UK Board 9th Class Science – हम और हमारा पर्यावरण – Chapter 7 पारिस्थितिक तन्त्र के संरक्षण में हमारी भूमिका : परम्परागत संरक्षण प्रणालियों सहित वैकल्पिक विधियाँ
UK Board 9th Class Science – हम और हमारा पर्यावरण – Chapter 7 पारिस्थितिक तन्त्र के संरक्षण में हमारी भूमिका : परम्परागत संरक्षण प्रणालियों सहित वैकल्पिक विधियाँ
UK Board Solutions for Class 9th Science – हम और हमारा पर्यावरण – Chapter 7 पारिस्थितिक तन्त्र के संरक्षण में हमारी भूमिका : परम्परागत संरक्षण प्रणालियों सहित वैकल्पिक विधियाँ
• विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 – चिपको आन्दोलन का वर्णन कीजिए।
उत्तर- चिपको आन्दोलन
पर्यावरण संरक्षण हेतु 1974 ई० में उत्तराखण्ड में चमोली जनपद में नीति घाटी के रेणीं गाँव की मंगल दल की अध्यक्ष श्रीमती गौरा देवी ने अन्य महिलाओं के साथ जंगल में पेड़ों के कटाव हेतु वन ठेकेदारों के विरोध में आन्दोलन प्रारम्भ किया था। महिलाएँ पेड़ों से चिपककर खड़ी हो गई थीं और पेड़ों को कटने से बचाया था । पेड़ों से चिपककर उन्हें कटने से बचाने के कारण ही इस आन्दोलन को ‘चिपको आन्दोलन’ के नाम से पुकारा जाता है।
यह आन्दोलन उत्तराखण्ड राज्य से आरम्भ होकर अन्य क्षेत्रों में भी फैल गया था। वास्तव में, इसमें कोई संशय नहीं है कि चिपको आन्दोलनकारियों ने वनों से पर्यावरणीय महत्त्व की जानकारी जनसाधारण तक पहुँचाई है। कर्नाटक का ‘अप्पिको आन्दोलन’ भी चिपको आन्दोलन जैसा ही है। चिपको आन्दोलन ने सम्पूर्ण विश्व का ध्यान आकर्षित किया है जिसके फलस्वरूप भारत में वन सम्बन्धी नीतिगत परिवर्तन किए गए. . हैं। गौरा देवी का यह आह्वान कि जंगल हमारा मायका है आज भी वन संरक्षण के लिए महिलाओं को प्रेरित करता है। वास्तव में, चिपको आन्दोलन ने वन संरक्षण में महिलाओं की भूमिका को नई पहचान दी है। चिपको आन्दोलन के 30 वर्ष पश्चात् 25 मार्च, 2004 को इसकी वर्षगाँठ मनाई गई जिसमें नीति घाटी के स्थानीय लोगों के साथ पर्यावरण चेतना के जाने माने सक्रिय कार्यकर्त्ताओं ने भी भाग लिया।
चिपको आन्दोलन के निम्नलिखित दो प्रमुख उद्देश्य हैं-
(1) आर्थिक स्वावलम्बन के लिए वनों का व्यापारिक दोहन बन्द करना, तथा
(2) पर्यावरण सन्तुलन के लिए वृक्षारोपण कार्य को गति देना ।
चिपको आन्दोलन की धारणा के अनुसार वनों की पाँच पर्यावरणीय उपजें हैं, इन्हें 5, कहा जाता है। इनका उपयोग स्थानीय आवश्यकताओं के लिए किया जाता है। ये उपजें हैं- (i) जलाऊ ईंधन (Fuel Wood), (ii) चारा (Fodder), (iii) फल (Fruits), (iv) रेशा (Fibre) तथा (v) खाद (Fertilizer) ।
वास्तव में, वर्तमान समय में पर्यावरण अवक्रमण को रोकने एवं पर्यावरणीय संरक्षण व सुरक्षा के लिए चिपको आन्दोलन जैसी जागरूकता. की नितान्त आवश्यकता है।
• लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 – पर्यावरण संरक्षण से क्या आशय है?
उत्तर – पर्यावरण संरक्षण का अर्थ है- “पर्यावरण के विभिन्न घटकों के मध्य सन्तुलन को बनाए रखना।” यह पर्यावरण तन्त्र के स्व-नियमन (Self-regulation) को संचालित रखता है, परन्तु प्राकृतिक तत्त्वों की अनदेखी इस युग की सबसे बड़ी त्रासदी बन गई है। भौतिकवादी जीवन-शैली तथा सांस्कृतिक विकास को प्राप्त करने के लिए अविवेकपूर्ण निर्णयों तथा मानव प्रकृति के असंवेदनशील सम्बन्धों ने पर्यावरणीय विकृतियों को जन्म दिया है। वायु, मृदा व जल जैसे जीवनदायी तत्त्वों का प्रदूषण, ओजोन परत का क्षरण, अम्ल वर्षा, वायुमण्डल में कार्बन डाइ ऑक्साइड की वृद्धि आदि ने पर्यावरण को पंगु बना दिया है। प्रकृति के प्रति बढ़ते विनाशकारी अतिवाद ने अब ‘रुको और सोचो’ का वातावरण बना दिया है। इसी विचार ने पर्यावरण सुरक्षा एवं संरक्षण के विचार को बल प्रदान किया है।
अत: पर्यावरण संरक्षण में पर्यावरण के आधारभूत घटकों – जल, वायु, मृदा (भूमि) तथा वन एवं जीव-जन्तुओं के संरक्षण पर विशेष जोर दिया जाता है।
प्रश्न 2 – जल का विवेकपूर्ण उपयोग सुनिश्चित करने के लिए क्या उपाय आवश्यक है?
