शिक्षा में सूचना एवं संचार तकनीकी
शिक्षा में सूचना एवं संचार तकनीकी
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. सूचना आर सूचना तकनीकी (Information and Information
Technology) से आप क्या समझते हैं ? सूचना तकनीकी की आवश्यकता और उद्देश्यों
का वर्णन कीजिए।
अथवा, सूचना तकनीकी क्या है ? सूचना प्रणाली (Information System) का
वर्गीकरण या सूचना प्रणाली के विभिन्न स्तरों का वर्णन करें।
उत्तर―सूचना तकनीकी का मुख्य सम्बन्ध सूचना’ से होता है। अतः सूचना तकनीकी
शब्द का अर्थ जानने से पहले ‘सूचना’ शब्द को जानना एवं समझना अति आवश्यक है।
‘सूचना’ का अर्थ (Meaning of Information)―’सूचना’ शब्द को विभिन्न तरीकों
से प्रयोग किया जाता है। दो शब्दों ‘आँकड़ो’ और ‘सूचना’ का बहुत प्रयोग किया जाता
है जो कि आपस में सम्बन्धित होते हैं। आँकड़े कोई भी तथ्य, अवलोकन, अवधारणा, नाम,
समय, तिथि, भार, मूल्य, आयु, पुस्तक, अंक, प्रतिशत आदि हो सकते है। आँकड़े किसी
व्यक्ति की क्रिया का गुण होते हैं।
आँकड़ों का संक्षिप्त स्वरूप ‘सूचना’ है। आँकड़ो और सूचना में सम्बन्ध होता है। किसी
सूचना-प्रणाली में डाली गई सामग्री आँकड़े कहलाती है तथा 326 सूचना-प्रणाली का उत्पादन
सूचना कहलाती है। अतः सूचना वे आँकड़े होते है जिन्हें किसी स्वरूप में उत्पन्न किया गया
है तथा जो प्राप्तकर्ता के लिए उपयोगी होते हैं और तत्काल या भविष्य की क्रियाओं एवं निर्णयों
के लिए कीमती होते हैं।
कोई भी सूचना या आँकड़े किसी भी बहस, गणना या निर्णय का आधार होते हैं। दूसरे
शब्दों में ‘सूचना’ वह आँकड़े हैं जिसका अर्थ निश्चित होता है।
आँकड़े मूल तथ्य होते हैं जिन्हें किसी संस्था के ऐतिहासिक रिकार्ड के रूप में प्रयोग
किया जाता है। दैनिक जीवन में हम आँकड़ों और सूचना को एक-दूसरे के लिए प्रयुक्त
करते हैं।
सूचना वे आँकड़े हैं जिन्हें निर्णयों के लिए, प्रयुक्त किया जाता है।
तकनीकी सूचना की आवश्यकता एवं उद्देश्य (Need and Objectives of
Information Technology)― प्रकृति से ही मनुष्य सूचनाओं की खोज में रहता है। हम
सूचना को तत्काल प्राप्त करना चाहते हैं। सूचनाओं और ज्ञान के स्रोतों तक पहुँचने के अनेक
रास्ते है। मनुष्य के लिए यह लगभग असम्भव ही है कि हर चीज के बारे में सूचना एकत्रित
कर सके। इसके अतिरिक्त किसी वस्तु के बारे में, व्यक्ति, स्थान, विचार, सम्प्रत्यय और
सिद्धांत के बारे में जो भी ज्ञान या सूचना व्यक्ति प्राप्त करता है वह सदा एक जैसी नहीं
रहती। हम देखते हैं कि ज्ञान सदा बदलता रहता है। हमें ज्ञान में कुछ जोड़ना या घटाना
पड़ता है और यह समस्त बदलाव नई सचना के सन्दर्भ में होता है। ज्ञान निरन्तर परिवर्तनशील
होता है। विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में ज्ञान के विस्फोट के परिणामस्वरूप लगभग सभी
विषयों तथा क्षेत्रों में भी ज्ञान की वृद्धि हुई है। एक शोध के अनुसार सूचना का आयतन प्रतिवर्ष
13 प्रतिशत बढ़ रहा है। सूचना को इस अत्यधिक वृद्धि के लिए उपयुक्त प्रक्रियाओं और
नियंत्रण की अति आवश्यकता होती है। उपरोक्त तथ्यों के आधार पर सूचना तकनीकी के
उद्देश्य निम्नलिखित हो सकते हैं―
(i) एक सूचना प्रणाली का निर्णय करना ताकि वैज्ञानिक संकलनों आदि का वितरण
प्रयोगकर्ताओं तक हो सके।
(ii) प्रयोगकर्ताओं को सूचना की सही व्याख्या और बोध कराना।
(iii) कम्प्यूटरों या मानवीय ढंग से सूचना की प्रोसैसिंग करने में व्यक्तियों की सहायता
करना।
(iv) प्रयोगकर्ताओं को या सीखने वालों की सूचना के प्रभावशाली ढंग से प्रयोग कर
में सहायता करना ताकि उनके व्यवहार में वांछित परिवर्तन लाया जा सके तथा
उनमें समस्या समाधान की और निर्णय लेने की योग्यता का विकास किया जा
सके।
सूचना प्रणाली का वर्गीकरण (Taxonomy of Information System or Levels
of Information System)–विभिन्न प्रणालियाँ अस्तित्व में पाई जाती है जैसे कि शिक्षा
प्रणाली, ट्रांसपोर्ट प्रणाली, विन प्रणाली, कम्प्यूटर प्रणाली और सूचना प्रणाली इत्यादि । एक
प्रणाली से अभिप्राय होता है-उन तत्वों का एक समूह जो आपस में सम्बन्धित होते हैं और
जो एक उद्देश्य को अर्जित करने के लिए इकट्ठे कार्य करते हैं। एक प्रणाली का एक सामान्य
स्वरूप होता है-अदा, प्रक्रिया और प्रदा।
किसी एक प्रणाली में कई अदाएँ और प्रदाएँ होती है। सूचना प्रणाली भी एक प्रणाली
है। इस सूचना प्रणाली में आंकड़ों के रूप में अदा होती है। अनुदेशन के अनुरूप वह प्रणाली
उन आँकड़ों की ‘प्रोसैसिंग’ करती है तथा ‘प्रदा’ के रूप में परिणाम प्राप्त होते हैं।
एक प्रणाली भिन्न-भिन्न समयों पर विभिन्न प्रकार की अदाएँ प्राप्त करती है। ऐसी अदाओं
का भंडारण तब तक करना चाहिए जब तक समस्त आँकड़ें न पहुँच जायें। तब आँकड़ों की
प्रोसैसिंग होती है और प्रदा प्राप्त की जाती है। सूचना प्रणाली में भंडारण विधियाँ भी शामिल
होती हैं। सूचना प्रोसैसिंग का अर्थ आँकड़ों को सूचना में परिवर्तित करना ही नहीं होता बल्कि
इसका अभिप्राय आँकड़ो का बाद में प्रयोग करने के लिए भंडारण करना भी होता है।
किसी भी संगठन में सूचना हर स्तर के लिए चाहिए। सूचना की आवश्यकता को पूरा
करने के लिए हर स्तर पर सूचना-प्रणालियाँ होती हैं। विभिन्न स्तरों पर सूचना प्रणालियाँ
निम्नलिखित होती हैं―
1. कार्य सम्पादन प्रक्रिया प्रणाली (Transaction Process System)― यह प्रणाली
सूचना प्रणाली के सबसे निम्न स्तर पर होती है या हम ऐसा भी कह सकते हैं कि यह सूचना
प्रणाली के सबसे निम्न-स्तर पर होती है। इस स्तर पर प्रारम्भिक आँकड़े एकत्रित किये जाते
हैं जिनका मनुष्य अपने हाथों या इलैक्ट्रोनिक उपकरणों द्वारा भण्डारण करता है। इन आँकड़ों
या सूचना को नब सूचना प्रणाली में पहुँचाया जाता है। इस निम्न स्तर पर आँकड़ों की ‘प्रोसैसिंग’
लगभग शून्य होती है।
2.कार्यालय स्वचलन प्रणाली (office Automation System)―यह प्रणाली संगठन
के विभिन्न विभागों या उप-विभागों की कार्यशीलता की हैडलिंग या नियंत्रण करती है। उदाहरण
के लिए लेखा अनुविभाग, मानव संसाधन अनुविभाग, प्रशासन अनुविभाग या विभाग। ये विभाग
मानवीय प्रणाली वाले या कम्प्यूटरीकृत प्रणाली वाले हो सकते हैं। कार्य सम्पादन प्रक्रिया प्रणाली
से प्राप्त आँकड़े या सूचना इस दूसरी प्रणाली में ‘अदा’ का कार्य करती है। इस दूसरी प्रणाली
में आँकड़े या सूचना को प्रोसैस किया जाता है, वर्गीकृत किया जाता है तथा उनका भण्डारण
किया जाता है।
3. प्रबन्ध प्रक्रिया प्रणाली (Management Processing System)—इसके पश्चात
प्रबन्ध प्रक्रिया प्रणाली का नम्बर आता है यह प्रक्रिया सूचना की प्रोसैसिंग करती है तथा
उसका वर्गीकरण करती है। रिपोर्टों और प्रस्तुतीकरणों के रूप में प्रोसेस्ड और संक्षिप्तीकृत
सूचना का प्रयोग संगठन के प्रबन्धन (Management) का उच्चतम स्तर करता है। ऐसी रिपोर्ट
लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए पॉलिसी निर्धारित करते समय निर्णय लेने में सहायता
करती है।
4. निर्णय सहायक प्रणाली (Decision Support System)–चरण 3 से प्राप्त सूचना
का प्रयोग संगठन के उच्च स्तर के लोग करते हैं। ऐसी सूचनाएँ लक्ष्यों को प्राप्त करने में
सहायता करती हैं। यह सूचना प्रणाली का उच्चतम स्तर है। चरण 3 से प्राप्त सूचनाएँ निर्णय
सहायक प्रणाली में ‘अदा’ (Input) का कार्य करती है। इस स्तर पर प्राप्त परिणाम निर्णय
के प्रतिमान होते है। ये मॉडल प्रबन्धको को निर्णय लेने में सहायता करते हैं।
प्रश्न 2. सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी (Information and Communication
Technology―ICT) का अर्थ स्पष्ट करें। सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी का शिक्षा
के क्षेत्र में उपयोग एवं सीमाओं का वर्णन करें।
अथवा, सूचना एवं संचार तकनीक (I.C.T.) की अवधारणा को विस्तार से
बताएँ।
उत्तर―सूचना और सम्प्रेषण तकनीकी से आजकल आमतौर पर अभिप्राय है―विचारों
या ऑकड़ा का कम्प्यूटर आधारित प्रबन्धन ।
विस्तृत अर्थ में, सम्प्रेषण और सूचना तकनीकियाँ वे आधार है जिनकी सहायता से मानव
जाति ने दूसरे जानवरों से स्वयं को अलग किया है।
सूचना और सम्प्रेषण तकनीकी की कोई सर्वसम्मति से स्वीकार्य कोई परिभाषा नहीं है।
क्योंकि इसमें प्रयुक्त तकनीकियाँ आदि नत दिन बदल रही हैं। यह परिवर्तन बहुत ही तेज
गति से हे रहे हैं। ICT का सम्बन्ध डिजिटल आँकड़ा से तथा इनके भंडारण, पुनः प्राप्ति,
संवारण तथा प्रापि से होता है।
ICT ने C से अभिप्राय है―आँकड़ों का इलैक्ट्रॉनिक साधनों द्वारा दूर तक सन्प्रेषण।
इसे हम आँकड़ों को भेजने और प्राप्त करने हेतु विभिन्न हार्डवेयर को जोड़ने वाले नेटवर्क
(Network) के प्रयोग द्वारा इस उद्देश्य को अर्जित किया जाता है। ये नेटवर्क भी विभिन्न
वर्गों में बाँटे जा सकते हैं, जैसे लोकल एरिया नेटवर्क जिसे ऑफिस बिल्डिंग के भीतर ही
लिंक किया जाता है, वाईड एरिया नेटवर्क जैसे-इंटरनेट जिसे बहुत विस्तृत क्षेत्र से जोड़ा
जाता है।
LAN में जो हार्डवेयर होते हैं उन्हें ऑफिस से सम्बद्ध कर दिया जाता है। जैसे-इनपुट
और आउटपुट यंत्र एवं कम्प्यूटर प्रोसैसिंग। LAN का उद्देश्य होना है–हार्डवेयर सुविधाओं
को आपस में बाँटना जैसे प्रिंटर, स्कैनर, सॉफ्टवेयर एप्लीकेशन एवं आँकड़े। ऐसा नेटवर्क
बहुत ही उपयोगी होता है. जिसमें ऑफिस में सभी सहयोगी सामान्य आँकड़ो या कार्यक्रम
तक पहुँचना चाहते हैं।
ICT व्यापक संदर्भ में (ICT in Broader Context)―ICT को विस्तृत या व्यापक
संदर्भ में प्रयोग करने के लिये हमें निम्न शब्दों पर ध्यान देना होगा―
(i) सूचना को प्रकृति (Nature ofInformation)-ICT में ‘I’ से अभिप्राय है सूचना
जिसमें शामिल है, सूचना का अर्थ एवं मूल्य, सूचना को कैसे नियंत्रित किया जाता है, ICT
की सीमाएँ आदि।
(ii) सूचना का प्रवंधन (Managementof Information)―इसमें शामिल किया जाता
है–आँकड़ों को कैसे प्राप्त किया जाता है, प्रभावशाली प्रयोग के लिए उसका कैसे सत्यापन
और भंडारण किया जाता है, व्यवस्था, प्रोसैसिंग और सूचना का वितरण । सूचना को सुरक्षित
रखना, सूचना को बाँटने के लिए नेटवर्क डिजाइन करना।
(iii) सूचना प्रणालियों की व्यूह रचना (Information Systems Strategy)―इससे
यह विचार किया जाता है कि ICT का व्यापार या संगठन में लक्ष्यों और उद्देश्यों को हासिल
करने के लिए किस प्रकार प्रयोग किया जाये।
इस प्रकार हम देखते हैं कि ICT में वह कोई भी उत्पाद शामिल होगा जो सूचना को
इलेक्ट्रॉनिक तरीके से डिजिटल रूप में भंडारण, पुनः उत्पादन, व्यवस्थित, स्थानान्तरण या
ग्रहण करेगा। जैसे-व्यक्तिगत कम्प्यूटर (Personal Computers), डिजिटल टेलीविजिन, ई.
