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हिटलर (नाजीवाद) के उत्कर्ष के कारण

हिटलर (नाजीवाद) के उत्कर्ष के कारण

हिटलर (नाजीवाद) के उत्कर्ष के कारण

(i) 1919 की वर्साय की अपमानजनक संधि
(ii) आर्थिक मंदी
(iii) साम्यवाद का बढ़ता प्रभाव
(iv) यहूदी-विरोधी भावना
(v) जर्मनी में अंतर्निहित सैनिक प्रवृत्ति
(vi) जर्मनी में गणतंत्र की विफलता
(vii) हिटलर को सभी वर्गों का समर्थन
(viii) हिटलर का व्यक्तित्व
जर्मनी में हिटलर और उसकी नाजी पार्टी के सत्ता में आने अथवा नाजी क्रांति के अनेक कारण थे। इनमें निम्नलिखित प्रमुख है-
(1) 1919 की वर्साय की अपमानजनक संधि- -प्रथम विश्वयुद्ध में पराजित होने पर जर्मनी को मित्र राष्ट्रों के साथ एक कठोर
और अपमानजनक संधि करनी पड़ी। मित्र राष्ट्रों ने प्रथम विश्वयुद्ध के लिए जर्मनी को उत्तरदायी ठहराया और संधि की कड़ी शर्ते रखी। इस संधि के अनुसार, जर्मनी को अपने सभी उपनिवेशों, अपने साम्राज्य के 13 प्रतिशत क्षेत्र और 10 प्रतिशत
आबादी से हाथ धोना पड़ा। इसके 75 प्रतिशत लोहा एवं 26 प्रतिशत कोयला की खानों पर फ्रांस, पोलैंड, डेनमार्क और
बेल्जियम ने अधिकार कर लिए। एक नए पोलैंड राज्य की स्थापना की गई। बाल्टिक तट से पोलैंड का सीधा संपर्क कायम
करने के लिए जर्मनी के बीचोबीच एक वृहत प्रदेश पोलैंड को दिया गया। यह पोलिश गलियारा (Polish Corridor) के नाम
से जाना गया। जर्मनी की नौसेना के जहाज जब्त कर लिए गए तथा सैनिकों की संख्या एक लाख तक सीमित कर दी गई।
क्षतिपूर्ति के रूप में जर्मनी को भारी रकम देनी थी। उसे 6 अरब पौंड की धन-राशि हरजाना के रूप में देनी पड़ी। उसकी खनिज संपदा से परिपूर्ण राइनलैंड पर मित्र राष्ट्रों ने अधिकार कर लिया। वर्साय की इस संधि ने जर्मनों और हिटलर को उद्वेलित कर दिया। हिटलर ने इस संधि को राजमार्ग की डकैती (highway robbery) कहा। हिटलर ने अपने भाषणों में इस संधि की कड़ी आलोचना कर जनता को प्रजातंत्रवादियों की तरफ से अपनी ओर कर लिया।
(ii) आर्थिक मंदी-प्रथम विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी की आर्थिक स्थिति अत्यधिक बिगड़ गई थी। 1922 में क्षतिपूर्ति की रकम
अदा नहीं करने पर फ्रांस ने जर्मनी के प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र रूर (Ruhr) प्रदेश पर अधिकार कर लिया। वहाँ के खनिज और
उद्योग फ्रांस के कब्जे में चले गए। देश में अनाज की भी कमी हो गई। इससे खाद्य पदार्थों का अभाव हो गया। उदाहरण के लिए, एक पावरोटी खरीदने के लिए एक गाड़ी कागजी मुद्रा देनी पड़ती थी। मुद्रास्फीति अत्यधिक बढ़ गई। सरकार को बाध्य होकर कागजी मुद्रा (जर्मन मार्क) जारी करनी पड़ी। 1925 के अंत तक करोड़ों कागजी मार्क का मूल्य एक डॉलर के बराबर हो गया। इस दयनीय स्थिति को 1929 की विश्वव्यापी आर्थिक मंदी ने और बढ़ा दिया। जर्मनी दिवालियापन की स्थिति में पहुँच गया। कृषि, उद्योग एवं व्यापार ठप पड़ गए। 