Pedagogy 11

UP Board Solutions for Class 11 Pedagogy Chapter 19

UP Board Solutions for Class 11 Pedagogy Chapter 19 Physical Development (शारीरिक विकास)

UP Board Solutions for Class 11 Pedagogy Chapter 19

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
शारीरिक विकास का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

शारीरिक विकास का अर्थ
(Meaning of Physical Development)

डॉ० सीताराम जायसवाल का यह कथन उल्लेखनीय है, “बालक के विकास का विस्तृत अध्ययन शिक्षा मनोविज्ञान में किया जाता है। इसके अन्तर्गत विकास के सभी पक्षों का अध्ययन किया जाता है। बालक का शैक्षिक विकास और व्यावहारिक ज्ञान, उसकी शारीरिक गति तथा विकास से प्रभावित होते हैं।” शरीर के विभिन्न अंगों की वृद्धि, उनकी परिपक्वता तथा क्रियाशीलता शारीरिक विकास के अन्तर्गत आती। है। बालक के शरीर के विभिन्न अंगों के आकार व भार में वृद्धि और उनकी क्रियाशीलता में होने वाले परिवर्तनों तथा उनकी परिपक्वता की प्रक्रिया ही शारीरिक विकास है। मानवीय विकास की सम्पूर्ण प्रक्रिया में शारीरिक विकास का सर्वाधिक महत्त्व है। वास्तव में यदि बालक को शारीरिक विकास सामान्य एवं सुचारु हो, तो विकास के अन्य पक्ष भी सामान्य ही रहते हैं। शारीरिक विकास के असामान्य हो जाने की स्थिति में विकास के अन्य पक्षों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

शारीरिक विकास की प्रमुख विशेषताएँ
(Major Features of Physical Development)

शारीरिक विकास की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

1. क्रमिक व धीमा विकास- गर्भाधान के पश्चात् ही शिशु का शारीरिक विकास प्रारम्भ हो जाता है। इस अवस्था में विकास की गति बहुत मन्द होती है, लेकिन विकास एक निश्चित क्रम में ही होता है।

2. शारीरिक विकास का चक्र- शरीर का विकास एकसमान गति से नहीं होता है। शरीरशास्त्रियों के अनुसार जन्म से प्रथम दो वर्षों तक शारीरिक विकास अत्यधिक तीव्र गति से होता है। इसके बाद 11 वर्ष की आयु तक विकास की गति धीमी रहती है। 11 से 15 वर्ष की आयु के मध्य पुनः विकास तीव्र गति से होता है। 16 से 18 वर्ष की आयु में विकास की गति पुन: धीमी पड़ जाती है। जब विकास की गति धीमी होती है, उस समय हट्ठियों व मांसपेशियों आदि का पुष्टिकरण होता है। इसी कारण विकास के साथ-साथ अंग मजबूत और पुष्ट होते चलते हैं।

3. शारीरिक विकास की दिशा- मनोवैज्ञानिकों के अनुसार बालक के विभिन्न अंगों का विकास एक निश्चित क्रमानुसार होता है। इस क्रमिक विकास को सिर-पुच्छीय दिशा कहा जाता है। गर्भ से पहले शिशु का सिर विकसित होता है और फिर धड़ तथा अन्त में हाथ-पैरों का विकास होता है। जन्म के पश्चात् बालक के अंगों की गति और क्रियाओं को विकास भी इसी क्रम से होता है।

4. शारीरिक विकास में अनियमितता- शरीर के सभी अंग एक साथ नहीं बढ़ते हैं और न ही विकसित होते हैं। सभी अंगों का विकास भिन्न-भिन्न समय से होता है; जैसे—सिर का विकास सर्वप्रथम होता है और वह पहले ही परिपक्व भी हो जाता है। इसके अलावा जिन अंगों की एक ही समय में वृद्धि होती है, उनमें भी पृथक्-पृथक् दर से वृद्धि होती है। यही कारण है कि बालक और प्रौढ़ की आँखों के आकार में कोई विशेष अन्तर नहीं होता है, जबकि हाथ-पैर आदि अंगों में काफी अन्तर होता है।

