Pedagogy of civics

B.ED | नागरिकशास्त्र शिक्षण | Pedagogy of Civics Notes

B.ED | नागरिकशास्त्र शिक्षण | Pedagogy of Civics Notes

Q. नागरिकशास्त्र शिक्षण के विचार-विमर्श शिक्षण प्रविधि का वर्णन करें।
(Describe the discussion teaching technique in Civics.)
Ans. विचारगोष्ठियों में नेतृत्व करने वाले का दायित्व, विचार-विमर्श को केन्द्रीय बिन्दु पर बनाये रखने, सदस्यों की सम्भागिता को प्रोत्साहित करने और उनका निर्देशन करने की क्रिया पर आधारित रहता है। प्रत्येक विचारगोष्ठी में होने वाली चर्चा का स्तर और वातावरण उनका नेतृत्व करने वाले पर बहुत कुछ निर्भर करता है। संचालन न केवल सकूह के विचार और व्यवहार को नियन्त्रित करने का काम करता है वरन् उनमें परिवर्तन लाने में भी यह सक्षम होता है। विचार-विमर्श शिक्षण प्रविधि में संचालन को कई प्रकार की परिस्थितियों का सामना करने के लिए तैयार रहना पड़ता है; जैसे-
(i) समूह की संरचना ऐसी हो कि इसमें निम्न से उच्च स्तर तक के सभी प्रकार के सदस्य हों, या समान परिस्थिति, योग्यता एवं पद वाले हों।
(ii) समूह में विचारक, कार्यकर्ता और कार्य-उपेक्षी सभी प्रकार के सदस्य हों, जिनका आचरण भिन्न हो।
(iii) सम्भागियों के निहित स्वार्थ और अर्द्धचेतन इच्छाएँ वांछित दिशा में विचार करने के मार्ग में बाधाएँ उपस्थित कर रही होती है।
(iv) स्व-कवचधारी मनोवृत्ति वाले सम्भागी हों जो अपने कटाक्ष या व्यंग्य से वातावरण को विषाक्त बना देते हैं।
(v) ले-दो, चार-चार के समूह आपस में कानाफूसी करने लगते हैं।
(vi) बहुधा उच्च पदधारी या तो विचार-विमर्श के केन्द्र बन जाते हैं या वे परस्पर चर्चा करते हैं और निम्न पद वालों की अपेक्षा । हमारे विद्यालयों की विचारगोष्ठियों का अनुभव ऐसा ही है।
(vii) बड़ी और अधिक समय तक चलने वाली सभा में किसी एक सदस्य का विशिष्ट आचरण छूत की तरह अन्य सदस्यों में भी फैल जाता है।
(viii) गोष्ठियों में विघटनकर्ता भी उपस्थित रहते हैं, जो आदतन लगभग सभी बिन्दुओं पर नकारात्मक दृष्टिकोण बनाये रहते हैं।
(ix) सम्भागियों का अवबोधात्मक क्षमता और वैचारिक क्षमता भी भिन्न होती है। आयु-भेद
महत्वपूर्ण नहीं होता, फिर भी दोनों प्रकार के अन्तरों-आयु व मानसिकता को पाटने में असमर्थ रहता है।
(x) सम्भागियों में कुछ अल्पज्ञानी भी होते हैं जिन्हें स्वयं ब्रह्मा भी नहीं समझा सकता।
(xi) कभी-कभी स्वयं संचालक द्वारा भी ऐसी परिस्थितियाँ पैदा कर दी जाती है कि वे स्वयं ही सभी पर छा जाते हैं, जिससे अन्य सब सदस्य निष्क्रिय बन जाते हैं।
पूर्वाग्रहयुक्त विचार व कंटु युक्तियाँ वातावरण में मनोमालिन्य भी पैदा कर देती है। अतः विचारगोष्ठियों में प्रथम अनिवार्यता सामूहिक सम्भागिता (Group cohensivences) संचालन की शक्ति, उत्साह, निर्णयन्वयन क्षमता, ज्ञान और मानसिक सन्तुलन ऐसे गुण हैं, जो सम्भागियों को निर्धारित उद्देश्यों की सम्प्राप्ति की अन्त:क्रियाओं को प्रभावित करने में सहायकसिद्ध हो सकते हैं। संचालन में स्वयं को अधिकारिक अभिव्यक्ति से बचाते हुए प्रौढ़ एवं युवावर्ग दोनों की आकांक्षाओं में सन्तुलन बनाये रखने की भी क्षमता होना अपेक्षित है
