UK Board 10 Class Hindi Chapter 16 – नौबतखाने में इबादत (गद्य-खण्ड)
UK Board 10 Class Hindi Chapter 16 – नौबतखाने में इबादत (गद्य-खण्ड)
UK Board Solutions for Class 10th Hindi Chapter 16 नौबतखाने में इबादत (गद्य-खण्ड)
1. लेखक-परिचय
प्रश्न – श्री यतीन्द्र मिश्र का संक्षिप्त परिचय निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत दीजिए-
जीवन-परिचय, रचनाएँ, साहित्यिक विशेषताएँ, भाषा-शैली ।
उत्तर- यतीन्द्र मिश्र
जीवन-परिचय – साहित्यकार, सम्पादक यतीन्द्र मिश्र का जन्म सन् 1977 ई० में अयोध्या (उत्तर प्रदेश) में हुआ। उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ से हिन्दी में एम०ए० किया। वे स्वतन्त्र – रचनाकार हैं तथा ‘सहित’ नामक अर्द्धवार्षिक पत्रिका का सम्पादन कार्य कर रहे हैं। कविता, संगीत व अन्य ललित कलाओं के साथ-साथ समाज और संस्कृति के विविध क्षेत्रों में भी उनकी गहन रुचि है। उनको भारतभूषण अग्रवाल कविता सम्मान, ऋतुराज सम्मान आदि अनेक पुरस्कार प्राप्त हुए हैं।
रचनाएँ — यतीन्द्र मिश्र के अब तक तीन काव्य-संग्रह प्रकाशित हैं— ‘यदा-कदा’, ‘अयोध्या तथा अन्य कविताएँ’, ‘ड्योढ़ी पर हुए आलाप’। इसके अतिरिक्त शास्त्रीय गायिका गिरिजा देवी के जीवन और संगीत साधना पर एक पुस्तक ‘गिरिजा’ भी लिखी। रीतिकाल के अन्तिम प्रतिनिधि कवि द्विजदेव की ग्रन्थावली (2000) का सह-सम्पादन किया। कुँवर नारायण पर केन्द्रित दो पुस्तकों के अलावा स्पिक मैके के लिए विरासत – 2001 के कार्यक्रम के लिए रूपंकर कलाओं पर केन्द्रित ‘थाती’ का भी सम्पादन किया।
साहित्यिक विशेषताएँ — यतीन्द्र मिश्र की पहचान नवीन लेखक के रूप में होती है। उनकी रचनाओं में भारतीय सांस्कृतिक जीवन-मूल्यों की स्थापना का प्रयास किया गया है। मानव मूल्यों की स्थापना तथा मानव के अस्तित्व की प्रतिष्ठा भी उनके विषय रहे हैं। उनकी रचनाओं में न केवल विषयवस्तु, बल्कि शिल्प-विधान के स्तर पर भी आधुनिक प्रभाव पर्याप्त दिखाई पड़ता है।
भाषा-शैली – यतीन्द्र मिश्र की भाषा सरस सहज, प्रवाहपूर्ण तथा प्रभावशाली है। उनकी अभिव्यक्ति पद्धति सशक्त है। सांस्कृतिक शब्दावली के साथ-साथ सुगठित शिल्प उनकी कृतियों का महत्त्वपूर्ण पक्ष है।
2. गद्यांश पर अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
(1) अमीरुद्दीन अभी …………. बजाते रहते हैं।
प्रश्न –
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखिए ।
(ख) गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए। ‘
(ग) अमीरुद्दीन के मामा कौन थे?
(घ) इस अवतरण में कौन-कौन-से रागों का उल्लेख हुआ है?
उत्तर-
(क) पाठ का नाम – नौबतखाने में इबादत । लेखक – यतीन्द्र मिश्र !