5. लिंग-भेद का प्रभाव- शारीरिक विकास की गति और स्वरूप पर लिंग-भेद का काफी प्रभाव पड़ता है। इसलिए लड़के और लड़कियों का शारीरिक विकास भिन्न-भिन्न रूप में होता है। किशोरावस्था में लड़कों की तुलना में लड़कियों का शारीरिक विकास अधिक तीव्रता से होता है।

6. शारीरिक विकास का बालक के व्यवहार पर प्रभाव- शारीरिक विकास का बालक के व्यवहार पर भी प्रभाव पड़ता है। यदि बालक हृष्ट-पुष्ट होता है तो बड़े होने पर उसमें नेतृत्व करने तथा दूसरों पर अपना प्रभुत्व जमाने की प्रवृत्ति आ जाती है। उसमें अभिमान की भावना आ जाती है और वह सबसे अकड़ कर बोलने लगता है। इसके विपरीत दुर्बल शरीर का बालक डरपोक बन जाता है और उसमें अन्य बालकों से दबकर रहने की प्रवृत्ति आ जाती है।

प्रश्न 2
शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
या
बालकों के शारीरिक विकास पर किन-किन कारकों का प्रभाव पड़ता है? किन्हीं दो कारकों का उल्लेख कीजिए।
या
शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाले कौन-कौन से कारक हैं? इन कारकों का ज्ञान एक बाल-मनोवैज्ञानिक के लिए किस प्रकार लाभदायक है।
या
बाल्यावस्था में शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाले कारकों की सविस्तार व्याख्या कीजिए।
उत्तर:

शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक
(Factors Influencing Physical Development)

शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाले मुख्य कारकों का संक्षिप्त विवेचन निम्नलिखित है|

1. वंशानुक्रम- स्वस्थ माता-पिता की सन्तान भी स्वस्थ होती है। जो माता-पिता विभिन्न रोगों से ग्रस्त होते हैं और शारीरिक दृष्टि से दुर्बल होते हैं, उनके बच्चे भी शारीरिक दृष्टि से दुर्बल ही होते हैं। अत: उनका शारीरिक विकास भी ठीक प्रकार से नहीं हो पाता।

2. वातावरण- बालक के शारीरिक विकास में वातावरण का विशेष योगदान रहता है। खुली हवां, पर्याप्त धूप और शान्त तथा स्वच्छ वातावरण शारीरिक विकास के लिए पूर्णतया अनुकूल होता है। इसके विपरीत जो बालक प्रकाशहीन, सीलन भरे तथा तंग मकानों में रहते हैं, उनका शारीरिक विकास ठीक प्रकार से नहीं हो पाता और वे प्रायः विभिन्न रोगों से ग्रस्त रहते हैं। क्रो एवं क्रो के अनुसार, बालक के प्राकृतिक विकास में वातावरण के तत्त्व सहायक या बाधक होते हैं।”

3. पौष्टिक भोजन- पौष्टिक भोजन का भी शारीरिक विकास पर विशेष प्रभाव पड़ता है। पौष्टिक भोजन से बालक के विभिन्न अंगों का उचित विकास होता है। प्रत्येक बालक का वजन, ऊचाई तथा शारीरिक शक्ति बहुत कुछ पौष्टिक भोजन पर निर्भर करते हैं। जिन बालकों को पौष्टिक भोजन मिलता है, उनका विकास भी समुचित होता रहता है। पौष्टिक भोजन के अभाव में बालक के विभिन्न अंगों का समुचित विकास नहीं होता और अनेक रोग आक्रमण कर देते हैं।

4. नियमित दिनचर्या- यमित दिनचर्या शारीरिक विकास का प्रमुख तत्त्व है। जो बालक समय से सोते-उठते हैं, समय से भोजन करते एवं खेलते हैं, उनका शारीरिक विकास अन्य बालकों की अपेक्षा उत्तम ढंग से होता है। नियमित दिनचर्या स्वास्थ्य की आधारशिला है।

5. व्यायाम और खेलकूद- व्यायाम और खेलकूद शारीरिक विकास के लिए परम आवश्यक हैं। व्यायाम और खेलकूद से शरीर के रक्त का परिभ्रमण उचित ढंग से होता है तथा मांसपेशियों में दृढ़ता आती है।