मेल, रोबोट, विडियो तथा ऑडियो कान्फ्रेसिंग, डिजिटल लाइबेरी आदि।
शिक्षा के क्षेत्र में ICT की उपयोगिता निम्नलिखित है―
1.भंडारण (Storage)―ICT के प्रयोग द्वारा सूचनाओं का भंडारण करना सुगम ।
गया है। इन भंडारण के कारण सूचनाओं की प्राप्ति भी संगम हो गई है। सूचनाओं की प्राप्ति
एवं भंडार के परिणामस्वरूप समस्याओं के समाधान में भी सहायता मिलती है।
उदाहरणार्थ―इंटरनेट का प्रयोग। इंटरनेट नो आजकल सूचनाओं का भंडार सिद्ध हो रहा
है। सी.डी., डी.वी.डी. फ्लॉपी आदि भी सूचनाओं के भंडार में योगदान करती है। इन सभी
साधनों के विकास के परिणामस्वरूप पुस्तकालयों की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो गई है। विभिन्न
पुस्तकालयों की पुस्तकों को ई-पुस्तकों के रूप में बदल कर इंटरनेट के माध्यम से विद्यार्थी
और शिक्षक इन पुस्तकों का लाभ उठा सकते हैं।
2. विदेशी भाषाओं का अधिगम (Learning of Foreign Languages)―विदेशी
भाषाओं को सीखने के लिये केवल पुस्तकों पर ही निर्भर नहीं रहा जा सकता। इसके लिए
ICT का प्रयोग प्रभावी सिद्ध हो रहा है। इस सम्बन्ध में भाषा-प्रयोगशालाएँ, दूर-संचार, वीडियो
कान्फ्रेसिंग, आडियो कान्फ्रेसिंग, मल्टीमीडिया स्पीकरों आदि का प्रयोग संभव हो पाया है।
इस दृष्टि से भाषाओं को सीखना, विशेषकर विदेशी भाषाओं को सीखना अब उतना कठिन
नहीं रह गया।
3.शैक्षिक अनुसंधान (Educational Research)―आजकल ICT ने अनुसंधान कार्य
को अधिक सरल बना दिया है। हर अनुसंधान कार्य में विशेष प्रकार की तथा विभिन्न प्रकार
की सूचनाएँ तथा आवश्यकताएँ बाधित होती है। शर्त यह भी है कि ये सूचनाएँ वास्तविक
और विश्वसनीय होनी चाहिये। क्योंकि अनुसंधान कार्य में से परिणाम निकालने में इन
सूचनाओं का महत्त्वपूर्ण योगदन होता है। ICT द्वारा इन सूचनाओं को प्राप्त करके अनुसंधान
कार्य को शीघ्रता से अंजाम तक पहुँचाया जा सकता है। अतः अनुसंधान के क्षेत्र में ICT
का सहयोग दिन-ब-दिन बढ़ता ही जा रहा है।
4.प्रवचन (Management)―आजकल प्रबन्धन, नियोजन किसी भी क्षेत्र का हो, ICT
के सहयोग के बिना निसहाय से दिखाई पड़ता है। शिक्षा के क्षेत्र में प्रबन्धन ICT पर आधारित
हो रहा है तथा इसका प्रयोग प्रबन्धकों के लिये वरदान सिद्ध हो रहा है। प्रबन्धन में भी विभिन्न
सूचनायें चाहिए जो कि ICT द्वारा क्षेत्रों में उपलब्ध हो जाती हैं। जिसके परिणामस्वरूप प्रबन्धन
का कार्य अधिक सुचारू रूप से चलाने में मदद मिलती है। स्कूलों में प्रवेश सम्बन्धी सूचनाएँ,
पाठ्यक्रम सम्बन्धी सूचनाएँ, शोध कार्य सम्बन्धी सूचनाएँ तथा अध्यापकों के वेतन आदि सम्बन्धी
सूचनाएँ ICT के माध्यम से कुछ ही क्षणों में आँखों के सम्मुख आ जाती है।
5.शिक्षण-प्रक्रिया (Teaching Process)―ICT द्वारा शिक्षण प्रक्रिया को प्रभावशाली
बनाने में सहायता मिलती है । आधुनिक विधियों द्वारा अध्यापक पाठ्य वस्तु को अधिक जीवन्त
बना कर विद्यार्थियों के सम्मुख प्रस्तुत कर सकता है। तकनीकी की सहायता से दृश्य-श्रव्य
सामग्री का प्रयोग बहुत ही सजीव ढंग से किया जा सकता है। कम्प्यूटर के प्रयोग से अध्यापक
अपने शिक्षण कार्य को बेहतर ढंग से विद्यार्थियों तक पहुँचा सकता है। इस दृष्टि से अध्यापक
बाल-केन्द्रित शिक्षा के उद्देश्य को इस माध्यम में प्राप्त कर सकता है।
6. विशिष्ट बालकों को शिक्षा (Education of Special Children)–विशिष्ट
बालकों को शिक्षा प्रदान करना इतना सरल कार्य नहीं है। क्योंकि ये बालक सामान्य बालकों
से बिल्कुल भिन्न होते हैं। विशेषकर अधिगम की दृष्टि से। लेकिन ICT के बढ़ते हुए प्रयोग
ने इन बालकों की शिक्षा को एक नया मोड़ दिया है। सम्प्रेषण की नई विधियों व उपकरणों
की सहायता से विशिष्ट बालकों की शिक्षा एवं प्रशिक्षण प्रक्रिया कुछ हद तक सरल हो गई
है और प्रभावशाली भी। मूक व बाधिर बालको के लिये वीडियो कान्फ्रेंसिंग एक अच्छा
तरीका है। नेत्रहीन बच्चों के लिये बेल-लिपि पर आधारित कम्प्यूटरों का निर्माण किया जा
रहा है। इसी प्रकार इनके लिये सॉफ्टवेयरों द्वारा भी इनकी आवश्यकताओं को पूरा किया
जा रहा है।
7. पूर्व-प्राथमिक शिक्षा (Pre-Primary Education)― पूर्व-प्राईमरी स्तर की शिक्षा
में ICT का प्रवेश भी प्रभावशाली सिद्ध हो रहा है। इन छोटे बच्ची की शारीरिक गतिशीलता
के लिये अनेक इलेक्ट्रॉनिक खिलौनों पर प्रयोग बच्चों को खेल ही खेल में दिखाया जाता
है। जिससे ये बच्चे विज्ञान के प्रति अपनी जिज्ञासा के विकास का प्रयत्न करते हैं।
8. शिक्षा तंत्र में परिवर्तन (Changes insystem orEducation)― ICT ने पूरे शिक्षा
तंत्र में क्रांति लाकर उसमें व्यापक परिवर्तन कर दिये हैं, जैसे―
(i) शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया से शिक्षण के बजाये अधिगम प्रक्रिया को मुख्य केन्द्र बना
दिया है। इससे सक्रिय अन्तःक्रियाओं की संभावनाएं बढ़ गई है।
(ii) कक्षा का वातावरण अरुचिकर और एक तरफा नहीं हर पाया।
(iii) विद्यार्थी सूचनाएं अपने ढंग से प्राप्त कर सकता है तथा अपनी गति से सूचनाएँ
प्राप्त कर सकता है।
(iv) इसमें इंटर-एक्टिव मॉडल का अधिकतम प्रयोग होता है, अर्थात् अध्यापक और
विद्यार्थी की अन्तर्किया।
(v) विद्यार्थी पर ज्ञान अर्जन का उत्तरायित्व पहले की अपेक्षा अधिक हो गया है।
(vi) शिक्षकों की भूमिका में भी ICT ने परिवर्तम ला दिया है। अध्यापक ज्ञान के स्रोत
न रहकर वे विद्यार्थी के साथ सक्रिय ज्ञान प्राप्त करने वाले साथी की भूमिका में
आ गये हैं।
(vii) इस तकनीक का योगदान सेवाकालीन तथा सेवा पूर्व दोनों प्रकार की शिक्षण
गतिविधियों में देखा जा सकता है।
सूचना एवं सम्प्रेषण की सीमाएँ :
ICT के उपयोग में कुछ कठिनाइयाँ भी आती है जिनसे इसका उपयोग सीमित हो जाता
है। ICT की मुख्य सीमाएँ निम्नलिखित है―
1. ICT सम्बन्धी सूचनाएँ अभी इस देश के स्कूलों में पर्याप्त रूप से उपलब्ध नहीं है
क्योंकि कई स्कूलों के लिये इन्हें खरीद पाना संभव ही नहीं और न ही उमकी देखभाल
करना। इन परिस्थितियों में ICT का प्रयोग ऐसे स्कूलों में संभव ही नहीं।
2. ICT का प्रयोग संदेह एवं डर पैदा करता है कि इस तकनीकी के प्रयोग से उनके
हाथ में कुछ नहीं रहेगा।
3. कुछ सीमा तक स्कूल के विद्यार्थी भी ICT का प्रयोग करने में रुचि नहीं रखे। ऐसा
शायद ICT के ज्ञान के अभाव के कारण तथा उचित मार्गदर्शन के अभाव के कारण है।
4. शिक्षक भी अपनी पुरानी पद्धति में परिवर्तन नहीं करना चाहते। वे रूढ़िवादिता में
जकड़े रहना पसंद करते हैं।
5. ICT में शिक्षकों के प्रशिक्षण के अभाव के कारण भी इसका प्रयोग स्कूलों में सीमित
ही है। इसके लिये अध्यापकों को प्रशिक्षण स्तर पर ही तैयार करके ICT के प्रयोग
को सुनिश्चित किया जा सकता है।
6. स्कूलों में उपलब्ध सीमित सूचनाओं की पृष्ठभूमि हमें इसी बात की ओर संकेत करती
हैं कि अभी हमारे अधिकतर स्कूल ICT के प्रयोग के लिये पूर्ण रूप से तैयार नहीं
हुए।
7. स्कूल प्रशासन अधिकारी, मैनेजमेंट आदि भी स्कूलों में ICT के प्रयोग के बारे में
संवेदनशील नहीं है। इस बारे में उनकी उदासीनता के परिणामस्वरूप ICT का प्रयोग
सीमित-सा दिखाई देता है। इसका प्रचार तो बहुत है लेकिन इसका प्रयोग अभी हर
स्कूल की दहलीज पार नहीं कर पाया।
प्रश्न 3. शैक्षिक तकनीक (Educational Technology) क्या है? शैक्षिक तकनीक
प्रकार तथा शिक्षण अधिगम में उनके उपयोग की विस्तार से व्याख्या करें।
अथवा, शैक्षिक तकनीक के अर्थ तथा महत्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर―आधुनिक युग विज्ञान व तकनीकी युग है। दिन-प्रतिदिन नवीन मशीनों व
तकनीकियों का विकास हो रहा है। आज जीवन का कोई भी पक्ष इनसे अछूता नहीं रहा है।
आज की दौड़-भाग की जिन्दगी में, ये जीवन की आवश्यकता बन गई है। इनके बिना शायद
