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इटली का एकीकरण

इटली का एकीकरण

इटली का एकीकरण

19वीं शताब्दी के यूरोपीय इतिहास की दो महत्त्वपूर्ण घटनाएँ थीं- इटली और जर्मनी का एकीकरण। इनके परिणामस्वरूप यूरोप के मानचित्र पर दो नए राष्ट्रों का उदय हुआ— इटली और जर्मनी। प्रथम विश्वयुद्ध के पूर्व एवं बाद के वर्षों में इन राष्ट्रों ने यूरोपीय राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
1815 के पूर्व इटली–इटली, जिसकी राजधानी रोम थी, का इतिहास काफी पुराना है। रोमन सभ्यता और संस्कृति का विकास यहीं हुआ। यह राजनीतिक गतिविधियों के अतिरिक्त सामाजिक-धार्मिक क्रियाकलापों का भी केंद्र था। कैथोलिक ईसाई धर्मावलंबियों के प्रधान पोप की शक्ति का केंद्र भी रोम ही था। कालांतर में यह अपना राजनीतिक महत्त्व खोने लगा। 1815 तक, मेटरनिक के शब्दों में, इटली भौगोलिक अभिव्यक्ति मात्र बनकर रह गया था। 1815 में इटली चार राजनीतिक-भौगोलिक क्षेत्रों में विभक्त था-(i) उत्तरी इटली जहाँ राजतंत्र का प्रभाव था (ii) ऑस्ट्रिया के प्रभाववाला क्षेत्र (iii) पोप के अधीन मध्य इटली एवं (iv) दक्षिणी इटली जिसमें नेपल्स तथा सिसली के राज्य सम्मिलित थे। समस्त इटली विभिन्न प्रजातियों,
भाषाओं एवं वर्गों में विभक्त था। इन्हें एकीकृत करना आसान नहीं था, परंतु इटली के राष्ट्रवादियों- मेजिनी, कावूर और गैरीवाल्डी के प्रयासों से 1870 में इटली का एकीकरण संभव हो सका। इटली के एकीकरण का मसीहा मेजिनी को, तलवार गैरीबाल्डी को और राजनीतिज्ञ कावूर को कहा जाता है। इटली के एकीकरण की प्रक्रिया का आरंभ नेपोलियन बोनापार्ट से माना जाता है। उसे इटली में राष्ट्रवाद का जन्मदाता कहा जाता है। उसने इटली में राष्ट्रवाद तथा लोकतंत्रवाद की भावनाओं को जागृत किया। पुनर्जागरण (Risorgimento) और बुद्धिवाद (Rationalism) की भावना का विकास भी नेपोलियन के आक्रमणों से हुआ। उसने इटली में ट्रांसपेडेन, लीगुलीयन, और सिसेल्पाइन गणराज्यों की स्थापना कर इटली के भावी एकीकरण की नींव रख दी।
1815 के बाद इटली-1815 में नेपोलियन की पराजय के बाद वियना सम्मेलन ने इटली में महत्वपूर्ण राजनीतिक परिवर्तन किए। जिनोआ तथा सेवॉय का भाग पिडमोट को दे दिया गया। साहिनिया का राज्य भी पिडमोट में मिला दिया गया। लोम्बार्डी और वेनेशिया पर ऑस्ट्रिया का आधिपत्य हो गया। पोप के राज्य और उसकी शक्ति की पुनस्र्थापना की गई। नेपल्स में बुरबों राजवंश का शासन स्थापित किया गया। सिसली का राज्य भी नेपल्स को दे दिया गया। इस प्रकार, इटली को विभिन खंडों में विभक्त कर दिया गया।
