Geography 12

UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 14

UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 14 Agricultural Crops (कृषित उपजे)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
गेहूं के उत्पादन के लिए उपयुक्त भौगोलिक दशाओं का वर्णन कीजिए तथा ऑस्ट्रेलिया या चीन में उसकी खेती का विवेचन कीजिए। [2010]
या
संयुक्त राज्य अमेरिका के गेहूँ उत्पादक-क्षेत्रों का वर्णन कीजिए। [2010]
या
विश्व के दो प्रमुख गेहूँ उत्पादक देशों का वर्णन कीजिए। (2010)
या
गेहूं की खेती के लिए आवश्यक भौगोलिक दशाओं का वर्णन कीजिए तथा विश्व के प्रमुख गेहूँ उत्पादक देशों का उल्लेख कीजिए। [2014, 16]
उत्तर
सामान्य परिचय – मानव की तीन आधारभूत आवश्यकताओं- भोजन, वस्त्र एवं आवास- में भोजन सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। भोजन उपलब्ध कराने में गेहूं का महत्त्वपूर्ण स्थान है। गेहूँ में पोषक तत्त्वों एवं प्रोटीन की मात्रा अन्य खाद्यान्नों की अपेक्षा अधिक होती है। इसी कारण इसे ‘अन्नराज’ कहा जाता है। भूमध्यसागरीय क्षेत्रों को गेहूँ की जन्म-भूमि होने का गौरव प्राप्त है। गेहूं की खेती शीतोष्ण कटिबन्ध में उत्तरी गोलार्द्ध में 30° से 60° उत्तरी अक्षांशों के मध्य प्रमुख रूप से की जाती है, जहाँ विश्व का 90% गेहूं उत्पन्न होता है। दक्षिणी गोलार्द्ध में 20 से 40° अक्षांशों के मध्य गेहूं की खेती की जाती है। इसके अतिरिक्त विषुवतीय कटिबन्ध के उच्च पठारी भागों में (अफ्रीका महाद्वीप के कीनिया आदि देशों में) तथा रूस के ध्रुवीय प्रदेशों में गेहूं की विस्तृत खेती की जाती है।

गेहूँ उत्पादन के लिए आवश्यक भौगोलिक कारक
Necessary Geographical Factors for Producing Wheat

गेहूँ की कृषि के लिए निम्नलिखित भौगोलिक कारक आवश्यक होते हैं –
(1) जलवायु – गेहूँ की कृषि के लिए सम-शीतोष्ण कटिबन्धीय जलवायु उपयुक्त रहती है।

  1. तापमान – गेहूँ बोते समय हल्की ठण्डे तथा पकते समय हल्की गर्मी आवश्यक होती है। बोते समय 15° सेग्रे तथा पकते समय 26° सेग्रे तापमान उपयुक्त रहता है। इसकी फसल के लिए 90 दिन धूप युक्त स्वच्छ मौसम उपयुक्त रहता है। गेहूं की फसल के लिए पाला, कोहरा एवं ओला हानिकारक होते हैं। भूमध्यसागरीय जलवायु गेहूं की कृषि के लिए आदर्श जलवायु मानी जाती है।
  2. वर्षा – इसकी खेती के लिए कम नमी की आवश्यकता होती है, अर्थात् 50 से 75 सेमी वर्षा उपयुक्त रहती है। इससे अथिक वर्षा हानिकारक होती है। इससे कम वर्षा वाले भागों में सिंचाई की आवश्यकता होती है।

(2) मिट्टी – गेहूं की खेती के लिए उपजाऊ भारी दोमट, नाइट्रोजनयुक्त काली मिट्टी, जिसे चरनोजम कहते हैं, अधिक उपयुक्त रहती है। इसके अतिरिक्त भारी चीका एवं रेतीली मिट्टी भी उपयुक्त होती है। इसी कारण गंगा-सतलुज का मैदान, ह्वांग्हो मैदान एवं दजला-फरात के मैदान गेहूं की कृषि के लिए बहुत ही उपयुक्त हैं। गेहूं के उत्पादन से मिट्टी के पोषक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं। अत: मिट्टी की उर्वरता बनाये रखने के लिए अमोनियम सल्फेट, पोटैशियम, सोडियम नाइट्रेट जैसे रासायनिक उर्वरकों को देते रहना चाहिए।

(3) धरातल – इसकी कृषि के लिए समतल धरातल उपयोगी रहता है, क्योंकि इसमें आधुनिक मशीनों का प्रयोग किया जा सकता है। यान्त्रिक विधियों द्वारा कृषि करने से अधिक उत्पादन प्राप्त होता है।

(4) मानवीय श्रम – कम जनसंख्या वाले भागों में, जहाँ श्रम महँगा होता है, वहाँ गेहूँ की कृषि आसानी से की जा सकती है, क्योंकि इसकी कृषि के लिए अधिक श्रम की आवश्यकता नहीं पड़ती। संयुक्त राज्य अमेरिका एवं रूस में यन्त्रों ने श्रम को सस्ता बना दिया है। यूरोपीय देशों में इसी कारण गेहूँ की सघन खेती की जाती है।

विश्व में गेहूं का उत्पादन
Production of Wheat in the World

विश्व में निम्नलिखित दो प्रकार का गेहूँ उगाया जाता है –
(1) शीतकालीन गेहूँ – विश्व का 75% गेहूँ शीतकालीन होता है। इसके मुख्य उत्पादक देश संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, मध्य चीन, उत्तरी-पश्चिमी भारत, अर्जेण्टाइना, पाकिस्तान, ऑस्ट्रेलिया आदि हैं।

(2) वसन्तकालीन गेहूं – अधिक शीत पड़ने वाले देशों में शीघ्र पकने वाला वसन्तकालीन गेहूँ उगाया जाता है। कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस का साइबेरिया प्रदेश एवं उत्तरी चीन इसे गेहूं के मुख्य उत्पादक क्षेत्र हैं।
विश्व में प्रत्येक माह किसी-न-किसी देश में जलवायु के अनुसार गेहूं बोया एवं काटा जाता रहता है। विश्व के गेहूँ उत्पादक देशों को निम्नलिखित तीन श्रेणियों में रखा जा सकता है –

  1. पहली श्रेणी में वे देश आते हैं जो गेहूं का उत्पादन केवल अपने उपभोग के लिए करते हैं, अर्थात् माँग के अनुसार पूर्ति करते हैं। ऐसे देशों में यूरोपीय देश प्रमुख हैं।
  2. दूसरी श्रेणी में वे देश आते हैं जो गेहूँ का अधिक उत्पादन कर निर्यात करते हैं, अर्थात् माँग कम एवं पूर्ति अधिक होती है। इन देशों में संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया एवं अर्जेण्टाइन प्रमुख हैं।
  3. तीसरी श्रेणी में वे देश आते हैं जो गेहूं का उत्पादन तो अधिक करते हैं, परन्तु जनसंख्या अधिक होने के कारण गेहूं का आयात करते हैं। इनमें दक्षिणी-पूर्वी एशियाई देश- चीन, भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि मुख्य हैं।

विश्व में शीतोष्ण जलवायु के प्रदेशों में शीतकालीन गेहूँ उगाया जाता है, जब कि अधिक बर्फ गिरने वाले भागों में वसन्तकालीन गेहूँ उगाया जाता है। विश्व में गेहूं उत्पादक देशों का विवरण निम्नलिखित है –
(1) चीन – यह विश्व का वृहत्तम गेहूँ उत्पादक देश है। यहाँ विश्व का 17% गेहूँ उत्पन्न होता है। यहाँ गेहूँ उत्पादन के पाँच प्रमुख क्षेत्र निम्नवत् हैं –

  1. मंचूरिया क्षेत्र
  2. आन्तरिक मंगोलिया क्षेत्र
  3. ह्वांगहो तथा सहायक नदियों का घाटी-क्षेत्र
  4. लोयस का पश्चिमी भाग एवं
  5. याँग्त्सी घाटी क्षेत्र।

(2) भारत – यह विश्व का द्वितीय वृहत्तम गेहूँ उत्पादक देश है। ‘हरित-क्रान्ति’ के फलस्वरूप अब भारत में विश्व का लगभग 13% गेहूं उत्पन्न होता है। यहाँ शीतकालीन गेहूं उगाया जाता है। उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार व गुजरात क्रमश: बड़े गेहूँ उत्पादक राज्य हैं। यहाँ गेहूं की खेती में सिंचाई का विशेष महत्त्व है।

(3) CIS देश – ये विश्व के अग्रणी गेहूँ उत्पादक देश हैं। यहाँ विश्व का 16% से अधिक गेहूं उत्पन्न होता है। रूस की गेहूं पेटी का विस्तार लगभग 4,800 किमी लम्बाई व 650 किमी चौड़ाई में काला सागर तट से बैकाल झील तक समतल एवं उर्वर चरनोजम मिट्टी के क्षेत्र पर है। रूस में 2/3 गेहूँ वसन्तकालीन होता है। प्रमुख क्षेत्र वोल्गा बेसिन, यूराल प्रदेश, उत्तरी यूक्रेन व कजाकिस्तान हैं। शीतकालीन गेहूं के प्रमुख क्षेत्र यूक्रेन, क्रीमिया व उत्तरी काकेशस प्रदेश हैं। यह क्षेत्र पूर्व सोवियत संघ की ‘रोटी की टोकरी’ (Bread basket of Russia) कहलाता था। रूस में गेहूं की पेटी की सीमा के विस्तार (उत्तर में साइबेरिया एवं दक्षिण में शुष्क मरुस्थलीय भागों की ओर) के निरन्तर प्रयास किये जा रहे हैं। यहाँ सम्पूर्ण कृषि सरकारी फार्मों पर मशीनों द्वारा की जाती है।

(4) फ्रांस – यह विश्व का चौथा वृहत्तम गेहूँ उत्पादक देश है। यहाँ विश्व का 5.5% से अधिक गेहूँ पैदा होता है। पेरिस बेसिन में समस्त देश का आधा गेहूं उत्पन्न होता है। एक्वीटेन बेसिन व रोन घाटी अन्य मुख्य उत्पादक क्षेत्र निम्नवत् हैं।
(5) ऑस्ट्रेलिया – यह विश्व का पाँचवाँ वृहत्तम गेहूँ उत्पादक देश है। यहाँ विश्व का 4% गेहूँ उत्पन्न होता है। यहाँ विस्तृत कृषि फार्मों पर गेहूँ की शुष्क कृषि पूर्णत: यन्त्रीकृत है। गेहूँ उत्पादन के दो प्रमुख क्षेत्र हैं

  1. दक्षिणी-पूर्वी तथा दक्षिणी क्षेत्र – ग्रेट डिवाइडिंग रेन्ज के पश्चिम में आन्तरिक भागों की ओर इस क्षेत्र का विस्तार न्यूसाउथवेल्स, विक्टोरिया, दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया व क्वीन्सलैण्ड राज्य के भागों पर है। ब्रिस्बेन, सिडनी, मेलबोर्न व एडीलेड पत्तनों से गेहूँ निर्यात किया जाता है।
  2. दक्षिणी-पश्चिमी क्षेत्र – पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया राज्य के दक्षिणी-पश्चिमी भाग में भूमध्यसागरीय जलवायु के क्षेत्र गेहूँ के मुख्य उत्पादक हैं। फ्रीमेन्टल गेहूं का प्रमुख निर्यातक पत्तन है।

(6) संयुक्त राज्य अमेरिका – यह विश्व का छठा बड़ा गेहूँ उत्पादक देश है। यहाँ विश्व का 4% से अधिक गेहूं उत्पन्न होता है। देश के उत्तरी भाग में वसन्तकालीन एवं दक्षिणी भाग में शीतकालीन गेहूँ उत्पन्न होता है। किन्तु दक्षिणी राज्यों में अधिक तापमानों के कारण गेहूँ के रोगग्रस्त होने तथा कपास की वाणिज्यिक कृषि उपज से स्पर्धा होने के कारण गेहूँ उत्पादन सीमित है। इस देश में गेहूं उत्पादन के पाँच प्रमुख क्षेत्र निम्नवत् हैं –

  1. वसन्तकालीन गेहूँ क्षेत्र – इसका विस्तार मिनीसोटा राज्य में रेड नदी-घाटी से पश्चिम में रॉकी पर्वतों तक एवं उत्तर में कनाडा के प्रेयरी प्रदेश तक मोन्टाना, उत्तरी व दक्षिणी डकोटा एवं मिनीसोटा राज्यों पर है। मिनियापोलिस व डुलुथ प्रमुख गेहूँ मण्डियाँ हैं।
  2. शीतकालीन कठोर गेहूँ क्षेत्र – यह क्षेत्र संयुक्त राज्य के मध्य में कन्सास, नेब्रास्का, मिसौरी, ओकलाहामा, टैक्सास व कोलोरेडो राज्यों पर विस्तृत है। यहाँ गेहूं की अधिकांशत: स्थानीय खपत होती है। शेष गेहूँ गाल्वेस्टन, मोबाइल व न्यूआर्लियन्स पत्तनों द्वारा निर्यात किया जाता है।
  3. शीतकालीन कोमल गेहूँ क्षेत्र – इस प्रदेश का विस्तार देश के उत्तरी-पूर्वी भाग में ओहियो घाटी में ओहियो-इलिनॉयस, इण्डियाना, वर्जीनिया, पेन्सिलवेनिया, मैरीलैण्ड तथा न्यूयॉर्क राज्यों में हैं। बफैलो व शिकागो प्रमुख गेहूँ मण्डियाँ तथा निर्यातक पत्तन हैं।
  4. कोलम्बिया पठार का गेहूँ क्षेत्र – इस लघु क्षेत्र का विस्तार पूर्वी वाशिंगटन, उत्तरी ओरेगन तथा पश्चिमी इदाहो राज्यों पर है। यहाँ शीतकालीन कठोर गेहूँ एव वसन्तकालीन गेहूँ समान रूप से उगाये जाते हैं। सिएटल व पोर्टलैण्ड प्रमुख निर्यातक पत्तन हैं।
  5. कैलीफोर्निया गेहूँ क्षेत्र – कैलीफोर्निया राज्य की सान जोक्विन तथा सेक्रामेण्टो घाटियों में शीतकालीन गेहूं उगाया जाता है। सार्न फ्रांसिस्को प्रमुख निर्यातक पत्तन है।

(7) जर्मनी – यहाँ विश्व का लगभग 4% गेहूं उत्पन्न होता है। प्रमुख उत्पादक क्षेत्र- उत्तर में

  1. लोयस मिट्टी क्षेत्र व दक्षिण में
  2. डेन्यूब घाटी हैं।

(8) कनाडा – यहाँ विश्व का लगभग 4% गेहूँ उत्पादन होता है। यहाँ गेहूँ के दो प्रमुख उत्पादक क्षेत्र निम्नवत् हैं –

  1. वसन्तकालीन गेहूँ क्षेत्र – इसका विस्तार कनाडा के प्रेयरी प्रदेश (सस्केचवान, मैनीटोबा व अलबर्टा राज्य) तक है। विनिपेग गेहूं की विश्वविख्यात मण्डी है। पोर्ट आर्थर भी गेहूँ का प्रमुख व्यापारिक केन्द्र है।
  2. शीतकालीन कोमल गेहूँ क्षेत्र – इसका विस्तार महान् झीलतटीय क्षेत्र (ओण्टारिया व क्यूबेक राज्य) पर है। मॉण्ट्रियल, हैलीफैक्स तथा सेंट जॉन पत्तन गेहूँ के निर्यातक हैं।

