Pedagogy 12

UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 12

UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 12 Disasters Having Effect on Environment (पर्यावरण को प्रभावित करने वाली आपदाएँ)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
आपदाओं से आप क्या समझते हैं? आपदाओं के विभिन्न प्रकारों का सामान्य परिचय दीजिए।  [2013]
या
मानव-जनित आपदा का अर्थ स्पष्ट कीजिए। [2013]
उत्तर :
इस जगत् में घटित होने वाली असंख्य घटनाओं की निरन्तरता ही जीवन है। घटनाएँ असंख्य प्रकार की होती हैं। कुछ घटनाएँ सामान्य जीवन की प्रेगति के मार्ग पर अग्रसर होने में सहायक होती हैं, जब कि कुछ अन्य घटनाएँ बाधक होती हैं। सामान्य जीवन की गति को अवरुद्ध करने वाली घटनाओं को हम दुर्घटना की श्रेणी में रखते हैं। जब कुछ दुर्घटनाएँ व्यापक तथा विकराल रूप में घटित होती हैं तो उन्हें हम आपदा’ या ‘विपत्ति’ कहते हैं। सामान्य रूप से जब गम्भीर आपदा या विपत्ति की बात की जाती है तो हमारा आशय मुख्य रूप से उन प्राकृतिक घटनाओं से होता है जो जनजीवन एवं सम्पत्ति आदि पर गम्भीर, प्रतिकूल या विनाशकारी प्रभाव डालती हैं।

प्राकृतिक आपदाओं के मुख्य रूप या प्रकार हैं- भूकम्प, बाढ़, सूखा, भूस्खलन, ज्वालामुखी का फटना, तूफान, समुद्री तूफान, ओलावृष्टि, बादल फटना, सूनामी या समुद्री लहरें, उल्कापात, महामारियाँ। इन सभी प्राकृतिक आपदाओं का यदि विश्लेषण किया जाए तो हम कह सकते हैं। कि उन विषम या  प्रतिकूल प्रभाव वाली दशाओं को आपदाएँ कहा जाता है जो मनुष्यों, जीव-जगत् तथा सामान्य जनजीवन को व्यापक रूप से प्रभावित करती हैं तथा पहले से चली आ रही जीवन सम्बन्धी सामान्य गतिविधियों में बाधा डालती हैं। इस तथ्य को इन शब्दों में भी कहा जा सकता है, “उन समस्त दशाओं को आपदा कहा जाता है, जिनमें मनुष्य तथा जैव समुदाय, प्राकृतिक, मानवीय, पर्यावरणीय या सामाजिक कारणों से गम्भीर जान-माल की क्षति सहन करने के लिए बाध्य हो जाता है।”

हिन्दी भाषा में प्रयोग होने वाला ‘आपदा’ शब्द का अंग्रेजी पर्याय Disaster है। अंग्रेजी भाषा का यह शब्द वास्तव में फ्रेंच भाषा के शब्द Desastre से लिया गया है, जिसका आशय गृह से है। प्राचीन विश्वासों के अनुसार प्राकृतिक आपदाएँ कुछ अनिष्टकारी तारों या ग्रहों के प्रतिकूल प्रभाव के कारण उत्पन्न होती हैं। वर्तमान वैज्ञानिक खोजों ने इस प्राचीन विश्वास को खण्डित कर दिया है। अब यह जान लिया गया है कि प्राय: सभी आपदाएँ अपने आप में प्राकृतिक घटनाएँ ही हैं तथा उनके कारण भी प्राकृतिक ही होते हैं।

प्राकृतिक आपदाएँ उन गम्भीर प्राकृतिक घटनाओं को कहा जाता है, जिनके प्रभाव से हमारे सामाजिक ढाँचे व विभिन्न व्यवस्थाओं को गम्भीर क्षति पहुँचती है। इनसे मनुष्यों एवं अन्य जीव-जन्तुओं को जीवन समाप्त हो जाता है तथा हर प्रकार की सम्पत्ति को भी नुकसान होता है। इस प्रकार की आपदाओं से मनुष्यों का सामाजिक-आर्थिक जीवन भी अस्त-व्यस्त हो जाता है। ऐसे में। जनजीवन को पुन: सामान्य बनाने के लिए तथा पुनर्वास के लिए व्यापक स्तर पर बाहरी सहायता की आवश्यकता होती है। वर्तमान समय में विश्व-मानव प्राकृतिक आपदाओं के प्रति पर्याप्त सचेत है तथा इन अवसरों पर विश्व के कोने-कोने से सहायता एवं सहानुभूति प्राप्त हो जाती है।

आपदाओं के प्रकार
यह सत्य है कि गम्भीर एवं व्यापक आपदाएँ मुख्य रूप से प्राकृतिक कारकों से ही उत्पन्न होती हैं। परन्तु कुछ आपदाएँ अन्य कारकों के परिणामस्वरूप भी उत्पन्न हो सकती हैं। इस स्थिति में आपदाओं के व्यवस्थित अध्ययन के लिए आपदाओं का समुचित वर्गीकरण करना भी आवश्यक माना जाता है।आपदाओं के मुख्य प्रकार या वर्ग निस्नलिखित हो सकते हैं|

1. आकस्मिक रूप से घटित होने वाली आपदाएँ :
कुछ आपदाओं के प्रकार आपदाएँ या प्राकृतिक घटनाएँ ऐसी हैं जो एकाएक या आकस्मिक रूप से घटित हो जाती हैं तथा अल्प समय में ही गम्भीर प्रतिकूल प्रभाव डाल देती हैं। इनकी न तो कोई पक्की पूर्वसूचना होती है और न निश्चित भविष्यवाणी ही की जा सकती है। इस वर्ग की आपदाओं को आकस्मिक रूप से घटित होने वाली आपदाएँ कहा जाता है। इस वर्ग की मुख्य हैं-भूकम्प, ज्वालामुखी का विस्फोट, आपदाएँ सूनामी, बादल का फटना, चक्रवातीय तूफान, भूस्खलन तथा हिम की आँधी। इन आपदाओं के प्रति सचेत न होने के कारण जान-माल की भारी क्षति हो जाती है।

2. धीरे-धीरे अथवा क्रमश :
आने वाली आपदाएँ-दूसरे वर्ग में उन आपदाओं को सम्मिलित किया जाता है जो आकस्मिक रूप से नहीं बल्कि धीरे-धीरे आती हैं तथा उनकी गम्भीरता क्रमश: बढ़ती है। इस वर्ग की आपदाओं की समुचित पूर्व-सूचना होती है तथा उनकी भावी गम्भीरता की भी भविष्यवाणी की जा सकती है। इस वर्ग की आपदाओं के पीछे प्राय: प्राकृतिक कारकों के साथ-ही-साथ मनुष्य के कुप्रबन्धेन या पर्यावरण के साथ छेड़-छाड़ सम्बन्धी कारक भी निहित होते हैं। इस वर्ग की मुख्य आपदाएँ हैं सूखा, अकाल, किसी क्षेत्र का मरुस्थलीकरण, मौसम एवं जलवायु सम्बन्धी परिवर्तन, कृषि पर कीड़ों का प्रभाव तथा पर्यावरण प्रदूषण। इन आपदाओं का मुकाबला किया जा सकता है तथा इन्हें नियन्त्रित करने के भी उपाय किये जा सकते हैं।

3. मानव-जनिता अथवा सामाजिक आपदाएँ :
तीसरे वर्ग की आपदाओं को हम मानव-जनित अथवा सामाजिक आपदाएँ कहते हैं। इस प्रकार की आपदाओं के लिए कोई भी प्राकृतिक कारक जिम्मेदार नहीं होता बल्कि ये आपदाएँ मानवीय लापरवाही, कुप्रबन्धन, षड्यन्त्र अथवा समाज-विरोधी तत्त्वों की गतिविधियों के परिणामस्वरूप उत्पन्न होती हैं। इस वर्ग की आपदाओं में मुख्य हैं युद्ध, दंगा, आतंकवाद, अग्निकाण्ड, सड़क दुर्घटनाएँ, वातावरण को दूषित करना तथा जनसंख्या विस्फोट आदि। इस वर्ग की आपदाओं को विभिन्न प्रयासों एवं जागरूकता से नियन्त्रित किया जा सकता है।

4. जैविक आपदाएँ या महामारी :
चतुर्थ वर्ग की आपदाओं में उन आपदाओं को सम्मिलित किया जाता है जिनका सम्बन्ध मनुष्यों के शरीर एवं स्वास्थ्य से होता है। साधारण शब्दों में हम कह सकते हैं कि व्यापक स्तर पर फैलने वाले संक्रामक एवं घातक रोगों को इस वर्ग की आपदा माना जा सकता है। उदाहरण के लिए, एक समय था जब प्लेग, हैजा, चेचक आदि संक्रामक रोग प्रायः गम्भीर आपदा के रूप में देखे जाते थे। इन रोगों के प्रकोप से प्रतिवर्ष लाखों व्यक्तियों की मृत्यु हो जाती थी। वर्तमान समय में एड्स, तपेदिक तथा हेपेटाइटिस-बी जैसे रोगों को जैविक आपदा के रूप में देखा जा रहा है।

प्रश्न 2
आग लगना या अग्निकाण्ड किस प्रकार की आपदा है? इसके कारणों, बचाव तथा सम्बन्धित प्रबन्धन के उपायों का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
सभ्य मानव-जीवन तथा आग का घनिष्ठ सम्बन्ध है। सभ्यता के विकास से पूर्व मनुष्य आग से परिचित नहीं था। वह आग जलाना नहीं जानता था। इस ज्ञान के अभाव में वह जंगल के कन्द-मूल, फल तथा पशुओं का कच्चा मांस खाकर ही जीवन-यापन करता था। स्पष्ट है कि आग जलाने के ज्ञान के अभाव में व्यक्ति का जीवन पशु-तुल्य ही था। जैसे ही मनुष्य ने आग जलाना सीख लिया, वैसे ही उसने सभ्यता के मार्ग पर अग्रसर होना प्रारम्भ कर दिया। आज हमारे जीवन की असंख्य गतिविधियाँ आग पर। ही निर्भर हैं।

