राष्ट्रसंघ
राष्ट्रसंघ
प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध अत्यधिक विनाशकारी थे। इन युद्धों में धन-जन की असीम क्षति हुई। मानव समाज एवं विश्व पर
इसका गहरा प्रभाव पड़ा। इसलिए, विश्व में शांति की स्थापना एवं विनाशकारी युद्ध को रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं
की आवश्यकता पड़ी। विश्वशांति के लिए प्रयास प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद ही आरंभ हो गया। इस प्रयास में पहली कड़ी थी 1920 में राष्ट्रसंघ (League of Nations) की स्थापना। दुर्भाग्यवश राष्ट्रसंघ अपने उद्देश्यों में सफल नहीं हो सका। यह द्वितीय विश्वयुद्ध को नहीं रोक सका। अतः, द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात पुनः विश्वशांति-स्थापना के प्रयास किए गए। इसी का परिणाम था 1945 में संयुक्त राष्ट्र संघ (United Nations Organisation- UNO) अथवा संयुक्त राष्ट्र (UN) की स्थापना। यह संस्था अभी भी कार्यरत है।
राष्ट्रसंघ
प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद अंतरराष्ट्रीय विवादों के शांतिपूर्ण निष्पादन एवं विश्वशांति की स्थापना के उद्देश्य से
राष्ट्रसंघ (League of Nations) की स्थापना की गई। सामान्यतः, यह माना जाता है कि राष्ट्रसंघ संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति वुडरो विल्सन (Woodrow Wilson) के ‘दिमाग की उपज’ (brainchild) था। 1918 में उन्होंने विश्वशांति की स्थापना के लिए सुप्रसिद्ध चौदह-सूत्री योजना (Fourteen Points Programme) का प्रतिपादन किया। इसके चौदहवें सूत्र में विश्वशांति को बनाए रखने के लिए राष्ट्रों के संगठन की बात कही गई। निःसंदेह, राष्ट्रसंघ की स्थापना में अमेरिकी राष्ट्रपति की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी, परंतु प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान ही अनेक राजनीतिज्ञ इस प्रकार के संगठन की स्थापना पर बल दे रहे थे। ऐसे राजनीतिज्ञों में प्रमुख थे—इंगलैंड के रॉबर्ट सेसिल (Robert Cecil), दक्षिण अफ्रीका के जान स्मट्स (Jan Smuts) तथा फ्रांस के लियो बुर्जियो (Leon Bourgeois)। इन सबों के सम्मिलित प्रयासों से 10 जनवरी 1920 को जिस दिन वर्साय की संधि व्यवहार में आई, राष्ट्रसंघ भी अस्तित्व में आया।
राष्ट्रसंघ की स्थापना के उद्देश्य
राष्ट्रसंघ की स्थापना के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित थे-
(i) अंतरराष्ट्रीय शांति-सुरक्षा की व्यवस्था करना, (ii) अंतरराष्ट्रीय सहयोग को प्रोत्साहन देना, (iii) अंतरराष्ट्रीय झगड़ों एवं मतभेदों को शांतिपूर्वक सुलझाने का प्रयास करना, (iv) शस्त्रीकरण की होड़ को समाप्त कर युद्धोन्माद को दूर करना तथा (v) पेरिस शांति सम्मेलन की संधियों को कार्यान्वित करवाना। युद्ध से उत्पन्न आर्थिक-सामाजिक समस्याओं को दूर करना भी राष्ट्रसंघ का उद्देश्य था। लीग कॉवनेंट (League Covenant) अथवा राष्ट्रसंघ की नियमावली को पेरिस शांति सम्मेलन द्वारा की गई प्रत्येक संधि से जोड़ा गया।
राष्ट्रसंघ के सदस्य-राष्ट्र-आरंभ में राष्ट्रसंघ का सदस्य प्रथम विश्वयुद्ध में विजयी मित्र राष्ट्रों-इंगलैंड, फ्रांस, सोवियत संघ
