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CTET Notes in Hindi | प्रतिभाशाली, सृजनात्मक तथा विशेष आवश्यकता वाले बालक

CTET Notes in Hindi | प्रतिभाशाली, सृजनात्मक तथा विशेष आवश्यकता वाले बालक

प्रतिभाशाली बालक

Talented Children
> पॉल विट्टी के अनुसार, “प्रखर बुद्धि बालक वह है जो किसी कार्य को करने के प्रयास में निरन्तर उच्च स्तर बनाये रखता है।”
> कॉलसनिक के अनुसार, “वह बालक जो अपनी आयु-स्तर के बालकों में किसी योग्यता में अधिक हो और जो हमारे समाज के लिए कुछ महत्वपूर्ण नई देन दे।”
> टरमन के अनुसार, “प्रतिभावान बालक शारीरिक विकास, शैक्षणिक उपलब्धि, बुद्धि और व्यक्तित्व में वरिष्ठ होते हैं।”
> प्रतिभावान बालकों के अंतर्गत उच्च बुद्धिलब्धि वाले बालक के साथ-साथ वे सभी बालक सम्मिलित होते हैं, जो दूसरे बालकों से किसी भी क्षेत्र में अति वरिष्ठ होते हैं, जैसे—कलावर्ग, साहित्य, काव्य-रचना आदि ।
प्रतिभाशाली बालकों की विशेषताएँ
प्रतिभाशाली बालकों की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
★ प्रतिभाशाली बालकों में सीखने की गति तीव्र एवं शुद्ध होती है तथा स्मरण शक्ति उच्च स्तर की होती है।
★ प्रतिभाशाली बालकों की बुद्धिलब्धि 120 से अधिक होती है।
★ ऐसे बालक अपनी कमियों को स्वयं पहचानते हैं तथा दूसरों के सुझाव आसानी से मान लेते हैं।
★ ऐसे बालकों में सामान्य ज्ञान का स्तर उच्च होता है और शब्दकोश विस्तृत होता है।
★ ऐसे बालकों का शारीरिक, मानसिक एवं भावात्मक विकास अन्य बालकों की अपेक्षा उच्च कोटि का होता है।
★ ऐसे बालकों में सीखने की गति एवं प्रश्नों के उत्तर देने की गति तीव्र होती है।
★ ऐसे बालक अधिक महत्वाकांक्षी एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण के होते हैं।
★ ऐसे बालक किसी घटना का निरीक्षण बारीकी के साथ करते हैं।
प्रतिभावान बालकों की पहचान
प्रतिभावान बालकों की पहचान के लिए अध्यापक निम्नलिखित विधियों का उपयोग कर सकते हैं-
(a) प्रतिभावान बालकों के व्यक्तित्व के बारे में अध्यापक अन्य व्यक्तियों से भी सूचनाएँ एकत्रित कर सकता है।
(b) बुद्धि परीक्षणों के द्वारा प्रतिभावान बालकों की पहचान अध्यापक कर सकते हैं।
(c) डी-डॉन और कफ ने प्रतिभावान बालक के गुणों की एक ऐसी सूची तैयार की है, जिसके आधार पर प्रतिभावान बालकों का पता लगाया जा सकता है। यह सूची इस प्रकार है-
★ सामान्य बुद्धि का प्रयोग अधिक करते हैं।
★ शब्द-ज्ञान बहुत विस्तृत होता है।
★ मौलिक चिन्तन कर सकते हैं।
★ ये स्पष्ट रूप से सोचने, अर्थों को समझने और सम्बन्धों की पहचान करने में श्रेष्ठ होते हैं।
★ कठिन कार्यों को आसानी से कर लेते हैं।
(d) उपलब्धि परीक्षाओं के द्वारा भी प्रतिभावान बालक की पहचान अध्यापक करते हैं।
(e) अभिरुचि परीक्षाओं से भी छात्र की प्रतिभा का अनुमान लगाया जा सकता है।
प्रतिभावान बालकों की शैक्षिक व्यवस्था
प्रतिभावान बालकों के लिए कुछ विशेष शिक्षा की आवश्यकता पड़ती है। ये शैक्षिक व्यवस्थाएँ इस प्रकार होनी चाहिए-
(a) अध्यापकों को चाहिए कि प्रतिभावान बालकों में सृजनात्मक शक्ति का उचित प्रयोग कर उन्हें समाज-विरोधी गतिविधि में सम्मिलित नहीं होने दें। ऐसी शिक्षा बालकों को प्रदान करनी चाहिए ताकि वे सामाजिक बुराइयों से दूर रह सकें।
(b) कक्षा में छात्रों को तीव्र प्रोन्नति नहीं प्रदान करना चाहिए।
(c) प्रतिभावान बालकों की शिक्षा ऐसे बालकों के ध्यानपूर्वक अध्ययन पर आधारित होना चाहिए।