सर्वप्रथम हमारी आहार या भोजन पूर्ण रूप से आग (ताप) पर ही निर्भर है। पाक-क्रिया की चाहे जिस विधि को अपनाया जाए, प्रत्येक दशा में ताप अर्थात् आग एक अनिवार्य कारक है। इस प्रकार आग हमारे रसोईघर का अनिवार्य साधन है। आहार के अतिरिक्त जीवन के अन्य सभी क्षेत्रों में भी आग की महत्त्वपूर्ण एवं अनिवार्य भूमिका है। औद्योगिक क्षेत्र में, परिवहन एवं यातायात के क्षेत्र में भी आग या ईंधन को अनिवार्य कारक माना जाता है। इस बँकार स्पष्ट है कि आगे एक अति महत्त्वपूर्ण एवं प्रबल कारक है जो मानव-जीवन के लिए उपयोगी एवं सहायक है।

अग्नि का उपयोग मानव आदिकाल से कर रहा है। अग्नि यदि नियन्त्रण में रहे तो मानव की सबसे अच्छी सेवक व मित्र है। मानव के लिए यह ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है। यदि मानव के नियन्त्रण से अग्नि निकल जाए, तो यह विनाशकारी रूप धारण कर लेती है। उस अवस्था में यह मानव की सबसे बड़ी शत्रु और संहारक बन जाती है। प्रत्येक वर्ष अग्नि लाखों लोगों के प्राण लेती है तथा लाखों को विकलांग बना देती है।

लाखों इमारतें तथा अनेक वन प्रतिवर्ष अग्नि की भेंट चढ़ जाते हैं। एक बार अग्नि अपनी जकड़ बना ले तो इसको नियन्त्रित करना आसान नहीं होता। आग के अनियन्त्रित रूप को ‘आग लगना’ या अग्निकाण्ड कहा जाता है। आग लगना भी एक गम्भीर आपदा है। यह एक ऐसी आपदा है जो किसी-न-किसी रूप में मनुष्य द्वारा उत्पन्न की गयी आपदा है। आग लगना प्राकृतिक आपदा नहीं है। यह मानवकृत आपदा है। यह लापरवाही से, दुर्घटनावश अथवा दुर्भावनाजनित भी हो सकती है।

अग्निकाण्ड के कारण
आग लगने के लिए तीन बातों का एक स्थान पर होना। अग्निकाण्ड के कारण आवश्यक है। ये हैं

  1. ऑक्सीजन गैस।
  2. ईंधन; जैसे – पेट्रोल, कागज, लकड़ी आदि।
  3. ऊष्मा। ऊष्मा शेष दो वस्तुएँ एक साथ हों, तो अग्नि को फाटण जन्म देती हैं। आग लगने के मुख्य कारण हैं

1. मानवे लापरवाही

  1. घर पर हम आग का प्रयोग खाना पकाने के लिए करते हैं। खाना पकाते समय ढीले-ढाले तथा ज्वलनशील कपड़े पहनने पर बहुधा आग लग जाती है। महिलाएँ अक्सर साड़ी या चुनरी पहन कर खाना बनाती हैं और इसी कारण वे रसोईघर में आग पकड़ लेती हैं तथा इसका शिकार हो जाती हैं।
  2. हमें धूम्रपान करने के लिए अक्सर माचिस को जलाते हैं। सिगरेट-बीड़ी सुलगा लेने पर जलती हुई तिल्ली को बिना सोचे-समझे इधर-उधर फेंक देते हैं। इसके कारण भी आग लग जाती है।
  3. कभी-कभी हम घर पर कपड़ों पर बिजली की इस्तरी करते-करते, इस्तरी को बिना बन्द किये उसे खुला छोड़कर किसी और काम में लग जाते हैं। परिणामस्वरूप गर्म इस्तरी कपड़ों में आग लगा देती
  4. त्योहारों और खुशी के अन्य अवसरों पर नवयुवक व बच्चे आतिशबाजी चलाते हैं। यह आतिशबाजी भी आग लगने का कारण बन जाती है।
  5.  प्रायः झुग्गी-झोंपड़ियों में आग लग जाया करती है। यह भी लापरवाही के ही कारण लगती है।

2. बिजली के दोषपूर्ण उपकरण व फिटिंग

  1. बिजली सम्बन्धी दोषपूर्ण वायरिंग, शॉर्ट सर्किट व ओवरलोड आग लगने के कारण हैं। दुकानों व वर्कशॉपों में, जो रात को बन्द रहते हैं तथा कोई व्यक्ति उनकी देखभाल नहीं करता, अक्सर, शॉर्ट सर्किट से आग लगने की दुर्घटनाएँ होती हैं।
  2. दोषपूर्ण तथा अनाधिकृत विद्युत उपकरण भी आग लगने के कारण हैं। मल्टी प्वाइंट अडॉप्टर भी शीघ्र गर्म हो जाने के कारण आग पकड़ लेते हैं।

3. ज्वलनशील पदार्थों के प्रति लापरवाही
कुछ पदार्थ ऐसे हैं जो अत्यन्त ज्वलनशील हैं; जैसे–पेट्रोल, सरेस, ग्रीस तथा ज्वलनशील गैसें। इनके भण्डारण में लापरवाही के कारण प्रायः आग लग जाती है।

4. अन्य कारण
(i) आज के आतंकवादी समय में शरारती तत्त्व भी आगजनी करते हैं। वे बहुधा धार्मिक स्थलों, बाजारों व बस्तियों में आग लगा देते हैं।
(ii) वनों की आग का मुख्य कारण जैचिक अथवा मानव-जनित लापरवाही है। बाँस के वनों में आपसी घर्षण से उत्पन्न चिंगारी द्वारा अथवा थण्डरबोल्ट से भी दावाग्नि उत्पन्न हो जाती है।
(iii) वनाग्नि कभी-कभी निम्नलिखित व्यक्तियों द्वारा लगाई जाती है

(क) शहद निकालने वाले श्रमिक
(ख) शाक-बीज एकत्र करने वाले श्रमिक
(ग) अवैध कटान को छिपाने वाले व्यक्ति
(घ) अवैध शिकारी
(ङ) वन भूमि पर अतिक्रमण करने वाले व्यक्ति।

आग से बचाव

  1. हमें आग से बचाव के नियमों का सख्ती से पालन करना चाहिए।
  2. हमें अपने कार्यस्थल, घर (विशेषकर रसोई में), फैक्ट्री आदि में अग्निशमन उपकरण लगाने चाहिए।
  3. घर में ज्वलनशील पदार्थों का भण्डारण नहीं करना चाहिए। यदि यह अपरिहार्य हो, तो पूरी सावधानी बरतनी चाहिए।
  4. रसोई में खाना पकाते समय कृत्रिम रेशों के ज्वलनशील कपड़े व ढीले-ढाले कपड़े नहीं पहनने चाहिए।
  5. बिजली के I.S.I. मार्का उपकरण ही प्रयोग करने चाहिए तथा बिजली के तारों की फिटिंग भी निपुण व्यक्ति से करोनी चाहिए।
  6. जलती हुई बीड़ी, सिगरेट व माचिस की तीली इधर-उधर नहीं फेंकनी चाहिए। इन्हें बुझाकर फेंकने की ही आदत डालनी चाहिए।
  7. बिजली के उपकरणों को सावधानीपूर्वक प्रयोग करना चाहिए।
  8. आतिशबाजी खुले स्थान पर सावधानीपूर्वक की जानी चाहिए।
  9. घर से बाहर जाने से पहले बिजली तथा गैस के सभी उपकरण बन्द कर देने चाहिए।

आग लगने पर प्रबन्धन :
यदि आग लग जाए तो उसके कारण क्षति को कम करने तथा उसकी पुनरावृत्ति को रोकने के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए

  1. आग बुझाना एक खतरनाक काम है। इसके लिए तभी प्रयास करें जब आपका जीवन खतरे में न पड़े।
  2. सर्वप्रथम आग में फंसे व्यक्ति को वहाँ से निकालना चाहिए।
  3. 101 पर फोन करके फायर ब्रिगेड को बुलाना चाहिए तथा आग की सूचना आस-पास के व्यक्तियों को शोर मचाकर दे देनी चाहिए।
  4. यदि आग छोटी है तो अग्निशमन उपकरण का प्रयोग करना चाहिए।
  5. यदि आग फैल चुकी है तो उस स्थान से निकलकर सुरक्षित जगह आ जाना चाहिए।
  6. आग लगने के स्थान की बिजली आपूर्ति बन्द कर देनी चाहिए।
  7. आग के धुएँ से दूर रहना चाहिए अन्यथा आपका दम घुट सकता है।
  8. बिजली के जलते हुए उपकरणों पर पानी मत डालिए, बल्कि रेत व मिट्टी डालिए। आग बुझने के पश्चात् निम्नलिखित बातों का ध्यान रखिए
    • आग लगने के कारणों का पता लगाइए।
    • घायल व्यक्ति के उपचार का प्रबन्ध कीजिए।
    • भविष्य में आग से बचने के लिए आवश्यक उपाय कीजिए।
    • अग्निशमन उपकरण, पंखों और बिजली के तारों का पूरा निरीक्षण कीजिए। जहाँ कहीं कोई दोष मिले, उसे दूर कीजिए।

प्रश्न 3
सूखा नामक आपदा से आप क्या समझते हैं। इसके मुख्य कारणों तथा सूखा शमन की युक्तियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
सूखा : एक आपदा
सूखा वह स्थिति है जिसमें किसी स्थाने पर अपेक्षित तथा सामान्य वर्षा से कहीं कम वर्षा पड़ती है। यह स्थिति एक लम्बी अवधि तक रहती है। सूखा गर्मियों में भयंकर रूप धारण कर लेता है जब सूखे के साथ-साथ ताप भी आक्रमण करता है। सूखा मानव, वनस्पति व पशु-पक्षियों को भूखा मार देता है। सूखे की स्थिति में कृषि, पशुपालन तथा मनुष्यों को सामान्य आवश्यकता से कम जल प्राप्त होता है।

