CTET ⇒ अपठित पद्यांश | CTET Notes in Hindi | ♥ ♥ ♥ ♥
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विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्न
गद्यांश 21
मनु बहन ने पूरे दिन की डायरी लिखी, लेकिन एक जगह लिख दिया,
‘सफाई वगैरह की।’ गाँधीजी प्रतिदिन डायरी पढ़कर उस पर अपने हस्ताक्षर
करते थे। आज की डायरी पर हस्ताक्षर करते हुए गाँधीजी ने लिखा, “कातने की
गति का हिसाब लिखा जाए। मन में आए हुए विचार लिखे जाएँ। जो-जो पढ़ा
हो, उसकी टिप्पणी लिखी जाए। ‘वगैरह’ का उपयोग नहीं होना चाहिए। डायरी में
‘वगैरह’ शब्द के लिए कोई स्थान नहीं है।”
जिसने जो पढ़ा हो, वह लिखा जाए। ऐसा करने से पढ़ा हुआ कितना पच गया
है, यह मालूम हो जाएगा। जो बातें हुई हों, वे लिखी जाएँ। मनु ने अपनी गलती
का अहसास किया और डायरी विधा की पवित्रता को समझा।
गाँधीजी ने पुन: मनु से कहा― “डायरी लिखना आसान कार्य नहीं है। यह
इबादत करने जैसी विधा है। हमें शुद्ध व सच्चे रूप से प्रत्येक छोटी-बड़ी
घटना को निष्पक्ष रूप से लिखना चाहिए, चाहे कोई बात हमारे विरुद्ध ही
क्यों न जा रही हो। इससे हमें सच्चाई स्वीकार करने की शक्ति प्राप्त होगी।”
गाँधीजी के रोचक संस्मरण [CTET June 2011]
1. मनु को अपनी किस गलती का अहसास हुआ?
(1) उन्होंने डायरी में ‘वगैरह’ शब्द का प्रयोग किया था
(2) उन्होंने गाँधीजी की बात नहीं मानी थी
(3) मनु ने डायरी में कातने की गति का हिसाब लिखा था
(4) उन्होंने डायरी में सही-सही बातें लिखी थीं
2. गाँधीजी ने ‘वगैरह’ शब्द पर अपनी आपत्ति क्यों जताई?
(1) वे चाहते थे कि बातों को ज्यों-का-त्यों लिखा जाए
(2) वगैरह’ शब्द की जगह ‘आदि’ शब्द का प्रयोग सही है
(3) गाँधीजी चाहते थे कि सही भाषा का प्रयोग हो
(4) ‘वगैरह’ शब्द में कार्य और विचार की स्पष्टता नहीं है
3. गाँधीजी ने डायरी लिखने को इबादत करने-जैसा क्यों कहा है?
(1) दोनों में सच्चाई और ईमानदारी चाहिए
(2) दोनों में समय लगता है
(3) दोनों कार्य हमारे कर्तव्यों में शामिल हैं
(4) दोनों कार्य रोज किए जाते हैं
4. डायरी लिखना इसलिए महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि
(1) इससे व्यक्ति का समय अच्छा गुजर जाता है
(2) इसमें व्यक्ति स्वयं का विश्लेषण करता है और स्व-मूल्यांकन भी करता है।
(3) इससे व्यक्ति पूरे दिन किए गए जमा-खर्च का हिसाब-किताब कर सकता है
(4) गाँधीजी इसे महत्त्वपूर्ण मानते हैं
5. गाँधीजी प्रतिदिन डायरी पढ़कर क्या करते थे?
(1) हस्ताक्षर करते थे, ताकि जाँच का प्रमाण दिया जा सके
(2) हस्ताक्षर करते थे, क्योंकि यह नियम था
(3) लोगों को उनकी गलती का अहसास कराते थे
(4) डायरी पर हस्ताक्षर करते थे और यह देखते थे कि व्यक्ति अपने कार्य और
विचार में किस दिशा में जा रहा है
6. ‘प्रतिदिन’ शब्द में कौन-सा समास है?
(1) तत्पुरुष समास
(2) द्वन्द्व समास
(3) अव्ययीभाव समास
(4) द्विगु समास
7. ‘पढ़ा हुआ कितना पच गया है’ का अर्थ है
(1) पढ़ा हुआ कितना आत्मसात् किया है
(2) कितना सही उच्चारण के साथ पढ़ा है
(3) पदे हुए का कितना विश्लेषण किया है
(4) पदा हुआ कितना समझ में आया है
8. ‘कार्य’ शब्द का तद्भव रूप बताइए
(1) काम
(2) सेवा
(3) कारज
(4) काज
9. ‘विचार’ में इक प्रत्यय लगाकर शब्द बनेगा
(1) वैचारिक
(2) वैचारीक
(3) विचारिक
(4) विचौरिक
गद्यांश 22
समस्याओं का हल ढूँढने की क्षमता पर एक अध्ययन किया गया। इसमें
भारत में तीन तरह के बच्चों के बीच तुलना की गई, एक तरफ वे बच्चे जो
दुकानदारी करते हैं स्कूल नहीं जाते, दूसरा समूह, ऐसे बच्चे जो दुकान
सँभालते हैं और स्कूल भी जाते हैं और तीसरा समूह उन बच्चों का था,जो
स्कूल जाते हैं, पर दुकान पर कोई सहायता नहीं करते।
उनसे गणना के व इबारती सवाल पूछे गए। दोनों ही तरह के सवालों में उन
स्कूली बच्चों ने जो दुकानदार नहीं हैं, मौखिक गणना या मनगणित का प्रयोग
बहुत कम किया, बनिस्बत उनके जो दुकानदार थे। स्कूली बच्चों ने ऐसी
गलतियाँ भी की, जिनका कारण नहीं समझा जा सका। इससे यह साबित होता
कि दुकानदारी से जुड़े हुए बच्चे हिसाब लगाने में गलती नहीं कर सकते,
क्योंकि इसका सीधा असर उनके काम पर पड़ता है, जबकि स्कूलों के बच्चे
वही हिसाब लगाने में अक्सर भयंकर गलतियाँ कर देते हैं।
इससे यह स्पष्ट होता है कि जिन बच्चों को रोजमर्रा की जिन्दगी में इस तरह
के सवालों से जूझना पड़ता है, वे अपने लिए जरूरी गणितीय क्षमता हासिल
कर लेते हैं, लेकिन साथ ही इस बात पर भी गौर करना महत्त्वपूर्ण है कि
इस तरह की दक्षताएँ एक स्तर तक और एक कार्य-क्षेत्र तक सीमित होकर
रह जाती है। इसलिए वे सामाजिक व सांस्कृतिक परिवेश जो कि ज्ञान को
बनाने व बढ़ाने में सहायता करते हैं, वही उस ज्ञान को संकुचित और सीमित
भी कर सकते हैं। [CTET Jan 2012]
1. समस्याओं का हल खोजने पर आधारित अध्ययन किस विषय से जुड़ा
हुआ था?
