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CTET Notes In Hindi | गणित की प्रकृति

CTET Notes In Hindi | गणित की प्रकृति

गणित की प्रकृति
                               Nature of Mathematics
CTET परीक्षा के विगत वर्षों के प्रश्न-पत्रों का विश्लेषण करने से
यह ज्ञात होता है कि इस अध्याय से वर्ष 2012 में 3 प्रश्न, 2014
में 2 प्रश्न, 2015 में 4 प्रश्न तथा वर्ष 2016 में 3 प्रश्न पूछे गए
हैं। इस अध्याय से CTET परीक्षा में पूछे गए प्रश्न मुख्यत:
गणितीय सिद्धान्त तथा गणितीय उपागम से सम्बन्धित हैं।
गणित एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण विषय है। अत: इसकी शिक्षा का आदान-प्रदान
या हस्तान्तरण करने से पहले यह जानना आवश्यक तथा महत्त्वपूर्ण है कि
‘गणित क्या है’ ? ‘इसकी शिक्षा क्यों दी जाए’? तथा ‘इसकी प्रकृति कैसी है?
सामान्यतः गणित की अनेक परिभाषाएँ दृष्टिगोचर होती है। उदाहरण के लिए
कोई गणित को गणनाओं का विज्ञान कहता है, कोई संख्याओं तथा स्थान के
विज्ञान के रूप में परिभाषित करता है तथा कोई मापन (माप-तौल), मात्रा और
दिशा (आकार-प्रकार) के विज्ञान के रूप में स्पष्ट करता है।
वास्तव में, गणित का शाब्दिक अर्थ है-“वह शास्त्र जिसमें गणनाओं की
प्रधानता हो।” इस प्रकार गणित के सम्बन्ध में दी गई मान्यताओं के आधार पर
हम कह सकते है कि गणित-“अंक, अक्षर, चिह्र आदि संक्षिप्त संकेतों का
दाह विज्ञान है जिसकी सहायता से परिमाण, दिशा तथा स्थान का बोध
होता है।”
गणित विषय का आरम्भ गिनती से ही हुआ है और संख्या पद्धति इसका एक
विशेष क्षेत्र है जिसकी सहायता से गणित की अन्य शाखाओं को विकसित किया
गया है।
मार्शल, एच. स्टोन के अनुसार, “गणित ऐसी अमूर्त व्यवस्था का अध्ययन
है, जोकि अमूर्त तत्वों से मिलकर बना है। इन तत्वों को मूर्त रूप में
परिभाषित किया गया है।”
बर्ट्रेण्ड रसेल ने गणित को परिभाषित करते हुए लिखा है कि “गणित एक
ऐसा विषय है जिसमें हम यह भी नहीं जानते कि हम किसके बारे में
बात कर रहे हैं और न ही यह जान पाते हैं कि हम जो कह रहे हैं, वह
सत्य है।”
गैलीलियो महोदय ने गणित के महत्व को स्पष्ट करते हुए गणित को इस
प्रकार परिभाषित किया है कि “गणित वह भाषा है जिसमें परमेश्वर ने
सम्पूर्ण जगत या ब्रह्माण्ड को लिख दिया है।”
लॉक के अनुसार, “गणित वह मार्ग है जिसके द्वारा बच्चों के मन या
मस्तिष्क में तर्क करने की आदत स्थापित होती है।”
हागबेन के अनुसार, “गणित सभ्यता और संस्कृति का दर्पण है।”
रोजर बेकन के अनुसार, “गणित सभी विज्ञानों का सिंह द्वार एवं
कुंजी है।”
प्रो० बोस के अनुसार, “हमारी पूर्ण सभ्यता जो प्रकृति के उपयोग तथा
बौद्धिक गहराई पर निर्भर करती है, इसकी वास्तविक बुनियाद
गणितीय विज्ञान है।”
ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी के अनुसार, “गणित मापन, मात्रा तथा परिमाण
का विज्ञान है।”
उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर गणित के सम्बन्ध में हम कह सकते हैं
कि
• गणित स्थान तथा संख्याओं का विज्ञान है।
• गणित गणनाओं का विज्ञान है।
• गणित माप-तौल (मापन), मात्रा (परिमाण) तथा दिशा का विज्ञान है।
• गणित विज्ञान की क्रमबद्ध, संगठित तथा यथार्थ शाखा है।
