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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान

विज्ञानं एवं प्रौद्योगिकी – भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान 

◆ भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति का गठन 1962 में प्रसिद्ध अंतरिक्ष वैज्ञानिक डॉ. विक्रम साराभाई (भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक) की अध्यक्षता में किया गया, जिसने परमाणु ऊर्जा विभाग के अंतर्गत कार्य करना प्रारंभ किया।
◆ भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति का पुनर्गठन करके 15 अगस्त, 1969 को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की स्थापना की गई।
◆ भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रमों को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए अंतरिक्ष आयोग और अंतरिक्ष विभाग का 1972 में गठन किया गया तथा इसरो को अंतरिक्ष विभाग के नियंत्रण में रखा गया ।
◆ वस्तुतः भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत नवम्बर, 1963 में तिरुवनंतपुरम स्थित सेंट मेरी मैकडेलेन चर्च के एक कमरे में हुई थी। 21 नवम्बर, 1963 को देश का पहला साउंडिंग रॉकेट ‘नाइक एपाश’ (अमेरिका निर्मित) को थुम्बा भूमध्य रेखीय रॉकेट प्रक्षेपण केन्द्र (TERLS) से प्रक्षेपित किया गया ।
अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र की कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएँ
दिनांक अंतरिक्षयान उपलब्धि
 04.10.1957 स्पूतनिक-I पूर्व सोवियत संघ द्वारा अंतरिक्ष में प्रमोचित सबसे पहला उपग्रह ।
03.11.1957 स्पूतनिक-II अंतरिक्ष में जीवित कुत्ते लाइका को ले जाने वाला पहला उपग्रह ।
18.12.1958 स्कोर (Score) अंतरिक्ष में स्थापित किया हुआ पहला संचार उपग्रह |
04.10.1959 लूना-3 (Luna – 3) पहला अंतरिक्षयान जिसने चन्द्रमा के उस पृष्ठ के चित्र भेजे जो पृथ्वी से दिखाई नहीं पड़ते हैं।
12.04.1961 वोस्टॉक – I (Vostok-I) मानव द्वारा पहली अंतरिक्ष यात्रा। पूर्व सोवियत संघ के यूरी गागरिन ने पृथ्वी का एक परिक्रमण 12 अप्रैल, 1961 में किया।
04.12.1963 वोस्टॉक – 6 (Vostok-6) पूर्व सोवियत संघ की वेलेनटाइना टेरिशकोवा प्रथम महिला अंतरिक्ष यात्री बनी।
06.04.1965 इंटेलॅसेट (Intelset ) व्यावसायिक उपयोग के लिए पहला संचार उपग्रह ।
16.11.1965 वेनेरा-3 (Venera-3) पहला अंतरिक्षयान जो किसी अन्य ग्रह अर्थात् शुक्र ग्रह पर उतरा।
21.10.1968 लूना – 9 (Luna – 9 ) चन्द्रमा तल पर सफलतापूर्वक उतरने वाला पहला अंतरिक्षयान ।
14.11.1969 सोयूज-4 (Soyuz – 4) सबसे पहला प्रयोगात्मक अंतरिक्ष केंद्र |
16.07.1969 अपोलो – 11 (Apollo—11) नील आर्मस्ट्राँग चन्द्रमा पर कदम रखने वाला पहला मानव बना। इसके बाद एडविन एल्डरिन चन्द्रमा की धरती पर उतरा।
19.05.1971 मार्स-2 ( Mars – 2 ) मंगल ग्रह पर पहली बार अंतरिक्षयान का उतरना।
अंतरिक्ष केंद्र और इकाइयाँ
◆ विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र, तिरुवनंतपुरम (VSSC) : यह केंद्र रॉकेट अनुसंधान तथा प्रक्षेपण यान विकास परियोजनाओं को बनाने और उन्हें क्रियान्वित करने में अग्रणी भूमिका निभाता है। अभी तक के सभी प्रक्षेपण यानों यथा – एस. एल.वी.- 3, ए.एस.एल.वी., पी.एस.एल. वी. एवं जी. एस. एल. वी. को इसी केंद्र में विकसित किया गया है।