शुष्क तथा अर्द्ध-शुष्क प्रदेशों में सूखा एक सामान्य समस्या है, किन्तु पर्याप्त वर्षा वाले क्षेत्र भी इससे अछूते नहीं हैं। मानसूनी वर्षा के क्षेत्र सूखे से सर्वाधिक प्रभावित होते हैं। सूखी एक मौसम सम्बन्धी आपदा है तथा किसी अन्य विपत्ति की अपेक्षा अधिक धीमी गति से आती है।

सूखा के कारण
यूँ तो सूखा के अनेक कारण हैं, परन्तु प्रकृति तथा मानव दोनों ही इसके मूल में हैं। सूखा के कारण इस प्रकार हैं
1. अत्यधिक चराई तथा जंगलों की कटाई :
अत्यधिक । सूखा के कारण चराई तथा जंगलों की कटाई के कारण हरियाली की पट्टी धीरे-धीरे समाप्त हो रही है, परिणामस्वरूप वर्षा कम मात्रा में होती है। यदि होती भी है, तो जले भूतल पर तेजी से बह जाता है। इसके कारण मिट्टी का कटाव होता है तथा सतह से नीचे जल-स्तर कम हो जाता है, परिणामस्वरूप कुएँ, नदियाँ और जलाशय सूखने लगते हैं।

2. ग्लोबल वार्मिंग :
ग्लोबल वार्मिंग वर्षा की प्रवृत्ति में वर्षा का असमान वितरण बदलाव का कारण बन जाती है। परिणामस्वरूप वर्षा वाले क्षेत्र । सूखाग्रस्त हो जाते हैं।

3. कृषि योग्य समस्त भूमि का उपयोग :
बढ़ती हुई आबादी के लिए खाद्य-सामग्री उगाने के लिए लगभग समस्त कृषि योग्य भूमि पर जुताई व खेती की जाने लगी है। परिणामस्वरूप मृदा की उर्वरा शक्ति क्षीण होती जा रही है तथा वह रेगिस्तान में परिवर्तित होती जा रही है। ऐसी स्थिति में वर्षा की थोड़ी कमी भी सूखे का कारण बन जाती है।

4. वर्षा का असमान वितरण :
दोनों तरीके से व्याप्त है। विभिन्न स्थानों पर न तो वर्षा की मात्रा समान है और न ही अवधि। हमारे देश में कुल जोती जाने वाली भूमि का लगभग 70 प्रतिशत भाग सूखा सम्भावित क्षेत्र है। इस क्षेत्र में यदि कुछ वर्षों तक लगातार वर्षा न हो तो सूखे की अत्यन्त दयनीय स्थिति पैदा हो जाती है।

सूखा शमन की प्रमुख युक्तियाँ (साधन)

1. हरित पट्टियाँ :
हरित पट्टी कालान्तर में वर्षा की मात्रा में सूखा शमन की प्रमुख युक्तियाँ वृद्धि तो करती ही है, साथ में ये वर्षा जल को रिसकर भूतल के (साधन) नीचे जाने में सहायक भी होती हैं। परिणामस्वरूप कुओं, तालाबों आदि में जल-स्तर बढ़ जाता है और मानव उपयोग के लिए अधिक जल उपलब्ध हो जाता है।
2. जल संचय :
वर्षा कम होने की स्थिति में जल आपूर्ति को बनाये रखने के लिए, जल को संचय करके रखना एक दूरदर्शी युक्ति है। जल का संचय बाँध बनाकर या तालाब बनाकर किया जा सकता है।

3. प्राकृतिक तालाबों का निर्माण :
यह भी सूखे की स्थिति से निबटने के लिए एक उत्तम उपाय है। प्राकृतिक तालाबों में जल संचय भू-जल के स्तर को भी बढ़ाता है।

4. विभिन्न नदियों को आपस में जोड़ना :
इससे उन क्षेत्रों में भी जल उपलब्ध किया जा सकता है जहाँ वर्षा का अभाव रहा हो। भारत सरकार नदियों को जोड़ने की एक महत्त्वाकांक्षी योजना अगस्त, 2005 ई० में प्रारम्भ कर चुकी है।

5. भूमि का उपयोग :
सूखा सम्भावित क्षेत्रों में भूमि उपयोग पर विशेष ध्यान देना आवश्यक है, विशेषकर हरित पट्टी बनाने के लिए कम-से-कम 35 प्रतिशत भूमि को आरक्षित कर दिया जाना चाहिए। इस भूमि पर अधिकाधिक वृक्षारोपण कियेर जाना चाहिए।

प्रश्न 4
बाढ़ से आप क्या समझते हैं? बाढ़ के मुख्य कारणों का उल्लेख कीजिए तथा बाढ़ शमन की प्रमुख युक्तियों का भी वर्णन कीजिए।
उत्तर :
बाढ़ : एक प्राकृतिक आपदा
बाढ़ को अर्थ किसी क्षेत्र में निरन्तर वर्षा होने या नदियों का जल फैल जाने से उस क्षेत्र का जलमग्न होना है। वर्षाकाल में अधिक वर्षा होने पर नदी प्राय: अपने सामान्य जल-स्तर से ऊपर बहने लगती है। उनका जल तटबन्धों को तोड़कर आस-पास के निम्न क्षेत्रों में फैल जाता है, जिससे वे क्षेत्र जलमग्न हो जाते हैं। नदियों या धाराओं के मुहाने पर, तेज ढालों पर या जलमार्ग के अत्यन्त निकट बस्तियों को बाढ़ का खतरा बना रहता है।

बाढ़ एक प्राकृतिक घटना है, किन्तु जब यह मानव-जीवन व सम्पत्ति को क्षति पहुँचाती है तो यह प्राकृतिक आपदा कहलाती है। बाढ़ों के कारण दामोदर नदी ‘बंगाल का शोक’, कोसी ‘बिहार का शोक तथा ब्रह्मपुत्र ‘अंसम का शोक’ कहलाती है। ह्वांग्हो नदी चीन का शोक’ कहलाती है।

बाढ़ के कारण

1. निरन्तर भारी वर्षा :
जब किसी क्षेत्र में निरन्तर भारी वर्षा होती है तो वर्षा का जल धाराओं के रूप में मुख्य नदी में मिल जाता है। यह जल नदी के तटबन्धों को तोड़कर आस-पास के क्षेत्रों को जलमग्न कर देता है। भारी मानसूनी वर्षा तथा चक्रवातीय वर्षा बाढ़ों के प्रमुख बाढ़ के कारण कारण हैं।

2. भूस्खलन :
भूस्खलन भी कभी-कभी बाढ़ों का कारण बनते हैं। भूस्खलन के कारण नदी का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है। परिणामस्वरूप नदी का जल मार्ग बदल कर आस-पास के क्षेत्रों कोजलमग्न कर देता है।

3. वन-विनाश :
वन पानी के वेग को कम करते हैं। नदी के बर्फ की पिघलना ऊपरी भागों में बड़ी संख्या में वृक्षों की अन्धाधुन्ध कटाई से भी। बाढ़े आती हैं। हिमालय में बड़े पैमाने पर वन विनाश ही हिमालय-नदियों में बाढ़ का मुख्य कारण है।

4. दोषपूर्ण जल निकास प्रणाली :
मैदानी क्षेत्रों में उद्योगों और बहुमंजिले मकानों की परियोजनाएँ बाढ़े की सम्भावना को बढ़ाती हैं। इसका कारण यह है कि पक्की सड़कें, नालियाँ, निर्मित क्षेत्र, पक्के पार्किंग स्थल आदि के कारण यहाँ जल रिसकर भू-सतह के नीचे नहीं जा पाता। यहाँ पर जल निकास की भी पूर्ण व्यवस्था नहीं होने के कारण, वर्षा का पानी नीचे स्थानों पर भरता चला जाता है तथा बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

5. बर्फ को पिघलना :
सामान्य से अधिक बर्फ का पिघलना भी बाढ़ का एक कारण है। बर्फ के अत्यधिक पिघलने से, नदियों में जल की मात्रा उसी अनुपात में अधिक हो जाती है तथा नदियों का जल तट-बन्ध तोड़कर आस-पास के इलाकों को जलमग्ने कर देता है। देश भर में केन्द्रीय जल आयोग के लगभग 132 पूर्वानुमान केन्द्र हैं। ये केन्द्र देश में लगभग सभी बाढ़-सम्भावी नदियों पर नजर रखते हैं। जल-स्तरों पर खतरे का निशान चिह्नित होता है। खतरे वाले जल-स्तर बढ़ने के विषय में टी०वी०, रेडियो तथा पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से चेतावनी प्रसारित की जाती है। समय रहते ही बाढ़ सम्भावित क्षेञ को लोगों से खाली करा लिया जाता है।

बाढ़ शमन की प्रमुख युक्तियाँ

1. सीधा जलमार्ग :
बाढ़ की स्थिति में जलमार्ग को सीधा रखना चाहिए जिससे वह तेजी से एक सीमित मार्ग से बह सके। टेढ़ी-मेढ़ी धारों में बाढ़ की सम्भावना अधिक होती है।

2. जल मार्ग परिवर्तन :
बाढ़ के उन क्षेत्रों की पहचान की जानी चाहिए जहाँ प्रायः बाढ़े आती हैं। ऐसे स्थानों से जल के मार्ग को मोड़ने के लिए कृत्रिम ढाँचे बनाये जाते हैं। यह कार्य वहाँ किया सीधा जलमार्ग जाता है जहाँ कोई बड़ा जोखिम न हो।

