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विकास की अवधारणा एवं इसका अधिगम से सम्बन्ध

विकास की अवधारणा एवं इसका अधिगम से सम्बन्ध

 

विकास की अवधारणा एवं इसका अधिगम से सम्बन्ध
Concept of Development and its Relationship with Learning
CTET परीक्षा के विगत वर्षों के प्रश्न-पत्रों का विश्लेषण करने से यह ज्ञात
होता है कि परीक्षा की दृष्टि से यह अध्याय अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इस
अध्याय से वर्ष 2011 में 1 प्रश्न, 2012 में 2 प्रश्न, 2013 में
1 प्रश्न, 2014 में 1 प्रश्न, 2015 में 6 प्रश्न तथा वर्ष 2016 में 4 प्रश्न पूछे
गए हैं। पूछे गए प्रश्न प्राय: विकास की अवधारणा, विकास के आयाम, वृद्धि
व विकास का अधिगम से सम्बन्ध पर आधारित थे।
                             1.1 विकास की अवधारणा
विकास जीवनपर्यन्त चलने वाली एक निरन्तर प्रक्रिया है। विकास की प्रक्रिया में बालक का
शारीरिक (Physical), क्रियात्मक (Motor), संज्ञानात्मक (Cognitive) भाषागत्
(Language), संवेगात्मक (Emotional) एवं सामाजिक (Social) विकास होता है।
बालक में आयु के साथ होने वाले गुणात्मक एवं परिमाणात्मक परिवर्तन सामान्यतया देखे
जाते हैं। बालक में क्रमबद्ध रूप से होने वाले सुसंगत परिवर्तन की क्रमिक श्रृंखला को
(Sequence Chain) ‘विकास’ कह सकते हैं।
क्रमबद्ध एवं ‘सुसंगत’ होना इस बात को संकेतित करता है कि बालक के अन्दर अब तक
संघटित गुणात्मक परिवर्तन तथा उसमें आगे होने वाले परिवर्तनों में एक निश्चित सम्बन्ध
है। आगे होने वाले परिवर्तन अब तक के परिवर्तनों की परिपक्वता पर निर्भर करते हैं।
अरस्तू के अनुसार, “विकास आन्तरिक एवं बाह्य कारणों से व्यक्ति में परिवर्तन है।”
                                         शिक्षाशास्त्र
                         1.2 विकास के अभिलक्षण
विकास एक जीवनपर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है, जो गर्भधारण
से लेकर मृत्युपर्यन्त होती रहती है। मनौवैज्ञानिकों ने विकास के
विभिन्न अभिलक्षणों (Characteristics) को बताया है, जो इस
प्रकार हैं―
• विकासात्मक परिवर्तन प्रायः व्यवस्थित प्रगतिशील और
नियमित होते हैं। सामान्य से विशिष्ट और सरल से जटिल
और एकीकृत से क्रियात्मक स्तरों की ओर अग्रसर होने के
दौरान प्रायः यह एक क्रम का अनुसरण करते हैं।
• विकास बहु-आयामी (Multi-dimensional) होता है अर्थात्
कुछ क्षेत्रों में यह बहुत तीव्र वृद्धि को दर्शाता है, जबकि कुछ
अन्य क्षेत्रों में धीमी गति से होता है।
• विकास बहुत ही लचीला होता है इसका तात्पर्य है कि एक
ही व्यक्ति अपनी पिछली विकास दर की तुलना में किसी
विशिष्ट क्षेत्र में अपेक्षाकृत आकस्मिक रूप से अच्छा सुधार
प्रदर्शित कर सकता है। एक अच्छा परिवेश शारीरिक शक्ति
अथवा स्मृति और बुद्धि के स्तर में अनापेक्षित सुधार ला
सकता है।
• विकासात्मक परिवर्तनों में प्रायः परिपक्वता में क्रियात्मकता
(Functional) के स्तर पर उच्च स्तरीय वृद्धि देखने में
आती है, उदाहरणस्वरूप शब्दावली के आकार और जटिलता
में वृद्धि, परन्तु इस प्रक्रिया में कोई कमी अथवा क्षति भी
निहित हो सकती है; जैसे-हड्डियों के घनत्व में कमी या
वृद्धावस्था में याददाश्त (स्मृति) का कमजोर होना।
• विकासात्मक परिवर्तन ‘मात्रात्मक’ (Quantitative) हो
सकते हैं। जैसे–आयु बढ़ने के साथ कद बढ़ना अथवा
‘गुणात्मक’ जैसे नैतिक मूल्यों का निर्माण।
• किशोरावस्था के दौरान शरीर के साथ-साथ संवेगात्मक,
सामाजिक और संज्ञानात्मक क्रियात्मकता में भी तेजी से
परिवर्तन दिखाई देते हैं।
• विकास प्रासंगिक हो सकता है। यह ऐतिहासिक, परिवेशीय
और सामाजिक-सांस्कृतिक घटकों से प्रभावित हो
सकता है।
• विकासात्मक परिवर्तनों की दर अथवा गति में उल्लेखनीय
‘व्यक्तिगत अन्तर’ हो सकते हैं। यह अन्तर आनुवंशिक
घटकों अथवा परिवेशीय प्रभावों के कारण हो सकते हैं। कुछ
बच्चे अपनी आयु की तुलना में अत्यधिक पूर्व-चेतन
(जागरूक) हो सकते हैं, जबकि कुछ बच्चों में विकास की
गति बहुत धीमी होती है। उदाहरणस्वरूप, यद्यपि एक औसत
बच्चा 3 शब्दों के वाक्य 3 वर्ष की आयु में बोलना शुरू कर
देता है, परन्तु कुछ ऐसे बच्चे भी हो सकते हैं, जो 2 वर्ष के
होने से बहुत पहले ही ऐसी योग्यता प्राप्त कर लेते हैं।
                         1.3 विकास के आयाम
मनोवैज्ञानिकों ने अध्ययन की सुविधा के दृष्टिकोण से विकास को
निम्नलिखित भागों में बाँटा है
                             1.3.1 शारीरिक विकास
शरीर के बाह्य परिवर्तन जैसे-ऊँचाई, शारीरिक अनुपात में वृद्धि इत्यादि जिन्हें
स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, किन्तु शरीर के आन्तरिक अवयवों के
परिवर्तन बाह्य रूप से दिखाई तो नहीं पड़ते, किन्तु शरीर के भीतर इनका
समुचित विकास होता रहता है।
• प्रारम्भ में शिशु अपने हर प्रकार के कार्यों के लिए दूसरों पर निर्भर रहता
है, धीरे-धीरे विकास की प्रक्रिया के फलस्वरूप वह अपनी आवश्यकताओं
की पूर्ति में सक्षम होता जाता है।
• शारीरिक विकास पर बालक के आनुवंशिक गुणों का प्रभाव देखा जा सकता
है। इसके अतिरिक्त बालक के परिवेश एवं उसकी देखभाल का भी उसके
शारीरिक विकास पर प्रभाव पड़ता है। यदि बच्चे को पर्याप्त मात्रा में पोषक
आहार उपलब्ध नहीं हो रहा है, तो उसके विकास की सामान्य गति की आशा
कैसे की जा सकती है?
