूयं संस्कृतं पठत।
- अयम् – अयम् मम पुत्रः अस्ति।
- सः – सः बालकः अस्ति।
अव्ययाधारितवाक्यानाम् निर्माणम्
- प्रातः – प्रातः भ्रमणं कर्त्तव्यम्।
- सदा – बटुः सदा पठति।
- उच्चैः – सिंह: उच्चैः गर्जति।
- शनैः – गजः शनैः चलति।
- वा – रामः कृष्णः वा आगच्छतु।
- समया – ग्रामं समया नदी वहति।
- एकदा – राजा एकदा मृगम् अपश्यत्।
- पृथक् – बालिकानां कृते पृथक् छात्रावासव्यवस्था वर्तते।
- क्वचित् – दुर्जना: क्वचित् क्षमाशीलाः भवन्ति।
- प्रभृतिः – अहं बाल्यकालात् प्रभृतिः अत्र वसामि।
- खादित्वा – सीता मोदकं खादित्वा जलं पिबति।
- उपविश्य – अतिथिः आसन्दे उपविश्य जलं पिबति।
- प्रवेष्टुम् – मूषक: बिलं प्रवेष्टुम् शक्नोति।
- इदानीं – इदानीं वृष्टिः भवति।
- तत्र – तत्र अहं न गतवान्।
- ह्यः – ह्यः रविवासरः आसीत।
- श्वः – श्व: मंगलवासरः भविष्यति।
- सकृद् – रामः सकृद् एव बाणं प्रयुङ्क्ते।
उपसर्गाधारितवाक्यानाम् निर्माणम्
- अधिवसति – शिवः कैलासम् अधिवसति।
- अपकरोति – दुर्जनः सदा अपकरोति।
- प्रत्यागच्छति – बालकः गृहं प्रत्यागच्छति।
- प्रभवति – हिमालयात् गङ्गा प्रभवति।
- संहरति – राजा शत्रून् संहरति।
अन्य महत्त्वपूर्ण संस्कृत – शब्दों का वाक्य-प्रयोग
निर्देश – सर्वप्रथम हमें दिए हुए पद का अर्थ जानकर हिन्दी में छोटा – सा वाक्य सोचना चाहिए। तत्पश्चात् उस वाक्य का संस्कृत में अनुवाद करना चाहिए। अनुवाद करते समय यह ध्यान रखें कि जिस पद का प्रयोग करना है, वह पद उसी रूप में वाक्य के अन्तर्गत आना चाहिए। यहाँ विभिन्न प्रकार के पदों के प्रयोग अभ्यासार्थ दिए जा रहे हैं। छात्र व्याकरण के नियमों को जानते हुए वाक्य बनाने का अभ्यास करें।
कारक सम्बन्धी पदों का प्रयोग :
धिक्, प्रति, विना – धिक् (धिक्कार है), प्रति (ओर या तरफ), विना (बिना) पदों का प्रयोग करने पर इन पदों का सम्बन्ध जिस शब्द से हो उसमें द्वितीया विभक्ति आती है। ‘विना’ में द्वितीया, तृतीया तथा पंचमी तीनों में से कोई भी विभक्ति का प्रयोग किया जा सकता है। जैसे –
पद – वाक्य-प्रयोग :
- धिक – धिक् दुर्जनम्। (दुष्ट व्यक्ति को धिक्कार है।)
- प्रति – बालक: विद्यालयं प्रति गच्छति। (बालक विद्यालय की ओर जाता है।)
- विना – धनं विना जीवनं व्यर्थमस्ति। (धन के बिना जीवन व्यर्थ है।) यहाँ ‘धनम्’ की जगह तृतीया में ‘धनेन’ तथा पंचमी का ‘धनात्’ पद का प्रयोग भी किया जा सकता है।
सह, अलम् – सह (साथ), अलम् (बस या पर्याप्त) पदों के प्रयोग में तृतीया विभक्ति प्रयुक्त होती है। जैसे –
- सह – पुत्रः पित्रा सह गच्छति। (पुत्र पिता के साथ जाता है।)
