पाठ्य पुस्तकों का अर्थ स्पष्ट कीजिए और पाठ्य पुस्तकों की विशेषताओं, आवश्यकता एवं महत्त्व का वर्णन कीजिए। राष्ट्रीय स्तर पर पाठ्यपुस्तकों को तैयार करने में विभिन्न एजेन्सीज की भूमिका बताइए।
प्रश्न – पाठ्य पुस्तकों का अर्थ स्पष्ट कीजिए और पाठ्य पुस्तकों की विशेषताओं, आवश्यकता एवं महत्त्व का वर्णन कीजिए। राष्ट्रीय स्तर पर पाठ्यपुस्तकों को तैयार करने में विभिन्न एजेन्सीज की भूमिका बताइए।
Write the meaning and Explain the Characteristics, need and importance of Text-Books. Explain the role of different agencies in preparation of Text Books at National Level.
या
राष्ट्रीय स्तर पर पाठ्यपुस्तकों को तैयार करने में विभिन्न एजेन्सीज की भूमिका | Role of different agencies in preparation of Text Books at National Level.
उत्तर- पाठ्य पुस्तकों का अर्थ एवं परिभाषाएँ
आधुनिक शिक्षा प्रणाली में पाठ्य पुस्तकें प्रमुख स्थान रखती हैं। पाठ्य पुस्तक पाठ्यक्रम की वास्तविक रूपरेखा को प्रस्तुत करती है। पाठ्य पुस्तके अनुदेशात्मक सामग्री के रूप में सर्वाधिक प्रयोग की जाती है। शिक्षक तथा छात्र दोनों के लिए ही पाठ्य पुस्तके उपयोगी है। पुस्तकों के माध्यम से अतीत का ज्ञान तथा अनुभव संचित किए जाते हैं। ये अनुभव आने वाली पीढ़ी मार्गदर्शन करते हैं। अत: किसी विषय के ज्ञान को जब एक स्थान पर पुस्तक के रूप में संगठित ढंग से प्रस्तुत किया जाता है तो उसे पाठ्य-पुस्तक कहा जाता है। “पाठ्य पुस्तक कक्षा-कक्ष के प्रयोग हेतु निर्धारित की गई पुस्तक है।
डगलस के अनुसार, अध्यापकों द्वारा विश्लेषण के पश्चात् – पुस्तकों को वे क्या और किस प्रकार पढ़ायेगे की आधारशिला माना है।”
हेरोलिकर के अनुसार, “पाठ्य पुस्तक ज्ञान, आदतों, भावनाओं क्रियाओं तथा प्रवृत्तियों का सम्पूर्ण योग है।”
लैंज के अनुसार, “पाठ्य पुस्तक अध्ययन क्षेत्र की किसी शाखा की एक प्रमाणित पुस्तक होती है।”
हाल क्वेस्ट के अनुसार, पाठ्यपुस्तक शिक्षण अभिप्रायों के लिए व्यवस्थित प्रजातीय चिन्तन का एक अभिलेख है।”
पाठ्य पुस्तकों की विशेषताएँ
- मनोवैज्ञानिक विशेषताएँ – पाठ्य पुस्तक की मनोवैज्ञानिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
- विषय – सामग्री – पाठ्य पुस्तकों की विषय-सामग्री बालक की रुचि, मानसिक योग्यता तथा विकास की अवस्था के अनुसार होनी चाहिए। इन सभी का बालक की शक्तियों तथा मानव की क्रियाओं के विभिन्न क्षेत्रों एवं वास्तविक जीवन से इतना सम्बन्ध अवश्य हो कि प्रत्येक बालक की अपनी-अपनी रुचि, योग्यताओं तथा आवश्यकताओं के अनुसार वास्तविक क्रियाओं में सक्रिय होकर अनुभव प्राप्त करें। ये सभी प्राप्त अनुभव भावी जीवन की क्रियाओं में उचित प्रशिक्षण प्रदान करके बालक को एक अनुभवी बालक बनाते हैं। पाठ्यसामग्री को स्पष्ट करने के लिए ऐसे उदाहरणों का प्रयोग किया जाए जिससे बालक परिचित हो तथा सरलता से समझ सके। पाठ्य सामग्री में विभिन्नता भी आवश्यक है। इससे मन्द, सामान्य तथा प्रखर बुद्धि वाले सभी बालक अपनी-अपनी मानसिक आवश्यकता के अनुसार लाभ प्राप्त करते रहेंगे। अतः हम कह सकते हैं कि पाठ्य-सामग्री नैतिक, सामाजिक और चारित्रिक दृष्टि से उपयोगी होनी चाहिए।