• गणित में मात्रात्मक तथ्यों और सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है।
• गणित विज्ञान का अमूर्त रूप है।
• गणित तार्किक विचारों का विज्ञान है।
• गणित के अध्ययन से मस्तिष्क में तर्क करने की आदत स्थापित होती है।
• गणित आगमनात्मक तथा प्रायोगिक विज्ञान है।
• गणित वह विज्ञान है जिसमें आवश्यक निष्कर्ष निकाले जाते है।
1.1 गणित की प्रकृति
प्रत्येक विषय को पढ़ाने के कुछ उद्देश्य होते हैं तथा साथ-ही-साथ
उसकी संरचना होती है जिसके आधार पर उस विषय की प्रकृति निश्चित
होती है। गणित विषय की संरचना अन्य विद्यालयी विषयों की अपेक्षा
अधिक मजबूत तथा शक्तिशाली है जिसके कारण गणित अन्य विषयों की
तुलना में अधिक स्थायी तथा महत्त्वपूर्ण है। गणित विषय की एक अलग
प्रकृति है जिसके आधार पर हम उसकी तुलना किसी अन्य विषय से कर
सकते हैं। किन्हीं दो या दो से अधिक विषयों की तुलना का आधार उन
विषयों की प्रकृति ही है जिसके आधार पर हम उस विषय के बारे में
जानकारी प्राप्त करते हैं।
गणित की प्रकृति (Nature of Mathematics) को निम्न बिन्दुओं द्वारा
भली-भांति समझा जा सकता है
• गणित में संख्याएँ (Numbers), स्थान (Space), दिशा (Magnitude)
तथा मापन या माप-तौल (Measurement) का ज्ञान प्राप्त किया
जाता है।
• गणित की अपनी भाषा (Language) है। भाषा का तात्पर्य-गणितीय पद
(Mathematical Terms), गणितीय प्रत्यय (Mathematical
Concepts), सूत्र (Formulae), सिद्धान्त (Theories and Principles)
तथा संकेतों (Signs) से है, जोकि विशेष प्रकार के होते हैं तथा गणित की
भाषा को जन्म देते हैं।
• गणित के ज्ञान का आधार हमारी ज्ञानेन्द्रियाँ (Sense Organs) हैं। गणित
के ज्ञान का आधार निश्चित है जिससे उस पर विश्वास किया जा
सकता है।
• गणित का ज्ञान यथार्थ (Exnct), क्रमबद्ध (Systematie), तार्किक
(Logical) तथा अधिक स्पष्ट (Clear) होता है, जिससे उसे एक बार
प्रहण करके आसानी से भुलाया नहीं जा सकता।
• गणित में अमूर्त प्रत्ययों (Abstract Concepts) को मूर्त रूप (Concrete
Form) में परिवर्तित किया जाता है, साथ ही उनकी व्याख्या भी की जाती है।
• गणित के नियम, सिद्धान्त, सूत्र सभी स्थानों पर एक समान होते है जिससे
उनको सत्यता को जाँच Verification) किसी भी समय तथा स्थान पर को
जा सकती है।
• गणित के अन्तर्गत सम्पूर्ण वातावरण में पाई जाने वाली वस्तुओं (Objects)
के परस्पर सम्बन्ध (Relationship) तथा संख्यात्मक निष्कर्ष (Numerical
Conclusions) निकाले जाते है। गणित के अध्ययन से प्रत्येक प्रश्न तथा
सूचना स्पष्ट होती है तथा उसका एक सम्भावित उत्तर निश्चित होता है।
• गणित के विभिन्न नियमो, सिद्धान्तों, सूत्रों आदि में सन्देह (Doubts) की
सम्भावना नहीं रहती।
• गणित के अध्ययन से आगमन (Induction), निगमन (Deduction) तथा
सामान्यीकरण (Generalization) की योग्यता विकसित होती है।
• गणित के अध्ययन से बालकों में आत्म-विश्वास (Confidence) और
आत्म-निर्भरता (Self-Reliance) का विकास होता है।
• गणित की भाषा सुपरिभाषित, उपयुक्त तथा स्पष्ट होती है। गणित के ज्ञान से
बालको में प्रशंसात्मक दृष्टिकोण तथा भावना (Sense of Appreciation) का
