CTET Notes in Hindi | पिछड़े, विकलांग तथा मानसिक रूप से पिछड़े बालक
CTET Notes in Hindi | पिछड़े, विकलांग तथा मानसिक रूप से पिछड़े बालक
पिछड़े, विकलांग तथा मानसिक रूप से पिछड़े बालक
पिछड़े बालक (Backward Children): पिछड़े बालक का तात्पर्य वैसे बालक से होता है जो बुद्धि, शिक्षा इत्यादि में अपने समकक्षों से काफी पीछे रह जाते हैं।
> कुछ लोग बालकों के पिछड़ेपन (Backwardness) को दो आधारों पर मापते हैं- बुद्धि के आधार पर तथा शैक्षिक उपलब्धि के आधार पर ।
> बुद्धि के आधार पर पिछड़ेपन को मानसिक मंदता (Mental Retardation) कहते हैं।
> शैक्षिक उपलब्धि के आधार पर पिछड़ेपन को शैक्षिक मंदता (Educational Retardation) कहा जाता है।
> बर्ट (Burt) के अनुसार, “पिछड़ा बालक वह है जो अपने स्कूल जीवन के बीच अपनी आयु के समकक्ष से नीचे की कक्षा का कार्य करने में असमर्थ हो।”
> पिछड़े बालक को मूलतः शैक्षिक लब्धि (Educational Quotient or EQ) के रूप में परिभाषित किया है।
EQ=EA/CAx100
EA = Educational Age (शिक्षा आयु)
CA = Chronological Age (arafach stry)
बर्ट के अनुसार जिस बालक की शैक्षिक लब्धि 85 से कम होती है उसकी पहचान निश्चित रूप से पिछड़े बालक के रूप में की जाती है।
उदाहरण के लिए- किसी छात्र की वास्तविक आयु 15 वर्ष की तथा शैक्षिक आयु जो विभिन्न विषयों में बालक की मानसिक आयु का औसत होता है, 12 वर्ष की है तो उसकी शैक्षिक लब्धि12/15 x 100 = 80 होगी और इस तरह के बालक को एक पिछड़ा बालक कहा जाता है।
> पिछड़े बालक की पहचान निम्नांकित आधार पर की जाती है-
★ पिछड़े बालक की मानसिक आयु अपने समकक्षों से कम होती है।
★ पिछड़े बालक की शैक्षिक आयु भी अपने समकक्षों से कम होती है।
★ ऐसे बालकों की शैक्षिक उपलब्धि सामान्य या औसत से कम होती है।
बालकों के पिछड़ेपन के कारण
Causes of Backwardness Among Children
बालकों के पिछड़ेपन के कारण निम्नलिखित हैं-
(a) बौद्धिक क्षमता की कमी (Lack of Intellectual Ability): बर्ट के अनुसार बालकों के पिछड़ेपन का सबसे महत्वपूर्ण कारण उम्र के अनुसार बौद्धिक क्षमता का कम या बिल्कुल नहीं होना है। बौद्धिक क्षमता के अभाव में वे सामान्य या औसत बुद्धि के लिए बनाये गये पाठ्यक्रम को समझ नहीं पाते हैं और परिणामस्वरूप पिछड़ जाते हैं।
(b)वातावरण का प्रभाव (Effect of Environment): छात्रों के पिछड़ेपन में वातावरण का भी काफी प्रभाव पड़ता है। यदि बालक का घरेलू वातावरण तथा स्कूली वातावरण शिक्षा की दृष्टि से उत्साहवर्धक नहीं होता है तो इससे बालकों की शैक्षिक आयु वास्तविक आयु के अनुकूल नहीं बढ़ पाती है और बालक शैक्षिक रूप से पिछड़ जाते हैं।
(c) शारीरिक दोष (Physical Defects): शारीरिक दोष के कारण भी बालक शैक्षिक रूप से पिछड़ जाते हैं। अंधे, बहरे, गूंगे बालकों में पिछड़ेपन का मूल कारण उनकी शारीरिक विकलांगता ही होती है। शारीरिक दोष के कारण ऐसे बालकों की अभिरुचि शिक्षा में कम होने लगती है।
> बर्ट (Burt) के अध्ययन के अनुसार करीब 9% बालकों के पिछड़ेपन का कारण शारीरिक दोष है।
(d) स्वभाव संबंधी दोष (TempramentalDefects): कुछ बालक स्वभाव संबंधी दोष के कारण अपने साथियों से पिछड़े जाते हैं। ऐसे बालक प्रायः तुनुकमिजाजी, आक्रामक (Aggressive) एवं संवेगात्मक रूप से अस्थिर होते हैं। इसी अवगुण के कारण उनका समायोजन कक्षा में न तो शिक्षक के साथ और न ही अपने साथियों के साथ हो पाता है। परिणामस्वरूप ऐसे छात्र कक्षा में पिछड़ जाते हैं।