(1) दुकानदारी
(2) सामाजिक विज्ञान
(3) गणित
(4) भाषा
2. किन बच्चों ने सवाल हल करने में मौखिक गणना का ज्यादा प्रयोग
किया?
(1) जो दुकानदारी करते हैं
(2) जो केवल स्कूल जाते हैं
(3) जो बच्चे न तो दुकानदारी करते हैं और न ही स्कूल जाते हैं
(4) जो स्कूली बच्चे दुकानदारी नहीं करते
3. अनुच्छेद के आधार पर कहा जा सकता है कि
(1) बच्चों को गणित सीखने के लिए दुकानदारी करनी चाहिए।
(2) बच्चे रोजमर्रा के जीवन में काम आने वाली दक्षताओं को स्वतः ही हासिल कर
लेते हैं।
(3) केवल दुकानदार बच्चे ही गणित सीख सकते हैं।
(4) बच्चों को गणित सीखना चाहिए।
4. दुकानदार बच्चे हिसाब लगाने में प्राय: गलती नहीं करते, क्योकि
(1) वे जन्म से ही बहुत ही दक्ष हैं।
(2) वे कभी भी गलती नहीं करते।
(3) गलती का असर उनके काम पर पड़ता है।
(4) इससे उन्हें माता-पिता से डाँट पड़ेगी।
5. जो दक्षताएँ हमारे दैनिक जीवन में काम नहीं आतीं, उनमें हमारा
प्रदर्शन अक्सर
(1) अच्छा होता है।
(2) खराब अच्छा होता रहता है।
(3) सन्तोषजनक होता है।
(4) खराब होता है।
6. अनुच्छेद के आधार पर बताइए कि सामाजिक व सांस्कृतिक परिवेश
ज्ञान को
(1) संकुचित कर सकता है।
(2) सीमित कर सकता है।
(3) बनाने में सहायता भी करता है और उसे संकुचित, सीमित भी कर सकता है।
(4) बनाने में सहायता करता है।
7. ‘इक’ प्रत्यय का उदाहरण है
(1) संकुचित
(2) सांस्कृतिक
(3) चूंकि
(4) सीमित
8. ‘मनगणित’ का अर्थ है
(1) मन-ही-मन हिसाब लगाना
(2) कठिन गणित
(3) मनगढन्त गणित
(4) मनपसन्द गणित
9. संयुक्त क्रिया का उदाहरण है
(1) अध्ययन किया गया
(2) दुकान संभालते हैं
(3) हिसाब लगाते हैं
(4) स्कूल जाते हैं
गद्यांश 23
मुझे मालूम नहीं था कि भारत में ‘तिलोनिया’ नाम की कोई जगह है जहाँ
हमारे देश के समसामयिक इतिहास का एक विस्मयकारी पन्ना लिखा जा रहा
है, उस वक्त तक तिलोनिया के बारे में मुझे इतनी ही जानकारी थी कि वहाँ
पर एक स्वावलम्बी विकास केन्द्र चल रहा है, जिसे स्थानीय ग्रामवासी,
स्त्री-पुरुष मिल-जुलकर चला रहे हैं। मुझे वहाँ जाने का अवसर मिला। बस्ती
क्या थी, कुछ पुराने और कुछ नए छोटे-छोटे घरों का झुरमुट थी।
वहाँ एक सज्जन ने बताया कि एक सुशिक्षित तथा उसके दो साथियो
टाइपिस्ट तथा फोटोग्राफर ने मिलकर वर्ष 1972 में इस संस्थान की स्थापना
की। संस्थान का नाम था-सामाजिक कार्य तथा शोध-संस्थान (एस डब्ल्यू
आर सी)।
मेरे मन में संशय उठने लगे थे। आज के जमाने में वैज्ञानिक उपकरणों की
जानकारी के बल पर ही तरक्की की जा सकती है। उससे हटकर और
अवहेलना करते हुए भी नहीं की जा सकती है। एक पिछड़े हुए गाँव के लोग
अपनी समस्याएँ स्वयं सुलझा लेंगे, यह असम्भव था। वह सज्जन कहे जा रहे
थे “हमारे गाँव आज नहीं” बसे हैं। इन गाँवों में शताब्दियों से हमारे पूर्वज
रहते आ रहे हैं। पहले जमाने में भी हमारे लोग सूझ और पहलकदमी के बल
पर ही अपनी दिक्कतें सुलझाते रहे होंगे। जरूरत इस बात की है कि हम
शताब्दियों की इस परम्परागत जानकारी को नष्ट न होने दें। उसका उपयोग
करें।” फिर मुझे समझाते हुए बोले “हम बाहर की जानकारी से भी पूरा-पूरा
लाभ उठाते हैं, पर मूलत: स्वावलम्बी बनना चाहते हैं, स्वावलम्बी
आत्मनिर्भर।” मुझे बार-बार गाँधीजी के कथन याद आ रहे थे। मैंने गाँधीजी
का जिक्र किया तो वह बड़े उत्साह से बोले “आपने ठीक ही कहा। यह
संस्थान गाँधीजी की मान्यताओं के अनुरूप ही चलता है सादापन, कर्मठता,
अनुशासन, सहभागिता। यहाँ सभी निर्णय मिल-बैठकर किए जाते हैं।
आत्म-निर्भरता …. ।” आत्मनिर्भरता से मतलब कि ग्रामवासियों की छिपी
क्षमताओं को काम में लाया जाए और गाँधीजी के अनुसार, ग्रामवासी अपनी
अधिकांश बुनियादी जरूरत की वस्तुओं का उत्पादन स्वयं करें ………।
(एक तीर्थ यात्रा, स्रोत : भीष्म साहनी) [CTET Nov 2012]
1. सामाजिक कार्य तथा शोध-संस्थान की स्थापना का उद्देश्य था
(1) उन्हें स्वावलम्बी, आत्मनिर्भर बनाना
(2) उन्हें प्राचीन परम्पराओं से परिचित कराना
(3) ग्रामवासियों को देश-विदेश की जानकारी प्रदान करना
(4) उन्हें केवल अनुशासित करना
2.लेखक का मानना था
(1) ग्रामवासियों को अपनी समस्याएँ स्वयं सुलझाने की आदत है।
(2) आधुनिक समय में वैज्ञानिक उपकरण और जानकारी से हटकर या उसकी
अवहेलना करके तरक्की नहीं की जा सकती है।
(3) आधुनिक समय में वैज्ञानिक उपकरणों और जानकारी के बल पर ही तरक्की
नहीं की जा सकती है।
(4) ग्रामवासी अपनी समस्याएँ स्वयं सुलझा सकते हैं।
3. संस्थान के निर्णय और संचालन में आधारभूत भूमिका इनमें से
किसकी है?