• बालक की वृद्धि एवं विकास के बारे में शिक्षकों को पर्याप्त जानकारी
इसलिए भी रखना अनिवार्य है, क्योकि बच्चों की रुचियाँ, इच्छाएँ,
दृष्टिकोण एवं एक तरह से उसका पूर्ण व्यवहार शारीरिक वृद्धि एवं
विकास पर ही निर्भर करता है।
• बच्चों की शारीरिक वृद्धि एवं विकास के सामान्य ढाँचे से परिचित होकर
अध्यापक यह जान सकता है कि एक विशेष आयु स्तर पर बच्चों से क्या
आशा की जा सकती है?
                                   1.3.2 मानसिक विकास
संज्ञानात्मक या मानसिक विकास (Cognitive or Mental Development)
से तात्पर्य बालक की उन सभी मानसिक योग्यताओं एवं क्षमताओं में वृद्धि
और विकास से है, जिनके परिणामस्वरूप विभिन्न प्रकार की समस्याओं को
सुलझाने में अपनी मानसिक शक्तियों का पर्याप्त उपयोग कर पाता है।
• कल्पना करना, स्मरण करना, विचार करना, निरीक्षण करना,
समस्या समाधान करना, निर्णय लेना इत्यादि की योग्यता संज्ञानात्मक
विकास के फलस्वरूप ही विकसित होते हैं।
• जन्म के समय बालक में इस प्रकार की योग्यता का अभाव होता है,
धीरे-धीरे आयु बढ़ने के साथ-साथ उसमें मानसिक विकास की गति भी
बढ़ती रहती है।
• संज्ञानात्मक विकास के बारे में शिक्षकों को पर्याप्त जानकारी इसलिए होनी
चाहिए, क्योंकि इसके अभाव में वह बालकों की इससे सम्बन्धित
समस्याओं का समाधान नहीं कर पाएगा।
• यदि कोई बालक मानसिक रूप से कमजोर है, तो इसके क्या कारण हैं,
यह जानना उसके उपचार के लिए आवश्यक है।
• विभिन्न अवस्थाओं और आयु-स्तर पर बच्चों की मानसिक वृद्धि और
विकास को ध्यान में रखते हुए उपयुक्त पाठ्य-पुस्तके तैयार करने में भी
इससे सहायता मिल सकती है।
                            1.3.3 सांवेगिक विकास
संवेग, जिसे भाव भी कहा जाता है का अर्थ होता है ऐसी अवस्था जो व्यक्ति
के व्यवहार को प्रभावित करती है। भय, क्रोध, घृणा, आश्चर्य, स्नेह, खुशी
इत्यादि संवेग के उदाहरण हैं। बालक में आयु बढ़ने के साथ ही इन संवेगों
का विकास भी होता रहता है।
• संवेगात्मक विकास (Emotional Development) मानव वृद्धि एवं विकास
का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है। बालक का संवेगात्मक व्यवहार उसकी शारीरिक
वृद्धि एवं विकास को ही नहीं, बल्कि बौद्धिक, सामाजिक एवं नैतिक विकास
को भी प्रभावित करता है।
• बालक के सन्तुलित विकास में उसके संवेगात्मक विकास की अहम
भूमिका होती है।
• बालक के संवेगात्मक विकास पर पारिवारिक वातावरण भी बहुत प्रभाव
डालता है।
• विद्यालय के परिवेश और क्रिया-कलापों को उचित प्रकार से संगठित कर
अध्यापक बच्चों के संवेगात्मक विकास में भरपूर योगदान दे सकते हैं।
                                 1.3.4 क्रियात्मक विकास
क्रियात्मक विकास (Motor Development) का अर्थ होता है–व्यक्ति की
कार्य करने की शक्तियों, क्षमताओं या योग्यताओं का विकास।
क्रियात्मक शक्तियों, क्षमताओं या योग्यताओं का अर्थ होता है ऐसी शारीरिक
गतिविधियाँ या क्रियाएँ जिनको सम्पन्न करने के लिए मांसपेशियों एवं
तन्त्रिकाओं की गतिविधियों के संयोजन की आवश्यकता होती है;
जैसे–चलना, बैठना इत्यादि।
• एक नवजात शिशु ऐसे कार्य करने में अक्षम होता है। शारीरिक वृद्धि एवं
विकास के साथ ही उम्र बढ़ने के साथ उसमें इस तरह की योग्यताओं का
भी विकास होने लगता है।
• इसके कारण बालक को आत्मविश्वास अर्जित करने में भी सहायता मिलती
है। पर्याप्त क्रियात्मक विकास के अभाव में बालक में विभिन्न प्रकार के
कौशलों के विकास में बाधा पहुँचती है।
• क्रियात्मक विकास के स्वरूप एवं उसकी प्रक्रिया का ज्ञान होना शिक्षकों के
लिए आवश्यक है।
• इसी ज्ञान के आधार पर ही वह बालक में विभिन्न कौशलों का विकास
करवाने में सहायक हो सकता है।
• जिन बालकों में क्रियात्मक विकास सामान्य से कम होता है, उनके
समायोजन एवं विकास हेतु विशेष कार्य करने की आवश्यकता होती है।
                                1.3.5 भाषायी विकास
भाषा के विकास को एक प्रकार से संज्ञानात्मक (भावनात्मक) विकास माना
जाता है।
• भाषा के माध्यम से बालक अपने मन के भावों, विचारों को एक-दूसरे के
सामने रखता है एवं दूसरे के भावों, विचारों एवं भावनाओं को समझता है।
• भाषायी ज्ञान के अन्तर्गत बोलकर विचारों को प्रकट करना, संकेत के
माध्यम से अपनी बात रखना तथा लिखकर अपनी बातों को रखना इत्यादि
को सम्मिलित किया जाता है।
