UK Board 9th Class Science – Chapter 6 ऊतक
UK Board 9th Class Science – Chapter 6 ऊतक
UK Board Solutions for Class 9th Science – विज्ञान – Chapter 6 ऊतक
अध्याय के अन्तर्गत दिए गए प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1. ऊतक क्या है?
उत्तर : कोशिकाओं का वह समूह जो उत्पत्ति, संरचना तथा कार्य में समान होता है, ऊतक (tissue) कहलाता है।
प्रश्न 2. बहुकोशिकीय जीवों में ऊतकों का क्या उपयोग है?
उत्तर : बहुकोशिकीय जीवों में कोशिकाओं के समूह ऊतक बनाते हैं। ऊतक किसी विशेष कार्य को दक्षतापूर्वक सम्पन्न करने में सक्षम होता है। जैसे – अस्थियों और पेशियों की सहायता से प्राणियों में गति होती है, पक्षी हवा में उड़ते हैं। अस्थि तथा उपास्थि संयोजी ऊतक शरीर को निश्चित आकार प्रदान करता है। रुधिर तथा लसीका ऑक्सीजन, कार्बन डाइ-ऑक्साइड, पोषक पदार्थ, हॉर्मोन्स, उत्सर्जी पदार्थों आदि का संवहन करता है। तन्त्रिका कोशिकाएँ उद्दीपनों, प्रेरणा आदि की वाहक होती हैं। अस्थियों तथा पेशियों के कारण ही प्राणी वायु ग्रहण करते और निकालते हैं।
पौधों के विभिन्न ऊतक उन्हें दृढ़ता, स्थिरता एवं सुरक्षा प्रदान करते हैं। जटिल स्थायी ऊतक ( जाइलम तथा फ्लोएम ) जल तथा कार्बनिक पदार्थों का संवहन करते हैं।
प्रश्न 3. प्रकाश संश्लेषण के लिए किस गैस की आवश्यकता होती है?
उत्तर : कार्बन डाइ ऑक्साइड की ।
प्रश्न 4. पौधों में वाष्पोत्सर्जन के कार्यों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर : पौधों के वायवीय भागों से होने वाली जल की हानि को वाष्पोत्सर्जन (transpiration) कहते हैं। जल-हानि ” जलवाष्प” के रूप में मुख्यतया रन्ध्रों (stomata) द्वारा होती है। पौधे मृदा से जितना जल अवशोषित करते हैं, उसका लगभग 1% पौधे के संगठन के काम आता है, शेष जल वाष्पोत्सर्जित हो जाता है। वाष्पोत्सर्जन के प्रमुख कार्य (महत्त्व) निम्नलिखित हैं-
(i) वाष्पोत्सर्जन के कारण जल के अवशोषण, रसारोहण तथा समान वितरण में सहायता मिलती है।
(ii) वाष्पोत्सर्जन के कारण खनिज लवणों के अवशोषण में सहायता मिलती है। मृदा जल में खनिज लवणों की मात्रा बहुत कम होती है; अत: जितना अधिक जल पौधे अवशोषित करेंगे, उतने ही अधिक लवण जल के माध्यम से पौधे को उपलब्ध होंगे।
(iii) वाष्पोत्सर्जन के कारण पौधों में ताप का नियमन होता रहता है।
(iv) वाष्पोत्सर्जन के कारण पौधों में यान्त्रिक ऊतक अधिक विकसित होते हैं जिनके कारण पौधे अधिक मजबूत होते हैं। इनकी प्रतिरोध क्षमता अधिक होती है।
(v) वाष्पोत्सर्जन के कारण फलों में शर्करा आदि पोषक पदार्थों की मात्रा में वृद्धि होती है।
प्रश्न 5. सरल ऊतकों के कितने प्रकार हैं?
उत्तर : सरल स्थायी ऊतक तीन प्रकार के होते है-
(i) मृदूतक (पैरेन्काइमा -parenchyma),
(ii) स्थूलकीण ऊतक (कॉलेन्काइमा -collenchyma) तथा
(iii) दृढ़ ऊतक (स्क्लेरेन्काइमा – sclerenchyma)।
प्रश्न 6. प्ररोह का शीर्षस्थ विभज्योतक कहाँ पाया जाता है?
उत्तर : प्ररोह (तने) के शिखर पर स्थित विभज्योतक को शीर्षस्थ विभज्योतक (apical meristem) कहते हैं। इनकी कोशिकाओं में कोशिका विभाजन के फलस्वरूप तने (प्ररोह) या शाखा की लम्बाई में वृद्धि होती है।
प्रश्न 7. नारियल का रेशा किस ऊतक का बना होता है?
उत्तर : दृढ़ ऊतक (स्क्लेरेन्काइमा ऊतक) से ।
प्रश्न 8. फ्लोएम के संघटक कौन-कौन से हैं?
उत्तर : फ्लोएम एक जटिल ऊतक है। इसका निर्माण चालनी नलिका, सह कोशिका, फ्लोएम मृदूतक तथा फ्लोएम रेशे से होता है।
प्रश्न 9. उस ऊतक का नाम बताइए जो हमारे शरीर में गति के लिए उत्तरदायी है।
उत्तर : संयोजी ऊतक (अस्थियाँ); पेशीय ऊतक (रेखित पेशियाँ) तथा तन्त्रिका ऊतक (तन्त्रिकाएँ) के कार्यात्मक संयोजन से हमारे शरीर में गति होती हैं।
प्रश्न 10. न्यूरॉन देखने में कैसा लगता है?
उत्तर : न्यूरॉन (तन्त्रिका कोशिका) लम्बी धागे जैसी प्रतीत होती है। इनकी लम्बाई एक मीटर तक होती है। न्यूरॉन का मुख्य भाग कोशिकाकाय (cyton) कहलाता है। इससे एक लम्बा अक्षतन्तु (एक्सॉन-axon) तथा अनेक छोटे-छोटे वृक्षाभ (डेण्ड्राइट्स-dendrites) निकलते हैं।
प्रश्न 11. हृदय पेशी के तीन लक्षणों को बताइए ।
उत्तर : हृदय पेशी के लक्षण-
(i) ये बेलनाकार, शाखामय तथा एक-केन्द्रकीय होती हैं।
(ii) इनमें हल्के तथा गहरे रंग की पट्टियाँ पाई जाती हैं।
(iii) ये संरचना में रेखित पेशी के समान तथा कार्य की दृष्टि से अरेखित (अनैच्छिक) पेशी के समान होती हैं।
(iv) ये जीवनपर्यन्त लयबद्ध तरीके से सिकुड़ती फैलती रहती हैं।
प्रश्न 12. एरिओलर ऊतक के क्या कार्य हैं?