(e) कर्त्तव्यव्यागिता (Trunacy) : कुछ बालक ऐसे होते हैं जो कक्षा में ठीक ढंग से शिक्षक के व्याख्यान पर ध्यान नहीं देते और मौका मिलते ही कक्षा से भाग खड़े होते हैं। जब कक्षा में वे नियमित रूप से बैठते ही नहीं हैं, तो उन्हें पाठ्यक्रम (Curriculum) ठीक ढंग से नहीं समझ में आता है और इससे उनकी शैक्षिक अभिरुचि उत्तरोत्तर घटती जाती है और कक्षा में वे पिछड़ते चले जाते हैं।
पिछड़े बालकों की समस्याएँ
Problems of Backward Children
पिछड़े बालकों की समस्याएँ निम्नलिखित हैं-
★ पिछड़े बालकों की सबसे बड़ी समस्या कक्षा में समायोजन से संबंधित होती है। ऐसे बालकों को कक्षा का पाठ्यक्रम काफी कठिन लगता है जिसे वे समझ नहीं पाते और वे अन्य सहकक्षी बालकों की तुलना में पीछे रह जाते हैं।
★ ऐसे बालकों की मनोवृत्ति स्कूल एवं शिक्षकों के प्रति नकारात्मक (Negative) होती है, क्योंकि उनका स्कूल में साथियों द्वारा अक्सर मजाक उड़ाया जाता है।
★ ऐसे बालकों में पढ़ने-लिखने एवं सीखने की अभिप्रेरणा बहुत ही कम होती है, क्योंकि इनकी घरेलू एवं व्यक्तिगत अनुभूतियाँ इतनी तीखी एवं कुंठापूर्ण (Frustrating) होती हैं कि उनके ऐसे अभिप्रेरणों को वे बिल्कुल ही समाप्त
कर देती हैं।
★ ऐसे बालकों को प्रायः लगातार असफलता ही मिलती है, अतः इनमें आत्म विश्वास, मनोबल, एवं आत्म निर्भरता जैसा कोई गुण नहीं विकसित हो पाता है।
★ ऐसे बालक अधिक चिंतित एवं तनावग्रस्त रहते हैं, क्योंकि वे अनुभव करने लगते हैं कि उनकी शैक्षिक उपलब्धियाँ काफी पीछे पड़ रही हैं।
पिछड़े बालक की शिक्षा एवं समायोजन
Education and Adjustment of Backward Child
शिक्षा मनोवैज्ञानिकों ने पिछड़े बालक की शिक्षा एवं समायोजन के निम्नलिखित उपाय बताये हैं-
(a) मानसिक क्षमता के अनुकूल शिक्षा (Education According to Mental Ability): पिछड़े बालक को उनके बुद्धि-स्तर के अनुकूल अलग से पाठ्यक्रम तैयार कर उन्हें शिक्षा देनी चाहिए। ऐसी परिस्थिति में पिछड़े बालक उन्नत शिक्षा प्राप्त कर सकेंगे तथा अपनी कक्षा में अन्य लोगों के साथ समायोजन भी ठीक ढंग से कर सकेंगे। जहाँ तक संभव हो ऐसे बालकों की शिक्षा व्यवस्था विशिष्ट बनाकर या विशिष्ट स्कूल बनाकर दी जानी चाहिए।
(b) व्यक्तिगत ध्यान (Individual Attention):पिछड़े बालकों पर व्यक्तिगत ध्यान देने से छात्र की असफलता के सही कारणों का पता शिक्षक को चलता है और तब वे उसी के अनुसार अपना कार्यक्रम तय कर बालकों के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए प्रयत्नशील हो उठते हैं।
(c) उपयुक्त वातावरण प्रदान करना (To Provide Adequate Environment): पिछड़े बालकों में उपयुक्त घरेलू वातावरण एवं स्कूली वातावरण की कमी एक प्रमुख कारण है । बालकों का घरेलू वातावरण शिक्षा के दृष्टिकोण से उत्तेजक (Stimulating) एवं अनुकूल (Favourable) होना चाहिए।
(d) शारीरिक दोषों में सुधार लाकर (By Treating Physical Defects) : पिछड़े बालकों का कुछ प्रतिशत ऐसा होता है जिनमें शारीरिक दोष के कारण ही पिछड़ापन मूल रूप से पाया जाता है। इन दोषों में दृष्टि-दोष (Visual Defects), श्रवण-दोष (Auditory Defects), भाषा-संबधी दोष (Speech Defects) आदि प्रधान होते हैं।