- भाषा शैली-भाषा शैली भी बालक की रुचि तथा योग्यता और विकास के विभिन्न स्तरों के अनुसार होनी चाहिए। छोटी कक्षा में छोटे-छोटे, सरल एवं सुबोध शब्द प्रयोग किए जाएं और जैसे-जैसे कक्षा स्तर ऊपर उठता चला जाता है वैसे ही कठिन भाषा का उपयोग करना चाहिए। पाठ्य पुस्तकों की शैली रुचिकर तथा मनोरंजक होनी चाहिए। इसमें ओज, माधुर्य तथा प्रसार गुणों का समावेश करना चाहिए। किसी भी पाठ्य पुस्तक की भाषा-शैली पुस्तक की गुणवत्ता को प्रदर्शित करती है। भाषा का सरल व क्रमबद्ध होना पाठ्य पुस्तक की उपयोगिता बढ़ाती है। बालक के मन पर पुस्तक की भाषा-शैली का व्यापक प्रभाव पड़ता है। अतः भाषा-शैली के आधार पर पाठ्य पुस्तक सुव्यवस्थित होनी चाहिए।
- चित्रण–पाठ्य-पुस्तकों में आवश्यकतानुसार स्पष्ट, बड़े, रंगीन चित्रों, मानचित्रों, रेखाचित्रों तथा तालिकाओं व सारणियों का उचित स्थान पर प्रयोग किया जाना चाहिए। पाठ्य पुस्तक में उचित स्थानों पर वर्णन करके पाठ्य-पुस्तक को रोचक तथा प्रभावशाली बनाया जा सकता है। इन वस्तुओं तथा चित्रों के प्रयोग से पाठ्य-पुस्तक सुन्दर व बोधगम्य हो जाती हैं। ऐसी पाठ्य पुस्तकें उचित ज्ञान प्रदान करती है तथा ऐसी पाठ्य पुस्तकें अधिगम हेतु महत्त्वपूर्ण होती हैं। अतः महत्त्व पाठ्य-पुस्तक का निर्माण करते समय यह ध्यान रखना जरूरी होता है कि पाठ्य-पुस्तक में किस प्रकार की पाठ्य-वस्तु का समावेश किया गया है।
- बाह्य रूप (Get Up) – किसी भी पाठ्य पुस्तक का बाह्य रूप अत्यन्त प्रभावशाली होना चाहिए। यदि पाठ्य पुस्तक की विशेष साम्रगी एवं बनावट आकर्षक हाती है तो वह पाठ्य पुस्तक प्रभावशाली होती है। उसकी बनावट, वाह्य आवरण, मुख पृष्ठ अत्यन्त सुन्दर व रोचक होने चाहिए। इससे बालकों में पाठ्य पुस्तक को देखकर रुचि तथा जिज्ञासा उत्पन्न होती है। यह ध्यान रखना आवश्यक है कि छोटी कक्षाओं की पाठ्य पुस्तकों का आवरण रंगीन चमकदार तथा चिकना होना चाहिए और बडी कक्षाओं की पुस्तकों को कलापूर्ण तथा सात्विक होना चाहिए। पुस्तक की जिल्द मजबूत होनी चाहिए। कागज अनुकूल तथा उचित होना चाहिए। पुस्तक की छपाई सीधी पंक्तियों में स्पष्ट व चमकीली और आकर्षक होनी चाहिए। अत पाठ्य पुस्तक के निर्माण में इन बातो का ध्यान रखना जरूरी होता है क्योंकि यही बाते पाठ्य पुस्तक को शिक्षार्थी के लिए उपयोगी बनाती है।
