गति किसे कहते हैं | गति की परिभाषा क्या हैं | गति कितने प्रकार के होते हैं
गति किसे कहते हैं | गति की परिभाषा क्या हैं | गति कितने प्रकार के होते हैं
गति (Motion)
◆ यदि किसी वस्तु की स्थिति, किसी स्थिर वस्तु के सापेक्ष (Relative) एक समान रूप से बदलती रही हो तो वह वस्तु गति (Motion) में कही जाती है।
◆ अदिश राशि (Scalar Quantity) : जिन भौतिक राशियों को निरूपित करने के लिए केवल परिमाण (Magnitude) की आवश्यकता होती है, दिशा (Direction) की नहीं, उन्हें अदिश राशि कहते हैं। जैसे- समय, चाल, द्रव्यमान, कार्य, ऊर्जा आदि।
◆ सदिश राशि (Vector Quantity) : जिन भौतिक राशियों को पूर्णतया निरूपित करने के लिए परिमाण (Magnitude) के साथ-साथ दिशा की भी आवश्यकता पड़ती है, उन्हें सदिश राशि कहते हैं। जैसे- वेग, विस्थापन, बल, त्वरण आदि।
गति के प्रकार
गति को मुख्यतः तीन भागों में बाँटा जा सकता है-
1. स्थानान्तरीय गति (Translatory Motion) : जब कोई वस्तु एक सीधी रेखा में गति करती है तो ऐसी गति को स्थानान्तरीय गति कहते हैं। स्थानान्तरीय गति को रेखीय गति भी कहते हैं।
उदाहरणार्थ – सीधी पटरियों पर चलती रेलगाड़ी।
2. घूर्णन गति (Rotatory Motion) : जब कोई पिण्ड किसी अक्ष के परितः घूमता है तो ऐसी गति को घूर्णन गति कहते हैं।
उदाहरणार्थ – पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूमना।
3. कंपनीय गति (Vibratory Motion) : जब कोई वस्तु किसी निश्चित बिन्दु के इधर-उधर गति करती है तो उसे कंपनीय गति कहते हैं।
उदाहरणार्थ – घड़ी के लोलक का अपनी मध्यमान स्थिति के दोनों ओर दोलन करना।
◆ दूरी (Distance) : किसी दिये गये समयान्तराल में वस्तु द्वारा तय किये गये मार्ग की लंबाई को दूरी कहते हैं। यह एक अदिश राशि है व सदैव धनात्मक होती है।
◆ विस्थापन (Displacement) : किसी विशेष दिशा में गतिशील वस्तु के स्थिति परिवर्तन को उसका विस्थापन कहते हैं। यह एक सदिश राशि है तथा इसका SI मात्रक मीटर है। विस्थापन धनात्मक, ऋणात्मक और शुन्य कुछ भी हो सकता है।
◆ वेग (Velocity) : गतिशील वस्तु के विस्थापन की दर अर्थात् एक सेकंड में को वस्तु का वेग कहते हैं। वेग एक सदिश राशि है। इसका SI मात्रक मी/से होता है। वस्तु का वेग धनात्मक व ऋणात्मक दोनों हो सकता है। वेग को निम्न सूत्र से व्यक्त करते हैं-
वेग = विस्थापन / समय
◆ चाल (Speed) : किसी गतिमान वस्तु के स्थिति में पविर्तन की दर अर्थात् एक सेकंड में चली गयी दूरी को उस वस्तु की चाल कहते हैं। चाल एक अदिश राशि है और यह सदैव धनात्मक होती है। चाल को निम्नलिखित सूत्रों से व्यक्त करते हैं-
चाल= चली गयी दूरी / समय
◆ त्वरण (Acceleration) : किसी वस्तु के वेग में परिवर्तन की दर को ‘त्वरण’ कहते हैं। यह एक सदिश राशि है। इसका SI मात्रक मी/से2 है। यदि समय के साथ वस्तु का वेग घटता है तो त्वरण ऋणात्मक होता है, जिसे मंदन (Retardation) कहते हैं।