(e)शिक्षक को चाहिए कि ऐसे बालकों की अभिरुचि (Interest) उन विषयों में जाग्रत करें जिनमें वे अधिक पिछड़े हुए हैं। इसके लिए शिक्षकों को विशेष प्रयास (efforts) करना चाहिए बालकों की अभिरुचि बनाये रखने के लिए (विशेषकर छोटे बालकों को) खिलौनों तथा श्रव्य दृष्टि साधनों (Audio-Visual Aids) का प्रयोग अधिक करना चाहिए।
आपराधी बालक
Delinquent Child
» जब कोई बालक सामाजिक, आर्थिक, नैतिक या शैक्षणिक नियम का उल्लंघन करता है, तो उसके इन व्यवहारों को बाल-अपराध तथा उस बालक को अपराधी बालक (Delinquent Child) कहा जाता है।
» चोरी करना, स्कूल से भाग जाना, घर से समय पर स्कूल के लिए निकलना किंतु नहीं जाना, स्कूल में अनुशासनहीनता की समस्या उत्पन्न करना, कक्षा में साथियों के साथ आक्रामक व्यवहार करना इत्यादि बाल अपराध के कुछ उदाहरण हैं।
बाल अपराधी में कुछ गुण सामान्य पाये जाते हैं, जो इस प्रकार हैं-
(a) शारीरिक गुण (Physical Characteristics) : अक्सर बाल अपराधी शरीर से हृष्ट-पुष्ट होते हैं तथा उनके शरीर की मांसपेशियाँ एवं हड्डियाँ समान उम्र के अन्य बालकों से अधिक विकसित होती हैं।
(b) स्वभावगत गुण (Temperamental Characteristics): ऐसे बालक स्वभाव से आक्रामक (Aggressive), सांवेगिक रूप से अस्थिर (Emotionally Unstable), बेचैन (Restless), आवेगशील (Impulsive) एवं विध्वंसक होते हैं।
(c) मनोवृत्ति-संबंधी गुण (Attitudinal Characteristics): ऐसे बालकों की मनोवृत्ति स्कूल अधिकारियों के प्रति नकारात्मक होती है। वे प्रायः शक्की (Suspicious), बैरपूर्ण, अवज्ञाकारी (Defiant) मनोवृत्ति दिखाते हैं। माता-पिता एवं स्कूल के अधिकारियों एवं शिक्षकों के प्रति वे प्रायः अनादर का व्यवहार दिखाते हैं।
(d) सामाजिक-सांस्कृतिक गुण (Socio-Cultural Characteristics): ऐसे बालकों में दूसरों के प्रति स्नेह, प्यार एवं अनुकंपा (Compassion) नहीं होते हैं। इनका नैतिक स्तर काफी नीचा होता है, जिसके फलस्वरूप उन्हें कोई सामाजिक एवं सांस्कृतिक नियमों के प्रतिकूल काम करने में हिचकिचाहट नहीं होती।
(e) मनोवैज्ञानिक विशेषताएँ (Psychological Characteristics): ऐसे बालक किसी समस्या के समाधान में मात्र सीधा एवं सुगम रास्ते को अपनाते हैं।
मन्दबुद्धि बालक
Mentally Retarded
> क्रो एवं क्रो के अनुसार, “जिन बालकों की बुद्धिलब्धि 70 से कम होती है, उनको मन्दबुद्धि बालक कहते हैं।”
>पोलक व पोलक के अनुसार, “मन्दबुद्धि बालक को अब क्षीण बुद्धि बालकों के समूह में नहीं रखा जाता है, जिसके लिए कुछ भी नहीं किया जा सकता है। अब हम यह स्वीकार करते हैं कि उनके व्यक्तित्व के उतने ही विभिन्न पहलू होते हैं जितने सामान्य बालकों के व्यक्तित्व के होते हैं।”
मन्दबुद्धि बालक की विशेषताएँ
Characteristics of Mental by Retarded Children
स्किनर के अनुसार-
★ सीखी हुई बात को नई परिस्थिति में प्रयोग करने में कठिनाई।
★ व्यक्तियों और घटनाओं के प्रति ठोस और विशिष्ट प्रतिक्रियाएँ।
★ मान्यताओं के सम्बन्ध में विशिष्ट विश्वास ।
★ दूसरो की थोड़ी भी चिन्ता न करने की बजाय अपनी चिन्ता ।
सामान्य रूप से मन्दबुद्धि बालक में पायी जाने वाली विशेषताएँ निम्नलिखित है-
(a) सीखी हुई बात का प्रयोग नई परिस्थिति में कठिनाई से कर पाते हैं।
(b) विद्यालय में असफलता के कारण शीघ्र निराश होते हैं।
(c) कार्य-कारण के सम्बन्ध में सही धारणाएँ बनाने में असफल होते हैं।
(d) सामाजिक मान्यताओं के सम्बन्ध में इनके दृढ़ विश्वास होते हैं।
