RB 9 Sanskrit

RBSE Class 9 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 9 सिकतासेतुः

RBSE Class 9 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 9 सिकतासेतुः

सिकतासेतुः Summary and Translation in Hindi

पाठ-परिचय – प्रस्तुत नाट्यांश सोमदेवरचित कथासरित्सागर के सप्तम लम्बक (अध्याय) पर आधारित है। यहाँ तपोबल से विद्या पाने के लिए प्रयत्नशील तपोदत्त नामक एक बालक की कथा का वर्णन है। उसके समुचित मार्गदर्शन के लिए वेश बदलकर इन्द्र उसके पास आते हैं और पास ही गंगा में बालू से सेतु-निर्माण के कार्य में लग जाते हैं।

उन्हें वैसा करते देख तपोदत्त उनका उपहास करता हुआ कहता है-‘अरे! किसलिए गंगा के जल में व्यर्थ ही बालू से पुल बनाने का प्रयत्न कर रहे हो?’ इन्द्र उन्हें उत्तर देते हैं-यदि पढ़ने, सुनने और अक्षरों की लिपि के अभ्यास के बिना तुम विद्या पा सकते हो तो बालू से पुल बनाना भी सम्भव है। इन्द्र के अभिप्राय को जानकर तपोदत्त तपस्या करना छोड़कर गुरुजनों के मार्गदर्शन में विद्या का ठीक-ठीक अभ्यास करने के लिए गुरुकुल चला जाता है।

पाठ का सप्रसंग हिन्दी-अनुवाद एवं संस्कृत-व्याख्या –

1. (ततः प्रविशति तपस्यारतः तपोदत्तः)
तपोदत्तः – अहमस्मि तपोदत्तः। बाल्ये पितृचरणैः क्लेश्यमानोऽपि विद्यां नाऽधीतवानस्मि। तस्मात् सर्वैः कुटुम्बिभिः मित्रैः ज्ञातिजनैश्च गर्हितोऽभवम्। (ऊर्ध्वं निःश्वस्य) हा विधे! किमिदम्मया कृतम्? कीदृशी दुर्बुद्धिरासीत्तदा! एतदपि न चिन्तितं यत् –
परिधानैरलङ्कारैर्भूषितोऽपि न शोभते।
नरो निर्मणिभोगीव सभायां यदि वा गृहे॥1॥
(किञ्चिद् विमृश्य)
भवतु, किमेतेन? दिवसे मार्गभ्रान्तः सन्ध्यां यावद् यदि गृहमुपैति तदपि वरम्। नाऽसौ भ्रान्तो मन्यते। एष इदानीं तपश्चर्यया विद्यामवाप्तुं प्रवृत्तोऽस्मि।

कठिन-शब्दार्थ :

  • तपस्यारतः = तपस्या में लीन।
  • बाल्ये = बचपन में।
  • पितृचरणैः = पिताजी के द्वारा।
  • क्लेश्यमानोऽपि = व्याकुल किया जाता हुआ भी।
  • नाऽधीतवान् = अध्ययन नहीं किया।
  • कुटुम्बिभिः = परिवारजनों के द्वारा।
  • ज्ञातिजनैः = बन्धु-बान्धवों के द्वारा।
  • गर्हितः = अपमानित।
  • ऊर्ध्वम् = ऊपर की ओर, लम्बी।
  • निःश्वस्य = साँस लेकर।
  • हा विधे! = हाय विधाता।
  • दुर्बुद्धिः = दुष्ट बुद्धि वाला।
  • परिधानैः = वस्त्रों से, पहनावों से।
  • अलङ्कारः = आभूषणों से।
  • भूषितः = सुशोभित।
  • नरः = मनुष्य।
  • निर्मणिभोगीव = मणि से रहित सर्प की तरह।
  • विमृश्य = विचार करके।
  • मार्गभ्रान्तः = राह/मार्ग से भटका हुआ।
  • उपैति = आ जाता है, समीप जाता है।
  • वरम् = श्रेष्ठ है।
  • भ्रान्तः = भटका हुआ।
  • मन्यते = माना जाता है।
  • अवाप्तुम = प्राप्त करने के लिए।
  • प्रवृत्तः = तत्पर।

प्रसंग – प्रस्तुत कथांश हमारी संस्कृत की पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ (प्रथमोभागः) के ‘सिकतासेतुः’ शीर्षक पाठ से उद्धत किया गया है। मूलतः यह पाठ सोमदेवविरिचत ‘कथासरित्सागर’ के सप्तम लम्बक (अध्याय) से संकलित है। इसमें तपोबल से विद्या प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील एक भ्रमित बालक को इन्द्र द्वारा अपने कार्य से समुचित मार्गदर्शन दिए जाने का प्रेरणास्पद वर्णन है। प्रस्तुत अंश में तपस्या में लीन तपोदत्त बचपन में विद्या प्राप्त न कर पाने से दुःखी होकर जो विचार व्यक्त करता है, उनका वर्णन किया गया है।

हिन्दी-अनुवाद : (इसके बाद तपस्या में लीन तपोदत्त का प्रवेश होता है।)
तपोदत्त – मैं तपोदत्त हूँ। बचपन में पिताजी द्वारा व्याकुल (कड़ा व्यवहार) किये जाने पर भी मैंने विद्याध्ययन नहीं किया। जिस कारण से सभी परिवारजनों, मित्रों और बन्धु-बान्धवों द्वारा मैं निन्दा का पात्र बना। (ऊपर की ओर लम्बी साँस लेकर)
हाय विधाता! मेरे द्वारा यह क्या किया गया? उस समय मैं कैसी दुष्ट बुद्धि वाला था? यह भी मैंने नहीं सोचा कि श्रेष्ठ वस्त्रों और आभूषणों से सुशोभित होने पर भी बिना विद्या के मनुष्य मणि से रहित सर्प के समान घर में अथवा सभा में शोभा नहीं पाता। (कुछ विचार करके)
ठीक है, ऐसा सोचने से क्या प्रयोजन? दिन में रास्ता भटका हुआ मनुष्य यदि शाम को घर आ जाता है तो भी अच्छा है। वह भटका हुआ (भ्रमित) नहीं माना जाता है। अब मैं तपस्या के द्वारा विद्या प्राप्त करने में प्रवृत्त हो गया हूँ।

सप्रसङ्ग संस्कृत-व्याख्या –

प्रसङ्गः – प्रस्तुतकथांशः अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य ‘शेमुषी-प्रथमो भागः’ इत्यस्य ‘सिकतासेतुः’ इति शीर्षकपाठाद् ऽयं सोमदेवविरचितस्य ‘कथासरित्सागरस्य’ सप्तमलम्बकात् संकलितः। अंशेऽस्मिन् विद्याहीनस्य तपोदत्तस्य बालकस्य वेदनामयी मन:स्थिते: तथा च तपोबलेन विद्यां प्राप्तुं तस्य संकल्पस्य वर्णनं वर्तते।

