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UP Board Solutions for Class 11 काव्यांजलि Chapter 5

UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi काव्यांजलि Chapter 5 केशवदास

UP Board Solutions for Class 11 काव्यांजलि Chapter 5

कवि-परिचय एवं काव्यगत विशेषताएँ

 

प्रश्न:
केशवदास का जीवन-परिचय दीजिए।
या
केशवदास की काव्यगत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
या
केशवदास का जीवन-परिचय लिखते हुए उनकी कृतियों का नामोल्लेख कीजिए तथा साहित्यिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जीवन-परिचय – आचार्य केशवदास का जन्म ओरछा (बुन्देलखण्ड) में संवत् 1612(सन् 1555 ई०) में हुआ था। ये सनाढ्य ब्राह्मण थे। इनके पिता का नाम पं० काशीनाथ था। आचार्य केशवदास का कुल संस्कृत के पाण्डित्य के लिए प्रसिद्ध था। केशवदास स्वयं कहते हैं कि

भाषा बोलि न जानहीं, जिनके कुल के दास।

ओरछा-नरेश महाराजा इन्द्रजीत सिंह इन्हें अपना गुरु मानते थे और उनके दरबार में इनका बड़ा मान था। महाराजा इन्द्रजीत सिंह ने इनको 21 गाँव दानस्वरूप दिये थे। इनका जीवन राजसी ठाठ-बाट का था। ये स्वभाव से गम्भीर और स्वाभिमानी थे। अपनी प्रशंसा में केशव द्वारा रचित एक पद पर बीरबल ने छह हजार रुपये की हुण्डियाँ न्यौछावर की थीं। एक बार अकबर ने इन्द्रजीत सिंह पर एक करोड़ रुपये का जुर्माना कर दिया, जिसे केशव ने आगरा जाकर बीरबल की सहायता से माफ करवाया। इससे इनका सम्मान और भी बढ़ गया। संवत् 1662 के लगभग जहाँगीर ने ओरछा का राज्य बीरसिंहदेव को दे दिया। कुछ काल तक नये राजा के दरबार में रहकर बाद में ये गंगाघाट पर जाकर रहने लगे। संवत् 1674(सन् 1617 ई०) के लगभग इनका देहावसाने हुआ।

ग्रन्थ
(क) रीतिग्रन्थ – (1) कविप्रिया, (2) रसिकप्रिया।
(ख) महाकाव्य –  (3) रामचन्द्रिका।
(ग) ऐतिहासिक काव्य – (4) जहाँगीर-जस-चन्द्रिका, (5) रतनबावनी, (6) वीरसिंह देवचरित, (7) नखशिख।
(घ) वैराग्यपरक –  (8) विज्ञान गीता।

काव्यगत विशेषताएँ

भावपक्ष की विशेषताएँ

केशव चमत्कारवादी कवि – केशव चमत्कारवादी कवि थे। ये अलंकारों से रहित कविता को कविता मानने को ही तैयार न थे। इन्होंने प्रबन्ध और मुक्तक दोनों ही प्रकार के काव्य रचे। ‘रामचन्द्रिका’ में इन्होंने रामचरित का विस्तृत वर्णन किया है, पर चमत्कारप्रियता के कारण वे इसमें उतने सफल नहीं हो पाये। ‘रामचन्द्रिका’ छन्दों का अजायबघर-सा प्रतीत होती है; क्योंकि इन्होंने एक सर्ग में एक छन्द के नियम का पालन न करके एक सर्ग में अनेक छन्दों का प्रयोग किया है, जिससे कथा-प्रवाह बार-बार बाधित हो जाता है। विविध अलंकारों के विधान एवं शब्दों के अप्रचलित अर्थों के प्रयोग के कारण इनकी भाषा बड़ी क्लिष्ट हो गयी है, जिससे इन्हें ‘कठिन काव्य का प्रेत’ कहा जाता है ।

