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द्वितीय विश्वयुद्ध (1939-45)

द्वितीय विश्वयुद्ध (1939-45)

प्रथम विश्वयुद्ध की विभीषिका से त्रस्त होकर तथा भविष्य में इसे रोकने के लिए 1919 में राष्ट्रसंघ की स्थापना की गई थी, परंतु
यह द्वितीय विश्वयुद्ध को रोकने में पूर्णतः विफल रहा। 20 वर्षों की छोटी अवधि में ही दूसरा विश्वयुद्ध हुआ जो पहले से भी
अधिक प्रलयंकारी था। इस युद्ध के अनेक कारण प्रथम विश्वयुद्ध के कारणों से मिलते-जुलते हैं। 1939 की स्थिति 1914 से बहुत अधिक भिन्न नहीं थी। यूरोपीय गुटबंदियाँ, सैन्यवाद तथा साम्राज्यवाद की द्वितीय विश्वयुद्ध में भी अहम भूमिका थी। इनमें
अनेक नए कारण जुड़ गए। सबसे बड़ी बात यह थी कि द्वितीय विश्वयुद्ध मूलत: एक प्रतिशोधात्मक युद्ध था।

द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण

(i) वर्साय की अपमानजनक संधि
(ii) तानाशाही शक्तियों का उदय
(iii) साम्राज्यवादी प्रवृत्ति
(iv) यूरोपीय गुटबंदी
(v) हथियारबंदी की होड़
(vi) विश्व आर्थिक मंदी का प्रभाव
(vii) तुष्टीकरण की नीति
(viii) म्यूनिख समझौता
(ix) सामूहिक कार्रवाई तथा जनमोर्चा की विफलता
(x) राष्ट्रसंघ की विफलता
(xi) तात्कालिक कारण