- रमेश: मया सह पठति। (रमेश मेरे साथ पढ़ता है।)
- बालकाः मित्रैः सह क्रीडन्ति। (बालक मित्रों के साथ खेलते हैं।)
- अलम् – अलं विवादेन। (विवाद करना बस करो या विवाद मत करो।)
नमः, स्वस्ति, दा ( यच्छ), कुथ् – नमः (नमस्कार है), स्वस्ति (कल्याण हो), दा (यच्छ्) देना अर्थ की धातु के साथ जिसको कुछ दिया जावे उस व्यक्तिवाचक शब्द में तथा ‘क्रुध्’ धातु के योग में जिस पर क्रोध किया जावे उस शब्द में चतुर्थी विभक्ति प्रयुक्त होती है। जैसे –
- नमः – गरवे नमः। (गुरु के लिए नमस्कार है।)
- स्वस्ति – छात्राय स्वस्ति। (छात्र का कल्याण हो।)
- दाण (यच्छ) – नृपः याचकाय धनं ददाति। (राजा भिखारी को धन देता है।)
- धनिकः – निर्धनेभ्यः धनं प्रयच्छति। (धनवान् निर्धनों को धन देता है।)
- क्रुध् – दुर्जनः सज्जनाय क्रुध्यति। (दुष्ट व्यक्ति सज्जन पर क्रोध करता है।)
- पिता – पुत्राय क्रुध्यति। (पिता पुत्र पर क्रोध करता है।)
तरप् – ‘तरप्’ प्रत्यय युक्त पद का प्रयोग करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि ‘तरप्’ प्रत्यय का प्रयोग दो की तुलना करने में होता है तथा जिस शब्द से तुलना की जावे, उस शब्द में ‘तरप्’ प्रत्यय जुड़ता है तथा जिस व्यक्ति या वस्तु की तुलना की जाती है उसमें पंचमी विभक्ति आती है। जैसे –
- रमेशः सोहनात चतुरतरः। (रमेश सोहन से अधिक चतुर है।)
- गंगा यमुनायाः पवित्रतरा। (गंगा यमुना से अधिक पवित्र है।)
- इदं फलम तस्मात् फलात मधुरतरम। (यह फल उस फल से अधिक मीठा है।)
तमप् – ‘तमप्’ प्रत्यय युक्त पद का प्रयोग बहुतों में से एक की तुलना करने में किया जाता है। इसमें तुलनावाची विशेषण पद में तमप् प्रत्यय जोड़ा जाता है तथा जिन व्यक्तियों या वस्तुओं से तुलना की जाती है, उस समूह वाचक शब्द में षष्ठी या सप्तमी विभक्ति के बहुवचन का प्रयोग किया जाता है। जैसे –
- अयं बालकः सर्वेषु बालकेषु कुशलतमः। (सप्तमी विभक्ति) (यह बालक सभी बालकों में सबसे अधिक कुशल है।)
- हिमालयः पर्वतानां उच्चतमः। (षष्ठी विभक्ति) (हिमालय पर्वतों में सबसे ऊँचा है।)
- गंगा नदीषु पवित्रतमा। (सप्तमी विभक्ति) (गंगा नदियों में सबसे अधिक पवित्र है।)
- कविता बालिकानां श्रेष्ठतमा। (षष्ठी विभक्ति) (कविता बालिकाओं में सबसे श्रेष्ठ है।)
- सर्वेषु भ्रातृषु मोहनः चतुरतमः। (सप्तमी विभक्ति) (सभी भाइयों में मोहन चतुर है।)
अन्य प्रत्ययों का प्रयोग :
‘कर’ या ‘करके’ अर्थ में ‘क्त्वा’ प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है। इसमें ‘त्वा’ शेष रहता है। जैसे पठित्वा (पढ़कर), गत्वा (जाकर), हसित्वा (हँसकर), द्रष्ट्वा (देखकर) आदि। वाक्य-प्रयोग में प्रत्यय युक्त पद दिया रहता है, जिसका प्रयोग करना होता है। जैसे –
