परमाणु भौतिकी किसे कहते हैं | परमाणु किसे कहते हैं | परमाणु भौतिकी की परिभाषा
परमाणु भौतिकी किसे कहते हैं | परमाणु किसे कहते हैं | परमाणु भौतिकी की परिभाषा
परमाणु भौतिकी (Atomic physics) के अन्तर्गत परमाणुओं का अध्ययन इलेक्ट्रानों तथा परमाणु नाभिक के विलगित निकाय के रूप में किया जाता है। इसमें अध्ययन का बिन्दु मुख्यतः यह होता है कि नाभिक के चारों तरफ इलेक्ट्रानों का विन्यास (arrangement) कैसा है और किस प्रक्रिया के द्वारा यह विन्यास परिवर्तित होता है।
परमाणु भौतिकी
◆ परमाणु वे सूक्ष्तम कण हैं जो रासायनिक क्रिया में भाग ले सकते हैं, परन्तु स्वतंत्र अवस्था में नहीं रह सकते। पदार्थ के अणुओं का निर्माण परमाणुओं से होता है। परमाणु मुख्यत: तीन मूल कणों- इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन एवं न्यूट्रॉन से मिलकर बना होता है। इसके केन्द्र में एक नाभिक (Nucleus) होता है जिसमें प्रोटॉन व न्यूट्रॉन स्थिर होते हैं जबकि इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों
ओर चक्कर लगाते हैं।
◆ परमाणु में प्रोटॉन एवं इलेक्ट्रॉन की संख्या समान एवं आवेश विपरीत होते हैं, जिसके कारण यह उदासीन होता है।
मूल कणों की विशेषताएँ
कण | द्रव्यमान (किग्रा) | आवेश (कूलॉम) | खोजकर्ता |
प्रोटॉन | 1.672X10¯27 | +1.6X10‾19 | रदरफोर्ड |
न्यूट्रॉन | 1.675X10¯27 | 0 | चैडविक |
इलेक्ट्रॉन | 9.108X10‾31 | -1.6X10‾19 | जे.जे. थॉमसन |
◆ आज मूल कणों की संख्या 30 से ऊपर पहुँच चुकी है, कुछ प्रमुख कणों का विवरण निम्नलिखित है-
कण | द्रव्यमान | आवेश | खोजकर्ता | विशेष |
पॉजिट्रॉन | 9.108X10¯31 | +1.6X10‾19 | एंडरसन | इलेक्ट्रॉन का एंटिकण |
न्यूट्रिनो | 0 | 0 | पाऊली | |
पाई-मैसोन | इलेक्ट्रॉन का 274 गुणा | धनात्मक एवं ऋणात्मक दोनों | युकावा | अस्थायी, जीवनकाल
10-8सेकंड |
फोटान | 0 | 0 | आइंस्टीन |
इसका वेग प्रकाश के वेग
के बराबर होता है
|
◆ नाभिक (Nucleus) : परमाणु के नाभिक का आकार अत्यंत छोटा होता है। इसकी लंबाई लगभग 10-12 सेमी होती है। परमाणु का समस्त द्रव्यमान इसके नाभिक में केन्द्रित रहता है। नाभिक का संघटन प्रोटानों व न्यूट्रॉन से होता है। परमाणु का समस्त द्रव्यमान इसके नाभिक में होता है, जिसके कारण नाभिक काफी सघन (Dense) व दृढ़ (Rigid) होता है।
◆ नाभिकीय बल (Nuclear Force) : नाभिक के भीतर समान आवेश के प्रोटॉन स्थित होते हैं जिनके बीच प्रतिकर्षण बल कार्य करता है। अब प्रश्न यह उठता है कि इस प्रतिकर्षण बल के बावजूद यह कण नाभिक के भीतर कैसे रहते हैं। इसका कारण यह है कि नाभिक के भीतर प्रोटॉनों व न्यूट्रॉनों के बीच कुछ तीव्र (Srong) आकर्षण बल कार्यशील होते हैं, जो इन कणों
