UK Board 9th Class Science – Chapter 14 प्राकृतिक सम्पदा
UK Board 9th Class Science – Chapter 14 प्राकृतिक सम्पदा
UK Board Solutions for Class 9th Science – विज्ञान – Chapter 14 प्राकृतिक सम्पदा
अध्याय के अन्तर्गत दिए गए प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1. शुक्र और मंगल ग्रहों के वायुमण्डल से हमारा कैसे भिन्न है ?
उत्तर : शुक्र और मंगल ग्रहों के वायुमण्डल में कार्बन डाइ-ऑक्साइड की मात्रा लगभग 95.97% है; इसके विपरीत पृथ्वी के वायुमण्डल में कार्बन डाइ ऑक्साइड की मात्रा लगभग 0.03% -0.04%; ऑक्सीजन 21% और नाइट्रोजन 78% है।
प्रश्न 2. वायुमण्डल एक कम्बल की तरह कैसे कार्य करता है?
उत्तर : पृथ्वी का वायुमण्डल पृथ्वी को कम्बल की तरह ढके हुए है। वायुमण्डल के कारण पृथ्वी का औसतन तापमान पूरे वर्ष भर लगभग नियत रहता है। वायुमण्डल हानिकारक विकिरणों को पृथ्वी पर आने से रोकता है और पृथ्वी से ऊष्मा तथा अन्य गैसों को वायुमण्डल से बाहर अन्तरिक्ष में जाने से रोकता है।
प्रश्न 3. वायु प्रवाह (पवन) के क्या कारण हैं?
उत्तर : वायु प्रवाह – स्थल तथा जल के ऊपर की वायु सौर ऊर्जा के कारण गर्म होती है। जल की अपेक्षा स्थल के ऊपर की वायु शीघ्र गर्म होकर ऊपर उठना प्रारम्भ कर देती है। इससे वहाँ कम वायुदाब का क्षेत्र बन जाता है और समुद्र के ऊपर की वायु कम वायुदाब वाले क्षेत्र में प्रवाहित होने लगती है। इस प्रकार एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में वायु प्रवाह पवनों का निर्माण करती है। दिन के समय वायु की दिशा समुद्र से स्थल की ओर होती है।
रात्रि में स्थल के ऊपर की वायु समुद्र के ऊपर की वायु की तुलना में जल्दी ठण्डी हो जाती है। अतः रात्रि में वायु प्रवाह स्थल से समुद्र की ओर होता है।
प्रश्न 4. बादलों का निर्माण कैसे होता है?
उत्तर : सौर ऊर्जा के कारण जलाशयों (समुद्र, महासागर, तालाब, झील, नदियाँ आदि) से जल वाष्प बनकर वायुमण्डल में चला जाता है। गर्म वायु के साथ जलवाष्प वायुमण्डल में ऊपर जाकर संघनित होकर छोटी-छोटी जल की बूंदों में बदल जाती है। धूल आदि कणों के चारों ओर भी जलवाष्प संघनित होकर जल की बूँदों का निर्माण करती हैं। इसके फलस्वरूप बादल बनते हैं। बादलों में जल की बूँदें परस्पर मिलकर बड़ी और भारी हो जाने पर वर्षा के रूप में पृथ्वी पर बरसने लगती हैं।
प्रश्न 5. मनुष्य के तीन क्रिया-कलापों का उल्लेख कीजिए जो वायु प्रदूषण में सहायक हैं।
उत्तर: वायु प्रदूषण के कारण –
(1) वृक्षों की अन्धाधुन्ध कटाई ।
(2) औद्योगिक संस्थानों की स्थापना ।
(3) जीवाश्म ईंधन (पेट्रोलियम उत्पाद तथा कोयला) का अत्यधिक उपयोग।
प्रश्न 6. जीवों को जल की आवश्यकता क्यों होती है?
उत्तर : सजीवों के शरीर का निर्माण कोशिकाओं से होता है। कोशिकाएँ जीवद्रव्य से बनी होती हैं। जीवद्रव्य में लगभग 90% जल होता है। अधिकांश एन्जाइम जल की उपस्थिति में सक्रिय होते हैं, इस कारण कोशिका में होने वाली जैविक क्रियाएँ जल की उपस्थिति में ही होती हैं। शरीर में विभिन्न पदार्थों का आदान-प्रदान भी घुलनशील अवस्था (जल की उपस्थिति) में ही होता है। पौधे मृदा से खनिज पोषक तत्वों का अवशोषण घुलित अवस्था में ही कर सकते हैं। अत: जीवों के लिए जल अति आवश्यक होता है ।
प्रश्न 7. जिस गाँव / शहर / नगर में आप रहते हैं वहाँ पर उपलब्ध शुद्ध जल का मुख्य स्रोत क्या है?
उत्तर : गाँवों में शुद्ध जल का मुख्य स्रोत कुआँ, हैण्डपम्प या छोटे जलाशय होते हैं। कुछ नगरों में (जो विशेषकर नदियों के किनारे बसे हैं) जल नदियों से प्राप्त किया जाता है। इसे बड़े-बड़े भूमिगत टैंकों में स्टोर करके शुद्ध किया जाता है और फिर नगर में वितरित कर दिया जाता है।
अनेक नगरों में ट्यूबवैल की सहायता से भूमिगत जल को निकालकर पानी की टंकियों में एकत्र करते हैं और फिर नगर में वितरित कर देते हैं।
प्रश्न 8. क्या आप किसी क्रिया-कलाप के बारे में जानते हैं जो इस जल के स्रोत को प्रदूषित कर रहा है?
उत्तर : (i) तापीय विद्युत घरों में विद्युत उत्पादन हेतु जीवाश्म ईंधन कोयले का प्रयोग किया जाता है। इससे जलवाष्प तैयार होती है। जलवाष्प से टरबाइन चलती है और विद्युत उत्पादन होता है। मशीनों को ठण्डा रखने के लिए भी जल का प्रयोग किया जाता है और निष्पादित गर्म जल को जलाशयों में वापस छोड़ दिया जाता है। इससे जलाशय का ताप बढ़ जाता है। यह जलीय जीवधारियों को प्रभावित करता है ।
(ii) औद्योगिक संस्थानों से निकलने वाले अपशिष्ट हानिकारक पदार्थ नदियों के जल को प्रदूषित करते हैं। जल में उपस्थित आर्सेनिक, सीसा, पारा आदि के यौगिक अनेक रोगों के लिए उत्तरदायी होते हैं।
(iii) कृषि उपज बढ़ाने के लिए प्रयोग किए जाने वाले उर्वरक, कीटनाशक, पीड़कनाशक, खरपतवारनाशक रसायन वर्षा-जल में घुलकर जल स्रोतों में पहुँच जाते हैं और जल को प्रदूषित करते हैं। इनके कारण जल में उपस्थित सूक्ष्मजीवों के नष्ट हो जाने से कार्बनिक पदार्थों का अपघटन रुक जाता है और जल सड़ने लगता है। इसमें हानिकारक रोगाणु उत्पन्न हो जाते हैं।
प्रश्न 9. मृदा (मिट्टी) का निर्माण किस प्रकार होता है?
उत्तर : मृदा चट्टानों के टूटने से बनती है। चट्टानें अनेक भौतिक रासायनिक तथा कुछ जैव-प्रक्रियाओं के कारण टूटती हैं। चट्टानों के अपक्षय होने में ताप भिन्नता, जल, वायु, सरल पादप, जैसे- लाइकेन, मॉस, फर्न आदि सहायक होते हैं।
प्रश्न 10. मृदा अपरदन क्या है?
