S-9

गणित का शिक्षणशास्त्र (उच्च-प्राथमिक स्तर) | D.El.Ed Notes in Hindi

गणित का शिक्षणशास्त्र (उच्च-प्राथमिक स्तर) | D.El.Ed Notes in Hindi

S-9A               गणित का शिक्षणशास्त्र (उच्च-प्राथमिक स्तर)
प्रश्न 1. बच्चों में प्राकृत संख्या से वास्तविक संख्या तक की अवधारणा का
विकास किस प्रकार करेंगे?
उत्तर―(क) प्राकृत संख्या―इस स्तर तक सभी बच्चे गिनती से परिचित होते हैं।
उन्हें बताएंगे कि हम सभी लोग जानते है कि गिनने के लिए हम 1,2,3,4,……का प्रयोग
करते है जो गिनती कहलाती है। ये संख्याएँ प्राकृतिक रूप से हमारे सामने आती है इसलिए
इन संख्याओं को प्राकृत संख्याएँ कहते हैं। प्राकृत संख्याएँ = {1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8,
9, 10,…} सबसे छोटी प्राकृत संख्या 1 है।
        यदि हम किसी प्राकृत संख्या में पूर्ववर्ती और परवर्ती : 1 जोड़ देते है तो वह संख्या,
पहली संख्या का परवर्ती कहलाता है। जैसे—12+ 1 = 13 अर्थात् संख्या 12 का परवर्ती
13 है।
     यदि हम किसी प्राकृत संख्या में से 1 घटा दें तो वह संख्या, पहली संख्या का पूर्ववर्ती
कहलाता है। जैसे―11–1 = 10 अर्थात् संख्या 11 का पूर्ववर्ती 10 है।
(ख) पूर्ण संख्याएँ―”कोई भी विद्यार्थी नहीं है” इस कथन को गणित में कैसे
बतायेंगे? यह समस्या गणितज्ञों के सामने आयी । इस समस्या को कुछ नहीं या कोई नहीं
कहना ठीक न लगा तब 0 (शून्य) कहा गया । 0 को प्राकृत संख्याओं के साथ सम्मिलित
कर लिया गया। 0, 1,2,3,4,5,6,7,8,9, 10, …} यह पूर्ण संख्याओं का समूह
है। सबसे छोटी पूर्ण संख्या 0 (शून्य) जीरो है। सबसे बड़ी प्राकृत संख्या को अभी तक
ज्ञात नहीं है
     0 (शून्य) की दोहरी भूमिका है। 1. पहली भूमिका में यह अंक का कार्य करता है
अर्थात् स्थानीय मान पद्धति में एक स्थान धारक का काम करता है। जैसे―10, 101,
1012 आदि । 2. दूसरी भूमिका में यह एक संख्या को प्रदर्शित करने का कार्य करता है।
वह संख्या कुछ नहीं/कोई नहीं कहलाती है।
(ग) धनात्मक और ऋणात्मक संख्या― विद्यार्थी सबसे पहले ऋण चिह्न को तब
देखते हैं जब उसका उपयोग अंकों को घटाने के लिए किया जाता है । इसलिए, ऋणात्मक
संख्याओं में उसके उपयोग का ध्यानपूर्वक परिचय कराना होगा । यह समझाने से कि यह
चिब अलग तरीके से इस्तेमाल किया जाता है और यह पता लगाने से कि ऋणात्मक संख्याओं
के लिए इसका उपयोग क्यों किया जाता है, विद्यार्थियों को इस चिह्न के उपयोग की समानताएँ
और अंतरों को समझने और पहचानने में मदद मिलेगी। इसके लिए निम्न गतिविधि करवाई
जा सकती है―
        एक बड़े कागज के टुकड़े पर, दीवार पर या ब्लैकबोर्ड पर एक बड़ा चित्र बनाएँ। चित्र
में समुद्र, समुद्र के ऊपर पर्वत, और समुद्र स्तर के नीचे का स्थान दर्शाया जाना चाहिए।
पत्रिकाओं से इकट्ठा किए गए या खुद बनाए हुए चित्रों का उपयोग करें। उपयुक्त वस्तुएँ
होंगी एक जहाज, एक ऑक्टोपस, एक व्हेल, एक नाव, एक कार, एक मछली, आदि।
विद्यार्थियों से पूछे कि वे चित्र पर वस्तुओं को कहाँ रखेंगे । उन्हें समुद्र स्तर के ऊपर’ या
‘समुद्र स्तर से नीचे’ कहने के लिए प्रोत्साहित करें । जब सारी वस्तुएँ चिपका दी जाएँ, तो
चर्चा कीजिए कि कोई हवाई जहाज कितना ऊँचा जा सकता है और ऑक्टोपस समुद्र के
नीचे कितना अंदर जा सकता है। समुद्र तल के नीच’ दर्शाने के लिए विद्यार्थियों को ऋण
चिह्न के बारे में बताएँ।
         संख्या रेखा, एक ज्यामितीय विचार है जिसे एक सरल रेखा में एक खास क्रम में
व्यवस्थित किए गए बिंदुओं के एकसमूह के रूप में कल्पित किया जा सकता है। एक
गणितीय रेखा की लंबाई अनंत होती है और साथ ही साथ परस्पर विरोधी दिशाओं में भी
अनंत होती है, लेकिन उसका मध्य हमेशा मूल, या शून्य पर होता है। एक संख्या रेखा
विद्यार्थियों को ऋणात्मक संख्याएँ समझने और उन्हें जोड़ना और घटाना आरंभ करने में मदद
कर सकती है। एक बार विद्यार्थी दीवार पर या अपनी डेस्कपर एक संख्या रेखा देखने के
आदी हो गए, तो वे अपने तर्क की जांच के लिए उस रेखा की कल्पना कर सकेंगे।
ph
संख्या रेखा पर एक बिंदु चुन लिया जाता है और उसे शून्य आवंटित कर दिया जाता
है ताकि शून्य के एक ओर धनात्मक और दूसरी ओर ऋणात्मक होता है। विद्यार्थियों को
विपरीत के मायनों में सोचने में मदद करने के लिए पारंपरिक रूप से एक क्षैतिज रेखा के
दाएँ हिस्से को धनात्मक संख्याओं को दर्शाने के लिए और बाएँ हिस्से को ऋणात्मक
संख्याओं को दर्शाने के लिए उपयोग किया जाता है।
(घ) परिमेय तथा अपरिमेय संख्याएँ―बच्चों को परिमेय संख्याएँ समझाने के लिए
संख्या रेखा पर चर्चा करें कि क्या किन्हीं दो संख्याओं के बीच अन्य संख्या को भी दर्शा
सकते हैं ? संख्या रेखा पर दो धनात्मक पूर्णाकों के बीच की संख्याओं का निर्धारण कैसे
किया जाय? जैसे यदि एक सेब आधा-आधा बांट कर खाया क्या इसे भी संख्या रेखा पर
दिखाया जा सकता है? क्या यह ऋणात्मक पूर्णांकों के साथ भी सम्भव है ?
          उन्हें यह बताएँ कि यही प्रक्रिया ऋणात्मक पूर्णांकों के बीच अपनाने पर ऋण चिह्न
के साथ भिन्नात्मक मान दिखाया जायेगा । परिमेय संख्याओं के उदाहरण देते हुए उन्हें दिखाएँ
कि 2 व 3 के बीच बराबर भाग करने पर किसी भाग को भिन्नात्मक रूप में दर्शाया जा सकता
है जिसमें 2 क पूर्णाक के रूप में आएगा तथा शेष भाग भिन्न के रूप में आयेंगे ।
         जिन परिमेय संख्याओं के हर समान नहीं है उन परिमेय संख्याओं को ज्ञात करने के
तरीके भी बच्चों को बताने चाहिए। इसे बच्चों को उदाहरण द्वारा स्पष्ट करना चाहिए ।
जैसे–मान लीजिए कि 1/2 और 6/3 दो परिमेय संख्याएँ दी गयी हैं जिनके बीच परिमेय
संख्या ज्ञात करनी है?
          सर्वप्रथम हम दोनों परिमेय संख्याओं के हर का ल.स. ज्ञात करेंगे जो कि 6 आता है
अर्थात 2 में 3 का गुणा करते हैं।
अतः      1×3/6, 6×2/6 = 3/6, 12/6
       में दोनों परिमेय संख्याओं का ल.स. 6 है। उसी प्रकार 3 और 12 के बीच 4, 5, 6,
7,8,9, 10 और 11 अपरिमेय संख्याएँ होगी।
     बच्चों को अपरिमेय संख्याओं के बारे में समझाने के लिए उन्हें बताएंगे कि कभी-कभी
यह परिमेय संख्या के सन्निकट होता है और एक अनुपात के रूप में लिखना संभव नहीं
होता, अर्थात p/q जहा q बराबर नहीं है 0 के। ये संख्याएँ अपरिमेय संख्या कहलाती है।
अपरिमेय संख्या अनवसानी और अनावर्ती दशमलव होती है। इसे p/q के रूप में नहीं लिखा
जा सकता । जहाँ p और q पूर्णांक हों तथा शून्य न हो । जैसे―√12 जैसी संख्याएँ परिमेय
होती हैं या अपरिमेय । तो आइए 2 का वर्गमूल ज्ञात करें ।
    जब बच्चे √2 का वर्गमूल निकालेंगे तो पायेंगे कि √2 = 1.4142135….. आता
है। बच्चे देखेंगे कि यह प्रक्रम न तो समाप्त ही हो रहा है और न ही दोहराया जा रहा है।
अतः √2 का दशमलव प्रसार अनवसानी और अनावर्ती है । इसी प्रकार √3, √5, √7
आदि भी अनवसानी और अनावर्ती दशमलव हैं। अतः ये सभी अपरिमेय संख्याएँ हैं। अर्थात
जो संख्याएँ पूर्ण वर्ग नहीं हैं, उन सबके वर्गमूल अपरिमेय संख्याएँ हैं, जो संख्याएँ पूर्ण घन
नहीं हैं उन सबके घनमूल भी अपरिमेय हैं। इस प्रकार अपरिमेय संख्याएँ अनन्त हैं।
(ङ) वास्तविक संख्याएँ―बच्चे अब इसका अर्थ समझ चुके होते हैं, क्योंकि परिमेय
और अपरिमेय संख्याओं से मिलाकर बनने वाली संख्या को वास्तविक संख्याएँ कहते हैं।
इस प्रकार प्रत्येक वास्तविक संख्या या तो परिमेय संख्या होती है और या फिर अपरिमेय
संख्या।
प्रश्न 2. बच्चों को वास्तविक संख्याओं पर विभिन्न संक्रियाएँ हल करना कैसे
सिखाएंगे? उदाहरण दें।
उत्तर―(क) जोड़ का शिक्षण―प्रारंभ में जोड़ सिखाने के लिए मूल वस्तुओं के
द्वारा एक अंक की संख्या का जोड़ बताना चाहिए। जोड़ को ‘+’ चिह्न से प्रदर्शित करते
हैं, इसे भी समझना अत्यंत आवश्यक है । इसके लिए शिक्षक पहले एक ही प्रकार की कुछ
वस्तुएँ ले तथा बच्चों से गिनवाएँ―
शिक्षक― आपके पास क्या है ?
बच्चे―मेरे पास पेन है।
शिक्षक―आपके पास कितने पेन हैं?
बच्चे― मेरे पास 7 पेन हैं।
शिक्षक–अब यदि आपको 3 और पेन दे दिये जायें तो आपके पास अब कुल कितने
पेन होंगे?
बच्चे―गिनकर बताएंगे कि मेरे पास 10 पेन हो गए।
      जोड़ की संक्रियाएँ को श्यामपट्ट पर 7 +3=10 के रूप में लिखकर बताया जाए तथा
यह भी बताया जाए कि 7 में 3 जोड़ने के लिए 7 से आगे 3 गिनेंगे । एक अंक की संख्या
के जोड़ के उपरांत दो अंकों वाली ऐसी संख्याओं के जोड़ का अभ्यास करवाया जाए जिसमें
हासिल न आता हो।
उदा―हमें 25 में 12 जोड़ना है। इन्हें जोड़ने के लिए हम संख्याओं को ऊपर नीचे
इस प्रकार लिखेंगे कि इकाई के नीचे इकाई के अंक तथा दहाई के नीचे दहाई का अंक
आये। अब इकाई तथा दहाइयों को जोड़ेंगे―
दहाई              इकाई
2                     5
+1                +2
____            ____
3                   7
यदि जोड़ने के प्रश्न में सैकड़े व हजार भी हों तो हम इकाई के नीचे इकाई, दहाई
के नीचे दहाई, सैकड़े के नीचे सैकड़ा तथा हजार के नीचे हजार लिखकर जोड़ेंगे। बिना
हासिल के जोड़ का पर्याप्त अभ्यास हो जाने के उपरान्त हासिल सहित जोड़ सिखया जावे ।
(ख) घटाव का शिक्षण―घटाना, जोड़ की विपरीत क्रिया है या जोड़ने की संक्रिया
का प्रतिलोम है। घटाने की क्रिया में एक ही प्रकार की वस्तुओं को अलग-अलग करते हैं।
प्रारंभ में घटाना स्थूल (मूल) वस्तुओं के माध्यम से करवाया जाए । प्रारंभ में इकाई अंक
के घटाने का पर्याप्त अभ्यास करवाया जाए । घटाने के चिह्न (“_”) की भी समझ विकसित
की जाए । उदाहरण—किसी एक विद्यार्थी को 8 किताबें दें। अब उसे 4 किताबें दूसरे विद्यार्थी
को देने को कहें तथा प्रश्न करें―
प्रश्न आपके पास कितनी किताबें थी?
उत्तर―मेरे पास 8 किताबें थी।
प्रश्न आपने कितनी किताबें दिए?
उत्तर―मैंने 4 किताबें दिए।
प्रश्न आपके पास कितनी शेष किताबें बची?
उत्तर― मेरे पास 4 किताबें शेष बची।
      इस क्रिया को श्यामपट्ट पर भी बताया जाए-8-434 किताबें, एक अंक की संख्या
घटाने की पर्याप्त अभ्यास के बाद दो अंक की संख्या का बिना हासिल का घटाना उसके
बाद हासिल का घटाना करवाया जाए।
(ग) गुणा का शिक्षण―एक ही संख्या को बार-बार जोड़ने की संक्षिप्त क्रिया को
गुणा कहते हैं । गुणा को ‘x’ चिह्न से प्रदर्शित करते हैं अतः जोड़ने की क्रिया को आधार
बनाते हुए गुणा का प्रारंभिक ज्ञान दिया जाए । उदाहरण—5+5+5+5+5 = 25
              यहाँ 5 को 5 बार जोड़ने पर 25 प्राप्त होता है, इसे गुणा के रूप में 5 x 5 = 25
लिखेंगे। जिस संख्या को जोड़ा गया है उसे गुणज जितनी बार जोड़ा गया है उसे गुणक तथा
प्राप्त संख्या को गुणनफल कहते हैं । गुणा के प्रश्नों को हल करते समय विद्यार्थी को बताया
जाए कि जिस अंक से गुणा करते हैं गुणनफल ठीक उसी अंक से लिखना आरंभ करते हैं
तथा उसके पूर्व के स्थान पर शून्य लिखते है। जैसे—इकाई के अंक का गुणनफल इकाई
के स्थान से, दहाई के अंक का गुणनफल दहाई के स्थान से लिखेंगे । इकाई के स्थान पर
शून्य लिखेंगे, सैकड़े के अंक का गुणनफल सैकड़े के स्थान से लिखना प्रारंभ करेंगे एवं
इकाई तथा दहाई के स्थान पर शून्य लिखेंगे―
           सै.         द.           इ.
           1          2            1
×         1          2            4
_________________________
            4          8            4
      2    4          2
1    2    1
__________________________
1     5     0          0          4
इस प्रकार 121 में 124 को गुणा करने पर 15004 प्राप्त होता है।
(घ) भाग का शिक्षण―जिस प्रकार बार-बार जोड़ने की क्रिया का संक्षिप्त रूप गुणा
है, उसी प्रकार बार-बार घटाने की क्रिया का संक्षिप्त रूप घटाना है। भाग को ‘+’ चिह्न
से प्रदर्शित करते हैं। किसी संख्या में किसी अन्य संख्या का बार-बार घटाने की प्रक्रिया जब
तक कि शेषफल शून्य न आ जाए, भाग कहलाता है।
25–5 = 20
20–5 = 15
15–5 = 10
10–5 = 5
5–5= 0
25 में 5 को पाँच बार घटाने पर शेषफल शून्य प्राप्त होगा, इसे भाग के रूप में 25
÷ 5 = 5 लिखते हैं। संख्या 25 को भाज्य,5 को भाजक,5 को भागफल तथा 0 को शेषफल
है। विद्यार्थी को पहले एक अंक की संख्या से भाग को समझाया जाए बाद में दो या ती
अंकों का भाग करवाया जाए । भाग की क्रिया निम्नानुसार समझाइये―
8) 848 (106
  –8
_____
  04
  –0
_____
    48
– 48
_________
00 शेषफल
          शेषफल हमेशा भाजक से छोटा होता है। भाग की क्रिया की जांच के लिए भाजक
और भागफल का गुणा करके गुणनफल में शेषफल जोड़ने पर यदि प्राप्त योगफल भाज्य
के बराबर है तो उत्तर सही होता है। भाग की क्रिया में यदि नया अंक उतारने पर प्राप्त संख्या
भाजक से छोटी है तो भागफल में शून्य लिखकर भाज्य का अगला अंक उतार लेते है।
भाज्य = भाजक x भागफल x शेषफल
प्रश्न 3.प्राकृत संख्या से वास्तविक संख्या तक के विकास की अवधारणा स्पष्ट करें।
उत्तर―1. प्राकृतिक संख्या (Natural Number)-वैसी संख्या जिनका प्रयोग
चीजों को गिनने के लिए किया जाता है, प्राकृतिक संख्यायें कहलाती है अथवा वैसी संख्या
जो 1 से शुरू होती है प्राकृतिक संख्या कहलाती है।
Ex.1,2,4,5,6,7,8,9, 10….. ये सब प्राकृतिक संख्यों के उदाहरण हैं।
2. पूर्ण संख्या (Whole Number)―वैसी संख्याएँ जो 0 से शुरू होती है और अनंत
तक जाती है, पूर्ण संख्याएँ कहलाती है।
Ex.0, 1,2,3,4, 5, 6,…… यह पूर्ण संख्याओं के उदाहरण है, प्रत्येक प्राकृतिक
संख्या एक पूर्ण संख्या होती है, लेकिन प्रत्येक पूर्ण संख्या एक प्राकृतिक संख्या नहीं होती,
0 प्राकृतिक संख्या नहीं है, यह एक पूर्ण संख्या है।
3. धनात्मक संख्या (positive numbers)―वैसी संख्या जिनका चिह्न धनात्मक हो
उसे घनात्मक संख्या कहते हैं । घनात्मक संख्याओं के पहले किसी भी चिह्न का प्रयोग नहीं
होता।
Ex. 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7……2.3, 4.5……etc धनात्मक संख्याओं के उदाहरण है।
4. ऋणात्मक संख्या (Negative Number)―वैसी संख्याएँ जिसका चिह्न ऋणात्मक
हो ऋणात्मक संख्याएँ कहलाती है। ऋणात्मक संख्याओं के पहले हमेशा ऋण “_” का
चिह्न लगा होता है।
Ex.-2,-4,-6,-12,-14,…. इत्यादि ऋणात्मक संख्याओं के उदाहरण है।
5. पूर्णांक (Integers)―वैसी संख्याओं का समूह जो धनात्मक या ऋणात्मक हो
पूर्णांक संख्याएँ कहलाती है । 0 एक धनात्मक पूर्णांक है। पूर्णांक मुख्यतः धनात्मक या
ऋणात्मक होते है । दशमलव संख्यायें पूर्णांक की श्रेणी में नहीं आते ।
Ex.-3,-2,-1, 0, 1, 2, 3…. इत्यादि संख्यायें पूर्णांक संख्याओं के उदाहरण है
घनात्मक पूर्णांक का समूह = {1,2,3,4,5,6,7,…} ये सारे धनात्मक पूर्णांकों के समूह
है ऋणात्मक पूर्णांकों का समूह = {-1,2,3,4,-5,-6} ये ऋणात्मक पुर्णांकों के
समूह है।
6. परिमेय संख्या (Rational Number)-वैसी संख्याएँ जो P/q के रूप में हो लेकिन
 q शून्य के बराबर न हो, परिमेय संख्याएँ कहलाती है।
Ex. 2/3, 4/5, 6/7,9/2 इत्यादि परिमेय संख्याओं के उदाहरण है। परिमेय संख्याएँ
धनात्मक भी हो सकती है और ऋणात्मक भी। –2/3,–4/5 ऋणात्मक परिमेय संख्या है
और +1/2,3/4, 6/7 धनात्मक परिमेय संख्या है।
7.अपरिमेय संख्या (Irrational Number)―वैसी संख्या जिसको पूर्णतः p/q के
रूप में नहीं लिखा जा सकता अपरिमेय संख्या कहलाता है । उदाहरण―√5, √6, √7,
etc अपरिमेय संख्याओं के उदाहरण है।
8. वास्तविक संख्या (Real Number)―वैसी संख्याएँ जिसका वर्ग हमेशा शून्य या
शून्य से बड़ा हो वास्तविक संख्यायें कहलाती है। अतः माना की x कोई Real Number
है, तो x*x≥0, Ex. 3, 2.5, 4.6, 7, √8 ये सारे वास्तविक संख्याओं के उदाहरण है।
प्रश्न 4. दो परिमेय संख्याओं के बीच की परिमेय संख्याएँ कैसे लिखेंगे? उदाहरण दें।
उत्तर―उदाहरण—परिमेय संख्याओं 3 तथा 5 के बीच 3 परिमेय संख्या।
दी गई परिमेय संख्याएँ हैं, 3 तथा 5
चरण―1 इन दी गई संख्याओं को p/q के रूप में लिखें।
3 = 3/1 तथा 5 = 5/1
चरण―2 दी गई संख्याओं के बीच जितने परिमेय संख्या निकालनी है उसमें 1 जोड़ें।
चूँकि दी गई परिमेय संख्याओं के बीच 3 परिमेय संख्या निकालना है, अत: 3+1 = 4
    चरण―3 दी गई- परिमेय संख्याओं के अंश तथा हर को 4 से गुणा करें।
3/1 = 3×4/1×4 = 12/4 तथा, 5/1 = 5×4/1×4 = 20/4
चरण―4 अब प्राप्त परिमेय संख्याओं के बीच (प्रश्न में ज्ञान किया जाने वाला)
परिमेय संख्याओं को निकालें।
स्पष्टतः 12/4 तथा 20/4 के बीच परिमेय संख्याएँ हैं―
13/4, 14/4, 15/4, 16/4, 17/4, 18/4, तथा 19/4
इनमें से कोई भी तीन परिमेय संख्या लिया जा सकता है। उदाहरणार्थ, 13/4, 14/4,
तथा 15/4
प्रश्न 5. संख्याओं का संख्या रेखा पर निरूपण किस प्रकार करेंगे?
                                           अथवा,
बच्चों को संख्याओं का संख्या रेखा पर निरूपण करना किस प्रकार सिखाएंगे?