मानव को अपने कार्य बहुत ही कठिन अनुभव होते है। जब तकनीकी मनुष्य के जीवन से
संबंधित प्रत्येक पहल को प्रभावित कर रही है तो फिर शिक्षा इससे अछूती कैसे रह सकती
है? वर्तमान समय में शिक्षा के क्षेत्र में इनका महत्व दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। आजकल
शिक्षण प्रक्रिया में कम्प्यूटर, टेलिविजन, रेडियो आदि का प्रयोग किया जा रहा है। शिक्षा
के क्षेत्र में नवीन तकनीकों का प्रयोग हो रहा है। वास्तव में मशीनीकरण के द्वारा शैक्षिक तकनीकी
का विकास हुआ।
‘शैक्षिक तकनीको दो शब्दों शिक्षा + तकनीकी से मिलकर बना है। शैक्षिक तकनीकी
के अर्थ को समझने के लिए शिक्षा और तकनीकी के अर्थ को जानना आवश्यक है।
शिक्षा का अर्ध―शिक्षा आजीवन चलने वाली प्रक्रिया है। शिक्षा से अभिप्राय व्यक्ति
में अन्तर्निहित शक्तियों को बाहर निकालना तथा उचित विकास करना है।
तकनीकी का अर्थ―ग्रीक भाषा के टेक्नीकोज’ शब्द से तकनीक शब्द की उत्पत्ति
हुई है। जिसका अर्थ है ‘केला’।
तकनीक का संबंध कौशल तथा दक्षता से है। तकनीक शब्द का सामान्य अर्थ है―वैज्ञानिक
ज्ञान का दैनिक जीवन में उपयोग करना।
शैक्षिक तकनीकी का अर्थ―शैक्षिक तकनीकी का अर्थ है, शिक्षा के क्षेत्र में वैज्ञानिक
ज्ञान अर्थात् मशीनो, नवीन कला, कौशल क प्रयोग करना । अतः शिक्षा के क्षेत्र में तकनीक
का संबंध उस व्यावहारिक विज्ञान से है जो शिक्षण और अधिगम तक पहुँच रखता है।
शैक्षिक तकनीक की परिभाषाएँ :
शैक्षिक तकनीक के सम्बन्ध में अनेक विद्वानों ने भिन्न-भिन्न परिभाषाएँ दी है जो कि
निम्नलिखित है―
जी. ओ. एम. लेंथ के अनुसार―“शैक्षिक तकनीक, अधिगम में तथा अधिगम की
परिस्थितियों में, शिक्षण और प्रशिक्षण के प्रभाव और कुशलता में सुधार लाने के लिए वैज्ञानिक
प्रयोग है।”
कौक्स के अनुसार-“मानव के सीखने की परिस्थितियों में वैज्ञानिक प्रक्रिया के प्रयोग
को शैक्षिक तकनीकी कहते हैं।”
रिचमण्ड के अनुसार―“शिक्षा तकनीकी सीखने की उन परिस्थितियों की समुचित
व्यवस्था के प्रस्तुत करने से सम्बन्धित है जो शिक्षा एवं प्रशिक्षण के लक्ष्यों को ध्यान में रखकर
अनुदेशन को सीखने का उत्तम साधन बनाती है।”
प्रो. शिवकुमार मित्रा―”शैक्षिक तकनीकी को तकनीकों और विषयों के ऐसे विज्ञान
के रूप में लिया जा सकता है जिसके द्वारा शिक्षण उद्देश्यों की प्राप्ति की जा सके।”
राबर्ट ए. काक्स के अनुसार―”मानव की अधिगम स्थिति में वैज्ञानिक प्रक्रिया का
प्रयोग ही शैक्षिक तकनीकी है।”
शैक्षिक तकनीकी की प्रकृति तथा विशेषताएँ:
1.शैक्षिक तकनीकी शिक्षाशास्त्र का अभिन्न अंग है।
2 शैक्षिक तकनीकी में व्यावहारिक पक्ष को महत्त्व दिया जाता है।
3. शैक्षिक तकनीकी निरन्तर विकासशील विषय है।
4. शैक्षिक तकनीकी स्वयं सीखने की प्रक्रिया पर बल देती है।
5. शैक्षिक तकनीकी के विकास के फलस्वरूप शिक्षण में नवीन शिक्षण विधियों तथा नवीन
शिक्षण तकनीकों का प्रयोग हो रहा है।
6. शैक्षिक तकनीकी शिक्षण के प्रसार में सहायता देती है।
7. शैक्षिक तकनीकी शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को सरल तथा सशक्त बनाती है।
8. शैक्षिक तकनीकी, शिक्षा पर विज्ञान तथा तकनीकी के प्रभाव को प्रदर्शित करती है।
9. शैक्षिक तकनीकी द्वारा शिक्षकों और विद्यार्थियों के व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन
सम्भव है।
शैक्षिक तकनीक के प्रकार निम्न है:
1. व्यवहार तकनीक―व्यवहार तकनीक के विकासकर्ताओं में बी. एफ. स्किनर.
एंडरसन और नैड ए. फलैण्डर के नाम प्रमुख है। व्यवहार तकनीक में मनोविज्ञान की मुख्य
भूमिका होती है। मनोविज्ञान द्वारा व्यवहार का अध्ययन करते है। व्यवहार में परिवर्तन करना
ही शिक्षा और अधिगम का मुख्य उद्देश्य होता है। व्यवहार तकनीक में वैज्ञानिक बाल शिक्षक
के व्यवहार को सुधारने के लिए प्रयोग किया जाता है।
व्यवहार तकनीक में व्यक्तिगत विभिन्नता को ध्यान में रखकर शिक्षा दी जाती है, लिखने
की प्रक्रिया को प्रभावी बनाना ही इसका मुख्य उद्देश्य है।
अवधारणा:
1. शिक्षक का व्यवहार मापनीय होता है।
2 शिक्षक का व्यवहार सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक होता है।
3. शिक्षक का व्यवहार अवलोकन-योग्य होता है।
4. शिक्षक का व्यवहार संशोधनीय होता है।
प्रक्रिया:
मुख्य रूप से अध्यापक व्यवहार को व्यवहार तकनीक में शामिल किया गया है।
1. इसमें सर्वप्रथम अध्यापक के व्यवहार का निरीक्षण किया जाता है।
2. व्यवहार निरीक्षण करने के बाद अध्यापक व्यवहार में परिवर्तन लाने के लिए लक्ष्य
निर्धारित किया जाता है कि व्यवहार में क्या-क्या परिवर्तन लाना है।
3. लक्ष्य निर्धारित करने के बाद निर्धारित किया जाता है कि कौन-कौन सी विधियों द्वारा
व्यवहार में परिवर्तन लाना है। इसमें सूक्ष्म शिक्षण तथा अनुकरणीय शिक्षण द्वारा
प्रशिक्षण देने की व्यवस्था की जाती है।
विशेषताएँ:
1. व्यवहार तकनीक का आधार मनोवैज्ञानिक है।
2. व्यवहार तकनीक में शिक्षक व्यवहार का निरीक्षण कर उसमें परिवर्तन किया
जाता है।
3. व्यवहार तकनीक में पुनर्बलन और पृष्ठपोषण का सिद्धान्त कार्य करता है।
4. व्यवहार तकनीक क्रियात्मक उद्देश्यों पर अधिक केंद्रित होती है।
5. व्यवहार तकनीक कक्षा में व्यवहार के तत्त्वों और कक्षा में व्यवहार की दिशा पर
केन्द्रित रहती है।
अतः व्यवहार तकनीक के द्वारा शिक्षक के व्यवहार में वांछित परिवर्तन ला सकते हैं
तथा प्रभावी शिक्षक बना सकते हैं।
2. अनुदेशनात्मक तकनीक― अनुदेशनात्मक तकनीक के विकासकर्ताओं में नार्मन ए.
काउडर, बी. एफ. स्किनर, राबर्ट मेगर है। अनुदेशनात्मक तकनीक को शैक्षिक तकनीकी
के नाम से भी जाना जाता है। यह अधिगम परिस्थितियों में प्रयुक्त नवीन शिक्षण व्यवस्था
है। अनुदेशन स्मृति स्तर की क्रिया है। अनुदेशन का कार्य सूचनाएँ प्रदान करना है। इसमें
शिक्षण सिद्धान्त. शिक्षण प्रारूप, शिक्षक के व्यवहार सिद्धान्त आदि को शामिल किया जाता
है। अनुदेशन तकनीकी में कक्षा अथवा कक्षा से बाहर पाठ्य-वस्तु को प्रस्तुत करने का वर्णन
मिलता है।
अनुदेशन तकनीक में कार्य सीमित या संकीर्ण होता है। इस तकनीक में हार्डवेयर तथा
दृश्य-श्रव्य प्रणाली की सहायता ली जाती है। इनमें सभी प्रकार की मशीनों कम्प्यूटर,
टेपरिकॉर्डर, रेडियो तथा प्रोजेक्टर आदि का प्रयोग किया जाता है।
अवधारणा:
1. इसमें शिक्षक के न रहने पर भी छात्र स्वयं अध्ययन से सीख सकता है।
2. इसमें विद्यार्थियों की व्यक्तिगत विभिन्नताओं को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक छात्र को
सीखने का अवसर प्रदान किया जाता है।
3. इसमें पाठ्यवस्तु को छोटे-छोटे तत्वों में विभाजित किया जाता है।
4. इसमें अधिगम उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए विभिन्न व नवीन तकनीकों का प्रयोग किया
जाता है।
5. अनुदेशन के निरन्तर प्रयोग से छात्रों को अधिगम हेतु पुर्नबलन दिया जाता है।
स्वरूप:
1. कक्षागत अन्तःक्रिया विश्लेषण
2. अभिक्रमित अधिगम
विशेषताएँ:
1. यह तकनीक प्रभावी शिक्षकों की कमी को पूरा कर सकती है।
2. यह तकनीक ज्ञानात्मक उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायता करती है।
3. इस तकनीक में पाठ्यवस्तु का बहुत गहराई से विश्लेषण किया जाता है।
4. इस तकनीक में छात्र अपनी गति के अनुसार सीखता है।
5. विद्यार्थियों द्वारा सही अनुक्रिया करने पर पुर्नबलन दिया जाता है।
6. इनमें हार्डवेयर उपागम का प्रयोग किया जाता है।
7. इस तकनीक में शिक्षक व अध्यापक के मध्य अंतःक्रिया होना आवश्यक
नहीं है।
अतः अनुदेशनात्मक तकनीक अधिगम में सुविधाजनक स्थिति उत्पन्न की जाती है तथा
छात्र शिक्षकों के अभाव में भी सीख सकता है।
3. शिक्षण तकनीक―शिक्षण तकनीक में योगदान देने वालों में बूनर, ग्लेसर, आई.
