आधुनिक युग का प्रादुर्भाव
आधुनिक युग का प्रादुर्भाव
आधुनिक युग का प्रादुर्भाव
15वीं-16वीं शताब्दियों से यूरोप में मध्ययुग का अंत एवं आधुनिक युग का प्रादुर्भाव हुआ। आधुनिक युग को लाने में अनेक तत्त्वों का योगदान था, जैसे-सामंतवाद का पतन, राष्ट्रीय राज्यों का उदय, शक्तिशाली व्यापारी वर्ग एवं मध्यम वर्ग का उदय, नए नगरों एवं विश्वविद्यालयों की स्थापना एवं विकास। परंतु, आधुनिक युग के प्रादुर्भाव में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण योगदान था पुनर्जागरण एवं धर्मसुधार आंदोलन का।
पुनर्जागरण-पुनर्जागरण अथवा रिनेसाँ (Renaissance) का ऐतिहासिक संदर्भ में शाब्दिक अर्थ ‘बौद्धिक जागरण’ होता है।
यह उन समस्त बौद्धिक परिवर्तनों को इंगित करता है जो मध्ययुग के अंत और आधुनिक युग के आरंभ में हुए। इसका
आरंभ 15वीं शताब्दी में कुस्तुनतुनिया (Constantinople) के पतन (1453) से माना जाता है। कुस्तुनतुनिया बिजेंटाइन साम्राज्य (Byzantine Empire) अथवा पूर्वी रोमन साम्राज्य की राजधानी थी। यह यूनानी-रोमन ज्ञान-विज्ञान, दर्शन एवं कला का केंद्र था। 1453 में इसपर उस्मानी तुर्कों ने अधिकार कर लिया। फलतः यहाँ के विद्वान और कलाकार यूरोप के अन्य देशों में चले गए।
अधिकांश लोगों को इटली में शरण मिली। इसलिए, इटली पुनर्जागरण का केंद्र बन गया। कुस्तुनतुनिया के पतन के अतिरिक्त अन्य अनेक कारणों का भी पुनर्जागरण में योगदान था। जेरूसलम (आधुनिक इजरायल स्थित), जिसे ईसाई अपनी पवित्र भूमि (Holy Land) मानते थे, पर तुर्कों ने अपना अधिकार स्थापित कर लिया था। इसे मुक्त कराने के लिए ईसाइयों एवं तुर्कों में धर्मयुद्ध (Crusades) हुए। इन युद्धों के कारण यूरोपवालों का संपर्क पूर्व के देशों के साथ हुआ। वहाँ के ज्ञान-विज्ञान से परिचित होकर यूरोपवासियों की कूपमंडूकता में परिवर्तन आया और नई मानसिकता विकासत हुई। इसा प्रकार, मंगोल सम्राट कुबलई खान के दरबार में विदेशों के विद्वाना, व्यापारियों और कलाकारों के आपराल जोल और संपर्क से भी इसी समय पांडित्यपंथ
पुनर्जागरण को बल मिला। (Scholasticism) के स्थान पर तर्कवाद का विकास हुआ। इसमे रोजर बेकन की प्रमुख नामका थी। वैज्ञानिक खोजो ने भी अंधविश्वास को मिटाने एवं तार्किक भावना के विकास को प्रश्रय दिया। कागज और छापाखाना (मुद्रणकला) के आविष्कार ने भी पुनर्जागरण के प्रसार में सहायता पहुँचाई।
सामंतवाद का पतन और व्यापार का विकास भी पुनर्जागरण का एक महत्त्वपूर्ण कारण था। व्यापार के विकास से नगरों का
उदय हुआ। नगरों में बड़े व्यापारी शिक्षा एवं कला को प्रोत्साहन देने लगे। इससे विचार-स्वातंत्र्य बढ़ा और ज्ञान की प्रगति हुई।
विचारों का आदान-प्रदान भी नगरों में बढ़ा।
पुनर्जागरण से आधुनिक युग का आगमन माना जाता है। इटली से आरंभ होकर शीघ्र ही यह अन्य यूरोपीय देशों- जर्मनी, इंगलैंड, फ्रांस में फैल गया। इस समय कला, साहित्य और विज्ञान के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति हुई।
