UK Board 9th Class Science – हम और हमारा पर्यावरण – Chapter 21 महिला एवं बाल कल्याण
UK Board 9th Class Science – हम और हमारा पर्यावरण – Chapter 21 महिला एवं बाल कल्याण
UK Board Solutions for Class 9th Science – हम और हमारा पर्यावरण – Chapter 21 महिला एवं बाल कल्याण
• विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1–महिला तथा पर्यावरण के अन्तर्सम्बन्धों को परिभाषित कीजिए।
उत्तर- महिला एवं पर्यावरण सम्बन्ध
भारत जैसे विकासशील देशों में महिलाएँ प्राकृतिक संसाधनों की प्राथमिक प्रबन्धक होती हैं। ये घर के लिए ईंधन, पानी, घास, भोजन आदि की व्यवस्था करती हैं। खेतों में कृषि का कार्य, वनों से विभिन्न प्रकार के उत्पादों का संग्रह के अतिरिक्त फैक्ट्रियों और कार्यालयों में विभिन्न प्रकार के दायित्वों का निर्वाह करती हैं। किन्तु भारत में निम्न स्तरीय जीवन शैली के कारण वे प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित करने के स्थान पर उनका दोहन करने को बाध्य होती हैं। इतना ही नहीं महिलाएँ ही पर्यावरण विनाश, प्रदूषण और संसाधन ह्रास से भी सबसे अधिक प्रभावित और पीड़ित होती हैं। महिलाओं और पर्यावरण के बीच अन्तर्सम्बन्धों को निम्नलिखित रूप से स्पष्ट किया जा सकता है—
ग्रामीण एवं नगरीय क्षेत्रों में महिलाओं द्वारा प्रतिदिन किए जा रहे विभिन्न कार्यों और पर्यावरण के मध्य घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएँ कुएँ या नदी आदि से जल एकत्रित करती हैं, घरेलू उपयोग के लिए ईंधन हेतु लकड़ियाँ जुटाती हैं, खाना बनाना, खेतों में काम करना तथा मवेशियों की देख-भाल करना इनका मुख्य कार्य होता है। जबकि नगरीय क्षेत्रों में महिलाएँ गृह व्यवस्था, पेयजल और सफाई की व्यवस्था एवं बच्चों और बूढ़ों की देखभाल करती हैं। शहरों की कुछ महिलाएँ घर से बाहर के कार्यों को भी पूरा करती हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएँ शहरी क्षेत्रों की अपेक्षा पर्यावरण को अधिक प्रभावित करती हैं और उससे अधिक प्रभावित भी होती हैं। इन का पर्यावरणीय ज्ञान शहरी महिलाओं और पुरुषों की अपेक्षा अधिक होता है। ग्रामीण महिलाओं को वनों से भावनात्मक लगाव होता है क्योंकि उनकी ईंधन और घास-पात की आपूर्ति इन्हीं से पूरी होती है। इसीलिए महिलाएँ ‘चिपको आन्दोलन’ की अग्रज रही हैं। जल स्रोतों की देखभाल साफ-सफाई की महत्ता को भी ये अधिक महत्त्व देती हैं क्योंकि प्रतिदिन जल की आपूर्ति इनको इन्हीं स्रोतों के द्वारा होती है। इतना होते हुए भी घरेलू प्रदूषण की शिकार भी यही महिलाएँ सबसे अधिक होती हैं। धुएँ और धूल तथा पशुओं द्वारा उत्पन्न प्रदूषण का सबसे अधिक सामना इन्हीं महिलाओं को करना पड़ता है। शहरी एवं ग्रामीण महिलाओं का प्राकृतिक पर्यावरण के अतिरिक्त सामाजिक पर्यावरण से भी सीधा सम्बन्ध होता है। सामाजिक प्रदूषण की शिकार भी सबसे अधिक महिलाएँ ही होती हैं।
