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हिटलर के उदय की पृष्ठभूमि

हिटलर के उदय की पृष्ठभूमि
प्रथम विश्वयुद्ध के बाद की राजनीति की दो महत्त्वपूर्ण घटनाएँ हैं- इटली में बेनिटो मुसोलिनी के नेतृत्व में फासीवाद एवं
जर्मनी में एडोल्फ हिटलर के नेतृत्व में नाजीवाद का उदय और विकास। इनका उदय दो विश्वयुद्धों के मध्य की अवधि में हुआ।
इन दोनों घटनाओं का विश्वव्यापी प्रभाव पड़ा और समस्त राजनीतिक परिदृश्य बदल गया।
नाजीवाद का अर्थ-नाजीवाद अथवा नात्सीवाद का जनक जर्मनी का एडोल्फ हिटलर था। नाजीवाद एक आंतरिक जर्मन
प्रक्रिया थी जिसने उसके अधिकारवाद तथा राष्ट्रवाद की पुरानी जर्मन राजनीतिक विचारधाराओं को पुनः जागृत कर दिया।
हिटलर का नाजीवाद “सैनिकवाद, वीरपूजा, राज्य की सर्वोच्चता के सिद्धांत, ‘शक्ति ही अधिकार है’ के सिद्धांत, यहूदी-विरोध,
जर्मनी के लिए अतिरिक्त प्रदेशों की माँग तथा आर्य प्रजाति की श्रेष्ठता के सिद्धांत का समन्वय था।”