पुनर्जागरण आधुनिक इतिहास की एक महत्त्वपूर्ण घटना थी। इसके व्यापक प्रभाव पड़े। इसने मानव के दृष्टिकोण में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया। रूढ़िवाद का स्थान तर्कवाद ने तथा अध्यात्मवाद का स्थान भौतिकवाद ने ले लिया। मध्यम वर्ग का उदय एवं मानवतावाद का विकास हुआ। उद्योग-व्यापार की प्रगति हुई। राष्ट्रीय राज्यों का उदय हुआ जिसके परिणामस्वरूप भौगोलिक खोजों को प्रश्रय मिला। उपनिवेशवाद एवं साम्राज्यवाद का विकास हुआ। पुनर्जागरण ने यूरोप को “अंधकार युग” से बाहर निकालकर “आधुनिक युग” में पहुँचा दिया।
धर्मसुधार-इसी प्रकार, धर्मसुधार (Reformation) का भी व्यापक प्रभाव पड़ा। इसने कट्टरपंथ को समाप्त कर तर्कवाद और
स्वतंत्र चिंतन की भावना का विकास किया। शिक्षा और धर्म पर चर्च का प्रभाव कमजोर पड़ गया। पोप का प्रभाव कमजोर पड़ने से राजाओं की शक्ति में वृद्धि हुई तथा राष्ट्रीय राज्यों का उत्कर्ष हुआ एवं राष्ट्रीयता की भावना बढ़ी। चर्च द्वारा लगाए गए
आर्थिक प्रतिबंधों के समाप्त होने से वाणिज्य-व्यवसाय की वृद्धि हुई। फलतः, भौगोलिक खोजों का मार्ग प्रशस्त हो गया।
भौगोलिक खोजें- यूरोपवासी सदैव पूरन के साथ व्यापारिक संबंध स्थापित करना चाहते थे। यूनानी समाट सिकंदर ने भौगोलिक खोजों को प्रश्रय दिया था जिससे पूर्वी एवं पश्चिमी जगत का व्यापारिक एवं सांस्कृतिक संपर्क बढ़ा। नए जलमार्गों की खोज से भारत और रोमन साम्राज्य के बीच व्यापार का विकास हुआ। बाद में अपने प्रसार के दौरान अरव विजेताओं और भूगोलवेत्ताओं ने नए व्यापारिक मार्गों की खोज की। धर्मयुद्धों एवं पुनर्जागरण ने भी इस प्रक्रिया को गति दी। कुस्तुनतुनिया के पतन के पश्चात इस दिशा में और अधिक प्रगति हुई।
15वीं शताब्दी के अंतिम चरण से भौगोलिक खोजों का आरंभ हुआ। अनेक आधुनिक विद्वान इन सामुद्रिक अभियानों को खोज यात्रा’ नहीं मानते हैं। उनका विचार है कि इसके पहले भी ‘पुरानी दुनिया’ के लोगों ने अनेक अनजान इलाकों की यात्रा एवं
उनकी खोज की थी। उदाहरण के लिए, अरबी, चीनी और भारतीय यात्रियों तथा पोलिनेशियन और माइक्रोनेशियन नाविकों
ने महासागरों की यात्राएँ की थीं। ग्यारहवीं शताब्दी में ही नार्वे के जलदस्युयों (Vikings) ने उत्तरी अमेरिका तक पहुँचने में
सफलता प्राप्त की थी। 1415 में पुर्तगालियों ने अफ्रीका के तट पर स्थित सिउटा (Ceuta) पर अधिकार कर लिया जिससे उन्हें
अफ्रीका के विषय में जानकारी मिली। 1434 में पुर्तगालियों ने बोजाडोर अंतरीप (Cape Bojador), जो अफ्रीका के पश्चिमी
तट पर स्थित था, में अपना व्यापारिक केंद्र स्थापित किया। अगले वर्षों में अफ्रीका में अनेक पुर्तगाली अभियान हुए जहाँ से
पुर्तगाल को पर्याप्त सोना और अफ्रीकी गुलाम मिलने लगे।
इससे पुर्तगाल की अर्थव्यवस्था समुन्नत हुई तथा सामुद्रिक अभियानों में पुर्तगाल की दिलचस्पी बढ़ी। 1460 तक पुर्तगाली
अफ्रीका के सबसे पश्चिमी छोर केप वरडे (Cape Verde) तक पहुँच चुके थे। 15वीं शताब्दी में इन भौगोलिक खोजों में अधिक
गति आई। इनका प्रभाव पहले की खोजों से अधिक व्यापक और प्रभावशाली हुआ तथा इन सामुद्रिक अभियानों के परिणामस्वरूप अनेक नए देशों, जैसे- वेस्ट इंडीज, ब्राजील, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, न्यूफाउंडलैंड का पता लगा तथा भारत पहुँचने का सामुद्रिक व्यापारिक मार्ग खोजा जा सका।