द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण

द्वितीय विश्वयुद्ध के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे-
(i) वर्साय की अपमानजनक संधि-द्वितीय विश्वयुद्ध के बीज वर्साय की संधि में ही बो दिए गए थे। मित्र राष्ट्रों ने जिस प्रकार
का अपमानजनक व्यवहार जर्मनी के साथ किया उसे जर्मन जनमानस कभी भी भूल नहीं सका। जर्मनी को इस संधि पर
हस्ताक्षर करने को विवश कर दिया गया। संधि की शर्तों के अनुसार, जर्मन साम्राज्य का एक बड़ा भाग मित्र राष्ट्रों ने उससे
छीनकर आपस में बाँट लिया। उसे सैनिक और आर्थिक दृष्टि से पंगु बना दिया गया। अतः, जर्मन वर्साय की संधि को “एक
राष्ट्रीय कलंक” मानते थे। मित्र राष्ट्रों के प्रति उनमें प्रबल प्रतिशोध की भावना जगी। हिटलर ने इस मनोभावना को और
अधिक उभारकर सत्ता हथिया ली। सत्ता में आते ही उसने वर्साय की संधि की धज्जियाँ उड़ा दी और घोर आक्रामक नीति अपनाकर दूसरा विश्वयुद्ध आरंभ कर दिया।
(ii) तानाशाही शक्तियों का उदय- प्रथम विश्वयुद्ध के बाद यूरोप में तानाशाही शक्तियों का उदय और विकास हुआ। इटली
में मुसोलिनी और जर्मनी में हिटलर तानाशाह बन बैठे। प्रथम विश्वयुद्ध में इटली मित्र राष्ट्रों की ओर से लड़ा था, परंतु पेरिस
शांति सम्मेलन से उसे कोई खास लाभ नहीं हुआ। इससे इटली में असंतोष की भावना जगी। इसका लाभ उठाकर मुसोलिनी ने
फासीवाद की स्थापना कर सारी शक्ति अपने हाथों में केंद्रित कर ली। वह इटली का अधिनायक बन गया। यही स्थिति जर्मनी में भी थी। हिटलर ने नाजीवाद की स्थापना की तथा जर्मनी का तानाशाह बन बैठा। मुसोलिनी और हिटलर दोनों ने आक्रामक
नीति अपनाई। दोनों ने राष्ट्रसंघ की सदस्यता त्याग दी तथा अपनी शक्ति बढ़ाने में लग गए। उनकी नीतियों ने द्वितीय विश्वयुद्ध को अवश्यंभावी बना दिया।
(iii) साम्राज्यवादी प्रवृत्ति-द्वितीय विश्वयुद्ध का एक प्रमुख कारण बना साम्राज्यवाद। प्रत्येक साम्राज्यवादी शक्ति अपने साम्राज्य का विस्तार कर अपनी शक्ति और धन में वृद्धि करना चाहता था। इससे साम्राज्यवादी राष्ट्रों में प्रतिस्पर्द्धा आरंभ हुई।
1930 के दशक में इस मनोवृत्ति में वृद्धि हुई। आक्रामक कार्रवाइयाँ बढ़ गई। 1931 में जापान ने चीन पर आक्रमण कर
मंचूरिया पर अधिकार कर लिया। इसी प्रकार, 1935 में इटली ने इथियोपिया पर कब्जा जमा लिया। 1935 में ही जर्मनी ने
राइनलैंड पर तथा 1938 में ऑस्ट्रिया पर विजय प्राप्त कर उसे जर्मन साम्राज्य में मिला लिया। स्पेन में गृहयुद्ध के दौरान हिटलर और मुसोलिनी ने जनरल फ्रैंको को सैनिक सहायता पहुँचाई। फलतः, फ्रैंक्रो ने स्पेन में सत्ता हथिया ली।
(iv) यूरोपीय गुटबंदी-जर्मनी की बढ़ती शक्ति से आशंकित होकर यूरोपीय राष्ट्र अपनी सुरक्षा के लिए गुटों का निर्माण करने
लगे। इसकी पहल फ्रांस ने की। उसने जर्मनी के इर्द-गिर्द के राष्ट्रों का एक जर्मन-विरोधी गुट बनाया। इसके प्रत्युत्तर में जर्मनी और इटली ने एक अलग गुट बनाया। जापान भी इसमें सम्मिलित हो गया। इस प्रकार, जर्मनी, इटली और जापान का त्रिगुट बना। ये राष्ट्र धुरी राष्ट्र (Axis Powers) के नाम से विख्यात हुए। फ्रांस, इंगलैंड, अमेरिका और सोवियत संघ का अलग गुट बना जो मित्र राष्ट्र (Allied Powers) के नाम से जाना गया। यूरोपीय राष्ट्रों की गुटबंदी ने एक-दूसरे के विरुद्ध आशंका, घृणा और
विद्वेष की भावना जगा दी।
(v) हथियारबंदी की होड़-प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात निरस्त्रीकरण के लिए काफी प्रयास किए गए, परंतु यह प्रयास विफल रहा। साम्राज्यवादी प्रतिद्वंद्विता और राष्ट्रगुटों के निर्माण ने पुनः हथियारबंदी की होड़ आरंभ कर दी। जर्मनी और फ्रांस इस
दिशा में सबसे आगे बढ़ गए। 1932 में जेनेवा निरस्त्रीकरण सम्मेलन आयोजित किया गया, परंतु यह सफल नहीं हो सका।
1933 तक संपूर्ण यूरोप में सामरिक वातावरण व्याप्त गया। फ्रांस ने अपनी सीमा पर मैगिनो लाइन (Maginot Line) का निर्माण किया और जमीन के भीतर मजबूत किलाबंदी की जिससे कि जर्मन आक्रमण को फ्रांस की सीमा पर ही रोका जा सके। इसके जवाब में जर्मनी ने अपनी पश्चिमी सीमा को सुदृढ़ करने के लिए सीजफ्रेड लाइन (Siegfried Line) बनाई। इन सैनिक गतिविधियों ने युद्ध को अवश्यंभावी बना दिया।
