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पियाजे, कोहबर्ग एवं वाइगोत्स्की के सिद्धान्त

पियाजे, कोहबर्ग एवं वाइगोत्स्की के सिद्धान्त

पियाजे, कोहबर्ग एवं वाइगोत्स्की के सिद्धान्त

             Principles of Piaget, Kohlberg and Vygotsky
CTET परीक्षा के विगत वर्षों के प्रश्नपत्रों में इस अध्याय से वर्ष
2011 में 4 प्रश्न, 2012 में 4 प्रश्न, 2013 में 2 प्रश्न, 2014 में
6 प्रश्न, 2015 में 9 प्रश्न तथा वर्ष 2016 में 12 प्रश्न पूछे गए
हैं। इस प्रकार परीक्षा की दृष्टि से यह अध्याय अत्यन्त महत्त्वपूर्ण
है। इस अध्याय में मनोवैज्ञानिकों द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त
समाहित हैं।
मानव विकास की वृद्धि एवं विकास के कई आयाम होते हैं। विकास की
विभिन्न अवस्थाओं में बालकों में विविध प्रकार के गुण एवं विशेषताएँ पाई
जाती है। इसका अध्ययन मनोवैज्ञानिकों ने विकास की अवस्थाओं के सन्दर्भ
में किया है, जो सिद्धान्त के रूप में हमारे सामने हैं। विकास की अवस्थाओं
से सम्बन्धित सिद्धान्तों के देने वाले वैज्ञानिकों में पियाजे, कोह्लबर्ग एवं
वाइगोत्स्की का नाम उल्लेखनीय है।
5.1 जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धान्त
जीन पियाजे स्विट्जरलैण्ड के एक मनोवैज्ञानिक थे। बालकों में बुद्धि का
विकास किस प्रकार से होता है, यह जानने के लिए उन्होंने अपने स्वयं के
बच्चों को अपनी खोज का विषय बनाया। बच्चे जैसे-जैसे बड़े होते गए,
उनके मानसिक विकास सम्बन्धी क्रियाओं का वे बड़ी बारीकी से अध्ययन
करते रहे। इस अध्ययन के परिणामस्वरूप उन्होंने जिन विचारों का प्रतिपादन
किया, उन्हें पियाजे के मानसिक या संज्ञानात्मक विकास के सिद्धान्त के नाम
से जाना जाता है।
संज्ञानात्मक विकास का तात्पर्य बच्चों के सीखने और सूचनाएं एकत्रित करने
के तरीके से है। इसमें अवधान में वृद्धि प्रत्यक्षीकरण, भाषा, चिन्तन, स्मरण
शक्ति और तर्क शामिल हैं।
      पियाजे के संज्ञानात्मक सिद्धान्त के अनुसार, वह प्रक्रिया जिसके द्वारा
संज्ञानात्मक संरचना को संशोधित किया जाता है, समावेशन
कहलाती है।
    पियाजे ने अपने इस सिद्धान्त के अन्तर्गत यह बात सामने रखी कि बच्चों में
बुद्धि का विकास उनके जन्म के साथ जुड़ा हुआ है। प्रत्येक बालक अपने
जन्म के समय कुछ जन्मजात प्रवृत्तियों एवं सहज क्रियाओं को करने सम्बन्धी
योग्यताओं; जैसे- चूसना, देखना, वस्तुओं को पकड़ना, वस्तुओं तक
पहुँचना आदि को लेकर पैदा होता है। अतः जन्म के समय बालक के पास
बौद्धिक संरचना के रूप में इसी प्रकार की क्रियाओं को करने की क्षमता
होती है, परन्तु जैसे-जैसे वह बड़ा होता है, उन बौद्धिक क्रियाओं का दायरा
बढ़ जाता है और वह बुद्धिमान बनता चला जाता है। बच्चों में दुनिया के बारे
में समझ विकसित करने की क्षमता पैदा हो जाती है। वातावरण के अनुसार
स्वयं को ढालना अनुकूलन कहलाता है। बच्चों में वातावरण के साथ
सामंजस्य स्थापित करने को बेहतर क्षमता होती है। पूर्व ज्ञान के साथ नवीन
ज्ञान को जोड़ने की प्रक्रिया को आत्मसातीकरण (Assimilation) कहते है।
जब बालक अपने पुराने स्कीमा अर्थात् ज्ञान में परिवर्तन करना प्रारम्भ कर
देता है तो वह प्रक्रिया समायोजन (Adjustment) कहलाती है।
पियाजे के संज्ञानात्मक विकास के सिद्धान्त के अनुसार, हमारे विचार और
तर्क अनुकूलन के भाग है। संज्ञानात्मक विकास एक निश्चित अवस्थाओं के
क्रम में होता है। संवेदी प्रेरक अवस्था अनुकरण (Imitation), स्मृति
(Mernory) एवं मानसिक निरूपण पर आधारित होती है।
पियाजे ने संज्ञानात्मक विकास को चार अवस्थाओं में विभाजित किया है,
जिनके नाम एवं विशेषताएं इस प्रकार हैं
5.1.1 इन्द्रियजनित गामक अवस्था
          (जन्म से 2 वर्ष तक)
• मानसिक क्रियाएँ इन्द्रियजनित गामक क्रियाओं के रूप में ही सम्पन्न होती है।
• भूख लगने की स्थिति को बालक रोकर व्यक्त करता है। इस अवस्था में
व्यक्ति आँख, कान एवं नाक से सोचता है। जिन वस्तुओं को वे प्रत्यक्षत:
देखते हैं, उनके लिए उसी का अस्तित्व होता है।
• इस आयु में बालक की बुद्धि उसके कार्यों द्वारा व्यक्त होती है। उदाहरण
के लिए,चादर पर बैठा शिशु चादर पर थोड़ी दूर स्थित खिलौने को प्राप्त
करने के लिए चादर को खींचकर खिलौना प्राप्त कर लेता है।
• इस तरह यह अवस्था अनुकरण, स्मृति और मानसिक निरूपण से
सम्बन्धित है।
5.1.2 पूर्व संक्रियात्मक अवस्था (2 से 7 वर्ष तक)
• इस अवस्था में बालक अपने परिवेश की वस्तुओं को पहचानने एवं उसने
विभेद करने लगता है।
• इस दौरान उसमें भाषा का विकास भी प्रारम्भ हो जाता है। इस अवस्था में
बालक नई सूचनाओं और अनुभवों का संग्रह करता है। वह पहली अवस्था
की अपेक्षा अधिक समस्याओं का समाधान करने योग्य हो जाता है। बच्चों
में वस्तु स्थायित्व के गुण का विकास होता है।
5.1.3 मूर्त संक्रियात्मक अवस्था    (7 से 11 वर्ष तक)
• इस अवस्था में बालक में वस्तुओं को पहचानने, उनका विभेदीकरण
(Differentiation) करने तथा वर्गीकरण (Classification) करने की
क्षमता विकसित हो जाती है।
• उनका चिन्तन अब अधिक क्रमबद्ध एवं तर्कसंगत होना प्रारम्भ कर देता
है। इस अवस्था में बालक विश्वास करने लगता है तथा लम्बाई, भार,
अंक आदि प्रत्ययों पर चिन्तन करता है।
• भाषा का पूर्ण विकास, बालक किसी पूर्व और उसके अंश के सम्बन्ध में
