UK Board 9th Class Sanskrit – Chapter 7 प्रत्यभिज्ञानम्
UK Board 9th Class Sanskrit – Chapter 7 प्रत्यभिज्ञानम्
UK Board Solutions for Class 9th Sanskrit – संस्कृत – Chapter 7 प्रत्यभिज्ञानम्
प्रत्यभिज्ञानम् (पुनः पहचान)
[ पाठ – परिचय – प्रस्तुत पाठ महाकवि भास के ‘पञ्चरात्रम्’ नाटक के द्वितीय अङ्क का सम्पादित रूप है। नाट्यांश के अनुसार दुर्योधनादि कौरव वीरों द्वारा आक्रमण करके राजा विराट् की गायों का हरण कर लिया जाता है । विराट् – पुत्र उत्तर बृहन्नला को अपना सारथी बनाकर कौरव सेना से लड़ने जाता है। कौरवों की ओर से अभिमन्यु भी युद्ध करने जाता है। इसी बीच पुत्र की सहायता के लिए उद्यत महाराज विराट् को दूत से सूचना मिलती है कि युद्ध में भीष्म आदि महारथी परास्त हो गए हैं। केवल अभिमन्यु ही युद्ध कर रहा है। कुछ समय बाद दूत पुन: सूचना देता है कि रसोइये बल्लभ ने अभिमन्यु को पकड़ लिया है। यह सुनकर राजा विराट् अत्यन्त प्रसन्न होकर अभिमन्यु को आदरपूर्वक अपने समक्ष उपस्थित करने का आदेश देते हैं। इस पाठ में विराट् की राज्यसभा में अभिमन्यु के साथ छद्मवेशी भीम तथा अर्जुन का वार्त्तालाप वर्णित है। ]
समस्त पाठ का हिन्दी अनुवाद
भट – महाराज की जय हो ।
राजा – तुम्हारा हर्ष पहले कभी न देखा गया-सा लगता है; कहो किस कारण से आश्चर्यचकित (प्रसन्न) हो ?
भट – अविश्वसनीय प्रिय प्राप्त हो गया है, सुभद्रा का पुत्र (अभिमन्यु) पकड़ लिया गया है।
राजा – अब वह कैसे पकड़ लिया गया है?
भट – रथ पर पहुँचकर नि:शङ्क भाव से दोनों हाथों द्वारा ( रथ से उतार लिया गया। ( प्रकट रूप में) इधर से कुमार इधर से ।
अभिमन्यु – अरे! यह कौन है? जिसके द्वारा एक हाथ से (मैं) नियन्त्रित किया गया ( हूँ, फिर भी ) अधिक बलशाली होने पर भी मैं पीड़ित नहीं किया गया हूँ।
बृहन्नला – इधर से – कुमार इधर से ।
अभिमन्यु – अरे! यह दूसरा कौन है? पार्वती के वेश को धारण करनेवाले शिवजी के समान सुशोभित है।
बृहन्नला – आर्य, मुझे (इस अभिमन्यु से) बातें करने की बड़ी उत्कण्ठा है। आर्य इसको बात करने के लिए प्रेरित करें।
भीमसेन – ( एक ओर को) अच्छा, ( प्रकट रूप में) अभिमन्यु !
अभिमन्यु – (मेरा) अभिमन्यु नाम है।
भीमसेन – यह मुझसे रुष्ट है, तुम ही इसे बातें करने के लिए प्रेरित करो।
बृहन्नला – अभिमन्यु !
अभिमन्यु – क्यों- क्यों, मेरा नाम अभिमन्यु है ! अरे ! क्या यहाँ विराट्नगर में क्षत्रियवंश में उत्पन्न हुए. (राजकुमार) नीच लोगों द्वारा भी नाम लेकर पुकारे जाते हैं अथवा मैं शत्रुवंश का हूँ, इसलिए इस प्रकार अपमानित किया जा रहा है।
बृहन्नला – अभिमन्यु ! तुम्हारी माता सुखपूर्वक (सकुशल ) है?
अभिमन्यु – क्यों, क्यों? माता का नाम ( ले रहा है)? क्या – आप मेरे पिता हैं अथवा चाचा हैं? क्यों मुझ पर पिता के समान अधिकार दिखाकर स्त्रीगत (माता से सम्बन्धी ) कथा (समाचार) पूछ रहे हो ?
बृहन्नला – अभिमन्यु ! देवकीपुत्र केशव भी सकुशल हैं?