• बालक 6 माह से 1 वर्ष के बीच कुछ शब्दों को समझने एवं बोलने लगता है।
• 3 वर्ष की अवस्था में वह कुछ छोटे वाक्यों को बोलने लगता है। 15 से
16 वर्षों के बीच काफी शब्दों की समझ विकसित हो जाती है।
• भाषायी विकास का क्रम एक क्रमिक विकास होता है। इसके माध्यम से कौशल
में वृद्धि होती है।
                                1.3.6 सामाजिक विकास
सामाजिक विकास (Social Development) का शाब्दिक अर्थ होता है-समाज के
अन्तर्गत रहकर विभिन्न पहलुओं को सीखना। समाज के अन्तर्गत ही चरित्र
निर्माण, अच्छा व्यवहार (सद्गुण) तथा जीवन से सम्बन्धित व्यावहारिक शिक्षा
इत्यादि का विकास होता है।
. बालकों के विकास की प्रथम पाठशाला परिवार को माना गया है, तत्पश्चात्
समाज को। सामाजिक विकास के माध्यम से बालकों का जुड़ाव व्यापक हो
जाता है।
• सम्बन्धों के दायरे में वृद्धि अर्थात् माता-पिता एवं भाई-बहन के अतिरिक्त
दोस्तो/मित्रों से जुड़ना।
• सामाजिक विकास के माध्यम से बालकों में सांस्कृतिक, धार्मिक तथा
सामुदायिक विकास इत्यादि की भावनाएँ उत्पन्न होती हैं।
• बालकों के मन में आत्म-सम्मान, स्वाभिमान तथा विचारधारा का जन्म होता है।
• बालक समाज के माध्यम से ही अपने आदर्श व्यक्तियों का चयन करता है तथा
कुछ बनने की प्रेरणा उनसे लेता है।
• एक शिक्षित समाज में ही व्यक्ति का उत्तम विकास सम्भव हो सकता है।
                                          1.4 वृद्धि
वृद्धि (Growth) का अर्थ होता है बालकों की शारीरिक संरचना का विकास
जिसके अन्तर्गत लम्बाई, भार, मोटाई तथा अन्य अंगों का विकास आता है। वृद्धि
की प्रक्रिया आन्तरिक एवं बाह्य दोनों रूपों में होती है, यह एक निश्चित आयु तक
होती है तथा भौतिक पहलू (Physical Aspect) में ही सम्भव है। वृद्धि पर
आनुवंशिकता का सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों प्रभाव पड़ते हैं।
                             1.4.1 वृद्धि एवं विकास में अन्तर
वृद्धि एवं विकास का प्रयोग लोग प्रायः पर्यायवाची शब्दों के रूप में करते हैं।
अवधारणात्मक रूप से देखा जाए, तो इन दोनों में अन्तर होता है।
इस अन्तर को हम निम्न प्रकार से व्यक्त कर सकते हैं
आधार               वृद्धि                                   विकास
परिमाणात्मक     वृद्धि शब्द का प्रयोग               विकास शब्द का प्रयोग परिमाणात्मक
                        परिमाणात्मक परिवर्तनों           परिवर्तनों के साथ-साथ व्यावहारिक
                      जैसे बच्चे के बड़े होने के साथ      परिवर्तनों जैसे– कार्यकुशलता,
                       उसके आकार, लम्बाई, ऊँचाई     कार्यक्षमता, व्यवहार में सुधार इत्यादि
                       इत्यादि के लिए होता है।             के लिए भी होता है।
क्षेत्र                 वृद्धि विकास की प्रक्रिया का         विकास अपने-आप में एक विस्तृत अर्थ
                      एक चरण होता है। इसका क्षेत्र      रखता है। वृद्धि इसका एक भाग होती है।
                       सीमित होता है।
परिपक्वता    वृद्धि की क्रिया आजीवन नहीं     विकास एक सतत प्रक्रिया
चलती। बालक के परिपक्व                           है। बालक के परिपक्व होने
होने के साथ ही यह रुक                               के बाद भी यह चलती
जाती है।                                                    रहती है।
विकास     बालक की शारीरिक वृद्धि हो           बालक में विकास के लिए भी
रही है इसका अर्थ यह नहीं                             वृद्धि आवश्यक नहीं है। अतः
हो सकता कि उसमें विकास                            यह गुणात्मक विकास को
भी हो रहा है। अतः यह                                  दर्शाता है।
भौतिक विकास को दर्शाता है।
  1.4.2 वृद्धि तथा विकास को प्रभावित करने वाले कारक
वृद्धि तथा विकास को प्रभावित करने वाले अनेक कारक उत्तरदायी होते
हैं, जो निम्नलिखित हैं
                                     1. पोषण
• यह वृद्धि तथा विकास का महत्त्वपूर्ण घटक होता है। बालक को
विकास के लिए उचित मात्रा में प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, खनिज
लवण इत्यादि की आवश्यकता होती है।
• हमारे खान-पान में उपयुक्त पोषक तत्त्वों की कमी होगी तो वृद्धि एवं
विकास प्रभावित होगा।
                                         2. वृद्धि