तर्क कर सकता है। बालक अपने पर्यावरण के साथ अनुकूलन
(Adaptation) करने के लिए अनेक नियमों को सीख लेता है।
5.1.4 औपचारिक/अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था   (11 वर्ष से आगे)
• यह अवस्था ग्यारह वर्ष से प्रौढ़ावस्था तक की अवस्था है। अमूर्त चिन्तन
इस अवस्था की प्रमुख विशेषता है।
• इस अवस्था में भाषा सम्बन्धी योग्यता तथा सम्प्रेषणशीलता
(communication) का विकास अपनी ऊँचाई को छूने लगता है।
• इस अवस्था में व्यक्ति अनेक संक्रियात्मक को संगठित कर उच्च स्तर के
संक्रियात्मक का निर्माण कर सकता है और विभिन्न प्रकार की समस्याओं
के समाधान के लिए अमूर्त नियमों का निर्माण कर सकता है।
• बालक में अच्छी तरह से सोचने, समस्या समाधान करने एवं निर्णय लेने
की क्षमता का विकास हो जाता है।
5.2 जीन पियाजे के संज्ञानात्मक विकास के सिद्धान्त का शैक्षिक महत्त्व
• पियाजे के अनुसार संज्ञानात्मक या मानसिक विकास निरन्तर चलने
वाली प्रक्रिया है।
• बालकों का मानसिक विकास धीरे-धीरे एक सोपान (क्रम) के तहत
होता रहता है। अध्यापकों को पहले बालकों के मानसिक विकास की
अवस्था का निर्धारण कर, तब उसे शिक्षित करने हेतु योजना
बनानी चाहिए।
• तार्किक चिन्तन के विकास में बाल्यावस्था महत्त्वपूर्ण कड़ी मानी जाती
है। अत: शिक्षकों को बच्चों में तार्किक क्षमता बढ़ाने का प्रयास करना
चाहिए।
• वर्ग में समान रुचि के विद्यार्थियों को छोटे-छोटे समूहों में विभाजित कर
उनमें विचार-विनिमय (exchange of thoughts) के माध्यम से तार्किक
बुद्धि के विकास के अवसर देने चाहिए। बच्चों को गलती करने एवं उसे
स्वयं सुधारने का पर्याप्त अवसर देना चाहिए।
• शिक्षकों को प्रयोगात्मक शिक्षा एवं व्यावहारिक शिक्षा पर बल देना
चाहिए। प्रयोगों के माध्यमों से बालकों में नवीन विचार का संचार होता
है। नवीन दृष्टिकोण मौलिक अन्वेषण के दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण
होता है।
• शिक्षक को वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन करते रहना चाहिए यह
प्रतियोगिता नवीन सोच एवं नवीन विचारों को जन्म देती है।
5.3 जीन पियाजे के अन्य सिद्धान्त
जीन पियाजे द्वारा दिये गए कुछ अन्य सिद्धान्त निम्न हैं
5.3.1 निर्माण और खोज का सिद्धान्त
• प्रत्येक बालक अपने अनुभवों को अर्थपूर्ण बनाने के लिए क्रियाशील होता
है। वह यह जानने के लिए प्रयत्नशील होता है कि उसके विचार
सम्बद्धतापूर्वक मेल खाते हैं या नहीं। बच्चे उन व्यवहारों और विचारों की
समय-समय पर खोज और निर्माण करते हैं, जिन व्यवहारों और विचारों का
उन्होंने कभी पहले प्रत्यक्ष नहीं किया होता है।
• पियाजे का विचार है कि ज्ञानात्मक विकास केवल नकल न होकर खोज पर
आधारित है। नवीनता या खोज को उद्दीपक-अनुक्रिया सामान्यीकरण के
आधार पर नहीं समझाया जा सकता है। उदाहरण के लिए, एक चार साल
का बालक यदि भिन्न-भिन्न आकार के प्यालों को प्रथम बार क्रमानुसार
लगा देता है, तो यह उसकी बौद्धिक वृद्धि की खोज और निर्माण से
सम्बन्धित है।
5.3.2 कार्य-क्रिया का अर्जन
• कार्यात्मक क्रिया का तात्पर्य उस विशिष्ट प्रकार की मानसिक दिनचर्या से है,
जिसकी मुख्य विशेषता उत्क्रमणशीलता है।
• प्रत्येक कार्यात्मक-क्रिया का एक तर्कपूर्ण विपरीत प्रभाव होता है। उदाहरण
के लिए, एक मिट्टी के चक्र को दो भागों में तोड़ना तथा दो टूटे हुए भागों
को पुनः एक पूर्ण चक्र के रूप में जोड़ना एक कार्यात्मक-क्रिया है।
कार्यात्मक-क्रिया की सहायता से बच्चे मानसिक रूप से वहाँ पुनः पहुँच
सकते हैं, जहां से उन्होंने कार्य प्रारम्भ किया था।
• बौद्धिक वृद्धि का केन्द्र इन्हीं कार्यात्मक क्रिया का अर्जन है।
• पियाजे का विचार है कि जब तक बालक किशोरावस्था तक नहीं पहुँच जाता
है, तब तक वह भिन्न-भिन्न विकास अवस्थाओं में भिन्न-भिन्न वर्गों की
कार्यात्मक-क्रिया का अर्जन करता रहता है।
• एक विकास अवस्था से दूसरी में पदार्पण (प्रारम्भ) के लिए दो तथ्य
आवश्यक हैं-सात्मीकरण एवं सन्तुलन स्थापित करना।
• सात्मीकरण का अर्थ है बालक में उपस्थित एक विचार में किसी नए विचार
या वस्तु का समावेश हो जाना। पियाजे के अनुसार, सात्मीकरण बालक के
प्रत्यक्षात्मक-गत्यात्मक समन्वय से सम्बन्धित है। व्यवस्थापन या सन्तुलन का
अर्थ है नई वस्तु या विचार के साथ समायोजन करना या अपने विचारों और
क्रियाओं को नए विचारों और वस्तुओं में फिट करना।
5.3.3 जीन पियाजे का नैतिक विकास का सिद्धान्त
पियाजे ने नैतिक विकास का सिद्धान्त (Jean Piaget’s Principle of Moral
Development) दिया। इनके अनुसार नैतिक निर्णय के विकास में एक
निश्चित क्रम एवं तार्किक क्रम होता है। पियाजे के अनुसार नैतिक अवस्थाएँ दो
प्रकार की होती हैं, जो अग्रलिखित हैं
• परायत्त नैतिकता (Stage of Heteronomous Morality) की अवस्था
(2 से 8 वर्ष की) पियाजे के अनुरूप इस अवस्था का उद्भव बालकों में
असमान अन्त:क्रिया से होती है। इस काल में बच्चों में नैतिक नियम निरपेक्ष,
अपरिवर्तनशील तथा दृढ़ प्रवृत्ति के होते है।
• स्वायत्त नैतिकता (Autonomous Morality) की अवस्था (9 से 11 वर्ष)
इस काल में नैतिकता बच्चों के समकक्ष अर्थात मित्रों के बीच के सम्बन्धों से
विकसित होती है। अपने मित्रों के सम्बन्धों के द्वारा न्याय का एक ऐसा दर्शन
उभरता है, जिससे दूसरे के अधिकारों के सन्दर्भ में चिन्ता एवं पारस्परिकता का