(1) उस गाँव में रहने वाले सभी लोगों की
(2) गाँव-प्रधान की
(3) संस्थापक की
(4) केवल गरीब और दलित महिलाओं की
4. ‘आत्म’ उपसर्ग किस शब्द में नहीं है?
(1) आत्मीय
(2) परमात्मा
(3) आत्म-निर्भर
(4) आत्म-सम्मान
5. लेखक के अनुसार ‘तिलोनिया गाँव में हमारे देश के आजकल के
इतिहास का विस्मयकारी पन्ना लिखा जा रहा है, इसका कारण है
(1) वहाँ के लोग अनुदान पर आश्रित हैं।
(2) केन्द्र में इतिहास पर विस्मयकारी शोध किया जा रहा है।
(3) ‘तिलोनिया’ गाँव पिछड़े गाँव के रूप में जाना जाता है।
(4) वहाँ एक स्वावलम्बी विकास केन्द्र चल रहा है।
6. ‘शताब्दी’………… समास का उदाहरण है।
(1) तत्पुरुष
(2) बहुव्रीहि
(3) अव्ययीभाव
(4) द्विगु
7. गाँधीजी …………. को मान्यता नहीं देते हैं।
(1) अकर्मण्यता
(2) सादापन
(3) आत्मनिर्भरता
(4) कर्मठता
8. निम्नलिखित में से संज्ञा का उदाहरण नहीं है
(1) अनुशासन
(2) अनुशासित
(3) आत्मनिर्भरता
(4) स्वावलम्बन
9. ‘उपयोगी’ शब्द का विलोम है
(1) अनपयोगी
(2) उपयोगिता
(3) अउपयोगी
(4) अनुपयोगी
गद्यांश 24
समाज में पाठशालाओं, स्कूलों अथवा शिक्षा की दूसरी दुकानों की कोई कमी
नहीं है। छोटे-से-छोटे बच्चे को माँ-बाप स्कूल भेजने की जल्दी करते हैं।
दो-ढाई साल के बच्चे को भी स्कूल में बिठाकर आ जाने का आग्रह भी हर
घर में बना हुआ है।
इसके विपरीत हर घर की दूसरी सच्चाई यह भी है कि कोई भी माँ-बाप
बालकों के बारे में, बालकों की सही शिक्षा के बारे में और साथ ही सच्चा
एवं अच्छा माता-पिता अथवा अभिभावक होने का शिक्षण कहीं से भी प्राप्त
नहीं करता। माता-पिता बनने से पहले किसी भी नौजवान जोड़े को यह नहीं
सिखाया जाता है कि माँ-बाप बनने का अर्थ क्या है? इससे पहले किसी भी
जोड़े को यह भी नहीं सिखाया जाता कि अच्छे और सच्चे दाम्पत्य की
शुरुआत कैसे की जानी चाहिए? पति-पत्नी होने का अर्थ क्या है? यह भी
कोई नहीं बताता। परिणाम साफ है कि जीवन शुरू होने से पहले ही घर
टूटने-बिखरने लगते हैं। घर बसाने की शाला न आज तक कहीं खुली है और
नखुलती दिखती है। समाज और सत्ता दोनों या तो इस संकट के प्रति सजग
नहीं हैं या फिर इसे अनदेखा कर रहे हैं। [CTET July 2013]
1. ‘भी’ शब्द है
(1) क्रिया
(2) क्रियाविशेषण
(3) सम्बन्धवाचक
(4) निपात
2. ‘इसके विपरीत हर घर की दूसरी सच्चाई यह भी है कि.’ वाक्य के
रेखांकित अंश का समानार्थी शब्द
(1) सूक्ति
(2) वास्तविक
(3) वास्तविकता
(4) सद्वचन
3. घर के टूटने-बिखरने का मुख्य कारण क्या है?
(1) बच्चों के बारे में न जानना
(2) माता-पिता बनने का अर्थ न जानना
(3) दाम्पत्य का अर्थ न जानना
(4) घर बसाने की जल्दी करना
4. हर घर में किस चीज का आग्रह बना हुआ है?
(1) बच्चों को स्कूल न भेजने का
(2) बहुत छोटे बच्चे को स्कूल में पढ़ाने का
(3) बहुत छोटे बच्चे को दुकान भेजने का
(4) बहुत छोटे बच्चे को स्कूल में बिठाकर आने का
5. लेखक के लिए किसका शिक्षण प्राप्त करना जरूरी है?
(1) पति-पत्नी बनने का
(2) बच्चों को किसी भी प्रकार की शिक्षा देने का
(3) अच्छे माता-पिता बनने का
(4) छोटे-छोटे बच्चों का उच्च विद्यालयों में प्रवेश दिलाने का
6. माता-पिता को बच्चों की सही शिक्षा के बारे में जानना क्यों जरूरी है?