(vi) विश्व आर्थिक मंदी का प्रभाव-1929-30 की विश्व आर्थिक मंदी ने भी द्वितीय विश्वयुद्ध में योगदान किया। इसके
परिणामस्वरूप उत्पादन घट गया। बेरोजगारी और भुखमरी बढ़ गई। उद्योग-धंधे, कृषि, व्यापार सब पर आर्थिक मंदी का बुरा
प्रभाव पड़ा। जर्मनी की स्थिति सबसे बुरी थी। हिटलर ने इस स्थिति के लिए वर्साय की संधि को उत्तरदायी बताया। इससे
उसकी शक्ति में वृद्धि हुई और वह तानाशाह बन बैठा। इसके साथ-साथ अपनी-अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने तथा बेरोजगारों
को सेना में नौकरी देने के लिए भी युद्ध आवश्यक माना जाने लगा।
(vii) तुष्टीकरण की नीति-तुष्टीकरण की नीति भी द्वितीय विश्वयुद्ध का एक कारण बनी। किसी भी यूरोपीय राष्ट्र ने जर्मनी-इटली की आक्रामक नीति को रोकने का प्रयास नहीं किया। वस्तुतः, 1917 की बोल्शेविक क्रांति के बाद साम्यवाद की
बढ़ती शक्ति से इंगलैंड और फ्रांस खतरा महसूस कर रहे थे। दूसरी ओर जर्मनी, इटली और जापान (धुरी राष्ट्र) साम्यवाद के
विरोधी थे। इसलिए, इंगलैंड और फ्रांस चाहते थे कि फासीवादी शक्तियाँ (धुरी राष्ट्र) साम्यवाद का विरोध करें और वे सुरक्षित
रहें। इस तुष्टीकरण की नीति की प्रतिमूर्ति ब्रिटिश प्रधानमंत्री चेंबरलेन था। इसलिए, जर्मनी, इटली, जापान और स्पेन के मामलों में इंगलैंड और फ्रांस ने हस्तक्षेप नहीं किया। इससे फासीवादी शक्तियों के हौसले बढ़ते गए।
(viii) म्यूनिख समझौता-चेकोस्लोवाकिया पर जर्मनी की निगाहें लगी थीं। चेकोस्लोवाकिया जर्मनी के लिए औद्योगिक और
सामरिक दृष्टिकोण से काफी महत्त्वपूर्ण था। इसलिए, हिटलर ने चेकोस्लोवाकिया के एक भाग सुडेटनलैंड पर अपना दावा पेश
किया। यहाँ अस्त्र-शस्त्र बनाने का बड़ा कारखाना था। यहाँ बड़ी संख्या में जर्मन भी निवास करते थे। अतः, हिटलर ने यह
धमकी दी कि अगर चेकोस्लोवाकिया जर्मनी को सुडेटनलैंड नहीं देता है तो वह चेकोस्लोवाकिया पर आक्रमण कर इसे बलपूर्वक ले लेगा। इस समस्या के समाधान के लिए म्यूनिख समझौता (Munich Pact) 1938 हुआ। इसमें हिटलर की शर्ते मान ली गईं। हिटलर ने सुडेटनलैंड पर अधिकार कर लिया। 1939 में उसने संपूर्ण चेकोस्लोवाकिया हड़प लिया। इससे जर्मनी-इटली के हौसले बढ़ गए। दूसरी ओर सोवियत संघ इंगलैंड और फ्रांस से सशंकित हो गया। 1939 में सोवियत संघ और जर्मनी में एक अनाक्रमण संधि हुई। इस प्रकार, युद्ध की पृष्ठभूमि तैयार हो गई।
(ix) सामूहिक कार्रवाई तथा जनमोर्चा की विफलता-फासीवादी शक्तियों की आक्रामक नीति का सामना करने के लिए सोवियत संघ और अन्य राष्ट्रों ने सामूहिक कार्रवाई की योजना बनाई। फ्रांस में जनमोर्चा फासीवादी शक्तियों के विपरीत सफल रहा, परंतु अन्य राष्ट्रों में यह प्रयोग विफल रहा।
(x) राष्ट्रसंघ की विफलता-द्वितीय विश्वयुद्ध का प्रमुख कारण राष्ट्रसंघ की विफलता थी। इसकी स्थापना युद्धों की पुनरावृत्ति को रोकने एवं विश्वशांति को बनाए रखने के लिए की गई थी, परंतु यह अपने उद्देश्यों में विफल रहा। यह महाशक्तियों के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं कर सका। अपनी निजी सेना के अभाव, बड़े राष्ट्रों के दबाव तथा अन्य बहुत-सी दुर्बलताओं के कारण राष्ट्रसंघ की उपयोगिता समाप्त हो गई। जापान, जर्मनी और इटली राष्ट्रसंघ से अलग होकर मनमानी करने लगे। राष्ट्रसंघ
उन्हें रोक नहीं सका। इससे छोटे राष्ट्रों का विश्वास राष्ट्रसंघ पर से उठ गया।
(xi) तात्कालिक कारण-1939 तक यूरोप पर युद्ध के बादल छा गए थे। अप्रैल 1939 में हिटलर ने पोलैंड से डांजिंग बंदरगाह
तथा पोलिश गलियारा जर्मनी को वापस करने की माँग रखी। पोलैंड ने इसे स्वीकार नहीं किया। इससे अंतरराष्ट्रीय संकट
उत्पन्न हो गया। इस समस्या को सुलझाने के काफी प्रयास हुए, परंतु वे विफल हो गए। इस बीच पोलैंड ने इंगलैंड और फ्रांस के
साथ संधि कर ली। इनके द्वारा पोलैंड को आश्वासन दिया गया कि जर्मनी द्वारा आक्रमण की स्थिति में इंगलैंड तथा फ्रांस पोलैंड
की सैनिक सहायता करेंगे। दूसरी ओर पोलैंड द्वारा वार्ता के लिए जर्मनी की उपेक्षा से क्रुद्ध होकर हिटलर ने 1 सितंवर 1939 को पोलैंड पर आक्रमण कर दिया। 3 सितंबर को इंगलैंड और फ्रांस ने भी जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। इस प्रकार, द्वितीय विश्वयुद्ध का आरंभ हो गया।