इटली के एकीकरण में बाधाएँ-इटली की भौगोलिक स्थिति इसके एकीकरण में बड़ी बाधा थी। मध्य इटली में पोप का राज्य होने से उत्तरी और दक्षिणी इटली को एक सूत्र में बाँधना कठिन था। पोप को चुनौती देने से यूरोप के कैथोलिक राज्यों के हस्तक्षेप का भय था। इसके अतिरिक्त पोप यह चाहता था कि इटली का धार्मिक एकीकरण उसके नेतृत्व में हो, राजनीतिक नहीं। ऑस्ट्रिया और फ्रांस भी एकीकरण में बाधक थे। आंतरिक रूप से कुलीन वर्ग का विरोध भी एक बड़ी बाधा थी क्योंकि यह वर्ग सत्ता और धर्म का संरक्षक था। परंतु, राष्ट्रवाद की भावना के विकास ने इटली के एकीकरण की बाधाएँ दूर कर दी।
एकीकरण में सहायक तत्त्व-राष्ट्रवादी भावना के विकास और एकीकरण में इटली की सांस्कृतिक क्रांति की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। साहित्यकारों, इतिहासकारों, लेखकों ने अपने लेखों द्वारा प्राचीन ऐतिहासिक गौरव को उजागर किया जिसका जनमानस पर गहरा प्रभाव पड़ा। मेकियावेली और दाँते को इटलीवासियों ने स्वाधीनता के अग्रदूत के रूप में देखा। नव गुएल्फ आंदोलन (Neo Guelph Movement) के माध्यम से जियोबर्टी ने इटलीवालों को एक प्रजाति, खून, भाषा, धर्म का बताया। उसने पोप के नेतृत्व में इतालवी राज्यों के संघ की कल्पना की जबकि एक अन्य लेखक ने चार्ल्स एलबर्ट को संघ के नेता के रूप में प्रस्तुत किया। इटली के विभिन्न नगरों में आयोजित वैज्ञानिक काँग्रेस के सम्मेलनों में इटली के भौगोलिक और सांस्कृतिक एकीकरण पर बल दिया गया। इटली के गुप्त क्रांतिकारी संगठनों ने भी स्वाधीनता और राष्ट्रवाद की भावना जागृत की। ऐसी संस्थाओं में सबसे प्रमुख था कार्वोनारी नामक गुप्त संगठन जिसकी स्थापना 1810 में की गई थी। इस संस्था का प्रमुख उद्देश्य छापामार युद्ध का सहारा लेकर राजतंत्र को समाप्त करना एवं गणतंत्र की स्थापना करना था। स्वयं मेजिनी भी कार्बोनारी का सदस्य था। नेपोलियन के समय में और उसके अनेक वर्षों बाद तक यह संगठन इटली में सक्रिय रहा।

एकीकरण के प्रमुख नायक

इटली के एकीकरण के तीन प्रमुख नायक थे-(i) मेजिनी (1805-72) (ii) कापूर (1810-61) तथा (iii) गैरीबाल्डी (1807-82)। यद्यपि इनकी मान्यताएं एक-दूसरे से भिन्न थी तथापि इन तीनों के सम्मिलित प्रयासों से ही इटली का एकीकरण हो सका।
मेजिनी (ज्युसेपे मेत्सिनी)-मेजिनी को इटली के एकीकरण का ‘पैगंबर’ या ‘मसीहा’ कहा जाता है। वह दार्शनिक, लेखक, राजनेता, गणतंत्र का समर्थक और कर्मठ कार्यकर्ता था। उसका जन्म 1805 में साडिनिया के जिनोआ नगर में हुआ था। उसके पिता विख्यात चिकित्सक थे। मेजिनी तरुणावस्था से ही गुप्त राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेता था। 1815 में जब जिनोआ को पिडमोट के अधीन कर दिया गया तब इसका विरोध करनेवालों में मेजिनी भी था। मेजिनी ने विश्व के महान लेखकों की कृतियों का गहरा अध्ययन किया। इससे उसमें राष्ट्रवादी भावना का विकास हुआ। उसने कार्बोनारी की सदस्यता ग्रहण की। नेपल्स में 1821 में हुए विद्रोह को जिस तरह दबाया गया, उससे क्षुब्ध होकर वह काला वस्त्र पहनने लगा। 