फ्रांस की क्रांति की महत्त्वपूर्ण घटनाएँ
फ्रांस की क्रांति की महत्त्वपूर्ण घटनाएँ
फ्रांस की क्रांति की महत्त्वपूर्ण घटनाएँ
(i) इस्टेट्स जेनरल की बैठक
(ii) राष्ट्रीय सभा का गठन
(iii) बास्तिल का पतन
(iv) राष्ट्रीय सभा की उपलब्धियाँ
(v) 1791 का संविधान
(vi) जैकोबिन दल का गठन
(vii) राजतंत्र की समाप्ति
(viii) आतंक का राज्य
(ix) डायरेक्टरी (1795_99) और नेपोलियन बोनापार्ट का उदय
(i) इस्टेट्स जेनरल (Estates General) -की बैठक-नए करों के प्रस्तावों की स्वीकृति के लिए सम्राट लुई सोलहवें ने इस्टेट्स जेनरल की बैठक आहूत की। इसकी बैठक वर्साय के आलीशान महल में आयोजित की गई। बैठक 5 मई 1789 को आरंभ हुई। इसमें पहले और दूसरे इस्टेट के तीन-तीन सौ तथा तृतीय इस्टेट के छह सौ प्रतिनिधि सम्मिलित हुए। तीसरे इस्टेट के प्रतिनिधियों में समृद्ध एवं शिक्षित वर्ग के सदस्य थे। किसानों, कारीगरों एवं स्त्रियों को सभा में प्रवेश नहीं करने दिया गया। इस वर्ग के प्रतिनिधि अपने साथ सामान्य लोगों की माँगों की सूची भी साथ लाए थे। बैठक में आरंभ से ही गतिरोध उत्पन्न हुआ। अब तक की परंपरा के अनुसार, प्रत्येक इस्टेट को एक मत देने का अधिकार था। लुई ने इसी परंपरा का पालन करना चाहा, परंतु तृतीय इस्टेट के सदस्यों ने इसका विरोध किया। उन्होंने माँग रखी कि पूरी सभा से मतदान करवाया जाए और प्रत्येक उपस्थित सदस्य को एक मत देने का अधिकार दिया जाए। सम्राट ने कुलीनों और पादरियों के दबाव में यह माँग ठुकरा दी। अतः, तीसरे इस्टेट ने सभा की बैठक का विरोध किया और इसका बहिष्कार कर दिया।
(ii) राष्ट्रीय सभा (National Assembly) –का गठन-20 जून 1789 को तीसरे इस्टेट के प्रतिनिधि वर्साय के टेनिस कोर्ट में
एकत्रित हुए। ये अपने-आपको राष्ट्र का प्रतिनिधि मानते थे। अतः, इन लोगों ने अपने-आपको राष्ट्रीय सभा (नेशनल
असेंबली) के रूप में घोषित किया। इन लोगों ने टेनिस कोर्ट की शपथ (Tennis Court Oath) भी ली। इसके अनुसार इन लोगों ने निश्चय किया कि जब तक ऐसा संविधान तैयार नहीं होता है, जिसमें राजशाही पर अंकुश लगाया जा सके, तब तक राष्ट्रीय सभा भंग नहीं होगी। मिराब्यो (Mirabeau) और आबे सिए (Abbe Sieyes) ने टेनिस कोर्ट की सभा का नेतृत्व किया।
मिराब्यो एक कुलीन और आबे सिए मूलतः पुरोहित था। आबे सिए ने एक प्रभावशाली पैम्फलेट लिखी थी जिसका नाम ‘व्हाट
इज दी थर्ड इस्टेट’ (What is the Third Estate) था। राष्ट्रीय सभा ने संविधान का प्रारूप तैयार करना आरंभ कर दिया।
(iii) बास्तिल (Bastille) – का पतन जिस समय ये घटनाएँ घट रही थीं उस समय फ्रांस की स्थिति और भयावह हो रही थी।
फसल नष्ट होने से खाद्यान्न (पावरोटी) की कीमत आसमान छूने लगी। इसकी कालाबाजारी होने लगी और पावरोटी मिलना
दुशवार हो गया। बाध्य होकर महिलाओं ने पावरोटी की दुकानों पर धावा बोलकर दुकानें लूट ली। इस घटना और राष्ट्रीय सभा