• यह विकास के अन्य कारकों में सबसे महत्त्वपूर्ण कारक होता है।
• बौद्धिक विकास जितना उच्चतर होगा, हमारे अन्दर समझदारी,
नैतिकता, भावनात्मकता, तर्कशीलता इत्यादि का विकास उतना ही
उत्तम होगा।
                                       3. वंशानुगत
• वंशानुगत (Heredity) स्थिति शारीरिक एवं मानसिक विकास में
महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
• माता-पिता के गुण एवं अवगुण का प्रभाव बच्चों पर स्पष्ट रूप से
देखने को मिलता है।
                                               4. लिंग
• सामान्यतया लड़के एवं लड़कियों में विकास के क्रम में विविधता देखी
जाती है।
• किसी अवस्था में विकास की गति लड़कियों में तीव्र होती है तो किसी
अवस्था में लड़कों में।
                                          5. वायु एवं प्रकाश
• शरीर को स्वस्थ रखने के लिए स्वच्छ वायु की आवश्यकता होती है,
अगर वायु स्वच्छ न मिले तो बालक बीमार हो सकता है एवं इनके
अभाव में कार्य करने की क्षमता प्रभावित हो सकती है।
• शारीरिक विकास के लिए सूर्य के प्रकाश की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती
है, क्योकि सूर्य के प्रकाश में विटामिन-डी की प्राप्ति होती है, जो
विकास के लिए अपरिहार्य है।
                                  6. अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ
अन्तःस्रावी प्रन्थियों (Endocrine Glands) से निकलने वाला हार्मोन बालक
एवं बालिकाओं के शारीरिक विकास को प्रभावित करता है।
                                        7. शारीरिक क्रिया
जीवन को स्वस्थ रखने के लिए व्यायाम बहुत जरूरी है। यह मानव की आयु
बढ़ाता है। यह व्यक्ति को सक्रिय (Active) बनाए रखता है। यह व्यक्ति की
रोग प्रतिरोध शक्ति बढ़ाता है।
                                       1.4.3 वृद्धि की अवस्थाएँ
मनोवैज्ञानिकों ने मानव वृद्धि को निम्नलिखित अवस्थाओं में विभाजित किया है,
जो निम्न प्रकार है
1. शैशवकाल
• इसमें जन्म से 2 वर्ष तक बच्चों का शारीरिक एवं मानसिक विकास तेजी से
होता है।
• बालक इस अवस्था में पूर्णरूप से माता-पिता पर आश्रित रहता है।
• इस अवस्था में संवेगात्मक विकास भी होता है तथा इस अवस्था में सीखने
की क्षमता की गति तीव्र होती है।
• जब नवजात शिशु शैशवकाल (Infancy) की ओर अग्रसर होता है, तो
उसके अन्दर प्यार व स्नेह की आवश्यकता बढ़ने लगती है।
                                       2. बाल्यकाल
बाल्यकाल (Childhood) को निम्न दो भागों में विभाजित किया गया है
                                (i) पूर्व बाल्यकाल
• सामान्यतया 2 से 6 वर्ष की अवस्था। बालकों का बाहरी जुड़ाव होने लगता
है। बच्चों में (नकल करने की प्रवृत्ति) अनुकरण एवं दोहराने की प्रवृत्ति
पाई जाती है।
• समाजीकरण एवं जिज्ञासा दोनों में वृद्धि होती है। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से यह
काल भाषा सीखने की सर्वोत्तम अवस्था है।
                              (ii) उत्तर बाल्यकाल
•6 से 12 वर्ष तक की अवस्था। इस अवस्था में बच्चों में बौद्धिक, नैतिक,
सामाजिक, तर्कशीलता इत्यादि का व्यापक विकास होता है।
• पढ़ने की रुचि में वृद्धि के साथ-साथ स्मरण क्षमता का भी विकास होता है।
बच्चों में समूह भावना का विकास होता है अर्थात् समूह में खेलना, समूह में
रहना, समलैगिक व्यक्ति को ही मित्र बनाना इत्यादि।
• जीवन में अनुशासन तथा नियमों की महत्ता समझ में आने लगती है।
• खोजी दृष्टिकोण एवं घूमने की प्रवृत्ति का विकास।
                                         3. किशोरावस्था
• 12 से 18 वर्ष के बीच की अवस्था। अत्यन्त जटिल अवस्था तथा साथ ही
व्यक्ति के शारीरिक संरचना में परिवर्तन देखने को मिलता है।
• यह वह समय होता है, जिसमें बालक बाल्यावस्था से परिपक्वता की ओर
उन्मुख होता है।
• इस अवस्था में किशोरों की लम्बाई एवं भार दोनों में वृद्धि होती है, साथ ही
माँसपेशियों में भी वृद्धि होती है।
• 12-14 वर्ष की आयु के बीच लड़कों की अपेक्षा लड़कियों की लम्बाई
एवं मांसपेशियों में तेजी से वृद्धि होती है एवं 14-18 वर्ष की आयु के
बीच लड़कियों की अपेक्षा लड़कों की लम्बाई एवं माँसपेशियाँ तेजी से
बढ़ती है।
• इस काल में प्रजनन अंग विकसित होने लगते हैं एवं उनकी काम की मूल
प्रवृत्ति जाग्रत होती है।