संस्कृत-व्याख्या – (तदनन्तरं तपसि लीनः तपोदत्तः प्रवेशं करोति)
तपोदत्तः – अहं तपोदत्तः अस्मि। शैशवे तातपादैः सन्ताप्यमानोऽपि विद्याध्ययनं न कृतवान्। तत्कारणात् अखिलैः परिवारजनैः सुहृद्भिः बन्धुबान्धवैश्च निन्दितोऽजायते। (आकाशे दीर्घश्वासं निश्वस्य)

हा दैव ! किमेतद् अहं कृतवान्। तस्मिन् काले कथंविधा दुर्मतिः अभवत् यद् इदमपि न विचारितं यद् –
अशिक्षितः मानवः मणिहीनसर्प इव विद्वज्जन्सम्म गृहे वा वस्त्रैः आभूषणैः सुसज्जितोऽपि शोभमानः न भवति। (किमपि विचार्य)
अस्तु, किमनेन? दिने पथभ्रष्टः सायंकालपर्यन्तं यदि सदनं प्राप्नोति, तदा अपि श्रेष्ठः, सः भ्रमितः न ज्ञायते। अयम् अहम् अधुना तपसा विद्यां गृहीतुम् तत्परो भवामि।

व्याकरणात्मक टिप्पणी –

  1. अस्मि-अस् धातु, लट्लकार, उत्तमपुरुष, एकवचन।
  2. क्लेश्यमानः-क्लिश + यत् + शानच्।
  3. अधीतवान्-अधि + इ + क्तवतु।
  4. गर्हितः-गर्ह + क्त।
  5. दुर्बुद्धिः -दुर् + बुध् + क्तिन्।
  6. भूषितोऽपि-भूषितः + अपि (विसर्ग-पूर्वरूप सन्धि)।
  7. भोगीव-भोगी + इव (दीर्घ सन्धि)।
  8. उपैति-उप + एति (वृद्धि सन्धि)।
  9. अवाप्तुम्-अव + अप् + तुमुन्।
  10. प्रवृत्तः-प्र + वृत् + क्त।

2. (जलोच्छलनध्वनिः श्रूयते)
अये कुतोऽयं कल्लोलोच्छलनध्वनिः? महामत्स्यो मकरो वा भवेत्। पश्यामि तावत्।
(पुरुषमेकं सिकताभिः सेतुनिर्माण-प्रयासं दृष्ट्वा सहासम्)
हन्त! नास्त्यभावो जगति मूर्खाणाम्! तीव्रप्रवाहायां नद्यां मूढोऽयं सिकताभिः सेतुं निर्मातुं प्रयतते! (साट्टहासं पार्श्वमुपेत्य)
भो महाशय! किमिदं विधीयते! अलमलं तव श्रमेण। पश्य,
रामो बबन्ध यं सेतुं शिलाभिर्मकरालये।
विदधद् बालुकाभिस्तं यासि त्वमतिरामताम्॥2॥
चिन्तय तावत्। सिकताभिः क्वचित्सेतुः कर्तुं युज्यते?

कठिन-शब्दार्थ :

  • जलोच्छलनध्वनिः = जल के उछलने की आवाज।
  • श्रूयते = सुनाई देती है।
  • कुतः = कहाँ से।
  • कल्लोलोच्छलनध्वनिः = तरंगों (लहरों) के उछलने की आवाज।
  • महामत्स्यः = बहुत बड़ी मछली।
  • मकरः = मगरमच्छ।
  • सिकताभिः = बालू रेत से।
  • सेतुः = पुल।
  • कुर्वाणम् = करते हुए।
  • सहासम् = हँसते हुए।
  • हन्त = खेद है।
  • जगति = संसार में।
  • मूढः = मूर्ख।
  • निर्मातुम् = निर्माण करने के लिए।
  • प्रयतते = प्रयत्न कर रहा है।
  • साट्टहासम् = जोर से हँसकर।
  • पार्श्वमुपेत्य = पास जाकर।
  • विधीयते = किया जा रहा है।
  • अलम् = पर्याप्त है।
  • बबन्ध = बाँधा था।
  • मकरालये = समुद्र में।
  • विदधद् = बनाते हुए।
  • अतिरामताम् = राम से भी बढ़कर।
  • चिन्तय = सोचो।
  • युज्यते = उचित है।

प्रसंग – प्रस्तुत कथांश हमारी संस्कृत की पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ (प्रथमोभागः) के ‘सिकतासेतुः’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है जो मूलतः ‘कथासरित्सागर’ से संकलित है। इस अंश में विद्या-प्राप्ति हेतु तपस्यारत तपोदत्त द्वारा गंगा नदी के तीव्र-प्रवाह में एक व्यक्ति को रेत से पुल बनाते हुए देखकर उसका उपहास किये जाने का वर्णन हुआ है।

हिन्दी-अनुवाद : (पानी के उछलने की आवाज सुनाई देती है।)
अरे! यह लहरों के उछलने की आवाज कहाँ से आ रही है? कोई बहुत बड़ी मछली है अथवा मगरमच्छ होगा। मैं जरा देखता हूँ।
[एक मनुष्य को बालू (रेत) से पुल बनाने का प्रयत्न करते हुए देखकर हँसते हुए।]
खेद है, संसार में मूों की कोई कमी नहीं है। अत्यधिक तेज प्रवाह वाली नदी में यह मूर्ख बालू (रेत) से पुल बनाने का प्रयत्न कर रहा है।
(ठहाके लगाकर हँसता हुआ उसके पास आकर) – हे महानुभाव! आप यह क्या कर रहे हैं? व्यर्थ में परिश्रम मत करो। देखो – राम ने समुद्र में जिस पुल को शिलाओं द्वारा बनाया था, ऐसा ही पुल बालू (रेत) से बनाते हुए तुम तो राम से भी बढ़ कर हो रहे हो।
जरा सोचो तो, कहीं बालू (रेत) से भी पुल बनाया जा सकता है?