प्रतिक्रियावादी, निराशावादी सम्भागियों के पूर्वाग्रह से गोष्ठी को दिशा-प्रम से बचाने के लिए संचालक का उद्देश्यनिष्ठा, प्रतिबद्धता, दिशा-निर्देशन और सहानुभूतिपूर्ण दृढ़-निश्चय गोष्ठी को सफलता की ओर अग्रसर करने में सहायक होता है।
इस प्रकार गोष्ठी के नेता को-नियोजन, नीति-निर्धारण, विशेषज्ञता, मध्यस्थता, नियन्त्रण और समन्वय करने में भली प्रकार से सक्षम होना आवश्यक होता है।
पैनल चर्चा का प्रारम्भ
(Starting of Penal Discussion)
पैनल परिचर्चा का प्रारम्भ 1929 से हैरी ए. आवर स्ट्रीट द्वारा कक्ष-शिक्षण के रूप में किया गया है। पैनल चर्चा विधि से किसी विषयवस्तु अथवा प्रकरण पर प्रस्तुतीकरण एक अध्यापक के स्थान पर अध्यापकों तथा व्यक्तियों के एक समूह के द्वारा किया जाता है, जिसमें भाग लेने वाले सभी अध्यापक अथवा व्यक्ति अपने-अपने विषय के विशेषज्ञ होते हैं, जिनके द्वारा प्रदान किया
जाने वाले शिक्षण अधिक प्रभावी होती है। नागरिकशास्त्र में प्रजातान्त्रिक युग में विचार-विमर्श तथा वाद-विवाद के कौशल का विकास इसकी सफलता के लिए किया जाना आवश्यक है, जिससे कि प्रत्येक नागरिक प्रजातन्त्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सके। इससे अधिगम उच्चस्तर का होता है। वाद-विवाद प्रविधि आधुनिक व्यवस्था सिद्धान्त पर आधारित है। इसकी यह धारणा है कि राजनीति व्यवस्था में सदस्य को अपनी अभिवृत्तियों, अभिरुचियाँ व मूल्य तथा लक्ष्य होते हैं। इसके अतिरिक्त उनमें निर्णय करने और समस्या समाधान की क्षमता होती है
उदाहरणार्थ-आधुनिक राज्य इकाई के अध्ययन के बाद पैनल चर्चा द्वारा राज्य के विभिन्न रूपों निरंकुश, एकतन्त्र, लोकतन्त्र सीमित राजतन्त्र (एकात्मक व संघात्मक) गणतन्त्र तथा संघात्मक के संसदीय एवं अध्यक्षीय रूपों की विशेषताओं से सम्बद्ध सामग्री का संवर्द्धन किया जा सकता है। वर्तमान में बहुचर्चित विवादास्पद प्रश्न भारत में संसदीय या अध्यक्षीय संघात्मक
लोकतन्त्र प्रणाली व परिचर्चा आयोजित की जा सकती है
पैनल चर्चा का अर्थ एवं परिभाषाएँ
(Meaning and definitions of Penal Discussion Technique)
पैनल परिचर्चा विधि शिक्षण की यह विधि है, जिसमें एक से अधिक अध्यापकों का शिक्षण में नेतृत्व होता है। ये अध्यापक प्रकरण या समस्या से सम्बन्धित अलग-अलग क्षेत्र के विशेषज्ञ होते हैं, जो कि बारी-बारी से उस समस्या पर अपने विचार व्यक्त करते हैं। इस प्रकार विद्यार्थियों को समस्याओं के विभिन्न क्षेत्रों से सम्बन्धित विशेषज्ञों के विचार सुनने का अवसर मिलता है।
1. हरबर्ट गुली-इनके अनुसार, “परिचर्चा उस समय होती है, जब व्यक्तियों का एक समूह अपने-सामने एकत्रित होकर मौखिक अन्तक्रिया द्वारा सूचनाओं का आदान-प्रदान करता है या किसी सामूहिक समस्या पर कोई निर्णय लेता है।”
