बेसिक शिक्षा से आप क्या समझते हैं? इसके उद्देश्यों का वर्णन कीजिए । What do you mean by Basic Education? Describe its objectives
उत्तर –
सभी व्यक्तियों का सर्वप्रथम ध्यान तत्कालीन शिक्षा पर दिया गया। इसमें सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान महात्मा गाँधी ने दिया । इस सम्बन्ध में उन्होंने ‘हरिजन’ नामक समाचार पत्र में लेख लिखने शुरु कर दिए। जिससे उन्होंने ब्रिटिश कालीन शिक्षा के दोष तथा राष्ट्रीय शिक्षा की नई रूपरेखा को जनता के सामने प्रस्तुत किया। उनका कहना था – “शिक्षा से मेरा अभिप्राय है बालक तथा मनुष्य में जो श्रेष्ठ है, उसे सम्पूर्ण कर प्रकाश में लाना” इसलिए मैं बालक की शिक्षा का प्रारम्भ हस्तकला की शिक्षा से करना चाहूँगा। गाँधी जी के इन विचारों से देश में एक नई शैक्षिक क्रान्ति का उदय हुआ।
उनका मानना था कि देश में 7 से 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था होनी चाहिए, यह शिक्षा सभी के लिए एक समान एवं देश की ग्रामीण जनता की आवश्यकताओं के अनुरूप हो। इसमें भाषा, गणित, स्वास्थ्य, कृषि और हस्तकौशलों की शिक्षा मातृभाषा के माध्यम से जाए। शिक्षा द्वारा बालकों को स्वावलम्बी बनाया जाए ताकि इस शिक्षा को प्राप्त करने के बाद बच्चे अपनी जीविका कमाने योग्य होने चाहिए।
- 7 वर्ष से 14 वर्ष तक के सभी बच्चों के लिए अनिवार्य एवं निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था की जाए।
- शिक्षा मातृभाषा के माध्यम से दी जाए।
- हस्तकला शिक्षा का केन्द्र हो, जिससे कुछ लाभ हो सके।
- पाठ्यक्रम बच्चों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर तैयार किया जाए।
- स्कूलों में किए गए उत्पादन द्वारा ही शिक्षकों को वेतन का भुगतान किया जाए।
इस समिति को सम्मेलन द्वारा पारित किए गए प्रस्तावों के आधार पर “बुनियादी शिक्षा” की योजना तैयार करने का कार्य सौपा गया। इस सम्बन्ध में समिति ने अपनी पहली रिपोर्ट दिसम्बर, 1937 में तथा दूसरी रिपोर्ट अप्रैल 1938 में पेश की।
पहली रिपोर्ट में समिति ने तत्कालीन शिक्षा के दोषों, सिद्धान्तों, उद्देश्यों, विद्यालयों के संगठन, प्रशासन एवं निरीक्षण आदि का विस्तार से वर्णन किया। दूसरी रिपोर्ट में समिति ने मिट्टी का काम, कृषि एवं लकड़ी का काम आदि हस्तकौशलों को पाठ्यक्रम में स्थान दिया।
समिति ने इस रिपोर्ट के बुनियादी तालीम” (Basic Education) को बेसिक शिक्षा का नाम दिया। फरवरी, 1938 में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ। अधिवेशन में इस रिपोर्ट को पेश कर, सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया । यह घोषणा भी की गई कि कांग्रेस शासित सभी प्रान्तों में इसे लागू किया जाएगा। इस योजना को वर्धा शिक्षा योजना, बुनियादी शिक्षा, बेसिक शिक्षा आदि कई नामों से जाना जाता है।
- यह शिक्षा 7 से 14 वर्ष तक के सभी बच्चों के लिए निःशुल्क एवं अनिवार्य होगी।
- पाठ्यक्रम में अंग्रेजी को कोई स्थान नहीं दिया जाएगा।
- शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होगा ।
- शिक्षा किसी आधारभूत शिल्प तथा उद्योग पर आधारित होगी।
- बालकों की योग्यता तथा स्थानीय आवश्यकताओं के आधार पर शिल्प का चुनाव किया जाए ।