विषमय यह गोदावरी अमृतन के फल-देत।

[ यहाँ ‘विष’ का अर्थ ‘जल’ है, जो अत्यधिक अप्रचलित है।]।

प्रकृति-चित्रण – प्रकृति के सौन्दर्य में केशव का मन न रमा। इन्होंने व्यापक भ्रमण द्वारा प्रकृति का निकट से सूक्ष्म परिचय भी प्राप्त नहीं किया था। इसीलिए वे मिथिला (बिहार) के वनों में ‘एला ललित लवंग संग पुंगीफल सोहे’ कहते समय यह भूल जाते हैं कि इलायची, लौंग, सुपारी आदि के वृक्ष समुद्र-तट पर होते हैं । कि बिहार में। इसके अतिरिक्त वे प्रकृति पर उत्प्रेक्षा, सन्देह, रूपक आदि अलंकारों का इतना अधिक आरोप कर देते हैं कि उससे प्रकृति की शोभा का भाव लुप्त होकर कई बार बड़ी नीरसता उत्पन्न हो जाती है; उदाहरणार्थ  वे प्रातःकालीन सूर्य के बिम्ब को कालरूपी कापालिक का खून से भरा खप्पर बताते हैं

कै सोनित कलित-कपाल यह किल कापालिक-काल को।

वस्तुतः उनका हृदय प्रकृति की सुषमा में न रमकर मानव-सौन्दर्य में अधिक रमा है।
संवाद-योजना – केशव की प्रसिद्धि ‘रामचन्द्रिका’ की संवाद-योजना के कारण है। केशव दरबारी कवि थे, इसलिए इन्हें राजनीतिक दावपेंच के साथ उत्तर-प्रत्युत्तर देने का ढंग खूब आता था। फलतः उनके संवाद बड़े नाटकीय बन पड़े हैं। उनमें वाग्वैदग्ध्य (वाणी की चतुरता) खूब मिलता है। इनमें पात्रों के अनुरूप क्रोध, उत्साह आदि की व्यंजनों भी सुन्दर हुई है। संवादों की भाषा भी अलंकारों के बोझ से रहित सरल और स्वाभाविक है। इसीलिए इनके संवाद बड़े ही हृदयग्राही बन गये हैं। केशव के परशुराम-राम संवाद और अंगद-रावण-संवाद ” जैसे सुन्दर संवाद हिन्दी के अन्य प्रबन्धकाव्यों में नहीं मिलते।

पाण्डित्य-प्रदर्शन – केशव अपने पाण्डित्य की धाक जमाना चाहते थे। संस्कृत काव्य की उक्तियों को उन्होंने अपने काव्य में सँजोया है, किन्तु भाषा की असमर्थता के कारण वे उन्हें स्पष्ट नहीं कर सके।

कवि एवं आचार्य – प्रबन्धकाव्य के अतिरिक्त केशव ने मुक्तककाव्य भी रचा है। ‘कविप्रिया’ में मुख्य रूप से अलंकारों के लक्षण, उदाहरण, काव्यदोष आदि का वर्णन है तथा ‘रसिकप्रिया’ में रस, उसके अंगों (भाव, विभाव, अनुभाव आदि), नायिका-भेद आदि का वर्णन है। इन ग्रन्थों में, केशव का कवि हृदय देखा जा सकता है, जिनके कारण ही केशव को रीतिकालीन काव्य-परम्परा में प्रथम आचार्य का पद प्राप्त हुआ।

रस-योजना – केशवदास ने श्रृंगार, वीर, करुण और शान्त रसों का अधिक प्रयोग किया है। अन्य रस भी यत्र-तत्र दृष्टिगोचर हो जाते हैं। इनमें भी श्रृंगार रस कवि को अधिक प्रिय हैं। शृंगारपरक अनुभावों का कवि ने सहज, स्वाभाविक और आकर्षक वर्णन किया है। वीर रस भी कवि को प्रिय है। रामचन्द्रिका में ऐसे अनेक ओजपूर्ण प्रसंग देखे जा सकते हैं। कारुणिक प्रसंगों का भी कवि ने बड़ा ही सुन्दर चित्रण किया है। लव की वस्तुत: उनका हृदय प्रकृति की सुषमा में ने रमकर मानव-सौन्दर्य में अधिक रमा है।