अभिमन्यु – क्या ? भगवान् को भी नाम लेकर ( पूछ रहा है ) ! और क्या, और क्या?
(दोनों एक-दूसरे को देखते हैं)
अभिमन्यु ― यह इस समय क्यों अपमानित किए गए के समान मुझ पर हँस रही है ?
बृहन्नला – कुछ भी नहीं।
अर्जुन पिता और श्रीकृष्ण मामा को याद करके युवा और भली प्रकार अस्त्र – विद्या सीखे आपको युद्ध में पराजित होना चाहिए?
अभिमन्यु – बस करो (ये) व्यर्थ की अपनी बातें! हमारे कुल में अपनी प्रशंसा करना अनुचित है। युद्ध भूमि में मारे गए (सैनिकों के शरीरों) में (लगे) बाणों को देखो, ( उन पर) मेरे बिना अन्य किसी का नाम न होगा।
बृहन्नला – इस प्रकार की वाचनिक वीरता ( में कुशल हो ) ! फिर एक पैदल द्वारा कैसे पकड़ लिए गए?
अभिमन्यु – अशस्त्र होकर मेरे सामने गए। पिता अर्जुन को याद करके मैं क्यों (निहत्थे को) मारता । मेरे जैसे निहत्थों पर प्रहार नहीं करते हैं, इसलिए निहत्थे इसने मुझे ठगकर (धोखा देकर ) पकड़ लिया।
राजा – शीघ्रता करें, शीघ्रता करें अभिमन्यु ( को बुलाकर लाएँ) ।
बृहन्नला – इधर से – इधर से कुमार, यह महाराज हैं। कुमार समीप आएँ।
अभिमन्यु – आः ! किसके महाराज ?
राजा – आओ पुत्र, आओ! तुम मुझे प्रणाम क्यों नहीं करते हो? ( मन-ही-मन में) अहो ! क्षत्रिय कुमार तो घमण्ड से उद्धत है। मैं इसके घमण्ड को दूर करता हूँ। अच्छा यह किसके द्वारा पकड़ा गया है?
भीमसेन – महाराज! मेरे द्वारा।
अभिमन्यु – ‘शस्त्रहीन होकर पकड़ा’ ऐसा कहो ।
भीमसेन – पाप शान्त हों ? धनुष तो दुर्बलों के द्वारा ही ग्रहण किया जाता है, मेरी तो दोनों भुजाएँ ही अस्त्र हैं।
अभिमन्यु – अरे! ऐसा मत (कहो)! क्या मध्यम तात हैं, जो उनके समान वचन बोल रहे हैं?
भगवान् – पुत्र ! यह मध्यम नामवाला कौन है?
अभिमन्यु – (जिन भीमसेन ने) अपनी भुजा द्वारा जरासन्ध को गले से बाँधकर जो असाध्य कार्य करके कृष्ण की असमर्थता सिद्ध कर दी। अर्थात् जिस भीमसेन ने जरासन्ध के गले को भुजा में लपेटकर मार डाला, जिसे श्रीकृष्ण भी मारने में असमर्थ थे, वही भीमसेन मेरे मध्यम तत हैं।
राजा – तुम्हारी निन्दा से मैं रुष्ट ( चिढ़ता ) नहीं हूँ, तुम्हारे चिढ़ने से मुझे प्रसन्नता होती है। ‘क्यों खड़ा है, (अपनी इच्छानुसार चला जाए’ ऐसा कहकर क्या मैं तुम्हारे प्रति अपराध नहीं करूँगा? अर्थात् मैं तुम्हारी चिढ़न के कारण तुम्हें अपनी इच्छानुसार चले जाने के लिए नहीं कह सकता। यदि मैं ऐसा करता हूँ तो क्या मेरा यह कार्य अपराध की श्रेणी में नहीं आएगा ?
अभिमन्यु – यदि मैं कृपा के योग्य हूँ तो- (मेरे) पैरों में बन्दियों के योग्य (बेड़ियाँ डालकर ) उचित आचरण करो, हाथों से बन्दी बना लिए गए ( मुझको) भीम हाथों से ही (छुड़ाकर ले जाएँगे । अर्थात् आप मेरे पैरों में बेड़ियाँ डलवाकर बन्दियों जैसा व्यवहार करो। जब मेरे तात भीम को यह पता चलेगा कि मैं शस्त्रहीनता के छल से किसी के द्वारा हाथों से ही बन्दी बना लिया गया हूँ तो वे बिना अस्त्र के ही अपने बाहुबल से तुम्हारी कैद से मुझे छुड़ा ले जाएँगे।
(इसके पश्चात् उत्तर प्रवेश करता है)
उत्तर – पिताजी ! प्रणाम।
राजा – चिरंजीवी होओ पुत्र ! युद्ध में वीरता दिखानेवाले पूजनीय वीरों को सम्मानित करने का कार्य किया जा चुका है।
उत्तर – सर्वाधिक पूज्य की पूजा कीजिए ।
राजा – पुत्र ! किसके लिए (पूजा करने को कहते हो ) ?