• इस अवस्था में किशोर दुश्चिन्ता (दुविधा) एवं स्वयं से सम्बन्धित
सरोकार (मतलब) का भाव रखते है। ‘मैं कौन हूँ’ ‘मैं क्या हूँ मैं भी
कुछ हूँ’ जैसी प्रबल भावनाओं का विकास इस अवस्था में होने लगता है।
• इस अवस्था में किशोर-किशोरियों की बुद्धि का पूर्ण विकास हो जाता है,
उनकी ध्यान केन्द्रित करने की क्षमता बढ़ जाती है, स्मरण शक्ति बढ़
जाती है एवं उनमें स्थायित्व आने लगता है।
• इस अवस्था में मित्र बनाने की प्रवृत्ति तीव्र होती है एवं सामाजिक
सम्बन्धों में वृद्धि होती है। इस अवस्था में नशा या अपराध की ओर
उन्मुख होने की अधिक सम्भावना रहती है।
• किशोरावस्था के शारीरिक बदलावों का प्रभाव किशोर जीवन के
सामाजिक और मनोवैज्ञानिक पहलुओं पर पड़ता है। अतः इस अवस्था में
उन्हें शिक्षकों, मित्रों एवं अभिभावकों के सही मार्गदर्शन एवं सलाह की
आवश्यकता पड़ती है।
                                       4. युवा प्रौढ़ावस्था
• सामान्यतया 18 से 40 वर्ष तक।
• किशोरावस्था एवं युवा प्रौढ़ावस्था (Adulthood) की कोई निश्चित उम्र
नहीं होती। यह अवस्था मानव-विकास में एक निश्चित परिपक्वता ग्रहण
करने से प्राप्त होती है।
                                       5. परिपक्व प्रौढ़ावस्था
• सामान्यतया 40 से 65 वर्ष की अवस्था।
• शारीरिक विकास में गिरावट आने लगती है अर्थात् बालों का सफेद होना,
माँसपेशियों में ढीलापन तथा चेहरे पर झुर्रियाँ आना इत्यादि।
                                           6. वृद्ध प्रौढ़ावस्था
•65 से अधिक वर्ष की अवस्था।
• शारीरिक क्षमता का कमजोर होना।
• सामाजिक, आध्यात्मिक, धार्मिक तथा सांस्कृतिक क्रियाकलापों के प्रति
रुझान।
1.5 अधिगम
अधिगम (Learning) का अर्थ होता है–सीखना। अधिगम एक प्रक्रिया है,
जो जीवन-पर्यन्त चलती रहती है एवं जिसके द्वारा हम कुछ ज्ञान अर्जित
करते हैं या जिसके द्वारा हमारे व्यवहार में परिवर्तन होता है। जन्म के तुरन्त
बाद से ही बालक सीखना प्रारम्भ कर देता है।
अधिगम व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास में सहायक होता है। इसके द्वारा
जीवन के लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता मिलती है। अधिगम के बाद
व्यक्ति स्वयं और दुनिया को समझने के योग्य हो पाता है।
यदि छात्र किसी विषय वस्तु के ज्ञान के आधार पर कुछ परिवर्तन
करने एवं उत्पादन करने में सक्षम हो गया हो, तो उसके सीखने
की प्रक्रिया को अधिगम कहा जाएगा। सार्थक अधिगम ठोस चीजों
एवं मानसिक द्योतकों को प्रस्तुत करने व उनमें बदलाव लाने की
उत्पादक प्रक्रिया है न कि जानकारी इकट्ठा कर उसे रटने की
प्रक्रिया।
अधिगम के सन्दर्भ में विद्वानों द्वारा कुछ परिभाषाएँ निम्न प्रकार
दी गई हैं
    गेट्स के अनुसार, “अनुभव द्वारा व्यवहार में रूपान्तर लाना ही
अधिगम है।”
ई.ए. पील के अनुसार, “अधिगम व्यक्ति में एक परिवर्तन है,
जो उसके वातावरण के परिवर्तनों के अनुसरण में
होता है।
क्रो एवं क्रो के अनुसार, “सीखना आदतों, ज्ञान एवं
अभिवृत्तियों का अर्जन है। इसमें कार्यों को करने के नवीन
तरीके सम्मिलित हैं और इसकी शुरुआत व्यक्ति द्वारा
किसी भी बाधा को दूर करने अथवा नवीन परिस्थितियों में
अपने समायोजन को लेकर होती है। इसके माध्यम से
व्यवहार में उत्तरोत्तर परिवर्तन होता रहता है। यह व्यक्ति
को अपने अभिप्राय अथवा लक्ष्य को पाने में समर्थ
बनाती है।”
                               1.6 विकास का अधिगम से सम्बन्ध
विकास के विभिन्न पहलुओं का आपस में घनिष्ठ सम्बन्ध है एवं ये सभी अधिगम को
प्रभावित करते हैं।
शारीरिक विकास, विशेषकर छोटे बच्चों में मानसिक व संज्ञानात्मक विकास में मददगार
है। सभी बच्चों की खेल की गतिविधियों में सहभागिता उनके शारीरिक व मनो-सामाजिक
विकास के लिए आवश्यक है। मानसिक और भाषायी विकास, सामाजिक विकास एवं
अधिगम को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं।
बालकों का विकास एवं अधिगम एक निरन्तर प्रक्रिया है, जिसके साथ बालकों में उन
सिद्धान्तों का भी विकास होता है, जो बच्चे प्राकृतिक व सामाजिक दुनिया के बारे में
बनाते हैं। इसमें दूसरों के साथ अपने रिश्ते के सम्बन्ध के विभिन्न सिद्धान्त भी शामिल
हैं, जिनके आधार पर उन्हें यह पता चलता है कि चीजें जैसी हैं वैसी क्यों हैं? कारण
और कारक के बीच क्या सम्बन्ध है और कार्य व निर्णय लेने के क्या आधार हैं?