भाव दिखता है। बच्चों में सोचने की प्रवृत्ति होती है नियम एवं कानून लोगों
द्वारा निर्मित किए गए है।
5.4 लॉरेन्स कोहबर्ग का नैतिक विकास की अवस्था का सिद्धान्त
लॉरन्स कोहबर्ग ने जीन पियाजे के सिद्धान्त को आधार बनाकर नैतिक विकास
की अवस्था का सिद्धान्त दिया, जिसे उसने तीन भागों में विभाजित किया है
5.4.1 पूर्व परम्परागत स्तर या पूर्व नैतिक स्तर (4 से 10 वर्ष)
इस आयु में बालक अपनी आवश्यकताओं के सम्बन्ध में सोचते हैं। नैतिक
दुविधाओं से सम्बन्धित प्रश्न उनके लाभ या हानि पर आधारित होते हैं। नैतिक
कार्य का सम्बन्ध सामाजिक एवं सांस्कृतिक रूप से क्या सही है एवं क्या गलत
है इससे सम्बन्धित होता है। यथा-अच्छा या बुरा, सही या गलत की व्याख्या
मिलने वाले दण्ड, पुरस्कार अथवा नियमों का समर्थन करने वाले व्यक्तियों की
शारीरिक क्षमता या उसके परिणाम से मापी जाती है। इसके अन्तर्गत दो चरण हैं
1. दण्ड तथा आज्ञापालन अभिमुखता (Punishment and Obedience
Orientation) बालकों के मन में आज्ञापालन का भाव दण्ड पर आधारित
होता है, इस अवस्था में बालकों में नैतिकता का ज्ञान होता है। बालक स्वयं
को परेशानियों से बचाना चाहता है। कोहबर्ग का मानना है कि कोई बालक
यदि स्वीकृत व्यवहार अपनाता है तो इसका कारण दण्ड से स्वयं को
बचाना है।
2. आत्म अभिरुचि तथा प्रतिफल अभिमुखता (Self-Interest and
Reward Orientation) इस अवस्था में बालकों का व्यवहार खुलकर
सामने नहीं आता है, वह अपनी रुचि को प्राथमिकता देता है। वह पुरस्कार
पाने के लिए नियमों का अनुपालन करता है।
5.4.2 परम्परागत नैतिक स्तर (10 से 13 वर्ष)
कोई बालक दूसरे व्यक्ति के नैतिक मानकों को अपने व्यवहार में समाहित करता
है। तथा उस मानक के सही एवं गलत पक्ष पर चिंतन के माध्यम से निर्णय करता
है, तथा उस पर अपनी सहमति बनाता है। इस स्तर पर बालक अपनी
आवश्यकता के साथ-साथ दूसरों की आवश्यकता का भी ध्यान रखता है। इस
स्तर के दो भाग है
इस स्तर के प्रमुख चरण निम्न है
1. अधिकार संरक्षण अभिमुखता (Law and Order Orientation) इस
अवस्था में बच्चे नियम एवं व्यवस्था के प्रति जागरूक होते हैं तथा वे
नियम एवं व्यवस्था के अनुपालन के पति जवाबदेह होते हैं।
2. अच्छा लड़का या अच्छी लड़की (Good Boy or Good Girl) इस
अवस्था में बच्चे में एक-दूसरे का सम्मान करने की भावना होती है तथा
दूसरों से भी सम्मान पाने की इच्छा रखते हैं।
5.4.3 उत्तर परम्परागत नैतिक स्तर या आत्म अंगीकृत नैतिक मूल्य (13 वर्ष से ऊपर)
कोहवर्ग के मतानुसार मैतिक विकास के परम्परागत स्तर पर नैतिक मूल्य
या चारित्रिक मूल्य का सम्बन्ध अच्छे या बुरे कार्य के सन्दर्भ में निहित
होता है। बालक बाहरी सामाजिक आशाओं को पूरा करने में रुचि लेता
है। बालक अपने परिवार, समाज एवं राष्ट्र के महत्व को प्राथमिकता देते
हुए एक स्वीकृत व्यवस्था के अन्तर्गत कार्य करता है।
  मानव विकास की वृद्धि एवं विकास के कई आयाम होते हैं। विकास की
विविध अवस्थाओं के बालकों में कुछ खास, गुण एवं विशेषताएँ
उभरकर सामने आती हैं। इसके अन्तर्गत वयस्क वस्तुओं को निर्धारित
कर कार्य करना सीख जाता है। इसके अन्तर्गत दो चरण हैं
1. सामाजिक अनुबन्ध अभिमुखता (Social Contract
Orientation) इस अवस्था में बच्चे वही करते है जो उन्हें सही
लगता है तथा वे यह भी सोचते हैं कि स्थापित नियमों में सुधार
की आवश्यकता तो नहीं है। उदाहरणस्वरूप यदि एक व्यक्ति
अपने बच्चे की जान बचाने के लिए दवा की चोरी करता है, तो
यहाँ देखा जाएगा कि जीवन बचाना यहाँ महत्त्वपूर्ण है।
2. सार्वभौमिक नैतिक सिद्धान्त अभिमुखता (Universal
Ethical Principle Orientation) इस अवस्था में अन्त:करण
(Con science) की आरे अग्रसर हो जाती है। अब बच्चे का
आचरण दूसरे की प्रतिक्रियाओं का विचार किये बिना उसके
आन्तरिक आदर्शों के द्वारा होता है। यहाँ बच्चे के अनुरूप व्यवहार
करना है।
5.5 कोह्लबर्ग के नैतिक विकास के सिद्धान्त की अन्य अवस्थाएँ
कोह्लबर्ग ने नैतिक विकास की अवस्था के कुछ अन्य सिद्धान्त दिए है,
जो निम्न प्रकार हैं
5.5.1 स्वकेन्द्रित अवस्था
• इस अवस्था का कार्यकाल तीसरे वर्ष से शुरू होकर 6 वर्ष तक
होता है।
• इस अवस्था के बालक की सभी व्यावहारिक क्रियाएँ अपनी वैयक्तिक
आवश्यकताओं और इच्छाओं की पूर्ति के चारों ओर केन्द्रित रहती है।
बालक के लिए वही नैतिक होता है, जो उसके स्व अर्थात्
आत्म-कल्याण से जुड़ा होता है।
5.5.2 परम्पराओं को धारण करने वाली अवस्था
• सातवें वर्ष से लेकर किशोरावस्था के प्रारम्भिक काल का सम्बन्ध इस
अवस्था से है।
• इस अवस्था का बालक सामाजिकता के गुणों को धारण करता हुआ
देखा जाता है। अत: उसमें समाज के बनाए नियमों, परम्पराओं तथा
मूल्यों को धारण करने सम्बन्धी नैतिकता का विकास होता हुआ देखा
जा सकता है।
• इस अवस्था में उसे अच्छाई-बुराई का ज्ञान हो जाता है और वह यह
समझने लगता है कि उसके किस प्रकार के आचरण या व्यवहार से दूसरों
का अहित होगा या ठेस पहुँचेगी।
5.5.3 आधारहीन आत्मचेतना अवस्था
• यह अवस्था किशोरावस्था से जुड़ी हुई है।
• इस अवस्था में बालकों का सामाजिक, शारीरिक तथा मानसिक विकास
अपनी ऊँचाइयों को छूने लगता है और उसमें आत्मचेतना का शुरुआत हो
जाती है
• यह मेरा आचरण है, मैं ऐसे व्यवहार करता हूँ, इसकी उसे अनुभूति होने
लगती है तथा अपने व्यवहार आचरण और व्यक्तित्व सम्बन्धी गुणों की