को आपस में बाँधे रहते हैं। इन बलों को ही नाभिकीय बल कहा जाता है।
◆ द्रव्यमान संख्या (Mass Number) : किसी तत्त्व के परमाणु नाभिक में उपस्थित प्रोटॉनों तथा न्यूट्रॉनों की संख्या के योग को द्रव्यमान संख्या कहते हैं।
◆ समस्थानिक (Isotopes) : एक तत्त्व के परमाणुओं को जिनकी परमाणु संख्या समान हो परन्तु परमाणु द्रव्यमान संख्या भिन्न हो समस्थानिक कहलाते हैं। समस्थानिकों के रासायनिक गुण एक समान होते हैं।
◆ समभारी (Isobars) : कुछ तत्त्व ऐसे होते हैं जिनके परमाणुओं का परमाणु भार तो एक समान होता है, परन्तु इलेक्ट्रॉनों एवं प्रोटॉनों की संख्या (परमाणु क्रमांक) भिन्न-भिन्न होती है। ऐसे परमाणुओं को समभारी कहते हैं। समभारियों के रासायनिक गुण भिन्न-भिन्न होते हैं।
◆ रेडियो सक्रियता (Radioactivity) : रेडियोसक्रियता की खोज फ्रेंच वैज्ञानिक हेनरी बेकरल, राबर्ट पियरे क्यूरी एवं मैडम ने किया था। इस खोज के लिए इन तीनों को संयुक्त रूप से नोबेल पुरस्कार मिला था।
◆ जिन नाभिकों में प्रोटॉन की संख्या 83 या उससे अधिक होती है वे अस्थायी होते हैं। स्थायित्व प्राप्त करने के लिए ये नाभिक स्वतः ही क्रमशः अल्फा (α), बीटा (β) एवं गामा (γ) किरणें उत्सर्जित करने लगती हैं। ऐसे नाभिक जिन तत्त्वों के परमाणुओं में होते हैं, उन्हें रेडियोसक्रिय तत्त्व कहते हैं तथा किरणों की उत्सर्जन की घटना को रेडियोसक्रियता कहते हैं।
◆ राबर्ट पियरे क्यूरी एवं उनकी पत्नी मैडम क्यूरी ने एक नये रेडियोसक्रिय तत्त्व ‘रेडियम’ (Radium) की खोज की, जिसको उन्होंने पिच बलेण्डी (Pitch-blende) नामक यूरेनियम खनिज से प्राप्त किया।
◆ रेडियोसक्रियता के दौरान निकलने वाली किरणें- अल्फा (α), बीटा (β) एवं गामा (γ) की पहचान सर्वप्रथम 1902 ई. में रदरफोर्ड नामक वैज्ञानिक ने की थी।
अल्फा (α) किरणें
◆ ये किरणें गतिमान धनावेशित कणों से मिलकर बनी होती हैं।
◆ इन कणों का द्रव्यमान हाइड्रोजन के परमाणु का चार गुना होता है।
◆ इनकी बेधन क्षमता (Penetrating Power) बहुत कम व गैसों की आयतन क्षमता बहुत अधिक है।
◆ इन कणों का वेग प्रकाश के वेग का 1/10 होता है तथा लगभग 2.2X107 मीटर/सेकंड होता हैं
बीटा (β) किरणें
◆ ये किरणें ऋणावेशित कणों से मिलकर बनी होती हैं। इन कणों पर इलेक्ट्रॉन के आवेश के बराबर आवेश होता है।
◆ इन कणों का वेग बहुत अधिक होता है तथा प्रकाश के वेग के लगभग बराबर हो सकता है।
◆ इन कणों की बेधन क्षमता अल्फा (α) कणों की अपेक्षा अधिक एवं आयनन क्षमता (lonisation) अल्फा कणों की अपेक्षा कम होती है।
गामा (γ) किरणें
◆ ये किरणें विद्युत चुम्बकीय तरंगें हैं तथा ऊर्जा के छोटे-छोटे बण्डलों (Packets) से मिलकर बनी होती हैं, जिन्हें फोटॉन (Photons) कहते हैं।