6. निद्रा और विश्राम- शरीर के समुचित विकास के लिए निद्रा और विश्राम का सर्वाधिक महत्त्व है। शैशवकाल में शिशु का अधिकांश समय सोने में ही व्यतीत होता है। बालक और किशोरों को भी निद्रा के लिए
पर्याप्त अवसर मिलना चाहिए। आवश्यकता से अधिक देर तक पढ़ना, बालकों और किशोरों के लिए हानिकारक सिद्ध हुआ है। विभिन्न शोध कार्यों से ज्ञात हुआ है कि यह उनके शारीरिक विकास में बाधा उत्पन्न करता है।

7. सुरक्षा की भावना- यदि बालक में सुरक्षा की भावना नहीं है तो उसका शारीरिक विकास उचित ढंग से नहीं होगा। सुरक्षा की भावना के अभाव में बालक भय और चिन्ता से ग्रस्त हो जाता है। इस प्रकार उसमें आत्मविश्वास की भावना लुप्त हो जाती है। परिणामस्वरूप उसका विकास स्वाभाविक ढंग से नहीं हो पाता।

8. सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार- बालक की मन:स्थिति का उसके स्वास्थ्य पर विशेष प्रभाव पड़ता है। जिन बालकों को ताड़ना और उपेक्षापूर्ण व्यवहार मिलता है, उनका शारीरिक विकास उचित ढंग से नहीं हो पाता। अनाथ बालक इसके ज्वलन्त उदाहरण हैं। शिक्षक को यह बात ध्यान में रखकर बालकों के साथ यथासम्भव प्रेम और सहानुभूति का व्यवहार करना चाहिए।

9. दोषपूर्ण सामाजिक परम्पराएँ- अल्प आयु में बालकों और बालिकाओं का विवाह हो जाना शारीरिक विकास के लिए घातक है। जिन बालक-बालिकाओं का विवाह 13 या 15 वर्ष की आयु में हो जाता है, उनका स्वास्थ्य तीव्रता से नष्ट होने लगता है।

10. अन्य कारक- शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाले कुछ अन्य कारक इस प्रकार हैं।

  1. कोई दुर्घटना या आकस्मिक बीमारी।
  2. दूषित और अस्वस्थ जलवायु।
  3. बालकों में हस्तमैथुन जैसे कुटेवों का विकसित होना।

उपर्युक्त विवरण द्वारा स्पष्ट है कि बालक के शारीरिक विकास को विभिन्न कारक प्रभावित करते हैं। इन कारकों में से किसी एक या अधिक कारकों की अवहेलना हो जाने अथवा उनमें असामान्यता ओ जाने की स्थिति में बालक के शारीरिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। शारीरिक विकास का घनिष्ठ सम्बन्ध बालक के विकास के अन्य सभी पक्षों से भी होता है; अत: शारीरिक विकास के अवरुद्ध हो जाने अथवा असामान्य हो जाने की दशा में बालक के सम्पूर्ण विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाले सभी कारकों का ज्ञान बाल-मनोवैज्ञानिकों के लिए आवश्यक एवं लाभकारी है। बाल-मनोवैज्ञानिक इन कारकों को सामान्य रखकर बालक के सम्पूर्ण विकास को सुचारु बना सकता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
शैशवावस्था में होने वाले शारीरिक विकास का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:

शैशवावस्था में शारीरिक विकास
(Physical Development in Infancy)

विकास की प्रथम अवस्था को शैशवावस्था कहते हैं। शैशवावस्था में होने वाले शारीरिक विकास का विवरण निम्नवर्णित है-

1. शिशु का भार- गर्भ से बाहर आने के पश्चात् शिशु का भार 6.5 पौण्ड से 8 पौण्ड तक का होता है। बालक 9 से 9.5 पौण्ड तक के भी उत्पन्न हुए हैं। बालिकाओं का भार बालकों से कम होता है। प्रथम 5 वर्ष में बालक का विकास जिस तीव्रता से होता है, उस अनुपात में फिर नहीं होता। प्रथम 6 माह में बालक को भार दुगुना और वर्ष भर में तीन-गुना हो जाता है। पाँचवें वर्ष के अन्त में शिशु का भार 38 एवं 43 पौण्ड के बीच में हो जाता है।