जैसे राष्ट्रों को ही बनाया गया। कुछ वैसे राष्ट्र भी इसके सदस्य बने जो युद्ध में तटस्थ रहे थे। राष्ट्रसंघ की स्थापना के समय
सदस्य-राष्ट्रों की संख्या 42 थी। आगे चलकर सदस्य-राष्ट्रों की संख्या बढ़कर 60 हो गई। सदस्य-राष्ट्र के रूप में राष्ट्रसंघ में
उन्हीं राष्ट्रों को सम्मिलित किया गया जो स्वतंत्र एवं संप्रभु थे तथा जिनकी सदस्यता के प्रस्ताव का अनुमोदन राष्ट्रसंघ के
दो-तिहाई सदस्यों ने किया।
राष्ट्रसंघ का गठन
राष्ट्रसंघ को सुचारु रूप से चलाने के लिए वृहत व्यवस्था की गई। राष्ट्रसंघ की पहली धारा में सदस्य-राष्ट्रों की सूची एवं दूसरी
धारा में इसके प्रमुख अंगों का उल्लेख किया गया। इसके प्रमुख अंग थे—(i) असेंबली (Assembly), (ii) कौंसिल (Council),
(iii) सचिवालय (Secretariat) ) तथा (iv) अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (Permanent Court of International Justice)। इनके
अतिरिक्त विशिष्ट विषयों से संबद्ध अनेक सहायक संगठन एवं समितियाँ स्थापित की गई जिनमें सबसे अधिक विख्यात है-अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organisation-ILO)। इनके अतिरिक्त संरक्षण कमीशन (Mandate
Commission), सैनिक कमीशन (Military Commission) तथा निरस्त्रीकरण कमीशन (Disarmament Commission) भी गठित की गई। राष्ट्रसंघ का मुख्यालय स्विट्जरलैंड के जेनेवा नगर में स्थापित किया गया।
(i) असेंबली-यह राष्ट्रसंघ का सबसे विशाल और महत्त्वपूर्ण अंग था। इसमें राष्ट्रसंघ के सभी सदस्य राष्ट्रों को सम्मिलित
किया गया। राष्ट्रसंघ की स्थापना के समय असेंबली में 42 सदस्य-राष्ट्र थे। बाद में इनकी संख्या बढ़ती-घटती रही। प्रत्येक
सदस्य-राष्ट्र को एक मत देने का अधिकार था। इसकी वार्षिक बैठक होती थी। सभा की कार्यवाही को संचालित करने के लिए
एक सभापति और एक उपसभापति का निर्वाचन होता था। असेंबली का कार्य नीति-निर्धारण करना था। साथ ही, यह
अन्य महत्त्वपूर्ण कार्य भी करती थी। नए राज्यों को सदस्यता प्रदान करना, राष्ट्रसंघ के बजट को पारित करना तथा राष्ट्रसंघ
के अन्य संगठनों के सदस्यों का निर्वाचन करना भी असेंबली की ही जिम्मेदारी थी। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीशों एवं
महासचिव की नियुक्ति भी यही करती थी। यह शांति सम्मेलन द्वारा की गई संधियों में संशोधन भी प्रस्तुत कर सकती थी। यह
विश्वशांति को प्रभावित करनेवाले किसी भी विषय पर विचार-विमर्श कर सकती थी। असेंबली में सभी निर्णय एकमत होकर ही लिए जा सकते थे। सदन की कार्यवाही फ्रेंच एवं इंगलिश भाषा में करने की व्यवस्था की गई।
(ii) कौंसिल-राष्ट्रसंघ का दूसरा महत्त्वपूर्ण अंग कौंसिल थी। यह असेंबली से छोटी संस्था थी। यह राष्ट्रसंघ की कार्यपालिका
के समान थी। इसकी बैठक वर्ष में कम-से-कम तीन बार होती थी। इसमें दो प्रकार के सदस्य थे-स्थायी और अस्थायी।
आरंभ में इंगलैंड, फ्रांस, इटली और जापान स्थायी सदस्य बनाए गए। अमेरिका ने राष्ट्रसंघ में सम्मिलित होने से इनकार
कर दिया था। बाद में जर्मनी भी स्थायी सदस्य बना। नौ अस्थायी सदस्यों का निर्वाचन तीन वर्षों के लिए असेंबली करती थी।
कौंसिल में भी सभी निर्णय एकमत होकर लिए जाते थे। कौंसिल का मुख्य कार्य अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक समस्याओं एवं झगड़ों
