B.ED Notes in Hindi | नागरिक शास्त्र का शिक्षण शास्त्र
B.ED Notes in Hindi | नागरिक शास्त्र का शिक्षण शास्त्र
Q. नागरिक शास्त्र की पाठ्य-पुस्तक का महत्व बताइये।
(Discuss the importance of civices Text Book.)
Ans. क्रॉनबेक ने लिखा है, “अमेरिका में आज के शैक्षिक चित्र का केन्द्र-बिन्दु पाठ्य-पुस्तक है। इसका विद्यालय में महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसका अतीत में भी महत्त्व अधिक था और आज भी शक्तिशली महत्त्व है। इसको जनसाधारण की भी लोकप्रियता प्राप्त होती है क्योंकि पाठ्य-पुस्तक विद्यालय या कक्षा में छात्र तथा शिक्षक के लिए विशेष रूप से तैयार की जाती है जो कि किसी एकाकी विषय या सम्बन्धित विषयों के कोर्स का प्रस्तुतीकरण करती है। बेकन ने पाठ्य-पुस्तक को परिभाषित करते हुए लिखा है, “पाठ्य-पुस्तक का प्रयोग के लिए विशेषज्ञों द्वारा सावधानी के साथ तैयार की जती है। यह शिक्षण युक्तियों से भी सुसज्जित होती है। हॉलक्वेस्ट का कहना है, “पाठ्य-पुस्तक शिक्षण-अभिप्रायों क लिए व्यवस्थित प्रजातीय चिन्तन का एक अभिलेख है।” लेंग ने पाठ्य-पुस्तक को परिभाषित करते हुए लिखा है, “यह अध्ययन क्षेत्र की किसी शाखा की एक प्रमाणित पुस्तक होती है।” वस्तुतः पाठ्य-पुस्तक एक अधिगम साधन (Learning instrument) है जिसका प्रयोग विद्यालयों तथा कॉलेजों में शिक्षण कार्यक्रम को परिपूरित करने के लिए किया जाता है। पाठ्य-पुस्तक मुद्रित, सजिल्द होती है जो कि शिक्षण-उद्देश्यों या अभिप्रायों की पूर्ति करती है। साथ ही यह सीखने वाले के हाथ में दी जाती है।
विभिन्न प्रकार की कलाओं तथा ज्ञान-राशि को अर्जित करने के लिए पुस्तक बहुत उपयोगी होती है। परन्तु आधुनिक काल में पाठ्य-पुस्तकों का महत्त्व शिक्षा के उपकरण के रूप में और अधिक बढ़ गया है। शिक्षक अपनी पाठ-योजनाओं का निर्माण पाठ्य-पुस्तकों की सहायता से करता है और छात्र विभिन्न विचारों एवं अन्वेषकों के अनुभवों को तर्कबद्ध रूप में ग्रहण कर लेता है। इस प्रकार पाठ्य-पुस्तकें शिक्षण प्रक्रिया में शिक्षक एवं छात्र दोनों का पथ-प्रदर्शन करती हैं। इसके अतिरिक्त पाठ्य-पुस्तकें समय की बचत करती हैं तथा पूर्वानुभवों को प्रदान करके दैनिक जीवन के प्रयासों में व्यर्थ की आवृत्ति को रोकती हैं। इन पूर्वानुभवों की पृष्ठभूमि पर छात्र एवं शिक्षक दोनों ही अपने जीवन-प्रासाद को भव्य एवं सुदृढ़ बनाने में समर्थ हो सकते हैं।
इसके अतिरिक्त पाठ्य-पुस्तकें इस बात को सुनिश्चित रूप से बताती हैं कि बालकों को किसी स्तर-विशेष पर कितनी पाठ्य-वस्तु अर्जित करनी है? इस प्रकार पाठ्य-पुस्तकें सुनिश्चितता प्रदान करती हैं। इनके द्वारा छात्र तथा शिक्षक-दोनों को नवीन अनुभवों तथा सूचनाओं के संकलन में सुविधा रहती है।