संवाद-योजना – केशव की प्रसिद्धि रामचन्द्रिका’ की संवाद-योजना के कारण है। केशव दरबारी कवि थे, इसलिए इन्हें राजनीतिक दावपेंच के साथ उत्तर-प्रत्युत्तर देने का ढंग खूब आता था। फलतः उनके संवाद बड़े नाटकीय बन पड़े हैं। उनमें वाग्वैदग्ध्य (वाणी की चतुरता) खूब मिलता है। इनमें पात्रों के अनुरूप क्रोध, उत्साह आदि की व्यंजना भी सुन्दर हुई है। संवादों की भाषा भी अलंकारों के बोझ से रहित सरल और स्वाभाविक है। इसीलिए इनके संवाद बड़े ही हृदयग्राही बन गये हैं। केशव के परशुराम-राम संवाद और अंगद-रावण-संवाद जैसे सुन्दर संवाद हिन्दी के अन्य प्रबन्धकाव्यों में नहीं मिलते।

पाण्डित्य-प्रदर्शन – केशव अपने पाण्डित्य की धाक जमाना चाहते थे। संस्कृत काव्य की उक्तियों को उन्होंने अपने काव्य में सँजोया है, किन्तु भाषा की असमर्थता के कारण वे उन्हें स्पष्ट नहीं कर सके।

कविएवं आचार्य – प्रबन्धकाव्य के अतिरिक्त केशव ने मुक्तककाव्य भी रचा है।’कविप्रिया’ में मुख्य रूप से अलंकारों के लक्षण, उदाहरण, काव्यदोष आदि का वर्णन है तथा ‘रसिकप्रिया’ में रस, उसके अंगों (भाव, विभाव, अनुभाव आदि), नायिका-भेद आदि का वर्णन है। इन ग्रन्थों में, केशव का कवि हृदय देखा जा सकता है, जिनके कारण ही केशव को रीतिकालीन काव्य-परम्परा में प्रथम आचार्य का पद प्राप्त हुआ।

रस-योजना – केशवदास ने शृंगार, वीर, करुण और शान्त रसों का अधिक प्रयोग किया है। अन्य रस भी यत्र-तत्र दृष्टिगोचर हो जाते हैं। इनमें भी शृंगार रस कवि को अधिक प्रिय हैं। शृंगारपरक अनुभावों का कवि ने सहज, स्वाभाविक और आकर्षक वर्णन किया है। वीर रस भी कवि को प्रिय है। रामचन्द्रिका में ऐसे अनेक ओजपूर्ण प्रसंग देखे जा सकते हैं। कारुणिक प्रसंगों का भी कवि ने बड़ा ही सुन्दर चित्रण किया है। लव की मूच्र्छावस्था का समाचार पाकर सीता व्याकुल होकर अचेत हो जाती हैं। उनकी अवस्था को व्यक्त करती हुई कवि की उक्ति है

मनो चित्रे की पुत्तिका, मन क्रम वचन समेत।

इस प्रकार श्रृंगारे, करुण एवं वीर रस के विविध दृश्य केशव ने अंकित किये हैं, परन्तु रस-परिपाक की दृष्टि से केशव को अधिक सफलता नहीं मिली है।

कलापक्ष की विशेषताएँ
केशव काव्यकला के मर्मज्ञ थे, इस कारण उनको कलापक्ष बहुत पुष्ट है। अलंकारवादी आचार्य होने के कारण उन्होंने इस ओर विशेष ध्यान भी दिया है।

भाषा – केशव संस्कृत के प्रकाण्ड पण्डित थे। वे बुन्देलखण्ड के रहने वाले थे, पर उन्होंने अपनी कविताएँ ब्रजभाषा में ही लिखी हैं, जिस पर संस्कृत, बुन्देलखण्डी, अवधी, अरबी-फारसी आदि कितनी ही तत्कालीन प्रचलित भाषाओं का प्रभाव परिलक्षित होता है। ‘रामचन्द्रिका’ की भाषा प्राय: संस्कृत की तत्सम शब्दावली के अत्यधिक प्रयोग से बोझिल है, पर रसिकप्रिया’ की भाषा बड़ी सरल, सरस और सुन्दर है। केशव की भाषा में अभिधा का ही प्राधान्य है। इन्होंने अभिधा के द्वारा ही अपनी कविता में चमत्कार उत्पन्न करने की चेष्टा की है तथा लाक्षणिक प्रयोगों का सहारा कम लिया है। पाण्डित्य-प्रदर्शन की प्रवृत्ति के कारण केशव की भाषा में संस्कृत के ऐसे-ऐसे शब्दों का प्रयोग मिलता है, जिसे संस्कृत का पण्डित ही समझ सकता है। इनके संवादों की भाषा प्राय: ओजस्विनी और प्रवाहपूर्ण है।