(ख) आशय – अमीरुद्दीन ( बिस्मिल्ला खाँ) की आयु अभी छह वर्ष है। उनके बड़े भाई शम्सुद्दीन नौ वर्ष के हैं। अमीरुद्दीन को इस आयु में ‘राग किसे कहते हैं?’ यह समझ नहीं है। इनके मामूजान और उनके साथी बात-बात पर भीमपलासी और मुलतानी की चर्चा करते रहते थे। इन शब्दों का क्या उचित अर्थ होता है, इसे समझने लायक -अभी अमीरुद्दीन की उम्र न थी । अमीरुद्दीन के दोनों मामा सादिक हुसैन और अलीबख्श देश के प्रसिद्ध शहनाईवादक हैं। दोनों ही देश में विभिन्न राजा-महाराजाओं के दरबार में बजाने जाते रहते हैं। प्रतिदिन के कार्यक्रमों में बालाजी का मन्दिर सर्वप्रथम स्थान पर आता है। इनके हर दिन की शुरूआत मन्दिर की ड्योढ़ी पर होती है। लेखक यहाँ स्वयं मूर्तियों की कितनी समझ है कि ये प्रतिदिन बदल-बदलकर मुलतानी, से एक प्रश्न करता प्रतीत होता है कि पता नहीं मन्दिर में स्थापित इन कल्याण, ललित और कभी भैरव रागों को सुनती रहती हैं। शहनाईवादन अमीरुद्दीन के मामा अलीबख्श के घर का खानदानी पेंशा है। उनके पिता भी बालाजी की ड्योढ़ी पर शहनाई बजाते थे।
सार यह हैं कि अमीरुद्दीन बचपन से ही शहनाई के बीच उठे-बैठे थे और इसमें उनके नाना पक्ष का बड़ा योगदान था।
(ग) अमीरुद्दीन के मामाद्वय – सादिक हुसैन तथा अलीबख्श – प्रसिद्ध शहनाईवादक थे।
(घ) इस अवतरण में— भीमपलासी, मुलतानी, कल्याण, ललित तथा भैरव नामक रागों का उल्लेख हुआ है।
(2) अमीरुद्दीन की ……… ने उकेरी है।
प्रश्न – (क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखिए ।
(ख) गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए ।
(ग) रसूलन और बतूलन कौन थीं?
(घ) ठुमरी, टप्पे, दादरा से आप क्या समझते हैं? ।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम – नौबतखाने में इबादत लेखक – यतीन्द्र मिश्र ।
(ख) आशय-अमीरुद्दीन अभी 14 वर्ष के हैं; अर्थात् प्राचीन बालाजी का मन्दिर । यहीं बिस्मिल्ला खाँ को नौबतखाने में बिस्मिल्ला खाँ की उम्र अभी 14 साल है। वही काशी है और वही शहनाई बजाने का अभ्यास करने के लिए जाना पड़ता है। वे जिस रास्ते से बालाजी मन्दिर जाते हैं, वह रास्ता रसूलनबाई और बतूलनबाई के यहाँ से होकर जाता है। यही रास्ता अमीरुद्दीन को अत्यन्त प्रिय है। इस जाने कितने बोल- बनाव, ठुमरी-टप्पे, दादरा आदि पहुँचते रहते हैं। रास्ते से जाने पर एक लाभ यह होता है कि बालाजी की ड्योढ़ी पर अर्थात् अमीरुद्दीन जो राग यहाँ सुनता है, उनको वह बालाजी की ड्योढ़ी पर शहनाई के सुरों में सजाता है। स्कूलन और बतूलन जब गाती हैं तब अमीरुद्दीन खुश हो जाता है। अर्थात् अमीरुद्दीन की रसलून और बतूलन के गायन में बड़ी बाँछें खिल जाती थीं, मन आनन्द से भर जाता था। इन बहनों के गायन के प्रति अपनी दीवानगी को बिस्मिल्ला खाँ ने अनेक साक्षात्कारों में खुले दिल से स्वीकार किया है कि उन्हें अपने शुरू के दिनों में संगीत के प्रति इतना मोह इन्हीं गायिका बहनों को सुनकर मिला है। जब वे नासमझ थे, तब अपने अनुभव से रसूलन व बतूलन ने उन्हें संगीत की समझ प्रदान की थी।
(ग) रसूलनबाई और बतूलनबाई दोनों गायिका बहनें थीं। इनकी गायन कला का बिस्मिल्ला खाँ पर अत्यधिक प्रभाव पड़ा था।
(घ) ठुमरी – एक प्रकार का गीत जो केवल एक स्थायी और एक ही अन्तरे में समाप्त होता है।
टप्पा – इसे भी एक प्रकार का चलता गाना कहा जा सकता है।
ध्रुपद एवं खयाल की अपेक्षा जो गायन संक्षिप्त है, वही टप्पा है। दादरा – एक प्रकार का चलता गाना। दो अर्द्धमात्राओं के ताल भी दादरा कहा जाता है। को
(3) काशी संस्कृति ……… देख सकते।
प्रश्न –
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखिए।
(ख) गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
(ग) काशी के प्रसिद्ध व्यक्ति कौन-कौन-से हैं?