◆ इसरो उपग्रह केंद्र, बंगलुरु (ISAC) : इस केंद्र में उपग्रह परियोजनाओं के डिजाइन निर्माण, परीक्षण और प्रबंध कार्य सम्पन्न किये जाते हैं।
◆ अंतरिक्ष उपयोग केंद्र, अहमदाबाद (SAC) : इस केंद्र के प्रमुख कार्यों में दूरसंचार व टेलीविजन में उपग्रह का प्रयोग, प्राकृतिक संसाधनों के सर्वेक्षण और प्रबंध के लिए दूरसंवेदन, मौसम विज्ञान, भू-मापन, पर्यावरण पर्यवेक्षण आदि शामिल हैं।
◆ शार (SHAR) केंद्र, श्रीहरिकोटा : यह इसरो का प्रमुख प्रक्षेपण केंद्र है, जो आन्ध्रप्रदेश के पूर्वी तट पर स्थित है। इस केंद्र में भारतीय प्रक्षेपण यान के ठोस ईंधन रॉकेट के विभिन्न चरणों का पृथ्वी पर परीक्षण तथा प्रणोदक का प्रसंस्करण भी किया जाता है।
◆ द्रव प्रणोदक प्रणाली केंद्र (LPSC) : तिरुवनंतपुरम, बंगलुरु और महेन्द्रगिरि (तमिलनाडु) में इस केंद्र की शाखाएँ हैं। यह केंद्र इसरो के उपग्रह प्रक्षेपण यानों और उपग्रहों के लिए द्रव ईधन से चलने वाली चालक नियंत्रण प्रणालियों और इंजनों के डिजाइन, विकास और आपूर्ति के लिए कार्यरत है। महेन्द्रगिरि में द्रव ईंधन से चलने वाले रॉकेट इंजनों की परीक्षण सुविधा उपलब्ध है।
◆ इसरो टेलीमेट्री निगरानी एवं नियंत्रण नेटवर्क (ISTRAC): इस नेटवर्क का मुख्यालय तथा उपग्रह नियंत्रण केंद्र बंगलुरु में स्थित है। श्रीहरिकोटा, तिरुवनंतपुरम, बंगलुरु, लखनऊ, पोर्ट ब्लेयर और मॉरीशस में इसके भू-केंद्र हैं। इसका प्रमुख कार्य इसरो के प्रक्षेपण यानों एवं उपग्रह मिशनों तथा अन्य अंतरिक्ष एजेंसियों को टेलीमेट्री, निगरानी और नियंत्रण सुविधाएँ प्रदान करना है।
◆ मुख्य नियंत्रण सुविधा, हासन (MCE): इनसैट उपग्रह के प्रक्षेपण के बाद की सभी गतिविधियों यथा – उपग्रह की कक्षा में स्थापित करना, केंद्र से उपग्रह का नियमित सम्पर्क स्थापित करना तथा कक्षा में उपग्रह की सभी क्रियाओं पर निगरानी एवं नियंत्रण का दायित्व कर्नाटक के हासन स्थित मुख्य नियंत्रण सुविधा के पास है। इसरो का दूसरा ‘मुख्य नियंत्रण सुविधा केंद्र’ मध्य प्रदेश के भोपाल में 11 अप्रैल, 2005 को स्थापित किया गया।
◆ इसरो जड़त्व प्रणाली इकाई, तिरुवनंतपुरम (IISU) : इसरो की इस इकाई का प्रमुख कार्य प्रक्षेपण यानों और उपग्रहों के लिए जड़त्व प्रणाली का विकास करना है।
◆ भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला, अहमदाबाद (PRL) : अंतरिक्ष विभाग के अन्तर्गत कार्यरत यह संस्थान अंतरिक्ष और संबद्ध विज्ञान में अनुसंधान एवं विकास करने वाला प्रमुख राष्ट्रीय केंद्र है।
◆ राष्ट्रीय दूरसंवेदी एजेंसी, हैदराबाद (NRSA) : अंतरिक्ष विभाग के अन्तर्गत कार्यरत यह एजेंसी उपग्रह से प्राप्त आँकड़ों का उपयोग करके पृथ्वी के संसाधनों की पहचान, वर्गीकरण और निगरानी करने की जिम्मेदारी निभाती है, इसका प्रमुख केंद्र बालानगर में है। इसके अतिरिक्त देहरादून स्थित भारतीय दूरसंवेदी संस्थान भी राष्ट्रीय दूरसंवेदी एजेंसी का ही एक अंग है।
प्रमुख भारतीय उपग्रह
◆ आर्यभट्ट स्वदेशी तकनीक से निर्मित प्रथम भारतीय उपग्रह ‘आर्यभट्ट’ को 19 अप्रैल, 1975 को पूर्व सोवियत संघ के बैकानूर अंतरिक्ष केंद्र से इंटर कॉस्मोस प्रक्षेपण यान द्वारा पृथ्वी के निकट वृत्तीय कक्षा में 594 किमी की ऊँचाई पर सफलतापूर्वक स्थापित किया गया। इसका वजन 360 किग्रा था। इस अभियान के तीन प्रमुख लक्ष्य थे-वायु विज्ञान प्रयोग, सौर भौतिकी प्रयोग तथा एक्स-किरण खगोलिकी प्रयोग। इस उपग्रह में संचार व्यवस्था से जुड़े कुछ प्रयोग किये गये। विशुद्ध रूप से वैज्ञानिक उपग्रह के रूप में विकसित ‘आर्यभट्ट’ को सक्रिय कार्य विधि मात्र 6 माह निर्धारित की गयी थी, परन्तु इसने मार्च, 1980 तक अंतरिक्ष से आँकड़े भेजने का कार्य किया।