उत्तर : मृदा अपरदन – भूमि की ऊपरी सतह ‘उपरिमृदा’ (top soil) की स्थायी क्षति को अपरदन कहते हैं। जल अपरदन में उपरिमृदा जल के साथ बह जाती है। जल अपरदन प्रक्रिया पहाड़ी क्षेत्रों में होती है। रेगिस्तान में वायु अपरदन के कारण उपरिमृदा उड़कर एक स्थान से दूसरे स्थान पर चली जाती है।
प्रश्न 11. अपरदन को रोकने और कम करने के कौन-कौन से तरीके हैं?
उत्तर : अपरदन द्वारा उपरिमृदा की क्षति होती है। उपरिमृदा की गुणवत्ता उस क्षेत्र की जैव-विविधता को निर्धारित करती है। अतः उपरिमृदा का संरक्षण आवश्यक है। इसके लिए निम्नलिखित उपाय किए जाते हैं-
(1) भूमि को उपजाऊ बनाना — अपरदन प्राय: बंजर भूमि में ही होता है। अत: भूमि की अम्लीयता या क्षारीयता को दूर करके उसे कृषि योग्य बनाकर मृदा अपरदन को रोका जा सकता है। भूमि को उर्वर बनाने के लिए कम्पोस्ट खाद (ह्यूमस), हरी खाद, उर्वरक आदि का प्रयोग किया जाता है।
(2) पशुओं के चरने पर नियन्त्रण — इसके लिए नियन्त्रित चरागाहों की व्यवस्था की जानी चाहिए। अतिचारण के कारण पौधे कुचलकर नष्ट हो जाते हैं। मृदा कणों के परस्पर उखड़ जाने पर अपरदन सुगमता से हो जाता है।
(3) वनरोपण – वृक्षारोपण, वनरोपण फसल उगाना आदि क्रियाओं के फलस्वरूप जड़ें मृदा कणों को परस्पर बाँधे रखती हैं।
(4) वायुरोधक पौधे लगाना – रेगिस्तानी क्षेत्रों में वायु अपरदन को रोकने या कम करने के लिए वृक्षों को पंक्तियों में एक-दूसरे के पास-पास उगाना चाहिए। इससे वायु की तीव्रता कम होने से मृदा अपरदन को कम किया जा सकता है।
(5) कण्टूर कृषि– पहाड़ी ढलानों पर शिखर से नीचे की ओर समकोण पर गोलाई में जुताई-गुड़ाई करने से अपरदन कम होता है। इस प्रकार की खेती को कण्टूर कृषि कहते हैं।
(6) वेदिका निर्माण – पहाड़ी ढलानों को सीढ़नुमा खेतों में बाँट कर अर्थात् वेदिका निर्माण करके खेती की जाती है। इससे जल अपरदन को रोका जा सकता है।
(7) बाँध निर्माण – तेज बहाव वाले अधिक जल को रोकने के लिए बाँध बनाए जाते हैं। बाँध में रुके हुए जल का उपयोग विद्युत निर्माण और सिंचाई के लिए किया जाता है।
प्रश्न 12. जल चक्र के क्रम में जल की कौन-कौन सी अवस्थाएँ पाई जाती हैं?
उत्तर : जल चक्र के क्रम में जल की तीनों अवस्थाएँ पाई जाती हैं। जलाशयों में संचित जल तरल (द्रव) अवस्था है। सौर ऊर्जा के कारण जलाशयों का जल वाष्पित होकर वाष्प अवस्था (गैस) में आ जाता है। जलवाष्प बादलों में संघनित होकर जल की बूँदें बनाती है। कभी-कभी वायुमण्डल का तापमान काफी कम हो जाता है जिससे जल की बूँदें हिमवृष्टि या ओले अथवा ठोस अवस्था के रूप में परिवर्तित होकर पृथ्वी पर वापस आती हैं।
प्रश्न 13. जैविक रूप से महत्त्वपूर्ण दो यौगिकों के नाम दीजिए जिनमें ऑक्सीजन और नाइट्रोजन दोनों पाए जाते हों।
उत्तर : प्रोटीन्स, न्यूक्लिक अम्ल ।
प्रश्न 14. मनुष्य की किन्हीं तीन गतिविधियों को पहचानिए जिनसे वायु में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ती है।
उत्तर : (1) औद्योगिक संस्थानों में जीवाश्म कोयले या पेट्रोलियम तरल ईंधन का उपयोग करने से।
(2) स्वचालित वाहनों में पेट्रोलियम ईंधन (पेट्रोल, डीजल) का उपयोग करने से।
(3) तापीय विद्युत उत्पादन केन्द्रों में जीवाश्म कोयले का उपयोग करने से।
प्रश्न 15. ग्रीन हाउस प्रभाव क्या है?
उत्तर : ग्रीन हाउस प्रभाव – कार्बन डाइऑक्साइड (CO2), नाइट्रस ऑक्साइड (N2O), मेथेन (CH4), क्लोरोफ्लुओरो कार्बन (फ्रेऑन) आदि अनेक गैसें पृथ्वी से वायुमण्डल में वापस जाने वाली ऊष्मा को रोकती हैं। इसके फलस्वरूप पृथ्वी के ताप में वृद्धि हो जाती है। इसे ग्रीन हाउस प्रभाव कहते हैं। यह मुख्यतया वृक्षों की अत्यधिक कटाई और औद्योगिक संस्थानों की स्थापना के कारण हो रहा है। वायुमण्डल में CO2 की मात्रा दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। पौधे CO2 का उपयोग प्रकाश संश्लेषण क्रिया में करके ग्रीन हाउस प्रभाव को कम करते हैं।
ग्रीन हाउस प्रभाव के कारण वायुमण्डल का ताप बढ़ने से वैश्विक ऊष्मीकरण (global warming) की स्थिति उत्पन्न हो रही है। वैश्विक कारण, समुद्र का ऊष्मीकरण के फलस्वरूप ध्रुवों की बर्फ पिघलने जल स्तर बढ़ने से अनेक तटवर्ती शहरों के समुद्र में डूबने का खतरा उत्पन्न हो रहा है।
प्रश्न 16. वायुमण्डल में पाए जाने वाले ऑक्सीजन के दो रूप कौन-कौन से हैं?
उत्तर : ऑक्सीजन के दो रूप – (i) ऑक्सीजन ( O2), (ii) ओजोन (O3) ।
अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1. जीवन के लिए वायुमण्डल क्यों आवश्यक है ?
उत्तर : जीवों के लिए वायुमण्डल अति आवश्यक है। पृथ्वी पर जीवन वायु के घटकों के कारण ही है। वायु में 78% नाइट्रोजन, 21% ऑक्सीजन, 0.03-0.04% कार्बन डाइऑक्साइड तथा अनेक गैसें सूक्ष्म मात्रा में पाई जाती हैं। पृथ्वी पर पाए जाने वाले समस्त जीवधारी श्वसन क्रिया में ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं। कोशिकाओं में ऑक्सीजन की उपस्थिति में भोज्य पदार्थों का जैव-रासायनिक ऑक्सीकरण होता है। इसके फलस्वरूप जुल, कार्बन डाइऑक्साइड तथा ऊर्जा मुक्त होती है। ऊर्जा का उपयोग विभिन्न जैविक क्रियाओं में किया जाता है। जल तथा स्थल पर पाए जाने वाले हरे पौधे जल तथा कार्बन डाइऑक्साइड से पर्णहरित तथा सौर प्रकाश की उपस्थिति में कार्बनिक भोज्य पदार्थों का संश्लेषण करते हैं। इस क्रिया में ऑक्सीजन सह-उत्पाद के रूप मुक्त होती है। इस क्रिया को प्रकाश संश्लेषण कहते हैं। प्रकाश संश्लेषण के फलस्वरूप ही समस्त जीवधारियों को पोषक पदार्थ (भोज्य पदार्थ ) प्राप्त होते हैं जिनका उपयोग जैविक कार्यों के लिए किया जाता है।
इसके अतिरिक्त वायुमण्डल पृथ्वी के औसत तापमान को बनाए रखता है। जिन ग्रहों या उपग्रहों पर वायुमण्डल नहीं है, वहाँ के तापमान में बहुत अधिक परिवर्तन होता है, जीवधारी इस परिवर्तन को सहन नहीं कर सकते । वायुमण्डल में ताप भिन्नता के कारण वायु प्रवाह बना रहता है तथा जलचक्र के माध्यम से जीवधारियों को जैविक क्रियाओं हेतु जल उपलब्ध होता है।
प्रश्न 2. जीवन के लिए जल क्यों अनिवार्य है?