पाठ्य-पुस्तकों के विरुद्ध कुछ विद्वानों का कहना है कि इस साधन द्वारा छात्रों में रटने की प्रवृत्ति विकसित की जाती है। उन्हें स्वतन्त्र चिन्तन, तर्क एवं निर्णय करने हेतु अवसर प्राप्त नहीं होते हैं । इन तकों में सत्यता अवश्य प्रतीत होती है परन्तु ये दोष इसके दुरुपयोग के कारण उत्पन्न होते हैं। पाठ्य-पुस्तक की आवश्यकता हमें यहाँ तक कि योजना एवं इकाई पद्धतियों
में भी होती है। इकाई की पूर्ण तैयारी के लिए पाठ्य-पुस्तक आवश्यकता है। हर्ल आर. डगलस ने पाठ्य-पुस्तकों के महत्त्व को इस प्रकार स्पष्ट किया है, “शिक्षकों के बहुमत ने अन्तिम विश्लेषण्ण के आधार पर पाठ्य पुस्तक को ‘वे क्या और किस प्रकार पढ़ाएँगे’ की आधारशिला बतलाया है।” दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि शिक्षकों द्वारा क्या एवं किस प्रकार पढ़ाया जाए’, इन सबका आधार पाठ्य पुस्तक ही है।
नागरिकशास्त्र में पाठ्य-पुस्तक की आवश्यकता
नागरिकशास्त्र की एक उपयुक्त पाठ्य पुस्तक की विवेचनी करने से पूर्व कुछ मुख्य प्रश्न उठते हैं। उदाहरणार्थ, क्या नागरिकशास्त्र में पाठ्य-पुस्तक की आवश्यकता है ? क्या छात्र जीवन की पुस्तक से नागरिकशास्त्र की विषय-वस्तु को प्रत्यक्ष रूप से नहीं सीख सकते ? इन प्रश्नों के उत्तर में हम स्पष्ट करना चाहते हैं कि नागरिकशास्त्र की पाठ्य-पुस्तक प्रत्यक्ष अनुभव
का विकल्प (substitute) नहीं है; वरन् यह प्रत्यक्ष अनुभवों की पूरक है। यह सीखने की प्रक्रिया में एक उपकरण या साधन से अधिक नहीं है। इस प्रकार के उपकरण की आवश्यकता एवं उपयोगिता को कोई भी अस्वीकार नहीं कर सकता है क्योंकि पाठ्य-पुस्तक स्मृति को ताजा बनाने में बहुत सहायता करती है और बालकों को भूली हुई सामग्री को पुनः स्मरण करने के लिए ऐसे उपकरण की प्रायः आवश्यकता पड़ती है । इस प्रकार पाठ्य-पुस्तक नागरिकशस्त्र जैसे विषय के लिए भी आवश्यक है जिसमें प्रत्यक्ष अनुभवों के लिए बहुत सामग्री है।
नागरिकशास्त्र की पाठ्य-पुस्त की आवश्यकता को देखने के पश्चात् स्वतः ही प्रश्न उठता है कि इसका उपयोग किस स्तर पर किया जाना चाहिए । यह स्पष्ट है कि उन बालकों से, जिन्होंने पढ़ने की कला को अच्छी प्रकार से नहीं सीख लिया है, पाठ्य-पुस्तक का प्रयोग करवाना व्यर्थ है। अत: हम कह सकते हैं कि पूर्व-प्रार्थमिक स्तर पर पाठ्य-पुस्तक का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि इस स्तर के बालकों में पढ़ने की योग्यता नहीं आ पाती। परन्तु 7 वर्ष के बालक में, जब वह प्राथमिक स्तर पर होती है, पढ़ने की योग्यता अपने प्रारम्भिक रूप में ही आ पाती है। अत: यहाँ प्रश्न उठता है कि इस आयु के बालकों से पाठ्य-पुस्तकों का प्रयोग कराया जाय या नहीं? इस सम्बन्ध में हमें कुछ बातों पर ध्यान देना आवश्यक है। प्रथमतः प्राथमिक स्तर वह स्तर है जिसमें ‘अनुभव तथा क्रिया’ का अधिकाधिक महत्व होता है। दूसरे, इस स्तर का मुख्य उद्देश्य—बालकों को रोचक क्रियाओं द्वारा विविध अनुभव प्रदान करना होता है। यदि बालकों के ध्यान को जीवन के रोचक एवं सजीव अनुभवों से पाठ्य-पुस्तक के मुद्रित शब्दों की ओर मोड़ा गया तो इसका अर्थ-प्राथमिक शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य से दूर हटना है। परन्तु हमें यहाँ यह बात भी ध्यान में रखनी चाहिए कि जिसको हम ‘अनुभव’ कहते हैं, वह विभिन्न पदों (Items)-ज्ञान, आदतों, भावनाओं, क्रियाओं, दृष्टिकोणों आदि की सम्पूर्णता के लिए एक व्यापक नाम है। ‘अनुभव’ विविध प्रकार की सामग्री के एकीकरण एवं संगठन की विधि है। यदि पाठ्य पुस्तक आत्मसातीकरण की प्रक्रिया में किसी भी प्रकार से सहायता प्रदान करती है तो उसको प्राथमिक स्तर पर स्थान प्रदान किया जाना चाहिए, चाहे पाठ्य पुस्तक बालकों की स्मृति को सहायता प्रदान करके या उनकी कल्पना एवं विचार को उत्तेजित करके आत्मसातीकरण की प्रक्रिया में सहायता प्रदान करें।
सामान्यत: 8-10 वर्ष की आयु के बालकों के लिए पाठ्य पुस्तक का निर्धारण किया जाना चाहिए । परन्तु पाठ्य पुस्तक की लेखन-शैली प्रत्यक्ष एवं सरल हो तथा वह संक्षिप्त एवं वर्णनात्मक हो। इस स्तर की पाठ्य पुस्तकों की भाषा सरल एवं उनमें प्रयुक्त बालकों के मानसिक स्तर एवं उनकी आवश्यकताओं के अनुकूल हो । प्रस्तुतीकरण का ढंग कहानी या संवादों के रूप में होना चाहिए । इस स्तर की पुस्तकों में अधिकाधिक वस्तुनिष्ठता लायी जानी चाहिए। प्राथमिक स्तर के पश्चात् अन्य समस्त स्तरों पर पाठ्य पुस्तकों तथा अन्य पूरक पुस्तकों का प्रयोग किया जायेगा।
भारतीय पाठ्य-पुस्तकों का स्तर
(Standard of Indian Text-Books)
भारतीय पाठ्य-पुस्तक की स्थिति बड़ी शोचनीय है। यद्यपि भारतीय शैक्षिक कार्यक्रम में पाठ्य-पुस्तकों को महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान किया गया है। इनकी शोचनीय अवस्था के विषय में ‘माध्यमिक शिक्षा आयोग’ का विचार है कि “हम आधुनिक स्कूलों की पाठ्य-पुस्तकों के स्तर से बहुत ही असन्तुष्ट है और हमारा विचार है कि इनमें आमूल सुधार किये जाने
चाहिए।”
हमारे शिक्षालयों की पाठ्य-पुस्तकों का एक मुख्य दोष है कि उनकी तैयारी शिक्षण-विधि के अनुसार नहीं की जाती है। जिस शिक्षण-विधि को स्कूल में अध्यापकों द्वारा अपनाया जाय, उसी के अनुसार पुस्तक में पाठ्य-वस्तु का चयन करके उसकी प्रस्तुति की जाय तथा उसकी अवस्था अध्यायों तथ पाठों में विधि के अनुसार होनी चाहिए। उदाहरणार्थ, यदि शिक्षालय में इकाई विधि को अपनाया गया है तो पुस्तकें इसी विधि के अनुसार लिखी जाएँ जिससे अध्यापक तथा छात्र, दोनों इकाई के पूर्ण करने में पाठ्य-पुस्तक का उपयोग सफलतापूर्वक कर सकें। दूसरे शब्दों में, हम कह सकते हैं कि पाठ्य-पुस्तक इकाई विधि
के आधार पर लिखी जाय । यहाँ तक कि पाठ्य-वस्तु का प्रस्तुतीकरण भी शिक्षण-विधि के अनुसार होना चाहिए। इन समस्त आवश्यक बातों का हमारे शिक्षालयों के विषयों की पाठ्य-पुस्तकों में अभाव है।
पाठ्य-पुस्तक की तैयारी में पाठ्य-वस्तु का चयन, व्यवस्था आदि भी एक समस्या है। पाठ्य-वस्तु का चयन तथा व्यवस्था छात्रों के मानसिक स्तर आयु, रुचि तथा योग्यता के अनुसार होनी चाहिए । परन्तु हमारे स्कूलों की पाठ्य-पुस्तकों में इनका अभाव पाया जाता है। इस अभाव को दूर करने के लिए लेखक को पाठ्य-वस्तु के चयन तथा संगठन के सिद्धान्तों का जानना अति अनिवार्य है। इसके साथ लेखक योग्य तथा अनुभवी ही नहीं होना चाहिए वरन् उसे बाल-मनोविज्ञान, बाल-विकास के सिद्धान्तों, शिक्षण-विधियों तथा अनुसंधान कार्य का भी ज्ञान हो।
पाठ्य-पुस्तक के लिखने में भाषा तथा शैली भी एक समस्या है। किस प्रकार पाठ्य-वस्तु को प्रस्तुत किया गया है ? हमारी पाठ्य-पुस्तकों में यह समस्या बहुत ही प्रबल है। भाषा तथा शैली का प्रयोग छात्रों के मानसिक स्तर तथा उनके शाब्दिक ज्ञान के अनुसार होना चाहिए। पाठ्य-पुस्तक में सरल तथा सीधे वाक्यों का प्रयोग किया जाना चाहिए। छोटी कक्षाओं के बालकों की पाठ्य-पुस्तकों में जटिल वाक्य नहीं होने चाहिए। दूसरे, पाठ्य-पुस्तक में सरल, छोटे तथा सुव्यवस्थित परिच्छेदों का प्रयोग न किया जाए। पाठ्य-पुस्तक के निर्माण में उदाहरणों का समुचित रूप से प्रयोग होना चाहिए। परन्तु भारतीय पाठ्य-पुस्तकों में यह एक दोष है, उनमें इनका उचित प्रयोग नहीं किया जाता । इनका भी उपयोग छात्रों की रुचि, आयु तथा योग्यता के अनुसार होना चाहिए। इसके अतिरिक्त पाठ्य-वस्तु की दुर्बोधता तथा उपयुक्तता के अनुसार इनका उपयोग होना चाहिए । इनका लाभ
सभी प्राप्त किया जा सकता है जब वे छात्रों के ज्ञानार्जन में सहायता प्रदान करें। इनका उपयोग करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए, तभी इनका वास्तविक लाभ प्राप्त किया जा सकता है-
1. दिये गये उदाहरण सरल हों।
2. प्रदर्शनात्मक उदाहरण उपयोगी तथा प्रभावशाली रंगों में प्रस्तुत किये जाएँ और उनकी संख्या भी पर्याप्त होनी चाहिए। रंगों का उपयोग छात्रों की आयु, रुचि तथा मानसिक स्तर के अनुसार होना चाहिए।
3. उनके द्वारा तथ्य स्वयं प्रस्तुत किय जाएँ, अर्थात् आत्म-प्रदर्शित होने चाहिए। इसमें शिक्षक को बताने की कोई आवश्यकता न पड़े।
4. छात्रों के लिए उपयोगी हों।
5. छात्रों को उनके द्वारा वाद-विवाद के लिए प्रोत्साहित किया जाए जिससे उनका शाब्दिक ज्ञान तथा अभिव्यंजना-शक्ति विकसित की जा सके।
6. उनमें कलात्मक सौन्दर्य को भी स्थान दिया जाए जिससे उनकी सौन्दर्यानुभूति करने की शक्ति को विकसित किया जा सके।
हमारी पाठ्य-पुस्तकों का एक दोष यह भी है कि उनकी आकृति तथा शैक्षिक साधन उचित प्रकार के नहीं हैं। पुस्तक की बाह्य आकृति भी बालक की रुचि, योग्यता तथ आयु के अनुसार होनी चाहिए । शैक्षिक साधन अर्थात् अभ्यास के लिए प्रश्न, उपयोगी सहायक पुस्तकें, अनुक्रमणिका आदि भी छात्रों की योग्यता के अनुसार होनी चाहिए। भारतीय पाठ्य-पुस्तकों में एक दोष यह भी देखने को मिलता है कि उनमें पाठ्य-वस्तु का संगठन एवं प्रस्तुतीकरण तर्कसम्मत नहीं है। साथ ही उनमें शिक्षकों के मार्गदर्शन हेतु उपयुक्त बिन्दु नहीं दिये गये हैं। पाठ्य-पुस्तकों में अभ्यास-प्रश्न दिये गये हैं। परन्तु वे केवल ज्ञानात्मक जाँच तक ही सीमित हैं। वे पाठ के समस्त बिन्दुओं की जाँच करने में भी असमर्थ हैं । शिक्षण सहायक उपकरण उपयुक्तता की दृष्टि से महत्त्वहीन हैं। साथ ही विचारों को स्वतः स्पष्ट करने में भी असमर्थ हैं।
नागरिकशास्त्र की पाठ्य-पुस्तक का चयन
(Selection of the Text-Book of Civics)
नागरिकशास्त्र की पाठ्य-पुस्तक के चयन में शिक्षक को अधोलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-
1. पाठ्य-पुस्तक की बाहा आकृति-टाइप, जिल्द, कागज, पंक्तियों की संख्या, शब्दों के बीच की दूरी, आकार, मारजिन की चौड़ाई, प्रदर्शनात्मक सामग्री, अनुक्रमणिका, सहायक पुस्तके आदि ।
2. विषय सूची – उनकी ग्राहाता, महत्त्व तथा क्षेत्र ।
3. प्रस्तुतीकरण-
(i) जिसके द्वारा छात्रों में पदने की आदतों का निर्माण तथा कुशलताओं का विकास हो ।
(ii) दूसरे विषयों की पाठ्य सामग्री से सह-सम्बन्ध स्थापित करना हो ।
(iii) समूह तथा वैयक्तिक विभिन्नताओं के उपयुक्त हो।
(iv) निर्देशित अध्ययन के लिए अवसर प्रदान करने वाला हो।
(v) छात्रों की रुचि को विषय के प्रति जाग्रत करें।
(vi) सीखने के नियमों के अनुकूल हो ।
(vii) शिक्षण-सूत्रों के अनुसार हो ।
(viii) शिक्षण-विधि के अनुकूल हो।
4. शैक्षिक साधन अभ्यास के लिए प्रश्न, निर्देश तथा सहायक पुस्तकों की सूची, जाँच, प्रस्तावना आदि।
5. उदाहरण – शाब्दिक तथा प्रदर्शनात्मक उदाहरण, उनकी उपयुक्तता तथा पर्याप्त संख्या।
6. उद्देश्य-(i) शिक्षा के उद्देश्यों से सामंजस्य ।
(ii) नागरिक गुणों तथा आदतों का निर्माण ।
(iii) प्रजातन्त्रीय आदर्शों तथा मूल्यों का ज्ञान ।
(iv) उत्तरदायित्व की भावना का विकास ।
(v) दूसरों के अधिकारों के प्रति आदर तथा सम्मान की भावना का विकास ।
(vi) छात्रों को विभिन्न अनुभवों को प्रदान करना ।
(vii) सामाजिक गुणों का विकास करना, जिससे वे समाज में अपना उपयुक्त स्थान ग्रहण कर सकें तथा आदर्श समाज स्थापित करने की सामर्थ्य प्रदान की जाए।
7. पाठ्य-वस्तु की व्यवस्था-
(i) छात्रों की रुचि, आयु तथा योग्यता के अनुकूल ।
(ii) समस्याओं के अनुकूल व्यवस्था की जाए।
(iii) पाठ्य-सामग्री में मनोवैज्ञानिक क्रम स्थापित किया जाए।
8. लेखक-उसका अनुभव तथा प्रसिद्धि, योग्यता तथा प्रकाशन और मनोविज्ञान का ज्ञान
(विशेषतः बाल-मनोविज्ञान) तथा प्रशिक्षण, अर्थात् प्रगतिशील विचारधाराओं तथा शिक्षण-विधियों
का ज्ञान होना आवश्यक है।
9. पुस्तक का मूल्य-नागरिकशास्त्र की पाठ्य-पुस्तक का मूल्य कम हो जिससे प्रत्येक छात्र उसको प्राप्त करने में समर्थ हो सके।
नागरिकशस्त्र की पाठ्य-पुस्तक कैसी हो?
नागरिकशस्त्र की उत्तम पाठ्य-पुस्तक में निम्नलिखित गूण होने चाहिए-
1. पुस्तक की बाह्य आकृति सुन्दर हो । प्रारम्भिक स्तर पर पाठ्य-पुस्तक चित्रमय होनी चाहिए, क्योंकि इस अवस्था के बालक रंग-बिरंगे चित्रों को पसन्द करते हैं। माध्यमिक स्तर की पाठ्य-पुस्तक की आकृति सरल तथा साधारण होनी चाहिए।
2. पुस्तक की जिल्द सुदृढ़ होनी चाहिए।
3. पुस्तक में चिकना कागज प्रयुक्त किया जाए। यदि उसमें प्रदर्शनात्मक सामग्री का उपयोग किया जा रहा है तो उसमें आर्ट पेपर का प्रयोग किया जाना चाहिए । पुस्तक का टाइप छात्रों की आयु के अनुसार हो । छपाई साफ तथा शुद्ध होनी चाहिए। प्रारम्भिक कक्षाओं के छात्रों की पाठ्य-पुस्तक में मोटा टाइप प्रयुक्त किया जाए, जिससे पढ़ने में छात्रों की आँखों पर जोर न पड़े।
4. पुस्तक में पाठ्य-वस्तु निर्धारित पाठ्यक्रम के अनुसार पूर्ण हो ।
5. जिस स्तर के लिए पाठ्य-पुस्तक हो, उसकी पाठ्य-पुस्तक उस स्तर के शिक्षण के उद्देश्यों तथा लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायक हो । नागरिकशास्त्र के शिक्षण का मुख्य लक्ष्य-आदर्श नागरिक उत्पन्न करना है। इसके लिए उसकी पाट्य-वस्तु ऐसी होनी चाहिए जिससे उनमें उत्तरदायित्व पूर्ण करने की भावना, सहयोग, सहनशीलता, नेतृत्व, धैर्य आदि गुणों का विकास हो जाए।
6. पाठ्य-वस्तु का प्रस्तुतीकरण ऐसे ढंग से किया जाए जिससे बालकों में समस्याओं को हल करने की योग्यता स्वतः आ जाए तथा पढ़ने की आदत और कुशलताओं का निर्माण हो जाए।
7. पुस्तक की प्रस्तावना ऐसी हो जिसे देखकर पाठक उसके गुणों तथा पाठ्य-पुस्तकों के विषय में संक्षिप्त ज्ञान प्राप्त कर सके।
8. विषय का संगठन इस प्रकार होना चाहिए जिससे छात्रों को दूसरे विषयों की सानुबन्धता का ज्ञान हो जाए । पुस्तक का संगठन समीपवर्ती सिद्धान्त के अनुसार हो।
9. भाषा तथा शैली छात्रों के अनुकूल होनी चाहिए ।
10. माध्यमिक स्तर की पाठ्य-पुस्तक प्रकरण, इकाइयाँ, समस्याओं तथा योजनाओं के रूप में होनी चाहिए।
11. पुस्तक में चित्रों, चार्ट, ग्राफ, मानचित्र आदि का भी प्रयोग किया जाए। संगठन तथा क्रियात्मक (Functional) चार्ट भी प्रयुक्त किये जाने चाहिए।
12. प्रत्येक अध्याय के अंत में अभ्यास के लिए कुछ प्रश्न दिये जाने चाहिए जिससे छात्र उनका प्रयोग कर सकें।
13. सहायक पुस्तकों की सूची दी जानी चाहिए । परन्तु इसमें उन्हीं को स्थान दिया जाना चाहिए जो छात्रों के लिए उपयुक्त हैं।
14. उच्चतर माध्यमिक स्तर की पाठ्य-पुस्तक में घटनाओं या व्यक्तियों के विषय में पूर्ण सूचनाएँ प्रदान की जानी चाहिए। इस स्तर की पाठ्य-पुस्तकों में आलोचनात्मक विवेचन पर बल दिया जाए तथा बालकों के समक्ष ग्राफ एवं चार्टी द्वारा सूक्ष्म विचारों एवं संख्यात्मक पक्ष को स्पष्ट किया जाए । विषय का प्रतिपादन बालकों को स्वतन्त्र चिन्तन, तर्क एवं निर्णय करने के लिए अवसर प्रदान करें। इन पुस्तकों में लेखकों द्वारा जो आलोचनात्मक विचार प्रदान किए जाएँ, वे संक्षिप्त एवं सांकेतिक होने चाहिए।
15. पाठ्य-पुस्तक का मूल्य भी कम होना चाहिए।