सप्रसङ्ग संस्कृत-व्याख्या –

प्रसङ्ग – प्रस्तुतनाट्यांशः अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य ‘शेमुषी-प्रथमो भागः’ इत्यस्य ‘सिकतासेतुः’ इति शीर्षकपाठाद् उद्धृतः। पाठोऽयं महाकवि सोमदेवविरचितस्य ‘कथासरित्सागरस्य’ सप्तमलम्बकात् संकलितः। अंशेऽस्मिन्

बाल्येऽशिक्षितस्य तथा तपश्चर्यया विद्यामवाप्तुं कृतसङ्कल्पस्य तपोदत्तस्य तथा तत्रैव तीव्रप्रवाहायां नद्यां सिकताभिः सेतुनिर्माणप्रयासं कुर्वाणं पुरुषमेकं दृष्ट्वा तस्य विचाराणां वर्णनं वर्तते।

संस्कृत-व्याख्या –
(जलोर्ध्वगमनाशब्दः आकर्ण्यते)
अरे ! एषः तरङ्गाणाम् ऊर्ध्वगमनस्य शब्दः कस्मात् स्थानात् आयाति, विशालमीनः मक्रः वा स्यात्। तर्हि ईक्षे। (मानवमेकं बालुकाभि सेतोः सृष्टेः प्रयत्नं कुर्वन्तम् अवलोक्य हासपूर्वकम्)
हा! संसारे न बालिशानामभावः वर्तते। एषः विवेकहीनः प्रवाहमानायां सरितायाम् बालुकाभिः धरणं स्रष्टुं प्रयासं करोति।
(अट्टहासपूर्वकं तस्य समीपं गत्वा)
हे महोदय! किमेतत् सम्पाद्यते? भवतु श्रमं मा कुरु।
अवलोकय,
सागरे श्रीरामचन्द्रः यं धरणं (सेतुम्) प्रस्तरखण्डैः निर्मितवान् तद् भवान् सिकताभिः निर्मातुम् इच्छसि। भवान् तु रामादपि श्रेष्ठतरः सञ्जातः (रामादपि अग्रे गच्छति)।
तर्हि विचारय। कुत्रचिद् बालुकाभिः सेतो: निर्माणम् उचितम्?

व्याकरणात्मक टिप्पणी –

  1. जलोच्छलनम् – जल + उच्छलनम् (गुण सन्धि)।
  2. कुतोऽयम् – कुतः + अयम् (विसर्ग-पूर्वरूप सन्धि)।
  3. नास्त्यभावः – न + अस्ति + अभावः (दीर्घ एवं यण् सन्धि)।
  4. प्रयतते – प्र + यत् धातु, लट्लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन।
  5. उपेत्य – उप + इण् + ल्यप्।
  6. बालूकाभिस्तम् – बालूकाभिः + तम् (विसर्ग-सत्व सन्धि)।

3. पुरुषः – भोस्तपस्विन्! कथं मामुपरुणत्सि। प्रयत्नेन किं न सिद्धं भवति? कावश्यकता
शिलानाम्? सिकताभिरेव सेतुं करिष्यामि स्वसंकल्पदृढतया।
तपोदत्त – आश्चर्यम्! सिकताभिरेव सेतुं करिष्यसि? सिकता जलप्रवाहे स्थास्यन्ति किम्? .
भवता चिन्तितं न वा?
पुरुषः – (सोत्यासम्) चिन्तितं चिन्तितम्। सम्यक् चिन्तितम्। नाहं सोपानमागैरट्टमधिरो,
विश्वसिमि। समुत्प्लुत्यैव गन्तुं क्षमोऽस्मि।
तपोदत्तः – (सव्यङ्ग्यम्)
साधु साधु! आञ्जनेयमप्यतिक्रामसि!
पुरुषः – (सविमर्शम्)
कोऽत्र सन्देहः? किञ्च,
विना लिप्यक्षरज्ञानं तपोभिरेव केवलम्।
यदि विद्या वशे स्युस्ते, सेतुरेष तथा मम॥ 3 ॥

कठिन-शब्दार्थ :

  • उपरुणत्सि = रोकते हो।
  • सिकता = रेत, बालू।
  • स्थास्यन्ति = रुकेगी।
  • सोत्प्रासम् = उपहासपूर्वक, खिल्ली उड़ाते हुए।
  • सोपानमार्गेः = सीढ़ियों के रास्ते से।
  • अट्टम् = अटारी को।
  • अधिरोदुम् = चढ़ने के लिए।
  • विश्वसिमि = विश्वास करता हूँ।
  • समुत्प्लुत्यैव = उछल कर ही।
  • क्षमः = समर्थ।
  • आञ्जनेयम् = अञ्जनिपुत्र हनुमान् को।
  • अतिक्रामसि = अतिक्रमण कर रहे हो।
  • सविमर्शम् = सोच-विचार कर।

प्रसंग – प्रस्तुत कथांश हमारी संस्कृत की पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ (प्रथमोभागः) के ‘सिकतासेतुः’ नामक पाठ से उद्धृत है, जो मूलतः सोमदेवविरचित ‘कथासरित्सागर’ के सप्तम लम्बक (अध्याय) से संकलित किया गया है। इस अंश में विद्या-प्राप्ति हेतु तपोरत तपोदत्त द्वारा गंगा नदी के प्रवाहयुक्त जल में बालू (रेत) से पुल बनाने का प्रयत्न करने वाले पुरुष का उपहास किये जाने का तथा उस पुरुष द्वारा बिना अक्षर-ज्ञान के तपस्या द्वारा ही विद्या-प्राप्ति का प्रयत्न करने वाले तपोदत्त के प्रति व्यंग्यपूर्ण प्रत्युत्तर दिये जाने का सुन्दर वर्णन हुआ है।

हिन्दी-अनुवाद :
पुरुष – हे तपस्वी! मुझे क्यों रोक रहे हो? प्रयत्न करने से क्या कार्य सिद्ध नहीं होता है? शिलाओं की क्या आवश्यकता है? मैं अपने दृढ़ संकल्प से बालू (रेत) से ही पुल का निर्माण करूँगा।
तपोदत्त – आश्चर्य है ! बालू (रेत) से ही पुल का निर्माण करोगे? क्या बालू (रेत) जल के प्रवाह में रुकेगी? आपने यह सोचा भी है या नहीं?
पुरुष – (उपहासपूर्वक) सोचा है, सोच लिया है। अच्छी प्रकार से सोच लिया। मैं सीढ़ी के मार्ग से अट्टालिका पर चढ़ने में विश्वास नहीं करता हूँ। उछलकर ही वहाँ जाने में समर्थ हूँ।
तपोदत्त – (व्यंग्य सहित) शाबाश! शाबाश! अञ्जनीपुत्र हनुमान्जी से भी बढ़कर हो!
पुरुष – (विचारपूर्वक) इसमें क्या सन्देह है? क्योंकि यदि बिना लिपि-ज्ञान के और अक्षर-ज्ञान के, केवल तपस्या से ही तुम विद्या को प्राप्त कर सकते हो, तो मेरा यह बालू का पुल क्यों नहीं बन सकता?