विकास होता है।
• गणित से बालकों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण (Scientific Attitude) विकसित
होता है। गणित में प्रदत्त सूचनाओं (संख्यात्मक मान) को आधार मानकर
संख्यात्मक निष्कर्ष (Numerical Inferences) निकाले जाते है।
• गणित के ज्ञान का उपयोग (Application) विज्ञान की विभिन्न शाखाओं;
यथा―भौतिकी, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान तथा अन्य विषयों के अध्ययन
में भी किया जाता है। गणित, विज्ञान को विभिन्न शाखाओं के अध्ययन में
सहायक ही नहीं, बल्कि उनकी प्रगति तथा संगठन की आधारशिला है।
इस प्रकार उपरोक्त बिन्दुओं के आधार पर हम गणित की प्रकृति को समझ
सकते हैं तथा निष्कर्ष निकाल सकते है कि वास्तव में गणित की संरचना, जोकि
उसकी प्रकृति की आधारशिला है, अन्य विषयों की अपेक्षा अधिक सुदृढ़ है,
जिसके आधार पर विद्यालयी शिक्षा में गणित के ज्ञान की आवश्यकता
दृष्टिगोचर होती है। अत: रोजर बेकन ने ठीक ही कहा है, कि गणित सभी
विज्ञानों का सिंह द्वार (Gate) और कुंजी (Key) है।
1.2 गणित पढ़ाने के तरीके
किसी भी विषय को पढ़ाने के लिए शिक्षक विभिन्न तकनीकों का उपयोग करता
है जिससे की छात्र उस विषय को आसानी से समझ सके तथा पढ़ने में उनकी
रुचि बनी रहे। शिक्षक पढ़ाने के भिन्न-भिन्न उपायों का प्रयोग करते रहते है।
अब हम गणित पढ़ाने को विभिन्न तकनीकों का विस्तृत अध्ययन करेंगे। गणित
पढ़ाने की तकनीके इस प्रकार है―
1.2.1 अभ्यास-कार्य
• स्वाध्ययन के लिए अभ्यास कार्य बेहतर विकल्प होता है।
• अभ्यास कार्य (Drill Work) द्वारा छात्रों को भिन्न-भिन्न चुनौतियों का सामना
करने और उनसे सीखने को मिलता है।
• अध्ययन की हुई बाते लंबे समय तक याद रखी जा सकती है। पढ़ाई तुरन्त
आरम्भ करने वालो के लिए अभ्यास-कार्य काफी लाभप्रद होता है।
• यदि अभ्यास-कार्य की रूपरेखा अच्छे से तैयार नहीं की गई है तो यह
अनुपयोगी साबित हो सकता है।
1.2.2 ग्रहकार्य
• छात्रों को गणित की जानकारी कक्षा में देकर उन्हें घर के लिए कार्य
देना ही गृहकार्य (Homework) है।
• गृहकार्य पाठ्यक्रम को समय पर समाप्त करने में सहायक होता है।
माता-पिता बच्चों के शैक्षणिक विकास को जान सकते हैं।
• गृहकार्य छात्रों में स्व-अध्ययन को बढ़ावा देता है। गृहकार्य के माध्यम
से छात्र अपने खाली समय का बेहतर उपयोग कर सकते है।
1.2.3 मौखिक कार्य
• कक्षा में शिक्षक और छात्रों के बीच का संवाद मौखिक कार्य (Oral
Work) के अंतर्गत आता है।
• छात्रों की समझ को मौखिक कार्य द्वारा आसानी से जाँचा जा सकता है।
इससे छात्रों के सोचने और समझने की क्षमता का विकास होता है।
• इससे पाठ को आसानी से दोहराया जा सकता है। इससे छात्रों की
लेखन क्षमताओं का आकलन नहीं हो पाता।
1.2.4 लेखन कार्य
• लेखन कार्य (Written Work) गणित की शुद्धता और मानसिक वृद्धि
के लिए महत्त्वपूर्ण है। इससे लेखन-क्षमता और अच्छी लिखावट का
विकास होता है।
• इसके द्वारा आवश्यक वस्तुएँ रिकॉर्ड के लिए रखी जा सकती है। इससे
गलतियों को आसानी से ठीक किया जा सकता है। लेखन कार्य एक
लम्बी प्रक्रिया है जो अधिक समय लेता है।
1.2.5 समूह कार्य
• समूह में कार्य (Group Work) करने से ज्ञान का आदान प्रदान होता है।
