RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्
RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्
RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम्
प्रत्यय की परिभाषा – धातु अथवा प्रातिपदिक के बाद जिनका प्रयोग किया जाता है, उन्हें प्रत्यय कहते हैं। प्रत्ययों के भेद-प्रत्ययों के मुख्यतः तीन भेद होते हैं। वे क्रमशः इस प्रकार हैं – (i) कृत्-प्रत्यय, (ii) तद्धित-प्रत्यय, (iii) स्त्री-प्रत्यय।
कृत्-प्रत्यया:-जिन प्रत्ययों का प्रयोग धातु (क्रिया) के बाद किया जाता है, वे कृत् प्रत्यय कहलाते हैं।
यथा –
कृ + तव्यत् = कर्त्तव्यम्
पठ् + अनीयर् = पठनीयम्
तद्धितप्रत्ययाः-जिन प्रत्ययों का प्रयोग संज्ञा, सर्वनाम आदि शब्दों के बाद किया जाता है, वे तद्धित प्रत्यय कहलाते हैं।
यथा –
शिव + अण् = शैवः
उपगु + अण् = औपगवः
दशरथ + इञ् = दाशरथिः
धन + मतुप = धनवान्
स्त्रीप्रत्यया: – जिन प्रत्ययों का प्रयोग पुल्लिंग शब्दों को स्त्रीलिंग में परिवर्तित करने के लिए किया जाता है, वे स्त्री प्रत्यय कहलाते हैं।
यथा –
कुमार + ङीप् = कुमारी
अज + टाप् = अजा
कृत्-प्रत्ययाः
शतृप्रत्ययः-वर्तमान काल के अर्थ में अर्थात् ‘गच्छन्’ (जाते हुए), ‘लिखन्’ (लिखते हुए) इस अर्थ में परस्मैपद की धातुओं के साथ शतृ प्रत्यय लगता है। इसका ‘अत्’ भाग शेष रहता है और ऋकार का लोप हो जाता है। शतृ प्रत्ययान्त शब्द का प्रयोग विशेषण के समान होता है। इसके रूप पुल्लिंग में ‘पठत्’ के समान, स्त्रीलिङ्ग में नदी के समान और नपुंसकलिङ्ग में जगत् के समान चलते हैं।
शतृप्रत्ययान्त-शब्दाः
शानच् प्रत्ययः – वर्तमान काल के अर्थ में आत्मनेपदी धातुओं के साथ शानच् प्रत्यय लगता है। इसके ‘श्’ तथा ‘च’ का लोप हो जाता है, ‘आन’ शेष रहता है। शानच् प्रत्ययान्त शब्द का प्रयोग विशेषण के समान होता है। इसके रूप पुल्लिङ्ग में राम के समान, स्त्रीलिङ्ग में रमा के समान और नपुंसकलिङ्ग में फल के समान चलते हैं।
शानच्प्रत्ययान्त-शब्दाः
तव्यत्-प्रत्ययः – तव्यत् प्रत्यय का प्रयोग हिन्दी भाषा के ‘चाहिए’ अथवा ‘योग्य’ इस अर्थ में होता .. है। इसका ‘तव्य’ भाग शेष रहता है और ‘त्’ का लोप हो जाता है। यह प्रत्यय भाववाच्य अथवा कर्मवाच्य में ही होता है। तव्यत् प्रत्ययान्त शब्दों के रूप पुल्लिंग में राम के समान, स्त्रीलिङ्ग में रमा के समान और नपुंसकलिङ्ग में फल के समान चलते हैं।
तव्यत्-प्रत्ययान्तशब्दाः
अनीयर्-प्रत्ययः – अनीयर् प्रत्यय तव्यत् प्रत्यय के समानार्थक है। इसका प्रयोग हिन्दी भाषा के ‘चाहिए’ अथवा ‘योग्य’ अर्थ में होता है। इसका ‘अनीय भाग शेष रहता है और ‘र’ का लोप हो जाता है। यह प्रत्यय कर्मवाच्य अथवा भाववाच्य में ही होता है। अनीयर् प्रत्ययान्त शब्दों के रूप पुल्लिंग में राम के समान, स्त्रीलिंग में रमा के समान तथा नपुंसकलिंग में फल के समान चलते हैं।
अनीयर्-प्रत्ययान्तशब्दाः
क्तिन्-प्रत्ययः – भाववाचक शब्द की रचना के लिए सभी धातओं से क्तिन प्रत्यय होता है। इसका ‘ति’ भाग शेष रहता है, ‘क्’ और ‘न्’ का लोप हो जाता है। क्तिन्-प्रत्ययान्त शब्द स्त्रीलिङ्ग में ही होते हैं। इनके रूप ‘मति’ के समान चलते हैं।
क्तिन-प्रत्ययान्तशब्दाः
ल्युट्-प्रत्ययः-भाववाचक शब्द की रचना के लिए सभी धातुओं से ल्युट् प्रत्यय जोड़ा जाता है। इसका ‘यु’ भाग शेष रहता है तथा ‘ल’ और ‘ट्’ का लोप हो जाता है। ‘यु’ के स्थान पर ‘अन’ हो जाता है। ‘अन’ ही धातुओं के साथ जुड़ता है। ल्युट्-प्रत्ययान्त शब्द प्रायः नपुंसकलिङ्ग में होते हैं। इनके रूप ‘फल’ शब्द के समान चलते हैं।
ल्युट्-प्रत्ययान्तशब्दाः
तृच्-प्रत्ययः – कर्ता अर्थ में अर्थात् हिन्दी भाषा का ‘करने वाला’ इस अर्थ में धातु के साथ ‘तृच्’ प्रत्यय होता है। इसका ‘तृ’ भाग शेष रहता है और ‘च’ का लोप हो जाता है। तृच्-प्रत्ययान्त शब्दों के रूप तीनों लिङ्गों में चलते हैं। तीनों लिङ्गों में ही रूप होते हैं। यहाँ केवल पुल्लिङ्ग में ही उदाहरण प्रस्तुत किए जा रहे हैं।