उत्तर―संख्या रेखा या वास्तविक रेखा एक सरल रेखा है जिसका उपयोग वास्तविक
संख्याओं (धन पूर्णांक, ऋण पूर्णांक, परिमेय संख्याएँ, अपरिमेय संख्याएँ आदि) को प्रदर्शित
करने के लिये किया जाता है। इस रेखा पर वास्तविक संख्याएँ एक बिन्दु के रूप में दिखायी
जाती हैं । एक सरल रेखा में एक खास क्रम में व्यवस्थित किए गए बिंदुओं के एक समूह
के रूप में कल्पित किया जा सकता है। एक गणितीय रेखा की लंबाई अनंत होती है और
साथ ही साथ परस्पर विरोधी दिशाओं में भी अनंत होती है, लेकिन उसका मध्य हमेशा मूल,
या शून्य पर होता है। एक संख्या रेखा पर वास्तविक, परिमेय तथा अपरिमेय, ऋणात्मक
तथा धनात्मक संख्याएँ दर्शाई जा सकती हैं।
         परिमेय संख्याओं का संख्या रेखा पर निरूपण― संख्या रेखा पर शून्य के दायीं और
धनात्मक पूर्णांक तथा शून्य के बायीं ओर ऋणात्मक पूर्णाक होता है।
ph
प्रश्न 6. बीजगणित के सीखने में बच्चों द्वारा की जाने वाली सामान्य गलतियाँ
व उनके सोचने के तरीके का उल्लेख करें।
                                             अथवा,
बीजगणित सीखने में बच्चों की सामान्य गलतियों एवं उन्हें दैनिक जीवन के
सामान्यीकरण में बीजगणित में आने वाली दिक्कतों और उनके हल के बारे में चर्चा
करें।
उत्तर―बीजगणित ऐसा विषय है जहाँ कई विद्यार्थी यह कहने लगते हैं कि गणित कठिन
है। इसके कई कारण हो सकते हैं युवा विद्यार्थियों को चीजें सीधी और ठोस पसंद आती
हैं, जबकि बीजगणित चर और मानकों को दर्शाने वाले अमूर्त चिह्नों के बारे में होता है।
हालांकि कई कठिनाइयाँ इसलिए होती हैं, क्योंकि विद्यार्थी जिस तरह संख्याओं के साथ कार्य
करते हैं और जिस तरह वे बीजगणित में कार्य करते हैं, उनमें अंतरों को स्पष्ट नहीं किया
जाता है और इसलिए विद्यार्थी शुरूआत में ही दुविधा में पड़ जाते हैं। उनकी द्वारा सीखने
के दौरान कुछ सामान्य गलतियाँ हैं―
(क) अंकगणित में, बराबर का चिह्न अक्सर कोई क्रिया करने । उत्तर ढूँढने के एक
आदेश के रूप में देखा जाता है। इसलिए, जब कोई विद्यार्थी किसी समीकरण में बराबर
का चिह्न देखता है, तो वह उससे पहले दी गई संक्रिया को पूरा करने की सोच सकता है।
कई विद्यार्थियों के लिए, बराबर चिह्न का अर्थ है और उत्तर है, जा कि बीजगणित करते
समय सहायक नहीं होता है।
(ख) बीजगणित एक सामान्यीकृत संबंध को व्यक्त करने पर केन्द्रित रहता है, जबकि
अधिकांश गणितीय सबक उत्तर ढूँढने पर केंद्रित रहते हैं । बीजगणितीय रूप से विचार करना
और स्कूल में बीजगणित के उपयोग में पैटर्न को पहचानना और उनका विश्लेषण करना,
चिह्नों का उपयोग और सामान्यीकरण विकसित करना शामिल है। अंकगणित की भाषा’
उत्तर पाने पर केंद्रित है, जबकि ‘बीजगणित की भाषा’ संबंधों पर केंद्रित है। उदाहरण के
लिए ‘a+0= a’ उस सामान्यीकरण का एक प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व हैं जो कि जब किसी
संख्या में शून्य जोड़ा जाता है, तो वह समान रहती है।
(ग) अनुमान लगाना (सिद्धांत) और बाद में तर्क देना कि वे सच हैं, कभी-कभी सच
हैं या गलत हैं, सामान्यीकरण के विचारों को विकसित करने का हिस्सा है जिन पर
बीजगणितीय सोच निर्भर करती है। जैसे—जब किसी संख्या में शून्य जोड़ा जाता है या उसमें
से घटाया जाता है तो क्या होता है, इस बारे में कक्षा कथन या अनुमान विकसित कर सकती
है। विद्यार्थी अक्सर अपने विचारों को जाँचने के लिए कई अलग-अलग संख्याएँ आजमा
कर देखते हैं। विद्यार्थियों को यह विचार करने के लिए प्रोत्साहित करना महत्वपूर्ण है कि
उनके अनुमान (या सिद्धांत) सारी संख्याओं के लिए काम करते हैं या नहीं। इस तरह से
विद्यार्थी संख्या के गुणों के बारे में बीजगणितीय रूप से सामान्यीकृत करना आरंभ कर देंगे।
(घ) प्रायः विद्यार्थियों को चर के किसी दिए हुए मान के संगत बहुपद का मान ज्ञात
करने में परेशानी होती है। यह परेशानी मुख्यतः इसलिए होती है कि उन्हें कुछ बातों की
समझ नहीं होती।
           उदाहरण: 32का अर्थ 3×x²है। हम अपने विद्यार्थियों को बताते हैं कि किसी बहुपद
का मान प्राप्त करने के लिए हम बहुपद में चर का मान प्रतिस्थापित करते हैं । इसलिए जब
x=2 तो 3 ×x² का मान ज्ञात करने के लिए विद्यार्थी बिना सोचे समझे इसे 3 x 2² लिखने
की बजाय (32)² लिख देते हैं। इसी प्रकार x = 3 के लिए, 2x² + 3x-1का मान ज्ञात
करने के लिए विद्यार्थी बिना सोच-समझे (2×3²)+ (3×3)–1 के स्थान पर 23²+
33–1 लिख देते हैं। इसलिए यह अत्यन्त आवश्यक है कि जब हम बहुपदों का परिचय
कराते हैं तो हम विद्यार्थियों को यह अवश्य समझायें कि यह बहुपद (2 ×x×x×x)+
3x–1 है। विभिन्न बहुपदों के लिए विद्यार्थियों को इसका अभ्यास कराने से वे (विद्यार्थी)
चर के किसी दिए हुए मान के लिए बहुपद के मान का सही परिकलन करने में सक्षम होंगे।
इसलिए, शिक्षक को बहुपद के शून्यकों की चर्चा करने से पहले यह अवश्य जान लेना
चाहिए कि विद्यार्थीगण चर के किसी दिए हुए मान के लिए बहुपद के मान का सही परिकलन
कर सकते हैं अथवा नहीं।
प्रश्न 7. बीजगणित सिखाने के लिए रोचक कक्षा प्रक्रिया/गतिविधियों का वर्णन करें।
उत्तर―गतिविधि 1. यह गतिविधि विद्यार्थियों को संख्याओं के साथ खेलने के लिए
और ऐसी अभिव्यक्ति बनाने के लिए प्रोत्साहित करती है जो उन्हें बराबर के चिह्न को ‘उत्तर
ढूँढें’ की बजाय ‘के समान है’ के अर्थ में देखने के लिए प्रेरित करती है।
   यह खेल एक दूसरे के साथ स्पर्धा करने वाली दो टीमों के समूह के द्वारा खेला जाता
है। दो टीमों के हर समूह के लिए निम्न की आवश्यकता होगी―
      1 से 9 संख्याओं में से हरेक के लिए दो नंबर कार्ड जोड़ने (+), घटाने (–), गुणा (×)
और भाग (÷) को संक्रिया कार्ड – प्रत्येक के कई कार्ड बराबर के चिह्न (=) के लिए एक
कार्ड । कागज के एक बड़े टुकड़े पर वह संख्या लिख कर संख्या कार्ड बनाया जा सकता
है। विद्यार्थियों को घूमने के लिए कुछ जगह की आवश्यकता पड़ेगी।
      टीम A उसके किसी भी दो सदस्यों और जोड़ने या घटाने के परिचालन का उपयोग करके
एक गणितीय अभिव्यक्ति बनाती है। उदाहरण के लिए―
9:8
7–4
       तब प्रोफेसर बराबर (2) आते हैं और टीम A की अभिव्यक्ति के किसी भी सिरे पर खड़े
हो जाते हैं। फिर टीम B अपने सदस्यों की किसी भी संख्या को लेकर और बची हुई
संक्रियाओं में से किसी एक को लेकर एक और अभिव्यक्ति बनाती है, जो टीम A द्वारा बनाई
गई अभिव्यक्ति के ‘समान मूल्य’ है। टीम B के सदस्य प्रोफेसर बराबर के दूसरी ओर खड़े
होते हैं।
      उदाहरण के लिए ऊपर टीम A द्वारा बनाई गई दो अभिव्यक्तियों के सापेक्ष टीम B निम्न
बना सकती है―
‘9+ 8 = 19-2’ or ‘9+ 8 = 21 – 4’, आदि।
‘7–4 = 6÷2′ or’7–4=9–6’, आदि ।
यदि टीम Bएक ऐसी अभिव्यक्ति बनाने में सफल रहती है जो कि टीम A द्वारा बनाई
गई अभिव्यक्ति के बराबर हो, तो उसे उसकी अभिव्यक्ति बनाने में उपयोग की गई सबसे
बड़ी संख्या के बराबर पॉइंट मिलेंगे।
      यदि टीम Bएक ऐसी अभिव्यक्ति बनाने में विफल रहती है जो कि टीम A द्वारा बनाई
गई अभिव्यक्ति के बराबर हो, तो टीम A को उसकी अभिव्यक्ति बनाने में उपयोग की गई
सबसे बड़ी संख्या के बराबर पॉइंट मिलेंगे।
      अगली चाल के लिए टीम B पहले जाएगी। दोनों टीमों को समान संख्या में चालों की
अनुमति है।
       गतिविधि 2. इसमें है सामान्यीकरण, जिसमें विद्यार्थियों को यह विचार करने के लिए
प्रोत्साहित किया जाता है कि उनका अनुमान (या सिद्धांत) सारी संख्याओं के लिए काम
करता है या नहीं। इसका अर्थ यह है कि वे संख्या गुणों के बारे में बीजगणितीय रूप से
सामान्यीकरण करना आरंभ करेंगे । अनुमान लगाना (सिद्धांत) और बाद में तर्क देना कि
वे सच हैं, कभी-कभी सच हैं या गलत हैं, सामान्यीकरण के विचारों को विकसित करने
का हिस्सा है जिन पर बीजगणितीय सोच निर्भर करती है। विद्यार्थी अक्सर अपने विचारों
को जाँचने के लिए कई अलग-अलग संख्याएँ आजमा कर देखते हैं। विद्यार्थियों को यह
विचार करने के लिए प्रोत्साहित करना महत्वपूर्ण है कि उनके अनुमान (या सिद्धांत) सारी
संख्याओं के लिए काम करते हैं या नहीं। इस तरह से विद्यार्थी संख्या के गुणों के बारे में
बीजगणितीय रूप से सामान्यीकृत करना आरंभ कर देंगे।
          किसी कक्षा द्वारा विकसित किए गए नियम या अनुमान प्रदर्शित किए जा सकते हैं
और/या जिस विद्यार्थी की अवधारणा थी उसके नाम से उस नियम का नाम रखा जा सकता
है, उदाहरण के लिए ‘सुनील का नियम’ । यहाँ विद्यार्थियों द्वारा जोड़ने के बारे में विकसित
किए गए कुछ अनुमानों के उदाहरण दिए गए हैं―
         बालक-1 का नियम― ‘जब किसी संख्या में शून्य जोड़ते हैं तो इससे वह संख्या नहीं
बदलती जिससे आपने आरंभ किया था।’ (a+0=a)
        बालक-2 का नियम–’जब किसी संख्या में से शून्य घटाते हैं तो इससे वह संख्या नहीं
बदलती जिससे आपने आरंभ किया था।’ (a–0=a)
बालक-3 का नियम―’यदि जिस संख्या से आरंभ किया था उसमें से वही संख्या
निकाल लेते हैं तो उत्तर 0 आता है।’ (a–a=0)
     बालक-4 का नियम―’यदि संख्या वाक्य के प्रत्येक ओर से संख्याओं की अदलाबदली
कर दी जाए तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता । यदि संख्याएँ समान हैं, तो संख्या वाक्य तर
भी संतुलित होगा।’ (a + b = b + a)
      बालक-5 का नियम–’जब दो संख्याएँ जोड़ते हैं, तो जोड़ी जाने वाली संख्याओं का
क्रम बदल सकते हैं और तब भी वहीं संख्या प्राप्त होगी।’ (a+b= b+a)
      कथनों के बारे में अनुमान लगाने से चिह्नों का उपयोग करके सामान्यीकरण पर जाना
एक बहुत बड़ी छलांग हो सकती है, लेकिन यदि विद्यार्थी गतिविधि 1 और 2 में दिए गए
खेलों पर काम करते आ रहे हैं, तो उन्होंने शायद पहले ही प्रतीकों का उपयोग आरंभ का
दिया होगा।
          उदाहरण के लिए, उन्हें इस तरह के प्रश्न समझ आ जाते हैं—यदि आप किसी संख्या
से 2 लेते हैं और उसमें पाँच जोड़ देते हैं, तो उत्तर हमेशा तीन अधिक ही होगा’ । इस सन्दर्भ
में किसी संख्या को दिखाने के सुविधाजनक तरीके के रूप में * या n का उपयोग पूरी तरह
से स्वाभाविक प्रतीत हो सकता है।
            ऐसी अन्य गतिविधियों एवं कक्षा पर क्रियाओं से बीजगणित के सीखने को आसान
बनाया जा सकता है।
प्रश्न 8.”बीजगणित को व्यापीकृत” माना गया है। इस पक्ष में तर्क दीजिए।
                                     अथवा,
बीजगणित में व्यापीकरण का क्या महत्व है ?
उत्तर–व्यापीकरण बीजगणित का ही नहीं बल्कि पूरे गणित की समझ बनाने का एक
जरूरी हिस्सा है। हम अंकगणित में संख्याओं एवं उनकी संक्रियाओं जैसे—जोड़, घटाव,
गुणा, भाग पर काम करते हैं। अंकों के विभिन्न संबंधों तथा पैटर्न से भी परिचित होते हैं।
इसी संबंध को आगे बढ़ाते हुए हम उनसे जुड़े नियमों तथा संबंधों की सामान्य व्याख्या करना
बीजगणित में सीखते हैं। इसमें हमारी जीवन से जुड़े गणितीय सवालों को शब्दों तथा प्रतीकों
के उपयोग से हल किया जाता है। इसकी मदद से हम समीकरणों को हल करना, सामान्य
सूत्र बनाना तथा उसका इस्तेमाल करना सीखते हैं। जैसे―
             वर्ग की एक भुजा यदि 1 सेमी. लम्बी है तो उसके चारों भुजाओं की लम्बाई अर्थात
परिमाप (1+1+1+1) सेमी. यानि 4 सेमी. हुआ । हम विभिन्न लम्बाई वाले वर्गों का इस्तेमाल
कर उनके परिमाप को तालिका द्वारा प्रस्तुत कर सकते हैं।
वर्ग की लम्बाई       1ई.     2 ई.        3 ई.         5ई.
वर्ग का परिमाप     4ई.      8ई.       12 ई.      20 ई.
इस प्रकार प्राप्त परिणामों से यदि हम वर्ग के परिमाप का व्यापक सूत्र बनाना चाहें तो
वह वर्ग की भुजा का 4 गुण होगा । अर्थात 4 x भुजा ।
       इस प्रकार दो प्राकृत संख्याओं का जोड़ सदैव उन दोनों संख्याओं से बड़ होता है । इस
नियम का व्यापीकरण शब्दों तथा प्रतीकों का इस्तेमाल करते हुए कुछ इस प्रकार किया जा
सकता है―
5+ 17 = 22
32 + 26 = 58
94 + 103 = 197
         इस प्रकार बीजगणित में व्यापीकरण तथा संबंधों से विशिष्टीकरण करने की क्षमता
विकसित होती है । इसकी जरूरत हमें बार-बार पड़ती है। गणितीय भाषा में “व्यापक” का
इस्तेमाल सभी स्थितियों के लिए सत्य होता है। जैसे यदि हम किसी पूर्णांक को 5 का गुणज
होने का व्यापक नियम बनाना चाहें तो यह जिस संख्या का इकाई अंक 5 हो वह 5 का
गुणज होगा। यह हर परिस्थिति में सत्य है। इस प्रकार व्यापीकरण का बीजगणित में बहुत
अधिक महत्व है।
प्रश्न 9. बच्चों को बीजगणित सिखाने के किन्हीं दो तर्कों का उदाहरण सहित वर्णन करें।
उत्तर―तर्क 1. बीजगणित सिखाने से बच्चे किसी समूह के सामान्य गुणों को ढूंढना
सीख जाते हैं। वे गणित तथा अन्य क्षेत्रों में व्यापक पैटर्न और संबंध खोजना सीखते हैं।
जैसे―
तिकोनों की संख्या        1      2       3      4      5
तीलियों की संख्या        3      6       9      12    15
     बच्चे पैटर्न देख कर समझ सकते हैं कि तीलियों की संख्या से तिकोनों की संख्या का
क्या संबंध है। यदि वे तिकोनों को x मानें तो तीलियों की संख्या 3x होगी।
         तर्क 2. बीजगणित सीखने से बच्चों में अमूर्तता से निपटने की क्षमता विकसित होती
है। वे गणित के शाब्दिक सवालों को बीजीय व्यंजक तथा समीकरण बना कर हल कर सकते
हैं। जैसे―
          राधा माँ की आयु उसकी आयु की चार गुनी । यदि राधा की आयु 9 वर्ष है तो मां की
आयु कितनी है?
            बच्चे ऐसे सवालों को बीजीय व्यंजक के रूप में लिख कर उन्हें हल कर सकते हैं।
वे मां की आयु को प्रतीक के रूप में x सोच सकते हैं।
       चूँकि राधा की आयु 9 वर्ष है तो मां की आयु 4x अर्थात 4×9=36 वर्ष ।
इस प्रकार बच्चों को बीजगणित सिखाने से उन्हें अपनी सोच तथा नियमों व संबंधों को
व्यक्त करने में ज्यादा तार्किक, स्पष्ट व सही होने में मदद मिलती है।
प्रश्न 10. बीजगणित में गणितीय संबंध फलन एवं समीकरण को उदाहरण द्वारा
स्पष्ट करें। बच्चों को बीज गणितीय समीकरण हल करना कैसे सिखाएंगे?
उत्तर―संबंध फलन-गणित में जब कोई राशि का मान किसी एक या एकाधिक
राशियों के मान पर निर्भर करता है तो इस संकल्पना को व्यक्त करने के लिये फलन
(function) शब्द का प्रयोग किया जाता है। उदाहरण के लिये किसी ऋण पर चक्रवृद्धि
ब्याज की राशि मूलधन, समय एवं ब्याज की दर पर निर्भर करती है, इसलिये गणित की
भाषा में कह सकते हैं कि चक्रवृद्धि ब्याज, मूलधन, ब्याज की दर तथा समय का फलन
है। स्पष्ट है कि किसी फलन के साथ दो प्रकार की राशियाँ सम्बन्धित होती हैं। इसे एक
उदाहरण से समझ सकते हैं। जैसे—मान लीजिए कि A, किसी स्कूल की कक्षा XII के
विद्यार्थियों का समुच्चय है तथा B उसी स्कूल की कक्षा XI के विद्यार्थियों का समुच्चय है।
अब समुच्चय A से समुच्चय B तक के संबंध के कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं―
(i) {(a,b)εA× Ba, b का भाई है},
(ii) {(a, b)εA× Ba, b की बहन है),
(iii) {(a, b) εA× B:a की आयु b की आयु से अधिक है}, इत्यादि ।
उसी प्रकार मान लीजिए कि Aकिसी बालकों के स्कूल के सभी विद्यार्थियों का समुच्चय
है। दर्शाइए कि R= {(a, b): a, b की बहन है}
         हल― प्रश्नानुसार, क्योंकि स्कूल बालकों का है, अत: स्कूल का कोई भी विद्यार्थी,
स्कूल के किसी भी विद्यार्थी की बहन नहीं हो सकती है। अत: R=, जिससे प्रदर्शित होता
है कि R रिक्त संबंध है।
    गणितीय समीकरण―बीजगणित में समीकरण (equation) प्रतीकों की सहायता से
व्यक्त किया गया एक गणितीय कथन है जो दो वस्तुओं को समान अथवा तुल्य बताता है।
समीकरण प्राय: दो या दो से अधिक व्यंजकों (expressions) की समानता को दर्शाने के
लिये प्रयुक्त होते हैं। किसी समीकरण में एक या एक से अधिक चर राशि (यां)
(variables) होती हैं।
        चर राशि के जिस मान के लिये समीकरण के दोनों पक्ष बराबर हो जाते हैं, वह/वे मान
समीकरण का हल या समीकरण का मूल (roots of the equation) कहलाता/कहलाते है।
एक समीकरण चर पर एक प्रतिबंध होता है। यह चर के केवल एक निश्चित मान के लिए
ही संतुष्ट होती है। उदाहरणार्थ समीकरण 2n = 10 चर n के केवल मान 5 से ही संतुष्ट
होती है। इसी प्रकार समीकरण :x–3 = 11 चर x के केवल मान 14 से ही संतुष्ट होती है।
       किसी समीकरण को हल करने के लिए बच्चों को बताएं कि हम उस समीकरण के
दोनों पक्षों में एक ही गणितीय संक्रिया करते हैं, जिससे वाम पक्ष तथा दक्षिण पक्ष के मध्य
संतुलन भंग न हो। किसी समीकरण में पदों को समीकरण के एक पक्ष से दूसरे पक्ष में
स्थानांतरित किया जा सकता है। एक उदाहरण देकर उन्हें बताएं कि एक चर वाले रैखिक
समीकरणों को हल करने में नीचे दिए गए अनुसार संक्रियाएँ करते हैं जिसे समीकरण का
मान नहीं बदलता है।
–समीकरण के दोनों पक्षों में एक ही संख्या जोड़ना ।
-समीकरण के दोनों पक्षों में से एक ही संख्या घटाना ।
-समीकरण के दोनों पक्षों को एक ही शून्येत्तर संख्या से गुणा करना ।
-समीकरण के दोनों पक्षों को एक ही शून्येत्तर संख्या से भाग करना ।
समीकरणों को हल करने में हम इनमें से एक या अधिक नियमों का प्रयोग करते हैं।
जैसे-2x+8=x+13 को हल कीजिये।
हल: समीकरण को हल करने में हम दो बातों का ध्यान रखते हैं चर राशि बायीं
ओर रहे अचर राशि दायीं ओर रहे।
2x+8-8=x+13-8(बायीं ओर से 8 हटाने के लिए दोनों पक्षों में से 8 घटाना)
2x=x+5
2x-x=x+5-x (दायीं ओर से x हटाने के लिए दोनों पक्षों में से x घटाना)
x=5 उत्तर
इसके बाद धीरे-धीरे जटिल समीकरणों की ओर बढ़ा जा सकता है। जैसे―
राजू के पिता की आयु राजू की आयु के तीन गुने से 5 वर्ष अधिक है। राजू के पिता
की आयु 44 वर्ष है। राजू की आयु ज्ञात करने के लिए एक समीकरण बनाइए (स्थापित
कीजिए)।
     हल, हमें राजू की आयु ज्ञात नहीं है। आइए इसे y वर्ष मान लें । राजू की आयु का
तीन गुना 3y वर्ष है। राजू के पिता की आयु 3y वर्ष से 5 वर्ष अधिक है। अर्थात् राजू के
पिता की आयु (3y+5) वर्ष है। यह भी दिया है कि राजू के पिता की आयु 44 वर्ष है ।
अत: 3y+5=3=44
यह चर y में एक समीकरण है। इसे हल करने पर राजू की आयु ज्ञात हो जाएगी।
प्रश्न 11. बीजगणित में बीजीय व्यंजक, बहुपद और उनके शून्यक की अवधारणा
स्पष्ट करें। इसे बच्चों को कैसे सिखाएंगे? उदहारण दें।
उत्तर―बीजीय व्यंजक और बहुपद-गणित की एक अन्य शाखा जिसमें अक्षरों
(letters) का प्रयोग करके हम नियमों, सूत्रों को व्यापक रूप में व्यक्त करते हैं उसे
बीजगणित कहते है। कई अज्ञात राशियों के स्थान पर अक्षर का प्रयोग किया जाता है, जिसे
हम चर कहते हैं। एक चर के विभिन्न मान होते हैं जबकि अचर का एक निश्चित मान
होता है। इन चरों व अचरों को संयोजित करके बीजीय व्यंजक बनाए जाते हैं (बीजीय
व्यंजक एक संख्या या संख्याओं के पद-समूह है, जिनमें मूलभूत संक्रियाओं का प्रयोग किया
गया हो) । व्यंजक के इस प्रकार के भाग जो पहले अलग से बनाए जाते हैं और फिर जोड़
दिए जाते हैं व्यंजक के पद कहलाते हैं । व्यंजक बनाने के लिए पदों को जोड़ा जाता है।
जिन पदों के बीजीय गुणनखण्ड एक जैसे हों, समान पद कहलाते हैं । जिन पदों के बीजीय
गुणनखण्ड भिन्न-भिन्न हों असमान पद कहलाते हैं । वह बीजीय व्यंजक जिसमें केवल एक
पद हो एक पदीय कहलाता है। एक बीजीय व्यंजक जिसमें केवल दो पद हों और वे असमान
पद हों द्विपद कहलाता है । वह बीजीय व्यंजक जिसमें तीन असमान पद हों त्रिपद कहलाता
है। एक या अधिक पदों वाला व्यंजक एक बहुपद कहलाता है । इस प्रकार एक पदीय,
द्विपद, त्रिपद आदि बहुपद होते हैं। दो या अधिक समान पदों का योग एक समान पद होता
है, जिसका संख्यात्मक गुणांक सभी समान पदों के गुणांकों के योग के बराबर होता है। दो
समान पदों का अंतर एक समान पद होता है जिसका संख्यात्मक गुणांक दोनों समान पदों
के संख्यात्मक गुणांकों के अंतर के बराबर होता है । असमान पदों का उस प्रकार जोड़ा य
घटाया नहीं जा सकता, जिस प्रकार कि समान पदों को जोड़ या घटा लिया जाता है। जैसे―
                   x (एक पद वाला बीजीय व्यंजक)
                   x+x²+7
                  7x³ + 5x²
                  +6x+5 (अनेक पदों वाले बहुपद अर्थात बीजीय व्यंजक)
सिर्फ एक संख्या जैसे 8 भी एक बीजीय व्यंजक है, क्योंकि 8×0 लिखकर x की घात