अर्थ निकालना, अमूर्त सोच (Abstract Thought) की क्षमता विकसित करना, विवेचना
व कार्य, अधिगम की प्रक्रिया के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पहलू हैं। दृष्टिकोण, भावनाएँ और
आदर्श, संज्ञानात्मक विकास के अभिन्न हिस्से हैं और भाषा विकास, मानसिक चित्रण,
अवधारणाओं व तार्किकता से इनका गहरा सम्बन्ध है।
बच्चे व्यक्तिगत स्तर पर एवं दूसरों से भी विभिन्न तरीकों से सीखते हैं–अनुभव के
माध्यम से, स्वयं चीजें करने व स्वयं बनाने से, प्रयोग करने से, पढ़ने से, विमर्श करने,
पूछने, सुनने, उस पर सोचने व मनन करने से तथा गतिविधि या लेखन के जरिए
अभिव्यक्त करने से। अपने विकास के मार्ग में उन्हें इस प्रकार के अवसर मिलने चाहिए।
                                   अभ्यास प्रश्न
1. विकास की प्रक्रिया में …………जीवन मूल्यों,
व्यक्तित्व, व्यवहार इत्यादि के विकास भी
शामिल हैं।
A. दृष्टिकोणों
B.स्वभाव
C.रुचियों
D. आदतों
(1)A और B
(2)A,Bऔर C
(3) B.C और D
(4) ये सभी
2. बाल विकास के अध्ययन में निम्नलिखित में
से किन बातों को शामिल किया जाता है?
A. आयु के साथ होने वाले परिवर्तनों का क्या
स्वरूप होता है?
B. बालक में होने वाले परिवर्तनों का विशे
आयु के साथ क्या सम्बन्ध होता है?
C. बालकों में पाई जाने वाली व्यक्तिगत
विभिन्नताओं के लिए किस प्रकार के
आनुवंशिक एवं परिवेशजन्य प्रभाव उत्तरदायी
होते हैं?
(1)A और B
(2)Bऔर
(3) A और
(4) ये सभी
3. आप अपनी कक्षा में से कुछ छात्रों को
चुनकर छ: महीने में उनमें होने वाले
विकास की एक रिपोर्ट तैयार करना चाहते
हैं, तो इसके लिए आप निम्न में से क्या
चुनेंगे?
(1) प्रत्येक माह उनकी लम्बाई मापेंगे
(2) प्रत्येक माह उनका वजन तौलेंगे
(3) प्रत्येक माह उनकी रुचियों, आदतों,
दृष्टिकोणों, स्वभाव, व्यक्तित्व व्यवहार आदि में
होने वाले परिवर्तनों की जाँच करेंगे
(4) प्रत्येक माह उनके शारीरिक आकार में होने
वाले परिवर्तन की जाँच करेंगे
4. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन
सत्य है?
(1) दृष्टिकोण, भावनाएँ और आदर्श, संज्ञानात्मक
विकास के अभिन्न हिस्से हैं और भाषा
विकास, मानसिक चित्रण अवधारणाओं व
तार्किकता से इनका गहरा सम्बन्ध है।
(2) सभी बच्चों का स्वस्थ, शारीरिक विकास सभी
प्रकार के विकास की पहली शर्त नहीं है।
(3) मानसिक और भाषायी विकास, सामाजिक
विकास एवं अधिगम को अप्रत्यक्ष रूप से
प्रभावित करते हैं।
(4) बालक के सन्तुलित विकास में उसके संवेगात्मक
विकास की नहीं, बल्कि शारीरिक विकास की
अहम भूमिका होती है।
5. किसके परिणामस्वरूप बालक अपने
निरन्तर बदलते हुए वातावरण में ठीक
प्रकार समायोजन करने में सक्षम हो पाता
है? सर्वाधिक उपयुक्त विकल्प का चयन
करें।
(1) संज्ञानात्मक विकास (2) शारीरिक विकास
(3) भाषायी विकास (4) संवेगात्मक विकास
6. मानव का विकास निम्न में से किस पर
निर्भर होता है?
(1) उसकी वृद्धि पर
(2) उसके वातावरण पर
(3) उसकी बुद्धि पर
(4) उसकी वृद्धि तथा वातावरण से मिलने वाली
परिपक्वता पर
7. कौन-सी पाठ्यचर्या सर्वाधिक उपयुक्त
होगी?
(1) बालक के शारीरिक व मानसिक विकास के
अन्तर्सम्बन्धों के अनुकूल
(2) देश की सभ्यता-संस्कृति के अनुकूल
(3 बालक के शारीरिक एवं सामाजिक विकास के
अन्तर्सम्बन्धों के अनुकूल
(4) उपरोक्त में से कोई नहीं
8. निम्नलिखित में से कौन-सा विकास छोटे
बच्चों में मानसिक व संज्ञानात्मक विकास
में सर्वाधिक मददगार होता है?
(1) सामाजिक विकास (2) शारीरिक विकास
(3) सांवगिक विकास (4) भाषायी विकास
9. जब किशोर में किसी वस्तु, समस्या या
परिस्थिति के लिए निजी स्तर पर निर्णय
लेने की क्षमता का विकास परिपक्व होने
लगता है, तो इस विकास को कहते हैं
(1) भाषायी विकास
(2) संज्ञानात्मक विकास
(3) सामाजिक विकास
(4) मनोगत्यात्मक विकास
10. बालक का संवेगात्मक विकास निम्नलिखित
में से किसे प्रभावित करता है?
A.उसके शारीरिक विकास
B. उसके सामाजिक विकास
C.उसके नैतिक विकास
(1) केवल B
(2) A और C
(3) B और
(4) ये सभी
11. निम्नलिखित में से कौन-सा बालक के
सामाजिक विकास को प्रभावित नहीं
करता है?
(1) बुद्धि
(2) तर्कशक्ति
(3) भाषा प्रयोग की क्षमता
(4) उपरोक्त में से कोई नहीं
12. विकास के विभिन्न आयामों के सन्दर्भ में
निम्नलिखित में से कौन-सा कथन
असत्य है?
(1) कल्पना करना, स्मरण करना, विचार करना,
निरीक्षण करना, समस्या करना, निर्णय लेना
इत्यादि की योग्यता संज्ञानात्मक विकास के
फलस्वरूप ही विकसित होती है।
(2) भाषा का विकास एक प्रकार का संज्ञानात्मक
विकास ही है।
(3) भाषायी, मानसिक, संवेगात्मक, सामाजिक एवं
चारित्रिक विकास विभिन्न आयु स्तरों में समान
प्रकार से होता है।
(4) क्रियात्मक विकास का अर्थ होता है. व्यक्ति की
क्रियात्मक शक्तियों, क्षमताओं या योग्यताओं
का विकास
13. आपकी कक्षा का एक छात्र, राजू शारीरिक
विकास की दृष्टि से काफी पिछड़ा हुआ है।
आपको विकास के निम्नलिखित में से किस
आयाम में राजू के पिछड़ने की चिन्ता हो
सकती है?