◆ भास्कर – I : प्रायोगिक पृथ्वी पर्यवेक्षण उपग्रह ‘भास्कर – I’ को 7 जून, 1979 को पूर्व सोवियत संघ के प्रक्षेपण केंद्र बैकानूर से इंटर कॉस्मोस प्रक्षेपण यान द्वारा पृथ्वी से 525 किमी की ऊँचाई पर पूर्व निर्धारित कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित किया गया। इसका लक्ष्य जल विज्ञान, हिम गलन, समुद्र विज्ञान एवं वानिकी के क्षेत्र में भू-पर्यवेक्षण अनुसंधान करना था। इसने 1 अगस्त, 1981 को कार्य करना बंद किया ।
◆ भास्कर-II : भास्कर-I के संशोधित प्रतिरूप ‘भास्कर – II’ को भी रूसी प्रक्षेपण केंद्र, बैकानूर से ही 20 नवम्बर, 1981 की पृथ्वी से 525 किमी की ऊँचाई पर स्थापित किया गया तथा इसका घूर्णन कक्षा तल के लम्बत् रखा गया। समीर उपकरण के कारण भास्कर – II द्वारा समुद्री सतह का ताप, सामुद्रिक स्थिति, बर्फ गिरने व पिघलने आदि जैसी अनेक घटनाओं का व्यापक विश्लेषण किया गया।
◆ रोहिणी श्रृंखला : रोहिणी उपग्रह शृंखला के अंतर्गत भारतीय प्रक्षेपण केंद्र ( श्रीहरिकोटा) से भारतीय प्रक्षेपण यान (एस. एल. वी – 3 ) द्वारा चार उपग्रह प्रक्षेपित किए गए। इस श्रृंखला के उपग्रहों के प्रक्षेपण का मुख्य उद्देश्य भारत के प्रथम उपग्रह प्रक्षेपण यान एस.एल.वी.- 3 का परीक्षण करना था। इस अभियान का प्रथम एवं तृतीय प्रायोगिक परीक्षण असफल रहा था। इस अभियान के द्वितीय प्रायोगिक परीक्षण में रोहिणी आरएस-I को 18 जुलाई, 1980 को श्रीहरिकोटा से एस. एल. वी – 3 प्रक्षेपण यान से सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया। इस प्रकार रोहिणी आर. एस. – I भारतीय भूमि से भारतीय प्रक्षेपण यान द्वारा प्रक्षेपित प्रथम भारतीय उपग्रह बना। चतुर्थ प्रायोगिक परीक्षण में रोहिणी आर. एस. डी – 2 को 17 अप्रैल, 1983 को श्रीहरिकोटा से एस.एल.वी.- 3 डी.- 2 द्वारा सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया। इस सफलता ने एस. एल. वी – 3 को एक प्रामाणिक प्रक्षेपण यान सिद्ध कर दिया तथा भारत को छोटे प्रक्षेपण यानों को विकसित करने वाले देशों की श्रेणी में ला दिया।
प्रायोगिक संचार उपग्रह, एप्पल : एप्पल भारत का पहला संचार उपग्रह था, जिसे भूस्थैतिक कक्षा में स्थापित किया गया। भारत के प्रथम प्रायोगिक संचार उपग्रह ‘एप्पल’ को 19 जून, 1981 को फ्रेंच गुयाना के कोरु अंतरिक्ष प्रक्षेपण केंद्र से यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के एरियन-4 प्रक्षेपण यान द्वारा भू-स्थिर कक्षा में लगभग 36,000 किमी की ऊँचाई पर स्थापित किया गया। इस उपग्रह डाटा संप्रेषण, दूर-दराज के क्षेत्रों में संचार व्यवस्था स्थापित करने, भू-स्थैतिक कक्षा में उपग्रहों के प्रक्षेपण की तकनीक का ज्ञान प्राप्त करने तथा संचार के लिए प्रयुक्त सी-बैंड ट्रांसपोडर के प्रयोग आदि किया गया। एप्पल से प्राप्त तकनीकी अनुभव ने इनसैट श्रृंखला के निर्माण एवं विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी।
सफलतापूर्वक प्रक्षेपित भारतीय उपग्रह ( 2010 से )