द्वितीय विश्वयुद्ध का उत्तरदायित्व

यह विवादास्पद है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के लिए उत्तरदायी कौन था। सामान्यतः, वर्साय की अपमानजनक संधि, राष्ट्रसंघ की
विफलता, विश्व आर्थिक मंदी जैसे कारणों को द्वितीय विश्वयुद्ध के लिए उत्तरदायी माना जाता है। इनका लाभ उठाकर हिटलर
सत्ता में आया। वास्तविकता यह है कि 1938 तक वर्साय की संधि के अनेक आपत्तिजनक प्रावधानों को समाप्त किया जा चुका
था तथा जर्मनी एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में उभर चुका था। अनेक इतिहासकारों का मानना है कि हिटलर पोलैंड पर अधिकार कर प्रथम विश्वयुद्ध में जर्मनी की पराजय का बदला लेना चाहता था। साथ ही, पोलैंड और सोवियत संघ पर अधिकार कर वह साम्यवाद के प्रसार को रोकना चाहता था। इसलिए, हिटलर की नीतियाँ ही मुख्य रूप से द्वितीय विश्वयुद्ध के लिए उत्तरदायी बनीं। अनेक विद्वान इंगलैंड और फ्रांस की तुष्टीकरण की नीति को द्वितीय विश्वयुद्ध के लिए उत्तरदायी मानते हैं। म्यूनिख समझौता के समय इंगलैंड के प्रधानमंत्री चेंबरलेन द्वारा चेकोस्लोवाकिया की सहायता नहीं किए जाने से भी हिटलर को
सुडेटनलैंड पर अधिकार करने का अवसर मिल गया। कुछ विद्वानों का यह भी विचार है कि सोवियत संघ और जर्मनी की
अनाक्रमण संधि भी युद्ध के लिए उत्तरदायी थी। सोवियत संघ को जर्मनी के साथ संधि करने की जगह पोलैंड और पश्चिमी
राष्ट्रों के साथ संधि करनी चाहिए थी। इससे भयभीत होकर हिटलर शांति व्यवस्था को भंग करने का प्रयास नहीं करता। इस
प्रकार, द्वितीय विश्वयुद्ध के लिए हिटलर के अतिरिक्त इंगलैंड, फ्रांस और सोवियत संघ भी प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से उत्तरदायी थे। फिर भी, अधिकांश इतिहासकार हिटलर और उसके नाजीवाद को द्वितीय विश्वयुद्ध के लिए उत्तरदायी
मानते हैं।