(9) पाकिस्तान – यहाँ विश्व को 3.4% से अधिक गेहूं उत्पन्न होता है। पंजाब, सिन्ध व सीमा प्रान्तों के सिंचित भाग मुख्य गेहूँ उत्पादक हैं।
(10) अर्जेण्टाइना – यहाँ विश्व का 3% से अधिक गेहूँ उत्पन्न होता है। यह दक्षिणी अमेरिका का वृहत्तम गेहूँ उत्पादक देश है। पम्पा के विस्तृत समतल, उर्वर मैदानी भाग में अर्द्धचन्द्राकार गेहूँ क्षेत्र स्थित है। यहाँ हजारों एकड़ भूमि में विस्तृत कृषि फार्मों पर मशीनों द्वारा विस्तृत खेती की जाती है। ब्यूनस आयर्स व बाहिया ब्लांका प्रमुख गेहूँ निर्यातक पत्तन हैं।
(11) इटली – यहाँ विश्व का लगभग 2% गेहूँ उत्पन्न होता है। गेहूँ उत्पादन के तीन प्रमुख क्षेत्र –

  1. पो-बेसिन का लोम्बार्डी मैदान
  2. इमिलिया वे
  3. सिसली द्वीप हैं।

(12) ब्रिटेन – स्कॉटलैण्ड के दक्षिणी – पूर्वी भाग एवं इंग्लैण्ड के पूर्वी भाग में लोयस मिट्टी के क्षेत्र में गेहूं का उत्पादन अधिक होता है। यहाँ विश्व का 2% गेहूँ उत्पादन होता है।

अन्य उत्पादक देश Other Producing Countries

  • एशियाई देशों में – इराक, सीरिया, लेबनान, इजराइल, जोर्डन, अफगानिस्तान, जापान के कुछ भाग गेहूँ उत्पन्न करते हैं।
  • यूरोपीय देशों में – स्पेन का जमोरा क्षेत्र, पुर्तगाल का उत्तरी क्षेत्र; ऑस्ट्रिया, हंगरी, रूमानिया व बल्गेरिया के डेन्यूब घाटी-क्षेत्र; यूगोस्लाविया के उत्तर में बनाते क्षेत्र इटली का पो बेसिन आदि गेहूँ उत्पादक क्षेत्र हैं।
  • अफ्रीकी देशों में – मिस्र में नील नदी-घाटी, दक्षिणी अफ्रीका में केप प्रान्त, ट्रान्सवाल बिट्स वे रुस्टेनबर्ग क्षेत्र; मोरक्को, अल्जीरिया व ट्यूनिशियों के उत्तरी तटीय मैदानी भाग, अबीसीनिया के पठारी भाग तथा सोमालिया के तटीय भागों में गेहूं उत्पन्न होता है।

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार International Trade
विश्व में गेहूं के प्रमुख निर्यातक देश संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, अर्जेण्टाइना व ऑस्ट्रेलिया हैं। विश्व का 40% से अधिक गेहूँ निर्यात संयुक्त राज्य अमेरिका से होता है। प्रमुख आयातक देश चीन, यूरोपीय देश (ब्रिटेन, जर्मनी, पोलैण्ड, चेक गणराज्य एवं स्लोवाकिया) जापान एवं ब्राजील हैं। चीन वे भारत प्रमुख गेहूँ उत्पादक होने पर भी सघन जनसंख्या के कारण गेहूँ के आयातक देश हैं। विगत वर्षों में हरित क्रान्ति द्वारा भारत गेहूँ उत्पादन में आत्मनिर्भर हो गया है।

प्रश्न 2
विश्व में चावल के उत्पादन में सहायक भौगोलिक कारकों का विश्लेषण कीजिए तथा किसी एक महाद्वीप में उसके उत्पादक क्षेत्रों का विवरण दीजिए। (2008)
या
चावल की खेती हेतु अनुकूल भौगोलिक दशाओं का वर्णन कीजिए तथा एशिया के प्रमुख चावल उत्पादक देशों के नाम बताइए।
या
चावल की खेती हेतु आवश्यक भौगोलिक दशाओं का वर्णन कीजिए तथा विश्व के प्रमुख चावल उत्पादक देशों का उल्लेख कीजिए। [2013, 14, 15, 16]
या
चावल की उपज के लिए उपयुक्त भौगोलिक दशाओं का वर्णन कीजिए और विश्व में चावल उत्पादक देशों के नाम बताइए। [2011]
उत्तर
विश्व में गेहूँ के बाद खाद्यान्नों में चावल प्रमुख स्थान रखता है। विश्व की 50 प्रतिशत जनता का भोजन चावले के ऊपर निर्भर करता है। अन्य खाद्यान्नों की अपेक्षा चावल अधिक लोगों की उदर-पूर्ति करने में सक्षम होता है। इससे चावल का महत्त्व और भी अधिक बढ़ जाता है। जनाधिक्य वाले दक्षिणी-पूर्वी एशियाई देशों में चावल ही जीवन-यापन का आधार है। एशिया को ही चावल की जन्मभूमि होने का सौभाग्य प्राप्त है। यहीं से इसका प्रचार अन्य देशों में हुआ था। चावल में मण्ड (Starch) की अधिक मात्रा होने से यह शीघ्र ही पच जाने का गुण रखता है। मानसूनी देशों में इसका प्रयोग मछली के साथ किया जाता है।

आवश्यक भौगोलिक दशाएँ
Necessary Geographical Conditions

चावल मानसूनी एवं उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र-जलवायु का पौधा है। मुख्य रूप से इसकी खेती कर्क एवं मकर रेखाओं के मध्य की जाती है। धान बोने की तीन मुख्य विधियाँ हैं-

  1. बिखेरकर
  2. रोपाई या पौध लुगाकर एवं
  3. छिद्रण द्वारा। इनमें रोपाई या पौध लगाने की विधि महत्त्वपूर्ण है, जिसे जापानी विधि’ भी कहते हैं।

(1) जलवायु – चावल की खेती के लिए उष्णार्द्र जलवायु महत्त्वपूर्ण होती है। मानसूनी जलवायु सबसे उपयुक्त रहती है

  1. तापमान – इसकी खेती के लिए अधिक तापमान की आवश्यकता होती है। बोते समय 18° से 20° सेग्रे, बढ़ते समय 24° सेग्रे तथा पकते समय 27° सेग्रे तापमान एवं तेज धूप आवश्यक होती है। यही कारण है कि सबसे अधिक चावल आर्द्र-उष्ण कटिबन्ध के दक्षिणी एवं दक्षिणी-पूर्वी एशियाई देशों में उगाया जाता है।
  2. वर्षा – इसके लिए अधिक नमी आवश्यक होती है। पानी से भरे खेतों में इसके पौधों की वृद्धि अधिक होती है। इसके लिए वर्षा 150 से 200 सेमी आवश्यक होती है। धान के खेतों में 60 से 90 दिनों तक जल भरा रहना चाहिए। पकते समय पानी बाहर निकाल देना चाहिए। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में सिंचाई की आवश्यकता होती है।

(2) मिट्टी – चावल की कृषि के लिए उपजाऊ चिकनी मिट्टी आवश्यक होती है। डेल्टाई एवं बाढ़ द्वारा निर्मित काँप मिट्टी, जिसमें नमी धारण करने की क्षमता अधिक होती है, चावल की कृषि के लिए सर्वश्रेष्ठ होती है। पहाड़ी भागों में सीढ़ीदार खेत बनाकर चावल उगाया जाता है। समतल एवं ढालू भूमि, जिसमें पानी भरे रहने एवं निकालने की सुविधा हो, उपयुक्त रहती है।

(3) मानवीय श्रम – इसकी खेती के लिए सस्ते एवं अधिक संख्या में श्रमिकों की आवश्यकता पड़ती है, क्योंकि जल से भरे खेतों में मशीनों से कार्य होना सम्भव नहीं है। यही कारण है कि चावल का उत्पादन सघन जनसंख्या वाले क्षेत्रों में किया जाता है।

विश्व में प्रमुख चावल उत्पादक क्षेत्र
Main Rice Producing Areas in the World

विश्व में चावल के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र 30° दक्षिणी अक्षांश से 45°उत्तरी अक्षांश के मध्य विस्तृत हैं। इस प्रकार दक्षिणी एवं दक्षिणी-पूर्वी एशियाई देशों की यह मुख्य उपज है। एशिया महाद्वीप विश्व का 95% चावल उत्पन्न करता है, जबकि मानसूनी जलवायु के देशों में विश्व का 90% चावल उत्पन्न होता है। चीन, भारत, जापान एवं बांग्लादेश चारों मिलकर विश्व का 65% चावल उत्पन्न करते हैं। इन देशों के अतिरिक्त एशिया महाद्वीप में म्यांमार, इण्डोनेशिया, थाईलैण्ड, वियतनाम, कम्पूचिया, मलेशिया एवं श्रीलंका आदि देश मुख्य चावल उत्पादक हैं। एशिया महाद्वीप के अतिरिक्त अफ्रीका महाद्वीप में नील नदी का डेल्टा एवं मलागैसी; संयुक्त राज्य अमेरिका की कैलीफोर्निया घाटी; ब्राजील का पूर्वी तटीय भाग तथा यूरोप महाद्वीप में इटली की पो नदी का बेसिन प्रमुख हैं।

एशिया में चावल उत्पादक क्षेत्र
Rice Producing Areas in Asia

विश्व के कुल चावल उत्पादन का 90% दक्षिणी-पूर्वी एशियाई देशों से प्राप्त होता है। दक्षिणी-पूर्वी एशियाई देशों में अधिक चावल उत्पादन के कारण इस प्रदेश को विश्व का चावल पात्र (Rice bowl of the world) कहा जाता है। इस प्रदेश की सभ्यता को भी ‘चावल सभ्यता’ (Rice civilization) कहा गया है। यहाँ चावल के अधिक उत्पादन के निम्नलिखित कारण हैं –

  1. यहाँ नदियों की नवीन जलोढ़ मिट्टियाँ अत्यन्त उर्वर हैं। इन्हें प्रतिवर्ष खाद देने की भी आवश्यकता नहीं होती।
  2. यहाँ वर्ष भर उच्च तापमान तथा मानसूनों द्वारा 100 से 200 सेमी वर्षा प्राप्त होती है। नदियों व नहरों द्वारा सिंचाई की भी पर्याप्त सुविधाएँ उपलब्ध हैं।
  3. सघन जनसंख्या के कारण प्रचुर मात्रा में सस्ते श्रमिक मिल जाते हैं।
  4. चावल यहाँ के निवासियों का प्रिय भोजन है।
  5. चावल की पोषण क्षमता अधिक होने के कारण यह सघन आबाद क्षेत्रों में प्रमुख खाद्यान्न है।

(1) चीन – यह विश्व का सबसे बड़ा चावल उत्पादक देश है। यहाँ विश्व का 31% से अधिक चावल उत्पन्न होता है। यहाँ चावल उत्पादन के चार प्रमुख क्षेत्र हैं-

  1. जेचवान प्रान्त में पेंगटू का मैदान
  2. ह्वांगहो का निचला मैदान
  3. युन्नान तथा क्यांगसी प्रान्त
  4. दक्षिणी तटवर्ती प्रान्त-क्वान्तुंग, फुकिन, आहनह्वेई तथा चिक्यांग।

चीन की नदी-घाटियों, डेल्टाई प्रदेशों तथा दक्षिणी समुद्रतटीय भागों में तो एक वर्ष में चावल की तीन फसलें तक प्राप्त की जाती हैं। एशियाई देशों में जापान व चीन में चावल की प्रति हेक्टेयर सर्वाधिक उपज होती है।

(2) भारत – यहाँ विश्व का 22% से अधिक चावल उत्पादन होता है। प्रति हेक्टेयर चावल की उपज यहाँ कम है। चावल के चार प्रमुख क्षेत्र हैं –

  1. गंगा की मध्यवर्ती एवं निचली घाटी
  2. पूर्वीतटीय मैदान
  3. पश्चिमी तटीय मैदान एवं
  4. उत्तरी-पूर्वी पर्वतीय क्षेत्र। उत्तर प्रदेश की तराई एवं शिवालिक श्रेणियों में एक गौण क्षेत्र भी स्थित है।

(3) इण्डोनेशिया – यहाँ विश्व का 8.6% से अधिक चावल उत्पादन होता है। देश की 45% कृषित भूमि चावल के नीचे है। यहाँ उन्नत बीजों व शुष्क भागों में सिंचाई के साधनों के विकास तथा उर्वरकों के प्रयोग से प्रति हेक्टेयर उत्पादन में वृद्धि हुई है। यहाँ चावल उत्पादन के प्रमुख क्षेत्र हैं-

  1. जावा का उत्तरी तटीय मैदानी भाग
  2. जावा का दक्षिणी तटीय मैदानी भाग
  3. सुमात्रा का उत्तरी-पूर्वी तथा उत्तरी- पश्चिमी तटीय प्रदेश
  4. जावा का दक्षिणी-पश्चिमी तटीय प्रदेश
  5. बोर्नियो (कालीमंटन) का पश्चिमी तट तथा
  6. सेलीबीज के तटीय भाग।

इन क्षेत्रों के अतिरिक्त बाली, लम्बोक व तिमोर द्वीपों पर भी चावल की खेती की जाती है। जावी, न्यूगिनी, सेलीबीज व बोर्नियो द्वीपों पर चावल के अन्तर्गत क्षेत्र का विस्तार किया जा रहा है।

(4) बांग्लादेश – यहाँ विश्व का लगभग 7% चावल उत्पादन होता है। गंगा, ब्रह्मपुत्र के डेल्टाई भागों में (देश की लगभग 50% कृषि योग्य भूमि पर) चावल उगाया जाता है। किन्तु इन्हीं भागों में चावल को जूट से स्पर्धा करनी पड़ती है। सघन जनसंख्या के पोषण के लिए वर्ष में तीन फसलें तक प्राप्त की जाती हैं।

(5) वियतनाम – यहाँ विश्व का 5.5% से अधिक चावल उत्पादन होता है। यह विश्व का पाँचवाँ बड़ा चावल उत्पादक देश है। देश की 80% कृषित भूमि पर चावल उत्पन्न किया जाता है। यहाँ चावल उत्पादन के दो प्रमुख क्षेत्र हैं-

  1. रेड नदी का डेल्टा व
  2. मीकांग नदी का डेल्टा डेल्टाई भागों में चावल की दो या तीन फसलें प्रतिवर्ष प्राप्त की जाती हैं।

(6) थाईलैण्ड – यहाँ विश्व का 4.4% से अधिक चावल उत्पादन होता है। देश की 90% कृषि योग्य भूमि पर चावल उगाया जाता है। चावल के निर्यात से राष्ट्र की आय होती है। मीनाम नदी के बाढ़ के मैदान व डेल्टाई भाग मुख्य उत्पादक क्षेत्र हैं। बैंकाक पत्तन से चावल का निर्यात भारत, सिंगापुर, इण्डोनेशिया, मलेशिया, चीन, जापान व क्यूबा आदि देशों को किया जाता है।