दर्शा सकते हैं । बहुपद के लिए x की घात पूर्ण संख्या होनी चाहिए।
        बच्चों को इसकी अवधारणा स्पष्ट करते हुए बताएँ कि बीजीय व्यंजक के सजातीय पदों
में ही जाड़ेना-घटाना संभव है। बीजीय व्यंजकों में जोड़ने और घटाने की संकिया का अर्थ
है कि समान पदों का जोड़ना और घटाना । सजातीय होने का तात्पर्य 2 गाय और 3 गाय
मिलकर कुल 5 गाय होगी किन्तु 2 गाय और 3 बकरी विजातीय पद हैं और इनका योग 2
गाय +3 बकरी ही लिखा जा सकता है।
        जैसे 4x और 5x को जोड़ें। हम जानते हैं कि x एक संख्या है तथा इसीलिए 4x और
5x भी संख्याएँ हैं।
             अब 4x + 5x = (4 × x) + (5 × x)
             = (4+5)×x वितरण या बंटन गुण के प्रयोग से = 9×x= 9x या 4x + 5x = 9x
इसी प्रकार दो समान पदों का अंतर एक समान पद होता है, जिसका संख्यात्मक गुणांक
दोनों समान पदों के संख्यात्मक गुणांकों के अंतर के बराबर होता है । यहाँ ध्यान रखना होगा
कि असमान पदों को उस प्रकार जोड़ा या घटाया नहीं जा सकता, जिस प्रकार कि समान
पदों को जोड़ य घटा लिया जाता है। जब x में 5 को जोड़ा जाता है तो हम इस परिणाम
को (x + 5) लिखते हैं।
ध्यान दीजिए कि (x+5) में 5 और x दोनों ही पद पहले जैसे ही हैं। इसी प्रकार, यदि
हम असमान पदों 3xy और 7 को जोड़े तो योग 3xy+7 है। यदि हम 3xy में से 7 घटाएँ
तो परिणाम 3xy–7 है।
         बहुपद और उनके शून्यक―चर, अचर, चर के गुणांक तथा ऋणेत्तर घातांक के
जोड़, घटाव या गुणन की क्रिया वाले बीजगणितीय व्यंजक को बहुपद (POLYNOMIAL)
कहा जाता है। उदाहरण:
x² + 4x – 7, x³ + 2x²y – y + 1, 3x⁵ इत्यादि।
यदि p(x) एक बहुपद (POLYNOMIAL) है, तो चर x¹,के बहुपद p(x) में x की
उच्चतम घात (Power) बहुपद की घात (Degree of Polynomial) कहलाती है। अतः
घात 1 के बहुपद को एक घात वाला बहुपद या रैखिक बहुपद(Linear polynomial) कहते हैं।
      एक वास्तविक संख्या बहुपद P(x) का शून्यक (zero of a polynomial) कहलाती
है, यदि P(k) = 0 है।
           उदाहरण : मान लिया कि एक बहुपद Pr) =x²–3x–4
इस बहुपद मेंx=–1 रखने पर हम पाते हैं कि
p(–1) = (–1)²–3(–1)–4
= 1 + 3–4
= 0
अब इस बहुपद में x= 4 रखने पर हम पाते हैं कि
P(4) = (4)²–3(4)–4
= 16–12–4
= 0
अतः-1 और 4 दिये गये बहुपद x²–3x–4 का शून्यक कहलाती है। रैखिक बहुपद
का शून्यक उसके गुणांकों से संबंधित है। इस प्रकार ऐसे अन्य उदहारणों द्वारा सरल से जटिल
की ओर बच्चों में बीजीय व्यंजक के शून्यक की अवधारणा स्पष्ट की जा सकती है।
प्रश्न 12.बीजगणित की अवधारणा स्पष्ट करें। बीजगणित का जीवन में क्या उपयोग
है ? उदाहरण दें।
उत्तर―बीजगणित गणितीय प्रतीकों और इन प्रतीकों में हेरफेर करने के नियमों का
अध्ययन है। बीजगणित (algebra) गणित की वह शाखा जिसमें संख्याओं के स्थान पर
चिह्नों का प्रयोग किया जाता है। बीजगणित चर तथा अचर राशियों के समीकरण को हल
करने तथा चर राशियों के मान निकालने पर आधारित है। बीजगणित से अंकगणित की
कठिन समस्याओं का हल सरल हो जाता है।
        बीजगणित से साधारणतः तात्पर्य उस विज्ञान से होता है, जिसमें संख्याओं को अक्षरों
द्वारा निरूपित किया जाता है। परंतु संक्रिया चिह्न वही रहते हैं, जिनका प्रयोग अंकगणित
में होता है। मान लें कि हमें लिखना है कि किसी आयत का क्षेत्रफल उसकी लंबाई तथा
चौड़ाई के गुणनफल के समान होता है तो हम इस तथ्य को निम्न प्रकार निरूपित करेंगे―
      क्षेत्रफल = लंबाई x चौड़ाई
      बीजगणित की मुख्य विशेषता यह है कि इसमें अक्षरों का प्रयोग किया जाता है । अक्षरों
के प्रयोग से हम नियमों और सूत्रों (formulas) को व्यापक रूप में लिख पाने में समर्थ
हो जाएंगे। अक्षरों के इस प्रयोग से हम केवल एक विशेष संख्या की ही बात न करके,
किसी भी संख्या की बात कर सकते हैं। दूसरी बात यह है कि अक्षर अज्ञात राशियों के स्थान
पर भी प्रयोग किए जा सकते हैं। इन अज्ञात राशियों (unknowns) को निर्धारित करने की
विधियों को सीखकर हम पहेलियाँ (puzzles) और दैनिक जीवन से संबंधित अनेक
समस्याओं को हल करने के अनेक प्रभावशाली साधन विकसित कर सकते हैं। तीसरी बात
यह है कि ये अक्षर संख्याओं के स्थान पर प्रयोग किए जाते हैं, इसलिए इन पर संख्याओं
की तरह संक्रियाएँ भी की जा सकती हैं। इससे हम बीजीय व्यंजकों (lgebraic
expressions) और उनके गुणों के अध्ययन की ओर अग्रसर होते हैं । जीवन में बीजगणित
का उपयोग किसी अज्ञात संख्या या राशि के मान को पता करने के लिए किया जाता है।
जैसे—मात्रा, गति, समय, वजन इत्यादि । उदाहरण के लिए आप किसी संख्या से 2 लेते हैं
और उसमें पाँच जोड़ देते हैं, तो उत्तर हमेशा तीन से अधिक ही होगा । इस सन्दर्भ में किसी
संख्या को दिखाने के सुविधाजनक तरीके के रूप में x या n का उपयोग पूरी तरह से
स्वाभाविक प्रतीत हो सकता है।
          प्राथमिक बीजगणित को गणित, विज्ञान या इंजीनियरिंग के किसी भी अध्ययन के
साथ-साथ दवा और अर्थशास्त्र जैसे अनुप्रयोगों के लिए भी आवश्यक माना जाता है।
प्रश्न 13. विभिन्न ज्यामितीय आकृतियों की सतह का क्षेत्रफल की अवधारणा
स्पष्ट करें। बच्चों में इसकी समझ कैसे विकसित करेंगे? उदाहरण दें।
उत्तर-क्षेत्रफल-किसी तल (समतल या वक्रतल) के द्वि-विमीय (द्वि-आयामी)
आकार के परिमाण (माप) को क्षेत्रफल कहते हैं । जिस क्षेत्र के क्षेत्रफल की बात की जाती
है वह क्षेत्र प्रायः किसी बंद वक्र (closed curve) से घिरा होता है। इसे प्रायः m²(वर्ग
मीटर) में मापा जाता है।
       शिक्षक होने के नाते यह संज्ञान होना चाहिए कि इससे पूर्व की कक्षाओं में बच्चों ने
क्षेत्रफल की अवधारणा के बारे में सीखा है और वे यह जानते हैं कि किसी बंद आकृति
द्वारा किसी तल पर घेरे गए तल की माप क्षेत्रफल कहलाती है। एक सरल तरीका यह हो
सकता है कि बच्चों को कुछ पत्तियाँ बाँट दें तथा उनसे उनका क्षेत्रफल पूछे । या आप बच्चों
को उनकी कॉपी/किताब का क्षेत्रफल ज्ञात करने को कह सकते हैं। इससे भी रूचिकर
तरीका यह हो सकता है किबच्चों के समूह बनाकर उन्हें कुछ चीजें देकर उनसे उन चीजों
का क्षेत्रफल ज्ञात करने को कहा जाए । इस स्थिति में बच्चों की सहायता निम्नलिखित
बिन्दुओं पर चर्चा करके कर सकते हैं―
● क्षेत्रफल किसी बंद आकृति द्वारा घेरे गए तल की माप है।
● ऐसे कागज, जिस पर वर्ग बने हों या ग्राफ की सहायता से ओत्रफल जात करने
में निम्नलिखित मान्यताओं का उपयोग होता है―
(क) आधे से कम वर्ग वाले क्षेत्र को नहीं गिना जाए।
(ख) आधे से अधिक वर्ग वाले क्षेत्र को पूरा एक वर्ग गिना जाए ।
(ग) यदि क्षेत्रफल आधे वर्ग के बराबर है तो उस 1/2 वर्ग इकाई गिना आए ।
ph
वर्गों को गिनकर आकृति का अनुमानित क्षेत्रफल ज्ञात कर सकते हैं।
घेरे हुए वर्ग                  संख्या              अनुमानित क्षेत्रफल (वर्ग इकाई)
(i) पूरे घिरे हुए               3                   3 वर्ग
(ii) आधे घिरे हुए           3                   1.5 वर्ग
(iii) आधे से अधिक      ―               ― घिरे हुए वर्ग
(iv) आधे से कम          ―               ― घिरे हुए वर्ग
कुल क्षेत्रफल = 3+ 1.5 = 4.5 वर्ग इकाई
इसके बाद बच्चों को निम्न ज्यामितीय आकारों के क्षेत्रफल ज्ञात करने के ऊपर कार्य
कराए जा सकते हैं―
● आयात का क्षेत्रफल = लबाई × चौड़ाई
● वर्ग का क्षेत्रफल = भुजा × भुजा
● समानान्तर चतुर्भुज का क्षेत्रफल = आधार × ऊँचाई
● त्रिभुज का क्षेत्रफल = 1/2 (इसके द्वारा बने समानान्तर चतुर्भुज का क्षेत्रफल) =
1/2 × आधार × ऊँचाई
● सभी सर्वांगसम त्रिभुजों को क्षेत्रफल बराबर होता है परंतु यह आवश्यक नहीं है
कि क्षेत्रफल बराबर होने पर त्रिभुज सर्वांगसम हो ही।
● वृत्त का क्षेत्रफल = πr² (जहाँ r वृत्त की त्रिज्या है)
बच्चों को पहले ग्राफ पेपर एवं उसके बाद बिना ग्राफ पेपर के आकृतियों के क्षेत्रफल
के सूत्र की सहायता से क्षेत्रफल निकलवाने के कार्य करवाए जा सकते हैं―
           ठोस वस्तुओं अर्थात त्रिआयामी वस्तुओं का क्षेत्रफल–बच्चे ने माचिस की डिब्बी,
किताब, लंच बॉक्स तथा ऐसी अन्य वस्तुओं को देखा है। ऐसी वस्तुएँ ठोस वस्तुएँ होती हैं
और हम प्रकृति में उन्हें त्रिविमीय वस्तुओं के रूप में वर्गीकृत करते हैं । समतल आकृतियों
के क्षेत्रफल की तरह हम ठोसों के लिए पृष्ठ क्षेत्रफल पद का उपयोग करते हैं।
        एक घनाभाकार डिब्बे को जब खोला जाता है तो वह निम्न आकृति की तरह दिखती
ph
घनाभ का पृष्ठ क्षेत्रफल = I का क्षेत्रफल + II का क्षेत्रफल + III का क्षेत्रफल +IV
का क्षेत्रफल + V का क्षेत्रफल + VI का क्षेत्रफल
h × I + b ×I + b×h + I×h+b×h+I× b
= 2(h × I+ b× h+b×I)
= 2 (Ib+ bh+ hl).
    घनाभ के संदर्भ में चार तलों (Iसे IV तक आकृति के क्षेत्रफलों का योग घनाभ का
पार्श्व क्षेत्रफल कहलाता है। घनाभ जिसकी लम्बाई ‘I’, चौड़ाई ‘b’ तथा ऊँचाई ‘h’ हो
तो उसका पार्श्व पृष्ठीय क्षेत्रफल निम्नलिखित होगा―
       पार्श्व पृष्ठीय क्षेत्रफल = 2lh + 2bh अथवा 25(l+ b)
उसी प्रकार बच्चों को एक घनाकार डिब्बा खोलने के लिए कहा जाए ।
ph
बच्चों को इस तरह के अधिगम अवसर दिए जाने चाहिए ताकि वह यह पहचान सकें
कि घन एक घनाभ ही है जिसकी सभी विमाएँ समान होती हैं । अत: घन का पृष्ठ क्षेत्रफत
सूत्र 2(l×l+l×l+l×l) = 2(31²) = 61² द्वारा ज्ञात किया जा सकता है।
बच्चे टिन, लंच बॉक्स, तेल के कैन, पानी की बोतलें, पानी के पाइप इत्यादि वस्तुओं
से परिचित हैं। ऐसी वस्तुएँ बेलन का पृष्ठ क्षेत्रफल सिखाने हेतु सहायक सामग्री के रूप
में उपयोग में लाई जा सकती हैं। बच्चों को पानी के पाइप की आकृति बनाने के लिए कहा
जा सकता है। इसके पश्चात् बच्चों को कहा जा सकता है कि इसे आकृति के अनुसार
भी खींचा जा सकता है।
ph
शिक्षक जारी रखें कि एक बेलन के दो वृत्तीय तल (त्रिज्या ‘r’) तथा एक आयताकार
तल (ऊंचाई ‘h’) होता है। अतः बेलन का कुल पृष्ठ क्षेत्रफल दोनों वृत्तीय तलों के क्षेत्रफल
तथा आयताकार तल के क्षेत्रफल के योग के बराबर होता है। अत: बेलन का पृष्ठ क्षेत्रफल
= वृत्त 1 का क्षेत्रफल + आयत का क्षेत्रफल + वृत्त 2 का क्षेत्रफल
= πr²
+ 2πrh + πr²
=2πr² + 2πrh
= 2πr (r+h)
            घनाभ के समान ही बेलन का पार्श्व पृष्ठ क्षेत्रफल होता है। पार्श्व पृष्ठ क्षेत्रफल को
वक्र पृष्ठ क्षेत्रफल भी कहते हैं । पार्श्व पृष्ठ क्षेत्रफल, बेलन का वक्र पृष्ठ का क्षेत्रफल होता
है तथा इसे सूत्र 2πrh
        बच्चे अपने जीवन में बहुत सी गोलाकार वस्तुओं से परिचित होते हैं। बच्चों को गोले
का पृष्ठ क्षेत्रफल ज्ञात करने के सूत्र की स्थापना के लिए एक गतिविधि सहायक हो सकती
है । एक लंबा धागा तथा एक रबर की गेंद लें। अब गेंद का व्यास मापें जिससे कि त्रिज्या
पता लगा सकें। इसके पश्चात गेंद पर एक कील गाड़कर आकृति के अनुसार धागा लपेटना
आरंभ करें। धागे का आरंभ एवं अंतिम बिन्दु चिह्नित करें । अब गेंद की त्रिज्या के बराबर
त्रिज्या के चार वृत्त खींचे । धागे को खोले तथा खींचे गए गोले में उसे फैलाएँ इस गतिविधि
के द्वारा बच्चे यह समझने में सक्षम होंगे कि गेंद पर लपेटने में प्रयुक्त धागा चारों वृत्तों के
तलों को पूरा-पूरा ढक लेता है। इससे हम निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि गोले का पृष्ठ
क्षेत्रफल = r त्रिज्या वाले गोले के क्षेत्रफल का 4 गुणा = 4 x (πr²) गोले का पृष्ठ क्षेत्रफल
= 4πr²
ph
गोले के पृष्ठ क्षेत्रफल के मापने हेतु सूत्र को अर्द्ध गोले के पृष्ठीय क्षेत्रफल मापन के
सूत्र ज्ञात करने में भी उपयोग कर सकते हैं। गोला, गोला का आधा भाग होता है और इसे
गोले के केन्द्र के सापेक्ष काटने से प्राप्त किया जाता है। अर्द्ध गोले में एक समतल तथा
एक वक्रतल होता है। इस तरह अर्द्ध गोले का पृष्ठ क्षेत्रफल ज्ञात करने के लिए दोनों तलों
के क्षेत्रफलों का योग करना होता है। अतः अर्द्ध गोले का पृष्ठ क्षेत्रफल = 2πr²+πr²=3πr²
प्रश्न 14. आकृतियों में सममिति, सर्वांगसमता एवं समरूपता की अवधारमा
स्पष्ट करें। बच्चों को इन्हें किस तरह से समझायेंगे?
उत्तर–सममिति–सममिति (Symmetry) का अर्थ है कि किसी पैटर्न का किसी
बिन्दु या रेखा या तल के सापेक्ष हूबहू पुनरावृत्ति । हम किसी चीज को समरूप तब कहते
हैं जब एक से अधिक दृष्टियों से देखने पर वो एक ही जैसी दिखाई दे । उदाहरण के तौर
पर, ऐसा माना जाता है कि इन्सानी शरीर में द्विपक्षीय सममित होती है क्योंकि हमारा दायाँ
भाग व बायाँ भाग लगभग एक जैसे होते हैं व जब हम एक आइने के सामने खड़े होते हैं
तो हम और हमारा प्रतिबिम्ब लगभग एक समान ही होते हैं। सममिति की समझ बच्चों को
निम्न प्रकार दी जा सकती है―
       कल्पना कीजिए हम एक आकृति को आधे (अर्ध) से इस तरह मोड़े कि उसका आधा
बायाँ भाग तथा आधा दायाँ भाग एक दूसरे से पूर्णतः मिलता जुलता हो तब हम कहेंगे कि
आकृति में सममित रेखा उपस्थित है। हम देख सकते हैं कि दोनों आधे भाग एक दूसरे के
(दर्पण) प्रतिबिंब हैं। यदि हम आकृति के मोड़ने वाले स्थान पर एक दर्पण को रख देते
हैं तो आकृति के एक भाग का प्रतिबिंब के दूसरे भाग को पूर्णतः ढक लेगा। ऐसा जब भी
घटित होता है तो यह तह या मोड़ (वास्तविक या काल्पनिक), जो दर्पण रेखा है, आकृति
की सममिति रेखा (या सममित अक्ष) कहलाती है।
            इसके बाद बच्चों से निम्न कार्य करवाये जा सकते हैं अपनी कक्षा में उपलब्ध कुछ
वस्तुओं की सूची बनाइए, जैसे-श्यामपट्ट (black board), मेज, दीवार, पाठ्यपुस्तक
इत्यादि । इनमें से कौन सी वस्तुएँ सममित हैं और कौन-सी सममित नहीं हैं ? क्या आप
उन में से सममित वस्तुओं की सममित रेखा पहचान सकते हैं। उच्च प्राथमिक स्तर पर
बच्चों को विभिन्न ज्यामितीय आकृतियों में सममित रेखाएँ खोजने के लिए प्रेरित करना
चाहिए।
सर्वांगसमता―ज्यमिति में बिन्दुओं के दो समुच्चय को परस्पर सर्वांगसम (congruent)
कहते हैं यदि उनमें से किसी एक समुच्चय को स्थानान्तरण (translation), घूर्णन
(rotation), परावर्तन (reflection) या इनके मिश्रित क्रियाओं के द्वारा परिवर्तित करने पर
दूसरा समुच्चय प्राप्त किया जा सके । सर्वांगसम = सर्व + अंग + सम = सभी अंग बराबर ।
इसे और अधिक सरल रूप में यों कह सकते हैं कि दो चित्र यदि आकार-प्रकार (shape
and size) में समान हैं तो वे परस्पर सर्वांगसम होते हैं (यद्यपि वे अलग-अलग स्थान पर
हैं या अलग-अलग स्थितियों में हो सकते हैं)।
      उदाहरण के लिए दो त्रिभुज सर्वांगसम हो सकते हैं, यदि – दोनों त्रिभुज की दो भुजायें
एवं उनके बीच का कोण समान हों (SAS), कोई दो कोण एवं उनके बीच की भुजा समान
हों (ASA) या दो कोण एवं इनमें किसी एक से संलग्न भुजा समान हो (AAS), किन्तु दो
भुजाएँ एवं तीसरी भुजा से संलग्न कोई कोण समान होने की स्थिति में (SSA), प्रायः दो
भिन्न-भिन्न त्रिभुज सम्भव हैं। यदि दो त्रिभुजों की तीनों भुजायें एवं संगत कोण समान हों
तो वे परस्पर सर्वांगसम होते हैं। किन्तु प्राय: केवल तीन संगत अंगों की समानता प्रदर्शित
कर देना ही सर्वांगसमता सिद्ध करने के लिये पर्याप्त होता है।
     बच्चों में सर्वांगसमता की समझ के लिए अध्यारोपण विधि का प्रयोग कर सकते हैं।
इनमें से एक का अक्स (trace & copy) बनाकर दूसरी आकृति पर रखते हैं। यदि ये
आकृतियाँ एक दूसरे को पूर्णत: ढक लेती हैं तो वे सर्वांगसम कहलाती हैं। दूसरे ढंग से,
एक आकृति को काटकर उसके ऊपर दूसरी आकृति रख सकते हैं। लेकिन इसमें ध्यान
रखना है कि जिस आकृति को काटा है (अध्यारोपित करने के लिए) उसे फैलाना या मोड़ना
नहीं है। इसके अलावा सर्वांगसमता की समझ के लिए एक अन्य गतिविधि यह हो सकती
है कि एक त्रिभुज ABC बनाएँ, उसके कोण एवं भुजा की माप को ध्यान में रख ले एवं
सर्वांगसमता के प्रतिबंधों के आधार पर दूसरा त्रिभुज बनाकर उसे पहले त्रिभुज अध्यारोपित
करके या मापकर सर्वांगसमता की अवधारणा को स्पष्ट करें।
         समरूपता–यदि दो ज्यामितीय वस्तुओं का आकार (स्वरूप) समान हो तो उन्हें
समरूप (similar) कहा जाता है। दूसरे शब्दों में, यदि दूसरी आकृति की सभी लम्बाइयों
को समान अनुपात में घटाकर या बढ़ाकर पहली आकृति प्राप्त की जा सकती है तो ये दोनों
आकृतियाँ परस्पर समरूप हैं। किन्हीं दो समरूप बहुभुजों की संगत भुजाएँ समानुपाती होती
हैं और संगत कोणों के मान समान होते हैं ।
     उदाहरण के लिए दो समरूप त्रिभुजों के संगत कोण समान होते हैं। दो समरूप त्रिभुजों
के क्षेत्रफल का अनुपात उनके संगत भुजाओं के अनुपात के वर्ग के बराबर होता है। दो
समरूप त्रिभुजों की संगत ऊँचाइयों को अनुपात उनकी संगत भुजाओं के अनुपात के बराबर
होता है। दो त्रिभुज समरूप होते हैं, यदि
(i) उनके संगत कोण बराबर हों तथा
(ii) उनकी संगत भुजाएँ एक ही अनुपात में (अर्थात् समानुपाती) हो
उपरोक्त चर्चा से हम यह भी कह सकते हैं कि सभी सर्वांगसम आवृफतियाँ समरूप
होती हैं, परंतु सभी समरूप आकृतियों का सर्वांगसम होना आवश्यक नहीं है। बच्चों में
इसकी समझ विकसित करने के लिए निम्न कार्यकलाप किए जा सकते हैं―
     अपनी कक्षा के कमरे की छत के किसी बिन्दु पर प्रकाश युक्त बल्ब लगाइ तथा उसके
ठीक नीचे एक मेज रखिए। आइए एक समतल कार्डबोर्ड में से एक बहुभुज, मान लीजिए
चतुर्भुज ABCD, काट में तथा इस कार्डबोर्ड को भूमि के समांतर मेज और जलते हुए बल्ब
के बीच में रखें, तब मेज पर ABCD की एक छाया (shadow) पड़ेगी । इस छाया की
बाहरी रूपरेखा को A’B’C’D’ से चिह्नित कीजिए।
      चतुर्भुज ABCD’ चतुर्भुज ABCD का एक आकार परिवर्धन (या आवर्धन) है। यह
प्रकाश के इस गुणधर्म के कारण है कि प्रकाश सीधी रेखा में चलती है। आप यह भी देख
सकते हैं कि A’ किरण OA पर स्थित है, B’ किरण OB पर स्थित है, C’ किरण OC पर
स्थित है तथा D’ किरण OD पर स्थित है। इस प्रकार चतुर्भुज A’B’C’D’ और ABCD
समान आकार के हैं। परंतु इनके माप भिन्न-भिन्न हैं । अतः चतुर्भुज A’B’C’D’ चतुर्भुज
ABCD के समरूप हैं। हम यह भी कह सकते हैं कि चतुर्भुज ABCD चतुर्भुज A’B’C’D’
के समरूप हैं।
       दोनों चतुर्भुजों के कोणों और भुजाओं को वास्तविक रूप से माप कर, इसका सत्यापन
कर सकते हैं कि―
(i) ∠A = ∠A’, ∠B = ∠B’, ∠C=∠C’,∠D=∠D’ और
(ii) AB/BC=CD/DA
                  =AB/BC=CD/DA
इससे पुनः यह बात स्पष्ट होती है कि भुजाओं की समान संख्या वाले दो बहुभुज समरूप
होते हैं, यदि (1) उनके सभी संगत कोण बराबर हों तथा (ii) उनकी सभी संगत भुजाएँ एक
ही अनुपात (समानुपात) में हों।
ph
इसके बाद विभिन्न ज्यामितीय आकृतियों को बनाकर उनके समरूप होने के प्रतिबंधों
के आधार पर उन्हें मापकर एवं जांच कर समरूप होने की समझ विकसित की जा सकती है।
प्रश्न 15. गणित की विभिन्न अवधारणाएँ जैसे ब्याज, गति-समय, प्रतिशत,
तुलना इत्यादि सभी अनुपात की अवधारणा पर आधारित हैं, जो ऐकिक नियम से
बना है। इसे एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट करें।
उत्तर―हमारे दैनिक जीवन में अनेक ऐसे अवसर आते हैं जब हम दो राशियों की
तुलना करते हैं। हम यह देखते हैं कि किसी तुलना को भी उल्य करके यह बताया जा सकता
है कि दूसरी राशि पहली राशि का कौन-सा भाग है। विभिन्न अनुपातों की भी आपस में
तुलना की जा सकती है । इसपर आधारित प्रश्नों को हल करने में पहले हम अनेक से एक
और फिर वांछित संख्या के लिए मान ज्ञात करते हैं। जैसे―
        मेरी कार 25 लीटर पैट्रोल में 150 km की दूरी तय कर लेती है। 30 लीटर पैट्रोल में
यह कितनी दूरी तय करेगी?
25 लीटर पैट्रोल में तय की गई दूरी = 150 km
अत: 1 लीटर पैट्रोल में दूरी चलेगी = 150/25 km
अत: 30 लीटर पैट्रोल में दूरी चलेगी = 150/25×30km = 180 km
        इस विधि में पहले हम एक वस्तु के लिए मान निकालते हैं, अर्थात् ऐकिक दर निकालते
हैं। यह दो विभिन्न गुणों की तुलना करके किया जाता है। उदाहरण के लिए वस्तुओं के
मूल्य से तुलना करके एक वस्तु का मूल्य ज्ञात किया जाता है अथवा दूरी तथा समय दिए
होने पर इकाई समय में तय होने वाली दूरी ज्ञात कर लेते हैं।
प्रश्न 16. बच्चों की संभावना के बारे में समझ किस प्रकार विकसित करेंगे?