उत्तर – यहाँ आपके द्वारा इन धनञ्जय को ( पूजने के लिए कह रहा हूँ) ।
राजा – क्या धनञ्जय की?
उत्तर – और क्या – (इन अर्जुन ने )
श्मशान से ( अपना गाण्डीव) धनुष और अक्षय बाणवाला तरकस लेकर भीष्म आदि राजाओं को परास्त किया और हम सबकी रक्षा की।
राजा – ऐसी बात हैं।
उत्तर – आप सन्देह दूर करें। यही धनुर्धर धनञ्जय हैं।
बृहन्नला – यदि मैं अर्जुन हूँ तो यह भीमसेन और यह . राजा युधिष्ठिर हैं।
अभिमन्यु – यह तो मेरे पितागण हैं; इसीलिए –
मेरे द्वारा किए गए आक्षेपों ( निन्दावचनों) से ये कुपित नहीं होते हैं और हँसते हुए मुझे चिढ़ाते हैं; सौभाग्य से यह गायों का अपहरण सुपरिणामवाला (सिद्ध) हुआ, जिससे मुझे पिताओं के दर्शन हुए।
(इस प्रकार क्रम से सबको प्रणाम करता है और सब उसका आलिङ्गन करते हैं)
पाठाधारित अवबोधन-कार्य
(1) भटः – जयतु महाराजः ।
राजा – अपूर्व व ते हर्षो ब्रूहि केनासि विस्मित: ?
भटः – अश्रद्धेयं प्रियं प्राप्तं सौभद्रो ग्रहणं गतः ।
राजा – कथमिदानीं गृहीत: ?
भटः – रथमासाद्य निश्शङ्कं बाहुभ्यामवतारितः । (प्रकाशम् ) इत इतः कुमारः ।
अभिमन्युः – भोः को नु खल्वेषः ? येन भुजैकनियन्त्रितो बलाधिकेनापि न पीडितः अस्मि ।
प्रश्ना:- 1. एकपदेन उत्तरत-
(क) भटस्य हर्षः कीदृशः अस्ति ?
(ख) अत्र कः ग्रहणं गत: ?
(ग) सौभद्रः केभ्याम् अवतारित: ?
(घ) केन नियन्त्रितः सौभद्रः ?
उत्तरम्- (क) अपूर्व:,
(ख) सौभद्रः,
(ग) बाहुभ्याम्,
(घ) भुजैकेन ।
2. पूर्णवाक्येन उत्तरत—
(क) किम् अश्रद्धेयं प्रियं प्राप्तम् ?
(ख) सौभद्रः कथमिदानीं गृहीतः ?
(ग) बलाधिकेन अभिमन्युः किम् न कृतः ?
उत्तरम् — (क) सौभद्रः ग्रहणं गतः इदम् अश्रद्धेयं प्रियं प्राप्तम् ।
(ख) सौभद्रः रथमासाद्य निश्शङ्कं बाहुभ्याम् अवतारितः ।
(ग) बलाधिकेन अभिमन्युः पीडितः न कृतः ।
3. निर्देशानुसारम् उत्तरत-
(क) ‘जयतु’ इति पदे प्रयुक्तः लकारः कः ?
(ख) ‘श्रद्धेयम्’ इत्यस्य पदस्य विलोमपदं लिखत ?
(ग) ‘गतः’ अत्र प्रयुक्तः प्रत्ययः कः ?
(घ) ‘खल्वेष:’ इति पदस्य सन्धिच्छेदम् कुरुत ?
उत्तरम् — (क) लोट्लकारः ।
(ख) अश्रद्धेयम्।
(ग) क्त।
(घ) खलु + एषः ।
(2) बृहन्नला – इत इतः कुमारः ।
अभिमन्युः – अये! अयमपरः कः विभात्युमावेषमिवाश्रितो हरः ।
बृहन्नला – आर्य अभिभाषणकौतूहलं मे महत्। वाचालयत्वेनमार्यः।
भीमसेनः – (अपवार्य) बाढम् (प्रकाशम्) अभिमन्यो !