(e) ये दूसरों की बजाय अपनी अधिक चिन्ता करते हैं।
(f) समस्याओं के सम्बन्ध मे उपयुक्त निर्णय नहीं ले पाते हैं और इनका जो भी निर्णय होता है उसे ये परिस्थितियों की दुर्बलता के कारण महत्व नहीं दे पाते हैं।
(g) ये नये प्रत्ययों को ग्रहण करने में कमजोर होते हैं।
(h) इनका व्यक्तित्व अनुपयुक्त होता है।
(i) इनका विभिन्न प्रकार का समायोजन विशेष रूप से दुर्बल होता है।
(j) इनमें आत्म-विश्वास का अभाव पाया जाता है। इनके अधिगम की गति मन्द होती है तथा सीखने में त्रुटियाँ अधिक होती हैं। इनका ध्यान विस्तार सीमित होता है।
मन्दबुद्धिता के कारण
Causes of Mental Deficiency
(a) वंशानुक्रम (Heredity)
(b) सांस्कृतिक कारक (Cultural Factors)
(c) छूत की बीमारियाँ (Infectious Disease)
(d) ग्रन्थीय असन्तुलन (Glandular Imbalance)
(e) एक्स-रे का प्रभाव (X-ray Effect)
(f) शारीरिक आघात (Pysical Injuries)
(g) नशीले पदार्थ (Toxic Agents)
(h) माता-पिता की आयु (Age of Parents)
(i) पारिवारिक वातावरण (Home Environment)
(j) शैक्षिक वातावरण (Educational Environment)
(k) अपरिपक्व जन्म (Pre-Mature Birth)
(l) माँ के संक्रामक रोग (Mother’s Infectious Disease)
मन्दबुद्धिता के स्तर
Level of Feeble Mindedness
मुख्य रूप से मन्दबुद्धिता तीन प्रकार की होती हैं-
(a) जड़ बुद्धि (Idiot): मानसिक दुर्बलता की दृष्टि से यह सर्वाधिक दुर्बल बुद्धि वाले होते हैं। इनकी I. Q. अधिक से अधिक 25 होती है। इनका मानसिक विकास अधिक से अधिक दो वर्ष के बालक की तरह होता है। इनको भोजन कराना पड़ता है,
वस्त्र पहनाना पड़ता है इत्यादि ।
(b) मूढ़ (Imbecile): यह ऐसे दुर्बल बुद्धि बालक हैं जिनकी IQ25 से 50 तक होती है। इन बालकों का मानसिक स्तर 3-7 वर्ष तक के बालक की तरह होता है। इन्हें अक्षर ज्ञान तो कराया जा सकता है परन्तु पढ़ाया-लिखाया नहीं जा सकता है। इन
बालकों के संरक्षण की बहुत अधिक आवश्यकता नहीं होती है।
(c) मूर्ख (Moron): ये वे बालक हैं जिनकी IQ 50 से 70 तक होती है। इनका मानसिक विकास 7 से 10 वर्ष तक के बालकों के स्तर का होता है। इनमें अन्तर्दृष्टि और मौलिकता बहुत कम मात्रा में पायी जाती है। ये व्यक्ति साधारण रोजी-रोटी कमाने
का काम सीख जाते हैं और अपना जीवन निर्वाह कर सकते हैं।
मन्दबुद्धि बालकों की समस्याएँ
Problems of Mentally Retarded Children
1.परिवार में समायोजन की समस्या : जन्म के बाद जब कोई बालक अपने माता-पिता की आकांक्षाओं को पूरा करने में असमर्थ रहता है तो माता-पिता का व्यवहार उस बच्चे के प्रति उपेक्षा व लापरवाहीपूर्ण हो जाता है। वे अपने उस बच्चे को अधिक महत्व देने लगते हैं जो शारीरिक व मानसिक रूप से पूरी तरह स्वस्थ होता है, जबकि मन्दबुद्धि के बालकों को अपने माता-पिता से अधिक सहयोग और प्रेरणा की आवश्यकता होती है।
परिवार समायोजन समस्या के समाधान के लिए निम्नलिखित प्रयास करने चाहिए-
★ उचित शारीरिक देखभाल
★ सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार
★ अच्छी आदतों का विकास
2. सामाजिक समायोजन की समस्या : मन्दबुद्धि बालकों का सामाजिक समायोजन बहुत ही निम्न स्तर का होता है, क्योंकि अपनी आयु के बच्चों से कम बुद्धि होने के कारण उन्हें बुद्धू, बेवकूफ इत्यादि शब्दों द्वारा चिढ़ाया जाता है। बच्चे इनके साथ खेलना पसन्द नहीं करते क्योंकि खेलों में भी ये अधिक त्रुटियाँ करते हैं। ऐसे बच्चों में सामाजिक समायोजन के लिए निम्नलिखित तथ्य आवश्यक है-
