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सौरमंडल

सौरमंडल

सौरमंडल

सौरमंडल

◆ सूर्य एवं उसके चारों ओर भ्रमण करने वाले 8 ग्रह 65 उपग्रह, धूमकेतु, उल्काएँ तथा क्षुद्रग्रह, संयुक्त रूप से सौरमंडल कहलाते हैं
◆ सूर्य जो कि सौरमंडल का जन्मदाता है, एक तारा है और यह पृथ्वी पर ऊर्जा तथा प्रकाश प्रदान करता है। सौरमंडल के समस्त ऊर्जा का स्रोत भी सूर्य ही है।
◆ सूर्य की ऊर्जा का स्रोत उसके केन्द्र में हाइड्रोजन परमाणु का नाभिकीय संलयन (Nuclear Fusion ) द्वारा हीलियम में बदलना है।
सूर्य की संरचना
◆ सूर्य का जो भाग हमें आँखों से दिखायी देता है, उसे प्रकाशमंडल (Photosphere) कहते हैं। सूर्य का बाह्यतम भाग जो केवल सूर्यग्रहण के समय दिखायी देता है, वह कोरोना (Corona ) कहलाता है।
◆ कभी-कभी प्रकाशमंडल से परमाणुओं का तूफान इतनी तेजी से निकलता है, जो सूर्य की आकर्षण शक्ति को पार करके अंतरिक्ष में चला जाता है, इसे सौर ज्वाला (Solar Flares) कहते हैं। जब यह पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करता है तो हवा के कणों से टकराकर रंगीन प्रकाश (Aurora Light) उत्पन्न करता है, जिसे उत्तरी ध्रुव पर देखा जा सकता है। उत्तरी ध्रुव पर इसे अरोरा बोरियालिस तथा दक्षिणी ध्रुव पर अरौरा आस्ट्रेलिस कहते हैं।
◆ सौरज्वाला जहाँ से निकलती है, वहाँ काले धब्बे से दिखायी पड़ते हैं। इन काले धब्बों को सौर-कलंक (Sun-Spots) कहते हैं। ये सूर्य के अपेक्षाकृत ठंडे भाग हैं, जिनका तापमान 1500°C होता है। सौर-कलंक के बनने बिगड़ने की प्रक्रिया औसतन 11 वर्षों में पूरी होती है, जिसे सौर-कलंक चक्र (Sun Spot Cycle) कहते हैं।
ग्रह (Planet)
◆ ये सूर्य से ही निकले पिण्ड हैं एवं सूर्य की परिक्रमा करते हैं। इनका अपना प्रकाश नहीं होता। सूर्य के प्रकाश से ही प्रकाशित होते हैं तथा ऊष्मा प्राप्त करते हैं। सभी ग्रह सूर्य की परिक्रमा पश्चिम से पूर्व दिशा में करते हैं, परन्तु शुक्र और अरुण इसके अपवाद हैं। ये सूर्य के चारों ओर पूर्व से पश्चिम दिशा में परिभ्रमण (Rotation) करते हैं।
◆ ग्रहों को दो भागों में बाँटा गया है- 1. पार्थिव / आंतरिक ग्रह (Terrestrial or Inner Planet) एवं 2. बृहस्पतीय/बाह्य ग्रह ( Jovian or Outer Planet)।
◆ बुध, शुक्र, पृथ्वी एवं मंगल को पार्थिव / आंतरिक ग्रह कहा जाता है, क्योंकि ये पृथ्वी के सदृश होते हैं। सूर्य से निकटता के कारण ये भारी पदार्थों से निर्मित हुए हैं।
◆ बृहस्पति, शनि, अरुण एवं वरुण को बृहस्पतीय या बाह्य ग्रह कहा जाता है। इनका निर्माण हल्के पदार्थों से हुआ है। आकार में बड़े होने के कारण इन ग्रहों को ‘ग्रेट प्लेनेटस’ (Great Planets) भी कहा जाता है।