1830-31 के विद्रोह में उसने सक्रिय रूप से भाग लिया। इसके लिए उसे कारावास दिया गया। जेल से छूटने के बाद वह विदेश चला गया। इस समय तक कार्बोनारी संस्था समाप्तप्राय हो चुकी थी। इसलिए, अपने गणतंत्रवादी उद्देश्यों के प्रचार के लिए मेजिनी ने 1831 में मार्सेई में यंग इटली (Young Italy) तथा बर्न में 1834 में यंग यूरोप (Young Europe) की स्थापना की। इनका सदस्य युवाओं को बनाया गया। बड़ी संख्या में युवा इनके सदस्य बने। संस्था के सदस्य पोलैंड, फ्रांस, इटली और जर्मनी में भी थे। आगे चलकर इन संस्थाओं के मॉडल पर जर्मनी, फ्रांस, स्विट्जरलैंड और पोलैंड में भी गुप्त क्रांतिकारी संगठन बनाकर गणतंत्रात्मक भावना का प्रसार किया गया। मेजिनी ने 1851 में फ्रेंड्स ऑफ इटली (Friends of Italy) नामक संस्था का गठन कर मिलान और जिनोआ के क्रांतिकारियों की सहायता की।
मेजिनी जन-संप्रभुता के सिद्धांत में विश्वास रखता था। उसने ‘जनता-जनार्दन तथा इटली’ का नारा दिया। उसका उद्देश्य ऑस्ट्रिया के प्रभाव से इटली को मुक्त करवाना तथा संपूर्ण इटली का एकीकरण करना था। मेजिनी गणतंत्रवादी था, राजतंत्र में उसकी आस्था नहीं थी। साथ ही, वह आदर्शवादी था, व्यावहारिक नहीं। मेटरनिक के पतन के बाद मेजिनी इटली की राजनीति में पुनः सक्रिय हुआ। वह संपूर्ण इटली का एकीकरण कर उसे गणतंत्रात्मक राज्य में बदलना चाहता था। दूसरी ओर, सार्डिनिया-पिडमौंट का राजा चार्ल्स एलबर्ट अपने नेतृत्व में इटली का एकीकरण चाहता था। पोप अपने अधीन एकीकरण चाहता था। फलतः, मेजिनी अपने प्रयास में विफल होकर इटली से बाहर चला गया।
काउंट कावूर-काउंट कावूर का जन्म 1810 में हुआ था। उसका मानना था कि इटली के एकीकरण के लिए आर्थिक उन्नति एवं सैनिक शक्ति अनिवार्य थी। वह एकीकरण के लिए विदेशी सहायता को भी आवश्यक मानता था। विदेशी सैनिक सहायता से ही ऑस्ट्रिया को इटली से बाहर निकालना संभव था। कावूर आदर्शवादी नहीं, बल्कि यथार्थवादी था। वह कूटनीतिज्ञ एवं राष्ट्रवादी था। उसका विचार था कि सार्डिनिया के नेतृत्व में ही इटली का एकीकरण संभव था। 1848 की क्रांतियों की विफलता से वह समझ चुका था कि बिना सैनिक शक्ति के ऑस्ट्रिया को परास्त करना असंभव था। अतः, कूटनीतिक रूप से उसने ऑस्ट्रिया को अलग करने की नीति अपनाई। वह राजतंत्र का समर्थक था।
1850 में कावूर सार्डिनिया के नए राजा विक इमैनुएल का कृषि, व्यापार तथा नौ-शक्ति का मंत्री बना। 1852 में वह प्रधानमंत्री
बन गया। मंत्री के रूप में उसने आर्थिक सुधारों द्वारा सार्डिनिया- पिडमौंट की स्थिति सुदृढ़ करने का प्रयास किया। उसके प्रयासों से कृषि का विकास हुआ, औद्योगिकीकरण बढ़ा तथा रेल और संचार व्यवस्था सुदृढ़ हुई। सैनिक और सामाजिक सुधारों द्वारा भी कावूर ने पिडमौंट की स्थिति सुदृढ़ की जिससे कि इस राज्य के नेतृत्व में इटली का एकीकरण हो सके। कावूर की गृहनीति उदारवाद और विदेश नीति युद्ध तथा सैन्यवाद पर आधृत थी। इटली के एकीकरण के लिए उसने इन नीतियों का आवश्यकतानुसार अनुपालन किया।