उत्तर : जीवन के लिए जल की अनिवार्यता
पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति आदिसागर में हुई । आदिसागर में पहले पूर्वकेन्द्रीय कोशिकाओं (जैसे— जीवाणु, नीले-हरे शैवाल) की उत्पत्ति हुई। इसके पश्चात् सुकेन्द्रकीय कोशिकाओं का विकास हुआ। सरल, एककोशिकीय, सुकेन्द्रकीय जीवधारियों से जटिल बहुकोशिकीय जीवधारियों की उत्पत्ति जैव विकास के फलस्वरूप हुई हैं। जलीय जीवधारियों से स्थलीय जीवधारियों का विकास हुआ है।
जल जीवन के लिए आवश्यक है। सभी जीवधारियों के शरीर में लगभग 60-90% जल पाया जाता है। यह जीवद्रव्य का आवश्यक घटक होने के साथ-साथ समस्त जैविक क्रियाओं के लिए भी आवश्यक है।
(1) कोशिका की अधिकांश क्रियाएँ जलीय माध्यम में होती हैं। घुलनशील अवस्था में पदार्थों के अणु सरलता से गति करते हैं।
(2) जल परिवहन माध्यम का कार्य भी करता है। रुधिर, लसीका, ऊतक तरल आदि सभी तरल माध्यम के द्वारा पदार्थों का आदान-प्रदान करते हैं। रुधिर भोज्य पदार्थों, उत्सर्जी पदार्थों, हॉर्मोन्स, गैसों, एन्जाइम्स आदि के वितरण में सहायक होता है।
(3) शरीर में पाए जाने वाले अधिकांश एन्जाइम्स जल की उपस्थिति में ही क्रियाशील होते हैं।
(4) उच्च ऊष्मा धारकता के कारण जल के तापमान में बहुत कम उतार-चढ़ाव होते हैं। अतः जल के कारण जीवों की कोशिकाओं के तापमान में बहुत कम परिवर्तन होता है और जैविक क्रियाएँ अपेक्षाकृत एक निश्चित तापमान पर सम्पन्न होती रहती हैं।
(5) जल का तापमान 4°C से कम होने पर इसका घनत्व कम हो जाता है। यही कारण है कि बर्फ पानी पर तैरती है। अधिक ठण्डे प्रदेशों में जल की ऊपरी सतह जम जाती है, किन्तु निचली सतह का जल नहीं जमता; इस कारण जलीय जीवधारी जीवित रहते हैं।
(6) जल के वाष्पीकरण हेतु अधिक ऊष्मा (ऊर्जा) की आवश्यकता होती है। पसीने के वाष्पीकरण के फलस्वरूप शरीर ताप का नियमन होता रहता है।
(7) जल के कारण जीवधारी के शरीर का अन्तः वातावरण स्थिर बना रहता है।
(8) जल शरीर में अम्ल-क्षार सन्तुलन को बनाए रखता है। शरीर के अन्त:वातावरण के तापमान को स्थिर बनाए रखने में सहायता करता है। हानिकारक अपशिष्ट पदार्थ मूत्र के रूप में उत्सर्जित होते हैं।
प्रश्न 3. जीवित प्राणी मृदा पर कैसे निर्भर हैं? क्या जल में रहने वाले जीव सम्पदा के रूप में मृदा से पूरी तरह स्वतन्त्र हैं?
उत्तर : जीवित प्राणी की मृदा पर निर्भरता
सभी जन्तु (प्राणी) अपने भोजन के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में पौधों पर निर्भर रहते हैं। पौधे मृदा में स्थिर रहते हैं। मृदा से आवश्यक पोषक तत्व एवं जल ग्रहण करके पौधे प्रकाश संश्लेषण द्वारा भोज्य पदार्थों का संश्लेषण करते हैं। पौधों द्वारा तैयार भोज्य पदार्थ खाद्य-: -श्रृंखलाओं के माध्यम से प्राणियों को उपलब्ध होते हैं। अत: प्राणी मृदा पर निर्भर है।
जल में रहने वाले जीव मृदा से पूर्णरूप से स्वतन्त्र नहीं होते । जलीय पौधे अपने जलीय पर्यावरण से जल एवं घुलित पोषक तत्वों का अवशोषण करके भोज्य पदार्थों का संश्लेषण करते हैं। ये ही भोज्य पदार्थ खाद्य-श्रृंखलाओं के माध्यम से विभिन्न जलीय जीवों को उपलब्ध होते हैं।
प्रश्न 4. आपने टेलीविजन पर और समाचार पत्र में मौसम सम्बन्धी रिपोर्ट को देखा होगा। आप क्या सोचते हैं कि हम मौसम के पूर्वानुमान में सक्षम हैं?
उत्तर : पृथ्वी का जीवन इसके अद्वितीय पर्यावरण के कारण ही सम्भव हुआ है। पृथ्वी के अजैविक पर्यावरण के मुख्य घटकों जलमण्डल, स्थलमण्डल और वायुमण्डल जैविक घटकों से प्रभावित होते हैं, जैविक घटक अजैविक घटकों से प्रभावित होते हैं। वायुमण्डल के क्षोभमण्डल (troposphere) में होने वाले परिवर्तनों के कारण मौसम परिवर्तन, बादलों का बनना आदि क्रियाएँ होती हैं। समुद्री धाराओं की उत्पत्ति एवं दिशा-निर्धारण में प्रचलित पवनों, महाद्वीपों की आकृति तथा पृथ्वी द्वारा जनित कॉरिऑलिस प्रभाव की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। इसके ‘ अतिरिक्त जलवायु नियन्त्रक कारक में वायुदाब पेटियाँ, चक्रवात, आँधियाँ, पर्वतीय बाधाएँ, समुद्रतल से ऊँचाई, ऊष्मा सन्तुलन आदि होते हैं।
सैटेलाइट द्वारा पृथ्वी के वायुमण्डल के विभिन्न स्तरों की जानकारी के आधार पर मौसम का पूर्वानुमान सुगमता से लगाया जा सकता है। यह पूर्वानुमान पूर्व अध्ययनों तथा उपलब्ध वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित होता है ।
प्रश्न 5. हम जानते हैं कि बहुत-सी मानवीय गतिविधियाँ वायु, जल एवं मृदा के प्रदूषण स्तर को बढ़ा रहे हैं। क्या आप सोचते हैं कि इन गतिविधियों को कुछ विशेष क्षेत्रों में सीमित कर देने से प्रदूषण के स्तर को घटाने में सहायता मिलेगी?