3. कृत्रिम जलाशयों का निर्माण :
वर्षा के जल से 9 कृत्रिम जलाशयों का निर्माण आबादी-क्षेत्र को बचाने के लिए कृत्रिम जलाशयों का निर्माण किया जाना चाहिए। इन जलाशयों में भण्डारित जल को बाद में सिंचाई अथवा पीने के लिए प्रयोग किया जा सकता है। इन जलाशयों में बाढ़ के जल को मोड़ने के लिए जल कपाट लगे होते है।

4. बाँध निर्माण :
आबादी वाले क्षेत्रों को बाढ़ से बचाने के लिए तथा जल का प्रवाह उस ओर रोकने के लिए रेत के थैलों का बाँध बनाया जा सकता है।

5. कच्चे तालाबों का निर्माण :
अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में कच्चे तालाबों का अधिक-से-अधिक निर्माण कराया जाना चाहिए। ये तालाब वर्षा के जल को संचित कर सकते हैं तथा संचित जल आवश्यकता के समय उपयोग में लाया जा सकता है।

6. नदियों को आपस में जोड़ना :
विभिन्न क्षेत्रों में बहने वाली नदियों को आपस में जोड़कर बाढ़ के प्रकोप को कम किया जा सकता है। अधिक जल वाली नदियों का जल कम जल वाली नदियों में चले जाने से बाढ़ की स्थिति से बचा जा सकता है।

7. बस्तियों का बुद्धिमत्तापूर्ण निर्माण :
बस्तियों का निर्माण नदियों के मार्ग से हटकर किया जाना चाहिए। नदियों के आस-पास अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में, सुरक्षा के लिए मकान ऊँचे चबूतरों पर बनाये जाने चाहिए।

प्रश्न 5
भूकम्प से आप क्या समझते हैं? भूकम्प के मुख्य कारणों का उल्लेख कीजिए। भूकम्प से होने वाली क्षति से बचाव के उपायों का भी उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
भूकम्प : एक प्राकृतिक आपदा
भूकम्प भूतल की आन्तरिक शक्तियों में से एक है। भूगर्भ में प्रतिदिन कम्पन होते हैं। जब ये कम्पन तीव्र होते हैं तो ये भूकम्प कहलाते हैं। साधारणतया भूकम्प एक प्राकृतिक एवं आकस्मिक घटना है जो भू-पटल में हलचल पैदा कर देती है। इन हलचलों के कारण पृथ्वी अनायास ही वेग से काँपने लगती है जिसे भूचाल या भूकम्प कहते हैं। यह एक विनाशकारी घटना है। 2011 में जापान में भूकम्प से 1,29,225 से ज्यादा इमारतों को भीषण नुकसान हुआ। इस भूकम्प की तीव्रता रिक्टर स्टेल पर 9 थी।।

1.भूकम्प मूल एवं भूकम्प केन्द्र :
भूगर्भ में भूकम्पीय लहरें चलती रहती हैं। जिस स्थान से इन लहरों का प्रारम्भ होता है, उसे भूकम्प मूल कहते हैं। जिस स्थान पर भूकम्पीय लहरों का अनुभव सर्वप्रथम किया जाता है, उसे अभिकेन्द्र या भूकम्प केन्द्र कहते हैं।

भूकम्प के कारण
भूगर्भशास्त्रियों ने भूकम्प के निम्नलिखित कारण बताये हैं
1. ज्वालामुखी उद्गार :
जब विवर्तनिक हलचलों के कारण भूगर्भ में गैसयुक्त द्रवित लावा भूपटल की ओर प्रवाहित होती है तो उसके दबाव से भू-पटल की शैलें हिल उठती हैं। यदि लावा के मार्ग में कोई भारी चट्टान की जाए तो प्रवाहशील लावा उस चट्टान को वेग से ढकेलता है, जिससे भूकम्प आ जाता है।

2. भू-असन्तुलन में अव्यवस्था :
भू-पटल पर विभिन्न बल समतल समायोजन में लगे रहते हैं। जिससे भूगर्भ की सियाल एवं सिमा की परतों में परिवर्तन होते रहते हैं। यदि ये परिवर्तन एकाएक तथा तीव्र हो जाएँ तो पृथ्वी का कम्पन प्रारम्भ हो जाता है तथा उस क्षेत्र में भूकम्प के झटके आने प्रारम्भ हो जाते हैं।

3. जलीय भार :
मानव द्वारा निर्मित जलाशय, झील अथवा तालाब के धरातल के नीचे की चट्टानों के भार एवं दबाव के कारण ज्वालापरवी मार अचानक परिवर्तन आ जाते हैं तथा इनके कारण ही भूकम्प आ जाता है। 1967 ई० में कोयना भूकम्प (महाराष्ट्र) कोयना जलाशय में जल भर जाने के कारण ही आया था।

4. भू-पटल में सिकुड़न :
विकिरण के माध्यम से भूगर्भ की गर्मी धीरे-धीरे कम होती रहती है जिसके कारण पृथ्वी की ऊपरी पपड़ी में सिकुड़न आती है। यह सिकुड़न पर्वत निर्माणकारी क्रिया को जन्म देती है। जब यह प्रक्रिया तीव्रता से होती है, तो भू-पटल पर कम्पन प्रारम्भ हो जाता है।

5. प्लेट विवर्तनिकी :
महाद्वीप तथा महासागरीय बेसिन विशालकाय दृढ़ भूखण्डों से बने हैं जिन्हें प्लेट कहते हैं। सभी प्लेटें विभिन्न गति से सरकती रहती हैं। कभी-कभी दो प्लेटें परस्पर टकराती हैं तब भूकम्प आते हैं। 26 जनवरी, 2001 को गुजरात के भुज क्षेत्र में उत्पन्न भूकम्प की उत्पत्ति का कारण प्लेटों का टकरा जाना ही था।

भूकम्प से भवन-सम्पत्ति की क्षति का बचाव
भूकम्प अपने आप में किसी प्रकार से नुकसान नहीं पहुँचाता, परन्तु भूकम्प के प्रभाव से हमारे भवन एवं इमारतें टूटने लगती हैं तथा उनके गिरने से जान-माल की अत्यधिक हानि होती है। अतः भूकम्प से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए भवन-निर्माण में ही कुछ सावधानियाँ अपनायी जानी चाहिए तथा आवश्यक उपाय किये जाने चाहिए।

1. भवनों की आकृति :
भवन का नक्शा साधारणतया आयताकार होना चाहिए। लम्बी दीवारों को सहारा देने के लिए। ईंट-पत्थर या कंक्रीट के कॉलम होने चाहिए। जहाँ तक हो सके T L,U और x आकार के नक्शों वाले बड़े भवनों को उपयुक्त स्थानों में नींव पर अलग-अलग खण्डों में बाँट कर आयताकार खण्ड बना लेना चाहिए। खण्डों के बीच खास अन्तर से चौड़ी जगह छोड़ दी जानी । चाहिए ताकि भूकम्प के समय भवन हिल-डुल सके और क्षति हो।

2. नींव :
जहाँ आधार भूमि में विभिन्न प्रकार की अथवा नरम मिट्टी हो वहीं नींव में कॉलमों को भिन्न-भिन्न व्यवस्था में स्थापित करना चाहिए। ठण्डे देशों में मिट्टी में आधार की गहराई जमाव-बिन्दु क्षेत्र के काफी नीचे तक होनी चाहिए, जब कि चिकनी मिट्टी में यह गहराई दरार के सिकुड़ने के स्तर से नीचे तक होनी चाहिए। ठोस मिट्टी वाली परिस्थितियों में किसी भी प्रकार के आधार का प्रयोग कर सकते हैं। चूने या सीमेण्ट के कंक्रीट से बना इसका ठोस आधार होना चाहिए।

3. दीवारों में खुले स्थान :
दीवारों में दरवाजों और खिड़कियों की बहुलता के कारण, उनकी भार-रोधक क्षमता कम हो जाती है। अत: ये कम संख्या में तथा दीवारों के बीचोंबीच स्थित होने चाहिए।

4. कंक्रीट से बने बैंडों का प्रयोग :
भूकम्प संवेदनशील क्षेत्रों में, दीवारों को मजबूती प्रदान करने तथा उनकी कमजोर जगहों पर समतल रूप से मुड़ने की क्षमता को बढ़ाने के लिए कंक्रीट के मजबूत बैंड बनाए जाने चाहिए जो स्थिर विभाजक दीवारों,सहित सभी बाह्य तथा आन्तरिक दीवारों पर लगातार काम करते रहते हैं। इन बैंडों में प्लिन्थ बैंड, लिटल बैंड, रूफ बैंड तथा गेबल बैंड आदि सम्मिलित हैं।

5. वर्टिकल रीइन्फोर्समेंट :
दीवारों के कोनों और जोड़ों में वर्टिकल स्टील लगाया जाना चाहिए। भूकम्पीय क्षेत्रों, खिड़कियों तथा दरवाजों की चौखट में भी वर्टिकल रीइन्फोर्समेंट की व्यवस्था की जानी चाहिए।

प्रश्न 6
एक प्राकृतिक आपदा के रूप में समुद्री लहरों का सामान्य परिचय दीजिए। इनके मुख्य कारण क्या होते हैं। समुद्री लहरों की चेतावनी तथा बचाव के लिए आवश्यक सावधानियों का भी उल्लेख कीजिए।
या
सूनामी क्या है? [2012]
उत्तर :
समुद्री लहरें : प्राकृतिक आपदा
समुद्री लहरें कभी-कभी विनाशकारी रूप धारण कर लेती हैं। इनकी ऊँचाई 15 और कभी-कभी इससे भी अधिक तक होती है। ये तट के आस-पास की बस्तियों को तबाह कर देती हैं। ये लहरें मिनटों में ही तट तक पहुँच जाती हैं। जब ये लहरें उथले पानी में प्रवेश करती हैं, तो भयावह शक्ति के साथ तट से टकराकर कई मीटर ऊपर तक उठती हैं। तटवर्ती मैदानी इलाकों में इनकी रफ्तार 50 किमी प्रति घण्टा तक हो सकती है।