द्वारा संविधान बनाए जाने की सूचना से क्रुद्ध होकर लुई ने अपनी सेना को पेरिस जाने की आज्ञा दी। इससे उत्तेजित होकर लोगों ने एक जनसेना का गठन किया। 14 जुलाई 1789 को भीड़ ने बास्तिल के सुदृढ़ किला पर आक्रमण कर दिया। यह किला राजशाही का प्रतीक था। यहाँ की जेल को तोड़ कर कैदी, जिनकी संख्या मात्र सात थी, आजाद करा लिए गए। किला का रक्षक मारा गया, हथियार लूट लिए गए एवं किला, जो घृणा का केंद्र था, पूरी तरह नष्ट कर दिया गया। किले के अवशेष बाजार में स्मृति चिह्न के रूप में बेच दिए गए। यह पेरिस की भीड़ या जनसेना की पहली जीत थी। इसका व्यापक प्रभाव पड़ा।
गाँव-गाँव में विद्रोह की खबर आग के समान फैल गई। किसानों ने जमींदारों के ग्रामीण किलों को नष्ट कर दिया, गोदामों में रखे गए अनाज को लूट लिया एवं लगान और भूमि-संबंधी दस्तावेजों को जलाकर खाक कर दिया। ग्रामीण इलाकों में पूरी
तरह अव्यवस्था और अराजकता व्याप्त हो गई। सामंतों को भागने पर विवश कर दिया गया। आगे 14 जुलाई ही फ्रांस का
स्वतंत्रता दिवस बन गया। ऐसी स्थिति में बाध्य होकर सम्राट ने नेशनल असेंबली (राष्ट्रीय सभा) को मान्यता प्रदान कर दी।
वह अपनी शक्ति पर सांविधानिक नियंत्रण स्वीकार करने के लिए भी राजी हो गया।
(iv) राष्ट्रीय सभा की उपलब्धियाँ-4 अगस्त 1789 को राष्ट्रीय सभा की बैठक हुई। यह बैठक रात भर चली। इसमें अनेक
महत्त्वपूर्ण निर्णय लिए गए। सामंती प्रथा को समाप्त कर दिया गया। इससे सामंतों को प्राप्त विशेषाधिकार और किसानों से
लिया जानेवाला सामंती कर समाप्त हो गया। चर्च के विशेषाधिकारों को भी समाप्त कर दिया गया। टाइद या धार्मिक कर की उगाही बंद कर दी गई। चर्च के स्वामित्ववाली भूमि और अन्य संपत्ति जब्त कर ली गई। इससे सरकार को लगभग 20
अरब लिने (livres) की संपत्ति मिली। राष्ट्रीय सभा की एक अन्य महत्त्वपूर्ण उपलब्धि थी 27 अगस्त 1789 को मानव एवं नागरिकों के अधिकारों की घोषणा (Declaration of the Rights of Man and Citizen) | इसमें समानता, स्वतंत्रता, संपत्ति की सुरक्षा तथा अत्याचारों से मुक्ति के अधिकार को नैसर्गिक एवं अहरणीय (natural and inalienable) माना गया। घोषणा के अनुसार, मनुष्य इन्हें जन्म से पाता है, इन्हें समाप्त नहीं किया जा सकता है। इन अधिकारों की सुरक्षा करना राज्य का दायित्व माना गया। इस घोषणापत्र में अग्रलिखित पर बल दिया गया- (i) मनुष्य स्वतंत्र और समान हैं। (i) राजनीतिक संगठनों का उद्देश्य मानव अधिकारों- स्वतंत्रता, संपत्ति, सुरक्षा एवं शोषण का विरोध करने का अधिकार-की सुरक्षा करना है। (iii) संप्रभुता राज्य में निहित है, व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह में नहीं। (iv) असामाजिक कृत्यों पर कानून पाबंदी लगा सकता है। (v) कानून निर्माण में व्यक्ति को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से भाग लेने का अधिकार है। (vi) कानून के सामने सभी व्यक्ति समान हैं। (vii) नागरिकों को विचार-अभिव्यक्ति एवं इच्छानुसार धर्मपालन की स्वतंत्रता है। (viii) कानूनी प्रक्रिया