उत्तर : मानवीय गतिविधियों के कारण वायु, जल एवं मृदा प्रदूषण का स्तर निरन्तर बढ़ रहा है। प्रदूषण के अन्तर्गत एक या अनेक घटकों की मात्रा में अनावश्यक वृद्धि हो जाती है अथवा अवांछनीय पदार्थ एकत्र हो जाते हैं। ये जीवधारियों के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से हानिकारक सिद्ध होते हैं।
वायु प्रदूषण मुख्य रूप से औद्योगिक संस्थानों से निकलने वाली विषाक्त हानिकारक गैसों के कारण होता है। जीवाश्म ईंधन के प्रयोग से वातावरण में सल्फर तथा नाइट्रोजन की मात्रा में वृद्धि होती है। यह जलवाष्प से मिलकर अम्ल बनाती है। अम्ल वर्षा जीवधारियों के लिए घातक होती है। वायुमण्डल में स्थित रक्षात्मक ओजोन पर्त को सबसे अधिक क्षति फ्रेऑन (freon) से हो रही है जिसमें सबसे अधिक घातक क्लोरोफ्लुओरो कार्बन है। फ्रेऑन का उपयोग रेफ्रिजरेटर, एअर कण्डीशनर, फोम, ऐरोसॉल स्प्रे आदि बनाने में किया जाता है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि हमें फ्रेऑन का उपयोग कम कर देना चाहिए, अच्छा होगा कि इसका उपयोग बन्द कर दिया जाए।
औद्योगिक संस्थानों में जीवाश्म ईंधन के स्थान पर विद्युत भट्ठियों का उपयोग करना चाहिए। स्वचालित वाहनों में पेट्रोल, डीजल के स्थान पर CNG या LPG का प्रयोग करना चाहिए। बैटरी चालित वाहनों का विकास किया जा रहा है। अस्पतालों के समीपवर्ती क्षेत्रों में स्वचालित वाहनों को प्रतिबन्धित करके वायु एवं ध्वनि प्रदूषण को कम किया जा सकता है।
जल प्रदूषण को सीमित करने के लिए औद्योगिक संस्थानों में वाटर ट्रीटमेन्ट प्लान्ट लगाए जाने चाहिए। औद्योगिक कचरे का निपटारा करने से पूर्व उनके विषैले एवं हानिकारक प्रभाव को समाप्त करना आवश्यक है। नदियों के शुद्धीकरण के प्रयत्न किए जा रहे हैं।
मृदा प्रदूषण को कम करने के लिए उर्वरक, कीटनाशक, पीड़कनाशक आदि रसायनों का उपयोगं सीमित एवं आवश्यक मात्रा में ही करना चाहिए। कीटों के प्रभाव को नियन्त्रित करने के लिए फसल चक्र को अपनाया जाना चाहिए। कीटों आदि की जैविक नियन्त्रण विधियों का प्रयोग करना चाहिए।
प्रदूषण को कम करने या समाप्त करने के लिए जनसंख्या नियन्त्रण अति आवश्यक है। समाज को शिक्षित करके ही प्रदूषण से बचा जा सकता है।
प्रश्न 6. जंगल वायु, मृदा तथा जलीय स्रोत की गुणवत्ता को कैसे प्रभावित करते हैं?
उत्तर : जंगलों (वृक्षों) का पर्यावरण सन्तुलन से घनिष्ठ सम्बन्ध है। ये वायु, मृदा और जलीय स्रोतों को प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से प्रभावित करते हैं। वृक्ष उत्पादक का कार्य करते हैं। इनका कोई विकल्प नहीं है। जंगलों में रहने वाले प्राणी भोजन और आश्रय के लिए वृक्षों पर निर्भर करते हैं।
वृक्ष प्रकाश संश्लेषण क्रिया द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड का उपयोग करके ऑक्सीजन मुक्त करते हैं। इससे वायुमण्डल में CO2 तथा O2 का सन्तुलन बना रहता है।
वृक्षों का जल चक्र से सीधा सम्बन्ध है। वृक्ष मृदा से जल अवशोषित करके वाष्पोत्सर्जन क्रिया द्वारा जलवाष्प के रूप में इसे वातावरण में मुक्त करते हैं। जहाँ पर जंगल अधिक होते हैं, वहाँ वर्षा अधिक होती है और जहाँ वृक्ष नहीं होते, वर्षा बहुत कम होती है। कम वर्षा के कारण जलीय स्रोत प्रभावित एवं प्रदूषित हो जाएँगे। कम वर्षा के कारण वातावरण शुष्क हो जाएगा। शुष्क वातावरण में वायु अपरदन सुगमता से होता है तथा वनस्पतियाँ भी कम उगती हैं। वनस्पतियों की कमी के कारण प्राणी विविधता में भी कमी पाई जाती है।
वृक्ष मृदा की संरचना को प्रभावित करते हैं। वृक्षों से गिरने वाले पत्ते आदि सड़-गलकर ह्यूमस बनाते हैं । ह्यूमस के कारण मृदा उपजाऊ होती है । * इसकी जलधारण करने की क्षमता में वृद्धि होती है एवं इस मृदा में वायु संचार अच्छा होता है। वृक्षों के अभाव में मृदा में ह्यूमस की कमी या अभाव हो जाता है तथा मृदा की जलधारण क्षमता क्षीण हो जाती है। शुष्क, रेतीली. मृदा उपजाऊ नहीं होती। वृक्ष जल तथा वायु अपरदन को रोकते हैं।
उपर्युक्त कथन से स्पष्ट है कि जंगल (वन या वृक्ष) वायु, मृदा एवं जलीय स्रोतों की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं।
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न एवं उनके उत्तर
• विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. मृदा अपरदन से आप क्या समझते हैं? जल के कारण मृदा अपरदन रोकने के लिए चार उपायों का वर्णन कीजिए।
उत्तर : मृदा अपरदन
वर्षा, बहता जल, तेज वायु, आँधी आदि के कारण शीर्ष मृदा अपने स्थान से हट जाती है तो इसे मृदा अपरदन (soil erosion) कहते हैं।
मृदा का अपरदन दो कारणों से होता है-
(i) जल अपरदन तथा (ii) वायु अपरदन।
जल अपरदन – वर्षा, नदियों, नालों, चश्मों आदि के बहाव के कारण भूमि का अपरदन होता है। भारी वर्षा के कारण शीर्ष मृदा या उपरिमृदा (topsoil) कटकर अपने स्थान से दूर चली जाती है। पहाड़ी क्षेत्रों में जहाँ जल का बहाव तेज होता है, अपरदन अत्यधिक होता है। जल के तेज बहाव के कारण शीर्ष मृदा के अतिरिक्त अध: मृदा (subsoil) भी बह जाती है।
जल अपरदन रोकने के उपाय
(1) कण्टूर कृषि — पहाड़ी भागों में ढाल के कारण मिट्टी पानी के बहाव के साथ बहकर निचले स्थानों में एकत्रित हो जाती है। मिट्टी के इस प्रकार अपरदन को रोकने के लिए ऐसे स्थानों में शिखर से नीचे की ओर समकोण बनाते हुए गोलाई में जुताई-गुड़ाई की जाती है। इस प्रकार नालियों में पानी एकत्रित रहता है जिसे भूमि अवशोषित कर लेती है तथा नालियों के किनारे की मिट्टी बन्ध का कार्य करती है। इस प्रकार की कृषि को कण्टूर कृषि (contour farming) कहते हैं।

(2) पट्टीदार कृषि – कम ढलान वाले पहाड़ी क्षेत्रों में इस विधि का प्रयोग किया जाता है। इसमें दो प्रकार की फसलें उगाई जाती हैं — पंक्ति फसल (row crop) तथा ढकने वाली फसल (cover crop )। दोनों प्रकार की फसलों में से ढकने वाली फसल या तो बहुवर्षीय (perennial) होती है या मक्का, कपास, आलू आदि की फसलें जो भूमि को काफी हद तक ढक लेती हैं तथा जल के बहाव को रोकती हैं। इन पौधों की जड़ें मिट्टी को जकड़ लेती हैं जिससे मिट्टी का अपरदन नहीं हो . पाता। पंक्ति फसल कोई भी अनाज वाली फसल हो सकती है। पट्टियाँ ढाल के साथ समकोण पर बनाई जाती हैं।