का निपटारा करना था। कौंसिल असेंबली से अधिक प्रभावी थी। इसके अतिरिक्त निरस्त्रीकरण की व्यवस्था करना, अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों का आयोजन करना, आक्रमणकारी राष्ट्र के विरुद्ध सैनिक कार्रवाई अथवा आर्थिक पाबंदी लगाने का
निर्णय लेना, सदस्य-राष्ट्रों की प्रादेशिक अखंडता की रक्षा करना तथा असेंबली द्वारा लिए गए निर्णयों को लागू करवाना कौसिल
के प्रमुख कार्य थे। यह महासचिव का निर्वाचन करती थी। साथ ही, जर्मनी के सार तथा डांजिंग क्षेत्रों का प्रशासन, जिसमें अल्पसंख्यक थे. की जिम्मेदारी भी इसी की थी।
(iii) सचिवालय-राष्ट्रसंघ के कार्यों की देखभाल सचिवालय करता था। इसका मुख्यालय जेनेवा में था। सचिवालय का प्रधान महासचिव कहलाता था। महासचिव का निर्वाचन कौसिल करती थी। इसकी असेंबली से स्वीकृति भी आवश्यक थी। महासचिव सचिवालय का सर्वोच्च पदाधिकारी था। उसके अधीन अन्य अनेक कर्मचारी भी थे जो दफ्तर का कार्य सँभालते थे। राष्ट्रसंघ के सभी कागजी कार्य सचिवालय द्वारा ही किए जाते थे यह राष्ट्रसंघ के विचारार्थ विविध समस्याओं पर सूचना प्राप्त करता था, असेंबली एवं कौसिल को भेजे जानेवाले कार्यक्रमों का मसविदा तैयार करता था, बैठकें निर्धारित करता था तथा असेंबली एवं कौसिल में लिए गए निर्णयों का विवरण तैयार कर उनका प्रकाशन करता था।
(iv) अंतरराष्ट्रीय न्यायालय-इसका मुख्य कार्य विभिन्न राष्ट्रों के पारस्परिक झगड़ों को शांतिपूर्वक सुलझाना था। अंतरराष्ट्रीय
न्यायालय हॉलैंड (नीदरलैंड) के द हेग नगर में स्थापित किया गया। न्यायालय में 15 न्यायाधीश थे। ये न्यायाधीश विभिन्न
सदस्य-राष्ट्रों से नियुक्त किए जाते थे। न्यायालय का मुख्य कार्य अंतरराष्ट्रीय विवादों का कानूनी पक्ष देखना था। अंतरराष्ट्रीय संधियों का स्पष्टीकरण करना, कानूनी प्रश्नों को देखना, अंतरराष्ट्रीय संधियों के उल्लंघन से संबद्ध कानूनी पक्ष की व्याख्या करना आदि अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का मुख्य दायित्व था। यह उन सभी विषयों पर निर्णय देता था जो इसके समक्ष प्रस्तुत किए जाते थे।
राष्ट्रसंघ के प्रमुख अंग
(i) कौंसिल
(ii) असेंबली
(iii) सचिवालय
(iv) अंतरराष्ट्रीय न्यायालय
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (सहायक संगठन)
राष्ट्रसंघ के सहायक संगठनों में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन था। समाजवादी तथा मजदूर आंदोलन
के विकास तथा 1917 की बोल्शेविक क्रांति से प्रभावित होकर इसका गठन किया गया। इसकी स्थापना का उद्देश्य श्रमिकों की स्थिति में सुधार लाना था। संगठन ने श्रमिकों के कार्य करने के घंटे, उनकी मजदूरी तथा उनके कल्याण के लिए सराहनीय कार्य किए। फ्रांसीसी समाजवादी अलबर्ट थॉमस के नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने श्रमिकों की समस्याओं को
दूर करने। का प्रयास किया।
राष्ट्रसंघ के तत्त्वावधान में अन्य विविध विषयों से संबद्ध अनेक समितियाँ भी बनाई गई। इनमें प्रमुख अल्पसंख्यकों, निरस्त्रीकरण, स्वास्थ्य, वित्त, आर्थिक व्यवस्था, बाल-कल्याण, स्त्रियों के अधिकार से संबद्ध समितियाँ। इन समितियों के कार्य सराहनीय थे।