सम्प्रेषण कौशल क्या है ? सम्प्रेषण को परिभाषित कीजिए एवं सम्प्रेषण प्रक्रिया का उल्लेख कीजिए। What is Communication Skill? Define the Communication and describe the process of communication.
प्रश्न – सम्प्रेषण कौशल क्या है ? सम्प्रेषण को परिभाषित कीजिए एवं सम्प्रेषण प्रक्रिया का उल्लेख कीजिए। What is Communication Skill? Define the Communication and describe the process of communication.
या
भाषा के सम्प्रेषित कार्य एवं इसकी आधारभूत मान्यताओं का वर्णन कीजिए। Explain Communicative Fuctions of Language and Its Basic Assumptions.
या
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए Write detail note on following:
(1) भाषायी आधार पर सम्प्रेषण Communication on the Basis of Language
(2) तकनीकियाँ Technologies of की सम्प्रेषण Communication
उत्तर- सम्प्रेषण कौशल (Compunication Skill)
सम्प्रेषण शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के ‘कम्यूनीस’ शब्द से हुई है। सम्प्रेषण शब्द अंग्रेजी भाषा के कम्यूनीकेशन (Communication) का हिन्दी रूपान्तरित शब्द है। ‘कम्यूनीस’ शब्द’ का तात्पर्य है ‘कॉमन’ या ‘सामान्य’ । सम्प्रेषण शब्द के अन्तर्गत ‘प्रेषण’ क्रिया प्रभावी होती है। जिसका अर्थ होता है किसी विचार, संदेश अथवा वस्तु को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजना सम्प्रेषण व्यापक सम्प्रत्यय है जिसके अन्तर्गत सूचना, विचार या संदेश भेजने का कार्य द्विपक्षीय या बहुपक्षीय होता है। सम्प्रेषण की प्रक्रिया भेजने वाला या प्रेषक (Sender) एवं प्राप्तकर्ता (Receiver) के मध्य समान रूप से संचालित होती है तथा दोनों ही समान रूप से इस प्रक्रिया की सफलता के लिए उत्तरदायी होते हैं। सम्प्रेषण की प्रक्रिया में भावों तथा विचारों का एकपक्षीय स्थानान्तरण न होकर पारस्परिक रूप से आदान-प्रदान होता है। सम्प्रेषण के अन्तर्गत दो या दो से अधिक व्यक्ति अपने भावों, विचारों एवं संदेशों का आदान-प्रदान करते हैं ।
अतः हम कह सकते हैं कि सम्प्रेषण प्रेषण करने की अपनी बात दूसरों तक पहुँचाने की, दूसरों की बातें सुनने की विचार विनिमय करने की, अभिवृत्तियों, संवेदनाओं, विचारों तथा सूचनाओं एवं ज्ञान के विनिमय करने की प्रक्रिया है। सम्प्रेषण में हम शाब्दिक (Verbal) एवं अशाब्दिक (Non-verbal) दोनों प्रकार के संकेतों का प्रयोग करते हैं।
एडगर डेल (Edgar Dale) के अनुसार, “सम्प्रेषण विचार–विनिमय की मनोदशा में विचारों तथा भावनाओं को परस्पर जानने तथा समझने की प्रक्रिया है।”
न्यूमर तथा समर के अनुसार, “सम्प्रेषण दो या दो से अधिक व्यक्तियों द्वारा विचारों तथ्यों, मतों अथवा भावनाओं के आदान-प्रदान की कला है।”
कीथ डेविस के अनुसार सम्प्रेषण सूचनाओं एवं समझ को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुँचाने की प्रक्रिया है।”
सम्प्रेषण प्रक्रिया (Process of Communication)
- एक व्यक्ति उपयुक्त शब्दों, संकेतों का चयन करके विचारों को व्यक्त करता है।
- दूसरा व्यक्ति शब्दों के संकेतों को ग्रहण करके उनके अर्थ निकालता है। अर्थ समझने के बाद अनुक्रिया देता है कि विचार उस तक पहुँच गए हैं। जैसे- हुँ, हाँ, आदि । इसमें एक संदेश भेजने वाला तथा दूसरा संदेश प्राप्त करने वाला होता है।
- माध्यम (Medium)- संदेश को साधन / विचारों तथा भावों को अभिव्यक्त करने के लिए भाषा, संकेत, हावभाव आदि का प्रयोग किया जाता है।