के. डेविस तथा गेज के नाम प्रमुख है। शिक्षण एक सोद्देश्य प्रक्रिया है। शिक्षण को अधिक
वस्तुनिष्ठ बनाने के लिए नवीन कौशलों व वैज्ञानिक सिद्धान्तों का प्रयोग करते हैं। यह कार्य
शिक्षण तकनीक है। इसका मुख्य उद्देश्य सर्वांगीण विकास करना है, जो छात्र शिक्षक की
अन्तःक्रिया द्वारा होता है। शिक्षण तकनीक में दर्शनशास्त्र, समाजशास्त्र तथा वैज्ञानिक ज्ञान
का प्रयोग करते हैं।
अवधारणा:
1. शिक्षण प्रक्रिया में आवश्यक सुधार किये जा सकते हैं।
2. शिक्षण द्वारा उचित परिस्थितियाँ उत्पन्न करके अधिगम को प्रभावशाली बनाया जा
सकता है।
3. शिक्षण कार्य छात्र प्रधान है।
शिक्षण तकनीक की विषयवस्तु:
1.नियोजन―यह प्रथम चरण है। इसमें शिक्षक पाठ्यवस्तु का विश्लेषण करता है अर्थात्
पाठ्यवस्तु को विभिन्न भागों में विभाजित करता है। इसके बाद उद्देश्यों को निर्धारित किया
जाता है। इन निर्धारित उद्देश्यों को व्यावहारिक शब्दावली में लिखा जाता है।
2. व्यवस्था― नियोजन के बाद व्यवस्था दूसरा चरण है। इसमें.उद्देश्यों की प्राप्ति के
लिए उपयुक्त निरीक्षण विधियों व उपयुक्त सहायक सामग्री व युक्तियों का चयन किया जाता
है। जिससे निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति हो सके।
3. मार्गदर्शर―इसमें शिक्षक विद्यार्थियों को बार-बार अभिप्रेरित करता रहता है, जिससे
उसकी रुचि विषयवस्तु में बनी रहे।
4. नियंत्रण― इस चरण में नियंत्रण से अभिप्राय मूल्यांकन करने से है। निर्धारित उद्देश्यों
की प्राप्ति में कितनी सफलता मिली है, जानने के लिए मूल्यांकन किया जाता है। यदि ऐसा
अनुभव होता है कि उद्देश्य प्राप्ति नहीं हुई है तो प्रयोग की गई शिक्षण विधियों, युक्तियों
में संशोधन किया जाता है।
विशेषताएंँ:
1. शिक्षण तकनीक से शिक्षण को प्रभावशाली बनाया जा सकता है।
2. शिक्षण तकनीक में दर्शनशास्त्र, समाजशास्त्र तथा वैज्ञानिक ज्ञान का प्रयोग किया
जाता है।
3. इस तकनीक का मुख्य उद्देश्य सर्वांगीण विकास करना है।
4. इस तकनीक से तीन पक्षों (ज्ञानात्मक, भावात्मक और क्रियात्मक) के उद्देश्यों को प्राप्त
किया जाता है।
5. शिक्षण तकनीक द्वारा शिक्षण प्रक्रिया में स्मृति स्तर, बोधस्तर तथा चितन स्तर का
प्रयोग किया जा सकता है।
6. इसमें शिक्षक प्रबंधक के रूप में होता है।
अतः शिक्षण तकनीक का उद्देश्य ज्ञानात्मक, भावात्मक तथा क्रियात्मक पक्षों का विकास
करना है। इसमें शिक्षण को प्रभावशाली बनाने का प्रयास किया जाता है।
शिक्षण-अधिगम में शैक्षिक तकनीक का महत्व/लाभ/उपयोगिता:
शैक्षिक तकनीक ने शिक्षा के क्षेत्र में नवीन परिवर्तन ला दिए हैं। शिक्षण व अधिगम
में वैज्ञानिक परिवर्तन किए हैं, जिनके परिणामस्वरूप इनका शिक्षण-अधिगम में महत्त्वपूर्ण स्थान
है।
1. शैक्षिक तकनीक शिक्षण को वैज्ञानिक आधार प्रदान करके उसे सुव्यवस्थित बनाती
है। इससे शिक्षक को अपनी शिक्षण क्रियाओं की उचित व्यवस्था करने में सहायता
मिलती है।
2. शैक्षिक तकनीक द्वारा शिक्षण अधिगम में रेडियो, दूरदर्शन, कम्प्यूटर आदि का
प्रयोग करना संभव हो पाया है।
3. शैक्षिक तकनीक में शिक्षण में आधुनिक विधियों, प्रविधियों, तकनीकों का प्रयोग
किया जाता है, इन्हीं आधुनिक तकनीकों के प्रयोग से दूर-दराज क्षेत्रों में भी शिक्षण
व अधिगम संभव हो पाया है।
4. शैक्षिक तकनीक उचित पाठ्यक्रम के निर्माण में सहायक है। शिक्षक इसी के आधार
पर उचित अनुदेशनात्मक सामग्री का चुनाव और विश्लेषण करता है तथा उसे
क्रमबद्ध रूप में व्यवस्थित करता है।
5. शैक्षिक तकनीक अधिगम मनोविज्ञान के विकास द्वारा बच्चों की व्यक्तिगत विभिन्नता
का पता लगाने में सहायक होती है। जिससे बच्चों की व्यक्तिगत विभिन्नता को
ध्यान में रखकर उपयुक्त शिक्षण विधियों का प्रयोग करते है जिससे शिक्षण व
अधिगम अच्छा तथा प्रभावशाली होता है।
6. शैक्षिक तकनीक शिक्षण और अधिगम को अधिक उद्देश्य पूर्ण बनाती है।
7. शैक्षिक तकनीक छात्रों के अपेक्षित व्यवहार में परिवर्तन लाने में सहायक है।
8. शैक्षिक तकनीकी की सहायता से शिक्षक के व्यवहार का मूल्यांकन व मापन हो
सकता है। यदि मूल्यांकन करने पर असंतोषजनक परिणाम निकलते है तो शिक्षक
अपनी शिक्षण प्रक्रिया में आवश्यक संशोधन कर सकता है।
9. इससे अध्यापक अपने छात्रों को उचित प्रतिपुष्टि प्रदान करता है और शिक्षण अधिगम
प्रक्रिया में सुधार लाकर उद्देश्य प्राप्त करने का प्रयास कर सकता है।
10. शैक्षिक तकनीक नवीन शिक्षण विधियों, तकनीकों एवं व्यूह रचनाओं को विकसित
करने में सहायक है। शैक्षिक तकनीक द्वारा न केवल नवीन विधियों का पता चलता
है बल्कि यह उनके प्रयोग करने में अध्यापक का उचित मार्गदर्शन करता है।
11. शैक्षिक तकनीक शैक्षिक वातावरण में उपस्थित प्रतिकूल परिस्थितियों की सम्भावना
का पता लगाकर उन्हें दूर करने के तरीके बताती है, जिससे शिक्षक को शैक्षिक
वातावरण पर नियंत्रण बनाए रखने में सहायता मिलती है।
निष्कर्ष:
अतः हम कह सकते हैं कि शैक्षिक तकनीक शिक्षा के क्षेत्र में नवीन परन्तु महत्वपूर्ण
खोज के समान है। शैक्षिक तकनीक के फलस्वरूप शिक्षा के क्षेत्र में नवीन विधि बनी, प्रविधियों
का प्रयोग संभव हो पाया है। पाठ्यक्रम के निर्माण में भी इसका योगदान है। शैक्षिक तकनीक
शिक्षण की वैज्ञानिक आधार प्रदान कर उसे क्रमबद्ध बनाती है। शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को
सरल,रोचक व प्रभावशाली बनाने में शिक्षक की सहायता करती है। इसके प्रयोग से अध्यापक
के समय तथा शक्ति की बचत होती है। शैक्षिक तकनीक द्वारा कम समय में अधिक छात्रों
को तथा दूर-दराज क्षेत्रों में रहने वाले छात्रों की शिक्षा प्रदान कर पाना संभव हुआ है।
प्रश्न 4. कम्प्यूटर (Computer) किसे कहते हैं ? इसके प्रमुख इनपुट उपकरणों
और आउटपुट उपकरणों को बताएँ ।
उत्तर―कम्प्यूटर (Computer)― आधुनिक Computer को हम इस प्रकार परिभाषित
कर सकते हैं।
“एक ऐसी मशीन जो Stored Programme के आधार पर Data स्वीकार करके उन
पर Processing करके वांछित परिणाम देता है तथा Data और Information को भविष्य में
पुनः प्रयोग के लिए Store रेखता है, उसे Computer कहते हैं।
Full Form of Computer :
C―Commonly
O―Operating
M―Machine
P―Personal
U―Use
T― Technical
E ―Educational
R ―Research
दूसरे रूप में Computer को हम निम्न तरह से परिभाषित कर सकते हैं―
“एक Machine जो Input के रूप में Data स्वीकार करती हो, Store और Process
करती हो और अन्त में Output के रूप में परिणाम देती है। उस Machine को Computer
कहते है।”
Computer एक ऐसी मशीन है जो Information को स्वीकार करती है, उसे Process
करती है और उसे Output में नए Information के रूप में प्रकट करती है, अतः Computer
एक विद्युत संचालित उपकरण है जो दिए गए डाटा (data) को दिए गए निर्देशों के आधार
पर Processing कर वांछित परिणाम देता है । Computer को दिए गए निर्देश को Computer
एक विशेष Programming Language जिसे मशीन Language कहते हैं, में समझता है तथा
निर्देशों के Set को Programme कहा जाता है।
Computer को प्रायः तारों के माध्यम से विभिन्न Input, Output यन्त्रों से जोड़ा जाता है।
निवेश-माध्यम (Input Devices):
किसी समस्या को हल करने के लिए कम्प्यूटर प्रोग्राम तथा Data माँगता है। प्रोग्राम तथा
Data प्रवष्टि करने का कार्य निवेश उपकरणों की सहायता से किया जाता है। Computer
में Data को निवेश करने के लिए निम्नलिखित Devices का प्रयोग किया जाता है।
1. Key Board―यह देखने में टाईपराइटर के समान होता है, जिसमें संख्यात्मक Key
तथा अक्षरात्मक Key तथा कुछ अन्य Keys होती है। संख्यात्मक Key Calculator की तरह
होते हैं, ताकि Data को आसानी से निवेश किया जा सके।
The main keys of keyboard are as follow :
(a) Enter Key-To enter command and go to next line.
(b) Del (Delete)-To clear the selected matter.
(c) F1, F2, F3 … F9—They are function keys and used according different
software.
(d) Arrow keys-To move cursor.
(e) Shift Key-To write Capital Letter.
(f) CAPS Lock-Key Board को Lock कर देता है, जिससे वह केवल Capital
Letter ही लिखता है।
इस प्रकार Key Board की विभिन्न Key की मदद से विभिन्न Commands का Use
भी किया जाता है।
2.Mouse-माऊस एक ऐसा निवेश यन्त्र है जो Screen पर एक Insertion बिन्दु को
movement द्वारा नियंत्रित करता है। जब User Mouse को हिलाता है तो वहाँ Insertion
Point भी Move होता है तथा User उसे सुविधाजनक स्थिति में ले जाकर कार्य नियंत्रित कर
सकता है। User Mouse पर अपनी हथेली तथा Left & Right साइड पर अंगुलियों रखता
है। फिर Mouse Pad पर माउस को हिलाता है, सुविधाजनक स्थिति में होने पर वह अँगुलियो
से बटन दबा देता है तथा उसे Result प्राप्त हो जाता है।
माऊस पर दो बटन होते हैं, जिन्हें Left तथा Right बटन कहा जाता है। माऊस के
नीचे एक बियरिंग बाल लगा होता है। जब Mouse, Mouse Pad पर हिलता है तो वह बियरिंग
बाल भी हिलती है।
Mouse के अंदर दो घूमने वाले Rotter Vertical तथा Horizontal Roller होते हैं। ये
दोनों बियरिंग बाल से सटे होते हैं। जब बियरिंग बाल घूमता है तो इसमें भी Movement
होती है।
3. Scanner―स्कैनर भी एक Input Device है जो कम्प्यूटर में Graphics Pictures,
Textऔर data डालने के लिए प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार स्कैनर की मदद से Textual
matter को निवेश किया जाता है। इसमें सामान्य Typing से तेज कार्य होता है। प्रायः Pictures
तथा Graphs को अच्छी तरह निवेश केवल इसी के द्वारा किया जाता है।
4.Joystick―यह लगभग Mouse के समान यन्त्र है, Mouse and Joystick में मुख्य
अंतर यह है कि Joystick का संकेतक बिंदु लगातार उसी दिशा में घूमता है, जिस दिशा
में Joystick को रखा जाता है। संकेतक को रोकने के लिए आप को पुनः अपराइट बटन
का प्रयोग करना होता है।
ज्यादातर Joystick में दो बटन होते हैं जिन्हें ट्रिगर कहते है, ये Computer Game
खेलने में तथा CADICAM System के साथ प्रयोग किए जाते है।
5. Light Pen―यह एक Input Device है जिसका प्रयोग Computer