उत्तर : एरिओलर ऊतक —यह सामान्य ढीला संयोजी ऊतक है। यह पूरे शरीर में व्यापक रूप से मिलता है। यह पतली पर्त के रूप में शरीर आन्तरिक अंगों की उपकला के नीचे तथा रक्त वाहिनियों की भित्ति के के ऊपर पाया जाता है।
कार्य – (1) यह शरीर के समस्त अंगों को परस्पर बाँधे रखता है।
(2) यह निकटवर्ती अन्य ऊतकों को पोषक पदार्थ प्रदान करता है।
(3) इसमें उपस्थित फैगोसाइट्स संक्रमण व हानिकारक पदार्थों से सुरक्षा प्रदान करते हैं। यह क्षत कोशिकाओं को नष्ट करके सफाई एवं मरम्मत करता है।
(4) यह रुधिर वाहिनियों का रक्षात्मक आवरण बनाता है।
(5) यह समस्त अंगों के लिए पैकिंग पदार्थ का कार्य करता है।
अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1. ऊतक को परिभाषित कीजिए।
उत्तर : ऊतक कोशिकाओं का वह समूह जिसकी उत्पत्ति, संरचना तथा कार्य समान होते हैं, ऊतक कहलाता है।
प्रश्न 2. कितने प्रकार के तत्व मिलकर जाइलम ऊतक का निर्माण करते हैं? उनके नाम बताएँ ।
उत्तर : जाइलम — यह एक जटिल ऊतक है। इसका निर्माण चार प्रकार की कोशिकाओं (तत्व) से होता है— (i) वाहिनिका (ट्रैकीड्स), (ii) वाहिका, (iii) जाइलम रेशे तथा (iv) जाइलम मृदूतक (पैरेन्काइमा ) ।
प्रश्न 3. पौधों में सरल ऊतक जटिल ऊतक से किस प्रकार भिन्न होते हैं?
उत्तर : सरल तथा जटिल ऊतक में भिन्नता

प्रश्न 4. कोशिका भित्ति के आधार पर पैरेन्काइमा, कॉलेन्काइमा और स्क्लेरेन्काइमा के बीच भेद स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर : (i) पैरेन्काइमा ( मृदूतक) पतली भित्ति वाली गोलाकार, अण्डाकार अथवा बहुभुजीय जीवित कोशिकाओं से बना होता है। इनकी कोशिका भित्ति सामान्यतया सेलुलोस बनी होती है।
(ii) कॉलेन्काइमा (स्थूलकोण ऊतक) बहुभुजी, जीवित कोशिकाओं से बना होता है। इसकी कोशिकाओं के कोनों पर सेलुलोस तथा पेक्टिन के संचित हो जाने से कोनों की मोटाई अधिक हो जाती है। यह ऊतक द्विबीजपत्री शाकीय पौधों को यान्त्रिक शक्ति प्रदान करता है।
(iii) स्क्लेरेन्काइमा (दृढ़ ऊतक) की कोशिकाएँ समव्यासी या रेशे के समान होती हैं। इनकी कोशिकाओं की भित्ति पर लिग्निन एकत्र होने से स्थूलन हो जाता है । अत्यधिक स्थूलन के कारण कोशिकाद्रव्य नष्ट हो जाता है और कोशिकाएँ मृत हो जाती हैं। यह पौधे को यान्त्रिक शक्ति प्रदान करता
प्रश्न 5. रन्ध्र के क्या कार्य हैं?
उत्तर : रन्ध्र के कार्य – (i) इनके द्वारा वाष्पोत्सर्जन की क्रिया होती है।
(ii) इनके द्वारा वायुमण्डल से गैसों (O2 तथा CO2) का आदान-प्रदान होता है।
प्रश्न 6. तीनों प्रकार के पेशीय रेशों में चित्र बनाकर अन्तर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर : पेशियाँ तीन प्रकार की होती – (i) अरेखित, (ii) रेखित तथा (iii) हृदपेशियाँ ।


प्रश्न 7. कार्डियक (हृदयक) पेशी का विशेष कार्य क्या है?
उत्तर : कार्डियक (हृदयक) पेशियाँ जीवन पर्यन्त एक निश्चित लय में सिकुड़ती – फैलती रहती हैं। इसके फलस्वरूप प्राणियों में रुधिर . परिसंचरण होता है। ये पेशियाँ कभी थकती नहीं हैं। हृदय स्पन्दन इन्हीं पेशियों के कारण होता है।
प्रश्न 8. रेखित, अरेखित तथा कार्डियक (हृदयक) पेशियों में शरीर में स्थित कार्य और स्थान के आधार पर अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : (i) रेखित पेशियाँ अस्थियों से जुड़ी होती हैं; जैसे – हाथ-पैर की अस्थियों से जुड़ी पेशियाँ। ये प्राणी की इच्छानुसार कार्य करती हैं और शरीर को गति प्रदान करती हैं।
(ii) अरेखित पेशियाँ आन्तरिक अंगों में पाई जाती हैं; जैसे – आहारनाल में, मूत्रवाहिनी में, श्वास नाल में, रुधिर वाहिनियों में आदि। इन पेशियों पर प्राणी की इच्छा शक्ति का नियन्त्रण नहीं होता। पेशियाँ स्वतः आन्तरिक अंगों की गति को नियन्त्रित करती हैं। |
(iii) हृदयक (कार्डियक) पेशियाँ हृदय की भित्ति में पाई जाती हैं। इनमें संकुचन और शिथिलन के फलस्वरूप हृदय स्पन्दन होता है। रुधिर का शरीर के विभिन्न भागों में प्रवाह बना रहता है।
प्रश्न 9. न्यूरॉन का एक चिह्नित ( नामांकित ) चित्र बनाइए ।
उत्तर : न्यूरॉन या तन्त्रिका कोशिका

प्रश्न 10. निम्नलिखित के नाम लिखें-
(क) ऊतक जो मुँह के भीतरी अस्तर का निर्माण करता है।
(ख) ऊतक जो मनुष्य में पेशियों को अस्थि से जोड़ता है।
(ग) ऊतक जो पौधों में भोजन का संवहन करता है।
(घ) ऊतक जो हमारे शरीर में वसा का संचय करता है।
(ङ) तरल आधात्री सहित संयोजी ऊतक । मस्तिष्क में स्थित ऊतक ।
उत्तर : (क) शल्की एपिथीलियम (squamous epithelium)।
(ख) कण्डरा (tendon ) ।
(ग) फ्लोएम (phloem) ।
(घ) वसा ऊतक ( adipose tissue ) ।
(ङ) रुधिर (blood)।
(च) तन्त्रिका ऊतक (nervous tissue)।
प्रश्न 11. निम्नलिखित में ऊतक के प्रकार की पहचान कीजिए:
त्वचा, पौधे का वल्कुट, अस्थि, वृक्कीय नलिका अस्तर, संवहन बण्डल।
उत्तर : निम्नलिखित अंगों या भागों में पाए जाने वाले ऊतक-
(i) त्वचा – स्तरित शल्की एपिथीलियम,
(ii) पौधे का वल्कुट – सरल स्थायी ऊतक पैरेन्काइमा,
(iii) अस्थि – संयोजी कंकाल ऊतक “अस्थि “
(iv) वृक्कीय नलिका अस्तर – घनाकार एपिथीलियम,
(v) संवहन बण्डल – जटिल ऊतक जाइलम तथा फ्लोएम।
प्रश्न 12. पैरेन्काइमा ऊतक किस क्षेत्र में स्थित होते हैं?