◆ बुध (Mercury) : यह सूर्य का सबसे निकटतम तथा सौरमंडल का सबसे छोटा ग्रह है। यह सूर्य की परिक्रमा सबसे कम समय ( 68 दिनों में) में पूरी करता है। इसका सबसे विशिष्ट गुण है- इसमें चुम्बकीय क्षेत्र का होना । इस ग्रह का कोई उपग्रह नहीं है ।
◆ शुक्र (Venus) : यह सूर्य से निकटवर्ती दूसरा ग्रह है। यह सूर्य की प्रदक्षिणा 225 दिनों में पूरा करता है। यह ग्रहों की सामान्य दिशा के विपरीत अर्थात् दक्षिणावर्त (Anti clock wise) परिभ्रमण करता है। यह पृथ्वी के सर्वाधिक नजदीक है। शुक्र सबसे चमकीला एवं सबसे गर्म ग्रह है। इसे सायं का तारा (Evening Star) या भोर का तारा (Morning Star) भी कहा जाता है। आकार, घनत्व एवं ब्यास में पृथ्वी से थोड़ा ही कम होने के कारण इसे पृथ्वी की बहन (Sister of Earth) कहा जाता है । इस ग्रह का भी कोई उपग्रह नहीं है।
पृथ्वी (Earth) : यह सूर्य की दूरी के क्रम में तीसरा एवं सभी ग्रहों में आकार में पाँचवाँ सबसे बड़ा ग्रह है। यह शुक्र और मंगल ग्रह के बीच स्थित है। यह अपने अक्ष पर पश्चिम से पूर्व की ओर भ्रमण करती है। पृथ्वी अपने अक्ष पर 232° झुकी हुई है। पृथ्वी को सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करने में लगभग 365 दिन 6 घंटा का समय लगता है। सूर्य के चारों ओर पृथ्वी के इस परिक्रमा को पृथ्वी की वार्षिक गति अथवा परिक्रमण कहते हैं। पृथ्वी को सूर्य की एक परिक्रमा करने में लगे समय को सौरवर्ष कहा जाता है। अंतरिक्ष से यह ( पृथ्वी) जल की अधिकता के कारण नीला दिखायी देता है, जिस कारण इसे नीला ग्रह (Blue Planet) भी कहते हैं। पृथ्वी का एकमात्र उपग्रह चन्द्रमा है।
◆ मंगल (Mars) : मंगल का सतह लाल होने के कारण इसे लाल ग्रह (Red Planet) भी कहा जाता है। इसका रंग लाल, आयरन ऑक्साइड के कारण होता है। पृथ्वी के अलावा मंगल एकमात्र ग्रह है जिस पर जीवन की संभावना व्यक्त की गयी है। इसकी घूर्णन गति पृथ्वी के घूर्णन गति के समान है। सौरमंडल का सबसे बड़ा ज्वालामुखी ओलिपसमेसी और सबसे ऊँचा पर्वत निक्स ओलम्पिया (Nix Olympia) जो माउंट एवरेस्ट से तीन गुना अधिक ऊँचा है, इसी ग्रह पर स्थित है। मंगल के दो उपग्रह हैं- फोबोस और डीमोस ।
◆ बृहस्पति (Jupiter) : यह सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है। इसे अपनी धुरी पर चक्कर लगाने में 10 घंटा ( सबसे कम) और सूर्य की परिक्रमा करने में 11.9 वर्ष लगते हैं। इसके उपग्रहों की संख्या 28 है, जिसमें गैनिमीड सबसे बड़ा है। गैनिमीड सौरमंडल का सबसे बड़ा उपग्रह है तथा इसका रंग पीला होता है। आयो, यूरोप तथा अलमथिया आदि इसके अन्य उपग्रह हैं। बृहस्पति को लघु सौर-तन्त्र (Miniature Solar System) भी कहते हैं। इसके वायुमंडल में हाइड्रोजन, हीलियम मीथेन और अमोनिया जैसी गैसें पायी जाती हैं।