गैरीवाल्डी-इटली के एकीकरण में गैरीबाल्डी का भी महत्त्वपूर्ण योगदान था। उसका जन्म 1807 में नीस में हुआ था। मेजिनी और कावूर के समान वह भी एक महान राष्ट्रवादी था। राष्ट्रवाद से प्रेरित होकर उसने यंग इटली की सदस्यता ग्रहण की। उसने सैनिक क्षेत्र में महारत हासिल की। क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेने के कारण उसे मृत्युदंड की सजा सुनाई गई थी, परंतु वह भागकर विदेश चला गया। 1848 में वह इटली वापस आया। एकीकरण की प्रक्रिया में उसने अनेक युद्ध किए। कावूर ने जहाँ अपनी कूटनीति द्वारा इटली का एकीकरण संभव कर दिया, वहीं गैरीबाल्डी ने अपनी तलवार द्वारा इसे संभव बनाया।

इटली के एकीकरण के प्रमुख चरण

1830 48 के मध्य इटली के विभिन्न भागों में राष्ट्रवादियों ने प्रतिक्रियावादियों के विरुद्ध संघर्ष किया। सिसली, टस्कनी में
संवैधानिक सुधार हुए। सार्डिनिया, लोम्बार्डी, वेनेशिया में भी विद्रोह हुए जिनके परिणामस्वरूप संवैधानिक सुधार किए गए।
पोप-अधिकृत राज्यों में भी कुछ सुधार हुए। ऑस्ट्रिया से मुक्ति के लिए संघर्ष तेज कर दिया गया। सार्डिनिया-पिडमौंट के राजा चार्ल्स एलबर्ट ने ऑस्ट्रियाई प्रभुत्व के विरुद्ध युद्ध आरंभ कर दिया, परंतु वह पराजित हुआ। प्रतिक्रियावादी शक्तियों की विजय हुई। चार्ल्स एलबर्ट के स्थान पर विक्टर इमैनुएल राजा बना। 1848 में पोप के राज्य में भी क्रांति हुई। पोप पियुस नौवाँ को रोम छोड़कर भागना पड़ा। रोम में रोमन गणतंत्र की स्थापना की गई, परंतु यह स्थायी नहीं हो सका। फ्रांस के शासक लुई नेपोलियन ने गणतंत्र को समाप्त कर पोप को पुनर्स्थापित किया। उसकी सुरक्षा के लिए फ्रांसीसी सेना की टुकड़ी 1870 तक रोम में बनी रही।
एकीकरण का प्रथम चरण-1848 तक एकीकरण के लिए किए गए प्रयासों को कुचल दिया गया, परंतु इससे राष्ट्रवादी चेतना
कुंठित नहीं हुई। 1848 के बाद पुन: इस दिशा में प्रयास आरंभ कर दिए गए। अब सार्डिनिया के नेतृत्व में एकीकरण का प्रयास आरंभ हुआ। नए राजा विक्टर इमैनुएल और उसके प्रधानमंत्री कावूर ने इस दिशा में प्रयास आरंभ कर दिए। 1854 में क्रीमिया का युद्ध आरंभ हुआ। इसमें फ्रांस, तुर्की और इंगलैंड संयुक्त रूप से रूस के विरुद्ध युद्ध लड़े। एकीकरण में विदेशी शक्तियों की सहायता प्राप्त करने के उद्देश्य से कावूर ने इस युद्ध में संयुक्त शक्तियों का साथ दिया और अपनी सेना भेजी। क्रीमिया के युद्ध में रूस की पराजय हुई। युद्ध के बाद पेरिस शांति सम्मेलन में कावूर को भी आमंत्रित किया गया। वहाँ उसने इटली के एकीकरण का प्रश्न उठाया। ऑस्ट्रियाई नीति की कावूर ने सम्मेलन में आलोचना कर इसे गैरकानूनी बताया। इससे संपूर्ण यूरोप का ध्यान इटली की ओर आकृष्ट हुआ। कावूर ने इटली की समस्या को यूरोपीय समस्या बना दिया। कावूर का विश्वास था कि क्रीमिया के कीचड़ में इटली का निर्माण होगा, परंतु सहानुभूति के अतिरिक्त उसे ऑस्ट्रिया के विरुद्ध कोई ठोस सहायता नहीं मिली।