- ‘पठित्वा’ पद का प्रयोग – छात्रः अत्र पठित्वा गच्छति। (छात्र यहाँ पढ़कर जाता है।)
- ‘दृष्ट्वा’ पद का प्रयोग – सः उद्यानं द्रष्ट्वा गच्छति। (वह बाग देखकर जाता है।)
- ‘गत्वा’ पद का प्रयोग – छात्र: विद्यालयं गत्वा पठति। (छात्र विद्यालय जाकर पढ़ता है।)
- ‘क्रीडित्वा’ पद का प्रयोग – बालकाः अत्र क्रीडित्वा गमिष्यन्ति। (बालक यहाँ खेलकर जायेंगे।)
इसी प्रकार अन्य प्रत्यय युक्त पदों का प्रयोग किया जा सकता है।
यदि किसी पूर्वकालिक क्रिया अर्थात् ‘कर’ या ‘करके’ अर्थ वाली क्रिया में उपसर्ग जुड़ा हुआ हो तो वहाँ ‘ल्यप’ प्रत्यय का प्रयोग होता है। क्त्वा प्रत्यय उपसर्ग रहित क्रिया में ही जुड़ता है, जबकि ल्यप् प्रत्यय उपसर्गयुक्त क्रिया में ही जोड़ा जाता है। जैसे –
- आगत्य – रामः अत्र आगत्य पठति। (राम यहाँ आकर पढ़ता है।)
- विहस्य – सविता विहस्य वदति। (सविता हँसकर बोलती है।) निर्गत्यं
- गंगा हिमालयात् निर्गत्य आगच्छति। (गंगा हिमालय से निकलकर आती है।)
- प्रणम्य – सेवकः प्रणम्य अवदत्। (सेवक प्रणाम करके बोला।)
- उपगम्य – सुरेशः तत्र उपगम्य अवदत्। (सुरेश वहाँ जाकर बोला।)
- अवलोक्य – बालक: चित्रम् अवलोक्य हसति। (बालक चित्र देखकर हँसता है।)
अव्यय पदों का प्रयोग :
स्वरचित वाक्य-प्रयोग हेतु दिए गए पदों में एक अव्यय का प्रयोग करने को भी आता है। इनका विस्तृत विवेचन ‘अव्यय – प्रकरण’ में किया गया है। यहाँ इनके वाक्य-प्रयोग हेतु अभ्यासार्थ कुछ उदाहरण दिए जा रहे हैं –
अव्यय – वाक्य-प्रयोग :
- खलु (निश्चय ही) – गोपालः खलु धनिकः वर्तते। (गोपाल निश्चय ही धनवान् है।)
- चिरम् (देर तक, दीर्घकाल तक) – मोहनः चिरं जीवतु। (मोहन लम्बे समय तक जीवित रहे।)
- च (और) – रामः लक्ष्मणः च पठतः। (राम और लक्ष्मण पढ़ते हैं।)
- एव (ही) – रमेश: एव अत्र क्रीडति। (रमेश ही यहाँ खेलता है।)
- एवम् (ऐसा, इस प्रकार) – सः एवम् अवदत्। (वह इस प्रकार बोला।)
- प्रातः (सुबह) – बालकाः प्रात: विद्यालयं गच्छन्ति। (बालक सुबह विद्यालय जाते हैं।)
- अपि (भी) – त्वम् अपि तत्र गच्छ। (तुम भी वहाँ जाओ।)
- अधुना (अब) – जनाः अधुना आगमिष्यन्ति। (लोग अब आयेंगे।)
इसी प्रकार अन्य अव्ययों का प्रयोग किया जा सकता है। यहाँ कुछ प्रमुख अव्ययों के ही वाक्य-प्रयोग दिए गए हैं।
संज्ञा – शब्दों का प्रयोग :