2. शिशु की लम्बाई- जन्म के समय शिशु की लम्बाई 20 इंच के लगभग होती है। लड़कों की लम्बाई लड़कियों से अधिक होती है, परन्तु बाद में लड़कियों की लम्बाई लड़कों से अधिक हो जाती है। प्रथम दो वर्ष में शिशु की लम्बाई 10 इंच और दूसरे वर्ष में 4 या 5 इंच बढ़ती है। तीसरे से पाँचवें वर्ष तक बालक की लम्बाई बढ़ने की गति पूर्व की अपेक्षा कम रहती है।

3. सिर और मस्तिष्क- नवजात शिशु के सिर की लम्बाई उसके शरीर की सम्पूर्ण लम्बाई की 1/4 होती है। प्रथम दो वर्षों में सिर अत्यन्त तीव्रता से विकसित होता है और बाद में विकास की गति मन्द हो जाती है। जन्म के समय शिशु के मस्तिष्क का भार 350 ग्राम होता है। मस्तिष्क का भार दो वर्ष में दुगुना और पाँच वर्ष में लगभग 1000 ग्राम हो जाता है।

4. मांसपेशियाँ- जन्म के समय शिशु की मांसपेशियों का भार सम्पूर्ण शरीर के कुल भार का 23.4 प्रतिशत होता है। इस भार का विकास धीरे-धीरे होता है। भुजाएँ दो वर्ष में प्राय: दो-गुनी तथा अंगों का विकास डेढ़-गुना हो जाता है।

5. अस्थियाँ- नवजात शिशु की अस्थियाँ कोमल तथा लचीली होती हैं। पर्याप्त काल तक खोपड़ी की विभिन्न अस्थियाँ ठीक प्रकार से नहीं जुड़ पातीं। एक वर्ष के अन्त में ऊपर की अस्थियों को छोड़कर शेष अस्थियाँ जुड़ जाती हैं। दूसरे वर्ष ऊपर की अस्थियाँ भी जुड़ जाती हैं। एक नवजात शिशु की अस्थियों की संख्या कुल मिलाकर 212 के लगभग होती है। कैल्सियम, फॉस्फेट की सहायता से अस्थियों में दिन-प्रतिदिन कड़ापन आता जाता है। यह प्रक्रिया अस्थीकरण कहलाती है। बालकों की अपेक्षा बालिकाओं का अस्थीकरण तीव्रता से होता है।

6. दाँत- लगभग 6 से 8 माह के पश्चात् शिशु के दूध के दाँत चमकते हैं। कमजोर शिशु के दाँत देर से निकलते हैं। प्रारम्भ में नीचे के अगले दाँत निकलते हैं। जो वर्ष में 8 के लगभग हो जाते हैं। चार वर्ष की आयु में बालक के समस्त दाँत निकल आते हैं।

7. अन्य अंगों का विकास- प्रथम माह में नवजात शिशु के हृदय की धड़कन एक मिनट में 140 बार होती है। जैसे-जैसे हृदय बड़ा होता जाता है, वैसे-वैसे हृदय की धड़कन में स्थिरता आती जाती है। 6 वर्ष तक शिशु के शरीर के ऊपरी भाग का पर्याप्त विकास हो जाता है। शिशुओं के यौनांगों का विकास धीमी गति से होता है। तीन वर्ष के पश्चात् शिशु के शरीर और मस्तिष्क में सन्तुलन प्रारम्भ हो जाता है। मस्तिष्क का शरीर के अंगों पर नियन्त्रण स्थापित हो जाता है। हाथों और पैरों में दृढ़ता आ जाती है। पाँच वर्ष के अन्त तक बालक पर्याप्त आत्म-निर्भर हो जाता है और वह कुशलता तथा स्वतन्त्रता से कार्य करना प्रारम्भ कर देता है।

प्रश्न 2.
बाल्यावस्था में होने वाले शारीरिक विकास का सामान्य विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:

बाल्यावस्था में शारीरिक विकास
(Physical Development in Childhood)

शैशवावस्था के उपरान्त प्रारम्भ होने वाली अवस्था को बाल्यावस्था कहते हैं। बाल्यावस्था में होने वाले शारीरिक विकास का सामान्य विवरण निम्नलिखित है|