◆ इन किरणों का वेग प्रकाश के वेग के बराबर होता है।
◆ इनकी वेधन क्षमता अत्यधिक होती है व आयनन क्षमता न्यूनतम होती है।
◆ ये विद्युत या चुम्बकीय क्षेत्र से प्रभावित नहीं होती, लेकिन प्रतिदिप्ति (Fluorescence) उत्पन्न करती है।
◆ इन किरणों में ऊर्जा की मात्रा बहुत अधिक संचित रहती है।
◆ रेडियोसक्रियता की माप जी.एम. काउंटर से की जाती है।
◆ नाभिकीय खोजों, जीवविज्ञान व औषधियों, कृषि, उद्योगों एवं रोगों के उपचार में रेडियोसक्रियता के अनुप्रयोग होते हैं।
◆ रेडियोसक्रिय कोबाल्ट का प्रयोग कैंसर को ठीक करने में किया जाता है। रेडियो आयोडीन अवटुग्रंथि (Thyroid Gland) के उपचार में काम आता है।
◆ कोबाल्ट एवं टंगस्टन के समस्थानिक मशीन व अन्य यंत्रों में खराबी या टूटन को ज्ञात करने में प्रयोग किये जाते हैं।
◆ रेडियो समस्थानिकों का प्रयोग अत्यधिक प्राचीन तत्त्वों की आयु ज्ञात करने में बहुत होता है। इस विधि में मृत जीवाश्म या पौधों में प्राप्त कार्बन के दो समस्थानिकों 6C12, व 6C14 का अनुपात ज्ञात करके आयु का निर्धारण किया जाता है। इन दो समस्थानिकों में 6C14 रेडियोसक्रिय होता है।
◆ अर्द्ध आयु (Half Life) : जितने समयान्तराल में किसी रेडियोसक्रिय पदार्थ की मात्रा विघटित होकर अपने प्रारंभिक मान की आधी रह जाती है उस समयान्तराल को पदार्थ की अर्द्ध-आयु कहते हैं।
◆ अभ्र कोष्ठ (Cloud Chamber) : इसका उपयोग रेडियोसक्रिय कणों की उपस्थिति का पता लगाने, उनकी ऊर्जा को मापने आदि के लिए किया जाता है। इसका आविष्कार 1911 ई. में सी.आर.टी. विल्सन ने किया था।
◆ द्रव्यमान ऊर्जा सम्बन्ध (Mass-Energy Relation) : 1905 ई. में आइंस्टीन ने द्रव्यमान एवं ऊर्जा के बीच एक सम्बन्ध स्थापित किया जिसे आपेक्षिकता का सिद्धान्त (Theory of Relativity) कहा जाता है। इसके अनुसार द्रव्यमान एवं ऊर्जा एक-दूसरे से स्वतंत्र नहीं हैं, बल्कि दोनों एक-दूसरे से सम्बन्धित है तथा प्रत्येक पदार्थ में उसके द्रव्यमान के कारण ऊर्जा भी होती है। यदि किसी वस्तु का द्रव्यमान m एवं प्रकाश वेग c हो तो इस द्रव्यमान से सम्बद्ध ऊर्जा E-mc² होती है।
◆ सूर्य से पृथ्वी को लगातार ऊर्जा ऊष्मा के रूप में प्राप्त हो रही है, जिसके फलस्वरूप सूर्य का द्रव्यमान लगातार घटता जा रहा है। अर्थात् सूर्य का द्रव्यमान लगातार ऊर्जा के रूप में पृथ्वी को प्राप्त हो रहा है। आँकड़ों के अनुसार सूर्य से पृथ्वी को प्रति सेकंड 4X1026 जूल ऊर्जा प्राप्त हो रही है, जिसके फलस्वरूप इसका द्रव्यमान लगभग 4x109 किग्रा/सेकंड की दर से कम हो रहा है। परन्तु सूर्य का द्रव्यमान इतना अधिक है कि वह पृथ्वी को लगातार एक हजार करोड़ वर्षों तक इसी दर से ऊर्जा देता रहेगा।