(घ) लेखक ने किसका सम्बन्ध किससे जोड़ा है?
उत्तर-
(क) पाठ का नाम – नौबतखाने में इबादत । लेखक- यतीन्द्र मिश्र ।
(ख) आशय – काशी को संस्कृति की पाठशाला कहा गया है। अर्थात् काशी विश्व के लोगों को विविध संस्कृतियों का पाठ पढ़ाता है; क्योंकि यहाँ विविध संस्कृतियाँ बिना किसी विरोध; बिना किसी टकराव के विभिन्न समानान्तर धाराओं में प्रवाहित हैं। शास्त्रों में इसे आनन्दकानन की संज्ञा सम्भवत: इसीलिए दी गई है। यहाँ कलाधर हनुमान् भी हैं व नृत्य – विश्वनाथ भी। इन्हीं के साथ जुड़े यहाँ बिस्मिल्ला खाँ हैं। काशी का अपना हजारों साल का गौरवशाली इतिहास है। काशी ने पण्डित कण्ठे महान, विद्याधरी, बड़े रामदासजी, • मौजुद्दीन खाँ जैसे विख्यात लोग देश को दिए हैं। यहाँ की जनता भी निराली है। इस काशी की अपनी तहजीब, अपनी बोली और अपने विशिष्ट लोग हैं। अपने उत्सव, गीत और संगीत है। यहाँ के संगीत को भक्ति से, भक्ति को किसी भी धर्म के कलाकार से, कजरी को चैती से, विश्वनाथ को विशालाक्षी से और बिस्मिल्ला ख़ाँ को गंगाद्वार से अलग करके नहीं देख सकते। आशय यह है कि यहाँ की विविध संस्कृतियाँ अलग-अलग होकर भी एकसूत्र से बँधी हैं, ये सभी एक-दूसरे की पूरक हैं। इसीलिए तो काशी की संस्कृति विशिष्ट है, और बिस्मिल्ला खाँ उसके एक अभिन्न अंग हैं।
(ग) काशी के प्रसिद्ध व्यक्ति पण्डित कण्ठे महाराज, विद्याधरीजी, बड़े रामदासजी, मौजुद्दीन खाँ, बिस्मिल्ला खाँ हैं, जिनका उल्लेख उपर्युक्त अवतरण में किया गया है।
(घ) लेखक ने संगीत का भक्ति से, भक्ति का किसी भी धर्म के कलाकार से, कजरी का चैती से, विश्वनाथ का विशालाक्षी से और बिस्मिल्ला खाँ का गंगाद्वार से सम्बन्ध जोड़ा है।
3. पाठ पर आधारित विषयवस्तु सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1 – काशी में रहने के लिए बिस्मिल्ला कौन-से कारण बताते थे?
उत्तर – काशी में रहने के विषय में पूछने पर बिस्मिल्ला खाँ अक्सर कहते थे— ‘क्या करें मियाँ, यह काशी छोड़कर कहाँ जाएँ। गंगा मैया यहाँ, बाबा विश्वनाथ यहाँ, बालाजी का मन्दिर यहाँ । यहाँ हमारे खानदान की कई पुश्तों ने शहनाई बजाई है। हमारे नाना तो वहीं बालाजी मन्दिर में बड़े प्रतिष्ठित शहनाईवाज रह चुके हैं। अब हम क्या करें। मरते दम तक न यह शहनाई छूटेगी, न काशी। जिस जमीन ने हमें तालीम दी, जहाँ से अदब पाई, वो कहाँ और मिलेगी? शहनाई और काशी से बढ़कर कोई जन्नत नहीं इस धरती पर हमारे लिए।’
प्रश्न 2 – बिस्मिल्ला खाँ की दिनचर्या क्या थी?
उत्तर— बिस्मिल्ला खाँ एक सच्चे मुसलमान थे, तथापि वे प्रातः उठते और बाबा विश्वनाथ मन्दिर में शहनाई बजाते। फिर गंगास्नान करके बालाजी के मन्दिर में उनकी मूर्ति के सामने बैठकर रियाज करते। कहते हैं कि उन्हें साक्षात् बालाजी ने प्रसिद्धि पाने का वरदान प्रसन्न होकर दिया था। बिस्मिल्ला खाँ का जीवन स्वैच्छिक गरीबी और सादगी का जीवन था।
प्रश्न 3 – बिस्मिल्ला खाँ को कौन-कौन-से राष्ट्रीय सम्मान मिले?