स्वरचित वाक्य-प्रयोग हेतु एक संज्ञा शब्द भी दिया जाता है। संज्ञा शब्द का प्रयोग करते समय इनमें प्रयुक्त विभक्ति तथा वचन को देखकर एवं तदनुसार अर्थ जानकर वाक्य में प्रयोग करना चाहिए। संज्ञा – शब्द प्रथम पुरुष के अन्तर्गत ही आते हैं, अत: उनके साथ प्रथम पुरुष की ही क्रिया काम में ली जाती है। यहाँ अभ्यासार्थ कुछ संज्ञा शब्दों का वाक्य-प्रयोग दिया जा रहा है –
शब्द – वाक्य-प्रयोग :
- बालकान् (द्वि. बहु.) – अध्यापकः बालकान् पाठयति। (अध्यापक बालकों को पढ़ाता है।)
- पित्रा (तृ. एक.) – पुत्रः पित्रा सह गच्छति। (पुत्र पिता के साथ जाता है।)
- गुरवे (च. एक.) – गुरवे नमः। (गुरु के लिए नमस्कार है।)
- भूमौ (स. एक.) – वृक्षात् पत्राणि भूमौ पतन्ति। (वृक्ष से पत्ते भूमि पर गिरते हैं।)
- धेनूनाम् (ष. बहु.) – बालकाः धेनूनाम् दुग्धं पिबन्ति। (बालक गायों का दूध पीते हैं।)
- हरिम् (द्वि. एक.) – भक्ताः हरिम् भजन्ति। (भक्त हरि का भजन करते हैं।)
- पुस्तकानि (द्वि. बहु.) – छात्राः पुस्तकानि पठन्ति। (छात्र पुस्तकें पढ़ते हैं।)
- ऋषयः (प्रथमा बहु.) – ऋषयः वने निवसन्ति। (ऋषि लोग वन में निवास करते हैं।)
- पाठाः (प्रथमा बहु.) – मम पुस्तके पञ्चविंशः पाठाः सन्ति। (मेरी पुस्तक में पच्चीस पाठ हैं।)
- रमायाः (प./ष. बहु.) – इदं पुस्तकं रमायाः अस्ति। (यह पुस्तक रमा की है।)
- बालिकायै (च./एक.) – सः बालिकायै पुष्पं ददाति। (वह बालिका को पुष्प देता है।)
- मातुः (ष./एक.) – तव मातुः किं नाम अस्ति? (तुम्हारी माता का क्या नाम है ?)
- पितुः (षष्ठी/ एक.) – इदं मम पितुः गृहं वर्तते। (यह मेरे पिता का घर है।)
- मित्रेण (तृ./एक.) – गोपालः मित्रेण सह पठति। (गोपाल मित्र के साथ पढ़ता है।)
- छात्रेभ्यः (च./बहु.) – स: छात्रेभ्यः पुस्तकानि ददाति। (वह छात्रों को पुस्तकें देता है।)
सर्वनाम शब्दों का प्रयोग :
शब्द – वाक्य-प्रयोग :
- मम (अस्मद्, ष. एक.) – अयं मम विद्यालयः अस्ति। (यह मेरा विद्यालय है।)
- माम् (अस्मद्, द्वि. एक.) – सः माम् आह्वयति। (वह मुझको बुलाता है।)
- मया (अस्मद्, तृ. एक.) – रामः मया सह पठति। (राम मेरे साथ पढ़ता है।)
- अस्मभ्यम् (अस्मद्, च. बहु.) – सुरेशः अस्मभ्यम् पुस्तकानि यच्छति। (सुरेश हमारे लिए पुस्तकें देता है।)
- अस्माकम् (अस्मद्, ष. बहु.) – इदम् अस्माकं नगरं वर्तते। (यह हमारा नगर है।)
- आवाम् (अस्मद्, प्र./द्वि. द्विवचन) – आवां पुस्तकं पठावः। (हम दोनों पुस्तक पढ़ते हैं।)
- आवयोः (अस्मद्, ष./स. द्विवचन) – इदम् आवयोः पुस्तकम्। (यह हम दोनों की पुस्तक है।)
- युवाम् (युष्मद्, प्र., द्वि. द्विवचन) – युवां कुत्र गच्छथः ? (तुम दोनों कहाँ जाते हो?)