(1) बच्चों को ज्ञानवान बनाया जा सके
(2) ताकि बच्चों को उच्च डिग्रियाँ प्राप्त करवाई जा सके
(3) ताकि बच्चे स्वयं प्रवेश लेने योग्य बन सके
(4) जिससे बेहतर समाज का निर्माण किया जा सके
7. समाज और सत्ता किसके प्रति सजग नहीं है?
(1) अभिभावकों के द्वारा शिक्षा प्राप्त न करने के प्रति
(2) ज्ञानवान समाज न बन पाने के घोर संकट के प्रति
(3) घर बसाने की शिक्षा देने वाली शाला खोलने के प्रति
(4) माता-पिता द्वारा बच्चों का पालन-पोषण न करने के प्रति
8. लेखक के अनुसार सबसे पहले क्या जानना जरूरी है?
(1) दाम्पत्य की शुरुआत कैसे की जानी चाहिए?
(2) बच्चों के बारे में
(3) बच्चों की शिक्षा के बारे में
(4) माता-पिता के शिक्षा-स्तर को
9. ‘माता-पिता’ शब्द-युग्म
(1) सार्थक-निरर्थक
(2) सार्थक
(3) निरर्थक
(4) पुनरुक्त
गद्यांश 25
शिक्षा की बैंकीय अवधारणा (बैंकिंग कॉन्सेप्ट) में ज्ञान एक उपहार होता है,
जो स्वयं को ज्ञानवान समझने वालों के द्वारा उनको दिया जाता है, जिन्हें वे
नितान्त अज्ञानी मानते हैं। दूसरों को परम अज्ञानी बताना उत्पीड़न की
विचारधारा की विशेषता है। वह शिक्षा और ज्ञान को जिज्ञासा की प्रक्रिया नहीं
मानती। शिक्षक अपने छात्रों के समक्ष स्वयं को एक आवश्यक विलोम के
रूप में प्रस्तुत करता है, उन्हें परम अज्ञानी मानकर वह अपने अस्तित्व का
औचित्य सिद्ध करता है। छात्र, हेगेलीय द्वन्द्ववाद में वर्णित दासों की भाँति,
अलगाव के शिकार होने के कारण अपने अज्ञान को शिक्षक के अस्तित्व को
औचित्य सिद्ध करने वाला समझते हैं लेकिन इस फर्क के साथ कि दास तो
अपनी वास्तविकता को जान लेता है (कि मालिक का अस्तित्व उसके
अस्तित्व पर निर्भर है), लेकिन ये छात्र अपनी इस वास्तविकता को कभी नहीं
जान पाते कि वे भी शिक्षक को शिक्षित करते हैं। [CTET Feb 2014]
1. शिक्षा की बैकीय अवधारणा शिक्षा को किस रूप में प्रस्तुत करती है?
(1) शिक्षा की प्रक्रिया में केवल परम अज्ञानी शामिल होते हैं।
(2) शिक्षा ज्ञान के लेन-देन की प्रक्रिया है।
(3) शिक्षा में केवल छात्र शिक्षकों को शिक्षित करते हैं।
(4) शिक्षा में उपहारों का लेन-देन होता है।
2. गद्यांश के अनुसार छात्र अपनी किस वास्तविकता को नहीं जान पाते?
(1) शिक्षक ज्ञानवान है
(2) शिक्षा में ज्ञान ही सर्वोपरि है
(3) शिक्षक पूर्णतः शिक्षित नहीं है
(4) वे अज्ञानी हैं
3. इस गद्यांश के अनुसार शिक्षा की प्रक्रिया सम्पन्न होने के लिए अनिवार्य
शर्त है
(1) शिक्षक की उपस्थिति
(2) शिक्षक का परम ज्ञानवान होना
(3) छात्र का परम अज्ञानी होना
(4) छात्रों का सीखने के लिए उत्सुक होना
4. गद्यांश के अनुसार उत्पीड़न की विचारधारा की विशेषता क्या है?
(1) शिक्षा ज्ञान का उपहार है
(2) शिक्षक श्रेष्ठ’ है और छात्र ‘हीन’ है
(3) आदर्श शिक्षक सदैव उत्पीड़क होता है
(4) परम अज्ञानियों का शोषण अनिवार्य है
5. गद्यांश में …….. पर करारा व्यंग्य किया गया है।
(1) ज्ञानवान व्यक्तियों
(2) उत्पीड़ितों की दशा
(3) शिक्षितों की दशा
(4) शिक्षक और छात्र के मध्य सम्बन्ध
6. ‘जिज्ञासा’ शब्द से बनने वाला विशेषण है
(1) जिज्ञासी
(2) जिज्ञासावाला
(3) जिज्ञासु
(4) जिज्ञासाशील
7. किस शब्द में दो प्रत्ययों का प्रयोग हुआ है?
(1) वास्तविकता
(2) ज्ञानवान
(3) विशेषता
(4) विचारधारा
8. प्रस्तुत गद्यांश में ‘नितांत’ शब्द का अर्थ है
(1) केवल
(2) एकांत
(3) बहुत
(4) बिल्कुल
9. “उन्हें परम अज्ञानी मानकर वह अपने अस्तित्व का औचित्य
सिद्ध करता है।” रेखांकित शब्द की जगह किस शब्द का प्रयोग किया
जा सकता है?
(1) प्रमाणित
(2) प्रतिफलित
(3) अंतर्निहित
(4) प्रतिस्थापना
गद्यांश 26
गुलजार जी क्या लिखते समय पाठक आपके चिंतन में होते है।
देखिए जब मैं लिखता हूँ मेरे जेहन में मैं होता हूँ। मैं तय करता हूँ मुझे क्या
करना है? पाठक को सामने रखकर लिखने का कोई मतलब नहीं होता है।
दूसरी महत्त्वपूर्ण बात मैं महसूस करता हूँ वह है कम्युनिकेशन ………..