उत्तर – बिस्मिल्ला खाँ को पद्मश्री, पद्मभूषण, पद्मविभूषण और भारतरत्न से सम्मानित किया गया था ।
4. विचार / सन्देश में सम्बन्धित लघुत्तरात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1 – ‘नौबतखाने में इबादत’ की विषयवस्तु क्या है?
उत्तर – ‘नौबतखाने में इबादत’ भारत के विख्यात शहनाईवादक बिस्मिल्ला खाँ पर आत्मीय शैली में लिखा गया व्यक्ति चित्र है। इसमें लेखक ( यतीन्द्र मिश्र) ने बताया है कि कलाकार का सम्मान उसकी कला से होता है, भौतिक समृद्धि से नहीं। इस व्यक्ति चित्र में बिस्मिल्ला खाँ के माध्यम से काशी की सांस्कृतिक छवि का जीवन्त चित्रण प्रस्तुत किया गया है। यतीन्द्र मिश्र के अनुसार कला और कलाकार को धर्म और जाति की संकीर्णताओं में नहीं बाँधा जा सकता। कला या कलाकार सम्पूर्ण राष्ट्र का गौरव होता है। लेखक की शैली में भावुकता और तार्किकता का अद्भुत समन्वय इस व्यक्ति चित्र को एक अविस्मरणीय रचना बना देता है।
प्रश्न 2 – बिस्मिल्ला खाँ ने कौन-से ऐतिहासिक मौकों पर देश को शहनाई सुनाई थी ?
उत्तर – बिस्मिल्ला खाँ ने मेहरूजी के कहने पर प्रथम स्वतन्त्रता दिवस पर 15 अगस्त, 1947 ई० की सुबह दिल्ली के लालकिले से शहनाई बजाकर नए स्वतन्त्र राष्ट्र भारत को बधाई दी थी। इन्हीं बिस्मिल्ला खाँ ने भारत के प्रथम गणतन्त्र दिवस पर, 26 जनवरी, 1950 ई० को मंगल प्रभात के रथ की अगुवाई करते हुए लालकिले से शहनाई पर लोक राग काफी बजाई थी । यह बिस्मिल्ला का ही सौभाग्य था कि वे भारत के इतिहास की दो सबसे बड़ी तिथियों 15 अगस्त, 1947 ई० और 26 जनवरी, 1950 ई० को दिल्ली के ऐतिहासिक लालकिले से शहनाई की मंगल धुनें देश को सुना सके।
5. पाठ्यपुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1 – शहनाई की दुनिया में डुमराँव को क्यों याद किया जाता है?
उत्तर- शहनाई की दुनिया के बेताज बादशाह बिस्मिल्ला खाँ का जन्म-स्थान डुमराँव ही है। साथ ही शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के लिए उपयोगी हैं। शहनाई बजाने के लिए रोड का प्रयोग होता है। रीड अन्दर से पोली होती है, जिसके सहारे शहनाई को फूंका जाता है। रीड, नरकट (एक प्रकार की घास) से बनाई जाती है, जो डुमराँव में मुख्यतः सोन नदी के किनारे पाई जाती है।
प्रश्न 2 – बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगलध्वनि का नायक क्यों कहा गया है? (2008)
उत्तर- अवधी पारम्परिक लोकगीतों एवं चैती में शहनाई का उल्लेख बार- बार मिलता है। मंगल का परिवेश प्रतिष्ठित करनेवाला, यह वाद्य इन जगहों पर मांगलिक विधि-विधानों के अवसर पर ही प्रयुक्त हुआ है। दक्षिण भारत के मंगलवाद्य ‘नागस्वरम्’ की तरह शहनाई, प्रभाती की मंगल- ध्वनि की सम्पूरक है। शहनाई की इसी मंगल-ध्वनि के नायक बिस्मिल्ला खाँ साहब हैं। उन्होंने देश के अनेक शुभ अवसरों पर मंगल ध्वनि बजाई है। इसीलिए उन्हें मंगल- ध्वनि का नायक कहा गया है।
प्रश्न 3 – सुषिर – वाद्यों से क्या अभिप्राय है? शहनाई को ‘सुबिर वाद्यों में शाह’ को उपाधि क्यों दी गई होगी?