★ समाज द्वारा इन्हें सामाजिक सदस्य के रूप में स्वीकार किया जाये।
★ इनका उपहास न किया जाये न ही इन पर दया दिखायी जाये अपितु आवश्यकतानुसार सहयोग प्रदान किया जाये।
★ शिक्षण और प्रशिक्षण योग्य मन्दबुद्धि बालकों के लिए अलग स्कूलों की व्यवस्था की जाये जहाँ उन्हें निःशुल्क शिक्षण व प्रशिक्षण मिले और वे आत्मनिर्भर बन सकें।
★ समाज द्वारा इन बच्चों की मानसिक योग्यता को ध्यान में रखकर खेलकूद व मनोरंजन के स्थान, पार्क तथा स्कूल की व्यवस्था की जाये।
3. विद्यालय में समायोजन की समस्या : ऐसे बालक जो मन्दबुद्धि तो हैं लेकिन इतनी बुद्धिलब्धि रखते हैं कि उन्हें पढ़ाया लिखाया जा सकता है। यदि इन बालकों के पढ़ने-लिखने की व्यवस्था सामान्य बालकों के साथ की जाती है, तो यह पढ़ाई में
पिछड़ जाते हैं। एक ही कक्षा में कई बार फेल होते हैं जिससे ये विद्यालय में समायोजन स्थापित नहीं कर पाते हैं। इन बालकों के अन्दर शिक्षण, स्कूल के साथ और स्कूल के प्रति नकारात्मक प्रवृत्ति का विकास होता है।
बालकों की इस समस्या के समाधान के लिए विद्यालयी समायोजन को पहले बच्चे का मानसिक स्तर समझना चाहिए और उसी के अनुसार शिक्षा प्रदान करनी चाहिए। बौद्धिक स्तर के आधार पर मंद बुद्धि बालक तीन प्रकार के होते हैं-
(a) शिक्षा पाने योग्य मंदबुद्धि जो मन्दबुद्धि बालक शिक्षण ग्रहण कर सकते हैं उन्हें सामान्य बालकों के साथ नहीं पढ़ाया जाना चाहिए।
(b) प्रशिक्षण योग्य मंदबुद्धि ऐसे बालक जिनकी बुद्धिलब्धि 70 से कम और 50 से 60 के बीच होती है उन्हें पढ़ना-लिखना नहीं सिखाया जा सकता। ऐसे बालकों को धीरे-धीरे प्रशिक्षित किया जा सकता है।
> इन बालकों को खेल, गीत व कविताओं के माध्यम से विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण जैसे स्वयं की देखभाल करना, भोजन करना, वस्त्र पहनना, नियत स्थान पर मल त्याग करना इत्यादि बातों की जानकारी देनी चाहिए।
(c) अयोग्य मंद बुद्धि
AAMD (American Association on Mental Deficiency) TAPA (American Psychiatric Association) ने मानसिक रूप से मंदित बालकों को चार भागों में बाँटा गया है-
(a) साधारण मानसिक मंदता (Mild Mental Retardation): इस श्रेणी में आनेवाले बालकों की बुद्धिलब्धि (Intelligence Quotient)52-67 के बीच होती है। ऐसे बालकों को कुछ शिक्षा दिया जाना संभव है और वयस्क होने पर इनका बौद्धिक स्तर 8 से 11 वर्ष के सामान्य बालक के बौद्धिक स्तर के बराबर होता है।
(b) अल्पबल मानसिक मंदता (Moderate Mental Retardation): इस श्रेणी में आनेवाले बालक की बुद्धिलब्धि 36 से 51 होती है। ऐसे बालकों को प्रशिक्षण देकर उन्हें साधारण कार्य करने के लायक बनाया जा सकता है। ऐसे बालकों को प्रशिक्षणीय (Trainable) की शैक्षिक श्रेणी (Educational Category) में रखा जाता है। ऐसे बालकों के सीखने की दर धीमी होती है।
> शारीरिक रूप से ऐसे बालक बेढंगा (Clumsy) दिखते हैं तथा उनमें शारीरिक अनियमितता देखने को मिलती है। उनका क्रियात्मक समन्वय (Motor Co-ordination) असंतुलित होता है।
(c) गंभीर मानसिक मंदता (Severe Mental Retardation) : इस श्रेणी में आने वाले बालक की बुद्धिलब्धि 20 से 35 के बीच होती है। ऐसे बालकों को सदा दूसरों पर निर्भर रहने वाला अर्थात् आश्रित बालक (Dependent Child) कहा जाता है।