उत्तर : पैरेन्काइमा (मृदूतक) मुख्यतः आधारीय पैकिंग का निर्माण करता है। जड़ तथा तने का वल्कुट (कॉर्टेक्स) तथा मज्जा (पिथ) और पत्ती का मीसोफिल (पर्णमध्योतक) पैरेन्काइमा से बनता है। यह ऊतक जल तथा भोजन संचय करता है। पर्णहरित की उपस्थिति के कारण यह भोजन निर्माण का कार्य करता है तो इसे क्लोरेन्काइमा कहते है। जब अन्तरकोशिकीय अवकाश के स्थान पर बड़ी गुहिकाएँ पाई जाती हैं तो इसे ऐरेन्काइमा कहते है। यह पौधों के तैरने (प्लावन) में सहायक होता है।
प्रश्न 13. पौधों में एपिडर्मिस की क्या भूमिका है?
उत्तर : बाह्य त्वचा (एपिडर्मिस) पौधों की सबसे बाहरी पर्त होती है। जड़ में इसे मूलीय त्वचा (एपिब्लेमा – epiblemma) कहते हैं। इससे मूलरोम निकले रहते हैं। मूलरोम जल अवशोषण का कार्य करते हैं। तने तथा पत्ती की बाह्य त्वचा पर उपचर्म (cuticle) की अकोशीय पर्त पाई जाती है। स्थान-स्थान पर रन्ध्र (stomata) पाए जाते है। बाह्य त्वचा रक्षात्मक आवरण होता है। यह पौधे के आन्तरिक ऊतकों की सुरक्षा करता है। यान्त्रिक आघात तथा रोगाणुओं से पौधे की रक्षा करता है। रन्ध्रों (stomata) द्वारा गैसों ( O2 तथा CO2) का आदान-प्रदान होता है। वाष्पोत्सर्जन उपचर्म (cuticle) तथा रन्ध्रों द्वारा होता है।
प्रश्न 14. छाल (कॉर्क) किस प्रकार सुरक्षा ऊतक के रूप में कार्य करती है?
उत्तर : छाल (कॉर्क) पौधों की आयु बढ़ने पर तना तथा जड़ की मोटाई में वृद्धि होती है। इसे द्वितीयक वृद्धि कहते हैं। द्वितीयक वृद्धि के फलस्वरूप सुरक्षात्मक ऊतक कॉर्क (cork) बनता है। आयताकार कॉर्क कोशिकाओं की भित्ति पर सुबेरिन (suberin) नामक वसीय पदार्थ के एकत्र होने से कोशिकाएँ जल तथा वायु के लिए अपारगम्य होती हैं। कॉर्क कोशिकाओं से बाहर स्थित कोशिकाएँ जल तथा भोजन के अभाव में. मृत हो जाती हैं। मृत कोशिकाएँ तथा कॉर्क कोशिकाएँ मिलकर छाल कहलाती हैं। छाल (कॉर्क) तने तथा जड़ का रक्षात्मक आवरण बनाती है। कॉर्क में स्थान-स्थान पर वातरन्ध्र (lenticels) पाए जाते हैं। इनसे गैसों का आदान-प्रदान तथा थोड़ी-सी मात्रा में वाष्पोत्सर्जन होता है।
प्रश्न 15. निम्नांकित दी गई तालिका को पूर्ण कीजिए-

अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न एवं उनके उत्तर
• विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. स्थायी ऊंतक किसे कहते हैं? इसके वर्गीकरण की रूपरेखा दीजिए । विभिन्न प्रकार के सरल स्थायी ऊतकों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर : स्थायी ऊतक—इसका निर्माण विभज्योतक ऊतक से होता है । स्थायी ऊतक की कोशिकाओं में कोशा विभाजन की क्षमता नहीं होती। कोशिका भित्ति पतली या मोटी, सुदृढ़ होती है। कोशिकाद्रव्य रिक्तिकामय (vacuolated) होता है। कोशिकाओं की आकृति एवं आकार निश्चित होता है। कोशिकाएँ जीवित या मृत होती हैं।

सरल ऊतक
यह ऊतक एक ही प्रकार की कोशिकाओं से बनता है। कोशिकाएँ संरचना तथा कार्य में समान होती हैं। यह तीन प्रकार का होता है—
(i) मृदूतक (पैरेन्काइमा-parenchyma),
(ii) स्थूलकोण ऊतकं (कॉलेन्काइमा – collenchyma) तथा
(iii) दृढ़ ऊतक (स्क्लेरेन्काइमा – sclerenchyma)।
(i) मृदूतक— इस प्रकार के ऊतक पौधों में सब जगह पाए जाते हैं। इनकी कोशिकाएँ जीवित और पतली भित्ति वाली होती हैं। कोशिका भित्ति सेलुलोस की बनी होती है। कोशिकाएँ गोलाकार, अण्डाकार या बहुतल हो सकती हैं। ये सामान्यतः समव्यासी होती हैं। कोशिकाएँ रिक्तिकायुक्त (vacuolated) होती हैं। कार्य के अनुसार कोशिकाएँ रूपान्तरित हो जाती हैं। हरितलवक युक्त कोशिकाएँ क्लोरेन्काइमा कहलाती हैं। ये प्रकाश संश्लेषण द्वारा भोजन बनाती हैं। पत्तियों में भोजन का निर्माण करने वाली विशिष्ट कोशिकाओं को खम्भ कोशिकाएँ कहते हैं । अन्तरा – कोशिकीय अवकाश अधिक होने पर ऊतक को स्पंजी पैरेन्काइमा (spongy parenchyma) कहते हैं। यह गैसों के विनिमय तथा वाष्पोत्सर्जन में सहायक होता है। जलीय पौधों में कोशिकाओं के मध्य बड़ी गुहाएँ (cavities) पाए जाने पर ऊतक को ऐरेन्काइमा (aerenchyma) कहते हैं। यह प्लवन में सहायक होता है।

कार्य- (i) मृदूतक जल तथा खाद्य पदार्थों का संचय करता है।
(ii) कोमल भागों को स्फीत दशा में यान्त्रिक सहायता प्रदान करता है।