तृच्-प्रत्ययान्तशब्दाः
तद्धित-प्रत्ययाः –
मतुप् प्रत्ययः-‘वह इसका है’ अथवा ‘वाला’ अथवा ‘इसमें’ इन अर्थों में तद्धित से मतुप् प्रत्यय होता है। इसका ‘मत्’ भाग शेष रहता है, ‘उ’ तथा ‘प्’ का लोप हो जाता है। मतुप् प्रत्ययान्त शब्दों के रूप पुल्लिंग में ‘भगवत्’ के समान, स्त्रीलिंग में ‘ङीप्’ प्रत्यय जोड़कर ‘नदी’ के समान तथा नपुंसकलिंग में ‘जगत् ‘ के समान चलते हैं।
यहाँ इस प्रकार जानना चाहिए –
1. मत्’ प्रत्यय का प्रयोग प्रायः झयन्त शब्दों अथवा अकारान्त शब्दों के साथ ही होता है। जैसे –
झयन्तेभ्यः – विद्युत् + मतुप् = विद्युत्वत्
अकारान्तेभ्यः – धन + मतुप् = धनवत्
विद्या + मतुप् = विद्यावत्।
2. ‘मत्’ प्रत्यय का प्रयोग प्रायः इकारान्त शब्दों के साथ होता है। जैसे –
श्री + मतुप् = श्रीमत् बुद्धि + मतुप् = बुद्धिमत्।
इन्-ठन् प्रत्ययौ – ‘अत इनिठनौ’-अकारान्त शब्दों वाला’ या ‘युक्त’ अर्थ में ‘इनि’ और ‘ठन्’ प्रत्यय होता है। इनि का ‘इन्’ और ठन् का ‘ठ’ शेष रहता है।
(i) इनि प्रत्यय अकारान्त के अतिरिक्त आकारान्त शब्दों में भी लग सकता है, यथा –
मया + इनि = मायिन्, शिखा + इनि = शिखिन्, वीणा + इनि = वीणिन् इत्यादि।
(ii) इनि प्रत्ययान्त शब्द के रूप पुल्लिङ्ग में ‘करिन्’ के समान, स्त्रीलिंग में ‘ई’ लगाकर ‘नदी’ के समान और नपुंसकलिंग में ‘मनोहारिन्’ शब्द के समान चलते हैं।
(iii) ठन् प्रत्यय के ‘ठ’ को ‘इक’ हो जाता है, यथा –
दण्ड+ठन्-दण्ड+इ = दण्डिकः (दण्ड वाला)
धन+ठन्-धन+इक् = धनिकः (धन वाला)
कतिपय इनि और ठन् प्रत्ययान्त रूप इस प्रकार हैं –
त्व तथा तल प्रत्यय-“तस्य भावः त्व-तलौ”-विशेषणवाची शब्दों से भाववाचक संज्ञाएँ बनाने के लिए त्व तथा तल प्रत्यय प्रयुक्त होते हैं। त्व प्रत्ययान्त शब्द नपुंसकलिंग होते हैं तथा उनके रूप ‘फल’ शब्द के समान बनते हैं। ‘तल’ प्रत्यय में शब्द के अन्त में ‘ता’ लगता है तथा वे स्त्रीलिङ्ग होते हैं एवं उनके रूप ‘लता’ के समान चलते हैं। यथा –
स्त्री-प्रत्ययाः –
टाप् प्रत्ययः-अजाद्यतष्टाप् -अजादिगण में आये अज आदि शब्दों से तथा अकारान्त शब्दों से स्त्रीप्रत्यय ‘टाप्’ होता है। ‘टाप’ का ‘आ’ शेष रहता है।
‘टाप्’ प्रत्ययान्त शब्दों के रूप आकारान्त स्त्रीलिङ्ग में ‘रमा’ के समान चलते हैं। यथा –
ङीप् प्रत्यय –
(i) ऋन्नेभ्यो ङीप् – ऋकारान्त और नकारान्त शब्दों से स्त्रीलिंग में ङीप् प्रत्यय होता है। इसका ‘ई’ शेष रहता है, जैसे –
कर्तृ + ङीप् = की, धातृ – धात्री, कामिन्-कामिनी, दण्डिन्-दण्डिनी, राजन्-राज्ञी आदि।
(ii) उगितश्च – जहाँ पर उ, ऋ, लु का लोप हुआ हो, उन प्रत्ययों से बने हुए शब्दों से स्त्रीलिंग में ङीप् (ई), प्रत्यय होता है। यथा –
भवत् + ई = भवती, श्रीमती, बुद्धिमती आदि।
विशेष – किन्तु भ्वादि, दिवादि, तुदादि और चुरादिगण की धातुओं से तथा णिच् प्रत्ययान्त शब्दों से ङीप् करने पर ‘त’ से पूर्व ‘न्’ हो जाता है। जैसे –
भवन्ती, पचन्ती, दीव्यन्ती, नृत्यन्ती, गच्छन्ती आदि।
(iii) टिड्ढाणबद्धयस – टित् शब्दों से तथा ढ, अण् आदि प्रत्ययों से निष्पन्न शब्दों से स्त्रीलिंग में ङीप् (ई) प्रत्यय होता है। यथा –
कुरुचरी, नदी, देवी, पार्वती, कुम्भकारी, औत्सी, भागिनेयी, लावणिकी, यादृशी, इत्वरी आदि।
(iv) वयसि प्रथमे (पा.सू.) – प्रथम वय (उम्र) वाचक अकारान्त शब्दों से स्त्रीलिंग में ङीप् होता है। जैसे –
कुमारी, किशोरी, वधूटी, चिरण्टी आदि।
(v) षिद्गौरादिभ्यश्च (पा.सू.) – जहाँ ‘ष’ का लोप हुआ हो (षित्) तथा गौर, नर्तक, नट, द्रोण, पुष्कर आदि गौरादिगण में पठित शब्दों से स्त्रीलिंग में ङीष् (ई) प्रत्यय होता है। यथा –
गौरी, नर्तकी, नटी, द्रोणी, पुष्करी, हरिणी, सुन्दरी, मातामही, पितामही, रजकी, महती आदि।
(vi) द्विगो: – द्विगुसमास में अकारान्त. शब्द से ङीप् (ई) होता है। जैसे-पंचमूली, त्रिलोकी।