(3) वेदिका निर्माण – पर्वतीय भागों में पूरे ढलान को छोटे-छोटे समतल क्षेत्रों में बाँट दिया जाता है और इनको सीढ़ियों की तरह काट लिया जाता है। इस प्रकार बनाई गई वेदिकाओं या सीढ़ियों ( terraces) के आधार पर नालियाँ होती हैं ताकि अतिरिक्त जल को आगे ले जाया जा सके। वेदिकाएँ जल को अधिक मात्रा में नीचे जाने से रोकती हैं और भूमि अपरदन नहीं होने पाता ।

(4) वन रोपण – जिन स्थानों से वनों को साफ कर दिया जाता है, वहाँ भूमि अपरदन बढ़ जाता है; अतः ऐसे स्थानों में, ढलानों पर, नालियों के आस-पास पौधे लगाना अति आवश्यक है। पौधों की जड़ें भूमि को बाँधने में सहायक होती हैं। भूमि के पौधों से ढकी रहने के कारण अपरदन नहीं हो पाता।
प्रश्न 2. वातीय अपरदन को रोकने के लिए कौन-कौन से उपाय किए जाते हैं? वर्णन कीजिए।
उत्तर : वातीय अपरदन
वायु की गति से शुष्क स्थानों पर वायु अपरदन होता है। वायु के तेज झोंके उपजाऊ उपरिमृदा को उड़ा ले जाते हैं अथवा अनुपयोगी धूल को लाकर उपजाऊ मृदा पर निक्षेपित कर देते हैं। वायु द्वारा मृदा के कण अपने स्थान से हटकर दूसरे स्थानों पर पहुँच जाते हैं। कहीं-कहीं यह रेत विशाल टीलों (sand dunes) के रूप में एकत्र हो जाता है।

वातीय अपरदन रोकने के उपाय
(1) वृक्षारोपण – रेत को न उड़ने देने के लिए बालू बन्धक पौधे लगाए जाते हैं। इनकी जड़ें रेतीली मिट्टी को बाँधे रहती हैं; जैसे—मूँज, करौल आदि ।
(2) ऐसी फसलों की खेती की जा सकती है जिनकी जड़ें अपने आस-पास की मिट्टी को जकड़ लेती हैं; जैसे— ज्वार, बाजरा, जौ आदि।
(3) वायु अपरंदन रोकने के लिए तेज वायु की रोकथाम करना आवश्यक है। इसके लिए वृक्षों को पंक्ति में लगाया जाता है। ऐसे अवरोध को बात रोक (wind breaks) कहते हैं।
(4) जानवरों के चरने पर नियन्त्रण – नियन्त्रित चरागाहों में पशुओं को चराने की व्यवस्था की जाने से अनियमित चरने की हानियों से बचा जा सकता है। जानवरों के पैरों से पौधे कुंचल जाते हैं, साथ ही मिट्टी या तो दबकर ठोस हो जाती है या उखड़कर अपनी उपजाऊ शक्ति कम कर देती है। भूमि पर वनस्पति न रहने से मृदा अपरदन में सहायता मिलती है।

प्रश्न 3. जल प्रदूषण से आप क्या समझते हैं? जल प्रदूषण क्यों होता है? जल प्रदूषण का मनुष्य पर क्या प्रभाव पड़ता है? इसे कैसे नियन्त्रित किया जाता है?
उत्तर : जल प्रदूषण
जल जीवधारियों के लिए महत्त्वपूर्ण है। सभी पौधे आवश्यक खनिज तत्व जल में घुली अवस्था में प्राप्त करते हैं। पौधों द्वारा निर्मित भोजन का स्थानान्तरण भी तरल रूप में होता है। जल के द्वारा शरीर की सभी जैविक क्रियाएँ सम्पन्न होती हैं। प्रदूषित जल के प्रयोग से अनेक रोग हो जाते हैं।
स्वच्छ जल में घुलित खनिज तत्व व लवण आदि सन्तुलित मात्रा में पाए जाते हैं। जल में विषाक्त पदार्थ; जैसे— कारखानों के अपशिष्ट उत्पाद, रासायनिक पदार्थ, वाहित मल, कूड़ा-करकट आदि के मिलने से जल दूषित हो जाता है। इसे जल प्रदूषण कहते हैं।
जल प्रदूषण के स्रोत
(1) निष्कासित घरेलू अपमार्जक ।
(2) जलाशयों में प्रवाहित वाहित मल ।
(3) नदियों में प्रवाहित औद्योगिक कारखानों के अपशिष्ट उत्पाद |
(4) रेडियोधर्मी पदार्थ ।
(5) कृषि कार्य में प्रयुक्त संश्लेषित रसायन कीटनाशक पदार्थ (insecticide); जैसे— डी०डी०टी०, कार्बनिक फॉस्फेट एवं अपतृणनाशक पदार्थों (weedicides) का किसी माध्यम से जल में पहुँचना।
(6) हानिकारक जीवाणु, विषाणु तथा नीले-हरे शैवाल ।
(7) तेल वाहकों से रिसने वाले पेट्रोलियम पदार्थ ।
(8) जल में प्रवाहित मृत जीवों के शरीर ।

जल-प्रदूषकों के प्रभाव
(1) जलीय पादपों की अधिकता से जलाशयों में रात्रि में O2 की कमी हो जाती है जिससे छोटी-छोटी मछलियाँ तथा अन्य छोटे जलीय जीव मर जाते हैं।
(2) दूषित जल पीने से उदर रोग, पीलिया, हैजा, टाइफॉइड आदि हो जाते हैं।
(3) तेलीय प्रदूषण के कारण मछलियों को उचित मात्रा में ऑक्सीजन नहीं मिलती और वे बड़ी संख्या में मरने लगती हैं।
(4) विषाणु, जीवाणु – युक्त तथा नीले-हरे शैवालों से युक्त प्रदूषित जल को पीने से पालतू पशुओं में अनेक रोग हो जाते हैं।
(5) पारे (Hg) तथा सीसे (Pb) के यौगिक जल तथा सूक्ष्म पौधों के माध्यम से मछलियों के शरीर में पहुँचते हैं। ऐसी मछलियों के सेवन से मनुष्य के नेत्र और मस्तिष्क पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
(6) प्रदूषित जल खेती योग्य जमीन को ऊसर बना देता है। जलाशयों की तलहटी में एकत्रित हाइड्रोजन सल्फाइड गैस (H2S) गन्धक अम्ल में बदल जाती है जिसके प्रभाव से जलीय जीवधारियों की मृत्यु हो जाती है।
जल प्रदूषण को नियन्त्रित करने के उपाय
(1) वाहित मल, घर से निकले हुए अपमार्जक व गन्दे जल को शहर के निकट नदियों या तालाबों में न गिराकर नालियों द्वारा बाहर ले जाकर आबादी से दूर गिराना चाहिए ।
(2) कारखानों से निकलने वाले जहरीले अपशिष्ट पदार्थों एवं गर्म जल को जलाशयों, नदियों या समुद्रों में नहीं गिराना चाहिए।
(3) कारखानों के अपशिष्ट पदार्थों को उपचारित करके ही नदियों में गिराया जाना चाहिए।
(4) कीटनाशकों का प्रयोग करते समय ध्यान रखना चाहिए कि उस खेत का जल पीने वाले जलाशयों में बहकर न जाए ।
(5) कूड़ा-करकट को जलाशयों में न डालकर शहर से बाहर किसी गड्ढे में डालकर मिट्टी से ढक देना चाहिए ।
(6) समुद्र में परमाणु परीक्षण नहीं करना चाहिए।
प्रश्न 4. प्रकृति में नाइट्रोजन चक्र का वर्णन कीजिए। इसे रेखाचित्र द्वारा प्रदर्शित कीजिए ।
उत्तर : नाइट्रोजन चक्र
वायुमण्डल में लगभग 78% नाइट्रोजन पाई जाती है, लेकिन पौधे स्वतन्त्र नाइट्रोजन का उपयोग नहीं कर पाते। पौधे मृदा से नाइट्रोजन को नाइट्रोजन यौगिकों के रूप में ग्रहण करते हैं। मृदा में नाइट्रोजन की मात्रा लगभग 0.05% तक होती है। नाइट्रोजन चक्र के माध्यम से मृदा में नाइट्रोजन की उपयुक्त मात्रा बनी रहती है। जीवद्रव्य निर्माण के लिए नाइट्रोजन अति आवश्यक तत्व होता है। नाइट्रोजन चक्र के अन्तर्गत निम्नलिखित क्रियाएँ होती हैं-
(i) नाइट्रोजन स्थिरीकरण – बिजली में चमकने से, स्वतन्त्रजीवी जीवाणु; जैसे— एजोटोबैक्टर (Azotobacter), क्लॉस्ट्रडियम (Clostridium), सहजीवी जीवाणु; जैसे— राइजोबियम लेग्यूमिनोसैरम (Rhizobium leguminosarum) तथा नीले-हरे शैवाल; जैसे— नॉस्टॉक ( Nostoc), एनाबीना ( Anabaena) आदि वातावरण की स्वतन्त्र नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करते हैं।