- सामग्री / सन्देश (Material / Message)सम्प्रेषण में प्रेषक प्राप्तकर्ता को कुछ सन्देश भेजता है। लिखित या मोखिक सामग्री को प्राप्तकर्ता ग्रहण करता है । सन्देश के बिना वार्तालाप नहीं हो सकता है।
- सुविधाजनक व बाधक तत्व (Facilitating and Barrier Factors) – सम्प्रेषण प्रक्रिया में अनुकूल व – प्रतिकूल तत्त्व भी आते हैं। सम्प्रेषण को सम्पन्न करने में जो तत्त्व सहायता करते हैं वे सहायक तत्त्व कहलाते हैं ।
सम्प्रेषण में जो तत्त्व बाधा उत्पन्न करते हैं वे बाधक तत्त्व कहलाते हैं। जैसे- शोर, अस्पष्ट भाषा, माध्यम का समान न होना आदि है।
सम्प्रेषण की तकनीकियाँ (Technologies of Communication)
- परम्परागत सम्प्रेषण तकनीकी (Traditional Communication Technology)-इन तकनीकियों के • अन्तर्गत निम्न प्रकार के साधनों, उपकरणों, तथा सामग्री आदि का प्रयोग किया जाता है –
- दृश्य-श्रव्य साधन- इसके अन्तर्गत रेडियो, टेलीविजन, ओवरहेड प्रोजेक्ट, प्रोजेक्टर, चलचित्र, टेप रिकार्डर, ऑडियो रिकार्डिंग आदि को सम्मलित किया जाता है।
- दृश्य सहायक सामग्री-इसमें चित्र, मानचित्र, रेखाचित्र, चार्ट आदि सामग्री आती है।
- त्रिआयामी सहायक साधन- नमूने, मॉडल, कठपुतलियाँ आदि ।
- मौखिक सूचनाएँ एवं ज्ञान- इसे बालकों के द्वारा समाज के व्यक्तियों से, अध्यापकों से, सहपाठियों, माता-पिता, मित्रों तथा परिजनों आदि से औपचारिक एवं अनौपचारिक रूप से प्राप्त किया जा सकता है।
- मुद्रित साधन – पत्र पत्रिकाएँ, पाठ्य पुस्तकें, सन्दर्भ ग्रन्थ आदि में उपलब्ध पठन सामग्री
- आधुनिक सम्प्रेषण तकनीकी (Modern Communication Technology)
- मल्टीमीडिया पर्सनल कम्पूटर
- ई-मेल, इन्टरनेट तथा पर्ल्ड वाइड वेब
- वीडियो, साउन्ड कार्ड और वेब कैमरा
- डिजिटल वीडियो कैमरा
- मल्टीमीडिया प्रोजेक्टर (एल.सी.डी. अथवा डी.एल.पी.)
भाषा के सम्प्रेषित कार्य (Communicative Fuction of Language)
मनुष्य के भावों एवं विचारों की अभिव्यक्ति का मुख्य साधन भाषा ही है। भाषा के माध्यम से सम्प्रेषण कार्य अनेक प्रकार से होता है। सम्प्रेषण प्रक्रिया में भाषा के द्वारा ही हम समाज में एक दूसरे के साथ सम्पर्क स्थापित कर सकते हैं। यहाँ सम्पर्क का तात्पर्य सम्प्रेषण से है। सम्प्रेषण ही समाज की गतिशीलता का परिचायक है। भाषा कार्यों को उचित रूप से सम्प्रेषित करने के लिए प्रत्येक मनुष्य को चार कौशल – मौखिक श्रवण, पठन एवं लेखन का ज्ञान होना चाहिए । व्यक्तियों की संख्या के आधार पर भाषा सम्प्रेषण इन रूपों में होता है-
- अन्तः वैयक्तिक (Interpersonal Communication) – सम्प्रेषण की यह मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया सम्प्रेषण है। इसमें व्यक्ति के स्वयं के अनुभव व विचार होते हैं । जिसे वह कुछ निश्चित शब्दों के माध्यम से अभिव्यक्त करता है। अन्तः वैयक्तिक सम्प्रेषण का उदाहरण भक्ति एवं पूजा-पाठ आदि हैं।
- अन्तर्वैयक्तिक सम्प्रेषण (Interpersonal Communication) – अन्तर्वैयक्तिक सम्प्रेषण के अन्तर्गत एक व्यक्ति के द्वारा प्रेषित सूचना / सन्देश दूसरे व्यक्ति तक प्रत्यक्ष रूप में पहुँचता है। इसमें भाषा की भूमिका मुख्य होती है। भाषा के सहयोग से ही वह अपने विचारों व तथ्यों को सामने वाले के समक्ष रखता है।