पर चित्रकला
तथा अन्य Graph बनाने में किया जाता है। यह Pen के आकार का संयंत्र होता है जो मॉनीटर
के सामने ले जाने पर स्वयं ही प्रगतिशील हो जाता है। इस Pen में लाइट रिप्रेप्टर लगा
होता है जो कि Display screen के सामने लाते ही कार्य करता है। इसके लिए विशेष
सुविधाजनक Software को आवश्यकता होती है। जो Pen द्वारा दिए गए संकेतों को पहचान
सके।
6. Track Bell-Track Bell एक Pointing यंत्र है जो एक Upside down Mouse
की तरह कार्य करता है। उपयोगकर्ता अपने अंगूठे को Bell पर लगाता है तथा अँगुलियाँ
बटनों पर रखता है। Screen के चारों ओर Point घुमाने के लिए बटन को घुमाया जाता है।
ये Apply Computer Power में निर्मित की गई है।
7.Screen―Touch Screen हौलेंड पैकड़ का एक आविष्कार है। यह 1984 में उनके
100 Secter MicroComputers के साथ प्रयोग द्वारा किया गया था।
इसमें एक अदृश्य माइको वेवविय ‘मैटिकर’ स्क्रीन पर डिस क्रॉस करता है। प्रदर्शन
Screen के नीचे तथा Sides पर बिन्द भरते है। Screen पर जैसो ही ऊँगली लगाई जाती
है, तो यंत्र हरकत में आ जाता है। अनेक तरीकों में यह माऊस की अपेक्षा प्रभावी है। यह
प्रायः डॉक्टर, इंजीनियर के लिए उपयोगी है।
निर्गत-माध्यम(Output Devices)―निर्गम-माध्यम भी निवेश माध्यमों की तरह मानव
तथा मशीन के बीच सम्प्रेषण के लिए प्रयुक्त होने वाला यंत्र है। ये माध्यम समस्याओं को
मशीन कोड में प्राप्त करते हैं तथा फिर Numan Under Standable भाषा में परिवर्तित करके
User तक पहुँचाते है।
1.Printer―Printer साधारण कागज या विशेष कागज पर स्थायी रिकार्ड के रूप में
Output देने वाला अत्यधिक प्रचलित यंत्र है। जैसे प्रेषण पर बीजक या पैकिंग स्लिप्रे, इनकी
गति प्रायः 50 से 2500 पंक्तियाँ प्रति मिनट होती है। Printer के निम्न प्रकार होते है।
1. Impact Printer
(a) Serial Printer
(i) Dot Matrix Printer
(ii) Dassy Wheel Printer
(b) Line Printer
(i) Chain Printer
(ii) Drum Printer
II. Non Impact Printer :
(a) Thermal Printer
(b) Inkjet Printer
(c) Laser Printer
I. Impact Printer―Impact Printer वे Printer हैं जो प्रिंट करते समय आघात
पहुँचाते है। इन प्रिंटर के पीछे हथौड़ियों लगी होती है जो कागज पर स्याही छापती है।
प्रायः इन Printer में स्याही वाले रिबन का प्रयोग होता है। ये केवल Right, Left या
दोनों तरफ कार्य करने वाले होते है।
(a) Serial Printer―ये प्रिंटर सामान्यतः एक बार में एक ही अक्षर प्रिंट करते हैं तथा
बाएँ से दाएँ चलते है। कुछ संगठनों में दोनों तरफ चलने वाले Printer Use किए जाते है।
(i) Dot Matrix Printer―सन् 1970 में विकसित इस छोटे, सघन प्रिंटरों ने
अपेक्षाकृत कम मूल्य पर व्यवसाय में प्रवेश किया, ये उच्च गुणवत्तायुक्त प्रिंटर
थे। ये अनेक मिनी कम्प्यूटर तथा सभी Pc के साथ प्रयुक्त हो सकते है। इसलिए
ये Work Processing के लिए उपयुक्त है।
इस Printer के Print Head मे सुइयों या पिनों का प्रयोग किया जाता है जो अक्षर
बनाने के लिए लगे कागज के सामने रिबन पर चोट पहुँचाते है। Printer Head
एक मैट्रिक्स बाल से छोटा होता है, जिसमें पंक्तियाँ व स्तंभ छिद्रित होते है। इसके
प्रमुख निर्माता Protor, Canon, Stor, Tally आदि है।
(ii) Dassy Wheel Printer―इस प्रिंटर में एक Dassy Wheel का प्रयोग किया जाता
है जो Dassy के फुल आकार की होती है। इसलिए इसे डेजी हील प्रिंटर कहा
जाता है। इस Printer के बीच में एक हथौड़ी से चोट मारी जाती है। जिस कारण
Computer द्वारा निर्देश देने पर अक्षर छप जाता है। इनमें सारा काम काफी तेजी
से होता है। इसके निर्माता Data Point, Brother Tec. तथा Wany आदि है।
(b) Line Printer-ये Printer एक साथ पूरी लाइन की Print कर देते है। इसकी
गति उच्च व गुणवत्ता कम होती है, जहाँ गुणवत्ता इतनी महत्त्वपूर्ण नहीं होती वहाँ इसका प्रयोग
करते है।
(i) Chain Printer―ये प्रिंटर एक Chain की तरह होते है। पूरी chain पर 48
संख्याएँ वर्णमाला विशेष प्रतीक द्वारा बनी होती है। इसके पीछे छोटी-छोटी हथौड़ियाँ
होती है, जो कागज को टेकने पर इस पर प्रहार करती है।
(ii) Drum Printer―ये Printer Drum के आकार के होते है। इसमें प्रत्येक वैड पर,
46 संख्या में अक्षरों तथा विशेष प्रतीकों का जखीरा मौजूद रहता है।
II. Non Impact Printer―वे प्रिंटर जो प्रायः प्रिंट करते समय कागज पर आघात
नहीं करते हैं. Non Impactrrinter कहलाते हैं । ये Printer इलेक्ट्रॉनिक या रासायनिक माध्यम
का प्रयोग करते है।
निम्नलिखित कारणों से ये Printer ज्यादा प्रयोग नहीं किए जाते है―
(1) इस Printer पर विशेष तरह का कागज प्रयोग किया जाता है। जो प्रायः महँगा
होता है।
(2) एक बार में केवल एक कॉपी ही Print होती है।
(3) इसका Print, Impact के समान स्पष्ट नहीं होता है।
(4) अधिक प्रतियाँ निकालना कठिन है।
उपरोक्त कमियों के बावजूद ये Printerआज भी काफी प्रयोग किए जाते हैं । इस Pinter
का प्रयोग भविष्य में और भी बढ़ जाने की संभावना है, क्योंकि इसकी प्रौद्योगिकी और मस्ती
हो जाएगी। ये एक सेकंड में एक या एक से अधिक कॉपियाँ Print कर सकेंगे।
आज के समय में लेजर Printer सबसे महँगा व परिचालन लागत वाला Printer है।
(a) Thermal Printer―इस Printer में ऊष्मा से Print किया जाता है। इसम अक्षरी
की बनावट Dot Matrix Printer की तरह होती है, किन्तु इस पर आघात नहीं किया जाता
है। इसमें विद्युत द्वारा Pines को ऊष्मा दी जाती है तथा हल्के दबाव से वह कागज पर छप
जाता है, जैसे ही Pins कागज को छूती है वह अपने ताप से कागज को भूरा तथा हल्क
काला कर देती है।
(b) Inkjet Printer―यह भी Dot Matrix के सिद्धांत पर कार्य करता है, किंतु इसमें
Pins नहीं होती हैं, उनके स्थान पर नोजल होती हैं, जिससे स्याही की फुहारे निकलती है।
ये अत्यधिक शांत Printer है जो अत्यधिक कम लागत पर लेजर किस्म की गुणवत्ता प्रदान
करते हैं। इसकी सप्लाई अपेक्षाकृत महँगी पड़ती है।
(c) Laser Printer―लेजर प्रिंटर एक संयुक्त तंत्र का उपयोग करता है जो लेजर तथा
पैरोग्राफिक फोटो कॉपिंग प्रौद्योगिकी का उपयोग करती है।
हाल ही में एक अत्यधिक प्रतिरूप मूल्य का लेजर Printer Laser Jet हालैट पैकर्ट द्वारा
प्रस्तुत किया गया है; लेजर Printer में प्रस्ताव को प्रति इंच Dots में मापा जाता है। सर्वाधिक
प्रयुक्त लेजर Printer में लम्बवत् तथा क्षैतिज तौर पर 2400 DPl रिजोलुशंस होते है।
2.Monitor―Monitor देखने में ठीक TV की तरह होता है। Monitor के सामने वाले
हिस्से को Screen कहा जाता है, जिसमें कैथोड में ट्यूब जुड़ी होती है। Porable Computer
में लिक्विड क्रिस्टल Display का प्रयोग किया जाता है।
आजकल सुपर वीडियो ग्राफिन्स ऐसे Computer Monitor में 25% चमकीले व स्वच्छ
रंग होते हैं। प्रायः Monitor को उनके रंगों तथा signal के आधार पर वर्गीकृत किया जा
सकता है।
Classification of Monitor :
(i) On the basis of Colour
(ii) On the Basis of Signal
(a) Digital Monk
(b) Analog Monk
3.Plotter―प्लाटर वह साधन है जिसकी सहायता से माफ, मानचित्र, डिजाइन तथा
रेखाचित्र को कागज या अन्य धातु पर उतारा जा सकता है। इसमें उच्च कोटि की शुद्धता
होती है | Designing कार्यों में प्रयुक्त otter प्रायः Online वलता है, परंतु अन्य उपयोगों
में इसे Offline में चलाया जाता
(i) Drum Plotter
(ii) Flick Plotter
आजकल बाजार में अनेक प्लाटर Disktop Modal उपलब्ध है जो Micro Computer
के साथ Use होते हैं।
व्यवसाय में सामान्यतः यह BarChart/Graphics/Pictures तथा इंजीनियरिंग ड्राइंग में
प्रयोग होते हैं।
4.Sound Card and Speakers―ध्वनि कार्ड Digital sवनियों को इलेक्ट्रॉनिक करंट
मे बदलता है, जो वहाँ Speaker को भेजता है। जब ध्वनि को Play-back किया जाता है तो
ध्वनि कार्ड इस प्रक्रिया को उल्टा करता है। ध्वनि कार्ड एकexpansioneurd है जो Computer
में ध्वनि निर्गमन को आसान बनाता है। यह सभी CDROMS के लिए आवश्यक है।
प्रश्न 5. आधुनिक शैक्षिक माध्यम के रूप में कम्प्यूटर के कार्य, कार्यक्रम तथा
उपयोगिता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर―कम्प्यूटर के प्रमुख कार्य (Functions of the Computer) अनुदेशन के
लिए कम्प्यूटर निम्नलिखित कार्य करता है:
1. कार्डों पर सूचनाओं को संचित करता है। चुम्बकीय टेपे तथा टेप पर भी सूचनाओं
को संचित करता है।
2. अभिक्रमित अनुदेशनों को भी संचित रखता है।
3. संचित सूचनाओं में से अपेक्षित प्रदत्तों का चयन करता है।
4. विद्युत टंकन मशीन की सहायता से सूचनाओं का बाह्य सम्प्रेषण करता है।
कम्प्यूटर की यह क्षमताएँ प्रभावशाली अनुदेशनात्मक प्रणाली की आवश्यकताओं को
पूर्ति करती है। छात्रों की व्यक्तिगत भिन्नताओं के अनुसार कई प्रकार के अभिक्रमित अनुदेशनों
को कम्प्यूटर में रखा जाता है और एक कम्प्यूटर से बत्तीस छात्र एक ही समय में अपनी-
अपनी आवश्यकतानुसार बत्तीस भिन्न प्रकार के अनुदेशन का अध्ययन कर सकते है।
कम्प्यूटर तथा शिक्षण प्रक्रिया (Computer and Teaching Process)–लारेंस
स्टोलुरों तथा डेनियल डेविज (1995) ने सबसे जटिल शिक्षण प्रतिमान का विकास किया है
उसमें शिक्षक के स्थान पर कम्प्यूटर का अनुदेशन के प्रस्तुतीकरण के लिए प्रयोग किया गया
है। स्टोलुरों तथा डेविज ने कम्प्यूटर के शिक्षण प्रक्रिया को दो पक्षों में विभाजित किया है:
1. पूर्व-अनुवर्ग शिक्षण पर और
2. अनुवर्ग शिक्षण पक्ष।
पहले पक्ष में कम्प्यूटर अनुदेशन के विशिष्ट उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए विशिष्ट
छात्र का चयन करता है। यह चयन छात्र पूर्व व्यवहार के आधार पर किया जाता है।
दूसरे पक्ष में कम्प्यूटर अनुदेशन का प्रस्तुतीकरण करता है और अनुदेशन के बाद छात्रों की
निष्पत्तियों का मापन करता है।
कम्प्यूटर का प्रशासनिक उपयोग (Administrative Applications of
Computers)―शिक्षण, अधिगम तथा अनुदेशन के उपयोग के अतिरिक्त कम्प्यूटर का
उपयोग प्रशासनिक कार्यों में भी किया जाता है।
1. छात्र के अभिलेख को रखने के लिए,
2. वित्तीय व्यवस्था करने के लिए,
3. सांख्यिकी को स्थिर करने के लिए.