(ii) अमोनीकरण – पौधे भूमि से नाइट्रोजन को नाइट्रेट के रूप में प्राप्त करके इसे प्रोटीन्स में बदल देते हैं। पादप प्रोटीन्स से जन्तु प्रोटीन्स का निर्माण ता है। मृत पादप, जन्तु एवं उत्सर्जी पदार्थों की प्रोटीन्स को अमोनीकरण जीवाणु अमोनिया में बदल देते हैं; जैसे- बैसिलस माइकॉइडिस (Bacillus mycoides), बैसिलस रेमोसस (Bacillus ramosus) आदि ।
(iii) नाइट्रीकरण – अमोनिया का नाइट्रेट में ऑक्सीकरण नाइट्रीकरण (nitrification) कहलाता है। नाइट्रोसोमोनास (Nitrosomonas) अमोनिया को नाइट्रेट में और नाइट्रोबैक्टर (Nitrobacter) नाइट्राइट को नाइट्रेट में बदल देते हैं।

(iv) विनाइट्रीकरण – मृदा में पाए जाने वाले नाइट्राइट तथा नाइट्रेट को कुछ अनॉक्सी जीवाणु स्वतन्त्र नाइट्रोजन में बदल देते हैं। इस . प्रक्रिया को विनाइट्रीकरण (denitrification) कहते हैं। इसके फलस्वरूप मृदा ऊसर हो जाती है। बैसिलस सबटिलिस (Bacillus subtilis), थायोबैसिलस डिनाइट्रीफिकेन्स (Thiobacillus denitrificans), स्यूडोमोनास डिनाइट्रीफिकेन्स (Pseudomonas denitrificans) आदि ऐसे ही जीवाणु हैं।
• लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. ” ‘स्थायीकारी वनस्पतियाँ मृदा अपरदन को रोकती हैं।” स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर : जिन स्थानों पर वनस्पतियाँ नहीं होतीं, वहाँ मृदा अपरदन सुगमता से होता है। वर्षा के समय वर्षा की बूँदों से मिट्टी के कण उखड़ जाते हैं और सुगमता से बह जाते हैं या उड़ जाते हैं। अतः भूमि को खाली नहीं छोड़ना चाहिए। जिन स्थानों से वनों के वृक्षों को काटा गया हो, उन स्थानों पर वृक्षारोपण किया जाना चाहिए। वृक्ष वर्षा के वेग को कम करते हैं। वायु की गति को कम करते हैं। पहाड़ी ढलानों पर, नालियों तथा नहरों के किनारों पर वनस्पति उगाना अति आवश्यक है। वनस्पतियों की जड़ें मृदा को बाँधे रखती हैं। इसके कारण मिट्टी तेज वर्षा में भी नहीं बहती । बंजर भूमि में वायु तथा जल अपरदन होता है; अतः घास स्थल, राष्ट्रीय उद्यान विकसित करके अपरदन को रोक सकते हैं। कृषि कार्यों में प्रयुक्त खेतों को भी खाली नहीं छोड़ना चाहिए।
प्रश्न 2. जीवमण्डल की परिभाषा दीजिए। जीवमण्डल के कौन-से तीन प्रमुख भाग हैं? कौन कौन से अजैविक घटक मिलकर जलवायु का निर्धारण करते हैं?
उत्तर : जीवमण्डल
स्थलमण्डल, जलमण्डल तथा वायुमण्डल का वह क्षेत्र जिसमें जीवधारी पाए जाते हैं, जीवमण्डल कहलाता है। जीवमण्डल में ऊर्जा तथा पदार्थों का निरन्तर आदान-प्रदान जैविक तथा अजैविक घटकों के मध्य होता रहता है। जीवमण्डल का विस्तार लगभग 14-15 किमी होता है। वायुमण्डल में 7-8 किमी ऊपर तक तथा समुद्र में 6-7 किमी गहराई तक जीवधारी पाए जाते हैं।
जीवमण्डल के तीन प्रमुख भाग निम्नलिखित हैं-
(i) स्थलमण्डल – यह पृथ्वी का ठोस भाग है। पौधे अपने लिए आवश्यक खनिज लवण मृदा से घुलनशील अवस्था में ग्रहण करते हैं।
(ii) जलमण्डल – स्थलमण्डल पर उपस्थित तालाब, कुएँ, झील, नदी, समुद्र आदि ‘जलमण्डल’ बनाते हैं। जलीय जीवधारी अपने लिए आवश्यक खनिज जल से प्राप्त करते हैं। पौधे जड़ों के द्वारा या शरीर सतह से जल ग्रहण करते हैं।
(iii) वायुमण्डल – पृथ्वी के चारों ओर स्थित गैसीय आवरण को वायुमण्डल कहते हैं। वायुमण्डल में विभिन्न गैसें सन्तुलित मात्रा में पाई जाती हैं।
अजैविक घटक — पारितन्त्र के अजैविक घटक जैविक घटकों को प्रभावित करते हैं और स्वयं जैविक घटकों से प्रभावित होते हैं। अजैविक घटकों को निम्नलिखित तीन समूहों में बाँटते हैं-
(i) जलवायवीय कारक; जैसे— प्रकाश, ताप, वायु, आकाशीय विद्युत आदि ।
(ii) अकार्बनिक पदार्थ; जैसे— ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, कार्बन . डाइऑक्साइड आदि ।
(iii) कार्बनिक पदार्थ, जैसे—- कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन्स, वसा, न्यूक्लिक अम्ल आदि ।
प्रश्न 3. वायु प्रदूषण के चार स्रोत एवं उनसे होने वाली हानियाँ बताइए |
उत्तर: वायु प्रदूषण के लिए उत्तरदायी चार स्रोत निम्नलिखित हैं—
(1) सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) – यह मनुष्य के लिए बहुत अधिक हानिकारक है। SO2 गैस पानी में घुलकर सल्फ्यूरिक अम्ल बनाती है, जो फेफड़ों के ऊतकों पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है तथा मनुष्य को तीव्र खाँसी का रोग हो जाता है। इससे मनुष्य को श्वसन सम्बन्धी रोग हो जाते हैं।
(2) कार्बन मोनोक्साइड (CO) – इसका प्रभाव मस्तिष्क पर पड़ता है। मनुष्य की सोचने-विचारने की शक्ति कम हो जाती है।
(3) नाइट्रोजन के ऑक्साइड (NO, NO2) – इनके कारण व्यक्ति की रोग-प्रतिरोधक शक्ति कम हो जाती है। इनका तथा SO2 का सम्बन्ध फेफड़ों के कैन्सर से भी है।
(4) ओजोन (O3) – वायुमण्डल में ओजोन कपड़े, रबर इत्यादि को हानि पहुँचाती है। इससे आँख के रोग, सीने में जलन, खाँसी आदि रोग हो जाते हैं।
प्रश्न 4. मृदा प्रदूषण से आप क्या समझते हैं? मृदा प्रदूषण उत्पन्न करने वाले कारकों को सूचीबद्ध कीजिए ।
उत्तर : मृदा प्रदूषण – मृदा में विभिन्न प्रकार लवण, खनिज तत्व, गैसें, जल, कार्बनिक पदार्थ आदि एक निश्चित मात्रा में पाए जाते हैं। इनकी मात्रा में अवांछनीय परिवर्तन ‘मृदा प्रदूषण’ कहलाता है।
मृदा प्रदूषक – (i) विभिन्न प्रकार के कवकनाशक कीटनाशक, खरपतवारनाशक रसायनों के कारण मृदा में पाए जाने वाले सूक्ष्मजीव नष्ट हो जाते हैं। इससे कार्बनिक पदार्थों का अपघटन रुक जाता है।
(ii) घरेलू अपमार्जकों से युक्त जल का उपयोग सिंचाई के लिए करने के कारण मृदा प्रदूषित हो जाती है।
(iii) उर्वरकों के अत्यधिक प्रयोग से मृदा प्रदूषित हो जाती है।
मृदा प्रदूषण का प्रभाव – (i) इसके फलस्वरूप मृदा की उपजाऊ शक्ति क्षीण हो जाती है।
(ii) हानिकारक रसायन खाद्य श्रृंखला के माध्यम से मनुष्य के शरीर में पहुँचकर हानि पहुँचाते हैं।
(iii) प्रदूषित मृदा पौधों की वृद्धि को प्रभावित करती है।
प्रश्न 5. मृदा में खनिज लवणों की समाप्ति को किस प्रकार रोका जा सकता है ?