उत्तर–बच्चों में संभावना की कुछ समझ होती हैं। लेकिन शायद वे यह नहीं समझते
कि किसी बात के होने की सम्भावना बदलती रहती है और इसे नापा जा सकता है। बच्चों
में संभावना की समझ के लिए बच्चों से किसी ऐसी घटना का उदाहरण देने को कहें। जिसे
वे ‘संभावना’ से जोड़ते है। इसके जवाब में घर या सड़क पर घटी विभिन्न किस्म की
दुर्घटनाओं के वर्णन या किसी की लॉटरी जीतना या अपने खोए हुए दोस्त से मुलाकात के
ब्यौरे हो सकते हैं। सारे उत्तरों में ऐसी घटनाएं बताई जाएं जो होती तो है किन्तु कभी कभार ।
          अपना सर्वेक्षण जारी रखते हुए बच्चों से किसी ऐसी घटना या उदाहरण देने को कहें
जिससे यह किसी घटना के होने या न होने की संभावना से संबंधित है, न सिर्फ कभी कभार
होने की । हमें बच्चों की इस तरह की सहज समझ को आगे बढ़ाना व मजबूत करना चाहिए।
         बच्चों को संभावना की समझ के लिए सिक्का उछालने की गतिविधि कराई जा सकती
है। जैसे—यह समझने में बच्चों की मदद करना जरूरी है कि जब सिक्के को अधिक बार
उछाला जाता है तो धीरे-धीरे चित व पट की संख्या बराबर होने लगती है। उन्हें यह समझना
होगा कि यदि ईमानदारी से खेल हो तो प्रत्येक खिलाड़ी लगभग बराबर बार जीतता या हारता
है। हालांकि यह जरूरी नहीं है कि प्रायिकता’ शब्द का इस्तेमाल किया जाए, किन्तु बच्चों
को यह समझना चाहिए कि यह अनिश्चितता नापने का एक तरीका है।
          हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि बच्चे विभिन्न स्थितियों में सार्थक रूप से ‘संभावना’
के विचार से जुड़ पाएं । वे सम्भावना और अचानक हुई घटना को एक न मान बैठे। इसलिए
जरूरी है कि बच्चों को कम उम्र से ही इन धारणाओं से परिचित कराया जाए। हमें इस
बात में भी बच्चों की मदद करनी चाहिए कि वे अपने पूर्वाग्रहों की जांच करें और देखें कि
वे किस हद तक सही या गलत हैं।
प्रश्न 17. बच्चों में संभावना से प्रायिकता की ओर समझ का विकास किस
प्रकार करेंगे?
उत्तर―हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि बच्चे विभिन्न स्थितियों में सार्थक रूप से
‘संभावना’ के विचार से जुड़ पाएं । संभावना की ऐसी स्थितियाँ बच्चों के सामने रोजमर्रा के
जीवन में आ सकती हैं। जैसे यह समझने में बच्चों की मदद करना जरूरी है कि जब
सिक्के को अधिक बार उछाला जाता है तो धीरे-धीरे चित व पट की संख्या बराबर होने लगती
है। उन्हें यह समझना होगा कि यदि ईमानदारी से खेल हो, तो प्रत्येक खिलाड़ी लगभग बराबर
बार जीतता या हारता है।
        बच्चों को यह समझना चाहिए कि यह अनिश्चितता नापने का एक तरीका है। तथा
यदि किसी घटना में जोखिम शामिल है, तो उसके वाकई घटित होने की कितनी संभावना
है। जैसे कोई भी टीका 100 प्रतिशत सुरक्षा नहीं देता और कभी-क टीके के अनचाहे
प्रभाव भी होते है। तो टीका दिया जाना चाहिए या नहीं? यह फैसला स बात पर निर्भर
करेगा कि वह टीका कितना कारगर है और उसके अनचाहे प्रभाव किस तरह के हैं। मान
लीजिए कि एक टीका है जो 1000 में से 800 मामलों में सुरक्षा प्रदान करता है और टीका
न लगवाने पर बीमारी होने की सम्भावना बहुत ज्यादा हैं। तब दोनों विकल्पों में मौजूद
जोखिम को तौलकर हम टीक लगवाएँ या न लगवाएं । बच्चों और बड़ों में प्रायिकता की
ऐसी मोटी समझ व उपयोग की क्षमता को विकसित करना जरूरी है। यदि हम चाहते हैं
कि हमारे बच्चे तार्किक रूप से सोचें और बेहतर व तर्कसंगत धारणा निर्मित करे, तो जरूरी
है कि हम उन्हें ‘सम्भावनाओं’ और असम्भावना के बारे में विचार करने को प्रेरित करें।
प्रायिकता की समझ के लिए बच्चों को कुछ गतिविधियाँ भी कराई जा सकती हैं।
जैसे—बच्चों को कहिए कि वे सिक्के को कई बार उछालें और हर बार नोट करें कि चित
आया या पट । प्रत्येक टोली इन आंकड़ों का तालिका बनाकर दर्ज करे । एक बार जब बच्चे
यह लिख लें कि हर बार सिक्का उछालने पर क्या आता है, तो उनसे कहिए कि वे अगले
उछाल के परिणाम के बारे में अनुमान लगाने की कोशिश करें। प्रत्येक बार सिक्का उछालने
से पहले टोली के प्रत्येक सदस्य को बताना होगा कि अब क्या आने वाला हैं—चित या पट।
उनके अनुमानों को लिखकर रखा जा सकता है। बच्चे ‘पता नहीं’ भी कह सकते हैं। प्रत्येक
टोली ऐसा 20 बार करे । इसके बाद बच्चों से पूछिए कि क्या कोई सदस्य बीसों बार सही
अनुमान लगा पाया। सबसे ज्यादा सही अनुमान किसका रहा और कितनी बार ? उनसे यह
बताने को कहिए कि यदि सिक्के को 50 बार उछालकर देखा जाए तो क्या होगा? क्या इससे
पूर्वानुमान में सुधार होगा? यदि जरूरी हो तो बच्चे टोलियों में ऐसा करके देखें कि परिणामों
में कोई अंतर है या नहीं। यह गतिविधि प्रायिकता के प्रति उनकी समझ बनाने में योगदान
देगी।
        एक अन्य गतिविधि में बच्चों को टोलियों में बांट दीजिए । एक थैली में दो रंगों (जैसे
काले व सफेद) की 10 गेंदें रखिए । शुरू में बच्चों को बता दीजिए कि किस रंग की कितनी
गेंदें रखी गई हैं। अब उनसे कहिए कि आप एक गेंद निकालने वाले है और उन्हें अनुमान
लगाना है कि वह गेंद किस रंग की होगी और सही अनुमान के लिए अंक भी दिए जा सकते
हैं। आप बच्चों से पूछ सकते हैं : क्या काली गेंद आने की सम्भावना आधी-आधी है?
क्या सफेद गेंद निकालने की सम्भावना, सिक्का उछालने में चित आने की सम्भावना से ज्यादा
है? बच्चे शायद यह भी देख पाएं कि कुछ सामान्य घटनाओं के होने की सम्भावना बराबर
होती है। इससे बच्चों को किसी घटना के होने की सम्भावना देख पाने के लिए आँकड़े इकट्ठ
करने, छाँटने व तालिकाबद्ध करने में भी मदद मिलेगी।
प्रश्न 18. आयतन और उसके संरक्षण की अवधारणा स्पष्ट करें। बच्चों में
इसकी समझ कैसे विकसित करेंगे? उदाहरण दें।
उत्तर―सभी पदार्थ स्थान (त्रि-विमीय स्थान) घेरते हैं। इसी त्रि-विमीय स्थान की मात्रा
की माप को आयतन कहते हैं। एक-विमीय आकृतियाँ (जैसे रेखा) एवं द्वि-विमीय
आकृतियाँ (जैसे त्रिभुज, चतुर्भुज, वर्ग आदि) का आयतन शून्य होता है।
      इस स्तर तक बच्चे आयतन के बारे में सुन लेते हैं। इसके बाद वे आयतन तथा धारिता
के बीच अंतर करने लगते हैं । वे जानते हैं कि किसी पात्र की धारिता का अर्थ है कि उसमें
कितना तरल पदार्थ या रेत या नमक भरा जा सकता है । चूँकि तरह पदार्थ या रेत या नमक
का आकार उस पात्र के अनुसार जिसमें वे रखे गए हैं, बदलता रहता है। फिर भी बच्चों
में आयतन की समझ विकसित करने के लिए निम्नलिखित गतिविधि कराई जा सकती है-
       बच्चों को घेरी गई जगह का अहसास देने के लिए कुछ पत्थर, ईंटें, लोहे के टुकड़े,
वगैरह इकट्ठे कर लें । प्लास्टिक की एक बाल्टी में पानी भर लीजिए। हर चीज को एक
धागे से बाँधकर उन्हें एक-एक करके पानी में डुबाइए । देखिए कि क्या हर बार पानी का
तल एक बराबर ही बढ़ता है। बच्चों से निम्न प्रश्नों पर चर्चा कीजिए।
● तल अलग-अलग क्यों बढ़ता है?
● पानी का तल सबसे ऊँचा कब उठा?
● ऐसा क्यों होता है?
● डुबाई गई चीज के साइज और पानी के तल के बीच क्या संबंध होता है ? वगैरह।
एक बार बच्चों को घेरे गए आयतन का अहसास हो जाए, तो वे दो चीजों के आयतन
की तुलना कर सकते हैं। हम किसी बर्तन में पानी भरकर उस पर ग्राफ पेपर की पट्टी चिपका
सकते हैं, जिससे अलग-अलग आकार के पत्थर एवं वस्तुओं को डुबोने पर पानी के आकार
के घटने बढ़ने पर, दो वस्तुओं के आयतन के कम या अधिक होने की तुलना की जा सकती है।
       जब बच्चे आयतन ज्ञात कर रहे होते हैं, तब मुख्य बिन्दु होता कि क्षेत्रफल को हम
वर्ग इकाई में मापते हैं, उसी तरह आयतन में घन इकाई में मापते हैं । दिए गए ठोस का
आयतन ज्ञात करने के लिए ठोस को 1 सेमी. लंबाई वाले घन में बाँटते हैं । घनों की संख्या
आकार का आयतन होता है। इस तरह आकृति में दिए गए ठोस का आयतन 8 घन सेमी.
है।
ph
अलग-अलग घनों की संख्या से बनी आकृति का अभ्यास एक समूह में कराया जा
सकता है। चर्चा के अंत में बच्चे सूत्र बता सकते हैं कि घनाभ का आयतन =l×b×h
चूँकि I× b आधार का क्षेत्रफल है, अत: हम कह सकते हैं कि घनाभ का आयतन आधार
का क्षेत्रफल x ऊंचाई है । घनाभ का आयतन =1×b×h=आधार का क्षेत्रफल × ऊंचाई
        बच्चे जानते हैं कि घन, घनाभ का ही रूप होता है, जिसमें सभी तल समान लंबाई
के होते हैं। इस तरह हम घनाभ के सूत्र में सभी लम्बाइयों के स्थान पर से प्रतिस्थापन करके
घन के आयतन का सूत्र ज्ञात कर सकते हैं, अर्थात् घनाभ का आयतन =l×b×h=l
×l×l=l³ (चूँकि I = b = h=l) अत: घन का आयतन =l³; जहाँ l = घन की एक
भुजा की माप
          बेलन के आयतन के संदर्भ में हम लिख सकते हैं कि बेलन का आयतन = आधार
का क्षेत्रफल x ऊँचाई =πr²×h= πr²h (चूँकि बेलन के आधार का क्षेत्रफल =πr²
बेलन के आयतन = πr²h य जहाँ r = बेलन की त्रिज्या, h=बेलन की ऊँचाई
शंकु का आयतन ज्ञात करने के लिए एक अन्य गतिविधि कराई जा सकती है। बच्चों
को एक समान आधार वाला एक बेलन तथा एक शंकु लाने को कहिए।
ph
अब शंकु में पानी भरकर उसे बेलन में उंडेलिए । बच्चों का यह गतिविधि तब तक
दोहराने के लिए कहिए जब तक कि बेलन भर न जाए । इस गतिविधि से बच्चे इस निष्कर्ष
पर पहुंच सकते हैं कि बेलन का आयतन शंकु के आयतन का तीन गुणा होता है । अतः
शंकु का आयतन = 1/3
πr²h; जहाँ = आधार की त्रिज्या, h = शंकु की ऊंचाई
     अतः स्पष्ट समझ हेतु कुछ वास्तविक अनुप्रयोग पर आधारित उदाहरणों पर बच्चों के
साथ चर्चा कीजिए।
प्रश्न 19. आंकड़ों के प्रबंधन की अवधारणा स्पष्ट करें। आंकड़ों के क्या
उपयोग अथवा महत्व हैं ?
उत्तर–प्रतिदिन हमें तथ्यों, संख्यात्मक अंकों, सारणियों, आलेखों (ग्राफों) आदि के
रूप में विभिन्न प्रकार की सूचनाएं देखने को मिलती रहती हैं। ये सूचनाएँ हमें समाचार
पत्रों, टेलीविजनों, पत्रिकाओं और संचार वेफ अन्य साधनों से उपलब्ध होती रहती हैं। ये
सूचनाएं क्रिकेट के बल्लेबाजी या गेंदबाजी के औसतों, कंपनी के लाभों, नगरों के तापमान,
पंचवर्षीय योजना के विभिन्न क्षेत्र एवं मदों में किए गए खर्चों, मतदान के परिणामों आदि
से संबंधित हो सकते हैं। एक निश्चित उद्देश्य से एकत्रित किए गए इन तथ्यों या अंकों को,
जो संख्यात्मक या अन्य रूप में हो सकते हैं, आँकड़े (data) कहा जाता है। अंग्रेजी शब्द
“data” लैटिन शब्द datum का बहुवचन है।
        आँकड़ों के प्रबंधन में अंवेषक अपने दिमाग में एक निश्चित उद्देश्य रखकर सूचनाओं
को एकत्रित करता है। इस प्रकार एकत्रित किए गए आँकड़ों को प्राथमिक आँकड़े
(primary data) कहा जाता है। दूसरी स्थिति में जहाँ किसी स्रोत से, जिसमें सूचनाएँ पहले
से ही एकत्रित हैं, आँकड़े प्राप्त किए गए हों उन आंकड़ों को गौण आँकड़े (secondary
data) कहा जाता है। आँकड़ों को एकत्रित करने का काम समाप्त होने के उपरांत ही
अंवेषक को इन आँकड़ों को ऐसे रूप में प्रस्तुत करने की विधियों को ज्ञात करना होता है
जो अर्थपूर्ण हो, सरलता से समझी जा सकती हों और एक ही झलक में उसके मुख्य लक्षणों
को जाना जा सकता हो।
इस प्रकार निश्चित उद्देश्यों के लिए सूचनाओं को एकत्रित करना, विश्लेषण करना,
व्यवस्थित एवं वर्गीकृत कर प्रदर्शित करना तथा सूचनाओं को प्रदर्शन कर निष्कर्ष निकालना
आँकड़ों का प्रबंधन कहलाता है।
        आंकड़ों के उपयोग की दैनिक जीवन में आवश्यकता पड़ती रहती है, क्योंकि उनका
प्रसंस्करण (प्रोसेसिंग) करके उनसे सूचना निकाली जाती है। निरीक्षण, वैज्ञानिक शैक्षिक
अनुसंधान में आँकड़ों की आवश्यकता पड़ती है। आँकड़ों द्वारा किसी वस्तु/अवयव/तंत्र/समुदाय
से सम्बन्धित आँकड़ों का संग्रह, विश्लेषण, व्याख्या या स्पष्टीकरण और प्रस्तुति की जाती
है। जिससे परिस्थितियों का अवलोकन कर हमें अपने दैनिक जीवन के कार्यों की स्थिति
जानने, कृषि कार्यों, कारखाने के लिए सरकार को अपनी योजनाएँ बनाने में मदद मिलती
है। उदाहरण के लिए जनगणना में लगभग 20 करोड़ लोगों से संपर्क किया गया । जनगणना
के अपरिष्कृत आँकड़े बहुत विशाल एवं विखंडित होते हैं। उन से कोई भी अर्थपूर्ण निष्कर्ष
निकालना असंभव कार्य लगता है। लेकिन जनगणना के यही आँकड़े जब शिक्षा, वैवाहिक
स्थिति, पेशे आदि के अनुसार वर्गीकृत किये जाते हैं तब भारत की जनसंख्या की प्रकृति एवं
संरचना आसानी से समझ में आ जाती है।
प्रश्न 20. वर्गीकृत तथा अवर्गीकृत आँकड़ों का प्रस्तुतीकरण किस प्रकार करेंगे? उदाहरण दें।
उत्तर―जब आँकड़े अपने मूल रूप में पूर्णांक की तरह प्रस्तुत किए जाते हैं, उन्हें
निरपेक्ष आंकड़े अथवा कच्चे आंकड़े कहते हैं । उदाहरण के लिए एक देश अथवा राज्य
की कुल जनसंख्या एक फसल अथवा एक विनिर्माण उद्योग का कुल उत्पादन आदि । ये
आँकड़े अवर्गिकृत रूप में रहते हैं। जैसे—भूगोल विषय में 60 विद्यार्थियों के प्राप्तांक―
                47 02 39 64 22 46 28 02 09 10
                89 96 74 06 26 15 92 84 84 90
                32 22 53 62 73 57 37 44 67 50
                18 51 36 58 28 65 63 59 75 70
                56 58 43 74 64 12 35 42 68 80
                64 37 17 31 41 71 56 83 59 90
जब एक बार वर्गों की संख्या और प्रत्येक वर्ग का वर्ग अंतराल निश्चित कर लिया जाता
है, तब कच्चे आँकड़ों को वर्गीकृत किया जाता है जैसा कि तालिका में दर्शाया गया है।
यह एक प्रचलित विधि है जिसे फोर एंड क्रास विधि या मिलान चिकि नाम से जाना जाता
है। सबसे पहले वर्ग की प्रत्येक इकाई के लिए जिसके अंतर्गत वह आता है, एक मिलान
चिकि निर्धारित करते हैं। उदाहरण के लिए कच्चे आंकड़ों में पहली संख्या 47 है, जो 40-
50 के वर्ग में आती है, सारणी के तीसरे कॉलम में एक मिलान चिह्न अंकित कर दिया जाता
आवृत्त प्राप्त करने के लिए बनाए गए मिलान चिह्न
ph
आँकड़ों को एकत्रित करने का काम समाप्त होने के उपरांत ही अंवेषक को इन आँकड़ों
को ऐसे रूप में प्रस्तुत करने की विधियों को ज्ञात करना होता है जो अर्थपूर्ण हो, सरलता
से समझी जा सकती हो और एक ही झलक में उसके मुख्य लक्षणों को जाना जा सकता हो ।
        वर्गीकृत तथा अवर्गीकृत आँकड़ों के प्रस्तुतिकरण को निम्न उदाहरण से भी समझा जा
सकता है―
        गणित की परीक्षा में 10 विद्यार्थियों द्वारा प्राप्त किए गए अंक लीजिए : 55 36 95 73
60 42 25 7875 62 इस रूप में प्रस्तुत किए गए आंकड़ों का अवर्गीकृत आँकड़े कहा
जाता है। यदि इन प्राप्तांकों को आरोही (ascending) या अवरोही (descending) क्रम
में रखा जाए तो अधिकतम अंक और न्यूनतम अंक ज्ञात करने में काफी कम समय लगेगा।
अतः हम प्राप्तांकों को आरोही क्रम में इस प्रकार रखें-25 36 42 55 60 62 73 75 78
95 । इस प्रकार हम स्पष्टतया देख सकते हैं कि न्यूनतम प्राप्तांक 25 और अधिकतम
प्राप्तांक 95 हैं। इस प्रकार वर्गीकृत तथा अवर्गीकृत आँकड़ों को प्रस्तुत करने के और भी
कई तरीके हो सकते हैं।
प्रश्न 21. आँकड़ों को प्रस्तुत करने के क्या-क्या तरीके हैं ? उदाहरण सहित
उनकी विशेषता बताइए।
उत्तर―आँकड़ों को दर्ज करने का कोई भी तरीका हो सकता है जो हम अपनी
आवश्यकता तथा निजी सुविधा के अनुसार किसी भी विधि से कर सकते हैं, परंतु यदि
आँकड़ा दूसरे लोगों के लिए तैयार करने हो तो आंकड़ों के प्रस्तुतीकरण में स्पष्टता होनी
आवश्यक है। तभी अन्य लोग सरलता से आँकड़ों से निष्कर्ष निकाल पाएंगे। आँकड़ों की
संख्या तथा उसके प्रकार के आधार पर ही आँकड़ों का प्रस्तुतीकरण किया जाता है। कई
प्रकार की ऐसी ग्राफीय विधि उपलब्ध है जिन्हें भिन्न-भिन्न आकड़ों के प्रस्तुतिकरण हेतु प्रयोग
में लाया जा सकता है। इनमें से आँकड़ों के प्रस्तुतीकरण की कुछ विधियाँ निम्नलिखित है―
       (क) चित्रालेख (pictograph)―प्राथमिक स्तर तक के बच्चों को आंकड़ों के
ग्राफीय निरूपण से परिचित करवाने का एक सरल तथा आकर्षक माध्यम है चित्रालेख,
जिससे बच्चों के चित्रालेख बनाने की क्षमता को विकसित किया जा सकती है।
       उदाहरण―किसी विद्यालय में एक महीने के चार हफ्तों में प्रत्येक शुक्रवार को मिलने
वाले अंडों की संख्या संबंधी आँकड़े को चित्रालेख के माध्यम से दर्शाना।
पहला शुक्रवार ― 45 अंडे
दूसरा शुक्रवार ― 50 अंडे
तीसरा शुक्रवार ― 60 अंडे
चौथा शुक्रवार ― 55 अंडे
पहला शुक्रवार
दूसरा शुक्रवार  ●●●●● –       ●= 10 अंडे
तीसरा शुक्रवार ●●●●●●       – =15 अंडे
चौथा शुक्रवार   ●●●●● –
समय                    पहला घंटा      दूसरा घंटा   तीसरा घंटा    चौथा घंटा    पाँचवा घंय
वाहनों की संख्या    600              400           300            200           500
ph
(ख) दंडालेख (bar graph)― दंडालेख भिन्न-भिन्न ऊँचाइयों के आधार पर आँकड़ों
के निरूपण की एक सामान्य एवं सरलतम विधि है। बारंबारता तालिका की अपेक्षा स्तंभ
दंडालेख का लाभ यह है कि इसे देखकर कुछ जानकारियाँ स्पष्ट हो जाती है। दंड आलेख
विभिन्न श्रेणियों के बीच तुलना करने के काम आता है। दंडालेख समान चौड़ाई के दंडों
द्वारा संख्याओं का निरूपण है, जिसमें दंडों की लंबाई क्रमशः उनके मानों के समानुपाती होती है।
इसमें दंड ऊध्वाधर अथवा क्षैतिज बनाए जाते हैं तथा प्रत्येक दंड के बीच समान दूरी होती है।
          उदाहरण―पटना के डाक बंगला चौराहे पर एक दिन सुबह आठ बजे से दोपहर एक
बजे तक गुजरने वाले वाहनों के आँकड़े―
समय                    पहला घंटा    दूसरा घंटा    तीसरा घंटा    चौथा घंटा    पांचवा घंटा
वाहनों की संख्या     600           400            300            200           500
      (ग) आयत चित्र (histogram)―बार ग्राफ में दंडों के मध्य रिक्तता पाई जाती है
जबकि आयत चित्र के दंडों के मध्य कोई रिक्तता नहीं पायी जाती है। यह भी आँकड़ों को दंडों
द्वारा प्रदर्शित करनने का एक तरीका है। आयत चित्र में क्षैतिज अक्ष पर वर्ग अंतरालों (प्रेक्षणों
के समूह) को दिखाया जाता है तथा दंड की लंबाई वर्ग अंतराल की वारंवारता दर्शाती है।
        उदाहरण―किसी विद्यालय के कक्षा-5 के 30 विद्यार्थियों के भारों की वर्गीकृत
बारम्बारता सारणी के आँकड़ों का आयत चित्र द्वारा प्रदर्शन―
वर्ग अंतराल          बरम्बारता (भार)
35-40                3
40-45                7
45-50              12
50-55                5
55-60                3
_________________
योग                  30
_________________
(घ) वृत्त आलेख (pie chart)― इसमें आँकड़ों को वृत्तीय रूप में प्रदर्शित कर निष्कर्ष
भिन्न, प्रतिशत तथा डिग्री के रूप में निकाल सकते हैं । वृत्तीय आलेख एक संपूर्ण और उसके
भागों में संबंध दर्शाता है। इसमें संपूर्ण वृत्त को क्रिज्या खंडों में विभाजित किया जाता है तथा
प्रत्येक क्रियाखंड का क्षेत्र उसके द्वारा निरूपित सूचना के समानुपाती होता है। वित्तीय
आलेख को पाई चार्ट भी कहा जाता है।
       उदाहरण―किसी विद्यालय के कक्षा-5 के 36 बच्चों के पसंद के भोजन का वृत
आलेख द्वारा आँकड़ों का निरूपण―
पसंदीदा भोजन    बच्चों की संख्या    सम्पूर्ण का भाग   प्रतिशत के रूप में      360° का भाग
खिचड़ी               9                       9/36 = 1/4       25%                       90°
लिट्टी चोखा          3                       3/36 = 1/12    8.3%                      30°
रोटी सब्जी        18                      18/36-1/2         50%                    180°
दाल चावल          6                      6/36 = 1/6       16.7%                     60°
_____________________________________________________________________
कुल                 36                               1               100%                    360°
_____________________________________________________________________
ph
प्रश्न 22. आंकड़ों द्वारा मान पता करना तथा दैनिक परिस्थितियों में इनके उपयोग
संबंधी उदाहरण दें।
उत्तर–प्रतिदिन हमें तथ्यों, संख्यात्मक अंकों, सारणियों, आलेखों (ग्राफों) आदि के
रूप में विभिन्न प्रकार की सूचनाएँ देखने को मिलती रहती हैं। ये सूचनाएँ हमें समाचार
पत्रों, टेलीविजनों, पत्रिकाओं और संचार के अन्य साधनों से उपलब्ध होती रहती हैं। ये
सूचनाएं क्रिकेट की बल्लेबाजी या गेंदबाजी के औसतों, कंपनी के लाभों, नगरों के तापमान,
पंचवर्षीय योजना के विभिन्न क्षेत्र एवं मदों में किए गए खचों, मतदान के परिणामों आदि
से संबंधित हो सकते हैं। एक निश्चित उद्देश्य से एकत्रित किए गए इन तथ्यों या अंकों को,
जो संख्यात्मक या अन्य रूप में हो सकते हैं, आंकड़े (data) कहा जाता है। हम जीवन
पर्यंत किसी न किसी रूप में आंकड़ों का प्रयोग करते रहते हैं। अत: हमारे लिए यह
आवश्यक हो जाता है कि इन आंकड़ों से हम अपनी इच्छानुसार अर्थपूर्ण सूचनाएँ उपलब्ध
करना और उपयोग करना जान जाएँ।
आँकड़ों द्वारा मान पता करने के लिए दैनिक जीवन की परिस्थितियों के कुछ उदहारण
निम्नलिखित हैं―
          (क) आठवीं कक्षा के 40 विद्यार्थियों से उनके जन्म का महीना बताने के लिए कहा
गया। इस प्रकार प्राप्त आंकड़ों से निम्नलिखित आलेख बनाया गया―
ph
ऊपर दिए गए आलेख को देखकर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दिए जा सकते हैं―
(i) नवंबर के महीने में कितने विद्यार्थियों का जन्म हुआ ?