अलंकार-विधान – केशव अलंकारों के विधान में अत्यधिक कुशल थे; क्योंकि वे थे ही अलंकारवादी आचार्य इनके काव्य में काव्यशास्त्र में गिनाये गये लगभग सभी अलंकार मिलते हैं, पर इन्हें चमत्कारप्रधान अलंकार प्रिय थे। एक ही पद में अनेक अलंकारों को भर देना केशवदास के लिए बायें हाथ का खेल था। आलंकारिक सौन्दर्य रामचन्द्रिका’ की प्रमुख विशेषता है। केशवकाव्य में मुख्य रूप से यमक, श्लेष, अनुप्रास, उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक, सन्देह आदि अलंकार तो कदम-कदम पर मिलते हैं। इनके अतिरिक्त परिसंख्या, विरोधाभास, विभावना, अतिशयोक्ति आदि अलंकार भी यत्र-तत्रे भरे पड़े हैं।

छन्द-विधान – पिंगलशास्त्र पर केशव का बड़ा अधिकार था। इस विषय पर उन्होंने ‘रामालंकृत-मंजरी’ नामक एक ग्रन्थ की रचना भी की है। वैसे ‘रामचन्द्रिका’ भी पिंगलशास्त्र का ग्रन्थ मालूम पड़ता है; क्योंकि उसमें एकाक्षरी से लेकर अनेकाक्षरी तथा मात्रिक एवं वर्णिक दोनों प्रकार के छन्दों का प्रयोग किया गया है। इसमें पग-पग पर छन्द-परिवर्तन दिखाई पड़ता है।

साहित्य में स्थान – केशव के काव्य में भावपक्ष अवश्य हीन है, परन्तु उनका कलापक्ष सर्वाधिक पुष्ट है। इनके , किसी प्रशंसक ने तो ‘सूर-सूर तुलसी ससी, उडुगन केशवदास’ लिखकर इन्हें हिन्दी कवियों में सूर-तुलसी के बाद तीसरे स्थान का अधिकारी बताया है। इतना न मानें तो भी यह तो नि:संकोच कहा ही जा सकता है कि “केशवदास हिन्दी के समर्थ कवियों में से एक हैं।”

पद्यांशों पर आधारित प्रश्नोत्तर

प्रश्न-दिए गए पद्यांशों को पढ़कर उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए

स्वयंवर-कथा

प्रश्न 1:
पावक पवन मणिपन्नग पतंग पितृ,
जेते ज्योतिवंत जग ज्योतिषिन गाये हैं ।
असुर प्रसिद्ध सिद्ध तीरथ सहित सिंधु,
केशव चराचर जे वेदन बताये हैं ।।
अजर अमर अज अंगी औ अनंगी सब,
बरणि सुनावै ऐसे कौन गुण पाये हैं ।
सीता के स्वयंवर को रूप अवलोकिबे को,
भूपन को रूप धरि विश्वरूप आये हैं ।।

(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम बताइट।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) सीता-स्वयंवर देखने कौन-कौनं आए हुए हैं?
(iv) ‘पवन’ शब्द का सन्धि-विच्छेद कीजिए।
(v) ‘अजर अमर अज अंगी औ अनंगी सब पद्यांश में कौन-सा अलंकार होगा?
उत्तर:
(i) प्रस्तुत पद महाकवि केशवदास द्वारा रचित ‘रामचन्द्रिका’ से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘स्वयंवर-कथा’ शीर्षक काव्यांश से उद्धृत है।
अथवा निम्नवत् लिखिए
शीर्षक का नाम – स्वयंवर-कथा।
कवि का नाम – केशवदास।।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या – सीता के स्वयंवर का दृश्य देखने के लिए समस्त संसार के सभी
चर-अचर रूपवान राजाओं का आकार धारण करके आये हैं। इन प्राणियों में अग्नि, वायु, मणियों वाले शेष, वासुकि आदि सर्प, पक्षी, पितृगण (मनुष्यों के पितृलोकवासी पितर) आदि जितने भी ज्योतियुक्त प्राणियों का उल्लेख ज्योतिषियों ने किया है; उस स्वयंवर में उपस्थित थे।
(iii) सीता-स्वयंवर देखने के लिए समस्त संसार के सभी चर-अचर रूपवान राजाओं का रूप धारण करके आए हुए हैं।
(iv) ‘पवन’ का सन्धि-विच्छेद है-पो + अन।
(v) अनुप्रास अलंकार।।