हिटलर के उदय की पृष्ठभूमि

जर्मनी की तत्कालीन स्थिति-नाजीवाद के प्रवर्तक एडोल्फ हिटलर का जन्म ऑस्ट्रिया के ब्रौना में 20 अप्रैल 1889 को हुआ
था। उसके आरंभिक दिन गरीबी में व्यतीत हुए। प्रथम विश्वयुद्ध आरंभ होने पर वह जर्मन सेना में भरती हो गया। युद्ध में जर्मनी
ने उत्साहपूर्वक भाग लिया तथा उसे आरंभिक सफलता भी मिली। फ्रांस और बेल्जियम पर जर्मनी ने आधिपत्य जमा लिया।
युद्ध में हिटलर ने असाधारण वीरता दिखलाई जिसके लिए उसे आयरन क्रॉस से सम्मानित किया गया। 1917 में संयुक्त राज्य अमेरिका के युद्ध में प्रवेश करने से मित्र राष्ट्रों (इंगलैंड, फ्रांस और रूस) की शक्ति बढ़ गई। फलतः, नवंबर 1918 में जर्मनी
और उसके सहयोगी राष्ट्रों की पराजय हुई। इसके बाद जर्मनी में घटनाक्रम तेजी से बदला। युद्ध में पराजित होने पर जर्मन सम्राट कैजर विलियम द्वितीय ने गही त्याग दी और वह हॉलैंड चला गया। समाजवादी प्रजातांत्रिक दल ने सत्ता अपने हाथों में लेकर फ्रेडरिक एवंट को चांसलर नियुक्त किया। || नवंबर 1918 को नई सरकार ने युद्धविराम संधि पर हस्ताक्षर किया। जर्मनी में वेमर नामक स्थान पर राष्ट्रीय सभा की बैठक हुई। इस सभा ने वेगर गणतंत्र (Weimar Republic) की स्थापना की तथा वेमर संविधान ।। अगस्त 1919 को लागू किया। इसके अनुसार, जर्मनी में संघीय शासन-व्यवस्था लागू की गई तथा राष्ट्रपति को आपातकालीन शक्तियाँ दी गई। इस गणतंत्रात्मक सरकार के समर्थक मुख्यतः समाजवादी, कैथोलिक और डेमोक्रेटस (जनतंत्रवादी) थे। नई सरकार ने ही वर्साय (28 जून 1919) की अपमानजनक संधि की। इसकी जर्मनी में काफी तीखी प्रतिक्रिया हुई।
सामाजिक स्तरीकरण में सैनिकों का महत्त्व बढ़ गया। राजनेता और सेना उप राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय सम्मान की माँग करने लगे।
जिस समय ये घटनाएँ घट रही थीं उस समय हिटलर अस्पताल में भरती था। वर्साय की संधि की खबर सुनकर उसे अत्यधिक रोष हुआ। जर्मन अपमान के लिए उसने नेताओं को दोषी ठहराया। उसने राजनीति में प्रवेश करने का निश्चय किया। जर्मनी में स्थिति असंतोषजनक थी। गणतंत्र के समर्थक और इसके नेता नवंबर क्रिमिनल्स (November Criminals) के नाम से पुकारे गए। हिटलर ने इस असंतोष को बढ़ावा देना आरंभ किया।
अस्पताल से स्वस्थ होकर उसने युवकों के साथ संपर्क स्थापित किया। 1919 में उसने जर्मन वर्कर्स पार्टी (German Workers’ Party) की सदस्यता ग्रहण की। उसने इसका पुनर्गठन किया और इसपर अपना प्रभाव स्थापित कर लिया। अब उसने इसका नाम बदलकर नेशनल सोशलिस्ट जर्मन वर्कर्स पार्टी (National Socialist German Workers’ Party) रखा। यही पार्टी बाद में नाजी पार्टी (Nazi Party) के नाम से विख्यात हुई। हिटलर इस दल का नेता या फ्यूहरर बन गया। हिटलर गणतंत्र-विरोधी था। 1923 में उसने लूडेनडार्फ के साथ मिलकर गणतंत्रात्मक सरकार का तख्ता पलटने का प्रयास किया, परंतु यह विफल हो गया। हिटलर पर मुकदमा चलाकर उसे कारावास की सजा दी गई। कारावास से हिटलर को शीघ्र ही मुक्ति मिल गई। कारावास में ही उसने अपनी आत्मकथा मेरा संघर्ष (मेन केम्फ, Mein Kampt) का प्रथम भाग लिखा। इसमें उसने जनतंत्र के विरुद्ध असंतोष प्रकट किया एवं इसकी आलोचना की। जेल से रिहा होकर वह नाजी पार्टी के संगठन में जुट गया। हिटलर की नाजी पार्टी के कार्यक्रमों, उसके भाषणों, विशाल प्रदर्शनों एवं जनसभाओं से इसकी लोकप्रियता बढ़ती गई। पार्टी के लाल रंग का झंडा, जिसपर स्वस्तिक का चिह्न बना हुआ था, जगह-जगह लहराया जाने लगा। हजारों लोगों ने नाजी पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली। पार्टी की शाखाएँ पूरे जर्मनी में खुल गई। जनता नाजी पार्टी एवं हिटलर को अपना उद्धारक और मसीहा मानने लगी। हिटलर को साधारण जनता, उद्योगपतियों, जर्मन देशभक्तों, भूतपूर्व सैनिक पदाधिकारियों सभी का समर्थन और सहयोग मिला।
इसके बावजूद 1930 तक हिटलर को पर्याप्त समर्थन नहीं मिल सका। इतना ही नहीं, गणतंत्रवादियों के प्रयासों से 1925 में
लोकार्नो समझौता के अनुसार जर्मनी को राष्ट्रसंघ की सदस्यता मिल गई। 1928 में नाजी पार्टी को जर्मन संसद राइखस्टाग
(Reichstag) में सिर्फ 2.6 प्रतिशत मत ही मिले, लेकिन 1929 की आर्थिक मंदी के दौरान और बाद में नाजी पार्टी का प्रभाव
बढ़ता गया। उत्साहित होकर हिटलर ने 1932 में राष्ट्रपति-पद के लिए चुनाव लड़ा। इसमें उसकी पराजय हुई, परंतु वह
हतोत्साहित नहीं हुआ। उसने अपना प्रभाव इतना अधिक बढ़ा लिया था कि राष्ट्रपति हिंडेनबर्ग ने उसे 30 जनवरी 1933 को
अपना प्रधानमंत्री (चांसलर) नियुक्त किया। चांसलर बनते ही उसने अपनी सत्ता सुदृढ़ करने और गणतंत्र को समाप्त करने का
प्रयास आरंभ कर दिया। संसद के लिए चुनाव इस प्रकार कराए गए कि सिर्फ नाजी दल के लोग ही जीत सके। इस संसद का
नाम तृतीय राइख (Third Reich) रखा गया। फरवरी 1933 में संसद भवन में आग लगने के बाद सभी नागरिक अधिकार
समाप्त कर दिए गए। कम्युनिस्टों एवं नाजी-विरोधियों का सफाया किया गया। मार्च 1933 में एक कानून इनेवलिंग ऐक्ट
(Enabling Act) बनाकर हिटलर को अध्यादेश के द्वारा शासन करने का अधिकार दिया गया। इसका लाभ उठाकर हिटलर ने
नाजी पार्टी के अतिरिक्त अन्य सभी राजनीतिक दलों एवं श्रमिक संगठनों पर रोक लगा दी। गेस्टापो (Gestapo) और अन्य
विशिष्ट पुलिस टुकड़ियों द्वारा नाजी पार्टी के विरोधियों पर आतंक का राज्य स्थापित किया गया। भाषण, प्रकाशन और संगठन पर रोक लगा दी गई। साम्यवादियों को यातना-शिविरों में भेज दिया गया। अर्थव्यवस्था, सेना, न्याय और संचार माध्यमों
पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित किया गया।
1934 में जर्मन राष्ट्रपति हिंडेनवर्ग की मृत्यु हो गई। इसके पूर्व जर्मन संसद ने एक कानून पारित किया था जिसके अनुसार राष्ट्रपति की मृत्यु के बाद नए राष्ट्रपति का चुनाव नहीं होना था, वरन राष्ट्रपति का पद चांसलर के पद के साथ मिला दिया जाना
इस प्रावधान का सहारा लेकर हिटलर ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री (चांसलर) दोनों पदों को मिलाकर सारी सत्ता अपने हाथों में केंद्रित कर ली। इस प्रकार, जर्मनी में हिटलर के अधीन सर्वाधिकारवादी (totalitarian) राज्य की स्थापना हुई। वह देश
का फ्यूहरर (नेता) बन गया। उसने एक जनता, एक साम्राज्य और एक नेता (One people, One empire and One leader)
का नारा दिया। 1945 तक वह जर्मनी का भाग्यविधाता बना रहा।

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