>मानसिक रूप से मंद बालकों का क्रियात्मक विकास (Motor Development), भाषा विकास (Speech Development) गंभीर रूप से मंदित होते हैं तथा इनमें ज्ञानात्मक दोष (Sensory Defects) एवं क्रियात्मक विकलांगता (Motor handicaps) सामान्य रूप से पाये जाते हैं।
>ऐसे बच्चे अपनी देख-रेख एवं सामान्य क्रियाओं के लिए भी दूसरों पर आश्रित रहते हैं।
(d) गहन मानसिक मंदता (Profound Mental Retardation) : इस श्रेणी में आनेवाले बालकों की बुद्धिलब्धि 20 से नीचे होती है। ऐसे बालकों को सम्पूर्ण जीवन तक देख-रेख चाहनेवाला बालक (Life Support Retarded Children) की श्रेणी में
रखा जाता है।
> ऐसे बालकों में गंभीर रूप से शारीरिक अनियमितता पायी जाती है तथा केन्द्रीय स्नायुमंडल (Central Nervous System) के रोग होते हैं। ऐसे बालकों में बहरापन एवं मूकता भी अधिक देखने को मिलती है।
दोषपूर्ण अंग वाले बालक
Children with Defective Organs
> ऐसे बालक, जिनके शारीरिक दोष उन्हें शारीरिक क्रियाओं में भाग लेने से रोकते हैं या सीमित रखते हैं, शारीरिक अक्षमता से युक्त बालक कहे जाते हैं। दोषपूर्ण अंगों वाले बालकों का प्रकार निम्नलिखित है-
1. दृष्टिदोष से ग्रसित बालक (Children with Visual Defects) : दृष्टिकोण ऐसा विकार है जिसके कारण बालक अपनी आँखों से कुछ भी नहीं देख सकता है। दृष्टिदोष वाले बालक दो प्रकार के होते हैं-
(a) अंधे बालक (Blind Children) : अंधे बालक वे हैं जो पूर्ण रूप से अंधे होते हैं और अंधेपन के कारण उनकी सीखने की क्षमता काफी प्रभावित होती है। इन्हें ब्रेल (Braille) पद्धति द्वारा ही पढ़ना-लिखना सिखाया जा सकता है। प्रायः पूर्ण अंधापन
जन्मजात होता है, परन्तु किसी-किसी व्यक्ति में जन्म के बाद भी किसी तरह की बीमारी या दुर्घटना के शिकार होने से पूर्ण अंधापन आ जाता है।
(b) निम्न दृष्टिवाले बालक (Low Vision Children): निम्न दृष्टिवाले बालकों की समस्या अंधापन वाले बालकों से अधिक गंभीर इसलिए होती है कि इनकी दृष्टि कम होने से वे सामान्य पुस्तकों के उन अक्षरों को नहीं पढ़ पाते जिनके आकार छोटे होते हैं तथा शिक्षक इन्हें ब्रेल पद्धति से सीखने-पढ़ने की आदत भी नहीं डालते हैं। अतः इनकी स्थिति बीचोबीच की होने से गंभीरता अधिक होती है।
अंधे बालकों की शिक्षा एवं समायोजन (Adjustment and Education of Blind Children) : ऐसे बालकों को शिक्षित करने एवं अन्य तरह की समायोजनशीलता को बढ़ाने के लिए निम्नांकित पद्धतियाँ हैं-
(a) ब्रेल पद्धति (Braille System) : इस पद्धति का विकास लुइस ब्रेल (Louis Braille) द्वारा 1830 के लगभग किया गया था। इस पद्धति में छात्रों को ब्रेल पुस्तक, ब्रेल स्लेट इत्यादि द्वारा पढ़ना-लिखना सिखाया जाता है। ब्रेल अक्षरों को छात्र स्टाइलस
(Stylus) की मदद से लिखते हैं। उभरे हुए विन्दुओं पर छात्र अपनी अंगुली की नोक से (Finger Tips) ब्रेल अक्षरों को पढ़ते हैं।
आजकल ऐसे बालकों की शिक्षा के लिए कुछ विशेष इलेक्ट्रॉनिक उपकरण भी विकसित किये गये हैं। बालक इन उपकरणों में ऊनमर एबाकस (Cranmer Abacus) तथा स्पीच प्लस कैलकुलेटर (Speech Plus Calculator) का प्रयोग गणित से संबंधित
कार्य करने के लिए करते हैं। ऑप्टाकोन (Optacon), इसके द्वारा सामान्य अक्षरों को स्पर्शी कंपनों में बदला जाता है, ऐसे छात्रों को सामान्य पुस्तकों की सामग्री को पढ़ने में काफी मदद करता है। कुर्जविल रीडिंग मशीन (Kurzweil Reading Machine) एक ऐसा कंप्यूटर है जो छपी हुई सामग्री को बोल-बोलकर पढ़कर सुनाता है। इससे भी अंधे बालकों को शिक्षा ग्रहण करने में मदद मिलती है।