उपग्रह तिथि प्रक्षेपण यान प्रक्षेपण केन्द्र कार्यप्रणाली
कार्टोसैट – 2बी 12.07.2010 पीएसएलवी-सी 15 श्रीहरिकोटा दूरसंवेदी
स्टडसैड 12.07.2010 पीएसएलवी-सी 15 श्रीहरिकोटा शैक्षणिक
रिर्सोर्ससैट-2 20.04-2011 पीएसएलवी-सी 16 श्रीहरिकोटा दूरसंवेदी
जीसैट-8 21.05.2011 एरियन कोरु  संचार
जीसैट-12 15.07.2011 पीएसएलवी-सी 17 श्रीहरिकोटा संचार
मेघा-ट्रॉपिक्स 12.10.2011 पीएसएलवी-सी 18 श्रीहरिकोटा मौसम संबंधी
रीसैट-1 26.04.2012 जीएसएलवी-सी 19 श्रीहरिकोटा राडार इमेजिंग
जीसैट-10 29.09.2012 एरियन 5 कोरु संचार
सरल 25.02.2013 पीएसएलवी-सी 20 श्रीहरिकोटा नेविगेशन
जीसैट-14 05.01.2014 जीएसएलवी-डी 5 श्रीहरिकोटा संचार
IRNSS-1B 04.04.2014 पीएसएलवी-सी 24 श्रीहरिकोटा नेविगेशन
5 विदेशी उपग्रह 30.06.2014 पीएसएलवी-सी 23 श्रीहरिकोटा
IRNSS-1C 16.10.2014 पीएसएलवी-सी 26 श्रीहरिकोटा नेविगेशन
जीसैट-16 07.12.2014 एरियन 5 कोरु संचार
IRNSS-1D 28.03.2015 पीएसएलवी-सी 27 श्रीहरिकोटा नेविगेशन
यह स्वदेशी क्रायोजनिक इंजन से लैस है।
नोट : भारत द्वारा छोड़ा गया प्रथम उपग्रह आर्यभट्ट था, जो 19.04.1975 को कॉस्मोस प्रक्षेपण यान से बैकानूर (पूर्व सोवियत संघ) प्रक्षेपण केन्द्र से छोड़ा गया था।
◆ विस्तारित रोहिणी उपग्रह शृंखला (स्रास – SROSS) : इस श्रृंखला का उद्देश्य 100 से 150 किग्रा वर्ग के उपग्रहों का निर्माण करना था, जिन्हें संवर्द्धित उपग्रह प्रक्षेपण यान ( Augmented Satellite Launch Vehicle – ASLV ) द्वारा छोड़ा गया था। इस श्रृंखला के तहत चार उपग्रह नास–I, नास–II, स्रास-III एवं प्रास-IV प्रक्षेपित किया गया। स्रास – I एवं ग्रास-II असफल रहा।
◆ भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह ( इनसैट) प्रणाली : भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह प्रणाली अर्थात् इनसैट प्रणाली एक बहुउद्देशीय कार्यरत उपग्रह प्रणली है, जो एशिया प्रशांत क्षेत्र में सबसे बड़ी घरेलू संचार उपग्रह प्रणालियों में से एक है। इसका उपयोग लम्बी दूरी के घरेलू दूरसंचार, ग्रामीण क्षेत्रों में उपग्रह के माध्यम से सामुदायिक दूरदर्शन के सीधे राष्ट्रव्यापी प्रसारण को बेहतर बनाने, भू स्थित ट्रांसमीटरों के माध्यम से पुनः प्रसारण हेतु आकाशवाणी तथा दूरदर्शन कार्यक्रमों को देशभर में प्रसारित करने, मौसम संबंधी जानकारी, वैज्ञानिक अध्ययन हेतु भू-सर्वेक्षण तथा आँकड़ों के संप्रेषण में किया जाता है। इनसैट प्रणाली अंतरिक्ष विभाग, दूरसंचार विभाग, भारतीय मौसम विभाग, आकाशवाणी तथा दूरदर्शन का संयुक्त प्रयास है, जबकि इनसैट अंतरिक्ष कार्यक्रमों की व्यवस्था, निगरानी और संचालन का पूर्ण दायित्व अंतरिक्ष विभाग को सौंपा गया है। इनसैट प्रणाली के प्रथम पीढ़ी में चार उपग्रह (इनसैट-1A, 1B, IC 1D) । द्वितीय पीढ़ी में पाँच उपग्रह (इनसैट 2A, 2B, 2C, 2D, 2E), तृतीय पीढ़ी में भी पाँच उपग्रह (3A, 3B, 3C, 3D, 3E) तथा चौथी पीढ़ी में सात उपग्रहों के प्रक्षेपण की योजना बनायी गयी है। चौथी पीढ़ी के उपग्रह 4.A, 4C, 4B तथा 4CR का प्रक्षेपण हो चुका है।