अभिमन्युः –अभिमन्युर्नाम ?
भीमसेनः – रुष्यत्येष मया त्वमेवैनमभिभाषय ।
बृहन्नला – अभिमन्यो!
अभिमन्युः – कथं कथम् । अभिमन्युर्नामाहम् । भोः ! किमत्र विराटनगरे क्षत्रियवंशोद्भूताः नीचैः अपि नामभिः अभिभाष्यन्ते अथवा अहं शत्रुवशं गतः । अतएव तिरस्क्रियते ।
बृहन्नला – अभिमन्यो ! सुखमास्ते ते जननी ?
अभिमन्युः – कथं कथम्? जननी नाम? किं भवान् मे पिताअथवा पितृव्यः ? कथं मां पितृवदाक्रम्य स्त्रीगतां कथां पृच्छसे?
प्रश्ना:- 1. एकपदेन उत्तरत-
(क) उमावेषमिवाश्रितो हरः कः ?
(ख) अत्र कः रुष्यति ?
(ग) कुत्र क्षत्रियवंशोद्भूताः नीचैः अपि नामभिः अभिभाष्यन्ते ?
(घ) बृहन्नला कस्य समाचारं पृच्छति ?
उत्तरम् — (क) बृहन्नला ।
(ख) अभिमन्युः ।
(ग) विराटनगरे ।
(घ) जनन्याः ।
2. पूर्णवाक्येन उत्तरत-
(क) बृहन्नला किमिव विभाति ?
(ख) क: अभिमन्युम् अभिभाषयितुं प्रेरयति ?
(ग) अभिमन्युः विराटनगरविषये किं पृच्छति ?
(घ) अभिमन्योः मतानुसारम् बृहन्नला पितृवदाक्रम्य काम् पृच्छति ?
उत्तरम् — (क) बृहन्नला उमावेषमिवाश्रितो हर : विभाति ।
(ख) बृहन्नला अभिमन्युम् अभिभाषयितुं प्रेरयति ।
(ग) अभिमन्युः विराटनगर विषये पृच्छति — किमत्र विराटनगरे क्षत्रियवंशोद्भूताः नीचैः अपि नामभिः अभिभाष्यन्ते ?
(घ) अभिमन्योः मतानुसारम् बृहन्नला पितृवदाक्रम्य स्त्रीगतां कथां पृच्छति।
3. निर्देशानुसारम् उत्तरत-
(क) ‘वाचालयत्वेनमार्यः’ अत्र ‘एनम्’ इति सर्वनामपदं कस्मै प्रयुक्तम् ?
(ख) रिक्तस्थानं पूरयत—अहं ……….. गतः । अतएव तिरस्क्रियते ।
(ग) ‘उच्चैः’ अस्य विलोमपदं लिखत ।
(घ) ‘स्त्रीगतां कथां अनयोः विशेष्यपदं किम् ?
उत्तरम् — (क) अभिमन्यवे ।
(ख) शत्रुवशम्।
(ग) नीचैः।
(घ) कथाम् ।
(3) बृहन्नला – अभिमन्यो ! अपि कुशली देवकीपुत्रः केशवः ?
अभिमन्युः – कथं कथम्? तत्रभवन्तमपि नाम्ना । अथ किम् – अथ किम् ?
(उभौ परस्परमवलोकयतः)
अभिमन्युः – कथमिदानीं सावज्ञमिव मां हस्यते ?
बृहन्नला – न खलु किञ्चित्।
पार्थं पितरमुद्दिश्य मातुलं च जनार्दनम् ।
तरुणस्य कृतास्त्रस्य युक्तो युद्धपराजयः ।।
अभिमन्युः – अलं स्वच्छन्दप्रलापेन! अस्माकं कुले आत्मस्तवं कर्तुमनुचितम्। रणभूमौ हतेषु शरान् पश्य, मदृते अन्यत् नाम न भविष्यति ।
बृहन्नला: – एवं वाक्यशौण्डीर्यम्। किमर्थं तेन पदातिना गृहीत: ?