सप्रसङ्ग संस्कृत-व्याख्या –

प्रसङ्ग: – प्रस्तुतनाट्यांशः अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य ‘शेमुषी-प्रथमो भागः’ इत्यस्य ‘सिकतासेतुः’ इतिशीर्षकपाठाद् उद्धृतः। मूलतः पाठोऽयं सोमदेवविरचितस्य ‘कथासरित्सागरस्य’ सप्तमलम्बकात् संकलितः।
नाट्यांशेऽस्मिन् पुरुषवेषधारीदेवेन्द्रस्य तपोदत्तस्य च वार्तालाप: वर्णितः। पुरुषः नद्यां सिकतासेतुनिर्माणस्य निष्फलप्रयत्न कृत्वा लिप्यक्षरज्ञानपूर्वकं विद्याभ्यासं कर्तुं तपोदत्तं प्रेरयति।

संस्कृत-व्याख्या –
पुरुषः – हे तापस! कस्मात् कारणात् माम् अवरोधयसि? प्रयासेन किं न सिध्यति? प्रस्तराणां किं महत्त्वम्? दृढ़सङ्कल्पेन एवाहं बालुकाभिरेव सेतोः निर्माणं करिष्ये।
तपोदत्तः – कुतूहलम्, बालुकाभिरेव धरणं निर्मास्यसे? अपि बालुकाः सलिलधारायां स्थिराः भविष्यन्ति? अपि त्वया विचारितं न वा?
पुरुषः – (उपहासपूर्वकम्) अनेकशः विचारितम्। सम्यग्रूपेण विचारितम्। अहं पद्धतिसरणिभिः अट्टालिकायाः उपरि गन्तुं विश्वासं न करोमि। सम्यग् उपरि प्लुत्वा एव यातुं समर्थोऽस्मि।
तपोदत्तः – (व्यङ्ग्येन सहितम्) उत्तमः, त्वं तु हनुमतमपि उल्लङ्वयसि।
पुरुषः – (विचारपूर्वकम्) का अत्र शङ्का? किञ्च लिपिज्ञानं वर्णज्ञानं च अन्तरेणं मात्र तपश्चर्यया यदि विद्या अधिगृह्ये तदा इदं मे धरणम् एवमेव।

व्याकरणात्मक टिप्पणी

  1. उपरुणत्सि – उप + रुण धातु, लट्लकार, मध्यमपुरुष, एकवचन।
  2. कावश्यकता – का + आवश्यकता (दीर्घ सन्धि)।
  3. सिकताभिरेव – सिकताभिः + एव (विसर्ग-रुत्व सन्धि)।
  4. अधिरोढुम् – अधि + रुध् + तुमुन्।
  5. लिप्यक्षरज्ञानम् – लिपि + अक्षरज्ञानम् (यण् सन्धि)।
  6. सेतुरेषः – सेतुः + एषः (विसर्ग-रुत्व सन्धि)।

4. तपोदत्तः – (सवैलक्ष्यम् आत्मगतम्)
अये! मामेवोद्दिश्य भद्रपुरुषोऽयम् अधिक्षिपति! नूनं सत्यमत्र पश्यामि। अक्षरज्ञानं विनैव वैदुष्यमवाप्तुम् अभिलषामि! तदियं भगवत्याः शारदाया अवमानना। गुरुगृहं गत्वैव विद्याभ्यासो मया करणीयः। पुरुषार्थैरेव लक्ष्यं प्राप्यते।
(प्रकाशम्)
भो नरोत्तम! नाऽहं जाने यत् कोऽस्ति भवान्। परन्तु भवद्भिः उन्मीलितं मे नयनयुगलम्। तपोमात्रेण विद्यामवाप्तुं प्रयतमानोऽहमपि सिकताभिरेव सेतुनिर्माणप्रयासं करोमि। तदिदानी विद्याध्ययनाय गुरुकुलमेव गच्छामि।
(सप्रणामं गच्छति)

कठिन-शब्दार्थ :

  • सवैलक्ष्यम् = लज्जापूर्वक।
  • आत्मगतम् = मन ही मन में।
  • अधिक्षिपति = आक्षेप कर रहा है।
  • नूनम् = निश्चय ही।
  • वैदुष्यम् = विद्वत्ता।
  • अवाप्तुम् = प्राप्त करने के लिए।
  • अभिलषामि = अभिलाषा कर रहा हूँ।
  • पुरुषार्थः = परिश्रम से।
  • जाने = जानता हूँ।
  • उम्मलितम् = खोल दी है।
  • नयनयुगलम् = दोनों नेत्र।
  • प्रयतमानः = प्रयत्न करता हुआ।

प्रसंग – प्रस्तत कथांश हमारी संस्कत की पाठयपुस्तक ‘शेमषी’ (प्रथमोभागः) के ‘सिकतासेतः’ नामक पाठ से उद्धृत किया गया है। मूलतः यह पाठ सोमदेवविरचित ‘कथासरित्सागर’ के सप्तम लम्बक (अध्याय) से संकलित किया गया है। इस अंश में बालू (रेत) से गंगा नदी के जल के प्रवाह में पुल बनाने का प्रयत्न करने वाले पुरुष की व्यंग्योक्ति से केवल तपस्या द्वारा विद्यार्जन करने वाले तपोदत्त को सही मार्गदर्शन प्राप्त होने का तथा विद्याध्ययन हेतु गुरुकुल में जाने का प्रेरणास्पद वणेन हुआ है।

हिन्दी-अनुवाद : तपोदत्त – (लज्जापूर्वक अपने मन ही मन में) अरे! यह सज्जन तो मुझे ही लक्ष्य करके आक्षेप कर रहा है। . निश्चय ही इसमें सत्यता देख रहा हूँ। मैं बिना अक्षर-ज्ञान के ही विद्वत्ता प्राप्त करने की अभिलाषा कर रहा हूँ। इसलिए यह तो भगवती सरस्वती का तिरस्कार है। मुझे गुरुकुल में जाकर ही विद्या का अभ्यास करना चाहिए। परिश्रम से ही लक्ष्य की प्राप्ति होती है।

(प्रकट रूप में)
हे नरश्रेष्ठ! मैं नहीं जानता कि आप कौन हैं? परन्तु आपने मेरी आँखें खोल दी हैं। केवल तपस्या के बल से ही विद्या-प्राप्ति का प्रयत्न करता हुआ मैं भी बालू (रेत) से ही पुल बनाने का प्रयास कर रहा हूँ। इसलिए अब मैं विद्या अध्ययन के लिए गुरुकुल में ही जाता हूँ।
(प्रणाम करके चला जाता है।)

सप्रसङ्ग संस्कृत-व्याख्या –
प्रसङ्गः-प्रस्तुतगद्यांशः अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य ‘शेमुषी’ (प्रथमो भागः) इत्यस्य ‘सिकतासेतुः’ इति शीर्षकपाठाद् उद्धृतः। अस्मिन् पाठे विद्याध्ययनं न कृत्वा केवलं तपोबलेन विद्यां प्राप्तुं प्रयत्नशीलस्यैकस्य बालकस्य कथा वर्तते। इन्द्रः
तस्य समुचितं मार्गदशनं करोति, येन सः यथार्थमवगम्य विद्याध्ययने तत्परो भवतीति प्रस्तुतांशे वर्णितम्।