इन विनाशकारी समुद्री लहरों को ‘सूनामी’ कहा जाता है। ‘सूनामी’, जापानी भाषा का शब्द है, जो दो शब्दों ‘सू’ अर्थात् बन्दरगाह’ और ‘नामी’ अर्थात् लहर’ से बना है। सूनामी लहरें अपनी भयावह शक्ति के द्वारा विशाल चट्टानों, नौकाओं तथा अन्य प्रकार के मलबे को भूमि पर कई मीटर अन्दर तक धकेल देती हैं। ये तटवर्ती इमारतों, वृक्षों आदि को नष्ट कर देती हैं। 26 दिसम्बर, 2004 को दक्षिण – पूर्व एशिया के 11 देशों में ‘सूनामी’ द्वारा फैलाई गयी विनाशलीला से हम सब परिचित हैं।

समुद्री लहरों के कारण

1. ज्वालामुखी विस्फोट :
वर्ष 1993 में इण्डोनेशिया में क्रकटू नामक विख्यात ज्वालामुखी में भयानक विस्फोट हुआ और इसके कारण लगभग 40 मीटर ऊँची सूनामी लहरें उत्पन्न हुईं। इन लहरों ने जावा व सुमात्रा में जन-धन की अपार क्षति पहुँचायी।

2. भूकम्प :
समुद्रतल के पास या उसके नीचे भूकम्प आने पर समुद्र में हलचल पैदा होती है और यही हलचल विनाशकारी सूनामी का रूप धारण कर लेती है। 26 दिसम्बर, 2004 को दक्षिण-पूर्व एशिया में आई विनाशकारी सूनामी लहरें, भूकम्प का ही परिणाम थीं।

3. भूस्खलन :
समुद्र की तलहटी में भूकम्प व भूस्खलन के कारण ऊर्जा निर्गत होने से बड़ी-बड़ी लहरें उत्पन्न होती हैं जिनकी गति अत्यन्त तेज होती है। मिनटों में ही ये लहरें विकराल रूप धारण कर, तट की ओर दौड़ती हैं।

चेतावनी व अन्य युक्तियाँ
सूनामी लहरों की उत्पत्ति को रोकना मानव के वश में नहीं है। समय से इसकी चेतावनी देकर, लोगों की जान व सम्पत्ति की रक्षा की जा सकती है।
1. उपग्रह प्रौद्योगिकी :
उपग्रह प्रौद्योगिकी के प्रयोग से सूनामी सम्भावित भूकम्पों की तुरन्त चेतावनी देना सम्भव हो गया है। चेतावनी का समय तट रेखा से अभिकेन्द्र की दूरी पर निर्भर करता है। फिर भी उन तटवर्ती क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को जहाँ सूनामी कुछ घण्टों में विनाश फैला सकती है, सूनामी के अनुमानित समय की सूचना दे दी जाती है।

2. तटीय ज्वार जाली :
तटीय ज्वार जाली का निर्माण करके सूनामियों को तट के निकट रोका जा सकता है। गहरे समुद्र में इसका प्रयोग नहीं किया जा सकता।

3. सूनामीटर :
सूनामीटर के द्वारा समुद्रतल में होने वाली हलचलों का पता लगाकर, उपग्रह के माध्यम से चेतावनी प्रसारित की जा सकती है। इसके लिए सूनामी सतर्कता यन्त्र समुद्री केबुलों के द्वारा भूमि से जोड़े जाते हैं और उन्हें समुद्र में 50 किमी तक आड़ा-तिरछा लगाया जाता है।

सूनामी की आशंका पर सावधानियाँ
यदि आप ऐसे तटवर्ती क्षेत्र में रहते हैं जहाँ सूनामी की आंशका है, तो आपको निम्नलिखित सावधानियाँ बरतनी चाहिए

  1. तट के समीप ने तो मकान बनवाएँ और न ही किसी तटवर्ती बस्ती में रहें।
  2. तट के समीप रहना आवश्यक हो, तो घर को ऊँचे स्थान पर बनवाएँ। ये स्थान 10 फुट से ऊँचे स्थान पर ही हों, क्योकि सूनामी लहरें अधिकांशतः इससे कम ऊंची होती हैं।
  3. अपने घरों को बनाते समय भवन-निर्माण विशेषज्ञ की राय लें तथा मकान को सूनामी निरोधक बनाएँ।
  4. सूनामी के विषय में प्राप्त चेतावनी के प्रति लापरवाही न बरतें तथा आने वाली बाढ़ को रोकने के लिए तैयारी रखें।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
भवन या गृह के अग्नि-अवरोधन के मुख्य उपायों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
भवन एवं भवन में रहने वालों की सुरक्षा के लिए अनिवार्य है कि भवन को अग्नि से बचाव के योग्य बनाया जाए। अग्नि एक ऐसा कारक है जो कभी भी दुर्घटनावश या लापरवाही के परिणामस्वरूप सक्रिय हो जाता है। भवन-निर्माण की प्रक्रिया में कोई ऐसा उपाय सम्भव नहीं है कि भवन में आग लगे ही नहीं। भवन में रखी हुई प्रायः सभी वस्तुएँ कम या अधिक ज्वलनशील होती हैं; अतः असावधानी, दुर्घटनावश अथवा किसी शरारत के परिणामस्वरूप मकान में आग लग सकती है।

इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए केवल इस प्रकार के उपाय किये जा सकते हैं जिनसे भवन में आग लग जाने पर उसका फैलाव तेजी से न हो तथा शीघ्र ही भवन गिर न जाए। इस उद्देश्य से भवन की संरचना को अधिक-से-अधिक अग्निसह (Fire Resisting) बनाना चाहिए।भवन के अग्नि-अवरोधन (Fire proofing of house) के लिए भवन-निर्माण में अधिक-सेअधिक अग्निसह पदार्थों को इस्तेमाल करना चाहिए।

भवन संरचना के सभी भाग कम-से-कम इतने अग्निसह तो अवश्य होने चाहिए कि इतने समय तक टूटकर न गिरें, जितने समय तक भवन में रहने वाले व्यक्ति सुरक्षापूर्वक उसमें से बाहर न निकल जाएँ। भवन को आग सम्बन्धी दुर्घटना के दृष्टिकोण से सुरक्षित बनाने के लिए निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं|

  1. भवन की समस्त भारवाही दीवारें तथा स्तम्भ पर्याप्त मोटे तथा सुदृढ़ होने चाहिए, क्योंकि मोटे स्तम्भ एवं दीवारें पर्याप्त अग्निसह होते हैं।
  2. जहाँ तक हो सके भवन के अन्दर की विभाजक दीवारें भी अग्निसह पदार्थों की बनानी चाहिए। लकड़ी या प्लाईबोर्ड की दीवारें शीघ्र आग पकड़ लेती हैं। ये विभाजक दीवारें R.C.C., R.B.C., धातु की जाली, ऐस्बेस्टस, सीमेण्ट, बोर्ड अथवा कंक्रीट में खोखले ब्लॉकों द्वारा बनाई जानी चाहिए।
  3. भवन की सभी दीवारों पर अग्नि अवरोधक प्लास्टर किया जाना चाहिए।
  4. भवन में यदि ढाँचेदार संरचनाएँ हों तो उनके फ्रेम ताप पाकर टेढ़े-मेढ़े हो जाते हैं।
  5. फर्श बनाने में अधिक-से-अधिक अग्निसह पदार्थों को ही इस्तेमाल करना चाहिए। यदि फर्श लकड़ी के हों तो मोटी लकड़ी की कड़ियाँ अधिक दूरी पर लगानी चाहिए। फर्श में स्थान-स्थान पर अग्नि-स्टॉप भी लगाये जाने चाहिए। यदि लोहे के हों तो उन्हें चिकनी मिट्टी की टाइलों, टेरा-कोटा या प्लास्ट से ढक देना चाहिए।
  6. भवन के बाहरी दरवाजे तथा खिड़कियाँ प्रवलित शीशे की होनी चाहिए तथा इनके फ्रेम धातु के बने होने चाहिए।
  7. भवन की छत चपटी बनाई जानी चाहिए। यदि छत ढालू हो तो उसमें लगाई जाने वाली सीलिंग अग्निसह पदार्थ की ही होनी चाहिए।

उपर्युक्त उपायों के अतिरिक्त सुरक्षा की दृष्टि से भवन में निकासी की अधिक-से-अधिक सुविधाएँ होनी चाहिए, क्योंकि यदि दुर्घटनावश आग लग ही जाए तो उसमें रहने वाले व्यक्ति शीघ्रातिशीघ्र जान बचाकर बाहर निकल जाएँ।

प्रश्न 2
जल जाने या झुलस जाने पर क्या प्राथमिक उपचार किया जाना चाहिए?
उत्तर :
आग से जल जाने पर तुरन्त निम्नलिखित प्राथमिक उपचार किया जाना चाहिए