◆ भारतीय दूरसंवेदी उपग्रह प्रणाली : भारत में राष्ट्रीय प्राकृतिक संसाधन प्रबंध प्रणाली की सहायता के लिए ‘भारतीय दूरसंवेदी उपग्रह प्रणाली’ (Indian Remote Sensing SatelliteIRS) का विकास किया गया है। इसका मुख्य उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों (मृदा, जल, भू-जल, सागर, वन आदि) का सर्वेक्षण और सतत् निगरानी करना है। दूरसंवेदी उपग्रह प्रणाली के अन्तर्गत पृथ्वी के गर्भ में छिपे संसाधनों को स्पर्श किए बिना प्रकीर्णन विधि द्वारा विश्वसनीय और प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध करायी जाती है। इसके तहत उपग्रह में लगे इलेक्ट्रॉनिक कैमरों से पृथ्वी पर स्थित वस्तुओं का चित्र लेते हैं और उन चित्रों के विश्लेषण से जानकारी प्राप्त करते हैं। दूरसंवेदी उपग्रह के उपयोग से सुदूर संवेदन की प्रक्रिया को एक निश्चित अंतराल के बाद दुहराकर किसी स्थान विशेष पर समयानुसार हो रहे परिवर्तनों को बारीकी से अध्ययन किया जा सकता है। वर्तमान में आई. आर. एस. उपग्रह किसी विशेष स्थान पर लगभग प्रत्येग तीन सप्ताह के बाद गुजरता है। इस प्रणाली के तहत प्रक्षेपित किए गए उपग्रह हैं : I.R.S-1A, I.R.S.–1B, I.R.S.1E, I.R.S.-P2. I.R.S.-1C, I.R.S. P4, I.R.S.-P6 कार्टोसैट-1 एवं II आदि।
◆ मैटसैट : भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के तहत भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने 12 सितम्बर, 2002 को श्री हरिकोटा (आन्ध्रप्रदेश) के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान-सी 4 (Polar Satellite Launch Vehicle-PSLV-C4) के माध्यम से देश के पहले मौसम संबंधी विशिष्ट उपग्रह ‘मैटसैट’ (Metasat) को भूस्थैतिक स्थानांतरण कक्षा (Geostationary Transfer Orbit – GTO) में सफलतापूर्वक स्थापित किया। यह पहला मौका था, जब किसी भारतीय अंतरिक्ष यान ने 1000 किग्रा से अधिक भार के उपग्रह को भूस्थैतिक कक्षा (भूस्थैतिक कक्षा से ताप्तर्य है कि जिस गति से पृथ्वी घूमती है, उसी कोणीय गति से उपग्रह भी घूमेगा जिसके कारण उपग्रह सदा पृथ्वी की एक विशेष स्थान के ऊपर स्थिर नजर आएगा) में स्थापित किया। इससे पूर्व सभी उपग्रह केवल ध्रुवीय कक्षा में ही स्थापित किए गए हैं। मैटसैट की कक्षा दीर्घवृताकार है, जिसमें पृथ्वी से निकटतम बिन्दु 250 किमी की दूरी पर स्थित है, जबकि अधिकतम दूरी पर स्थित बिन्दु 36,000 किमी की दूरी पर है। यह पहला अवसर था, जब भारत ने मौसम संबंधी जानकारियाँ प्राप्त करने के लिए स्वदेशी प्रक्षेपण यान से विशेष मौसम उपग्रह प्रक्षेपित किया। इससे पूर्व मौसम संबंधी जानकारियाँ इनसैट श्रेणी के उपग्रहों से प्राप्त की जाती थी।
◆ एजुसैट: 20 सितम्बर, 2004 को सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्री हरिकोटा से शिक्षा कार्य के लिए समर्पित दुनिया के पहले उपग्रह ‘एजुसैट’ को सफलतापूर्वक भू-स्थैतिक कक्षा में स्वदेश निर्मित भू-समस्थानिक उपग्रह प्रक्षेपण यान (GSLV F-07) की सहायता से स्थापित किया गया। एजुसैट में समावेश की गई नई प्रौद्योगिकी को आई-2 नाम दिया गया है। इसकी जीवन अवधि 7 वर्ष निर्धारित है। एजुसैट के माध्यम से शिक्षा से जुड़े कार्यक्रम प्रसारित किए जा रहे हैं।
◆ नोट : एजुसैट को प्रक्षेपित करने वाले प्रक्षेपण यान का निर्माण विक्रम साराभाई स्पेस सेन्टर, तिरुवनंतपुरम में किया गया तथा एजुसैट का निर्माण इसरो के बंगलुरु स्थित केंद्र में किया गया है। जीएसएलवी की यह पहली कार्यात्मक उड़ान थी।