(b) विशेष पाठ्यक्रम (Special Curriculum) : ऐसे बालकों के व्यक्तित्व के पूर्ण विकास के लिए कुछ मनोवैज्ञानिकों ने इनके पाठ्यक्रम में सामान्य सामग्री के अलावा कुछ अन्य क्रियात्मक कौशल सामग्री को भी रखने की सिफारिश की है।
(c) विशिष्ट आवासीय स्कूल (Special Residential School) : कुछ मनोवैज्ञानिकों ने ऐसे छात्रों को शिक्षा देने के लिए अलग से स्कूल स्थापित करने की सिफारिश की है। इन स्कूलों में ऐसे छात्रों की जरूरत के अनुकूल सामग्री एवं साधन जुटाने तथा शिक्षकों को भी छात्रों पर विशेष ध्यान देने में मदद मिलेगी।
निम्न दृष्टि के बालकों की शिक्षा एवं समायोजन (Adjustment and Education of Low Vision Children):ऐसे बालकों की शिक्षा एवं समायोजन के लिए निम्नलिखित उपाय किये जाते हैं-
(a) निम्न दृष्टि साधन (Low Vision Aids) : अधिकतर निम्न दृष्टिवाले छात्रों को दृष्टि-संबंधी सहायता पहुँचानेवाले उपकरण देने पर वे शिक्षा से अधिक लाभान्वित होते हैं। जैसे—चश्मा संस्पर्श लेंस, टेलीस्कोप या दूरबीन ।
(b) कक्षा अनुकूलन (Classroom Adaptation) : कक्षा सामग्री छात्रों के अनुकूल होना चाहिए; जैसे-श्यामपट्ट, रोशनी (Light), डेस्क इत्यादि ।
(c) सुनकर दोहराने का अभ्यास (Practice of Repeating by Listening) : ऐसे बालकों को सामान्य दृष्टि के बालकों द्वारा पाठ या विषय को बोल-बोलकर दोहराने तथा उसे सुनने का अभ्यास कराना चाहिए।
2. भाषा-दोष से ग्रसित बालक (Children with Speech Defects) :- वान राइपर (Van Riper) के अनुसार यदि किसी बालक द्वारा बोले गये शब्द या वाक्यों में निम्नांकित विशेषताएँ हों तो बालक को भाषा संबंधी दोष से ग्रसित बालक माना जायेगा—-
★ दूसरे लोगों का ध्यान बालक द्वारा बोले गये शब्द या वाक्य की ओर अनावश्यक रूप से चला जाय।
★ यदि दोष या अनियमितता विचारों की अभिव्यक्ति में बाधक हो।
★ बालक को सामाजिक रूप से कुसमायोजित होने में उससे मदद मिलती हो।
भाषा दोष से ग्रसित बालकों के प्रकार-
(a) गूंगे बालक (Dumb Children) : गूंगे बालक वैसे बालक को कहा जाता है जो चाहकर भी अपनी इच्छा को अर्थपूर्ण भाषा के रूप में अभिव्यक्त नहीं कर पाते। ऐसे बालक प्रायः कुछ संकेतों के माध्यम से ही अपनी इच्छा की अभिव्यक्ति करते हैं।
(b) उच्चारण-संबंधी दोषवाले बालक (Children with Articulation Disorder);- उच्चारण-संबंधी दोष स्कूल के बालकों में अधिक देखा गया है। इस दोष से ग्रसित बालक प्रायः शब्दों को गलत ढंग से उच्चारण करते हैं। जैसे—’चोटी’ को ‘रोटी’ कहना, ‘दरवाजा’ को ‘वाजा’ कहना इत्यादि ।
(c) आवाज संबंधी दोषवाले बालक (Children with Voice Disorder):-जब बालक द्वारा बोले गये शब्द या आवाज की गुण में उच्चता या तारत्व की असाम्यता होती है तो इससे भाषा-संबंधी दोषवाले बालक के रूप में पहचान की जाती है। कर्कश आवाज में बोलनेवाले बालक एवं नकियाकर या नाक से बोलनेवाले बालकों को इस श्रेणी में रखा जाता है।
(d) प्रवाहिता संबंधी दोषवाले बालक (Children Associated with Fluency Disorders) :- इस श्रेणी में उन बालकों को रखा जाता है जिनकी वाणी की सामान्य प्रवाहिता बाधित हो जाती है। जैसे—हकलाने वाले बालक ।