के बिना किसी को भी दंडित या गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है। (ix) सभी नागरिकों के लिए आवश्यक निर्धारित कर चुकाना आवश्यक है। (x) किसी भी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से अनावश्यक रूप से वंचित नहीं किया जा सकता है। इस प्रकार, घोषणापत्र द्वारा नागरिकों को उन समस्याओं से मुक्ति दिलाने का प्रयास किया गया जिनका सामना उन्हें निरंकुश राजशाही में करना पड़ता था।
(v) 1791 का संविधान-राष्ट्रीय सभा ने फ्रांस के लिए एक नया संविधान बनाया। नई व्यवस्था के अनुसार, फ्रांस में निरंकुश
राजतंत्र के स्थान पर सांविधानिक राजतंत्र (constitutional monarchy) की व्यवस्था की गई। इसमें शक्तियों के
पृथक्करण की भी व्यवस्था अपनाई गई जिससे कि राजा असीमित अधिकारों का उपयोग कर निरंकुश नहीं बन सके। देश
के लिए कानून बनाने का अधिकार नेशनल असेंबली को दिया गया। यह एकसदनीय थी। इसके गठन के लिए अप्रत्यक्ष
निर्वाचन प्रणाली अपनाई गई। इसके अनुसार, पहले एक निर्वाचक समूह का चुनाव होना था। इसके निर्वाचित सदस्य ही
असेंबली के सदस्यों को चुन सकते थे। निर्वाचकों के लिए मताधिकार-संबंधी नियम बनाए गए। सीमित मताधिकार की
व्यवस्था की गई। मतदाता बनने के लिए प्रत्येक पुरुष को पच्चीस वर्ष की उम्र से अधिक का सक्रिय नागरिक होना आवश्यक था। सक्रिय नागरिक उन्हें कहा गया जो करदाता थे। महिलाओं सहित अन्य सभी पुरुषों को निष्क्रिय नागरिक माना
गया। इन्हें मताधिकार से वंचित रखा गया। सम्राट लुई सोलहवाँ ने परिस्थितिवश विवश होकर 1791 के संविधान को स्वीकार कर लिया था, परंतु वह अपने ऊपर लगाए गए अंकुश से विक्षुब्ध था। वह अपनी पुरानी स्थिति को पुनः प्राप्त करना चाहता था, इसलिए उसने प्रशा के राजा से गुप्त संपर्क किया। वह प्रशा की सहायता प्राप्त कर अपनी खोई हुई शक्ति वापस पाना चाहता था। यूरोप के अन्य निरंकुश शासक भी फ्रांस की घटनाओं से चिंतित थे। वे इसे अपने लिए खतरा मानते थे। वे फ्रांस में सैनिक हस्तक्षेप के लिए तैयार होने लगे। क्रांतिकारी भी इन घटनाओं पर नजर रखे हुए थे। अप्रैल 1792 में नेशनल असेंबली ने ऑस्ट्रिया-प्रशा के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। हजारों की संख्या में स्वयंसेवकों की सेना युद्ध के लिए निकल पड़ी। क्रांतिकारियों ने इस युद्ध को यूरोपीय राजाओं एवं कुलीनों के विरुद्ध जनता की जंग कहा। स्वयंसेवक देशभक्त कवि रॉजेट दि लाइल द्वारा रचित गीत मार्सिले (Marseillaise) गाते हुए पेरिस की ओर बढ़े। चूँकि इस गीत को पहली बार मार्सिलेस स्थान के सैनिकों ने गाया था इसलिए इसका नाम मार्सिले पड़ा। बाद में मार्सिले फ्रांस का राष्ट्रगान बन गया।
(vi) जैकोबिन दल का गठन-युद्ध से उत्पन्न स्थिति का फ्रांस पर बुरा प्रभाव पड़ा। अनेकों लोग युद्ध में मारे गए। आर्थिक
स्थिति और बिगड़ गई तथा महँगाई बढ़ गई। साथ ही, 1791 के संविधान की व्यवस्था से भी असंतोष बढ़ रहा था। संविधान में