(ii) किस महीने में सबसे अधिक विद्यार्थियों का जन्म हुआ?
हल : ध्यान दीजिए कि यहाँ चर ‘जन्म दिन का महीना’ है और चर का मान ‘जन्म
लेने वाले विद्यार्थियों की संख्या’ है।
(i) नवंबर के महीने में 4 विद्यार्थियों का जन्म हुआ।
(ii) अगस्त के महीने में सबसे अधिक विद्यार्थियों का जन्म हुआ।
(ख) एक कक्षा के 36 विद्यार्थियों के भार दिए गए हैं―
भार (kg में)               विद्यार्थियों की संख्या
30.5-35.5               9
35.5-40.5               6
40.5-45.5             15
45.5-50.5               3
50.5-55.5               1
55.5-60.5               2
__________________________________
कुल योग                 36
__________________________________
पीछे दिए गए आंकड़ों को आलेखीय रूप में इस प्रकार रूिपित करें―
ph
यहाँ एक दृष्टि में ही आँकड़ों के सापेक्ष अभिलक्षणों को सरलता से देख सकते हैं।
प्रश्न 23. केंद्रीय प्रवृत्ति की समझ स्पष्ट करें।
उत्तर―केंद्रीय प्रवृत्ति आँकड़ों की संक्षिप्त रूप में व्याख्या करने की संख्यात्मक विधि
है। दैनिक जीवन में हम आँकड़ों के विशाल समुच्चय के संक्षेपण के उदाहरण देख सकते
हैं, जैसे किसी कक्षा में छात्रों द्वारा किसी परीक्षा में प्राप्त किए गए औसत अंक, क्षेत्रा विशेष
की औसत वर्षा, किसी कारखाने में औसत उत्पादन, किसी फर्म में काम करने वाले या किसी
स्थान विशेष में रहने वाले लोगों की औसत आय आदि । केंद्रीय प्रवृत्ति की अवधारणा को
हम निम्नलिखित उदाहरण से समझ सकते हैं―
        बैजू एक किसान है । वह गाँव में अपने खेत में खाद्यान्न का उत्पादन करता है । उस
गाँव में 50 छोटे कृषक हैं । बैजू के पास एक एकड़ भूमि है। यदि हम गाँव में बैजू की
आर्थिक स्थिति के तुलना करना चाहते हैं तो गाँव के दूसरे किसानों की जोतों के आकार
के साथ बैजू की जोत के आकार का तुलनात्मक मूल्यांकन करना होगा। इसके लिए जानने
की जरूरत होगी कि क्या बैजू की भूमि―
1. सामान्य अर्थ में औसत से ऊपर है (देखें नीचे दिया गया माध्य)
2. आधे किसानों की जोतों के आकार से अधिक है (देखें नीचे दी गई मध्यिका)
3. अधिकतर किसानों की जोत से अधिक है (देखें नीचे दिया गया बहुलक)
बैजू की तुलनात्मक आर्थिक स्थिति के मूल्यांकन के लिए गाँव के सभी किसानों की
जोतों के आंकड़ों के संपूर्ण समुच्चय का संक्षेपण करना होगा। इसे केंद्रीय प्रवृति के माप
द्वारा किया जा सकता है, जो आँकड़ों का संक्षेपण किसी एकल मान में इस प्रकार करता
है कि यह एकल मान संपूर्ण आँकड़ों का प्रतिनिधित्व करे । केंद्रीय प्रवृत्ति की माप प्रतिनिधि
या विशिष्ट मान के रूप में आँकड़ों के संक्षेपण का एक तरीका है। केंद्रीय प्रवृत्ति या औसतों
के कई सांख्यिकीय माप हैं । तीन सर्वाधिक प्रचलित औसत निम्नलिखित हैं―
● समांतर माध्य
● मध्यिका
● बहुलक
समांतर माध्य (Arithmetic Mean)-मान लीजिए 6 परिवारों की मासिक आय (रु.
में) निम्नलिखित है:
                       1600, 1500, 1400, 1525, 1625, 1630
यहाँ पर परिवारों की औसत आय प्राप्त करने के लिए आय को एक साथ जोड़कर,
उसे परिवारों की संख्या से विभाजित किया गया है।
रु.1600+1500+1400+1525+1625 +1630/6 = 1547 रु.
       इससे पता चलता है कि औसतन एक परिवार 1547 रु. अर्जित करता है। समांतर
माध्य केंद्रीय प्रवृत्ति का सबसे अधिक प्रयोग किया जाने वाला माप है। समांतर माध्य को
सभी प्रेक्षणों के योग को उनकी कुल संख्याओं से विभाजन के रूप में परिभाषित किया जाता है।
       मध्यिका (Median) आँकड़ों में चरम मानों की उपस्थिति के द्वारा समांतर माध्य
प्रभावित होता है। यदि केंद्रीय प्रवृत्ति का ऐसा माप लेते हैं, जो आँकड़ों की मध्य स्थिति पर
आधारित है, तो यह चरम मानों से प्रभावित नहीं होगा। मध्यिका उस चर का स्थितिक मान
है जो वितरण को दो समान भागों में बाँट देता है। एक भाग के अंतर्गत सभी मान मध्यिका
मान से अधिक या उसके बराबर होते हैं और दूसरे भाग के सभी मान उससे कम या उसके
बराबर होते हैं। जब आँकड़ा समुच्चय को उनके परिमाण के क्रम में व्यवस्थित किया जाय
तो मध्यवर्ती मान मध्यिका होता है। आँकड़ों को क्रमशः सबसे छोटे से सबसे बड़े की ओर
व्यवस्थित करते हुए मध्यिका को मध्य मान द्वारा आसानी से अभिकलित किया जा सकता
है। जैसे—मान लीजिए एक आँकड़ा समुच्चय में निम्नलिखित प्रेक्षण हैं—
           5, 7,6,1, 8, 10, 12, 4, और 3
आँकड़ों को आरोही क्रम में व्यवस्थित करते हुए पाते हैं―
           1, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 10, 12
         यहाँ पर ‘मध्य अंक’ 6 है। अतः मध्यिका भी 6 है। इसमें आधे अंक 6 से अधिक
हैं और आधे 6 से कम । यदि आँकड़ों में सम संख्याएँ होती हैं, तब दो प्रेक्षण होंगे, जो मध्य
में होंगे। ऐसी स्थिति में मध्यिका को इन दो मध्य मानों के समांतर माध्य द्वारा अभिकलित
किया जाता है।
         बहुलक (Mode)―बहुलक शब्द फ्रेंच भाषा के शब्द ‘ला मोड’ (La Mode) में
व्युत्पन्न है, जो वितरण के सर्वाधिक प्रचलित मानों का द्योतक है, क्योंकि यह श्रृंखला में
सबसे अधिक बार दोहराया जाता है। बहुलक सर्वाधिक प्रेक्षित आँकड़ा मान है। उदहारण
के लिए एक विनिर्माता जूते के उस आकार, जिसकी माँग अधिकतम है या किसी खास
स्टाइल की शर्ट, जिसकी बहुत अधिक माँग है, के बारे में जानना चाहता है। ऐसी स्थिति
में बहुलक एक सर्वाधिक उपयुक्त माप है।
            आँकड़ा समुच्चय 1, 2, 3, 4, 4, 5 को लें। यहाँ पर इस आँकड़े का बहुलक 4 है,
क्योंकि यह आंकड़ा समुच्चय में सबसे अधिक बार (दो बार) आया है।
प्रश्न 24. एक उदाहरण के द्वारा “चर” शब्द का अर्थ स्पष्ट कीजिए। कक्षा 6 के बच्चों को
चर की अवधारणा समझाने के लिए किसी एक गतिविधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर–चर की समझा विकसित करना बीजगणित की समझ विकसित करने के लिए
बहुत जरूरी है। बीजगणित में चर का इस्तेमाल किसी बीजीय व्यंजक में अज्ञात संख्या के
स्थान पर होता है। यह कोई भी संख्या हो सकती है जिसे किसी प्रतीक के द्वारा निरूपित
करते हैं। जैसे—माना x एक संख्या है या x+5<12; यहाँ x का मान 1,2,3,4,5,
6 कुछ भी हो सकता है।
            आमतौर पर जब हम संख्याओं के स्थान पर चर का उपयोग करते हैं तो बच्चों की
समझ इसे स्वीकार करने में कठिनाई महसूस करती है । अतः हम निम्न गतिविधि द्वारा उनमें
चर की अवधारणा विकसित करने का प्रयास कर सकते हैं―
        कक्षा में एक डिब्बा रख कर कहेंगे कि इसमें कुछ कंचे हैं । अनुमान लगाओं कितने?
बच्चे 10, 15, 25 जैसी संख्याएँ कहेंगे। उनसे उनकी कही हुई संख्याएँ याद रखने को
बोलेंगे । अब उनसे पूछेगे कि यदि इनमें 10 और कंचे जोड़ दें तो कितने होंगे ? वे कहेंगे
220, 25, 35 आदि।
        अब हम उन्हें बोर्ड पर शब्दों में लिख देंगे जो व्यापक कथन होगा―
कुल कंचे होंगे:                         कंचों की संख्या + 10
      थोड़ी चर्चा के बाद वह इस कथन को स्वीकार कर लेंगे। अब उनसे पूछेगे कि यदि
8 कंचे मैं वापस ले लूं, तब कितने कंचे बचेंगे ? उनका उत्तर होगा 12, 17, 27 आदि ।
इसे भी बोर्ड पर लिखेंगे―
(कंचों की संख्या) + 10–8 यानि
कंचों की संख्या +2
     अब यह चर्चा होगी कि बार बार “कंचों की संख्या” के स्थान पर कोई चिह्न या प्रतीक
लिखने पर मेहनत की बचत होगी। इस प्रकार यदि हम “कंचों की संख्या” को n लिखें
तो बच्चे इस बात से सहमत हो जाते हैं कि अब उनके पास n + 2 कंचे हैं।
        अब यदि डिब्बों में n कंचे थे तो एक और डिब्बा जोड़ लेने पर धीरे-धीरे बच्चे इसे
n+n+ 2 लिखना सीख जाऐंगे। यनि 2n + 2 । हम उन्हें बता सकते हैं कि कंचों की
संख्या दर्शाने के लिए वे जिस अक्षर n का उपयोग कर रहे हैं वह एक चर है । क्योंकि यह
कोई भी संख्या हो सकती है और इसका मान अनिश्चित है।
प्रश्न 25. चर की अवधारण के उपयोग से संबंधित 3 गलतियाँ बताईए जो बच्चे
करते हैं। बच्चों को चर का इस्तेमाल कैसे सिखाएँ ? कुछ उदाहरण दीजिए।
उत्तर–बीजगणित सीखना शुरू करने पर बच्चे कई गलत फहमिया पालते जाते हैं।
जिनसे भिन्न स्थितियाँ बनती हैं―
(क) बच्चे यह नहीं समझते कि अक्षर किसी संख्या को दर्शाता है। इसलिए वह इसे
अनदेखा कर देते हैं। जैसे―3x+4= 7 होता है।
(ख) बच्चे सोचते हैं कि अक्षर किसी खास संख्या को दर्शाता है । जब उनसे पूछा
जाता है कि यदि x+6 = 10 से कम हो तो x का मान क्या होगा तो जवाब होता है x=1
(ग) कई बच्चे यह नहीं समझ पाते कि अक्षरों पर संक्रियाओं के नियम कैसे लागू करें।
कुछ बच्चे 3x + x + 5x = 8x लिखते हैं (x का गुणांक 1 को अनदेखा करने की वजह से)
           कुछ aᵐ⁻ⁿ= aᵐ–aⁿ लिख देते हैं।
बच्चों को चर सिखाने संबंधित कुछ उदाहरण निम्न हैं―
(क) बच्चे और उसकी मां के बीच का संबंध― उन्हें बताते हैं कि यदि माँ की उम्र
बच्चे की उम्र की 5 गुने से 6 वर्ष ज्यदा है तो वे आपस में चर्चा करे बताएं कि इस संबंध
को कैसे दर्शाएंगे।
               यदि बच्चे उम्र को चरx मान लें तो माँ की उम्र 5x+6 होगी।
(ख) किसी प्राकृत संख्या की अगली प्राकृत संख्या–बच्चों से पूछते हैं कि वे इस बात
को प्रतीकों से कैसे दर्शाएंगे कि किसी प्राकृत संख्या की अगली प्राकृत संख्या उसमें 1 जोड़ने
से प्राप्त होती है।
            यदि संख्या : है तो अगली संख्या x + 1 होगी।
(ग) तिकोन बनाने के लिए जरूरी तीलियों की संख्या– बच्चों से पूछते हैं कि एक
तिकोन तथा दो तिकोन (जो एक दूसरे को न छूए) बनाने में कितनी तीलिया लगती है ?
उनके जवाबों को एक तालिका के रूप में लिख देते हैं―
तिकोनो की संख्या       1      2     3
तीलियों की संख्या       3      6     9
उन्हें तिकोनों की संख्या और उनमें लगने वाली तीलियों की संख्या के बीच संबंध पता
करने को बोलते हैं। पैटर्न पहचानने पर उन्हें प्रतीकों में व्यापक रूप से लिखने को बोलते हैं।
(माना तिकोनों की संख्या =x, तो लगने वाली तीलियों की संख्या = 3x)
प्रश्न 26. ज्यामिति रचनाओं के शैक्षिक निहितार्थ के चर्चा करें एवं विभिन्न ज्यामितीय
आकृतियों के गुणों का वर्णन करें।
उत्तर―बच्चों को इस स्तर पर विभिन्न प्रकार के नियमित आकार पढ़ाए जाते हैं जैसे
त्रिभुज, वृत्त, चतुर्भुज। ये उन्हें नया गणितीय अनुभव प्रदान करते हैं। बच्चे अपने आसपास
ऐसे सभी आकारों को देखना प्रारंभ करते हैं और कई सममितियाँ खोजते हैं व सौंदर्यशास्त्रीय
भाव प्राप्त करते हैं। दूसरे, वे यह सीखते हैं कि कितने अनियमित लगने वाले आकार
नियमित आकारों द्वारा मापे जा सकते हैं, जो विज्ञान में एक महत्त्वपूर्ण तकनीक है। तीसरे,
वे दिक्स्थान (स्पेस) के विचार को समझना प्रारंभ कर देते हैं । उदाहरण के लिए वृत्त एक
पथ या सीमा है जो उसके बाहर के स्पेस को भीतर के स्पेस से अलग करता है। चौथा,
वे अंकों को आकारों से जोड़ना प्रारंभ कर देते हैं जैसे क्षेत्रफल, परिमाप आदि और
सांख्यिकीकरण या अंकगणितीकरण की यह विधि अत्यंत महत्त्वपूर्ण है । इससे यह सुझाव
भी मिलता है कि क्षेत्रमिति तभी सर्वोत्तम होती है जब वह ज्यामिति से जुड़ी हो।
      ज्यामितीय आकृतियों पर काम करते हुए बच्चों को गणितीय प्रक्रियाओं (जैसे अटकल
लगाना, बिम्ब निर्माण करना, परिकल्पना बनाना, अनुमान लगाना, चयन करना, डिजाइनिंग
और योजना बनाना, योजना को क्रियान्वित करना, निर्णय लेना, व्यवस्थित करना या सवाल
हल करना) में शामिल होने का मौका मिलता है। ज्यामिति के द्वारा गणित में बिन्दुओं,
रेखाओं, तलों और ठोस चीजों के गुण, स्वभाव, मापन और उनके अन्तरिक्ष में सापेक्षित
स्थिति का अध्ययन किया जाता है । ज्यामिति, ज्ञान की सबसे प्राचीन शाखाओं में से एक है।
विभिन्न ने ज्यामितीय आकृतियों के गुणों का वर्णन निम्नलिखित है―
(क) त्रिभुज― त्रिभुज में तीन भुजाएँ और तीन कोण होते हैं । त्रिभुज सबसे कम भुजाओं
वाला बहुभुज है। किसी त्रिभुज के तीनों आन्तरिक कोणों का योग सदैव 180° होता है। इस
भुजाओं और कोणों के माप के आधार पर त्रिभुज का विभिन्न प्रकार से वर्गीकरण किया जाता है।
(ख) चतुर्भुज–प्रत्येक चतुर्भुज मेंचार भुजाएँ होते हैं। प्रत्येक चतुर्भुज में चार कोण
होते हैं। प्रत्येक चतुर्भुज में चार शीर्ष होते हैं। प्रत्येक चतुर्भुज में चरों अन्त: कोणों का योग
360° अंश होता है।
(ग) वृत्त―केन्द्रः वृत्त के अंदर एक बिन्दु । वृत्त पर सभी बिन्दु केन्द्र बिन्दु से समान
दूरी पर होते हैं । त्रिज्या, त्रिज्या केन्द्र से वृत्त पर किसी भी बिन्दु की दूरी होती है । वह व्यास
की आधी होती है । चाप, वृत्त पर दो बिन्दुओं को जोड़ने वाला एक सरल रेखा का खंड
व्यास, केन्द्र से गुजरने वाली किसी भी चाप की लम्बाई । वह त्रिज्या की दोगुनी होती है।
(घ) धन—इसकी लम्बाई, चौड़ाई एवं ऊँचाई सामान होती हैं। एक घन में छ:
फलक, बारह किनारे एवं आठ कोने होते हैं।
(ङ) घनाभ―एक घनाभ के छ: फलक होते हैं। एक घनाभ के सभी कोण समकोण।
होते हैं। इसके सभी फलक आयताकार होते हैं।
(च) बेलन–बेलन एक ठोस ज्यामितिक आकृति है जिसके अगर हम हिस्से करेंगे तो
इसमें दो वृत्त होंगे एवं एक वक्र पृष्ठ होगा। जो दो वृत्त हैं वे इस बेलन के आधार कहलायेंगे।
ये दोनों वृत्त एक दूसरे से सर्वांगसम होते हैं एवं समान्तर होते हैं। बेलन की ऊँचाई इन दो
आधारों के बीच लम्बवत दूरी होती है । बेलन की त्रिज्या दोनों वृत्तों की त्रिज्या होती है। जो
रेखा एक बेलन के दोनों आधारों के केन्द्रों को जोड़ती है वह उस वृत्त की अक्ष कहलाती है।
(छ) शंकु―एक शंकु में केवल एक फलक होता है एवं वह फलक गोलाकार होता
है। यह शंकु का नीचे का हिस्सा होता है । इसे शंकु का आधार भी कहा जाता है। एक
शंकु में एक शीर्ष होता है । शंकु के किनारों को घुमाया जाता है एवं उन्हें एक बिंदु पर मोड़
दिया जाता है जिससे हमें शंकु का शीर्ष मिलता है। एक शंकु की चौड़ाई उसके गोलाकार
फलक का व्यास होता है।
(ज) गोला―एक गोला पूर्णतया समरूप होता है। इसके तल पर सभी बिंदु इसके
केंद्र से सामान दूरी पर होते हैं। इसमें कोई शीर्ष या किनारा नहीं होता है। गोले का सिर्फ
एक ही तल होता है। यह एक बहुतल आकृति नहीं होती है।
प्रश्न 27. एक त्रिविमीय वस्तु का जाल के द्वारा द्विविमीय निरूपण करने के
कौशल का विकास किस प्रकार करेंगे? एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट करें।
उत्तर―किसी त्रिविमीय वस्तु को चित्र के द्वारा द्विविमीय सतह पर प्रस्तुत किया जा
सकता है। इसमें त्रिविमीय वस्तु की कई जानकारियाँ गुम हो जाती हैं। चित्र देखते समय
देखने वाले को इस जानकारी को दोबारा निर्मित करना होता है। जैसे― किसी चित्र को देखते
समय यह समझना पड़ता है कि चित्र के ऊपरी हिस्से में बनाई गई चीजें य तो आकाश में
उड़ती हुई चीजें हो सकती है या नीचे बनाई गई चीजें चीजों के पीछे की चीज है। उसे
यह भी समझना होता है कि पास की चीज बड़ी बनाई जाती है जबकि दूर की चीजें छोटी।
बच्चों में त्रिविमीय वस्तु के द्विविमीय निरूपण करने के कौशल का विकास ग्राफ ग्रिड
या समबाहु नेट के द्वारा किया जा सकता है। इसमें पेपर एक सीध में उभरे हुए बिंदुओं को
समबाहु त्रिभुज के आकार में आपस में जोड़कर त्रिविमीय वस्तु का द्विविमीय रूप से निरूपण
किया जाता है जैसे कि घन ।
Ph
      यदि त्रिविमीय आकृति को नेट के रूप में खोलते हैं तो उसके विभिन्न फलक प्राप्त
होते हैं। इकाई घन को यदि हम नेट के रूप में खोलें तो हमें लगभग कई अलग-अलग
नेट प्राप्त हो सकते हैं। इसमें तिरछी रेखाओं के उपयोग एवं सममिति रेखाओं की समझ
के बाद त्रिआयामी आकारों को चित्रित करना सरल हो जाता है।
प्रश्न 28. जगह की समझ और ज्यामिति के सीखने में बच्चों की सामान्य
गलतियाँ एवं सोचने के तरीकों का उल्लेख करें।
उत्तर―जगह की समझ और ज्यामिति के सीखने में बच्चे निम्न प्रकार गलतियों करते
हैं व सोचते हैं―
(क) ज्यामितीय आकृतियों की परिभाषाएँ अधिकांश बच्चों को याद रहती हैं, लेकिन
ये भी देखने में आता है कि यदि थोड़ा सा घुमाकर पूछ लिया जाए तो वे चक्कर में पड़
जाते हैं। जैसे—कोई आकृति आयत है या नहीं? इसके जवाब में वे समझते हैं कि
आमने-सामने की भुजाएँ बराबर होनी चाहिए । बच्चे का कोण की तरफ ध्यान बाद में जाता
है। कई बार वे आकृतियाँ देखकर ही तय कर लेते हैं।
(ख) त्रिआयामी आकृतियों को लेकर अलग तरह की समस्या देखने को मिलती है।
किसी नियमित आकृति को बच्चों के पास निरूपित करने का कोई विचार ही नहीं होता है
और यदि कुछ अलग तरह से आकृतियाँ बनी हों तो वे उन्हें पहचान भी नहीं पाते हैं। यदि
देखकर बनाने को कहें तो भी मुश्किल काम लगता है।
           ऐसी स्थिति में यदि हम इन आकृतियों के मॉडल बच्चों से बनवाएँ या उनका उपयोग
करें तो आकृतियों की समझ को आसानी से बच्चों तक पहुँचाया जा सकता है । इसके लिए
पहले एक आसान सा जाल (नेट) तैयार कर लें एवं उसे फोल्ड करते हुए चिपकाकर मॉडल
बना सकते हैं।
ph
(ग) बच्चों की समझ कुछ इस तरह बन जाती है कि ये खास आकृतियाँ ऐसी ही होती
हैं। यदि इन आकृतियों को को थोड़ा भी बदल दिया जाए यानि उसे थोड़ा घुमाकर बना दिया
जाए तो बच्चों को लगता है कि ये तो कोई और आकृति है। ऐसी धारणाएँ बनने का कारण
होता अलग-अलग तरह के निरूपण से परिचय न होना । यदि बच्चों को विभिन्न तरह के
अनुभव मिलें हों तो वे आकृतियों को गलत या उल्य नहीं बताएंगे बल्कि उस खास आकृति
की विशेषताओं को उसमें खोजने की कोशिश करते हुए दिखेंगे।
(घ) बिन्दु, रेखा, किरण, रेखाखंड जैसी ज्यामितीय आवधारणाओं से बच्चों का परिचय
प्राय: कक्षा 4 में कराया जाता है। धीरे-धीरे बच्चे स्थान संबंधी कुछ सहज विचार विकसित
करने लगते हैं, जैसे दूर, पास, लम्बा, छोटा आदि । इन्हीं सहज विचारों पर हम ज्यामिति
के पाठों के बुनियाद रखते हैं। इन विचारों और अवधारणाओं को सिखाने के लिए
औपचारिक परिभाषाओं या मौखिक वर्णन का सहारा लेते हैं । नतीजा यह होता है कि बच्चे
सिखाई गई अवधारणाओं का मानसिक चित्र निर्मित नहीं कर पाते । हो सकता है कि कोई
बच्चा वर्ग या किसी अन्य बंद आकृति की परिभाषा तो आसानी से बता दे मगर जब उससे
कहा जाए कि कई सारी आकृतियों में से वह आकृति विशेष पहचाने तो वह नहीं बता
पाएगा। जिस बच्चे ने कक्षा में वर्ग और समचतुर्भुज के बारे में सब कुछ सीखा है वह यह
नहीं बता पाता कि वर्ग किस किस्म का समचतुर्भुज है। वह अपने मस्तिष्क में इस आकृति
की छवि नहीं बना पाता ।
(ङ) किसी बच्चे को कक्षा में दो बेलनाकृतियों के आकार की तुलना करने में कठिनाई
होती है। जबकि घर पर वह बड़ी आसानी से 1 किलोग्राम शक्कर रखने के लिए बड़ा बर्तन
ढूंढ निकालता है।
       किसी चीज की आकृति व आकार का प्रत्यक्ष अनुभव देकर बच्चे को ज्यामितीय चीजें
बारीकी से देखने में मदद कर सकते हैं, ताकि वह विभिन्न आकृतियों व चित्रों के गुणधर्म
खुद ही पहचानने लगे।
प्रश्न 29. ज्यामिति सिखाने के लिए रोचक कक्षा प्रक्रियाओं/गतिविधियों का उल्लेख करें।
उत्तर–ज्यामिति एवं स्थानिक समझ के लिए बच्चों से निम्न प्रकार की गतिविधियाँ
कराई जा सकती हैं―
बच्चों में ज्यामितीय आकृतियों की थोड़ी समझ प्रारंभिक स्तर पर होती है । वेन हीले
का सिद्धांत बच्चों की समझ को पिछले स्तर से अगले स्तर तक पहुंचाने का काम करता
है। इसमें गतिविधियों के 5 क्रमबद्ध पड़ावों द्वारा हम ज्यामितीय आकारों की बनावट, स्वरूप,
गुणों पर बच्चों की समझ विकासित कर सकते हैं―
       गतिविधि सामान्य 7 हिस्सों वाले “टैनग्राम” का इस गतिविधि में उपयोग किया जाता
है, जिसमें विभिन्न ज्यामितीय आकृतियाँ गत्ते पर बनी होती है।
        बच्चों को इसकों टटोल कर आकृतियों को खोजने एवं उनकी रचनाएँ, गुण पहचानने
के खेल कराए जा सकते हैं। जिस समय वे खेल रहे होते हैं, शिक्षक के पास उनकी भाषा
और विचारात्मक क्षमताओं की समीक्षा करने का अवसर होता है।
पहला पड़ाव : पूछताछ―बच्चों को टैनग्राम के हिस्सों को तोड़ कर जोड़ कर बनी
आकृतियों एवं आकारों के बारे में पूछ सकते हैं। उन्हें आकारों की विशेषताओं एवं अंतर
संबंधों को खोजने के लिए प्रेरित करते हैं।
        दूसरा पड़ाव : प्रत्यक्ष दिशा निर्धारण―खोज-बीन को बढ़ाते हुए उन्ह प्रत्यक्ष दिशा
निर्देश दे सकते हैं। जैसे—कितने भिन्न-भिन्न तरीकों से सबसे बड़ा त्रिभुज बन सकता है।
दो आकृतियों और कितनी आकृतियों का निर्माण कर सकते हैं? इससे आकृतियों के संबंध
में ज्यादा विशिष्ट जानकारी हो जाती है।
ph
         तीसरा पड़ाव : समझा पाने का दौर—गतिविधियों के द्वारा जो समझ बनी हैं उनके
लिए शब्दकोष विकसित करने तथा आकृतियों की विशेषताएँ ढूंढने का कार्य इस पड़ाव में
करते हैं। जैसे—किन आकृतियों में समकोण पाए जाते हैं । (बाकी कोण किस प्रकार के
हैं), सभी त्रिभुजों में कौन-सी समानता हैं।
        चौथा पड़ाव : स्व निर्धारण इस पड़ाव का उद्देश्य है बच्चे जो कुछ भी सीख हैं वे
उसमें दक्षता हासिल कर लें या उसमें और भी समर्थ हो जाएं । चौथा पड़ाव दूसरे पड़ाव का ही
विस्तार है । ये बच्चों के अर्जित ज्ञान या कौशल पर आधारित है। जैसे—उनसे पूछते हैं कि आप
टैनग्राम के कुछ या सभी हिस्सों का इस्तेमाल कर कितने तरीकों से चौकोर बना सकते हैं?