अभिमन्युः – अशस्त्रं मामभिगतः। पितरम् अर्जुनं स्मरन् अहं कथं हन्याम्। अशस्त्रेषु मादृशाः न प्रहरन्ति । अतः अशस्त्रोऽयं मां वञ्चयित्वा गृहीतवान् ।
राजा – त्वर्यतां त्वर्यतामभिमन्युः ।
प्रश्ना:- 1. एकपदेन उत्तरत-
(क) अभिमन्योः मातुलः कः ?
(ख) पार्थः कस्य पिता अस्ति ?
(ग) अभिमन्युः रणभूमौ हतेषु कान् द्रष्टुम् कथयति ?
(घ) केन गृहीतः अभिमन्युः ?
उत्तरम- (क) श्रीकृष्णः ।
(ख) अभिमन्योः ।
(ग) शरान्।
(घ) पदातिना ।
2. पूर्णवाक्येन उत्तरत-
(क) कस्य युक्तः अभिमन्युः युद्धपराजयः?
(ख) अभिमन्युः स्ववीरतां पुष्ट्यर्थम् किं कथयति ?
(ग) अशस्त्रेषु के न प्रहरन्ति ?
(घ) भीमसेनः किं कृत्वा अभिमन्युं गृहीतवान्?
उत्तरम् – (क) अस्त्रस्य युक्तः अभिमन्युः युद्धपराजयः ।
(ख) अभिमन्युः स्ववीरतां पुष्ट्यर्थम् कथयति — “रणभूमौ हतेषु शरान् पश्य, मदृते अन्यत् नाम न भविष्यति।”
(ग) अभिमन्युसदृशाः वीराः अशस्त्रेषु, न प्रहरन्ति ।
(घ) भीमसेनः अभिमन्युं वञ्चयित्वा गृहीतवान् ।
3. निर्देशानुसारम् उत्तरत-
(क) ‘देवक्या: पुत्र:’ इत्यर्थे किम् पदम् प्रयुक्तम् अत्र ?
(ख) ‘रणभूमौ’ इति पदे प्रयुक्ता विभक्ति: का?
(ग) किमर्थं तेन पदातिना गृहीतः’ अत्र ‘तेन’ सर्वनामपदं कस्मै प्रयुक्तम् ?
(घ) ‘स्वच्छन्देन प्रलापेन’ अनयोः पदयोः विशेषणपदं किम् ?
उत्तरम् – (क) देवकीपुत्रः ।
(ख) सप्तमी ।
(ग) भीमसेनाय।
(घ) स्वच्छन्देन ।
(4) बृहन्नला – इत इतः कुमारः । एष महाराजः । उपसर्पतु कुमारः ।
अभिमन्युः – आः । कस्य महाराज : ?
राजा – एह्येहि पुत्र! कथं न मामभिवादयसि ? (आत्मगतम्) अहो ! उत्सिक्त: खल्वयं क्षत्रियकुमारः । अहमस्य दर्पप्रशमनं करोमि । (प्रकाशम्) अथ केनायं गृहीत: ?
भीमसेनः – महाराज! मया।
अभिमन्युः – अशस्त्रेणेत्यभिधीयताम् ।
भीमसेनः – शान्तं पापम्। धनुस्तु दुर्बलैः एव गृह्यते। मम प्रहरणम् ।
अभिमन्युः – मा तावद् भोः ! किं भवान् मध्यमः तातः यः तस्य सदृशं वचः वदति ।
प्रश्ना:- 1. एकपदेन उत्तरत-
(क) कः न अभिवादयति राजानम् ?
(ख) कः क्षत्रियकुमारः उत्सिक्तः ?
(ग) किम् दुर्बलैः एव गृह्यते ?
(घ) कस्मै भुजौ एव प्रहरणम् ?
उत्तरम् — (क) अभिमन्युः ।
(ख) अभिमन्युः ।
(ग) धनुः ।
(घ) भीमसेनाय ।
2. पूर्णवाक्येन उत्तरत-
(क) अभिमन्युः कैः शब्दैः तिरस्करोति राजानम् ?
(ख) क: अभिमन्योः दर्पप्रशमनं प्रयत्नं करोति ?
(ग) धनुः कैः एव गृह्यते ?
(घ) अभिमन्योः अनुसारम् कः तस्य मध्यमतात – सदृशं ‘वचः वदति ?