समूह के सदस्यों का अनुभव सबके काम आता है।
• यहाँ नई चीजें सीखना आसान होता है। कई बार समूह के सदस्यों का
अपेक्षित सहयोग न मिलने से कार्य पर असर पड़ता है।
1.3 तार्किक सोच
तार्किक सोच (Logical Thinking) के विकास के लिए गणितीय शिक्षण
का अत्यधिक महत्त्व है। पाठ्यक्रम का अन्य कोई विषय ऐसा नहीं है जो
गणित की तरह छात्र के मस्तिष्क को क्रियाशील बनाता हो। गणित की
प्रत्येक समस्या को हल करने के लिए मानसिक कार्य की आवश्यकता
होती है। जैसे ही गणित की कोई समस्या बच्चे के समक्ष आती है उसका
मस्तिष्क उस समस्या को समझने तथा उसका समाधान करने के लिए
क्रियाशील हो जाता है। गणित की प्रत्येक समस्या एक ऐसे क्रम से गुजरती
है जोकि एक रचनात्मक एवं सृजनात्मक प्रक्रिया (Constructive and
Creative Process) के लिए आवश्यक है। इस प्रकार बच्चे की सम्पूर्ण
मानसिक शक्तियों का विकास गणित पढ़ने से सरलता से हो जाता है।
किसी भी समस्या का उचित हल ज्ञात करने की क्षमता का विकास गणित
के अध्ययन से ही सम्भव है।
• गणित के तार्किक मूल्य पर प्रकाश डालते हुए महान् शिक्षाशास्त्री प्लेटो
ने स्पष्ट किया है, कि “गणित एक ऐसा विषय है जो मानसिक शक्तियों
को प्रशिक्षित करने का अवसर प्रदान करता है। एक सुषुप्त आत्मा
(Sleeping Spirit) में चेतना एवं नवीन जागृति उत्पन्न करने का कौशल
गणित ही प्रदान कर सकता है।”
• विश्व में ज्ञान का अथाह भण्डार है और इस ज्ञान भण्डार में दिन-प्रतिदिन
वृद्धि हो रही है। यह बात अधिक महत्त्वपूर्ण नहीं है कि ज्ञान की प्राप्ति की
जाए, बल्कि महत्त्वपूर्ण यह है कि ज्ञान प्राप्ति का तरीका सीखा जाए
जिससे प्राप्त किया गया ज्ञान अधिक उपयोगी तथा लाभप्रद सिद्ध हो सके।
• किसी व्यक्ति के लिए ज्ञान प्राप्त करना तभी उपयोगी हो सकता है, जबकि
वह ज्ञान का अपनी आवश्यकतानुसार उचित उपयोग कर सके। किसी ज्ञान
का उचित उपयोग करना व्यक्ति को मानसिक शक्तियों पर निर्भर करता है।
प्रोफेसर शल्ट्ज महोदय के अनुसार “गणित की शिक्षा प्राथमिक रूप से
मानसिक शक्तियों को प्रशिक्षित करने के लिए दी जाती है। गणित के
विभिन्न तथ्यों का ज्ञान देना इसके बाद ही आता है।”
इस प्रकार गणित का अध्ययन करने से बच्चे को अपनी सभी मानसिक
शक्तियों को विकसित करने का पूर्ण अवसर मिलता है। गणित का
अध्ययन बच्चों को अपनी निरीक्षण शक्ति (Observation Power), तर्क
शक्ति (Logical Power), स्मरण शक्ति (Memory), एकाग्रता
(Concentration), मौलिकता (Originality), अन्वेषण शक्ति (Power
of Discovery), विचार एवं चिन्तन शक्ति (Thinking and Reasoning
Power), आत्मनिर्भरता (Self-Reliance) तथा कठिन परिश्रम (Hard
Work) आदि सभी मानसिक शक्तियों को पूर्णरूप से विकसित करने का
अवसर प्रदान करता है। इस सम्बन्ध में हब्स ने ठीक ही लिखा है कि
“गणित मस्तिष्क को तीक्ष्ण एवं तीव्र बनाने में उसी प्रकार कार्य करता है
जैसे किसी औजार को तीक्ष्ण करने में काम आने वाला पत्थर। इसके
अध्ययन से स्पष्ट, तर्क सम्मत एवं क्रमबद्ध रूप से भली-भाँति सोचने की
शक्ति आती है।”
                                          अभ्यास प्रश्न
1. निम्न में से क्या गणित की प्रकृति है?