(7) म्यांमार – देश की 70% से अधिक भूमि पर चावल उगाया जाता है। यहाँ चावल के छः प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैं –

  1. इरावदी की निचली घाटी व डेल्टा
  2. सालविन की निचली घाटी
  3. अक्याब का निकटवर्ती भाग
  4. मध्य इरावदी घाटी
  5. सितांग घाटी व डेल्टा तथा
  6. चिंदविन घाटी।

अकेले इरावदी घाटी में देश का 50% तथा सितांग घाटी में 20% चावल उत्पादन होता है। म्यांमार का चावल उत्तम किस्म का होता है। तटीय भागों में पर्याप्त वर्षा होती है। इरावदी की मध्यवर्ती घाटी में मांडले, श्रीबु व मीन नहरों से सिंचाई की सुविधाएँ प्राप्त हैं। जनसंख्या कम होने के कारण चावल की स्थानीय खपत कम है। अतएव बैंगोन (रंगून) तथा अक्याब पत्तनों से भारत, मलेशिया, इण्डोनेशिया, जापान आदि देशों को चावल निर्यात किया जाता है।

(8) फिलीपीन्स – यहाँ विश्व का 2.4% से अधिक चावल उत्पन्न होता है। देश की 60% कृषित भूमि पर चावल उगाया जाता है। यहाँ चावल के तीन प्रमुख क्षेत्र हैं-

  1. लूजों द्वीप का मध्यवर्ती मैदान
  2. उत्तरी लूजों की घाटी एवं
  3. पनायाम का मैदान। पर्वतीय ढालों एवं घाटियों में चावल उगाया जाता है।

(9) जापान – यहाँ चावल को प्रति हेक्टेयर उत्पादन एशियाई देशों में सर्वाधिक है। यहाँ विश्व का लगभग 2% चावल उत्पादन होता है। देश का 20% चावल क्वांटो के मैदान से प्राप्त होता है। होंशू द्वीप के सिटांउची क्षेत्र प्रमुख चावल उत्पादक हैं। जापान में अधिकांश चावल पहाड़ी क्षेत्रों में सोपानी खेतों से प्राप्त होता है। पहाड़ी चावल को ‘टा’ एवं मैदानी चावल को ‘हा-टा’ कहा जाता है।
जापान में चावल की उपज अनेक कारणों से उल्लेखनीय तथा महत्त्वपूर्ण है –

  1. मध्य होंशू की जलवायु तथा पर्वतीय ढाल चावल की उपज के लिए उत्तम हैं।
  2. जापान की सघन आबादी के पोषण के लिए खाद्यान्नों की भारी माँग है। चावल की प्रति हेक्टेयर उपज अधिक होने तथा अधिक जनसंख्या का पोषण करने की सामर्थ्य के कारण इसकी उपज महत्त्वपूर्ण है।
  3. दक्षिणी व मध्यवर्ती जापान भी जलवायु की दृष्टि से चावल उत्पादन के लिए उपयुक्त है।
  4. धान की खेती में मशीन के बजाय मानव श्रम अपेक्षित है। सघन जनसंख्या के कारण प्रचुर व सस्ता श्रम उपलब्ध है।
  5. जापान एक द्वीपीय देश है जिसका मध्यवर्ती भाग पर्वतीय है। पहाड़ी ढलानों पर सोपानी खेतों में जापोनिका चावल की उत्तम उपज होती है।

(10) ब्राजील – जापानी आप्रवासियों द्वारा यहाँ जापानी विधि से चावल की खेती विकसित की गयी। यहाँ विश्व का लगभग 2% चावल उगता है।
(11) संयुक्त राज्य अमेरिका – यहाँ चावल उत्पादन के तीन प्रमुख क्षेत्र हैं-

  1. गल्फ तटीय क्षेत्र
  2. अरकन्सास राज्य व
  3. कैलीफोर्निया घाटी। यहाँ विशाल फार्मों पर चावल की खेती में मशीनों का प्रयोग किया जाता है। स्थानीय मॉग कम होने के कारण यहाँ से यूरोपीय देशों को चावल निर्यात किया जाता है।

(12) द० कोरिया – यहाँ विश्व का 1.2% से अधिक चावल उगाया जाता है। दक्षिणी-पश्चिमी भाग में मैदानी चावल तथा पूर्वी तटीय भाग में पहाड़ी चावल उगाया जाता है।
(13) अन्य उत्पादक देश-पाकिस्तान – सिन्ध के डेल्टाई भाग एवं सीमा प्रान्त; इराक-दजला- फरात बेसिन; मलेशिया व श्रीलंका-तटीय मैदानी भाग; मित्र– नील डेल्टा; नाइजीरिया-सोकोतो, रीमा, नाइजर व बाको नदी घाटियों में; ऑस्ट्रेलिया-न्यूसाउथवेल्स में मुरमबिजी घाटी में; मैक्सिको–नदी-घाटियों व समुद्र तटीय भागों में; दक्षिणी अमेरिकी देशों में-गायना, कोलम्बिया, पीरू, इक्वेडोर के तटीय भाग; अफ्रीकी देशों में– तंजानिया, मलागासी, जंजीबार द्वीप में; यूरोपीय देशों में-दक्षिणी स्पेन, फ्रांस का रोन डेल्टा, मध्यवर्ती यूगोस्लाविया, इटली की पो घाटी, पीडमोण्ट, लोम्बार्डी मैदान, वेनेशिया व टस्केनी; रूस के अजरबैजान, उत्तरी काकेशिया, कजाकिस्तान में।

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार International Trade
चावल का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार अधिक महत्त्वपूर्ण नहीं है। अधिकांश उपभोक्ता देश ही इसका उत्पादन करते हैं। कुछ सघन आबाद देशों ( भारत, जापान, इण्डोनेशिया, मलेशिया, बांग्लादेश, श्रीलंका) को चावल आयात करना पड़ता है।
चावल के निर्यातक देश – म्यांमार, थाईलैण्ड, वियतनाम व कम्पूचिया, संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्राजील, इटली व ऑस्ट्रेलिया हैं।

प्रश्न 3
विश्व में गन्ने के उत्पादन में सहायक भौगोलिक कारकों का विश्लेषण कीजिए तथा किसी एक महाद्वीप में उसके उत्पादक क्षेत्रों का विवरण दीजिए।
या
विश्व में गन्ने के वितरण, उत्पादन तथा व्यापार का वर्णन कीजिए।
या
गन्ने की खेती के लिए उपयुक्त भौगोलिक दशाओं का वर्णन कीजिए तथा विश्व में इसके प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों का उल्लेख कीजिए। [2013]
या
विश्व में गन्ने की खेती का वर्णन अधोलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत कीजिए –
(क) उपयुक्त भौगोलिक दशाएँ
(ख) प्रमुख उत्पादन क्षेत्र
(ग) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार। (2014, 15, 16)
उत्तर
व्यावसायिक फसलों में गन्ने का महत्त्वपूर्ण स्थान है। चीनी प्राप्त होने वाले स्रोतों में गन्ना, चुकन्दर, शकरकन्द, ताड़, खजूर, नारियल, अंगूर, आलू, मेपुल आदि हैं, परन्तु इनमें गन्ना तथा चुकन्दर अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। दक्षिणी-पूर्वी एशिया को गन्ने की जन्म-भूमि होने का सौभाग्य प्राप्त है, जहाँ बागाती कृषि के रूप में इसका प्रारम्भ किया गया था। जैसे-जैसे यूरोपीय देशों में चीनी की माँग बढ़ती गयी, गन्ने के उत्पादन में भी उत्तरोत्तर वृद्धि होती गयी, परन्तु यूरोपीय देशों में चुकन्दर ने इसकी प्रतिस्पर्धा ले ली, फिर भी आज विश्व की 63% चीनी का उत्पादन गन्ने से ही किया जाता है। अतः गन्ना एक प्रमुख मुद्रादायिनी उपज है।

आवश्यक भौगोलिक दशाएँ
Necessary Geographical Conditions

(1) जलवायु – गन्ना उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र भागों की उपज है। इसके बोते समय आर्द्र जलवायु होनी चाहिए। उगते समय बीच-बीच में शुष्क एवं गर्म मौसम रहने से इसमें मिठास अधिक हो जाता है। इसकी फसल 10-12 महीनों में तैयार हो जाती है। गन्ने का उत्पादन क्षेत्र 32° उत्तरी अक्षांश से 36° दक्षिणी अक्षांशों के मध्य विस्तृत है। क्यूबा में इसकी फसल 15 महीनों में तैयार होती है, जबकि हवाई द्वीप समूह में दो वर्ष तक लग जाते हैं।

  1. तापमान – गन्ना उत्पादन के लिए उच्च तापमान की आवश्यकता होती है, बोते समय औसत तापमान 20° सेग्रे तथा वृद्धि के समय 20° सेग्रे से 28° सेग्रे तक तापमान आवश्यक है। 34° सेग्रे से अधिक तापमान हानिकारक रहता है तथा 15° सेग्रे पर इसकी वृद्धि रुक जाती है। पाला एवं कोहरा इसकी फसल को हानि पहुँचाता है। पकते समय शुष्क मौसम गन्ने के रस एवं उसकी मिठास में वृद्धि कर देता है।
  2. वर्षा – गन्ने की कृषि के लिए आर्द्र जलवायु आवश्यक होती है। अत: 100 से 200 सेमी वर्षा वाले भागों में गन्ने की खेती की जाती है। नम सागरीय पवनें इसकी फसल के लिए बहुत ही लाभप्रद होती हैं। वर्षा वर्षभर निरन्तर होती रहनी चाहिए। कम वर्षा वाले भागों में सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है।

(2) मिट्टी – गन्ने के लिए उपजाऊ गहरी चिकनी मिट्टी आवश्यक होती है। जलोढ़ एवं लावायुक्त मिट्टी अधिक उपयुक्त रहती है। अच्छी फसल के लिए नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, कैल्सियम आदि रासायनिक उर्वरक लाभदायक रहते हैं, क्योंकि गन्ना मिट्टी के पोषक तत्त्वों का अधिक शोषण करता है।

(3) धरातल एवं मानवीय श्रम – गन्ने की कृषि के लिए समतल धरातल एवं पानी निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। समतल धरातल पर सिंचाई एवं आवागमन के साधन सुलभ रहते हैं। इसकी कृषि के लिए अधिक श्रमिकों की आवश्यकता रहती है, इसीलिए गन्ना सघन जनसंख्या वाले देशों में अधिक उगाया जाता है।

विश्व में गन्ने के उत्पादक देश
Sugarcane Producing Countries in the World

विश्व में प्रमुख गन्ना उत्पादक देश निम्नलिखित हैं –
(1) ब्राजील – गन्ना उत्पादन में ब्राजील का विश्व में प्रथम स्थान है। यह विश्व का 54% गन्ना पैदा करता है। यहाँ पुर्तगालियों द्वारा गन्ने की खेती का श्रीगणेश किया गया है। इस देश की जलवायु, दशाएँ एवं भौगोलिक परिस्थितियाँ गन्ना उत्पादन के अधिक अनुकूल हैं। अनुकूल जलवायु, सस्ता एवं कुशल श्रम, उपजाऊ भूमि, गन्ना उत्पादन की विस्तृत क्षेत्रफल, रासायनिक उर्वरकों का अधिकाधिक प्रयोग आदि कारक गन्ना उत्पादन में सहायके हुए हैं। अलागोस, बाहिया, मिनास-गेरास, पेरानाम्बुके आदि राज्य गन्ने के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैं।

(2) भारत – वर्तमान में भारत का विश्व में गन्ना उत्पादन में दूसरा स्थान है, जहाँ विश्व का 22.8% गन्ना उगाया जाता है। उष्ण एवं शुष्क जलवायु होने के कारण प्रति हेक्टेयर उत्पादन कम है तथा गन्ने के रस में चीनी की मात्रा भी कम पायी जाती है। गन्ना उत्पादन के प्रमुख क्षेत्र मध्ये गंगा घाटी एवं समुद्रतटीय मैदान हैं। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र एवं तमिलनाडु तीनों राज्य मिलकर 70% गन्ने का उत्पादन करते हैं, जब कि गंगा के मैदान में देश का 50% गन्ना उत्पन्न किया जाता है। उत्तरी भारत गन्ने का प्रमुख क्षेत्र है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में गोरखपुर, गोण्डा, बस्ती, बलिया एवं आजमगढ़ जिले गन्ने के प्रमुख उत्पादक हैं, जबकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बुलन्दशहर, गाजियाबाद, अलीगढ़, मुरादाबाद आदि जिले मुख्य स्थान रखते हैं।

दक्षिणी भारत में तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र राज्यों का स्थान मुख्य है। यहाँ समुद्री जलवायु के कारण गन्ना अच्छा पनपता है तथा उत्तरी भारत की अपेक्षा प्रति हेक्टेयर उत्पादन भी अधिक होता है।

(3) चीन – गन्ना उत्पादन में विश्व में चीन का तीसरा स्थान है। यहाँ विश्व का 8.3% गन्ना उगाया जाता है। दक्षिणी चीन में गन्ने का उत्पादन सबसे अधिक होता है। सीक्यांग बेसिन एवं तटीय क्षेत्र गन्ना उत्पादन में प्रमुख स्थान रखते हैं। ताईवान द्वीप में भी गन्ने का उत्पादन किया जाता है।

(4) पाकिस्तान – यहाँ विश्व को 3.5% गन्ना पैदा होता है। पाकिस्तान के शुष्क भागों में जहाँ पर्याप्त सिंचाई की सुविधाएँ विद्यमान हैं, वहाँ गन्ने की कृषि की जाती है, परन्तु प्रति हेक्टेयर उत्पादन कम है। लाहौर, लायलपुर, मुल्तान, स्यालकोट एवं रावलपिंडी आदि प्रमुख उत्पादक जिले हैं।

(5) वियतनाम – वियतनाम में विश्व का 1.2% गन्ना पैदा होता है। जावा द्वीप प्रमुख गन्ना उत्पादक है। इस देश में गन्ने के उत्पादन के लिए भौगोलिक दशाएँ क्यूबा जैसी ही उपलब्ध हैं। ज्वालामुखी उद्गारों से प्राप्त लावा मिट्टी तथा उष्ण जलवायु ने गन्ने की कृषि का विकास किया है। यहाँ बागाती कृषि के रूप में गन्ना उत्तरी तटीय मैदान तथा पूर्वी भागों में उगाया जाता है। गन्ना उत्पादन में इस देश को सबसे बड़ी सुविधा चीनी मिलों का गन्ना उत्पादक क्षेत्रों के निकट स्थापित किया जाना है।

(6) फिलीपीन्स – गन्ना उत्पादन फिलीपन्स का प्रमुख व्यवसाय है। यहाँ विश्व का 2.2% गन्ना पैदा होता है। यहाँ पर इसकी कृषि के लिए सबसे बड़ी सुविधा ज्वालामुखी से प्राप्त लावा मिट्टी है, जो गन्ने की उत्पत्ति में बहुत ही उपजाऊ है। नेग्रोस, पनाय तथा लूजोन द्वीपों पर समुद्रतटीय भागों में गन्ने का उत्पादन किया जाता है।
इनके अतिरिक्त थाईलैण्ड, ऑस्ट्रेलिया, संयुक्त राज्य अमेरिका, मारीशस, हवाई द्वीप-समूह, पीरू, अर्जेण्टाइना, मिस्र तथा अफ्रीका के कांगो बेसिन में भी गन्ने का उत्पादन किया जाता है।