उत्तर – सुषिर वाद्यों से अभिप्राय है-फूँककर बजाए जानेवाले वाद्य; जैसे—बाँसुरी, शहनाई, बीन, नागस्वरम् आदि। शहनाई को सुषिर वाद्यों में शाह की उपाधि दी गई है, इसका कारण यह रहा होगा कि यह हमेशा ही मंगल कार्यों में बजाई जाती है, इसलिए यह सर्वोच्च स्थान पर अर्थात् ‘शाह’ है।
प्रश्न 4- आशय स्पष्ट कीजिए-
♦ ‘फटा सुर न बख्शें। लुंगिया का क्या है, आज फटी है तो कल सी जाएगी।’
उत्तर : आशय-बिस्मिल्ला खाँ ईश्वर पर बड़ा विश्वास रखते थे। वे सदैव ईश्वर से एक ‘सच्चा सुर’ माँगा करते थे। वे कहते थे कि ईस्वर कभी उन्हें बेसुरा न करे। लुंगी फटी है तो क्या हुआ, वह तो सिल जाएगी, किन्तु यदि वे बेसुरे हो गए तो बड़ी कठिनाई होगी।
♦ ‘मेरे मालिक सुर बख्श दे। सुर में वह तासीर पैदा कर कि आँखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल आएँ ।’
उत्तर : आशय – बिस्मिल्ला खाँ पाँचों वक्त की नमाज के समय सुर को पाने की प्रार्थना किया करते थे। वे कहते थे कि हे ईश्वर एक सच्चा सुर दे दे। सुर में वह असर उत्पन्न कर दे कि श्रोताओं की आँखों से सच्चे मोती के समान आँसू निकल आएँ; अर्थात् लोग उनकी शहनाई के स्वर सुनकर भावुकता में डूब जाएँ ।
प्रश्न 5 – काशी में हो रहे कौन-से परिवर्तन बिस्मिल्ला खाँ को व्यथित करते थे?
उत्तर — पक्का महाल (काशी विश्वनाथ मन्दिर से लगा हुआ क्षेत्र) से मलाई बरफ बेचनेवाले जा चुके हैं। जैसे यह मलाई बरफ गया वैसे ही संगीत, साहित्य और अदब की बहुत सारी परम्पराएँ भी चली गईं। यही सब परिवर्तन बिस्मिल्ला खाँ को व्यथित करते थे ।
प्रश्न 6 – पाठ में आए किन प्रसंगों के आधार पर आप कह सकते हैं कि-
(क) बिस्मिल्ला खाँ मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे।
(ख) वे वास्तविक अर्थों में एक सच्चे इनसान थे।
उत्तर –
(क) बिस्मिल्ला खाँ मुस्लिम होते हुए भी बालाजी मन्दिर की ड्योढ़ी पर शहनाई बजाकर अपनी दिनचर्या प्रारम्भ करते थे। वे मुहर्रम के समय नौहा बजाते; वे काशी विश्वनाथ के प्रति भी श्रद्धा भाव रखते; उन्हें गंगाद्वार से अलग करके नहीं देखा जा सकता था। वास्तव में वे मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे।
(ख) बिस्मिल्ला खाँ हमेशा से दो कौमों को एक होने और आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देते रहे। वास्तविक अर्थों में वे एक सच्चे इनसान थे।
प्रश्न 7 – बिस्मिल्ला खाँ के जीवन से जुड़ी उन घटनाओं और व्यक्तियों का उल्लेख करें, जिन्होंने उनकी संगीत-साधना को समृद्ध किया।
उत्तर- बिस्मिल्ला खाँ के जीवन में उनके मामाद्वय सादिक हुसैन तथा अलीबख्श के संगीत का बड़ा प्रभाव रहा। दोनों ही प्रसिद्ध शहनाईवादक थे। इसके बाद उनकी संगीत – साधना को बढ़ाने में रसूलनबाई और बतूलनबाई की गायकी का भी योगदान रहा। बिस्मिल्ला खाँ के नाना भी प्रसिद्ध शहनाईवादक थे। बिस्मिल्ला बचपन में उन्हें शहनाई बजाते देखते और उनके उठ जाने के बाद उनकी शहनाइयों से खेलते। इस प्रकार के संगीतमय वातावरण ने बिस्मिल्ला खाँ की संगीत – साधना को समृद्ध किया था।