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1830 की यूरोपीय क्रांतियाँ

1830 की यूरोपीय क्रांतियाँ
क्रांतियों का दौर (1830-48)
1830 तक यूरोप में उदारवाद-राष्ट्रवाद और रूढ़िवाद-प्रतिक्रियावाद
में संघर्ष अनिवार्य हो गया। जैसे-जैसे प्रतिक्रियावादी अपना प्रभाव
बढ़ाते गए, वैसे-वैसे राष्ट्रवादी भी इनका विरोध करने को उतारू हो
गए। फलत:, 1830-48 के मध्य अनेक यूरोपीय राष्ट्रों में राष्ट्रवादी
क्रांतियाँ हुईं। इनका उद्देश्य पुरातन व्यवस्था को समाप्त कर नई
व्यवस्था की स्थापना करना था।

1830 की यूरोपीय क्रांतियाँ

♦ फ्रांस की जुलाई क्रांति
♦ स्पेन
♦ पुर्तगाल
♦ स्विट्जरलैंड
♦ बेल्जियम
♦ पोलैंड
♦ जर्मनी-इटली
♦ इंगलैंड
फ्रांस की जुलाई क्रांति-यूरोप में क्रांति का आरंभ पुन: फ्रांस से हुआ। जुलाई 1830 में स्वेच्छाचारी शासन के विरुद्ध फ्रांस में क्रांति की ज्वाला भड़क उठी। वियना काँग्रेस की व्यवस्था के अनुरूप नेपोलियन की पराजय के बाद, बूबों राजवंश के लुई अठारहवाँ को फ्रांस की राजगद्दी सौंपी गई। उसने फ्रांस की महान क्रांति के सिद्धांतों को प्रतिस्थापित करने का प्रयास किया। प्रतिक्रियावादियों और सुधारवादियों के बीच तारतम्य बनाए रखने का भी प्रयास उसने किया। लुई ने 2 जून 1814 को संवैधानिक सुधारों की घोषणा भी की जो 1848 तक फ्रांस में चलते रहे। 1824 में उसकी मृत्यु के पश्चात फ्रांस का राजसिंहासन चार्ल्स दशम को मिला। वह स्वेच्छाचारी और निरंकुश शासक था। वह संवैधानिक राजा के रूप में शासन करने को तैयार नहीं
था। उसका कहना था, मैं अँगरेजी राजा की भाँति शासन करने की अपेक्षा लकड़ी काटना अधिक पसंद करूँगा। उसने कुलीनों और पादरियों को विशेषाधिकार दिए। चर्च को शक्ति प्रदान किया गया। उदारवादियों का दमन किया गया। नागरिक स्वतंत्रता का हनन किया गया तथा प्रेस और भाषण पर पाबंदी लगा दी गई। फलतः, चार्ल्स का विरोध बढ़ने लगा। चार्ल्स ने विरोध की परवाह नहीं की। 1830 में उसने पोलिगनेक नामक एक प्रतिक्रियावादी को अपना प्रधानमंत्री नियुक्त किया जिसने शक्तिशाली आभिजात्य वर्ग की स्थापना का प्रयास किया। इससे उसका विरोध बढ़ने लगा। चार्ल्स ने विरोध की परवाह नहीं कर 25 जुलाई 1830 को चार अध्यादेश जारी किए। इनके अनुसार- (i) प्रेस की स्वतंत्रता समाप्त कर दी गई, (ii) नवनिर्वाचित प्रतिनिधि सभा भंग कर दी गई, (iii) मतदान का अधिकार संकुचित कर कुलीनों को लाभ पहुँचाया गया और (iv) सितंबर में नए चुनाव करवाने की घोषणा की गई।
चार्ल्स के अध्यादेशों की तीव्र प्रतिक्रिया हई। सभी उदारवादी, राष्ट्रवादी संगठित हो गए और राजशाही का विरोध करने का निर्णय लिया। 26 जुलाई 1830 को पेरिस की जनता ने विद्रोह कर दिया। रातभर पेरिस स्वाधीनता के नारों से गूंजता रहा। इस क्रांति में सैनिकों, मजदूरों, विद्यार्थियों सभी ने भाग लिया। पेरिस की जनता ने राजा के सैनिकों और कुलीनों से खुला संघर्ष किया। जनता का नेतृत्व वृद्ध लफायते ने किया जिसने फ्रांस की ओर से अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था। राजा के सैनिक जनता पर नियंत्रण स्थापित नहीं कर सके। अनेक सैनिक मारे गए। बहुतेरे क्रांतिकारियों के साथ मिल गए। 27-29 जुलाई तक जनता और राजशाही में संघर्ष होता रहा। ये तीन दिन फ्रांस के इतिहास में
गौरवशाली तीन दिन माने जाते हैं। जनता ने पेरिस पर अधिकार कर लिया। राजा की पराजय हुई। 31 जुलाई को गद्दी छोड़कर चार्ल्स दशम इंगलैंड चला गया।
1830 की फ्रांसीसी क्रांति जुलाई माह में हुई थी इसलिए इसे जुलाई क्रांति कहा जाता है। इस क्रांति के दूरगामी परिणाम हुए। फ्रांस में बूढे वंश की सत्ता का अंत हुआ। अब आर्लेयंस वंश के लुई फिलिप को राजगद्दी सौंपी गई। क्रांति के परिणामस्वरूप गणतंत्र की स्थापना तो नहीं हो सकी, परंतु निरंकुश राजशाही का स्थान संवैधानिक राजतंत्र ने ले लिया। लुई फिलिप को फ्रांसीसी जनता का राजा घोषित किया गया। उसने उदारवादी नीति का अनुसरण किया। यह उदारवाद और राष्ट्रवाद की विजय थी।