          पाँचवा पड़ाव : समायोजन—इसमें सीखे गये सिद्धांतों पर विमर्श करने का अवसर
दिया जाता है, जिससे नई समझ परिपक्व हो सके, ताकि बच्चे जो सीखें उसका सारांश दे
पाएं । जैसे—प्रत्येक छात्र कोई आकृति चुने और उसकी विशेषताएँ बताए ।
        इस प्रकार बच्चे ज्यामितीय आकृतियों को समझ पाएंगे तथा अपने “दृश्यात्मक समझ
से “व्याख्यात्मक समझ” में बढ़ जाएंगे।
          क्षेत्रफल की अवधारणा हमारे जीवन में व्याप्त है। दैनिक जीवन में क्षेत्रफल के और
परिमान का रितर उपयोग किया जाता है । चूँकि क्षेत्रफल की अवधारणाएँ हमारे दैनिक जीवन
में इतनी ज्यादा मौजूद हैं कि शुरूआती विद्यार्थियों को गणित के अध्यायों में पढ़ने से पहले
ही इसकी सहज समझा होती है। हम किसी वस्तु के क्षेत्रफल के द्वारा उसके आकार या
स्थान घेरने का वर्णन करते हैं।
        कक्षा में इसकी अवधारणा समझाने हेतु चौकोर खाने वाली गतिविधि का प्रयोग कर सकते हैं―
ph
                     चौकोर कागज पर तीन इकाई वाला वर्ग
        हम बच्चों से चौखाने कागज की लाईनों का इस्तेमाल करते हुए एक इकाई लम्बाई
या अलग-अलग लम्बाई के वर्ग बनाने को कहें।
             हम किसी वर्ग के क्षेत्रफल को इकाई वर्गों की संख्या को गिन कर बताने को उनसे
कहें । जैसा चित्र में तीन इकाई लम्बाई का वर्ग है, जिसका क्षेत्रफल उसमें मौजूद कुल इकाई
लम्बाई के वर्गों की संख्या के बराबर होगा जोकि 9 वर्ग इकाई होगा। हम उनसे क्षेत्रफल
की तालिका बनवाकर क्षेत्रफल का व्यापक सूत्र भी निकलवा सकते हैं।
वर्ग की लम्बाई          3ई      4ई       5ई          ……..L
वर्ग का क्षेत्रफल        9ई    16ई     25ई          ……LxL
            अर्थात वर्ग का क्षेत्रफल उसके भुजा के वर्ग के बराबर होता है।
प्रश्न 30. उच्च प्राथमिक स्तर की गणित की पाठ्य पुस्तकों की समझ विकसित
करें। गणित की शिक्षण में इनका क्या महत्व है ?
उत्तर–पाठ्यपुस्तकें विद्यालय या कक्षा में छात्रों तथा शिक्षकों के लिए विशेष रूप से
तैयार की जाती हैं जो विषय से संबंधित पाठ्यवस्तु का प्रस्तुतीकरण करती है। वास्तव में
पाठ्य-पुस्तक की आवश्यकता मार्गदर्शन के लिए पड़ती है। वर्तमान शिक्षा में बदलते शैक्षिक
अंतदृष्टि, विचारों एवं शोध करने व उससे प्राप्त नतीजों के आधारों पर पाठ्यपुस्तकों को
समय-समय पर बदलने की आवश्यकता है। पाठ्यपुस्तकें मात्र सूचना आधारित न होकर
बच्चों को चिंतन व खुद से करके सीखने अर्थात् ज्ञान का सृजन करने के अवसर देने वाले
दृष्टिकोण पर आधारित होनी चाहिए।
         गणित के संदर्भ में पाठ्यपुस्तकें गणितीय संक्रियाएँ एवं अवधारणाओं को सीखने हेतु
आधार तैयार करती हैं, जिनके माध्यम से शिक्षक बच्चों को पाठ्यचर्या में उल्लिखित उद्देश्यों
के अनुसार गणितीय संक्रियाएँ एवं उन्हें दैनिक जीवन से जोड़कर सीखने हेतु गतिविधियों व
कक्षायी प्रक्रियाओं का संचालन व आयोजन करते हैं। इनमें पाठ्यचर्या में उल्लिखित
गणितीय शिक्षण के उद्देश्यों को सिलसिलेवार ढंग से गणितीय अवधारणाओं को इकाई एवं
अध्याय के माध्यम से बच्चों को महीने एवं साल के दौरान सीखने के लक्ष्यों को ध्यान में
रखते हुए तैयार किया जाता है।
इनमें वे तथ्य एवं सूचनाएँ संकलित होती हैं, जिनका ज्ञान उस स्तर के बच्चों को देना
चाहते हैं। आज की सम्पूर्ण शिक्षा ही पाठय-पुस्तकों पर ही आधारित हैं। आज ये
पाठ्यपुस्तकें शिक्षा के मुख्य साधन के रूप में प्रयोग की जाती हैं। अत: वर्तमान में
पाठ्यपुस्तकों का अत्यधिक महत्व है। सभी कक्षाओं के लिए पाठयपुस्तक का होना अनिवार्य
है। पाठय-पुस्तकें शिक्षक के कार्य की परिपूरक होती हैं। पाठ्यपुस्तकें अध्यापकों के लिए
पुस्तकें शिक्षित करने का सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्रोत है।
         इनमें विभिन्न गणितीय अवधारणाओं जैसे—परिमेय संख्याएँ, ज्यामितीय आकृतियाँ,
आँकड़ों का प्रबंधन, राशियों की तुलना, बीजीय व्यंजक, घात और घातांक, क्षेत्रमिति,
गुणनखंड आदि से संबंधित अध्यायों द्वारा दैनिक जीवन से संबंधित गतिविधियों व समस्याओं
और उन्हें हल करने के तरीकों का समावेश पाठ्यपुस्तक में किया जाता है। इनमें शिक्षकों
के सहयोग की महती आवश्यकता है। शिक्षक विद्यार्थियों को इन अवधारणाओं के
स्पष्टीकरण हेतु उन्हें गतिविधियों में शामिल कराकर तथा उनको सहयोग देकर उनके ज्ञान
में सतत् संवर्धन कर सकते हैं। साथ ही वे पुस्तक के मूल उद्देश्य को समझकर, अपनी
शिक्षण प्रक्रियाओं व विधियों । समय, स्थान आदि से मुक्त रखकर बच्चों को पाठ्य पुस्तक
की में दी गई अवधारणा को स्पष्ट करते हुए नए ज्ञान का सृजन कर सकते हैं । ज्ञान को
व्यवस्थित करने में पाठ्यपुस्तकें सहायक होती हैं । परीक्षा लेने में भी पाठ्य-पुस्तकें शिक्षकों
की सहायता करती हैं क्योंकि प्रश्न पाठ्य-पुस्तकों में से रखकर प्रश्न-पत्रों को पाठयक्रम
के अनुसार सीमित तैयारी के साथ परीक्षा में अथवा मूल्यांकन में सफल हो जाते हैं ।
प्रश्न 31. उच्च प्राथमिक स्तर पर गणित शिक्षण का मूल्यांकन कैसे करेंगे?
इसका क्या आशय है ? स्पष्ट करें।
उत्तर―परंपरागत मूल्यांकन व्यवस्था लगभग पूरी तरह से योगात्मक मूल्यांकन पर
आधारित है, जिसे सत्रांत परीक्षा, मासिक परीक्षा, और इकाई परीक्षा द्वारा किया जाता है।
इन परीक्षाओं का ध्यान इस बात पर होता है कि निश्चित अनुदेश या कलांश में, पूरा किये
गये पाठ्यक्रम के निश्चित भाग में, छात्र ने कितनी प्रगति की । इसे योगात्मक कहा जाता
था क्योंकि यह अनुदेशन के पूरा होने के बाद होता है, और यह शिक्षण अधिगम की सक्रिय
प्रक्रिया से जुड़ा नहीं है । इस प्रक्रिया में बच्चे की उपलब्धि का मूल्य निर्धारण कर उसे प्रगति
पत्रक के रूप में बच्चे अथवा अभिभावक को दे दिया जाता है। इस प्रकार का मूल्यांकन
परंपरागत परीक्षाओं में किया जाता रहा है।
     इसके स्थान पर वर्तमान में सतत एवं व्यापक मूल्यांकन द्वारा मूल्यांकन की मूल’ भावना
में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं। सतत् और व्यापक मूल्यांकन में छात्र के विकास
के सभी पहलुओं को शामिल किया गया है एवं ये छात्र की स्कूल आधारित मूल्यांकन प्रणाली
को दर्शाता है जो छात्र के विकास की प्रक्रिया है। इसके उद्देश्य मूल्यांकन में निरंतरता और
व्यापक आधार पर शिक्षा और अन्य व्यवहार परिणामों का आकलन करना हैं। यह
नियमितता, इकाई परीक्षण, सीखने के अंतराल, सुधारात्मक उपायों के उपयोग, शिक्षकों ओर
छात्रों के लिए उनके आत्म मूल्यांकन की प्रतिक्रिया है। शब्द ‘निरंतर’ छात्रों के विभिन्न
पहलुओं का निरंतर मूल्यांकन करता है।
         दूसरा शब्द ‘व्यापक’ शैक्षिक योजना और छात्रों के विकास, विकास के सह-शैक्षिक
पहलुओं दोनों को कवर करने का प्रयास करता है एवं शिक्षा के क्षेत्र में एक छात्र में निम्न
कौशलों का विकास करता है—ज्ञान, समझ, लागू करना, विश्लेषण करना, मूल्यांकन करना,
सृजन करना । बच्चों का मूल्यांकन निम्नलिखित तरीकों से मूल्यांकन की प्रविधियों द्वारा किया
जा सकता है―
(क) परीक्षा प्रविधि―परीक्षा प्रविधि में मौखिक तथा लिखित एवं प्रायोगिक परीक्षाएँ
ली जाती हैं। लिखित परीक्षा में वस्तुनिष्ठ तथा निबंधात्मक दो परीक्षाएँ होती है।
(ख) अभिवृत्ति मापनी―इस प्रविधि में किसी कार्य के संबंध में कथनों या विचारों
का संग्रह होता है। उसमें से उत्तरदाता जिससे से सहमत होता है उस पर सही का चिह्न लगा
देता है। अभिवृत्ति मापनी द्वारा एक या अधिक से व्यक्तियों की धारणा की मात्रा अथवा
अभिवृत्ति ज्ञात की जाती है।
(ग) अवलोकन―विशिष्ट लक्षणों के संदर्भ में किसी भी घटना या कार्य को ध्यान
से देख्ला ही अवलोकन कहलाता है। अवलोकन के द्वारा छात्रों की बौद्धिक परिपक्वता तथा
उनके सामाजिक और संवेगात्मक विकास की परख की जाती है, जिससे छात्रों में विकसित
आदतों तथा अन्य कौशलों की जानकारी प्राप्त हो जाती है ।
(घ) क्रम निर्धारण मान–क्रम निर्धारण मान द्वारा छात्र के अंदर किसी गुण अथवा
योग्यता के विकास की मात्रा का पता लगाया जाता है। इस स्केल में कुछ मानदंड दिए रहते
हैं जिनके आधार पर रेटिंग की जाती है।
(ङ) छात्रों द्वारा उत्पादित वस्तुएँ–छात्रों द्वारा उत्पादित वस्तुओं से अभिप्राय उन
वस्तुओं से है जिन्हें छात्र स्वयं तैयार करते हैं जैसे—चित्र, मानचित्र, प्रतिरूप आदि । छात्रों
द्वारा निर्मित वस्तुओं से उनकी रुचि अभिरुचि, योग्यता तथा कुशलता की जांच की जाती है।
(च) पड़ताल सूचियाँ―पड़ताल सूचियाँ व्यक्तिगत सूचना तथा विचार जानने का
प्रमुख साधन है। राइटस्टोन के अनुसार “पड़ताल सूची जैसा कि उसके नाम से स्पष्ट है
कुछ चयनित शब्दों, वाक्यांशों तथा वाक्य अनुच्छेदों की एक सूची होती है जिसके आगे
निरीक्षक सही का चिह्न अंकित कर देता है जो कि निरीक्षक की उपस्थिति तथा अनुपस्थिति
का सूचक होती है।”
(छ) अनुसूची―इस विधि द्वारा सर्वेक्षणकर्ता स्वयं अपने अध्ययन क्षेत्र में जाकर
निर्धारित व्यक्तियों से प्रश्न पूछता है तथा अनुसूची तैयार करता है।
(ज) प्राप्तांक पत्र― प्राप्तांक पत्र के अंतर्गत उत्तरदाता को एक व्यापक तथा विस्तृत
स्तर की किसी वस्तु या व्यक्ति के भिन्न-भिन्न पक्षों से संबंधित रूपरेखा दी जाती है।
उत्तरदाता केवल एक ही पक्ष का निर्धारण करता है। प्राप्तांक पत्रों को अनेक कार्यो के
मूल्यांकन के लिए प्रयोग किया जाता है।
    (झ) साक्षात्कार―साक्षात्कार के द्वारा व्यक्ति की समस्याओं तथा गुणों का ज्ञान प्राप्त
किया जा सकता है। शिक्षा प्राप्त करने में छात्रों के समक्ष कई समस्याएं उत्पन्न होती है।
इन विभिन्न समस्याओं को समझाने तथा उनका समाधान करने हेतु छात्रों की सहायता करने
के लिए साक्षात्कार एक महत्वपूर्ण युक्ति है। साक्षात्कार में निम्नलिखित तत्व समान रूप
से पाए जाते हैं―
        विशिष्ट उद्देश्य, मौखिक वार्तालाप, साक्षात्कारकर्ता, साक्षात्कार देने वाला व्यक्ति ।
(ञ) अभिलेख–छात्रों द्वारा तैयार किए गए घटनावृत्त तथा संचित अभिलेख पत्र और
छात्रों की डायरी भी मूल्यांकन की महत्वपूर्ण प्रविधियाँ है । अभिलेख निम्नलिखित तीन प्रकार
के होते हैं-घटना वृत्त, संचित अभिलेख पत्र, प्रश्नावली।
प्रश्न 32. उच्च प्राथमिक स्तर पर गणित सीखने के उद्देश्यों का वर्णन करें।
उत्तर―राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा अनुसार गणित का शिक्षण के उद्देश्य हैं―
(क) गणित की शिक्षा का मुख्य उद्देश्य बच्चों का गणितीयकरण कर उनकी क्षमताओं
का विकास करना हैं।
(ख) स्कूली गणित का सीमित लक्ष्य है—लाभप्रद क्षमताओं का विकास, विशेषकर
अंक ज्ञान से जुड़ी क्षमताएँ सांख्यिक संक्रियाएँ, माप, दशमलव व प्रतिशत की समझ ।
(ग) इसके उच्च उद्देश्य है बच्चे के साधनों को विकसित करना ताकि वह गणितीय
ढंग से सोच सके व तर्क कर सकें, मान्यताओं के तार्किक परिणाम निकल सके और अमूर्त
को समझ सके।
(घ) बच्चे गणित से भयभीत होने की बजाए उसका आनंद उठाए । बच्चे महत्वपूर्ण
गणित सीखें, गणित में सूत्रों व यांत्रिक प्रक्रियाओं से आगे भी बहुत कुछ है।
(ङ) बच्चे गणित को ऐसा विषय माने, जिस पर वे आपस में बात कर सकते है, जिससे
सम्प्रेषण हो सकता है।
(च) बच्चे सार्थक समस्याएँ उठाएं और उन्हें हल करें।
(छ) बच्चे अमूर्त का प्रयोग संबंधों को समझने, संरचनाओं को देख पाने और चीजों
का विवेचन करने, कथनों की सत्यता या असत्यता को लेकर तर्क करने में कर पाएं।
(ज) बच्चे गणित की मूल संरचना को समझें—अंकगणित, बीजगणित, रेखागणित,
त्रिकोणमिति आदि की मूल संरचना तथा दैनिक जीवन में इनका उपयोग कर सकें।
(झ) अमूर्तता, परिमाणन, सदृश्यता, स्थिति विश्लेषण, समस्या को सरल रूप
बदलना, अनुमान लगाना व उसकी पुष्टि करना सीख सकें।
(ञ) समस्या समाधान की युक्तियाँ स्वयं से ढूंढ सकें ।
        स्कूली गणित सभी मूल तत्व अमूर्त की प्रणाली, संघटन और सामान्यीकरण के लिए
मुहैया करते हैं । अध्यापक कक्षा में प्रत्येक बच्चे के साथ इस विश्वास के आधार पर काम
करे की प्रत्येक बच्चा सिख सकता है । गणित व अन्य विषयों के अध्ययन के बीच सम्बन्ध
बनाने की भी आवश्यकता है।
प्रश्न 33. उच्च प्राथमिक स्तर के लिए गणित के पाठ्यक्रम तथा उसके आधार की चर्चा करें।
उत्तर―उच्च प्राथमिक स्तर तक आते-आते बच्चों में गणित की अवधारणाओं के मूर्त
संकल्पना विकसित हो चुकी होती है। प्राथमिक कक्षाओं में अंकों से जुड़े गणितीय खेल,
पहेलियाँ तथा कथाएं बच्चों को इन संबंधों को बनाने में मदद करती हैं और उनकी रोजमर्रा
की समझ का निर्माण करती हैं। उच्च प्राथमिक स्तर के पाठ्यक्रम में गणित की उन्हीं
अवधारणाओं को परिष्कृत एवं व्यापक पैमाने पर उनकी बच्चों में समझ स्थापित की जाती
है। पाठ्यक्रम में अंकगणित, बीजगणित, स्थानिक समझ, लाभ हानि, ज्यामितीय आकृतियों
के गुण, राशियों की तुलना, द्विविमीय तथा त्रिविमीय आकृतियों का निरूपण जैसी अवधारणाओं
का ही विस्तार होता है, जिसपर आधारित दैनिक जीवन के सवाल बच्चों को हल करने
सीखने होते हैं। इस तरह वे समझते हैं कि दैनिक जीवन कई समस्याओं को सुलझा
सकती है और उन्हें हल करने के लिए उपकरण प्रदान करती है। इसके पाठ्यक्रम के प्रमुख
तत्वों एवं उनके आधार की को हम निम्न प्रकार समझ सकते हैं―
(क) अंकगणित व बीजगणित―संख्या बोध से संख्या पैटर्न की ओर बढ़ना,
संख्याओं के मध्य संबंध देखना तथा इन संबंधों में पैटर्न खोजना, ये ऐसी विधाएँ हैं जो बच्चे
में जीवनोपयोगी कौशल लाती हैं। अभाज्य संख्याओं, सम और विषम, विभाज्यता का
परीक्षण, वगैरह के विचार ऐसे अन्वेषण के अवसर प्रदान करते हैं। चरों का उपयोग, रैखिक
समीकरणों को बनाना व हल करना, सर्वसमिकाएँ व गुणनखंड करना, ये वे साधन हैं जिनके
द्वारा विद्यार्थी नयी भाषा का धराप्रवाह रूप से उपयोग करना सीखते हैं।
         दैनिक जीवन की समस्याओं को हल के लिए अंकगणित व बीजगणित के उपयोग पर
जोर दिया जा सकता है।
(ख) आकार, स्थानिक समझ और माप―बच्चों को इस स्तर पर विभिन्न प्रकार
के नियमित आकार पढ़ाए जाते हैं जैसे—त्रिभुज, वृत्त, चतुर्भुज । वे कम से कम चार प्रकार
से समृद्ध व नया गणितीय अनुभव प्रदान करते हैं। बच्चे अपने आसपास ऐसे सभी आकारों
का देखना प्रारंभ करते हैं और कई सममितियाँ खोजते हैं व सौंदर्यशास्त्रीय भाव प्राप्त करते
हैं। दूसरे, वे यह सीखते हैं कि कितने अनियमित लगने वाले आकार नियमित आकारों द्वारा
मापे जा सकते हैं।
      वे दिक्स्थान (स्पेस) के विचार को समझना प्रारंभ कर देते हैं । उदाहरण के लिए वृत्त
एक पथ या सीमा है जो उसके बाहर के स्पेस को भीतर के स्पेस से अलग करता है । वे
अंकों को आकारों से जोड़ना प्रारंभ कर देते हैं जैसे क्षेत्रफल, परिमाप आदि और
सांख्यिकीकरण या अंकगणितीयकरण की यह विधि अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
(ग) दृश्य अधिगम―आँकड़ों का प्रहस्तन (डाटा हैंडलिंग), निरूपण और दृष्टिकरण
महत्त्वपूर्ण गणितीय कौशल है जो इस स्तर पर सिखाए जा सकते हैं। वे ‘जीवन कौशलों
के रूप में बहुत उपयोगी हो सकते हैं। विद्यार्थियों को यह जानना चाहिए कि किस तरह
रेल समय-सारणियों, निर्देशिकाओं और पंचागों में जानकारी को सुसंगत रूप से संगठित किया
जाता है।
         आँकड़ों के प्रहस्तन की प्रक्रिया को समझने, निरूपित करने और दिन-प्रतिदिन के
आँकड़ों के ग्राफीय निरूपण को बढ़ावा देना, रैखिक ग्राफ बनाने की औपचारिक तकनीके
इसमें पढ़ायी जाती हैं। दृश्य अधिगम समझ, संगठन और कल्पनाशीलता को प्रोत्साहित करता
है। विद्यार्थी की दिकस्थान संबंधी तार्किक क्षमता और दृश्यीकरण कौशल का विस्तार होता है।
प्रश्न 34. उच्च प्राथमिक स्तर पर गणित शिक्षण किस प्रकार करेंगे?