(d) प्रतिभावान बालकों की शिक्षा उसके व्यक्तित्व के सभी पक्षों के विकास पर केन्द्रित होनी चाहिए। प्रतिभावान बालक को सर्वांगीण विकास के लिए अध्यापक को अत्यधिक परिश्रम करने की आवश्यकता होती है। अतः इस कार्य के लिए उसे कक्षा
और स्कूल में अधिक सक्रिय रखना चाहिए।
(e) प्रतिभावान बालकों को पाठ्यक्रम समझने में सामान्य बालकों से कम समय लगता है। यह बचा हुआ समय उन्हें किसी और कार्य में उपयोग करना चाहिए।
(f) प्रतिभावान बालकों को घर के लिए विशेष कार्य दिया जाना चाहिए ताकि वे
अपनी प्रतिभा का उचित उपयोग कर सकें।
(g) प्रतिभावान बालकों की शिक्षा के लिए और उनमें नेतृत्व विकास के लिए उत्तरदायित्व का कार्य सौंपना चाहिए।
सृजनात्मकता (Creativity): “सृजनात्मकता वह अवधारणा है जिसमें उपलब्ध साधनों से नवीन या अनजानी वस्तु, विचार या धारणा को जन्म दिया जाता है। सृजनात्मकता का अर्थ है रचना सम्बन्धी योग्यता नवीन उत्पाद की रचना। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से
सृजनात्मक स्थिति अन्वेषणात्मक होती है।”
> रूश (Rush) के अनुसार, “सृजनात्मक मौलिकता वास्तव में किसी भी प्रकार की क्रिया में घटित होती है।”
सृजनात्मकता के तत्व
Elements of Creativity
गिलफोर्ड के अनुसार सृजनात्मकता के तत्व निम्नलिखित हैं-
(a) तात्कालिक स्थिति से परे जाने की योग्यता : जो व्यक्ति वर्तमान परिस्थितियों से हटकर, उससे आगे की सोचता है और अपने चिन्तन को मूर्त रूप देता है, उसमें सृजनात्मक तत्व पाया जाता है।
(b) समस्या की पुनर्व्याख्या : सृजनात्मकता का एक एक तत्व समस्या की पुनर्व्याख्या है। वकील, अध्यापक, व्याख्याता, नेता आदि इस रूप में सृजनात्मक कहलाते हैं कि वे समस्या की व्याख्या अपने ढंग से करते हैं।
(c) सामंजस्य : जो बालक तथा व्यक्ति असामान्य किन्तु प्रासंगिक विचार तथा तथ्यों के साथ समन्वय स्थापित करते हैं, वे सृजनात्मक कहलाते हैं।
(d) अन्य के विचारों में परिवर्तन : ऐसे व्यक्तियों में भी सृजनात्मकता विद्यमान रहती है, जो तर्क, चिन्तन तथा प्रमाण द्वारा व्यक्तियों के विचारों में परिवर्तन कर देते हैं।
सृजनात्मकता की विशेषताएँ
Characteristics of Creativity
हरलॉक के अनुसार सृजनात्मकता की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(a) सृजनात्मकता एक प्रक्रिया या योग्यता है, यह उत्पादन नहीं है।
(b) सृजनात्मकता की प्रक्रिया लक्ष्य निर्देशित होती है अथवा यह समूह और समाज के लिए लाभदायक होती है।
(c) सृजनात्मकता मौखिक हो या लिखित, यह चाहे मूर्त हो या अमूर्त, प्रत्येक अवस्था में व्यक्ति के लिए यह अभूतपूर्व होती है।
(d) सृजनात्मकता चिन्तन का एक तरीका है। यह बुद्धि का पर्यायवाची नहीं है।
(e) सृजन (Creation) की योग्यता मान्य ज्ञान के अर्जन पर आधारित है।
(f) सृजनात्मकता एक प्रकार की नियमित कल्पना है जिससे किसी-न-किसी
उपलब्धि का निर्देशन प्राप्त होता है।
सृजनात्मकता की पहचान
Identification of Creativity
सृजनात्मकता की पहचान करना शिक्षक के लिए अत्यन्त आवश्यक है। सृजनशील
बालकों की पहचान इस प्रकार की जा सकती है-
(a) सृजनशील बालकों में मौलिकता के दर्शन होते हैं। सृजनशील बालकों का दृष्टिकोण सामान्य व्यक्तियों से अलग होता है।
(b) स्वतन्त्र निर्णय की क्षमता सृजनशील की पहचान है।
(c) परिहासप्रियता भी सृजनात्मकता की पहचान है।
(d) उत्सुकता भी सृजनात्मकता का एक आवश्यक तत्व है।
(e) सृजनशील बालकों मे संवेदनशीलता अधिक पायी जाती है।
(f) सृजनशील बालकों में स्वायत्तता का भाव पाया जाता है।