(iii) भोजन का निर्माण करता है। प्लवन तथा गैसों के विनिमय में सहायक होता है।
(ii) स्थूलकोण ऊतक (कॉलेन्काइमा ) – ये कोशिकाएँ कोणीय, सामान्यतः समव्यासी तथा आन्तर – कोशिकीय अवकाशरहित होती हैं। कोशिकाओं के कोने पेक्टिन तथा सेलुलोस द्वारा स्थूलित होते हैं। स्थूलकोण ऊतक मजबूती और लचीलापन प्रदान करता है। स्थूलकोण ऊतक प्राय: द्विबीजपत्री तनों में अधस्त्वचा (hypodermis ) का निर्माण करता है। कभी-कभी कोशिकाओं में हरितलवक पाया जाता है जिससे ये यान्त्रिक सहायता प्रदान करने के साथ-साथ भोजन निर्माण का कार्य भी करती हैं।

(iii) दृढ़ ऊतक (स्क्लेरेन्काइमा ) – परिपक्व अवस्था में दृढ़ ऊतक की कोशिकाएँ स्थूलित होने के कारण मृत हो जाती हैं। स्थूलन कोशिका भित्ति पर लिग्निन ( lignin) के एकत्र होने से होता है। इसकी कोशिकाएँ दो प्रकार की होती हैं—
(क) रेशे (fibres ) तथा
(ख) पाषाण कोशिकाएँ (stone cells)।

(क) कुछ कोशिकाएँ बहुत लम्बी और दोनों सिरों पर नुकीली होती हैं, इन्हें रेशे (fibres) कहते हैं। दृढ़ोतकीय रेशे पौधों को दृढ़ता प्रदान करते हैं। इनकी लम्बाई प्रायः 1 से 3 मिमी होती है। जूट के रेशे 201 मिमी लम्बे तथा बोहरिया (Boehmeria) के रेशे 550 मिमी लम्बे होते हैं। इस प्रकार के रेशे दारु (xylem) तथा अधोवाही (phloem) आदि में बहुतायत से मिलते हैं।
(ख) कुछ कोशिकाएँ समव्यासी, गोल, बहुतल या अनियमित आकार की होती हैं। अत्यधिक लिग्निन एकत्रित हो जाने पर कोशिकाएँ मृत एवं दृढ़ हो जाती हैं, इन कोशिकाओं को पाषाण कोशिकाएँ (stone cells) कहते हैं। पाषाण कोशिकाएँ प्रायः फलभित्ति तथा बीज कवच में पाई | जाती हैं।
प्रश्न 2. जटिल ऊतक किसे कहते हैं? पौधों में पाए जाने वाले जटिल ऊतकों की संरचना तथा कार्य का वर्णन कीजिए।
उत्तर : जटिल ऊतक
दो या अधिक प्रकार की कोशिकाएँ जब परस्पर मिलकर एक ही कार्य सम्पन्न करती हैं तो इसे जटिल ऊतक कहते हैं। पौधों में पाया जाने वाला संवहन ऊतक जटिल ऊतक का उदाहरण है। इसके अन्तर्गत जाइलम तथा फ्लोएम आते हैं। पौधों में जाइलम तथा फ्लोएम संवहन बण्डल के रूप में व्यवस्थित होते हैं।
(i) दारु या जाइलम
यह पौधे का काष्ठीय भाग है। इसका निर्माण चार प्रकार की कोशिकाओं से होता है-
(क) वाहिनिकाएँ या ट्रैकीड्स – ये नलिकाकार कोशिकाएँ हैं, इसके दोनों सिरे नुकीले होते हैं। इनकी भित्तियाँ लिग्निन के जमा होने से मोटी होती हैं। इनका कार्य जल तथा उसमें घुले पदार्थों को विभिन्न स्थानों को पहुँचाना और पौधे को दृढ़ता प्रदान करना है।
(ख) वाहिकाएँ या वेसल्स — ये भी नलिकाकार होती हैं। ये अनेक कोशिकाओं से मिलकर बनती हैं। इनकी भित्तियाँ लिग्निन के द्वारा स्थूलित होती हैं। इन कोशिकाओं का कार्य भी पानी और घुलित पदार्थों का संवहन ही है। ये पौधों को दृढ़ता भी प्रदान करती हैं। ये केवल आवृतबीजी पौधों में ही पाई जाती हैं।
(ग) काष्ठ मृदूतक— ये साधारण मृदूतक के समान ही हैं। इनका कार्य मुख्यत: मण्ड (starch) इत्यादि संग्रह करना है और ये जल संवहन में भी सहायक होता हैं।
(घ) काष्ठ तन्तु—ये प्रायः लम्बे, दोनों सिरों पर नुकीले और लिग्निन से स्थूलित होते हैं। ये पौधे को दृढ़ता प्रदान करते हैं।

(ii) अधोवाही या फ्लोएम
यह प्रकाश संश्लेषण द्वारा तैयार भोजन को पौधे के विभिन्न भागों को पहुँचाता है। यह चालनी नलिका (sieve tube), सहकोशिकाओं, फ्लोएम मृदूतक और फ्लोएम रेशों से मिलकर बनता है।
(क) चालनी नलिका—ये नलिकाओं की तरह की रचनाएँ होती हैं। कई कोशिकाओं के सिरों पर जुड़ जाने से बनती हैं। इनमें स्थान-स्थान पर चालनी पट्टिकाएँ (sieve plates) होती हैं। इन पट्टिकाओं पर छोटे-छोटे छिद्र होते हैं जिनसे खाद्य पदार्थों का स्थानान्तरण होता है।
(ख) सह कोशिकाएँ — ये लम्बी मृदूतक कोशिकाएँ होती हैं। ये सदैव चालनी नलिका के साथ पाई जाती हैं। ये भोजन के संवहन में सहायता करती हैं। इनमें स्पष्ट केन्द्रक और सघन कोशिकाद्रव्य पाया जाता है।
(ग) फ्लोएम मृदूतक — यह साधारण मृदूतक की तरह होता है। इसकी कोशिकाएँ जीवित होती हैं। इनमें खाद्य-पदार्थ संचित रहते हैं।
(घ) फ्लोएम रेशे – इनको बास्ट तन्तु (bast fibres) भी कहते हैं। इनकी कोशिकाएँ लम्बी, नुकीली व लिग्निनयुक्त होती हैं। पौधों को यान्त्रिक शक्ति प्रदान करती हैं।