कावूर इससे निराश नहीं हुआ। वह पिडमौट की शक्ति बढ़ाता रहा और साथ ही कूटनीतिक चाल भी चलता रहा। वह ऑस्ट्रिया के विरुद्ध फ्रांस को अपने पक्ष में करने का प्रयास करता रहा। 1858 में कावूर ने फ्रांस के सम्राट नेपोलियन तृतीय के साथ प्लेम्वियर्स समझौता किया। समझौते के अनुसार, फ्रांस पिडमौंट के साथ मिलकर ऑस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध करने को तैयार हुआ। युद्ध के बाद लोम्बार्डी तथा वेनेशिया को संयुक्त इटली में मिलाना था। यह भी तय हुआ कि अगर टस्कनी, पारमा, मोडेना तथा पोप का राज्य जनमत के आधार पर संयुक्त इटली में शामिल होना चाहेंगे तो फ्रांस इसका विरोध नहीं करेगा। कावूर ने फ्रांस को यह आश्वासन भी दिया कि विजय के बाद वह नीस और सेवॉय फ्रांस को दे देगा। सीमा- संबंधी विवाद को लेकर पिडमौंट और ऑस्ट्रिया में संबंध बिगड़ते गए। इसने युद्ध का स्वरूप ले लिया। 1859 में कावूर ने फ्रांसीसी सेना की सहायता से युद्ध में ऑस्ट्रिया को पराजित कर लोम्बार्डी पर अधिकार कर लिया। इस बीच इटली में बढ़ते राष्ट्रवादी आंदोलनों से भयभीत होकर नेपोलियन तृतीय युद्ध से अलग हो गया। उसने ऑस्ट्रिया से संधि भी कर ली। ऑस्ट्रिया और फ्रांस में संधि हो जाने
से सार्डिनिया लोम्बार्डी के अतिरिक्त अन्य क्षेत्र प्राप्त नहीं कर पाया। वेनेशिया ऑस्ट्रिया को मिल गया। इससे कावूर का इटली के एकीकरण का स्वप्न पूरा नहीं हो सका, परंतु वह निराश नहीं हुआ और उसने एकीकरण का प्रयास जारी रखा।
1859 की घटनाओं के प्रतिक्रियास्वरूप मध्य इटली स्थित पारमा, मोडेना, टस्कनी, पोप के राज्य बोलेगना और रोमेगना ने
विद्रोह कर स्वतंत्रता की घोषणा कर दी। इन राज्यों ने विक्टर इमैनुएल को अपना राजा घोषित कर दिया। जनमत-संग्रह के
आधार पर ये राज्य सार्डिनिया में मिला लिए गए। इस प्रकार, इटली के एकीकरण का एक महत्त्वपूर्ण चरण समाप्त हुआ। नए
सार्डिनिया को ब्रिटेन और फ्रांस ने मान्यता दे दी। इस बार फ्रांस ने सार्डिनिया का विरोध नहीं किया। इतना ही नहीं, उसने
कावूर से नीस और सेवॉय भी समर्थन के बदले ले लिया।
द्वितीय चरण-एकीकरण का द्वितीय चरण गैरीबाल्डी की तलवार ने पूरा किया। गैरीबाल्डी व्यवसाय से एक नाविक था। आरंभ में वह मेजिनी का समर्थक था, परंतु बाद में वह कावूर के प्रभाव में आया। गैरीबाल्डी युद्ध की नीति में विश्वास करता था।