1932 तक जर्मनी के औद्योगिक उत्पादन में 40 प्रतिशत की गिरावट आई। देश में भुखमरी और बेकारी बढ़ गई। करोड़ों लोग बेरोजगार हो गए। हिटलर ने इस दयनीय स्थिति के लिए प्रजातंत्रवादियों को दोषी ठहराया। उसने नाजी पार्टी की ओर से आकर्षक कार्यक्रम प्रस्तुत किए जिससे जनता की स्थिति में सुधार लाया जा सके। जनता को लगा कि हिटलर और नाजी पार्टी उनके दुर्दिन को समाप्त कर देंगे। अतः, हिटलर को जनसमर्थन मिलने लगा।
(iii) साम्यवाद का बढ़ता प्रभाव-वेमर गणतंत्र (Weimar Republic) में सामाजिक प्रजातंत्रवादियों (Social Democrats)
का प्रभुत्व था। ये मार्क्सवादी थे। ये जर्मनी में सोवियत संघ जैसी व्यवस्था स्थापित करना चाहते थे। साम्यवादी विचारधारा जर्मनी
में राष्ट्रीयता के लिए एक बड़ी चुनौती थी। जर्मनी की बड़ी जनसंख्या साम्यवाद की बढ़ती शक्ति को देश के लिए संकट मानती थी। हिटलर ने जनता को साम्यवाद के विनाशकारी प्रभावों से परिचित कराया। अपने भाषणों में उसने साम्यवादियों की कटु
आलोचना की। फलतः, जर्मनीवासी साम्यवादी चंगुल से बचने के लिए बड़ी संख्या में नाजी दल में सम्मिलित होने लगे।
(iv) यहूदी-विरोधी भावना-जर्मनी का एक बड़ा जनसमुदाय, जिसमें मध्यम वर्ग और बेरोजगार थे, यहूदी-विरोधी थे। उनका
मानना था कि प्रथम विश्वयुद्ध में यहूदियों के विश्वासघात के कारण ही जर्मनी की पराजय हुई थी। साधारण जनता भी यहूदियों
से घृणा करती थी। वह यहूदियों को सूदखोर मानकर अपनी आर्थिक दुर्दशा के लिए उन्हें उत्तरदायी मानती थी। हिटलर जनता
के इस मनोभाव से पूरी तरह परिचित था। उसने स्वयं भी यहूदी-विरोधी नीति अपना ली। उसने यहूदियों के प्रति घृणा का
प्रचार किया। उसने यहूदियों को न सिर्फ प्रथम विश्वयुद्ध में पराजय के लिए, बल्कि जर्मनी की दुर्दशा के लिए भी उत्तरदायी
ठहराया। हिटलर के इन विचारों का सेना, उद्योगपतियों, जंकरों (भूमिपतियों) तथा गणतंत्र-विरोधी राजनीतिज्ञों पर बड़ा व्यापक
प्रभाव पड़ा। वे सभी हिटलर को जर्मनी का मसीहा मानकर उसके साथ हो गए।
(v) जर्मनी में अंतर्निहित सैनिक प्रवृत्ति-जर्मनी में सैनिक मनोवृत्ति आरंभ से ही प्रभावशाली थी। बिस्मार्क ने रक्त और लौह (Blood and Iron) की नीति अपनाकर जर्मनी का एकीकरण किया था। प्रथम विश्वयुद्ध तक जर्मनी सैनिक दृष्टिकोण से एक
शक्तिशाली राष्ट्र बन चुका था, परंतु प्रथम विश्वयुद्ध के बाद स्थिति बदल गई। सैनिकों की संख्या सीमित कर सेना पर करारा
प्रहार किया गया। इससे सैनिक प्रवृत्ति को ठेस पहुंची तथा सेना के सामने बेकारी की समस्या उठ खड़ी हुई। हिटलर ने इस स्थिति का लाभ उठाया। उसने जर्मनों की सैनिक मनोवृत्ति को उभारा। उसने एक स्वयंसेवक दल की स्थापना की। इसमें युवा और अन्य लोग बड़ी संख्या में भर्ती होने लगे। ये हिटलर के विचारों का प्रचार भी करते थे। इससे हिटलर और नाजी दल की
शक्ति बढ़ी।
(vi) जर्मनी में गणतंत्र की विफलता-प्रथम विश्वयुद्ध के अंतिम चरण में जर्मनी में गणतंत्रात्मक सरकार की स्थापना की