◆ शनि (Saturn) : यह आकार में दूसरा बड़ा ग्रह है। यह आकाश में पीले तारे के समान दिखायी पड़ता है। सूर्य की परिक्रमा पूरी करने में इसे 29.5 वर्ष लगते है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता या रहस्य इसके मध्य रेखा के चारों ओर पूर्ण विकसित वलयों ( Rings) का होना है, जिनकी संख्या 7 है। शनि को गैसों का गोला (Globe of Gases) एवं गैलेक्सी समान ग्रह (Galaxy Like Planet) भी कहा जाता है। इसके वायुमंडल में भी बृहस्पति की तरह हाइड्रोजन, हीलियम, मीथेन और अमोनिया गैसें मिलती हैं। शनि के 30 उपग्रहों का पता लगया जा चुका है जो कि सभी ग्रहों में सर्वाधिक है। टिटॉन शनि का सबसे बड़ा उपग्रह है।
◆ अरुण (Uranus) : इसकी खोज 1781 ई. में सर विलियम हरशेल द्वारा की गयी। यह सौरमंडल का सातवाँ तथा आकार में तृतीय बड़ा ग्रह है। अधिक अक्षीय झुकाव के कारण इसे लेटा हुआ ग्रह भी कहते हैं। शनि की भाँति अरुण के भी चारों ओर वलय (Ring) है, जिनकी संख्या 9 है। इनमें पाँच वलयों के नाम अल्फा (a), बीटा (B), गामा (y), डेल्टा (4) एवं इप्सिलॉन है। अरुण पर सूर्योदय पश्चिम दिशा में और सूर्यास्त पूरब दिशा में होती है। अरुण के 21 उपग्रह है।
◆ वरुण ( Neptune) : इसकी खोज 1846 ई. में जर्मन खगोलज्ञ जोहान गाले ने की थी। यह 165 वर्ष में सूर्य की परिक्रमा करता है। यह 2.7 घंटे में अपनी दैनिक गति (Rotation) पूरी करता है। नई खगोलीय व्यवस्था में यह सूर्य से सबसे दूर स्थित ग्रह है। यह ग्रह हल्का पीला दिखायी देता है। इसके 8 उपग्रह है। इनमें टाइटन व मेरीड प्रमुख है।
बौने ग्रह (Dwarf Planet)
◆ यम ( Pluto) : यम / कुबेर की खोज 1930 ई. क्लाइड टॉम्बैग ने की थी एवं इसे सौरमंडल का नौवाँ एवं सबसे छोटा ग्रह माना गया था, परन्तु 24 अगस्त, 2006 में चेक गणराज्य के प्राग में हुए अन्तरराष्ट्रीय खगोल विज्ञानी संघ ( International Astronomical Union-IAU) के सम्मेलन में खगोल विज्ञानियों ने यम का ग्रह होने का दर्जा समाप्त कर दिया। IAU ने यम का नया नाम 134340 रखा है।
◆ सेरस (Ceres) : इसकी खोज इटली के खगोलशास्त्री पियाजी ने की थी। IAU की नई परिभाषा के अनुसार इसे बौने ग्रह की श्रेणी में रखा गया है, जहाँ इसे संख्या 1 से जाना जाता है। सेरस का व्यास बुध के व्यास का 1/5 भाग है।
◆ अन्य बौने ग्रह (Other Dwarf Planet) : अन्य बौने ग्रहों में चेरॉन/शेरॉन (Charon) तथा इरिस उल्लेखनीय हैं। इरिस को 2003 UB-313 / जेना नाम से भी जाना जाता है।
उपग्रह (Satellite)
◆ ये वे आकाशीय पिण्ड हैं जो अपने-अपने ग्रहों की परिक्रमा करते हैं एवं अपने ग्रह के साथ-साथ सूर्य की भी प्रदक्षिणा करते हैं।
◆ ग्रहों के समान ही उपग्रहों की भी अपनी चमक नहीं होती है। ये सूर्य के प्रकाश से प्रकाशित होते हैं।