वह जानता था कि बिना युद्ध के इटली का एकीकरण संभव नहीं था। 1859 की घटनाओं से उत्प्रेरित होकर उसने आक्रामक नीति अपनाई। उसने सशस्त्र युवकों की एक टुकड़ी गठित की जो लाल कुर्ती (Red Shirts) कहलाए। 1860 में इटली में नया सार्डिनिया, पोप का राज्य और दक्षिण में सिसली के दो राज्य थे। दक्षिणी राज्यों में क्रांति की ज्वाला प्रज्वलित थी। अत:, गैरीबाल्डी ने लाल कुर्ती और स्थानीय किसानों की सहायता से सिसली पर अधिकार कर लिया। सिसली में विक्टर इमैनुएल के
नाम पर गैरीबाल्डी ने सत्ता पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया एवं गणतंत्र की स्थापना की। सिसली से आगे बढ़कर
उसने पोप के राज्य पर आक्रमण करने की योजना बनाई। परंतु, कावूर ने इसकी अनुमति नहीं दी; क्योंकि इससे फ्रांस के साथ
युद्ध का खतरा बढ़ जाता। कावूर ने सार्डिनिया की सेना की एक टुकड़ी को पोप-प्रशासित इलाके से होते हुए नेपल्स में प्रवेश
करने का आदेश दिया। सेना को रोम के बाहर से ही होकर जाना था। सेना ने नेपल्स पर अधिकार कर लिया। जनमत-संग्रह के
बाद सिसली तथा इससे सटे हुए इलाकों को सार्डिनिया में मिला लिया गया। विक्टर इमैनुएल को संयुक्त इटली का राजा घोषित
किया गया। सार्डिनिया-पिडमौंट का नाम बदलकर इटली रखा गया। अब सिर्फ वेनेशिया और रोम ही क्रमश: ऑस्ट्रिया और
पोप के अधीन बचे रहे। इस प्रकार, इटली के एकीकरण का द्वितीय चरण पूरा हुआ। गैरीबाल्डी महान देशभक्त और त्याग
की प्रतिमूर्ति था। विक्टर इमैनुएल ने उसे दक्षिणी इटली के क्षेत्रों का शासक बनने का प्रस्ताव दिया जिसे उसने अस्वीकृत कर
दिया। उसके त्याग से प्रभावित होकर लाला लाजपत राय ने गैरीबाल्डी की जीवनी लिखी।
अंतिम चरण-इटली के एकीकरण का तीसरा और अंतिम चरण जर्मनी के एकीकरण के साथ पूरा हुआ। 1861 में कावूर की मृत्यु हो चुकी थी। गैरीबाल्डी भी राजनीति से अलग हो गया था। अत:, एकीकरण का नेतृत्व विक्टर इमैनुएल ने सँभाला। 1866 में ऑस्ट्रिया-प्रशा में सेडोवा का युद्ध हुआ। सेडोवा के युद्ध में ऑस्ट्रिया प्रशा से पराजित हुआ। इस युद्ध के बाद वेनेशिया इटली
को मिल गया। 1870 में प्रशा ने फ्रांस पर आक्रमण कर दिया। अतः, पोप की सुरक्षा के लिए नियुक्त फ्रांसीसी सेना रोम से हटा ली गई। इसका लाभ उठाकर विक्टर इमैनुएल ने रोम पर आक्रमण कर उसपर अधिकार कर लिया। रोम को स्वतंत्र और संयुक्त इटली की राजधानी बनाया गया। 1870 में इटली विश्व मानचित्र पर एक नए एकीकृत राष्ट्र के रूप में उभरा। पोप के राजमहल को विक्टर इमैनुएल ने छोड़ दिया। पोप इस स्थिति को लंबे समय तक स्वीकार नहीं कर सका।
बाद में मुसोलिनी ने 1929 में पोप से समझौता कर लेटरन संधि (Lateran Treaty) द्वारा] वेटिकन पर पोप का आधिपत्य स्वीकार कर लिया। इस प्रकार, इटली का एकीकरण लंबे संघर्ष के बाद पूरा हुआ। इसमें मेजिनी, कावूर, गैरीबाल्डी जैसे राष्ट्रवादियों और शासक विक्टर इमैनुएल की प्रमुख भूमिका थी।

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