1. भार- इस अवस्था में बालक का भार पर्याप्त तीव्रता से बढ़ता है। 12 वर्ष के अन्त तक बालक का भार 80 और 95 पौण्ड के मध्य होता है। 10 वर्ष तक बालकों का भार अधिक बढ़ता है। तत्पश्चात् बालिकाओं के भार में वृद्धि होती है, क्योंकि उनकी किशोरावस्था जल्दी आती है।

2. लम्बाई- बाल्यावस्था में लम्बाई अधिक तीव्रता से नहीं बढ़ती। 6 से 12 वर्ष के बालक की लम्बाई 3 या 4 इंच तक ही बढ़ती है।

3. अस्थियाँ- इस अवस्था में अस्थियों की संख्या में वृद्धि हो जाती है। बाल्यावस्था में अस्थीकरण तीव्रता से होता है तथा बालक की अस्थियों में पर्याप्त दृढ़ता आ जाती है। बालिकाओं का अस्थीकरण दो वर्ष पूर्व हो जाता है।

4. सिर और मस्तिष्क- इस अवस्था में सिर के आकार में पर्याप्त अन्तर आ जाता है। 5 वर्ष के बालक का सिर 90 प्रतिशत प्रौढ़ के आकार का हो जाता है तथा 10 वर्ष की आयु में 95 प्रतिशत होता है। इस अवस्था में मस्तिष्क का भी पर्याप्त विकास हो जाता है।

5. मांसपेशियाँ- बाल्यावस्था में मांसपेशियों का विकास धीरे-धीरे होता है। 8 वर्ष के बालक की मांसपेशियों का भार शरीर के कुल भार का 27 प्रतिशत हो जाता है। बाल्यावस्था में बालिकाओं की मांसपेशियों में बालक की अपेक्षा अधिक वृद्धि होती है।

6. अन्य अंगों का विकास- इस अवस्था में हृदय की धड़कन निरन्तर कम होती जाती है। 6 वर्ष के बालक के हृदय की धड़कन एक मिनट में 100 बार होती है, जब कि 12 वर्ष में यह घटकर 85 रह जाती है। बालकों के कन्धे पर्याप्त चौड़े हो जाते हैं तथा कूल्हे पतले हो जाते हैं और पैरों में सीधापन व लम्बापन आ जाता है। इसके विपरीत बालिकाओं के कन्धे पतले और कूल्हे चौड़े हो जाते हैं। पैर अन्दर की तरफ झुके होते हैं।

प्रश्न 3
किशोरावस्था में होने वाले शारीरिक विकास का सामान्य विवरण प्रस्तुत कीजिए।
या
बालक अथवा बालिकाओं में किशोरावस्था में होने वाले शारीरिक विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

किशोरावस्था में शारीरिक विकास
(Physical Development in Adolescence)

किशोरावस्था में अनेक क्रान्तिकारी शारीरिक परिवर्तन होते हैं। इनमें मुख्य परिवर्तन निम्नलिखित होते हैं-

1. भार- किशोर बालक का भार बालिकाओं की अपेक्षा अधिक तीव्रता से बढ़ता है। 18 वर्ष तक बालकों का भार बालिकाओं से लगभग 25 पौण्ड अधिक हो जाता है।

2. लम्बाई- इस अवस्था में बालकों तथा बालिकाओं की लम्बाई तीव्रता से बढ़ती है, परन्तु यौवन में प्रवेश करते-करते लड़कों की ऊँचाई लड़कियों से 3 से 4 इंच अधिक होती है। बालिकाओं की ऊँचाई 16 वर्ष की अवस्था में अपनी चरम सीमा पर पहुँच जाती है।

3. अस्थियाँ- बाल्यावस्था में अस्थियों में जो लचीलापन होता है, वह समाप्त हो जाता है और उनमें दृढ़ता आ जाती है। दूसरे शब्दों में, अस्थीकरण की प्रक्रिया पूर्ण हो जाती है। बालिकाओं को अस्थीकरण बालकों से दो वर्ष पूर्व हो जाता है।

4. सिर और मस्तिष्क- इस अवस्था में भी सिर और मस्तिष्क का विकास जारी रहता है। 16 वर्ष की आयु तक सिर का विकास. पूर्ण हो जाता है। मस्तिष्क का भार 1200 से 1400 ग्राम के मध्य में होता है। मस्तिष्क में पर्याप्त परिपक्वती आ जाती है।