- हस्त – शिल्प की शिक्षा इस प्रकार दी जाए जिससे बालक इस शिल्प के द्वारा जीविका का उपार्जन कर सके।
- शिल्प की शिक्षा के द्वारा बालक उसके आर्थिक, सामाजिक और वैज्ञानिक महत्त्व से भी परिचित हो ।
- बच्चों द्वारा बनाई गई वस्तुओं को बेचकर जो धन प्राप्त हो उससे विद्यालयों का व्यय पूरा किया जाए।
- आर्थिक उद्देश्य – बेसिक शिक्षा के महत्त्वपूर्ण आर्थिक उद्देश्य बच्चों के द्वारा बनाई गई वस्तुओं को बेचकर विद्यालय का व्यय पूरा करना तथा शिक्षा समाप्त करने के बाद बच्चों को किसी उद्योग में लगाकर धनोपार्जन करना है।
- सांस्कृतिकं उद्देश्य – – भारत में उस समय शिक्षा के द्वारा पाश्चात्य संस्कृति व आदर्शों का ज्ञान कराया जा रहा था । बेसिक शिक्षा में छात्रों को भारतीय संस्कृति तथा आदर्शों का ज्ञान कराकर उन्हें अपनी संस्कृति का संरक्षण करने के लिए प्रोत्साहित करना था ।
- नैतिक एवं चारित्रिक उद्देश्य – बेसिक शिक्षा का एक मुख्य उद्देश्य छात्रों का नैतिक विकास करना था। जिससे उनमें अच्छे चरित्र का विकास किया जा सके। ‘गाँधी जी ने लिखा है—- “मैने हृदय की संस्कृति या चारित्रिक निर्माण को सर्वोच्च स्थान दिया है। मेरा विश्वास है कि नैतिक शिक्षा सबको समान रूप से दी जाए” । इसमें इस बात का कोई मतलब नही है कि उनकी आयु एवं पालन-पोषण में कितना अन्तर है।
- अच्छा नागरिक बनाने का उद्देश्य – प्रत्येक नागरिक का यह कर्त्तव्य है कि वह अपने राष्ट्र के प्रति वफादार हो । वह राष्ट्र के साथ ही नियमों का पालन कर अपने कर्तव्यों का निर्वाह ईमानदारी से करे, अपने अधिकारों की रक्षा भी कर सके। इसलिए शिक्षा प्रणाली का यह प्रमुख उद्देश्य है कि बच्चों को ऐसी शिक्षा प्रदान की जाए जिससे उसमें अच्छे नागरिक बनने के गुण उत्पन्न हो ।
- सम्पूर्ण विकास का उद्देश्य – शिक्षा प्रणाली में केवल बालक के मानसिक विकास पर ही बल नहीं दिया जाना चाहिए बल्कि इसमें बच्चों के शारीरिक और आध्यात्मिक, विकास को भी शामिल किया जाना चाहिए बुनियादी शिक्षा का उद्देश्य बालक में शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास करना था। इसके सम्बन्ध में गाँधी जी के अनुसार, शिक्षा से मेरा अभिप्राय है- “बालक का सम्पूर्ण शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास करना है।”
- सर्वोदय समाज की स्थापना का उद्देश्य-मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। इसलिए शिक्षा के द्वारा बालक के अन्दर सामाजिकता का विकास होना चाहिए। हमारा समाज दो वर्गों में विभाजित है- धनी और निर्धन । सर्वोदय समाज की स्थापना का उद्देश्य इन दोनो वर्गों के बीच बिना किसी भेदभाव के एक दूसरे के साथ प्रेम से रहना, सहयोग करना, शोषण न करना, एक दूसरे की उन्नति में सहयोग करना था। बच्चों को ऐसे ही सर्वोदय समाज की स्थापना के लिए तैयार करने के उद्देश्य से उनमे बेसिक शिक्षा के द्वारा सहयोग प्रेम एवं आत्मविश्वास आदि की भावनाओं का विकास करने पर बल दिया गया ।
- अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा – “गाँधी जी ने स्पष्ट कहा कि “शिक्षा प्राप्त करना मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है और किसी भी बच्चे को शिक्षा से वंचित नहीं रखा जा सकता ।” इसलिए सबसे पहले 7 से 14 आयु वर्ग के सभी बच्चों के लिए अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था करने के लिए कहा गया ।
- शिक्षा का माध्यम मातृभाषा – इतिहास हमें बताता है कि किसी भी देश की संस्कृति का अस्तित्व मिटाने के लिए उसके साहित्य का अन्त कर दो, इसका अनुसरण करके अंग्रेज हमारे देश में अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बना रहे हैं। इसलिए बुनियादी शिक्षा में अंग्रेजी को कोई महत्त्व न देकर इसके स्थान पर मातृभाषा को शिक्षा का माध्यम बनाया गया।
- जनशिक्षा की व्यवस्था – बुनियादी शिक्षा का एक सिद्धान्त, शिक्षा को जनशिक्षा का रूप देना था । “गाँधी जी ने स्पष्ट किया कि “जन-साधारण की अशिक्षा भारत का पाप और कलंक है इसलिए इसका अन्त किया जाना अनिवार्य है।”
- हस्तकौशलों पर केन्द्रित शिक्षा व्यवस्था – बेसिक शिक्षा में हस्तकौशलों को शिक्षा का केन्द्र बनाया गया। इसके पीछे गाँधी जी का विचार था कि वे बच्चों को श्रम का महत्त्व बताकर, उन्हें स्वावलम्बी तथा जीविकोपार्जन करने योग्य बनाना चाहते थे। इसलिए हस्तशिल्प को केन्द्रीय स्थान प्रदान किया गया था ।
- आत्मनिर्भर बनाने की शिक्षा – गाँधी जी ने शिक्षा को आत्मनिर्भर बनाने की बात कही उन्होंने कहा- “सच्ची • शिक्षा स्वावलम्बी होनी चाहिए इसका अर्थ है कि शिक्षा से धन के अतिरिक्त वह सब धन भी मिल जाना चाहिए जो उसे प्राप्त करने में व्यय किया जाए।”
- शारीरिक श्रम – हस्तशिल्प के माध्यम से शिक्षा देने का उद्देश्य शारीरिक श्रम के प्रति बच्चों को जागरूक करना था जिससे बालकों में शारीरिक श्रम करने आदत का विकास हो जाए एवं शरीरिक और श्रम के प्रति वे स्वयं को असहज न समझे।
- हस्त-शिल्प- निम्न में से कोई एक- कृषि, कताई-बुनाई, लकड़ी का काम, मिट्टी का काम, चमड़े का काम, पुस्तक कला, मत्स्य पालन, बागवानी, स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार कोई अन्य हस्तशिल्प ।
- मातृभाषा ।
- गणित (अंकगणित, बीजगणित और रेखागणित)।
- सामाजिक विषय ( इतिहास, भूगोल और नागरिक शास्त्र)।
- सामान्य विज्ञान (जीव विज्ञान, वनस्पति विज्ञान, भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, प्रवृत्ति अध्ययन और गृहविज्ञान)।
- कला – संगीत और चित्रकला |
- हिन्दी – (जहाँ हिन्दी मातृभाषा नहीं है)
- शारीरिक शिक्षा – व्यायाम और खेलकूद
- आचरण शिक्षा (नैतिक शिक्षा और सामाजिक शिक्षा ) ।
बेसिक शिक्षा के पाठ्यचर्या की विशेषताएँ (Characteristics of Curriculum of Basic Education)
- बालक एवं बालिकाओं के लिए एक समान पाठ्यचर्या की व्यवस्था है। पाँचवी कक्षा तक सह शिक्षा है।
- धार्मिक शिक्षा को पाठ्यचर्या में स्थान न देकर केवल नैतिक शिक्षा को शिक्षा में स्थान देना ।
- बालिकाओं के लिए गृहविज्ञान की शिक्षा की व्यवस्था |
- अंग्रेजी को पाठ्यक्रम में कोई स्थान न देना।
- शिक्षा का माध्यम मातृभाषा है। क्योंकि राष्ट्रभाषा हिन्दी का अध्ययन सभी बालकों के लिए अनिवार्य है ।
- पाठ्यक्रम में संस्कृत, वाणिज्य और आधुनिक भारतीय भाषाओं की शिक्षा की व्यवस्था है।