(1) यह अलंकारिक है
(2) यह तार्किक है
(3) यह कठिन है
(4) यह सामान्य लोगों के लिए नहीं है
2. निम्न में से किसने कहा कि “गणित वह
विज्ञान है जिसमें आवश्यक निष्कर्ष निकाले
जाते हैं।”
(1) हाग्देन
(2) स्किनर
(3) लॉक
(4) बेन्जामिक पेरिक
3. “गणित सभी विज्ञानों का सिंह द्वार व कुंजी
है।” यह कथन है
(1) बेकन
(2) ड्यूट
(3) स्किनर
(4) कॉमेट
4. गणित के नियम व निष्कर्ष होते हैं
(1) वस्तुनिष्ठ
(2) सार्वभौमिक
(3) वस्तुनिष्ठ व सार्वभौमिक दोनों ही
(4) उपरोक्त में से कोई नहीं
5. विद्यार्थी गणित की संकल्पनाओं और
सिद्धान्तों के अर्थ को समझता है, यह
अधिगम के किस उद्देश्य की प्राप्ति है?
(1) कौशल
(2) पूर्व ज्ञान
(3) अनुप्रयोग
(4) अवबोधन
6. गणित को कहा जाता है
(1) विद्यार्थियों का दुश्मन
(2) शक्तिशालियों की शक्ति
(3) मन की भाषा
(4) मस्तिष्क का व्यायाम
7. “योजना एक उद्देश्यपूर्ण क्रिया है जिसे
मन लगाकर सामाजिक वातावरण में पूरा
किया जाता है।” गणित शिक्षण की योजना
विधि की उक्त परिभाषा किसने दी है?
(1) किलपैट्रिक
(2) थॉर्नडाइक
(3) क्रो एवं क्रो
(4) स्किनर
8. वह उद्देश्य जो शिक्षक गणित पढ़ाने के
बाद कक्षा में ही प्राप्त कर लेता है, उसे
कहा जाता है?
(1) सांस्कृतिक उद्देश्य
(2) शैक्षणिक उद्देश्य
(3) सामाजिक उद्देश्य
(4) उपरोक्त सभी
9. “यह वास्तविकता है कि गणित को बहुत
से छात्र कठिन समझते हैं। अत: स्कूल और
शिक्षक द्वारा ठोस कदम उठाए जाने चाहिए
जिससे छात्रों के गणित समझने के स्तर को
बढ़ाया जा सके।”, उक्त दृष्टिकोण है
(1) माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का
(2) मुदालियर आयोग का
(3) शिक्षा नीति, 1986 का
(4) राधाकृष्णन का
10. गणित की प्रकृति एवं संरचना में निम्न
विशेषता पाई जाती है
(1) गणित विषय में अक्रमबद्धता
(2) गणित की भाषा असांकेतिक है
(3) गणित एक रसहीन विषय है
(4) गणित एक मूर्त विषय है
11. गणित शिक्षण में शिक्षक को निम्नलिखित
बात पर ध्यान नहीं देना चाहिए
(1) व्यावहारिक जीवन से विषय का सम्बन्ध हो
(2) मानसिक शक्तियों का विकास हो
(3) जातीय प्रतिष्ठा का उपाय हो
(4) आनन्द की प्राप्ति ना हो
12. “गणित शिक्षण का वास्तविक उद्देश्य ज्ञान
प्राप्त करना नहीं है, वरन् शक्ति प्रदान
करना है।” वह कथन है
(1) ड्यूट
(2) बेकन
(3) डटन
(4) huetšes
13. व्यावहारिक गणित का भाग है
(1) संख्याओं का हिसाब लगाना
(2) जोड़ व बाकी ज्ञात करना
(3) समीकरणों को हल करना
(4) बैंकों की कार्यप्रणाली की जाँच करना
                                  विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्न
14. कक्षा IV के विद्यार्थियों को यह समझाने के
लिए कि शेष हमेशा विभाजक से कम होता
है, उचित उपागम है          [CTET Jan 2012]
(1) श्यामपट्ट पर विभाजन करने वाले बहुत सारे
सवाल करना और दिखाना कि हर बार शेष
विभाजक से कम है
(2) अनेक बार विद्यार्थियों को मौखिक रूप से
स्पष्ट करना
(3) विभाजन वाले सवालों को मिश्रित भिन्नों के