A.संवेगात्मक विकास
B.बौद्धिक विकास
C.सामाजिक विकास
(1) केवल A
(2) केवल B
(3) A और C
(4) ये सभी
14. वृद्धि और विकास के सन्दर्भ में
निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सत्य
है/है?
A. वृद्धि विकास की प्रक्रिया का एक चरण
होता है, जिसका क्षेत्र असीमित होता है।
B.विकास स्वयं में एक विस्तृत अर्थ रखता है
एवं वृद्धि इसका एक भाग होता है।
C.विकास एक सतत प्रक्रिया है, जो बालक
के परिपक्व होने के बाद भी चलती
रहती है।
(1) केवल A
(2) A और B
(3) Bऔर
(4) ये सभी
15. वृद्धि शब्द का प्रयोग ……… परिवर्तनों के
लिए तथा विकास का प्रयोग ……..
परिवर्तनों के साथ-साथ ………परिवर्तनों के
लिए भी होता है।
(1) व्यावहारिक, व्यावहारिक, परिमाणात्मक
(2) व्यावहारिक, परिमाणात्मक, व्यावहारिक
(3) परिमाणात्मक, परिमाणात्मक, व्यावहारिक
(4) परिमाणात्मक, व्यावहारिक, परिमाणात्मक
16. सभी बच्चों का स्वस्थ शारीरिक विकास
सभी प्रकार के विकास की पहली शर्त है।
इसके लिए किन मूल आवश्यकताओं पर
ध्यान देना आवश्यक है?
A. पौष्टिक आहार
B.शारीरिक व्यायाम
C.मनोवैज्ञानिक-सामाजिक जरूरतों
(1) केवल A
(2) A और C
(3) A और B
(4) ये सभी
17. शिक्षण की विभिन्न विधियों के प्रयोग के
लिए कौन-सी अवस्था सर्वाधिक
उपयुक्त है?
(1) बाल्यावस्था
(2) शैशवावस्था
(3) प्रौढ़ावस्था.
(4) किशोरावस्था
18. इस अवस्था में बालकों में नई खोज करने की
और घूमने की प्रवृत्ति बहुत अधिक बढ़
जाती है
(1) शैशव
(2) उत्तर बाल्यकाल
(3) किशोरावस्था
(4) प्रौढ़ावस्था
19. किशोरों की सबसे नाजुक एवं संवेदनशील
समस्या क्या होती है?
(1) व्यवसाय सम्बन्धी समस्या
(2) यौन सम्बन्धी समस्या
(3) समायोजन सम्बन्धी समस्या
(4) प्रश्नाभ्यास सम्बन्धी समस्या
20. मानव विकास की किस अवस्था के बाद
व्यक्ति परिपक्व हो जाता है?
(1) बाल्यावस्था
(2) शैशवावस्था
(3) प्रौढावस्था
(4) किशोरावस्था
21. 12-14 वर्ष की आयु के बीच ……… की
अपेक्षा ………. ‘लम्बाई एवं मांसपेशियों में तेजी
से वृद्धि होती है एवं 14-18 वर्ष की आयु
के बीच …….. की अपेक्षा …….. की लम्बाई
एवं मांसपेशियाँ तेजी से बढ़ती है।
(1) लड़कियों, लड़कों; लड़कों, लड़कियों
(2) लड़कों, लड़कियों लड़कियों, लड़कों
(3) लड़कों, लड़कियों लड़कों, लड़कियों
(4) उपरोक्त में से किसी में नहीं
22. सार्थक अधिगम की प्रक्रिया विकास की
किस अवस्था से आरम्भ होती है?
(1) किशोरावस्था से
(2) वयस्कावस्था से
(3) शैशवावस्था से
(4) बाल्यावस्था से
23. किस अवस्था में घनिष्ट मित्रता की प्रवृत्ति
पाई जाती है?
(1) किशोरावस्था में
(2) बाल्यावस्था में
(3) शैशवावस्था में
(4) उपरोक्त में से किसी में नहीं
24. मानव विकास की किस अवस्था में बच्चों
के सीखने की गति सर्वाधिक होती है?
(1) बाल्यावस्था
(2) शैशवावस्था
(3) प्रौढावस्था
(4) किशोरावस्था
25. शिक्षा मनोविज्ञान में ………अवस्थाओं में होने
वाले मानव विकास का अध्ययन किया
जाता है।
A.शैशवावस्था
B.बाल्यावस्था
C.किशोरावस्था
D.वयस्कावस्था
(1) A और B
(2) A BC
(3) A और
(4) ये सभी
26. ‘मैं कौन हूँ’, ‘मैं क्या हूँ, ‘मैं भी कुछ हूँ
आदि जैसी प्रबल भावनाएँ, बालक के
विकास की किस अवस्था की सूचक
होती है?
(1) किशोरावस्था
(2) शैशवावस्था
(3) प्रौढ़ावस्था
(4) बाल्यावस्था
27. बाल-विकास के विभिन्न आयाम एवं इनके
अधिगम के सम्बन्ध के सन्दर्भ में
निम्नलिखित में से कौन-सा कथन
असत्य है?