4. छात्रों के बिलों के भुगतान के लिए,
5. विभिन्न प्रकार के ऋण एवं अन्य प्रकार के अभिलेखों के लिए,
6. छात्रों के प्राप्तांकों को भेजने के लिए तथा अंक चिट बनाने के लिए,
7. उत्तम प्रकार की अध्ययन सामग्री के उत्पादन के लिए प्रयोग किया जाता है।
कम्प्यूटर की उपयोगिता (Uses or Computer)― कम्प्यूटर का उपयोग उद्योग,
व्यापार, सेना तथा शिक्षा में किया जाता है। कम्प्यूटर ने मनुष्य की जटिल समस्याओं के
सरल एवं सुगम बना दिया है। शिक्षा के क्षेत्र ने कम्प्यूटर का प्रयोग प्रमुख रूप से चार क्षेत्रों
में अधिक किया गया है:
(1) शिक्षा के अनुदेशन में, (2) शिक्षा के शोध कार्यों में, (3) शिक्षा निर्देशन व परामर्श
में और (4) परीक्षा प्रणाली में किया जाता है।
1. शिक्षण तथा अनुदेशन―व्यक्तिगत अनुदेशन के लिए इसका प्रयोग किया जाता है।
एक कम्प्यूटर पर एक समय में कई प्रकार के छात्र एक पाठ्यवस्तु के कई अनुदेशो का अध्ययन
करते है। इस प्रकार कम्प्यूटर अनुदेशन की व्यवस्था करता है। शिक्षक अपने कक्षा-शिक्षण
में अनुदेशन के समुचित रूप में चयन के लिए कम्प्यूटर की सहायता ले सकता है। प्रस्तुतीकरण
के साथ-साथ इसके द्वारा छात्रों की अनुक्रियाओं का भी अवलोकन किया जाता है। कम्प्यूटर
शिक्षण के उद्देश्यों, छात्रों के पूर्व-ज्ञान तथा प्रस्तुतीकरण के सम्बन्ध में निर्णय लेता है।
2. शोध कार्य― कम्प्यूटर का प्रयोग अनुदेशन के प्रस्तुतीकरण की अपेक्षा शोध कार्यों
में अधिक किया जाता है। भारतीय परिस्थितियों में भी कम्प्यूटर का प्रयोग शाद कार्यों में
किया जाने लगा है परन्तु यहाँ पर इसका प्रयोग अनुदेशन के लिए सम्भव नहीं हो पाया है।
प्रदत्तों के संकलन के पश्चात प्रदत्तों के विश्लेषण के लिए कम्प्यूटर को प्रयोग किया जाता
है। इसके द्वारा विशाल प्रदत्तों का विश्लेषण छः घण्टो मे हो जाता है। कम्प्यूटर द्वारा प्राप्त
परिणाम शुद्ध होते हैं।
3.शैक्षिक निर्देशन तथा परामर्श―कम्प्यूटर का प्रयोग अतः निर्देशन तथा परामर्श के
लिए भी किया जाता है । शैक्षिक निर्देशन के लिए छात्रों का निदान किया जाता है और उनकी
कमजोरियों के उपचार के लिए अनुदेशन दिया जाता है। इसके अतिरिक्त व्यावसायिक निर्देशन
के लिए छात्र की क्षमताओं तथा योग्यताओं को कार्ड पर अंकित करके कम्प्यूटर को दे दिया
जाता है । कम्प्यूटर उनकी क्षमताओं के आधार पर निर्देशन तथा परामर्श का सम्प्रेषण विद्युत टंकन
मशीन द्वारा करता है। इस प्रकार कम्प्यूटर की सेवाएँ अब भारतवर्ष में उपलब्ध की जा रही है।
4.परीक्षा प्रणाली―शिक्षा की प्रमुख दो क्रियाएँ होती हैं-शिक्षा तथा परीक्षण इन दोनों
क्रियाओं के लिए कम्प्यूटर का प्रयोग किया जाता है। परीक्षाफल तैयार करने में अधिक समय
लगता था। अतः जब भारतवर्ष में भी विश्वविद्यालय तथा परीक्षा-परिषदें अपने परीक्षाफलो
को तैयार करने में कम्प्यूटर की सहायता लेने लगी है।
इस प्रकार भारतवर्ष में परीक्षा तथा शोघ के प्रदत्तों के विश्लेषण में कम्प्यूटर का प्रयोग
किया जाने लगा है। शिक्षण तथा निर्देशन में इसका प्रयोग अभी पश्चिमी देशों तक ही सीमित
है। इसके अतिरिक्त भारतवर्ष में कम्प्यूटर की सेवाओं का उपयोग अन्य उद्योग, व्यापार,
प्रशासन तथा सेवा आदि में भी किया जाने लगा है।
कम्प्यूटर के उपयोग के क्षेत्र (Scope of Computer Uses)―दूरवर्ती अधिगम के लिए
कम्प्यूटर की पारस्परिक क्रिया की कुछ मुख्य विशेषताएँ हैं, कुछ विशेषताएँ नीचे दी गई
है जो कम्प्यूटर के उपयोग के क्षेत्र को प्रकट करती है :
1. विशेषज्ञों द्वारा अधिगम की प्रशंसा करना।
2. एकाकी एवं बहुमुखी की प्रशंसा करना।
3. शिक्षार्थी का क्रियात्मक योगदान रहता है।
4. कार्यक्रम की समस्याओं से सम्बन्धित करना।
5. सदस्यों एवं विशेषज्ञों द्वारा अनुसरण, पृष्ठपोषण एवं क्रियान्वयन करना।
6. स्वःनिर्देशित आदि एवं अन्त पर नियंत्रण समय, स्थान एवं गति के अनुसार सम्प्रेषण
करना।
कम्प्यूटर के प्रयोग की अनुदेशनात्मक परिस्थितियाँ (Instructinal Situations of
Computer Application)―कम्प्यूटर के उपयोग की अनुदेशनात्मक परिस्थितियाँ
अधोलिखित होती हैं :
1. छात्र के पंजीकरण के लिए पूर्व परीक्षण की व्यवस्था करना,
2. वैयक्तिक कार्यक्रमों का नियोजन एवं मुद्रण करना,
3. छात्रों के विकास के लिए निर्देशन देना तथा
4. प्राप्तांकों एवं परीक्षणों के लिए प्रयोग में लाना।
इस प्रकार अनेक आलेख की फाइलों को कम्प्यूटर में सुरक्षित रखा जा सकता है। शाब्दिक
प्रक्रिया के द्वारा पाठ्यक्रम का विकास करना एवं आँकड़ों के द्वारा प्रशासन की सहायता करना।
कम्प्यूटर के लिए अन्य प्रकार के कार्यों के लिए आदान-प्रदान भी कर सकते है।
कम्प्यूटर के अन्य कार्य अध्ययन सामग्री के आदान-प्रदान के लिए किसी विषय विशेष पर
प्रारूप के रूप में अपने शिक्षार्थी को अपने ढंग से कार्य करने के लिए प्रेरित करता
है। रेखीय कम्प्यूटर प्रणाली में एक कम्प्यूटर को दूसरे कम्प्यूटर से तथा दूसरे को तीसरे
से सम्बन्धित किया जाता है और फिर इन युक्तियों के मध्य क्रियाओं का संचालन किया जाता
है। कम्प्यूटर के आन्तरिक सम्बन्ध से एक मिश्रित अधिगम कार्यक्रम तैयार किया जाता।
जिसके द्वारा दूरवर्ती-शिक्षार्थी को सम्बन्धित किया जाता है तथा इसका सम्बन्ध केन्द्रीय संस्था
एवं शिक्षक से रखा जाता है।
प्रश्न 6. एक कम्प्यूटर और मोबाईल के बीच अंतर बताएँ ।
उत्तर―कम्प्यूटर और मोबाइल में निम्नलिखित अंतर हैं:
कम्प्यूटर मोबाईल
डेस्कटॉप कम्प्यूटर एक मशीन है जो बड़े रूप मोबाईल एक छोटा मशीन है।
में होता है।
डेस्कटॉप कम्प्यूटर में की बोर्ड, माउस और मोबाईल में सिर्फ स्क्रीन और की-बोर्ड होता
मॉनीटर लगा होता है। है।
इसे ले आने और ले जाने में असुविधा होती मोबाईल को आसानी से कहीं भी ले जा सकते
है। हैं।
कम्प्यूटर में 100 से 800 W ऊर्जा की खपत मोबाईल में कम ऊर्जा की खपत होती है।
होती है।
कम्प्यूटर अपेक्षाकृत अधिक महँगा होता है। मोबाईल सस्ते में मिलता है।
कम्प्यूटर का स्क्रीन बड़ा होता है। मोबाईल का स्क्रीन छोटा होता है।
कम्प्यूटर ज्यादा जगह लेता है। मोबाईल अपेक्षाकृत पकिट में रखा जा सकता
है।
कम्प्यूटर से हम किसी भी व्यवसाय को अच्छी मोबाईल में यह सुविधा नहीं होती है।
तरह चला सकते हैं।
कम्प्यूटर के लिए इलेक्ट्रिक जरूरी है। मोबाईल में बैटरी चार्ज कर लम्बे समय तक
कहीं भी उपयोग कर सकते हैं।
कम्प्यूटर की पढ़ाई बच्चों को स्कूल में पढ़ाई मोबाईल के बारे में स्कूल में नहीं पढ़ाया जाता
जाती है। है।
कम्प्यूटर की मरम्मत में ज्यादा खर्च वहन मोबाईल कि सस्ते में मरम्मत हो जाती है।
करना पड़ता है।
कम्प्यूटर में हम मेमोरी में अधिक डाटा स्टोर मोबाईल में कम डाटा स्टोर होता है।
कर सकते हैं।
प्रश्न 7. कम्प्यूटर सिस्टम के अनिवार्य घटकों के बारे में बताएँ।
उत्तर―कम्प्यूटर सिस्टम के अनिवार्य घटकों को सामान्यत: निम्न दो भागों में बांटा जाता है :
(i) हार्डवेयर
(ii) सॉफ्टवेयर
हार्डवेयर मशीनी उपकरणों से सम्बन्धित है, जबकि सॉफ्टवेयर कम्प्यूटर पर सुलभता
कार्य करने के लिए प्रोग्रामिंग से सम्बन्धित है।
सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट या सीपीयू—इसे कम्प्यूटर का मस्तिष्क समझा जाता है। यानी
कम्प्यूटर के सभी गणक तथा भंडारण क्षमताएँ इसी पर निर्भर करती है।
सेंटल प्रोसेसिंग यूनिट (CPU) के भाग:
(i) प्रोसेसर―इसे माइक्रोप्रोसेसर भी कहते हैं। यह कम्प्यूटर का प्रमुख अंग होता है।
इसे कम्प्यूटर का मस्तिष्क भी कहा जाता है।
(ii) रैंडम एक्सेस मेमोरी (RAM)― रैम/RAM कम्प्यूटर की अस्थाई स्मृति होती है,
कम्प्यूटर के प्राथमिक संग्रहण उपकरण होते हैं।
(iii) मदरबोर्ड–मदरबोर्ड किसी भी कम्प्यूटर प्रणाली का मूल माना जाता है। ये एक
प्रकार के सर्किट बोर्ड होते हैं, जिनसे अन्य सभी पुर्जे एक विशेष प्रणाली के तहत
आपस में जुड़े हुए रहते हैं।
(iv) हार्ड डिस्क― ये कम्प्यूटर के स्थाई स्मृति होते हैं । इनपर स्थापित किए गए जानकारी
सदा के लिए बने रहते हैं।
मॉनिटर―कम्प्यूटर एक ऐसा पार्ट है, जो हमारे द्वारा दिए गए आदेशों को अपने
स्क्रीन पर प्रदर्शित करता है।
(vi) मोडेम का उपयोग कम्प्यूटर को इंटरनेट से जोड़ने के लिए किया जाता है।
(vii) स्पीकर एक आउटपुट डिवाइस है। इसके द्वारा हम कम्प्यूटर से आवाज या ध्वनि
सम्बन्धी सन्देश प्राप्त कर सकते हैं
(viii) की-बोर्ड―की-बोर्ड कम्प्यूटर का ऐसा अवयव है, जो हमारे द्वारा दिए गए निर्देशों
को कम्प्यूटर में भेजता है ताकि कम्प्यूटर आउटपुट दे सके । यह इनपुट प्रणाली
का एक अभिन्न हिस्सा है, जिसके द्वारा हम कोई भी टेक्स्ट कम्प्यूटर में टाइप
भी कर सकते हैं।
(ix) माउस―कम्प्यूटर माउस एक इनपुट डिवाइस है। बटन के एक क्लिक के साथ,
माउस कम्प्यूटर के लिए जानकारी भेजता है। कम्प्यूटर माउस की-बोर्ड का एक
वैकल्पिक तथा सरल उपकरण है।
प्रश्न 8. शिक्षण अधिगम में मोबाइल का क्या महत्त्व है?