रूप में निरूपित करना और यह स्पष्ट करना
कि भिन्न का अंश शेष है
(4) वस्तुओं को विभाजक के गुणजों में समूहीकृत
करना और प्रदर्शित करना कि वस्तुओं की
संख्या, जो समूह में नहीं हैं, विभाजक से कम है
15. कक्षा IV में बिन्दु और रेखा पर ज्यामितीय
पाठ के लिए आकलन निर्देश होंगे
                                      [CTET Nov 2012]
(1) परिशुद्ध रूप से सेमी और इंचों में रेखाखण्ड
को माप सकता है और रेखाखण्ड के अन्तः
बिन्दुओं को चिह्नित कर सकता है
(2) रेखा, किरण और रेखाखण्ड में अन्तर कर
सकता है और उन्हें परिभाषित कर सकता है
(3) रेखा और रेखाखण्ड में अन्तर कर सकता है,
बिन्दु चिह्नित कर सकता है, दी गई लम्बाई के
अनुसार परिशुद्ध रूप से रेखाखण्ड खींच
सकता है
(4) सेमी और इंचों मे रेखा को परिशुद्ध रूप से
माप सकता है, रेखा का नाम बता सकता है
16. किन दो संख्याओं को गुणा करने पर 24
गुणनफल प्राप्त होगा?          [CTET Nov 2012]
(1) बच्चे को सामान्य समस्या समाधान
रणनीतियों को सुझाता है ताकि वह सही
उत्तर दे सके
(2) अधिसंज्ञानात्मक रूप से चिन्तन करने में
बच्चे की सहायता करता है
(3) मुक्त-अन्त वाला प्रश्न है क्योंकि इसके एक
से अधिक उत्तर हैं
(4) बृद्ध-अन्त वाला प्रश्न है क्योंकि इसके
निश्चित संख्या में उत्तर हैं
17. निम्नलिखित पर विचार कीजिए
5+ 3 = ?
इस सीमित उत्तर प्रश्न का तद्नुरूपी मुक्त
उत्तर प्रश्न होगा                [CTET Feb 2014]
(1) 5 और 3 का योग ज्ञात कीजिए
(2) 5 में क्या जोड़ा जाना चाहिए ताकि ८ प्राप्त
हो?
(3) कोई ऐसी दो संख्याएँ बताइए जिनका योग ८
(4) 5 और 3 का योग क्या होगा?
18. मानसिक गणित सम्बन्धी गतिविधियाँ
महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि ये निम्नलिखित में से
किसी एक के अवसर उपलब्ध कराती हैं
                                           [CTET Sept 2014]
(1) मानसिक संगणना सम्बन्धी प्रक्रियाओं का
विकास क्योंकि शिक्षार्थी तेज गति से
संख्याओं के परिकलन के बीच सम्बन्धों की
पहचान करने की कोशिश करता है
(2) पेपर-पेन्सिल का उपयोग करते हुए कक्षा में
प्रक्रियाओं को सीखने में निपुणता प्राप्त करना
(3) कलन विधि (एल्गोरिथ्म) को सीखने में
निपुणता प्राप्त करना और कम समय में
अधिक संख्या में समस्याओं का अभ्यास करना
(4) परिकलन में परिशुद्धता के साथ उनकी गति
को बढ़ाने और परीक्षाओं में उनके निष्पादन
में सुधार करने में मदद करना
19. प्राथमिक स्तर पर शिक्षार्थियों के लिए
व्यावहारिक उपकरणों का महत्त्व है,
क्योकि यह बहुत मदद करते है।
                               [CTET Sept 2016]
(1) मानसिक और मौखिक परिकलन की गति
बढ़ाने के लिए
(2) परीक्षा में बेहतर प्रदर्शन के लिए
(3) मूल गणितीय संकल्पनाओं को समझने के
लिए
(4) शब्दों में व्यक्त समस्याओं को हल करने के
लिए
20. निम्नलिखित में से कौन-सा खुला अन्त
वाला प्रश्न है?                  [CTET Sept 2015]
(1) आप 15 को 3 से गुणा किस प्रकार करेंगे?