स्वयं ही आलोचना करने की प्रवृत्ति उसमें पनपने लगती है।
• पूर्णता की चाह उसमें स्वयं से असन्तुष्ट रहने का मार्ग प्रशस्त कर देती है।
यही असन्तुष्टि उसे समाज तथा परिवेश में जो कुछ गलत हो रहा है, उसे
बदल डालने या परम्पराओं के प्रति सुधारवादी दृष्टिकोण अपनाने को प्रेरित
करती है।
5.5.4 आधारयुक्त आत्मचेतना अवस्था
• नैतिक या चारित्रिक विकास की यह चरम (Extreme) अवस्था है।
भली-भाँति परिपक्वता ग्रहण करने के बाद ही इस प्रकार का विकास
सम्भव है।
• जिस प्रकार के नैतिक आचरण और चारित्रिक मूल्यों की बात बालक
विशेष में की जाती है उसके पीछे केवल उसकी भावनाओं का प्रवाह मात्र
ही नहीं होता, बल्कि वह अपनी मानसिक शक्तियों का उचित प्रयोग करता
हुआ अच्छी तरह सोच-समझकर किसी व्यवहार या आचरण विशेष को
अपने व्यक्तित्व गुणों में धारण करता हुआ पाया जाता है।
5.6 वाइगोत्स्की का सामाजिक विकास का सिद्धान्त
• सोवियत रूस के मनोवैज्ञानिक लेव वाइगोत्स्की ने बालकों में सामाजिक
विकास से सम्बन्धित एक सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। इस सिद्धान्त में
उन्होंने बताया कि बालक के हर प्रकार के विकास में उसके समाज का
विशेष योगदान होता है।
• वाइगोत्स्की ने बताया कि समाज से घुलने-मिलने के फलस्वरूप ही उसमें
विभिन्न प्रकार का विकास होता है। समाज में उसे जिस प्रकार की
सुविधाएं उपलब्ध होंगी, उसका विकास भी उसी प्रकार का होगा।
• जन्म के समय शिशु का व्यवहार सामाजिकता से काफी दूर होता है। वह
अत्यधिक स्वार्थी होता है। उसे केवल अपनी शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति
करने की ललक होती है तथा दूसरों के हित चिन्तन की वह कुछ भी परवाह
नहीं करता। वह इस आयु में गुड्डे-गुड़ियों, खिलौने, मूर्ति आदि निर्जीव पदार्थों
तथा पशु-पक्षी, मनुष्य आदि सजीव प्राणियों में कोई अन्तर नहीं समझ पाता।
• शिशु के सामाजिक सम्पर्क का दायरा बहुत ही सीमित होता है। अतः
सामाजिक विकास के दृष्टिकोण से उनसे बहुत आशा नहीं की जा सकती।
बाल्यावस्था में प्रवेश करने के साथ-साथ अधिकांश बच्चे विद्यालय में
जाना प्रारम्भ कर देते हैं और अब उनका सामाजिक दायरा बहुत विस्तृत
बनता चला जाता है।
• बाल्यावस्था के बाद किशोरावस्था में लिंग सम्बन्धी चेतना तीव्र हो जाती है।
इस आयु में अधिकतर किशोर और किशोरियाँ अपने हमउम्र-समूह के
सक्रिय सदस्य होते हैं।
• समूह के प्रति उत्पन्न भावना अब केवल टोली या समूह विशेष तक ही
सीमित नहीं रहती, बल्कि यह विद्यालय, समुदाय, प्रान्त और राष्ट्र तक
व्यापक बन जाती है। सहानुभूति, सहयोग, सद्भावना, परोपकार और त्याग
का अद्भुत सामंजस्य इस अवस्था में देखने को मिलता है।
• किशोरावस्था संवेगों की तीव्र अभिव्यक्ति की अवस्था भी है। इस अवस्था
में विशिष्ट रुचियों और सामाजिक सम्पर्क का क्षेत्र भी अत्यधिक विस्तृत
होता है।
• वाइगोत्स्की के सामाजिक विकास के सिद्धान्त का निहितार्थ है
सहयोगात्मक समस्या समाधान अर्थात् बच्चे अपने शिक्षक के
निर्देशानुसार अपने साथियो की सहायता से उन समस्याओं का समाधान
कर पाते हैं, जिन्हें उन्होंने पहले अपनी कक्षा में देखा है।
                  वाइगोत्स्की का समीपस्थ विकास का सिद्धान्त
यह वाइगोत्स्की के सामाजिक सांस्कृतिक सिद्धान्त का एक भाग है। इसके
अन्तर्गत वाइगोत्स्की ने एक सम्प्रत्यय दिया था, जिसका नाम था स्कॉफ होलडिंग
(सहारा देना)। स्कॉफ होलडिंग (Scaffolding) का अर्थ होता है जब बच्चा किसी
समस्या के समाधान के लिए किसी वयस्क या साथी के मार्गदर्शन की उपस्थिति
में कार्य करता है तो वह प्रक्रिया स्कॉफ होलडिंग कहलाती है या जब बच्चा किसी
समस्या के समाधान का हल किसी की सहायता/मार्गदर्शन में करता है तो वह
प्रक्रिया सहारा देना कहलाती है।
                                           अभ्यास प्रश्न
1. पियाजे के अनुसार, विकास की पहली
अवस्था (जन्म से लगभग 2 वर्ष आयु)
के दौरान बच्चा …………. सबसे बेहतर
सीखता है।
(1) निष्क्रिय (Neutral) शब्दों को समझने के
द्वारा
(2) अमूर्त तरीके से चिन्तन द्वारा
(3) भाषा के नए अर्जित ज्ञान के अनुप्रयोग द्वारा
(4) इन्द्रियों के प्रयोग द्वारा
2. पियाजे के अनुसार, संज्ञानात्मक विकास
के किस चरण पर बच्चा ‘वस्तु
स्थायित्व’ को प्रदर्शित करता है?
(1) मूर्त संक्रियात्मक चरण
(2) औपचारिक संक्रियात्मक चरण
(3) संवेदी-प्रेरक चरण
(4) पूर्व संक्रियात्मक चरण
3. निम्न में से किसका कथन है कि
“ज्ञानात्मक विकास नकल पर आधारित
न होकर खोज पर आधारित होता है?”
(1) जीन पियाजे
(2) कोह्लबर्ग
(3) स्किनर
(4) वाइगोत्स्की
4. पियाजे के अनुसार, कोई बच्चा किस
अवस्था में अपने परिवेश की वस्तुओं को
पहचानने एवं उनमें विभेद करने
(1) मूर्त संक्रियात्मक अवस्था
(2) औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था
(3) संवेदी-प्रेरक अवस्था
(4) पूर्व संक्रियात्मक अवस्था
5. पियाजे ने किसी बच्चे के विचारों में नए
विचारों के समावेश हो जाने को क्या
कहा है?
(1) व्यवस्थापन
(2) सात्मीकरण
(3) खोज
(4) निर्माण
6. जीन पियाजे के अनुसार, कितने वर्ष की
आयु तक के बच्चों में संज्ञानात्मक
परिपक्वता का अभाव पाया जाता है?
(1) 4 वर्ष
(2) 6 वर्ष
(3) 8 वर्ष
(4) 12 वर्ष
7. बच्चों के विकास से सम्बन्धित निर्माण
एवं खोज का सिद्धान्त’ निम्न में से
किसने दिया था?