जुलाई क्रांति का प्रभाव

फ्रांस की जुलाई क्रांति का प्रभाव फ्रांस के अतिरिक्त अन्य यूरोपीय राष्ट्रों पर भी पड़ा। मेटरनिक ने एक बार कहा था, जब फ्रांस छींकता है तो बाकी यूरोप को सर्दी-जुकाम हो जाता है। (When France sneezes, the rest of Europe catches cold.) मेटरनिक की इस उक्ति को 1830 की फ्रांसीसी क्रांति ने प्रमाणित कर दिया। जुलाई क्रांति ने फ्रांस की महान क्रांति के सिद्धांतों की पुनर्स्थापना करने का प्रयास किया। मेटरनिक की प्रतिक्रियावादी नीतियों की पराजय हुई।
राष्ट्रीयता और एकता की भावना बलवती हुई। यूरोप के अनेक राष्ट्रों में निरंकुशवाद का विरोध होने लगा। संवैधानिक सुधारों और एकीकृत राष्ट्र के निर्माण के लिए प्रयास तेज कर दिए गए। शीघ्र ही अन्य देशों में भी क्रांतियों हुई। जुलाई क्रांति ने यूरोपीय राष्ट्रो के राजनीतिक एकीकरण, संवैधानिक सुधारों एवं राष्ट्रवादी भावना के विकास का मार्ग प्रशस्त कर दिया। इटली और जर्मनी के एकीकरण के लिए प्रयास तेज कर दिए गए। यूनान, पोलैंड, हंगरी और अन्य राष्ट्रों में निरंकुशवाद के विरुद्ध आंदोलन उठ खड़े हुए। फ्रांस में भी 1830 की क्रांति ने 1848 की क्रांति की पृष्ठभूमि तैयार कर दी।
स्पेन-नेपोलियन के पतन के बाद स्पेन में फर्डिनेंड को राजगही सौपी गई। वह घोर प्रतिक्रियावादी था। जनता उसके स्वेच्छाचारी शासन से ऊब चुकी थी। फ्रांस की क्रांति से उत्साहित होकर जनता ने राजा पर प्रशासनिक सुधारों के लिए दबाव डाला। बाध्य होकर उसे संवैधानिक सुधार लागू करने पड़े। एक नया संविधान बनाकर जनता को नागरिक सुविधाएँ प्रदान की गई।
पुर्तगाल-पुर्तगाल में 1828 में डोम मिगुएल ने सत्ता पर कब्जा कर लिया। वह प्रतिक्रियावादी था। अतः, उसका विरोध होने लगा। गद्दी की अन्य दावेदार डोला मारिया राष्ट्रवादी थी। अत:, उसे जनता का समर्थन मिला। आंतरिक संघर्ष के बाद डोला मारिया सत्ता पर आधिकार करने में सफल हुई। उसने पुर्तगाल में संवैधानिक शासन आरंभ किया।
स्विट्जरलैंड-स्विट्जरलैंड विभिन्न कैंटनों में विभक्त था। वहाँ की राजनीति और समाज पर कुलीनों का व्यापक प्रभाव था। राष्ट्रवादी भावना से प्रेरित होकर जनता ने संवैधानिक सुधारों की माँग की। आंदोलन के डर से सरकार ने अनेक माँगों को स्वीकार कर लिया।
बेल्जियम-1815 में बेल्जियम को हॉलैंड के साथ मिला दिया गया था। यह राष्ट्रीय भावना के विरुद्ध था। हॉलैंड बेल्जियम के