2. स्ट्रक के अनुसार, “पैनल चर्चा में चार आठ व्यक्तियों का एक समूह किसी समस्या पर आपसी विचार-विमर्श करता है। यह चर्चा जनसमूह या कक्षा के विद्यार्थियों के समक्ष की जाती है।” उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर पैनल चर्चा की निम्नलिखित विशेषताएँ प्रकट होती हैं :
(i) पैनल चर्चा में एक समूह शिक्षण का नेतृत्व करता है।
(ii) इसमें भाग लेने वाले समूह के 6 सदस्य शिक्षण प्रकरण सा समस्या से समबन्धित विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ होते हैं।
(iii) भाग लेने वाले सदस्य अध्यापक बारी-बारी से अपनी-अपनी बात छात्रों के समक्ष रखते है
(iv) इसका आयोजन प्रजातान्त्रिक व्यवस्था के अनुरूप किया जाता है। यह माना जाता है कि समूह के प्रत्येक सदस्य में अपनी रुचि, योग्यता, मूल्य, अभिवृत्तियाँ तथा लक्ष्य होते हैं। साथ ही उसमें निर्णय लेने की क्षमता भी होती है।
पैनल परिचर्चा का स्वरूप (Form of Penal Discussion)- पैनल चर्चा का आयोजन करते समय इसकी सफलता के लिए विभिन्न व्यक्तियों को विभिन्न भूमिकाएँ निभानी होती है। इन व्यक्तियों की भूमिका के अनुसार ही पैनल चर्चा को क्रियान्वित यहाँ प्रस्तुत की जा रही है
1. अनुदेशक-पैनल चर्चा में सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य अनुदेशक का होता है। सर्वप्रथम इसका ही कार्य प्रारम्भ होता है । इसे ही वाद-विवाद अथवा पैनल चर्चा की सम्पूर्ण व्यवस्था करनी होती है। वाद-विवाद का प्रकरण क्या होता है? यह किस स्थान पर आयोजित किया जायेगा। इसमें भाग लेने वाले सदस्य कितने एवं कौन-कौन होंगे। अध्यक्ष कौन होगा? चर्चा में किन-किन
उपकरणों की आवश्यकता होगी आदि का निर्धारण एवं व्यवस्था करने का कार्य अनुदेशक का ही होता है। इसके अतिरिक्त वह सम्पूर्ण कार्यक्रम की समस्यानुसार (कालांश का निर्धारण करके) व्यवस्था करता है। पैनल चर्चा की सफलता इसकी सूझ-बूझ एवं कुशलता पर अत्यधिक निर्भर करती है, क्योंकि जितनी सूझ-बूझ एवं कुशलता पर अत्यधिक निर्भर करती है, क्योंकि जितने सूझ-बूझ के साथ वह इन सभी क्रियाओं का नियोजन एवं व्यवस्था करता है, उतनी ही यह चर्चा सुव्यवस्थित रूप से आयोजित हो सकेगी।
2. अध्यक्ष-अध्यक्ष पद चर्चा के समय बहुत महत्वपूर्ण होता है। चर्चा या वाद-विवाद का संचालन अध्यक्ष ही करता है। अध्यक्ष बीच-बीच में समूह द्वारा कही गयी बात का स्पष्टीकरण एवं संक्षिप्तीकरण भी करता रहता है। अत: यह आवश्यक है कि अध्यक्ष ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जिसे प्रकरण अथवा समस्या की विषयवस्तु का पूर्व ज्ञान हो । साथ ही उसमें नेतृत्व करने के सभी गुण होने चाहिए। उन्हें चर्चा सुनने वाले विद्यार्थियों की अधिगम परिस्थितियों का ज्ञान होना चाहिए। अर्थात् इन परिस्थितियों का ध्यान भी रखना चाहिए, जिनमें छात्र सहज एवं रोचक ढंग से समझ सके ।