(1) स्किनर
(2) वाइगोत्स्की
(3) जीन पियाजे
(4) कोह्लबर्ग
8. पियाजे द्वारा बताई गई बाल विकास की
चार अवस्थाओं में औपचारिक अथवा
अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था की अवधि है
(1) जन्म से 2 वर्ष तक
(2) 2 से 7 वर्ष तक
(3) 7 से 11 वर्ष तक
(4) 11 वर्ष से लेकर प्रौढावस्था तक
9. पियाजे के अनुसार, …………….. वर्ष से कम
आयु के बालकों में संज्ञानात्मक परिपक्वता का
अभाव पाया जाता है।
(1) 6
(2) 8
(3) 9
(4) 10
10. पियाजे के संज्ञानात्मक विकास के सिद्धान्त के
अनुसार किस अवस्था में बालक
परिकल्पनात्मक ढंग से समस्याओं पर विचार
कर सकता है?
(1) अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था
(2) मूर्त संक्रियात्मक अवस्था
(3) पूर्व संक्रियात्मक अवस्था
(4) इन्द्रियजनित गामक अवस्था
11. वातावरण के अनुसार स्वयं को ढालना
कहलाता है।
(1) साम्यीकरण
(2) समायोजन
(3) अनुकूलन
(4) सहकारिता
12. पियाजे के संज्ञानात्मक विकास के सिद्धान्त के
अनुसार विकास …………….।
(1) रुक-रुक कर चलने वाली प्रक्रिया है।
(2) निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है।
(3) रुक-रुक कर एवं निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है
(4) उपरोक्त में से कोई नहीं
13. शिक्षकों को प्रयोगात्मक शिक्षा एवं व्यावहारिक
शिक्षा पर बल देना चाहिए। प्रयोगों के माध्यम
से बालकों में नवीन विचार का संचार होता है,
एवं इससे उनमें मौलिकता का सृजन होता है,
निम्न में से यह कथन सम्बन्धित है।
(1) पियाजे के संज्ञानात्मक विकास के शैक्षिक
महत्त्व से
(2) वाइगोत्स्की के सामाजिक विकास के सिद्धान्त से
(3) कोहबर्ग के नैतिक विकास के सिद्धान्त से
(4) उपरोक्त में से किसी से नहीं
14. निर्माण और खोज का सिद्धान्त निम्नलिखित में
से किसने दिया था?
(1) वाइगोत्स्की
(2) कोहबर्ग
(3) जीन पियाजे
(4) अब्राहम मास्लो
15. पियाजे थे
(1) खगोलविद्
(2) भूगर्भशास्त्री
(3) मनोवैज्ञानिक
(4) समाजशास्त्री
16. इन्द्रियजनित गामक अवस्था होती है
(1) जन्म से 3 वर्ष तक
(2) 2 से 27 वर्ष तक
(3) जन्म से 2 वर्ष तक
(4) 11 से 18 वर्ष तक
17. निम्नलिखित में से किस अवस्था में भाषा
सम्बन्धी योग्यता का विकास अपने चरमोत्कर्ष
पर होता है?
(1) औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था
(2) इन्द्रियजनित गामक अवस्था
(3) मूर्त संक्रियात्मक अवस्था
(4) पूर्व संक्रियात्मक अवस्था।
18. बच्चों में भाषा का विकास प्रारम्भ हो जाता
है।
(1) संवेदी गामक अवस्था
(2) पूर्व संक्रियात्मक अवस्था
(3) मूर्त संक्रियात्मक अवस्था
(4) अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था
19. कोह्लबर्ग के द्वारा प्रस्तावित निम्नलिखित
चरणों में से प्राथमिक विद्यालयों के बच्चे
किन चरणों का अनुसरण करते है?
A. आज्ञापालन और दण्ड-उन्मुखीकरण
B. वैयक्तिकता और विनिमय
C. अच्छे अन्त:वैयक्तिक सम्बन्ध
D. सामाजिक अनुबन्ध और व्यक्तिगत
अधिकार
(1) A और B
(2) A और C
(3) B और A
(4) B और D
20. कोहबर्ग के अनुसार ‘सही और गलत के
बारे में बच्चे …………. चिन्तन’ करते है।
(1) अलग आयु में अलग तरीके से
(2) अलग चरणों में समान तरीके से
(3) सन्दर्भ के अनुसार
(4) अभिभावकों द्वारा प्रदत्त निर्देशों के अनुसार
21. निम्न में से किसने ‘नैतिक विकास की
अवस्था’ के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया?
(1) जीन पियाजे
(2) लॉरेन्स कोहबर्ग
(3) फ्रायड
(4) सीयर्स
22. कोहबर्ग द्वारा प्रतिपादित नैतिक विकास के
सिद्धान्त के अनुसार पूर्व नैतिक अवस्था की
अवधि है
(1) जन्म से 5 वर्ष की आयु तक
(2) जन्म से 2 वर्ष की आयु तक
(3) तीसरे वर्ष से 6 वर्ष की आयु तक
(4) सातवें वर्ष से लेकर किशोरावस्था के प्रारम्भिक
काल तक
23. कोहबर्ग द्वारा प्रतिपादित नैतिक विकास की
अवस्था के सिद्धान्त के अनुसार नैतिक या
चारित्रिक विकास की चरम अवस्था है
(1) स्वकेन्द्रित अवस्था
(2) परम्पराओं को धारण करने वाली अवस्था
(3) आधारहीन आत्मचेतनावस्था
(4) आधारयुक्त आत्मचेतनावस्था
24. बाल विकास के सन्दर्भ में निम्नलिखित
कथनों पर विचार कीजिए.
A.बालकों में नैतिकता के विकास की कुछ
निश्चित एवं सार्वभौमिक अवस्थाएँ पाई
जाती हैं।
B.बालक के व्यक्तित्व के हर पहलू के
विकास में समाज का विशेष योगदान
होता है।
C.बाल्यावस्था में बालक के लिए नैतिक वही
होता है, जो उसके स्व अर्थात् आत्म-
कल्याण से जुड़ा होता है।
(1) केवल
(2) केवल B
(3) A और B
(4) ये सभी
25. निम्नलिखित में से किसने “नैतिक विकास की
अवस्था का सिद्धान्त” दिया है।
(1) जीन पियाजे
(2) लेव वाइगोत्स्की
(3) लॉरेन्स कोइबर्ग
(4) किंबल यंग
26. कोह्लबर्ग के अनुसार परम्परागत नैतिक स्तर
का काल है
(1) 4 से 10 वर्ष तक
(2) 13 वर्ष से आगे तक
(3) 10 से 13 वर्ष तक
(4) 3 से 13 वर्ष तक
27. निम्नलिखित में से किसका सम्बन्ध पूर्व नैतिक
स्तर से है?
(1) आत्मकेन्द्रित निर्णय
(2) परस्पर एकजुट उन्मुखीकरण
(3) सार्वभौमिक नैतिक सिद्धान्त उन्मुखीकरण
(4) अधिकार संरक्षण उन्मुखीकरण
28. बच्चों में ‘आधारहीन आत्मचेतना’ का सम्बन्ध
उसके विकास की किस अवस्था से सम्बन्धित
है?
(1) पूर्व बाल्यावस्था
(2) बाल्यावस्था
(3) किशोरावस्था
(4) उपरोक्त में से कोई नहीं
29. निम्नलिखित में से कौन एक सुमेलित नहीं है?