- प्रारूप (Format)- पाठ्य पुस्तक प्रारूप में छोटे-बड़े शीर्षक की व्यवस्था, टाइपिंग तथा हाशिया और संकेत चित्रों सहित उपस्थित होने चाहिए। उपरोक्त सभी बातें किसी भी पाठ्य पुस्तक को उचित स्थान प्रदान करती है। ये सभी बातें पाठ्य पुस्तक की उपयोगिता को बढ़ाती हैं। अतः प्रत्येक स्तर के विद्यार्थी के लिए पाठ्य-पुस्तक लिखते समय लेखक तथा प्रकाशकों को इन सभी बातों का ध्यान रखना जरूरी है।
- मूल्य तथा उपलब्धता – पाठ्य पुस्तक का मूल्य उचित होना भी उसकी उपलब्धता को प्रकट करता है। किसी भी पाठ्य पुस्तक को प्रत्येक स्थान पर उपलब्ध होना चाहिए। किसी पाठ्य पुस्तक का मूल्य यदि अधिक होगा तो बालक उसे खरीदने में असमर्थ रहेंगे। पाठ्य पुस्तकें कम मूल्य पर हर जगह उपलब्ध होनी चाहिए। इससे विद्यार्थी को पुस्तक खरीदने में किसी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा। पाठ्य पुस्तक की उपलब्धता लेखक व प्रकाशक दोनों के लिए ही लाभदायक होता है। अतः पाठ्य पुस्तक के मूल्य का ध्यान रखने के साथ-साथ वह प्रत्येक जगह उपलब्ध हो जाए यह भी ध्यान रखना आवश्यक है।
- तार्किक विशेषता
- तथा की संगठन व्यवस्था – पाठ्य पुस्तकों विषय-सामग्री को तर्कपूर्ण तरीके से सुसंगठित तथा सुव्यवस्थित करना चाहिए। ऐसा होने से पाठ्य पुस्तक को पढ़ाने में सरलता होगी। पाठ्य-पुस्तक सरलता से पढाया जा सकेगा। पाठ्य सामग्री के छोटे-छोटे पाठों की घटनाओं को आवश्यक शीर्षकों सहित उचित स्थानों पर सरलता से अंकित कर पुस्तक को रोचक एवं प्रभावपूर्ण बनाया जा सकता है। पाठ्य पुस्तक में आवश्यक शीर्षकों का उचित स्थान पर प्रयोग करना चाहिए। पाठ्य-पुस्तक के निर्माण में संगठन और व्यवस्था का होना अनिवार्य है।
- विश्वसनीयता – पाठ्य पुस्तक को विश्वसनीय बनाने के लिए उसमें मौलिक विचार, निष्पक्ष तथा स्पष्ट होने चाहिए। पाठ्य पुस्तक में आंकड़े और उदाहरण भी वैध होने चाहिए। पाठ्य सामग्री की नवीनता तथा वास्तविकता विश्वसनीय सन्दर्भों द्वारा प्रमाणित होनी चाहिए। किसी भी पाठ्य पुस्तक को वैधता देने में उसकी निष्पक्षता और स्पष्टता अनिवार्य होती है। पाठ्य पुस्तक में उदाहरण और नवीन आंकडे अंकित होने चाहिए।
- विषय का प्रतिपादन – पाठ्य पुस्तक में आधुनिक सूचनाएं होनी अनिवार्य हैं। विषय का प्रतिपादन भी निश्चित ठोस तथा सुसंगठित होना चाहिए। पाठ्य पुस्तक के निर्माण में प्राचीनता का समावेश न होकर आधुनिकता का समावेश होना जरूरी होता है। कोई भी पाठ्य-पुस्तक आधुनिक विचारों से परिपूर्ण होनी चाहिए। अतः पाठ्य पुस्तक में विषय का प्रतिपादन पाठ्य पुस्तक की उपलब्धता दर्शाता है।
- शिक्षण में सहायक – पाठ्य पुस्तक में बालकों तथा शिक्षकों के लिए निश्चित उद्देश्यों का होना अनिवार्य है। लेखक की भूमिका में शिक्षकों के लिए अध्यापन सम्बन्धी आवश्यक सूचनाएं देकर पुस्तक के आरम्भ में विषय-सूची तथा अन्त में अनुक्रमणिका की भी व्यवस्था करनी चाहिए। प्रत्येक अध्याय के अन्त में सार-संक्षेप के साथ-साथ सम्बन्धित साहित्य के प्रति उचित निर्देशन देते हुए अभ्यास के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण प्रश्नों का समावेश होना चाहिए। अतः पाठ्य पुस्तक के निर्माण में जिन बातों का समावेश किया जाना आवश्यक है 1 उनका समावेश उचित स्थान पर करके पाठ्य पुस्तक को महत्त्वपूर्ण बनाया जा सकता है।