- समूह सम्प्रेषण (Group Communication) – जब कुछ मनुष्यों का समूह आमने-सामने बैठ कर विचार-विमर्श, गोष्ठी या कुछ चर्चाएँ करके विचारों का आदान-प्रदान करते हैं, तो इसे समूह सम्प्रेषण कहते हैं। इसमें प्रतिपुष्टि (Feedback) भी साथ-साथ मिलती है। स्कूल, कॉलेज एवं बड़े-बड़े अधिवेशन में इसी प्रकार भाषाई कार्य होते हैं।
- जन सम्प्रेषण (Mass Communication)- इसमें विस्तृत आकार तक फैले हुए समूह तक सन्देश प्रेषित किया जाता है जो भाषा के प्रयोग के बिना सम्भव नहीं है, चाहे वह क्षेत्रीय भाषा हो या विदेशी भाषा या परिनिष्ठित भाषा । भाषा के तकनीकी स्वरूप के माध्यम से ही इस क्षेत्र में योगदान दिया जा सकता है। आधुनिक समाज में सम्प्रेषण का कार्य सूचना प्रेषण, विश्लेषण, ज्ञान एवं मूल्यों का प्रसार तथा मनोरंजन करना है। जो पत्र-पत्रिकाओं व रेडियो, टेलीविजन इत्यादि से भी किया जा सकता है। इस का आधार स्तम्भ उस क्षेत्र से जुड़ी भाषा होती है इसलिए सम्पर्क रखने में भाषा का विशेष योगदान है।
भाषायी आधार पर सम्प्रेषण ( Communication on the Basis of Language)
प्रभावशाली शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को गत्यात्मक, सक्रिय तथा जीवन्त बनाने के लिए सम्प्रेषण की अनवरतता या निरन्तरता आवश्यक होती है। मनुष्य अपने भावों, विचारों, संवेदनाओं, संवेगों आदि को जिस माध्यम से दूसरे व्यक्ति तक पहुँचाता है वे सब सम्प्रेषण के अन्तर्गत आते हैं। भाषा शब्दों का जाल है। शब्द, सम्प्रेषण प्रक्रिया में सन्देश की रचना करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं। शब्दों के अभाव में सम्प्रेषण की संरचना संभव ही नहीं है परन्तु सम्प्रेषण एक ऐसी विधि भी है जिसमें सन्देश बिना शब्दों के प्रयोग के ही सम्प्रेषित हो जाते हैं इसे अशाब्दिक सम्प्रेषण कहते हैं। मनुष्य के अस्तित्व में आने के बाद सम्प्रेषण का क्षेत्र विस्तृत हो गया है।
- शाब्दिक सम्प्रेषण (Verbal Communication) – जिस सम्प्रेषण में सदैव भाषा का प्रयोग किया जाता है उसे शाब्दिक सम्प्रेषण कहते हैं। शाब्दिक सम्प्रेषण का प्रयोग मौखिक रूप में वाणी के माध्यम से तथा लिखित रूप में शब्दों या संकेतों के माध्यम से विचारों एवं भावनाओं को दूसरों के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए किया जाता है। इस सम्प्रेषण को भी दो भागों में बाँटा गया है-
- मौखिक सम्प्रेषण एवं
- लिखित सम्प्रेषण
- अशाब्दिक सम्प्रेषण (Non-Verbal Communication) अशाब्दिक सम्प्रेषण में वाणी संकेत, चक्षु सम्पर्क एवं मुख मुद्राओं का प्रयोग किया जाता है क्योंकि इस सम्प्रेषण में भाषा का प्रयोग नहीं होता है। अशाब्दिक सम्प्रेषण को भी कई भागों में विभाजित किया गया है जोकि निम्न हैं –
- वाणी सम्प्रेषण
- चक्षु सम्पर्क एवं मुख मुद्राएँ
- स्पर्श सम्पर्क
भाषायी सम्प्रेषण की आधारभूत मान्यताएँ (Basic Assumptions of Language Communication)
- भाषा के मौखिक पहलू में योग्यता ।
- भाषा के पठन व लेखन पहलू में कुशलता।
- भाषा के शुद्ध प्रयोग की आदत ।
- भाषा के व्याकरण सम्मत रूप का प्रयोग ।
- भाषायी शब्दावली पर अच्छी पकड़
- भाषा के संरचनात्मक रूप का बोध
- भाषा का शुद्ध उच्चारण।
- भाषा के उतार-चढ़ाव का बोध की क्षमता।
- भाषा के शब्दों में निहित गूढ़ अर्थ बोध ।
- भाषा के विभिन्न रूपों की विस्तृत जानकारी ।
- भाषा में प्रवाहमयता, सरलता व सहजता ।
- भाषा में मधुरता व प्रभावात्मकता का प्रयोग ।
- भाषा में परिस्थिति के अनुकूल शब्दावली प्रयोग की क्षमता।