उत्तर : खनिज लवणों की समाप्ति- मृदा पर उगने वाले पौधे अपने लिए आवश्यक खनिज मृदा से प्राप्त करते हैं। निरन्तर फसल उगाते रहने से मृदा में विभिन्न खनिज लवणों की कमी हो जाती है। इससे मृदा की उपजाऊ क्षमता कम हो जाती है।
उपाय-(1) रासायनिक उर्वरकों, ह्यूमस [गोबर की खाद, कम्पोस्ट खाद तथा हरी खाद (green manure) ], खली की खाद आदि का समय-समय पर प्रयोग करते रहने से मृदा की उर्वरता बनी रहती है।
(2) मृदा की उर्वरा शक्ति को बनाए रखने के लिए फसलों को अदल-बदल कर बोना चाहिए। इस प्रक्रिया को फसल चक्र (crop-rotation) कहते हैं।
प्रश्न 6. अतिचारण किस प्रकार अपरदन में सहायता करता है?
उत्तर : अतिचारण – भूमि पर वनस्पति का आवरण होने पर अपरदन की सम्भावना कम होती है। पशुओं के अतिचारण से पौधे नष्ट हो जाते हैं, जड़ों की मिट्टी पर पकड़ ढीली हो जाती है। अतिचारण के कारण मृदा की ऊपरी पर्त के मृदा कण उखड़ जाते हैं और वायु एवं जल अपरदन सुगमता से हो जाता है।
प्रश्न 7. ” शस्यावर्तन मृदा संरक्षण का उपाय है।” कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर :शस्यावर्तन
लगातार एक ही फसल को उगाते रहने से भूमि में विशेष तत्वों की कमी हो जाती है। कुछ पौधे विशेषकर मटर कुल (leguminosae family) के पौधों की जड़ों पर जीवाणु ग्रन्थिकाएँ (bacterial nodules) पाई जाती हैं। इनमें पाए जाने वाले सहजीवी जीवाणु (symbiotic bacteria) राइजोबियम वातावरण की स्वतन्त्र नाइट्रोजन का स्थिरीकरण (fixation) करते हैं। इस प्रकार इस कुल के पौधों की फसल कटने पर नाइट्रोजन खाद स्वयं ही भूमि में मिल जाती है। अत: दूसरी फसलों को मटर कुल की फसलों के साथ एकान्तर क्रम से बोते हैं। एक फसल के बाद दूसरी फसल को एकान्तर क्रम में उगाने को शस्यावर्तन (crop rotation) कहते हैं।
प्रश्न 8. मृदा संरक्षण क्यों आवश्यक है?
उत्तर : मृदा संरक्षण – जंगलों एवं पेड़-पौधों के कटान से मृदा अपरदन की दर बढ़ जाती है। जंगलों के कम रह जाने के कारण वर्षा प्रभावित होती है। वायुमण्डल में CO2 की मात्रा बढ़ रही है। जंगलों के कटने से बाढ़ तथा सूखे की स्थिति उत्पन्न हो रही है। रेगिस्तान का क्षेत्र धीरे-धीरे बढ़ रहा है । अपरदन को रोकने अथवा नियन्त्रित करने के लिए अनेक उपाय काम में लाए जाते हैं। इनमें वृक्षारोपण सबसे महत्त्वपूर्ण है। इन उपायों का प्रयोग करके मृदा का संरक्षण किया जा सकता है और मृदा की हानि को रोका जा सकता है।
• अति लघु ‘उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. वायुमण्डल को कितने मण्डलों में विभाजित कर सकते हैं?
उत्तर : वायुमण्डल को क्षोभमण्डल (troposphere), समतापमण्डल (stratosphere), मध्यमण्डल (mesosphere) तथा आयनमण्डल (ionosphere) में बाँटते हैं। वायु की संघटकता, ताप आदि ऊँचाई के साथ बदलती रहती है।
प्रश्न 2. ओजोन पर्त वायुमण्डल के किस मण्डल या स्तर पर पाई जाती है? इसका क्या कार्य है ?
उत्तर : ओजोन पर्त वायुमण्डल के समतापमण्डल में पाई जाती है। यह पृथ्वी से लगभग 40-60 किमी ऊँचाई तक फैला होता है। ओजोन पर्त का कार्य सौर ऊर्जा में उपस्थित पराबैंगनी किरणों का अवशोषण करना है। पराबैंगनी किरणों के कारण शरीर के ऊतक नष्ट हो सकते हैं। इसके कारण त्वचा कैन्सर हो सकता है।
प्रश्न 3. धूम-कोहरा किस प्रकार बनता है? यह क्या हानि पहुँचाता है ?
उत्तर : जीवाश्म ईंधन के ऑक्सीकरण के फलस्वरूप नाइट्रोजन तथा सल्फर के ऑक्साइड बनते हैं। ये अम्ल वर्षा का कारण भी होते हैं। अदग्ध हाइड्रोकार्बन्स जलवाष्प के साथ संघनित होकर धूम – कोहरा (smog) बनाते हैं। इसके कारण दृश्यता (visibility) कम हो जाती है। श्वास रोग हो जाते हैं।
प्रश्न 4. फ्रेऑन (freon) किस प्रकार हानि पहुँचाता है?
उत्तर : फ्रेऑन (freon) में क्लोरोफ्लुओरो कार्बन की मात्रा सबसे अधिक होती है। यह ओजोन की पर्त को हानि पहुँचाता है। इसके विघटन से क्लोरीन परमाणु बनते हैं। क्लोरीन का एक परमाणु एक लाख ओजोन अणुओं को नष्ट करता है ।
प्रश्न 5. ओजोन किस प्रकार प्रदूषक का कार्य करती है?
उत्तर : ओजोन की पर्त सौर विकिरणों से पृथ्वी के जीवधारियों की सुरक्षा करती है। यह पृथ्वी पर प्रदूषक (pollutant) का कार्य करती है। इससे आँखों में जलन एवं खुजली हो जाती है। शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है।’
प्रश्न 6. फ्लाई ऐश से क्या हानि है?