- त्वया (युष्मद्, तृ. एक.) – मोहनः त्वया सह क्रीडति। (मोहन तुम्हारे साथ खेलता है।)
- तुभ्यम् (युष्मद्, च. एक.) – तुभ्यम् नमः। (तुम्हें नमस्कार है।) तव (युष्मद्, षष्ठी एक)
- इंदं तव पुस्तकम् अस्ति। (यह तुम्हारी पु युष्माकम् (युष्मद् ष. एक.) – युष्माकं विद्यालये अहमपि पठामि। (तुम्हारे विद्यालय में मैं भी पढ़ता हूँ।)
- सः (तत्, पु., प्र. एक.) – स: विद्यालयं गच्छति। (वह विद्यालय जाता है।)
- तानि (तत्, नपुं., प्र. द्वि. द्विवचन) – तानि फलानि आनय। (उन फलों को लाओ।)
- तस्मै (तत्, पु., च. एक.) – तस्मै गुरवे नमः। (उन गुरु के लिए नमस्कार है।)
- तस्मिन् (तत्, पु., स. एक.) – तस्मिन् विद्यालये सः पठति। (उस विद्यालय में वह पढ़ता है।)
- एतान् (एतत्, पु., द्वि. बहु.) – एतान् छात्रान् अत्र आनय। (इन छात्रों को यहाँ लाओ।)
- सर्वेषु (सर्व, पु., स. बहुवचन) – हिमालयः सर्वेषु पर्वतेषु उच्चतमः। (हिमालय सभी पर्वतों में सबसे ऊँचा है।)
- सर्वाः (सर्व, स्त्री., प्र. बहुवचन) – सर्वाः बालिकाः पठन्ति। (सभी बालिकाएँ पढ रही हैं।)
- सर्वे (प्र./बहु.) – सर्वे बालकाः गृहं गच्छन्ति। (सभी बालक घर जा रहे हैं।)
- किम् (प्र./एक.) – रामः तत्र किम् करोति? (राम वहाँ क्या कर रहा है?)
- यूयम् (युष्मद्/प्र./बहु.) – यूयं कुत्र पठथ ? (तुम सब कहाँ पढ़ते हो?)
नोट – इसी प्रकार अन्य सर्वनाम शब्दों का प्रयोग करने का छात्र अभ्यास करें। सर्वनाम शब्दों के प्रयोग करते समय यह ध्यान रखें कि अस्मद् शब्द के कर्ता (प्रथमा विभक्ति) के साथ क्रिया उत्तम पुरुष की होगी तथा युष्मद् शब्द के कर्ता – त्वम्, युवाम्, यूयम् के साथ क्रिया मध्यम पुरुष की लगेगी। अन्य सभी सर्वनाम शब्दों के कर्ता में तथा भवान, भवन्तौ, भवन्तः, भवती (आप) शब्दों के साथ प्रथम पुरुष की क्रिया लगेगी।
धातु (क्रिया) पदों के प्रयोग परीक्षा में स्वरचित संस्कृत – वाक्यों के अन्तर्गत एक क्रियापद का प्रयोग भी कराया जाता है। इसके लिए धातुओं के पाँचों लकारों के रूप कण्ठस्थ होने चाहिए। क्रियापदों का स्वरचित संस्कृत – वाक्यों में प्रयोग करते समय पुरुष व वचन का विशेष ध्यान रखना चाहिए। क्रिया जिस पुरुष व वचन की हो, उसके साथ उसी पुरुष व वचन का कर्ता जोड़ देना चाहिए। यहाँ अभ्यासार्थ कुछ क्रियापदों के स्वरचित संस्कृत – वाक्यों में प्रयोग दिए जा रहे हैं। छात्र इसी तरह अन्य क्रियापदों का प्रयोग करते हुए स्वरचित संस्कृत – वाक्य बनाने का अभ्यास करें।
क्रियापद – वाक्य-प्रयोग :
- अस्मि (अस्, लट्, उ. पु., एक.) – अहम् अत्र अस्मि। (मैं यहाँ हूँ।)
- आसन् (अस्, लङ् प्र. पु., बहु.) – बालकाः कक्षायाम् आसन्। (बालक कक्षा में थे।)
- सन्तु (अस्, लोट्, प्र. पु., बहु.) – सर्वे निरामयाः सन्तु। (सभी नीरोग होवें।)
- भविष्यन्ति (अस्, भ, लट्, प्र. पु., बहु.) – बालकाः उत्तीर्णाः भविष्यन्ति। (बालक उत्तीर्ण होंगे।)
- कुर्वन्ति (कृ, लट्, प्र. पु., बहु.) – छात्राः गृहकार्यं कुर्वन्ति। (छात्र गृहकार्य करते हैं।)
- द्रक्ष्यसि (दृश, लट्, म. पु., एक.) – त्वम् किम् द्रक्ष्यसि? (तुम क्या देखोगे?)