द्वितीय विश्वयुद्ध की प्रमुख घटनाएँ

युद्ध का आरंभ-1 सितंबर 1939 को पोलैंड पर जर्मन आक्रमण के साथ ही द्वितीय विश्वयुद्ध का बिगुल बज उठा। शीघ्र ही इंगलैंड और फ्रांस ने भी जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। उधर जर्मनी ने पोलैंड पर अधिकार कर लिया। 1 सितंबर 1939 से 9 अप्रैल 1940 तक का काल नकली युद्ध अथवा फोनी वार (phoney war) का काल माना जाता है, क्योंकि इस अवधि में युद्ध की स्थिति बने रहने पर भी कोई वास्तविक युद्ध नहीं हुआ। 9 अप्रैल 1940 को जर्मनी ने नार्वे तथा डेनमार्क पर आक्रमण कर उनपर अधिकार कर लिया। जून 1940 तक जर्मन सेना ने बेल्जियम और हॉलैंड के अतिरिक्त फ्रांस पर भी अधिकार कर लिया। बाध्य होकर फ्रांस को आत्मसमर्पण करना पड़ा। फ्रांस के बाद इंगलैंड की बारी आई। जर्मन बमवर्षकों
ने इंगलैंड पर हवाई आक्रमण कर उसे बरबाद करने की योजना बनाई, परंतु इंगलैंड की लड़ाई में जर्मनी को सफलता नहीं
मिली। वह इंगलैंड पर अपना आधिपत्य नहीं जमा सका। जून 1941 में जर्मनी ने सोवियत संघ पर आक्रमण कर एक बड़े क्षेत्र
पर अधिकार कर लिया। परंतु, सोवियत संघ ने मास्को की ओर जर्मन सेना को आगे बढ़ने से रोककर उसे वापस लौटने को
विवश कर दिया।
युद्ध का विस्तार-1941 से यूरोप के अतिरिक्त पूर्वी एशिया भी युद्ध की लपेट में आ गया। 7 दिसंबर 1941 को जापान ने पर्ल
हार्बर के अमेरिकी नौसैनिक अड्डा पर आक्रमण कर दिया। फलतः, अमेरिका भी युद्ध में सम्मिलित हो गया। जापान ने शीघ्र ही मलाया, बर्मा, इंडोनेशिया, सिंगापुर, थाईलैड इत्यादि पर अधिकार कर लिया। भारत पर भी जापानी आक्रमण का खतरा मँडराने लगा। इस प्रकार, इस युद्ध में इंगलैंड, फ्रांस, सोवियत संघ, अमेरिका, चीन तथा अन्य राष्ट्र (मित्र राष्ट्र) एक पक्ष में तथा दूसरे पक्ष में जर्मनी, इटली और जापान (धुरी राष्ट्र) आ गए। अब युद्ध का प्रसार तेजी से हुआ। मास्को की ओर बढ़ने से रोकने पर जर्मनी ने सोवियत संघ के दक्षिणी भाग पर आक्रमण कर दिया। सितंबर 1942 में जर्मन सेनाएँ स्तालिनग्राद तक पहुँच गईं, परंतु स्तालिनग्राद के युद्ध में जर्मनी की पराजय हुई। यहाँ से जर्मनी की पराजय की प्रक्रिया आरंभ हो गई। सोवियत संघ ने चेकोस्लोवाकिया और रूमानिया, जो जर्मनी के नियंत्रण में थे, पर अपना आधिपत्य जमा लिया। सोवियत संघ ने जर्मनी के विरुद्ध दूसरा मोर्चा फ्रांस के नारमंडी में खोल दिया। इससे जर्मन सेना को दो मोर्चों पर लड़ना पड़ा। फलतः , उसकी शक्ति कमजोर पड़ती गई। अमेरिका के युद्ध में सम्मिलित हो जाने से भी धुरी राष्ट्रों की शक्ति कमजोर पड़ने लगी।
युद्ध का अंत-1944 में पराजित होकर इटली ने आत्मसमर्पण कर दिया। इससे जर्मन शक्ति को आघात लगा। स्तालिनग्राद के
युद्ध में जर्मनी को परास्त कर सोवियत सेना आगे बढ़ते हुए बर्लिन (जर्मनी) तक पहुँच गई। बाध्य होकर 7 मई 1945 को
हिटलर को आत्मसमर्पण करना पड़ा। अब जापान की बारी आई। क्रमशः 6 और 9 अगस्त 1945 को अमेरिका ने जापान के
हिरोशिमा और नागासाकी शहरों पर परमाणुबम गिराकर उन्हें पूर्णतः नष्ट कर दिया। लाखों की संख्या में निर्दोष व्यक्ति मारे
गए। बाध्य होकर जापान को भी आत्मसमर्पण करना पड़ा। इस प्रकार, विनाशकारी द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त हो गया।

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