अपनी बात को पाठक तक पहुँचाना ……….. आर्ट ऑफ कम्युनिकेशन
……….हाँ मैं अपने लेखन को इस कसौटी पर रखता हूँ। मीडिया से जुड़े
होने के कारण कहने के तरीके को लेकर मैं सोचता अवश्य हूँ। विषय मेरे
होते हैं, मेरी बात सही है या नहीं आप अपनी ग्रोथ के साथ एक अहाता
बनाते चलते हैं। हर फाइन आर्ट लोगों तक पहुँचनी ही चाहिए। संगीत हो,
कला हो या लेखन हो वो अपने लक्ष्य तक पहुँचनी चाहिए, कहने का ऐसा
तरीका तो होना चाहिए।। [CTET Sept 2014]
1. जब गुलजार लिखते हैं, तो विषय किसके होते हैं?
(1) पाठकों के
(2) फिल्म बनाने वालों के
(3) स्वयं उनके
(4) मीडिया के
2. गुलजार के अनुसार लिखने वाले के जेहन में स्वयं लेखक होता है।
इसका आशय यह है कि
(1) लेखक स्वयं को सर्वोपरि मानता है
(2) लेखक पाठक की उपेक्षा करता है
(3) लेखक को अपनी ग्रोथ चाहिए
(4) लेखक की संवेदनाएँ आत्मानुभूति केन्द्र में होती हैं
3. एक लेखक के लिए दूसरी महत्त्वपूर्ण बात क्या है?
(1) सम्प्रेषण
(2) मीडिया
(3) कला
(4) लेखन
4. किसी भी कला का लक्ष्य क्या है?
(1) वह सुन्दर तरीके से कही गई है
(2) लोगों तक वह बात पहुँचे
(3) मीडिया द्वारा सराहा जाए
(4) सरल भाषा का प्रयोग करना
5. गुलजार अपने लेखन को किस कसौटी पर कसते हैं?
(1) वह बात पाठक तक पहुंच रही है या नहीं
(2) वह व्यंग्य भरे अन्दाज में कही गई है या नहीं
(3) वह सब लोगों द्वारा सराही गई है या नहीं
(4) मेरी ग्रोथ हो रही है या नहीं
6. गुलजार लिखने से पहले क्या तय करते हैं?
(1) किसके लिए कहना है?
(2) क्या कहना है?
(3) कैसे कहना है?
(4) क्यों कहना है?
7. जेहन का अर्थ है
(1) दिल
(2) दिमाग
(3) ख्याल
(4) सपना
8. ‘संगीत’ से विशेषण शब्द बनेगा
(1) संगीता
(3) संगीतवाला
(2) संगीतज्ञ
(4) संगीतवान
9. ‘कहने का ऐसा तरीका तो होना ही चाहिए।’ वाक्य में निपात शब्द हैं
(2) तो, का
(1) ऐसा, तो
(3) ही, ऐसा
(4) तो, ही
गद्यांश 27
सारा संसार नीले गगन के तले अनन्त काल से रहता आया है। हम थोड़ी दूर
पर ही देखते हैं क्षितिज तक, जहाँ धरती और आकाश हमें मिलते दिखाई देते
हैं। लेकिन जब हम वहाँ पहुँचते हैं, तो यह नजारा आगे खिसकता चला जाता
है और इस नजारे का कोई ओर-छोर हमें नहीं दिखाई देता है। ठीक इसी
तरह हमारा जीवन भी है।
जिन्दगी की न जाने कितनी उपमाएँ दी जा चुकी हैं लेकिन कोई भी उपमा
पूर्ण नहीं मानी गई, क्योंकि जिन्दगी के इतने पक्ष हैं कि कोई भी उपमा उस
पर पूरी तरह फिट नहीं बैठती। बर्नार्ड शॉ जीवन को एक खुली किताब मानते
थे और यह भी मानते थे कि सभी जीवों को समान रूप से जीने का हक है।
वह चाहते थे कि इन्सान अपने स्वार्थ में अन्धा होकर किसी दूसरे जीव के
जीने का हक न मारे। यदि इन्सान ऐसा करता है, तो यह बहुत बड़ा अन्याय
है। हमारे विचार स्वाभाविक रूप से एक-दूसरे से मेल नहीं खाते हैं लेकिन
इसका मतलब यह नहीं होता कि हम दूसरों को उसके जीने के हक से वंचित
कर दें।
यह खुला आसमान, यह प्रकृति और यह पूरा भू-मण्डल हमें दरअसल यही
बता रहा है कि हाथी से लेकर चींटी तक, सभी को समान रूप से जीवन
बिताने का हक है। जिस तरह से खुले आसमान के नीचे हर प्राणी बिना
किसी डर के जीने, साँस लेने का अधिकारी है, उसी तरह से मानव-मात्र का
स्वभाव भी होना चाहिए कि वह अपने जीने के साथ दूसरों से उनके जीने की
हक न छीने। यह आसमान हमें जिस तरह से भय से छुटकारा दिलाता है,
उसी तरह से हमें भी मानव-जाति से इतर जीवों को डर से छुटकारा दिलाकर
उन्हें जीने के लिए पूरा अवसर देना चाहिए। दूसरों के जीने के हक को
छीनने से बड़ा अपराध या पाप कुछ नहीं हो सकता। [CTET Feb 2015]
1. ‘क्षितिज’ किसे कहते हैं?
(1) जहाँ धरती और आसमान मिले हुए दिखाई देते हैं
(2) जहाँ धरती और आकाश पास-पास होते हैं
(3) जहाँ तक धरती दिखाई पड़ती है
(4) जहाँ से धरती और आकाश दिखाई पड़ते हैं
2. यदि किसी का ओर-छोर नहीं है, तो
(1) उसके बहुत से सिरे हैं।
(2) उसका सिरा नहीं मिलता
(3) उसकी सीमा नहीं है
(4) उसका विस्तार अधिक है
3. ‘फिट’ और ‘इन्सान’ शब्द हैं
(1) देशज
(2) आगत
(3) तत्सम
(4) तद्भव
4. बर्नार्ड शॉ ने जीवन की उपमा किससे दी है?