उत्तर― शिक्षण अधिगम में मोबाइल का महत्त्व निम्न प्रकार से है-
(i) वजन में हल्के होने के कारण पुस्तकों व कम्प्यूटर से ज्यादा सुविधाजनक होते हैं।
(ii) यह सीखने की पद्धति को बढ़ावा देते है।
(iii) विशेष आवश्यकता वाले विद्यार्थियों के लिए भी यह अत्यन्त उपयोगी है। जिसके
फलस्वरूप SMS और MMS के लिए वे एक-दूसरे पर अधिक निर्भर नहीं रहते हैं।
(iv) मल्टीमीडिया सामग्री की उपलब्धता हेतु एवं तैयार करने में भी उपयोगी है तथा
लगातार सीखने को प्रोत्साहित करता है।
(v) प्रशिक्षण लागत/शिक्षण लागत में कमी करता है।
(vi) दूरस्थ शिक्षा के विद्यार्थी-शिक्षक, शिक्षक के लिए टेक्स्ट मैसेज द्वारा सूचना सम्प्रेषण,
प्रदत्त कार्य, परिणाम, स्थान परिवर्तन, कार्यक्रम स्थगन, निरस्तीकरण आदि विभिन्न
सूचनाएँ देने में भी इसका उपयोग होता है।
(vii) ई-बुक्स, ऑनलाइन लर्निंग, ऑफ लाइन मोबाइल लर्निंग आदि में भी इसका उपयोग
होता है।
मोबाइल लर्निग का उपयोग ई-लर्निंग, शैक्षिक प्रौद्योगिकी और दूरस्थ शिक्षा में किया
जा सकता है। यह शिक्षार्थी की गतिशीलता एवं मोबाइल के उपयोग करने की क्षमता पर
निर्भर करता है कि वह किस प्रकार शिक्षण में इसका उपयोग कर सकता है।
प्रश्न 9.दूरस्थ शिक्षा के मूल्यांकन में कम्प्यूटर का क्या योगदान है ? समझाइए।
उत्तर―दूरस्थ शिक्षा के मूल्यांकन में कम्प्यूटर का योगदान― हमारे समाज में जो
तकनीकी परिवर्तन हुआ है और बाहरी परिस्थितियाँ बदली हैं, उसे देखते हुए अमेरिकी शिक्षा
तंत्र हमें चुनौती देते हैं कि हम अपने शिक्षा संबंधी अवसरों को बिना अपने बजट को बढ़ाये
विकसित करें । कई शिक्षण संस्थानों ने दूरस्थ शिक्षा प्रोग्राम को विकसित कर इस चुनौती का
मुँहतोड़ जवाब दिया है। दूरस्थ शिक्षा प्रोग्राम युवाओं को दूसरा अवसर प्रदान करता है।
अपनी उच्चस्तरीय शिक्षा को प्राप्त करने के साथ-साथ यह सम, दूरी और शारीरिक असमर्थता
से होने वाली हानियों से भी बचाता है और कर्मचारियों के ज्ञान में भी वृद्धि करता है जहाँ
पर वे कार्य करते हैं। इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, वर्धमान महावीर खुला
विश्वविद्यालय आदि जैसे अनेकों विश्वविद्यालय दूरस्थ शिक्षा पाठ्यक्रम संचालित करवा रहे
है तथा इसमें सूचना तकनीकी की प्रभावशाली भूमिका है।
वृहद् स्तर पर दूरस्थ शिक्षा पढ़ाने वालों के लिए तकनीकी विकल्प उपलब्ध है। इन्हें
चार भागों में वर्गीकृत किया गया है―
1.आवाज―शिक्षा संबंधी जानकारी देने के लिए जो उपकरण काम में लिए जाते है
दे हैं―टेलिफोन, ऑडियो, कांफ्रेन्स आदि शार्टवेव रेडियो। एकल मार्गी उपकरण रेडियो और
टेप है। इनके प्रयोग से छात्र किसी दूरस्थ स्थान पर बैठे शिक्षक से वार्तालाप कर अपनी
विषयगत समस्या का समाधान कर सकते है। इस हेतु दोनों व्यक्तियों के पास इंटरनेट कनेक्शन
वाला एक कम्प्यूटर तथा आवाज के आदान-प्रदान के लिए माइक्रोफोन होना आवश्यक है।
इस माध्यम से नहीं के बराबर खर्च में छात्र किसी शिक्षक से वार्तालाप कर अपनी ज्ञान वृद्धि
कर सकते हैं। यह तकनीक ऑडियो कान्फ्रेंसिंग कहलाती है।
2. वीडियो― शिक्षा संबंधी जानकारी दिखाने के लिए जो उपकरण हैं वे है-स्लाइड्स
रीयलटाईम मूविंग इमेज। इस माध्यम में आवाज के साथ-साथ चित्रों, तस्वीरों आदि का भी
सम्प्रेषण किया जा सकता है। इसके अन्तर्गत छात्र आवाज के साथ-साथ शिक्षक को देख भी
सकते हैं। इस माध्यम के प्रयोग से ऐसा आभास होता है कि शिक्षक व छात्र दोनों एक ही
स्थान पर आमने-सामने बैठकर वार्तालाप कर रहे हैं। इस तकनीक को वीडियो कान्फ्रेंसिंग
के नाम से जाना जाता है।
3. डाटा―डाटा किसी भी सूचना का मूल है। यह किसी भी सूचना का अपरिष्कृत रूप
है। डाटा को एक निर्धारित प्रक्रिया से गुजारने पर यह सूचना में परिवर्तित हो जाते हैं। कम्प्यूटर
के अन्तर्गत प्रयोग में ली जाने वाली समस्त प्रकार की सूचनाएँ अपरिष्कृत डाटा ही है। चाहे
वे ऑडियो के रूप में हों, वीडियो के रूप में हों, लिखित रूप में हों अथवा चित्र के रूप
में हो। कम्प्यूटर के द्वारा डाटा को इलेक्ट्रॉनिक तरीके से भेजा व प्राप्त किया जा सकता है।
इस हेतु इंटरनेट व इंट्रानेट सुविधाओं का प्रयोग किया जाता है।
4. दूरस्थ शिक्षा में विभिन्न कम्प्यूटर एप्लीकेशन का प्रयोग किया जाता है। जैसे–
• Computer Assisted Instructions (CAI)
• Computer Managed Instructions (CMI)
• Computer Mediated Education (CME)
प्रश्न 10. वर्ड-प्रोसेसर से आप क्या समझते हैं? इसके लाभ एवं विशेषताओं को
बताइए।
उत्तर―वर्ड-प्रोसेसर शब्द संसाधक (Word Processor) ऑफिस ऑटोमेशन सॉफ्टवेयर
का एक अंग है, जिसमें साधारण दैनिक पत्र व्यवहार से लेकर डेस्कटॉप पब्लिशिंग स्तर तक
के सभी कार्य सुविधापूर्वक किए जा सकते हैं। इसमें हम पाठ्य (text) ही नहीं, चित्र या ग्राफिक्स
भी सरलता से तैयार कर सकते हैं।
वर्ड प्रोसेसर के लाभ― वर्ड प्रोसेसर के लाभ इस प्रकार हैं―
1. आसानी से परिवर्तन करने की अनुमति देता है।
2. दस्तावेज से पैराग्राफ या पृष्ठ/कॉपी किया जा सकता है।
3. हाशिये और पृष्ठ लम्बाई को समायोजित किया जा सकता है।
4. वर्तनी जाँच सुविधा के माध्यम से संशोधित किया जा सकता है।
5. एक से अधिक दस्तावेज/फाइलों का विलय किया जा सकता है।
6. मेल-मर्ज सुविधा के माध्यम से पत्रों की एकाधिक प्रतिलिपियाँ अलग-अलग पते के
साथ उत्पन्न की जा सकती है।
वर्ड प्रोसेसर की महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ–वर्ड प्रोसेसर निम्नलिखित सुविधाओं से
सुसज्जित होता है―
1. इसमें फॉन्ट का आकार तथा प्रकार भी बदला जा सकता है। पृष्ठ क्रमांक, शीर्ष
लेख और पाद लेख को भी शामिल किया जा सकता है।
2. इसकी सहायता से वर्तनी की जाँच की जा सकती है और वर्तनी के सुधार को पूरे
दस्तावेज में स्वचालित रूप से किया जा सकता है तथा पद गणना और अन्य आँकड़ा
को उत्पन्न किया जा सकता है।
3. पाठ स्तम्भ शैली में स्वरूपित किया जा सकता है तथा सारणी को भी बनाया जा
सकता है।
4. पाठ में शब्द के साथ चित्रमय तस्वीरे मिश्रण करने के लिए उपयोगकर्ता को अनुमति
देता है। ग्राफिकल चित्रों को या तो स्वयं उपयोगकर्ता द्वारा बनाया जा सकता
या क्लिपआर्ट गैलरी अथवा अन्य मेमोरी से आयात किया जा सकता है।
5. वर्ड प्रोसेसर मेल-मर्ज की सुविधा भी प्रदान करता है।’
6. वर्ड प्रोसेसर में मैक्रोज (Macros) बनाने की सुविधा भी है।
प्रश्न 11. एमएस-एक्सेल (MS-Excel) क्या है? इसकी उपयोगिता बताइए।
उत्तर―एमएस-एक्सेल एक स्प्रेडशीट (spreadsheet) प्रोग्राम है। इसे संक्षेप में एक्सेल
(Excel) भी कहा जाता है। एमएस-एक्सेल का नवीन संस्करण नए टैबों और दिवाया से ।
सुसज्जित है, जो एक्सेल के पिछले संस्करणों पर कार्य कर चुके हैं, उनके लिए एमएस-
एक्सेल पर कार्य करना बहुत ही सुविधाजनक है। जिन लोगों के लिए स्प्रेडशीट बिल्कुल
नई चीज है, वे भी इसे सरलता से सीख सकते हैं और कार्य कर सकते हैं।
कोई स्प्रेडशीट, जिसे वर्कशीट भी कहते हैं, बहुत से खाना या सैलों का एक समूह होता
है, जिन्हें पंक्तियों तथा कालमों में व्यवस्थित किया जाता है। पंक्तियाँ बाएँ से दाएँ अर्थात्
क्षैतिज होती हैं, जबकि कालम ऊपर से नीचे अर्थात् ऊधिर होते हैं। पंक्तियों और कालमा
के कटान बिन्दुओं से सैल बनते हैं। प्रत्येक सैल में हम कोई एक संख्या, लेबल, तारीख,
समय आदि भर सकते हैं या टाइप कर सकते हैं। एक्सेल में पंक्तियों को क्रम संख्याओं
से पहचाना जाता है, जैसे 1, 2, 3… आदि, जबकि कालमों को अक्षरों से पहचानते हैं जैसे
A,B,C…आदि । किसी सैल का पता उसकी पंक्ति तथा कालम के नामों का जोड़ा या संयोग
होता है। उदाहरण के लिए सैल C8 का अर्थ है C कालम (बाई ओर से तीसरे कालम) का
ऊपर से आठवाँ सेल अथवा आठवीं पंक्ति बाईं ओर से तीसरा सैल । वर्कशीट में प्रत्येक
पंक्ति के बाएँ तथा प्रत्येक कालम के ऊपर उनका नाम लिखा रहता है, जिससे सैल को पहचानने
में सुविधा रहती है।
सैलों में हम फार्मूले भी भर सकते हैं। प्रत्येक फार्मूला किसी गणना के लिए भरा जाता
है। उदाहरण के लिए हम सैल B1 से B7 तक सात सैलों में सात संख्याएँ भर सकते हैं और
उनका योग दिखाने के लिए सैल B8 में फार्मूला भर सकते हैं। एक्सेल में की-बोर्ड तथा माउस
की सहायता से फार्मूला बनाना बहुत आसान है। इतना ही नहीं, एक्सेल में आप विभिन्न टैबों
के टूलों, विकल्पों तथा फलनों का उपयोग करके कठिन से कठिन फार्मूले बना सकते है और
जटिल से जटिल गणनाएँ भी कर सकते हैं।
एक्सेल में फार्मेट करने की ढेर सारी सुविधाएँ उपलब्ध हैं, जिनके द्वारा आप अपनी
वर्कशीट या उसके किसी भाग को सुन्दर रूप में छपवा सकते हैं। एक्सेल के Insert टैब
का उपयोग करके आप वर्कशीट में भरी हुई संख्याओं तथा नामों (Labels) को विभिन्न प्रकार
के ग्राफों, जैसे पाई चार्ट, पाइन ग्राफ, बार चार्ट, त्रिआयामी (Three Dimensional) चार्ट आदि
के रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं।
एमएस-एक्सेल को विंडोज आपरेटिंग सिस्टमों के साथ प्रयोग करने के लिए बनाया गया
है। इसलिए इसमें तथा एमएस-ऑफिस के विंडोज आधारित दूसरे प्रोग्रामों में भारी समानता
है। इसमें पाठ्य को सम्पादित करने तथा फार्मेट करने की उन्हीं तकनीकी का प्रयोग किया
जाता है, जो एमएस-वर्ड वाले भाग में होता है। एक्सेल के बहुत से आदेश और टैबों में
उनका स्थान एमएस-वर्ड के आदेशों की तरह ही है। इसके साथ ही एमएस-एक्सेल विंडोज
आधारित दूसरे प्रोग्रामों के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ है। उदाहरण के लिए, आप दूसरे
प्रोग्रामों द्वारा तैयार किए गए चित्रों को एक्सेल की वर्कशीट में ला सकते हैं तथा एक्सेल
की वर्कशीट से डाटा तथा चार्टो को एमएस-वर्ड दस्तावेजों तथा पावर पॉइंट की स्लाइडों
में भेज सकते हैं।
प्रश्न 12. शिक्षा में एक्सेल का उपयोग किस प्रकार किया जा सकता है?
