फ्रांस की क्रांति का विभिन्न वर्गों पर प्रभाव
फ्रांस की क्रांति का विभिन्न वर्गों पर प्रभाव
(i) क्रांति और जनजीवन-1789 की क्रांति का जनजीवन और उनकी रोजाना की जिंदगी पर गहरा प्रभाव पड़ा। स्वतंत्रता और समानता की भावना बलवती हुई। अनेक कानूनों द्वारा लोगों को राजशाही के आतंक और तानाशाही से मुक्त करने का प्रयास किया गया। इस दिशा में पहला प्रयास था विचार-अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान करना। एक कानून बनाकर भाषण एवं लेखन तथा नाटकों के मंचन पर लगा सेंसरशिप समाप्त कर दिया गया। अधिकारों के घोषणापत्र में भाषण एवं अभिव्यक्ति को नैसर्गिक स्वतंत्रता का अधिकार माना गया था। अतः, कानून के द्वारा इस अधिकार को बहाल किया गया। इसके परिणामस्वरूप अखबारों एवं पुस्तकों के प्रकाशन की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई। किसी घटना पर विभिन्न प्रकार के मत प्रकाशित होने लगे। इससे जनता को विभिन्न मतों को समझने एवं उनका आकलन करने का अवसर मिला। सांस्कृतिक कार्यक्रमों एवं प्रदर्शनों में भी जनता की भागीदारी बढ़ गई।
(ii) क्रांति का दासों पर प्रभाव-फ्रांस की क्रांति के परिणामस्वरूप दासों के जीवन में आमूल परिवर्तन आया। क्रांति के पूर्व फ्रांस में भी अन्य यूरोपीय देशों के समान दासप्रथा प्रचलित थी। क्रांति की अवधि में दासप्रथा के औचित्य को लेकर तथा मानवाधिकारों को उपनिवेशों में भी लागू करने पर वादविवाद हुए। व्यापारियों के विरोध के भय से नेशनल असेंबली
इस संबंध में कोई निर्णय नहीं ले सकी। 1794 में जब कन्वेंशन के अधीन जैकोबिनों का शासन पर अधिकार हुआ तो इसने
फ्रांसीसी उपनिवेशों में रहनेवाले सभी दासों को मुक्त करने का निश्चय किया। यह जैकोबिनों के क्रांतिकारी सामाजिक सुधारों में एक महत्त्वपूर्ण कदम था; परंतु यह व्यवस्था स्थायी नहीं हो सकी। बाद में जब नेपोलियन के हाथों में सत्ता आई तो उसने
दासप्रथा को पुनः मान्यता प्रदान कर दी। बागान-मालिकों को नीग्रो (अफ्रीका के सहारा रेगिस्तान के दक्षिण में रहनेवाले
स्थानीय लोगों) को दास बनाने का अधिकार प्रदान किया गया। दासप्रथा अंतिम रूप से 1848 की फ्रांसीसी क्रांति के बाद ही
समाप्त की जा सकी।
(iii) क्रांति में महिलाओं की भागीदारी-1789 की फ्रांस की क्रांति में महिलाओं ने भी बढ़-चढ़कर भाग लिया। सर्वसाधारण
वर्ग की अधिकांश महिलाएँ विभिन्न रोजगारों एवं व्यवसायों में लगी हुई थीं। सिर्फ कुलीन और बुर्जुआ वर्ग की महिलाएँ ही
शिक्षा प्राप्त कर अपना घर सँभालती थीं। सामान्य वर्ग की महिलाओं को तो पुरुषों के समान ही जीविकोपार्जन करना पड़ता
था। अतः, क्रांति-पूर्व फैली अव्यवस्था एवं महँगाई का उनपर भी प्रभाव पड़ता था। इसलिए, ऐसी महिलाओं ने क्रांतिकारी
