बिहार में बाढ़ की समस्या | Bihar flood problem
बिहार में बाढ़ की समस्या | Bihar flood problem
बिहार में बाढ़ की समस्या
उत्तरी बिहार की सबसे बड़ी समस्या बाढ़ है। यहां बाढ़ एक ऐसी प्राकृतिक विपदा हैं जो. निरंतर धन-जन की अपार क्षति का कारण बनी रही है। इससे राज्य में कृषि को नुकसान होता रहा है और प्रगति के अन्य कार्यों पर भी हानिकारक प्रभाव पड़े
हैं। गंगा के उत्तरी मैदान में बाढ़ के कारण हिमालय से बहने वाली अनेक नदियां हैं जिनमें घाघरा, बागमती, कोसी, महानंदा आदि प्रमुख हैं। गंगा के दक्षिणी मैदान में बरसाती नदियां बाढ़ का मुख्य कारण हैं। सोन, पुनपुन, हरीहर, किउल आदि इसमें
मुख्यत: योगदायी हैं। उत्तर बिहार में बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों में सारण, गोपालगंज, वैशाली, सहरसा और खगड़िया प्रमुख हैं जबकि दक्षिण बिहार में पटना और जहानाबाद अधिक बाढ़ प्रभावित रहे हैं।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद बिहार में बाढ़ पर नियंत्रण प्राप्त करने के अनेक उपाय किये गये हैं। कोसी एवं गंडक नदियों पर तटबंध बनाने के साथ जल-प्रवाह को नियंत्रित करने के लिये अनेक बांध भी बनाये गये हैं। 1975 में पटना में आई भयंकर बाढ़ के बाद गंगा तटबंध का भी निर्माण हुआ है। अनेक बाढ़ नियंत्रण कक्ष स्थापित किये गये हैं। बाढ़ की पूर्व सूचना देने के और बाढ़ प्रबंधन की व्यवस्था भी की गयी है। लेकिन इस प्राकृतिक विपदा पर प्रभावशाली नियंत्रण अभी भी स्थापित नहीं हो सका है। बिहार में बाढ़ की समस्या आज एक भीषण समस्या है। राष्ट्रीय बाढ़ आयोग द्वारा देश का सर्वाधिक बाढ़ प्रवण क्षेत्र बिहार राज्य ही माना गया है।
बिहार के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का दो तिहाई भाग बाढ़ से प्रभावित रहता है। पहली योजना से अब तक कोसी, गंडक, बूढ़ी गंडक, अधवारा, करेह, भुतही बहान, बागमती, कमला बलान, महानंदा आदि कई बाढ़ नियंत्रण तटबंधों का निर्माण किया गया
है। 1987 की अप्रत्याशित बाढ़ से हुई क्षति से हमें शिक्षा मिली है कि बाढ़ की रोकथाम के लिये अल्पकालीन ही नहीं बल्कि मध्य एवं दीर्घकालीन परियोजनाओं का निर्माण अत्यावश्यक है। सीमित साधन स्रोत के अंतर्गत अबतक 3400 किलोमीटर
की लंबाई में बाढ़ सुरक्षात्मक तटबंधों का निर्माण हुआ है तथा.29.28 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को सीमित सुरक्षा प्रदान की जा सकी है।
उत्तरी बिहार के सभी प्रमुख नदियों के स्थल जल ग्रहण क्षेत्र के 3/4 भाग नेपाल और तिब्बत में पड़ता है। समुचित जल प्रबंधन के लिये नेपाल सरकार से कोसी तथा गंडक में मिलने वाली सहायक नदियों पर जलाशय के निर्माण के लिये बात करनी
चाहिये ताकि वर्षा के समय कोसी और गंडक के जल को कम किया जा सके। उत्तर बिहार का मैदान हिमालय की नदियों का क्रीड़ा स्थल है। हिमालय से गिरने वाली नदियों का एक चैनल बनाकर गंगा में मिलाया जाना चाहिये। इस चैनल पर पानी को
नियमित करने के लिये और जलस्तर को सीमित रखने के लिये इन नदियों में मिल रही सहायक नदियों पर नेपाल में ही जलाशयों का निर्माण जरूरी है, केवल बैराज बनाने से ही समस्या का समाधान नहीं होगा। 1991 में नेपाल और भारत सरकार के बीच एक संयुक्त विशेषज्ञ दल गठित किया गया था, जिसका लक्ष्य अनुसंधान कार्यों तथा परियोजना से होने वाले लाभ के हिस्से का आकलन हेतु प्रक्रिया निर्धारित करना था।
बिहार में जल प्रबंधन को ध्यान में रखते हुए एक क्रांतिकारी सिंचाई नीति की अधिसूचना जारी की गयी है। इस नीति में बेसिन पर आधारित मास्टर प्लान तैयार करने, निर्माणाधीन सिंचाई परियोजना की प्राथमिकता का निर्धारण, सृजित सिंचाई क्षमता का
अधिकतम उपयोग, नदियों के कमान क्षेत्र पर चल रहे कार्यों पर विशेष ध्यान तथा गैर-सरकारी जल उपभोक्ता संगठनों का गठन कर वितरण प्रणाली आदि को इन संगठनों को सौंपने से संबंधित मार्गदर्शन सिद्धांत निरूपित किये जायें।
बिहार में 9 लाख हेक्टेयर भूमि पर जल जमाव की समस्या है। यह जल प्रभाव मुख्यत: गंडक और कोसी कमान क्षेत्र में पड़ते हैं। जल नि:क्षरण योजना पर सर्वेक्षण और निर्माण कार्य तभी संभव है, जब वर्षा के बाद चौड़ा घाट का पानी सूख जाये। पानी नहीं, सूखने के कारण जल जमाव से संबंधित राज्य सरकार की योजनाओं पर कम कार्य हो पाया है। ध्यान रखनी चाहिये कि जल जमाव संकरे तटबंधों के क्षेत्र में ही हो और नदियों में पानी के जलस्तर को ऊपर बेसिन के जलाशयों से ऐसे विनियमित करना चाहिये कि जलस्तर खतरे के निशान के अंदर रहे और जल जमान तटबंध से बाहर न हो। नदियों का पानी मैदानी क्षेत्रों में जब अनावश्यक रूप से बढ़ जाता है तब जलजमाव होता है क्योंकि पानी के तेजी निकलने का रास्ता नहीं मिल पाता।