उत्तरम् — (क) ‘कस्य महाराज : ?’ इति शब्दैः अभिमन्युः तिरस्करोति राजानम्।
(ख) राजा अभिमन्योः दर्पप्रशमनं प्रयत्नं करोति ।
(ग) धनुः दुर्बलैः एव गृह्यते ।
(घ) अभिमन्योः अनुसारं भीमसेनः तस्य मध्यम तात- सदृशं वचः वदति।
3. निर्देशानुसारम् उत्तरत-
(क) ‘अपुण्यम्’ अस्य पर्यायवाचिपदं लिखत ।
(ख) ‘सबलैः’ अस्य विलोमपदं किमत्र प्रयुक्तम् ?
(ग) ‘उत्सिक्तः खल्वयं क्षत्रियकुमारः’ अत्र कर्तृपदं किम् ?
(घ) ‘एह्येहि’ इत्यस्य पदस्य सन्धिच्छेदं कुरुत ।
उत्तरम् — (क) पापम् ।
(ख) दुर्बलैः ।
(ग) क्षत्रियकुमारः ।
(घ) एह्येहि = एहि + एहि ।
(5) भगवान् – पुत्र ! कोऽयं मध्यमो नाम ?
अभिमन्युः – योक्त्रयित्वा जरासन्धं कण्ठश्लिष्टेन बाहुना । असह्यं कर्म तत् कृत्वा नीतः कृष्णोऽतदर्हताम्।।
राजा – न ते क्षेपेण रुष्यामि, रुष्यता भवता रमे ।
किमुक्त्वा नापराद्धोऽहं कथं तिष्ठति यात्विति ।।
अभिमन्युः – यद्यहमनुग्राह्य:-
पादयोः समुदाचारः क्रियतां निग्रहोचितः ।
बाहुभ्यामाहृतं भीम: बाहुभ्यामेव नेष्यति । ।
(ततः प्रविशत्युत्तर:)
उत्तर: – तात! अभिवादये!
राजा – आयुष्मान् भव पुत्र । पूजिताः कृतकर्माणो योधपुरुषाः ।
प्रश्ना:- 1. एकपदेन उत्तरत-
(क) बाहुना कण्ठश्लिष्टेन कः बद्ध: ?
(ख) कः न रुष्यति क्षेपेण ?
(ग) क: बाहुभ्याम् एव नेष्यति ?
(घ) पूजिताः कृतकर्माणो के ?
उत्तरम् — (क) जरासन्ध: ।
(ख) राजा।
(ग) भीमः ।
(घ) योधपुरुषाः ।
2. पूर्णवाक्येन उत्तरत-
(क) किं कृत्वा भीमसेनेन कृष्णः अतदर्हतां नीतः ?
(ख) किम् उक्त्वा राजा अपराधं करिष्यति ?
(ग) कयो: निग्रहोचितः समुदाचारः क्रियताम् ?
(घ) केभ्याम् आहृतं अभिमन्युं भीमः बाहुभ्याम् एव नेष्यति ?
उत्तरम् — (क) असह्यं कर्म कृत्वा भीमसेनेन कृष्णः अतदर्हतां नीतः ।
(ख) ‘कथं भवान् तिष्ठति, यातु’ इति उक्त्वा राजा अपराध करिष्यति ।
(ग) पादयोः निग्रहोचितः समुदाचारः क्रियताम् ।
(घ) बाहुभ्याम् आहृतम्, अभिमन्युं बाहुभ्याम् एव नेष्यति ।
3. निर्देशानुसारम् उत्तरत-
(क) ‘कापुरुषाः’ अस्य विलोमपदं किम् ?
(ख) ‘आहृतम्’ अत्र कः उपसर्ग: प्रयुक्तः ?
(ग) ‘यात्विति’ इत्यस्य पदस्य सन्धिच्छेदं कुरुत ?
(घ) ‘न ते क्षेपेण रुष्यामि’ अत्र ‘ते’ कस्मै प्रयुक्तम् ?
उत्तरम् — (क) योधपुरुषाः ।
(ख) आ ।
(ग) यात्वितिः = यातु + इति ।
(घ) अभिमन्यवे ।
(6) उत्तर: – पूज्यतमस्य क्रियतां पूजा ।
राजा – पुत्र! कस्मै ?
उत्तर: – इहात्रभवते धनञ्जयाय ।
राजा – कथं धनञ्जयायेति ?
उत्तर: – अथ किम्
श्मशानाद्धनुरादाय तूणीराक्षयसायके ।
नृपा भीष्मादयो भग्ना वयं च परिरक्षिताः ।
राजा – एवमेतत्।
उत्तर: – व्यपनयतु भवाञ्छङ्काम्। अयमेव अस्ति धनुर्धरः धनञ्जयः ।
बृहन्नला – यद्यहं अर्जुनः तर्हि अयं भीमसेनः अयं च राजा युधिष्ठिरः ।
अभिमन्युः – इहात्रभवन्तो मे पितरः । तेन खलु…..