(vii) पुंयोगादाख्यायाम्-पुरुषवाचक अकारान्त शब्द प्रयोग से स्त्रीलिंग हो तो उससे ङीष् (ई) हो जाता है। यथा –
गोपस्य स्त्री-गोप + ई = गोपी, शूद्रस्य स्त्री-शूद्र + ई = शूद्री।
(viii) जातेरस्त्रीविषयादयोपधात्-जो नित्य स्त्रीलिंग और योपध नहीं है, ऐसे जातिवाचक शब्द से स्त्रीलिंग में ङीष् होता है। ङीष् का भी ‘ई’ शेष रहता है। यथा –
ब्राह्मण + ई ब्राह्मणी, मृग-मृगी, महिपी, हंसी, मानुषी, घटी, वृषली आदि।
(ix) इन्द्रवरुणभवशर्व – इन्द्र आदि शब्दों से स्त्रीलिंग बनाने पर आनुक (आन और डीप (ई) प्रत्यय होता है। यथा –
इन्द्र की ग्त्री-इन्द्र + आन् + ई = इन्द्राणी, वरुण-वरुणानी,
भय भवानी, गर्व शर्वाणी. मातुल – मातुलानी,
रुद्र रुद्रागा. आचाय-आचायांनी आदि।
(x) यव’ शब्द से दोष अर्थ में, यवन शब्द से लिपि अर्थ में तथा अर्य एवं क्षत्रिय शब्द से स्वार्थ में आनुक् (आन्) और डीप (ई) होता है। जैसे –
यव + आन + ई = यवानी, यवन+आन्+ई = यवनानी।
मातुलानी, उपाध्यायानी, अर्याणी, क्षत्रियाणी-इनमें भी स्त्री अर्थ में ङीष् होता है।
(xi) हिमारण्ययोर्महत्त्वे-महत्त्व अर्थ में हिम और अरण्य शब्द से ङीष् और आनुक् होता है। यथा –
महद् हिमं-हिम + आन् + ई = हिमानी। (हिम की राशि) महद् अरण्यम् अरण्यानी (विशाल अरण्य)
(xii) वोतो गुणवचनात्-गुणवाचक उकारान्त शब्द से स्त्रीलिंग बनाने के लिए विकल्प से ङीष् (ई) प्रत्यय होता है। यथा
मृदु से मृद्री, पटु से पट्वी, साधु से साध्वी।
(xiii) इतो मनुष्यजातेः-इदन्त मनुष्य जातिवाचक शब्द से स्त्रीलिंग बनाने पर ङीष् (ई) होता है। जैसे दाक्षि + ई = दाक्षी (दक्ष के पुत्र की स्त्री)
(xiv) बहु आदि शब्दों से, शोण तथा कृत्प्रत्ययान्त इकारान्त शब्दों से तथा नासिका-उन्नरपद वाले शब्दों से विकल्प से ङीष प्रत्यय होता है। यथा-
अभ्यासार्थ प्रश्नोत्तराणि :
बहुविकल्यात्मकप्रश्नाः
रेखांकितपदानां प्रकृति-प्रत्ययौ संयोज्य विभज्य वा उचितम् उत्तरं विकल्पेभ्यः चित्वा लिखत –
प्रश्न 1.
(i) तो मार्गे क्रीड़ + शतृ बालकान् प्रेक्ष्य अवदताम्।
(अ) क्रीइतु
(ब) क्रीडतान्
(स) क्रीडन्तौ
(द) क्रीडतः
उत्तरम् :
(द) क्रीडतः
(ii) सः नृपस्य त्यागवृत्तिं प्र + शंस् + शतृ अवदत्।
(अ) प्रशंसत्
(ब) प्रशंसन्
(स) प्रशशत्
(द) प्रशंसः
उत्तरम् :
(ब) प्रशंसन्
(iii) धाव् + शतृ बालकान् पश्य।
(अ) धावमानम
(ब) धावमानान्
(स) धावन्तः
(द) धावत:
उत्तरम् :
(द) धावतः
(iv) भीमः क्षत्रधर्मम् अनु + स्मृ + शतृ द्रौपदी रक्षति।
(अ) अनुस्मरन्तः
(ब) अनुस्मरनः
(स) अनुस्मरन्
(द) अनुस्मृत्य
उत्तरम् :
(स) अनुस्मरन्
(v) पठन् बालकः लिखति।
(अ) पठ् + शतृ
(ब) पठ् + अन्
(स) पठ् + क्त
(द) पठ् + शानच्
उत्तरम् :
(अ) पठ् + शतृ
(vi) मणिमाणिक्यानाम् आभया भास + शानच् स्वगृहम् दृष्ट्वा तौ विस्मिती अभवताम्।
(अ) भाषमानम्
(ब) भासमानम्
(स) भासमानः
(द) भासन्तः
उत्तरम् :
(ब) भासमानम्
(vii) गुरुम् सेव् + शानच् छात्राः यशः लभन्ते।
(अ) सेवमानाः
(ब) सेवमानम्
(स) सेवमानः
(द) सेवमाना
उत्तरम् :
(अ) सेवामानाः
(viii) सेवमानाः शिष्याः गुरुं नमन्ति।
(अ) सेव् + मतुप्
(ब) सेव् + शानच्
(स) सेव् + तल्
(द) सेव् + शतृ
उत्तरम् :
(ब) सेव् + शानच्।
प्रश्न 2.
(i) स्वक्षत्रधर्मम् अनुस्मरन् त्वं मां रक्षा।
(अ) अनु + स्मृ + शतृ
(ब) अनु + स्मर् + शत्
(स) अनु + स्मृ + शानच्
(द) अनु + स्मर + शतृ
उत्तरम् :
(अ) अनु + स्मृ + शतृ
(ii) त्रैलोक्यं दहन इव अग्निः प्रसरति।।
(अ) दः + शतृ
(ब) दह् + शानच्
(स) दह् + क्त
(द) दह् + शतृ
उत्तरम् :
(द) दह् + शतृ
(iii) स्वमित्रं सर्पण मारयितुम् ईष् + शत सः अगच्छत्।
(अ) इच्छाम्
(ब) इच्छन्
(स) इच्छुकः
(द) इच्छावान्
उत्तरम् :
(ब) इच्छन्
(iv) कथं माम् अपरिगणयन्तः जनाः मयूरं राष्ट्रपक्षी इति मन्यते।।
(अ) अपरि + गण + क्तः
(ब) अपरि + गण + शतृ
(स) अपरि + गण + यन्तः
(द) अ + परिगण + यन्तः
उत्तरम् :
(ब) अपरि + गण + शतृ।
प्रश्न 3.