(1) विकास के विभिन्न आयामों का आपस में
पनिष्ट सम्बन्ध है एवं ये अधिगम को प्रभावित
(2) बालकों का विकास एवं अधिगम एक निरन्तर
चलने वाली प्रक्रिया है।
(3) शारीरिक विकास, विशेषकर छोटे बच्चें में
मानसिका संज्ञानात्मक विकास में मददगार
है।
(4) उपरोकने से कोई नहीं
                    विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्न
28. निम्नलिखित में से किस अवस्था में बच्चे
अपने समवयस्क समूह के सक्रिय सदस्य
हो जाते हैं?  [CTET June 2011]
(1) किशोरावस्था
(2) प्रौढ़ावस्था
(3) पूर्व बाल्यावस्था
(4) बाल्यावस्था
29. मानव विकास को निम्न क्षेत्रों में विभाजित
किया जाता है, जो हैं     [CTET Jan 2012]
(1) शारीरिक, आध्यात्मिक, संज्ञानात्मक और
सामाजिक
(2) शारीरिक, संज्ञानात्मक, संवेगात्मक और
सामाजिक
(3) संवेगात्मक, ‘संज्ञानात्मक, आध्यात्मिक और
सामाजिक-मनोवैज्ञानिक
(4) मनोवैज्ञानिक, संज्ञानात्मक, संवेगात्मक और
शारीरिक
30. किशोर ……….. का अनुभव कर सकते हैं।  [CTET Nov 2012]
(1) बचपन में किए गए अपराधों के प्रति डर के भाव
(2) आत्मसिद्धि के भाव
(3) जीवन के बारे में परितृप्ति
(4) दुश्चिन्ता और स्वयं से सरोकार
31. भाषा विकास में सहयोग करने का कौन-सा
तरीका गलत है?                    [CTET July 2013]
(1) बच्चे को बिना टोके प्रकरण पर बात करना
(2) उसकी अपनी भाषा के प्रयोग को अमान्य
करना
(3) उसके प्रयोगों का समर्थन करना
(4) भाषा के प्रयोग के अवसर उपलब्ध कराना
32. मानव विकास …………. है।     [CTET Sept 2014]
(1) मात्रात्मक
(2) गुणात्मक
(3) कुछ सीमा तक अमापनीय
(4) ‘1’ और ‘2’
33. निम्नलिखित में से कौन प्रारम्भिक
बाल्यावस्था अवधि के दौरान उन भूमिकाओं
एवं व्यवहारों के बारे में जानकारी प्रदान
करते हैं, जो एक समूह में स्वीकार्य हैं?      [CTET Feb 2015]
(1) भाई-बहन एवं अध्यापक
(2) अध्यापक एवं साथी
(3) साथी एवं माता-पिता
(4) माता-पिता एवं भाई-बहन
34. निम्नलिखित में से कौन-सा आयु समूह
परवर्ती बाल्यावस्था श्रेणी के अन्तर्गत आता
है?                          [CTET Feb 2015]
(1) 11 से 18 वर्ष
(2)18 से 24 वर्ष
(3) जन्म से 6 वर्ष
(4) 6 से 11 वर्ष
35. “कोई भी नाराज हो सकता है-यह आसान
है, परन्तु एक सही व्यक्ति के ऊपर, सही
मात्रा में, सही समय पर, सही उद्देश्य के
लिए तथा सही तरीके से नाराज होना
आसान नहीं है।” यह सम्बन्धित है     [CTET Feb 2015]
(1) संवेगात्मक विकास से
(2) सामाजिक विकास से
(3) संज्ञानात्मक विकास से
(4) शारीरिक विकास से
36. शैशवकाल की अवधि है        [CTET Sept 2015]
(1) जन्म से 2 वर्ष तक
(2) जन्म से 3 वर्ष तक
(3) 2 से 3 वर्ष तक
(4) जन्म से 1 वर्ष तक
37. मध्य बाल्यावस्था में भाषा ……….के बजाय
…… अधिक है।               [CTET Sept 2015]
(1) समाजीकृत, अहंकेन्द्रित
(2) जीववादी, समाजीकृत
(3) परिपक्व, अपरिपक्व
(4) अहंकेन्द्रित, समाजीकृत
38. विकास ……….. से …………. की ओर बढ़ता है।    [CTET Sept 2015]
(1) जटिल, कठिन
(2) विशिष्ट, सामान्य
(3) साधारण, आसान
(4) सामान्य, विशिष्ट
39. विकास की गति एक व्यक्ति से दूसरे में
भिन्न होती है, किन्तु यह एक …….. नमूने
का अनुगमन करती है।         [CTET Feb 2016]
(1) एड़ी-से-चोटी
(2) अव्यवस्थित
(3) अप्रत्याशित
(4) क्रमबद्ध और व्यवस्थित
40. विकास के लिए निम्नलिखित में से कौन-सा
एक उचित है?                  [CTET Feb 2016]
(1) विकास जन्म के साथ प्रारम्भ होता है और
समाप्त होता है।
(2) ‘सामाजिक-सांस्कृतिक सन्दर्भ’ विकास में एक
महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है।
(3) विकास एकल आयामी है।
(4) विकास पृथक् होता है।
41. भाषा विकास के लिए प्रारम्भिक बचपन
………….. काल है।                [CTET Feb 2016]
(1) कम महत्त्वपूर्ण
(2) अमहत्त्वपूर्ण
(3) अतिसंवेदनशील
(4) निरपेक्ष
42. भाषा के विकास के लिए सबसे संवेदनशील
समय निम्नलिखित में से कौन-सा है?             [CTET Sept 2016]
(1) मध्यावस्था का काल
(2) वयस्कावस्था
(3) प्रारम्भिक बचपन का समय
(4) जन्म पूर्व का समय
                                 उत्तरमाला
1. (4) 2. (4) 3. (3) 4. (1) 5. (1)
6. (4) 7. (1) 8. (2) 9. (2) 10. (4)
11. (4) 12. (3) 13. (4) 14. (3) 15. (3)
16. (4) 17. (1) 18. (2) 19. (2) 20. (4)
21. (2) 22. (3) 23. (1) 24. (2) 25. (2)
26. (1) 27. (4) 28. (1) 29. (4) 30. (4)
31. (2) 32. (4) 33. (4) 34. (4) 35. (1)
36. (1) 37. (1) 38. (4) 39. (4) 40. (2)
41. (3) 42. (3)
                                           ★★★

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