बिहार में जनसंचार माध्यम
बिहार में जनसंचार माध्यम
सन् 1990 के पश्चात् देश में संचार प्रणाली और जनसंचार माध्यम में व्यापक प्रसार हुआ। वैश्वीकरण एवं उदारीकरण का सर्वाधिक प्रभाव इन्हीं क्षेत्रों पर पडा। जहां लोग टेलीफोन सेट और टीवी सेट देखने के लिए तरसते थे, अब वहीं ये दोनों माध्यम देश के गांव-गांव तक पहुंच गएं। इस व्यापक प्रसार से भगवान बुद्ध की कर्मस्थली बिहार भी अछूता नहीं है। आज बिहार का प्रायः पंचायत टेलीफोन और टीवी के सहारे विश्व से जुड़ गया है। सरकारी टेलीफोन व्यवस्था के अतिरिक्त कई मोबाइल कंपनियां भी सेवा प्रदान कर रही हैं। अब दूर-दराज के गांव की कोई महिला अपने परदेशी पति के खत का इंतजार नहीं
करती बल्कि उससे सीधे बात करती है, टेलीफोन के सहारे। देश-विदेश की खबरे सुनती है, टेलीविजन के सहारे।
बिहार में रेडियो और टीवी का नेटवर्क फैला हुआ है। रेडियो के सहारे लोग चलते-फिरते मनोरंजन और सूचना प्राप्त करते हैं। यह अपने आप में सूचना माध्यम तथा कला माध्यम दोनों है। इस जनसंचार माध्यम पर अभी भी सरकारी तंत्र का एकाधिकार है। बिहार में आकाशवाणी के तीन प्रमुख केंद्र हैं पटना, भागलपुर तथा दरभंगा। ये केंद्र आकाशवाणी (ऑल इंडिया रेडियो) के राष्ट्रीय कार्यक्रम, जो दिल्ली से प्रसारित होते हैं, उन्हें प्रसारित करने के अतिरिक्त अपने क्षेत्रीय कार्यक्रम भी बनाते हैं। हिन्दी-अंग्रेजी में कार्यक्रम के अतिरिक्त मैथिली भोजपुरी में कार्यक्रम-लोकगीत इत्यादि प्रसारित किये जाते हैं।
जहां इससे एक ओर लोक संस्कृति और स्थानीय परंपराओं को बल मिलता है, वहीं दूसरी ओर स्थानीय स्तर पर कई कलाकारों के सपने साकार होते हैं। इस क्षेत्र में रेडियो नेपाल भी केच करता है। आकाशवाणी के इन तीन प्रमुख केंद्रों के अतिरिक्त, इनके कार्यक्रमों को प्रसारित करने के लिए उच्च प्रेषित प्रसारण केंद्र तथा निम्न प्रेषित प्रसारण केंद्र भी होते हैं। इनके सहारे बीबीसी और अन्य केंद्रों के प्रसारण भी उपलब्ध हो पाते हैं। रेडियो साक्षरता, ग्रामीण महिलाओं में दक्षता बढ़ाने उन्नत कृषि इत्यादि के बारे में कार्यक्रम प्रसारित करने के साथ-साथ स्थानीय पर्व-त्यौहार के विषय में भी जानकारी प्रदान करता है।
पहले जहां लोग अखबार पढ़ने और रेडियो सुनने से संतुष्ट हो जाते थे, वहीं अब वे नयनसुख भी चाहते हैं, यानी टी.वी. देखना। ‘तुम कहते कागज के लिखी, मैं कहता आंखन की देखी’ वाली कहावत चरितार्थ होती है। बिहार में दूरदर्शन के दो प्रमुख केंद्र हैं- पटना एवं मुज्जफरपुर। ये दोनों केंद्र दूरदर्शन के राष्ट्रीय कार्यक्रमों को प्रसारित करने के साथ-साथ अपने स्थानीय कार्यक्रम भी प्रसारित करते है क्षेत्रीय कार्यक्रमों के प्रसारण का समय शाम 5 बजे से 7.30 तक होता है। इसमें स्थानीय समाचार से लेकर क्षेत्रीय कला-संस्कृति की स्पष्ट छाप हाती है। अब केबल चैनलों के आ जाने से लोगों के पास विकल्प खुल गये हैं। सुदूर गांव तक भी केबल चैनलों का प्रसार होते जा रहा है। आज से कुछ दशक पूर्व तक जहां टी.वी. को लोग हसरत भरी निगाहों से देखते थे, वहीं आज यह आम जन के लिए उपलब्ध है। अब उन्हें नयी रिलीज फिल्म के लिए कहीं टॉकीज में नहीं जाना पड़ता, ये केवल चैनल के सहारे उपलब्ध हो जाती है। अब केवल चैनलों के मसालेदार समाचार से लेकर बिना तामझाम के दूरदर्शन के समाचार जनता को उपलब्ध है। अब दूरदर्शन का एक विशेष चैनल डीडी न्यूज प्रारंभ हुआ है। जो विविधतापूर्ण समाचार उपलब्ध करा रहा है।
बिहार जहां 1857 की क्रांति, 1917 के चम्पारण सत्याग्रह, आपातकाल के दौरान लोकनायक जयप्रकाश नारायण के अभियान तथा 1989 के सत्ता परिवर्तन में सक्रिय रहा, वहीं यहां से प्रकाशित एवं वितरित समाचार पत्रों का योगदान भी कम नहीं रहा है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार बिहार में साक्षरता की प्रतिशतता भले ही कम हो, किंतु यहां उच्च शिक्षा प्राप्त लोगों की संख्या कभी कम नहीं रही है। प्रायः सभी राष्ट्रीय दैनिक के पाठक बिहार में पर्याप्त संख्या में है। कई समाचार पत्रों के क्षेत्रीय संस्करण बिहार से प्रकाशित होते हैं। बिहार के लोकप्रिय समाचार पत्रों में- आज, हिन्दुस्तान, नवभारत टाइम्स, टाइम्स ऑफ इंडिया और हिंदुस्तान टाइम्स हैं। इसके अतिरिक्त बिहार के विभिन्न जिलों से स्थानीय स्तर पर समाचार पत्र प्रकाशित होते रहते हैं। इस प्रकार बिहार में रेडियो, टी.वी. तथा समाचार पत्र के व्यापक प्रसार से कला, संस्कृति एवं सूचना की त्रिवेणी सतत प्रवाहित हो रही है। इससे मनोरंजन के साथ-साथ सामाजिक परिवर्तन भी परिलक्षित होते रहे हैं। सरकार भी जनसंचार माध्यमों को जन-जन तक पहुंचाने का भगीरथ प्रयास कर रही है। इन माध्यमों के सहारे बिहार में जहां लाखों लोगों का मनोरंजन हो रहा है, वहीं हजारों लोगों को रोजगार भी उपलब्ध हो रहा है। जहां विश्व सूचना एवं जनसंचार की क्रांति के दौर से गुजर रहा है, वहीं बिहार भी इसमें पीछे नहीं है।