(i) ज्ञानवृद्धः बालकः अपि पूज् + अनीयर्।
(अ) पूजनीयाः
(ब) पूजनीयः
(स) पूजनीयम्
(द) पूजनीयम
उत्तरम् :
(ब) पूजनीयः
(ii) वीराः अभ्युदये क्षमा + मतुप् भवन्ति।
(अ) क्षमावान्
(ब) क्षमावानाः
(स) क्षमावन्तः
(द) क्षमामान
उत्तरम् :
(स) क्षमावन्तः
(iii) त्यागी सर्वव्यसनविनाशे दक्षः।
(अ) त्याग + ई
(ब) त्याग + मतुप्
(स) त्याग + ई
(द) त्याग + इन्
उत्तरम् :
(द) त्याग + इन्
(iv) दैनिकं कार्यं कृत्वा बालकः क्रीडनाय गच्छति।
(अ) दैन + इकम्
(ब) दिन् + ठक्
(स) दिन + ठक्
(द) दिन + ठक
उत्तरम् :
(स) दिन + ठक्।
प्रश्न 4.
(i) बालिकाभिः चलचित्रं न दृश + तव्यत्।
(अ) द्रष्टव्य्
(ब) द्रष्टव्यत्
(स) द्रष्टव्यम्
(द) दर्शनीयम्
उत्तरम् :
(स) द्रष्टव्यम्
(ii) गुण + मतुप् सर्वत्र पूज्यते।
(अ) गुणवान्
(ब) गुणी
(स) गुण्वान्
(द) गुणिमत्।
उत्तरम् :
(अ) गुणवान्
(iii) सेतुनिर्माणम् सामाजिक कार्यम् भवति।
(अ) समाज + इक
(ब) समाज + ठक्
(स) समाजः + ठक्
(द) सामाज् + इक
उत्तरम् :
(ब) समाज + ठक्
(iv) पशवः स्नेहेन रक्षणीयाः।
(अ) रक्ष् + अनीयर्
(ब) रक्ष + अणीयर्
(स) रक्ष + अनीयर्
(द) रक्षणीय + टाप्
उत्तरम् :
(अ) रक्ष् + अनीयर्
(v) नृपेण प्रजाः पाल् + अनीयर्।
(अ) पालनीयम्
(ब) पालनीयाः
(स) पालनीयः
(द) पालानीयः
उत्तरम् :
(ब) पालनीयाः
(vi) ऐतिहासिकानि स्थलानि द्रष्टुं जना गच्छन्ति।
(अ) ऐतिहासि + कानि
(ब) इतिहास + ठक्
(स) इतिहास + ठिनि
(द) ऐतिहासिक + आनि
उत्तरम् :
(ब) इतिहास + ठक्
(vii) मम अर्थिनः धनलाभमात्रेण सन्तोषं भजन्ते।
(अ) अर्थी + नः
(ब) अर्थ + इन्
(स) अर्थ + मतुप्
(द) अ + र्थिनः।
उत्तरम् :
(ब) अर्थ + इन्।
प्रश्न 5.
(i) भारतस्य भौगोलिकी संरचना उत्तमा अस्ति।
(अ) भौगोल + ठक्
(ब) भूगोल + इक्
(स) भूगोल + ठक्
(द) भौगोलि + ठक्
उत्तरम् :
(स) भूगोल + ठक्
(ii) फल + इनि वृक्षाः नमस्ति।
(अ) फली
(ब) फलानि
(स) फलिनी
(द) फलिनः
उत्तरम् :
(द) फलिनः
(iii) गुरुः सर्वदा पूज् + अनीयर् भवति।
(अ) पूजनीयः
(ब) पूजणीयः
(स) पूजन्यः.
(द) पूज्यः
उत्तरम् :
(अ) पूजनीयः
(iv) दान + इन् .. यशः प्राप्नोति।
(अ) दानिः
(ब) दानी
(स) दाणी
(द) दातव्यानि
उत्तरम् :
(ब) दानी
(v) नगर + ठक् … देशम् रक्षन्ति।
(अ) नगरिकः
(ब) नागरिकः
(स) नागरीकः
(द) नागरिकाः
उत्तरम् :
(द) नागरिकाः
(vi) सर्वे भवन्तु सुख + इन्।
(अ) सुखी
(ब) सुखीन:
(स) सुखिनम्
(द) सुखिनः
उत्तरम् :
(द) सुखिनः
(vii) विद्यया लोक + ठक् उन्नतिः भवति।
(अ) लौकिकी
(ब) लौकिकम्
(स) लौकीकिः
(द) लोकिकी
उत्तरम् :
(अ) लौकिकी
(viii) इदं गीतम् श्रु + अनीयर।
(अ) श्रवणीयम्
(ब) श्रवनीयम्
(स) श्रवणियम्
(द) श्रवणीयम्
उत्तरम् :
(द) श्रवणीयम्
(ix) अस्माभिः समाजसेवा कर्तव्या।
(अ) कृ + तव्यत्
(ब) क + तव्यत्
(स) कृत् + तव्यत्
(द) कृ + तव्या
उत्तरम् :
(अ) कृ + तव्यत्।
प्रश्न 6.