(1) पढ़ी जा रही पुस्तक से
(2) खुली पुस्तक से
(3) सभी जीवों से
(4) क्षितिज से
5. हम बहुत बड़ा अन्याय कर रहे होते हैं, यदि
(1) किसी से दुश्मनी रखते हैं
(2) किसी को लूट लेते हैं
(3) किसी को टिकने नहीं देते
(4) किसी को जीने का अधिकार नहीं देते
6. प्रकृति और खुला आसमान बता रहे हैं कि सबको
(1) निडर बने रहना चाहिए
(2) मनमर्जी करने का हक है
(3) प्रकृति से प्रेम करना चाहिए
(4) जीने का हक है
7. आसमान हमें दिलाता है
(1) रक्षा करने का वचन
(2) साथ-साथ रहने का अनुशासन
(3) भय से छुटकारे का आश्वासन
(4) भयभीत न करने का आग्रह
8. किस शब्द में ‘इक’ प्रत्यय का प्रयोग नहीं किया जा सकता?
(1) मय
(2) जीव
(3) स्वभाव
(4) प्रकृति
9. ‘अपराध’ शब्द है
(1) भाववाचक संज्ञा
(2) पदार्थवाचक संज्ञा
(3) व्यक्तिवाचक संज्ञा
(4) जातिवाचक संज्ञा
गद्यांश 28
स्थूल एवं बाह्य पदार्थ सूक्ष्म एवं मानसिक पदार्थों एवं भावों की अपेक्षा
अधिक महत्त्व के विषय नहीं हैं, जो व्यक्ति रचनात्मक कार्य करने में समर्थ
है, उसे भौतिक स्थूल लाभ अथवा प्रलोभन न तो लुभाते हैं और न ही
प्रोत्साहित करते हैं।
विश्व में विचारक दस में से एक ही व्यक्ति होता है। उसमें भौतिक
महत्त्वाकांक्षाएँ अत्यल्प होती हैं। ‘पूँजी’ का रचयिता कार्ल मार्क्स जीवनभर
निर्धनता से जूझता रहा। राज्याधिकारियों ने सुकरात को मरवा डाला, पर वह
जीवन के अन्तिम क्षणों में भी शान्त था, क्योंकि वह अपने जीवन के लक्ष्य
का भली-भाँति निर्वाह कर चुका था। यदि उसे पुरस्कृत किया जाता, प्रतिष्ठा
के अम्बारों से लाद दिया जाता, परन्तु अपना काम न करने दिया जाता तो
निश्चय ही वह अनुभव करता कि उसे कठोर रूप में दण्डित किया गया है।
ऐसे अनेक अवसर आते हैं, जब हमें बाहरी सुख-सुविधाएँ आकर्षित करती
हैं, वे अच्छे जीवन के लिए अनिवार्य लगने लगती है, किन्तु महत्त्वपूर्ण यह है
कि क्या हमने जीवन का उद्देश्य प्राप्त कर लिया? यदि इसका उत्तर हाँ है,
तो बाह्य वस्तुओं का अभाव नहीं खलेगा और यदि नहीं है, तो हमें अपने को
भटकने से बचाना होगा और लक्ष्य की ओर बढ़ना होगा। [CTET Sept 2015]
1. मनुष्य को बाहरी सुख क्यों लुभाते हैं?
(1) सम्पन्नता के लिए
(2) भरे-पूरे जीवन के लिए
(3) अच्छे जीवन के लिए
(4) आराम के लिए
2. “जो व्यक्ति रचनात्मक कार्य करने में समर्थ है ।” वश्य में
रेखांकित शब्द के स्थान पर कौन-सा शब्द प्रयुक्त नहीं किया जा
सकता है?
(1) क्षमतावान
(2) सक्षम
(3) शक्तिशाली
(4) सामर्थ्यवान
3. ‘प्रतिष्ठा के अम्बारों से लाद दिया जाता।’ रेखांकित का तात्पर्य है
(1) ढेर से
(2) आभार से
(3) कृतज्ञता से
(4) भार से
4. ‘भली-भाँति निर्वाह कर चुका था।’
उपरोक्त वाक्यांश में क्रिया-विशेषण है
(1) भली-भौंति
(2) निर्वाह
(3) कर चुका
(4) मली
5. ‘महत्त्वाकांक्षा’ किन शब्दों से मिलकर बना है?
(1) महत्त्व + आकांक्षा
(2) महत्व + आकांक्षा
(3) महत्त्वा + कांक्षा
(4) महत् + आकांक्षा
6. भौतिक लाभ किन्हें नहीं लुभाते?
(1) सामर्थ्यवान लोगों को
(2) जीवन का लक्ष्य पूरा करने वालों को
(3) रचनात्मक कार्य करने वालों को
(4) धन-सम्पन्न लोगों को
7. ‘पूँजी’ का रचयिता कार्ल मार्क्स कथन से संकेत मिलता है कि ‘पूँजी’
का अर्थ है
(1) एक विचार
(2) एक ग्रन्थ
(3) विरासत
(4) धन-सम्पत्ति
8. विचारकों की एक विशेषता यह है कि उनमें
(1) भौतिक महत्त्वाकांक्षाएँ कम होती हैं।
(2) पद-प्रतिष्ठा प्राप्त करने की इच्छा होती है।
(3) रचनात्मक कार्य करने की क्षमता होती है।
(4) महत्त्वाकांक्षाएँ नहीं होती।
9. सुकरात को अपना काम न करने देने की स्थिति कठोर दण्ड जैसी
प्रतीत होती, क्योंकि
(1) वह जीवन के कार्य समाप्त कर चुका था।
(2) वह स्थूल प्रलोभनों की अपेक्षा नहीं करता था।
(3) उसे जीवन का उद्देश्य प्राप्त करने से रोक दिया गया होता।
(4) वह अन्तिम क्षणों में भी शान्त था।
गद्यांश 29
माँ : रमेश, मीना क्यों रो रही है?
रमेश : मैंने चाँटा मारा था। मुझे पढ़ने नहीं दे रही थी।
माँ : लेकिन तुम इस समय क्यों पढ़ रहे हो? यह भी कोई पढ़ने का समय
है। क्या आजकल पढ़ाई चौबीसों घण्टे की हो गई है? दिमाग है या मशीन
और क्या पढ़ने के लिए बहन को पीटना जरूरी है?