जिस निर्वाचन पद्धति की व्यवस्था की गई वह मानवाधिकारों के घोषणापत्र के विरुद्ध थी। इसमें उल्लिखित समानता के सिद्धांत की अवहेलना की गई थी। बहुसंख्यकों को मताधिकार से वंचित कर दिया गया था, सिर्फ धनी लोगों को ही यह अधिकार दिया गया। इस प्रकार, वुर्जुआ वर्ग का प्रभाव बढ़ा। न्यायपालिका पर भी बुर्जुआ वर्ग ही हावी हो गया।
इस बढ़ते असंतोष की अभिव्यक्ति नागरिक राजनीतिक क्लबों में एकत्रित होकर करते थे। इन लोगों ने अपना एक दल
बनाया जो जैकोविन दल कहलाया। इन लोगों ने अपने मिलने का स्थान पेरिस के कॉन्वेंट ऑफ सेंट जेकब को बनाया। यह
आगे चलकर जैकोविन क्लव (Jacobin Club) के नाम से विख्यात हुआ। इस क्लब के सदस्य समाज के निम्न तबके से आते थे, जैसे-छोटे दुकानदार, कारीगर, मजदूर इत्यादि। जैकोबिनों के एक बड़े वर्ग ने कुलीनों से अपने को अलग करने के लिए ब्रीचेस के बदले गोदी कामगारों के समान धारीदार लंबे पतलून पहनने का निर्णय लिया। अतः, जैकोबिन सौं कुलॉत (sans-culottes) अथवा बिना घुटनेवाले के नाम से जाने गए। इस दल के सदस्य स्वतंत्रता के प्रतीक लाल रंग की टोपी भी पहनते थे। जैकोबिन दल का सबसे प्रभावशाली नेता मैक्समिलियन रॉब्सपियर (Maximilien Robespierre) था। आगे चलकर जैकोबिन दल के एक गुट ने जिरोदिस्त (Zirondist) दल का गठन किया। जिरोंदिस्तों ने उदारवादी नीति अपनाई जबकि जैकोबिनों ने उग्रपंथी। अतः, दोनों का मनमुटाव बढ़ते गया। आतंक के राज्य (Reign of Terror) के समय दोनों का संघर्ष स्पष्ट रूप से खुलकर सामने आया। 1792 में रॉब्सपियर, जो उग्रपंथी था, ने खाद्यान्नों की कमी एवं महँगाई को मुद्दा बनाकर जगह-जगह विद्रोह करवाए। पेरिस की नगरपालिका को भंगकर एक क्रांतिकारी कम्यून (पेरिस कम्यून) ने शासन अपने हाथों में ले लिया। 10 अगस्त 1792 को ट्यूलेरिये (Tuileries) के राजमहल पर पेरिसवालों ने आक्रमण किया। राजा वहीं था। राजा के सुरक्षा प्रहरी मार डाले गए। राजा भी बंधक बना लिया गया। नेशनल असेंबली पर दबाव डालकर राजा और उसके परिवार को गिरफ्तार करने का प्रस्ताव पारित करवाया गया। नई असेंबली के लिए चुनाव करवाने का भी निर्णय लिया गया। मतदाताओं के लिए नई योग्यताएँ बनाई गईं। अब 21 वर्ष की आयु से अधिक के सभी पुरुषों को मतदान का अधिकार दिया गया। संपत्ति या कर देने की शर्त हटा ली गई। नई असेंबली में उग्रपंथी जैकोबिनों को बहुमत मिला। नई असेंबली का नाम कन्वेंशन (Convention) रखा गया।
(vii) राजतंत्र की समाप्ति-नेशनल असेंबली ने सांविधानिक राजतंत्र की व्यवस्था की थी, परंतु कन्वेंशन ने राजशाही को
समाप्त करने का निर्णय लिया। 21 सितंबर 1792 को इसने राजशाही को समाप्त करने तथा फ्रांस को गणतंत्र बनाने की
घोषणा की। राजा पर देशद्रोह का आरोप लगाकर मुकदमा चलाया गया। 21 जनवरी 1793 को उसे सार्वजनिक रूप से
गिलोटिन (guillotine) पर चढ़ाकर मौत की सजा दी गई। बाद में रानी को भी गिलोटिन पर चढ़ाकर मृत्युदंड दिया गया।