संस्कृत-व्याख्या –

तपोदत्तः-(लज्जापूर्वकं स्वमनसि)
पुरुषस्य वचनं श्रुत्वा तपोदत्तः स्वमनसि लज्जाम् अनुभवन् चिन्तयति यत् अरे! माम् तपोदत्तमेव आधारिकृत्य एषः श्रेष्ठजनः अधिक्षेपं करोति। निश्चयेन अस्मिन् कार्ये अस्य पुरुषस्य कथने यथार्थम् अवलोकयामि। अहं वर्णविन्यासज्ञानमन्तरा एव विद्वत्तां प्राप्तुम् इच्छामि। वस्तुतः एतत् कार्यं तु देव्याः सरस्वत्याः अपमानस्वरूपं वर्तते। मया आचार्यस्य आवासे विद्यालये वा गत्वा एव विद्याध्ययनं कर्त्तव्यम्। परिश्रमेणैव सफलता प्राप्यते।

(प्रकटरूपेण)
हे नरश्रेष्ठ! अहं नहि जानामि यत् भवान् कः वर्तते। किन्तु त्वया मम नेत्रद्वयम् उद्घाटितम्। केवलं तपोभिः विद्यां प्राप्तुं प्रयत्नशीलोऽहमपि बालुकाभिः एव जलबन्धस्य रचनायाः प्रयत्नं करोमि। तस्मात् अधुनैव अहं विद्यार्जनाय आचार्यस्य गृह (विद्यालयं) एव यामि।
(प्रणामपूर्वकं याति)

व्याकरणात्मक टिप्पणी –

  1. अधिक्षिपति-अधि + क्षिप् धातु, लट् लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन।
  2. विनैव-विना + एव (वृद्धि सन्धि)।
  3. अवाप्तुम्-अव + अप् + तुमुन्।
  4. गत्वैव-गत्वा + एव (वृद्धि सन्धि) गत्वा-गम् + क्त्वा।
  5. करणीयः-कृ + अनीयर्।
  6. नरोत्तमः-नर + उत्तमः (गुण सन्धि)।
  7. भवद्भिः -भवत् शब्द, पुल्लिंग, तृतीया विभक्ति, बहुवचन।
  8. प्रयतमानः-प्र + यत् + शानच्।

RBSE Class 9 Sanskrit सिकतासेतुः Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत
(क) कः बाल्ये विद्यां न अधीतवान?
(ख) तपोदत्तः कया विद्याम् अवाप्तुं प्रवृत्तः अस्ति?
(ग) मकरालये कः शिलाभिः सेतुं बबन्ध?
(घ) मार्गभ्रान्तः सन्ध्यां कुत्र उपैति?
(ङ) पुरुषः सिकताभिः किं करोति?
उत्तराणि :
(क) तपोदत्तः।
(ख) तपश्चर्या
(ग) रामः।
(घ) गृहम्
(ङ) सेतुनिर्माणम्।

प्रश्न 2.
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत
(अधोलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए-)
(क) अनधीतः तपोदत्तः कैः गर्हितोऽभवत्?
(अध्ययन न किया हुआ तपोदत्त किनके द्वारा निन्दित हुआ?)
उत्तरम् :
अनधीतः तपोदत्तः कुटुम्बिभिः मित्रैश्च गर्हितोऽभवत्।
(अध्ययन न किया हुआ तपोदत्त परिवारजनों और मित्रों द्वारा निन्दित हुआ।)

(ख) तपोदत्तः केन प्रकारेण विद्यामवाप्तुं प्रवृत्तोऽभवत्?
(तपोदत्त किस तरह से विद्या प्राप्त करने के लिए प्रवृत्त हुआ?)
उत्तरम् :
तपोदत्तः तपोभिरेव विद्यामवाप्तुं प्रवृत्तोऽभवत्।
(तपोदत्त तपस्या के द्वारा विद्या प्राप्त करने के लिए प्रवृत्त हुआ।)

(ग) तपोदत्तः पुरुषस्य कां चेष्टां दृष्ट्वा अहस?
(तपोदत्त पुरुष की किस चेष्टा को देखकर हँसा था?)
उत्तरम् :
तपोदत्तः पुरुषं सिकताभिः नद्यां सेतुनिर्माणप्रयासं कुर्वाणं दृष्ट्वा अहसत्।
[तपोदत्त पुरुष को बालू (रेत) से नदी में पुल बनाने का प्रयास करता हुआ देखकर हँसा था।]

(घ)
तपोमात्रेण विद्यां प्राप्तुं तस्य प्रयासः कीदृशः कथितः?
(केवल तपस्या से विद्या प्राप्त करने का उसका प्रयास किस प्रकार का कहा गया है?)
उत्तरम् :
तपोमात्रेण विद्यां प्राप्तुं तस्य प्रयासः सिकताभिः नद्यां सेतुनिर्माणप्रयासः कथितः।
[केवल तपस्या के द्वारा विद्या प्राप्त करने के लिए उसका प्रयास बालू (रेत) से नदी में पुल बनाने का प्रयास कहा गया है।]

(ङ) अन्ते तपोदत्तः विद्याग्रहणाय कुत्र गतः?
(अन्त में तपोदत्त विद्या ग्रहण करने के लिए कहाँ गया?)
उत्तरम् :
अन्ते तपोदत्तः विद्याग्रहणाय गुरुकुलं गतः।
न्ति में तपोदत्त विद्या ग्रहण करने के लिए गुरुकुल में गया।)

प्रश्न 3.
भिन्नवर्गीयं पदं चिनुत यथा-अधिरोढुम्, गन्तुम्, सेतुम्, निर्मातुम्।
(क) निःश्वस्य, चिन्तय, विमृश्य, उपेत्य।
उत्तरम् :
चिन्तय।

(ख) विश्वसिमि, पश्यामि, करिष्यामि, अभिलषामि।
उत्तरम् :
करिष्यामि।

(ग) तपोभिः, दुर्बुद्धिः, सिकताभिः, कुटुम्बिभिः।
उत्तरम् :
दुर्बुद्धिः।

प्रश्न 4.
(क) रेखाङ्कितानि सर्वनामपदानि कस्मै प्रयुक्तानि?
(i) अलमलं तव श्रमेण।
उत्तरम् :
पुरुषाय।

(ii) न अहं सोपानमागैरट्टमधिरोढुं विश्वसिमि।
उत्तरम् :
पुरुषाय।

(iii) चिन्तितं भवता न वा?
उत्तरम् :
पुरुषाय।

(iv) गुरुगृहं गत्वैव विद्याभ्यासो मया करणीयः।
उत्तरम् :
तपोदत्ताय।

(v) भवद्भिः उन्मीलितं मे नयनयुगलम्।
उत्तर :
तपोदत्ताय।

(ख) अधोलिखितानि कथनानि कः कं प्रति कथयति?
उत्तरम्

प्रश्न 5.
स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत –
(क) तपोदत्तः तपश्चर्यया विद्यामवाप्तुं प्रवृत्तोऽसि।
उत्तरम् :
तपोदत्तः कया विद्यामवाप्तुं प्रवृत्तोऽसि?

