बिहार में हरित क्रांति
बिहार में हरित क्रांति
बिहार में हरित क्रांति IADP के तहत तत्कालीन शाहाबाद जिले में 1950-51 में शुरू किया गया। बिहार राज्य में 174 लाख हेक्टेयर भूमि शुद्ध में बोया गया क्षेत्र 77 लाख हेक्टेयर है। बढ़ती आबादी और घटती कृषि भूमि के परिप्रेक्ष्य में फसल क्षेत्र तथा उत्पादकता में वृद्धि करना अति आवश्यक है। कृषि क्षेत्र, फसल आच्छादन, उपज में वृद्धि, सिंचाई में व्यापक विस्तार और जल
संसाधनों के सघन उपयोग से बिहार के कृषि विकास की संभावनाओं को उजागर किया जा सकता है। उन्नत कृषि आधारित उद्योगों के विकास से बिहार का कृषि क्षेत्र भारत में अच्छा था। लेकिन हरित क्रांति के साथ चलते हुए भी बिहार अन्य राज्यों के अपेक्षा पिछड़ता चला गया। 1970-90 के दो दशकों में बिहार की कृषि उत्पादकता में वृद्धि दर 1.9 प्रतिशत रही, जबकि देश का 2.6 प्रतिशत था। इस तरह, हरित क्रांति का फायदा बिहार उस प्रकार नहीं उठा पाया, जिस प्रकार पंजाब, हरियाणा ने उठाया।
हरित क्रांति के आने से बिहार के फसल के प्रतिरूप में परिवर्तन आया। यहां धान का क्षेत्रफल घटा है, और गेहूं का क्षेत्रफल बढ़ा है। गेहूं की उपज दर में भी 3 गुनी वृद्धि हुई है और इसकी उत्पादकता 1950-95 के बीच 7 गुना बढ़ी है। हरित क्रांति का अनुकूल प्रभाव बिहार में गेहूं और मक्का पर पड़ा। धान की उपज और उत्पादन में मामूली वृद्धि हुई। दलहन का उपज क्षेत्र घटा है, लेकिन उपज दर बढ़ा है। उपज दर में अरहर में 3 गुणा, चना में 2 गुणा वृद्धि हुई। वाणिज्यिक फसलों के क्षेत्रफल
में कोई खास वृद्धि नहीं हुई है। आलू, जूट के क्षेत्रफल में तुलनात्मक रूप में अधिक वृद्धि हुई। आलू का उत्पादन 10 गुणा बढ़ा है। ईख का उत्पादन 3 गुणा तथा उपज दर 2.5 गुणा बढ़ा है। 1951-95 के बीच तंबाकू के उपजदर में 5 गुणा वृद्धि हुई, लेकिन क्षेत्रफल घटा है। कुल मिलाकर बिहार हरित क्रांति का फायदा उठाने में पिछड़ गया। इसके अनेक कारण है:—
(1) बिहार में भूमि सुधार नहीं होने के कारण 77 प्रतिशत जोत सीमांत किसानों के हैं, जिनके पास 30 प्रतिशत कृषि भूमि है। 4 हेक्टेयर से अधिक जमीन वाले लोग मात्र 4 प्रतिशत है और उनका 30 प्रतिशत भूमि पर कब्जा है। सीमांत किसान की बड़ी
संख्या होने से इनकी आर्थिक स्थिति या कृषि जनित आय को बढ़ाया नहीं जा सका।
(2) किसानों की क्रय शक्ति कम होने के कारण भ्ल्ट बीजों का प्रयोग भी कम हुआ। आज भी किसान पारंपरिक बीज का ही
उपयोग कर रहे हैं साथ ही रासायनिक उर्वरक का उपयोग बहुत कम करते हैं।
(3) बिहार के 28 जिले बाढ से प्रभावित हैं। यहां एक ही मौसम में कुछ क्षेत्र बाढ़ से प्रभावित रहते हैं और कुछ क्षेत्र सूखे से।
सोन-गंगा नदियों द्वारा- जहां 73 प्रतिशत भाग सिंचित है, वहीं मध्य दक्षिणी बिहार के मैदानी भागों में सिंचाई बहुत ही कम है। उत्तरी बिहार मिट्टी अच्छी होने के बावजूद बाढ़ के कारण अच्छी उत्पादन का प्रदर्शन नहीं कर पाता। कृषि को यहां यांत्रीकृत नहीं बनाया जा सका।
(4) जैव प्रौद्योगिकी पर आधारित खाद-बीज और कीटनाशक दवाओं का प्रयोग भली-भांति नहीं होता।
(5) सबसे बड़ी बात है कि बिहार की कृषि को उद्योगों से नहीं जोड़ा जा सका है। जिसके चलते किसानों को अधिक धन मिल पाता और अधिक फसल उपजाने के लिये प्रोत्साहन भी।