न रुष्यन्ति मया क्षिप्ता हंसन्तश्च क्षिपन्ति माम् ।
दिष्ट्या गोग्रहणं स्वन्तं पितरो येन दर्शिताः ।।
( इति क्रमेण सर्वान् प्रणमति, सर्वे च तम् आलिङ्गन्ति ।)
प्रश्ना:- 1. एकपदेन उत्तरत-
(क) कः श्मशानाद् धनुम् आदाय युद्धं गतः ?
(ख) रिक्तस्थानं पूरयत-अयमेव अस्ति …….. धनञ्जयः ।
(ग) बृहन्नलादय: हसन्तः कं क्षिपन्ति ?
(घ) अत्र स्वन्तं किम् ?
उत्तरम् — (क) धनञ्जयः ।
(ख) धनुर्धरः ।
(ग) अभिमन्युम् ।
(घ) गोग्रहणम्।
2. पूर्णवाक्येन उत्तरत-
(क) धनञ्जयः किं कृत्वा भीमादयः नृपा: भग्ना: ?
(ख) कस्य पितरः इहात्रभवन्त: ?
(ग) के क्षिप्ता न रुष्यन्ति ?
(घ) दिष्ट्या गोग्रहणं स्वन्तं कथम् ?
उत्तरम्- (क) धनञ्जयः श्मशानात् तूणीराक्षयसायके धनुः आदाय भीमादयः नृपा: भग्नाः ।
(ख) अभिमन्योः पितरः इहात्रभवन्तः ।
(ग) भीमादयः क्षिप्ता न रुष्यन्ति ।
(घ) दिष्ट्या गोग्रहणं स्वन्तं; यतः तेन पितरो दर्शिताः ।
3. निर्देशानुसारम् उत्तरत-
(क) ‘क्षय’ अस्य विलोमपदं किमत्र प्रयुक्तम् ?
(ख) ‘अर्जुनः’ अस्य पर्यायवाचिपदं लिखत ।
(ग) ‘धनुर्धरः धनञ्जयः’ अनयोः किं विशेषणपदम् ?
(घ) ‘पूज्यतमस्य क्रियतां पूजा।’ अत्र क्रियापदं किम् ?
उत्तरम् — (क) अक्षय ।
(ख) धनञ्जयः ।
(ग) धनुर्धरः ।
(घ) क्रियताम् ।
पाठ्यपुस्तक के अभ्यास प्रश्नोत्तर
1. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत—
(क) भटः कस्य ग्रहणम् अकरोत् ?
उत्तरम् — भट: अभिमन्योः ग्रहणम् अकरोत् ।
(ख) अभिमन्युः कथं गृहीतः आसीत्?
उत्तरम् — अभिमन्युः अशस्त्रेण भीमसेनेन बाहुभ्यां गृहीतः आसीत्।
(ग) भीमसेनेन बृहन्नलया च पृष्टः अभिमन्युः किमर्थम् उत्तरं न ददाति?
उत्तरम् — भीमसेनेन बृहन्नलया च पृष्टः अभिमन्युः उत्तरं न ददाति; यतः तस्य मनसि तौ नीचैः स्तः, तथापि तौ क्षत्रियवंशोद्भूतं तं नामभिः अभिभाष्यतः ।
(घ) अभिमन्युः स्वग्रहणे किमर्थं वञ्चितः इव अनुभवति ?
उत्तरम् — भीमसेनः अशस्त्रं भूत्वा अभिमन्योः अभिमुखं गतः; अतः सः प्रहारं न अकरोत् । एवं स स्वग्रहणे वञ्चितः इव अनुभवति ।
(ङ) कस्मात् कारणात् अभिमन्युः गोग्रहणं सुखान्तं मन्यते ?
उत्तरम् — गोग्रहणेन पितरो दर्शिताः, अस्मात् कारणात् अभिमन्युः गोग्रहणं सुखान्तं मन्यते।
2. अधोलिखितवाक्येषु प्रकटितभावं चिनुत-
(क) भोः को नु खल्वेषः ? येन भुजैकनियन्त्रितों ‘बलाधिकेनापि न पीडितः अस्मि ।
(विस्मय:, भयम्, जिज्ञासा)
(ख) कथं कथं ! अभिमन्युर्नामाहम् ।
(आत्मप्रशंसा, स्वाभिमानः, दैन्यम्)
(ग) कथं मां पितृवदाक्रम्य स्त्रीगतां कथां पृच्छसे?