◆ न्यूटन के गति विषयक नियम (Newton’s Law of Motion) : गति विषयक हमारा ज्ञान तीन मूल नियमों पर आधारित है। इन्हें सर्वप्रथम महान वैज्ञानिक आइजक न्यूटन ने सन् 1687 ई. में अपनी पुस्तक ‘प्रिंसिपिया (Principia) में प्रतिपादित किया था।
◆ न्यूटन का प्रथम गति नियम (Newton’s First Law of Motion) : इस नियम के अनुसार, यदि कोई वस्तु विरामावस्था में है या एक सरल रेखा में समान वेग से गतिशील रहती है, तो उसकी विरामावस्था या समान गति की अवस्था में परिवर्तन तभी होता है, जब उस पर कोई बाह्य बल लगाया जाता है। इस नियम को गैलिलियो का नियम या जड़त्व का नियम भी कहते हैं। इस तरह प्रथम नियम से बल की परिभाषा मिलती है।
◆ न्यूटन का द्वितीय गति नियम (Newton’s Second Law of Motion) : इस नियम के अनुसार किसी वस्तु के संवेग में परिवर्तन की दर उस वस्तु पर आरोपित बल के समानुपाती होता है तथा संवेग परिवर्तन बल की दिशा में होता है। अब यदि आरोपित बल F, बल की दिशा में उत्पन्न त्वरण a एवं वस्तु का द्रव्यमान m हो, तो न्यूटन के गति के दूसरे नियम से F = ma अर्थात् न्यूटन के दूसरे नियम से बल का व्यंजक प्राप्त है।
◆ न्यूटन का तृतीय नियम (Newton’s Third Law of Motion) : इस नियम के अनुसार, प्रत्येक क्रिया की उसके समान परंतु विपरीत दिशा में प्रतिक्रिया होती है। इस नियम को क्रिया-प्रतिक्रिया सूत्र नियम भी कहते हैं।
इस नियम के कुछ उदाहरण हैं-
1. बंदूक से गोली चलाने पर चलाने वाले को पीछे की ओर धक्का लगना
2. नाव से कूदने पर नाव का पीछे की ओर हट जाना
3. कुँओं से पानी खींचते समय रस्सी टूट जाने पर व्यक्ति का पीछे की ओर गिर पड़ना
4. ऊँचाई से कूदने पर चोट लगना
5. रॉकेट का आगे बढ़ना आदि।
◆ संवेग संरक्षण का सिद्धान्त (Theory of Conservation of Momentum) : यदि कणों के किसी समूह या निकाय पर कोई बाह्य बल नहीं लग रहा हो, उस निकाय का कुल संवेग नियत रहता है। अर्थात् टक्कर के पहले और बाद का संवेग बराबर होता है।
◆ आवेग (Impulse) : जब कोई बड़ा बल किसी वस्तु पर थोड़े समय के लिए कार्य करता है, तो बल तथा समय अंतराल के गुणनफल को उस बल का आवेग कहते हैं। आवेग एक सदिश राशि है, जिसका मात्रक न्यूटन सेकंड (Ns) है तथा इसकी दशा वही होती है जो बल की होती है। आवेग को निम्न सूत्र से व्यक्त करते हैं-
आवेग = बल x समय अंतराल = संवेग में परिवर्तन
◆ अभिकेन्द्रीय बल (Centripetal Force) : जब कोई वस्तु किसी वृत्ताकार मार्ग पर चलती है, तो उस पर एक बल वृत्त के केन्द्र की ओर कार्य करता है। इस बल को अभिकेन्द्रीय बल कहते हैं। इस बल के अभाव में वस्तु वृत्ताकार मार्ग पर नहीं चल सकती है। यदि कोई m द्रव्यमान का पिण्ड v चाल से त्रिज्या के वृत्तीय मार्ग पर चल रहा है तो उस पर कार्यकारी वृत्त के केन्द्र की ओर आवश्यक अभिकेन्द्रीय बल F = mv 2 / R होता है।