गई। यह सरकार आरंभ से ही जर्मनों में अलोकप्रिय रही, क्योंकि इसने वर्साय की अपमानजनक संधि की थी। इसके अतिरिक्त
जर्मनी में गणतंत्रात्मक प्रवृत्ति की जड़ें गहरी नहीं थीं। गणतंत्र की स्थापना भी पराजित होने के दबाव में करनी पड़ी। सामाजिक
प्रजातंत्रवादी इस गणतंत्र को सही ढंग से चला नहीं सके। स्पार्टकिस्ट आंदोलन को दबाने के लिए उनलोगों ने प्रतिक्रियावादी तत्त्वों से समझौता किया जो गणतंत्र को किसी भी कीमत पर स्वीकार करने को तैयार नहीं थे। इन तत्त्वों में सेना प्रमुख थी। वेमर संविधान में अंतर्निहित दुर्बलताएँ भी गणतंत्र की विफलता के लिए उत्तरदायी बनी। हिटलर ने गणतंत्रात्मक व्यवस्था एवं इसके नेताओं की कटु आलोचना कर सेना एवं जनसाधारण को अपना पक्षधर बना लिया। इससे उसकी शक्ति बढ़ गई।
(vii) हिटलर को सभी वर्गों का समर्थन-हिटलर तथा नाजियों को जर्मन समाज के हर वर्ग का सहयोग और समर्थन मिला।
कुलीन वर्ग के लोगों ने हिटलर का समर्थन इसलिए किया, क्योकि वे वेमर गणतंत्र को समाप्त करना चाहते थे। नाजियों के
एक नई सामाजिक व्यवस्था लाने के वादे से छात्र और युवा वर्ग प्रभावित हुआ। किसान और छोटे शहरों में रहनेवाले औद्योगिकीकरण और बड़े शहरों के विरुद्ध थे। उन्हें उम्मीद थी कि हिटलर इन प्रवृत्तियों से उनकी रक्षा करेगा। निम्न-मध्यवर्गीय लोग तथा छोटी नौकरी एवं व्यवसाय करनेवाले मुद्रास्फीति से बुरी तरह प्रभावित हुए। वे इस व्यवस्था को समाप्त होते देखना चाहते थे। निम्न-मध्यवर्गीय लोग गणतंत्र को अयोग्य और भ्रष्टाचार से पूर्ण मानते थे। नाजियों ने उन्हें सुनहले सपने
दिखाए। नाजी पार्टी यह दावा करती थी कि यह दल अन्य सभी दलों से अलग है। वह यह भी कहती थी कि वह चुनावों में सिर्फ
इसलिए भाग ले रही थी, क्योंकि उसे तत्कालीन राजनीतिक व्यवस्था को समाप्त कर एक नए समाज एवं राष्ट्र का निर्माण
करना है। नाजी पार्टी के इस प्रचार से सभी वर्ग हिटलर के समर्थक बन गए।
(viii) हिटलर का व्यक्तित्व-माजी दल और हिटलर के राजनीतिक उत्कर्ष का एक महत्वपूर्ण कारण स्वयं हिटलर का
आकर्षक और प्रभावोत्पादक व्यक्तित्व था। वह भाषण देने में अत्यंत निपुण था। अपने भाषणों से वह श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर
अपनी ओर आकर्षित कर लेता था। उसके सत्तारूढ़ होने में जनमत का उसके पक्ष में होना अत्यंत सहायक हुआ। हिटलर
जर्मन जाति की मनोभावना से पूरी तरह परिचित था। वह जानता था कि जर्मनीवासी वर्साय की संधि के अपमान को भूले नहीं है। इसलिए, अपने भाषणों में वह संधि का और इसे करनेवाले ‘नवंबर क्रिमिनल्स’ का उल्लेख करना कभी नहीं भूलता था। वह
यहाँ तक कहता था कि ‘वर्साय के संधिपत्र को फाड़ डालो’। जनता उसके विचारों से उसकी ओर आकृष्ट हुई। वह उसे अपने
राष्ट्रीय अपमान का बदला लेनेवाला एवं राष्ट्रीय गौरव की स्थापना करनेवाला समझने लगी।

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