पाठ्य पुस्तक की आवश्यकता एवं महत्त्व
- पाठ्य-पुस्तक के माध्यम से शिक्षकों को उचित मार्गदर्शन प्राप्त होता है।
- पाठ्य पुस्तकों की सहायता से ही शिक्षण लक्ष्यों एवं उददेश्यों को प्राप्त किया जा सकता है।
- कक्षा शिक्षण को सफल बनाने के लिए पाठ्य पुस्तक की आवश्यकता होती है। कक्षा में शिक्षण सूत्रों का प्रयोग करके शिक्षण को प्रभावपूर्ण एवं सरल बनाया जा सकता है।
- पाठ्य पुस्तकों के माध्यम से शिक्षा में हो रहे नवीन आविष्कारों, नवीन ज्ञान आदि की जानकारी प्राप्त करने हेतु ।
- प्रभावपूर्ण शिक्षण कार्य हेतु शिक्षण सहायक सामग्री, विधियों, प्रविधियों एवं अभ्यासार्थ प्रश्नों की आवश्यकता होती है जो हमें पाठ्य पुस्तक के माध्यम से प्राप्त होते हैं।
- पाठ्य पुस्तक द्वारा छात्रों को अभ्यास द्वारा सीखने का अवसर मिलता है। यह छात्रों को स्वाध्याय का अवसर प्रदान करती है अर्थात् छात्रों को पाठ दोहराने एवं गृहकार्य करने में सहायता प्रदान करने हेतु ।
- पाठ्य पुस्तक पाठ्यक्रम के अनुसार लिखी जाती है। अतः वे शिक्षकों को शिक्षण योजना बनाने में सहायता प्रदान करती है।
- प्रत्येक कक्षा-स्तर पर पाठ्य पुस्तकें एक महत्त्वपूर्ण शैक्षिक उपकरण का कार्य करती हैं।
- पाठ्य पुस्तक संचित ज्ञान एवं अनुभवों को नई पीढ़ी को हस्तान्तरित करने के लिए आवश्यक होती है
- पाठ्य पुस्तक छात्रों की मौलिक चिन्तन शक्ति तथा रचनात्मक शक्तियों को विकसित करने में सहायता प्रदान करती है।
- पाठ्य पुस्तक शिक्षक तथा छात्रों को अपने कार्य के प्रति जागरूक करने के लिए आवश्यक यंत्र है।
- पाठ्य पुस्तकों में अनेक नवीन एवं महत्त्वपूर्ण सूचनाओं का संग्रह होता है जिससे छात्र नवीन ज्ञान प्राप्त करते हैं।
- सामूहिक शिक्षण में पाठ्यप-पुस्तकें अत्यन्त लाभदायक सिद्ध हुई हैं क्योंकि कक्षा के समस्त छात्र एक साथ थोड़े से समय में अधिक ज्ञान अर्जित कर सकते हैं।
- पाठ्य पुस्तक शिक्षण के द्वारा शिक्षक को अन्य विषयों के साथ सह-सम्बन्ध स्थापित करने में सहायता मिलती है।
- जटिल विषयों को इसे सरलता से समझने के लिए। पाठ्य-पुस्तक को पढ़ना जरूरी है। पाठ्य पुस्तकों में सम्पूर्ण पाठ्यक्रम को क्रमबद्ध रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
- पाठ्य पुस्तक परीक्षार्थियों को परीक्षा के लिए नोट्स बनाने में सहायता करती है।
- एक अच्छी पाठ्य पुस्तक में विभिन्न सूचनाएँ क्रमबद्ध रूप में मिल जाती हैं।
पाठ पुस्तक निर्माण करने वाले अभिकरण के रूप में एन. सी. ई. आर. टी. की भूमिका –