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार
International Trade

गन्ने का कोई विदेशी व्यापार नहीं किया जाता। गन्ने को कच्चे संसाधन के रूप में प्रयुक्त कर चीनी एवं गुड़ आदि तैयार किये जाते हैं। इससे निर्मित चीनी का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में बड़ा महत्त्व है। सामान्यत: विश्व की कुल चीनी का लगभग 50% विकासशील देश, 30% विकसित देश तथा 20% साम्यवादी देश उत्पन्न करते हैं, किन्तु विश्व में कुल निर्यात मात्रा का 75% भाग विकासशील देशों से। प्राप्त होता है।

विश्व में चीनी के मुख्य आयातक राष्ट्र-संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, जापान, जर्मनी, इटली, नाइजीरिया, कनाडा आदि हैं। चीनी के निर्यातक देशों में क्यूबा, भारत, जावा, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, फिलीपीन्स, थाईलैण्ड, मॉरीशस आदि मुख्य हैं।

प्रश्न 4
बागाती कृषि का वर्णन कीजिए। [2011, 16]
या
विश्व में चाय की खेती का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत कीजिए –
(i) भौगोलिक दशाएँ,
(ii) वितरण,
(iii) व्यापार। [2011, 12, 13, 15, 16]
चाय की खेती के लिए उपयुक्त भौगोलिक दशाओं का वर्णन कीजिए तथा विश्व में इसकी पैदावार के प्रमुख क्षेत्र बताइए। [2007]
या
किसी एक व्यापारिक फसल की कृषि अनुकूल भौगोलिक दशाओं का वर्णन कीजिए। चाय के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की विवेचना कीजिए। [2007]
या
चाय की कृषि के लिए चार उपयुक्त भौगोलिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालिए। [2007, 09]
उत्तर
बागाती कृषि प्रमुख रूप से उष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों में विकसित है। इस कृषि के लिए शीतकाल का तापमान 60° से 65° फारेनहाइट आवश्यक होता है। यहाँ पर उगाई जाने वाली फसलों में चाय ही एक अपवाद कहा जा सकता है जो 37° उत्तरी अक्षांश एवं कुछ शीत-प्रधान क्षेत्रों में उगाई जाती है।

विशेष प्रकार की सब्जियों एवं फलों की कृषि को भी बागाती कृषि कहा जाता है। सं० रा० अमेरिका में इसे ‘टूक फार्मिंग’ कहते हैं। इस खेती में अधिकांश कार्य हाथों द्वारा किया जाता है जिसमें अधिक मेहनत एवं सावधानी रखनी पड़ती है। खेतों से अधिक उपज लेने के लिए उपयुक्त समय पर उचित मात्रा में रासायनिक खाद, पानी एवं अन्य उपकरणों की व्यवस्था आवश्यक होती है। इसमें अधिकांशत: दक्ष श्रमिक लगे होते हैं।

बागाती कृषि की विशेषताएँ
Characteristics of Plantation Agriculture

बागाती कृषि में निम्नलिखित विशेषताएँ पायी जाती हैं –

  1. यह कृषि फार्मों अथवा बागानों में की जाती है। अधिकांश बागानों पर विदेशी कम्पनियों का आधिपत्य रहा है।
  2. इसके अन्तर्गत विशिष्ट उपजों का ही उत्पादन किया जाता है; जैसे- केला, रबड़, कहवा, चाय, कोको आदि।
  3. इन कृषि के उत्पादों का उपयोग समशीतोष्ण कटिबन्धीय देशों के निवासियों द्वारा किया जाता है।
  4. बागानों में ही कार्यालय, माल तैयार करने, सुखाने तथा श्रमिकों के निवास आदि होते हैं।
  5. यहाँ पर अधिकांश तकनीकी एवं वैज्ञानिक पद्धतियाँ समशीतोष्ण देशों से आयात की गयी हैं।
  6. प्रारम्भ में यूरोपवासियों द्वारा प्राय: सभी महाद्वीपों में इसे कृषि को आरम्भ किया गया था। मलेशिया में रबड़ के बागान अंग्रेजों ने, ब्राजील में कॉफी के बागान पुर्तगालियों ने तथा मध्य अमेरिकी देशों में केले की कृषि स्पेनवासियों ने आरम्भ की थी।
  7. इनके उत्पादों का उपभोग समशीतोष्ण कटिबन्धीय देशों द्वारा किया जाता है। इसलिए इनके अधिकांश उत्पाद निर्यात कर दिये जाते हैं। इसी कारण इनके बागान तटीय क्षेत्रों अथवा पत्तनों के पृष्ठ प्रदेश में स्थापित किये जाते हैं।

प्रमुख बागाती पेय फसल : चाय
Main Plantation Bevearage : Tea

चाय विश्व में सबसे लोकप्रिय एवं सस्ता पेय-पदार्थ है। अब चाय का उपयोग शीत-प्रधान देशों के साथ-साथ उष्ण देशों में भी किया जाने लगा है। अनुमान किया जाता है कि आज से लगभग 2,700 वर्षों पहले चीन में चाय का उपयोग होता था। चाय पीने में स्वादिष्ट और थकान को दूर करने वाली होती है। चाय का पौधा झाड़ीनुमा 1.5 मीटर ऊँचा एवं सदाबहार होता है जिसकी पत्तियाँ चुनकर एवं सुखाकर चाय तैयार की जाती है। इसकी पत्तियाँ वर्ष में 3-4 बार चुनी जाती हैं। इन्हें मशीनों द्वारा सुखाकर डिब्बों में बन्द कर उपभोक्ताओं तक भेजा जाता है।

चाय के लिए आवश्यक भौगोलिक दशाएँ
Necessary Geographical Conditions for Tea

चाय की कृषि के लिए निम्नलिखित भौगोलिक दशाएँ आवश्यक होती हैं –
(1) जलवायु – चाय के लिए उष्णार्द्र एवं उपोष्ण जलवायु उपयुक्त रहती है। इसके लिए मानसूनी भूमि, उच्च तापमान, लम्बा उत्पादन काल एवं अधिक वर्षा आवश्यक होती है।

  1. तापमान – चाय के पौधे के विकास के लिए उच्च तापमान की आवश्यकता होती है, अर्थात् 25° से 30° सेग्रे ताप उपयुक्त रहता है। 20° सेग्रे से कम तापमान पर इसकी वृद्धि रुक जाती है, परन्तु असम में चाय का उत्पादन 35° सेग्रे तापमान वाले भागों में भी किया जाता है। इसकी उपज के लिए स्वच्छ एवं धूपदार मौसम उत्तम रहता है, जब कि पाला एवं कोहरा हानिकारक रहता है।
  2. वर्षा – इसके लिए अधिक आर्द्रता की आवश्यकता पड़ती है। वर्षा की मात्रा 75 से 150 सेमी पर्याप्त रहती है, परन्तु 250 सेमी से अधिक वर्षा वाले ढालू प्रदेशों में इसका उत्पादन बहुतायत से किया जाता है, जहाँ पौधों की जड़ों में पानी न रुकता हो। वर्षा वर्ष-भर समान रूप से होनी चाहिए। ओस तथा धुन्धयुक्त वातावरण उत्तम रहता है।

(2) मिट्टी एवं धरातल – चाय के लिए ढालू भूमि आवश्यक होती है जिसमें पानी न ठहरता हो। गहरी बलुई, पोटाश, लोहांश एवं जीवांशों से युक्त मिट्टी उपयुक्त रहती है। वनों से साफ की गयी मिट्टी में चाय बागान अधिक लगाये जाते हैं, क्योंकि इस मिट्टी की उर्वरा शक्ति बहुत अधिक होती है।
(3) मानवीय श्रम – इसकी कृषि के लिए पर्याप्त संख्या में सस्ता एवं कुशल श्रम उपयुक्त रहता है। स्त्रियाँ एवं बच्चे श्रमिक अधिक उपयोगी होते हैं। जनाधिक्य के कारण ही दक्षिणी एवं दक्षिणी-पूर्वी एशियाई देशों में चाय का उत्पादन किया जाता है।

विश्व में चाय का उत्पादन
Production of Tea in the World

विश्व में चाय का उत्पादन 40° दक्षिण से 50° उत्तरी अक्षांशों के मध्य किया जाता है, परन्तु चाय के प्रधान उत्पादक क्षेत्र दक्षिणी एवं दक्षिणी-पूर्वी एशियाई देश हैं, जहाँ विश्व की 72% से अधिक चाय का उत्पादन होता है। इसके अतिरिक्त अफ्रीका में केन्या, मलावी, युगाण्डा, तंजानिया, जाम्बिया में 11%; जार्जिया (पूर्व सोवियत संघ) के ट्रांस-काकेशिया प्रदेश में 6% तथा शेष ब्राजील एवं अर्जेण्टाइना आदि देशों में उगाई जाती है। एशिया में भारत, चीन, श्रीलंका, बांग्लादेश, तुर्की, ईरान, वियतनाम आदि देश मुख्य हैं।
भारत, श्रीलंका एवं बांग्लादेश, तीनों मिलकर विश्व की 39%, जापान एवं चीन 25%, इण्डोनेशिया एवं वियतनाम 8% चाय का उत्पादन करते हैं, जब कि जार्जिया विश्व की केवल 5% चाय उगाता है।

(1) चीन – यह विश्व का प्रथम चाय उत्पादक देश है। यहाँ विश्व की 46% से अधिक चाय उत्पन्न होती है। यहाँ चाय के अन्तर्गत क्षेत्र संसार में सर्वाधिक है। यहाँ छोटे बागान यांग्टीसी व सिक्यांग की घाटियों में पर्वतीय ढलानों पर पाये जाते हैं। चीन में चाय के तीन प्रमुख क्षेत्र हैं –

  1. पूर्वी तटीय क्षेत्र-कैण्टन व शंघाई के बीच पर्वतीय ढलानों पर चाय के बागान स्थित हैं।
  2. यांग्टीसी घाटी-यहाँ हुनान, क्यांगसी तथा चिक्यांग आदि पर्वतीय राज्यों में चाय के बागीन पाये जाते हैं।
  3. जेचवान बेसिन – यहाँ पर्वतीय घाटियों में चाय के बागान मिलते हैं। चीन में चाय की ईंटें बनाने का प्रचलन है। चाय की रूढ़िपूर्ण खेती के कारण उत्पादन अधिक नहीं है। यहाँ की चाय भी उत्तम किस्म की न होने के कारण स्पर्धा में अन्य देश आगे निकल गये हैं।

(2) भारत – यह विश्व में चाय का द्वितीय प्रमुख उत्पादक देश है। यहाँ 3.7 लाख हेक्टेयर भूमि पर विस्तृत चाय के बागानों में विश्व की लगभग 30% चाय प्राप्त होती है। देश का 3/4 से अधिक उत्पादन उत्तरीपूर्वी हिमालय के ढालों पर असम व पश्चिम बंगाल राज्यों में होता है। ब्रह्मपुत्र की ऊपरी घाटी, सुरमा घाटी, पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग व जलपाईगुड़ी के पर्वतीय भागों, बिहार के पर्वतीय भागों, छोटा नागपुर के पठारी भागों, उत्तर प्रदेश व हिमाचल प्रदेश के पर्वतीय जिलों (कांगड़ा) एवं दक्षिणी भारत में नीलगिरी की पहाड़ियों पर (केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु राज्यों में) चाय का उत्पादन होता है।

(3) केन्या – यह विश्व में चाय का तीसरा वृहत्तम उत्पादक देश है। देश के निर्यात पदार्थों में चाय प्रमुख है। गत वर्षों में यहाँ चाय का उत्पादन तीव्रता से बढ़ा है। यहाँ विश्व की लगभग 8% चाय उत्पन्न होती है। कैरिचो व लिमुरु क्षेत्र प्रमुख उत्पादक हैं। समस्त उत्पादन का 80% निर्यात पर दिया जाता है।

(4) श्रीलंका – यह विश्व का चौथा वृहत्तम चाय उत्पादक देश है। मध्यवर्ती पर्वतीय भाग के ढलानों पर कैन्डी से दक्षिण की ओर चाय के बागान मिलते हैं। यहाँ 19वीं शताब्दी में चाय की बागाती । खेती का विस्तार हुआ। 19वीं शताब्दी के मध्य में यहाँ केवल 4 हेक्टेयर भूमि पर चाय के बागान थे, आज यहाँ 2.4 लाख हेक्टेयर भूमि पर बागानों का विस्तार है। यहाँ विश्व की लगभग 10% चाय उत्पन्न होती है तथा भारी मात्रा में निर्यात होता है। श्रीलंका का अर्थतन्त्र चाय के उत्पादन पर आधारित है।

(5) टर्की – यहाँ विश्व की लगभग 6% चाय उत्पन्न होती है। काला सागर के पूर्वी तटीय ढालों एवं देश के पश्चिमी तटीय भागों में चाय के बागान अधिक पाये जाते हैं।
(6) वियतनाम – यहाँ विश्व की 2.5% चाय पैदा होती है।

(7) इण्डोनेशिया – यहाँ प्राचीन काल से ही चाय की खेती का प्रचलन रहा। जावा की गहरी । लाल लावा की मिट्टियों व अन्य भौगोलिक सुविधाओं से सम्पन्न द्वीप में चाय के विस्तृत बागात हैं। सुमात्रा में उत्तरी-पूर्वी भाग में पर्वतीय ढलानों पर चाय के बागान पाये जाते हैं। यहाँ विश्व की 5% से अधिक चाय उत्पन्न की जाती है। विदेशों को चाय का निर्यात भी किया जाता है।

(8) जापान – यहाँ विश्व की लगभग 3% चाय उत्पन्न होती है। पर्वतीय ढलानों पर चाय के बागानों का विस्तार है। सस्ते श्रमिक, उत्तम भौगोलिक दशाओं एवं नवीनतम वैज्ञानिक तथा प्राविधिक विकास के कारण यहाँ चाय की खेती व्यापक रूप से होती है। होन्शू द्वीप पर शिजुओका प्रान्त व टोकियो तथा नगोया के मध्यवर्ती भाग पर चाय के बागानों का विस्तार पाया जाता है। जापान की उत्तम हरी चाय विश्वविख्यात है। इसका निर्यात भी किया जाता है।

(9) बांग्लादेश – यहाँ विश्व की 2% से अधिक चाय उत्पन्न होती है। सिलहट जिले में चाय का अधिक उत्पादन होता है।
(10) अन्य उत्पादक देश – ईरान, मलावी, अर्जेण्टाइना, युगाण्डा, मलेशिया, मोजाम्बिक, तन्जानिया आदि देश विश्व की 1% से अधिक चाय उत्पन्न करते हैं। छोटे उत्पादकों में जायरे, थाईलैण्ड, म्यांमार, पाकिस्तान, पीरू, इक्वेडोर, ब्राजील, ताइवान आदि हैं।