◆ अपकेन्द्रीय बल (Centrifugal Force) : जब कोई पिण्ड किसी वृत्तीय मार्ग पर चलता है, तो उस पर मार्ग के केन्द्र की ओर एक बल लगता है, जिसे अभिकेन्द्रीय बल कहते हैं। न्यूटन के तीसरे नियम के अनुसार इस बल का एक प्रतिक्रिया बल जो कि परिमाण में अभिकेन्द्रीय बल के बराबर परंतु इसकी दिशा अभिकेन्द्रीय बल के विपरीत अर्थात् केन्द्र के बाहर की ओर होती है. लगता है। इस प्रतिक्रिया बल को ही अपकेन्द्रीय बल कहते हैं। कपड़ा सुखाने की मशीन, दूध से मक्खन निकालने की मशीन आदि अपकेन्द्रीय बल के सिद्धान्त पर कार्य करती है।
◆ बल आघूर्ण (Moment of Force) : बल द्वारा एक पिण्ड को एक अक्ष के परितः घुमाने की प्रवृत्ति को बल-आघूर्ण कहते हैं। किसी अक्ष के परितः एक बल का बल-आघूर्ण उस बल के परिमाण तथा अक्ष से बल की क्रिया रेखा के बीच लंबवत् दूरी के गुणनफल के बराबर होता है। यह एक सदिश राशि है तथा इसका मात्रक न्यूटन मीटर होता है। बल-आघूर्ण को
निम्नलिखित सूत्र से व्यक्त करते हैं-
बल – आघूर्ण (T) = बल x आघूर्ण भुजा
◆ सरल मशीन (Simple Machines) : यह बल-आघूर्ण के सिद्धान्त पर कार्य करती है। सरल मशीन एक ऐसी युक्ति है जिसमें किसी सुविधाजनक बिन्दु पर बल लगाकर, किसी अन्य बिन्दु पर रखे हुए भार को उठाया जाता है। जैस- उत्तोलक, घिरनी, आनत तल, स्क्रू जैक
◆ गुरुत्व केन्द्र (Centre of Gravity) : किसी वस्तु का गुरुत्व केन्द्र वह बिन्दु है, जहाँ वस्तु का समस्त भार कार्य करता है। किसी वस्तु का भार गुरुत्व केन्द्र से ठीक नीचे की ओर कार्यरत रहता है। किसी पिण्ड का गुरुत्व केन्द्र तब तक स्थिर रहता है जब तक उसका आकार नहीं बदलता।
◆ संतुलन (Equilibrium) : जब किसी वस्तु पर कई बल इस प्रकार कार्य कर रहे हों कि वस्तु न तो रेखीय गति करे और न ही घूर्णन गति, तो हम कहते हैं कि वस्तु संतुलन की अवस्था में हैं। संतुलन तीन प्रकार के होते हैं- स्थायी संतुलन, अस्थायी संतुलन एवं उदासीन संतुलन।
(i) स्थायी संतुलन (Stable Equilibrium) : यदि किसी वस्तु को उसकी संतुलनावस्था से थोड़ा-सा विस्थापित करके छोड़ने पर यदि वस्तु पुनः संतुलन की अवस्था प्राप्त कर लेती है तो कहा जाता है कि वस्तु स्थायी संतुलन में है। जैसे- चौड़े मुँह पर रखा हुआ शंकु।
(ii) अस्थायी संतुलन (Unstable Equilibrium) : यदि किसी वस्तु को उसकी संतुलनावस्था से थोड़ा-सा विस्थापित करके छोड़ने पर वह पुनः संतुलन की अवस्था में न आये तो इसे अस्थायी संतुलन कहते हैं। जैसे- शीर्ष पर खड़ा हुआ शंकु।
(iii) उदासीन संतुलन (Neutral Equilibrium) : यदि किसी वस्तु को उसकी संतुलन स्थिति से थोड़ा-सा विस्थापित करके छोड़ने पर वह वस्तु अपनी पूर्व अवस्था में आने का प्रयास न करे, बल्कि अपनी नई स्थिति में ही रहे, तो हम कहते हैं कि वस्तु उदासीन संतुलन में है। जैसे- गोलाकार वस्तुएँ, किसी तल पर पड़ा शंकु आदि।