रमेश : माँ, पढूँगा नहीं तो कक्षा में अव्वल कैसे आऊँगा? मुझे तो फर्स्ट
आना है। तुम भी तो यही कहती थी।
माँ : हाँ, कहती थी, पर तुम! हर वक्त खेल-खेल-खेल। फर्स्ट आना था तो
शुरू से पढ़ा होता अब जब परीक्षाएँ सर पर आ गईं तो रटने बैठे हो। तुम
क्या समझते हो कि ऐसे रटने से अव्वल आ जाओगे?
अरे! पढ़ना थोड़ी देर का ही काफी होता है, अगर नियम से मन लगाकर
पढ़ा जाए।
रमेश अब रहने दो माँ! मैं आज खेलने भी नहीं जाऊँगा। कोई आए तो मना
कर देना। अब मुझे पढ़ने दो-“अकबर का जन्म ………..अकबर का
जन्म ……… अमरकोट में हुआ था ……….. अमरकोट में ………….
माँ …………. अकबर का जन्म जहाँ भी हुआ हो, तुम्हारा जन्म यहीं हुआ है
और मैं तुम्हें रटू तोता नहीं बनने दूंगी। पढ़ने के समय पढ़ना और खेलने के
समय खेलना अच्छा होता है। [CTET Feb 2016]
1. मीना और रमेश हैं, परस्पर
(1) मित्र
(2) भाई-बहन
(3) सहपाठी
(4) रिश्तेदार
2. रमेश ने मीना की पिटाई की, क्योकि वह
(1) कक्षा में अव्वल आ सकती थी
(2) अक्सर शैतानियों करती थी
(3) पढ़ नहीं रही थी
(4) पढ़ने नहीं दे रही थी
3. कक्षा में प्रथम आने के लिए आवश्यक है
(1) शुरू से नियमित पढ़ाई करना
(2) खेलकूद छोड़ देना
(3) रात-दिन पढ़ाई करना
(4) पदाई के दिनों परिश्रम करना
4. “यह भी कोई पढ़ने का समय है?” प्रश्न का आशय है
(1) पढ़ने का कोई समय नहीं होता।
(2) वह समय पढ़ने का नहीं है।
(3) यह भी पढ़ने का एक समय है।
(4) यह पढ़ने का ही कोई समय है।
5. जो शब्द शेष से भिन्न हो, उसे छाँटिए।
(1) परीक्षा
(2) प्रथम
(3) अव्वल
(4) फर्ट
6. कौन-सा विशेषण रमेश के लिए उपयुक्त है?
(1) रटू तोता
(2) लापरवाह
(3) पदाकू
(4) परिश्रमी
7. ‘पर तुम’ का भाव है
(1) पर तुमने पढ़ना छोड़ दिया
(2) पर तुम पढ़ते ही रहे
(3) पर तुमने ध्यान नहीं दिया
(4) पर तुमने रटना ही सीखा
8. अकबर का जन्म कहाँ हुआ था?
(1) आगरा
(2) अमरकोट
(3) दिल्ली
(4) फतेहपुरी
9. ‘बहुत निकट आना’ के लिए मुहावरा है है
(1) अव्वल आना
(2) तोता रटंत
(3) पास आना
(4) सर पर आना
गद्यांश 30
लघु उद्योग उन उद्योगों को कहा जाता है, जिनके समारम्भ आयोजन के लिए
भारी-भरकम साधनों की आवश्यकता नहीं पड़ती। वे थोड़े-से स्थान पर,
थोड़ी पूँजी और अल्प साधनों से ही आरम्भ किए जा सकते हैं। फिर भी
उनसे सुनियोजित ढंग से अधिकाधिक लाभ प्राप्त करके देश की निर्धनता,
गरीबी और विषमताओं से एक सीमा तक लड़ा जा सकता है। अपने
आकार-प्रकार तथा साधनों की लघुता व अल्पता के कारण ही इस प्रकार के
उद्योग-धन्धों को कुटीर उद्योग भी कहा जाता है। इस प्रकार के उद्योग-धन्धे
अपने घर में भी आरम्भ किए जा सकते हैं और अपने सीमित साधनों का
सदुपयोग कर आर्थिक लाभ कमाया जा सकता है और सुखी-समृद्ध बना जा
सकता है। भारत जैसे देश के लिए तो इस प्रकार के लघु उद्योगों का महत्त्व
और भी बढ़ जाता है, क्योकि यहाँ युवाओं की एक बहुत बड़ी संख्या
बेरोजगार है। इसी कारण महात्मा गाँधी ने मशीनीकरण का विरोध किया था।
उनकी यह स्पष्ट धारणा थी कि लघु उद्योगों को प्रश्रय देने से लोग
स्वावलम्बी बनेगे, मजदूर-किसान फसलों की बुआई-कटाई से फुर्सत पाकर
अपने खाली समय का सदुपयोग भी करेंगे। इस प्रकार आर्थिक समृद्धि तो
बढ़ेगी ही, साथ ही लोगों को अपने घर के पास रोजगार मिल सकेगा।
1. उन उद्योगों को लघु उद्योग कहा जाता है
(1) जिन्हें निर्धन व्यक्ति आयोजित करते हैं
(2) जिनसे अल्प लाभ मिलता है
(3) जो अल्प अवधि तक बलते हैं
(4) जो कम साधनों से शुरू किए जा सकते हैं
2. ‘मशीनीकरण’ से तात्पर्य है
(1) मशीनों का अधिकाधिक उपयोग
(2) मशीनों का अधिकाधिक निर्माण
(3) मशीनों की अधिकाधिक उपलब्धता
(4) मशीनों की अधिकाधिक खरीद
3. लघु उद्योगों को प्रश्रय देने के सन्दर्भ में गाँधीजी की क्या धारणा यो?
(1) किसानों को दुआई-कटाई से फुर्सत मिल सके
(2) मशीनीकरण का विरोध किया जा सके
(3) लोगों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाया जा सके
(4) समय का सदुपयोग किया जा सके
4. भारत जैसे देश के लिए लघु उद्योग-धन्धों का महत्त्व क्यों बढ़ जाता है?