साथ पराजित राष्ट्रों जैसा व्यवहार कर रहा था। प्रतिक्रियास्वरूप स्वतंत्रता की माँग बलवती होती गई। 1830 में ब्रूसेल्स में विद्रोह हुआ। इसके परिणामस्वरूप बेल्जियम यूनाइटेड किंगडम ऑफ द नीदरलैंड्स से अलग हो गया। 1831 में वहाँ नया संविधान लागू किया गया।
पोलैंड-1830 में पोलैंड में रूसी शासन के विरुद्ध असंतोष भड़क उठा। जार के विरुद्ध उदारवादियों ने विद्रोह कर दिया। वे प्रशासनिक सुधारों की माँग कर रहे थे। जार ने सेना की सहायता से विद्रोह को तो दबा दिया, परंतु राष्ट्रीयता की भावना का दमन वह नहीं कर सका।
जर्मनी-इटली–1830 में ऑस्ट्रिया-हंगरी साम्राज्य के अंतर्गत जर्मनी और इटली में भी क्रांतियाँ हुई। जर्मनी में बूंसविक, हनोवर, सैक्सनी, बवेरिया इत्यादि में संवैधानिक शासन लागू हुआ। इससे उदारवादियों का प्रभाव बढ़ा। समाचारपत्रों को स्वतंत्रता दी गई। इटली में पारमा और मोडेना में क्रांतियाँ हुई। पोप के राज्य में भी विद्रोह हुआ, परंतु इन्हें दबा दिया गया।
इंगलैंड-1688 की गौरवपूर्ण क्रांति द्वारा इंगलैंड में संवैधानिक
राजतंत्र की स्थापना हो चुकी थी। संसद के हाथों में सारी शक्ति
निहित थी। परंतु, संसद पर कुलीनों का प्रभाव था। मतदान का
अधिकार सीमित था। इससे सामान्य जनता में असंतोष व्याप्त था।
मतदान के अधिकार को व्यापक बनाने के लिए आंदोलन किए गए।
इसके परिणामस्वरूप 1832 में संसदीय सुधार अधिनियम पारित
किया गया। इससे इंगलैंड का शासन अधिक उदार हुआ।

1830 की क्रांतियों के परिणाम और महत्त्व

1830 की क्रांतियों ने यूरोप में स्थापित मेटरनिक-व्यवस्था एवं वैधता के सिद्धांत को गंभीर चुनौती दी। यद्यपि प्रत्येक क्रांति सफल नहीं हुई, सर्वत्र वांछित परिणाम नहीं हुए तथापि इसने उदारवाद और राष्ट्रवाद के विकास का मार्ग प्रशस्त कर दिया। शीघ्र ही 1848 में पुन: क्रांतियों का दौर आरंभ हुआ। 1830 की क्रांतियों से समस्त यूरोप प्रभावित हुआ। राजशाही और चर्च का प्रभाव कमजोर पड़ा। इटली और जर्मनी के एकीकरण का मार्ग प्रशस्त हुआ। क्रांति के परिणामस्वरूप अनेक देशों, विशेषत: फ्रांस में उदारवादी मध्यम वर्ग का राजनीतिक महत्त्व बढ़ गया। 1830 की क्रांतियों ने यूरोप को दो भागों में विभक्त कर दिया। पश्चिमी यूरोप में उदारवादी, संवैधानिक तथा संसदीय सरकार के निर्माण की प्रक्रिया बढ़ी। पूर्वी यूरोप में प्रतिक्रियावादी शक्तियाँ अपना प्रभाव बनाए रखने में सफल हुईं।

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