◆ हैमसैट : पीएसएलवी-सी 6 द्वारा कार्टोसैट-1 के साथ ही संचार उपग्रह ‘हैमसैट’ को एक अतिरिक्त उपग्रह के रूप में 5 मई, 2005 को छोड़ा गया। हैमसैट एक छोटे आकार का उपग्रह है, जिसका उद्देश्य देश और विश्व के शौकिया रेडियो (हैम) ऑपरेटरों को उपग्रह आधारित रेडियो सेवा मुफ्त उपलब्ध कराना है। इसकी जीवन अवधि लगभग दो वर्ष है।
अंतरिक्ष में प्रथम भारतीय
◆ 3 अप्रैल, 1984 को स्क्वाड्रन लीडर राकेश शर्मा अंतरिक्ष में जाने वाले प्रथम भारतीय बने । वे दो अन्य सोवियत अंतरिक्ष यात्रियों के साथ सोयुज टी- 2 अंतरिक्ष यान में कजाखस्तान में बैंकावूर कोस्मोड्रोम से अंतरिक्ष में गए। स्क्वाड्रन लीडर राकेश शर्मा 11 अप्रैल, 1984 को सुरक्षित पृथ्वी पर वापस लौट आए।
◆ तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने सोवियत अंतरिक्ष केंद्र पर स्क्वाड्रन लीडर राकेश शर्मा से बातचीत की। उन्होंने पूछा- अंतरिक्ष से भारत कैसा दिखता है? शर्मा का उत्तर था ‘सारे जहां से अच्छा ।’
◆ अंतरिक्ष में मानव भेजने वाला भारत 14वाँ राष्ट्र बना और स्क्वाड्रन लीडर राकेश शर्मा अंतरिक्ष में जाने वाले 139 वे अंतरिक्ष यात्री थे।
◆ अंतरिक्ष में जाने वाली भारतीय मूल की प्रथम महिला कल्पना चावला थी। इनकी मृत्यु 1 फरवरी, 2003 को अंतरिक्ष यान कोलम्बिया के मिशन एसटीएस-107 के वातावरण में पुनः प्रवेश के कुछ देर पश्चात् नष्ट हो जाने से हो गयी।
चन्द्रयान-I
◆ चन्द्रमा के लिए भारत का पहला मिशन ‘चन्द्रयान – I’ है। यह विश्व का 68वाँ चन्द्र अभियान है।
◆ भारत ने अपने पहले चन्द्रयान का प्रक्षेपण श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से 22 अक्टूबर, 2008 को ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण वाहन ( PSLV-C11 ) के जरिए किया।
◆ प्रथम चन्द्रमा अभियान सोवियत संघ ने 2 जनवरी, 1959 को भेजा था और द्वितीय चन्द्रमा अभियान 3 मार्च, 1959 को अमरीका ने भेजा।
◆ अमरीका, यूरोपीय संघ, रूस, जापान व चीन के बाद भारत छठा ऐसा देश है, जो चन्द्रमा के लिए यान भेजने में सफल हुआ।
◆ 11 पेलोड युक्त चन्द्रयान-I से सिगनल प्राप्त करने के लिए 32 मीटर व्यास के एक विशाल एंटीना की स्थापना कर्नाटक में बंगलौर से 40 किमी दूर ब्यालालू में की गई है। यह प्रथम अवसर था जब एक साथ 11 उपकरण विभिन्न अध्ययनों के लिए किसी यान के साथ भेजे गये हैं।
◆ भारत का पहला चन्द्र अभियान चन्द्रयान-I अपने साथ राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा भी लेकर गया है, जिसे मून इम्पेक्टर प्रोब चन्द्रमा की सतह पर स्थापित करेगा।
चन्द्रयान – II
◆ भारत सरकार द्वारा 18 सितम्बर, 2008 को चन्द्रयान-II अभियान को अपनी स्वकृति प्रदान कर दी गई। यह अभियान 2011-12 में सम्पन्न होगा।
◆ इस अभियान हेतु ‘इसरो’ तथा रूस की अंतरिक्ष ऐजेंसी ‘ग्लावकास्मॉस’ के बीच समझौता हुआ।
◆ इस अभियान के अन्तर्गत चन्द्रमा की सतह का अध्ययन होगा, जिससे रासायनिक तत्वों की सही स्थिति को ज्ञात किया जा सकेगा। ब्यालालू स्थित एंटीना चन्द्रयान-II को कमाण्ड एवं उसकी स्थिति का पता लगाने में सहायता करेगा।
◆ नोट: इसरो की योजना वर्ष 2015 तक चन्द्रमा पर मानव अभियान भेजने की है।
प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी
◆ एस.एल.वी-3 (Satellite Launch Vehicle, SLV-3) : साधारण क्षमता वाले एस.एल.वी.-3 के विकास से भारत ने प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कदम रखा तथा 18 जुलाई, 1980 को SLV-3 का सफल प्रायोगिक परीक्षण करके अपनी योग्यता को सिद्ध करते हुए स्वयं को अंतरिक्ष क्लब का छठा सदस्य बना लिया। इस क्लब के अन्य पूर्व पाँच सदस्य थे-रूस, अमेरिका, फ्रांस, जापान एवं चीन। SLV-3 एक चार चरणों वाला साधारण क्षमता का उपग्रह प्रक्षेपण यान था, जो 40 किलोग्राम भार वर्ग के उपग्रहों को पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित कर सकता था। इसका ईंधन (प्रणोदक) ठोस था । SLV-3 का कुल चार प्रायोगिक परीक्षण प्रक्षेपण किए गए, जिनमें द्वितीय तथा चतुर्थ प्रक्षेपण पूर्णतः सफल रहा। 17 अप्रैल, 1983 की SLV-3 की चतुर्थ एवं अंतिम उड़ान द्वारा ‘रोहिणी आर एस डी-2’ को सफललतापूर्वक निर्धारित कक्षा में स्थापित करने के बाद इस उपग्रह प्रक्षेपण यान का कार्यक्रम बंद कर दिया गया।
◆ ए.एस.एल.वी. (Augmented Satellite Launch Vehicle, ASLV): संवर्द्धित उपग्रह प्रक्षेपण यान अर्थात् ए.एस.एल.वी. वास्तव में एस.एल.वी.- 3 का ही संवर्द्धित रूप है। इसे 100 से 150 किग्रा भार वर्ग के उपग्रहों को पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित करने के उद्देश्य से विकसित किया गया था। यह एक पाँच चरणों वाला संवद्धित उपग्रह प्रक्षेपण यान था । ठोस प्रणोदक (ईंधन) से चलने वाले ए. एस. एल. वी के स्ट्रैप आन प्रथम एवं द्वितीय चरण के लिए स्वदेशी तकनीक से विकसित हाइड्रॉक्सिल टर्मिनेटेड पॉलि ब्यूटाडाइन (NTPB) प्रणोदक तथा तृतीय एवं चतुर्थ चरण के लिए एच. ई. एफ. – 20 प्रणोदक का प्रयोग किया गया था। ए. एस. एल. वी. के कुल चार प्रक्षेपण कराए गए, जिनमें से ए. एस. एल. वी डी1 ( 24 मार्च, 87 ) एवं ए. एस. एल.वी-डी – 2 (13 जुलाई, 88) के प्रथम दोनों प्रक्षेपण असफल सिद्ध हुए।
◆ पी.एस.एल.वी. (Polar Satellite Launch Vehicle PSLV) : 1200 किग्रा भार वर्ग तक के दूरसंवेदी उपग्रहों को 900 किमी ऊँचाई तक की ध्रुवीय सूर्य तुल्यकालिक / समकालिक कक्षा में स्थापित करने के उद्देश्य से पी.एस.एल.वी. का देश में विकास किया गया। पी. एस.एल.वी. एक चार चरणों वाला ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान है, जिसके प्रथम व तृतीय चरण में ठोस प्रणोदकों तथा द्वितीय व चतुर्थ चरण में द्रव प्रणोदकों का उपयोग किया जाता है। ठोस प्रणोदकों के अन्तर्गत हाईड्रॉक्सिल टर्मिनेटेड पॉली ब्यूटाडाइन (HTPB) का ईधन के रूप में तथा अमोनिया परक्लोरेट का ऑक्सीकारक के रूप में प्रयोग किया जाता है, जबकि द्रव प्रणोदक के रूप में मुख्य रूप से अनसिमेट्रिकल डाइ मिथाइल हाइड्राजाइन एवं N2O4 का प्रयोग किया जाता है, जो कमरे के ताप पर द्रवीभूत रहता है ।
◆ पी.एस.एल.वी की कुल तीन उड़ान कराई गई, जिसमें प्रथम उड़ान असफल तथा द्वितीय एवं तृतीय उड़ान पूर्णतः सफल सिद्ध हुई।
◆ नोट : पी.एस.एल.वी.-सी 3 द्वारा प्रक्षेपित भारतीय दूरसंवेदी प्रौद्योगिकी परीक्षण उपग्रह ‘टीईएस’ भारत का पहला सैनिक उपग्रह है, जो देश के समुद्री इलाकों और विशेषकर चीन एवं पाकिस्तान से लगी अन्तरराष्ट्रीय सीमा और नियंत्रण रेखा पर किसी घुसपैठ पर प्रभावी नजर रख सकेगा।