(e) व्याख्यान संबंधी दोषवाले बालक (Children with Language Disorder);- इस श्रेणी में उन बालकों को रखा जाता है जिन्हें खास-खास शब्दों को बोलने में कठिनाई होती है और यदि कोशिश करते हैं तो उनके मुँह से कोई शब्द नहीं निकल पाता यानी वे पूर्णतः अवाक् रह जाते हैं।
3. श्रवण-संबंधी दोष (Children with Hearing Impairments) : श्रवण संबंधी दोष दो प्रकार के होते हैं—पूर्ण बहरापन (Complete Deatness) तथा आंशिक बहरापन (Partial Deafness)। पूर्ण बहरापन से ग्रसित बालक भाषा प्रवर्धक के प्रयोग के बाद भी कुछ नहीं सुनते तथा दूसरों की भाषा नहीं समझ पाते हैं। आंशिक बहरापन में छात्र प्रवर्धक का प्रयोग करके दूसरों की बोली को समझ लेते हैं या यदि इनसे उच्च स्वर में बोला जाय तो वे उसे सुनकर समझ लेते हैं। श्रवण संबंधी दोष के कई कारण होते हैं जैसे—आनुवंशिकता, मातृत्व रूबेला, प्राथमिक परिपक्व जन्म (Premature Birth) मेनिन्जाइटिस (Meningitis) इत्यादि प्रधान हैं।
पूर्णरूपेण बहरे बालकों की शिक्षा एवं समायोजन
(i) पूर्ण रूप से बहरे बालकों को शिक्षा देने में क्रियात्मक कार्य (Motor Work) को अधिक महत्व देना चाहिए।
(ii) शिक्षकों को चाहिए कि ऐसे बालकों को शिक्षा देने में शब्दों का प्रयोग कम से कम करें तथा प्रदर्शन (Demonstration) का उपयोग अधिक से अधिक करें ।
(iii) ऐसे बालकों के लिए अलग से आवासीय विद्यालय की स्थापना की जानी चाहिए।
आंशिक रूप से बहरे बालकों की शिक्षा एवं समायोजन
(i) ऐसे बालकों को कक्षा में श्रवण साधन का प्रयोग करने के लिए कहना चाहिए।
(ii) आंशिक रूप से बहरे बालकों को स्कूल में दाखिला कराने से पहले कुछ विशिष्ट सेवा (जिनमें ध्वनि प्रवर्धन (Amplification) एवं माता पिता का प्रशिक्षण इत्यादि सम्मिलित है) प्रदान करना जरूरी है।
(iii) कुछ शिक्षाशास्त्रियों ने ऐसे बालकों की शिक्षा के लिए संपूर्ण संचार उपागम के प्रावधान पर बल डाला है; जैसे—चिह्न भाषा (Sign Language), सांकेतिक भाषा (Code Speech), आंगुलिक हिज्जे (Finger Spelling) इत्यादि ।
(iv) ऐसे बालकों को शिक्षा ग्रहण करने में सामाजिक प्रोत्साहन देना चाहिए।
दोषपूर्ण अंग वाले बालक के कुछ सामान्य कारण निम्नलिखित हैं-
(a) कुछ दोष जन्मजात होते हैं।
(b) दोषपूर्ण वातावरण (Defective Environment)
(c) अधिक बीमारी या गम्भीर बीमारी
(d) सामाजिक-आर्थिक स्तर
(e) प्रायः 6-7 वर्ष की अवस्था में बालकों में ऐसी दुर्घटनाएँ होती हैं।
परीक्षोपयोगी तथ्य
> पिछड़े बालकों से तात्पर्य वैसे बालक से होता है जो शैक्षिक रूप से मंदित होते हैं।
> बालकों में पिछड़ेपन का मुख्य कारण बौद्धिक क्षमता की कमी, वातावरण का प्रतिकूल प्रभाव, शारीरिक दोष, स्वभाव-संबंधी दोष, कर्त्तव्यत्यागिता इत्यादि है।
> साधारण मानसिक मंदबुद्धि के बालक की बुद्धिलब्धि 52-67 के बीच होती है। ऐसे बालकों के वयस्क होने पर इनका बौद्धिक स्तर 8 से 11 वर्ष के सामान्य बालक के बौद्धिक स्तर के बराबर होता है।
> अल्पबल मानसिक मंदबुद्धि के बालक की बुद्धिलब्धि 36 से 51 तक होती है। ऐसे बालकों की सीखने की दर धीमी होती है।
> गंभीर मानसिक मंदबुद्धि के बालक की बुद्धिलब्धि 20 से 35 के बीच होती है। ऐसे बालकों को आश्रित बालक कहा जाता है।
> गहन मानसिक मंदबुद्धि के बालक की बुद्धिलब्धि 20 से नीचे होती है।
> अपराधी बालक वह है जो सामाजिक, आर्थिक, नैतिक या शैक्षणिक नियम का उल्लंघन करता है।