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार International Trade
चाय का प्रचलन व्यापक तथा उत्पादन सीमित होने के कारण इसका व्यापार महत्त्वपूर्ण है। इसका उत्पादन विकासशील देशों में तथा अधिक उपभोग विकसित देशों में होता है। संयुक्त राज्य, कनाडा, सोवियत संघ, ब्रिटेन व ऑस्ट्रेलिया चाय के प्रमुख आयातक देश हैं। ब्रिटेन चाय का सबसे बड़ा आयातक देश है। निर्यातक देशों में भारत, श्रीलंका, इण्डोनेशिया, बांग्लादेश व केन्या हैं।

प्रश्न 5
विश्व में कहवा की खेती के लिए आवश्यक भौगोलिक दशाओं का वर्णन कीजिए तथा इसके प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों को भी बताइए।
या
किसी एक व्यापारिक फसल की कृषि की अनुकूल भौगोलिक दशाओं का वर्णन कीजिए।
या
कहवा की कृषि के लिए चार प्रमुख आवश्यक भौगोलिक दशाओं की विवेचना कीजिए। [2008]
या
विश्व में कहवा उत्पादन का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत कीजिए-
(क) उपयुक्त भौगोलिक दशाएँ
(ख) उत्पादन के प्रमुख क्षेत्र
(ग) विश्व व्यापार। [2014, 16]
उत्तर
कहवा भी चाय की भाँति आधुनिक युग का एक पेय-पदार्थ है। अबीसीनिया के पठारी क्षेत्रों (इथोपिया-अफ्रीका) पर यह पौधा सबसे पहले उगा था। यहीं से इसकी कृषि का प्रचार अरब देशों में हुआ। यमन में इसका प्रसार अधिक हुआ है। यूरोपीय देशों में इसका प्रचार-प्रसार 17 वीं शताब्दी में हुआ। भारत में भी पश्चिमी समुद्रतटीय प्रदेश के दक्षिणी भाग में इसका विकास हुआ। अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में इसका इतिहास केवल 100 वर्ष पुराना है।
कहवी एक वृक्ष के बीजों को सुखाकर तथा उन्हें भूनकर बारीक चूरे के रूप में प्रयोग किया जाता है। यह चाय की अपेक्षा अधिक गर्म तथा नशीला होता है।

आवश्यक भौगोलिक दशाएँ
Necessary Geographical Conditions

(1) जलवायु – कहवा उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र जलवायु का पौधा है। यह 28° उत्तरी अक्षांशों से 38° दक्षिणी अक्षांशों तक उगाया जाता है, परन्तु 90% उत्पादन विषुवत् रेखा के दोनों ओर 24° उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांशों के मध्य 500 मीटर से 1,800 मीटर की ऊँचाई वाले भागों में किया जाता है। उष्णार्द्र जलवायु इसके लिए अधिक उपयुक्त रहती है।

  1. तापक्रम – कहवा का वृक्ष 15° से 30° सेग्रे तक तापमानों में उत्पन्न होता है। तेज धूप से रक्षा के लिए इसे छायादार वृक्षों के साथ उगाया जाता है। पाला इसके लिए अधिक हानिकारक होता है। ताजी वायु एवं प्रकाश में इसकी वृद्धि अधिक होती है।
  2. वर्षा – कहवा के पौधों को पर्याप्त आर्द्रता की आवश्यकता होती है। इसके लिए 150 से 250 सेमी वर्षा उपयुक्त रहती है, परन्तु पौधों की जड़ों में जल नहीं भरा रहना चाहिए तथा पकते समय वर्षा नहीं होनी चाहिए।

(2) मिट्टी एवं धरातल – पहाड़ी या पठारी ढालू भूमि उपयुक्त रहती है। कहवा मिट्टी के पोषक तत्त्वों को अधिक ग्रहण करता है; अतः उपजाऊ एवं घनी दोमट, जीवांशयुक्त, लौह एवं चूनायुक्त, खनिज एवं लावायुक्त मिट्टी उपयोगी रहती है। कांपयुक्त डेल्टाई मिट्टी में भी कहवा उगाया जाता है।

(3) मानवीय श्रम – कहवे की खेती के लिए सस्ते श्रमिकों की आवश्यकता होती है। प्राकृतिक रूपसे कहवे के पौधे 15 मीटर तक ऊँचे होते हैं। अतः फल तोड़ने, बीज निकालने, सुखाने एवं कहवे की विभिन्न किस्में तैयार करने में प्रचुर मानवीय श्रम आवश्यक होता है।

विश्व में कहवा के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र
Main Coffee Producing Areas in the World

अरब से विश्व के अनेक देशों में कहवे का प्रचार हुआ। किसी समय में इण्डोनेशिया में इसके बागात विकसित थे। श्रीलंका व भारत में भी कहवे के बागान लगाये गये, जो रोगग्रस्त हो गये। पश्चिमी द्वीप समूह में भी बागान लगाये गये, किन्तु अब वहाँ भी इसका महत्त्व घट गया है। वर्तमान समय में विश्व के कहवा उत्पादन देशों को निम्नलिखित चार वर्गों में रखा जा सकता है –
(1) दक्षिण अमेरिकी देश – ये देश विश्व का 3/4 कहवा उत्पन्न करते हैं। इनमें ब्राजील मुख्य उत्पादक देश है, जो विश्व का लगभग 1/3 कहवा उत्पन्न करता है। कोलम्बिया, इक्वेडोर, वेनेजुएला, गयाना अन्य उत्पादक देश हैं।

(2) मध्य अमेरिका व पश्चिमी द्वीप समूह – ये देश संसार को लगभग 1/8 कहवा उत्पन्न करते हैं। मैक्सिको, साल्वाडोर, ग्वाटेमाला, निकारागुआ, पोटरिको, डोमीनिकन, कोस्टारिका, होन्डुरास, क्यूबा, हैटी, जमैका, ट्रिनिडाड आदि देश इसमें सम्मिलित हैं।

(3) अफ्रीकी देश – पश्चिमी व दक्षिणी-पश्चिमी अफ्रीकी देश-घाना, अंगोला, केन्या, इथोपिया, आइवरी कोस्ट, युगाण्डा, तन्जानिया, जायरे, कैमरून गणतन्त्र आदि इस क्षेत्र के प्रमुख कहवी उत्पादक देश हैं।

(4) दक्षिणी एशिया – इण्डोनेशिया, फिलीपीन्स, श्रीलंका, भारत, यमन आदि देश कहवा उत्पन्न करते हैं। इनका विस्तृत वर्णन अग्रलिखित है –

  • ब्राजील – यह विश्व का वृहत्तम कहवा उत्पादक देश है। यहाँ विश्व का 1/3से अधिक कहवी उत्पन्न किया जाता है। बीसवीं शताब्दी के आरम्भ में यहाँ विश्व का 3/4 कहवा उत्पन्न होता था। मिनास ग्रेस व साओपॉलो प्रमुख कहवा उत्पादक राज्य हैं। अकेले साओपॉलो राज्य से देश का 2/3 कहवा प्राप्त होता है। यहाँ हजारों हेक्टेयर में कहवा के बागान (फाजेन्डा) विस्तृत हैं। लौह तत्त्व युक्त टेरारोसा मिट्टियाँ एवं काली मिट्टी अत्यन्त उर्वर हैं। इटालवी श्रमिकों व टेक्नीशियनों की देख-रेख, सरकारी नियन्त्रण एवं प्रोत्साहन के कारण कहवा उत्पादन अत्यन्त विकसित है। साण्टोस बरियो डिजेनेरो पत्तनों से कहवा निर्यात किया जाता है। ‘कॉफी बीटिल’ नामक कीटाणु से कहवा क्षतिग्रस्त होता है।
  • कोलम्बिया – यह विश्व का तृतीय वृहत्तम कहवा उत्पादक देश है। यहाँ विश्व का लगभग 10% कहवी उत्पन्न होता है। यहाँ मध्यवर्ती श्रेणियों के पूर्वी तथा पश्चिमी ढालों पर 1,200 से 2,100 मीटर की ऊँचाई पर लावा की उर्वर मिट्टियाँ पायी जाती हैं। बोगोटा के पश्चिम में मागडालेना व दक्षिण में मैडेलीन नदियों के समीपवर्ती भागों में अधिक कहवा उत्पन्न किया जाता है। यहाँ के बागान छोटे आकार के हैं किन्तु कहवा उत्तम किस्म का है। यहाँ प्रति हेक्टेयर उत्पादन (632 किग्रा), ब्राजील (412 किग्रा) से अधिक है। काल्डास प्रदेश तथा एन्टीकुमा क्षेत्र में कहवा उत्पन्न मुख्य रूप से होता है। यहाँ कहवा के बागान ‘ग्वामो’ नामक छतरीनुमा वृक्षों की छाया में लगाये जाते हैं।
  • इण्डोनेशिया – यहाँ विश्व का 7% से अधिक कहवा उत्पन्न होता है। पूर्वी जावा में पर्वतीय ढाल प्रमुख कहवा उत्पादक हैं। यहाँ अक्सर कहवे की सम्पूर्ण फसल रोगग्रस्त होकर नष्ट हो जाती है।
  • भारत – यहाँ कहवे की बागाती खेती 1840 ई० में आरम्भ हुई। यहाँ विश्व का 4% से अधिक कहवा उत्पन्न किया जाता है। देश का 3/4 कहवा कर्नाटक राज्य से प्राप्त होता है। तमिलनाडु व केरल अन्य उत्पादक राज्य हैं।
  • इथोपिया – यहाँ विश्व का 3% से अधिक कहवा प्राप्त होता है। पूर्वी पठारी भाग पर जीमा, हरार उच्च भूमि एवं कॉफी प्रमुख उत्पादक हैं।
  • मैक्सिको – यहाँ विश्व का लगभग 4% कहवा उत्पन्न होता है। खाड़ी तटीय भाग एवं उत्तरी-पश्चिमी पर्वतीय ढाल प्रमुख उत्पादक हैं। यहाँ से संयुक्त राज्य को कहवा निर्यात किया जाता है।
  • आइवरी कोस्ट – यहाँ विश्व का 4% कहवा उत्पन्न होता है। गिनी खाड़ी का तटीय भाग मुख्य कहवा उत्पादक है। बड़ी मात्रा में कहवे का निर्यात होता है।
  • ग्वाटेमाला – यहाँ विश्व का लगभग 4% कहवा उत्पन्न होता है। यहाँ सान मारकोस, साण्टा रोजा, तिजालते, नागो व सुचिते पेकेज मुख्य उत्पादक प्रान्त हैं।
  • कोस्टारिका – यह मध्य अमेरिकी देश विश्व का 2% से अधिक कहवा उत्पन्न करता है। यहाँ से संयुक्त राज्य को कहवा निर्यात किया जाता है।
  • फिलीपीन्स – यहाँ विश्व का लगभग 2% कहवा उत्पन्न होता है।
  • अन्य उत्पादक देश – अफ्रीका में – जायरे, कैमरून, मलागासी, केन्या, अंगोला, गैबोन: एशिया में– यमन; दक्षिणी अमेरिका में इक्वेडोर, पीरू, अर्जेण्टाइना तथा ओशेनिया में-पापुआ न्यूगिनी अन्य महत्त्वपूर्ण कहवा उत्पादक हैं।

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार International Trade
चाय की भाँति कहवे का उपभोग भी विकसित राष्ट्रों में अधिक होता है, जबकि इसका उत्पादन विकासशील तथा अविकसित देशों में होता है। विश्व में कुल कहवा आयात में 90% विकसित राष्ट्रों को योगदान है। अकेला संयुक्त राज्य ही कुल आयात का आधा भाग आयात करता है। कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस, इटली आदि विकसित राष्ट्र अन्य प्रमुख आयातक हैं। निर्यातक देशों में ब्राजील, कोलम्बिया, मैक्सिको, अफ्रीकी देश, मध्य अमेरिकी देश, भारत, यमन व फिलीपीन्स हैं। कुल निर्यात का लगभग 45% ब्राजील व कोलम्बिया से, 25% अफ्रीकी देशों से, 20% मध्य अमेरिकी देशों व 5% इण्डोनेशिया से प्राप्त होता है।

 

प्रश्न 6
कपास की कृषि के लिए अनुकूल भौगोलिक दशाओं का वर्णन कीजिए तथा विश्व में उसके उत्पादन के प्रमुख क्षेत्रों का उल्लेख कीजिए। [2007, 12, 14, 15]
या
कपास की खेती के लिए उपयुक्त भौगोलिक दशाओं की समीक्षा करते हुए विश्व में इसके वितरण को समझाइए। [2009]
या
कपास की खेती के लिए अनुकूल भौगोलिक दशाओं की व्याख्या कीजिए तथा विश्व के किसी एक देश में इसकी खेती का वर्णन कीजिए। [2008]
या
कपास की कृषि के लिए अनुकूल भौगोलिक दशाओं का उल्लेख कीजिए तथा संयुक्त राज्य अमेरिका की कपास मेखला का वर्णन कीजिए। [2012]
या
कपास की कृषि हेतु निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत वर्णन कीजिए –
(अ) भौगोलिक दशाएँ
(ब) उत्पादन के क्षेत्र
(स) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार। (2012, 14, 16)
उत्तर
कपास एक रेशेदार तथा व्यापारिक फसल है जिससे सूती वस्त्रों का निर्माण किया जाता है। प्रमुख रूप से उष्ण जलवायु वाले प्रदेशों में सूती वस्त्र पहने जाते हैं। यह एक प्रमुख मुद्रादायिनी फसल है।
भारत में मोहनजोदड़ो एवं हड़प्पा संस्कृति में आज से 5,000 वर्ष पूर्व सूती वस्त्रों का प्रचलन था। इस आधार पर भारत को कपास का मूल स्थान माना जा सकता है। इसके बाद इसका प्रचार चीन तथा अन्य देशों में हुआ। सिकन्दर के आक्रमण के बाद इसका प्रचार यूनान में हुआ तथा धीरे-धीरे यह सम्पूर्ण विश्व में फैल गया।

कपास का पौधा गॉसीपियम नामक पौधे का वंशज है जो झाड़ीनुमा होता है। यह 1.5 मीटर से 2.0 मीटर तक ऊँचा होता है। इनमें श्वेत फूल तथा इनके स्थान पर बोडियाँ निकल आती हैं। इनके खिलने पर रेशों का गुच्छा निकलता है, जिन्हें सुखाकर बीज (बिनौले) अलग किये जाते हैं। इसके पश्चात् रेशों को चुनकर धागा तैयार किया जाता है और कपड़ा बुना जाता है। कपास से निकले बिनौलों का उपयोग पशुओं को खिलाने तथा वनस्पति तेल बनाने में किया जाता है।

कपास हेतु अनुकूल भौगोलिक दशाएँ
Favourable Geographical Conditions for Cotton

कपास मुख्यत: उपोष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों की उपज है, परन्तु उष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों में भी कपास उगायी जाती है। प्रमुख रूप से इसका उत्पादन 40°उत्तरी अक्षांशों से 30°दक्षिणी अक्षांशों के मध्य स्थित देशों में किया जाता है।
(1) जलवायु – कपास के लिए उष्ण एवं कम आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है। उत्पादन काल के लगभग 7 महीनों तक (200 से 210 दिनों तक) पालारहित मौसम होना चाहिए।