गतिविधियों में भाग लिया। पावरोटी की कमी के कारण महिलाओं ने पावरोटी की दुकानों पर प्रदर्शन एवं आक्रमण किए।
5 अक्टूबर 1789 में पेरिस की आंदोलनकारी महिलाएँ वर्साय तक प्रदर्शन करते हुए गई और राजा-रानी को पेरिस आकर ट्यूलेरिये के महल में रहने को बाध्य किया। इसके बावजूद क्रांतिकारियों ने महिलाओं के हितों की सुरक्षा पर विशेष ध्यान नहीं दिया। उन्हें लिंग-भेद का शिकार बनना पड़ा। इस्टेट्स जेनरल की बैठक में महिलाओं को भाग नहीं लेने दिया गया। अधिकारों के घोषणापत्र में भी उनके लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई। नेशनल असेंबली या अन्य विधायिकाओं के निर्वाचन में उन्हें मतदान का अधिकार नहीं दिया गया। फलतः, अपने अधिकारों के लिए महिलाएं स्वयं आगे बढ़ीं। राजनीतिक मुद्दों पर विचार-विमर्श करने के लिए पुरुषों के समान महिलाओं ने भी अपने क्लब स्थापित किए। फ्रांस में ऐसे करीब साठ क्लब स्थापित किए गए। इसमें सबसे अधिक विख्यात था—दि सोसायटी ऑफ रिवोल्यूशनरी एंड रिपब्लिकन वुमेन (The Society of Revolutionary and Republican Women) इसने पुरुषों के समान स्त्रियों के लिए भी राजनीतिक अधिकारों, अर्थात मतदान करने, विधायिका के लिए चुने जाने एवं राजनीतिक पदों पर नियुक्त होने की माँग रखी। महिलाओं के लिए सामाजिक सुधारों की व्यवस्था क्रांति के दौरान की गई थी।
लड़कियों के लिए स्कूली शिक्षा अनिवार्य कर दी गई। लड़कियाँ स्वेच्छा से विवाह कर सकती थीं। विवाहों के पंजीकरण की
व्यवस्था की गई। स्त्रियों को तलाक लेने का भी अधिकार मिला। उन्हें व्यावसायिक प्रशिक्षण प्राप्त करने एवं अपना व्यवसाय करने का भी अधिकार दिया गया। महिलाएँ सामाजिक सुधारों से ही संतुष्ट नहीं थीं। वे राजनीतिक अधिकारों की माँग कर रही थीं। क्रांतिकारी सरकारें इसके लिए तैयार नहीं थीं। आतंक के राज्य के दौरान उनकी राजनीतिक गतिविधियों पर पाबंदी लगा दी गई। महिला क्लब बंद कर दिए गए। अनेक महिलाएँ, जो राजनीतिक रूप से सक्रिय थीं, गिरफ्तार कर ली गई। कुछ महिलाओं को तो मृत्युदंड भी दिया गया। ऐसी ही एक क्रांतिकारी महिला थी ओलम्प दे गूज। उन्होंने संविधान और ‘पुरुष एवं नागरिक घोषणापत्र’ तथा 1793 में महिला क्लबों को बंद करने का विरोध किया। इतना ही नहीं, उन्होंने महिला एवं नागरिक अधिकार घोषणापत्र भी जारी किया। क्रांतिकारी सरकार (जैकोबिन) ने इन माँगों पर ध्यान नहीं दिया, उल्टे उनपर देशद्रोह का मुकदमा चलाकर उन्हें गिलोटिन पर चढ़ा दिया गया। महिलाएँ इससे हताश नहीं हुईं। राजनीतिक अधिकारों के लिए उनका संघर्ष जारी रहा। फलस्वरूप, 1944 में उन्हें मताधिकार प्राप्त हुआ।