- पास्यति (पिब्, लुट्, प्र. पु., एक.) – धेनुः जलं पास्यति। (गाय जल पीयेगी।)
- अगच्छन् (गम्, लङ्, प्र. पु., बहु.) – तत्र छात्राः अगच्छन्। (वहाँ छात्र जा रहे थे।)
- अपतत् (पत्, लङ् प्र. पु., एक.) – सोहनः अश्वात् अपतत्। (सोहन घोड़े से गिर पड़ा।)
- स्मरति (स्मृ, लट्, प्र. पु., एक.) – बालकः स्वपाठं स्मरति। (बालक अपना पाठ याद करता है।)
- दास्यन्ति (दा, लुट्, प्र. पु., एक.) – धनिकाः अस्मभ्यम् रुप्यकाणि दास्यन्ति। (धनवान् हमें रुपये देंगे।)
- लिखिष्यामि (लिख, लट्, उ. पु, एक.) – अहं पत्रं लिखिष्यामि। (मैं पत्र लिखूगा।)
- पठन्तु (पठ्, लोट्, प्र. पु., बहु.) – छात्राः पुस्तकं पठन्तु। (छात्र पुस्तक पढ़ें।)
- पश्यन्ति (दृश्, लट्, प्र. पु., बहु.) – बालकाः चित्रं पश्यन्ति। (बालक चित्र देख रहे हैं।)
- कुर्यात् (कृ, विधिलिङ्, प्र. पु., एक.) – बालिका स्वकार्यं कुर्यात्। (बालिका को अपना काम करना चाहिए।)
- नेष्यामि (नी, लट्, उ. पु., एक.) – अहं त्वाम् गृहं नेष्यामि। (मैं तुमको घर ले जाऊँगा।)
- गच्छताम् (गम्, लोट्, प्र. पु., द्वि.) – तौ गृहं गच्छताम्। (वे दोनों घर जावें।)
- हसथ (हस्, लट्, म. पु., बहु.) – यूयम् हसथ। (तुम सब हँसते हो।)
- क्रुध्यन्ति (क्रुध्, लट्, प्र. पु., बहुवचन) – दुर्जनाः सज्जनेभ्यः क्रुध्यन्ति। (दुर्जन सज्जनों पर क्रोध करते हैं।)
- वर्तते (व, लट्, प्र. पु., एकवचन) – तव समीपं मम पुस्तकं वर्तते। (तुम्हारे पास मेरी पुस्तक है।)
- लभते (भ, लट्, प्र. पु., एकवचन) – गुरुसेवया ज्ञानं लभते। (गुरु की सेवा से ज्ञान मिलता है।)
- पश्यन्तु (दृश्, लोट्, प्र. पु., बहु.) – बालकाः चित्रं पश्यन्तु। (बालक चित्र देखें।)
- वद (वद्, लोट्, म. पु., एक.) – त्वं सत्यं वद। (तुम सत्य बोलो।)
अभ्यासार्थ प्रश्नोत्तर :
निम्नलिखितशब्दाधारितवाक्यानां निर्माणं कुरुत – (केचन त्रयाणाम्)
प्रश्न 1.
(क) तत्र
(ख) सह
(ग) गत्वा
(घ) आवाम्
(ङ) धेनुः।
उत्तरम् :
(क) तत्र – तत्र बालकाः क्रीडन्ति।
(ख) सह – रमेशः मया सह पठति।
(ग) गत्वा – बालकः तत्र गत्वा पठिष्यति।
(घ) आवाम् – आवां गृहं गच्छावः।
(ङ) धेनु: – अत्र धेनुः विचरति।
प्रश्न 2.
(क) वयम्
(ख) पठन्ति
(ग) परितः
(घ) कविषु
(ङ) प्रातः।
उत्तरम् :
(क) वयम् – वयं गृहं गच्छामः।
(ख) पठन्ति – छात्राः पुस्तकं पठन्ति।
(ग) परितः – विद्यालयं परितः वृक्षाः सन्ति।
(घ) कविषु – कविषु कालिदासः श्रेष्ठतमः वर्तते।
(ङ) प्रातः – अत्रः जनाः प्रातः भ्रमणं कुर्वन्ति।
प्रश्न 3.
(क) कुशलतमः
(ख) अयम्
(ग) भ्रमन्ति
(घ) अपि।
उत्तरम् :
(क) कुशलतमः – मोहनः सर्वेषु बालकेषु कुशलतम् वर्तते।
(ख) अयम् – अयम् मम विद्यालयः अस्ति।
(ग) भ्रमन्ति – बालकाः क्रीडाक्षेत्र भ्रमन्ति।
(घ) अपि – रामः अपि मया सह पठति।
प्रश्न 4.