उत्तर- जल संरक्षण के उपाय
जल का संरक्षण कृषि, उद्योगों तथा प्राणियों के लिए अत्यावश्यक है। जल संरक्षण के कुछ उपाय निम्नलिखित हैं-
- जल के उचित वितरण तथा उपयोग का प्रबन्धन ।
- जल की निकासी का उचित प्रबन्धन ।
- जल के संग्रहण के लिए उचित प्रबन्धन ।
- बाँधों द्वारा जल को रोकने का प्रबन्धन ।
- भौम जल को पम्पों द्वारा निकालने का प्रबन्धन ।
- जल प्रदूषण की रोकथाम करने का प्रबन्धन ।
- जनसंख्या वृद्धि पर नियन्त्रण ।
- जल के अनुचित उपयोग पर प्रतिबन्ध लगाकर ।
प्रश्न 3 – वन संरक्षण की विभिन्न विधियाँ लिखिए।
उत्तर- वन संरक्षण की विधियाँ
वन संरक्षण की प्रमुख विधियाँ निम्नवत् हैं-
- भारतवर्ष में कुल वन क्षेत्रफल के एक-तिहाई भाग में ऊँचे तथा विशालकाय वृक्ष नहीं हैं। इन क्षेत्रों में इनका अधिक संख्या में रोपण कर वन आवरण की सघनता बढ़ाई जा सकती है।
- कृषि अयोग्य भूमि में वृक्ष लगाकर वन आवरण में वृद्धि की जा सकती है। अम्लीय क्षारीय जलाक्रान्त मृदा में सुधार करके वृक्षारोपण किया जा सकता है।
- मृदा के वनस्पति आवरण में वृद्धि करने के लिए उपयुक्त वृक्षों व पादपों को उगाना चाहिए।
- जिस स्थान पर लकड़ी का उपयोग ईंधन के रूप में होता है, वहाँ ईंधन का मितव्ययिता के साथ प्रयोग करना चाहिए। वहाँ इस प्रकार के वृक्ष लगाए जाएँ जिनकी लकड़ी का ईंधन के रूप में ही उपयोग किया जा सके।
- सड़क तथा रेलमार्गों के दोनों ओर, कृषि फार्मों के रों ओर, पार्क आदि के चारों ओर छायादार वृक्ष लगाने चाहिए। इसके अतिरिक्त कॉलेज प्रांगण, प्रशासकीय इमारतों के खाली स्थानों में सौन्दर्यर्द्धक व छायादार वृक्ष लगाने चाहिए ।
- ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों का उपयोग करना; जैसे— सौर ऊर्जा, बायोगैस आदि ।
- जल संभरण वाले क्षेत्रों में लगे वृक्षों के काटने पर प्रतिबन्ध लगाना।
- वृक्षों की कटाई में कमी तथा नए पौधों की रोपण – दर बढ़ाने से वृक्षों की संख्या में वृद्धि होगी।
- वनों में आधुनिक विधियों के उपयोग से वृक्षों के रोग आदि पर नियन्त्रण सम्भव है। वृक्षों की उन्नत किस्मों, ऊतक संवर्द्धन आदि से वृक्षों को अधिक स्वस्थ व उपयोगी बनाया जा सकता है।
- आधुनिक वन प्रबन्धन की विभिन्न विधियों; जैसे—उचित जल व्यवस्था, जैव उर्वरकों का उपयोग, कवकमूलों का प्रयोग करके उनकी वृद्धि, विकास तथा उत्पादन क्षमता बढ़ायी जा सकती है।
- वृक्षों की कटाई रोकना। उद्योग में काम आने वाले काष्ठ वृक्षों का अधिक-से-अधिक संख्या में रोपण करना ।
प्रश्न 4 – मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने के लिए सामान्य उपायों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर – मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने के सामान्य उपाय निम्नलिखित
- हरी खाद का प्रयोग — भूमि की उर्वरता बढ़ाने से मृदा अपरदन कम हो जाता है, क्योंकि निरन्तर खेती करने से मिट्टी में आवश्यक तत्त्वों की कमी हो जाती है। अतः हरी खाद तथा कम्पोस्ट खाद के प्रयोग से मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाया जाना चाहिए।
- शस्यावर्तन – यदि एक खेत में एक फसल की खेती लगातार की जाए तो उसमें किसी विशेष तत्त्व की अत्यधिक कमी हो जाती है । अत: फसलों को अदल-बदल कर बोना चाहिए और 2-3 फसलों के बाद फलीदार (leguminous) फसलें बोनी चाहिए।