(i) बलवती हि आशा।
(अ) बल + वती
(ब) बल + क्तवतु
(स) बल + वत्
(द) बल + मतुप्
उत्तरम् :
(द) बल + मतुप्
(ii) येन केन प्रकारेण घोटकाः रक्षणीयाः।
(अ) रक्षा + अनीयाः
(ब) रक्ष् + नीयर्
(स) रक्षण + ईयाः
(द) रक्ष् + अनीयर्
उत्तरम् :
(द) रक्ष् + अनीयर्
(iii) विद्यालयस्य साप्ताहिक: अवकाशः रविवासरे भवति।
(अ) सप्ताह + ठक्
(ब) सप्ताह + इन्
(स) सप्त + इक्
(द) साप्ताहिक + ठक्
उत्तरम् :
(अ) सप्ताह + ठक्
(iv) विज्ञान + इनि.सर्वदा मान्याः भवन्ति।
(अ) विज्ञानी
(ब) वैज्ञानिकः
(स) विज्ञानिनः
(द) वैज्ञानिकाः
उत्तरम् :
(स) विज्ञानिनः
(v) मया पत्रम् लेखनीयम्।
(अ) लेख + अनीया
(ब) लेख + नीय
(स) लिख + अनीयर्
(द) लिख + अनीय
उत्तरम् :
(स) लिख् + अनीयर्
(vi) अस्माकम् राष्ट्रपतिः श्री + मतुप ‘प्रतिभा पाटिल’ इति अस्ति।
(अ) श्रीमती
(ब) श्रीमत्
(स) श्रीमान्
(द) श्रीमन्तः।
उत्तरम् :
(अ) श्रीमती।
प्रश्न 7.
(i) कोलाहलः न कृ + तव्यत्।
(अ) कर्तव्यः
(ब) कर्त्तव्या
(स) कर्त्तव्यम्
(द) कर्त्तव्याः
उत्तरम् :
(अ) कर्तव्यः
(ii) अस्माभिः तीर्थस्थानानि दर्शनीयानि।
(अ) दृश् + नीय्
(ब) दृश् + अनीय
(स) दृश् + अनीयर्
(द) दृश् + नीयर्
उत्तरम् :
(स) दृश् + अनीयर्
(iii) प्रात:काले उद्यानस्य शोभा खलु दृश् + अनीयर्।
(अ) दर्शनीयम्
(ब) दर्शनीया
(स) दर्शनीयः
(द) दर्शनीयानि
उत्तरम् :
(ब) दर्शनीया
(iv) मनुष्यः सामाजिकः प्राणी अस्ति।
(अ) सामाज + ठक्
(ब) समाजम् + ठक्
(स) समाज + ठक्
(द) सामाजि + ठक्
उत्तरम् :
(स) समाज + ठक्
(v) दान + इनि मानं त्यजेत्।
(अ) दानी
(ब) दानिः
(स) दानिमा
(द) दानीन्
उत्तरम् :
(अ) दानी
(vi) बलवती हि आशा।
(अ) बली + मतुप्
(ब) बल + मतुप्
(स) बल + णिनि
(द) बल + वत्
उत्तरम् :
(ब) बल + मतुप्
(vii) पुस्तकालये कोलाहलः न क + तव्यत्।
(अ) कर्त्तव्यः
(ब) कृतव्यम्
(स) क्रेतव्यम्।
(द) करितव्यम्
उत्तरम् :
(अ) कर्तव्यः
(viii) नृपेण प्रजाः पाल् + अनीयर्।
(अ) पालनेयः
(ब) पालिनीयाः
(स) पालनीयः
(द) पालनीयाः
उत्तरम् :
(द) पालनीयाः
(ix) नमन्ति गुणिनो जनाः।
(अ) गुणिन् + ओ
(ब) गुण + इनि
(स) गुण + णिनि
(द) गुणी + नः
उत्तरम् :
(ब) गुण + इनि।
प्रश्न 8.
(i) मम देशः शक्ति + मतुप भवेत्।
(अ) शक्तिमान्
(ब) शक्तिवानः
(स) शक्तिमत्
(द) शक्तिमानम्
उत्तरम् :
(अ) शक्तिमान्
(ii) पुस्तकेषु किमपि न लेखनीयम्।
(अ) लेख + अनीयम्
(ब) लेख + अनीयर्
(स) लिख् + अनीयर्
(द) लिख् + नीयम्
उत्तरम् :
(स) लिख + अनीयर्
(iii) धन + इनि दानेन शोभते।
(अ) धनी
(ब) धनिः
(स) धनिनः
(द) धनिकः
उत्तरम् :
(अ) धनी।
(iv) सप्ताह + ठक् अवकाशः रविवासरे भवति।.
(अ) साप्ताहिक्यः
(ब) साप्ताहिकम्
(स) साप्ताहिकी
(द) साप्ताहिकः
उत्तरम् :
(द) साप्ताहिकः
(v) नमन्ति फलिनः वृक्षाः।
(अ) फल + इनि.
(ब) फलि + गिनि
(स) फल + ठक्
(द) फल + मतुप्
उत्तरम् :
(अ) फल + इनि
(vi) रामः बुद्धिः + मतुप् बालः अस्ति।
(अ) बुद्धिमन्तः
(ब) बुद्धिमान्
(स) बुद्धिमत्
(द) बुद्धिवान्
उत्तरम् :
(ब) बुद्धिमान्।
लघूत्तरात्मक प्रश्नाः
प्रश्न 1.
अधोलिखितवाक्ययोः कोष्ठकान्तर्गतयोः पदयोः प्रकृति-प्रत्ययौ संयोज्य लिखत –
(निम्नलिखित वाक्यों में कोष्ठकों के अन्तर्गत दिए गए पदों के प्रकृति-प्रत्ययों को जोड़कर लिखिए-)
(i) मनसः ………… (चञ्चल + तल्) निरोद्धं कः क्षमः।
(ii) …….. (शिक्ष् + शतृ) शिक्षकः फलं दर्शयति।
उत्तरम् :
(i) चञ्चलताम्
(ii) शिक्षयन्।
प्रश्न 2.
अधोलिखितवाक्ययोः कोष्ठकान्तर्गतयोः पदयोः प्रकृति-प्रत्ययौ संयोज्य लिखत-
(i) बालानां …………. (चपल + त्व) कः न जानाति?
(ii) ………….. ( पठ् + शत) बालकः शनैः शनैः वदति।
उत्तरम् :
(i) चपलत्वम्
(ii) पटन्।
प्रश्न 3.
अधोलिखितवाक्येषु कोष्ठकान्तर्गतपदानां प्रकृति प्रत्ययं संयोज्य लिखत-
- प्रकृतेः (रमणीय + तल्) दर्शनीया अस्ति।
- अस्मासु (बन्धु + तल्) आवश्यकी।
- इति उक्तिः तत् (कृतज्ञ + तल)।
- सः नाटकम् (दृश् + शत) ………… खादति।
- ते उद्याने …………….. भ्रमन्ति। (हस् + शत).
- किन्नु खलु सरस्तीरे (वि + ह + शतृ) मयि केनापि कर्कशैः ‘का का’ शब्दैः वातावरणम् आकुली-क्रियते?
उत्तरम् :
- रमणीयता
- बन्धुता
- कृतज्ञता
- पश्यन्
- हसन्तः
- विहरन्।
प्रश्न 4.
कोष्ठकेषु प्रदत्तैः शब्दैः प्रकृतिप्रत्ययानुसारं रिक्तस्थानानि पूरयत
- लोकहितं मम………………..। (कृ + अनीयर)
- अहं ……………….. न खादामि। (गम् + शत)
- लोके………………. दुर्लभम्। (नर + त्व)
- सा……………….. मधुरं गायति। (बालक + टाप्)
उत्तरम् :
- लोकहितं मम करणीयम्।
- अहं गच्छन् न खादामि।
- लोके नरत्वं दुर्लभम्।
- सा बालिका मधुरं गायति।
प्रश्न 5.
कोष्ठकेषु प्रदत्तैः शब्दैः प्रकृतिप्रत्ययानुसारं रिक्तस्थानानि पूरयत
- अस्माभि सदैव अनुशासनं………………..। (पाल् + अनीयर)
- जीवने परिश्रमस्य ……………….. भवति। (महत् + त्व)
- तस्य माता………………. अस्ति। (चतुर् + टाप्)
- ……….. बालकः पश्यति। (गम् + शत)
उत्तरम् :
- अस्माभि सदैव अनुशासनं पालनीयम।
- जीवने परिश्रमस्य महत्त्वं भवति।
- तस्य माता चतुरा अस्ति।
- गच्छन् बालकः पश्यति।
प्रश्न 6.
कोष्ठकेषु प्रदत्तैः शब्दैः प्रकृतिप्रत्ययानुसारं रिक्तस्थानानि पूरयत –
- ……………….. धावक: मार्गे अपतत्। (धाव् + शतृ)
- इदं मधुरं दुग्धं ……………….। (पा + अनीयर्)
- नगरे……………….. वसति। (जन + तल्)
- सा……………….. बालिका अस्ति। (चपल + टाप)
उत्तरम् :
- धावन् धावकः मार्गे अपतत्।
- इदं मधुरं दुग्धं पानीयम्।
- नगरे जनता वसति।
- सा चपला बालिका अस्ति।
प्रश्न 7.
कोष्ठकेषु प्रदत्तैः शब्दैः प्रकृतिप्रत्ययानुसारं रिक्तस्थानपूर्तिः करणीया
- मुनिः पुनरपि विशदी …………. अकथयत्। (कृ + शतृ)।
- इदं ………… जलं न अस्ति। (पा + अनीयर)
- मनुष्यः ………… प्राणी अस्ति। (समाज + ठक्)
- …………. बालिका। (कुमार + ङीप्)
उत्तरम् :
- मुनिः पुनरपि विशदी कुर्वन् अकथयत्।
- इदं पानीयं जलं न अस्ति।
- मनुष्यः सामाजिक प्राणी अस्ति।
- कुमारी इयं बालिका।
प्रश्न 8.
कोष्ठकेषु प्रदत्तैः शब्दैः प्रकृतिप्रत्ययानुसारं रिक्तस्थानपूर्तिः करणीया
(क) अस्माकं देशे ………….. स्थानानि सन्ति। (दृश् + अनीयर्)
(ख) दुष्टाः जनाः …………। (हन् + तव्यत्)
(ग) अस्माकं जीवने विद्याया ………. वर्तते। (महत् + त्व)
(घ) अस्या ………. दीपिका अस्ति। (अनुज + टाप)
उत्तरम-
(क) अस्माकं देशे दर्शनीयानि स्थानानि सन्ति।
(ख) दुष्टाः जनाः हन्तव्याः।
(ग) अस्माकं जीवने विद्यायाः महत्त्वं वर्तते।
(घ) अस्याः अनुजा दीपिका अस्ति।
प्रश्न 9.
कोष्ठकेषु प्रदत्तैः शब्दैः प्रकृतिप्रत्ययानुसारं रिक्तस्थानपूर्तिः करणीया
(क) तनयः तत्र ………. अध्ययने संलग्नः समभूत्। (वस् + शतृ)
(ख) आदिश्यतां किं ………. (कृ + अनीयर)
(ग) …………. “स्वागतं ते। (श्रेष्ठ + इनि)
(घ) व्याघ्रं दृष्ट्वा सा ………….। (चिन्तितवत् + ङीप्)
उत्तरम् :
(क) तनयः तत्र वसन् अध्ययने संलग्नः समभूत्।
(ख) आदिश्यतां किं करणीयम।
(ग) श्रेष्ठिन्! स्वागतं ते।
(घ) व्याघ्रं दृष्ट्वा सा चिन्तितवती।
प्रश्न 10.
कोष्ठकेषु प्रदत्तैः शब्दैः प्रकृतिप्रत्ययानुसारं रिक्तस्थानपूर्तिः करणीया
- सर्वेषु क्षेत्रेषु तासामपि सहयोगो ……………। (ग्रह + तव्यत्)
- देशस्य सर्वाङ्गीणविकासे ताः कथमपि न ….. (उप + ईक्ष् + अनीयर्)
- ते विनीता भूत्वा धनम् ………. सुखेन जीवनं यापयेयुः। (अ + शतृ)
- भारतवसुन्धरा सर्वदा सर्वैः ………..। (पूज् + अनीयर्)
- ………… वै मधु विन्दति। (चर् + शत)
- स च देशः …………. इति पितुः तीव्रा आसीत्। (जि + तव्यत्)
- एतदर्थं महत् मूल्यं ……… भवेत्। (दा + तव्यत्)
- अमित्रान् …………… सर्वान्निर्मानो बन्धुशोकदः। (नन्द् + शतृ)
- नास्त्युद्यमसमो बन्धुः ……….. नावसीदति। (कृ + शानच्)
- अस्योपदेशः सर्वथा ……….. वर्तते। (अनु + कृ + अनीयर्)
- यन्त्रशालायाः परिसरः ……. आसीत्। (रम् + अनीयर)
- अयं नियमः महौद्योगिक प्रतिष्ठानेष्वपि ……….. (वि + धा + तव्यत्)
- उद्याने एकमपि पप्पं नैव ………. (दृश् + अनीयर)
उत्तरम् :
- ग्रहीतव्यः
- उपेक्षणीयाः
- अर्जयन्तः
- पूजनीया
- चरन
- जेतव्यः
- दातव्यम्
- नन्दयन्
- कुर्वाणः
- अनुकरणीयः
- रमणीयः
- विधातव्यः
- दर्शनीयम्।
प्रश्न 11.
कोष्ठकेषु प्रदत्तैः शब्दैः प्रकृतिप्रत्ययानुसारं रिक्तस्थानपूर्तिः करणीया –
- जयपुरस्य ……….. दृष्ट्वाः विस्मिताः भवन्ति। (रमणीय+तल्)
- सः पठनस्य ………… जानाति। (महत्+त्व)
- ………… सर्वत्र पूज्यते। (गुण+मतुप्)
- सर्वैः …………… सेवनीया। (मानव+तल्)
- सदा ………… भव। (सुख+इन्)
- मनुष्यः …………. प्राणी अस्ति। (समाज+ठक्)
- प्रकृतेः ………… दर्शनीया अस्ति। (सुन्दर+तल्)
- ते एव ……….. सन्ति। (बुद्धि+मतुप)
- अद्य अस्माकं ………… परीक्षा आरभते। (वर्ष+ठक्+ङीप्)
- ते ……….. वृत्तिं धारयन्ति। (धर्म+ठक्+ङीप्)
उत्तरम् :
- रमणीयता
- महत्वं
- गुणवान्
- मानवता
- सुखिनः
- सामाजिकः
- सुन्दरता
- बुद्धिमन्तः
- वार्षिकी
- धार्मिकी।
प्रश्न 12.
कोष्ठकेषु प्रदत्तैः शब्दैः प्रकृतिप्रत्ययानुसारं रिक्तस्थानपूर्तिः करणीया –
- आर्यपुत्र! क्षत्रधर्मम् ………मां शोकसागरात् रक्ष। (अनु, स्मृ + शत)
- जनैः सौन्दर्यमयी सृष्टि: दूषिता न …………। (कृ + तव्यत्)
- पुस्तकेषु किमपि न ………। (लिख् + अनीयर्)
- मनुष्यः ……….. प्राणी अस्ति। (समाज + ठक्)
- ……….. नरः सर्वत्र मानं लभते। (बुद्धि + मतुप्)
उत्तरम् :
- अनुस्मरन्
- कर्तव्या
- लेखनीयम्
- सामाजिकः
- बुद्धिमान्
प्रश्न 13.
कोष्ठकेषु प्रदत्तैः शब्दः प्रकृतिप्रत्ययानुसारं रिक्तस्थानपूर्तिः करणीया –
- पर्यावरणस्य ………… कः न जानाति? (महत् + त्व)
- परं निरन्तरं ……….. प्रदूषणेन मानवजातिः विविधैः रोगैः आक्रान्ता अस्ति। (वर्ध + शानच्)
- अस्माभिः ………… यत् पर्यावरणस्य रक्षणे एव अस्माकं रक्षणम्। (ज्ञा + तव्यत्)
- एतदर्थं ………… जागरूका कर्तव्या। (जन + तल)
- स्थाने स्थाने वृक्षारोपणम् अवश्यम्। ………… यतो हि वृक्षाः पर्यावरणरक्षणे अस्माकं सहायकाः सन्ति। (कृ + अनीयर)
उत्तरम् :
- महत्त्वं
- वर्धमानेन
- ज्ञातव्यम्
- जनता
- करणीयम्
प्रश्न 14.
कोष्ठके प्रदत्त प्रकृति प्रत्ययाभ्यां पदं निर्माय वाक्यं पूरयत –
(i) …………… नौकया नदीं तरति। (नौ + ठन्)
(ii) गुरुं …………. शिष्यः सुखं लभते। (सेव् + शानच्)
उत्तरम् :
(i) नाविकः नौकया नदीं तरति।
(ii) गुरुं सेवमानः शिष्यः सुखं लभते।
प्रश्न 15.
अधोलिखित वाक्ययोः रेखाङ्कित पदयोः प्रकृतिप्रत्ययौः पृथक् कृत्वा लिखत –
(i) राज्ञी गुणवरा नृपस्य प्रियतमा आसीत्।
(ii) देवता स्वर्गे वसति।
उत्तरम् :
(i) राजन् + ङीप्।
(ii) देव + तल्।
प्रश्न 16.
कोष्ठके प्रदत्तप्रकृति प्रत्ययाभ्यां शब्दं निर्माय वाक्यं पूरयत।
(i) श्रीधरः ………… आसीत्। (धन + इनि)
(ii) ……….. बाला: पाठं पाठयति (शिक्षक + टाप्)
उत्तरम् :
(i) श्रीधरः धनी आसीत्।
(ii) शिक्षिका बालाः पाठं पाठयति।
प्रश्न 17.
अधोलिखित वाक्ययोः रेखाङ्कित पदयोः प्रकृतिप्रत्ययौः पृथक् कृत्वा लिखत –
(i) सा बुद्धिमती अस्ति।
(ii) शिवस्य पत्नी पार्वती अस्ति।
उत्तरम् :
(i) बुद्धि + मतुप्।
(ii) पार्वत + ङीप्।
प्रश्न 18.
कोष्ठकेषु प्रदत्त-प्रकृतिप्रत्ययानुसारं शब्द-निर्माणं कृत्वा रिक्तस्थानानि पूरयित्वा लिखत –
(i) प्रसन्नो बालकः ……….। (शंक् + शानच्)
(ii) ……….. गोपालः गच्छति। (पठ् + शतृ)
उत्तरम् :
(i) प्रसन्नो बालकः शंकमानः।
(ii) पठन् गोपालः गच्छति।
प्रश्न 19.
अधोलिखित वाक्ययोः रेखाङ्कितपदेषु प्रकृतिं प्रत्ययं च पृथक् कृत्वा लिखत –
(i) ज्ञानवान् सर्वत्र पूज्यते।
(ii) चटका वृक्षे तिष्ठति।
उत्तरम् :
(i) ज्ञान + क्तवतु।
(ii) चटक + टाप्।
प्रश्न 20.
कोष्ठकेषु प्रदत्त-प्रकृतिप्रत्ययानुसारं शब्दनिर्माणं कृत्वा रिक्तस्थानानि पूरयित्वा लिखतु –
1. मनसा सततं ………………………………….। (स्मृ + अनीयर्)
2. ग्रामं …………………………………. तृणं पश्यति। (गम् + शतृ)
उत्तरम-
1. मनसा सततं स्मरणीयम।
2. ग्रामं गच्छन् तृणं पश्यति।
प्रश्न 21.
अधोलिखितवाक्ययोः रेखांकितपदेषु प्रकृतिं प्रत्ययं च पृथककृत्वा लिखतु –
1. वचने का दरिद्रता।
2. बालिका पुस्तकं पठति।
उत्तरम् :
1. दरिद्र + तल्।
2. बालक + टाप्।
प्रश्न 22.
कोष्ठकेषु प्रदत्तैः शब्दैः प्रकृतिप्रत्ययानुसारं रिक्तस्थानानि पूरयत –
- लोकहितं मम……………….। (कृ + अनीयर)
- अह ……………….. न खादामि। (गम् + शतृ)
- लोके…………….. दुर्लभम्। (नर + त्व)
- सा……………….. मधुरं गायति। (बालक + टाप्)
उत्तरम् :
- लोकहितं मम करणीयम्।
- अहं गच्छन् न खादामि।
- लोके नरत्वं दुर्लभम्।
- सा बालिका मधुरं गायति।
प्रश्न 23.
कोष्ठकेषु प्रदत्तैः शब्दैः प्रकृतिप्रत्ययानुसारं रिक्तस्थानानि पूरयत –
- अस्माभि सदैव अनुशासनं………………..। (पाल् + अनीयर्)
- ………… जीवने परिश्रमस्य ……………….. भवति। (महत् + त्व)
- तस्य माता……………… अस्ति। (चतुर् + टाप्)।
- ……………….. बालकः पश्यति। (गम् + शत)
उत्तरम् :
- अस्माभि सदैव अनुशासनं पालनीयम्।
- जीवने परिश्रमस्य महत्त्वं भवति।
- तस्य माता चतुरा अस्ति।
- गच्छन् बालकः पश्यति।
प्रश्न 24.
कोष्ठकेषु प्रदत्तैः शब्दैः प्रकृतिप्रत्ययानुसारं रिक्तस्थानानि पूरयत –
- ……………….. धावकः मार्गे अपतत्। (धाव् + शत)
- इदं मधुरं दुग्धं ………………..। (पा + अनीयर)
- नगरे……………….. वसति। (जन + तल्)
- सा……………….. बालिका अस्ति। (चपल + टाप्)
उत्तरम् :
- धावन् धावक: मार्गे अपतत्।
- इदं मधुरं दुग्धं पानीयम्।
- नगरे जनता वसति।
- सा चपला बालिका अस्ति।
प्रश्न 25.
कोष्ठकेषु प्रदत्तैः शब्दैः प्रकृतिप्रत्ययानुसारं रिक्तस्थानपूर्तिः करणीया –
- मुनिः पुनरपि विशदी ………. अकथयत्। (कृ + शत)
- इदं. …………. जलं न अस्ति। (पा + अनीयर)
- मनुष्यः ………….. प्राणी अस्ति। (समाज + ठक्)
- ………. इयं बालिका। (कुमार + ङीप्)
उत्तरम् :
- मुनिः पुनरपि विशदी कुर्वन् अकथयत्।
- इदं पानीयं जलं न अस्ति।
- मनुष्यः सामाजिक प्राणी अस्ति।
- कुमारी इयं बालिका।
प्रश्न 26.
कोष्ठकेषु प्रदत्तैः शब्दः प्रकृतिप्रत्ययानुसारं रिक्तस्थानपूर्तिः करणीया –
(क) अस्माकं देशे ………….. स्थानानि सन्ति। (दृश् + अनीयर्)
(ख) दुष्टाः जनाः ……………। (हन् + तव्यत्)
(ग) अस्माकं जीवने विद्याया …… वर्तते। (महत् + त्व)
(घ) अस्या ………… दीपिका अस्ति। (अनुज + टाप)
उत्तरम् :
(क) अस्माकं देशे दर्शनीयानि स्थानानि सन्ति।
(ख) दुष्टाः जनाः हन्तव्याः।
(ग) अस्माकं जीवने विद्यायाः महत्त्वं वर्तते।
(घ) अस्याः अनुजा दीपिका अस्ति।
प्रश्न 27.
कोष्ठकेषु प्रदत्तैः शब्दैः प्रकृतिप्रत्ययानुसारं रिक्तस्थानपूर्तिः करणीया –
(क) तनयः तत्र …………. अध्ययने संलग्नः समभूत्। (वस् + शतृ)
(ख) आदिश्यतां किं…………..। (कृ + अनीयर)
(ग) ………….. ! स्वागतं ते। (श्रेष्ठ + इनि)
(घ) व्याघ्रं दृष्ट्वा सा ………….। (चिन्तितवत् + ङाप्)
उत्तरम् :
(क) तनयः तत्र वसन् अध्ययने संलग्नः समभूत।
(ख) आदिश्यतां किं करणीयम।
(ग) श्रेष्ठिन् ! स्वागतं ते।
(घ) व्यानं दृष्ट्वा सा चिन्तितवती।