(2) कोई दो-संख्याएँ लिखिए जिनका गुणनफल
45 हो
(3) संख्या रेखा का प्रयोग करते हुए ‘3 बार 15’
का मान ज्ञात कीजिए
(4) 15×3 का मान ज्ञात कीजिए
21. प्राथमिक स्तर पर गणित की अच्छी
पाठ्य-पुस्तक के लिए निम्नलिखित में से
कौन-सी विशेषता महत्त्वपूर्ण है?
                                 [CTET Sept 2015]
(1) उसमें अवधारणाओं का परिचय सन्दर्भो के
द्वारा दिया जाना चाहिए
(2) उसमें केवल बहुत-से अभ्यास होने चाहिए
जिससे कि यथातथ्य अभ्यास किया जा सके
(3) वह आकर्षक और रंगीन होनी चाहिए
(4) वह मोटी और बड़ी होनी चाहिए
22. निम्नलिखित में से कौन-सा, संख्या की
समझ का महत्त्वपूर्ण पहलू नहीं है?
                                      [CTET Sept 2015]
(1) पंक्तिबद्धता
(2) गणना
(3) अंक लिखना
(4) संरक्षण
23. वास्तविक जिन्दगी से गणित का सम्बन्ध बनाने
के लिए और अन्तर्विषयों को विकसित करने
के लिए निम्नलिखित में से किन मूल्यांकन
योजनाओं का उपयोग किया जा सकता है?
                                  [CTET Sept 2016]
(1) क्षेत्रीय भ्रमण, मौखिक परीक्षा, ड्रिल कार्यपत्रक
(2) सर्वेक्षण, परियोजना, जाँच सूची
(3) क्षेत्रीय भ्रमण, मौखिक परीक्षा, जाँच सूची
(4) क्षेत्रीय भ्रमण, सर्वेक्षण, परियोजना
24. कक्षा । के एक शिक्षक ने एक विद्यार्थी को
सभी वस्तुओं की गणना करने के लिए कहा,
जिनमें पेन, रबड़ और शार्पनर का संग्रह था।
विद्यार्थी ने सभी वस्तुओं को एक रेखा में रखा
और गणना शुरु की। उसने 10 वस्तुओं के
स्थान पर कहा कि 2 पेन, 5 रबड़ और 3
शार्पनर हैं। आपके विचार से विद्यार्थी को
गणना के किस सिद्धान्त/किन सिद्धान्तों पर
कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है?
                                    [CTET Sept 2016]
(1) अमूर्तन और असंगत क्रम सिद्धान्त
(2) स्थिर क्रम और अमूर्तन सिद्धान्त
(3) एकैकी संगतता सिद्धान्त
(4) अमूर्तन सिद्धान्त
25. ‘आकृतियों’ के निम्नलिखित पहलुओं में से
किसका प्राथमिक स्तर से कोई सम्बन्ध नहीं
है?                          [CTET Sept 2016]
(1) प्रतिरूप (पैटर्न)
(2) कोण
(3) सममिति
(4) चौपड़
                                                उत्तरमाला
1. (2) 2.(4) 3.(1) 4. (4) 5. (4) 6. (4) 7.(1) 8. (2) 9. (3) 10.(3)
11.(4) 12. (3) 13.(4) 14. (4) 15.(2) 16. (3) 17.(3) 18.(1)
19.(3) 20. (1) 21. (1) 22.(4) 23. (1) 24. (3) 25. (4)
                                                 ★★★

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