- पाठ्य पुस्तक, विद्यालयी शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है, विद्यालयी शिक्षा की गुणवत्ता काफी हद तक पाठ्यपुस्तक की गुणवत्ता पर निर्भर करती है।
- एन.सी.ई.आर.टी. द्वारा निर्मित पाठ्य पुस्तकों का स्वरूप गतिशील होता है। और समय-समय पर सामाजिक, प्रशासनिक, शैक्षिक उद्देश्यों को दृष्टिगत रखते हुए एन. सी.ई.आर.टी. विद्यालयी पाठ्य पुस्तक की विषय-सामग्री में परिवर्तन करती रहती है।
- एन.सी.ई.आर.टी. पाठ्य पुस्तकों का निर्माण करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखती है कि पाठ्य पुस्तक की विषय-सामग्री अधिगमपूर्ण तथा आकर्षक हो।
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1986) में प्रत्येक पाँच वर्ष के अन्तराल पर पाठ्य-पुस्तकों की समीक्षा किए जाने पर बल दिया गया है। जिससे पाठ्य पुस्तकों में नवीन शोधित ज्ञान को समाहित किया जा सके।
- एन.सी.ई.आर.टी. विद्यालयी स्तर पर पाठ्यपुस्तकों के निर्माण हेतु एक सुनियोजित मानक का पालन करती है।
- एन.सी.ई.आर.टी. पाठ्य पुस्तकों का निर्माण करते समय शिक्षा मनोविज्ञान के सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए बालकों में पाठ्य पुस्तक के पठन के प्रति रुचि उत्पन्न करती है।
- एन.सी.ई.आर.टी. केन्द्र अथवा राज्य सरकारों द्वारा पाठ्य पुस्तकों की समीक्षा हेतु किये गये आवेदनों पर भी विचार करती है तद्नुसार समाज की वंछित आकांक्षाओं के अनुरूप पाठ्य पुस्तक का निर्माण करती है।
- एन.पी.ई. (New Education Policy) की सिफारिशों के आधार पर एन.सी.ई.आर.टी. ने वर्ष 1975 1988, 2000 और 2005 में राष्ट्रीय पाठ्यचर्चा के प्रारूप को तैयार किया है जिससे छात्रों के लिए एक बेहतर पाठ्य पुस्तक का निर्माण किया जा सके ।
- एन.सी.ई.आर.टी. पाठ्य पुस्तकों का निर्माण करते समय इस बात को ध्यान में रखती है कि पाठ्य-पुस्तक की विषय-सामग्री सरल, सुबोध तथा छात्रों में अवधारणात्मक समझ विकसित करने वाली हो ।
- एन.सी.ई.आर.टी. द्वारा निर्मित पाठ्य पुस्तकों को स्वीकार किये जाने के सन्दर्भ में विभिन्न शिक्षा बोर्डों से आने वाले आवेदनों को स्वीकार करती है तथा उन्हें साफ्ट कॉपी में पाठ्य पुस्तके उपलब्ध करवाता है।
- एन.सी.ई.आर.टी. अपने पाठ्यपुस्तकों की विषय सामग्री को 5% की रॉयल्टी लेकर पुस्तकों के मुद्रण की अनुमति प्रदान करती है।
- एन. सी.ई.आर.टी. पाठ्य पुस्तकों को अच्छे गुणवत्ता वाले रंगों में मुद्रित किया जाना सुनिश्चित करती है।
- एन.सी.ई.आर.टी. पाठ्य पुस्तकों का उचित मूल्य निर्धारण करती है जिसमें निर्धन वर्ग के छात्र भी इसे आसानी से खरीद सक
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि एन.सी.ई.आर.टी. विभिन्न सुनियाजित मानकों एवं प्रारूपों का ध्यान रखकर विद्यालयी पाठ्य-पुस्तकों का निर्माण करती है।