◆ जी.एस.एल.वी. (Geo Stationary or Geosynchronous Satellite Launch VehicleGSLV) : जी.एस.एल.वी एक शक्तिशाली तीन चरणों वाला ‘भू-तुल्यकालिक या भू- स्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान है। जी.एस.एल.वी. के प्रथम चरण में ठोस प्रणोदक, द्वितीय चरण में द्रव प्रणोदक तथा तृतीय चरण में क्रायोजेनिक इंजन का उपयोग किया गया है। ठोस प्रणोदकों के अन्तर्गत हाईड्रॉक्सिल टर्मिनेटेड पॉली ब्यूटाडाइन (HTPB) का ईंधन के रूप में तथा अमोनियम परक्लोरेट का ऑक्सीकारक के रूप में प्रयोग किया जाता है। प्रणोदकों के अन्तर्गत मुख्य रूप से अनसिमेट्रिकल डाई मिथाइल हाइड्रोजाइन (UDMH) एवं N2O4 का प्रयोग किया जाता है, जो कमरे के ताप पर द्रवीभूत रहता है। क्रायोजेनिक तकनीक में प्रणोदक के रूप में अत्यन्त निम्न ताप पर द्रव हाइड्रोजन (-250°C) एवं द्रव ऑक्सीजन (-183°C) का प्रयोग होता है। जी.एस.एल.वी. की पहली विकासात्मक परीक्षण उड़ान 28 मार्च, 2001 असफल रहा था। जी.एस.एल.वी. डी 1 ने भी प्रायोगिक संचार उपग्रह ‘जीसैट-1’ को 36,000 किमी की ऊँचाई पर स्थित भू-स्थैतिक स्थानांतरण कक्षा में स्थापित नहीं कर सका और लगभग 1000 किमी नीचे रह गया। लेकिन जी. एस. एल. वी. – डी 2 ने प्रायोगिक संचार उपग्रह ‘जीसैट-2 ( वजन 1800 किग्रा) को पृथ्वी की समानांतर कक्षा से 36,000 किमी ऊपर स्थापित कर दिया तथा इसका इंडोनेशिया के ‘बिआक’ और कर्नाटक के ‘हासन’ स्थित मुख्य नियंत्रण प्रणाली से सम्पर्क हो गया। जी. एस. एल. वी – डी 2 को श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से 8 मई, 2003 को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया। इस सफलता के बाद भारत उन पाँच देशों (अमेरिका, रूस, यूरोपीय संघ, जापान और चीन) के ‘एलीट ग्रुप में शामिल हो गया जो भू-स्थैतिक प्रक्षेपण में अपनी योग्यता सिद्ध कर चुके हैं।
◆ क्रायोजेनिक प्रौद्योगिकी : क्रायोजेनिक का शाब्दिक अर्थ निम्नतापिकी है। यह ग्रीक भाषा के बाद क्रायोस से बना है जो बर्फ के समान शीतलता के लिए प्रयुक्त होता है। निम्नतापिकी विज्ञान में 0°C से 150°C नीचे के तापमान को क्रायोजेनिक ताप कहा जाता है। निम्न ताप अवस्था (क्रायोजेनिक अवस्था) वाले इंजनों में अतिनिम्न ताप (-250°C) पर हाइड्रोजन का ईंधन के रूप में तथा ऑक्सीजन (-183°C) का ऑक्सीकारक के रूप में प्रयोग होता है। इस प्रौद्योगिकी में इन प्रणोदकों को तरल अवस्था में ही प्रयोग किया जाता है। इसमें ईंधन को परम तापीय अवस्था में प्रयोग करने की विशेषता के कारण इसे क्रायोजेनिक इंजन कहते हैं। इस इंजन की प्रमुख विशेषता है- 1. क्रायोजेनिक इंजन में प्रयोग होने वाले द्रव हाइड्रोजन एवं द्रव ऑक्सीजन के दहन से जो ऊर्जा पैदा होती है, वह ठोस ईंधन आधारित इंजन से प्राप्त ऊर्जा से कई गुना अधिक होती है। 2. इसमें ईंधन के ज्वलन की दर को नियंत्रित किया जा सकता है जबकि ठोस ईंधन से परिचालित होने वाले इंजन की ज्वलन की दर को नियंत्रित करना कठिन होता है। 3. इस प्रौद्योगिकी से युक्त इंजन में प्रणोदक की प्रति इकाई भार में अधिक बल पैदा होता है, जिससे यान को अधिक बल (थर्स्ट) मिलता है।
◆ नोट : क्रायोजेनिक इंजन का पहली बार प्रयोग अमेरिका द्वारा एटलांस संटूर नामक रॉकेट में किया गया था।
◆ 28 अक्टूबर, 2006 को तमिलनाडु के महेन्द्रगिरि में पूर्ण निम्नताप (क्रायोजेनिक) अवस्था का भारत ने सफल परीक्षण किया। भारत पूर्ण निम्नताप अवस्था का सफल परीक्षण करने वाला छठा देश है। भारत से पूर्व यह क्षमता अमेरिका, रूस, चीन, जापान एवं यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ने प्राप्त की है।

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