(1) क्योंकि यहाँ मशीनों की उपलब्धता बहुत कम है
(2) क्योंकि यहाँ के युवा वर्ग को मशीनों पर काम करना नहीं आता
(3) क्योंकि यहाँ कम पूँजी वाले लोग अधिक संख्या में है
(4) क्योंकि यहाँ बहुत-से लोगों को काम की जरूरत है
5. ‘विषमता’ का विपरीतार्थी शब्द है
(1) सामान्यतः
(2) समानता
(3) असमानता
(4) प्रतिकूलता
6. ‘समृद्ध’ शब्द में भाव है
(1) समर्थ होने का
(2) रोजगार पाने का
(3) खुशहाल होने का
(4) धनी होने का
7. ‘अल्पता’ शब्द है
(1) तत्सम
(2) देशज
(3) विदेशी
(4) तद्भव
8. कौन-सा शब्द-युग्म शेष से भिन्न है?
(1) भारी-भरकम
(2) पशु-पक्षी
(3) माता-पिता
(4) दिन-रात
9. गद्यांश के अनुसार ‘प्रश्रय’ शब्द का भाव है
(1) नियुक्ति करना
(2) अनुमोदन करना
(3) स्वीकृति देना
(4) संरक्षण देना
उत्तरमाला
गधांश 1. 1. (3). 2. (2), 3. (4), 4. (4), 5. (3), 6. (4), 7. (3), 8. (3), 9. (2),
गद्यांश 2. 1. (3), 2. (3), 3. (2), 4. (4), 5. (3), 6. (4), 7. (3), 8. (4). 9. (1)
गोश 3. 1. (2), 2. (4), 3. (3), 4. (4), 5. (4), 6. (4), 7. (2), 8.(1), 9. (2)
गद्यांश 4. 1. (4), 2. (4), 3. (1), 4. (3). 5. (1), 6. (2), 7. (3), 8.(1). 9. (3)
Tuligt 5. 1. (2), 2. (2), 3. (3). 4. (2), 5. (2), 6. (1), 7. (3), 8. (2), 9. (2)
गद्यांश 6.1. (2), 2. (2), 3. (3), 4. (1), 5. (4). 6. (1), 7. (1), 8. (4), 9. (1)
गद्यांश 7. 1. (2), 2. (4), 3. (3), 4. (2), 5. (4), 6. (2), 7. (2), 8. (2), 9. (2)
गद्यांश 8. 1. (2), 2. (3), 3. (1), 4. (1), 5. (3), 6. (3), 7. (1), 8. (2). 9. (3)
गद्यांश 9. 1. (2), 2. (3), 3. (3), 4. (4), 5. (3), 6. (2), 7. (2), 8. (3), 9. (4)
गद्यांश 10. 1. (2), 2. (3), 3. (3), 4. (1), 5. (4), 6. (1), 7. (4), 8. (2), 9. (1)
गद्यांश 11. 1. (2), 2. (3), 3. (4), 4. (3), 5. (2), 6. (2), 7. (1), 8. (4). 9. (3)
गद्यांश 12. 1. (4), 2. (1), 3. (4), 4. (3), 5. (4), 6. (1), 7. (1), 8. (3), 9. (2)
गद्यांश 13. 1. (4), 2. (2), 3. (3), 4. (4), 5. (1), 6. (3), 7. (3), 8. (1), 9. (2)
गद्यांश 14. 1. (2), 2. (3). 3. (2), 4. (1), 5. (3), 6. (4), 7. (2), 8. (2), 9. (3)
गद्यांश 15. 1. (1), 2. (4), 3. (3), 4. (4), 5. (3), 6. (3), 7. (1), 8.(1). 9. (2)
गद्यांश 16. 1. (3). 2. (4), 3. (2), 4. (1), 5. (4). 6. (3), 7. (3). 8. (4), 9. (2)
गद्यांश 17. 1. (2), 2. (3), 3. (3), 4. (1), 5. (3), 6. (4), 7. (4). 8. (2). 9. (3)
गद्यांश 18. 1. (4). 2. (3). 3. (2), 4. (1), 5. (4), 6. (2), 7. (3), 8. (1). 9. (2)
गद्यांश 19. 1. (3), 2. (3). 3. (1), 4. (2), 5. (3), 6. (3), 7. (3), 8. (2). 9. (1)
गद्यांश 20. 1. (4), 2. (3), 3. (4), 4. (2), 5. (3). 6. (4), 7. (1), 8. (2), 9. (4)
विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्न
गद्यांश 21. 1. (1), 2. (4), 3. (1), 4. (2), 5. (4), 6. (3), 7. (1). 8. (4). 9. (1)
गद्यांश 22. 1. (3), 2. (1), 3. (2), 4. (3), 5. (2). 6. (3), 7. (2), 8.(1), 9. (1)
गद्यांश 23. 1. (1), 2. (2), 3. (1), 4. (2), 5. (4), 6. (4), 7. (1). 8. (2), 9. (4)
गद्यांश 24. 1. (4), 2. (3), 3. (3), 4. (4). 5. (3). 6. (4), 7. (3). 8. (1). 9. (2)
गद्यांश 25. 1. (2), 2. (4), 3. (1), 4.(2).5 (4), 6. (3) 7.(1), 8. (4). 9. (1)
गद्यांश 26. 1. (3), 2. (4), 3. (1). 4.(2), 5. (1), 6. (3), 7. (2). 8. (2), 9.(4)
गद्यांश 27. 1. (1), 2. (3), 3. (2), 4. (2), 5. (4), 6. (4), 7. (3), 8. (1). 9. (1)
गद्यांश 28. 1. (3), 2. (3), 3. (1), 4. (1), 5. (1), 6. (3), 7. (2). 8.(1). 9. (3)
गद्यांश 29. 1. (2), 2. (4), 3. (1), 4. (2). 5. (1), 6. (1), 7. (3), 8. (2). 9. (4)
गद्यांश 30. 1. (4), 2. (1), 3(3). 4. (4), 5. (2), 6. (3), 7 (1) 8 (3). 9. (4)
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