(ख) तपोदत्तः कुटुम्बिभिः मित्रैः गर्हितः अभवत्।
उत्तरम् :
कः कुटुम्बिभिः मित्र: गर्हितः अभवत्?

(ग) पुरुषः नद्यां सिकताभिः सेतुं निर्मातुं प्रयतते।
उत्तरम् :
पुरुषः कुत्र सिकताभिः सेतुं निर्मातुं प्रयतते?

(घ) तपोदत्तः अक्षरज्ञानं विनैव वैदुष्यमवाप्तुम् अभिलषति।
उत्तरम् :
तपोदत्तः कम् विनैव वैदुष्यमवाप्तुम् अभिलषति?

(ङ) तपोदत्तः विद्याध्ययनाय गुरुकुलम् अगच्छत्।
उत्तरम् :
तपोदत्तः किमर्थं गुरुकुलं अगच्छत्?

(च) गुरुगृहं गत्वैव विद्याभ्यास: करणीयः।
उत्तरम् :
कुत्र गत्वैव विद्याभ्यासः करणीयः?

प्रश्न 6.
उदाहरणमनुसृत्य अधोलिखितविग्रहपदानां समस्तपदानि लिखत –
विग्रहपदानि – समस्तपदानि
यथा – संकल्पस्य सातत्येन – संकल्पसातत्येन
(क) अक्षराणां ज्ञानम् – ……………….
(ख) सिकतायाः सेतुः – ……………….
(ग) पितुः चरणैः – ……………….
(घ) गुरोः गृहम् – …………..
(ङ) विद्यायाः अभ्यासः – ……………
उत्तरम् :
विग्रहपदानि – समस्तपदानि
(क) अक्षराणां ज्ञानम् – अक्षरज्ञानम्
(ख) सिकतायाः सेतुः – सिकतासेतुः
(ग) पितुः चरणैः – पितृचरणैः
(घ) गुरोः गृहम् – गुरुगृहम्
(ङ) विद्यायाः अभ्यासः – विद्याभ्यासः

(अ) उदाहरणमनुसृत्य अधोलिखितानां समस्तपदानां विग्रहं कुरुत –

समस्तपदानि – विग्रहः
यथा – नयनयुगलम् – नयनयोः युगलम्
(क) जलप्रवाहे – ……………
(ख) तपश्चर्यया – …………..
(ग) जलोच्छलनध्वनिः – …………
(घ) सेतुनिर्माणप्रयासः – …………..
उत्तरम् :
समस्तपदानि – विग्रहः
(क) जलप्रवाहे – जलस्य प्रवाहे
(ख) तपश्चर्यया – तपसः चर्यया
(ग) जलोच्छलनध्वनिः – जलस्य उच्छलनस्य ध्वनिः
(घ) सेतुनिर्माणप्रयासः – सेतोः निर्माणस्य प्रयासः।

प्रश्न 7.
उदाहरणमनुसृत्य कोष्ठकात् पदम् आदाय नूतनं वाक्यद्वयं रचयत
(क) यथा- अलं चिन्तया। (‘अलम्’ योगे तृतीया)
(i) ….. ….. (भय) (कोलाहल)
उत्तरम् :
(i) अलं भयेन।
(ii) अलं कोलाहलेन।

(ख) यथा – माम् अनु स गच्छति। (‘अनु’ योगे द्वितीया)
(i) ….. ….. ….. ….. (गृह)
(ii) ….. ….. ….. ….. (पर्वत)
उत्तरम् :
(i) गृहम् अनु सः भ्रमति।
(ii) पर्वतम् अनु सः गच्छति।

(ग) यथा- अक्षरज्ञानं विनैव वैदुष्यं प्राप्तुमभिलषसि। (‘विना’ योगे द्वितीया)
(i) ….. ….. ….. ….. (परिश्रम)
(ii) ….. ….. ….. ….. (अभ्यास)
उत्तरम् :
(i) परिश्रमं विनैव धनं प्राप्तुमभिलषसि।
(ii) अभ्यासं विनैव विद्यां प्राप्तुमभिलषसि।

(घ) यथा-सन्ध्यां यावत् गृहमुपैति। (‘यावत्’ योगे द्वितीया)
(i) ….. ….. ….. ….. (मास)
(ii) ….. ….. ….. ….. (वर्ष)
उत्तरम् :
(i) मासं यावत् नगरम् उपैति।
(ii) वर्षं यावत् विद्यालयम् उपैति।

RBSE Class 9 Sanskrit सिकतासेतुः Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
“अहम् ……….. तपोदत्तः।”
उपर्युक्तवाक्यस्य रिक्तस्थाने पूरणीयक्रियापदमस्ति
(अ) अस्मि
(ब) अस्ति
(स) असि
(द) स्म
उत्तर :
(अ) अस्मि

प्रश्न 2.
“हन्त! नास्त्यभावो जगतिः……….।”
रिक्तस्थाने पूरणीयपदं वर्तते
(अ) मूर्खाः
(ब) मूर्खेभ्यः
(स) मूर्खाणाम्
(द) मूर्खेषु
उत्तर :
(स) मूर्खाणाम्

प्रश्न 3.
“अलमलं तव श्रमेण।”
रेखाङ्कितपदे ‘अलम्’ योगे का विभक्तिः प्रयुक्ता?
(अ) द्वितीया
(ब) तृतीया
(स) चतुर्थी
(द) पंचमी
उत्तर :
(ब) तृतीया

प्रश्न 4.
‘सिकताभिरेव सेतुं करिष्यामि’
रेखाङ्कितपदे लकारः, पुरुषः, वचनञ्च वर्तते
(अ) लट्लकारः उत्तमपुरुषः, एकवचनम्
(ब) लङ्लकारः, उत्तमपुरुषः, एकवचनम्
(स) लोट्लकारः, मध्यमपुरुषः, एकवचनम्
(द) लट्लकारः, उत्तमपुरुषः, एकवचनम्
उत्तर :
(द) लट्लकारः, उत्तमपुरुषः, एकवचनम्

प्रश्न 5.
“सिकताः जलप्रवाहे……..किम्?”
रिक्तस्थाने ‘स्था’ धातोः लुट्लकारस्य रूपं वर्तते
(अ) स्थास्यन्ति
(ब) तिष्ठिष्यन्ति
(स) स्थास्यामि
(द) स्थास्यसि
उत्तर :
(अ) स्थास्यन्ति