बालकों के लिए सृजनात्मकता का महत्व
Importance of Creativity for Children
> सृजनात्मकता का बालकों के लिए बहुत अधिक महत्व है क्योंकि इससे बालकों को सन्तोष ही प्राप्त नहीं होता है बल्कि बालक को इससे व्यक्तिगत आनन्द भी प्राप्त होता है। सृजनात्मकता से प्राप्त सन्तोष और आनन्द का बालकों के व्यक्तित्व पर
महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
> उदाहरण के लिए, बच्चे अपने खेल में जब किसी नई खोज का सृजन करते हैं तो उन्हें बहुत आनन्द आता है और सन्तोष प्राप्त होता है। वह अपने खेल में किसी डिब्बे को उल्टा कर लकड़ी से पीटने वाला बाजा बना सकते हैं, दो कुर्सियों पर चादर ढंक कर छुपने के लिए घर बना सकते हैं या दीवार पर अपने ढंग से स्याही, पेन्सिल या खड़िया से ड्राइंग बना सकते हैं।
सृजनात्मकता का परीक्षण
Experiments of Creativity
सृजनात्मकता की पहचान के लिए गिलफोर्ड ने अनेक परीक्षणों का निर्माण किया है। ये परीक्षण निरन्तरता (Fluency), लोचनीयता (Flexibility), मौलिकता (Originality) तथा विस्तार (Elaboration) का मापन करते हैं। ये परीक्षण निम्नलिखित हैं-
★चित्र-पूर्ति परीक्षण – चित्रपूर्ति परीक्षण में अपूर्ण चित्रों को पूरा करना पड़ता है।
★वृत-परीक्षण – इस परीक्षण में वृत्त (Circle) में चित्र बनाये जाते हैं।
★प्रोडक्ट इम्प्रूवमेन्ट टारक -चूने के खिलौनों द्वारा नूतन विचारों को लेखबद्ध करके सृजनात्मकता पर बल दिया जाता है।
★टीन के डिब्बे – खाली डिब्बों से नवीन वस्तुओं का सृजन कराया जाता है।
फ्रायड का मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त
Freud’s Psycho-Analytical Theory
फ्रायड पहला व्यक्ति था जिसने सर्वप्रथम बाल्यावस्था के अनुभवों को वयस्क व्यवहार और चेतन्यता का आधार बताया। फ्रायड के अनुसार व्यक्तित्व के तीन भाग हैं-
Id, Ego 31 Super Ego
इड (ID): अचेतन मस्तिष्क का प्रतिनिधित्व करता है। अचेतन में निहित विभिन्न प्रकार की इच्छाओं, प्रेरणाओं और वासनाओं की तुरन्त सन्तुष्टि चाहता है। यह सुखवादी सिद्धान्तों से पूर्णतः प्रभावित होता है।
इगो (Ego): यह इड का ही विकसित रूप है, व्यक्तित्व का तार्किक व्यवस्थित विवेकपूर्ण भाग है। परन्तु इसे शक्ति इड से ही प्राप्त होती है। यह वातावरण के साथ समझौता करके इड की Super Ego इच्छाओं को पूरा करने में मदद कराता है।
सुपर इगो (Super Ego): व्यक्ति का अन्त में विकसित होने वाला नैतिक पक्ष है। यह बाल्यावस्था में इगो से ही विकसित होता है।
उदाहरण :  माना कि एक लड़की सड़क पर जा रही है। उसी दिशा में जा रहे एक लड़के के मन में उस लड़की के साथ कुछ गलत करने की इच्छा उठती है फिर लड़के के मन में दूसरी इच्छा उठती है कि यह जगह उपयुक्त नहीं है, कोई देख लेगा तो पिटाई होगी। आगे जाने के बाद जहाँ सुनसान है वहाँ इसके साथ यह करना उपयुक्त होगा। लड़की के पीछे चलते चलते उसके मन में तीसरी इच्छा उठती है कि यह एक असहाय लड़की किसी की बहन हो सकती है, हमारी बहन के समान हो सकती है तथा किसी के साथ कुछ भी गलत नहीं करना चाहिए।
अतः लड़के के मन में उत्पन्न पहली इच्छा इड (ID) की है, दूसरी इगो (Ego) की इच्छा है और तीसरी सुपर इगो (Super Ego) की इच्छा है।
विशिष्ट बालक
Special Children
> विशिष्ट बालक को हेवार्ड एवं औरलैन्स्की (Heward & Orlansky) ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘एक्सेप्शनल चिल्ड्रेन’ में इस प्रकार परिभाषित किया है-