(1) पूर्व नैतिक स्तर-दण्ड तथा आज्ञापालन अभिमुखता।
(2) परम्परागत नैतिक स्तर-अधिकार संरक्षण उन्मुखीकरण
(3) उत्तर परम्परागत नैतिक स्तर-परस्पर एकजुट उन्मुखीकरण
(4) आधारहीन आत्म चेतना अवस्था-जीन पियाजे
30. निम्नलिखित में किस स्तर के दौरान कोई
बालक केवल स्वयं के बारे में सोचता है, क्या
सही है, क्या गलत है इससे उसे कोई सरोकार
नहीं रहता?
(1) पूर्व नैतिक स्तर
(2) परम्परागत नैतिक स्तर
(3) उत्तर परम्परागत नैतिक स्तर
(4) उपरोक्त में से कोई नहीं
31. “विचार न केवल भाषा को निर्धारित करते हैं,
बल्कि उसे आगे भी बढ़ाते हैं।” यह विचार
………… द्वारा रखा गया।
(1) जीन पियाजे
(2) कोह्लबर्ग
(3) वाइगोत्स्की
(4) पावलॉव
32. निम्नलिखित में से किसने बच्चों की
अन्त:क्रियाओं को उनके विकास का मूल
आधार माना है?
(1) लॉरेन्स कोहबर्ग
(2) लेव वाइगोत्स्की
(3) जीन पियाजे
(4) स्किनर
33. वाइगोत्स्की के अनुसार, बच्चे साथी-समूह
के सक्रिय सदस्य कब होते हैं?
(1) पूर्व बाल्यावस्था
(2) बाल्यावस्था
(3) किशोरावस्था
(4) प्रौढावस्था
34. निम्नलिखित में से किसने सामाजिक
विकास का सिद्धान्त दिया है?
(1) पियाजे
(2) कोह्लबर्ग
(3) वाइगोत्स्की
(4) टेलर
35. वाइगोत्स्की के अनुसार, किसी बालक के
विकास में सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान निम्न
में से किसका होता है?
(1) परिवार का
(2) विद्यालय का
(3) समाज का
(4) धर्म का
36. वाइगोत्स्की के अनुसार, ………. के बाद
………… में लिंग सम्बन्धी चेतना
………….. हो जाती है।
(1) किशोरावस्था, प्रौढावस्था, कम
(2) बाल्यावस्था, किशोरावस्था, कम
(3) बाल्यावस्था, किशोरावस्था, तीव्र
(4) बाल्यावस्था, प्रौढ़ावस्था, तीव्र
37. वाइगोत्स्की के सामाजिक विकास के
सिद्धान्त के अनुसार बालक को ………..
में जिस प्रकार की ………. प्राप्त होगी,
उसका ………. भी उसी प्रकार होगा।
(1) विद्यालय, पुस्तकें, विकास
(2) समाज, सुविधाएँ, विकास
(3) विद्यालय, सुविधाएँ, विकास
(4) परिवार, सम्पत्ति, विकास
38. निम्नलिखित में कौन-सी अवस्था संवेगों
(भावों) की तीव्र अभिव्यक्ति की
अवस्था है?
(1) बाल्यावस्था
(2) किशोरावस्था
(3) प्रौढावस्था
(4) उत्तर बाल्यावस्था
39. निम्नलिखित में से किस मनोवैज्ञानिक ने
सहयोगात्मक समस्या समाधान पर बल
दिया?
(1) जीन पियाजे
(2) लेव वाइगोत्स्की
(3) रॉस
(4) कोह्लबर्ग
40. सहानुभूति, सहयोग, सद्भावना तथा
परोपकार जैसी प्रवृत्ति पाई जाती है।
(1) बाल्यावस्था में
(2) किशोरावस्था में
(3) उत्तर बाल्यावस्था में
(4) उपरोक्त में से किसी अवस्था में नहीं
                     विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्न
41. “बच्चे दुनिया के बारे में अपनी समझ का
सूजन करते है।” इसका श्रेय ………. को
जाता है।                              [CTET June 2011]
(1) पियाजे
(2) पैवलोव
(3) कोझबर्ग
(4) स्किनर
42. वह अवस्था जब बच्चा तार्किक रूप से
वस्तुओं व घटनाओं के विषय में चिन्तन
प्रारम्भ करता है/है                       [CTET June 2011]
(1) संवेदी-प्रेरक अवस्था
(2) औपचारिक-संक्रियात्मक अवस्था
(3) पूर्व-संक्रियात्मक अवस्था
(4) मूर्त-संक्रियात्मक अवस्था
43. बच्चों के बौद्धिक विकास की चार विशिष्ट
अवस्थाओं की पहचान की गई            [CTET June 2011]
(1) कोगबर्ग द्वारा
(2) एरिकसन द्वारा
(3) स्किनर द्वारा
(4) पियाजे द्वारा
44. पियाजे के अनुसार, निम्नलिखित में से
कौन-सी अवस्था में बच्चा अमूर्त
संकल्पनाओं के विषय में तार्किक चिन्तन
करना आरम्भ करता है?                    [CTET June 2011]
(1) मूर्त-संक्रियात्मक अवस्था (07-11 वर्ष)
(2) औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था (11 वर्ष एवं
इससे ऊपर)
(3) संवेदी-प्रेरक अवस्था (जन्म – 02 वर्ष)
(4) पूर्व-संक्रियात्मक अवस्था (02-07 वर्ष)
45. वाइगोत्स्की बच्चों के सीखने में निम्नलिखित
में से किस कारक की महत्त्वपूर्ण भूमिका
पर बल देते हैं?                                     [CTET Jan 2012]
(1) सामाजिक
(2) आनुवंशिक
(3) नैतिक
(4) शारीरिक
46. पियाजे के संज्ञानात्मक विकास के चरणों के
अनुसार, ‘इन्द्रिय-गामक (संवेदी-प्रेरक)
अवस्था किसके साथ सम्बन्धित है?         [CTET Jan 2012]
(1) सामाजिक मुद्दों से सरोकार
(2) अनुकरण, स्मृति और मानसिक निरूपण
(3) तार्किक रूप से समस्या समाधान की योग्यता
(4) विकल्पों के निर्वचन और विश्लेषण करने की
योग्यता
47. कोहबर्ग के अनुसार, शिक्षक बच्चों में
नैतिक मूल्यों का विकास कर सकता है,       [CTET Jan 2012]
(1) कैसे व्यवहार किया जाना चाहिए’ इस पर
कठोर निर्देश देकर
(2) धार्मिक शिक्षा को महत्त्व देकर
(3) व्यवहार के स्पष्ट नियम बनाकर
(4) नैतिक मुद्दों पर आधारित चर्चाओं में उन्हें
शामिल करके
48. वाइगोत्स्की के सिद्धान्त का निहितार्थ है     [CTET Nov 2012]
(1) प्रारम्भिक व्याख्या के बाद कठिन सवालों को
हल करने में बच्चे की सहायता न करना
(2) बच्चे उन बच्चों की संगति में श्रेष्ठतम रूप से
सीख सकते हैं, जिनका बुद्धि-लब्धांक उनके
बुद्धि-लब्बौक से कम होता है
(3) सहयोगात्मक समस्या समाधान
(4) प्रत्येक विद्यार्थी को व्यक्तिगत रूप से दत्त
कार्य देना
49. एक शिक्षिका अपने शिक्षार्थियों की इस रूप
में मदद करना चाहती है कि वे एक स्थिति
के अनेक दृष्टिकोणों की सराहना कर सकें।
वह विभिन्न समूहों में एक स्थिति पर
वाद-विवाद करने के अनेक अवसर