प्रश्न 3. रुधिर की संरचना तथा कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर : रुधिर या रक्त- रुधिर तरल संयोजी ऊतक हैं। इस ऊतक की रुधिर कोशिकाएँ तरल मैट्रिक्स में तैरती रहती हैं। मैट्रिक्स में श्वेत कोलैजन तथा पीले लचीले तन्तु नहीं पाए जाते। मनुष्य के शरीर में लगभग 5 लीटर रुधिर होता है। रुधिर में प्लाज्मा (plasma) तथा रुधिर कणिकाएँ (blood corpuscles) होती हैं।
(क) प्लाज्मा
यह हल्के पीले रंग का क्षारीय द्रव है जो रुधिर का 55-60% भाग होता है। इसमें लगभग 90-92% भाग जल तथा शेष घुलनशील अथवा कोलॉइडी अवस्था में पाए जाने वाले पदार्थ होते हैं; जैसे—शर्कराएँ, विटामिन, ऐमीनो अम्ल, लवण, उत्सर्जी पदार्थ व हॉर्मोन्स आदि। प्लाज्मा में अनेक गैसें भी घुली रहती हैं; जैसे— ऑक्सीजन, कार्बन डाइ-ऑक्साइड, नाइट्रोजन आदि । कोलॉइडी अवस्था में पाए जाने वाले पदार्थों में रुधिर प्रोटीन्स महत्त्वपूर्ण होते हैं।
(ख) रुधिर कणिकाएँ
ये रुधिर का 45% भाग बनाती हैं। ये प्रमुखतः तीन प्रकार की होती हैं—
(i) लाल रुधिर कणिकाएँ- मनुष्य तथा अन्य स्तनियों में ये गोल, चपटी, तश्तरीनुमा, केन्द्रक रहित तथा उभयावतल (biconcave) होती हैं। मनुष्य के एक घन मिली रुधिर में इनकी संख्या लगभग 54 लाख तक होती है। इनके अधिक संख्या में होने के कारण ही रुधिर का रंग लाल होता है। इनमें एक विशेष प्रकार की प्रोटीन हीमोग्लोबिन (haemoglobin) होती है। यह ऑक्सीजन वाहक (oxygen carrier) का कार्य करती है।
लाल रुधिर कणिकाएँ शरीर की लम्बी हड्डियों के लाल अस्थि मज्जा (red bone marrow) में बनती रहती हैं। टूटी-फूटी व मृत लाल रुधिर कणिकाएँ यकृत द्वारा नष्ट कर दी जाती हैं।

(ii) श्वेत रुधिर कणिकाएँ — ये बड़े परिमाप की विभिन्न आकार . तथा संरचनाओं में मिलने वाली कोशिकाएँ हैं। इनकी संख्या लाल रुधिर कणिकाओं की अपेक्षा कम होती है। प्रति घन मिली रुधिर में इनकी संख्या 89 हजार होती है।
श्वेत रुधिर कणिकाएँ रंगहीन होती हैं तथा इनमें केन्द्रक होता है। ऐसे स्थानों पर, जहाँ शरीर में बाहर का कोई पदार्थ आ जाता है, ये अत्यधिक संख्या में एकत्र हो जाती हैं। ये जीवाणुओं आदि रोगाणुओं पर आक्रमण करती हैं, उनका भक्षण करती हैं एवं प्रतिरक्षी (antibodies) का निर्माण करती हैं। शरीर की रोगाणुओं से रक्षा करती हैं। सुरक्षा प्रतिक्रिया में ये स्वयं अनगिनत संख्या में नष्ट होती रहती हैं। कटे हुए स्थान, फोड़े-फुन्सी आदि से यह सब मवाद (pus) के रूप में निकलता है।
(iii) रुधिर प्लेटलेट्स -ये रुधिर में छोटी-छोटी कणिकाओं के रूप में होती हैं। इनकी संख्या 25 लाख प्रति घन मिली रुधिर होती है। ये केन्द्रकविहीन, संकुचनशील, गोल या अण्डाकार, तश्तरीनुमा होती हैं। ये रुधिर का थक्का बनने के लिए आवश्यक हैं।
रुधिर के कार्य — (i) रुधिर ऑक्सीजन, कार्बन डाइ ऑक्साइड, पोषक पदार्थों, उत्सर्जी पदार्थों, एन्जाइम्स, हॉर्मोन्स, प्रतिजन (antigen) तथा प्रतिरक्षी (antibodies) का संवहन करता है।
(ii) रुधिर की श्वेत रुधिर कणिकाएँ (WBCs) विषाणु, जीवाणु तथा अन्य रोगाणुओं का भक्षण करके अथवा प्रतिरक्षी (antibodies) द्वारा उन्हें नष्ट करके शरीर की सुरक्षा करती हैं।
(iii) रुधिर शरीर के विभिन्न भागों के ताप का नियमन करने में सहायक होता है।
(iv) शरीर के आन्तरिक वातावरण को समस्थिति में बनाए रखता है। अंगों के मध्य समन्वय तथा नियन्त्रण रखता है।
(v) चोट लगने पर रुधिर का थक्का बनने से क्षतिग्रस्त अंग की मरम्मत तथा घाव के भरने में सहायता मिलती है।
• लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. जन्तुओं में पाई जाने वाली ऐच्छिक तथा अनैच्छिक मांसपेशियों का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर : जन्तुओं में तीन प्रकार की मांसपेशियाँ पाई जाती हैं-
(i) ऐच्छिक या रेखित पेशी, (ii) अनैच्छिक या अरेखित पेशी तथा (iii) हृद पेशी।