- पाँचवी कक्षा के बाद बालक और बालिकाओं के लिए पृथक-पृथक विद्यालयों की व्यवस्था है।
- इस शिक्षा को प्रत्येक बालक के लिए अनिवार्य एवं आधारभूत शिक्षा स्वीकार किया गया है।
- यह शिक्षा भारत की सभ्यता, संस्कृति और शिक्षा व्यवस्था का आधार मानी गई है ।
- यह शिक्षा भारतीयों की आधारभूत सामान्य सम्पत्ति है।
- यह शिक्षा भारतीयों की आधारभूत आवश्यकताओं और रुचियों में घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित करती है ।
- यह वास्तविक जीवन के उपयोगी व्यवसायों से सम्बन्धित है।
- यह शिक्षा हस्तशिक्षा के द्वारा दी जाती है जिससे बालक अपनी जीविका का निर्वाह कर सके।
- यह शिक्षा भारतीयों को अपने पर्यावरण को समझने और उसमें प्रयोग करने में सहायता करती है ।
बेसिक शिक्षा के गुण (Merits of Basic Education)
- क्रिया प्रधान होना- बेसिक शिक्षा क्रिया प्रधान है अतः इसमें बालक को जो भी ज्ञान प्राप्त होता है वह स्वयं करके होता है। इसलिए इस विधि द्वारा प्राप्त ज्ञान स्थायी हो जाता है ।
- आत्मनिर्भर होना- सरकार के पास अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था करने के लिए पर्याप्त धन नहीं था, बेसिक शिक्षा में हस्त- कौशलों के माध्यम से बनी हुई वस्तुओं को बेचकर उनसे स्कूलों का व्यय निकालना बड़ा उपयोगी विचार है ।
- भावी जीवन के लिए तैयार करना – बेसिक शिक्षा में बच्चों को कृषि, पशुपालन, कताई, बुनाई आदि की शिक्षा अनिवार्य रूप से प्रदान की जाने की व्यवस्था की गई थी जिससे बालक को भावी जीवन के लिए तैयार करने में मदद मिली ।
- उपयोगी पाठ्यक्रम – बेसिक शिक्षा का जो पाठ्यक्रम था वह भारत की तत्कालीन परिस्थितियों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया था। इसमें बालक के सर्वागीण विकास पर बल दिया गया ।
- जन- शिक्षा की व्यवस्था – अनेकता में एकता हमारे देश की विशेषता है। यहाँ पर सभी जातियों के व्यक्तियों को समान माना जाता है।
बेसिक शिक्षा की व्यवस्था प्रत्येक जाति और प्रत्येक धर्म के बालकों के लिए समान रूप से की गई जिससे जन शिक्षा की भावना को बल मिला ।
- बालक का सम्पूर्ण विकास – बेसिक शिक्षा में बालक के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, नैतिक, सांस्कृतिक, चारित्रिक एवं व्यावसायिक विकास पर बल दिया गया है जिससे बालक का सर्वांगीण विकास हुआ।
- शिक्षा का माध्यम मातृभाषा – बेसिक शिक्षा में शिक्षा का माध्यम मातृभाषा को बनाया गया जिससे भारत में अंग्रेजी को जो स्थायित्व मिल गया था, वह समाप्त हो गया और भारतीय भाषाओं के माध्यम से शिक्षा प्रदान की जाने लगी ।
- शारीरिक श्रम की भावना का विकास – जो व्यक्ति अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त कर लेते थे, अंग्रेज सरकार उन्हें पद पर आसीन कर देती थी जिसके कारण जो लोग शारीरिक श्रम करते थे, उन्हें निम्न समझा जाने लगा।
बेसिक शिक्षा में सभी बालकों को हस्त कौशलों की शिक्षा एवं समाज सेवा करना अनिवार्य कर दिया गया, जिससे वर्ग भेद को समाप्त करने का अवसर मिला।