विकास सम्बन्धी क्रियाकलापों महिलाओं एवं पर्यावरण के मध्य भी सम्बन्धों का एक विशेष समीकरण होता है। ये तीनों ही एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। अधिकांश विकास कार्यक्रम महिलाओं की आवश्यकता को ध्यान में रखकर नहीं बनाए जाते हैं। जबकि पर्यावरण के सम्बन्ध में निर्धारित विकास योजनाओं से महिलाएँ सबसे अधिक प्रभावित होती हैं और उन्हें प्रभावित करती हैं। कृषि, जल, ऊर्जा और वानिका के संरक्षण में यदि महिलाओं की भागीदारी को सम्मिलित कर लिया जाए तो ऐसे कार्यक्रम अपेक्षाकृत अधिक अच्छे परिणाम दे सकते हैं।
अतः हम देखते हैं कि पर्यावरण सम्बन्धी निर्णयों में महिलाओं की भूमिका को यदि महत्त्व दिया जाए तथा उसकी आवश्यकताएँ स्वास्थ्य सम्बन्धी दशा और उत्तरदायित्व को ध्यान में रखकर पर्यावरण संरक्षण कार्यक्रमों को निर्धारित किया जाए तो पर्यावरण सुरक्षा और संरक्षण में अधिक सफलता प्राप्त की जा सकती है।
प्रश्न 2 – भारतीय सन्दर्भ में महिला सशक्तीकरण का वर्णन कीजिए ।
उत्तर – विश्व की सम्पूर्ण आबादी का लगभग आधा भाग महिलाएँ हैं इसलिए प्रगति की दिशा में किसी भी सतत परिवर्तन के लिए महिलाओं की भागीदारी आवश्यक है। जैसा कि प्रत्येक समाज में कमोबेश महिलाओं भेदभाव किया जाता रहा है इसलिए लगभग सम्पूर्ण विश्व में तथा विशेष रूप से भारत सरीखे विकासशील देशों में महिलाओं की स्थिति पुरुषों की तुलना में पर्याप्त कमजोर रही है। इसका पूरा कुप्रभाव विकास की प्रक्रिया गम्भीरता से चिन्तन किया जा रहा है एवं महिला सशक्तीकरण के उपायों पर पड़ा। इसलिए वर्तमान समय में महिलाओं के सशक्तीकरण के बारे में पर कार्य किया जा रहा है। महिला सशक्तीकरण आर्थिक तथा राजनीतिक अवसरों तथा निर्णय लेने की प्रक्रिया में सहभागिता में असमानता की ओर ध्यान केन्द्रित करता है। इसमें महिलाओं के लिए अवसर प्रदान करने हेतु अधिक आय का होना अनिवार्य नहीं है। यह असमानताएँ एक ही देश के विभिन्न समुदायों, जातियों तथा क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न हैं। इसमें राज्य विधानसभाओं, संसद, वरिष्ठ अधिकारियों तथा प्रबन्धकों एवं व्यावसायिक और तकनीकी कर्मचारियों में महिलाओं के प्रतिशत का भी पता लगता है। लैंगिक असमानता को दूर करने के लिए महिला सशक्तीकरण को एक अत्यन्त सबल उपाय भी स्वीकार किया जाने लगा है।
भारतीय परिप्रेक्ष्य में यद्यपि अधिकांश राज्यों में लाभ वाले या वेतन वाले कामों में चाहे वे उद्योग में हों या नौकरियों में, पुरुषों की संख्या बढ़ गई है, तथापि संसद तथा राज्य विधायिकाओं में महिलाओं को 30 प्रतिशत स्थान भी प्राप्त नहीं हैं। भारत की सभी विधायिकाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण का प्रयास अभी तक सफल नहीं हुआ। हमारे देश में महिलाओं के सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक स्तर को सुधारने की दिशा में अभी बहुत कुछ करना बाकी है।
भारतीय महिलाओं का दर्जा पुरुषों के समकक्ष करने के लिए हमारी विकास सम्बन्धी योजनाओं में 1980 से ही महिलाओं को एक अलग समूह मान लिया गया है। 3 जनवरी, 1992 को राष्ट्रीय महिला आयोग की स्थापना की गई। इसके अतिरिक्त, महिला सशक्तीकरण राष्ट्रीय नीति, 2001 के अन्तर्गत महिला और शिशु विकास विभाग द्वारा सामर्थ्य निर्माण, रोजगार तथा आय उपार्जन, कल्याण एवं सहायक सेवाएँ तथा लैंगिक संवेदनशीलता के क्षेत्र में पहल की जा चुकी है।
भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास तीव्रता से हुआ है, परन्तु हमारी जनसंख्या वृद्धि ने इस विकास को काफी सीमा तक निष्प्रभावित कर दिया है। महिला सम्बन्धी विकास के सन्दर्भ में यह तथ्य आश्चर्यचकित करने वाला है कि लड़कों की तुलना में लड़कियों का विद्यालयों में पंजीकरण सहभागिता तथा साक्षरता दर हमारी राष्ट्रीय साक्षरता दर की वृद्धि के साथ बढ़ा है। परन्तु विकसित देशों के मानव विकास सूचकांक स्तर पर पहुँचने के लिए भारत को अभी बहुत कुछ करना शेष है ।
प्रश्न 3 – लैंगिक असमानता को बढ़ावा देने वाले विभिन्न कारकों का वर्णन कीजिए ।
अथवा समान अवसर की अवधारणा की विवेचना कीजिए ।
उत्तर – यद्यपि प्राचीनकाल से ही विश्व के सभी समाजों में स्त्रियों के साथ लैंगिक आधार पर भेदभाव किया जाता रहा है तथापि इसकी भयानकता का समुचित अध्ययन नहीं किया जाता था । वर्तमान समय में लिंग असमता सम्बन्धी अध्ययन किसी एक राष्ट्र की सीमाओं के अन्तर्गत उत्पन्न होने वाली समस्याओं में सम्मिलित विषय नहीं रहा है वरन् यह एक अन्तर्राष्ट्रीय विषय हो गया है । यौन सम्बन्धी अन्तर तो शारीरिक है, परन्तु लैंगिक भेदभाव सामाजिक कारण से होता है। जैसे बचपन से ही लड़कियों को स्वास्थ्य की देखभाल, शिक्षा तथा आर्थिक अधिकारों जैसी उन सभी सुविधाओं से वंचित रखा जाता है जो एक पुरुष को मिलती हैं। यों तो पूरे विश्व में ही यह भेदभाव किसी-न-किसी स्तर पर विद्यमान रहा है, किन्तु भारत में, जोकि लम्बे समय तक गुलामी की जंजीरों से जकड़ा रहा तथा आज एक विकासशील देश है, यह भेदभाव विशेष रूप से देखने को मिलता है। लैंगिक समभाव नकारे रखने तथा महिलाओं के स्थान को निम्न बनाए रखने के पीछे कई कारण हैं।
भारत में लैंगिक असमभाव सकल जनसंख्या, पुरुषों तथा स्त्रियों में साक्षरता, सामाजिक-आर्थिक प्रतिष्ठा तथा अवसरों में देखने को मिलती है। महिलाओं में साक्षरता के बहुत कम होने के कारण हैं- बाल विवाह, सामाजिक भेदभाव, घर में तथा समाज में निम्न प्रतिष्ठा । भारत का लैंगिक अनुपात सदैव गम्भीर चिन्ता का विषय रहा है, क्योंकि यह लम्बे समय से प्रति हजार पुरुषों के पीछे 950 महिलाओं से भी काफी नीचे रहा है।
लैंगिक अनुपात में 1901 से 1991 तक पर्याप्त गिरावट आई है। साथ ही, यह प्रवृत्ति विभिन्न राज्यों में अलग-अलग है। केरल में लैंगिक अनुपात अनुकूल है, जबकि पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार तथा तमिलनाडु जैसे राज्यों में यह बहुत प्रतिकूल है।
लैंगिक असमानता के अनके कारकों में से कुछ प्रमुख हैं – ऊँची मातृ मृत्युदर, कन्या भ्रूण हत्यां, पुरुषप्रधान समाज में महिलाओं का निम्न स्थान, बालिकाओं के प्रति उपेक्षा आदि। सभी कारकों में, जिनके कारण महिलाओं में मृत्यु-दर ऊँची होती है; प्रमुख हैं बेटे के लिए प्राथमिकता तथा सामाजिक प्रताड़ना ।
• लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 – महिला सशक्तीकरण का केन्द्रबिन्दु क्या है?