उत्तर―विद्यालय में गणित शिक्षण के लिए उपयुक्त वातावरण बनाने की आवश्यकता
है। उच्च प्राथमिक स्तर पर गणित शिक्षण के लिए कक्षा-कक्ष प्रक्रियाओं में उचित गणितीय
शिक्षण विधियों का समावेश करना आवश्यक है। औपचारिक समस्या समाधान विधि द्वारा
समस्याएँ हल करने के मौके बच्चों को उपलब्ध कराए जा सकते हैं, जिससे बच्चे अपने
को समस्या समाधन से जोड़ सकें। समस्या समाधान में केवल वही अभ्यास करना सम्मिलित
नहीं होना चाहिए जो पाठ्यवस्तु की विशिष्ट परिभाषाओं के लिए उदाहरणस्वरूप आते है
बल्कि इसके अलावे भी बच्चों को उनके दैनिक जीवन से संबंधित समस्याओं को हल करने
के मौके उपलब्य करवाने चाहिए । दूसरी ओर कई ‘सामान्य तकनीके’ स्कूल के विभिन्न
चरणों में पढ़ाई जा सकती हैं। तकनीकें जैसे—अमूर्तन, सांख्यिकीकरण, अनुरूपता, प्रकरण
विश्लेषण, सरल परिस्थितियों में रूपांतरण, यहाँ तक कि अनुमान और सत्यापन, कई
समस्याओं वेफ संदर्भ में उपयोगी हैं। इसके अतिरिक्त जब बच्चे विभिन्न प्रकार के उपगमन
(समय के साथ) सीखते हैं तो वे साधन समृद्ध होते हैं तथा वे यह सीखते हैं कि कौन-सा
उपागम कब उपयुक्त होगा।
             राशियों के अनुमान और हलों के सन्निकटन मान को दैनिक जीवन पर आधारित
अनुमान सवालों के निर्माण को प्रदर्शित करने के लिए प्रयोग किये जा सकते हैं । उदाहरण
के लिए जब एक किसान किसी विशेष फसल से प्राप्त होने वाली उपज का अनुमान लगाता
है तब अनुमान और सन्निकटन की विचारणीय विधियाँ उपयोग में लाई जाती हैं। स्कूली
गणित ऐसे उपयोगी कौशलों के विकास व संवर्धन में एक सार्थक की भूमिका अदा कर
सकता है।
        शिक्षण प्रक्रिया का एक अन्य महत्त्वपूर्ण तत्व है गणितीय संप्रेषण । संक्षिप्त व सुस्पष्ट
भाषा का प्रयोग और कठिन सूत्रीकरण गणितीय व्यवहार की महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ हैं जो कि
गणित शिक्षा की सहायता से प्रदान किए जाने वाले मूल्य हैं । गणित में विशिष्ट शब्दावली
का उपयोग सुविचारित, सजग और विशिष्ट शैली में होता है । जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं,
उन्हें ऐसी परिपाटी की सार्थकता की प्रशंसा व उसका उपयोग करना पढ़ाया जाना चाहिए ।
उदाहरणार्थ इसका अर्थ है कि किसी समीकरण के निर्माण को उतना ही महत्त्व मिलना
चाहिए। जितना कि हम उसके हल करने को देते हैं।
        स्कूली गणित का बच्चों के सामाजिक वातावरण से निकट का संबंध होना चाहिए जहाँ
वे दैनिक जीवन के भाग के रूप में गणितीय गतिविधियों में संलग्न रहते हैं। इसके अलावा
गणितीय अवधारणाओं को समझाने के लिए विभिन्न प्रकार की रोचक गतिविधियों का भी
समावेश शिक्षण प्रक्रिया में किया जा सकता है जिससे गणित बच्चों को बोझिल, नीरस और
उबाऊ विषय ना लगे और वे रुचि लेकर गणितीय प्रक्रियाओं में संलग्न रह सकें एवं सीख
सकें।
प्रश्न 35. उच्च प्राथमिक स्तर पर गणित सीखने के संकेतकों का वर्णन करें।
उत्तर―इस स्तर पर गणित में विद्यार्थियों के सीखने के स्तर से संबंधित विशेष रूप से
निर्धारित मानदंडों को सीखने के संकेतक कहते हैं, जिन्हें पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया जाता
है। सीखने के संकेतकों को सीखने-सिखाने की प्रक्रियाओं और पाठ्यचर्या की अपेक्षाओं
से जोड़कर शामिल किया जाता है । यह उपलब्धि सर्वेक्षण हेतु संदर्भ बिंदु के रूप में कार्य
करता है। इसका उद्देश्य विद्यार्थियों के सीखने के स्तरों के आकलन हेतु पैमानों का
मानकीकरण करना है जिससे यह शिक्षकों, माता-पिता और संपूर्ण व्यवस्था हेतु प्रारंभिक स्तर
की विद्यालयी शिक्षा में सीखने की गुणवत्ता को बेहतर बनाने में उपयोगी सिद्ध हुआ है । उच्च
प्राथमिक स्तर पर बच्चों के गणित सीखने के संकेतकों को हम निम्न प्रकार समझ सकते
। यह निर्धारित करता है कि इस स्तर के बच्चे―
(क) परिमेय संख्याओं में योग, अंतर, गुणन, तथा भाग के गुणों का एक पैटर्न द्वारा
सामान्यीकरण करते हैं।
(ख) 2,3,4,5,6, 9 तथा 11 से विभाजन के नियम को सिद्ध करते हैं।
(ग) संख्याओं का वर्ग, वर्गमूल, घन, तथा घनमूल विभिन्न तरीकों से ज्ञात करते हैं।
(घ) पूर्णांक घातों वाली समस्याएं हल करते हैं।
(ङ) चरों का प्रयोग कर दैनिक जीवन की समस्याएँ तथा पहेली हल करते हैं।
(च) विभिन्न सर्वसमिकाओं का उपयोग दैनिक जीवन की समस्याओं को हल करने
के लिए करते हैं।
(छ) प्रतिशत की अवधारणा का प्रयोग लाभ तथा हानि की स्थितियों, चक्रवृद्धि ब्याज
गणना करते हैं।
(ज) समानपात तथा व्युत्क्रमानुपात (direct and inverse proportion) पर आधारित
प्रश्न हल करते हैं।
(झ) कोणों के योग के गुणधर्म का प्रयोग कर चतुर्भुज के कोणों से संबंधित समस्या
हल करते हैं।
(ज) 3D आकृतियों को समतल, जैसे-कागज के पन्ने, श्यामपट आदि पर प्रदरित
करते हैं।
(ट) बहुभुज का क्षेत्रफल ज्ञात करते हैं।
(ठ) घनाभाकार तथा बेलनाकार वस्तुओं का पृष्ठीय क्षेत्रफल तथा आयतन ज्ञात करते हैं।
(ड) दंड आलेख तथा पाई आलेख बनाकर उनकी व्याख्या करते हैं।
(ढ़) किसी घटना के पूर्व में घटित होने या पासे या सिक्कों की उछाल के आँकड़ों
के आधार पर भविष्य में होने वाली ऐसी घटनाओं के घटित होने के लिए अनुमान
(Hypothesis) लगाते हैं।
(ण) त्रिभुजों के बारे में दी गई सूचना पर सर्वांगसमता की व्याख्या करते हैं।
(त) प्रतिशत को भिन्न तथा दशमलव में एवं भिन्न तथा दशमलव को प्रतिशत में
रूपांतरित करते हैं।
(थ) ज्ञात इकाईयों में किसी ठोस वस्तु का आयतन ज्ञात करते हैं।
(द) दैनिक जीवन से संबंधित विभिन्न आँकड़ों को एका करते हैं तथा सारणीबद्ध कर
सकते हैं एवं दंडालेख खींचकर उनकी व्याख्या करते हैं।
(घ) सामान्यतः प्रयोग होने वाली लंबाई, भार, आयतन की बड़ी तथा छोटी इकाइयों
में संबंध स्थापित करते हैं तथा बड़ी इकाइयों को छोटी व छोटी इकाइयों को बड़ी इकाई में
बदलते हैं।
(न) सममिति (Symmetry) पर आधारित ज्यामिति पैटर्न का अवलोकन, पहचान कर
उनका विस्तार करते हैं, इत्यादि ।
प्रश्न 36. उच्च प्राथमिक स्तर के गणित विषय से संबंधित बीजगणित की अवधारणा का
चयन करते हुए उसके शिक्षण अधिगम के लिए सीखने की योजना का निर्माण कीजिए।
उत्तर―सीखने की योजना
शिक्षक का नाम―
कक्षा―7             कलांश―            तिथि―
विषय―गणित      इकाई―
विषयवस्तु : बीजीय व्यंजक
विषय वस्तु से संबंधित पूर्व समीक्षा (शिक्षण से पहले किया जाने वाला कार्य)
1. यह विषय वस्तु इस कक्षा के पाठ्यचर्या/पाठ्यक्रम में उल्लिखित किन – किन
उद्देश्यों/बिंदुओं से जुड़ा हुआ है ?
      यह विषयवस्तु बच्चों को बीजीय व्यंजक की समझ, उनके संबंधित संक्रियाओं को हल
करने एवं दैनिक जीवन में गणितीय समस्याओं के बीज गणितीय व्यंजकों में रूपांतरित कर
हल करने की क्षमता विकसित करती है।
2. क्या यह विषय वस्तु पूर्ववत कक्षाओं के पाठ्यक्रम में भी शामिल है ? कैसे ? यह
विषय वस्तु इस कक्षा की और किन-किन विषयों इकाइयों से जुड़ा हुआ है ? क्या मैंने इस
विषय वस्तु का पहले शिक्षण किया है ? क्या मुझे विषय वस्तु से संबंधित पर्याप्त समझ है ?
        हाँ, यह पूर्ववत कक्षाओं के पाठ्यक्रम में भी शामिल है। पिछली कक्षाओं में अंकगणित
से बीजगणित की ओर संख्याओं के संकेतों में रूपांतरण करने की आरंभिक समझ विकसित
की गई है। हाँ, मैंने इस विषयवस्तु का पहले शिक्षण किया है। मुझे इसकी पर्याप्त समझ है।
3. विषयवस्तु का संक्षिप्त विवरण ।
यह विषयवस्तु बीजीय व्यंजकों की पदों की गुणनखंड की अवधारणा विकसित करती
है। इसके द्वारा बच्चों में बीजीय व्यंजकों के प्रकार, उनके पद तथा उन पर संक्रियाएँ हल
करने की समझ विकसित होती है।
4. सीखने–सिखाने की विधियाँ । इन विधियों को क्यों चुना गया ?
सामूहिक चर्चा, प्रदर्शन, समूह कार्य, एकल कार्य, खेल गतिविधि । सामूहिक चर्चा द्वारा
बीजगणितीय व्यंजकों, उनके पदों एवं उनके गुणनखंड की विधि पर चर्चा होगी। प्रदर्शन
द्वारा बच्चों को समस्याएँ हल करके दिखाने पर वे स्वयं एकल कार्य एवं समूह कार्य द्वारा
प्रश्न हल करने को प्रेरित होंगे । गतिविधि द्वारा उनमें विषय की व्यवहारिक समझ विकसित
होगी।
5.सीखने की योजना
40 मिनट की इस कक्षा में शुरूआती 20 मिनट बच्चों को एक पद, द्विपद, त्रिपद
व्यंजकों के बारे में बताया जायेगा। बच्चे विभिन्न उदाहरणों द्वारा इसकी चर्चा करेंगे । बच्चे
यह सीखेंगे कि बीजीय व्यंजकों का गुणनखंड किस प्रकार करना है। शिक्षक उन्हें ये
श्यामपट्ट पर विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से प्रदर्शित करेंगे। बच्चों में यह समझ विकसित
की जायेगी कि व्यंजकों के समान व असमान पद में संक्रियाएँ किस प्रकार की जाती हैं।
इसके बाद अगले 10 मिनट बच्चों को समूह एवं एकल कार्य द्वारा विषयवस्तु से जुड़े प्रश्न
हल करने के लिए दिये जाएंगे। इसके बाद अंतिम 10 मिनट में एक गतिविधि कराई जाएगी
जिसमें छात्रों को अलग-अलग समूहों में बांट दिया जाएगा। इसके बाद प्रत्येक समूह का
एक बच्चा एक पदीय, द्विपदीय और त्रिपदीय या बहुपद व्यंजक को फ्लैश कार्ड पर लिखकर
बाकी कक्षा को दिखाएगा। बाकी समूह उस व्यंजक का गुणनखंड लिखकर प्रदर्शित करेंगे।
शिक्षक इसके लिए सबसे पहले हल करने वाले समूह को क्रमानुसार अंक देकर गतिविधि
को आगे बढ़ा सकते हैं। सबसे अधिक अंक लाने वाला समूह विजेता माना जायेगा।
शिक्षक द्वारा स्व मूल्यांकन के सुझाव बिंदु (शिक्षण के बाद किया जाने वाला कार्य)
1. क्या विद्यार्थी ने उन उद्देश्यों को समझा जिसके लिए यह विषय वस्तु थी? इसका
मूल्यांकन किया गया कि नहीं?
            हाँ, विद्यार्थियों ने उद्देश्य को समझा। यह उनके मूल्यांकन से स्पष्ट हो गया।
2. क्या इस विषय वस्तु को फिर से कक्षा में चर्चा करने की आवश्यकता है?
या क्यों नहीं?
      विषय वस्तु को फिर से कक्षा में चर्चा करने की आवश्यकता तो नहीं है, परंतु अगली
कक्षा में विषय से संबंधित और अधिक सवाल हल करने से बच्चे अधिक सीखेंगे।
3. साथियों द्वारा पूछे गए प्रमुख सवाल क्या थे ? कितने विद्यार्थियों ने सवाल पूछ।
तीन-चार बच्चों ने असमान बहुपद के जोड़-घटाव संबंधी सवाल पूछे ।
4. आपने उन सवालों को कैसे समझाया? क्या विद्यार्थियों को स्वयं उन सवालों का हल
करने का मौका मिला?
         उन्हें उससे संबंधित उदाहरण देकर समझाया गया।
फिर विद्यार्थियों ने वैसे प्रश्नों को हल किया।
5. विषय वस्तु के सीखने-सिखाने में किस प्रकार के संसाधनों (T L M) का प्रयन
किया गया? उनकी उपयोगिता क्या रही।
         श्यामपट्ट तथा फ्लैश कार्ड का उपयोग किया गया जो काफी उपयोगी रहे।
6. इस विषय वस्तु को यदि दोबारा पढ़ाना हो तो आप सीखने-सिखाने की योजना में
क्या बदलाव करेंगे?
यदि दोबारा इस विषयवस्तु को पढ़ाना हो तो मैं किसी अन्य गतिविधि का प्रयोग करूंग।
7. इस विषय वस्तु से संबंधित कोई ऐसा सवाल जिसे आपको अपने संस्थान के विषय
विशेषज्ञ तथा मेंटर से चर्चा करने की अपेक्षा है?
नहीं
8. कोई अन्य टिप्पणी।
नहीं।
प्रश्न 37. उच्च प्राथमिक स्तर के गणित विषय से संबंधित ज्यामिति की
अवधारणा का चयन करते हुए उसके शिक्षण अधिगम के लिए सीखने की योज
का निर्माण कीजिए।
उत्तर―सीखने की योजना
शिक्षक का नाम―
कक्षा–8                  कलांश―           तिथि―
विषय–गणित           इकाई–3
विषयवस्तुः ज्यामितीय आकृतियों की समझ ।
विषय वस्तु से संबंधित पूर्व समीक्षा (शिक्षण से पहले किया जाने वाला कार्य)
1. यह विषय वस्तु इस कक्षा के पाठ्यचर्या/पाठ्यक्रम में उल्लिखित किन-किन
उद्देश्यों/बिंदुओं से जुड़ा हुआ है ?
      यह विषयवस्तु बच्चों को विभिन्न ज्यामितीय आकृतियों की समझ, उनसे संबंधित गुणों
एवं बनावट के आधार पर उनका वर्गीकरण करने की समझ विकसित करता है।
2. क्या यह विषय वस्तु पूर्ववत कक्षाओं के पाठ्यक्रम में भी शामिल है ? कैसे? यह
विषय वस्तु इस कक्षा की ओर किन-किन विषयों इकाइयों से जुड़ा हुआ है ? क्या मैंने इस
विषय वस्तु का पहले शिक्षण किया है ? क्या मुझे विषय वस्तु से संबंधित पर्याप्त समझ है ?
        यह विषयवस्तु पूर्ववत कक्षाओं के पाठ्यक्रम में भी शामिल है। पिछली कक्षाओं में दी
गई ज्यामितीय आकृतियों की समझ को ही यह आगे बढ़ाता है।
3. विषयवस्तु का संक्षिप्त विवरण ।
यह विषयवस्तु कक्षा की क्षेत्रमिति तथा ज्यामितीय आकारों की रचना व स्थानिक समझ
की अवषयवस्तु से भी जुड़ा है।
4. सीखने-सिखाने की विधियाँ । इन विधियों को क्यों चुना गया?
            सामूहिक चर्चा, चित्र प्रदर्शन, एकल कार्य, समूह कार्य, कक्षा गतिविधि । सामूहिक
चर्चा एवं चित्र प्रदर्शन द्वारा बच्चों में ज्यामितीय आकृतियों, उनके गुणों व बनावट की समझ
विकसित की जाएगी। एकल कार्य एंव समूह कार्य द्वारा बच्चों से इन आकृतियों के कोणों
की माप, पैटर्न, विकर्ण आदि ज्ञात करने के कार्य कराये जाएंगे। कक्षा गतिविधि द्वारा बच्चों
को स्वयं इन आकृतियों को बनाने के लिए प्रेरित किया जाएगा।
5. सीखने की योजना
            40 मिनट की कक्षा में शुरूआती 20 मिनट सामूहिक चर्चा द्वारा बच्चों को विभिन्न
ज्यामितीय बहुभुज के चित्र दिखा कर उनके कोणों, विकर्ण, भुजा, शीर्ष आदि पर चर्चा की
जाएगी। बच्चों को आकृतियों के कोण व विकार्ण मापने की जानकारी दी जायेगी । विभिन्न
आकृतियों के कोणों की माप कम्पास की सहायता से कर शिक्षक बच्चों को विभिन्न
उदाहरणों के पैटर्न पहचानते हुए भुजाओं की संख्या, विकर्ण व कोण के मान पता करने
के लिए सामान्य सूत्र निकालने को प्रेरित करेंगे। इसके बाद अगले 10 मिनट समूह कार्य
एवं एकल कार्य द्वारा शिक्षक विभिन्न ज्यामितीय बहुभुज से संबंधित प्रश्न छात्रों को हल करने
के लिए देंगे। इस दौरान वे बच्चों को मूल्यांकन कर प्रतिपुष्टि देंगे। इसके बाद अन्त के 10
मिनट में बच्चों से विभिन्न टी.एल.एम. सामग्रियों के द्वारा सम एवं विषम बहुभुज बनवा कर
शिक्षक उनके कोण पता करने के कार्य करवाएंगे ।
           शिक्षक द्वारा स्व मूल्यांकन के सुझाव बिंदु (शिक्षण के बाद किया जाने वाला कार्य)
1.क्या विद्यार्थी ने उन उद्देश्यों को समझा जिसके लिए यह विषय वस्तु थी? इसका
मूल्यांकन किया गया कि नहीं?
हां, विद्यार्थियों ने गद्देश्य को समझा। यह उनके मूल्यांकन से स्पष्ट हो गया।
2.क्या इस विषय वस्तु को फिर से कक्षा में चर्चा करने की आवश्यकता है? क्यों
या क्यों नहीं?
        विषय वस्तु को फिर से कक्षा में चर्चा करने की आवश्यकता तो नहीं है, परंतु अगली
कक्षा में विषय से संबंधित और अधिक सवाल हल करने से बच्चे अधिक सीखेंगे।
3. साथियों द्वारा पूछे गए प्रमुख सवाल क्या थे? कितने विद्यार्थियों ने सवाल पूछे ?
एक-दो बच्चों ने सम एवं विषम बहुभुज के बारे में सवाल पूछे ।
4. आपने उन सवालों को कैसे समझाया ? क्या विद्यार्थियों को स्वयं उन सवालों का हल
करने का मौका मिला?
उन्हें उससे संबंधित उदाहरण देकर चित्र के माध्यम से समझाया गया।
फिर विद्यार्थियों ने वैसे प्रश्नों को हल किया।
5. विषय वस्तु के सीखने-सिखाने में किस प्रकार के संसाधनों (TLM) का प्रयोग
किया गया? उनकी उपयोगिता क्या रही।
चित्र, पाइप, लकड़ी, गोंद, कम्पास आदि टी.एल.एम. का प्रयोग किया गया । ये काफी
उपयोगी रहे।
6. इस विषय वस्तु को यदि दोबारा पढ़ाना हो तो आप सीखने-सिखाने की योजना में
क्या बदलाव करेंगे?
      यदि इस विषय को दोबारा पढ़ाना हो तो बच्चों को बहुभुज के बाह्य कोण की माप से
संबंधित सामान्य सूत्र को विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से पैटर्न पहचानते हुए निकालने के
लिए प्रेरित करेंगे।
7. इस विषय वस्तु से संबंधित कोई ऐसा सवाल जिसे आपको अपने संस्थान के विषय
विशेषज्ञ तथा मेंटर से चर्चा करने की अपेक्षा है?
नहीं।
8. कोई अन्य टिप्पणी।
नहीं
प्रश्न 38. अंकगणित का व्यापक स्वरूप बीजगणित है। इसमें कुछ चिह्नों का
उपयोग करके कई गुणों को प्रदर्शित किया जा सकता है। बच्चों को अंकगणित से
बीजगणित की ओर कैसे ले जाएंगे? स्पष्ट करें।
उत्तर―अंकगणित के समान बीजगणित भी संख्याओं का विज्ञान है। केवल अंतर
इतना ही है कि बीजगणित में अंकों के स्थान पर अक्षरों का प्रयोग होता है। बीजगणित तथा
अंकगणित में घनिष्ठ सम्बन्ध है । अंकगणित गणित के प्रत्ययों को बीजगणित का आधार
बनाया गया है। अंकगणित की संख्या प्रणाली को आधार बनाकर जब संख्याओं के स्थान
पर अक्षरों या पदों या संकेतों का प्रयोग किया जाने लगा तो बीजगणित का जन्म हुआ। जब
तक अंकगणित के प्रत्ययों, संकल्पनाओं, प्रक्रियाओं तथा शब्दावली का स्पष्ट ज्ञान नहीं होता
तब तक बीजगणित की संकल्पनाओं आदि को समझने में कठिनाई पैदा होती है। अंकगणित
ही बीजगणित शिक्षण का आधार तथा बीजगणित इसका व्यापक स्वरूप है । अंकगणित में
प्रकट विचारों को बीजगणित की भाषा सूत्रों द्वारा संक्षिप्त में लिखा जाता है।
          अंकगणित में हम संख्याओं का प्रयोग करते हैं तथा बीजगणित में संख्याओं के स्थान
पर अक्षरों, संकेतों या प्रतीकों का प्रयोग करते हैं। अंकगणित की प्रक्रियायें ही बीजगणित
की प्रक्रियाएँ हैं। जिस प्रकार अंकगणित में हम संख्याओं पर चारों संक्रियाओं अर्थात् जोड़,
बाकी, गुणा और भाग करते हैं, उसी प्रकार बीजगणित में बीजीय पदों या प्रतीकों पर भी
इन्हीं चारों संक्रियाओं को करते हैं। अंकगणित में हम राशियों को धनात्मक मानते हैं परंतु
बीजगणित में बीजीय राशियों को धनात्मक एवं ऋणात्मक दोनों मानते हैं। अंकगणित के
सिद्धांत एवं प्रत्यय ही बीजगणित की सामग्री के लिए स्वीकृत हैं। दोनों के लिए समान चिंतन
एवं कार्य-विधि का प्रयोग होता है। सबसे पहले संख्यात्मक सम्बन्धों का अनेक उदाहरणों
द्वारा अध्ययन किया जाता है तथा इसके पश्चात् सामान्यीकरण कर सूत्रों का निर्माण करते
हैं तथा सूत्रों को संकेतों तथा संक्षिप्त भाषा में लिखा जाता है।
       अंकगणित से बीजगणित की ओर―गणित के अध्यापक को चाहिए कि प्रारम्भ में
संख्याओं के उदाहरणों को लेकर उनकी विशेषताओं का कक्षा में स्पष्ट विवेचन करे तथा
बाद में संख्याओं के स्थान पर अक्षरों को आधार बनाकर सामान्यीकरण करवाए। अंकगणित
की संख्याओं का शनैः-शनै प्रतिस्थापन अक्षरों द्वारा किया जाना चाहिए। सूत्र एक प्रकार
से ‘बीजगणितीय वाक्य कहा जा सकता है जिसमें अंकगणित के सिद्धांत आदि संक्षिप्त रूप
में व्यक्त किए जाते हैं तथा अक्षरों और प्रतीकों की भाषा को जल्दी समझा जा सकता है।
           बीजगणित के अध्यापन के समय बालकों को यह बता देना चाहिए कि वास्तव में
अंकगणित तथा बीजगणित समान विषय हैं किन्तु बीजगणित की समुच्चय भाषा अधिक
संक्षिप्त है तथा इसमें संकेतों और अक्षरों का प्रयोग किया जाता है।
         बीजगणित के सूत्रों में यदि संख्याओं का प्रतिस्थापन कराया जाय तो उनमें निहित
अंकगणित सम्बन्ध स्पष्ट हो जायेंगे । प्रतिस्थापन द्वारा विद्यार्थी अंकगणित और बीजगणित
के समान आधारों को समझ सकेंगे तथा बीजीय भाषा की उपयोगिता उन्हें स्पष्ट हो जायेगी।
समीकरण बीजगणित की विषय-सामग्री का एक महत्त्वपूर्ण भाग है तथा समीकरण के
आधारभूत सिद्धांतों का निर्धारण अंकगणित के क्षेत्र से ही है।
          यदि हम विद्यार्थियों को अंकगणित और बीजगणित की प्रक्रियाएँ साथ-साथ कराएं तो
वे समझ जाएंगे कि बीजगणित, अंकगणित का सामान्यीकृत रूप है।
प्रश्न 39. निम्नलिखित की परिभाषा लिखें एवं संबंधित उदाहरण दें। बच्चों में
इनकी अवधारणा का विकास कैसे करेंगे?
उत्तर―(क) ऐकिक नियम-ऐकिक नियम के अंतर्गत किसी एक वस्तु की मात्रा
से अनेक वस्तुओं की मात्रा तथा अनेक वस्तुओं की मात्रा से एक वस्तु की मात्रा का पता
लगाया जाता है। इसके अलावा ब्याज, गति-समय, प्रतिशत, तुलना इत्यादि प्रश्नों में भी
ऐकिक नियम की अवधारणा का प्रयोग किया जाता है। इसकी अवधारणा को हम बच्चों
को उनके दैनिक जीवन में आने वाली समस्याओं संबंधी प्रश्नों के उदाहरण द्वारा समझा सकते
हैं। जैसे―
● एक पुस्तक की कीमत 22.50 रुपये है, तो 20 वस्तुओं की कीमत कितने रुपये
होगी?
1 पुस्तक की कीमत = 22.50 रुपया
20 पुस्तकों की कीमत = 22.50 x 20 = 450.00 रुपये
अत: 20 वस्तुओं की कीमत 450 रुपये होगी।
यहाँ भी कुछ बातें ध्यान रखनी हैं, नहीं तो गलती हो सकती है―
1. एक से अधिक वस्तुओं की कीमत निकालने के लिए गुणा करना होता है।
2. अधिक वस्तुओं से एक वस्तु की कीमत निकालने के लिए भाग करना होता
● एक रेलगाड़ी 320 किलोमीटर की दूरी 4 घंटे में तय करती है तो 560 किमी. की
दूरी तय करने में कितना समय लगेगा?