उपलब्ध कराती है। वाइगोत्स्की के परिप्रेक्ष्य
के अनुसार उसके शिक्षार्थी विभिन्न
दृष्टिकोणों को …………… करेंगे और अपने
तरीके से उस स्थिति के अनेक परिप्रेक्ष्य
विकसित करेंगे।                   [CTET July 2013]
(1) तर्कसंगत
(2) आत्मसात
(3) निर्माण
(4) संक्रियाकरण
50. सीता ने हाथ से दाल और चावल खाना
सीख लिया है, जब उसे दाल और चावल
दिए जाते हैं तो वह दाल-चावल मिलाकर
खाने लगती है। उसने चीजों को करने के
लिए अपने स्कीमा में दाल और चावल
खाने को …………….. कर लिया है।        [CTET July 2013]
(1) अंगीकार
(2) समायोजित
(3) अनुकूलित
(4) समुचितता
51. निम्नलिखित में से कौन-सा वाइगोत्स्की के
सामाजिक सांस्कृतिक सिद्धान्त पर आधारित
है?                                    [CTET Feb 2014]
(1) सक्रिय अनुकूलन
(2) पारस्परिक शिक्षण
(3) संस्कृति निरपेक्ष संज्ञानात्मक विकास
(4) अन्तर्दृष्टिपूर्ण अधिगम
52. एक शिक्षिका अपनी कक्षा से कहती है,
“सभी प्रकार के प्रदत्त कार्यों (Assignments)
का निर्माण इस प्रकार किया गया है कि
प्रत्येक विद्यार्थी अधिक प्रभावशाली ढंग से
सीख सके, अतः सभी विद्यार्थी बिना किसी
अन्य की सहायता से अपना कार्य पूर्ण
करें।” वह कोहवर्ग के किस नैतिक विकास
के चरण की ओर संकेत दे रही है?             [CTET Feb 2014]
(1) औपचारिक चरण 4–कानून और व्यवस्था
(2) पर-औपचारिक चरण 5–सामाजिक संविदा
(3) पूर्व-औपचारिक चरण 1–दण्ड परिवर्तन
(4) पूर्व-औपचारिक चरण 2–वैयक्तिकता और
विनिमय
53. वाइगोत्स्की के सिद्धान्त में, विकास के
निम्नलिखित में से कौन-से पहलू की उपेक्षा
होती है?                      [CTET Sept 2014]
(1) सामाजिक
(2) सांस्कृतिक
(3) जैविक
(4) भाषायी
54. एक वर्ष तक के शिशु जब आँख, कान व
हाथों से सोचते हैं, तो निम्नलिखित में से
कौन-सा स्तर शामिल होता है?        [CTET Sept 2014) ]
(1) मूर्त संक्रियात्मक स्तर
(2) पूर्व-सक्रियात्मक स्तर
(3) इन्द्रियजनित गामक स्तर
(4) अमूर्त संक्रियात्मक स्तर
55. रिया कक्षा-पिकनिक तय करने हेतु ऋषभ से
सहमत नहीं है। वह सोचती है कि बहुमत कों
अनुकूल बनाने के लिए नियमों का संशोधन
किया जा सकता है। यह सहपाठी विरोध,
पियाजे के अनुसार, निम्नलिखित में से किससे
सम्बन्धित है?                           [CTET Sept 2014]
(1) विषमांग नैतिकता
(2) संज्ञानात्मक अपरिपक्वता
(3) प्रतिक्रिया
(4) सहयोग की नैतिकता
56. संज्ञानात्मक विकास निम्न में से किसके द्वारा
समर्थित होता है?                       [CTET Sept 2014]
(1) जितना सम्भव हो उतनी आवृत्ति से संगत और
सुनियोजित परीक्षाओं का आयोजन करना
(2) उन गतिविधियों को प्रस्तुत करना जो पारम्परिक
पद्धतियों को सुदृढ बनाती है
(3) एक समृद्ध और विविधतापूर्ण वातावरण उपलब्ध
कराना
(4) सहयोगात्मक की अपेक्षा वैयक्तिक गतिविधियों
अधिक केन्द्रित करना
57. लरिन्स कोहबर्ग के सिद्धान्त में कौन-सा स्तर
नैतिकता की अनुपस्थिति को सही अर्थ में
सूचित करता है?                        [CTET Feb 2015]
(1) स्तर III
(2) स्तर IV
(3) स्तर I
(4) स्तर II
58. प्रचलित योजनाओं में नई जानकारी जोड़ने को
किस नाम से जाना जाता है?           [CTET Feb 2015]
(1) समायोजन
(2) साम्यधारण
(3) आत्मसात्करण
(4) संगठन
59. पियाजे के सिद्धान्त के अनुसार, निम्नलिखित
में से कौन-सा व्यक्ति के संज्ञानात्मक विकास
को प्रभावित नहीं करेगा?               [CTET Feb 2015]
(1) भाषा
(2) सामाजिक अनुभव
(3) परिपक्वन
(4) क्रियाकलाप
60. अध्यापिका ने ध्यान दिया कि पुष्पा अपने
आप किसी एक समस्या का समाधान नहीं
कर सकती है। फिर भी वह एक वयस्क या
साथी के मार्गदर्शन की उपस्थिति में ऐसा
करती है। इस मार्ग दर्शन को कहते हैं         [CTET Feb 2015]
(1) पार्यकरण
(2) पूर्व-क्रियात्मक चिन्तन
(3) समीपस्थ विकास का क्षेत्र
(4) सहारा देना
61. कोह्लबर्ग के सिद्धान्त के पूर्व-परम्परागत
स्तर के अनुसार, कोई नैतिक निर्णय लेने
समय एक व्यक्ति निम्नलिखित में से किस
तरफ प्रवृत्त होगा?          [CTET Sept 2015]
(1) व्यक्तिगत आवश्यकताएँ तथा इच्छाएँ
(2) व्यक्तिगत मूल्य
(3) पारिवारिक अपेक्षाएँ
(4) अन्तर्निहित सम्भावित दण्ड
62. बच्चों के बारे में निम्नलिखित कथनों में
से किस कथन से वाइगोत्स्की सहमत
होते?                         [CTET Sept 2015]
(1) बच्चे तब सीखते है जब उनके लिए आकर्षक
पुरस्कार निर्धारित किए जाएँ
(2) बच्चों के चिन्तन को तब समझा जा सकता
है जब प्रयोगशाला में पशुओं पर प्रयोग किए
जाएँ
(3) बच्चे जन्म से शैतान होते हैं और उन्हें दन
देकर नियन्त्रित किया जाना चाहिए
(4) बच्चे समवयस्कों और वयस्कों के साथ
सामाजिक अन्तःक्रियाओं के माध्यम से
सीखते हैं
63. नवीन जानकारी को शामिल करने के लिए
वर्तमान स्कीम (अवधारणा) में बदलाव
की प्रक्रिया ……………….. कहलाती है।       [CTET Sept 2015]
(1) आत्मसात्करण
(2) समायोजन
(3) अहंकेन्द्रिता
(4) अनुकूलन
64. जब वयस्क सहयोग से सामंजस्य कर लेते
है, तो वे बच्चे के वर्तमान स्तर के प्रदर्शन
को सम्भावित क्षमता के स्तर के प्रदर्शन
की तरफ प्रगति क्रम को सुगम बनाते हैं,
इसे कहा जाता है                                [CTET Sept 2015]
(1) सहयोग देना
(2) सहभागी अधिगम
(3) सहयोगात्मक अधिगम
(4) समीपस्थ विकास
65. पियाजे के अनुसार 2 से 7 वर्ष के बीच
का एक बच्चा संज्ञानात्मक विकास की