◆ ग्रहों के समान उपग्रहों का भी भ्रमण पथ अण्डाकार होता है।
◆ बुध एवं शुक्र का कोई उपग्रह नहीं है। सबसे अधिक उपग्रह शनि के हैं। पृथ्वी का एक मात्र उपग्रह चन्द्रमा है।
कृत्रिम उपग्रह (Artificial Satellite)
◆ विभिन्न देशों ने अनेक कृत्रिम उपग्रह भी स्थापित किये हैं। पृथ्वी की परिभ्रमण / घूर्णन (Rotation) दिशा से साम्य स्थापित करने के लिए ये पूर्व की ओर प्रक्षेपित किये जाते हैं।
◆ सामान्यतः दूर संवेदी उपग्रह (Remote Sensing Satellite) ध्रुवीय सूर्य समतुल्य कक्षा (Polar Sun-Synchronous Orbit) में 600-1100 किमी. की दूरी पर स्थापित किये जाते हैं। इन उपग्रहों का परिभ्रमण काल 24 घंटे का होता है। ये भूमध्य रेखा को एक निश्चित स्थानीय समय पर ही पार करते हैं जो सामान्यतः प्रात: 9 से 10 बजे होता है।
◆ सुदूर – संवेदी उपग्रहों के द्वारा पृथ्वी के एक परिभ्रमण में सुदूर संवेदन किया जाने वाला क्षेत्र स्वाथ कहलाता है। विभिन्न उपग्रहों में यह प्रायः 10 से 100 किमी. चौड़ी धरातलीय पट्टी होती है। चूँकि पृथ्वी पश्चिम से पूर्व की ओर घूर्णन करती है। अतः ये उपग्रह पृथ्वी की परिक्रमा के क्रम में क्रमश: पश्चिम के भाग को बिना कवर किये आगे बढ़ जाते हैं। इसी कारण पूरी पृथ्वी को कवर करने के लिए सुदूर संवेदी उपग्रहों की आवश्यकता पड़ती है।
◆ दूर-संचार उपग्रह (Tele-Communication Satellite) भू-स्थैतिक कक्षा में 36,000 किमी. की ऊँचाई पर स्थापित किये जाते हैं। पृथ्वी के घूर्णन काल से मेल खाने के कारण ये स्थिर से प्रतीत होते हैं। इसी कारण इन्हें भू-स्थैतिक उपग्रह (Geo-Stationary Satellite) भी कहा जाता है।
◆ समस्त पृथ्वी को कवर करने के लिए न्यूनतम तीन- स्थैतिक उपग्रहों की आवश्यकता पड़ती है।
ग्रहों से संबद्ध महत्त्वपूर्ण तथ्य
आकार के अनुसार ग्रहों का अवरोही क्रम
1. बृहस्पति 2. शनि 3. अरुण 4. वरुण
5. पृथ्वी 6. शुक्र 7. मंगल 8. बुध
द्रव्यमान के अनुसार ग्रहों का अवरोही क्रम
1. बृहस्पति 2. शनि 3. वरुण 4. अरुण
5. पृथ्वी 6. शुक्र 7. मंगल 8. बुध
घनत्व के अनुसार ग्रहों का अवरोही क्रम
1. बृहस्पति 2. शनि 3. वरुण 4. अरुण
5. पृथ्वी 6. शुक्र 7. मंगल 8. बुध
दूरी के अनुसार ग्रहों का आरोही क्रम
1. बुध 2. शुक्र 3. पृथ्वी 4. मंगल
5. बृहस्पति 6. शनि 7. अरुण 8. वरुण
परिक्रमण अवधि के अनुसार ग्रहों का आरोही क्रम
1. बुध 2. शुक्र 3. पृथ्वी 4. मंगल
5. बृहस्पति 6. शनि 7. अरुण 8. वरुण
परिक्रमण वेग के अनुसार ग्रहों का अवरोही क्रम
1. बुध 2. शुक्र 3. पृथ्वी 4. मंगल
5. बृहस्पति 6. शनि 7. अरुण 8. वरुण
धूमकेतु (Comet)
◆ सौरमंडल के छोर पर बहुत ही छोट-छोटे अरबों पिंड विद्यमान हैं, जो धूमकेतु या पुच्छल तारे कहलाते हैं।