3. विशेषज्ञ-पैनल चर्चा में भाग लेने वाले सभी सदस्य अपने विषय के विशेषज्ञ होते हैं। चर्चा में इन विशेषज्ञों की संख्या बहुत अधिक नहीं होनी चाहिए और बहुत कम भी नहीं । साधारणतया इनकी संख्या 4 से 8 के मध्य होनी चाहिए। चर्चा में भाग लेने वाले सदस्य छात्रों के सामने अर्द्धचन्द्राकार रूप में बैठते हैं । बीच में अध्यक्ष बैठता है । अध्यक्ष द्वारा चर्चा को परिचय रूप में रखने के पश्चात् समूह के सभी सदस्य बारी-बारी से अपने क्षेत्र से सम्बन्धित विचार रखते हैं, जिसका समय सभी सदस्यों का लगभग बराबर-बराबर होता है। सामान्यतया चर्चा लगभग आधे से एक घण्टे की होती है । प्रत्येक सदस्य के बोलने के पश्चात् अध्यक्ष उसमें सुधार करता हुआ उसका संक्षिप्तीकरण करता है।
4. श्रोतागण या छात्र-जब तक चर्चा चलती रहती है अर्थात् अध्यक्ष एवं विशेषज्ञ जब अपनी-अपनी बात प्रस्तुत करते हैं तो छात्र उन्हें चुपचाप बैठकर सुनते रहते हैं। यदि चर्चा से सम्बन्धित उन्हें किसी प्रकर की कई समस्या या कठिनाई होती है तो चर्चा के अन्त में वे प्रश्न पूछते हैं। वे कुछ ऐसे सम्बन्धित बिन्दुओं को भी पूछते हैं। जिन्हें वाद-विवाद या चर्चा में सम्मिलित नहीं किया गया था । छात्रों की समस्याओं का समाधान समूह के सदस्यों द्वारा करने का प्रयत्न किया जाता है। उनका साथ इस कार्य में अध्यक्ष भी देता है। अन्त में, अध्यक्ष वाद-विवाद के निष्कर्षों का संक्षिप्तीकरण करता है। विशेषज्ञों के प्रति आभार प्रकट करता है तथा छात्रों को धन्यवाद देता है।
पैनल परिचर्चा की विशेषताएँ अथवा गुण
(Characteristics and merits of Penal Discussion)
1 समस्याओं का लाभ-इस विधि में छात्रों को प्रकरण या समस्या के विभिन्न बिन्दुओं से सम्बन्धित विशेषज्ञों के विचार सुनने का लाभ प्राप्त होता है।
2. उच्च कक्षाओं के लिए उपयोगी-यह विधि उच्च कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए अत्यधिक उपयोगी है। इस विधि से वे कम समय में अधिक ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं।
3. समस्या समाधान शक्ति-इस विधि के द्वारा छात्रों में चिन्तन एवं तर्कशक्ति का विकास होता है। इस तरह शिक्षण करने से छात्रों में समस्या समाधान की क्षमताओं का विकास होता है।
4. प्रजातान्त्रिक गुण का विकास-प्रकरण अथवा समस्या को विभिन्न दृष्टिकोगों से समझने के लिए यह विधि छात्रों को पर्याप्त अवसर प्रदान करती है। इसके माध्यम से छारों में प्रजातान्त्रिक गुणों का विकास किया जाना सम्भव है
5.शंका समाधान विधि-यह विधि शंकाओं का समाधान करने की एक उत्तम विधि है। इसमें चर्चा के अन्त में छात्रों की समस्याओं अथवा शंकाओं का निराकरण किया जाता है।
6. समूह में छात्रों को सम्मिलित करना-समूह के सदस्यों के रूप में छात्रों को भी सम्मिलित किया जा सकता है, जिसके लिए पूर्व अभ्यास की आवश्यकता होती है। छात्रों को इस प्रकार का अवसर मिलने पर उनमें विचारों को रखने एवं तर्क करने की क्षमताओं का विकास होता है।

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