(क) ददाति
(ख) गुरवे
(ग) पातुम्
(घ) तस्य।
उत्तरम् :
(क) विद्या विनयं ददाति।
(ख) गुरवे नमः।
(ग) सः जलं पातुम् इच्छति।
(घ) मोहनः तस्य पुत्रः वर्तते।
प्रश्न 5.
(क) इमानि
(ख) देशस्य
(ग) गत्वा
(घ) अपठन्
(ङ) शनैः
उत्तरम् :
(क) बालकाः इमानि फलानि खादन्ति।
(ख) वीराः देशस्य रक्षां कुर्वन्ति।
(ग) मोहनः गृहं गत्वा पठति।
(घ) अत्र छात्राः अपठन्।
(ङ) गजः शनैः चलति।
प्रश्न 6.
- अहम्
- पठितुम्
- खलु
- देशस्य
- सरित्।
उत्तरम् :
- अहं पुस्तकं पठामि।
- छात्राः पठितुम् अत्र आगच्छन्ति।
- ते खलु धनिकाः सन्ति।
- वीराः देशस्य रक्षां कुर्वन्ति।
- वनं निकषा सरित् वहति।
प्रश्न 7.
- प्रति
- सह
- मम
- तस्मै।
उत्तरम् :
- कृषक: ग्राम प्रति गच्छति।
- सोहनः मित्रेण सह पठति।
- अयं मम विद्यालयः अस्ति।
- सुरेशः तस्मै बालकाय धनं यच्छति।
प्रश्न 8.
- तौ
- देशस्य
- स्नातुम्
- तर्हि।
उत्तरम् :
- तौ – तौ विद्यालयं गच्छतः।
- देशस्य – अहं स्वदेशस्य सेवां करोमि।
- स्नातुम् – सोहन: स्नातुम् गच्छति।
- तर्हि – यदि त्वं आगमिष्यसि तर्हि अहं तत्र गमिष्यामि।
प्रश्न 9.
गन्तम, तस्य, अपि, गरो, सर्वतः।
उत्तरम् :
(क) जनाः गृहं गन्तुम् इच्छन्ति।
(ख) सः तस्य भ्राता अस्ति।
(ग) अहम् अपि पठामि।
(घ) गुरो! मां पाठयतु।
(ङ) ग्रामं सर्वतः वृक्षाः सन्ति।
प्रश्न 10.
सहते, अपि, नमन्ति, पितुः।
उत्तरम् :
(क) निर्धनः सर्वमपि कष्टं सहते।
(ख) मया सह त्वम् अपि पाठं पठ।
(ग) बालकाः विद्यालये शिक्षकान् नमन्ति।
(घ) तस्य पितुः नाम श्रीमनोजः वर्तते।
प्रश्न 11.
दातुं, अस्माकम्, पश्यन्ति, यथा।
उत्तरम् :
(क) दातुम् – राजा चौराय सुवर्णं दातुम् आदिशति।
(ख) अस्माकम् – अधुना अस्माकं देशः स्वतन्त्रोऽस्ति।
(ग) पश्यन्ति – ते चलचित्रं पश्यन्ति।
(घ) यथा – यथा राजा तथैव प्रजा आचरति।
प्रश्न 12.
गन्तुम्, विदेशे, अतीव, तिष्ठति।
उत्तरम् :
(क) गन्तुम् – अहं गृहं गन्तुम् इच्छामि।
(ख) विदेश – विदेशे भौतिकसभ्यता वर्धते।
(ग) अतीव – अद्य अतीव चिन्ता अस्ति।
(घ) तिष्ठति – सुरेशः स्वगृहे तिष्ठति।
प्रश्न 13.
अद्य, कस्य, पातुम्, इच्छामि, भवान्।
उत्तरम् :
(क) अद्य वर्षा भवति।
(ख) इदं पुस्तकं कस्य वर्तते?
(ग) कृष्णा जलं पातुम् इच्छति।
(घ) अहं क्रीडितुम् इच्छामि।
(ङ) भवान् कुत्र निवसति?
प्रश्न 14.
