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फ्रांस की क्रांति के परिणाम

फ्रांस की क्रांति के परिणाम

फ्रांस की क्रांति के परिणाम

(i) सामंती व्यवस्था (पुरातन व्यवस्था) की समाप्ति
(ii) राजतंत्र की समाप्ति
(iii) प्रशासनिक एकरूपता
(iv) राजनीतिक चेतना का विकास
(v) राष्ट्रीयता की भावना का उदय
(vi) व्यक्ति का महत्त्व बढ़ना
(vii) स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की भावना का उदय
(viii) नागरिक स्वतंत्रता की स्थापना
(ix) धार्मिक स्वतंत्रता
(x) समाजवाद का आरंभ
(xi) शैक्षणिक व्यवस्था में परिवर्तन
(xii) मीटरी प्रणाली लागू
(xiii) वाणिज्य-व्यापार की वृद्धि
(xiv) नेपोलियन का कानून-संग्रह (नेपोलियन कोड)
(xv) नया राष्ट्रीय कैलेंडर
फ्रांस की क्रांति एक युगांतकारी घटना थी। इसने पुरातन व्यवस्था को नष्ट कर नए युग के आगमन का मार्ग प्रशस्त कर दिया। इस क्रांति से न सिर्फ फ्रांस, बल्कि संपूर्ण विश्व प्रभावित हुआ। इस क्रांति के प्रमुख परिणाम निम्नलिखित थे-
(i) सामंती व्यवस्था (पुरातन व्यवस्था) – की समाप्ति-फ्रांस की क्रांति ने सामंती व्यवस्था को समाप्त कर दिया। सामंतों के
विशेषाधिकार समाप्त कर दिए गए। इससे सबसे बड़ी राहत किसानों को मिली। उनका शोषण समाप्त हो गया।
(ii) राजतंत्र की समाप्ति-1789 की फ्रांस की क्रांति ने फ्रांस में राजतंत्र को समाप्त कर दिया; यद्यपि यह व्यवस्था स्थायी नहीं हो सकी। राजा को गद्दी से हटाकर उसे मृत्युदंड दिया गया। फ्रांस में गणतंत्रात्मक व्यवस्था लागू की गई।
(iii) प्रशासनिक एकरूपता-फ्रांस की क्रांति की एक महत्त्वपूर्ण देन यह थी कि इसने राजनीतिक और प्रशासनिक दृष्टिकोण से फ्रांस को एक इकाई में परिवर्तित कर दिया। पुरानी प्रशासनिक- व्यवस्था समाप्त कर दी गई। संपूर्ण देश में एक प्रकार की
शासन-व्यवस्था, एक तरह के आर्थिक नियम, एक ढंग की माप-तौल की प्रणाली एवं एक प्रकार का कानून लागू किया गया।
(iv) राजनीतिक चेतना का विकास-1789 की क्रांति ने जनसाधारण में भी राजनीतिक चेतना जगा दी। यद्यपि यह एक
मध्यवर्गीय क्रांति थी तथापि जनसाधारण ने भी इसमें भाग लिया। यह विश्व इतिहास की पहली घटना थी जब सर्वसाधारण
ने राजनीतिक परिवर्तन लाने के लिए आंदोलन किया। क्रांति के नेताओं ने साधारण जनता का सहयोग प्राप्त करने के लिए अपने विचारों का प्रचार किया। इससे सर्वसाधारण में राजनीतिक चेतना का विकास हुआ। पहले जनसाधारण राजनीति में कोई रुचि नहीं लेता था, परंतु 1789 की क्रांति के बाद परिस्थितियाँ बदल गई।
(v) राष्ट्रीयता की भावना का उदय-फ्रांस की क्रांति ने नागरिकों में राष्ट्रीयता की भावना जगा दी। अब वे अपने को एक राष्ट्र के रूप में देखने लगे। क्षेत्रीयता की भावना विलुप्त हो गई। वे एकजुट होकर तानाशाही और शोषण के विरुद्ध खड़े हो गए तथा पुरातन व्यवस्था के स्थान पर नई व्यवस्था की स्थापना में लग गए।
(vi) व्यक्ति का महत्त्व वढ़ना-फ्रांस की क्रांति ने व्यक्ति के महत्त्व को स्वीकार किया। 1789 में राष्ट्रीय सभा ने मानव के मूलभूत अधिकारों की घोषणा की तथा स्वतंत्रता एवं समानता के सिद्धांत का प्रतिपादन किया। इसके द्वारा समाज में प्रत्येक व्यक्ति के महत्त्व को स्वीकार किया गया। प्रत्येक व्यक्ति को राजनीतिक स्वतंत्रता मिली तथा जनता की सार्वभौमिकता स्वीकार की गई। अब वैयक्तिक स्वतंत्रता का सिद्धांत स्थापित हुआ। सामाजिक असमानता का अंत हुआ और वर्ग-विभेद समाप्त हो गया।