- समोच्च जुताई – यह विधि ढालूदार स्थानों पर अपनायी जाती है। इसमें किसी ढलान के समकोण (Right angle) पर जुताई करके फसलें उगायी जाती हैं। इससे वर्षा के जल के बहाव में अवरोध उत्पन्न होता है और मिट्टी का कटाव कम होता है।
- वेदिकाकरण – यह विधि भी किसी ढालू क्षेत्र में अपनायी जाती है। इसमें किसी ढलवाँ सतह पर सीढ़ीनुमा खेत बनाए जाते हैं और फसलें उगायी जाती हैं। इससे वर्षा के जल के बहाव में रुकावट आ जाती है।
- गहरी जुताई – मरुस्थलीय भागों में अधिक गहराई तक जुताई की जाती है, जिससे अपक्षालन (leaching) की क्रिया में जो तत्त्व गहराई में चले गए हों, वे पुनः सतह पर आ सकें।
- संरक्षी पेटियाँ लगाना – ऐसे पौधों को स्थान-स्थान पर उगाना चाहिए, जो तीव्र वायु को रोककर मिट्टी के अपरदन को कम कर सकें।
- पट्टीदार कृषि – इस विधि में किसी पहाड़ी ढलान के किनारे पर सदावर्षी (perennial) पौधे, बीच में वार्षिक ( annual) तथा द्वि-वर्षीय (bi- annual) पौधे लगाए जाने चाहिए।
प्रश्न 5- मैती आन्दोलन किस उद्देश्य से संचालित है?
उत्तर – मैती आन्दोलन सन् 1994 ई० में ग्वालदम (जनपद चमोली) से आरम्भ होकर उत्तराखण्ड सहित भारत के पर्वतीय एवं अन्य राज्यों तक फैल गया है। इस आन्दोलन के सूत्रधार कल्याण सिंह रावत हैं। ‘मैत’ का अर्थ युवती के मायके से है। इस आन्दोलन की कार्यविधि के अनुसार गाँव की युवतियाँ मैती संगठन बनाती हैं जिसमें महिलाएँ भी सहयोग करती हैं। इसमें मैती बहनें अपने गाँव के निकट वर्षा के समय सामूहिक वृक्षारोपण करती हैं, जिसे मैती वन कहते हैं। इसी परम्परा को रिवाजों में सम्मिलित कर युवती के विवाह के समय दूल्हा व दुल्हन से वृक्षारोपण कराया जाता है। वृक्षारोपण के लिए निर्धारित स्थान पर दुल्हन अपने पौधे को दूल्हे को सौंपती है। यह पौधा दूल्हा एवं दुल्हन के विवाह . की मधुर यादगार बनता है। विवाह के उपरान्त घर व गाँव के लोग इन पेड़ों की बेटी की तरह देखभाल करते हैं।
मैती आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण को संस्कृति व रीति-रिवाजों से जोड़कर भावनात्मक विषय बनाना है। इसका भावनात्मक पक्ष आम समाज को वृक्षारोपण के द्वारा पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक करता है तथा पर्यावरण संरक्षण को लोकप्रियता प्रदान करता है।
• अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 – रसोईघर के धुएँ का प्रभाव समाप्त करने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं?
उत्तर – उन्नत किस्म के चूल्हों (निर्धूम चूल्हे) का प्रयोग करने से धुएँ के अधिक प्रभाव को कम किया जा सकता है।
प्रश्न 2 – जल संरक्षण के लिए घर के नलों के सम्बन्ध में क्या.. सावधानी आवश्यक है ?
उत्तर- अपने घर के नलों को टपकने से रोकें। उपयोग के बाद उन्हें कसकर बन्द करें तथा पानी की टंकियों के भरने पर पानी न बिखरे इसका ध्यान रखें।
प्रश्न 3 – मृदा किसे कहते हैं?
उत्तर – पृथ्वी के भूपटल की ऊपरी परत जो पौधों अथवा वनस्पतियों के उगने का प्राकृतिक माध्यम बनती है, मृदा कहलाती है। मृदा वास्तव में शैलचूर्ण है जिसमें ह्यूमस के सम्मिश्रण से उपजाऊ तत्त्वों का विकास होता है। यही उपजाऊ तत्त्व पौधों के संवर्द्धन में सहायक होते हैं।
प्रश्न 4- पर्वतीय ढलानों पर मिट्टी के बहाव को कैसे रोका जा सकता है? –
उत्तर – पर्वतीय ढलानों की मिट्टी के बहाव को रोकने के लिए कंटूर पद्धति का उपयोग करना चाहिए ।