5. मांसपेशियाँ- किशोरावस्था में मांसपेशियों का विकास तीव्र गति से होता है। 16 वर्ष की आयु में मांसपेशियों का भार कुल शरीर के भार का लगभग 44 प्रतिशत हो जाता है।

6. दाँत- किशोरावस्था में बालकों और बालिकाओं के लगभग समस्त स्थायी दाँत निकल आते हैं।

7. अन्य अंगों का विकास- हृदय की धड़कन में पूर्व की अपेक्षा पर्याप्त मन्दी आ जाती है। प्रौढ़ अवस्था में प्रवेश करते समय किशोर की धड़कन एक मिनट में 72 बार होती है। बालकों की मुखाकृति में पर्याप्त परिवर्तन हो जाता है। बालकों की आवाज भारी होने लगती है, परन्तु बालिकाओं की आवाज में कोमलता रहती है। लड़कों के कन्धे पर्याप्त चौड़े हो जाते हैं। बालिकाओं के कूल्हों की चौड़ाई बढ़ जाती है। बालकों के दाढ़ी-मूंछ निकल आती है। गुप्तांगों में पर्याप्त वृद्धि होती है। किशोरों में स्वप्नदोष और बालिकाओं में मासिक धर्म प्रारम्भ हो जाता है। उनके स्तनों का पर्याप्त विकास हो जाता है तथा बगल और गुप्तांग पर बाल उगने आरम्भ हो जाते हैं।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
सुचारु शारीरिक विकास के लिए शिक्षा के स्वरूप का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
बालक के सुचारु शारीरिक विकास के लिए बालक की शिक्षा के उचित स्वरूप को अपनाना चाहिए। बालक की शिक्षा में खेल एवं व्यायाम का समुचित समावेश होना चाहिए। सुचारु शारीरिक विकास के लिए शिक्षा की व्यवस्था व्यक्तिगत शारीरिक गुणों को ध्यान में रखकर ही की जानी चाहिए। शारीरिक रूप से दुर्बल अथवा विकलांग बालकों की शिक्षा की व्यवस्था अलग से की जानी चाहिए। सुचारु शारीरिक विकास के लिए बच्चों के उचित पोषण का भी ध्यान रखना चाहिए। इसके लिए शिक्षकों एवं अभिभावकों को परस्पर सहयोग से काम करना चाहिए। इसके अतिरिक्त शिक्षकों का दायित्व है कि वे बच्चों के स्वास्थ्य एवं आदतों का भी ध्यान रखें। समय-समय पर विद्यालय में छात्रों के स्वास्थ्य का परीक्षण होना चाहिए।

प्रश्न 2
शारीरिक विकास पर आहार एवं पोषण का क्या प्रभाव पइता है?
उत्तर:
बालक के शारीरिक विकास पर आहार एवं पोषण का विशेष प्रभाव पड़ता है। यदि बालक को पर्याप्त मात्रा में सन्तुलित एवं पौष्टिक आहार उपलब्ध होता रहता है तो उसका शारीरिक विकास सुचारु रूप में होता है। वास्तव में सन्तुलित आहार उपलब्ध होने की दशा में बालक विभिन्न अभावजनित रोगों का शिकार नहीं होता तथा उसका स्वास्थ्य अच्छा रहता है। यही नहीं सन्तुलित एवं पौष्टिक आहार ग्रहण करने से बालक की रोग-प्रतिरोधक क्षमता में भी उल्लेखनीय विकास होता है तथा परिणामस्वरूप बालक स्वस्थ रहता है। अच्छे स्वास्थ्य वाले बालक का शारीरिक विकास सामान्य होता है। यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि सन्तुलित आहार उपलब्ध न होने की दशा में बालक का शारीरिक विकास प्रायः अवरुद्ध हो जाता है।

निश्चित उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
बालक के शारीरिक विकास से क्या आशय है?
उत्तर:
बालक के शरीर के समस्त अंगों की वृद्धि तथा उनकी परिपक्वता एवं क्रियाशीलता में क्रमशः होने वाले परिवर्तन को शारीरिक विकास के रूप में जाना जाता है।