  1. जलने अर्थात् आग लग जाने पर सर्वप्रथम आवश्यक उपाय है आग को बुझाना। इसके लिए पानी, मिट्टी या रेत तथा कम्बल आदि डाले जा सकते हैं। जिस व्यक्ति के कपड़ों में आग लग गयी हो वह जमीन पर लेटकर निरन्तर करवटें बदल-बदल कर एवं लुढ़ककर भी आग बुझाने का प्रयास कर सकता है। आग बुझ जाने पर आवश्यक प्राथमिक चिकित्सा के उपाय तुरन्त करने चाहिए।
  2. जल जाने वाले शरीर के भाग पर से वस्त्रों को सावधानीपूर्वक हटा देना चाहिए, किन्तु वस्त्र चिपकने की दशा में उसे चारों ओर से काट देना चाहिए और शरीर पर चिपक गये वस्त्र पर नारियल का तेल लगा देना चाहिए।
  3. अलसी के तेल तथा चूने के पानी को समान अनुपात में मिलाकर उसमें स्वच्छ कपड़ा या रुई का फोहा भिगोकर जले भाग पर रखना चाहिए।
  4. फफोलों को फोड़ना नहीं चाहिए, क्योंकि इस स्थिति में विभिन्न प्रकार के बाहरी संक्रमणों का भय बढ़ जाता है।
  5. जले भाग पर टैनिक एसिड, कोई अच्छा मरहम जैसे कि बरनॉल आदि धीरे-धीरे लगाना चाहिए।
  6. जले हुए स्थानों पर नारियल का तेल भी लगाने से आराम मिलता है।
  7. जले भाग को साफ कपड़े या रुई से ढक कर हल्की पट्टी बाँध देनी चाहिए।
  8. दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को लगे आघात का उपचार करना चाहिए।
  9. जले हुए व्यक्ति को साधारण प्राथमिक चिकित्सा प्रदान करने के उपरान्त शीघ्रातिशीघ्र किसी योग्य चिकित्सक को अवश्य दिखाना चाहिए तथा समुचित उपचार करवाना चाहिए।

प्रश्न 3
सूखा पड़ने के प्रतिकूल प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
सूखा एक ऐसी आपदा है जिसके परिणामस्वरूप सम्बन्धित क्षेत्र में जल की कमी या अभाव हो जाता है। यह एक गम्भीर आपदा है तथा इसके विभिन्न प्रतिकूल प्रभाव क्रमशः स्पष्ट होने लगते हैं। सर्व-प्रथम सूखे का प्रभाव कृषि-उत्पादनों पर पड़ता है। फसलें सूखने लगती हैं तथा क्षेत्र में खाद्य-पदार्थों की कमी होने लगती है। इस स्थिति में अनाज आदि के दाम बढ़ जाते हैं तथा गरीब परिवारों की आर्थिक स्थिति दयनीय हो जाती है। सूखे का प्रतिकूल प्रभाव क्षेत्र के पशुओं पर भी पड़ता है क्योंकि उनको मर्याप्त मात्रा में चारा तथा जल उपलब्ध नहीं हो पाता।

इससे क्षेत्र में दूध एवं मांस आदि की भी कमी होने लगती है। कृषि-कार्य घट जाने के कारण अनेक कृषि-श्रमिकों को रोजगार मिलना बन्द हो जाता है तथा क्षेत्र की अर्थव्यवस्था बिगड़ने लगती है। सूखे की दशा में कृषि-उत्पादनों में कमी आ जाती है।इस स्थिति में कृषि आधारित कच्चे माल से सम्बन्धित औद्योगिक संस्थानों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

इस स्थिति में सम्बन्धित उत्पादनों की कमी हो जाती है तथा उनकी कीमत भी बढ़ जाती है। इसके अतिरिक्त किसी क्षेत्र में निरन्तर सूखे की स्थिति बने रहने से वहाँ के निवासी अन्य क्षेत्रों में चले जाते हैं। इससे सामाजिक ढाँचा प्रभावित होता है तथा जनसंख्या का क्षेत्रीय सन्तुलन बिगड़ने लगता है। सूखे की समस्या विकराल हो जाने की स्थिति में बेरोजगारी तथा भुखमरी की समस्याएँ भी प्रबल होने लगती हैं।

प्रश्न 4
आग लगने से बचाव के लिए अस्थायी पण्डालों में क्या उपाय किए जाने चाहिए?
उत्तर :
विभिन्न समारोहों के आयोजन के लिए प्रायः पण्डाले लगाये जाते हैं। इन घेण्डालों में आग लगने की कुछ अधिक आशंका रहती है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए आग से सुरक्षा के लिए कुछ उपायों को अपनाना आवश्यक माना जाता है। इस प्रकार के कुछ मुख्य उपाय निम्नलिखित हैं

  1. पण्डाल बनाने में सिन्थेटिक कपड़ों, रस्सियों तथा अन्य सामग्री को इस्तेमाल न किया जाए।
  2. पण्डाल कभी भी बिजली की तारों के नीचे या बहुत निकट नहीं लगाया जाना चाहिए। |
  3. पण्डाल के चारों ओर पर्याप्त खुला स्थान होना चाहिए ताकि आपदा के समय सरलता से बाहर जा सकें।
  4. पण्डाल का द्वार कम-से-कम पाँच मीटर चौड़ा होना चाहिए तथा निकास द्वार अधिक-सेअधिक होने चाहिए।
  5. पण्डाल में लगी कुर्सियों की कतारों में कम-से-कम डेढ़ मीटर की दूरी अवश्य होनी चाहिए।
  6. बिजली का सर्किट तथा जैनरेटर आदि पण्डाल से कम-से-कम 15 मीटर दूर होने चाहिए।
  7. अग्नि-सुरक्षा के यथासम्भव अधिक-से-अधिक उपाय किये जाने चाहिए। पानी, रेत, आग बुझाने वाली गैस आदि की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।
  8. पण्डाल के अन्दर ज्वलनशील पदार्थ नहीं रखे जाने चाहिए।
  9. पण्डाल में अमोनियम सल्फेट, अमोनियम कार्बोनेट, बोरेक्स, बोरिक एसिड, एलम तथा पानी का घोल बनाकर छिड़काव किया जाना चाहिए।

प्रश्न 5
‘जंगल की आग’ पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
आग लगने की दुर्घटना का एक रूप या प्रकार ‘जंगल की आग’ भी है। जंगल की आग को ‘दावानल’ कहते हैं। जंगल में आग प्रायः तीन कारणों से लग जाती है। जंगल में कुछ पेड़ ऐसे भी होते हैं। जो आपस में रगड़’या घर्षण के कारण आग उत्पन्न कर देते हैं। तेज गर्मी के मौसम में इस प्रकार की घर्षण से प्राय: जंगलों में आग लग जाती है। इसके अतिरिक्त लापरवाही से भी आग लग जाती है।

जंगल में विचरण करने वाले व्यक्ति द्वारा जलती हुई माचिस, बीड़ी-सिगरेट या उपले आदि से सूखे पत्तों में आग लग जाती है तथा हवा से फैलकर भयंकर रूप ग्रहण कर लेती है। इसके अतिरिक्त कुछ स्वार्थी एवं समाज-विरोधी व्यक्ति भी जंगल में आग लगा दिया करते हैं। ये लोग कृषि योग्य भूमि ग्रहण करने के लिए पेड़ों की कटाई या भूमि अधिग्रहण के निहित स्वार्थ से जंगल में आग लगा देते हैं।जंगल में लगने वाली आग अति भयंकर एवं व्यापक होती है। इसे नियन्त्रित करना या बुझाना प्रायः एक कठिन कार्य होता है।

यह आग या तो जंगल समाप्त होने पर बुझती है अथवा तेज वर्षा हो जाने पर ही बुझती है। जंगल की आग से अनेक हानियाँ हो जाती हैं। सर्वप्रथम वन सम्पदा की अत्यधिक हानि होती है। इसके साथ-ही-साथ वनों में रहने वाले पशु-पक्षियों को जीवन भी गम्भीर रूप से प्रभावित होता है। इसके अतिरिक्त जंगल की आग से पर्यावरण का तापमान अत्यधिक बढ़ जाता है तथा पर्यावरण-प्रदूषण में भी वृद्धि होती है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
प्राकृतिक आपदा का अर्थ स्पष्ट कीजिए। [2015]
उत्तर :
प्राकृतिक आपदाएँ उन गम्भीर प्राकृतिक घटनाओं को कहा जाता है, जिनके प्रभाव से हमारे सामाजिक ढाँचे व विभिन्न व्यवस्थाओं को गम्भीर क्षति पहुँचती है। इनसे मनुष्यों एवं अन्य जीव-जन्तुओं का जीवन समाप्त हो जाता है तथा प्रत्येक प्रकार की सम्पत्ति को भी नुकसान होता है। मुख्य प्राकृतिक आपदाएँ हैं-भूकम्प, ज्वालामुखी का विस्फोट, सूनामी, बादल का फटना, चक्रवातीय तूफान, बाढ़, हिम की आँधी आदि।

प्रश्न 2
समुद्र की आग पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
आग लगने की दुर्घटना का एक रूप या प्रकार ‘समुद्र की आग भी है। समुद्र की आग को बड़वानल भी कहते हैं। यह सत्य है कि समुद्र जल का अथाह भण्डार होता है। ऐसे में समुद्र में आग । लगना एक आश्चर्य की बात प्रतीत होती है परन्तु यथार्थ में समुद्र में प्राय: आग लगने की दुर्घटनाएँ होती रहती हैं। समुद्र में आग लगने का कारण समुद्र में विद्यमान तेल के भण्डारों अथवा प्राकृतिक गैस में आग लगना हुआ करता है। तेल अर्थात् पेट्रोलियम दार्थ तथा प्राकृतिक गैस अत्यधिक ज्वलनशील पदार्थ होते हैं जो कि जल की उपस्थिति में भी जल उठते हैं।

समुद्र की आग भी अत्यधिक भयंकर तथा व्यापक होती है। इससे जहाँ एक ओर तेल अथवा गैस भण्डारों की व्यापक क्षति होती है, वहीं दूसरी ओर जलीय जीवों का जीवन भी संकट में आ जाता है। यही नहीं, पर्यावरण-प्रदूषण में भी वृद्धि होती है तथा कभी-कभी समुद्र में यात्रा करने वाले जलयान भी इसकी चपेट में आ जाते हैं। समुद्र की आग को नियन्त्रित करने के लिए व्यापक उपाय करने पड़ते हैं।

प्रश्न 3
आग लगने के मुख्य प्रतिकूल प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
आग लगने से सबसे गम्भीर आशंका व्यक्तियों के जलने या झुलसने की होती है। आग की लपट लग जाने या कपड़ों में आग लग जाने पर व्यक्ति जल सकता है। आग से निकलने वाली गर्म हवा लग जाने से व्यक्ति झुलस सकता है। जलने तथा झुलसने से व्यक्ति के शरीर पर लगभग समान प्रभाव ही पड़ते हैं। इस स्थिति में शरीर की त्वचा लाल पड़ जाती है, फफोले पड़ जाते हैं, त्वचा के तन्तु नष्ट हो। जाते हैं और अत्यधिक पीड़ा होती है।