(i) ऐच्छिक मांसपेशियाँ—ये लम्बी, बेलनाकार तथा बहुकेन्द्रकीय कोशिकाएँ होती हैं, जो पेशी सूत्र या तन्तु कहलाती हैं। इनमें हल्के तथा गहरे रंग की पट्टियाँ बनी रहती हैं, जिनके कारण इनको रेखित पेशी (striped muscles) भी कहते हैं। ऐच्छिक पेशियाँ निरन्तर कार्य करके . थक जाती हैं, तब इन्हें विश्राम की आवश्यकता होती है। ऐच्छिक पेशियों की गति एवं कार्य हमारी इच्छा पर निर्भर करता है। इस प्रकार की पेशियाँ मुख्य रूप से हाथ-पैर, गर्दन, आँख आदि अंगों में पाई जाती हैं, जो हमारी इच्छा के अधीन कार्य करते हैं। चलना, दौड़ना, आँखें खोलना या बन्द करना, हाथ बढ़ाकर भोजन का कौर पकड़ना और उसे मुँह में चबाकर निगल जाना इत्यादि कार्य ऐच्छिक पेशियों के ही द्वारा किए जाते हैं। हड्डियों से जुड़े होने के कारण इन्हें कंकाल पेशी (skeleton muscles) भी कहते हैं। इनका नियन्त्रण मस्तिष्क तथा मेरुरज्जु द्वारा होता है। (देखिए चित्र -1B )
(ii) अनैच्छिक पेशियाँ—इन पेशियों के पेशी तन्तु तर्क रूप होते. प्रत्येक तर्क तन्तु में एक केन्द्रक होता है। इनमें ऐच्छिक पेशियों की तरह हल्के तथा गहरे रंग की पट्टियाँ नहीं होती हैं; इसीलिए इन्हें अरेखित पेशियाँ (unstriped muscles) कहते हैं। इन पेशियों की गति पर हमारा नियन्त्रण नहीं होता, वरन् इन पेशियों में गति स्वतः ही होती है। आहारनाल में भोजन का खिसकना, रुधिर नलिकाओं में रुधिर का प्रवाहित होना, मूत्राशय से मूत्र बाहर निकलना, आँखों की पुतलियों का प्रकाश की तीव्रता के अनुसार फैलना या सिकुड़ना इत्यादि कार्य इन्हीं पेशियों की सहायता से स्वतः होते रहते हैं। अनैच्छिक पेशियाँ कभी थकती नहीं; अत: इन्हें विश्राम की आवश्यकता नहीं होती है। (देखिए चित्र – 1A )
प्रश्न 2. रन्ध्र की संरचना तथा कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर : रन्ध्र की संरचना – पौधे के हरे वायवीय भागों में रन्ध्र पाए जाते हैं। पत्तियों की सतह पर रन्ध्रों की संख्या औसतन 250 से 300 प्रति वर्ग मिमी है। रन्ध्र पत्ती की सतह का औसतन 1-2 प्रतिशत क्षेत्र घेरते हैं।

रन्ध्र वृक्कार रक्षक या द्वार कोशिकाओं (guard cells) से घिरे रहते हैं । द्वार कोशिकाएँ सहायक या अधिचर्म कोशिकाओं से घिरी रहती हैं। द्वार कोशिकाएँ रन्ध्र के खुलने तथा बन्द होने की क्रिया पर नियन्त्रण रखती हैं। द्वार कोशिकाओं की भीतरी भित्ति स्थूलित तथा बाह्य भित्ति पतली होती है। द्वार कोशिकाओं में हरितलवकं पाए जाते हैं। रन्ध्रों के नीचे एक छोटी-सी अधोरन्ध्री गुहा (substomatal cavity) होती है। द्वार कोशिकाओं के स्फीत (turgid) होने पर रन्ध्र खुल जाते हैं और श्लथ (flaccid) होने पर बन्द हो जाते हैं। रन्ध्र प्रायः दिन में खुले रहते हैं और रात में बन्द हो जाते हैं।
रन्ध्र के कार्य – रन्ध्रों से वाष्पोत्सर्जन तथा गैसों का आदान-प्रदान होता हैं।
प्रश्न 3. स्क्लेरेन्काइमा तथा कॉलेन्काइमा में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : स्क्लेरेन्काइमा तथा कॉलेन्काइमा में अन्तर
क्र०सं० | दृढ़ ऊतक (स्क्लेरेन्काइमा ) | स्थूलको ऊतक (कॉलेन्काइमा ) |
1. | मोटी लिग्निनयुक्त कोशिका भित्ति होती है। लिग्निन सम्पूर्ण भित्ति पर जमा होती है। | मोटी तथा सेलुलोस की भित्ति वाली कोशिकाएँ होती हैं। मोटाई इनके कोनो में अधिक होती है। |
2. | कोशिकाएँ दृढ़ होती हैं; अतः अधिक मजबूती से यान्त्रिक सहायता करती हैं। | लचीली यान्त्रिक सहायता प्रदान करती है। |
3. | कोशिकाएँ प्रायः मृत होती हैं, अन्य कोई जैविक कार्य नहीं करतीं। | कोशिकाएँ जीवित होती हैं तथा भोजन संचय, प्रकाश संश्लेषण आदि का कार्य भी करती हैं। |
4. | पौधे विभिन्न अंगों तथा अन्य ऊतक तन्त्रों में दृढ़ता प्रदान करने के लिए पाया जाता है। | केवल कुछ स्थानों; जैसे- द्विबीजपत्री शाकीय तनों की अधस्त्वचा (hypodermis ) में मिलता है। |
प्रश्न 4. अस्थि और उपास्थि में तीन अन्तर लिखिए।
उत्तर : अस्थि तथा उपास्थि में अन्तर
क्र०सं० | अस्थि | उपास्थि |
1. | यह कठोर होती है। इसका मैट्रिक्स ओसीन प्रोटीन से बना होता है। कठोरता मैट्रिक्स में कैल्सियम तथा मैग्नीशियम के कार्बोनेट एवं फॉस्फेट के एकत्र होने से होती है। | यह लचीली होती है। इसका मैट्रिक्स कॉण्ड्रिन प्रोटीन से बना होता है। |
2. | अस्थि कोशिकाएँ (osteoblasts) केन्द्रीय धारियों (concentric rings) में व्यवस्थित होती हैं। | उपस्थि कोशिकाएँ (chondrioblasts) मैट्रिक्स में अनियमित रूप से बिखरी रहती हैं। |
3. | अस्थि में सूक्ष्म नलिकाएँ (canaliculi) पाई जाती हैं। | उपास्थि में सूक्ष्म नलिकाएँ अनुपस्थित होती हैं। |