प्रश्न 2
बालक के विकास के विभिन्न पक्षों में से शारीरिक विकास को सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण क्यों माना जाता है?
उत्तर:
बालक के विकास के विभिन्न पक्ष किसी-न-किसी रूप में शारीरिक विकास पर ही निर्भर करते हैं। अत: शारीरिक विकास को सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है।

प्रश्न 3
जीवन के किस काल में शारीरिक विकास की दर सर्वाधिक होती है?
उत्तर:
जन्म के उपरान्त शैशवकाल में शारीरिक विकास की दर सर्वाधिक होती है।

प्रश्न 4
शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक कौन-कौन-से हैं?
उत्तर:
शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक हैं-

  1. वंशानुक्रम
  2. वातावरण
  3. पौष्टिक भोजन
  4. नियमित दिनचर्या
  5. निद्रा और विश्राम तथा
  6. सुरक्षा की भावना

प्रश्न 5
सुचारु शारीरिक विकास के लिए शिक्षा में किन गतिविधियों का समावेश होना आवश्यक है?
उत्तर:
सुचारु शारीरिक विकास के लिए शिक्षा में खेल एवं व्यायाम जैसी गतिविधियों का समावेश होना आवश्यक है।

प्रश्न 6
दुर्बल स्वास्थ्य एवं विकलांगता का शारीरिक विकास पर किस प्रकार का प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
दुर्बल स्वास्थ्य एवं विकलांगता का शारीरिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। प्रश्न? निम्नलिखित कथन सत्य हैं अथवा असत्य

  1. शरीर के अंगों में आने वाली परिपक्वता शारीरिक विकास को दर्शाती है।
  2. शारीरिक विकास का विकास के अन्य पक्षों से कोई सम्बन्ध नहीं है।
  3. बालक के शारीरिक विकास में आनुवंशिकता का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है।
  4. परिवार का सामाजिक-आर्थिक स्तर भी बालक के शारीरिक विकास को प्रभावित करता है।
  5. सुचारु शारीरिक विकास की दशा में बालक की शैक्षिक गतिविधियाँ सामान्य होती हैं।

उत्तर:

  1. सत्य
  2. असत्य
  3. सत्य
  4. सत्य
  5. सत्य

बहुविकल्पीय प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों में दिये गये विकल्पों में से सही विकल्प का चुनाव कीजिए-

प्रश्न 1.
बालक के शरीर के अंगों की वृद्धि एवं परिपक्वता तथा क्रियाशीलता में होने वाले परिवर्तनों को सम्मिलित रूप में कहते हैं
(क) सामान्य विकास
(ख) शारीरिक विकास
(ग) गामक विकास
(घ) सम्पूर्ण विकास

प्रश्न 2.
शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाला एक मुख्य कारक है
(क) पोषण एवं स्वास्थ्य
(ख) फैशन
(ग) मनोरंजन
(घ) व्यवसाय

प्रश्न 3.
विकास के अन्य पक्षों की तुलना में शारीरिक विकास को अधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है
(क) इससे व्यक्तित्व में निखार आता है
(ख) इससे व्यक्ति बलवान बनता है
(ग) इसका अच्छा प्रभाव विकास के अन्य पक्षों पर पड़ता है
(घ) इसका कोई अतिरिक्त महत्त्व नहीं है

प्रश्न 4.
बालक के शारीरिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले कारक हैं
(क) सन्तुलित आहार एवं पोषण
(ख) खेल एवं व्यायाम
(ग) रोग एवं दुर्बल स्वास्थ्य
(घ) नियमित दिनचर्या

प्रश्न 5.
सामान्य शारीरिक विकास के लिए बालक की शिक्षा में समावेश होना चाहिए
(क) नियमित मनोरंजन का
(ख) खेल एवं व्यायाम का
(ग) प्रतिस्पर्धा का
(घ) संघर्ष का

उत्तर:

  1. (ख) शारीरिक विकास
  2. (क) पोषण एवं स्वास्थ्य
  3. (ग) इसका अच्छा प्रभाव विकास के अन्य पक्षों पर पड़ता है
  4. (ग) रोग एवं दुर्बल स्वास्थ्य
  5. (ख) खेल एवं व्यायाम का

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