जब कोई अंग बहुत अधिक जल जाता है तो दिल की घबराहट अथवा आघात का भय रहता है। त्वचा के अधिक जल जाने पर अनेक प्रकार के संक्रमण की भी आशंका बढ़ जाती है। यह संक्रमण प्राय: घातक सिद्ध होता है। जलने के प्रभाव से व्यक्ति के गुर्दो, यकृत आदि

आन्तरिक अंगों पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है जो गम्भीर समस्या उत्पन्न कर देता है। जलने से व्यक्ति को गहरा मानसिक आघात या सदमा भी पहुंचता है। इसका भी व्यक्ति के स्वास्थ्य पर गम्भीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 4
बाढ़ के समय मुख्य रूप से क्या सावधानियाँ आवश्यक होती हैं?
उत्तर :
बाढ़ के समयं सबसे अधिक आवश्यक कार्य है :
मनुष्य की जान बचाना। इसके लिए। आवश्यक है कि यथासम्भव शीघ्रातिशीघ्र बाढ़ग्रस्त क्षेत्र से निकल जाएँ तथा किसी ऊँचे सुरक्षित स्थान पर पहुँच जाएँ। यदि मकान काफी मजबूत हो तो मकान की ऊपरी मंजिल पर चढ़ जाएँ। यदि मकान मजबूत न हो तो मकान से बाहर निकल जाएँ। बाढ़ के समय पेड़ों पर न चढ़े क्योंकि पेड़ भी जड़ से ही उखड़ सकते हैं। यदि घर में रबड़ की ट्यूब हो तो उनको हवा भरकर अपने साथ रखें।

प्रश्न 5
भूचाल और बाढ़ जैसी आपदाओं से होने वाले बोझ को कम करने के लिए आप क्या सुझाव देंगे? [2011]
उत्तर :
भूचाल तथा बाढ़ दोनों ही एकाएक आने वाली गम्भीर प्राकृतिक आपदाएँ हैं। भूचाल से सर्वाधिक हानि मकानों के गिरने से होती है। बाढ़ से मुख्य हानि सम्बन्धित क्षेत्र में जल व्याप्त हो जाने के कारण होती है। इससे जान-माल, पालतू पशुओं तथा खड़ी फसलों को हानि पहुँचती है। इन दोनों ही आपदाओं के बोझ को कम करने के लिए बाहरी सहायता की आवश्यकता होती है।

तुरन्त आवश्यक सहायता चिकित्सा तथा भोजन सम्बन्धी होनी चाहिए। आपदाओं से घिरे लोगों के जीवन को बचाने के हर सम्भव उपाय किये जाने चाहिए। इसके बाद उनके पुनस्र्थापन की व्यवस्था की जानी चाहिए। यह कार्य सरकार एवं स्वयं-सेवी संगठनों के सहयोग से होता है। गम्भीर एवं व्यापक आपदा के समय यह कार्य विश्व – स्तरीय हो जाता है। विश्व के प्रायः सभी देश आवश्यक सहायता पहुँचाते हैं तथा आपदाओं से हुए नुकसान की भरपाई कर ली जाती है।

प्रश्न 6
बाढ़ के उपरान्त किये जाने वाले कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
सामान्य रूप से बाढ़ का प्रकोप कुछ समय में घटने लगता है, परन्तु,बाढ़ग्रस्त क्षेत्र में पानी, कीचड़, गन्दगी तथा सीलन बहुत अधिक हो जाती है। इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए कुछ महत्वपूर्ण कार्य अति आवश्यक होते हैं। घरों तथा गलियों में सफाई की व्यवस्था करें। पानी की निकासी के उपाय करें तथा कीटनाशक दवाओं का छिड़काव करें। इससे संक्रामक रोगों से बचाव हो सकता है।

साफ सेय जल की व्यवस्था करें। जहाँ तक हो सके जल उबालकर ही पिएँ। चिकित्सकों से सम्पर्क बनाये रखें तथा संक्रामक रोगों से बचने के सभी सम्भव उपाय करें। बाढ़ग्रस्त लोगों को भारी नुकसान हो जाता है। अतः अन्य क्षेत्रों में रहने वाले लोगों तथा सरकारी तन्त्र को बाढ़ग्रस्त लोगों की हरसम्भव सहायता करनी चाहिए। भोजन एवं कपड़ों आदि की तुरन्त पूर्ति होनी चाहिए।

प्रश्न 7
संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए-‘भूकम्प की भविष्यवाणी’।
उत्तर :
भूकम्प की भविष्यवाणी करने में निम्नलिखित बिन्दुओं का विशेष महत्त्व है

  1. किसी क्षेत्र में हो रही भूगर्भीय गतियों का उस क्षेत्र में हो रहे भू-आकृति परिवर्तनों से अनुमान लगाया जा सकता है। ऐसे क्षेत्र जहाँ भूमि ऊपर-नीचे होती रहती है, अत्यधिक भूस्खलन होते हैं, नदियों का असामान्य मार्ग परिवर्तन होता है, प्रायः भूकम्प की दृष्टि से संवेदनशील होते हैं।
  2. किसी क्षेत्र में सक्रिय भ्रंशों, जिन दरारों से भूखण्ड टूटकर विस्थापित भी हुए हों, की उपस्थिति को भूकम्प का संकेत माना जा सकता है। इस प्रकार के भ्रंशों की गतियों को समय के अनुसार तथा अन्य उपकरणों से नापा जा सकता है।
  3. भूकम्प संवेदनशील क्षेत्रों में भूकम्पमापी यन्त्र (Seismograph) लगाकर विभिन्न भूगर्भीय गतियों को रिकॉर्ड किया जाता है। इस अध्ययन से बड़े भूकम्प आने की पूर्व चेतावनी मिल जाती है।

प्रश्न 8
भूकम्प आपदा के समय आवश्यक सावधानियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
यह सत्य है कि भूकम्प आकस्मिक रूप से आता है। भूकम्प के आने पर मानसिक सन्तुलन बनाये रखें तथा अधिक घबराएँ नहीं। इस समय कुछ सावधानियाँ नितान्त आवश्यक होती हैं। सामान्य रूप से आप जहाँ हों, वहीं टिके रहें। यदि हो सके तो दीवारों, छतों और दरवाजों से दूर रहें। इसके साथ-ही-साथ दीवारों के टूटने तथा मलबा गिरने पर ध्यान रखें तथा बचाव के उपाय करें।

भूकम्प के समय यदि आप किसी वाहन में हों तो वाहन को सुरक्षित स्थान पर रोककर उसमें से बाहर खुले में आ जाएँ। भूकम्प के समय न तो किसी पुल को पार करें और न ही किसी सुरंग में प्रवेश करें। यदि घर पर हों तो बिजली का मेन स्विच बन्द कर दें, गैस सिलेण्डर को भी बन्द कर दें। इन उपायों द्वारा कुछ दुर्घटनाओं को रोका जा सकता है।

प्रश्न 9
भूकम्प आपदा के पश्चात किए जाने वाले कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
सामान्य रूप से भूकम्प की प्रबलता अल्प समय के लिए ही होती है, परन्तु अल्प समय में ही अनेक गम्भीर प्रतिकूल प्रभाव हो जाते हैं। भूकम्प के पश्चात् भी बहुत सजग रहना आवश्यक होता है। इस समय परिवार के बच्चों तथा वृद्ध सदस्यों का विशेष ध्यान रखना आवश्यक होता है। इस समय घर में गैस के सिलेण्डर को बन्द रखें तथा आग न जलाएँ। रेडियो तथा दूरदर्शन को चलाए रखें, सभी आवश्यक घोषणाओं को ध्यानपूर्वक सुने तथा आवश्यक कार्य करें।

भूकम्प से क्षतिग्रस्त होने वाले मनों से दूर ही रहें। यदि भूकम्प के हल्के झटके आ रहे हों तो उनसे डरें नहीं। ऐसा कुछ समय तक होता रहता है। जहाँ जिस प्रकार की सहायता की आवश्यकता है, उस कार्य को अवश्य करें। तुरन्त सहायता उपलब्ध हो जाने पर अनेक व्यक्तियों की जान बचाई जा सकती है। अपने क्षेत्र में यथासम्भव सफाई व्यवस्था को बनाये रखें ताकि संक्रामक रोगों से बचा जा सके। कलाकारका

निश्चित उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
गम्भीर आपदाओं से क्या आशय है?
उत्तर :
उन समस्त प्राकृतिक घटनाओं को गम्भीर आपदाओं के रूप में जाना जाता है, जिनसे जनजीवन एवं सम्पत्ति आदि पर गम्भीर प्रतिकूल या विनाशकारी प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 2
मुख्य प्राकृतिक आपदाएँ कौन-कौन सी हैं? [2010]
उत्तर :
भूकम्प, बाढ़, सूखा, भूस्खलन, ज्वालामुखी का फटना, तूफान, समुद्री तूफान,ओलावृष्टि बादल फटना तथा सूनामी या समुद्री लहरें आदि मुख्य प्राकृतिक आपदाएँ हैं।

प्रश्न 3
आपदाओं के मुख्य वर्गों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
आपदाओं के मुख्य रूप से चार वर्ग निर्धारित किये गये हैं

  1. आकस्मिक रूप से घंटित होने वाली आपदाएँ
  2. धीरे-धीरे अथवो क्रमशः आने वाली आपदाएँ
  3. मानव जनित अथवा सामाजिक आपदाएँ तथा
  4. जैविक आपदाएँ या महामारी।