गिलोटिन एक प्रकार का मशीन था जिस पर अपराधी का सिर रखकर उसे धड़ से अलग कर दिया जाता था। इस मशीन का
आविष्कार डॉ. गिलोटिन ने किया था। लुई सोलहवें के साथ ही फ्रांस में बूढे वंश का शासन एवं राजशाही समाप्त हो गई। फ्रांस
में गणतंत्र की स्थापना हुई।
(viii) आतंक का राज्य (1793-1794)-राजशाही समाप्त करने के बाद रॉब्सपियर ने शासन पर अपना नियंत्रण स्थापित कर
लिया। उसका मानना था कि देश एक कठिन परिस्थिति से गुजर रहा है। इसपर नियंत्रण करने के लिए कठोर कदम उठाने की
आवश्यकता है। अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए एवं क्रांति-विरोधियों, विशेषतः जिरोदिस्तों पर अंकुश लगाने के लिए तत्काल व्यवस्था की गई। एक सुरक्षा समिति गठित की गई। इसे कार्यपालिका और विधायिका-संबंधी विस्तृत अधिकार दिए गए। शांति-व्यवस्था बनाए रखने और पुलिस का कार्य करने के लिए एक सामान्य सुरक्षा समिति गठित की गई। लॉ ऑफ सस्पेक्ट (law of suspect) द्वारा किसी भी व्यक्ति को क्रांति-विरोधी होने की शंका के आधार पर गिरफ्तार किया जा सकता था। ऐसे लोगों को दंडित करने के लिए क्रांतिकारी न्यायालय का गठन किया गया। आतंक का राज्य (Reign of Terror) 1793 में आरंभ हुआ। गणतंत्र के विरोधियों-कुलीनों, पादरियों, जिरोंदिस्तों को बड़ी संख्या में गिरफ्तार कर उन्हें गिलोटिन पर चढ़ा दिया गया। इसके साथ-साथ कानून बनाकर निचले तबकों को राहत पहुँचाने के कार्य किए गए। ऐसे कार्यों में प्रमुख है-(i) सामानों का, विशेषतः मांस एवं पावरोटी का अधिकतम मूल्य निर्धारण करना,
(ii) राशनिंग की व्यवस्था कर लोगों को आवश्यकतानुसार सामान उपलब्ध कराना, (iii) किसानों को अपना अनाज शहरों में
निर्धारित मूल्य पर बेचने को बाध्य करना, (iv) महँगे सफेद आटा के व्यवहार पर रोक लगाकर “बराबरी का प्रतीक माने
जानेवाली समता रोटी” का उपयोग अनिवार्य करना, (v) मजदूरों की मजदूरी की दरें तय करना, (vi) धनिकों पर युद्धकर तथा
आयकर लगाना, (vii) क्रांति-विरोधियों की संपत्ति जब्त करना तथा (viii) गरीबों के बच्चों के लिए बुनियादी शिक्षा की व्यवस्था
करना। इसके साथ-साथ बोलचाल और संबोधन के लिए समानता का सिद्धांत अपनाया गया। सम्मानसूचक संबोधन, जैसे-मॉन्सयूर (महाशय) एवं मदाम (महोदया) को समाप्त कर सभी फ्रांसीसी पुरुषों एवं महिलाओं को सितोयेन (नागरिक) एवं सितोयीन (नागरिका) कहा जाने लगा। गिरजाघर बंद कर दिए गए, उनकी संपत्ति जब्त कर ली गई तथा गिरजाघरों में दफ्तर और सैनिक छावनी बनाए गए। फ्रेंच भाषा को फ्रांस की राष्ट्रभाषा बनाया गया। इस प्रकार, आतंक के राज्य की कुछ महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ थीं। निचले वर्गों के हितों की सुरक्षा की व्यवस्था की गई तथा समानता के सिद्धांत पर बल दिया गया। आंतरिक विद्रोहों को दबा दिया गया। युद्ध के मोर्चे पर नागरिक सेना के सहयोग से अक्टूबर 1793 तक यूरोपीय राज्यों का फ्रांस-विरोधी गुट पराजित कर दिया गया। इस बीच रॉब्सपियर के अतिकठोर और दमनात्मक नीतियों से कन्वेंशन के अंदर ही उसके विरोधी सक्रिय हो गए। एक योजनानुसार उसे गिरफ्तार कर उसके 92 साथियों सहित 28 जुलाई 1794 को गिलोटिन पर चढ़ा दिया गया। इस प्रकार, आतंक के राज्य (1793-94) की समाप्ति हुई।