फ्रांस की क्रांति का अन्य देशों पर प्रभाव
फ्रांस की क्रांति का अन्य देशों पर प्रभाव
(i) यूरोप पर प्रभाव
(iv) पोलैंड पर प्रभाव
(ii) इटली पर प्रभाव
(v) इंगलैंड पर प्रभाव
(iii) जर्मनी पर प्रभाव
(vi) भारत पर प्रभाव
फ्रांस की क्रांति के प्रभाव सिर्फ फ्रांस तक ही सीमित नहीं रहे। इसने समस्त यूरोप में तहलका मचा दिया।
(i) यूरोप पर प्रभाव-यूरोप के राजाओं और वहाँ की जनता दोनों का ध्यान फ्रांस की ओर था। क्रांति से जहाँ यूरोपीय
निरंकुश शासक अपने लिए खतरा महसूस करने लगे वहीं उन देशों की जनता आशाभरी निगाहों से फ्रांस की ओर देख रही थी। फ्रांस की देखादेखी सामंती व्यवस्था को मिटाने एवं समानता के सिद्धांत को लागू करने का प्रयास किया गया।
(ii) इटली पर प्रभाव-नेपोलियन ने यूरोपीय राष्ट्रों में राष्ट्रीयता की भावना जागृत कर दी। फलतः, इटली के भावी एकीकरण की नींव पड़ी।
(iii) जर्मनी पर प्रभाव-जर्मनी में भी यही हुआ। जर्मनी के 300 राज्यों को नेपोलियन ने 39 राज्यों में संयुक्त कर राइन राज्यसंघ का गठन किया।
(iv) पोलैंड पर प्रभाव – नेपोलियन ने पोलैंड के लोगों के सामने भी एक संयुक्त पोलैंड की तस्वीर रखी जो प्रथम विश्वयुद्ध के बाद पूरी हुई।
(v) इंगलैंड पर प्रभाव-फ्रांसीसी क्रांति से प्रेरणा लेकर ही इंगलैंड में 1832 का रिफॉर्म ऐक्ट (Reform Act) पारित किया गया। इसने इंगलैंड में संसदीय सुधारों का मार्ग प्रशस्त कर दिया। 1789 की क्रांति के परिणामस्वरूप इंगलैंड में औद्योगिक क्रांति को भी गति मिली।
(vi) भारत पर प्रभाव-फ्रांस की क्रांति से भारत भी अछूता नहीं रहा। इससे प्रेरणा लेकर मैसूर के शासक टीपू सुलतान ने भारत से अँगरेजों की सत्ता समाप्त करने का प्रयास किया। महान समाजसुधारक राजा राममोहन राय के विचारों पर भी इस क्रांति ने गहरा प्रभाव डाला। जब वे इंगलैंड जाते हुए फ्रांस से गुजरे तो उन्होंने क्रांतिकारी तिरंगे झंडेवाले युद्धपोत को देखा। वस्तुतः, स्वतंत्रता और जनवादी अधिकारों के विचार फ्रांसीसी क्रांति की सवसे महत्त्वपूर्ण विरासत बन गए है।
फ्रांस की क्रांति का महत्त्व
1789 की फ्रांस की क्रांति का विश्व इतिहास में विशिष्ट स्थान इस क्रांति ने एक युग का अंत कर दूसरे युग का आरंभ कर
दिया। मध्यकाल का अंत और आधुनिक काल का आरंभ हुआ। पुरातन व्यवस्था समाप्त हो गई एवं नई व्यवस्था की नींव पड़ी।
प्रजातंत्र, राष्ट्रवाद, समाजवाद, व्यक्ति की महत्ता, स्वतंत्रता और नागरिक अधिकारों की सुरक्षा की भावना इस क्रांति के
परिणामस्वरूप बलवती हुई।
स्मरणीय
फ्रांस की क्रांति के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे-