  1. तापमान – इसकी खेती के लिए उच्च तापमान वाले क्षेत्र उपयुक्त रहते हैं। उगते समय 20°से 30° सेग्रे तथा पकते समय 25° से 35° सेग्रे तापमान आवश्यक होता है। इसकी खेती में पाला बहुत ही हानिकारक होता है। कपास के रेशे की वृद्धि के लिए समुद्रतटीय नम पवनें बहुत ही लाभदायक रहती हैं। पकते समय स्वच्छ आकाश, तेज गर्मी एवं धूप लाभदायक होती है।
  2. वर्षा – इसके पौधों को पर्याप्त नमी आवश्यक होती है। वर्षा की मात्रा 75 से 100 सेमी पर्याप्त रहती है, परन्तु वर्षा का जल पौधों की जड़ों में रुकना हानिकारक रहता है। कम वर्षा वाले भागों में सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। सिंचित कपास का रेशा लम्बा एवं सुदृढ़ होता है।

(2) मिट्टी – कपास का पौधा मिट्टी के उर्वरकं तत्त्वों का अधिक शोषण करता है। लत्वा निर्मित उपजाऊ काली मिट्टी सर्वश्रेष्ठ रहती है, क्योंकि इसमें नमी धारण करने की पर्याप्त क्षमता होती है। कैल्सियम, फॉस्फोरस, मैग्नीशियम आदि लवणों से युक्त मिट्टी भी उपयुक्त रहती है। इसके लिए समतल एवं सुप्रवाहित धरातल का होना आवश्यक होता है।

(3) मानवीय श्रम – कपास को बोने, निराई-गुड़ाई करने, चुनने आदि के लिए पर्याप्त संख्या में सस्ते श्रमिकों की आवश्यकता होती है। कपास चुनने का कार्य स्त्रियों एवं बच्चों द्वारा कराया जाना अधिक उपयुक्त एवं कम खर्चीला रहता है। संयुक्त राज्य एवं स्वतन्त्र देशों के राष्ट्रकुल में चुनाई का कार्य मशीनों द्वारा किया जाता है।

विश्व में कपास उत्पादक देश
Cotton Producing Countries in World

विश्व में कपास के प्रमुख उत्पादक देश निम्नलिखित हैं –
(1) चीन – कपास के उत्पादन में चीन का विश्व में प्रथम स्थान है। यहाँ विश्व की 18.9% कपास उत्पन्न की जाती है। यहाँ पर अनुकूल जलवायु एवं उपजाऊ भूमि कपास की कृषि में सहायक है तथा भारतीय किस्म की कपास का उत्पादन किया जाता है। यहाँ कपास के मुख्य उत्पादक क्षेत्र निम्नलिखित हैं –

  1. मध्य-पूर्वी चीन में यांगटिसीक्यांग की घाटी एवं समुद्रतटीय मैदान
  2. ह्वांगहो तथा उसकी सहायक नदियों की घाटियाँ
  3. पश्चिमी चीन तथा सीक्यांग के शुष्क प्रदेशों में सिंचित क्षेत्र
    चीन में कपास उत्पादने का अधिकांश भाग जनसंख्या अधिक होने के कारण देश में ही उपभोग कर लिया जाता है, क्योंकि घरेलू खपत बहुत अधिक है।

(2) संयुक्त राज्य अमेरिका – कपास के उत्पादन में संयुक्त राज्य अमेरिका को विश्व में दूसरा स्थान है। यह संयुक्त राज्य की प्रमुख मुद्रादायिनी फसल है। यहाँ पर कपास उत्पादन के विशाल क्षेत्र को, जिसकी पश्चिमी सीमा 200 दिन पालारहित रेखा द्वारा निर्धारित होती है, कपास की पेटी’ के नाम से पुकारते हैं। संयुक्त राज्य विश्व का 15.6% कपास उत्पन्न करता है। यहाँ पर कपास उत्पादन के निम्नलिखित दो क्षेत्र उल्लेखनीय हैं –

  1. कपास की पेटी – इसका विस्तार 37° उत्तरी अक्षांश के दक्षिण में उत्तरी कैरोलिना राज्य से लेकर टेक्सास राज्य तक है। कैरोलिना, जोर्जिया, अलाबामा, टेनेसी, अरकंसास, मिसीसिपी, ओक्लोहामा आदि राज्यों में यह पेटी विस्तृत है। कपास की यह पेटी निम्नलिखित क्षेत्रों में विशिष्टीकरण कर गयी है –
    • आन्तरिक समुद्रतटीय क्षेत्र
    • पर्वतीय क्षेत्र
    • टेनेसी घाटी क्षेत्र
    • मिसीसिपी नदी की निम्नघाटी
    • टेक्सास राज्य का मध्य एवं काली मिट्टी का क्षेत्र
    • पश्चिमी टेक्सास एवं ओक्लोहामा का घास क्षेत्र तथा
    • टेक्सास राज्य का दक्षिणी समुद्रतटीय मैदानी क्षेत्र।
  2. पश्चिमी क्षेत्र – वर्तमान में कपास की यह पेटी पश्चिम की ओर स्थानान्तरित हो रही है, क्योंकि दक्षिणी-पश्चिमी क्षेत्रों में अब सूती वस्त्र उद्योग की स्थापना प्रारम्भ हो गयी है। कैलीफोर्निया एवं एरिजोना राज्यों में कपास को प्रोत्साहन दिया जा रहा है।

(3) पाकिस्तान – कपास के उत्पादन में पाकिस्तान का विश्व में तीसरा स्थान है। यहाँ विश्व की 6.5% कपास पैदा होती है। सिन्धु तथा उसकी सहायक नदियों के मैदानों में लायलपुर, मोण्टगोमरी, मुल्तान, सक्खर, लाहौर, शेखूपुरा आदि मुख्य उत्पादक क्षेत्र हैं।

(4) भारत – कपास के उत्पादन में भारत का विश्व में चौथा स्थान है। यहाँ सबसे अधिक भूमि कपास के उत्पादन में लगी है, परन्तु प्रति हेक्टेयर उत्पादन कम है। भारत में छोटे रेशे वाली कपास अधिक उगायी जाती है। भारत विश्व की 6.2% कपास उगाता है। यहाँ कपास का उत्पादन मुख्यत: काली मिट्टी के क्षेत्रों में किया जाता है। महाराष्ट्र का कपास के उत्पादन में प्रथम स्थान है। अन्य कपास उत्पादक राज्यों में पंजाब, गुजरात, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, हरियाणा एवं आन्ध्र प्रदेश आदि राज्य मुख्य हैं।

(5) उज्बेकिस्तान – सन् 1970 से पूर्व सोवियत संघ का कपास के उत्पादन में प्रथम स्थान था, परन्तु 1991 ई० में विघटन के बाद इसका महत्त्व घट गया है। सोवियत संघ के स्वतन्त्र देशों में उज्बेकिस्तान तथा तुर्कमेनिस्तान में सिंचाई द्वारा कपास का उत्पादन होता है। उज्बेकिस्तान में विश्व की 4.3% कपास पैदा होती है।

(6) ब्राजील – विश्व की 3.1% कपास का उत्पादन ब्राजील में होता है। यहाँ तटीय भागों में कपास का उत्पादन किया जाता है। मिनास-गैरास, पैरानाम्बुको, बाहिया, सॉओपालो प्रमुख कपास उत्पादक क्षेत्र हैं।

(7) मिस्र – कपास इस देश की प्रमुख उपज है। यद्यपि विश्व के कपास उत्पादक देशों में इसका स्थान नगण्य है। यहाँ पर विश्व की सर्वोत्तम एवं लम्बे रेशे वाली कपास का उत्पादन किया जाता है। मिस्र में नील नदी की उपजाऊ काँप मिट्टी में कपास उगायी जाती है। मिस्र की मुख्य निर्यातक वस्तु कपास है। कृषि योग्य भूमि के 20% क्षेत्रफल पर कपास का उत्पादन किया जाता है। विश्व में मिस्र कपास का मुख्य निर्यातक देश है। भारत, चीन, ब्रिटेन, संयुक्त राज्य एवं यूरोपियन देश यहाँ की कपास के प्रमुख ग्राहक हैं।

(8) मैक्सिको – मैक्सिको में कपास उत्पादन के निम्नलिखित चार उत्पादक क्षेत्र हैं –

  1. कोलोरेडो नदी का डेल्टाई भाग
  2. रियोग्रादे नदी की घाटी
  3. आन्तरिक प्रदेश एवं लैगुना क्षेत्र
  4. समुद्रतटीय भाग। कुछ भागों को छोड़कर सम्पूर्ण काँप मिट्टी क्षेत्रों में कपास उगायी जाती है। अधिकांश नमी सिंचाई अथवा बाढ़ों द्वारा प्राप्त होती है।

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार – कपास का औद्योगिक महत्त्व होने के कारण अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में महत्त्वपूर्ण स्थान है। विश्व के कुल उत्पादन को एक-तिहाई भाग निर्यात कर दिया जाता है। संयुक्त राज्य अमेरिका, पाकिस्तान, मिस्र, सूडान, मैक्सिको, ब्राजील, तुर्की, सीरिया, भारत तथा चीन कपास के प्रमुख निर्यातक देश हैं। जापान, ब्रिटेन, चीन, जर्मनी, कोरिया, फ्रांस, पोलैण्ड आदि आयातक देश हैं।

प्रश्न 7
रबड़ की कृषि के लिए उपयुक्त भौगोलिक देशाओं की विवेचना कीजिए तथा दक्षिण-पूर्वी एशिया के रबर उत्पादक प्रमुख क्षेत्रों का उल्लेख कीजिए।
या
रबड़ की खेती के अनुकूल भौगोलिक दशाओं का उल्लेख कीजिए तथा उसको विश्व-वितरण बताइए।
या
विश्व में रबड़ की खेती का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत कीजिए-
(अ) अनुकूल भौगोलिक दशाएँ
(ब) उत्पादक देश
(स) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार। [2008, 10, 11, 14]
उतर
रबड़ एक हैविया नामक पौधे का दूध (Latex) होता है जो विषुवत्रेखीय सदाबहार के वनों से प्राप्त होता है। इसे गाढ़ा करके रबड़ तैयार की जाती है। सर्वप्रथम जंगली रूप में यह अमेजन बेसिन (ब्राजील) में उगती थी। यहीं से ब्रिटेनवासियों द्वारा इसे दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों में ले जाया गया। व्यावसायिक स्तर पर इसका प्रयोग 18वीं शताब्दी से प्रारम्भ किया, परन्तु अब से लगभग 500 वर्ष पहले। यह केवल विद्यार्थियों द्वारा पेन्सिल के निशान मिटाने के ही काम आती थी। वर्तमान समय में सभ्य देशों में इसकी मॉग में वृद्धि होती जा रही है।

रबड़ का पौधा सात वर्षों में तैयार होता है। एक एकड़ से औसत रूप में 500 से 1,000 लीटर तक दूध की वार्षिक उपज प्राप्त होती है। इस दूध को बाल्टियों में एकत्र कर कारखानों तक भेजा जाता है तथा रबड़ तैयार की जाती है।

अनुकूल भौगोलिक दशाएँ
Favourable Geographical Conditions

(1) जलवायु – रबड़ उष्ण कटिबन्धीय उपज है; अतः इसका अधिकांश उत्पादन विषुवतरेखीय जलवायु प्रदेशों में किया जाता है। उष्णार्द्र जलवायु इसके लिए उपयुक्त रहती है। दक्षिण-पूर्वी एशिया, मध्य अफ्रीका एवं ब्राजील में इस प्रकार की जलवायु दशाएँ मिलती हैं।

  1. तापक्रम – रबड़ सदाबहार पौधा होने के कारण उष्ण तापमान में पनपता है। इसके लिए 25° से 30° सेग्रे तापमान आवश्यक होता है, परन्तु 21° सेग्रे से कम तापमान में इसके पौधों का विकास नहीं हो पाता है।
  2. वर्षा – रबड़ के पौधों के लिए अधिक आर्द्रता की आवश्यकता होती है; अत: 200 से 300 सेमी वर्षा उपयुक्त रहती है। इससे कम वर्षा हानिकारक रहती है। वर्षा भी संवाहनिक पद्धति से आवश्यक होती है तथा वर्ष भर समान रूप से होती रहनी चाहिए। नमी के अभाव में वृक्षों का दूध सूख जाता है।

(2) मिट्टी – रबड़ के लिए सामान्य ढाल वाली भूमि होनी चाहिए जिससे उसकी जड़ों में पानी न ठहर सकता हो। उपजाऊ जलोढ़ एवं दोमट मिट्टी से अधिक उत्पादन प्रप्त होता है, दलदली भूमि सर्वथा अनुपयुक्त होती है, क्योंकि इसमें बीमारी का भय बना रहता है।
(3) मानवीय श्रम – रबड़ के बागान लगाने, देखभाल करने तथा वृक्षों से दूध एकत्र करने के लिए अधिक संख्या में सस्ते श्रमिकों की आवश्यकता होती है। इसी कारण रबड़ की कृषि सघन जनसंख्या वाले देशों में की जाती है।

विश्व में रबड़ का उत्पादन
Rubber Production in the World

विश्व में रबड़ के उत्पादन में दक्षिण-पूर्वी एशिया का महत्त्वपूर्ण स्थान है, जहाँ विश्व की 95% रबड़ उत्पन्न की जाती है। विश्व में दो प्रकार की स्क्ड़ उगाई जाती हैं जंगली तथा बागाती। कुल उत्पादन का 2% जंगली तथा 98% बागाती रबड़ होती है। सन् 1950 के बाद रबड़ के उत्पादन में 65% वृद्धि हुई है।

दक्षिण-पूर्वी एशिया में रबड़ का उत्पादन
Production of Rubber in South-East Asia

(1) थाईलैण्ड – विश्व के रबड़ उत्पादन में थाईलैण्ड का प्रथम स्थान है। अधिकांश रबड़ का उत्पादन छोटे कृषकों द्वारा किया जाता है। विश्व की 40% रबड़ का उत्पादन थाईलैण्ड में किया जाता है। प्रायद्वीपीय भागों के दक्षिणी-पश्चिमी छोर पर रबड़ के बागाने लगे हैं। रबड़ के निर्यात से 15% राष्ट्रीय आय प्राप्त होती है।

(2) इण्डोनेशिया – विश्व रबड़ उत्पादन में इण्डोनेशिया का दूसरा स्थान है। यहाँ विश्व की 35% रबड़ उगाई जाती है। उष्ण जलवायु, उपजाऊ भूमि तथा पर्याप्त वर्षा रबड़ उत्पादन में सहायक सिद्ध हुई। है। निर्यातक वस्तुओं में रबड़ का स्थान दूसरा है। यहाँ पर सभी द्वीपों (जावा, सुमात्रा तथा कालीमन्तन) में रबड़ की कृषि की जाती है। रबड़ की कृषि का विकास डच लोगों द्वारा किया गया था। इण्डोनेशिया में रबड़ के निर्यात से 44% राष्ट्रीय आय प्राप्त होती है। जावा के दक्षिण, सुमात्रा के मध्यवर्ती एवं कालीमन्तन के तटीय क्षेत्रों में रबड़ के बागान लगाये गये हैं। जकार्ता पत्तन से रबड़ का निर्यात किया जाता है।