………………. अवस्था में है।              [CTET Sept 2015]
(1) औपचारिक संक्रियात्मक
(2) मूर्त संक्रियात्मक
(3) संवेदी-गतिक
(4) पूर्व संक्रियात्मक
66. ……….. के विचार से बच्चे सक्रिय
ज्ञान-निर्माता तथा नन्हें वैज्ञानिक हैं, जो
संसार के बारे में अपने सिद्धान्तों की
रचना करते हैं।               [CTET Feb2016]
(1) स्किनर
(2) पॉवलॉव
(3) युंग
(4) पियाजे
67. पियाजे के अनुसार, बच्चों का चिन्तन
वयस्कों से ………… में भिन्न होता है
बजाय ………………के।              [CTET Feb 2016]
(1) मात्रा, प्रकार
(2) आकार, मूर्तपरकता
(3) प्रकार, मात्रा
(4) आकार, किस्म
68. वाइगोत्स्की के अनुसार, बच्चे सीखते हैं       [CTET Feb 2016]
(1) जब पुनर्बलन प्रदान किया जाता है
(2) परिपक्व होने से
(3) अनुकरण से
(4) वयस्कों और समवयस्कों के साथ परस्पर
क्रिया से
69. कोहबर्ग ने प्रस्तुत किए हैं           [CTET Feb 2016]
(1) संज्ञानात्मक विकास के चरण
(2) शारीरिक विकास के चरण
(3) संवेगात्मक विकास के चरण
(4) नैतिक विकास के चरण
70. निम्नलिखित में से कौन-सा एक सही
मिलान वाला जोड़ा है?                    [CTET Feb 2016]
(1) मूर्त संक्रियात्मक बच्चा-संधारण एवं वर्गीकरण
करने योग्य
(2) औपचारिक संक्रियात्मक बच्चा-
अनुकरण प्रारम्भ, कल्पनात्मक खेल
(3) शैशवास्था-तर्क का अनुप्रयोग और अनुमान
लगाने में सक्षम
(4) पूर्व संक्रियात्मक बच्चा-निगमनात्मक विचार
71. निम्नलिखित में से कौन-सा एक आधारभूत
सहायता का उदाहरण है?                     [CTET Feb 2016]
(1) अनुबोधन और संकेत देना तथा नाजुक
स्थितियों पर प्रश्न पूछना
(2) शिक्षार्थियों को प्रेरित करने वाले भाषण देना
(3) प्रश्न पूछने को बढ़ावा दिए बिना स्पष्टीकरण
देना
(4) मूर्त और अमूर्त दोनों प्रकार के उपहार देना
72. लेव वाइगोत्स्की के अनुसार संज्ञानात्मक
विकास का मूल कारण है               [CTET Sept 2016]
(1) सामाजिक अन्योन्यक्रिया
(2) मानसिक प्रारूपों (स्कीमाज) का समायोजन
(3) उद्दीपक अनुक्रिया युग्मन
(4) सन्तुलन
73. किसी बच्चे का दिया गया विशिष्ट उत्तर
कोहबर्ग के नैतिक तर्क के सौपानों की
विषयवस्तु की किस अवस्था के अन्तर्गत
आएगा।                                     [CTET Sept 2016]
(1) सामाजिक संकुचन अनुकूलन
(2) अच्छी लड़की-लड़का अनुकूलन
(3) कानून और व्यवस्था अनुकूलन
(4) दण्ड आज्ञाकारिता अनुकूलन
74. जीन पियाजे के अनुसार अधिगम के लिए
निम्नलिखित में से क्या आवश्यक है?            [CTET Sept 2016]
(1) वयस्कों के व्यवहार का अवलोकन
(2) ईश्वरीय न्याय पर विश्वास
(3) शिक्षकों और माता-पिता का पुनर्बलन
(4) शिक्षार्थी के द्वारा पर्यावरण की सक्रिय खोज
75. लेव वाइगोत्स्की के समाज संरचना सिद्धान्त
में दृढ़ विश्वास रखने वाले शिक्षक के नाते
आप अपने बच्चों के आकलन के लिए
निम्नलिखित में से किस विधि को वरीयता
देंगे?                                          [CTET Sept 2016]
(1) मानकीकृत परीक्षण
(2) तथ्यों पर आधारित प्रत्यास्मरण के प्रश्न
(3) वस्तुपरक बहुविकल्पीय प्रकार के प्रश्न
(4) सहयोगी प्रोजेक्ट
76. जीन पियाजे के अनुसार प्रारूप (स्कीमा)
निर्माण वर्तमान योजनाओं के अनुरूप बनाने
हेतु नवीन तकनीकी में संशोधन और नवीन
जानकारी के आधार पर पुरानी योजनाओं के
संशोधन के परिणाम के रूप में घटित होता
है। इन दो प्रक्रियाओं को जाना जाता है।
                                                       [CTET Sept 2016]
(1) समावेशन और अनुकूलन के रूप में
(2) साम्यीकरण और संशोधन के रूप में
(3) समावेशन और समायोजन के रूप में
(4) समायोजन और अनुकूलन के रूप में
77. कोई 5 साल की लड़की एक टी-शर्ट को
तह करते हुए अपने आप से बात करती है।
लड़की द्वारा प्रदर्शित व्यवहार के सन्दर्भ में
निम्नलिखित में से कौन सा कथन सही है?
                                            [CTET Sept 2016]
(1) जीन पियाजे इसे अहंकेन्द्रित भाषा कहेंगे और
लेव वाइगोत्स्की इसकी व्याख्या बच्चे के द्वारा
निजी भाषा से अपनी क्रियाओं को नियमित
करने के प्रयासों के रूप में करेंगे।
(2) जीन पियाजे इसकी व्याख्या सामाजिक
अन्योन्यक्रिया के रूप में करेगा और लेव
वाइगोत्स्की इसे खोजबीन मानेगा।
(3) जीन पियाजे और लेव वाइगोत्स्की इसकी
व्याख्या बच्चे के द्वारा अपनी माँ के अनुकरण
के रूप में करेंगे।
(4) जीन पियाजे और लेव वाइगोत्स्की इसकी
व्याख्या बच्चे के विचारों की अहंकेन्द्रित प्रकृति
के रूप में करेंगे।
                               उत्तरमाला
1. (4) 2. (4) 3. (1) 4. (4) 5. (2) 6. (2) 7. (3) 8. (4) 9. (1) 10. (1)
11. (3) 12. (2) 13. (1) 14. (3) 15. (3) 16. (3) 17. (1) 18. (2)
19. (3) 20. (1) 21. (2) 22. (2) 23. (4) 24. (4) 25. (3) 26. (3)
27. (1) 28. (3) 29. (3) 30. (1) 31. (3) 32. (2) 33. (3) 34. (3)
35. (3) 36. (3) 37. (2) 38. (2) 39. (2) 40. (2) 41. (1) 42. (4)
43. (4) 44. (1) 45. (1) 46. (2) 47. (4) 48. (3) 49. (2) 50. (3)
51. (2) 52. (1) 53. (3) 54. (3) 55. (4) 56. (3) 57. (3) 58. (3)
59. (2) 60. (4) 61. (4) 62. (4) 63. (1) 64. (1) 65. (4) 66. (4)
67. (3) 68. (4) 69. (4) 70. (1) 71. (1) 72. (1) 73. (2) 74. (4)
75. (1) 76. (3) 77. (1)
                                                     ★★★

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