(लज्जा, क्रोध:, प्रसन्नता)
(घ) धनुस्तु दुर्बलैः एव गृह्यते मम तु भुजौ एव प्रहरणम् ।
(अन्धविश्वास, शौर्यम्, उत्साहः)
(ङ) बाहुभ्यामाहृतं भीमः बाहुभ्यामेव नेष्यति ।
(आत्मविश्वास:, निराशा, वाक्संयमः)
(च) दिष्ट्या गोग्रहणं स्वन्तं पितरो येन दर्शिताः ।
(क्षमा, हर्ष:, धैर्यम्)
उत्तरम् — (क) विस्मयः ।
(ख) स्वाभिमानः ।
(ग) क्रोधः ।
(घ) उत्साहः ।
(ङ) आत्मविश्वास: ।
(च) हर्षः ।
3. यथास्थानं रिक्तस्थानपूर्ति कुरुत-
(क) खलु + एषः = ………..
(ख) बल + …….. + अपि = बलाधिकेनापि
(ग) विभाति + …….. = विभात्मावेषम्
(घ) ……… + एनम् = वाचालयत्वेनम्
(ङ) रुष्यति + एष = रुष्यत्येष
(च) त्वमेव + एनम् = ………..
(छ) यातु + ……….. = यात्विति
(ज) ……….. + इति = धनञ्जयायेति
उत्तरम् —
(क) खलु + एषः = खल्वेषः
(ख) बल + अधिकेन + अपि = बलाधिकेनापि
(ग) विभाति + उमावेषम् = विभात्मावेषम्
(घ) वाचालयतु + एनम् = वाचालयत्वेनम्
(ङ) रुष्यति + एष = रुष्यत्येष
(च) त्वमेव + एनम् = त्वमेवैनम्
(छ) यातु + इति = यात्विति
(ज) धनञ्जयाय + इति = धनञ्जयायेति ।
4 अधोलिखितानि स्थूलानि सर्वनामपदानि कस्मै प्रयुक्तानि –
(क) वाचालयतु एनम् आर्यः ।
उत्तरम् — अभिमन्येव ।
(ख) किमर्थ तेन पदातिना गृहीतः ।
उत्तरम् — भीमसेनाय ।
(ग) कथं न माम् अभिवादयसि ।
उत्तरम् – राज्ञे ।
(घ) मम तु भुजौ एव प्रहरणम् ।
उत्तरम् — भीमसेनाय ।
(ङ) अपूर्व इव ते हर्षो ब्रूहि केन विस्मित: ?
उत्तरम् — भटाय।
5. श्लोकानाम् अपूर्णः अन्वयः अघोदत्तः । पाठमाधृत्य रिक्तस्थानानि पूरयत-
(क) पार्थं पितरम् मातुलं ……… च उद्दिश्य कृतास्त्रस्य तरुणस्य …….. युक्तः ।
(ख) कण्ठश्लिष्टेन ……… जरासन्धं योक्त्रयित्वा तत् असह्यं ……. कृत्वा (भीमेन) कृष्णः अतदर्हतां नीतः ।
(ग) रुष्यता ……… रमे। ते क्षेपेण न रुष्यामि, किं ………. अहं नापराद्धः, कथं (भवान् ) तिष्ठति, यातु इति ।
(घ) पादयोः निग्रहोचितः समुदाचारः ………। बाहुभ्याम् आहृतम् (माम्) …….. बाहुभ्याम् एव नेष्यति ।
उत्तरम् –
(क) पार्थं पितरम् मातुलं जनार्दनं च उद्दिश्य कृतास्त्रस्य तरुणस्य युद्धपराजयः युक्तः ।
(ख) कण्ठश्लिष्टेन बाहुना जरासन्धं योक्त्रयित्वा तत् असह्यं कर्म कृत्वा (भीमेन) कृष्ण: अतदर्हतां नीतः ।
(ग) रुष्यता भवता रमे। ते क्षेपेण न रुष्यामि किम् उक्त्वा अहं नापराद्धः, कथं भवान्) तिष्ठति, यातु इति ।
(घ) पादयो: निग्रहोचितः समुदाचारः क्रियताम् । बाहुभ्याम् आहृतम् (माम्) भीमः बाहुभ्याम् एव नेष्यति ।