प्रश्न 5. वाहिनिकाओं तथा वाहिकाओं में अन्तर लिखिए।
उत्तर : वाहिनिकाओं तथा वाहिकाओं में अन्तर
क्र०सं० | वाहिनिकाएँ | वाहिकाएँ |
1. | ये लम्बी, लिग्निनयुक्त ( lignified) अपेक्षाकृत सँकरी, दोनों सिरों पर नुकीली (pointed) होती हैं। | ये लम्बी, लिग्निनयुक्त अपेक्षाकृत चौड़ी कोशिकाएँ होती हैं। कोशिकाओं के सिरे चौड़े होते हैं। |
2. | ये कोशिकाएँ सिरों से अन्य वाहिनिकाओं के सिरों के साथ चिपकी रहती हैं। | ये कोशिकाएँ सिरों पर जुड़कर एक सतत् नलिकाकार संरचना का निर्माण करती हैं। |
3. | दो वाहिनिकाएँ सन्धि-स्थल पर भित्ति द्वारा पृथक् रहती हैं। इन पर उपस्थित, गर्तौ (pits) से होकर ही जल का संवहन होता है। | वाहिकाओं में अनुप्रस्थ भित्तियाँ नहीं होती हैं। अतः संवहन एक सिरे से दूसरे सिरे तक बिना किसी अवरोध के होता है। |
4. | संघ ट्रैकियोफाइटा के सभी सदस्यों में पाई जाती हैं। | ये केवल आवृतबीजी पौधों ( angiosperms) में पाई जाती हैं। |
प्रश्न 6. विभज्योतक तथा स्थायी ऊतक में अन्तर लिखिए।
उत्तर : विभज्योतक तथा स्थायी ऊतक में अन्तर
क्र०सं० | विभज्योतक | स्थायी ऊतक |
1. | इनकी कोशिकाओं में विभाजन की क्षमता होती है। ये जीवित होती हैं। | इनकी कोशिकाओं में विभाजन की क्षमता नहीं होती। ये जीवित या मृत होती हैं। |
2. | इनकी कोशिकाओं की कोशिका भित्ति पतली और सेलुलोस की बनी होती है। | इनकी कोशिकाओं की कोशिका भित्ति अपेक्षाकृत मोटी, कभी-कभी अधिक मोटी होती है। यह सेलुलोस के साथ अन्य पदार्थों से बनी हो सकती है। |
3. | इन कोशिकाओं का आकार व परिमाप आवश्यकतानुसार बदल सकता है। | इन कोशिकाओं का आकार व परिमाप प्रायः निश्चित होता है। |
4. | जीवद्रव्य सघन व रिक्तिकारहित होता है। | जीवद्रव्य रिक्तिकामय होता है। |
5. | इन कोशिकाओं में भोजन संचित नहीं होता है। ये कोई अन्य कार्य भी नहीं करती हैं। | इन कोशिकाओं में भोजन संचित हो सकता है। ये अन्य कार्य भी कर सकती हैं; जैसे— यान्त्रिक शक्ति देना आदि । |
प्रश्न 7. पौधों में पाए जाने वाले ऊतक का रेखीय वर्गीकरण दीजिए।
उत्तर : पौधों में निम्नलिखित ऊतक पाए जाते हैं-

• अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. पौधों में विभज्योतक कहाँ-कहाँ होता है?
उत्तर : पौधों में विभज्योतक (meristematic tissue) वृद्धि क्षेत्रों में पाया जाता है। स्थिति के आधार पर यह तीन प्रकार का होता है-
(1) जड़ तथा तने के अग्रस्थ भाग में— शीर्षस्थ विभज्योतक ।
(2) तने की पर्व सन्धियों पर – अन्तर्विष्ट विभज्योतक ।
(3) तने तथा जड़ के पार्श्व में पाश्र्वय विभज्योतक ।
प्रश्न 2. सरल स्थायी ऊतक के विभिन्न प्रकार लिखिए।
उत्तर : सरल स्थायी ऊतक तीन प्रकार के होते हैं-
(क) मृदूतक (parenchyma),
(ख) स्थूलकोण ऊतक (collenchyma),
(ग) दृढ़ ऊतक (sclerenchyma)।
प्रश्न 3. फ्लोएम की पौधे के लिए उपयोगिता बताइए ।
उत्तर : फ्लोएम की उपयोगिता – फ्लोएम पत्तियों में निर्मित भोज्य पदार्थों को पौधे के विभिन्न भागों तक पहुँचाता है।
प्रश्न 4. जाइलम का कार्य लिखिए।
उत्तर : जाइलम का कार्य- जड़ें मृदा से जल एवं खनिज पदार्थों का अवशोषण करती हैं। जाइलम जल एवं खनिज पदार्थों को पौधों के विभिन्न भागों मे पहुँचाता है । जाइलम (काष्ठ-wood) पौधों को यान्त्रिक दृढ़ता प्रदान करता है।
प्रश्न 5. विभज्योतक की कोशिकाओं की मुख्य विशेषता लिखिए।
उत्तर : विभज्योतक की कोशिकाएँ पतली भित्ति वाली, सघन कोशिकाद्रव्य एवं स्पष्ट केन्द्रक वाली, होती हैं। कोशिकाएँ समव्यासी, गोलाकार, अण्डाकार या कोणीय होती कोशिकाओं के मध्य अन्तरकोशिकीय अवकाश नहीं होता। जीवित कोशिकाओं में कोशिका विभाजन की क्षमता होती है।
प्रश्न 6. प्राणियों के शरीर में पाए जाने वाले विभिन्न संयोजी ऊतकों के नाम लिखिए ।
उत्तर : संयोजी ऊतक — प्राणियों के शरीर में निम्नलिखित प्रकार के संयोजी ऊतक पाए जाते हैं-
(1) कण्डरा एवं स्नायु, (2) उपास्थि एवं अस्थि, ( 3 ) रुधिर एवं लसीका तथा (4) सामान्य संयोजी ऊतका
प्रश्न 7. जन्तुओं के शरीर में पाई जाने वाली सबसे लम्बी कोशिका का नाम लिखिए।
उत्तर : तन्त्रिका कोशिका या न्यूरॉन (neuron) जन्तु शरीर में पाई जाने वाली सबसे बड़ी कोशिका है।
प्रश्न 8. रन्ध्र का क्या कार्य है?