(ix) डायरेक्टरी (1795-99) और नेपोलियन बोनापार्ट का उदय-आतंक का राज्य, जिसका संचालन जैकोबिन कर रहे थे, की समाप्ति के बाद फ्रांस में अव्यवस्था व्याप्त गई। थोड़े समय के लिए शासन की बागडोर कन्वेंशन (Convention) के हाथों में आई, पर यह व्यवस्था स्थापित करने में विफल रही। अतः, एक नए संविधान की व्यवस्था की गई। इसके अनुसार, दो सदनीय निर्वाचित विधान परिषद का प्रावधान किया गया। मतदाताओं की योग्यता में पुनः परिवर्तन किया गया। मतदाता होने के लिए पुनः संपत्ति को आधार बनाया गया। संपत्तिहीन मताधिकार से वंचित कर दिए गए। फलतः, शासन पर बुर्जुआ वर्ग का नियंत्रण स्थापित हो गया। विधानपरिषद ने कार्यपालिका शक्ति पाँच सदस्यीय एक समिति-डायरेक्टरी (Directory)-को सौंपी। अब एक व्यक्ति के हाथों में नहीं, बल्कि पाँच व्यक्तियों के समूह में सत्ता आई। डायरेक्टरी की स्थापना से भी समस्या नहीं सुलझी। डायरेक्टरी के सदस्यों में आपसी मनमुटाव था। साथ ही, विधानपरिषदों से भी उनका संबंध तनावपूर्ण बना रहा। इससे
अव्यवस्था बनी रही। आंतरिक एवं बाह्य स्थिति अनियंत्रित होती जा रही थी। इस अवधि में नेपोलियन ने ऑस्ट्रिया को पराजित कर इटली के एक बड़े भूभाग पर अधिकार कर लिया था, परंतु मिस्र में अँगरेज एडमिरल नेलसन से वह पराजित हुआ। इस बीच फ्रांस में अव्यवस्था की सूचना पाकर उसने वापस लौटने का निर्णय लिया। अक्टूबर 1799 में वह फ्रांस वापस लौट गया। डायरेक्टरी और उसका शासन अलोकप्रिय हो गया था। लोग एक ऐसे व्यक्ति की ओर आस लगाए हुए थे जो उन्हें अराजक व्यवस्था से मुक्ति दिला सके। नेपोलियन ने इस स्थिति का लाभ उठाया और कुछ सैनिक अधिकारियों के साथ मिलकर उसने नवंबर 1799 में डायरेक्टरी का तख्ता पलट दिया। अब नई व्यवस्था स्थापित की गई। तीन कॉन्सलों की कॉन्स्यूलेट (Consulate) का गठन फ्रांस की विधायिका ने किया। इसे कार्यकारिणी-संबंधी अधिकार और संविधान-निर्माण का दायित्व दिया गया। प्रथम कॉन्सल, जिसपर नेपोलियन को नियुक्त किया गया, के हाथों में सारे अधिकार केंद्रित कर दिए गए। इसका लाभ उठाकर नेपोलियन ने अपनी तानाशाही आरंभ की। इसके बावजूद उसने प्रथम कॉन्सल के रूप में अनेक आर्थिक, प्रशासनिक एवं शैक्षणिक सुधार किए। उसने पोप के साथ 1801 में कौनकोरडेट (Concordat) या धार्मिक संधि की। कैथोलिक धर्म फ्रांस का राजधर्म बन गया। 1804 में उसने नेपोलियन कोड लागू किया। इससे फ्रांस में उसकी लोकप्रियता
बढ़ी। इसका लाभ उठाकर वह 1804 में फ्रांस का सम्राट बन गया। में फ्रांस में पुनः राजशाही स्थापित हुई। 1815 में वाटरलू के युद्ध निर्णायक रूप से पराजित होने तक वह फ्रांस का सर्वेसर्वा बना रहा। 1815 के बाद पुनः 1830 और 1848 में फ्रांस में क्रांतियाँ हुई।