(vii) स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की भावना का उदय- 1789 की क्रांति ने यूरोप के सामने एक नया सिद्धांत रखा। यह
था-स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व (Liberty, Equality and Fraternity) का सिद्धांत । यह सिद्धांत यूरोप के अन्य देशों
के लिए भी अनुकरणीय बन गया। इसी के आधार पर अनेक यूरोपीय राष्ट्रों में क्रांतियाँ हुई।
(viii) नागरिक स्वतंत्रता की स्थापना-फ्रांस की क्रांति के फलस्वरूप नागरिकों की स्वतंत्रता का सिद्धांत स्वीकार कर
लिया गया। अब फ्रांस में न तो शासक वर्ग और न ही शासित वर्ग था। सभी नागरिक एकसमान माने गए। उन्हें विचार-
अभिव्यक्ति और चुनावों में भाग लेने की स्वतंत्रता मिली। सरकारी नौकरियाँ अब योग्यता के आधार पर सबों के लिए उपलब्ध थीं। कर मनमाने ढंग से नहीं, बल्कि कानून के अनुकूल वसूलने की व्यवस्था हुई। नागरिकों को न्यायिक स्वतंत्रता भी मिली।
(ix) धार्मिक स्वतंत्रता-क्रांति के पूर्व फ्रांस में रोमन कैथोलिक चर्च का व्यापक प्रभाव था। यह वस्तुतः राजधर्म था। राजा चर्च
का हिमायती था। गैर-कैथोलिकों पर अत्याचार होते थे। क्रांति के बाद लोगों को धार्मिक स्वतंत्रता मिली। राज्य का धार्मिक मामलों पर से नियंत्रण समाप्त कर दिया गया। फ्रांस में धर्मसहिष्णुता की नीति अपनाई गई। फ्रांस धर्मनिरपेक्ष राज्य बन गया। यह 1789 की क्रांति की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि थी।
(x) समाजवाद का आरंभ-फ्रांसीसी क्रांति ने समाजवाद का बीजारोपण कर दिया। जैकोबिनों ने बहुसंख्यक गरीबों को अनेक
सुविधाएँ दीं। अमीर-गरीब का भेद मिटाने का प्रयास हुआ। खाद्य पदार्थों के मूल्य निर्धारित किए गए।
(xi) शैक्षणिक व्यवस्था में परिवर्तन-1789 के पूर्व शैक्षणिक व्यवस्था पर भी चर्च का ही अधिकार था। पादरी ही शिक्षा देने का काम करते थे। क्रांति के बाद शिक्षा देने का दायित्व सरकार ने अपने ऊपर ले लिया। फलतः, धार्मिक शिक्षा के स्थान पर राज्य ने ज्ञान-विज्ञान की शिक्षा को बढ़ावा दिया।
(xii) मीटरी प्रणाली लागू-क्रांति के बाद फ्रांस में नाप-तौल के लिए मीटरी प्रणाली अपनाई गई। यह दशमलवपद्धति पर
आधृत थी। बाद में यूरोप के अन्य राष्ट्रों ने भी इस प्रणाली को अपना लिया।
(xiii) वाणिज्य-व्यापार की वृद्धि-सामंती प्रतिबंधों और ‘गिल्ड प्रथा’ के कारण व्यापार-वाणिज्य का विकास नहीं हो रहा था।
सामंती प्रथा के समाप्त होते ही व्यापारियों पर लगे प्रतिबंध समाप्त हो गए। आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए व्यापारियों को
अनेक सुविधाएँ दी गई। इससे व्यापार-वाणिज्य का विकास हुआ और फ्रांस की आर्थिक संपन्नता बढ़ी।
(xiv) नेपोलियन का कानून-संग्रह (नेपोलियन कोड)-क्रांति के बाद जब सत्ता नेपोलियन के हाथों में आई तो उसने फ्रांस में
प्रचलित कानूनों का संकलन करवाया। यह संकलन नेपोलियन कोड के नाम से विख्यात है। इसके द्वारा एक विधि-संहिता तैयार की गई। इसका अनुकरण अन्य यूरोपीय राष्ट्रों ने भी किया। नेपोलियन की विधि-संहिता फ्रांसीसी क्रांति की अमूल्य देन है।
(xv) नया राष्ट्रीय कैलेंडर-क्रांति के परिणामस्वरूप फ्रांस में एक नया राष्ट्रीय कैलेंडर गणतंत्र की स्थापना के दिन
(22 सितंबर 1792) से लागू किया गया। इसमें वर्ष को ऋतुओं के आधार पर बारह महीनों में बाँटा गया।

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