उत्तर : रन्ध्र के कार्य — (i) रन्ध्रों के द्वारा गैसों का आदान-प्रदान होता है।
(ii) रन्ध्रों द्वारा वाष्पोत्सर्जन होता है।
प्रश्न 9. हृद पेशी (कार्डियक पेशी) की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर : हृद पेशी (कार्डियक पेशी) के कार्य — (i) हद पेशियाँ संरचना में रेखित तथा कार्य में अरेखित (अनैच्छिक) पेशियों के समान होती हैं। इन पेशियों के लयबद्ध तरीके से सिकुड़ने- फैलने से हृदय स्पन्दन (heart beat ) होता है।
(ii) हृद पेशियाँ निरन्तर कार्य करती रहती हैं। ये थकती नहीं हैं।
(iii) हृदय स्पन्दन के कारण शरीर में रुधिर परिसंचरण होता है।
प्रश्न 10. जन्तुओं में पाए जाने वाले विभिन्न ऊतकों की सूची बनाइए ।
उत्तर : जन्तुओं में निम्नलिखित ऊतक पाए जाते हैं-

प्रश्न 11. न्यूरॉन में केन्द्रक कहाँ स्थित होता है?
उत्तर : न्यूरॉन में केन्द्रक कोशिकाकाय में पाया जाता है।
प्रश्न 12. मरुस्थलीय पौधों में वाष्पोत्सर्जन कम करने के लिए पाए जाने वाले दो अनुकूलन लिखिए।
उत्तर : मरुस्थलीय पौधों में जल की हानि को कम करने के लिए पाए जाने वाले अनुकूलन निम्नलिखित हैं-
(1) उपचर्म (cuticle) का मोटा रक्षात्मक आवरण।
(2) रन्ध्र गड्ढों (sunken stomata) में धँसे हुए।
(3) पत्तियाँ शल्कीय या काँटों में रूपान्तरित ।
प्रश्न 13. रुधिर का मैट्रिक्स (आधात्री ) तरल क्यों होता है?
उत्तर : रुधिर के मैट्रिक्स में कोलैजन या पीले लचीले तन्तुओं का अभाव होता है। कोशिकाएँ (रुधिर कणिकाएँ) मैट्रिक्स में तैरती रहती हैं।
प्रश्न 14. श्वेत रुधिर कणिकाएँ कितने प्रकार की होती हैं?
उत्तर : रक्त की श्वेत रुधिर कणिकाएँ मुख्यतया दो प्रकार की होती हैं-
(i) कणिकामय श्वेत रुधिर कणिकाएँ — न्यूट्रोफिल, इओसिनोफिल तथा बेसोफिल |
(ii) कणिकारहित श्वेत रुधिर कणिकाएँ — लिम्फोसाइट्स, मोनोसाइट्स |
प्रश्न 15. प्याज की जड़ों के शीर्ष भागों को काट देने के पश्चात् उनमें वृद्धि क्यों नहीं होती?
उत्तर : पौधों में विभज्योतक निश्चित स्थानों पर पाए जाते हैं। विभज्योतक के कारण ही वृद्धि होती है। प्याज की जड़ों के शीर्ष पर पाए जाने वाले शीर्षस्थ विभज्योतक को काटकर पृथक् कर देने के कारण जड़ों की वृद्धि रुक जाती है।
• एक शब्द या एक वाक्य वाले प्रश्न
प्रश्न 1. पौधों के वृद्धि क्षेत्रों में पाए जाने वाले ऊतक को क्या कहते हैं?
उत्तर : विभज्योतक (meristematic tissue)।
प्रश्न 2. किस सरल ऊतक की परिपक्व कोशिकाएँ मृत होती हैं?
उत्तर : स्क्लेरेन्काइमा (दृढ़ ऊतक ) ।
प्रश्न 3. चालनी नलिका तथा सहकोशिकाएँ कहाँ पाई जाती हैं?
उत्तर : फ्लोएम में।
प्रश्न 4. उपास्थि का निर्माण किन कोशिकाओं से होता है?
उत्तर : कॉण्ड्रियोब्लास्ट्स (chondrioblasts)।
प्रश्न 5. हैवर्सियन तन्त्र कहाँ पाया जाता है?
उत्तर : स्तनियों की सघन अस्थियों में।
प्रश्न 6. अस्थि के किस भाग में लाल रुधिराणुओं का निर्माण होता है ?
उत्तर : सघन अस्थियों की अस्थि मज्जा से ।
प्रश्न 7. अस्थि तथा उपास्थि का मैट्रिक्स किस प्रोटीन से बना होता है?
उत्तर : ओसीन (अस्थि) तथा कॉण्ड्रिन ( उपास्थि) प्रोटीन से ।
प्रश्न 8. जन्तुओं में ऑक्सीजन का संवहन किसके द्वारा होता है ?
उत्तर : लाल रुधिराणुओं में पाए जाने वाली हीमोग्लोबिन द्वारा ।
प्रश्न 9. रुधिर का थक्का बनाने में कौन-सी रुधिर कोशिकाएँ महत्त्वपूर्ण होती हैं?
उत्तर : रुधिर प्लेटलेट्स।
प्रश्न 10. हल्के तथा गहरे रंग की पट्टियाँ कौन-सी मांसपेशियों में नहीं पाई जाती हैं?
उत्तर : अरेखित (अनैच्छिक) मांसपेशियों में ।
प्रश्न 11. नेत्र गोलक को घुमाने वाली पेशियाँ कौन-सी होती हैं?
उत्तर : रेखित पेशियाँ।
प्रश्न 12. पर्णहरित युक्त पैरेन्काइमा कोशिकाओं को क्या कहते हैं?
उत्तर : क्लोरेन्काइमा (chlorenchyma)।
प्रश्न 13. तने की मोटाई में वृद्धि किस ऊतक के कारण होती है?
उत्तर : पार्श्व विभज्योतक ( एधा) द्वारा।
प्रश्न 14. जन्तुओं में गति किस ऊतक की सहायता से होती है ?
उत्तर : कंकाल ऊतक तथा रेखित पेशियों की सहायता से ।
प्रश्न 15. मस्तिष्क तथा मेरुरज्जु का निर्माण किस ऊतक से होता है?
उत्तर : तन्त्रिका ऊतक से।