(3) मलेशिया – रबड़ के उत्पादन में विश्व में मलेशिया का तीसरा स्थान है, जहाँ कृषि-योग्य भूमि के 2/3 भाग पर रबड़ के बागान हैं। यहाँ विश्व की 12% रबड़ का उत्पादन किया जाता है तथा देश की 42% जनसंख्या रबड़ उत्पादन में लगी है। जोहोर, मलक्का, पेराक, पेनांग, डिडिंगे, सेलागोंर प्रदेश रबड़ के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैं। मलाया के दक्षिणी तथा पश्चिमी भागों में रबड़ के बागान लगाये गये हैं। रबड़ उत्पादन के लिए इस देश में उपयुक्त जलवायु, उपजाऊ मिट्टी, बागाती कृषि, सस्ता जल यातायात, रेल एवं सड़क-मार्गों का रबड़ क्षेत्रों से सीधा सम्बन्ध, सस्ता श्रम एवं सरकारी प्रोत्साहन जैसी भौगोलिक सुविधाएँ प्राप्त हैं। सिंगापुर पत्तन द्वारा रबड़ का निर्यात किया जाता है।

(4) भारत – भारत का रबड़ के उत्पादन में चौथा स्थान होने पर भी यह देश रबड़ का आयात करता है। सन् 1955 से रबड़ का आयात बन्द कर दिया गया है, केवल कृत्रिम रबड़ का आयात किया जाता है। केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक तथा बंगाल की खाड़ी में स्थित अण्डमान-निकोबार द्वीप-समूह में रबड़ का उत्पादन किया जाता है। तमिलनाडु राज्य में प्रति हेक्टेयर उत्पादन देश में सर्वाधिक है। यहाँ विश्व की 10% रबड़ पैदा होती है।
दक्षिण-पूर्वी एशिया में रबड़ की कृषि के केन्द्रीकरण के कारण

  1. सघन जनसंख्या तथा सस्ता श्रम
  2. कम कृषि विकास तथा रबड़ के लिए उत्तम जलवायु और अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में रबड़ के मूल्य का ऊँचा होना,
  3. पश्चिमी देशों का प्रबन्ध, तकनीकी एवं बढ़ती हुई माँग तथा
  4. तटीय क्षेत्रों में यातायात की सुविधाएँ तथा 5-6 वर्षों में ही आर्य की प्राप्ति हो जाना।

दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों के अतिरिक्त विश्व में रबड़ को उत्पादन ब्राजील (अमेजन बेसिन), लाइबीरिया, नाइजीरिया तथा जेरे आदि देशों में होता है तथा यह इन देशों की दो-तिहाई अर्थव्यवस्था का आधार है।

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार International Trade
अन्य कृषिगत कच्चे पदार्थों की भाँति प्राकृतिक रबड़ का उत्पादन भी विकासशील देशों में होता है, जब कि इसकी अधिकांश खपत उन्नतशील देशों में है। अत: इसका उपयोग 10% से भी कम उत्पादक देशों में तथा 90% से अधिक भाग निर्यात कर दिया जाता है। प्राकृतिक रबड़ का निर्यात मलेशिया, इण्डोनेशिया, थाईलैण्ड एवं फिलीपीन्स देशों में किया जाता है।

प्राकृतिक रबड़ का सबसे बड़ा आयातक संयुक्त राज्य अमेरिका है। इसके अतिरिक्त जापान एवं यूरोपीय देश प्रमुख स्थान रखते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, कनाडा तथा यूरोपीय देशों में कृत्रिम रबड़ का उत्पादन बढ़ता जा रहा है जिससे प्राकृतिक रबड़ की माँग पर प्रभाव पड़ा है।

प्रश्न 8
जूट की कृषि के लिए अनुकूल भौगोलिक दशाओं का वर्णन करते हुए विश्व में जूट उत्पादक देशों के नाम बताइए। (2008)
उत्तर
जूट एक रेशेदार एवं मुद्रादायिनी कृषि उपज है। यह एक पौधे के तने पर छाल के नीचे से प्राप्त होता है। अनुमान किया जाता है कि सन् 1743 में चीन में जूट के रेशे का उपयोग किया जाता था। बंगाल में जूट के बोरे बनाने का उल्लेख 16वीं तथा 17 वीं शताब्दी में मिलता है तथा सम्भावना व्यक्त की गयी है कि भारत से ही जूट का पौधा अन्य देशों में फैला। इसकी कृषि देश के उन्हीं क्षेत्रों में विकसित हुई। है, जहाँ पर मिट्टी एवं जलवायु चीन के समान थी। जूट से प्राप्त रेशे से टाट, बोरे, सुतली, कालीन, पैकिंग करने के वस्त्र तथा अन्य मोटे प्रकार के वस्त्र आदि वस्तुएँ बनायी जाती हैं। इस प्रकार इसके औद्योगिक महत्त्व को देखते हुए इसे स्वर्णिम रेशा नाम दिया गया है।

जूट के लिए भौगोलिक दशाएँ
Geographical Conditions for Jute

(1) जलवायु – जूट मानसूनी जलवायु की उपज है। यह उष्णाई प्रदेशों का पौधा है, परन्तु सभी उष्णार्द्र प्रदेशों में नहीं उगाया जाता।

  1. तापमान – जूट की कृषि के लिए उच्च तापमान होना आवश्यक है। इसके लिए 27° से। 37° सेग्रे तापमान उपयुक्त रहता है। स्वच्छ आकाश एवं तेज धूप इसकी फसल के लिए अधिक उपयुक्त रहती है।
  2. वर्षा – जूट के पौधे के विकास के लिए 180 से 250 सेमी वार्षिक वर्षा अधिक उपयुक्त रहती है। यदि वर्षा एवं धूप बारी-बारी से मिलती रहें तो इसके पौधे का विकास तीव्रता से होता है, परन्तु खेतों में जल हर समय भरा रहना चाहिए।

(2) मिट्टी – जूट चिकनी मिट्टी से लेकर बलुई-दोमट मिट्टी में उगाया जा सकता है, परन्तु नदियों के बाढ़ वाले मैदानों तथा क्षारयुक्त मिट्टी में इसका उत्पादन सरलता से किया जा सकता है। इसी कारण डेल्टाई भागों की नवीन कांप मिट्टी में इसकी कृषि अधिक की जाती है। जूट का पौधा मिट्टी के उर्वरक तत्त्वों का शोषण अधिक करता है; अतः भूमि को समय-समय पर रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता पड़ती है।

(3) धरातल – जूट के पौधों को अपेक्षाकृत ऊँचे खेतों में बोया जाता है। प्रायः इसकी खेती समुद्रतट पर ही होती है। सामान्यत: चावल उत्पन्न करने वाले खेतों में इसे साथ ही उगाया जा सकता है।

(4) मानवीय श्रम – जूट बोने, पौधों की कटाई करने तथा रेशा प्राप्त करने के लिए पर्याप्त संख्या में सस्ते श्रमिकों की आवश्यकता होती है। इसी कारण एशिया महाद्वीप के सघन जनसंख्या वाले प्रदेशों में इसकी खेती की जाती है।

विश्व में जूट का उत्पादन
Production of Jute in the World

विभाजन से पूर्व भारत विश्व में सर्वाधिक जूट उत्पन्न करने वाला देश था, परन्तु देश के विभाजन के बाद जूट उत्पादन का अधिकांश क्षेत्र बांग्लादेश में चला गया। अत: इसकी कृषि के लिए भारत को पुन: प्रयास करने पड़े। जूट उत्पादन में देश अब आत्मनिर्भर हो गया है तथा विदेशों को निर्यात भी करने लगा है। इस प्रकार जूट उत्पादन का 24.4% भाग बांग्लादेश से, 5.3% चीन से तथा 62.8% भारत से प्राप्त होता है। शेष उत्पादन ब्राजील, हिन्द-चीन, इण्डोनेशिया, ताईवान, नेपाल, जायरे (कांगो गणतन्त्र) से प्राप्त होता है।

(1) भारत – भारत का जूट उत्पादन में विश्व में प्रथम स्थान है, जहाँ विश्व के 62.8% जूट का उत्पादन किया जाता है। गंगा एवं ब्रह्मपुत्र नदियों के डेल्टाई भाग जूट के उत्पादन के महत्त्वपूर्ण क्षेत्र हैं। कुल जूट उत्पादन का 90% भाग पश्चिम बंगाल, बिहार एवं असम राज्यों से प्राप्त होता है। गंगा नदी के दक्षिणी मुहाने पर जूट की खेती कम की जाती है, क्योंकि यहाँ पर भूमि नीची होने के कारण जूट उत्पादन के अनुकूल नहीं है। इन राज्यों में उपयुक्त जलवायु के साथ-साथ कुछ अन्य सुविधाएँ भी उपलब्ध हैं, जो निम्नलिखित हैं –

  1. सस्ते एवं कुशल श्रमिक
  2. सिंचाई एवं आवागमन के सस्ते साधन
  3. विश्व बाजार में एकाधिकार
  4. उत्पादकों का परम्परागत अनुभव एवं
  5. सरकारी तथा गैर-सरकारी प्रोत्साहन।

वर्तमान समय में भारत के जूट उत्पादन को कुछ समस्याओं का भी सामना करना पड़ रहा है। कुछ देशों में अन्य रेशों का भी प्रचार बढ़ा है; जैसे-रूस एवं अर्जेण्टाइना में सन, फ्लेक्स; कनाडा, अमेरिका एवं ऑस्ट्रेलिया में कागज, प्लास्टिक एवं कपड़े से बने बोरों का उपयोग जूट के बोरों के प्रतिस्थापन के रूप में किया जाने लगा है, परन्तु भारत में जूट से बने बोरे अन्य पदार्थों से बने बोरों से अधिक लाभदायक हैं; अतः जूट का उत्पादन भारत के लिए वरदान सिद्ध हुआ है।

(2) बांग्लादेश – जूट के उत्पादन में बांग्लादेश विश्व में 1970 ई० से प्रथम स्थान पर था, परन्तु अब दूसरे स्थान पर हो गया है तथा कुल उत्पादन में इसका भाग कम होता जा रहा है। यहाँ विश्व का एक-चौथाई जूट का उत्पादन ही शेष है। बांग्लादेश में जूट उत्पादन की सभी आवश्यक भौगोलिक सुविधाएँ मिलती हैं, परन्तु अन्य देशों में जूट का उत्पादन प्रारम्भ हो जाने से बांग्लादेश का प्रतिशत विश्व जूट उत्पादन में गिरता जा रहा है। यहाँ जूट के प्रमुख उत्पादक जिले बोगरा, दिनाजपुर, खुलना, जैस्सोर, रंगपुर, देबरा, सिरसागंज, पवना, ढाका, मैमनसिंह एवं फरीदपुर हैं जो मेघना एवं ब्रह्मपुत्र नदियों की बाढ़ों द्वारा प्रभावित हैं। जूट बांग्लादेश की प्रमुख उपज हे तथा राष्ट्रीय आय में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है।

(3) चीन – जूट के उत्पादन में चीन विश्व में तीसरे स्थान पर है। यहाँ विश्व का 5.3% जूट पैदा होता है। यहाँ जूट की खेती विस्तृत पैमाने पर की जाने लगी है। चीन में जूट उत्पादन की सभी अनुकूल भौगोलिक परिस्थितियाँ पायी जाती हैं। दक्षिणी-पूर्वी तटीय क्षेत्रों में जूट यांगटिसीक्यांग एवं सीक्यांग नदियों के डेल्टाई भागों में उगाई जाती है। दक्षिणी-पूर्वी तटीय क्षेत्रों में जूट उत्पादन में आशातीत वृद्धि हुई है तथा चीन में जूट का भविष्य इस क्षेत्र के उत्पादन पर निर्भर करता है।

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार – जूट का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसकी अधिक माँग कृषि-प्रधान तथा औद्योगिक देशों में रहती है।
भारत से कच्चे जूट का निर्यात बहुत ही कम किया जाता है, बल्कि भारत कच्चे जूट का अधिकांश आयात बांग्लादेश से करता है तथा अपने कारखानों द्वारा माल तैयार कराकर विदेशों को निर्यात कर देता है।
आयातक देश – संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, रूस, जापान, ऑस्ट्रेलिया आदि।
निर्यातक देश – भारत, चीन, बांग्लादेश, थाईलैण्ड, म्यांमार, ब्राजील आदि।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
गेहूँ के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर
अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में गेहूं का प्रमुख स्थान है। गेहूं के कुल उत्पादन के 22% भाग का विश्व-व्यापार किया जाता है। विश्व के कुछ देशों में आवश्यकता से अधिक गेहूं का उत्पादन होता है। तथा कुछ में आवश्यकता से कम; अतः अधिक उत्पादन वाले देश विदेशों को गेहूं का निर्यात करते हैं, जबकि कम उत्पादन वाले देश आयात करते हैं।

प्रश्न 2
ब्राजील के कहवा उत्पादन पर एक टिप्पणी लिखिए। ब्राजील में कहवा उत्पादन विस्तृत रूप में होने के कारण बताइए।
उत्तर
विश्व में कहवा उत्पादन में ब्राजील का प्रथम स्थान है। यहाँ पर कहवा के बागानों को ‘फजेण्डा’ कहते हैं। 19वीं सदी के अन्त तक ब्राजील विश्व का 3/4 कहवा उत्पन्न करता था, परन्तु अन्य देशों में उत्पादन बढ़ जाने के कारण इसका प्रतिशत घटकर लगभग एक-चौथाई (25%) रह गया है। मध्य पर्वतीय ढाल एवं साओपालो कहवा के मुख्य उत्पादक क्षेत्र हैं। इसके अतिरिक्त मिनास-गिरास, पराना, रियो-डि-जेनरो तथा बाहिया राज्य अन्य प्रमुख उत्पादक हैं। इस प्रकार ब्राजील विश्व की सबसे बड़ा कहवा निर्यातक देश बन गया है। ब्राजील में कहवा का उत्पादन विस्तृत रूप में होने के कारण निम्नलिखित हैं –

  1. उत्तम लावा मिट्टी
  2. उत्साहवर्द्धक समुद्री पवनें एवं पाले से सुरक्षा
  3. 900 से 1,000 मीटर के मध्य अनुकूल तापमान वितरण
  4. कहवा विकास हेतु पूर्णतः सरकारी एवं गैर-सरकारी सुविधाएँ तथा
  5. कहवा यातायात, निर्यात व भण्डारण की बन्दरगाहों पर पूर्ण व द्रुतगामी व्यवस्था।

प्रश्न 3
बांग्लादेश में जूट की खेती का विवरण दीजिए तथा वहाँ इसकी पैदावार के उपयुक्त कारण बताइए।
उत्तर
बांग्लादेश विश्व का प्रमुख जूट उत्पादक देश है। विश्व का आधे से भी अधिक जूट यहाँ उत्पन्न किया जाता है। यह इस देश में सबसे महत्त्वपूर्ण व्यावसायिक एवं विदेशी मुद्रा कमाने वाली फसल है। बांग्लादेश में जूट की उपज के लिए निम्नलिखित दशाएँ उपलब्ध हैं –