◆ यह गैस एवं धूल का संग्रह है जो आकाश में लंबी चमकदार पूँछ सहित प्रकाश के चमकीले गोले के रूप में दिखायी देते हैं।
◆ ये सूर्य के चारों ओर लंबी किन्तु अनियमित या असमकेन्द्रित कक्षा में घूमते हैं।
◆ धूमकेतु केवल तभी दिखायी पड़ता है जब वह सूर्य की ओर अग्रसर होता है क्योंकि सूर्य की किरणें इसकी गैस को चमकीला बना देती है।
◆ धूमकेतु की पूँछ हमेशा सूर्य से दूर दिखायी देता है।
◆ हेली धूमकेतु प्रमुख धूमकेतु है। इसका परिक्रमण काल 76 वर्ष है। यह अंतिम बार 1986 में दिखायी दिया था। अगली बार यह 1986+76 = 2062 में दिखायी देगा।
◆ धूमकेतु हमेशा के लिए टिकाऊ नहीं होते हैं, फिर भी प्रत्येक धूमकेतु के लौटने का समय निश्चित होता है।
उल्का (Meteors )
◆ उल्का अंतरिक्ष में तीव्र गति से घूमते हुए अत्यंत सूक्ष्म ब्रह्मांडीय कण अथवा पिण्ड है। ये मूलत: क्षुद्रग्रहों के टुकड़े तथा धूमकेतुओं के द्वारा पीछे छोड़े गये धूल के कण होते हैं।
◆ धूल व गैस से निर्मित ये कण अथवा पिण्ड जब वायुमंडल में प्रवेश करते हैं तो पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के कारण तेजी से पृथ्वी की ओर आते हैं और वायुमंडलीय घर्षण से चमकने लगते हैं। इन्हें ‘टूटता हुआ तारा’ (Shooting Star) कहा जाता है । प्रायः ये पृथ्वी पर पहुँचने से पूर्व ही जलकर राख हो जाते हैं, इन्हें ‘उल्का’ या ‘उल्काश्म’ कहते हैं।
◆ कुछ पिण्ड वायुमंडल के घर्षण से पूर्णत: जल नहीं पाते हैं और चट्टानों के रूप में पृथ्वी पर आ गिरते हैं जिन्हें उल्कापिण्ड कहा जाता है।
क्षुद्रग्रह (Asteroids)
◆ मंगल एवं बृहस्पति ग्रह की कक्षाओं के बीच कुछ छोटे-छोटे आकाशीय पिण्ड हैं जो सूर्य की परिक्रमा कर रहे हैं उसे क्षुद्रग्रह कहते हैं। खगोलशास्त्रियों के अनुसार ग्रहों के विस्फोट के फलस्वरूप टूटे हुए टुकड़ों से क्षुद्रग्रह का निर्माण हुआ है। क्षुद्रग्रहों की अनुमानित संख्या 40,000 है।
◆ क्षुद्रग्रह जब पृथ्वी से टकराता है तो पृथ्वी के पृष्ठ पर विशाल गर्त बन जाता है। महाराष्ट्र में स्थित लोनार झील ऐसा ही एक गर्त है।
◆ फोर वेस्टा एकमात्र क्षुद्रग्रह है जिसे नंगी आँखों से देखा जा सकता है।
सौर परिवार की सारणी : एक नजर में
ग्रहों के नाम व्यास (किमी.) परिभ्रमण समय अपने अक्ष पर परिक्रमण समय सूर्य के चारों ओर उपग्रहों की संख्या
बुध 4,878 58.6 दिन 88 दिन 0
शुक्र 12,102 243 दिन 224.7 दिन 0
पृथ्वी 12,756-12,714 23.9 घण्टे 365.26 दिन 1
मंगल 6,787 24.6 घण्टे 687 दिन 2
बृहस्पति 1,42,800 9.9 घण्टे 11.9 दिन 28
शनि 1,20,500 10.3 घण्टे 29.5 वर्ष 30
अरुण 51,400 16.2 घण्टे 84.0 वर्ष 21
वरुण 48,600 18.5 घण्टे 164.8 घण्टे 8

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