यथा, कर्तुम्, तत्र, पतन्ति, भवती।
उत्तरम् :
(क) यथा राजा तथा प्रजा भवति।
(ख) सेवकः कार्यं कर्तुम् गच्छति।
(ग) तत्र पञ्चदशजनाः सन्ति।
(घ) वृक्षात् पत्राणि पतन्ति।
(ङ) भवती अधुना कुत्र गच्छति?
प्रश्न 15.
कदा, अस्माकम्, गत्वा, क्रीडथ।
उत्तरम् :
(क) कदा – त्वं कदा गृहं गमिष्यसि?
(ख) अस्माकम् – जयपुरे अस्माकं गृहं वर्तते।
(ग) गत्वा – छात्रः विद्यालयं गत्वा पठति।
(घ) क्रीडथ – यूयं सर्वे तत्र क्रीडथ।
प्रश्न 16.
विना, प्रातः, यूयम्, आगत्य।
उत्तरम् :
(क) विना – विनयं विना विद्या न शोभते।
(ख) प्रातः – सर्वेः जनाः प्रातः उत्तिष्ठन्ति।
(ग) यूयम् – यूयम् अत्र पठथ।
(घ) आगत्य – सः गहम् आगत्य भोजनं करोति।
प्रश्न 17.
सह, तत्र, आवाम्, पठितुम्।
उत्तरम् :
(क) सह – रामेण सह सीता वनं गच्छति।
(ख) तत्र – तत्र उपवने पुष्पाणि विकसन्ति।
(ग) आवाम् – अद्य आवाम् आपणं गच्छावः।
(घ) पठितुम् – छात्राः पठितुं विद्यालयं गच्छन्ति।
प्रश्न 18.
कुत्र, वयम्, विना, हसितुम्।
उत्तरम् :
(क) कुत्र – मोहनः कुत्र गच्छति?
(ख) वयम् – वयं दुग्धं पिबामः।
(ग) विना – जलं विना भोजनं न पचति।
(घ) हसितुम् – सर्वे मानवाः हसितुम् वाञ्छन्ति।
प्रश्न 19.
अत्र, वदति, प्रति, अस्माकम्, राजानम्।
उत्तरम् :
(क) अत्र – अत्र छात्राः क्रीडन्ति।
(ख) वदति – सज्जनः सदा सत्यं वदति।
(ग) प्रति – अहं विद्यालयं प्रति गमिष्यामि।
(घ) अस्माकम् इदम् अस्माकं भवनमस्ति।
(ङ) राजानम् – सभासदः राजान पश्यन्ति।
प्रश्न 20.
तत्र, सह, त्वं, पठितुम, गिरेः।
उत्तरम् :
(क) तत्र – तत्र गत्वा पत्रं प्रेषय।
(ख) सह – मित्रेण सह श्यामः गच्छति।
(ग) त्वम् – त्वम् अत्र किं करोषि?
(घ) पठितुम् – अहं पठितुं विद्यालयं गच्छामि।
(ङ) गिरेः – गिरेः नदी प्रवहति।
प्रश्न 21.
- गुरोः
- यूयम्
- प्रातः
- गत्वा
- लता।
उत्तरम् :
- छात्रः – गुरोः आज्ञां पालयति।
- यूयम् – पुस्तकं पठत।
- जनाः – प्रातः भ्रमणाय गच्छन्ति।
- स: – गृहं गत्वा पठिष्यति।
- लता – विद्यालयं गच्छति।
प्रश्न 22.
- भवान्
- यावत्
- त्वया
- मन्त्रिणा
- खलु।
उत्तरम् :
- वान् – तत्र गच्छतु।
- यावत् – सः आगच्छति तावत् रमेशः अत्र स्थास्यति।
- अहं – त्वया सह गमिष्यामि।
- मन्त्रिणा – सह नृपः गच्छति।
- गोपालः – खलु धनिकः वर्तते।
प्रश्न 23.
- धेनुः
- श्रद्धावान्
- राज्ञः
- पठित्वा
- अहम्
उत्तरम् :
- धेनुः – वनात् आगच्छति।
- श्रद्धावान् – लभते ज्ञानम्।
- राज्ञः – वचनं पालनीयम्।
- बालकः – अत्र पठित्वा गमिष्यति।
- अहं – गृहं गच्छामि।