लघूत्तरात्मक प्रश्न :

(क) संस्कृत में प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
तपोदत्तः बाल्ये कैः क्लेश्यमानोऽपि विद्यां नाधीतवान्?
(तपोदत्त ने बचपन में किनके द्वारा पीड़ित किये जाने पर भी विद्या प्राप्त नहीं की?)
उत्तर :
तपोदत्तः बाल्ये पितृचरणै: क्लेश्यमानोऽपि विद्यां नाधीतवान्।
(तपोदत्त ने बचपन में पिताजी के द्वारा पीड़ित किये जाने पर भी विद्या प्राप्त नहीं की।)

प्रश्न 2.
परिधानैरलङ्कारभूषितोऽपि कः न शोभते?
(वस्त्रों और आभूषणों से सुशोभित होने पर भी कौन शोभा नहीं पाता?)
उत्तर :
परिधानैरलङ्कारभूषितोऽपि विद्याहीनः न शोभते।
(वस्त्रों और आभूषणों से सुशोभित होने पर भी विद्या से हीन व्यक्ति शोभा नहीं पाता है।)

प्रश्न 3.
कीदृशः मार्गभ्रान्तः अपि वरम्?
(कैसा मार्ग से भटका हुआ भी ठीक है?)
उत्तर :
दिवसे मार्गभ्रान्तः सन्ध्यां यावद् यदि गृहमुपैति तदपि वरम्।।
(दिन में मार्ग से भटका हुआ यदि सन्ध्या को घर आ जाता है तो भी वह ठीक है।)

प्रश्न 4.
जगति केषाम् अभावो नास्ति?
(संसार में किनका अभाव नहीं हैं?)
उत्तर :
जगति मूर्खाणाम् अभावो नास्ति।
(संसार में मूों का अभाव नहीं है।)

प्रश्न 5.
रामः मकरालये कैः सेतुं बबन्ध?
(राम ने समुद्र में किनसे पुल बाँधा था?)
उत्तर :
रामः मकरालये शिलाभिः सेतुं बबन्ध।
(राम ने समुद्र में शिलाओं से पुल बाँधा था।)

प्रश्न 6.
परुषः काभिः सेतनिर्माणस्य प्रयासं करोति स्म?
(पुरुष किनसे पुल बनाने का प्रयास कर रहा था?)
उत्तर :
पुरुषः सिकताभिः सेतुनिर्माणस्य प्रयासं करोति स्म।
(पुरुष बालू (मिट्टी) से पुल बनाने का प्रयास कर रहा था।)

प्रश्न 7.
पुरुषः कथमधिरोढुं न विश्वसिति?
(पुरुष किस प्रकार ऊपर चढ़ने के लिए विश्वास नहीं करता था?)
उत्तर :
पुरुषः सोपानमार्गः अधिरोढुं न विश्वसिति।
(पुरुष सीढ़ियों के मार्ग से ऊपर चढ़ने में विश्वास नहीं करता था।)

प्रश्न 8.
भद्रपुरुषः कम् उद्दिश्य अधिक्षिपति?
(भद्रपुरुष किसे उद्देश्य में करके आक्षेप करता है?)
उत्तर :
भद्रपुरुषः तपोदत्तम् उद्दिश्य अधिक्षिपति।
(भद्र पुरुष तपोदत्त को उद्देश्य में करके आक्षेप करता है।)

प्रश्न 9.
तपोदत्तः अक्षरज्ञानं विनैव किम् अवाप्तुमभिलषति?
(तपोदत्त अक्षर-ज्ञान के बिना ही क्या प्राप्त करना चाहता था?)
उत्तर :
तपोदत्तः अक्षरज्ञानं विनैव वैदुष्यमवाप्तुमभिलषति।
(तपोदत्त अक्षर-ज्ञान के बिना ही विद्वत्ता प्राप्त करना चाहता था।)

प्रश्न 10.
तपोदत्तः विद्याध्ययनाय कुत्र गच्छति?
(तपोदत्त विद्या अध्ययन के लिए कहाँ जाता है?)
उत्तर :
तपोदत्तः विद्याध्ययनाय गुरुकुलं गच्छति।
(तपोदत्त विद्या अध्ययन के लिए गुरुकुल में जाता है।)

प्रश्न 11.
तपोदत्त कस्मिन् कार्ये किमर्थञ्च रतः भवति?
(तपोदत्त किस कार्य में और किसलिए लीन होता है?)
उत्तर :
तपोदत्तः विद्यामवाप्तुं तपोरतः भवति।
(तपोदत्त विद्या प्राप्त करने के लिए तपस्या में लीन होता है।)

प्रश्न 12.
विद्याहीनः नरः सभायां कथमिव न शोभते?
(विद्याहीन मनुष्य सभा में किसके समान शोभा नहीं देता?)
उत्तर :
विद्याहीनः नरः सभायां निर्मणिभोगीव न शोभते।
(विद्याहीन मनुष्य सभा में मणिहीन सर्प के समान शोभा नहीं देता।)

प्रश्न 13.
तपोदत्तः कस्मात् कारणात् सर्वैः गर्हितोऽभवत?
(तपोदत्त किस कारण सभी से निन्दित हुआ?)
उत्तर :
तपोदत्तः अशिक्षित्वात् सर्वैः गर्हितोऽभवत्।
(तपोदत्त अशिक्षित होने के कारण सभी से निन्दित हुआ।)

प्रश्न 14.
कः भ्रान्तो न मन्यते?
(कौन भटका हुआ नहीं माना जाता है?)
उत्तर :
यः दिवसे भ्रान्तः सन्ध्यां यावद् गृहमुपैति सः भ्रान्तो न मन्यते।
(जो दिन में भटका हुआ सन्ध्या को घर आ जाता है वह भटका हुआ नहीं माना जाता है।)

प्रश्न 15.
तपोदत्तः कीदृशं पुरुषमेकं पश्यति?
(तपोदत्त किस प्रकार के एक पुरुष को देखता है?)
उत्तर :
तपोदत्तः सिकताभिः सेतुनिर्माणप्रयासं कुर्वाणं पुरुषमेकं पश्यति।
(तपोदत्त बालू से पुल बनाने का प्रयास करते हुए एक पुरुष को देखता है।)

प्रश्न 16.
पुरुषः कुत्र सिकताभिः सेतुं निर्मातुं प्रयतते स्म?
(पुरुष कहाँ पर बालू से पुल बनाने का प्रयत्न कर रहा था?)
उत्तर :
पुरुषः तीव्रप्रवाहायां नद्यां सिकताभिः सेतुं निर्मातुं प्रयतते स्म।
(पुरुष तीव्र प्रवाह वाली नदी में बालू से पुल बनाने का प्रयत्न कर रहा था।)