प्रश्न4
आकस्मिक रूप से घटित होने वाली मुख्य प्राकृतिक आपदाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
भूकम्प, ज्वालामुखी का विस्फोट, सूनामी, बादल का फटना, चक्रवातीय तूफान, भू-स्खलन तथा हिम की आँधी आकस्मिक रूप से घटित होने वाली मुख्य प्राकृतिक आपदाएँ हैं।

प्रश्न 5
धीरे-धीरे अथवा क्रमशः आने वाली मुख्य प्राकृतिक आपदाएँ कौन-कौन सी हैं?
उत्तर :
सूखा, अकाल, किसी क्षेत्र का मरुस्थलीकरण तथा मौसम एवं जलवायु सम्बन्धी परिवर्तन धीरे-धीरे अथवा क्रमशः आने वाली मुख्य प्राकृतिक आपदाएँ हैं।

न 6
हमारे जीवन में आग का क्या स्थान है?
उत्तर :
हमारे जीवन में आग का महत्त्वपूर्ण स्थान है। आग एक अति महत्त्वपूर्ण एवं प्रबल कारक है, जो मानव-जीवन के लिए उपयोगी एवं सहायक है।

प्रश्न 7
‘आग लगने या ‘अग्निकाण्ड’ से क्या आशय है?
उत्तर :
आग का अनियन्त्रित होकर विनाशकारी रूप ग्रहण कर लेना ही ‘आग लगना’ या ‘अग्निकाण्ड’ कहलाता है।

प्रश्न 8
आग के शितान्त अभाव में हमारा कौन-सा महत्त्वपूर्ण कार्य सम्पन्न नहीं हो सकता?
उत्तर :
आग के नितान्त अभाव में भोजन पकाने अर्थात् पाक-क्रिया का कार्य सम्पन्न नहीं हो सकता।

प्रश्न 9
आग लगने पर सबसे गम्भीर आशंका क्या होती है?
उत्तर :
आग लगने पर,सबसे गम्भीर आशंका व्यक्तियों के जलने या झुलसने की होती है। इससे व्यक्तियों की मृत्यु भी हो सकती है।

प्रश्न 10
सूखे से क्या आशय है?
उत्तर :
किसी क्षेत्र में मनुष्यों, पशुओं तथा कृषि-कार्यों के लिए सामान्य आवश्यकता से काफी कम मात्रा में जल का उपलब्ध होना ‘सूखा पड़ना’ कहलाता है।

प्रश्न 11
सूखे का सर्वाधिक प्रतिकूल प्रभाव किस पर पड़ता है?
उत्तर :
सूखे का सर्वाधिक प्रतिकूल प्रभाव कृषि-कार्यों तथा कृषि उत्पादनों पर पड़ता है।

प्रश्न 12
अनावृष्टि के परिणामस्वरूप कौन-सी आपदा उत्पन्न हो सकती है?
उत्तर :
अनावृष्टि के परिणामस्वरूप सूखे की आपदा उत्पन्न हो सकती है।

प्रश्न13
बाढ़ से क्या आशय है?
उत्तर :
उन क्षेत्रों का जलमग्न हो जाना बाढ़ कहलाता है, जिन क्षेत्रों में सामान्य दशाओं में जल-भराव नहीं होता।

प्रश्न 14
किसी क्षेत्र में भयंकर बाढ़ आने के उपरान्त किस अन्य आपदा के आने की आशंका बढ़ जाती है?
उत्तर :
किसी क्षेत्र में भयंकर बाढ़ आने के उपरान्त संक्रामक रोगों के फैलने की आशंका बढ़ जाती

प्रश्न 15
भूकम्प के परिणामस्वरूप सर्वाधिक हानि किस कारण से होती है?
उत्तर :
भूकम्प के परिणामस्वरूप सर्वाधिक हानि मकानों के गिरने के कारण होती है।

प्रश्न 16
भूकम्प की तीव्रता के मापन,के पैमाने को क्या कहते हैं?
उत्तर :
भूकम्प की तीव्रता के मापन के पैमाने को ‘रिक्टर स्केल’ या ‘रिक्टर पैमाना’ कहते हैं।

प्रश्न 17
सूनामी से क्या आशय है? [2010, 12]
उत्तर :
जब समुद्री लहरें तेज गति से तट की ओर बढ़ती हैं तो उन्हें सूनामी कहते हैं। इन लहरों की ऊँचाई लगभग 15 मीटर तथा गति 50 किमी प्रति घण्टा तक हो सकती है।

प्रश्न 18
मानव – जनित आपदा आतंकवाद / भूस्खलन है। [2014]
उत्तर
मानवे – जनित आपदा आतंकवाद है।

प्रश्न 19
राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण की स्थापना क्यों की गई है ? [2009]
उत्तर :
राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण की स्थापना विभिन्न आपदाओं को नियन्त्रित करने तथा उनसे होने वाले नुकसान को कम करने के उपाय खोजने के लिए की गयी है।

प्रश्न 20
निम्नलिखित कथन सत्य हैं या असत्य

  1. समस्त आपदाएँ दैवीप्रकोप के कारण होती हैं।
  2. आग लगना एक प्राकृतिक आपदा है।
  3. आग हमारे लिए अत्यधिक उपयोगी एवं अनिवार्य कारक है।
  4. सूखे की दशा में मनुष्यों एवं पशुओं को अपनी आवश्यकता के अनुसार जल उपलब्ध नहीं हो पाता।
  5. बाढ़ से जान-माल का भारी नुकसान होता है।
  6. भूकम्प का सर्वाधिक प्रतिकूल प्रभाव मकानों पर पड़ता है।
  7. समुद्री लहरों से तटीय क्षेत्रों में सर्वाधिक विनाश होता है।

उत्तर :

  1. असत्य
  2. असत्य
  3. सत्य
  4. सत्य
  5. सत्य
  6.  सत्य
  7. सत्य

प्रश्न 21
निम्नलिखित वाक्यों में रिक्त स्थानों की पूर्ति उपयुक्त शब्दों द्वारा कीजिए

  1. भूकम्प, बाढ़ तथा तूफान ……….. से उत्पन्न होते हैं।
  2. आग लगना एक ……….. आपदा है।
  3. अतिवृष्टि तथा बर्फ के अधिक पिघलने से ……….. की आशंका बढ़ जाती है।
  4. किसी क्षेत्र में निरन्तर सूखा पड़ने से उस क्षेत्र की ……….. बिगड़ जाती है।
  5. समुद्री लहरों से सर्वाधिक विनाश .……….. में होता है।

उत्तर :

  1. प्राकृतिक कारणों
  2. मानवकृत
  3. बाढ़ आ जाने
  4. अर्थव्यवस्था
  5. तटीय क्षेत्रों

बहुविकल्पीय प्रश्न 

निम्नलिखित प्रश्नों में दिये गये विकल्पों में से सही विकल्प का चुनाव कीजिए
प्रश्न 1
बाढ़, भूकम्प, चक्रवात तथा सूखा आदि आपदाओं के पीछे निहित कारक होते हैं
(क) दैवी प्रकोप सम्बन्धी कारक
(ख) पाप में वृद्धि सम्बन्धी कारक
(ग) प्राकृतिक कारक
(घ) मानव द्वारा पर्यावरण प्रदूषण में वृद्धि
उत्तर :
(ग) प्राकृतिक कारक

प्रश्न 2
‘आग लगना’ या ‘अग्निकाण्ड’ किस प्रकार की आपदा है?
(क) प्राकृतिक आपदा
(ख) दैवी प्रकोप सम्बन्धी आपदा
(ग) मानवकृत आपदा
(घ) अज्ञात आपदा
उत्तर :
(घ) अज्ञात आपदा

प्रश्न 3
आग का मौलिक गुण है
(क) भयंकर लपटें उत्पन्न करना
(ख) ताप प्रदान करना है
(ग) जलाना
(घ) भोजन पकाना
उत्तर :
(ख) ताप प्रदान करना

प्रश्न 4
‘आग लगने या अग्निकाण्ड’ का कारण हो सकता है
(क) मानवीय लापरवाही
(ख) दुर्घटना के परिणामस्वरूप
(ग) व्यक्तिगत दुर्भावना या षड्यन्त्र
(घ) ये सभी कारण
उत्तर :
(घ) ये सभी कारण

प्रश्न 5
सूखा पड़ने का कारण है
(क) अधिक कृषि-कार्य
(ख) वर्षा का बहुत कम होना
(ग) अधिक संख्या में नलकूप लगाना
(घ) जनसंख्या में अत्यधिक वृद्धि
उत्तर :
(ख) वर्षा का बहुत कम होना

प्रश्न 6
बाढ़ नामक आपदा का स्रोत है
(क) तालाब
(ख) झीलें
(ग) नदियाँ
(घ) नहरें
उत्तर :
(ग) नदियाँ

प्रश्न 7
बाढ़ का कारण है [2013]
(क) अत्यधिक वर्षा
(ख) बाँध का टूटना
(ग) भूस्खलन
(घ) ये सभी
उत्तर :
(घ) ये सभी

प्रश्न 8
किसी भर्दन में आग लग जाने पर सर्वप्रथम क्या करना चाहिए?
(क) फायर ब्रिगेड को बुलाना
(ख) भवन के अन्दर उपस्थित व्यक्तियों को भवन से बाहर निकालना
(ग) प्राथमिक चिकित्सा की व्यवस्था करना
(घ) आग-बुझाने के उपाय करना ।
उत्तर :
(ख) भवन के अन्दर उपस्थित व्यक्तियों को भवन से बाहर निकालना

प्रश्न 9
समुद्री लहरों के समय समुद्र में विद्यमान जलयानों का बचाव हो सकता है
(क) तट की ओर तेजी से बढ़ने पर
(ख) तट से दूर खुले समुद्र की ओर चले जाने पर
(ग) एक स्थान पर रुक जाने पर
(घ) बन्दरगाह पर लंगर डाल देने पर
उत्तर :
(ख) तट से दूर खुले समुद्र की ओर चले जाने पर

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