उत्तर— महिला सशक्तीकरण का केन्द्रबिन्दु निम्नलिखित असमानताओं की ओर ध्यान दिलाता है-
(1) सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक क्षेत्र में महिलाओं के साथ किया जाने वाला असमानता का व्यवहार |
(2) परिवार, समुदाय, राष्ट्र एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर निर्णय प्रक्रिया में महिलाओं की सहभागिता में असमानता ।
(3) विभिन्न समुदायों, जातियों एवं धर्मों इत्यादि के क्षेत्रों में महिलाओं से होने वाली असमानताएँ ।
(4) राज्य विधान सभाओं, संसद, वरिष्ठ अधिकारियों, व्यावसायिक एवं तकनीकी कर्मचारियों तथा प्रबन्धकों में महिलाओं की प्रतिशत भागीदारी में असमानता ।
प्रश्न 2 – भारत में महिला सशक्तीकरण में निम्नता के कोई चार कारण लिखिए।
उत्तर – भारत में महिला सशक्तीकरण में निम्नता के चार कारण निम्नवत् हैं—
(1) भारतीय सामाजिक ढाँचे में महिलाओं की स्थिति पुरुषों की तुलना में निम्न होने तथा महिलाओं पर अनेक सामाजिक अंकुश लगे होने के कारण महिला सशक्तीकरण प्रभावित होता है।
(2) राजनीतिक क्षेत्रों विशेष रूप से राज्य विधानसभाओं, संसद में महिलाओं की संख्या पुरुषों से कम है जिसके परिणामस्वरूप महिलाओं के अधिकारों पर पूरी तरह से ध्यान नहीं दिया जाता है।
(3) उच्च सेवा क्षेत्रों; जैसे-सेना, पुलिस, न्यायालय, प्रबन्धन, तकनीकी कर्मचारियों इत्यादि महिलाओं की भागीदारी कम होने से महिलाओं का सशक्तीकरण निम्न स्तर का बना रहता है।
(4) महिलाओं के निम्न शैक्षिक स्तर के कारण महिलाओं का सशक्तीकरण निम्न स्तर का है।
प्रश्न 3 – महिला सशक्तीकरण हेतु राष्ट्रीय नीति के मुख्य उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर – महिला सशक्तीकरण नीति 20 मार्च, 2001 से लागू की गई है। इस नीति के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
(1) महिलाओं की स्थिति को विकसित और सशक्त बनाना ।
(2) महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव को समाप्त करना ।
(3) विकास के सभी क्षेत्रों में उनकी स्थिति और भागीदारी सुनिश्चित करना ।
• अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 – महिलाओं के कल्याण हेतु चलाई जा रही दो योजनाओं के नाम बताइए ।
उत्तर – महिलाओं के कल्याण चलाई जा रही दो योजनाओं के नाम निम्नलिखित हैं—
(1) ‘स्वाधार’ वर्ष 2001 ‘निर्धन महिलाओं के लिए चलाई गई योजना |
(2) ‘प्रशिक्षण और रोजगार कार्यक्रम (STEP )’, यह योजना 1986-87 में महिलाओं को रोजगार प्रदान करने के लिए शुरू की गई है।
प्रश्न 2 – बाल श्रमिकों से कार्य कराने वाले उद्योगों के नाम बताइए |
उत्तर- बाल श्रमिक निम्नलिखित उद्योगों में प्रमुख रूप से कार्य करते हैं-
होटल, चाय की दुकान, बसों की सफाई, कृषि एवं कृषि सहायक व्यवसाय, मशीनों की वर्कशॉप, माचिस एवं बीड़ी उद्योग आदि ।
प्रश्न 3 – लैंगिक अनुपात क्या है?
उत्तर – प्रति 1000 पुरुषों पर स्त्रियों की संख्या लैंगिक अनुपात को दर्शाता है।
प्रश्न 4 – लैंगिक अनुपात का अनुकूल तथा प्रतिकूल होने से क्या तात्पर्य है?
उत्तर- लैंगिक अनुपात अनूकूल होने से तात्पर्य है कि 1000 पुरुषों पर स्त्रियों की संख्या 1000 से अधिक होना तथा लैंगिक अनुपात प्रतिकूल होने से तात्पर्य 1000 पुरुषों पर स्त्रियों की संख्या 1000 से कम होना ।
प्रश्न 5 – लैंगिक समभाव का क्या अर्थ है ?
उत्तर— लैंगिक समभाव का अर्थ है स्त्रियों और पुरुषों की संख्या में समानता तथा लिंग के आधार पर किसी भेदभाव का न होना ।
प्रश्न 6 – भारत में वर्तमान लैंगिक अनुपात क्या है?
उत्तर – वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार भारत में 1000 पुरुषों पर 933 महिलाओं का अनुपात है।
प्रश्न 7 – भारत में राष्ट्रीय महिला आयोग की स्थापना कब और किस उद्देश्य के लिए की गई थी ?
उत्तर – भारत में 3 जनवरी, 1992 ई० को राष्ट्रीय महिला आयोग की स्थापना की गई थी। राष्ट्रीय महिला आयोग का प्रमुख उद्देश्य है. महिलाओं के अधिकारों की सुनिश्चितता जिससे कि महिला सशक्तीकरण, महिला जागृति एवं महिला उत्थान सम्भव हो और लैंगिक समानता का वातावरण बने ।
प्रश्न 8 – बाल शोषण क्या है?
उत्तर- जानबूझकर बच्चों को मानसिक अथवा शारीरिक हानि पहुँचाना ‘बाल शोषण’ कहलाता है।
प्रश्न 9 – बाल श्रमिक किसे कहते हैं?
उत्तर – 14 वर्ष से कम आयु के श्रमिकों को बाल श्रमिक कहा जाता है।
प्रश्न 10– विश्व में सर्वाधिक बाल श्रमिक कहाँ हैं?
उत्तर – विश्व में सर्वाधिक बाल श्रमिक भारत में हैं।