प्रश्न 17.
केन सर्वं सिद्धं भवति?
(किससे सब कुछ सिद्ध होता है?)
उत्तर :
प्रयत्नेन सर्वं सिद्धं भवति।
(प्रयत्न से सब कुछ सिद्ध होता है।)

प्रश्न 18.
गुरुगृहं गत्वैव कः करणीयः?
(गुरुगृह में जाकर ही क्या करना चाहिए?)
उत्तर :
गुरुगृहं गत्वैव विद्याभ्यासो करणीयः।
(गुरुगृह में जाकर ही विद्याभ्यास करना चाहिए।)

प्रश्न 19.
कैरेव लक्ष्यं प्राप्यते?
(किनसे लक्ष्य प्राप्त होता है?)
उत्तर :
पुरुषार्थरैव लक्ष्यं प्राप्यते।
(पुरुषार्थ से लक्ष्य प्राप्त होता है।)

प्रश्न 20.
पुरुषेण कस्य नयनयुगलम् उन्मीलितम्?
(पुरुष ने किसके दोनों नेत्रों को खोल दिया?)
उत्तर :
पुरुषेण तपोदत्तस्य नयनयुगलम् उन्मीलितम्।
(पुरुष ने तपोदत्त के दोनों नेत्रों को खोल दिया।)

(ख) प्रश्न-निर्माणम् –

प्रश्न 1.
अधोलिखितवाक्येषु रेखाङ्कितपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत –

  1. तपस्यारतः तपोदत्तः प्रविशति।
  2. बाल्ये पितृचरणैः क्लेश्यमानोऽपि विद्यां नाऽधीतवानस्मि।
  3. निर्मणिभोगीव विद्याहीनः नरः न शोभते।
  4. दिवसे मार्गभ्रान्तः सन्ध्यां यावद् आगतः नरः भ्रान्तो न मन्यते।
  5. इदानीं तपश्चर्यया विद्यामवाप्तुं प्रवृत्तोऽस्मि।
  6. जलोच्छलनस्य ध्वनिः श्रूयते।
  7. तपोदत्तः पुरुषमेकं सिकताभिः सेतुनिर्माणप्रयासं कुर्वाणं पश्यति।
  8. जगति मूर्खाणाम् अभावो नास्ति।
  9. मूढोऽयं तीव्रप्रवाहायां नद्यां सिकताभिः सेतुं निर्मातुं प्रयतते।
  10. रामः मकरालये शिलाभिः सेतुं बबन्ध।
  11. त्वम् अतिरामताम् यासि।
  12. प्रयत्लेन सर्वं सिद्धं भवति।
  13. स्वसंकल्पदृढतया सिकताभिरेव सेतुं करिष्यामि।
  14. अहं सोपानमार्गः अट्टमधिरोढुं न विश्वसिमि।
  15. अहं समुत्प्लुत्यैव गन्तुं क्षमोऽस्मि।
  16. मामेवोद्दिश्य भद्रपुरुषोऽयम् अधिक्षिपति।
  17. अक्षरज्ञानं विनैव वैदुष्यमवाप्तुम् अभिलषामि।
  18. गुरुगृहं गत्वैव विद्याभ्यासो मया करणीयः।
  19. पुरुषार्थैः एव लक्ष्यं प्राप्यते।
  20. भवद्भिः मे नयनयुगलम् उन्मीलितम्।

उत्तर :
प्रश्न-निर्माणम्

  1. कीदृशः तपोदत्तः प्रविशति?
  2. बाल्ये कैः क्लेश्यमानोऽपि विद्यां नाऽधीतवानस्मि?
  3. निर्मणिभोगीव कीदृशः नरः न शोभते?
  4. कीदृशः नरः भ्रान्तो न मन्यते?
  5. इदानीं कया विद्यामवाप्तुं प्रवृत्तोऽस्मि?
  6. कस्य ध्वनिः श्रूयते?
  7. तपोदत्तः पुरुषमेकं किम् कुर्वाणं पश्यति?
  8. जगति केषाम् अभावो नास्ति?
  9. मूढोऽयं कुत्र सिकताभिः सेतुं निर्मातुं प्रयतते?
  10. रामः मकरालये काभिः सेतुं बबन्ध?
  11. त्वम् कम् यासि?
  12. केन सर्वं सिद्धं भवति?
  13. कया सिकताभिरेव सेतुं करिष्यामि?
  14. अहं कैः अट्टमधिरोढुं न विश्वसिमि?
  15. अहं कथं गन्तुं क्षमोऽस्मि?
  16. मामेवोद्दिश्य कः अधिक्षिपति?
  17. कं विनैव वैदुष्यमवाप्तुम् अभिलषामि?
  18. कुत्र गत्वैव विद्याभ्यासो मया करणीयः?
  19. कैः एव लक्ष्यं प्राप्यते?
  20. भवद्भिः मे किम् उन्मीलितम्?

(ग) कथाक्रम-संयोजनम् :

प्रश्न 1.
अधोलिखितक्रमरहितवाक्यानां कथाक्रमानुसारेण संयोजनं कुरुत

  1. तदिदानी विद्याध्ययनाय गुरुकुलमेव गच्छामि।
  2. पुरुषः-अहं समुत्प्लुत्यैव गन्तुं क्षमोऽस्मि।
  3. तपोदत्त: बाल्ये पितृचरणैः क्लेश्यमानोऽपि विद्यां नाऽधीतवान्।
  4. पुरुषार्थैरेव लक्ष्यं प्राप्यते।
  5. पुरुषमेकं सिकताभिः सेतुनिर्माणप्रयासं कुर्वाणं दृष्ट्वा हसति।
  6. सः तपश्चर्यया विद्यामवाप्तुं तत्परो भवति।।
  7. अये! मामेवोद्दिश्य भद्रपुरुषोऽयम् अधिक्षिपति।
  8. आश्चर्यम् ! सिकताभिरेव सेतुं करिष्यसि?

उत्तर :
वाक्य-संयोजनम्

  1. तपोदत्तः बाल्ये पितृचरणैः क्लेश्यमानोऽपि विद्यां नाऽधीतवान्।
  2. सः तपश्चर्यया विद्यामवाप्तुं तत्परो भवति।
  3. पुरुषमेकं सिकताभिः सेतुनिर्माणप्रयासं कुर्वाणं दृष्ट्वा हसति।
  4. आश्चर्यम् ! सिकताभिरेव सेतुं करिष्यसि?
  5. पुरुषः-अहं समुत्प्लुत्यैव गन्तुं क्षमोऽस्मि।
  6. अये! मामेवोद्दिश्य भद्रपुरुषोऽयम् अधिक्षिपति।
  7. पुरुषार्थैरेव लक्ष्यं प्राप्यते।
  8. तदिदानी विद्याध्ययनाय गुरुकुलमेव गच्छामि।

The Complete Educational Website

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *