Pedagogy of civics

B.ED Notes in Hindi | विधालय विषय का शिक्षण शास्त्र

B.ED Notes in Hindi | विधालय विषय का शिक्षण शास्त्र

Q.  नागरिकशास्त्र के अच्छे अध्यापक के लिए आवश्यक गुणी विवेचना कीजिए और उत्तर को उदाहरणों द्वारा स्पष्ट कीजिए।
(Discuss the chief qualities of a good civics teacher and clearly your answer with examples.)
अथवा, “शिक्षक मनुष्य का निर्याता है” इस कथन के आलोक में नागरिक शिक्षक, के गुणों की विवेचना कीजिए।
(“Teacher is the maker of Man” in the light of this statement discuss the qualities of civics teacher.)
Ans. शैक्षिक प्रक्रिया के तीन मुख्य बिन्दु होते हैं: (1) शिक्षक, (2) बालक तथा (3) विषय-वस्तु अध्यापक की सफलता इस तीनों की सुसम्बद्धता या ही निधी होती है। शिक्षक एक चेतनशील बिन्दु है। इसका शिक्षक प्रक्रिया में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। चाहे हमारा पाटयक्रम पाठशाला भवन, फर्नीचर, शैक्षिक सामग्री आदि कितनी ही अच्छी बयों न हो, तब तक वे सभी निरर्थक है, जब तक एक शिक्षक द्वारा प्राण न क जायें । शिक्षा-विचारकों ने शिक्षण-प्रक्रिया में विभिन्न तत्वों को महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया है। उदाहरणार्थ, सीखने के नियम, श्रव्य-दृश्य सामग्री, पाट्य-वस्तु वैयक्तिक विभिन्नता, निर्देशन आन्दोलन (Guideline movement), मूल्यांकन आदि । वस्तुतः ये समस्त वस्तुएँ प्रभावोत्पादक हैं और इन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में कुछ-न-कुछ योगदान अवश्य दिया है, परन्तु इनकी प्रभावोत्पादकता तभी है, जब इनका संचालन योग्य शिक्षक के द्वारा किया जाय।
जब शिक्षक को इतना महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है जो स्वतः ही प्रश्न उठता है कि शिक्षक के वे कौन-से गुण हैं जिननि उनको इतना महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया ? परन्तु हमारा मन्तव्य यहाँ नागरिकशास्त्र के शिक्षक के गुणों की व्यवस्था करने से है । इसके उत्तर में हम कह सकते हैं कि नागरिकशास्त्र के शिक्षक में उन सभी सामान्य गुणों का होना आवश्यक है जो प्रत्येक विषय के शिक्षक में पाये जाते हैं । परन्तु उसे कुछ मुख्य गुणों का अपने में समावेश करना चाहिए, वह सफल कहलाने का अधिकारी होगा।
नागरिकशास्त्र के शिक्षक के कर्त्तव्य (Duties of the civics teacher)-नागरिकशास्त्र के शिक्षक के अग्रलिखित कर्तव्य हैं :
1. नागरिकशास्त्र के शिक्षक का मुख्य कर्तव्य यह है कि वह बालकों का विद्यार्थी हो अर्थात् वह बालकों की प्रकृति, योग्यताओं, आवश्यकताओं, रुचियों, विकास तथा सीमाओं का ज्ञान प्राप्त करे। इसके साथ ही वह इस बात का भी ज्ञान प्राप्त करे कि बालक किस प्रकार ज्ञानार्जन प्राप्त करते हैं या सीखते हैं ? इस प्रमुख कार्य का वह तभी सफलता के साथ पूर्ण निर्वाह कर सकता है, जब वह शिक्षा में हुए विकास तथा प्रगतिशील विचारों, बाल-मनोविज्ञान तथा बाल-विकास का अध्ययन करे।
2. इस शास्त्र के शिक्षक का दूसरा मुख्य कर्तव्य यह है कि वह नागरिकशास्त्र तथा नवीनतम प्रचलित घटनाओं का जानकार हो । यह इसलिए आवश्यक है कि नागरिकशास्त्र हमें सुखद जीवन जीने की कला प्रदान करता है। इसके साथ ही हमें यह प्रजातान्त्रिक मूल्यों को प्राप्त करने की कला भी सिखता है। यदि इसके शिक्षक को प्रचलित घटनाओं का ज्ञान न होगा तो वह अपने छात्रों को व्यवहारिक जीवन की यथार्थ परिस्थितियों से परिचित नहीं करा सकेगा।
3. नागरिकशास्त्र के शिक्षक का तीसरा मुख्य कर्तव्य यह है कि यह पाठ्यक्रम निर्माणकर्ता हो । इस कर्तव्य का वह पूर्णतया निर्वाह तभी कर सकता है, जब उसको पाठ्य-वस्तु के चयन तथा संगठन सम्बन्धी सिद्धान्तों का ज्ञान हो ।
4. इस शास्त्र के शिक्षक के अन्तिम तथा मुख्य कर्तव्य यह है कि वह विभिन्न वर्गों, समुदायों, समाजों तथा तत्वों के बीच एक कड़ी का कार्य करे । वह स्कूल को समाज के सम्पर्क में ले जाय और समाज को स्कूल के सम्पर्क में लाये । बालकों के अभिभावकों को स्कूल के सम्पर्क में लाये और स्कूल का अभिभावकों से सम्बन्ध स्थापित करे । यह इसलिए आवश्यक है कि शिक्षक समाज का नेता होता है। उसके नेतृत्व के द्वारा ही बातक आदर्श समाज की स्थापना में सफल होंगे। नागरिकशास्त्र हमें सामाजिक संघर्षों को दूर करने में सहायता देता है। इसलिए नागरिकशास्त्र के शिक्षक का यह प्रमुख कर्तव्य हो जाता है कि वह विद्वेषों को दूर करे तथा आदर्श समाज की स्थापना के लिए प्रयास करे जिससे भावी नागरिक तथा सन्तुति सुखद जीवन व्यतीत कर सकें।
जेम्स एल, ली. (James M. Lee) ने शिक्षक के निम्नलिखित दायित्व बताये हैं :—
1.औपचारिक शिक्षण प्रदान करना ।
2. कक्षा-कक्ष में होने वाले अनौपचारिक वाद-विवाद का नेतृत्व ग्रहण करना ।
3. शैक्षिक सामग्री का उपयुक्त ढंग से चयन करना ।
4.छात्रों को निर्देशन एवं परामर्श देना।
5. छात्रों की नागरिक क्रियाओं का संचालन करना।
6. विद्यालय का लोकतन्त्रीय सिद्धान्तों के अनुसार प्रबन्धन कराने के लिए प्रयत्न करना । नागरिकशास्त्र-शिक्षक की विद्यालय में निम्नलिखित भूमिकाएँ हैं :–
1. विद्यालय समितियों के सदस्य के रूप में ।
2. अभिभावकों के साथ सम्पर्क सम्बन्धी ।
3. छात्रों को परामर्श देने के रूप में।
4. विभिन्न प्रतिवेदनों को तैयार करने के सम्बन्ध में ।
5. गृह-शिक्षक (House master) के रूप में ।
6. विद्यालय अधिकारियों से सम्पर्क सम्बन्धी।
7. पाठ्य-सहगामी क्रियाओं में सक्रिय भाग लेने से सम्बन्धित ।
8. विद्यालय कर्मचारियों के सम्बन्ध में ।
9. छात्रों तथा अन्य शिक्षकों के साथ सामाजिक मामलों में भाग लेने से सम्बन्धित ।
10. सामुदायिक क्रियाओं में भाग लेने से सम्बन्धित ।
11. व्यावसायिक क्रियाकलापों में भाग लेने से सम्बन्धित ।
12. विद्यालय के अन्य कार्यों से सम्बन्धित ।
नागरिकशास्त्र के प्रभावी शिक्षक के गुण (Qualities of an effective civics teacher)-नागरिकशास्र के एक प्रभावी शिक्षक में निम्नलिखित गुण होने चाहिए :
1.विषय का विशिष्ट ज्ञान (Content mastery) ।
2. आत्म-विश्वास (Self-Confidence)
3. छात्रों की देखभाल (Caring for the Pupils).
4. सम्प्रेषण कौशल (Communication Skill)
5. सृजनात्मकता (Creativity)
6. जिज्ञासा या कौतूहल (Curiosity)
7. वचन-प्रतिबद्धता (Commitment)
8. उत्प्रेरण शक्ति (Catalytic Power)
नागरिकशास्त्र-शिक्षक के विभिन्न गुणों का निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत विवेचन किया जा रहा है:–
1. व्यावसायिक निष्ठा (Faith in vocation)-बालक बहुत कुछ शिक्षक के कार्यों, दर्शन आदि से सीखता है। जैसा शिक्षक का दर्शन होगा, वैसा ही बालक अपना जीवन-दर्शन बनाने की चेष्टा करता है। इसी कारण शिक्षक को आशावादी बनने के लिए कहा गया है। शिक्षक का जो दृष्टिकोण शिक्षण-कार्य के प्रति होगा, वैसा ही उसके बालकों पर उसका प्रभाव पड़ेगा। निष्ठा
सीखने की प्रक्रिया को प्रोत्साहित करती है । इसलिए उसे अपने व्यवसाय तथा विषय-दोनों में पूर्ण निष्ठा होनी चाहिए । यदि वह ऐसा नहीं करेगा तो बालकों के व्यक्तित्व को विकसित नहीं कर पायेगा जो कि शिक्षा का मुख्य लक्ष्य है। इसलिए नागरिकशास्र के शिक्षक को अपने कार्य को उत्साह तथा तत्परता के साथ करना चाहिए। यदि वह ऐसा करेगा तो अपने छात्रों में विद्या के लिए अनुराग उत्पन्न कर सकता है। भारतीय शिक्षकों में इसी निष्ठा की कमी है, तभी हमारी शिक्षा का स्तर दिन-प्रतिदिन गिरता जा रहा है। यह सत्य है कि हमारे शिक्षकों को सामान्य व्यक्ति जैसा जीवन व्यतीत करना पड़ता है जबकि इससे कम योग्यता वाले व्यक्ति ऐश्वर्य पूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं । इस स्थिति में उसमें हताशा उत्पन्न करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । परन्तु फिर भी जब उन्होंने इस व्यवसाय को ग्रहण कर लिया है, तब उनके लिए यह अनिवार्य है कि वे सत्यनिष्ठ होकर अपने कार्य को रुचि, तत्परता तथा उत्साह के साथ करें क्योंकि वे ही राष्ट्र के निर्माता हैं।
2. विषय का ज्ञान (Knowledge of the subject)-जैसा कि हम उसके कर्तव्य के विषय में कह चुके हैं कि वह अपने विषय का विद्यार्थी हो । नागरिकशास्र के शिक्षक को अपने विषय का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए तभी वह अपने छात्रों के साथ पूर्ण न्याय कर सकता है। विषय के ज्ञान के साथ ही उसे राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक दशाओं का विस्तृत ज्ञान होना
चाहिए। वह जीवन-पर्यन्त विद्यार्थी जीवन ही व्यतीत करे । यदि वह इस जीवन का त्याग करता है तो राष्ट्र, छात्र तथा अपने स्वयं के हित में कुठारघात करेगा। साथ ही वह अपने छात्रों को उनके कर्तव्य तथा अधिकारों का ज्ञान सफलता के साथ नहीं दे सकता है। क्योंकि जब तक उसे राष्ट्रीय, निर्णायक एवं कठिन क्षणों (Crisis) का ज्ञान नहीं होगा तब तक वह उनको भावी जीवन में आने वाले ऐसे क्षणों के लिए तैयार नहीं कर सकता है और हम कह सकते हैं कि नागरिकशास्त्र के शिक्षक को विषय के पूर्ण ज्ञान के साथ-साथ सामाजिक जीवन व्यतीत करने में जिन बातों की आवश्यकता है, उनका भी ज्ञान होना चाहिए । नागरिकशास्त्र हमें सफल सामाजिक जीवन व्यतीत करने की कला सिखता है। इसके लिए जो बातें अनिवार्य हैं उनका ज्ञान उसको अवश्य होना चाहिए।
3. नागरिक समस्याओं तथा तत्कालीन घटनाओं का ज्ञान (Knowledge of civics problems and current events)-नागरिकशास्र के शिक्षक को समाज की आधुनिक नागरिक समस्याओं और घटनाओं से अवगत रहना आवश्यक है। इनके ज्ञान के अभाव में वह अपने छात्रों की रुचि विषय के प्रति जाग्रत नहीं कर पायेगा और न उनको एक योग्य नागरिक के
दायित्वों से अवगत करा पायेगा। इसके ज्ञान के अभाव में वह छात्रों के नागरिक समस्याओं पर होने वाले वाद-विवाद में नेतृत्व भी नहीं कर पायेगा। इनके ज्ञान से वह छात्रों को समाचार-पत्र, जर्नल को पढ़ने के लिए भी प्रोत्साहित कर सकता है। साथ ही सामाजिक जीवन की वास्तविकताओं से उनको अवगत करा सकता है
4. वैज्ञानिक तथा उदार दृष्टिकोण (Scientific and liberal attitude)-आधुनिक युग में वैज्ञानिक प्रवृत्ति का यह तकाजा है कि उसी तथ्य या बात को ग्रहण किया जाय जो प्रमाण-युक्त तथा तर्कसंगत हो। इस कारण नागरिकशास्त्र के शिक्षक को वैज्ञानिक दृष्टिकोण का होना परम आवश्यक है। यदि उसका दृष्टिकोण वैज्ञानिक नहीं होगा तो वह अपने छात्रों में इस दृष्टिकोण को उत्पन्न नहीं कर सकेगा, जो कि उनके लिए अत्यन्त आवश्यक है, क्योंकि वे ही भावी नागरिक हैं और उन्हीं के कन्धों पर आदर्श समाज की स्थापना का भार है। यदि उनमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास नहीं किया जायेगा तो वे सफल सामाजिक जीवन व्यतीत करने में असमर्थ रहेंगे और समाज के विद्वेषों, संघर्षों, अहितों तथा कलंक को दूर नहीं कर सकेंगे। इसके साथ ही नागरिकशास्त्र के शिक्षक में आदर दृष्टिकोण का होना भी अनिवार्य है। इस दृष्टिकोण से यह अपने छात्रों में विनम्रता, प्रेम आदि गुणों का विकास कर सकता है। यदि उसमें इस दृष्टिकोण का अभाव रहेगा तो वह मानव-समाज का कल्याण करने में असमर्थ रहेगा तथा अपने छात्रों में विश्व-बन्धुत्व की भावना उत्पन्न नहीं कर सकेगा, जो नागरिकशास्त्र के शिक्षक का प्रमुख लक्ष्य और विश्व की एक प्रबल माँग है। इसके बिना वैज्ञानिक आविष्कारों का उपयोग मानव-समाज के कल्याण के लिए नहीं किया जा सकेगा । अतः नागरिकशास्त्र के शिक्षक में उदार दृष्टिकोण का होना अति अनिवार्य है।
5. आदर्श नागरिक (Ideal citizen)-नागरिकशास्र का शिक्षक एक आदर्श नागरिक हो, अर्थात् उसमें आदर्श नागरिकता के गुणों का समावेश हो और वह उनके अनुसार आचरण करता हो । उसे नागरिक के कर्तव्यों तथा अधिकारों का पूर्ण ज्ञान हो । इसके साथ ही वह इनके अनुसार आचरण करके अपने छात्रों का समाज के समक्ष एक आदर्श प्रस्तुत करे, दूसरे मनुष्यों के अधिकारों को सम्मान की दृष्टि से देखे तथा समाज में सहयोग, सहकारिता, प्रेम, सत्यनिष्ठा तथा उत्साह के साथ कार्य करे । इसके अतिरिक्त नागरिकशास्र का शिक्षक लोकतन्त्रीय जीवन के ढंग से पूर्णतया परिचित हो। लोकतन्त्रीय सिद्धान्तों में उसकी पूर्ण निष्ठा होनी चाहिए। विभिन्न जातियों, उपजातियों एवं वर्गों से युक्त हमारे समाज में नागरिकशास्र के शिक्षक में सहिष्णुता, धैर्य, सहानुभूति, मानव के प्रति उदारता एवं दया, लोकतन्त्रीय दृष्टिकोण आदि गुणों का होना आवश्यक
6. सामाजिक सक्रियता (Social activieness)-जैसा कि हम उसके कर्तव्यों के विषय में देख चुके हैं कि नागरिकशास्र का शिक्षक पाठ्यक्रम-निर्माणकर्ता होना चाहिए। उसे इस कर्तव्य को पूर्ण करने के लिए समाज की ओर ध्यान देना पड़ता है । उसे अपनी पाठ्य-सामग्री तथा उद्देश्य समाज से लेने पड़ते हैं। इस कारण यह मुख्य कर्तव्य हो जाता है कि वह इन उद्देश्यों की प्राप्ति करे। इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए उसमें ‘सामाजिक सक्रियता’ का होना आवश्यक है। उसे समाज की सेवा करनी चाहिए । इसलिए उसे स्थानीय तथा प्रादेशिक सामाजिक कार्यों में पूर्ण सक्रियता के साथ भाग लेना चाहिए और उसका नेतृत्व ग्रहण करके सफल बनाने का प्रयत्न करना चाहिए।
भारतीय गणतन्त्र अभी अपनी प्रारम्भिक अवस्था में ही है? उसका स्थायित्व तथा उन्नति नागरिकशास्र के शिक्षक पर ही निर्भर है। उसको सामाजिक तथा नैतिक कार्यों में पूर्णतया क्रियाशील रहकर भाग लेना चाहिए और समाज के समक्ष सहयोग, सहकारिता, न्याय, प्रेम, सहानुभूति आदि गुणों को अपने व्यवहार में लाकर आदर्श प्रस्तुत करना चाहिए जिससे वे भी उसके
अनुसार कार्य करना सीख जायें। हमारे कुछ राजनीतिज्ञों को विचार है कि शिक्षक को वोट देने के कर्तव्य के अतिरिक्त अन्य
किसी कर्तव्य को नहीं निभाना चाहिए अर्थात् वह नागरिकों द्वारा निर्वाचित होने के अधिकार का उपयोग न करे, क्योंकि यदि वह किसी सदन की सदस्यता के लिए खड़ा होता है तो वह छात्रों के अभिभावकों को अपने प्रभाव में लाकर उनका समर्थन अनुचित ढंग से प्राप्त कर लेगा । परन्तु इस तर्क के विपक्ष में हम कह सकते हैं कि जब तक शिक्षक स्वयं सक्रिय होकर छात्रों तथा समाज के समक्ष अपने आदर्शों को प्रस्तुत नहीं करेगा, तब तक समाज के सदस्य नागरिक के कर्तवय तथा अधिकारों का उपयोग ठीक प्रकार से नहीं कर सकेंगे क्योंकि उनमें अभी शिक्षा की कमी है शिक्षक उनके समक्ष आदर्श प्रस्तुत करके उसको सम्यक् उपयोग के लिए प्रयत्नशील तथा क्रियाशील बना सकता है।परन्तु बहुत खेद के साथ कहना पड़ता है कि जब मूलाधिकार समान रूप से सब मनुष्यों के लिए उपभोग्य हैं तो इस गरीब शिक्षक को इस अधिकार से वंचित करना उचित नहीं है। उसी के आदर्शों पर भारतीय गणतन्त्र की सफलता निर्भर है।
7. व्यक्तित्व (Personality)- शिक्षक का व्यक्तित्व ही सफल शिक्षण की आधारशिला है। नागरिकशास्त्र के शिक्षक के व्यक्तित्व में निम्नलिखित गुणों का होना अनिवार्य है :
1. जीवन-शक्ति
2. अच्छा स्वास्थ्य,
3. सत्य आचरण,
4. शुभ चिन्तन,
5. आशावादिता,
6. निष्पक्षता,
8. मौलिकता,
9. सहयोग,
10. सहनशीलता,
11. प्रेम,
12. आत्म-नियन्त्रण,
13. प्रजातंत्रीय प्रक्रियाओं के प्रयोग की शक्ति,
14. विशाल सहृदयता,
15. नेतृत्व-क्षमता,
16. उत्साह,
17. तत्परता,
18. निष्ठा तथा चातुर्य ।
नागरिकशास्त्र के शिक्षक में किसी वस्तु या तथ्य को रोचक ढंग से वर्णन करने की शक्ति होनी चाहिए। जो शिक्षक अपने तथ्यों को अपने कथन या वर्णन द्वारा सफलता के साथ अपने छात्रों के समक्ष क्रमबद्धता से रख सकता है, वह अपने छात्रों के मस्तिष्क पर प्रभाव डाल सकता है। नागरिकशास्त्र के शिक्षक में इस कला का होना बहुत ही आवश्यक और उपयोगी है।
8. नागरिकशास्त्र के शिक्षण का ज्ञान (Knowledge of teaching civics)-नागरिकशास्त्र के शिक्षक के लिए प्रशिक्षित होना अत्यन्त आवश्यक है। यदि उसको प्रशिक्षण नहीं मिलेगा तो वह आधुनिक शैक्षिक विचारधारा तथा विविध नवीन शिक्षण-पद्धतियों से अपने को अवगत नहीं कर सकेगा। किस स्तर पर किस शिक्षणविधि का प्रयोग करना उचित होना, ऐसी बातों का जानना उसके लिए आवश्यक है । शिक्षण एक कला है। इसके सामान्य सिद्धान्त तथा नियम हैं, जिनकी प्रत्येक शिक्षक को जानना आवश्यक है। इन सिद्धांतों तथा नियमों का ज्ञान देने के लिए शिक्षक को प्रशिक्षित करना चाहिए ।
नागरिकशास्त्र के शिक्षक को निम्नलिखित बातों में प्रशिक्षण मिलना चाहिए :
(i) नागरिकशास्त्र का व्याहारिक शिक्षण ।
(ii) सामान्य तथा मुख्य शिक्षण-विधियों का ज्ञान (नागरिकशास्त्र के शिक्षण में प्रयुक्त वाली शिक्षण-विधियों का ज्ञान)।
(iii) निम्नलिखित व्यावसायिक विषयों का ज्ञान :–
(1) शिक्षा का इतिहास तथा उसके सिद्धान्त,
(2) शिक्षा मनोविज्ञान, (विशेषतः बाल
मनोविज्ञान तथा बाल-विकास के सिद्धान्त),
(3) शिक्षा का दार्शनिक आधार,
(4) शिक्षा का सामाजिक आधार,
(5) शिक्षालय-व्यवस्था,
(6) स्वास्थ्य शिक्षा,
(7) शिक्षा में मूल्यांकन,
(8) प्रारम्भिक शिक्षक की समस्याओं का ज्ञान ।
इन उपर्युक्त बातों में प्रशिक्षण प्राप्त करने के पश्चात् उसको समय-समय पर अभिनव पाठ्यक्रम भी प्रदान किया जाय । इसके अतिरिक्त उसे व्यावसायिक साहित्य पढ़ने के लिए प्रदान किया जाये, जिससे वह अपने प्रशिक्षण को नबीन बनाता रहे तथा अपने शिक्षण को रोचक तथा आकर्षक बना सकें। इसके अतिरिक्त शिक्षकों के लिए सतत् शिक्षा की व्यवस्था की जाय ।
9. शिक्षण की स्वतन्त्रता (Freedom of teaching)-नागरिकशास्त्र के शिक्षक को विभिन्न समस्याओं, वाद-विवादपूर्ण प्रकरणों तथा विषयों का शिक्षण करना पड़ता है। इसके लिए उसे शिक्षण की स्वतन्त्रता की आवश्यकता है। उसे छात्रों को सत्य विषय-वस्तु तथा तथ्यों को ग्रहण करना ही सिखाना है। इसके लिए वे अपने तथ्यों का विश्लेषण तथा संश्लेषण निष्पक्षता से करना पड़ेगा। शिक्षण की स्वतन्त्रता व्यावसायिक योग्यता से ही प्राप्त की जा सकती है। स्कूल ही एक ऐसा स्थान है जहाँ छात्र निष्पक्ष रूप से सत्य की खोज कर सकता
10. मानवीय सम्बन्ध (Human relations)-नागरिकशास्र मानवीय सम्बन्धों का एक अध्ययन है। अतः इसके शिक्षक को मानवीय सम्बन्धों का एक विशेषज्ञ होना चाहिए। उसे विद्यालय में छात्रों, अपने साथी-शिक्षकों, अभिभावकों विद्यालय कर्मचारियों, प्रशासकों, समुदाय, खेल-कूद के सामान विक्रेताओं, व्यावसायिक संगठनों आदि से सम्बन्ध कायम करने पड़ते हैं।
अतः उसको मानवीय सम्बन्ध स्थापित करने की कला को जानना परमावश्यक है।
11. शिक्षण कौशल (Teaching Skills)-नागरिकशास्त्र शिक्षक में अधोलिखित कौशलों का होना आवश्यक है:
(क) कक्षा-प्रबन्ध कौशल (Skill of Class Management)-उसमें अपने मौखिक हाव-भावों (Facial expressions) को नियन्त्रित एवं उनको परिवर्तित की क्षमता होनी चाहिए। उसका कक्षा में संचलन (movement) भी नियन्त्रित एवं उपयुक्त होना चाहिए। उसमें विभिन्न परिस्थितियों में उपयुक्त ढंग से स्वीकृति सराहना, अस्वीकृति आदि को अभिव्यक्त करने का
कौशल होना चाहिए।
(ख) सम्प्रेषण-कौशल (Skill of Communication)-इसके अन्तर्गत उसमें पाँच कौशलों का होना आवश्यक है-(1) कथन-कौशल, (2) वाचन-कौशल, (3) अभिनयीकरण (Dramatization), (4) स्पष्टीकरण (Explanation) तथा (5) प्रदर्शन-कौशल ।
(ग) पारस्परिक या अन्तःक्रिया कौशल (Skill of Interaction)-इसमें प्रश्न करने की कला, वाद-विवाद कराने का कौशल, समस्या समाधान, समस्या-विश्लेषण तथा पथ-प्रदर्शन करने की क्षमता आती
(घ) शिक्षण-साधनों को प्रयुक्त करने का कौशल (Skill in Use of Teaching)- इसमें शिक्षण-साधनों को चयन करने, प्रतिरूप, मानचित्र तथा रेखाचित्र बनाने, यान्त्रिक साधनों को संचालित करने, श्यामपट या चाकपट पर लिखने आदि से सम्बन्धित कौशल आते हैं।
(ङ) अभिवृत्ति तथा व्यवहार से सम्बन्धित कौशल (Skills for Attitude and Behaviour)-इसमें धैर्य के साथ सुनना, सुझाव देना, पथ प्रदर्शित करना तथा परामर्श देना  निहित है।
12. विभिन्न अनुभवों का व्याख्यान (An Interpreter of Various Experiences)- नागरिकशास्त्र शिक्षक के विभित्र अनुभवों की व्याख्या करनेवाला होना चाहिए। उसे छात्रों के अनुभवों की ही व्याख्या नहीं करनी चाहिए वरन् उसे समुदाय के अतीतकालीन एवं वर्तमान से सम्बन्धित अनुभवों की भी व्याख्या करने वाला होना चाहिए ।

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