उत्तर : फ्लाई ऐश के कणों के बहुत सूक्ष्म होने के कारण ये वातावरण में अधिक समय तक बने रहते हैं। इनके कारण त्वचा, नेत्र, गला तथा श्वास नाल में जलन उत्पन्न होती है। इसके कारण श्वास रोग तथा फेफड़ों का कैन्सर आदि रोग हो जाते हैं।
प्रश्न 7. वायुमण्डल में पाई जाने वाली कार्बन डाइऑक्साइड के मुख्य स्त्रोत क्या हैं?
उत्तर : वायुमण्डल में उपस्थित कार्बन डाइऑक्साइड मुख्य स्त्रोत निम्नवत् हैं-
(i) प्राणी और पादपों में श्वसन क्रिया ।
(ii) जीवाश्म ईंधन (कोयला, पेट्रोलियम उत्पाद), लकड़ी आदि का औद्योगिक संस्थानों, तापीय विद्युत उत्पादन केन्द्रों, ईंट के भट्ठों, स्वचालित वाहनों में उपयोग आदि से।
(iii) पृथ्वी में होने वाली ज्वालामुखीय क्रियाओं से ।
प्रश्न 8. वृक्षों की उपयोगिता लिखिए।
उत्तर : (i) वृक्ष वायुमण्डल में ऑक्सीजन छोड़कर वायु को शुद्ध करते हैं।
(ii) वृक्ष ध्वनि प्रदूषण को कम करते हैं।
(iii) वृक्ष वायु एवं जल अपरदन को रोकते हैं।
(iv) वृक्ष जल चक्र को बनाए रखते हैं।
प्रश्न 9. भूमि की ‘ उपरिमृदा’ का क्या महत्त्व है?
उत्तर : पौधे अपने लिए आवश्यक पोषक तत्व एवं जल सामान्यतया उपरिमृदा से ही प्राप्त करते हैं। इसलिए पौधों के लिए उपरिमृदा महत्त्वपूर्ण होती है। यह वनस्पतियों का निर्धारण करती है।
प्रश्न 10. जीवमण्डल किसे कहते हैं?
उत्तर : स्थलमण्डल, जलमण्डल तथा वायुमण्डल का वह क्षेत्र जिसमें जीवधारी रहते हैं, जीवमण्डल कहलाता है।
• एक शब्द यो एक वाक्य वाले प्रश्न
प्रश्न 1. पृथ्वी की प्राकृतिक सम्पदा किसे कहते हैं?
उत्तर : स्थल, जल एवं वायु को ।
प्रश्न 2. पृथ्वी पर जल कितने प्रतिशत भाग पर उपलब्ध है?
उत्तर : लगभग 75% भाग पर।
प्रश्न 3. शुक्र तथा मंगल ग्रह के वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड कितने प्रतिशत है ? .
उत्तर : लगभग 95-97% .
प्रश्न 4. जीवमण्डल के निर्जीव घटक कौन-कौन से हैं?
उत्तर: वायु, जल तथा मृदा ।
प्रश्न 5. पृथ्वी के औसतन तापमान को नियमित रखने का कार्य कौन करता है?
उत्तर : पृथ्वी का वायुमण्डल।
प्रश्न 6. चन्द्रमा की सतह पर अधिकतम तथा न्यूनतम तापमान कितना होता है?
उत्तर : अधिकतम तापमान 110° C तथा न्यूनतम तापमान – 190°C।
प्रश्न 7. वायु के गर्म होने पर इसमें कौन-सी धाराएँ उत्पन्न होती हैं?
उत्तर : संवहनं धाराएँ ।
प्रश्न 8. हिमवृष्टि कब होती है?
उत्तर : वायु का तापमान बहुत कम होने पर जल की बूँदें ओलों के रूप में गिरती हैं।
प्रश्न 9. भारतवर्ष में वर्षा मुख्य रूप से किस कारण होती है?
उत्तर : बंगाल की खाड़ी पर वायु का दबाव कम होने से।
प्रश्न 10. लाइकेन वायु प्रदूषण को प्रदर्शित करते हैं। ये किसके लिए अधिक संवेदी होते हैं?
उत्तर : सल्फर डाइऑक्साइड के प्रति ।
प्रश्न 11. धूम – कोहरा किससे बनता है?
उत्तर : अदग्ध हाइड्रोकार्बन्स तथा जलवाष्प से।
प्रश्न 12. समुद्र तथा ध्रुवों पर पाए जाने वाले जल में क्या अन्तर होता है?
उत्तर : समुद्री जल अशुद्ध तथा खारा होता है, जबकि ध्रुवों पर पाए. जाने वाला जल शुद्ध एवं स्वच्छ होता है।
प्रश्न 13. भारतवर्ष में सबसे अधिक वर्षा और सबसे कम वर्षा कहाँ होती है?
उत्तर : सबसे अधिक वर्षा मेघालय में और सबसे कम वर्षा राजस्थान में होती है।
प्रश्न 14. मृदा निर्माण में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका कौन से पौधे निभाते हैं?
उत्तर : चट्टानों पर उगने वाले लाइकेन।
प्रश्न 15. जल प्रदूषण का मुख्य कारण जो जैविक कारकों को प्रभावित करता है, क्या है?
उत्तर : जल में ऑक्सीजन की मात्रा का कम हो जाना।
प्रश्न 16. ह्यूमस के कारण मृदा की संरचना में क्या परिवर्तन आता है?
उत्तर : मृदा सरन्ध्र तथा हल्की हो जाती है। इसकी जलधारण क्षमता बढ़ जाती है।
प्रश्न 17. मृदा में उपस्थित सूक्ष्मजीवों का क्या महत्त्व है?
उत्तर : सूक्ष्मजीव मृदा में पाए जाने वाले पोषक तत्वों का पुनर्चक्रण करते हैं।
प्रश्न 18. जल अपरदन की दर किन क्षेत्रों में अधिक होती है?
उत्तर : पहाड़ी क्षेत्रों में।
प्रश्न 19. वायु अपरदन की मात्रा कहाँ अधिक होती है?
उत्तर : रेगिस्तानी क्षेत्रों में।
प्रश्न 20. अमोनीकरण किसे कहते हैं?
उत्तर : सूक्ष्मजीवों द्वारा प्रोटीन्स को अमोनिया में बदलना ‘अमोनीकरण’ कहलाता है।
प्रश्न 21. दो नाइट्रीकारी जीवाणुओं के नाम लिखिए ।
उत्तर : (i) नाइट्रोसोमोनास (Nitrosomonas ) (ii), नाइट्रोबैक्टर (Nitrobacter) |
प्रश्न 22. प्रोटीन्स का संश्लेषण किसके द्वारा होता है?
उत्तर : ऐमीनो अम्लों के संघनन से प्रोटीन्स बनती है।
प्रश्न 23. हीरा और ग्रेफाइट मूलरूप में क्या हैं?
उत्तर : कार्बन ।
प्रश्न 24. औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप वातावरण की संरचना में क्या अन्तर आया है?
उत्तर : वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा लगभग दोगुनी हो गई है।
प्रश्न 25. ग्रीन हाउस प्रभाव उत्पन्न करने में कौन-सी गैस मुख्य भूमिका निभा रही है?
उत्तर : कार्बन डाइऑक्साइड ।
प्रश्न 26. वायुमण्डल में ऑक्सीजन सन्तुलन बनाए रखने का कार्य कौन करता है?
उत्तर : हरे पौधे ।
प्रश्न 27. ओजोन पर्त को क्षति पहुँचाने वाला मुख्य पदार्थ क्या है?
उत्तर : क्लोरोफ्लुओरो कार्बन ।
प्रश्न 28. ऑक्सीजन के तीन परमाणु वाले अणु का नाम लिखिए।
उत्तर : ओजोन (O3)।