उत्तर―माइक्रोसॉफ्ट एक्सेल का प्रयोग डेटा भंडारण तथा गणनाओं के लिए किया जाता
है । एक्सेल में डेटा भंडारण इकाई एक सेल होती है। यह एक सारणी के रूप में दिखाई
देती है। गणितीय तथा सांख्यिकीय कार्यों को करने में इसका विशेष उपयोग होता है। शिक्षक
अपनी कक्षा में आँकड़ों के साथ चार्ट को भी दर्शा कर प्रभावी शिक्षण कर सकते है। कक्षा
में उपस्थित पत्रक का निर्माण तथा उनकी गणनाएँ कम समय में की जा सकती है। मार्कशीट,
मेरिट लिस्ट तथा परीक्षा परिणाम सम्बन्धित अन्य गणनाएँ बहत ही कम समय में तथा प्रभावी
रूप में की जा सकती है। आँकड़ों को कक्षा में सारणी के तौर पर प्रदर्शित कर शिक्षण को
अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है।
प्रश्न 13. पॉवर पॉइन्ट क्या है? इसका परिचय देते हुए इसकी उपयोगिता का
उल्लेख कीजिए।
उत्तर―पॉवर पॉइंन्ट स्लाइड्स बनाने के लिए साधारणतया प्रयोग में आने वाला टूल
(सॉफ्टवेयर पैकेज) है। सामान्यतः इसमें काम करना बिल्कुल वैसे ही है जैसे किसी वर्ड-
प्रोसेसर में काम करते है, वर्ड-प्रोसेसर के दस्तावेज में पृष्ठ बनते हैं वैसे ही पॉवर पॉइन्ट
में स्लाइड्स तथा इन स्लाइड्स में एनिमेशन का प्रयोग भी किया जा सकता है और इस सम्पूर्ण
प्रदर्शन को विडियो में भी परिवर्तित किया जा सकता है।
पॉवर पॉइन्ट वक्तव्य, लेख, वार्ता एवं शिक्षा की बेहतर प्रस्तुति का एक सॉफ्टवेयर
है जो ‘स्लाइड्स’ के माध्यम से भिन्न-भिन्न आकार-प्रकार के साथ कार्यों को प्रस्तुत करता
है। दूसरे शब्दों में एक साथ कई लोगों को सम्बोधित करते समय अपने विचार किसी पर्दे
या कम्प्यूटर पर स्लाइड दर स्लाइड व्यक्त करने के लिए जो सॉफ्टवेयर उपयोग में आता
है, उसमें पॉवर पॉइन्ट एक मुख्य सॉफ्टवेयर है।
पॉवर पॉइन्ट के द्वारा हम अपने विचार पर्दे या कम्प्यूटर पर कई लोगों को एक साथ
मंच पर खड़े होकर बता सकते हैं। इसकी स्लाइड्स को रंगीन अथवा श्वेत-श्याम दोनों ही
तरह से बनाया जा सकता है, इनमें आवाज और एनीमेशन (गति) भी दे सकते हैं, जिसे
देखकर दर्शक उसे और अधिक सुगमता से समझ सकता है। स्वयं अथवा अन्य की वाणी
भी इन स्लाइड्स के साथ रिकॉर्ड की जा सकती है। अपने आँकड़ों एवं टेक्स्ट को आकर्षक
तरीके से प्रस्तुत करने के लिए पॉवर पॉइन्ट का प्रयोग किया जा सकता है। पॉवर पॉइन्ट
का उपयोग कई अधिकारी, शिक्षाविद्, कॉरिट जगत के कर्मचारी आदि अपनी बैठक या
सभा को सम्बोधित करने एवं शिक्षा प्रदान करने में करते हैं।
हम स्लाइड्स में त्रिआयामी आकृति, ग्राफ इत्यादि का प्रयोग कर अपनी बात और सूचना
को स्पष्ट तरीके से प्रस्तुत कर सकते हैं।
प्रश्न 14. शिक्षण में प्रयुक्त प्रमुख सॉफ्टवेयर उपागमों के महत्व एवं उपयोगिता
की विवेचना कीजिए।
उत्तर–प्रमुख सॉफ्टवेयर उपागमों, उनका महत्व एवं उपयोगिता―
1. वास्तविक पदार्थ―यदि शिक्षण में वास्तविक पदार्थो को दृश्य सामग्री के रूप में
किया जाए तो उनका प्रभाव सभी प्रकार की अन्य सामग्री से अधिक पड़ता है। जैसे–यदि
फूल के भाग पढ़ाने हैं, तो वास्तविक फूलों को लेकर ही छात्रों को पाठ दिया जाए। वास्तविक
पदार्थो से छात्रों में रुचि तथा आनन्द उत्पन्न होते हैं। इसलिए जहाँ तक सम्भव हो सके,
वास्तविक पदार्थो को ही दृश्य सामग्री के लिए प्रयोग किया जाना चाहिए। कई बार सभी
विषयों में वास्तविक पदार्थ का प्रदर्शन सम्भव नहीं होता। उस स्थिति में वह सामग्री प्रयोग
की जानी चाहिए जो वास्तविक पदार्थ के निकट हो
2.चित्र―चित्र का प्रयोग विशेष परिस्थितियों में किया जाता है, अर्थात् जब वास्तविक
पदार्थ या मॉडल उपलब्ध न हों। चित्रों के सभी प्रकार का ज्ञान नहीं दिया जा सकता परन्तु
फिर भी शिक्षण में इनका प्रयोग महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। चित्र स्पष्ट तथा सुन्दर होने
चाहिए। ये आकार में इतने छोटे भी नहीं होने चाहिए कि कक्षा में पीछे बैठे छात्रों को दिखाई
न दें। छोटे बच्चों की कक्षा में रंगीन चित्र बय्यों को अधिक आकर्षित करते हैं। चित्रों को इस
ढंग से प्रस्तुत किया जाना चाहिए कि कक्षा में बैठे सभी छात्र इन्हें देख सकें। चित्र पाठ्यवस्तु
से ही सम्बन्धित होने चाहिए। यदि विषय-वस्तु से सम्बन्धित चित्र बाजार में उपलब्ध न हो तो
शिक्षक उन चित्रों को स्वयं बना सकता है अथवा किसी चित्रकार की सहायता ले सकता है।
3. मानचित्र-मानचित्रों का प्रयोग अधिकतर भूगोल एवं इतिहास के शिक्षण में किया
जा सकता है। बने-बनाए मानचित्र बाजार में उपलब्ध होते हैं। लेकिन यदि कक्षा में शिक्षक
स्वयं ये मानचित्र बनवाकर छात्रों को दिखाए तो इसका प्रभाव कुछ और ही पड़ेगा। मानचित्रों
पर उनका नाम और अन्य आवश्यक संकेत लिख देने चाहिए। मानचित्र स्पष्ट तथा सुन्दर
बनाए जाने चाहिए।
4.ग्राफ―ग्राफ का प्रयोग भी भूगोल, इतिहास, गणित तथा विज्ञान के विषयों में विशेष
महत्व रखता है। इसे प्रयोग से तुलनात्मक अध्ययनों में बहुत सहायता मिलती है। उदाहरण
के लिए-पिछले दस वर्षों की चावल या गेहूँ के उत्पादन की स्थिति का तुलनात्मक अध्ययन
प्राफ की सहायता से बड़ी सफलता से समझाया जा सकता है।
5.मॉडल―मॉडल वास्तविक पदार्थों के लघु रूप होते हैं। इनका प्रयोग इस स्थिति में
किया जाता है जब वास्तविक पदार्थ बहुत बड़े हों तथा उपलब्ध न किए जा सकते हो तथा
उनके चित्रों से स्पष्टता न झलकती हो। उदाहरण के लिए किसी बाँध के बारे में पूरे बाँध
को कक्षा में नहीं लाया जा सकता और चार्ट पर इसका चित्र स्पष्ट नहीं बन सकता। इसलिए
मॉडल दिखाना उचित रहता है। इसी प्रकार जहाजों का मॉडल, जंगली जानवरों के मॉडल
तथा पहाड़ों के मॉडलों का प्रयोग किया जा सकता है। ये मॉडल भी स्पष्ट सुन्दर एवं वास्तविक
पदार्थ का सही प्रतिनिधित्व करते हो । यदि मॉडल बाजार या स्कूल में उपलब्ध न हो तो शिक्षक
स्वयं उन मॉडलों को बनाने का प्रयास करें।
6.रेखाचित्र― कई बार अध्यापक वास्तविक पदार्थ, उनके चित्र तथा मॉडल प्राप्त करने
में सफल रहा है। इस स्थिति में शिक्षक श्यामपट्ट पर रेखाचित्र बनाकर संकेत के रूप में
अपनी बात छात्रों तक पहुँचा सकता है। इसके लिए यह रंगीन चाकों का प्रयोग कर सकता
है जिससे कि विभिन्न भागों को स्पष्ट रूप से अंकित किया जा सके या उभारा जा सके।
जैसे-भूगोल, इतिहास, गणित तथा विज्ञान में ऐसे रेखाचित्रों की आवश्यकता पड़ती है। इसमें
किसी प्रकार के खर्चे या विशेष समय की आवश्यकता नहीं होती। रेखाचित्रों को भी सहायक
सामग्री के रूप में प्रभावशाली ढंग से प्रयोग किया जा सकता है।
7.चार्ट―चार्टो का प्रयोग सभी विषयों के शिक्षण में बड़ी सुगमता तथा प्रभावशाली ढंग
से किया जा सकता है। ये चार्ट भी बने बनाए ही बाजार में उपलब्ध होते हैं। यदि ये चार्ट
बाजार में उपलब्ध न हों तो पाठ की आवश्यकतानुसार शिक्षक स्वयं इन चाटों को तैयार कर
सकता है। चार्टो पर आकृतियों का आकार इतना बड़ा होना चाहिए जिससे कि सभी स्थानों
पर बैठे कक्षा के छात्र लाभ उठा सकें। छोटी आकृतियाँ छात्रों की रुचि समाप्त कर देती है
तथा उन्हें असुविधाओं का सामना करना पड़ता है। इससे कक्षा में अनुशासनहीनता के फैलने
का भय भी रहता है। चार्ट पर बनाया चित्र स्पष्ट होना चाहिए।
8.श्यामपट्ट―कक्षा में श्यामपट्ट का प्रयोग एक आवश्यक तत्व है। इसके बिना कक्षा
शिक्षण असम्भव-सा प्रतीत होता है। छोटी कक्षा से लेकर बड़ी कक्षा तक इसका प्रयोग अनिवार्य
लगता है। इसके बिना कक्षा में शिक्षक स्वयं को असहाय सा अनुभव करता है। श्यामपट्ट
के प्रयोग में भी शिक्षक को विशेष बातों का ध्यान रखना चाहिए। श्यामपट्ट को कक्षा में
इतने ऊँचे स्थान पर रखा जाना चाहिए कि कक्षा में पीछे बैठे छात्र उसे अच्छी तरह से देख
सकें। श्यामपट्ट पर शिक्षक को सुन्दर तथा व्यवस्थित ढंग से लिखना चाहिए। अक्षरों का
आकार न बहुत छोटा और न बहुत बड़ा हो। शब्दों के बीच का अन्तर उचित होना चाहिए।’
जिस बिन्दु पर शिक्षक को बल देना हो उसे रेखांकित किया जाना चाहिए। श्यामपट्ट पर
चित्र बनाने के लिए शिक्षक रंगदार चाकों का प्रयोग करें, जिससे कि सभी भागों को अलग-
अलग रंगों से स्पष्ट रूप से दिखाया जा सके। श्यामपट्ट पर लिखने से पहले उसे अच्छी
तरह साफ कर लेना चाहिए। श्यामपट्ट का प्रयोग प्रत्येक विषय के लिए आवश्यक है।
9.वुलेटिन बोर्ड-इन बोडों पर विद्वानों के लेखो, चित्रों, ग्राफों एवं आवश्यक सूचनाओं
को प्रदर्शित करके छात्रों में जिज्ञासा को उत्पन्न किया जाता है तथा उन्हें अध्ययन के लिए
अभिप्रेरित किया जाता है। बुलेटिन बोर्ड पर प्रदर्शित सामग्री छात्रों के मानसिक तथा अन्य
के स्तर के अनुसार प्रदर्शित होनी चाहिए। बोर्ड पर प्रदर्शित की गई सामग्री एक निश्चित
क्रम में होनी चाहिए। इस बोर्ड को ऐसे स्थान पर रखा जाना चाहिए कि सभी छात्र उसे
सरलतापूर्वक देख तथा पढ़ सके। ये बोर्ड सन्दर और आकर्षक होने चाहिए तथा इन पर
छात्रों को भी विषय सामग्री प्रदर्शित करने का अवसर प्राप्त होना चाहिए।
10. पलेनल बोर्ड―कक्षा शिक्षण में पलेनल बोर्ड का महत्व भी बहुत अधिक है। इस
बोर्ड की रचना बहत ही साधारण होती है। हार्डबोर्ड या प्लाईवुड के बोर्ड पर फ्लेनल के
कपड़े को खींचकर बाँध लिया जाता है। इस फ्लेनल बोर्ड पर सैंड पेपर चिपका कर उस
चित्र का मानचित्र आदि को प्रदर्शित किया जाता है। सैंड पेपर के टुकड़े इन फ्लेनल बोर्ड
पर चिपके रहते हैं । इस बोर्ड का प्रयोग छोटी कक्षाओं में गणित, भाषा, भूगोल, विज्ञान, इतिहास
आदि विषयों के शिक्षण में किया जा सकता है।
दृश्य सामग्री की श्रेणी में अन्य साधन भी शामिल हैं, जैसे-ऐपीडायस्कोप, जादुई
लालटेन, प्रोजेक्टर, ओवरहैड प्रोजेक्टर, बिना आवाज के चित्र आदि ।
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