320 किलोमीटर की दूरी चलने में समय लगता है = 4 घंटे
1 किलोमीटर की दूरी तय करने में समय लगेगा = 4/320
560 किलोमीटर की दूरी तय करने में समय लगेगा = 4/320×560 =7 घंटा
उत्तर = 7 घंटा समय लगेगा।
(ख) अनुपात और समानुपात―जब दो सजातीय राशियों की तुलना भाग की क्रिया
द्वारा की जाती हैं, तो प्राप्त भागफल को अनुपात कहा जाता हैं। दूसरे शब्दों में हम कह
सकते हैं कि “अनुपात एक ऐसी संख्या हैं जो दो सजातीय राशियों के बीच के उस संबंध
को बनाती हैं जिससे यह पता चलता हैं कि एक राशि की अपेक्षा दूसरी राशि कितनी गुना
कम या अधिक है।”
              दो समान राशियों के तुलनात्मक अध्ययन को अनुपात कहते हैं, यदि a तथा b दो
अशून्य संख्याएँ हैं, तो a तथा b के अनुपात को a: b द्वारा निरूपित करते हैं तथा a अनुपात
b पढ़ते हैं।
               यदि चार अशून्य संख्याएँ a,b,c तथा के इस प्रकार हैं, कि a:b=c:d, तो a,
b, c तथा के समानुपात में हैं।
            यदि a:b::c:d हो, तो ad: bc इसमें a तथा d को बाह्य पद तथा b और c को
मध्य पद कहते हैं।
      इसे सिखाने के लिए बच्चों को बताएंगे कि न केवल पढ़ाई अपितु रोजमर्रा की जिंदगी
में अलग-अलग राशियों की आपस में तुलना करने के लिए अनुपात की सहायता ली जाती
है। सामान्यतः अनुपात की मदद से दो राशियों की तुलना की जाती है परंतु इसके द्वारा तीन
या इससे अधिक राशियों की तुलना भी की जा सकती है। किसी भी स्थिति में जब दो या
अधिक संख्याओं या राशियों की तुलना की जाती है तो वहाँ अनुपात की उपस्थिति होती
है। अनुपात की सहायता से राशियों को एक-दूसरे के संदर्भ में लिखकर रासायनिक फार्मूले
तथा रसोई के व्यंजनों को निर्धारित करना, बनाना या फिर उनकी मात्रा को बढ़ाया जा सकता
है। एक बार समझकर आप अपनी दिनचर्या के अनेक कामों में शामिल कर सकते हैं।
          राशियों के आपस में संबंध को दिखाने के लिए अनुपात की मदद ली जा सकती है
यहाँ तक कि जब ये राशियाँ आपस में एक-दूसरे से जुड़ी भी न हों (जैसे व्यंजनों में आटा,
नमक या चीनी आदि) । उदाहरण के लिए, यदि एक कक्षा में पाँच लड़कियाँ तथा दस लड़के
हैं तो लड़कियों तथा लड़कों का अनुपात 5 : 10 का होगा। इस उदाहरण में दोनों राशियाँ
(लड़कियाँ तथा लड़के) आपस में एक-दूसरे से सीधे-सीधे संबंधित नहीं हैं परंतु दोनों में
से किसी की संख्या में परिवर्तन पूरे उत्तर पर प्रभाव डालता है। अर्थात् अनुपात केवल
परिमाण पर निर्भर होता है। अनुपात अक्सर कॉलन (colon) की सहायता से व्यक्त किए
जाते हैं। किसी भी अनुपात में जब दो संख्याओं की तुलना की जाती है तो एक कॉलन का
प्रयोग करते हैं। जैसे 7:13 ।
           बच्चों को बताएंगे कि अनुपात के सवालों को हल करने के लिए अनुपात को भिन्न के
रूप में लिख कर इन्हें आपस में बराबर करके तथा तिर्यक गुणन द्वारा ऐसे सवाल हल किये जा
सकते हैं । उदाहरण के लिए छात्रों के एक समूह में 2 लड़के तथा 5 लड़कियाँ हैं । इस अनुपात
के अनुसार एक कक्षा में लड़कों की संख्या कितनी होगी जबकि उस कक्षा में 20 लड़कियाँ
हैं ? इस प्रश्न को हल करने के लिए हम इन्हें समानुपात में इस तरह लिखेंगे –2 लड़के :
5 लड़कियाँ = x लड़के : 20 लड़कियाँ । अगर हम इन अनुपात को भिन्न की तरह लिखेंगे
तो हमें 2/5 और x/20 प्राप्त होगा । अब अगर आप इन्हें क्रॉस मल्टीप्लाई करेंगे तो आपको
5x=40 प्राप्त होगा। समीकरण में दोनों ओर 5 से भाग देने पर हमें x= 8 मिलेगा।
              समानुपात के लिए मिश्र अनुपात की अवधारणा स्पष्ट करेंगे। दो या दो से अधिक
अनुपात के पूर्व पदों के गुणनफलों तथा अंतिम पदों के गुणनफल से बने नए अनुपात को
मिश्रित अनुपात कहते हैं।
उदाहरण—दो अनुपातों (a : b) तथा (c : d) का मिश्रित अनुपात (ac : bd) होगा।
इसी तरह 2:3, 4 : 5 तथा 6:7 का मिश्रित अनुपात 2 x 4 x 6 : 3 x 5 x 7 अर्थात
48:105 या 16:35 होगा।
(ग) प्रतिशत―प्रतिशत (Percent) गणित में किसी अनुपात को व्यक्त करने का
एक तरीका है। प्रतिशत का अर्थ है प्रति सौ या प्रति सैकड़ा (% = 1/100) एक सौ में
एक। उदाहरण के लिये माना कि गणित के प्रश्नपत्र का पूर्णांक 50 है और उस प्रश्नपत्र
में कोई छात्र 48 अंक प्राप्त करता है तो कहते हैं कि उस छात्र को 48/50=96/100
=96 प्रतिशत (96%) अंक मिले। इसी तरह कहते हैं कि वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा
20% है। किसी कक्षा में 20 विद्यार्थियों में से केवल 15 ही उतीर्ण हुए तो कहेंगे कि केवल
75% विद्यार्थी उतीर्ण हुए तथा 25% अनुतीर्ण (फेल) हो गये। बच्चों को बताएं कि किसी
भी चीज के 0% होने का मतलब कि उसमें कुछ भी नहीं है, और 100% एक पूरा भाग
होता है। बाकी सब-कुछ इनके बीच में ही आता है। जैसे कि मान लीजिये आपके पास
में 10 सेब है, फिर आपने पूरे 10 सेब में से 2 सेब (मतलब कि 2/10×100%=20%सेब)
खा लिए हैं। अगर 10 सेब 100% है, और आपने 20% खा लिए हैं, तो अब आपके पास
में बस 100%–20% = 80% सेब ही बचे हुए हैं।
        जो हिस्सा होता है, वो अनुपात में सबसे ऊपर (न्यूमरेटर, अंश) जाता है और जो पूरा
भाग होता है, वो नीचे (डिनोमरेटर, भाजक या विभाजक या हर) जाता है। उसके बाद इस
अनुपात को 100 से गुणा करके प्रत्येक 100 में प्रतिशत निकाला जाता है।
         हम देखते है कि जब वस्तुओं का कुल योग 100 नहीं हो तब प्रतिशत ज्ञात करने के
लिए हम भिन्न को 100/100 से गुणा करते हैं । इस प्रकार भिन्न का मान भी नहीं बदलता
और हमें ऐसी भिन्न प्राप्त हो जाती है जिसका हर 100 होता है।
(घ) प्रतिशत द्वारा संख्याओं की तुलना―भिन्न संख्याओं में, हर विभिन्न संख्याएँ
हो सकती हैं। उनकी तुलना करने के लिए हमें उनके हरों को समान करना पड़ता है। उनकी
तुलना करना बहुत आसान हो जाता है यदि उनमें प्रत्येक का हर 100 हो । यानी हम भिन्नों
को प्रतिशत में बदल दें। जैसे―
25 बच्चों की कक्षा में 15 लड़कियाँ हैं। लड़कियों का प्रतिशत क्या है?
25 बच्चों में 15 लड़कियाँ हैं, अत: लड़कियों का प्रतिशत = 15/25 x 100 = 60
अर्थात् कक्षा में 60% लड़कियाँ हैं।
(ङ) ब्याज―उघर लिए गए धन को मूलधन कहते है। यह धन वापस करने से पहले
घन प्राप्त करने वाले व्यक्ति द्वारा कुछ समय तक इसका उपयोग किया जाता है । अतः उसे
उतने समय का घन उपयोग में लाने के बदले कुछ अतिरिक्त धन बैंक को देना होता है।
यह अतिरिक्त घन ब्याज कहलाता है। एक निश्चित अवधि के बाद आपको मूलधन तथा
ब्याज, दोनों को मिलाकर पूरा धन वापस करना होता है जिसे मिश्रधन कहते हैं । अर्थात्
मिश्रघन = मूलधन + ब्याज ।
      ब्याज एक निश्चित दर पर परिकलित किया जाता है जो प्रायः प्रत्येक 100 रु. के लिए
एक वर्ष के लिए निर्धारित होता है।
          इसे एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं―
      अनीता 5000 रु. का एक धन 15 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज पर लेती है । ज्ञात
कीजिए कि एक वर्ष के बाद उसे कुल कितना धन वापस करना होगा।
उधार ली गई राशि = 5000 रु.
ब्याज की दर = 15 प्रतिशत प्रति वर्ष
इसका अर्थ है कि यदि वह 100 रु. उधार लेती है तब उसे एक वर्ष बाद 15 रु. ब्याज
के रूप में भी देने होंगे।
अत: 5000 रु. के उधार पर उसे 1 वर्ष बाद देने होंगे- 15/100×5000 रु. = 750 रु.
     एक वर्ष का ब्याज ज्ञात करने के लिए हम एक संबंध या सूत्र भी प्राप्त कर सकते हैं।
हम मूलधन को Pसे तथा दर R : वार्षिक को R से प्रदर्शित करते हैं तो हमें प्रत्येक 100
रफ के लिए एक वर्ष का R रु. ब्याज देना होगा। अत: P रु. उधर लेने पर एक वर्ष का
ब्याज 1 होगा।
I= PxRxT/100
        अगर धन एक वर्ष से अधिक समय के लिए उधार लिया जाता है तब ब्याज भी उस
पूरे समय के लिए परिकलित किया जाता है जितने समय के लिए धन रखा गया है। उदाहरण
के लिए यदि अनीता वही धन उसी दर पर दो वर्ष बाद वापस करती तब उसे ब्याज भी दुगना
देना पड़ता । अर्थात् 750 रु. पहले वर्ष के लिए तथा 750 रु. दूसरे वर्ष के लिए । मूलधन
वही रहता है, बदलता नहीं और ब्याज भी प्रत्येक वर्ष के लिए समान ही रहता । इस प्रकार
के व्याज को साधारण ब्याज कहते हैं। जिस प्रकार वर्षों की संख्या बढ़ती जाती है उसी प्रकार
ब्याज की राशि भी।
(च) चक्रवृद्धि ब्याज―कभी-कभी ऐसा होता है कि उधारकर्ता और ऋणदाता खाते
के निपटान के लिए एक समय का एक निश्चित मानक जैसे वार्षिक, अर्द्धवार्षिक अथवा
तिमाही तय कर लेते हैं। ऐसी स्थितियों में पहले मानक समय के बाद धनराशि दूसरे मानक
समय के लिए मूलधन, दूसरे मानक समय के बाद धनराशि तीसरे मानक के लिए मूलधन
हो जाती है और आगे यह क्रम जारी रहता है। निश्चित समय के पश्चात धनराशि और
मूलधन के बीच का अंतर उस अवधि का चक्रवृद्धि ब्याज (C.I.) कहलाता है। चक्रवृद्धि
व्याज के महत्वपूर्ण तथ्य और सूत्र―
              माना मूलघन =p, समय =n वर्ष और दर =r: प्रति वर्ष और माना a,n वर्ष बाद
प्राप्त धनराशि हो तो, A= P[1+r/100]ⁿ
बच्चों को इसे निम्नलिखित उदाहरणों द्वारा स्पष्ट करेंगे―
स्थिति 1 एल्वर्ट ने 8000 रु. की धनराशि 5% वार्षिक व्याज की दर से 2 वर्ष के लिए
एक तय जमा योजना में निवेश की। तो उसे कितनी धनराशि वापस मिलेगी।
हल― मिश्रधन = [8000×(1+5/100)²]
(8000×21/20×21/20) = Rs.8820
(छ) बट्टा―जब सामान्यत: कोई व्यापारी अपने ग्राहक को कोई समान बेचता है, तो
अंकित मूल्य पर कुछ छूट देता हैं, इसी छूट को बट्टा कहते हैं बटे को सामान्य अर्थ छूट
से हैं। बुट्टा सदैव अंकित मूल्य पर दिया जाता है।
विक्रय मूल्य = अंकित मूल्य – बट्टा
यदि किसी वस्तु को बेचने पर r% का बट्टा दिया जा रहा हो, तो वस्तु का विक्रय मूल
= अंकित मूल्य x (100–r)/100
      बट्टे के देने के कई प्रकार हैं। बच्चों को इनसे संबंधित विभिन्न अभ्यास हल करा कर
उनमें बुट्टे की अवधारणा स्पष्ट की जा सकती है। जैसे―
          एक वस्तु का अंकित मूल्य 100 रुपए है, यदि उसे 20%,40% के दो क्रमिक बट्टे
पर बेचा जाए तो उसका विक्रय मूल्य क्या होगा?
हल—विक्रय मूल्य = अंकित मूल्य x (100%–%)/100x (100%–%)/100
x (100%–%)/100 x …….
          = 100 (100%–20%) / 100 x (100% – 40%)/100 = 100 x 80/100
x60/100 = 48
उत्तर―48 रुपये।
(ज) राशियों की तुलना का व्यापक रूप व उसे गणितीय भाषा में व्यस करना―हमारे
दैनिक जीवन में अनेक ऐसे अवसर आते हैं जब हम दो राशियों की तुलना करते हैं। इन
राशियों को हमें गणितीय भाषा में भी व्यक्त करना होता है । वास्तविक जीवन में अनुपात
के व्यापक उपयोग मिलते हैं । उदाहरण में हम चीते और एक आदमी की बात की तुलना
करते हैं । यहाँ चीते की चाल आदमी की चाल की 6 गुनी है।
           अथवा, आदमी की चाल, चीते की चाल का 16वाँ भाग है। हम राशियों को, जैसे
ऊँचाइयों को, अनुपात के रूप में भी दर्शा सकते हैं।
       राशियों की तुलना के व्यापक रूप को हम एक अन्य उदाहरण द्वारा भी समझ सकते
हैं। जैसे—एक मानचित्र 1000km को 2cm से दशति हुए बनाया गया है। यदि दो स्थानों
के बीच की दूरी मानचित्र में 2.5cm है, तब उनके बीच की वास्तविक दूरी कितनी होगी?
इसे ऐसे हल कर सकते हैं―
2 cm दर्शाता है 1000 km को
अतः 1 cm दर्शाता है 1000/2 km को
अतः, 2.5 cm दर्शाता है 1000/2×2.5 km को
अर्थात् 1250 km को
प्रश्न 40. निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखें।
(क) गणितीय किट
(ब) घात एवं घातांक
(ग) गणित में मनोरंजन
(घ) जादू-वर्ग
(ङ) आँकड़ों का एकत्रिकरण व वर्गीकरण
(च) बारंबारता बंटन सारणी
(छ) गणित प्रयोगशाला
(ज) इकाई योजना एवं पाठयोजना
उत्तर―गणितीय किट―गणितीय किट गणित के उपकरण तथा गणित सीखने के
संसाधनों का संग्रह है। यह सीखने-सिखाने के दौरान गणित को समझने की प्रक्रिया को सरल
बनाता है। इसके द्वारा कई प्रकार की गणित की गतिविधियाँ बच्चों को कराई जा सकती
है, जिसमें बच्चे गणितीय उपकरणों का इस्तेमाल कर मनोरंजन एवं रोचकता के साथ स्वयं
करके गणितीय संक्रियाएँ और अवधारणाओं को सीखते हैं । गणितीय किट बच्चों की कक्षा
की जरूरतों के हिसाब से तैयार किया जाता है। गणितीय किट में संख्याएँ, ज्यामितीय
आकृतियाँ, संख्या-रेखा, घड़ी, त्रिआयामी मॉडल, मापक स्केल, लीटर, गणितीय पैटों के
मॉडल, नकली मुद्राएँ, सिक्के, कंपास आदि उपकरण होते हैं, जिनके माध्यम से छात्र
गणितीय अवधारणाओं को समझने की गतिविधि करते हैं। इनकी मदद बच्चे कोण,
त्रिभुज, चतुर्भुज बना एवं माप सकते हैं।
       (ख) पात एवं घातांक―किसी संख्या पर घात लगाना या घातांकन (exponentiation
या Involution) एक गणितीय संक्रिया है जिसमें किसी संख्या को लगातार अपने से दो या
अधिक बार गा किया जाता है। जितने बार गुणा किया जाता है, वह उस संख्या का ‘घात’
कहलाता है। रात को संख्या के ऊपर दाहिनी ओर थोड़ा हटाकर लिखा जाता है। इस प्रकार
एक घातक्रिय में दो संख्याएँ उपयोग की जाती हैं—आधार (बेस) a एवं घातांक (exponent)
n जब n धन पूर्णांक होता है तो घातांकन का स्वयं से बार-बार गुणन को दर्शाता है।
          उदाहरण के लिए यदि कोई संख्या है जहाँ x = 3 और a=2 तब
x = 3², अर्थात 3 एक संख्या है और 2 इसका घातांक ।
घात-संकेत के आविष्कार के पहले युनानी लोग द्वितीयघात को चतुष्कोण संख्या अथवा
घात कहते थे। घात क्रिया मूलक्रिया (root finding) का विलोम है । मूल क्रिया में संख्या
का कोई मूल (जैसे वर्गमूल) ज्ञात किया जाता है।
(ग) गणित में मनोरंजन―संख्याओं के तिलिस्म का नाम ही गणित है। इस तिलिस्म
(मायाजाल) में फंसे व्यक्ति को यह विषय नीरस प्रतीत होता है। परंतु इस तिलिस्म का
रहस्य पता चलने पर उसे बहुत ही रोचक लगने लगता है। जीवन से संबंधित कुछ समस्याओं
के समाधान देकर गणित के प्रति रुचि उत्पन्न करने हेतु रोचक गतिविधियों द्वारा किया गया
प्रयास ही गणित में मनोरंजन है। इसमें दी गई समस्याओं के हलों को समझने के लिए रोचक
खेल-गतिविधियों का इस्तेमाल किया जाता है । इसमें अंकों से संबंधित प्रश्न, गणितीय सूत्रों
पर आधारित प्रश्न, क्षेत्रफल से संबंधित प्रश्न, युक्ति-युक्त प्रश्न, माया वर्ग आदि-आदि
अनेक प्रकार के रोचक प्रश्नों के माध्यम से दैनिक जीवन की समस्याओं का समाधान अत्यंत
सरल ढंग से किया जाता है।
        गणित में मनोरंजन का मुख्य उद्देश्य बच्चों का मनोरंजन तथा गणित के प्रति उनकी
रुचि उत्पन्न करके उनकी चिंतन और तर्क-शक्ति का विकाश करना है। मनोरंजक गणित
एक विस्तृत अर्थ वाला शब्द है जिसके अतर्गत गणितीय पहेलियाँ एवं गणितीय खेल
सम्मिलित हैं। इस क्षेत्र में आने वाली सभी समस्याओं के लिये उच्च गणित की जरूरत नहीं
होती । इसीलिये मनोरंजक गणित सामान्य लोगों को भी अपनी ओर खींच लेता है और वे
गणित में धीरे-धीरे रुचि लेना आरम्भ कर देते हैं।
(घ) जादू―वर्ग-मनोरंजक गणित में n कोटि (आर्डर) का माया वर्ग या ‘मैजिक वर्ग’
(magic square) n संख्याओं (प्रायः पूर्णाकों) का ऐसा विन्यास (arrangement) होता
है कि सभी पक्तियों, स्तम्भों, एवं दोनों विकों में स्थित संख्याओं का योग समान होता है।
इसे ‘अंक यंत्र’ भी कहते हैं। इस प्रकार एक जादू वर्ग एक वर्ग ग्रिड है जिसमें प्रत्येक क्षैतिज
रेखा, ऊर्ध्वाधर और विकर्ण का योग एक निरंतर संख्या है और भीतर पूर्णाकों का एक
प्रावधान के होता है।
ph
प्रत्येक पंक्ति, स्तम्भ या विकर्ण (diagonal) का योग माया नियतांक (magic constant)
 M कहलाता है। इसे ‘माया योगफल’ (मैजिक सम) भी कहते हैं। किसी सामान्य माया वर्ग
का माया नियतांक केवल उसके कोटि n पर ही निर्भर है और इसका मान
– अत: n=3, 4, 5 कोटि वाले जादू वर्गों के जादू नियतांक इस प्रकार होंगे:
15, 34, 111, 175, 260……..
        (ङ) आँकड़ों का एकत्रिकरण व वर्गीकरण―जब हम किसी विषय से संबंधित
कोई जानकारी हासिल करना चाहते हैं तो सबसे पहले उस विषय से संबंधित आँकड़ों को
इकट्ठा करते हैं। इसे कि आँकड़ों का एकत्रीकरण कहा जाता है । आँकड़ों का एकत्रीकरण
कई प्रकार से किया जाता है। जैसे― टोकन, चेहरा, चित्र या कोई सरल रेखा, चित्र, हिंदी
या अंग्रेजी के भाषा के अक्षर या अलग-अलग रेखाओं का प्रयोग किया जाता है । जब हम
किसी विषय में आँकड़े एकत्रित करते हैं तो हमें उन आँकड़ों से निष्कर्ष निकालने के लिए
उन्हें आवश्यकतानुसार व्यवस्थित करना पड़ता है ताकि जरूरी निष्कर्ष प्राप्त किया जा सके।
यही आँकड़ों का वर्गीकरण कहलाता है।
(च) बारंबारता बंटन सारणी― गणित में, किसी प्रयोग या अध्ययन में कोई घटना
जितनी बार घटित होती है, उससंख्या को उस घटना की बारम्बारता (frequency) कहते
हैं। इन बारम्बारताओं को प्राय: आयत चित्र (हिस्टोग्राम) के रूप में चित्रित किया जाता
है। बारंबारता बंटन सारणी एक तालिका होती हैं, जो किसी नमूने में विभिन्न परिणामों की
आवृत्ति को दर्शाती हैं। तालिका की प्रत्येक प्रविष्टि में किसी विशेष समूह या अंतराल के
भीतर के मूल्यों की आवृत्ति या घटनाओं की गिनती शामिल होती हैं, और इस प्रकार, यह
तालिका नमूने में मूल्यों के वितरण को सारांशित करती हैं।
            उदाहरण—किसी विद्यालय के कक्षा-5 के 30 विद्यार्थियों के भारों की वर्गीकृत
बारम्बारता सारणी के आँकड़ों का आयत चित्र द्वारा प्रदर्शन―
वर्ग अंतराल            बरम्बारता (भार)
35-40                   3
40-45                   7
45-50                 12
50-55                   5
55-60                   3
_____________________________
योग                       30
_____________________________
(छ) गणित प्रयोगशाला―गणितीय प्रयोगशाला गणित को करके सीखने का स्थान
है, जहाँ गणित के नियमों एवं सिद्धांतों को प्रयोगों के माध्यम से सीखा जाता है। इसमें स्वयं
करके सीखने से बच्चे कोई भी अवधारणा अधिक स्पष्ट एवं स्थाई रूप से सीखते हैं।
गणितीय प्रयोगशाला में फर्नीचर, उपकरण, स्टोर, केलकुलेटर, स्केल, टेप, वेट मशीन,
थर्मामीटर, विभिन्न प्रकार के मापक यंत्र, विभिन्न साइज के लकड़ी के मॉडल, त्रिकोण,
आयत, घन, घनाभ, ग्राफ पेपर, कंपास, बॉक्स, घड़ी, ओवरहेड प्रोजेक्टर, प्लेन पेपर,
एलसीडी प्रोजेक्टर आदि होते हैं। इससे छात्र क्रियात्मक एवं व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त करते
हैं। यह छात्रों को स्वयं करके सीखने के अवसर देता है, जिससे प्राप्त ज्ञान स्थाई होता है।
यह गणित के प्रति रुचि उत्पन्न कर छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास करता है।
ph
(ज) इकाई योजना एवं पाठयोजना―एक पाठयोजना आम तौर पर शिक्षक द्वारा
तैयार की जाती है जो छात्रों को यह सुनिश्चित करने के लिए एक पाठय संचालित करता
है कि पाठय अपने उद्देश्यों को पूरा करे और सीखना प्रभावी ढंग से हो । एक पाठयोजना,
विशेष रूप से एक विशेष पाठ के उद्देश्यों पर और उन उद्देश्यों को प्राप्त करने के तरीके
के आधार पर तैयार की जाती है । एक पाठयोजना में पाठय के उद्देश्यों, विद्यार्थियों से अपेक्षित
समस्याएँ, पाठ के भीतर प्रत्येक कार्य के लिए समय आवंटन, गतिविधि प्रकार और
गतिविधियाँ शामिल होती हैं। इन के अलावा, एक पाठयोजना में व्यक्तिगत लक्ष्य भी शामिल
हो सकते हैं जो शिक्षक छात्रों के व्यक्तिगत विकास पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
               इकाई योजना एक व्यापक क्षेत्र को कवर करती है। एक इकाई जिसमें कई पाठ
शामिल हो सकते हैं एक इकाई योजना में शामिल होती है। इसमें पाठय के संदर्भ में टुकड़ों
में लक्ष्यों को शामिल किया जाता है, जिसे कवर करने के लिए इच्छित सामग्री की रूपरेख
और पाठ्यचर्या संदर्भ आदि तैयार की जाती है । एक पाठयोजना एक शिक्षक द्वारा एक वर्ग
में लागू की जाती है जबकि इकाई योजना कई शिक्षकों पर लागू होती है, और जो स्कूल
में प्रशासनिक भूमिका निभाते हैं और एक सेमेस्टर के लिए प्रभावी हैं।

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