विश्वामित्र और जनक की भेंट

प्रश्न 1:
केशव ये मिथिलाधिप हैं जग में जिन कीरतिबेलि बयी है ।
दान-कृपान-विधानन सों सिगरी बसुधा जिन हाथ लयी है ।
अंग छ सातक आठक सों भव तीनिहु लोक में सिद्धि भयी है।
वेदत्रयी अरु राजसिरी परिपूरणता शुभ योगमयी है ।।

(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम बताइट।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) विश्वामित्र जी राम को किसका परिचय दे रहे हैं?
(iv) जनक जी ने किसके द्वारा सारी पृथ्वी को अपने वश में कर लिया है?
(v) वेद के कितने अंग होते हैं?
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद आचार्य केशवदास के महाकाव्य ‘रामचन्द्रिका’ से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘विश्वामित्र और जनक की भेंट’ शीर्षक काव्यांश से उद्धृत है।
अथवा निम्नवत् लिखिए
शीर्षक का नाम – विश्वामित्र और जनक की भेट।
कवि का नाम – केशवदास।
[संकेत-इस शीर्षक के शेष सभी पद्यांशों के लिए प्रश्न (i) का यही उत्तर लिखना है।]

(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या – इस पद्यांश में विश्वामित्र जी ने श्रीराम को महाराज जनक का परिचय
देते हुए बताया है कि हे रामचन्द्र! देखो ये मिथिला-नरेश (जनक) हैं, जिन्होंने संसार में अपनी कीर्ति की बेल लगायी है; अर्थात् संसार भर में इनका यश फैला हुआ है, जैसे बेल की सुगन्धि चारों ओर फैलती है, वैसे ही इनका यश भी चारों ओर फैल रहा है।
(iii) विश्वामित्र जी राम को जनक जी का परिचय दे रहे हैं।
(iv) जनक जी ने दानवीरता और युद्धवीरता द्वारा सारी पृथ्वी को अपने वश में कर लिया है।
(v) वेद के छ: अंग होते हैं।

प्रश्न 2:
प्रथम टंकोर झुकि झारि संसार मद,
चंड कोदंड रह्यौ मंडि नवे खंड को ।।
चालि: अचला अचल घालि दिगपाल बल,
पालि ऋषिराज के बचन परचंड को ।।
सोधु दै ईश को, बोधु जगदीश को,
क्रोध उपजाई भृगुनंद बरिबंड को ।
बाधि वर स्वर्ग को, साधि अपवर्ग, धनु
भंग को शब्द गयो भेदि ब्रह्मड को ।।

(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम बताइए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) किसकी ध्वनि सारे संसार का मद हटाकर नवखण्डों में गूंज उठी?
(iv) धनुष की टंकार ने विष्णु को क्या बोध कराया?
(v) ऋषिराज’ शब्द में कौन-सा समास है?
उत्तर:
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या – उस प्रचण्ड धनुष की प्रथम टंकोर (टंकार) ने क्रुद्ध होकर सारे संसार का मद हटा दिया (गर्व चूर कर दिया) और नवों खण्डों में यह ध्वनि पूँज उठी।
(iii) प्रचंड धनुष की टंकार ने क्रुद्ध होकर सारे संसार को मद हटा दिया और नवों खण्डों में यह ध्वनि पूँज उठी।
(iv) धनुष की टंकार ने विष्णु को.यह बोध कराया कि उनकी इच्छा के अनुसार संसार का कार्य हो रहा है।
(v) ऋषिराज’ शब्द में ‘तत्पुरुष समास’ है।

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