  1. गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों के डेल्टाई भाग जूट के लिए उपयुक्त क्षेत्र हैं, जहाँ नदियों द्वारा लाई हुई उपजाऊ मिट्टी जमा होती रहती है।
  2. समस्त बांग्लादेश में 200 सेमी वार्षिक वर्षा का औसत है, जो जूट की उपज के लिए उपयुक्त जल-आपूर्ति करता है।
  3. देश में उष्ण – आर्द्र तापमान (17°C से 37°C) जूट के लिए उपलब्ध है।
  4. बांग्लादेश में सस्ते और कुशल श्रमिक प्रचुर संख्या में उपलब्ध हैं।

उत्पादन क्षेत्र – बांग्लादेश में जूट उत्पादन करने वाले प्रमुख क्षेत्र हैं- मेमनसिंह, नारायण गंज, राजशाही, दिनाजपुर, खुलना, जैस्सोर, बोगरा, रंगपुर, देबरा, सिरसागंज आदि।

प्रश्न 4
रेशे के आधार पर कपास कितने प्रकार की होती है? उत्तर भौगोलिक परिस्थितियों का प्रभाव कपास के रंग तथा रेशे की लम्बाई पर पड़ता है। धागा तैयार करने के लिए रेशे की लम्बाई अधिक महत्त्वपूर्ण होती है, इसलिए रेशा ही कपास की किस्म का आधार बन गया है। रेशे के आधार पर कपास निम्नलिखित प्रकार की होती है –

  1. लम्बे रेशे वाली कपास – इसका रेशा 3 सेमी से 6.45 सेमी तक लम्बा होता है। यह सबसे अच्छी कपास कहलाती है। इसे ‘समुद्र-द्वितीय कपास’ (Sea Island Cotton) भी कहते हैं। उत्तरी अमेरिका में फ्लोरिडा, जार्जिया तथा कैरोलिना, ऑस्ट्रेलिया, मिस्र तथा फिजी द्वीपों में यह कपास अधिक उत्पन्न की जाती है।
  2. मध्य रेशे वाली कपास – इस कपास का रेशा 2 से 3 सेमी लम्बा होता है। इसका रेशा रेशम की भाँति चमकीला होता है। यह कपास उत्तरी अमेरिका, मिस्र, मैक्सिको, ब्राजील, पीरू, रूस, चीन, अर्जेण्टाइना आदि देशों में उगाई जाती है।
  3. छोटे रेशे वाली कपास – यह उपर्युक्त दोनों से घटिया होती है। इसके रेशे की लम्बाई 2 सेमी से भी कम होती है। इसका उत्पादन मुख्यतः भारत, चीन, बांग्लादेश, ब्राजील आदि में होता है।

प्रश्न 5
मिस्र में कपास की खेती के लिए उत्तरदायी किन्हीं दो प्रमुख कारकों की समीक्षा कीजिए।
या
कपास की खेती के लिए चार उपयुक्त भौगोलिक दशाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर
मिस्र में कपास की खेती के लिए दो प्रमुख उत्तरदायी कारक निम्नलिखित हैं –

  1. उपयुक्त जलवायु – कपास के लिए उष्ण तथा कम आर्द्र जलवायु अपेक्षित है। उगते समय 20° से 25° सेग्रे तथा पकते समय 25° से 35° सेग्रे तापमान तथा लगभग सात महीनों तक पालारहित मौसम आवश्यक है। ये दशाएँ मिस्र में उपलब्ध हैं। इसके अतिरिक्त समुद्री पवनें कपास की खेती के लिए उत्तम सिद्ध होती हैं। पकते समय खुली धूप, स्वच्छ आकाश, तेज गर्मी भी प्राप्त होती है।
  2. उर्वर जलोढ़ (कांप) मिट्टियाँ – कपास के पौधे के लिए लावा निर्मित उपजाऊ काली मिट्टी रहती है, क्योंकि इसमें नमी धारण करने की क्षमता अधिक होती है। सर्वश्रेष्ठ कैल्सियम, फॉस्फोरस एवं मैग्नीशियम आदि लवणों से युक्त मिट्टी उपयुक्त रहती है। नील नदी की घाटी तथा डेल्टा की उर्वर जलोढ़ मिट्टियाँ कपास के लिए आदर्श हैं। कपास के लिए समतल तथा सुप्रवाहित धरातल आवश्यक है, जो नील नदी के मैदान में प्राप्त है।
  3. वर्षा – कपास के पौधे के लिए 75 से 100 सेमी पर्याप्त वर्षा की आवश्यकता रहती है, परन्तु इसका पानी रुकना नहीं चाहिए। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में सिंचाई की आवश्यकता होती है।
  4. मानवीय श्रम – कपास को बोने, निराई-गुड़ाई, चुनने आदि के लिए पर्याप्त संख्या में सस्ते श्रमिकों की आवश्यकता होती है। कपास चुनने का कार्य स्त्रियों एवं बच्चों द्वारा कराया जाना अधिक उपयुक्त रहता है।

प्रश्न 6
दक्षिण-पूर्वी एशिया में चावल की खेती के लिए उत्तरदायी दो प्रमुख कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
दक्षिण-पूर्वी एशिया में विश्व का 60% चावले उत्पादन होता है। इसके लिए उत्तरदायी दो प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं –

  1. यहाँ मानसूनी तथा उष्णार्द्र जलवायु मिलती है। चावल की खेती के लिए उपयुक्त तापमान (20° से 27° सेग्रे तक) तथा पर्याप्त वर्षा (औसत रूप से 100 सेमी या अधिक) प्राप्त होती है।
  2. इन देशों की नदी-घाटियों एवं डेल्टाओं में उर्वर जलोढ़ मिट्टियाँ पायी जाती हैं, जो चावल की खेती के लिए आदर्श हैं। घने बसे क्षेत्र होने के कारण सस्ता तथा प्रचुर श्रम भी उपलब्ध होता है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
गेहूँ किस जलवायु प्रदेश की उपज है?
उत्तर
गेहूँ शीतोष्ण जलवायु प्रदेश की उपज है।

प्रश्न 2
चावल की खेती के लिए किस प्रकार की मिट्टी उपयक्त है?
उत्तर
चावल की खेती के लिए चिकनी अथवा गहरी चिकनी मिट्टी अधिक उपयुक्त है।

प्रश्न 3
चावल की खेती के लिए किस प्रकार की खाद देना आवश्यक है?
उत्तर
चावल की खेती के लिए हरी खाद अथवा रासायनिक खाद देना आवश्यक होता है।

प्रश्न 4
विश्व का सबसे बड़ा चावल उत्पादक देश कौन-सा है?
उत्तर
विश्व का सबसे बड़ा चावल उत्पादक देश चीन है।

प्रश्न 5
व्यावसायिक फसलों के नाम बताइए।
उत्तर
व्यावसायिक फसलों के अन्तर्गत गन्ना, कपास, जूट व रबड़ की फसलें आती हैं।

प्रश्न 6
विश्व के प्रमुख पेय-पदार्थ कौन-कौन से हैं?
उत्तर
विश्व के प्रमुख पेय-पदार्थ हैं-चाय, कहवा, कोको और तम्बाकू।

प्रश्न 7
कहवा का जन्म किस देश में हुआ?
उत्तर
कहवा का जन्म अबीसीनिया देश में हुआ।

प्रश्न 8
कहवे का पौधा कितनी ऊँचाई पर उत्पन्न किया जा सकता है?
उत्तर
कहवे का पौधा 1,500 मीटर की ऊँचाई तक उत्पन्न किया जा सकता है।

प्रश्न 9
चाय का पौधा कैसे तैयार किया जाता है एवं इसकी बुआई कब होती है?
उत्तर
चाय का पौधा बीज से तैयार किया जाता है एवं इसकी बुआई अक्टूबर से मार्च तक की जाती है।

प्रश्न 10
विश्व के किन्हीं दो जूट उत्पादक देशों के नाम बताइए। [2011, 12]
या
जूट उत्पादन के दो प्रमुख देशों के नाम बताइए। [2014, 16]
उत्तर

  1. भारत तथा
  2. बांग्लादेश।

प्रश्न 11
विश्व के किन्हीं दो प्रमुख चाय उत्पादक देशों के नाम लिखिए। [2011, 13, 14]
उत्तर

  1. भारत तथा
  2. श्रीलंका।

प्रश्न 12
संयुक्त राज्य अमेरिका की दो शस्य पेटियों के नाम लिखिए।
उत्तर

  1. गल्फ तटीय क्षेत्र तथा
  2. उत्तरी व दक्षिणी डकोटा।

प्रश्न 13
चीन की दो प्रमुख फसलों के नाम बताइए। [2011]
उत्तर

  1. कपास तथा
  2. गेहूँ।

प्रश्न 14
विश्व के रबर उत्पादक दो प्रमुख देशों के नाम लिखिए। (2007, 12, 14, 16)
उत्तर

  1. थाईलैण्ड, तथा
  2. इण्डोनेशिया।

प्रश्न 15
विश्व के दो प्रमुख कहवा उत्पादक देशों के नाम बताइए। [2012, 13]
उत्तर

  1. ब्राजील तथा
  2. कोलम्बिया।

प्रश्न 16
विश्व का सबसे बड़ा चाय उत्पादक देश कौन-सा है?
उत्तर
विश्व का सबसे बड़ा चाय उत्पादक देश भारत है।

प्रश्न 17
गन्ने की फसल तैयार होने में कितना समय लगता है?
उत्तर
गन्ने की फसल वार्षिक फसल मानी जाती है। इसे तैयार होने में 8 से 12 महीने लग जाते हैं।

प्रश्न 18
कपास पौधे के किस अंग से प्राप्त होती है?
उत्तर
कपास के पौधे के फूल (डोडो) से कपास प्राप्त की जाती है।

प्रश्न 19
रबड़ के वृक्ष का नाम बताइए।
उत्तर
रबड़ के वृक्ष का नाम हैविया, ब्रेसिलियेन्सिस अथवा पारा है जो अमेजन बेसिन के जंगलों में प्राकृतिक अवस्था में पैदा होता है।

प्रश्न 20
जूट के लिए कितने तापमान की आवश्यकता होती है?
उत्तर
जूट की कृषि के लिए 27° सेग्रे से 37° सेग्रे तापमान अधिक उपयुक्त रहता है।

प्रश्न 21
विश्व के कपास उत्पादन के दो प्रमुख देशों के नाम लिखिए। [2010, 13]
उत्तर

  1. चीन तथा
  2. संयुक्त राज्य अमेरिका।

प्रश्न 22
किन्हीं दो प्रमुख व्यापारिक फसलों के नाम लिखिए। [2007]
उत्तर

  1. कपास तथा
  2. चुकन्दर।

प्रश्न 23
ब्राजील की किन्हीं दो व्यावसायिक फसलों का उल्लेख कीजिए। (2007)
उत्तर

  1. गन्ना तथा
  2. कवा।

बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1
निम्नलिखित में से किस देश की भौगोलिक दशाएँ गन्ने की खेती के लिए सर्वाधिक उपयुक्त हैं? [2011]
(क) ब्राजील
(ख) भारत
(ग) क्यूबा
(घ) इण्डोनेशिया
उत्तर
(क) ब्राजील।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से किस देश की भौगोलिक परिस्थितियाँ चाय की खेती के लिए सर्वाधिक अनुकूल हैं? [2016]
या
निम्नलिखित में से चाय का सर्वाधिक उत्पादक देश कौन है? [2012]
(क) कनाडा
(ख) चिली
(ग) श्रीलंका
(घ) चीन
उत्तर
(घ) चीन।

प्रश्न 3
कहवा प्राप्त किया जाता है –
(क) पौधे की पत्तियों से
(ख) पौधे की जड़ों से
(ग) बीजों को पीसकर
(घ) पौधों को पीसकर
उत्तर
(ग) बीजों को पीसकर।

प्रश्न 4
निम्नलिखित में से किस देश की भौगोलिक परिस्थितियाँ रबर उत्पादन के लिए सर्वाधिक अनुकूल हैं?
(क) इण्डोनेशिया
(ख) चीन
(ग) संयुक्त राज्य अमेरिका
(घ) अर्जेण्टाइना
उत्तर
(क) इण्डोनेशिया।

प्रश्न 5
निम्नलिखित में से किस देश की भौगोलिक परिस्थितियाँ रबर की बागाती खेती के लिए सर्वाधिक अनुकूल हैं? (2011)
(क) अर्जेण्टाइना
(ख) चीन
(ग) फ्रांस
(घ) मलेशिया
उत्तर
(घ) मलेशिया।

प्रश्न 6
निम्नलिखित में से कौन-सा देश कहवा का प्रमुख उत्पादक है – [2010, 12, 13, 14, 15]
(क) फ्रांस
(ख) भारत
(ग) मिस्त्र
(घ) ब्राजील
उत्तर
(घ) ब्राजील।

प्रश्न 7
निम्नलिखित में से किस देश की भौगोलिक दशाएँ कहवा की खेती के लिए सर्वाधिक उपयुक्त हैं?
(क) अर्जेण्टाइनो
(ख) संयुक्त राज्य अमेरिका
(ग) ब्राजील
(घ) मिस्र
उत्तर
(ग) ब्राजील।

प्रश्न 8
निम्नलिखित में से कौन-सा देश कपास के उत्पादन में अग्रणी है? [2012]
(क) चीन
(ख) रूस
(ग) भारत
(घ) संयुक्त राज्य अमेरिका
उत्तर
(क) चीन।

प्रश्न 9
निम्नलिखित में से कौन-सा विश्व में रबड़ उत्पादक देश है? (2008)
(क) इण्डोनेशिया
(ख) थाईलैण्ड
(ग) मलेशिया
(घ) ब्राजील
उत्तर
(ख) थाईलैण्ड।

प्रश्न 10
निम्नलिखित में से कौन-सा देश गेहूँ का सर्वाधिक उत्पादक देश है? (2010, 11, 13)
(क) भारत
(ख) चीन
(ग) कनाडा
(घ) ऑस्ट्रेलिया
उत्तर
(ख) चीन।

प्रश्न 11
निम्नलिखित में से कौन-सा देश विकसित है? [2012]
(क) ब्राजील
(ख) डेनमार्क
(ग) इराक
(घ) भारत
उत्तर
(क) ब्राजील।

प्रश्न 12
निम्नलिखित में से कौन एक खाद्यान्न नहीं है? [2013]
(क) धान
(ख) गेहूँ।
(ग) चाय
(घ) मक्का
उत्तर
(ग) चाय।

प्रश्न 13
संयुक्त राज्य अमेरिका की प्रमुख महत्त्वपूर्ण आर्थिक पेटी है – [2013]
(क) गेहूँ पेटी
(ख) मक्का पेटी
(ग) कपास पेटी
(घ) तम्बाकू पेटी
उत्तर
(ग) कपास पेटी।

प्रश्न 14
आय का प्रमुख निर्यातक देश है – [2013]
(क) भारत
(ख) ब्राजील
(ग) मैक्सिको
(घ) पाकिस्तान
उत्तर
(ग) मैक्सिको।

प्रश्न 15
निम्नलिखित में से कौन एक खाद्यान्न है?
(क) चाय
(ख) कहवा
(ग) धान
(घ) रबर
उत्तर
(ग) धान।

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