- घर, विद्यालय व समाज में सामंजस्य – बेसिक शिक्षा के द्वारा घर, विद्यालय और समाज के बीच जो अन्तर था, उस अन्तर को समाप्त किया गया। विद्यालयों में बालकों को समाज की शिक्षा प्रदान करना, समाज के उद्योगों, उत्सव एवं अन्य क्रियाओं को भी शामिल किया गया इससे बालक अपने को घर, विद्यालय और समाज के निकट अनुभव करता था ।
- बेसिक शिक्षा योजना नगरीय बच्चों की आवश्यकताओं की जगह ग्रामों के बच्चों के लिए अधिक उपयुक्त थी।
- यह शिक्षा केवल प्राथमिक स्तर तक थी इसमें यह स्पष्ट नही किया गया था कि माध्यमिक और उच्च शिक्षा की पाठ्यचर्या में इसे कैसे शामिल किया जाए ।
- इस शिक्षा में सबसे ज्यादा हस्त कौशलों की शिक्षा पर बल दिया गया, इसे पाठ्यचर्या का केन्द्रीय विषय बनाया गया। सभी विषयों की शिक्षा इसके माध्यम से ही देने के लिए कही गई। ऐसा लगता है कि भारत हस्त कौशलों का ही देश है।
- इस शिक्षा में कच्चे माल की बहुत बर्बादी हुई छोटे-छोटे बच्चो से यह अपेक्षा करना कि वे ऐसे उत्पाद बनाएं जो बाजार में बेचे जा सके, केवल कोरी कल्पना थी ।
- हस्त कौशलो के माध्यम से शिक्षा देने से समय और शक्ति दोनो का अपव्यय हुआ।
- बेसिक शिक्षा के लिए जो शिक्षण विधियाँ प्रयोग करने के लिए कही गई वो मनोवैज्ञानिक नही थी ।
- इस शिक्षा का अभिभावकों ने भी समर्थन नही किया । उनका मानना था कि हम बच्चों को स्कूल में पढ़ने भेजते है न कि कताई-बुनाई करने ।
- इस शिक्षा से बालकों के मानसिक और व्यावसायिक प्रशिक्षण में किसी प्रकार का सन्तुलन स्थापित नही हुआ।
- यह शिक्षा हस्तशिल्प के द्वारा बालक का सर्वांगीण विकास करने और न उसे सामान्य शिक्षा प्रदान करने में सफल हुई।
- बालकों द्वारा बनाई गई वस्तुओं से शिक्षकों के वेतन का व्यय नही निकल सकता है ।
- इस शिक्षा में धार्मिक शिक्षा को कोई स्थान नही दिया गया केवल नैतिक शिक्षा को स्थान दिया गया यद्यपि कोई भी धर्म द्वेष की शिक्षा नही देता, फिर भी गाँधी जी को भय था कि धार्मिक शिक्षा के नाम पर कही द्वेष न फैल जाए ।
स्कूलों में बेसिक शब्द का केवल प्रयोग हो रहा है। न बेसिक पाठ्यचर्या है और न ही हस्तकौशलों के शिक्षण की व्यवस्था जो बच्चे बेसिक स्कूलों में पढ़ते हैं। वे अन्य स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों से अपने को हीन समझते हैं, क्योंकि कहाँ साधनविहीन बेसिक स्कूल और कहाँ साधन सम्पन्न पब्लिक स्कूल
अंततः यह कहना यथार्थ से दूर न होगा कि बेसिक शिक्षा योजना देखने में तो उपयुक्त लगती है परन्तु इसका प्रयोग असफल रहा। इस शिक्षा को देने का उद्देश्य छात्रों को हस्तकौशलों एवं उद्योगों में आत्म-निर्भर बनाना था ताकि बालक अपने भावी जीवन के लिए तैयार हो सकें। परन्तु ऐसा नहीं हुआ केवल समय और शक्ति दोनों की बर्बादी हुई । श्रम का महत्व भी नहीं बढ़ा और वर्ग-भेद भी समाप्त नहीं हुआ। कुछ उपयोगी बातें भी है— मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा करके सीखना। चूँकि बेसिक विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चे अन्य स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों से अपने को हीन समझते हैं। इसलिए इनमें समय व परिस्थिति के अनुसार सुधार आवश्यक है । ”
आचार्य कृपलानी के शब्दों में, “बेसिक शिक्षा की योजना शिक्षा के क्षेत्र में गाँधी जी की अन्तिम मनः सृष्टि है।