• राजनीतिक कारण-(i) निरंकुश राजशाही (ii) राजदरबार की विलासिता (iii) प्रशासनिक भ्रष्टाचार (iv) अतिकेंद्रीकृत प्रशासन (v) प्रशासनिक अव्यवस्था (vi) न्याय व्यवस्था की दुर्बलता (vii) व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अभाव
• सामाजिक कारण-समाज-(i) पादरी वर्ग (ii) कुलीन वर्ग (iii) सर्वसाधारण वर्ग एवं मध्यम वर्ग में विभक्त था।
• आर्थिक कारण-(i) अव्यवस्थित अर्थव्यवस्था (ii) दोषपूर्ण कर व्यवस्था (iii) कर-वसूली की प्रणाली (iv) व्यापारिक एवं व्यावसायिक अवरोध (v) बेकारी की समस्या
• सैनिकों का असंतोष-नियमित वेतन नहीं मिलना, सेना में पदोन्नति योग्यता के आधार पर नहीं
• बौद्धिक कारण- मांटेस्क्यू, वाल्लेयर, रूसो, जॉन लॉक एवं अन्य बुद्धिजीवियों का योगदान
• विदेशी घटनाओं का प्रभाव- गौरवपूर्ण क्रांति, अमेरिकी स्वातंत्र्य संग्राम
• तात्कालिक कारण- लुई सोलहवाँ की अयोग्यता
• फ्रांस में क्रांति होने के विशिष्ट कारण-(i) मध्यम वर्ग का उदय (ii) दार्शनिकों की भूमिका (i) अयोग्य और अविवेकी राजा
(iv) राजनीतिक और प्रशासनिक अव्यवस्था
• फ्रांस की क्रांति की महत्त्वपूर्ण घटनाएँ-(i) 5 मई 1789 को इस्टेट्स जेनरल की बैठक (ii) 20 जून 1789 को राष्ट्रीय सभा का गठन (iii) 14 जुलाई 1789 को बास्तिल का पतन (iv) राष्ट्रीय सभा की उपलब्धियाँ – मानव एवं नागरिक अधिकारों की घोषणा (v) 1791 का संविधान (vi) जैकोबिन दल का गठन (vii) राजतंत्र की समाप्ति एवं 21 जनवरी 1793 को लुई सोलहवाँ को मृत्युदंड की सजा (viii) आतंक का राज्य (ix) डायरेक्टरी का शासन एवं नेपोलियन बोनापार्ट का उदय
• फ्रांस की क्रांति का स्वरूप-मध्यवर्गीय क्रांति
• फ्रांस की क्रांति के परिणाम-(i) सामंती व्यवस्था की समाप्ति (ii) राजतंत्र की समाप्ति (iii) प्रशासनिक एकरूपता (iv) राजनीतिक चेतना का विकास (v) राष्ट्रीयता की भावना का उदय (vi) व्यक्ति का महत्त्व बढ़ना (vii) स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की भावना का उदय (viii) नागरिक स्वतंत्रता की स्थापना (ix) धार्मिक स्वतंत्रता (x) समाजवाद का आरंभ (xi) शैक्षणिक व्यवस्था में परिवर्तन (xii) मीटरी प्रणाली लागू (xiii) वाणिज्य-व्यापार की वृद्धि (xiv) नेपोलियन का कानून-संग्रह (नेपोलियन कोड) (xv) नया राष्ट्रीय कैलेंडर
• फ्रांस की क्रांति का विभिन्न वर्गों पर प्रभाव-(i) क्रांति और जनजीवन (ii) क्रांति का दासों पर प्रभाव (iii) क्रांति में महिलाओं की भागीदारी
• फ्रांस की क्रांति का अन्य देशों पर प्रभाव-(i) यूरोप पर प्रभाव (ii) इटली पर प्रभाव (iii) जर्मनी पर प्रभाव (iv) पोलैंड पर प्रभाव (v) इंगलैंड पर प्रभाव (vi) भारत पर प्रभाव
• फ्रांस की क्रांति का महत्त्व-पुरातन व्यवस्था का अंत, नई व्यवस्था की नींव