“विशिष्ट एक ऐसा अंतर्रोशित पद है जिसका तात्पर्य किसी भी वैसे बालक से होता है जिसका निष्पादन मानक (Norm) से ऊपर या नीचे इस हद तक विचलित होता है कि उसके लिए विशेष शिक्षा के कार्यक्रम की जरूरत होती है।”
विशिष्ट बालकों की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(a) विशिष्ट बालक सामान्य या औसत बालकों से कई तरह के गुणों में (जिसमें मानसिक एवं शारीरिक गुण मुख्य होता है) विचलित होते हैं।
(b) विशिष्ट बालकों का विचलन इस सीमा तक होता है कि उन्हें विशेष शिक्षा देने की जरूरत होती है।
(c) विशिष्ट बालकों से शिक्षकों को सबसे अधिक चुनौती मिलती है। अतः ऐसे बालकों पर शिक्षकों का ध्यान सबसे अधिक होता है।
(d) ऐसे बालकों पर माता-पिता, अभिभावक एवं सामाजिक संगठन द्वारा भी विशेष नजर रखी जाती है।
अधिगम अक्षम बालकों की शिक्षा
अधिगम अक्षम बालकों की शिक्षा के लिए दो उपागम का प्रयोग किया जाता है-
★कौशल प्रशिक्षण उपागम – यह उपागम बालक के विशिष्ट कौशलों के विषय में सीधे मापन पर आधारित है।
★योग्यता प्रशिक्षण उपागम – ऐसे उपागम का प्रयोग बालक की आधारभूत योग्यताओं में व्याप्त अक्षमताओं में सुधार के लिए निर्देशात्मक प्रक्रियाओं के निर्माण पर मुख्य रूप से किया जाता है।

परीक्षोपयोगी तथ्य

→ प्रतिभाशाली बालक वे हैं जिनकी बुद्धिलब्धि 120 से ऊपर होती है।
→ प्रतिभाशाली बालक वह है जो लगातार उच्च स्तर का कार्य निष्पादन किसी भी सामान्य प्रयास के क्षेत्र में प्रदर्शित करता है।
> गिलफोर्ड ने ‘अभिसारी चिन्तन’ शब्द का प्रयोग सृजनात्मकता के लिए किया है।
→ सृजनशीलता के पोषण के लिए अध्यापक को ब्रेल स्टॉर्मिंग विधि की सहायता लेनी चाहिए।
→ सृजनात्मक शिक्षार्थी वह है जो पार्श्व चिंतन और समस्या समाधान में अच्छा है।
→ सृजनशीलता वह अवधारणा है जिसमें उपलब्ध साधनों से नवीन विचारों को जन्म दिया जाता है। मौलिकता, धारा-प्रवाहिता तथा लचीलापन इसके प्रमुख तत्व हैं।
→ पढ़ने की अक्षमता संबंधी विकार को डिस्लैक्सिया कहते हैं। ऐसे बालक ‘चोटी’ को ‘रोटी’ एवं ‘दरवाजा’ को ‘वाजा’ पढ़ते हैं।
→ गणित संबंधी अधिगम अक्षमता के विकार को डिस्कैल्कुलिया (Dyscalculia) कहते हैं।
→ बच्चे तब सृजनशील होते हैं, जब वे किसी गतिविधि में अपनी रूचि से भाग लेते हैं।
→ क्रो एवं क्रो के अनुसार “सृजनात्मकता मौलिक परिणामों को अभिव्यक्त करने की मानसिक प्रक्रिया है।
→ विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चों के विभिन्न भेद होते हैं। ऐसे बच्चों में शामिल है-
(i) बौद्धिक दृष्टि से – प्रतिभाशाली बालक तथा मंदबुद्धि बालक
(ii) शैक्षिक दृष्टि से-तीव्र बालक तथा पिछड़े बालक
(iii) शारीरिक दृष्टि से-बहरे बालक, कम सुनने वाले बालक, अंधे बालक, दृष्टिदोष से युक्त बालक, विकलांग बच्चे।
(iv) समस्यात्मक दृष्टि से-सामाजिक दृष्टि से कुसमायोजित बालक तथा संवेदात्मक असंतुलित बालक ऐसे सभी विशिष्ट बालक शिक्षण के प्रति दृष्टिकोण, विषय-वस्तु तथा धारणा परिवर्तन की अपेक्षा रखते हैं।
→ प्रतिभाशाली छात्र की विभिन्न विशेषताएँ होती हैं। जैसे इनमें पढ़ने लिखने में रूचि होती है, कठिन विषयों में रूचि शब्द भंडार व्यापक, समस्याओं का समाधान तीव्र गति से करते हैं, तथा इनमें मानसिक क्रियाओं तर्क, चिंतन, निर्णय, स्मरण करने
की योग्यता अधिक होती है। यदि कक्षा की गतिविधियाँ अधिक चुनौतीपूर्ण न हो, तो ऐसे बच्चे कम प्रेरित अनुभव करते हैं, और ऊब जाते हैं।
★★★

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